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लहसुन के गुण और नुस्खे /Garlic benefits





लहसुन एक ऐसी खाद्य सामाग्री है, जो कई सब्ज़ियों का ज़ायका बढ़ा देती है। लहसुन का तड़का बेजान से बेजान सब्ज़ी के स्वाद को कई गुणा बढ़ा देता है। लगभग हर रसोई में पाई जाने वाली ये खाद्य सामाग्री सिर्फ़ सब्ज़ियों का स्वाद ही नहीं बढ़ाती, बल्कि यह सेहत के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद है। 

एक नए अध्ययन में यह सामने आया है कि जो पुरुष लहसुन खाते हैं महिलाएं उनकी तरफ़ अधिक आकर्षित होती हैं.
अध्ययन के अनुसार महिलाओं को उनके पसीने की गंध अच्छी लगती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि महिलाएं कुछ इस तरह से विकसित हो गई हैं कि अब उन्हें लहसुन खाने वाले अच्छे लगते हैं.
लहसुन में एंटीबायोटिक, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुण होते हैं.
ऐसे में पुरुषों के पसीने से आने वाली लहसुन की गंध महिलाओं को उनके स्वस्थ होने का संकेत देती है.

*जो मर्द किसी कारणवश अपने प्राइवेट पार्ट में पूर्ण रूप से उत्थान को नहीं प्राप्त कर पाते उनके लिए कच्चा लहसुन वरदान माना जाता है. क्योंकि इसमें ऐफ्रोडिजिएक नामक कामोत्तेजक गुण पाया जाता है
सुबह खाली पेट अगर लहसुन की 2-4 कलियां चबाकर कमजोर मर्द खाएं तो प्राइवेट पार्ट के कार्पस कैवर्नोसा में रक्त का बहाव पूरा होता है और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन की समस्या दूर हो जाती है.

लहसुन के औषधीय गुण 

एक समय था जब आज की तरह जगह-जगह दवा की दुकानें नहीं होती थीं। तब लहसुन का इस्तेमाल आयुर्वेदिक उपचार के लिए भी होता था। लहसुन एंटी-वायरल, एंटी-फंगल, एंटी-ऑक्सिडेंट और एंटी-बैक्टिरीयल गुणों से भरपूर होता है। इसमें एलीसीनऔर दूसरे सल्फ़र यौगिक मौजूद होते हैं। साथ ही लहसुन में एजोइन जैसा तत्व और एलीन जैसा यौगिक भी मौजूद होता है, जो लहसुन को और ज़्यादा असरदार औषधि बना देते हैं। हालांकि, इन तत्वों और यौगिकों की वजह से ही लहसुन का स्वाद कड़वा होता है। लेकिन, यही घटक लहसुन को संक्रमण दूर करने की क्षमता भी देते हैं।आइए अब एक-एक करके लहसुन के लाभकारी गुणों के बारे में जानते हैं:
लहसुन के फ़ायदे
सेहत/स्वास्थ्य के लिए लहसुन के फायदे –
डायबिटीज़ से लड़ने में मदद करता है लहसुन
हर रोज़ बदलती और असंतुलित जीवनशैली की वजह से कई लोग डायबिटीज़ यानी मधुमेह की बीमारी का शिकार हो रहे हैं। लेकिन काफ़ी कम ही लोग जानते हैं कि लहसुन का सेवन करने से डायबिटीज़ पर लगाम लगाई जा सकती है। आईआईसीटी (भारत) के वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में चूहों को लहसुन खिलाया। इसके बाद चूहों के खून में ग्लूकोज़ और ट्राइग्लिसराइड के स्तर में कमी पाई गई। इसके अलावा, चूहों के शरीर में इंसुलिन संवेदनशीलता में भी वृद्धि देखने को मिली । इसलिए, अगर आपको डायबिटीज़ का संदेह है या डायबिटीज़ है तो आप लहसुन का सेवन करें। यह शरीर में शुगर के स्तर को नियंत्रित कर इंसुलिन की मात्रा बढ़ाता है।
इस्तेमाल का तरीका
हर रोज़ दो से तीन कच्ची लहसुन की कलियों का सेवन करें।
वज़न घटाने में मदद करता है लहसुन
आजकल हर किसी की व्यस्त दिनचर्या होती है। घर और काम के बीच तालमेल बनाने के चक्कर में लोग अपनी सेहत पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं। खान-पान ठीक नहीं होने और नियमित रूप से व्यायाम न कर पाने की वजह से लोग मोटापे की बीमारी का शिकार भी होने लगे हैं।
हालांकि, कई बार लोग नियमित रूप से व्यायाम करने की और खान-पान में परहेज़ करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वे ज़्यादा दिनों तक ऐसा नहीं कर पाते हैं। ऐसे में लहसुन बढ़ते वज़न को रोकने में काफ़ी हद तक मददगार साबित हो सकता है। यह एडीपोजेनिक ऊत्तकों की अभिव्यक्ति को रोकने में मदद करता है, थर्मोजेनेसिस को बढ़ाता है और हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। अपने इन अनोखे गुणों की वजह से लहसुन आपको मोटापे से राहत दिला सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप हर रोज़ खाली पेट कच्चे लहसुन की कुछ कलियों का सेवन कर सकते हैं। उसके कुछ देर बाद आप गुनगुने पानी में नींबू का शरबत बनाकर भी पी सकते हैं।
आप हर रोज़ सब्ज़ी या सूप में डालकर भी लहसुन खा सकते हैं।
गर्भावस्था में लहसुन के सेवन से होने वाले लाभ
गर्भावस्था के शुरुआती दौर में लहसुन को सीमित मात्रा में खाने में शामिल कर किया जा सकता है। इस समय लहसुन का प्रभाव भ्रूण पर कम पड़ता है । हालांकि, गर्भावस्था की दूसरी और तीसरी तिमाही में लहसुन का प्रयोग थोड़ा सोच समझकर करना चाहिए। इस दौरान लहसुन का गलत प्रभाव पड़ने से खून का पतला होना, पेट खराब होना या लो ब्लड प्रेशर होने जैसी परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए, गर्भावस्था में लहसुन खाने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह ज़रूर लें।
रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है लहसुन
लहसुन में फाइटोन्यूट्रिएंट होते हैं, जो एक प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट होता है। एंटीऑक्सिडेंट हमारे शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं और शरीर में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करते हैं। दूसरे शब्दों में, एंटीऑक्सीडेंट आपको बीमार पड़ने से बचाते हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि लहसुन खाने से हमारे शरीर में कई तरह की प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है।
इस्तेमाल का तरीका
– रोगों से लड़ने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए हर रोज़ दो से तीन लहसुन की कलियों का सेवन करें।
लीवर को सेहतमंद रखता है लहसुन – Benefit of garlic for fatty liver
जिन लोगों को लीवर में सूजन की शिकायत होती है, उनके लिए एक सीमित मात्रा में लहसुन का सेवन करना उपयोगी साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि लहसुन में पाए जाने वाले एस-एलील्मर कैप्टोसाइटिस्टीन (एसएएमसी) हेपेटिक चोटों के उपचार में मददगार होते हैं। वहीं, लहसुन का तेल एंटीऑक्सीडेटिव गुणों से भरपूर होता है, जो लीवर की सूजन से बचाव करता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप चाहें तो एक या दो लहसुन की कलियों को बारीक काटकर पालक की स्मूदी में मिलाकर उसका सेवन कर सकते हैं।
गठिया में लहसुन खाने से मिलती है राहत
लहसुन हड्डियों के लिए भी काफी लाभदायक है। ऐसा पाया गया है कि लहसुन के सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस और गठिया जैसी हड्डियों की बीमारी से जूझ रहे रोगियों को काफ़ी राहत मिलती है। वैज्ञानिकों ने प्रयोगों के ज़रिए साबित किया है कि लहसुन अंडाइक्टोमी-प्रेरित हड्डी सोखन को दबाने में सक्षम है। इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि लहसुन डायलिल डाइसल्फाइड मैट्रिक्स को कम करने वाले एंज़ाइमों को दबाने में मदद करता है। इस तरह लहसुन हड्डियों को होने वाले नुकसान को भी रोकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप हर रोज़ एक या दो लहसुन की कलियों का सेवन कर सकते हैं।
कोलेस्ट्रॉल की रोकथाम में मददगार है लहसुन
ज़्यादा तेल-घी वाले खान-पान की वजह से लोगों को कोलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या भी हो रही है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अपनी एक जांच में पाया है कि पुराने लहसुन में के सेवन से शरीर में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल (जो कि हानिकारक कोलेस्ट्रॉल होता है) के स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, अभी तक लहसुन के इस गुण को लेकर वैज्ञानिकों के बीच आम सहमति नहीं बन पाई है।
इस्तेमाल का तरीका
– एलडीएल कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए आप हर रोज़ एक से दो लहसुन की कलियां खा सकते हैं।
किडनी संक्रमण को रोकता है लहसुन
लहसुन किडनी संक्रमण की रोकथाम में भी मदद करता है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि लहसुन उस पी. एरुजिनोसा के विकास को रोकने में मदद कर सकता है, जो यूटीआई और गुर्दे के संक्रमण के लिए ज़िम्मेदार होता है।
इस्तेमाल का तरीका
– किडनी संक्रमण से बचाव के लिए हर रोज़ दो से तीन लहसुन की कलियों का सेवन करें।
लहसुन दिलाता है गैस और एसिडिटी से राहत – Benefit of garlic for gastritis
आजकल लोग गलत खान-पान के कारण एसिडिटी यागैस की समस्या के शिकार हो जाते हैं। ऐसे में सब्ज़ी पकाते समय उसमें हल्का लहसुन डालें। इस तरह से पकाई गई सब्ज़ी खाने से आपको गैस ओर एसिडिटी से राहत मिल सकती है। हालांकि, अगर आपको ज़्यादा परेशानी है, तो लहसुन से परहेज़ करें।

