घरेलू,आयुर्वेदिक या प्राकृतिक उपचार किसी रोग की चिकित्सा की वह विधि है जिसमें जडी-बूटियों, मसाले, सब्जियों या आसानी से उपलब्ध सामग्री का उपयोग किया जाता है-Dr.Dayaram Aalok,.D.I.Hom(London)
भोजन खूब अच्छी तरह से चबा चबा कर खाना चाहिये। दांत का काम आंत पर डालना उचित नहीं है। दोनों वक्त शोच निवृत्ति की आदत डालें।
किशमिश-
५० ग्राम किशमिश रात को पानी में भिगोदे सुबह भली प्रकार चबा चबा कर खाएं। २-३ माह के प्रयोग से वजन बढेगा।
नारियल का दूध -
यह आहार तेलों का समृद्ध स्रोत है और भोजन के लिए अच्छा तथा स्वादिस्ट जायके के लिए जाना जाता है। नारियल के दूध में भोजन पकाने से खाने में कैलोरी बढ़ेगी। जिससे आपके वजन में वृद्धि होगी।
मलाई-
मिल्क क्रीम में आवश्यकता से ज्यादा फैटी एसिड होता है। और ज्यादातर खाद्य उत्पादों की तुलना में अधिक कैलोरी की मात्रा होती है। मिल्क क्रीम को पास्ता और सलाद के साथ खाने से वजन तेजी से बढ़ेगा।
अखरोट -
अखरोट में आवश्यक मोनोअनसेचुरेटेड फैट होता है जो स्वस्थ कैलोरी को उच्च मात्रा में प्रदान करता है। रोज़ 20 ग्राम अखरोट खाने से वजन तेजी से प्राप्त होगा।
केला-
तुरंत वजन बढाना हो तो केला खाइये। रोज़ दो या दो से अधिक केले खाने से आपका पाचन तंत्र भी अच्छा रहेगा।
ब्राउन राइस -
ब्राउन राइस कार्बोहाइड्रेट और फाइबर की एक स्वस्थ खुराक का स्रोत है। भूरे रंग के चावल कार्बोहाइड्रेट का भंडार है इसलिए नियमित रूप से इसे खाने से वजन तेजी से हासिल होगा।
आलू-
आलू कार्बोहाइड्रेट और काम्प्लेक्स शुगर का अच्छा स्त्रोत है। ये ज्यादा खाने से शरीर में फैट की मात्रा बढ़ जाती है। बीन्स :
जो लोग शाकाहारी है और नॉनवेज नहीं खाते उनके लिए बीन्स से अच्छा कोई विकल्प नहीं है। बीन्स के एक कटोरी में 300 कैलोरी होती है। यह सिर्फ वजन बढ़ने में ही मदत नहीं करता बल्कि पौष्टिक भी होता है। मक्खन :
मक्खन में सबसे ज्यादा कैलोरी पाई जाती है। मक्खन खाने के स्वाद को सिर्फ बढ़ाता ही नहीं बल्कि वजन बढ़ाने में भी मदद करता है।
उलट कम्बल गर्भाशय संबंधी विकारो की रोकथाम के लिए उपयुक्त औषधि हैं। इसके अलावा इसका सेवन करने से गठिया, गठिये में होने वाले दर्द, कष्टार्तव, मधुमेह जैसी समस्याओं में फायदा होता हैं। उलट कम्बल से साइनसाइटिस से होने वाले सिरदर्द से भी राहत मिलती हैं। औषधीय भाग जड़ और जड़ की छाल उलट कम्बल (एब्रोमा ऑगस्टा) का महत्वपूर्ण औषधीय भाग हैं। इसकी जड़ों का प्रयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता हैं। यह गर्भाशय के लिए टॉनिक, आर्तवजनक, गर्भाशय के विकारो से मुक्त करने वाला और पीड़ानाशक होता हैं। इसी वजह से इसका प्रयोग भारतीय पारंपरिक दवाईयों में भी किया जाता हैं। कुछ मामलों में इसकी पत्तियां और तना भी राहत प्रदान करने का काम करती हैं।
औषधीय कर्म उलट कम्बल में निम्नलिखित औषधीय गुण है: गर्भाशय-बल्य गर्भाशय उतेजक आर्तव जनन वेदनास्थापन – पीड़ाहर (दर्द निवारक) चिकित्सकीय संकेत उलट कम्बल निम्नलिखित व्याधियों में लाभकारी है:
रजोरोध अनियमित माहवारी (अनियमित ऋतुस्त्राव) संधिशोथ
उलट कम्बल के लाभ और औषधीय प्रयोग उलट कम्बल कई बिमारियों के लिए एक बहुत अच्छी आयुर्वेदिक औषधि हैं। इसके कुछ लाभ और औषधीय प्रयोग इस प्रकार हैं। उलट कम्बल के जड़ की छाल मासिक धर्म को नियंत्रित करने सहायक हैं। यह औषधि हार्मोन्स को संतुलित करती हैं। जिससे अंडे (अंडाणु) के बनने की प्रक्रिया भी संतुलित होती हैं। रजोरोध, अनियमित माहवारी और अंडे (अंडाणु) का न बनना यह औषधि दोनों तरह की रजोरोध में भी लाभदायक हैं। यह अंडाशय को उभारता हैं, जिससे हार्मोन्स संतुलित होते हैं। यह माहवारी को शुरू करने में सहायक है। माहवारी न आती हो (रजोरोध के इलाज के लिए) इन बिमारियों में उलट कम्बल की जड़ की छाल का चूर्ण (1 to 3 ग्राम) और काली मिर्च (125 से 500 मिलीग्राम) दिये जाते हैं। इस औषषि का सेवन पानी के साथ तब तक किया जाता हैं जब तक की माहवारी शुरू न हो जाये। माहवारी नियमित करने के लिए इस औषधि का सेवन माहवारी आने की तिथि से सात दिन पहले शुरू किया जाता हैं। महावरी के चार दिन बाद तक इस औषधि को दिया जाता हैं। इस उपाय से माहवारी नियमित हो जाती हैं। ऐसे ही इसका प्रयोग कम से कम चार महीनो तक करना चाहिए।
कष्टार्तव उलट कंवल जड़ की छाल माहवारी में होने वाली दर्द और माहवारी से पहले के दर्द और अन्य लक्षण पर भी अपना असर डालती हैं। इन रोगों का उपचार करने के लिए, जड़ की छाल के चूर्ण का सेवन माहवारी आने की तारीख से 3 से 7 दिन पहले शुरू करना चाहिए। इसका सेवन तब तक करना चाहिए जब तक ब्लीडिंग रुक न जाये। संधिशोथ उलट कम्बल का प्रयोग संधिशोथ में बहुत ही कम किया जाता हैं। मगर इस औषधि में सूजन और पीड़ा कम करने वाले गुण होते हैं। इस गुणों की वजह से संधिशोथ के रोगियों को जोड़ो में होने वाली सूजन और पीड़ा से राहत मिलती हैं।
वृक्क अश्मरी या गुर्दे की पथरी (वृक्कीय कैल्कली, नेफरोलिथियासिस) (अंग्रेजी:Kidney stones) मूत्रतंत्र की एक ऐसी स्थिति है जिसमें, वृक्क (गुर्दे) के अन्दर छोटे-छोटे पत्थर सदृश कठोर वस्तुओं का निर्माण होता है। गुर्दें में एक समय में एक या अधिक पथरी हो सकती है। सामान्यत: ये पथरियाँ बिना किसी तकलीफ मूत्रमार्ग से शरीर से बाहर निकाल दी जाती हैं, किन्तु यदि ये पर्याप्त रूप से बड़ी हो जाएं (२-३ मिमी आकार के) तो ये मूत्रवाहिनी में अवरोध उत्पन्न कर सकती हैं। इस स्थिति में मूत्रांगो के आसपास असहनीय पीड़ा होती है।
