लगातार अधिक शारीरिक श्रम करने पर सांसें चढ़ने लगती हैं। जल्दबाजी व तनाव की स्थिति में भी सांसें उखड़ जाती हैं, पर ऐसी स्थितियों में सांसों की गति जल्द ही सामान्य भी हो जाती है। कई बार नियमित व्यायाम व जीवनशैली में सुधार करके भी आराम मिल जाता है। पर यदि हर समय सांस लेने में परेशानी हो रही हो तो ध्यान देना जरूरी है। आइये जानते हैं उन रोगों के बारे में, जिनकी वजह से सांस लेने में परेशानी हो सकती है...
फेफड़ों की समस्याएं-
सांस नली के जाम होने पर या फेफड़ों में छोटी-मोटी परेशानी होने पर सांसें छोटी आने लगती हैं। किसी प्रोफेशनल की मदद से इस स्थिति से जल्दी ही राहत पाई जा सकती है। लेकिन यदि ऐसा लंबे समय से है तो यह किसी दूसरी बीमारी का लक्षण हो सकता है, जैसे ...
अस्थमा -
सांस नली में सूजन आने की वजह से वो संकरी हो जाती है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है। सांस लेते समय घरघराहट और खांसी रहती है।
पलमोनरी एम्बोलिज्म :
इसमें फेफड़ों तक जाने वाली धमनियां वसा कोशिकाओं, खून के थक्कों, ट्यूमर सेल या तापमान में बदलाव के कारण जाम हो जाती हैं। रक्त संचार में आए इस अवरोध के कारण सांस लेने और छोड़ने में परेशानी होती है। छाती में दर्द भी होता है।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पलमोनरी डिजीज (सीओपीडी)-
इस स्थिति में सांस नली बलगम या सूजन की वजह से संकरी हो जाती है। सिगरेट पीने वालों, फैक्टरी में रसायनों के बीच काम करने वालों और प्रदूषण में रहने वाले लोगों को यह खासतौर पर होती है।
निमोनिया -
यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया नाम के एक कीटाणु की वजह से होती है। दरअसल यह बैक्टीरिया श्वास नली में एक खास तरह का तरल पदार्थ उत्पन्न करता है, जिससे फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती और रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। खून में ऑक्सीजन की कमी के चलते होठ नीले पड़ जाते हैं, पैरों में सूजन आ जाती है और छाती अकड़ी हुई सी लगती है।
ह्रदय रोग-
दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। दिल के रोग मसलन, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथमिया आदि में ब्रेथलेसनेस होती है। दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं। फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होती है। ऐसे लोग रात में जैसे ही सोने के लिए लेटते हैं, उन्हें खांसी आने लगती है और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इसमें पैरों या टखनों में भी सूजन आ जाती है। सामान्य से ज्यादा थकान रहती है।बेचैनी भी हो सकती है वजह -
बेचैन रहना या बात-बात पर चिंता करना भी सांस को असामान्य बना देता है। दरअसल बेचैनी हाईपरवेंटिलेशन की वजह से होती है यानी जरूरत से ज्यादा सांस लेना। सामान्य स्थिति में हम दिन में 20,000 बार सांस लेते और छोड़ते हैं। ओवर-ब्रीदिंग में यह आंकड़ा बढ़ जाता है। हम ज्यादा ऑक्सीजन लेते हैं और उसी के अनुसार कार्बन डाईऑक्साइड भी छोड़ते हैं। शरीर को यही महसूस होता रहता है कि हम पर्याप्त सांस नहीं ले रहे। कई बार सांस व रोगों के बारे में बहुत सोचते रहने पर भी ऐसा होता है। पैनिक अटैक में ऐसा ही होता है। सांसों पर नियंत्रण रखने की बहुत अधिक कोशिश करने तक से ऐसा हो जाता है।
हो सकती है एलर्जी -
कई लोगों का प्रतिरक्षा तंत्र संवेदनशील होता है, जिससे उन्हें प्रदूषण, धूल, मिट्टी, फफूंद और जानवरों के बाल आदि से एलर्जी रहने लगती है। ऐसे लोगों को एलर्जन के संपर्क में आने व मौसम में बदलाव आने पर एलर्जी का अटैक पड़ने लगता है। सांस लेने में परेशानी होती है। सीने में जकड़न आने लगती है। सांस फूलने लगता है।
मोटापा घटाएं-
शोधकर्ताओं का दावा है कि मोटापा बढ़ते ही सांस की पूरी प्रणाली प्रभावित हो जाती है। सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है। वजन में इजाफा और सक्रियता की कमी रोजमर्रा के कामों को प्रभावित करने लगते हैं। थोड़ा सा चलने, दौड़ने या सीढि़यां चढ़ने पर परेशानी होती है। सांस लेने में परेशानी होना वजन कम करने और व्यायाम को जीवनशैली में शामिल करने का भी संकेत है।
अन्य कारण -
शरीर में कैंसर कोशिकाओं के कारण सांस नली पर दबाव बढ़ता है और सांस लेने में परेशानी होती है। गर्भाशय व लिवर कैंसर में पेट में तरल पदार्थ जमा हो जाते हैं, जिससे पेट में सूजन आ जाती है। डायफ्राम पर पड़ा दबाव फेफड़ों को खुलने नहीं देता और सांस लेने में परेशानी होती है।
शरीर में खून की कमी यानी एनीमिया होने की स्थिति में भी सांस लेने में परेशानी की समस्या होती है। इस दौरान रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन नामक प्रोटीन कम हो जाता है, जिससे ऑक्सीजन फेफड़ों से शरीर के सब हिस्सों तक नहीं पहुंच पाती। शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में कमी का कारण शरीर में आयरन, विटामिन बी-12 या प्रोटीन की कमी होना है।
ये उपाय देंगे राहत की सांस
घर के वेंटिलेशन का रखें खास ध्यान। कार्पेट, तकिए और गद्दों पर धूप लगाएं। परदों की साफ-सफाई करें। रसोई और बाथरूम में लगाएं एग्जॉस्ट फैन। एसी का इस्तेमाल कम करें।
धूम्रपान न करें, सिगरेट पीने वालों से दूरी बनाएं।
खाने में ब्रोकली, गोभी, पत्ता गोभी, केल (एक प्रकार की गोभी), पालक और चौलाई को शामिल करें।
बाहर का काम सुबह-सुबह या शाम को सूरज ढलने के बाद करें। इस वक्त प्रदूषण का स्तर कम होता है।
किसी फैक्ट्री या व्यस्त सड़क के आसपास व्यायाम न करें।
चलें, खेलें और दौड़ें। सप्ताह में कम से कम तीन दिन आधे घंटे की दौड़ लगाएं या पैदल चलें।
वजन कम करने पर ध्यान दें। मोटापा फेफड़े को सही ढंग से काम करने से रोकता है।
देर तक बैठे रहते हैं या अकसर हवाई यात्रा करते हैं तो थोड़ी देर पर उठ कर टहलते रहें। सूजन का ध्यान रखें।
यदि अस्थमा है तो इनहेलर साथ रखें।
कम दूरी वाले कामों के लिए वाहन का इस्तेमाल न करें।