कैंसर से बचाता है लहसुन
लहसुन में डायलिसिल्फ़ाइड मौजूद होता है, जो ऑक्सीडेटिव तनाव को रोकने में मदद करता है। लहसुन में मौजूद सेलेनियम कैंसर से लड़ने वाले गुणों के लिए जाना जाता है। साथ ही सेलेनियम डीएनए उत्परिवर्तन और अनियंत्रित सेल प्रसार और मेटास्टेसिस को भी रोकता है।
लहसुन ट्यूमर और पेट के कैंसर की आशंका को कुछ हद तक कम करता है।
इसलिए, अगर आप कैंसर के खतरे को कम करना चाहते हैं, तो स्वस्थ जीवन शैली के साथ लहसुन का नियमित सेवन करें।
इस्तेमाल का तरीका
– आप हर रोज़ कम से कम लहसुन की एक कच्ची कली का सेवन करें।
फ़ंगल संक्रमण से बचाता है लहसुन
लहसुन में एंटी-फ़ंगल, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-पैरासिटिक गुण पाए जाते हैं, जो फ़ंगल संक्रमण, जैसे – दाद और कैंडिडा से लड़ने में हमारी मदद करते हैं।
इस्तेमाल का तरीका
-आप फ़ंगल-संक्रमण से प्रभावित जगह पर लहसुन का तेल लगा सकते हैं। लेकिन, इस बारे में एक बार अपने डॉक्टर से भी परामर्श ज़रूर कर लें।
 दिल से जुड़ी बीमारियों से लड़ने में मददगार है लहसुन 
जैसा कि हम जानते हैं, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और हाई कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों का हृदय संबंधी रोगों से सीधा रिश्ता होता है। ऐसे में लहसुन का सेवन हृदय संबंधी रोगों की रोकथाम में असरदार साबित हो सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– हर रोज़ कच्चे लहसुन की कलियां खाएं।
हाई ब्लड शुगर के स्तर को घटाता है लहसुन 
अगर आप हाई ब्लड शुगर की समस्या से पीड़ित हैं, तो आपको अपने आहार में लहसुन को शामिल करना चाहिए। कुवैत के वैज्ञानिकों ने लैब में पशुओं पर कच्चे और उबले हुए लहसुन का प्रयोग करके पता लगाया है, कि कच्चे लहसुन में ब्लड शुगर के स्तर को कम करने की क्षमता होती है।
इस्तेमाल का तरीका
ब्लड शुगर लेवल को कम करने के लिए रोज़ाना एक या दो लहसुन की कलियां खाएं।
सर्दी-ज़ुकाम से बचाता है लहसुन
मौसम में बदलाव की वजह से सर्दी-ज़ुकाम होना बहुत ही आम बात है। लेकिन, ज़रूरी नहीं कि इन बीमारियों के उपचार के लिए हर बार अंग्रेज़ी दवाओं का ही सेवन किया जाए। दरअसल, लहसुन में एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल, एंटी-फ़ंगल और एंटी-ऑक्सिडेंट गुणों की भरमार होती है। इसमें एलियानेस (या एलियान) नामक एंजाइम मौजूद होता है, जो एलिसिन नामक सल्फ़र युक्त यौगिक में परिवर्तित होता है। यह यौगिक सफ़ेद रक्त कोशिकाओं को बढ़ाता है, जो सर्दी-ज़ुकाम के वायरस से लड़ने में मदद करता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप चाहें तो कच्चे लहसुन की कलियां खा सकते हैं।
– आप सूप में भी लहसुन डालकर पी सकते हैं।
– आप लहसुन की चाय भी पी सकते हैं।
– लहसुन की कुछ कलियों को आप घी में भूनकर भी खा सकते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है लहसुन
इन दिनों लोगों में हाई ब्लड प्रेशर का खतरा बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। इसे नियंत्रित करने के लिए कुछ लोग दवाओं का सहारा लेते हैं, तो कुछ लोग घरेलू नुस्खे अपनाते हैं। हाई ब्लड प्रेशर में घरेलू उपाय के तौर पर लहसुन का सेवन काफ़ी उपयोगी साबित हुआ है। दरअसल, लहसुन में बायोएक्टिव सल्फ़र यौगिक, एस-एललिस्सीस्टीन मौजूद होता है, जो ब्लड प्रेशर को 10 mmhg (सिस्टोलिक प्रेशर) और 8 mmhg (डायलोस्टिक प्रेशर) तक कम करता है। चूंकि सल्फर की कमी से भी हाई ब्ल्ड प्रेशर की समस्या होती है, इसलिए शरीर को ऑर्गनोसल्फर यौगिकों वाला पूरक आहार देने से ब्लड प्रेशर को स्थिर करने में मदद मिल सकती है।
इस्तेमाल का तरीका
-हर रोज़ कच्चे या सूखे लहसुन की कुछ कलियों का सेवन करें।
बुखार या ठंड लगने पर राहत देता है लहसुन
ठंड लगने पर या बुख़ार होने पर अगर लहसुन का उपयोग किया जाए,ये तो रोगी को बहुत हद तक राहत मिल सकती है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप चाहें तो दो-तीन लहसुन की कलियां खा सकते हैं। अगर कच्चा लहसुन खाना पसंद न हो, तो आप गर्म सरसों तेल में एक-दो लहसुन की कलियां डालकर उससे शरीर की मालिश कर सकते हैं।
गले की खराश से राहत देता है लहसुन
लहसुन में मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण गले में ख़राश जैसी परेशानी से हमारा बचाव करते हैं। लहसुन में एलीसिन नाम का ऑर्गनॉसुल्फ़र यौगिक भी होता है, जो संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। हालांकि, यह साबित करना मुश्किल है कि लहसुन गले में खराश की परेशानी को पूरी तरह से ठीक कर सकता है या नहीं।
इस्तेमाल का तरीका
– जब भी गले में खराश जैसा महसूस हो, तो सरसों तेल में एक या दो लहसुन की कलियां डालकर उसे गुनगुना होने तक गर्म करें। इसके बाद गुनगुने तेल को हल्का-हल्का गले के आस-पास लगाएं। तकलीफ़ अगर ज़्यादा बढ़े तो डॉक्टर से संपर्क करें।
दमा में राहत देता है लहसुन
अस्थमा यानी दमा के मरीज़ों के लिए भी लहसुन काफ़ी लाभकारी है। सरसों के तेल में लहसुन पकाकर उस तेल से अगर नाक, गले और फेफड़ों के पास मालिश की जाए, तो यह छाती में जमे कफ़ से निजात दिला सकता है। वैज्ञानिकों को इस बात के सबूत भी मिले हैं कि लहसुन अस्थमा से होने वाले दुष्प्रभावों को कम कर सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप चाहें तो एक या दो लहसुन की कलियां खा सकते हैं या लहसुन और सरसों का तेल लगा सकते हैं। हालांकि, एक बार अपने डॉक्टर से इस बारे में सलाह ज़रूर लें।
 कान दर्द होने पर राहत देता है लहसुन
कान में होने वाले हल्के संक्रमण या दर्द में भी लहसुन फ़ायदेमंद होता है। लहसुन में मौजूद एंटीबैक्टीरियल, एंटीफ़ंगल और एंटीवायरल गुण कान के दर्द या संक्रमण से राहत दिलाते हैं।
इस्तेमाल का तरीका
आप चाहें तो लहसुन का तेल कान में लगा सकते हैं। ये तेल बाज़ार में उपलब्ध होता है। इसके अलावा, आप घर पर भी लहसुन का तेल बना सकते हैं।
योनि संक्रमण से छुटकारा दिलाता है लहसुन