वृक्कों गुर्दों में पथरी होने का प्रारंभ में रोगी को कुछ पता नहीं चलता है, लेकिन जब वृक्कों से निकलकर पथरी मूत्रनली में पहुंच जाती है तो तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। पथरी के कारण तीव्र शूल से रोगी तड़प उठता है। पथरी क्यों बनती है- भोजन में कैल्शियम, फोस्फोरस और ऑक्जालिकल अम्ल की मात्रा अधिक होती है तो पथरी का निर्माण होने लगता है। उक्त तत्त्वों के सूक्ष्म कण मूत्र के साथ निकल नहीं पाते और वृक्कों में एकत्र होकर पथरी की उत्पत्ति करते हैं। सूक्ष्म कणों से मिलकर बनी पथरी वृक्कों में तीव्र शूल की उत्पत्ति करती है। कैल्शियम, फोस्फेट, कोर्बोलिक युक्त खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से पथरी का अधिक निर्माण होता है।
गुर्दे मे बड़ी पथरी नष्ट करने विषयक विडिओ
“गुर्दे की पथरी की चिकित्सा”:
लक्षण - पथरी के कारण मूत्र का अवरोध होने से शूल की उत्पत्ति होती है। मूत्र रुक-रुक कर आता है और पथरी के अधिक विकसित होने पर मूत्र पूरी तरह रुक जाता है। पथरी होने पर मूत्र के साथ रक्त भी निकल आता है। रोगी को हर समय ऐसा अनुभव होता है कि अभी मूत्र आ रहा है। मूत्र त्याग की इच्छा बनी रहती है।
पथरी के कारण रोगी के हाथ-पांवों में शोध के लक्षण दिखाई देते हैं। मूत्र करते समय पीड़ा होती है। कभी-कभी पीड़ा बहुत बढ़ जाती है तो रोगी पीड़ा से तड़प उठता है। रोगी कमर के दर्द से भी परेशान रहता है। पथरी रोगी का आहार-
* चुकंदर का सूप बनाकर पीने से पथरी रोग में लाभ होता है। * मूली का रस सेवन करने से पथरी नष्ट होती है। * जामुन, सेब (apple) और खरबूजे खाने से पथरी के रोगी को बहुत लाभ होता है।
* वृक्कों में पथरी पर नारियल का अधिक सेवन करें। * करेले के 10 ग्राम रस में मिसरी मिलाकर पिएं। * पालक का 100 ग्राम रस गाजर के रस के साथ पी सकते हैं। * लाजवंती की जड़ को जल में उबालकर कवाथ बनाकर पीने से पथरी का निष्कासन हो जाता है। * इलायची, खरबूजे के बीजों की गिरी और मिसरी सबको कूट-पीसकर जल में मिलाकर पीने से पथरी नष्ट होती है।
* बथुआ, चौलाई, पालक, करमकल्ला या सहिजन की सब्जी खाने से बहुत लाभ होता है।
* वृक्कों की पथरी होने पर प्रतिदिन खीरा, प्याजव चुकंदर का नीबू के रस से बना सलाद खाएं। * गन्ने का रस) पीने से पथरी नष्ट होती है। * मूली के 25 ग्राम बीजों को जल में उबालकर, क्वाथ बनाएं। इस क्वाथ को छानकर पिएं।
* आंवले का 5 ग्राम चूर्ण मूली के टुकड़ों पर डालकर खाने से वृक्कों की पथरी नष्ट होती है। * शलजम की सब्जी का कुछ दिनों तक निरंतर सेवन करें। * गाजर का रस पीने से पथरी खत्म होती है। वर्जित आहार-
कॉफी व शराब का सेवन न करें।* चइनीज व फास्ट फूड वृक्कों की विकृति में बहुत हानि पहंुचाते हैं।
* मूत्र के वेग को अधिक समय तक न रोकें।
* अधिक शारीरिक श्रम और भारी वजन उठाने के काम न करें।
* वृक्कों में पथरी होने पर चावलों का सेवन न करें।
* उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रस से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
* गरिष्ठ व वातकारक खाद्य व सब्जियों का सेवन न करें।
गुर्दे की पथरी का दर्द असनीय होता है, इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन औषधियों के प्रयोग से इससे निजात मिलती है। किडनी स्टोन गलत खानपान का नतीजा है, इसके मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। गुर्दे की पथरी होने पर असहनीय दर्द होता है। जब नमक एवं अन्य खनिज (जो मूत्र में मौजूद होते हैं) एक दूसरे के संपर्क में आते हैं तब पथरी बनती है। कुछ पथरी रेत के दानों की तरह बहुत छोटे आकार के होते हैं तो कुछ मटर के दाने की तरह। आमतौर पर पथरी मूत्र के जरिये शरीर के बाहर निकल जाती है, लेकिन जो पथरी बड़ी होती है वह बहुत ही परेशान करती है। पथरी के उपचार के लिए रामबाण नुस्खे
आंवला – किड्नी स्टोन होने पर आंवले का सेवन करना चाहिए। आंवला का चूर्ण मूली के साथ खाने से गुर्दे की पथरी निकल जाती है। इसमें अलबूमीन और सोडियम क्लोराइड बहुत ही कम मात्रा में पाया जाता है जिनकी वजह से इन्हें गुर्दे की पथरी के उपचार के लिए बहुत ही उत्तम (perfect) माना जाता है। इसलिए गुर्दे की पथरी होने पर आंवले का सेवन कीजिए। चौलाई-
गुर्द की पथरी को गलाने के लिए चौलाई का प्रयोग कीजिए। इसके अलावा चौलाई की सब्जी भी गुर्दे की पथरी से निजात दिलाती है, यह पथरी को गलाने के लिये रामबाण की तरह है। चौलाई को उबालकर धीरे-धीरे चबाकर खाएं। इसे दिन में 3 से 4 बार इसका प्रयोग कीजिए। बेल पत्र- बेल पत्र को पर जरा सा पानी मिलाकर घिस लें, इसमें एक साबुत काली मिर्च डालकर सुबह खायें। दूसरे दिन काली मिर्च दो कर दें और तीसरे दिन तीन, ऐसे सात दिनों तक लगातार इसका सेवन कीजिए। बाद में इसकी संख्या कम कीजिए, दो सप्ताह तक प्रयोग करने के बाद पथरी बाहर निकल जायेगी। काली मिर्च – काली मिर्च भी गुर्दे की पथरी से निजात दिलाती है, काली मिर्च का सेवन बेल पत्तर के साथ करने से दो सप्ताह में गुर्दे की पथरी पेशाब (urine) के रास्ते बाहर निलक जाती है।