अक्सर महिलाएं योनि संक्रमण जैसी समस्या के बारे में सबके साथ चर्चा नहीं कर पाती हैं। इस वजह से कई बार यह समस्या गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है। जबकि, घर में मौजूद रहने वाले लहसुन के ज़रिए इस समस्या पर काबू पाया जा सकता है। जी हां, वैज्ञानिकों ने पाया है कि लहसुन कैंडिडा नामक संक्रमण की रोकथाम करने में काफ़ी असरदार होता है।
इस्तेमाल का तरीका
सीमित मात्रा में लहसुन का सेवन करके योनि के संक्रमण से छुटकारा पाया जा सकता है। हालांकि, एक बार डॉक्टर से भी इस बारे में बात ज़रूर करें क्योंकि हर किसी की शारीरिक क्रिया थोड़ी अलग होती है। इसके अलावा, लहसुन को सीधे प्रभावित जगह पर न लगाएं।
छाले या फोड़े को ठीक करने में मदद करता है लहसुन
लहसुन में एलिन, एलिसिन और एजोइन जैसे सल्फ़र यौगिक मौजूद होते हैं, जो छाले या फोड़े को ठीक होने में मदद करते हैं। साथ ही लहसुन में एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीसेप्टिक गुण भी होते हैं, जो बैक्टीरिया को मारते हैं और छाले या फोड़े को बढ़ने से रोकते हैं।
इस्तेमाल का तरीका
– अगर आपको साबूत लहसुन खाना पसंद नहीं, तो आधा चम्मच से भी कम लहसुन का पेस्ट या एक लहसुन की कली को बारीक़ काटकर खाने में उपयोग करें।
झुर्रियों को कम करता है लहसुन
कई बार लोगों की त्वचा पर समय से पहले झुर्रियां नज़र आने लगती हैं।दरअसल, ऐसा गलत खान-पान, तनाव, सूर्य की हानिकारक किरणों और बदलती जीवनशैली की वजह से होता है। ऐसे में अगर लहसुन का सेवन किया जाए, तो समय से पहले चेहरे पर पड़ने वाली झुर्रियों से बचा जा सकता है। लहसुन में एस-एलिल सिस्टीन पाया जाता है जो त्वचा को सूर्य की हानिकारक किरणों और झुर्रियों से बचाने में मदद करता है। लहसुन में एंटीऑक्सिडेंट और एंटीइंफ्लैमटोरी गुण भी होते हैं, जो झुर्रियां कम करने में मदद करते हैं।
इस्तेमाल का तरीका
– सुबह नींबू और शहद के साथ लहसुन की एक कली खाएं। अगर इनमें से किसी चीज़ से आपको एलर्जी हो तो, इन्हें खाने से पहले एक बार डॉक्टर से ज़रूर संपर्क करें।
 दांत दर्द से निजात दिलाता है लहसुन
वज्ञानिकों का मानना है कि लहसुन को माउथवॉश के तौर पर इस्तेमाल करना काफ़ी लाभदायक हो सकता है। इसके अलावा, ऐसे टूथपेस्ट या माउथवॉश का इस्तेमाल करना भी अच्छा होता है, जिसमें लहसुन के गुण मौजूद हो।
इस्तेमाल का तरीका
– अगर आपको दांत दर्द की शिकायत है, तो हर रोज़ एक कच्चे लहसुन की कली चबाएं। इसके अलावा, आप एक लहसुन की कली में सेंधा नमक लगाकर दर्द वाले दांत पर लगाएं। इससे आपको दांत के दर्द से आराम मिलेगा।
सोरायसिस की रोकथाम में कारगर है लहसुन
सोरायसिस एक प्रकार का त्वचा रोग है, जिसमें खुजली होने लगती है और त्वचा लाल हो जाती है। यह बीमारी ज़्यादातर सिर की त्वचा, कोहनी और घुटनों को प्रभावित करती है। इस बीमारी का कोई इलाज तो नहीं है, लेकिन लहसुन खाने से इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। लहसुन में डायलिल सल्फ़ाइड और एजेन जैसे यौगिक होते हैं। ये यौगिक न्यूक्लिअर ट्रांसमिशन कारक कप्पा बी (जिसकी वजह से सोरायसिस होता है) को निष्क्रिय कर देते हैं।
इस्तेमाल का तरीका
दो से तीन लहसुन की कलियों को हरे प्याज़, ब्रोकली और चुकंदर के रस के साथ मिलाकर उसका सेवन करें। लेकिन, अगर आपको इनमें से किसी भी चीज़ से एलर्जी है, तो एक बार अपने डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें।
 खुजली से राहत देता है लहसुन
खुजली जैसी त्वचा संबंधी परेशानी किसी चीज़ से एलर्जी के कारण होती है। ऐसे में खुजली से राहत पाने के लिए लहसुन खाना उपयोगी हो सकता है। हालांकि, इसका कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। दरअसल, खुजली से राहत दिलाने के मामले में लहसुन की सफलता या असफलता रोगी के शरीर पर निर्भर करती है। किसी व्यक्ति को अगर लहसुन से एलर्जी है, तो यह एक्ज़िमा को बढ़ा सकता है। लेकिन जिनको लहसुन से कोई एलर्जी नहीं है, उनके लिए लहसुन का सेवन फ़ायदेमंद साबित हो सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– शुरुआत में हर रोज़ पानी के साथ एक या दो लहसुन की कलियों का सेवन करें। 
त्वचा की खूबसूरती बढ़ाता है लहसुन
सिर्फ़ सेहत ही नहीं, बल्कि आजकल अच्छा दिखना और त्वचा का सही तरीक़े से ध्यान रखना भी बहुत ज़रूरी है। इस काम में भी लहसुन आपकी मदद कर सकता है।
मुंहासे और पिंपल से छुटकारा दिलाता है लहसुन
शरीर में विषाक्त पदार्थों के जमा होने से या फिर किसी संक्रमण की वजह से कील-मुंहासे हो सकते हैं। ऐसे में लहसुन का नियमित सेवन कील-मुंहासों से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित हो सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
– आप ठंडे पानी के साथ एक लहसुन की कली का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा खूब पानी पिएं ताकि आपके शरीर में पानी की सही मात्रा बनी रहे।
दाद में राहत देता है लहसुन
जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं, लहसुन में एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। ये गुण किसी भी तरह के संक्रमण से शरीर को बचा सकते हैं। इसलिए, जिस व्यक्ति को दाद की बीमारी होती है, उसे अपने भोजन में हल्की मात्रा में लहसुन को शामिल करने की राय दी जाती है। हालांकि, लहसुन दाद की बीमारी से पूरी तरह छुटकारा नहीं दिला सकता। लेकिन, यह दाद की वजह से होने वाली खुजली से राहत दिला सकता है।
इस्तेमाल का तरीका
आप अपने भोजन में एक निश्चित मात्रा में लहसुन को शामिल कर सकते हैं।
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    गोरी और चमकती त्वचा पाना कठिन काम लग सकता है। प्रदूषण, खाने की खराब आदतें और हमारी त्वचा पर कहर बरपाने वाले इन रसायनों के साथ, गोरी चमकती त्वचा को प्राप्त करना लगभग असंभव सा लगता है। लेकिन क्या होगा अगर आपको गोरी और चमकती त्वचा पाने का घरेलू नुस्खा मिल जाये? ब्यूटी प्रोडक्ट पुराने जमाने के घरेलू उपचार की उपयोगिता, सरलता और दक्षता को हरा नहीं सकता है। ग्लोइंग स्किन के लिए शहद का इस्तेमाल एक ऐसा ही घरेलू उपाय है। इस लेख मैं ग्लोइंग स्किन के लिए 11 सरल घरेलू शहद उपचारों की एक सूची दी गयी है। लेकिन पहले, आइए देखें कि शहद आपकी त्वचा की मदद कैसे कर सकती है।

    शहद और हल्दी का फेस पैक फॉर ग्लोइंग स्किन
    त्‍वचा को गोरा बनाने और अन्‍य त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने के लिए शहद और हल्‍दी का फेस पैक उपयोग किया जा सकता है। हल्‍दी में करक्‍यूमिन (curcumin) नामक एक सक्रिय घटक होता है जिसमें शक्तिशाली एंटी-इंफ्लामेटरी गुण होते हैं। जिसके कारण शहद और हल्‍दी का फेस पैक त्‍वचा में जलन, सूजन और त्‍वचा की खुजलीजैसी समस्‍याओं का इलाज कर सकता है। इसके अलावा इस मिश्रण में मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट फ्री रेडिकल्‍स के प्रभाव को कम करने में भी सहायक होते हैं। जिससे आपकी त्‍वचा को प्राकृतिक रंग प्राप्‍त करने में मदद मिलती है।
    शहद और हल्‍दी का फेस पैक बनाने के लिए आपको 1 चम्‍मच हल्‍दी पाउउर, 1 चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच दही की आवश्यकता होती है।
    हनी एंड टरमेरिक फेस पैक बनाने की विधि –
    आप ऊपर बताए गए सभी मिश्रणों को एक कटोरी में लें और एक अच्‍छा पेस्‍ट तैयार करें। इस मिश्रण को उपयोग करने से पहले अपने चेहरे को अच्‍छी तरह से साफ करें। फिर इस फेस पैक को अपने चेहरे और गर्दन में समान रूप से लगाएं। लगभग 20 मिनिट या फेस पैक के सूखने तक रूकें। इसके बाद हल्के गर्म या गुनगुने पानी से अपने चेहरे को धो लें। त्‍वचा संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए आप इस फेस पैक को सप्‍ताह में 1 से 2 बार उपयोग कर सकते हैं।
    चेहरे पर शहद लगाने से क्‍या होता है
    चेहरे पर शहद लगाना त्‍वचा को स्‍वस्‍थ और सुंदर बनाने का सबसे अच्‍छा तरीका है। शहद आपकी त्‍वचा को गोरा और चमकदार बनाने के अलावा भी कई लाभ दिलाता है। चेहरे पर शहद लगाने से इसमें मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट त्‍वचा कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्‍स के प्रभाव से बचाते हैं। जो समय से पहले बुढ़ापे का कारण होते हैं। इसके अलावा शहद के फायदे त्‍वचा को मॉइस्‍चराइज करने, मुंहासों का इलाज करने में प्रभावी योगदान देते हैं। यदि आप अपने चेहरे को दाग-धब्‍बों मुक्त बनाना चाहते हैं तब भी शहद का उपयोग किया जा सकता है। शहद के औषधीय गुण त्वचा में मौजूद ब्‍लैकहेड को कम करते हैं।
    यदि आपकी त्वचा में कसी प्रकार के घाव, मुंहासे या खरोंच आदि है तब भी शहद के लाभ इन समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं। अपन चेहरे की त्‍वचा पर शहद लगाने से आप लगभग सभी स्किन प्रोब्‍लम को दूर कर सकते हैं।
    शहद और दालचीनी फेस पैक फॉर फेयर स्किन
    दालचीनी एक औषधीय और बहुमुखी गुणों वाला घटक है। यह पाचन, महिला स्‍वास्‍थ्‍य और श्वसन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होता है। लेकिन शहद के साथ दालचीनी के मिश्रण से बना फेस पैक त्‍वचा संबंधी समस्‍याओं को भी दूर कर सकता है। क्‍योंकि इन दोनों घटकों में एंटीऑक्‍सीडेंट की उच्‍च मात्रा होती है। जो आपकी त्‍वचा की सुरक्षा में सहायक हो सकती है।
    शहद और दालचीनी फेस पैक बनाने के लिए आपको 3 चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच दालचीनी पाउडर की आवश्‍यकता होती है।
    हनी और दालचीनी फेस मास्‍क बनाने की विधि –
    इन दोनों अवयवों को अच्‍छी तरह से मिलाएं और एक पेस्‍ट बनाएं। इस पेस्‍ट को लगभग 3 मिनिट तक गुनगुना होने तक गर्म करें। इस पेस्‍ट को आप अपनी साफ त्‍वचा में समान रूप से लगाएं। फेस पैक लगाने के लगभग 10 मिनिट के बाद अपने चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। आप सामान्‍य रूप से इस फेस पैक का उपयोग सप्‍ताह में 1 से 2 बार करना फायदेमंद होता है।
    खूबसूरत त्वचा के लिए शहद और जैतून का तेल
    जैतून के तेल में प्राकृतिक मॉइस्‍चराइजिंग गुण होते हैं। इसके अलावा यह त्‍वचा छिद्रों प्राकृतिक तेल की उच्‍च मात्रा, गंदगी और बैक्‍टीरिया आदि को भी हटाने में सहायक होता है। जिससे मुंहासे और अन्‍य त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने में मदद मिल सकती है। साथ ही शहद और जैतून के तेल का मिश्रण त्‍वचा को हाइड्रेट रखने में सहायक होता है।
    शहद और जैतून तेल से फेस पैक तैयार करने के लिए आपको 2 चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच जैतून का तेल चाहिए।
    हनी एंड ऑलिव ऑयल फेस पैक बनाने की विधि –
    शहद और जैतून तेल को कटोरी में लें और अच्‍छी तरह से मिलाते हुए एक पेस्‍ट तैयार करें। इस पेस्‍ट को मध्‍यम आंच में हल्‍का गुनगुना होने तक गर्म करें। फिर इस मिश्रण को अपने चेहरे की त्‍वचा में समान रूप से लगाएं। जब यह फेस मॉस्क सूखने लगे तब आप गुनगुने पानी से अपने चेहरे को अच्‍छी तरह से साफ कर लें। इस इस फेस पैक को नियमित रूप से सप्‍ताह मे 2 बार उपयोग किया जा सकता है।
    शहद और दूध का फेस पैक फॉर फेयर स्किन
    दूध में लैक्टिक एसिड (lactic acid) होता है जो त्‍वचा को एक्‍सफोलिएट करने में सहायक होता है। इसके अलावा दूध के औषधीय गुण संवेदनशील त्वचा और मुंहासे आदि का उपचार करने का उत्‍कृष्‍ट विकल्‍प है। इसके अलावा दूधऔर शहद का मिश्रण त्वचा को हाइड्रेट करने और त्‍वचा छिद्रों को कसने में भी सहायक होता है। इसके अलावा इस फेस पैक में सेब के सिरका का भी उपयोग किया जाता है जो त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी माना जाता है।शहद और दूध फेस पैक बनाने के लिए आपको 1 बड़ा चम्‍मच दूध या दूध पाउडर, 2 चम्‍मच सेब का सिरका और 1 चम्‍मच शहद की आवश्‍यकता होती है।
    हनी एंड मिल्‍क फेस पैक बनाने की विधि –
    आप इन सभी उत्‍पादों को कटोरी में लें और अच्‍छी तरह से मिलाएं। आप अपने चेहरे को अच्‍छी तरह से धोने और सुखाने के बाद इस मिश्रण को फेस मास्‍क के रूप में लगाएं। लगभग 15 से 20 मिनिट के बाद अपनी उंगलियों को पानी में गीला करें और फिर अपने चेहरे को हल्‍के हाथों से रगड़ते हुए साफ करें। इसके बाद ठंडे पानी से अपने चेहरे को अच्‍छी तरह से धो लें। त्‍वचा को स्‍वस्‍थ रखने और उचित लाभ प्राप्‍त करने के लिए इस उपाय को सप्‍ताह में 1 बार जरूर उपयोग करें।
    शहद और टमाटर ग्‍लोइंग स्किन के लिए
    अपने चेहरे पर ग्‍लो बढ़ाने के लिए शहद के साथ टमाटर का इस्‍तेमाल अच्‍छा माना जाता है। टमाटर और शहद का उचित मिश्रण आपकी त्‍वचा को गोरा और चमकदार बनाने में प्रभावी होता है। इन दोनों ही उतपादों में ब्‍लीचिंग गुण होते हैं जो सनटैन, सांवलापन और त्‍वचा के धब्‍बों को दूर करने में मदद करते हैं। टमाटर में लाइकोपीन (lycopene) नामक सक्रिय घटक होता है जो एक एंटीऑक्‍सीडेंट है। यह त्‍वचा कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्‍स के प्रभाव से बचाता है। ये फ्री रेडिकल्‍स समय से पहले आने वाले बुढ़ापे का प्रमुख कारण होते हैं। इन सभी समस्‍याओं से बचने के लिए आप टमाटर और शहद से बने फेस पैक का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।
    शहद और टमार फेस पैक के लिए सामग्री में आपको आधा मध्‍ययम आकार का पका हुआ टमाटर, 1 बड़ा चम्‍मच शहद और तौलिया चाहिए।
    गोरी स्किन पाने के लिए दही और शहद का फेस पैक
    दही में लैक्टिक एसिड की अच्‍छी मात्रा होती है जो आपकी त्‍वचा को एक्‍सफोलिएट (exfoliate) करने में मदद करता है। इसके अलावा यह आपकी त्‍वचा को वसा, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों आदि की आपूर्ति भी करता है। जिससे त्‍वचा स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा मिलता है। शहद के साथ दही का उपयोग त्‍वचा कोशिकाओं की क्षति को कम करता है और त्‍वचा की टोन को सुधारता है।
    इस फेस पैक को बनाने के लिए आपको 2 चम्‍मच दही और 1 चम्‍मच शहद चाहिए।
    दही और शहद का फेस पैक बनाने की विधि –
    एक कटोरी में दही और शहद को आपस में अच्‍छी तरह से मिलाएं। इस मिश्रण को चेहरे पर लगाने से पहले अपने चेहरे को धो लें फिर इस फेस पैक को लगाएं। लगभग 15 से 20 मिनिट के बाद आप अपने चेहरे को गुनगुने पानी से साफ कर लें। उचित लाभ प्राप्‍त करने के लिए सप्‍ताह में 2 बार तक इस फेस पैक का उपयोग किया जा सकता है।
    शहद और नींबू लगाने के फायदे गोरी त्‍वचा के लिए –
    नींबू का रस प्राकृतिक शुगर और फ्रुट एसिड का अच्‍छा स्रोत होता है। इसके अलावा इसमें विटामिन सी और अन्‍य पोषक तत्‍वों की अच्‍छी मात्रा होती है जो त्‍वचा के लिए आवश्‍यक होते हैं। शहद और नींबू के रस का उपयोग करने से आप अपनी त्वचा के सांवलेपन को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा शहद और नींबू के फायदे त्‍वचा के पीएच स्‍तर को बनाए रखने में भी सहायक होते हैं जिससे त्‍वचा में प्राकृतिक तेल उत्‍पान को नियंत्रित किया जा सकता है।
    गोरी स्किन पाने के लिए शहद और नींबू फेस पैक बनाने के लिए आपको आधे नींबू का रस और 1 चम्‍मच शहद की आवश्‍यकता होती है।
    हनी एंड लेमन फेस पैक बनाने की विधि –
    आप शहद और नींबू के रस को आपस में अच्‍छी तरह से मिलाएं। इस फेस पैक को चेहरे पर लगाने से पहले अपने चेहरे को अच्‍छी तरह से साफ करें। इसके बाद इस फेस पैक को अपने चहरे पर लगाएं और लगभग 15 से 20 मिनिट तक इंतजार करें। या फिर फेस पैक के सूखने पर पहले ठंडे पानी से अपने चेहरे को धुलें और फिर गर्म पानी से अपने चेहरे को साफ करें। इस फेस पैक का उपयोग सप्‍ताह में नियमित रूप से 1 बार किया जा सकता है।
    चमकती-दमकती त्वचा के लिए शहद और केला फेस पैक
    यह मास्‍क आपकी त्‍वचा को चमकदार बनाने और त्‍वचा के काले धब्‍बों को दूर करने में प्रभावी होता है। इस फेस पैक के इस्तेमाल से आपकी त्वचा में कुछ ही दिनों में फर्क नजर आने लगेगा और आपकी त्वचा चमकती-दमकती नज़र आने लगेगी। इस फेस पैक में शहद, नींबू का रस और केले का मिश्रण रोम छिद्रों को कसने में सहायक होता है। साथ ही यह फेस पैक त्‍वचा को मॉइस्‍चराइज भी करता है। आप अपनी त्‍वचा की लोच को सुधारने के लिए भी इस फेस पैक का उपयोग कर सकते हैं।
    इस फेस पैक को बनाने के लिए 1 पका हुआ केला, 1 चम्‍मच शहद और 1 चम्‍मच नींबू के रस की आवश्‍यकता होती है।
    शहद और केला फेस पैक बनाने की विधि –
    आप इन सभी उत्‍पादों को एक बर्तन में लें और अच्‍छी तरह से मिलाते हुए एक पेस्‍ट तैयार करें। इस पेस्‍ट को आप अपने चेहरे में अच्‍छी तरह से लगाएं। लगभग 15 से 20 मिनिट के बाद आप अपने चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। इस फेस पैक का उपयोग सप्‍ताह में 1 बार किया जा सकता है।
    ग्लोइंग स्किन पाने के लिए शहद और बेसन का फेस पैक
    यदि आप अपने चेहरे को गोरा और चमकदार बनाना चाहते हैं तो बेसन और शहद के फेस पैक का उपयोग कर सकते हैं। यह त्‍वचा को गोरा बनाने और स्‍वस्‍थ रखने का सबसे अच्‍छा फेस पैक माना जाता है। यह आपकी त्‍वचा में मौजूद अतिरिक्‍त तेल को कम करने और बंद रोम छिद्रों को खोलने में सहायक होता है। इसके अलावा बेसन और शहद का मिश्रण त्‍वचा की मृत कोशिकाओं को भी हटाने में प्रभावी होता है।
    शहद और बेसन फेस पैक बनाने के लिए आपको 2 चम्‍मच बेसन और 1 चम्मच शहद की आवश्‍यकता होती है।
    शहद और बेसन फेस पैक बनाने की विधि –
    आप एक कटोरी में बेसन लें और इसमें 1 चम्‍मच शहद मिलाएं। इस मिश्रण को पेस्‍ट बनाने के लिए आप इसमें थोड़ा पानी भी उपयाग करें। इस फेस पैक को अपने चेहरे की त्‍वचा में समान रूप से लगाएं। लगभग 30 मिनिट या फेस पैक के सूखने के बाद आप अपने चेहरे को गुनगुने पानी से धो कर साफ कर लें। इस फेस पैक को हर दूसरे दिन या सप्‍ताह में 3 बार तक उपयोग करना त्‍वचा के लिए अच्‍छा होता है।