बथुआ- बथुआ भी किड़नी स्टोन से निजात दिलाता है। आधा किलो बथुआ लेकर इसे 800 मिलि पानी में उबालें। अब इसे कपड़े या चाय की छलनी में छान लीजिए। बथुआ की सब्जी भी इसमें अच्छी तरह मसलकर मिला लीजिए। आधा चम्मच काली मिर्च और थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर दिन में 3 से 4 बार पीयें। इससे गुर्दे की पथरी निकल जाती है। तुलसी की पत्ती- गुर्दे की पथरी होने पर तुलसी के पत्तों का सेवन कीजिए। तुलसी के पत्तों में विटामिन बी पाया जाता है जो पथरी से निजात दिलाने में मदद करता है। यदि विटामिन बी-6 को विटामिन बी ग्रुप के अन्य विटामिंस के साथ सेवन किया जाये तो गुर्दे की पथरी के इलाज में बहुत सहायता मिलती है। शोधकर्ताओं की मानें तो विटामिन बी की 100-150 मिग्रा की नियमित खुराक लेने से गुर्दे की पथरी से निजात मिलती है। जीरा किड्नी स्टोन को बाहर निकालने में जीरा बहुत कारगर है। जीरा और चीनी को समान मात्रा में लेकर पीस लीजिए, इस चूर्ण को एक-एक चम्मच ठंडे पानी के साथ रोज दिन में तीन बार लीजिए। इससे बहुत जल्दी ही गुर्दे की पथरी से निजात मिल जाती है। सौंफ सौंफ भी गुर्दे की पथरी के लिए रामबाण उपचार है। सौंफ, मिश्री, सूखा धनिया इनको 50-50 ग्राम मात्रा में लेकर रात को डेढ़ लीटर पानी में भिगोकर रख दीजिए, इसे 24 घंटे के बाद छानकर पेस्ट (paste) बना लीजिए। इसके एक चम्मच पेस्ट में आधा कप ठंडा पानी मिलाकर पीने से पथरी पेशाब के रास्ते बाहर निकल जाती है। इलायची इलायची भी गुर्दे की पथरी से निजात दिलाती है। एक चम्मच इलायची, खरबूजे के बीज की गिरी, और दो चम्मच मिश्री एक कप पानी में डालकर उबाल लीजिए, इसे ठंडा होने के बाद छानकर सुबह-शाम पीने से पथरी पेशाबके रास्ते से बाहर निकल जाती है।
विशिष्ट परामर्श-
पथरी के भयंकर दर्द को तुरंत समाप्त करने मे यह हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित होती है,जो पथरी- पीड़ा बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज से भी बमुश्किल काबू मे आती है इस औषधि की 2-3 खुराक से आराम लग जाता है| वैध्य श्री दामोदर 9826795656 की जड़ी बूटी - निर्मित दवा से 30 एम एम तक के आकार की बड़ी पथरी भी नष्ट हो जाती है|
गुर्दे की सूजन ,पेशाब मे जलन ,मूत्रकष्ट मे यह औषधि रामबाण की तरह असरदार है| आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ती | पथरी न गले तो औषधि मनीबेक गारंटी युक्त है|
सिरदर्द एक आम रोग है और प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी इसे मेहसूस करता ही है।इस रोग के विशेषग्य इसके कारण के मामले में एकमत न होकर अलग-अलग राय रखते हैं। सभी की राय है कि माईग्रेन के विषय में और अनुसंधान की आवश्यकता है। अभी तक माईग्रेन की तीव्रता का कोइ वैग्यानिक माप भी नहीं है।
माईग्रेन एक रक्त परिसंचरण(vascular) तंत्र की व्याधि है। मस्तिष्क की रुधिर वाहिकाओं का आकार बढ जाने से याने खून की नलिकाएं फ़ैल जाने से इस रोग का संबंध माना जाता है। इन रुधिर वाहिकाओं पर नाडियां(नर्व्ज) लिपटी हुई होती हैं। जब रक्त वाहिकाएं फ़ैलकर आकार में बढती हैं तो नाडियों पर तनाव बढता है और फ़लस्वरूप नाडियां एक प्रकार का केमिकल निकालती हैं जिससे दर्द और सूजन पैदा होते हैं,यही माईग्रेन है
माईग्रेन अक्सर हमारे सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम पर हमला करता है। इस नाडीमंडल की अति सक्रियता से आंतों में व्यवधान होकर अतिसार,वमन भी शिरोवेदना के साथ होने लगते हैं। इससे आमाषय स्थित भोजन भी देरी से आंतों में पहुंचता है। माईग्रेन की मुख मार्ग से ली गई दवा भी भली प्रकार अंगीकृत नहीं हो पाती है। प्रकाश और ध्वनि के प्रति असहनशीलता पैदा हो जाती है। रक्त परिवहन धीमा पडने से चर्म पीला पड जाता है और हाथ एवं पैर ठंडे मेहसूस होते हैं।
माईग्रेन का सिरदर्द गर्मी,मानसिक तनाव,अपर्याप्त नींद से बढ जाता है। करीब ७० प्रतिशत माईग्रेन रोगियों का पारिवारिक इतिहास देखें तो उनके नजदीकी रिश्तेदारों में इस रोग की मौजूदगी मिलती है। पुरुषों की बनिस्बत औरतों में यह रोग ज्यादा होता है। इस रोग को आधाशीशी भी कहते हैं ।यह ज्यादातर सिर के बांये अथवा दाहिने भाग में होता है। कभी-कभी यह दर्द ललाट और आंखों पर स्थिर हो जाता है। सिर के पिछले भाग में गर्दन तक भी माईग्रेन का दर्द मेहसूस होता है। माईग्रेन का सिरदर्द ४ घंटे से लेकर ३-४ दिन की अवधि तक बना रह सकता है। बहुत से माईग्रेने रोगियों में सिर के दोनों तरफ़ दर्द पाया जाता है। माईग्रेन एक बार बांयीं तरफ़ होगा तो दूसरी बार दांये भाग में हो सकता है। माईग्रेन का दर्द सुबह उठते ही प्रारंभ हो जाता है और सूरज के चढने के साथ रोग भी बढता जाता है। दोपहर बाद दर्द में कमी हो जाती है। ऐसा देखने में आया है कि ६० साल की उम्र के बाद यह रोग हमला नहीं करता है।
इस रोग के इलाज में माडर्न दवाएं ज्यादा सफ़ल नहीं हैं। साईड ईफ़ेक्टस ज्यादा होते हैं। मेरे हिसाब से निम्नलिखित उपाय निरापद हैं और कारगर भी हैं--
१) बादाम १०-१२ नग प्रतिदिन खाएं। यह माईग्रेन का उत्तम उपचार है।
२) बंद गोभी को कुचलकर एक सूती कपडे में बिछाकर मस्तक (ललाट) पर बांधें। रात को सोते वक्त या दिन में भी सुविधानुसार कर सकते हैं। जब गोभी का पेस्ट सूखने लगे तो नया पेस्ट बनाकर पट्टी बांधें। मेरे अनुभव में यह माईग्रेन का सफ़ल उपचार हैं।
३) अंगूर का रस २०० मिलि सुबह -शाम पीयें। आजमाने योग्य कारगर नुस्खा है।
४) नींबू के छिलके कूट कर पेस्ट बनालें। इसे ललाट पर बांधें । जरूर फ़ायदा होगा।
५) गाजर का रस और पालक का रस
दोनों करीब ३०० मिलि पीयें
आधाशीशी में गुणकारी है।
६) गरम जलेबी २०० ग्राम नित्य सुबह खाने से भी कुछ रोगियों को लाभ हुआ है।
७) आधा चम्मच सरसों के बीज का पावडर ३ चम्मच पानी में घोलक्रर नाक में रखें । माईग्रेन का सिरदर्द कम हो जाता है।
७) सिर को कपडे से मजबूती से बांधें। इससे खोपडी में रक्त का प्रवाह कम होकर सिरदर्द से राहत मिल जाती है।
८) माईग्रेन रोगी देर से पचने वाला और मसालेदार भोजन न करें।
९) विटामिन बी काम्प्लेक्स का एक घटक नियासीन है। यह विटामिन आधाशीशी रोग में उपकारी है। १०० मिलि ग्राम की मात्रा में रोज लेते रहें।
१०) तनाव मुक्त जीवन शैली अपनाएं।
११) सूर्योदय से पूर्व नारियल और गुड के साथ छोटे चने के बराबर कपूर मिलाकर तीन दिन खाने से आधाशीशी का रोग मिटता है|
१२) गाय का शुद्ध ताजा घी दो -दो बूँद नाक में डालने से माईग्रेन में लाभ होता है|
१३) दही चावल और मिश्री मिलाकर सूर्योदय से पहिले कहानी से आधाशीशी रोग काबू में आ जाता है|,
१४) इस दर्द में अगर सिर, गर्दन और कंधों की मालिश की जाए तो यह इस दर्द से राहत दिलाने बहुत मददगार साबित हो सकता है। इसके लिए हल्की खुशबू वाले अरोमा तेल का प्रयोग किया जा सकता है।
१५) एक तौलिये को गर्म पानी में डुबाकर, उस गर्म तौलिये से दर्द वाले हिस्सों की मालिश करें। कुछ लोगों को ठंडे पानी से की गई इसी तरह की मालिश से भी आराम मिलता है। इसके लिए आप बर्फ के टुकड़ों का उपयोग भी कर सकते हैं।
१६) कपूर को घी में मिलाकर सिर पर हल्के हाथों से मालिश करें। मक्खन में मिश्री मिलाकर सेवन करें।
१७) नींबू का छिलका पीसकर उसका लेप माथे पर लगाने से माइग्रेन ठीक होता है।
१८) हरी सब्जियों और फ़लों को अपने भोजन में प्रचुरता से शामिल करें।
अनियमित दिनचर्या और जीवन शैली की वजह से होने वाला तनाव आज शहरी आबादी और खासकर युवाओं में हाई ब्लड प्रेशर( हाईपरटेंशन) की समस्या के रूप में तेजी से सामने आ रहा है।भारत की लगभग ३० प्रतिशत शहरी आबादी इस रोग की चपेट में बताई गई है। जबकि १० से १२ प्रतिशत ग्रामीण इस रोग से पीडित हैं। चिकित्सा विग्यान में निम्न रक्त चाप की तुलना में उच्च रक्त चाप ज्यादा नुकसानदेह बताया गया है। कारण ये है कि हाई ब्लड प्रेशर से रोगी में अन्य कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। ज्यादा रक्त चाप की परिणिति लकवा अथवा हार्ट अटेक में भी होती है। भारत में ३५ वर्ष से ज्यादा के लोगों में यह रोग तेजी से प्रवेश कर रहा है।
दुनिया भर में कई लोगों की मौत के मुख्य कारणों में से हाईपरटेंशन भी एक कारण है। और इसकी वजह है शारीरिक गतिविधियों की कमी। मोटापा, तनाव, खाने पीने में लापरवाही, गंभीर बीमारियाँ, धूम्रपान, नशा आदि। रक्त चाप के अधिकतम दवाब को सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर कहते हैं। जबकि कम से कम दाब को डायस्टोलिक प्रेशर कहते हैं।आदर्श ब्लड प्रेशर १२०/८० याने ऊंचे में १२० और नीचे में ८० है। युवा वर्ग में अक्सर डायस्टोलिक प्रेशर बढा हुआ पाया जाता है जबकि अधिक उम्र के लोगों में सिस्टोलिक प्रेशर ज्यादा देखने में आता है। उच्च रक्त चाप के चलते रोगी में हृदय संबंधी विकार,किडनी के रोग,नाडी मंडल की तकलीफ़ें आदि कई तरह की जटिलताएं पैदा हो सकती हैं।उच्च रक्त चाप से ब्रेन हेमरेज जैसी अत्यंत गंभीर समस्या भी उत्पन होते देखी जा रही है। चिकित्सा विज्ञान में उच्च रक्त चाप निम्न रुधिर दाब से ज्यादा खतरनाक माना गया है।
उच्च रक्त चाप के लक्षण
रक्त चाप बढने से तेज सिर दर्द,थकावट,टांगों में दर्द ,उल्टी होने की शिकायत और चिडचिडापन होने के लक्षण मालूम पडते हैं। यह रोग जीवन शैली और खान-पान की आदतों से जुडा होने के कारण केवल दवाओं से इस रोग को समूल नष्ट करना संभव नहीं है। जीवन चर्या एवं खान-पान में अपेक्षित बदलाव कर इस रोग को पूरी तरह नियंत्रित किया सकता है।
हाई ब्लड प्रेशर के मुख्य कारण
१) मोटापा २) तनाव(टेंशन) ३) महिलाओं में हार्मोन परिवर्तन ४) ज्यादा नमक उपयोग करना अब यहां ऐसे सरल घरेलू उपचारों की चर्चा की जायेगी जिनके सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करने से बिना गोली केप्सुल लिये इस भयंकर बीमारी पर पूर्णत: नियंत्रण पाया जा सकता है- १) सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगी को नमक का प्रयोग बिल्कुल कम कर देना चाहिये। नमक ब्लड प्रेशर बढाने वाला प्रमुख कारक है।
२) उच्च रक्तचाप का एक प्रमुख कारण है रक्त का गाढा होना। रक्त गाढा होने से उसका प्रवाह धीमा हो जाता है। इससे धमनियों और शिराओं में दवाब बढ जाता है।लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार घरेलू वस्तु है।यह रक्त का थक्का नहीं जमने देती है। धमनी की कठोरता में लाभदायक है। रक्त में ज्यादा कोलेस्ट्ररोल होने की स्थिति का समाधान करती है। ३) एक बडा चम्मच आंवला का रस और इतना ही शहद मिलाकर सुबह -शाम लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है। ४) जब ब्लड प्रेशर बढा हुआ हो तो आधा गिलास मामूली गरम पानी में काली मिर्च पावडर एक चम्मच घोलकर २-२ घंटे के फ़ासले से पीते रहें। ब्लड प्रेशर सही मुकाम पर लाने का बढिया उपचार है। ५) तरबूज का मगज और पोस्त दाना दोनों बराबर मात्रा में लेकर पीसकर मिलालें। एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी लें।३-४ हफ़्ते तक या जरूरत मुताबिक लेते रहें।