    2.7.19

    पैरों में ऐंठन और दर्द से राहत के उपाय /pairon me dard

                                            


    पैरों का दर्द –
    ज्यादा देर तक खड़े रहने या फिर चलने की वजह से पैरों में दर्द की शिकायत होना वैसे तो आम समस्या है लेकिन अगर आपके पैरों में आए दिन दर्द रहता है और उसके साथ ही कमज़ोरी भी महसूस होती है तो इस समस्या को हल्के में ना लें. पैरों में बार-बार होनेवाले दर्द से निजात पाने के लिए आमतौर पर लोग डॉक्टर की मदद लेते हैं लेकिन अगर आप कुछ घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल करके अपने पैरों की देखभाल करेंगे तो भी आपको इस समस्या से काफी हद तक राहत मिल सकती है. आइए हम आपको 5 घरेलू उपचार बताते हैं जो आपके पैरों का दर्द पल भर में गायब कर सकते हैं और इन नुस्खों से किसी नुकसान का डर भी नहीं है.
    अक्‍सर मसल्स को आराम न मिलने की वजह से पैरों और हाथों में ऐंठन होने लगती है। यह सुबह या रात में सोते समय भी हो सकता है। ये ऐसी समस्‍या है जो आपको कई बार रूला देती है। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि पैरों में ऐंठन और अकड़न क्‍यों होता है और इससे कैसे बचा जाए।

    पैरों में ऐंठन और दर्द का कारण और बचाव:pairon me dard 

    इलेक्ट्रोलाइट यानी पोटाशियम, सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम में संतुलन होना बहुत जरूरी है। दरअसल ये ऐसे आवश्यक तत्व हैं जिनके चलते मसल्स में सिकुड़न और रिलैक्सेशन होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि पैरों के ऐंठन का इलाज खुद करने लगे। अतिरिक्त सप्लीमेंट लेने से आपके शरीर में नुकसान हो सकता है। बेहतर यही है कि अपने खानपान में विकल्पों को शामिल करें ताकि तमाम आवश्यक तत्व आपके शरीर में आसानी से जा सकें।
    कुछ दवाओं के चलते भी पैरों में दर्द, ऐंठन और अकड़न हो सकती है। विशेषज्ञों की मानें तो कोई भी दवा बिना चिकित्सक की सलाह के नहीं लेना चाहिए। यदि किसी दवा के कारण आपके पैरों में दर्द हो तो तुरंत विशेषज्ञों से संपर्क करें। लेकिन अगर आप दर्द को दूर करने के लिए घरेलू उपायों का इस्‍तेमाल कर रहे हैं और किसी भी घरेलू उपचार के जरिये न जाए तो ऐसे में बेहतर है कि दवा का सहारा लें।
    किसी विशेषज्ञ से संपर्क करें और सलाह अनुसार दवा ही लें। अगर आप सही तरह से एक्सरसाइज नहीं करते तो यह समस्या हो सकती है। स्ट्रेच करें और वार्म-अप एक्सरसाइज अवश्य करें। इन तमाम वजहों को जानने के बाद यह जानना आवश्यक है कि लेग क्रैम्प यानी पैरों में ऐंठन, अकड़न आदि को कैसे रोका जा सकता है?
    इसके लिए आपको कुछ निम्न चीजों पर ध्यान देना होगा। यदि सोकर उठते ही आपके पैरों में दर्द, अकड़न या ऐंठन हो तो ऐसे में जरूरी है कि आप सीधे होकर खड़े होने के बाद जहां दर्द है, उस पर जोर दें। ऐसा करने से दर्द या ऐंठन से मुक्ति मिल सकती है।
    दर्द भरी जगहों पर गर्म कपड़े का उपयोग किया जा सकता है। ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है। यही नहीं मसल्स भी आरामदायक स्थिति में पहुंच जाते हैं। यदि गर्म कपड़े न लगाने हो तो गुनगुने पानी में पैरों की सिकाई भी की जा सकती है। स्ट्रेच भी कई प्रकार के होते हैं। पहले यह तय करें कि आपका दर्द किस तरह का है।
    काल्फ स्ट्रेच के दौरान दीवार की तरफ मुंह करके खड़ा होना होता है। आपके हाथ दीवार की ओर होते हैं। एक पैर पीछे की और दूसरा पैर आगे की ओर। ठीक ऐसे जैसे बछड़े की पोजिशन होती है। ऐसा करने से पैरों को संपूर्ण स्ट्रेच मिलता है और दर्द में आराम। पैरों में दर्द और ऐंठन की हमेशा शिकायत रहती है तो बेहतर है कि शराब न पीयें।
    शराब कम करने के साथ साथ जरूरी है कि शारीरिक गतिविधियों पर भी ध्यान दें। यदि आपने शराब छोड़ दी है; लेकिन शारीरिक गतिविधी न के बराबर है तो भी इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला। ऐंठन और अकड़ने से बचने के लिए जरूरी है कि आप निरंत शारीरिक गतिविधियों में संलग्न रहें। दर्द, ऐंठन आदि से बचने के लिए शरीर में कैल्शियम की मात्रा बनी रहनी चाहिए।
    यदि ऐसा न हो तो शरीर दर्द आदि समस्याओं से घिरा रहता है। अतः संतुलित आहार लेकर शरीर को दर्द से मुक्ति दिलाएं। शायद आप इस वजह से वाकिफ न हों। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो यदि आपके शरीर में पानी की कमी होगी तो आपके पैरों में ऐंठन आने की आशंका बनी रहेगी। अतः पानी की मात्रा शरीर में कम न होने दें।
    हालांकि यदि आप स्ट्रेचिंग करते हैं तो आपको अतिरिक्त एक्सरसाइज की जरूरत नहीं होती। लेकिन नियमित एक्सरसाइज करने से शरीर के अन्य भागों में भी दर्द नहीं होता। हाथ, गर्दन, पीठ, कमर आदि शरीर के अंगों भी अकसर दर्द से घिरे रहते हैं। राहत हासिल करने के लिए जरूरी है कि नियमित एक्सरसाइज करें।

    पैरों का दर्द मे हितकारी उपचार:pairon me dard 

    1- सिरका -सूजन मोच या ऐंठन की वजह से अगर आपके पैरों में दर्द हो रहा है तो फिर इससे राहत पाने के लिए आप सिरके का इस्तेमाल कर सकते हैं. आपको बता दें कि सिरका पैरों में होनेवाले दर्द का कारगर इलाज है. इसके लिए एक बाल्टी गर्म पानी में दो बड़ा चम्मच सिरका मिलाएं और एक छोटा चम्मच सेंधा नमक मिलाएं. अब इस पानी में अपने पैरों को करीब 20 मिनट के लिए डूबाकर रखें. इस नुस्खे से आपको तुरंत आराम मिलेगा.
    2- सेंधा नमक -सेंधा नमक पैरों के दर्द से निजात दिलाने का एक असरदार घरेलू नुस्खा है. इस नुस्खे को आज़माने के लिए एक टब में गर्म पानी डालें फिर उसमें 2-3 चम्मच सेंधा नमक मिलाएं. इसके बाद टब में अपने पैरों को 10 से 15 मिनट के लिए डालकर रखें. इससे आपको पैरों के दर्द से तुरंत आराम मिलेगा.
    3- आइस थेरेपी पैरों के सूजन और असहनीय दर्द को कम करने के लिए आइस थेरेपी एक कारगर नुस्खा माना जाता है. इस नुस्खे को आज़माने के लिए एक छोटे से प्लास्टिक की थैली में कुचले हुए बर्फ के कुछ टुकड़े डालें और दर्द को दूर करने के लिए सर्कुलर मोशन में प्रभावित हिस्से की मालिश करें. इससे पैर के सूजन को कम करने में मदद मिलेगी. लेकिन ध्यान रखें कि आइस पैक का उपयोग एक वक्त में 10 मिनट से ज्यादा देर तक नहीं करना है.
    4- लौंग का तेल लौंग का इस्तेमाल सदियों से औषधि के रुप में किया जा रहा है. खासकर लौंग के तेल को सिरदर्द, जोड़ों के दर्द, एथलीट फुट और पैरों के दर्द को दूर करने वाला एक अद्भुत तेल माना जाता है. पैरों के दर्द से राहत पाने के लिए लौंग के तेल से पैरों में धीरे-धीरे मालिश करें. बेहतर परिणाम के लिए दिन में दो से तीन बार इस तेल से अपने पैरों की मालिश करें.
    5- सरसों के बीज सरसों के बीजों का इस्तेमाल आमतौर पर शरीर से विषाक्त पानी निकालने, रक्त परिसंचरण में सुधार करने के लिए किया जाता है. इसके अलावा सरसों के बीज पैरों के दर्द और उसके सूजन को दूर करने के भी काम आते हैं. पैरों के दर्द से राहत पाने के लिए सरसों के कुछ बीजों को लेकर पीस लें और फिर इन्हें एक बाल्टी गर्म पानी में मिलाएं, फिर अपने पैरों को इस पानी में 10 से 15 मिनट के लिए डालकर रखें.
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    30.6.19

    गिलोय जड़ी बूटी है गुणों का खजाना/Giloy ke fayde




    गिलोय की बेल पूरे भारत देश में पाई जाती है. इसको लोग मधुपर्णी, अमृता, तंत्रिका, कुण्डलिनी गुडूची आदि नामों से जानते हैं. आम तौर पर गिलोय की बेल नीम के पेड़ या फिर आम के पेड़ के आस पास उगती है. नीम के पेड़ पर पाई जाने वाली गिलोय की बेल को सबसे सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक औषधि माना जाता है. इस लेख में हम आपको गिलोय केऔषधीय गुण बताने जा रहे हैं जिनसे शायद आप पहले से वाकिफ नहीं होंगे. लेकिन उससे पहले हम आपको बता दें कि गिलोय का फल दिखने में मटर के दानो में समान होता है. इसमें मुख्य रूप से एलकेलायड और ग्लुकोसाइड गिलोइन पाया जाता है जोकि कईं प्रकार के रोगों के लिए वरदान साबित होते हैं.