१६) मिठाई और चाकलेट का सेवन बंद कर दें। १७) सूखे मेवे :--जैसे बादाम काजू,खारक आदि उच्च रक्त चाप रोगी के लिये लाभकारी पदार्थ हैं। १८) चावल:- (भूरा) उपयोग में लावें। इसमें नमक ,कोलेस्टरोल,और चर्बी नाम मात्र की होती है। यह उच्च रक्त चाप रोगी के लिये बहुत ही लाभदायक भोजन है। इसमें पाये जाने वाले केल्शियम से नाडी मंडल की भी सुरक्षा हो जाती है। १९) अदरक:- प्याज और लहसून की तरह अदरक भी काफी फायदेमंद होता है। बुरा कोलेस्ट्रोल धमनियों की दीवारों पर प्लेक यानी कि कैलसियम युक्त मैल पैदा करता है जिससे रक्त के प्रवाह में अवरोध खड़ा हो जाता है और नतीजा उच्च रक्तचाप के रूप में सामने आता है। अदरक में बहुत हीं ताकतवर एंटीओक्सीडेट्स होते हैं जो कि बुरे कोलेस्ट्रोल को नीचे लाने में काफी असरदार होते हैं। अदरक से आपके रक्तसंचार में भी सुधार होता है, धमनियों के आसपास की मांसपेशियों को भी आराम मिलता है जिससे कि उच्च रक्तचाप नीचे आ जाता है। २०) लालमिर्च:- धमनियों के सख्त होने के कारण या उनमे प्लेक जमा होने की वजह से रक्त वाहिकाएं और नसें संकरी हो जाती हैं जिससे कि रक्त प्रवाह में रुकावटें पैदा होती हैं। लेकिन लाल मिर्च से नसें और रक्त वाहिकाएं चौड़ी हो जाती हैं, फलस्वरूप रक्त प्रवाह सहज हो जाता है और रक्तचाप नीचे आ जाता है। ब्लड प्रेशर कम( Low blood pressure) रहता हो तो निम्न उपचार हितकारी साबित हुए हैं--- किशमिश १० नग रात भर पानी में गलाएं। सुबह एक-एक किशमिश बहुत बारीक चबाकर खाएं। यह उपाय एक दो माह करें। बादाम ७ नग रात भर पानी में गलाएं। छिलका निकालें।अच्छी तरह पीसकर २५० मिलि दूध के साथ उपयोग करें। ब्लड प्रेशर ज्यादा गिरने पर चुटकी भर नमक पानी में घोलकर पीयें। बोलना बंद करें। सो जाएं। बाईं करवट लेटें। नींद लेना लाभदायक होता है।
नेत्र रोगों में कुदरती पदार्थों से ईलाज करना फ़ायदेमंद रहता है। कम उम्र में चश्मा लगना आजकल आम बात होती जा रही है| लेकिन ऐसा नहीं है कि किसी कारण से एक बार चश्मा लग गया तो वह उतर नहीं सकता | ऐनक लगने के प्रमुख कारण आँखों की भली प्रकार देख रेख नहीं करना,पोषक तत्वों की कमी, या आनुवांशिक हो सकता है| इनमें से आनुवांशिक को छोडकर अन्य कारण से लगा चश्मा सही देख भाल ,व् खान पान का ध्यान रखने के आलावा देशी उपचार के द्वारा उतारा जा सकता है| मोतियाबिंद बढती उम्र के साथ अपना तालमेल बिठा लेता है। अधिमंथ बहुत ही खतरनाक रोग है जो बहुधा आंख को नष्ट कर देता है। आंखों की कई बीमारियों में नीचे लिखे सरल उपाय करने हितकारी सिद्ध होंगे-
१) सौंफ़ नेत्रों के लिये हितकर है। मोतियाबिंद रोकने के लिये इसका पावडर बनालें। एक बडा चम्मच भर सुबह शाम पानी के साथ लेते रहें। नजर की कमजोरी वाले भी यह उपाय करें। २) विटामिन ए नेत्रों के लिये अत्यंत फ़ायदेमंद होता है। इसे भोजन के माध्यम से ग्रहण करना उत्तम रहता है। गाजर में भरपूर बेटा केरोटिन पाया जाता है जो विटामिन ए का अच्छा स्रोत है। गाजर कच्ची खाएं और जिनके दांत न हों वे इसका रस पीयें। २०० मिलि.रस दिन में दो बार लेना हितकर माना गया है। इससे आंखों की रोशनी भी बढेगी। मोतियाबिंद वालों को गाजर का उपयोग अनुकूल परिणाम देता है।
३) आंखों की जलन,रक्तिमा और सूजन हो जाना नेत्र की अधिक प्रचलित व्याधि है। धनिया इसमें उपयोगी पाया गया है।सूखे धनिये के बीज १० ग्राम लेकर ३०० मिलि. पानी में उबालें। उतारकर ठंडा करें। फ़िर छानकर इससे आंखें धोएं। जलन,लाली,नेत्र शौथ में तुरंत असर मेहसूस होता है।\
४) आंवला नेत्र की कई बीमारियों में लाभकारी माना गया है। ताजे आंवले का रस ५ मिलि. इतने ही शहद में मिलाकर रोज सुबह लेते रहने से आंखों की ज्योति में वृद्धि होती है। मोतियाबिंद रोकने के तत्व भी इस उपचार में मौजूद हैं। ५) भारतीय परिवारों में खाटी भाजी की सब्जी का चलन है।इसका अंग्रेजी नाम इन्डियन सोरेल है| खाटी भाजी के पत्ते के रस की कुछ बूंदें आंख में सुबह शाम डालते रहने से कई नेत्र समस्याएं हल हो जाती हैं। मोतियाबिंद रोकने का भी यह एक बेहतरीन उपाय है। ६) अनुसंधान में साबित हुआ है कि कद्दू के फ़ूल का रस दिन में दो बार आंखों में लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है। कम से कम दस मिनिट आंख में लगा रहने दें। ७) घरेलू चिकित्सा के जानकार विद्वानों का कहना है कि शहद आंखों में दो बार लगाने से मोतियाबिंद नियंत्रित होता है। ८) लहसुन की २-३ कुली रोज चबाकर खाना आंखों के लिये हितकर है। यह हमारे नेत्रों के लेंस को स्वच्छ करती है। ९) पालक का नियमित उपयोग करना मोतियाबिंद में लाभकारी पाया गया है। इसमें एंटीआक्सीडेंट तत्व होते हैं। पालक में पाया जाने वाला बेटा केरोटीन नेत्रों के लिये परम हितकारी सिद्ध होता है। ब्रिटीश मेडीकल रिसर्च में पालक का मोतियाबिंद नाशक गुण प्रमाणित हो चुका है। १०) एक और सरल उपाय बताते हैं| अपनी दोनों हथेलियां आपस में रगडें कि कुछ गर्म हो जाएं| फिर आंखों पर ऐसे रखें कि ज्यादा दबाव मेहसूस न हो। हां, हल्का सा दवाब लगावे। दिन में चार-पांच बार और हर बार आधा मिनिट के लिये करें। आंखों की रोशनी बढाने का नायाब तरीका है| ११) किशमिश ,अंजीर और खारक पानी में रात को भिगो दें और सुबह खाएं । मोतियाबिंद और ज्योति बढाने की अच्छी घरेलू दवा है। १२) भोजन के साथ सलाद ज्यादा मात्रा में शामिल करें । सलाद पर थोडा सा जेतून का तेल भी डालें। इसमें प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने के गुण हैं जो नेत्रों के लिये भी हितकर है।
१३) पाठकों , अब मैं वो उपचार बता रहा हूँ जिससे कई लोगों के चश्मे उतर गए हैं| नेत्र ज्योति वर्धक इस उपचार की जितनी भी प्रशंसा की जाय थोड़ी है| इसमें तीन पदार्थ जरूरी हैं| बड़ी सौंफ,मिश्री और बादाम | तीनों बराबर मात्रा में १००-१०० ग्राम लेकर महीन पीस लें | कांच के बर्तन में भर कर रखें| रात को सोते वक्त 1० ग्राम चूर्ण एक गिलास गरम दूध के साथ लें| यह प्रयोग ४०-५० दिन तक निरंतर करना है| १४) सूरज मुखी के बीजों का सेवन करना आंखों के लिए सेहतमंद रहता है| इसमें विटामिन सी,विटामिन ई,बीता केरोटीन और एंटीआक्सीडेंटस होते है जो आंखों की कमजोरी दूर करते हैं| १५) दूध व् अन्य डेयरी उत्पाद का पर्याप्त मात्रा में उपयोग करना नेत्र विकारों में फायदेमंद रहता है| इन चीजों से आखों को उचित पोषण मिलता है| १६) केवल बादाम का सेवन भी आँखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है| रोजाना चलते फिरते ८-१० बादाम खाने से जरूरी मात्रा में विटामिन ई प्राप्त होने से आँखें स्वस्थ रहती हैं| बादाम में प्र्प्तीं,रेशा,वसा,विटामिन और मिनरल पर्याप्त मात्रा में होते हैं| आयुर्वेद में उल्लेख है कि बादाम को भिगोकर खाने के बजाय अंकुरित करके खाना ज्यादा लाभप्रद होता है| अंकुरित करने के लिये बादाम १२ घंटे पानी में भिगोएँ | छानकर बादाम सुखालें| कांच के जार में रखें और अंकुरित होने के लिये ३- ४ दिन फ्रीज में रखें| रात को नो बादाम भिगोएँ ,सुबह पीसकर पानी में घोलकर पी जाएँ| इससे आँखे स्वस्थ रहती हैं| और निरंतर उपयोग से आँखों का चश्मा भी उतर जाएगा| १७) आँखों को स्वस्थ रखने के लिए सोया मिल्क ,दही,मूंगफली,खुबानी का उचित मात्रा में सेवन करना लाभ दायक है| १८) एक शौध के अनुसार हरे पतेदार सब्जियों में केरोटिन नामक पिगमेंट की ऐसी मात्रा मौजूद रहती है जिसमें आँखों की रोशनी तेज करने की क्षमता होती है| विशेषज्ञों के अनुसार यह कुदरती केरोटीनाईड आँख की पुतली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और आँखों की रोशनी सुरक्षित रखने के अलावा अनेक नेत्र रोगों से भी बचाव करता है| १९) एक चने के दाने बराबर फिटकरी को सेककर इसे १०० ग्राम गुलाब जल में डालें और रोजाना सोते वक्त २-बूँदें आँख में डालने से चश्मे का नंबर कम हो जाता है| २०) बिल्व पत्र का ३० मिली रस पीने और २-४ बूँद रस आँखों में काजल की तरह लगाने से रतौंधी रोग में लाभ होता है| अंगूर का रस भी आँखों के लिए वरदान तुल्य माना गया है| २१) इलायची आँखों के लिये बहुत लाभदायक होती है\ रात को सोने से पहले २ इलायची पीसकर दूध में डालें| अच्छी तरह उबालकर फिर मामूली गरम हालत में पी जायें| इससे आँखों की रोशनी बढ़ती है| २२) अनुलोम-विलोम प्राणायाम करते रहने से नेत्र ज्योति बढ़ती है| २३) हल्दी की गांठ को तुवर की दाल में उबालकर फिर छाया में सुखाकर रखलें| इसे पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व आँखों में काजल की तरह लगाएं | आँखे स्वस्थ रहती हैं और आँखों की लालिमा भी दूर होती है|
संधिवात रोग में शरीर के जोडों और अन्य भागों में सूजन आ जाती है और रोगी दर्द से परेशान रहता है। चलने फ़िरने में तकलीफ़ होती है।यह रोग शरीर के तंतुओं में विकार पैदा करता है,प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है,जोड शोथ युक्त हो जाते हैं,हिलने डुलने में कष्ट होता है।कलाई,घुटनों और ऊंगली ,अंगूठे में संधिवात का रोग ज्यादा देखने में आता है। कभी-कभी बुखार आ जाता है।भूख नहीं लगना भी इस रोग का लक्षण है। समय पर ईलाज नहीं करने पर आंखों,फ़ेफ़डों,हृदय व अन्य अंग दुष्प्रभावित होने लगते हैं। संधिवात के कारण- १)आनुवांशिक कारण
२)खान-पान की असावधानियां
३) जोडों पर ज्यादा शारीरिक दवाब पडना
४) जोडों का कम या जरूरत से अधिक उपयोग करना
५) स्नायविक तंतुओं में विकार आ जाना और मेटाबोलिस्म में व्यवधान पड जाना।
६) सर्द वातावरण में शरीर रखने का कुप्रभाव
७)बुढापा और हार्मोन का असुंतुलन संधिवात रोगी क्या करें और क्या न करें- १) सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि रोगी २४ घंटे में मौसम के अनुसार ४ से ६ लिटर पानी पीने की आदत डालें। शरीर के जोडों में यूरिक एसीड जमा हो जाता है और इसी से संधिवात रोग जन्म लेता है। ज्यादा पानी पीने से ज्यादा पेशाब होगा और यूरिक एसीड बाहर निकलता रहेगा। २) फ़ल और हरी सब्जीयां अपने आहार में प्रचुरता से शामिल करें।इनमें भरपूर एन्टीओक्सीडेन्ट तत्व होते हैं जो हमारे इम्युन सिस्टम को ताकतवर बनाते हैं।रोजाना ७५० ग्राम फ़ल या सब्जियां या दोनों मिलाकर उपयोग करते रहें।इनका रस निकालकर पियेंगे तो भी वही लाभ प्राप्त होगा। ३)ताजा गाजर का रस और नींबू का रस बराबर मात्रा में मिश्रण कर १५ मिलि प्रतिदिन लें।