    हमारे भारत में सदियों से आयुर्वेदिक जड़ी बूटियो का इस्तेमाल रोगों का खात्मा करने के लिए किया जाता रहा है. इन्ही में से गिलोय भी एक ऐसी बेल है जिसके पत्ते और कांड दोनों ही मनुष्य के लिए लाभकारी साबित होते हैं. गिलोय की बेल का एक प्रमुख गुण यह भी है कि इस बेल को जिस पेड़ पर चढ़ाया जाए, यह उसी के गुण अपने में ग्रहण कर लेती है. नीम के पेड़ के साथ मिल कर गिलोय के औषधीय गुण और भी अधिक असरदार हो जाते हैं. 

    गिलोय के गुणों की संख्या काफी बड़ी है। इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। इसे नीम और आंवला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है।

    गिलोय के औषधीय गुण:Giloy ke fayde 

    गिलोय आयुर्वेद ग्रंथ में सबसे उत्तम मानी जाती है. इसकी पत्तियां, जडें और तना तीनो ही भाग सेहत के लिए गुणकारी हैं. परंतु बिमारियों में गिलोय के डंठल का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है.
    गिलोय में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट , एंटी इंफ्लेमेटरी और कैंसर नाशक तत्व मौजूद होते हैं जोकि हमे कब्ज़, डायबिटीज़, अपच, मूत्र संबंधी रोगों से छुटकारा दिलवाते हैं.
    गिलोय में मौजूद औषधीय गुण वात, पित्त और कफ़ तीनो की रोकथाम करते हैं.
    गिलोय की बेल में टोक्सिन मौजूद होते हैं जोकि ज़हरीले तत्वों को शरीर से बाहर निकालने में सहायक हैं.

    गिलोय के फायदे:Giloy ke fayde 

    गिलोय के औषधीय गुण और फायदों के चलते ही इसका इस्तेमाल कईं तरह की दवाइयों में किया जाता है. गिलोय के फायदे निम्नलिखित हैं-

    पेशाब में रुकावट

    यदि आपको पेशाब आने में किसी प्रकार की रुकावट या दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है तो गिलोय के औषधीय गुण आपके लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. इसके लिए पीड़ित व्यक्ति को 10 से 20 ग्राम गिलोय के रस में 1 चम्मच शहद मिला कर दिन में तीन से चार बार चाटने को दें. इससे पेशाब संबंधित सभी रोग जड़ से मिट जाते हैं.

    नेत्र रोग

    आँखों से संबंधित रोगों के लिए गिलोय के औषधीय गुण प्रभावी हैं. इसके लिए मरीज़ को नियमित रूप से 11.5 ग्राम गिलोय के रस में 1 ग्राम सेंध नामक म्क्ला कर दें इससे आपके सभी प्रकार के नेत्र रोग नष्ट हो जाएंगे और साथ ही आँखों की रौशनी में बढ़ावा होगा.

    दस्त के लिए

    दस्त के लिए गिलोय के औषधीय गुण लाभकारी हैं. इसके लिए दस्त ग्रसित व्यक्ति को 10 से 15 ग्राम गिलोय के रस में 4 से 6 ग्राम मिश्री मिला कर सुबह शाम दें. ऐसा करने के कुछ ही समय में आपको लाभ अनुभव होगा
    स्वास्थ्य के लिए गिलॉय के लाभ

     प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा:Giloy ke fayde 

    गिलॉय प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने का कार्य करता है। इस आश्चर्यजनक जड़ी बूटी में कायाकल्प करने के भी गुण होते हैं| इसके एंटीऑक्सीडेंट गुण जिगर और गुर्दों से विषैले पदार्थों को हटाने में मदद करते हैं। इसकी एंटी बैक्टीरियल गुण जिगर और मूत्र पथ की समस्याओं से लड़ने में सहायक होते हैं।

     लंबे बुखार और खांसी में सहायक:Giloy ke fayde 

    गिलॉय प्रकृति में एंटी-पायरेटिक होने के वजह से रक्त की मात्रा को बढ़ाता है और डेंगू के से भी लड़ता है। गिलॉय का उपयोग पीलिया के लक्षणों से भी राहत दिलाने में सहायक है। यह जड़ी बूटी फेफड़ों को साफ़ करके खांसी और यहां तक ​​कि अस्थमा में भी आराम दिलाती है। शहद के साथ गिलॉय मिलाकर पीने से मलेरिया का इलाज भी हो सकता है|

     पाचन तंत्र का इलाज

    पाचन प्रणाली के इलाज में गिलॉय घरेलू इलाज़ के रूप में उपयोग किया जा सकता है। गिलॉय का रस मक्खन के साथ लेने से बवासीर का इलाज़ किया जा सकता है।
    शरीर में पाचनतंत्र को सुधारने में गिलोय काफी मददगार होता है। गिलोय के चूर्ण को आंवला चूर्ण या मुरब्बे के साथ खाने से गैस में फायदा होता है। गिलोय के ज्यूस को छाछ के साथ मिलाकर पीने से अपाचन की समस्या दूर होती है साथ ही साथ बवासीर से भी छुटकारा मिलता है।
    *गिलोय में शरीर में शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप 2 के उपचार में बहुत कारगर है।
    *गिलोय एडाप्टोजेनिक हर्ब है अत:मानसिक दवाब और चिंता को दूर करने के लिए उपयोग अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय चूर्ण को अश्वगंधा और शतावरी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें याददाश्त बढ़ाने का गुण होता है। यह शरीर और दिमाग पर उम्र बढ़ने के प्रभाव की गति को कम करता है।


    मधुमेह का इलाज

    गिलॉय हाइपोग्लाइकेमिक एजेंट है जो रक्तचाप और लिपिड के स्तर को कम करके टाइप 2 डायबिटीज के उपचार के लिए भी उपयोगी है।

     तनाव कम करे

    गिलॉय को अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिलाकर एक स्वास्थ्य टॉनिक बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। गिलॉय के एडाप्टोजेनिक गुण इसको एक उचक स्तरीय तनाव और चिंता हरण करने वाला बनाते हैं| यह दिमाग को एक सुखद और शांत प्रभाव देने के साथ साथ दिमाग की कोशिकाओं को मुक्त कणों की वजह से हुई क्षति से भी बचाता है।

    संधिशोथ का इलाज

    गिलॉय में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी-पायरेटिक गुण होते हैं जो गठिया के विभिन्न लक्षणों जैसे जोड़ों के दर्द के इलाज में मदद करते हैं।
    एफ़्रोडायसियक की तरह काम करे
    गिलॉय में कामेच्छा बढ़ाने के गुण होते हैं जो यौन जीवन को बढ़ा देते हैं।

     आँखों की समस्याओं का इलाज

    गिलॉय नज़र की स्पष्टता को बढ़ाकर चश्मे से छुटकारा पाने में भी मदद करता हैं। बस थोड़े से पानी में इसको उबाल लें| इस मिश्रण को ठंडा होने दे और अपनी आँखों पर चारों और लगा लें|

    एलर्जिक राइनाइटिस का इलाज

    एलर्जिक राइनाइटिस एक ऐसी अवस्था है जिसमे बहता हुआ नाक, छींकना, नाक बंद होना, लाल और पानी से भरी आँखें आदि लक्ष्ण होते हैं जोकि धूल, प्रदूषण, पराग, घास, जैसे विभिन्न पदार्थों की एलर्जी की वजह से होते हैं| इस तरह के लक्षणों को दूर करने के लिए गिलॉय टेबलेट्स के रूप में लेना बहुत प्रभावी होता है।

    गिलॉय त्वचा पर कैसे लगायें?

    *सूजन कम करने के गुण के कारण, यह गठिया और आर्थेराइटिस से बचाव में अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय के पाउडर को सौंठ की समान मात्रा और गुगुल के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से इन बीमारियों में काफी लाभ मिलता है। इसी प्रकार अगर ताजी पत्तियां या तना उपलब्ध हों तो इनका ज्यूस पीने से भी आराम होता है।
    आयुर्वेद के हिसाब से गिलोय रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है।
    लंबे समय से चलने वाले बुखार के इलाज में गिलोय काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाता है जिससे यह डेंगू तथा स्वाइन फ्लू के निदान में बहुत कारगर है। इसके दैनिक इस्तेमाल से मलेरिया से बचा जा सकता है। गिलोय के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।


    घावों और कटने का उपचार

    गिलॉय की पत्तियों का एक पेस्ट बनाइए|
    एक पैन में गिलॉय पेस्ट के साथ अरंडी का तेल या नीम का तेल मिलाएं|
    इस मिश्रण को कुछ मिनटों के लिए पकाइए|
    इस मिश्रण को ठंडा कर लें|
    इसे घाव पर लगायें और घाव को एक पट्टी के साथ बाँध दें|

    गिलॉय का उपयोग कैसे करें?:Giloy ke fayde 

    इसे एक कप पानी में गिलॉय का सूखे हुए तने का पाउडर लगभग 1 चम्मच की मात्रा में मिलाएं|
    मिश्रण को उबालकर आधे से भी कम कर लें|
    इस मिश्रण को छाने|
    प्रतिदिन एक बार इस मिश्रण का उपयोग भोजन लेने से पहले करें|
    गिलॉय सेवन करने के लिए कैप्सूल और गोलियों भी बाजार में उपलब्ध है।

    साइड इफेक्ट्स और बचाव

    हलांकि गिलॉय का उपयोग मधुमेह के इलाज के लिए किया जाता है, लेकिन यह ग्लूकोज के स्तर को इतना कम कर देता है कि अन्य दवाओं के साथ इसे लेना खतरनाक हो सकता है|
    गर्भावस्था के दौरान गिलॉय का सेवन करना निषेध है|