४) ककडी का रस पीना भी संधिवात में लाभकारी है। ५) संधिवात रोगी को चाहिये कि सर्दी के मौसम में धूप में बैठे। 6) चाय,काफ़ी,मांस से संधिवात रोग उग्र होता है इसलिये जल्दी ठीक होना हो तो इन चीजों का इस्तेमाल न करें। 7) शकर का उपयोग हानिकारक होता है।
८) तला हुआ भोजन,नमक,शकर तेज मिर्च-मसाले,शराब छोडेंगे तो जल्दी ठीक होने के आसार बनेगे।
९) संधिवात रोगी के लिये यह जरूरी है कि हफ़्ते में दो दिन का उपवास करें। १०) काड लिवर आईल ५ मिलि की मात्रा में सुबह शाम लेने से संधिवात में फ़ोरन लाभ मिलता है। ११) पर्याप्त मात्रा में केल्शियम और विटामिन डी की खुराकें लेते रहें। ये विटामिन भोजन के माध्यम से लेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा। १२) तीन नींबू का रस और ४० ग्राम एप्सम साल्ट आधा लिटर गरम पानी में मिश्रित कर बोतल में भर लें। दवा तैयार है। ५ मिलि दवा सुबह शाम पीयें। यह नुस्खा बेहद कारगर है। १३) मैने साईटिका रोग में आलू का रस पीने का ईलाज बताया है। संधिवात में भी आलू का रस अशातीत लाभकारी है। २०० मिलि रस रोज पीना चाहिये। १४) ज्यादा सीढियां चढना हानिकारक है। १५)अपने काम और विश्राम के बीच संतुलन बनाये रखना जरूरी है। १६) अदरक का रस पीना संधिवात के दर्द में शीघ्र राहत पहुंचाता है। १७) अलसी के बीज मिक्सर में चलाकर पावडर बनालें। २० ग्राम सुबह और २० ग्राम शाम को पानीके साथ लें। इसमे ओमेगा फ़ेट्टी एसीड होता है जो इस रोग में अत्यंत हितकर माना गया है।इससे कब्ज का भी निवारण हो जाता है।
विशिष्ट परामर्श-
संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| हर्बल औषधि होने के बावजूद यह तुरंत असर चिकित्सा है| सैकड़ों वात रोग पीड़ित व्यक्ति इस औषधि से आरोग्य हुए हैं| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं|औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|
मोटापा कई बीमारियों की जड़ है, यह सभी जानते है। लेकिन इससे मुक्ति पाना इतना आसान भी नहीं होता। यहां वजन कम करने यानी मोटापा घटाने से संबंधित कुछ आसान उपाय दिए गए है जिन्हें रोजाना अपनाकर आप सिर्फ एक हफ्ते यानी सात दिन में वजन कम कर सुडौल काया एक बार फिर से पा सकते है। होम्योपैथिक चिकित्सा मोटापा एवं उसके विभिन्न पहलुओं का उपचार करता है। इन दवाओं से पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है, चयापचय की क्रिया अच्छी होती है, जिसकी वजह से मोटापा कम होता है। वजन घटाने के लिए कई लोग होम्योपैथी उपचार का सहारा लेते हैं।
वजन घटाने के लिए होम्योपैथिक उपचार को सुरक्षित माना गया है एवं यह सभी उम्र के लोगों के लिए कारगर एवं उपयुक्त होता है, क्योकि ये बहुत ही कोमल और पतले होते हैं और आमतौर पर इनका शरीर पर कुप्रभाव नहीं होता। आप वजन घटाने के लिए यदि कोई अन्य प्राकृतिक पूरक या उपचार ले रहे हैं तो भी आप होम्योपैथिक दवाइयां ले सकते हैं, क्योंकि यह दूसरे उपचार में न तो अवरोध पैदा करता है न हीं बुरा प्रभाव डालता है। वजन घटाने के लिए होम्योपैथी में कई प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। वजन घटाने से पूर्व एक महत्वपूर्ण बात पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि आप कितने मोटे हैं तथा आपको कितना वजन घटाने की जरूरत है। इसके लिए आपको होम्योपैथिक चिकित्सक से मिलकर वजन कम करने के सबसे अच्छे विकल्प का परामर्श लेना चाहिए साथ ही उपचार शुरू करने से पूर्व आपको यह भी जान लेना चाहिए कि आपको अपने जीवन शैली में क्या-क्या बदलाव लाना है। कैलोट्रोपिस जाइगैन्टिया Q – इस दवा की 5-5 बूंदें आधा कप पानी में मिलाकर प्रतिदिन तीन बार लेने से कुछ ही दिनों में मोटापा कम होने लगता हैं |
फाइटोलक्का बेरी O, 3x –
यह मोटापा घटाने की अत्यन्त प्रसिद्ध दवा है । इस दवा का नियमित सेवन करने से मोटापा कम होने लगता है । इसके साथ नैट्रम सल्फ 200 भी लेने से अधिक लाभ होता है । फ्युकस वेसिक्यूलॉसस Q – डॉ० यदुवीर सिन्हा कहते हैं कि यह दवा मोटापा घटाने की सर्वोत्तम औषधि है क्योंकि इसमें आयोडीन प्रचुर मात्रा में होता है । इसका सेवन लम्बे समय तक करना चाहिये । ग्रेफाइटिस 200 –
ऐसे व्यक्ति जिनका मोटापा बेढंगा है जैसे- पेट, कूल्हे आदि पर चर्वी एकत्र होकर बेडौल मोटापा बढ़ता हो तो व्यक्ति को यह दवा अवश्य देनी चाहिये । अगर रोगी गोरे रंग का है तो यह दवा अधिक लाभप्रद सिद्ध होगी । पीडोफाइलम 30 –
यदि मोटापे के कारण केवल पेट बढ़ रहा हो तो यह दवा देनी चाहिये । साथ ही, नैट्रम सल्फ 12x देना भी उपयोगी है ।
एसकुलेन्टाइन Q –
यह दवा निरापद रूप से अतिशीघ्र चर्वी को घटाकर शरीर को सुडौल बनाती है। यह कलेजे को मजबूत बनाती है और सर्वांगीण स्वास्थ्य को सुधारती है । मोटे व्यक्तियों के वातज रोगों और दर्दों को दूर करने की इसमें अमोघ शक्ति है । सोपिया 200 –
यदि कोई स्पष्ट कारण न हो और स्त्रियों का पेट अनावश्यक रूप से बढ़ रहा हो तो इस दवा की एक मात्रा प्रति सप्ताह देने से पेट नहीं बढ़ता है और अपनी स्वाभाविक अवस्था में रहता है । क्रोकस सैटाइवा 30 – यदि प्रसव के बाद स्त्रियों का पेट लटक जाये या बड़ा हो जाये तो यह दवा प्रतिदिन तीन बार देने से कुछ ही दिनों में लाभ होता है । सल्फर 30 –
बच्चों का पेट बिना स्पष्ट कारण के बढ़ने पर उन्हें यह दवा देनी चाहिये । कल्केरिया कार्ब 200 –
डॉ० सत्यव्रत सिद्धान्तालंकार ने कहा है कि जिन व्यक्तियों की शारीरिक बनावट इस दवा के लक्षणों से मिलती-जुलती है उन्हें यह दवा देने से उनकी शारीरिक बनावट बदल जाती है और उनका मोटापा कम होने लगता है । घरेलु नुस्खे *मूली के रस में थोडा नमक और निम्बू का रस मिलाकर रोजाना पी लेने से मोटापा कम हो जाता है और शरीर सुडौल हो जाता है। *गेहूं, चावल,बाजरा और साबुत मूंग को समान मात्रा में लेकर सेककर इसका दलिया बना लिजिएं। इस दलिये में अजवायन 20 ग्राम तथा सफ़ेद तिल 50 ग्राम भी मिला दें। 50 ग्राम दलिये को 400 मि.ली.जल में पकाएं। स्वादानुसार सब्जियां और हल्का नमक मिला लिजिएं। रोजाना एक महीनें तक इस दलिये के सेवन से मोटापा और मधुमेह में आश्चर्यजनक लाभ होता है। *अश्वगंधा के एक पत्ते को हाथ से मसलकर गोली बनाकर सुबह-दोपहर-शाम को भोजन से एक घंटा पहले या खाली पेट जल के साथ निगल लिजिएं। एक सप्ताह के सेवन के साथ फल,सब्जियों,दूध,छाछ और जूस पर रहते हुए कई किलो वजन कम हो सकता है। * एरण्ड की जड़ का काढ़ा बनाकर उसको छाले और 1-1 spoon की मात्रा में शहद के साथ दिन में तीन बार नियमित लेने करने से मोटापा दूर होता है। * चित्रक कि जड़ का चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने और खानपान का परहेज करनें से भी मोटापा दूर हो सकता है। वजन कम करने के उपाय आहार में गेहूं के आटे और मैदा से बने सभी भोजनों का सेवन एक महिने तक बिलकुल बंद रखें। इसमें रोटी भी शामिल है। अपना पेट पहले के 4-6 दिन तक केवल दाल,सब्जियां और मौसमी फल खाकर ही भरें। दालों में आप सिर्फ छिलके वाली मूंग कि दाल, अरहर या मसूर की दाल ही ले सकतें हैं चनें या उडद की दाल नहीं। सब्जियों में जो इच्छा करें वही ले सकते हैं। गाजर,मूली,ककड़ी,पालक,पतागोभी,पके टमाटर और हरी मिर्च लेकर सलाद बना लिजिएं। सलाद पर मनचाही मात्रा में कालीमिर्च,सैंधा नमक,जीरा बुरककर और निम्बू निचोड़कर खाएं। बस गेहूं कि बनी रोटी छोडकर दाल,सब्जी,सलाद और एक गिलास छाछ का भोजन करते हुए घूंट घूंट करके पीते हुए पेट भरना चाहिए। इसमें मात्रा अधिक भी हो जाए तो चिंता कि कोई बात नहीं। इस प्रकार 6-7 दिन तक खाते रहें। इसके बाद गेहूं कि बनी रोटी कि जगह चना और जौ के बने आटे कि रोटी खाना शुरू कीजिए। 5 किलो देशी चना और 1 kg जौ को मिलाकर साफ़ करके पिसवा लिजिएं। 6-7 दिन तक इस आटे से बनी रोटी आधी मात्रा में और आधी मात्रा में दाल,सब्जी,सलाद और छाछ लेना शुरू कीजिए। एक महीने बाद गेहूं कि रोटी खाना शुरू कर सकते हैं लेकिन शुरुआत एक रोटी से करते हुए धीरे धीरे बढाते जाएँ। भादों के महीने में छाछ का प्रयोग नहीं किया जाता है इसलिये इस महीनें में छाछ का प्रयोग नां कीजिए। बेक्ड फूड बिल्कुल नहीं खाए। इसका मतलब यह हुआ कि आप केक, कुकीज, मफिंस, ब्रेड आदि खाने से परहेज करे। यहीं नहीं आप इस दौरान बेक्ड चिप्स ,बेक्ड स्नैक आदि भी खाने से बचे। किसी भी तरह की मिठाई को आप हर्गिज नहीं खाए। अगर आप कुछ मीठा खाना ही चाहते है तो सिर्फ ताजा फल खाए। तला हुआ भोजन तले हुए भोजन में कैलोरी और नमक बहुत ज्यादा होता है। इसलिए आप मछली, पॉल्टी फॉर्म प्रोडक्ट या कोई भी वैसा मीट नहीं खाए जो तला हुआ हो। साथ ही फ्रेंच फ्राईज, पोटैटो चिप्स,ब्रेड पकौड़ा,समोसा, फ्राइड वेजिटेबल खाने से भी आप बचे। आप वैसी चीजें खाए जो कम प्रोटीन वाली हो और तली हुई नहीं हो। हाई कैलोरी वाले ड्रिंक्स जो भी पेय पदार्थ यानी ड्रिंक्स मीठा होता है उसमें कैलोरी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। आपको इनसे बचना होगा। साथ ही आप पानी की भरपूर मात्रा ले। एल्कोहल (शराब, बीयर और कॉकटेल), स्पोर्ट्स ड्रिंक, मीठी चाय ,फ्लेवर्ड कॉफी, सोडा, फ्लेवर्ड पानी ,विटामिन पानी आदि से आप तौबा कर लें। अगर आपको फ्लेवर्ड पानी पीने की इच्छा हो तो आप उसे घर पर बनाकर पीए। अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों को बढ़ाएं इन सात दिनों तक आपको मेहनत करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। आपको टोटल वेट लॉस वर्कआउट प्रोग्राम पर जमकर काम करने की जरूरत है। इसलिए आपको सात दिनों तक रोजमर्रा की अपनी शारीरिक गतिविधियों को तेज करना होगा यानी बढ़ाना होगा। आपको फैट गलाने वाली कसरत यानी वर्कआउट को करना चाहिए ताकी आपका वजन कम हो सके। अगर आपको अपना वजन कम करना है तो आपको रोजाना फैट बर्निंग वर्कआउट करना चाहिए। इसमें कसरत के अलावा ,पैदल चलना, जॉगिंग आदि शामिल होते है। 10 हजार कदमों की चहलकदमी अगर आप किसी वजह से वर्कआउट नहीं कर पा रहे तो आपको कम-से-कम रोजाना 10 हजार कदम चलना चाहिए। इसलिए आपको रोजाना 10 हजार कदमों की चहलकदमी करनी होगी। अगर आप रोजाना पंद्रह या बीस हजार कदम चलते है तो फिर आपको एक्टिविटी मॉनिटर या फिर एप्प डाउनलोड कर अपने कदमों को रोजाना आकलन करना होगा। इस तरह से आप इन उपायों को करके फैट बर्न कर अपने वजन में कमी ला सकते है और मोटापा घटा सकते है। लेकिन एक बात ध्यान रहे कि आपको इस रूटीन को हमेशा के लिए अपनाना होगा। अपनी जीवनचर्या को उस मुताबिक ढालना होगा जिससे फैट आगे नहीं बने और जो शरीर में जो मौजूदा फैट है वो बर्न हो जाए।