    29.6.19

    गेहूं के जवारे का रस अच्छे स्वास्थ्य के लिए gehoon ke jaware ka ras

                                                 
    गेहूं की पौध को गेहूं का ज्‍वारा कहते हैं । यानी गेहूं के बीच जब जमीन में रोपित किए जाते हैं तो 7 से 8 दिन में जो पौध बनकर तैयार होती है वो गेहूं का ज्‍वारा कहलाती है । इसे अंगेजी में Wheat Grass कहते हैं । इसके फायदे अनेक हैं, आयुर्वेद में इसके रस को संजीवनी बूटी कहा गया है । आजकल ये आयुर्वेदिक औषधि के रूप में आसानी से उपलब्‍ध है ।
    सेहत के रखवाले हरी दूब और गेहूं के जवारे गेहूं के जवारों के रस को अमृत रस कहा जाता है, इसका उपयोग विकसित देशों में क्यों बढ़ता जा रहा है, पढ़ें ….. दूब घास प्रकृति में एक ऐसी वनस्पति है जो संसार के किसी भी कोने में, किसी भी जलवायु में उपलब्ध है। यूं तो इस घास को सदा से ही पूजनीय माना जाता रहा है अधिक गौर करने वाली बात यह है कि इसका उपयोग मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है। इसमें कुछ ऐसे मुख्य पोषक तत्व हैं जो प्रकृति ने कूट-कूट कर भर दिये हैं। इसमें मौजूद सभी पोषक तत्वों का पता वैज्ञानिक नहीं लगा पाए हैं, फिर भी कुछ तत्व जिनके बारे में पता है, इस प्रकार हैं: बीटा केरोटीन, फोलिक एसिड, क्लोरोफिल, लौह तत्व, कैल्शियम, मैग्नीशियम, एंटी आॅक्सीडेंट, विटामिन बी काॅम्पलेक्स, विटामिन के आदि। बीटा कैरोटीन: शरीर में बीटा कैरोटीन विटामिन ‘ए’ में परिवर्तित हो जाता है। सभी जानते हैं कि विटामिन ‘ए’ हमारी त्वचा एवं आंखों की रोशनी के लिए कितना महत्वपूर्ण है। फोलिक एसिड: फोलिक एसिड हमारे शरीर में लाल रक्त कणों को परिपक्व करने के लिए एवं रक्त में होमोसिस्टीन नामक रसायन की मात्रा कम करने के लिए जरूरी है। होमोसिस्टीन की रक्त में मात्रा ज्यादा होने से न केवल रक्तचाप बढ़ जाता है अपितु हृदय रोग की भी संभावना बढ़ जाती है। क्लोरोफिल: यह मानव रक्त से बहुत मिलता-जुलता है। इसमें और मानव रक्त में केवल एक फर्क होता है, वह है क्लोरोफिल के केंद्र में मैग्नीशियम कण होता है तो हीम रिंग में लौह कण। शरीर को क्लोरोफिल को रक्त में बदलने के लिए केवल एक रासायनिक क्रिया करनी पड़ती है, मैग्नीशियम कण को निकालकर उसकी जगह लौह कण को डालना होता है और निकाले हुए मैग्नीशियम को शरीर की हड्डियों की मजबूती तथा रक्तचाप(ब्लडप्रेशर) को नियमित (सामान्य) करने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है।

    क्लोरोफिल केवल रक्त ही नहीं बनाता अपितु यह एक अति प्रभावी ऐन्टीबायोटिक के रूप में भी कार्य करता है। इससे शरीर कीटाणुओं के संक्रमण से बचा रहता है। गेहूं के जवारों में मौजूद केल्शियम शरीर की हड्डियों एवं दांतों की मजबूती एवं स्वास्थ्य हेतु सामान्य रासायनिक क्रिया के लिए अति लाभप्रद है। इनमें मौजूद मेग्नीशियम रक्तचाप को सामान्य करने के लिए अति आवश्यक है। फ्री रेडिकल: ये अत्यंत क्रियाशील इलेक्ट्राॅन होते हैं, जो हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में रासायनिक क्रियाओं के उपरांत उत्पन्न होते हैं। चूंकि ये इलेक्ट्राॅन असंतृप्त होते हैं, अपने को संतृप्त करने के लिए ये कोशिकाभित्ति से इलेक्ट्राॅन लेकर संतृप्त हो जाते हैं, परंतु कोशिकाभित्ति में असंतृप्त इलेक्ट्राॅन छोड़ जाते हैं। यही असंतृप्त इलेक्ट्राॅन फिर इलेक्ट्राॅन लेकर संतृप्त हो जाते हैं और इस प्रकार से बार बार नये असंतृप्त इलेक्ट्राॅन/फ्री रेडिकल उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते रहते हैं। अगर इन फ्री रेडिकलों को संतृप्त करने के लिए समुि चत मात्रा म ंे एन्टी आॅक्सीडटंे नहीं मिलते तो कोशिकाभित्ति क्षतिग्रस्त हो जाती है। यही क्रिया बार-बार होते रहने से कोशिका समूह क्षतिग्रस्त हो जाता है और मनुष्य एक या अनेक रोगों का शिकार हो जाता है। यही एक महत्वपूर्ण कारण माना जा रहा है आजकल की लाइफस्टाइल बीमारियों मधुमेह, हृदय रोग, रक्तचाप, गठिया, गुर्दे और आंखों के काले या सफेद मोतिया रोग इत्यादि का। गेहूं के जवारे इन्हीं फ्री रेडिकलों को नष्ट करने में शरीर की हर संभव सहायता करते हैं। आज अगर प्रकृति में सभी शाकाहारी जानवरों के आहार पर गौर करें तो पाएंगे कि दूब घास उन्हें आहार से होने वाले सभी रोगों से मुक्त रखती है। कुत्ता एक मांसाहारी जानवर होते हुए भी जब बीमार होता है तो प्रकृतिवश भोजन छोड़कर केवल दूब घास खाकर कुछ दिनों में अपने आप को ठीक कर लेता है। मनुष्य साठ की आयु पर पहुंचते ही काम से रिटायर कर दिया जाता है। इसका कारण उसकी बुद्धि तथा याददाश्त कम होना माना जाता है परंतु हथिनी जिसकी आयु मनुष्य के ही बराबर आंकी गयी है, उसकी न तो याददाश्त कम होती है, न ही उसे सफेद या काला मोतिया होता है और न ही उसे 3900-6000 किलोग्राम भार के बावजूद आथ्र्राइटिस (गठिया) रोग होता है। अल्सरेटिव कोलाइटिस: अल्सरेटिव कोलाइटिस ;न्सबमतंजपअम ब्वसपजपेद्ध के रोगी द्वारा जवारों का नियमित प्रयोग करने से दवाओं की मात्रा कम करने के साथ-साथ रोग के लक्षणों में भी कमी आई।

    यह बात जानने योग्य है कि इन रोगियों में इस बीमारी से आंत के कैंसर का खतरा 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जवारों से उसका खतरा भी कम हो जाता है। सभी कैंसर रोगों में इन जवारों का उपयोग बहुत लाभकारी है। जवारे तैयार करने की विधि: लगभग 100 ग्राम अच्छी गुणवत्ता वाले गेहूं को साफ पानी से धोकर, फिर भिगोकर 8 से 10 घंटे रख दें। तत्पश्चात इन्हें 1 फुट ग् 1 फुट की क्यारियों या गमलों में बो दें। यह काम रोजाना सात दिनों तक करें। सातवें दिन पहले गमले/क्यारी मे   गेहूं या  जौ के जवारे करीब 8-9 इंच तक लंबे हो जाएंगे। अब उन्हें मिट्टी से ऊपर-ऊपर काट लें, मिक्सी में डालकर साथ में कोई फल जैसे केला, अनानास या टमाटर डालकर मिक्सी को चला लें । फिर इस हरे रस को चाय की छन्नी से छान कर कांच के गिलास में डालकर आधे घंटे के अंदर सेवन करें। आधे घंटे के पश्चात जवारों के रस से मिलने वाले पोषक तत्वों में कमी आ सकती है। जवारों को काटने के बाद जड़ांे को मिट्टी से उखाड़ कर फेंक दें और नई मिट्टी डालकर नये गेहूं बो दें। काटने के बाद जो जवारे दोबारा उग आते हैं उनसे शरीर को कोई लाभ नहीं मिलता है। मसूड़ों की सूजन हो एवं खून आता हो तो जवारों को चबा चबा कर खाने से यह रोग केवल एक महीने में ही काफूर हो जाता है। लू लगने पर: लू लगने पर भी जवारों के रस का सेवन बहुत लाभ पहुचाता है। किसे गेहूं के जवारे न दें: बच्चों को एवं उन लोगों को जिन्हें दस्त हो रहे हों, मितली हो रही हो और आमाशय में तेजाब बनता हो। जिन लोगों को गेहूं से एलर्जी हो, वे जौ के जवारे इस्तेमाल कर सकते हैं। गेहूं के जवारों, दूब घास आदि के नियमित प्रयोग से अन्य फायदे शरीर की प्रतिरोध क्षमता बढ़ जाती है। हिमोग्लोबिन द्वारा आॅक्सीजन ले जाए जाने की मात्रा बढ़ जाती है। जिन लोगों का रात की पार्टी में शराब या नशे के पदार्थों के सेवन से सुबह सिर भारी रहता है, उनको भला चंगा करने के लिए 1 कप जवारों का सेवन कुछ घंटे में जादू का सा असर करता है। कब्ज को दूर करते हैं और कब्ज के कारण होने वाले रोगों जैसे बवासीर, एनल फिशर एवं हर्नियां से बचाते हैं। बढ़े हुए रक्तचाप को कम करते हैं। कैंसर के रोगी का कैंसर प्रसार कम करने में सहायता मिलती है। साथ ही कैंसर उपचार हेतु दवाओं के दुष्प्रभाव भी बहुत हद तक कम होते हंै। ऐनीमिया (अल्परक्तता) के रोगी का हिमोग्लोबिन बढ़ जाता है। थेलेसिमिया नामक बीमारी में बिना खून की बोतल चढ़ाए, हिमोग्लोबीन बढ़ जाता है। भूरे/सफेद हो गए बाल पुनः काले होने लगते हैं। गठिया (ओस्टियोआथ्र्राइटिस) के रोगी बढ़ते ही जा रहे हैं।

    वे इन घास/जवारों से अप्रत्याशित लाभ पाते हैं। अगर इसके सेवन के साथ-साथ वे संतुलित, जीवित आहार करें, फास्ट फूड से बचें तथा नियमित योगाभ्यास करें तो बहुत लाभ होगा। लेखक के कुछ अनुभव बेहोश व्यक्ति का होश में आना: यह व्यक्ति उच्च रक्तचाप के कारण दिमाग की रक्त धमनी से रक्त निकलने से बेहोश हो गया था। पूरा बेहोश होने के कारण उसके पोषण हेतु राईल्स नली डालकर घर भेज दिया गया था। उसे दो सप्ताह तक पानी और दूब घास के सेवन से होश आ गया और उसके बाद जीवित शाकाहारी आहार से अब पूर्णतः ठीक है। मधुमेह: रोगी को 1989 से मधुमेह है। अब उन्हें पिछले 4-5 वर्ष से घुटनों में दर्द भी रहना शुरु हो गया था। कारण बताया गया कि ओस्टियोआथ्र्राइटिस हो गया है। रोजमर्रा के घर के कार्य करने में भी परेशानी महसूस होती थी। मेरे कहने पर उन्होंने गेहूं के जवारों को उगाया और जब ये जवारे 8-9 इंच लंबे हो गये तब उन्हें काट कर पीना शुरु किया। साथ में उन्हें पैरों की उंगलियां में सुन्नपन और पिंडलियों में दर्द रहने लगा था। उन्होंने न्यूरोबियोन के 10 इन्जेक्शन लगवाए पर कोई आराम नहीं हुआ। तब उन्होंने गेहूं के जवारे 20 दिन लिये। फिर अगले महीने 20 दिन इन जवारों का रस लिया। बाद में घर में व्यस्तता के कारण जवारों का रस पीना छोड़ दिया। उन्होंने इन्हीं दिनांे अलसी के कच्चे बीज भी 15-20 ग्राम रोज खाने शुरु कर दिये। अब मधुमेह काबू में रहता है, घुटने के दर्द में बहुत आराम हुआ और जो उंगलियां सुन्न पड़ गई थी उनमें, साथ ही पिंडलियों के दर्द में भी बहुत आराम आ गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उन्हें जो एक प्रकार का अवसाद रहने लगा था, लगभग खत्म हो गया है। मोटापा: आज से करीब 7 महीने पहले जब एक सज्जन मेरे पास आए तो उनका वजन 114 किग्रा. था। उन्होंने मेरे कहने पर पका हुआ भोजन बंद कर अंकुरित अनाज, दाल, फल, सलाद एवं दूब घास खाना शुरु कर दिया। शुरु के पहले माह ये सब भोजन खाने में बहुत कष्ट होता था, अपने आपको बहुत काबू में रखना पड़ता था, परंतु जैसे ही पहला महीना गुज़रा उनका वजन 4 कि.ग्रा. कम हो गया। अब उन्हें कच्चे, अपक्व भोजन एवं दूब घास के सेवन में बहुत आनंद आने लगा। दूसरे माह में करीब 7 कि.ग्रावजन कम हो गया। शरीर में इतनी ताकत बढ़ गयी कि जहां 50 कदम चलने से ही सांस फूलने लगता था, रक्तचाप बढ़ा रहता था, अब दोनों में आराम आ गया। अब भी प्रति माह 2 कि. ग्रा. वजन नियमित रूप से कम होता जा रहा है। उनके पूरे परिवार ने अंकुरित कच्चे अनाज एवं फल, सलाद आदि को नियमित भोजन बना लिया है। वेरिकोज़ वेन्ज से उत्पन्न घाव: एक रोगी को रक्त धमनियों के रोग वेरिकोज़ वेन्ज के कारण न भरने वाला घाव बन गया था। तीन महीने घास के रस को पीने तथा जवारे के रस की पट्टी से हमेशा के लिए ठीक हो गया। एक सज्जन को कोई 10-12 वर्ष से सोरियासिस ;च्ेवतपंेपेद्ध नामक चर्म रोग था। उन्होंने मेरे आग्रह पर गेहूं के जवारे खाना तथा जवारों का लेप शुरु कर दिया। पहले महीने में त्वचा के चकत्तांे से खून आना तथा खुजली बंद हो गई। दूसरे माह में ये सभी सूखने शुरु हो गये, साथ ही चकत्तों की परिधि की त्वचा मुलायम होनी शुरु हो गई। इन्होंने प्रेडनीसोलोन नामक दवा खानी बंद कर दी। 4 महीनों में इनकी त्वचा सामान्य हो गयी। चेहरे पर झाइयां हो जाती हों या आंखों के नीचे काले गड्ढे पड़ जाते हों तो इन दोनों ही चर्म रोगों में जवारों का रस पीने के साथ-साथ लेप करने से 3 महीने में अप्रत्याशित लाभ मिलता है। बुखार: एक बच्चा जिसे बार-बार हर महीने बुखार हो जाता था, कई बार एक्सरे कराने एवं रक्त की जांच कराने पर कुछ दोष पता नहीं चलता था। दूब घास के रस को तीन महीने पीने के बाद कभी बुखार नहीं हुआ। जुकाम एवं साइनस: एक रोगी को प्रतिदिन छींक आती रहती थी, जुकाम रहता था तथा साइनस का शिकार हो गया था। जवारों के 6 माह तक नियमित सेवन से रोग खत्म हो गया। इन्फेक्शन से गले की आवाज बैठ ;स्ंतलदहपजपेद्ध गई हो तो भी जवारों का रस या दूब के रस के सेवन से पांच दिनों में पूरा आराम मिलता है। माइग्रेन (आधे सिर का दर्द): माइग्रेन ;डपहतंपदमद्ध के कुछ रोगियों को पहले ही दिन में तीन बार जवारों का रस पीने से 50 प्रतिशत तक लाभ हो जाता है। शारीरिक कमजोरी: एक साहब को रक्तचाप बढ़ जाने से रक्तस्राव होकर अधरंग हो गया था। दवाइयां खाने से अधरंग और रक्तचाप पर तो काबू आ गया परंतु उनका वजन काफी कम हो गया और बहुत शारीरिक कमजोरी हो गई। उन्होंने शिमला में किसी सज्जन की सलाह पर गेहूं के जवारे लेने शुरु कर दिए। 3 माह के अंदर पूरा कायाकल्प हो गया। कमजोरी का नामोनिशान नहीं रहा।जवारे का रस के बनाने की विधि
    आप सात बांस की टोकरी  मे अथवा गमलों  मे  मिट्टी भरकर उन मे प्रति दिन बारी-बारी से कुछ उत्तम गेहूँ के दाने बो दीजिए और छाया   मे अथवा कमरे या बरामदे मे रखकर यदाकदा थोड़ा-थोड़ा पानी डालते जाइये, धूप न लगे तो अच्छा है। तीन-चार दिन बाद गेहूँ उग आयेंगे और आठ-दस दिन के बाद 6-8 इंच के हो जायेंगे। तब आप उसमें से पहले दिन के बोए हुए 30-40 पेड़ जड़ सहित उखाड़कर जड़ को काटकर फेंक दीजिए और बचे हुए डंठल और पत्तियों को धोकर साफ सिल पर थोड़े पानी के साथ पीसकर छानकर आधे गिलास के लगभग रस तैयार कीजिए ।
    वह ताजा रस रोगी को रोज सवेरे पिला दीजिये। इसी प्रकार शाम को भी ताजा रस तैयार करके पिलाइये आप देखेंगे कि भयंकर रोग दस बीस दिन के बाद भागने लगेगे और दो-तीन महीने मंे वह मरणप्रायः प्राणी एकदम रोग मुक्त होकर पहले के समान हट्टा-कट्ठा स्वस्थ मनुष्य हो जायेगा। रस छानने में जो फूजला निकले उसे भी नमक वगैरह डालकर भोजन के साथ रोगी को खिलाएं तो बहुत अच्छा है। रस निकालने के झंझट से बचना चाहें तो आप उन पौधों को चाकू से महीन-महीन काटकर भोजन के साथ सलाद की तरह भी सेवन कर सकते हैं परन्तु उसके साथ कोई फल न खाइये। आप देखेंगे कि इस ईश्वरप्रदत्त अमृत के सामने सब दवाइयां बेकार हो जायेगी।




    गेहूँ के पौधे 6-8 इंच से ज्यादा बड़े न होने पायें, तभी उन्हें काम मे  लिया जाय। इसी कारण गमले में या चीड़ के बक्स रखकर बारी-बारी आपको गेहूँ के दाने बोने पड़ेंगे। जैसे-जैसे गमले खाली होते जाएं वैसे-वैसे उनमें गेहूँ बोते चले जाइये। इस प्रकार यह जवारा घर में प्रायः बारहों मास उगाया जा सकता है।
    सावधानियाँ

     रस निकाल कर ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए।
    रस ताजा ही सेवन कर लेना चाहिए। घण्टा दो घण्टा रख छोड़ने से उसकी शक्ति घट जाती है और तीन-चार घण्टे बाद तो वह बिल्कुल व्यर्थ हो जाता है।
    ग्रीन ग्रास एक-दो दिन हिफाजत से रक्खी जाएं तो विशेष हानि नहीं पहुँचती है।
    रस लेने के पूर्व व बाद मे  एक घण्टे तक कोई अन्य आहार न लें
    गमलों में रासायनिक खाद नहीं डाले।
    रस में अदरक अथवा खाने के पान मिला सकते हैं इससे उसके स्वाद तथा गुण में वृद्धि हो जाती है।
    रस में नींबू अथवा नमक नहीं मिलाना चाहिए।
    रस धीरे-धीरे पीना चाहिए।
    इसका सेवन करते समय सादा भोजन ही लेना चाहिए। तली हुई वस्तुएं नहीं खानी चाहिए।
    तीन घण्टे मे जवारे के रस के पोषक गुण समाप्त हो जाते हैं। शुरु मे कइयों को उल्टी होंगी और दस्त लगेंगे तथा सर्दी मालूम पड़ेगी। यह सब रोग होने की निशानी है। सर्दीं, उल्टी या दस्त होने से शरीर में एकत्रित मल बाहर निकल जायेगा, इससे घबराने की जरुरत नहीं है।
    स्वामी रामदेव ने इस रस के साथ नीम गिलोय व तुलसी के 20 पत्तों का रस मिलाने की बात कहीं है|