6.1.21

शिशुओं में गैस की समस्या के घरेलू उपाय:Child gas problem




दिन में अक्सर गैस छोड़ना शिशुओं में एक सामान्य बात है। दिन भर दूध पीने के कारण, लगभग 15 से 20 बार गैस छोड़ना आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। लगभग हर बच्चे को पेट में गैस बनने के कारण कभी न कभी परेशानी होती ही है और हर बच्चे में यह अलग–अलग होती है, कुछ आसानी से गैस छोड़ते हैं और कुछ बच्चों को इसके लिए अत्यधिक ज़ोर लगाना पड़ता है। गैस को रोकने और उसका इलाज करने का तरीका सीखना आपको और आपके बच्चे को बहुत सारे तनाव से बचा सकता है।

शिशुओं में गैस स्तन के दूध या उसे खिलाए जानेवाले आहार में मौजूद प्रोटीन और वसा के पाचन से बनती है। गैसें पेट में बहती रहती है और थोड़ी मात्रा में दबाव बनाकर और पाचन तंत्र के साथ–साथ बहते हुए बाहर निकलती है। कभी–कभी, खिलाने या स्तनपान के दौरान बननेवाली या चूसने की क्रिया से अंदर जानेवाली अतिरिक्त गैस आंतों में फंस सकती है और दबाव पैदा कर सकती है जिससे शिशुओं को दर्द हो सकता है। निम्नलिखित कारक हैं जो शिशु के पेट में गैस बनने का कारण बनते हैं:
दूध पीते समय स्तन या दूध पिलाने की बोतल का ठीक से मुँह में नहीं बैठना अतिरिक्त हवा निगलने का कारण हो सकता है।
दूध पिलाने से पहले, शिशु का अत्यधिक रोना उनके हवा निगलने का कारण हो सकता है।यह भी एक गैस के निर्माण का कारण बन सकता है।
जन्म से ही एक नवजात शिशु की आंत विकसित होने लगती है और यह क्रिया बाद तक जारी रहती है। इस चरण में, शिशु यह सीख रहा होता है कि भोजन कैसे खाया जाए और मलत्याग कैसे किया जाए, जिस कारण भी अतिरिक्त गैस बनती है।
शिशुओं में गैस, आंतों में अविकसित जीवाणु के पनपने का एक परिणाम भी हो सकती है।
स्तन के दूध में माँ के द्वारा खाए गए भोजन के अंश होते हैं, स्तनपान करते समय कुछ खाद्य पदार्थ शिशुओं में गैस बनने का कारण बनते हैं, जैसे नट्स, कॉफ़ी, दूध से बने उत्पाद पनीर, मक्खन, घी) बीन्स और मसाले।
अत्यधिक स्तनपान कराने से बच्चे की आंत का भारीपन भी गैस के उत्पादन का कारण हो सकता है। यह भी माना जाता है कि स्तनपान के दौरान शुरुआत का दूध और आखिरी में आता दूध शिशु के पेट में गैस बनने को प्रभावित करता है। शुरु का दूध लैक्टोज़, जैसे शक्कर से भरपूर होता है और आखिरी का दूध वसा से भरपूर होता है। लैक्टोज़ की अधिकता शिशुओं में गैस और चिड़चिड़ापन का कारण हो सकती है।
हॉर्मोन संचालन, कब्ज़ और कार्बोहाइड्रेट का सेवन जैसे अनेकों कारक भी पेट में गैस बनने के कारण हो सकते हैं 

शिशुओं में गैस की समस्या के संकेत और लक्षण

शिशुओं के पास अपनी आवश्यकताओं को बताने का केवल एक ही मौखिक तरीका होता है रोना । यह भूख, दर्द, बेचैनी, थकान, अकेलापन या गैस इनमें से क्या है, यह जानने के लिए कुछ अवलोकन कौशल की ज़रूरत होती हैऔर प्रत्येक को समझने के लिए संकेत होते हैं। जब वे पेट की गैस के कारण दर्द से रोते हैं, तो रोना अक्सर तेज़, उन्मत्त और अधिक तीव्र होता है जो शारीरिक इशारों के साथ होता है, जैसे फुहार करना, मुट्ठियों को दबाना, दबाव डालना, घुटनों को छाती तक खींचना और घुरघुराना।


यदि आप सोच रहे हैं कि नवजात शिशुओं को गैस से राहत देने में मदद कैसे करें, तो निम्नलिखित प्रक्रियाएं आपकी मदद कर सकती हैं:
शिशुओं में गैस के कुछ घरेलू उपचारों में शामिल हैं:

1. उन्हें दूध पिलाते समय उचित स्थिति बनाए रखें

स्तनपान कराते समय, बच्चे के सिर और गर्दन को ऐसे कोण पर रखें ताकि वे पेट की तुलना में अधिक ऊपर हों। इससे यह सुनिश्चित होता है कि दूध पेट में नीचे तक जाता है और हवा ऊपर आ जाती है। यही बात बोतल से दूध पिलाने पर भी लागू होती है, बोतल को इस प्रकार झुकाएं ताकि हवा ऊपर की ओर उठे और निप्पल के पास जमा न होने पाए ।

2. खाने या दूध पीने के बाद शिशु को डकार लेने में मदद करें

यह शिशु द्वारा ग्रहण अतिरिक्त वायु को रोकने का सबसे अच्छा तरीका है। दूध पिलाते समय, हर 5 मिनट का एक ब्रेक लें और धीरे से बच्चे की पीठ पर थपकी दें ताकि उसे डकार लेने में मदद मिल सके। जिससे दूध को पेट में स्थिर होने और गैस को बुलबुलों के रूप में बाहर आने में मदद मिलती है।

3. रोना बंद करने के लिए ध्यान भटकाना

रोने से बच्चे हवा निगलते हैं और जितना अधिक वे रोते हैं, उतना ही अधिक हवा निगलते हैं। लक्ष्य यह होना चाहिए कि शिशु का ध्यान, वस्तुओं और ध्वनियों से भटकाकर जितना ज़ल्दी संभव हो सके उसका रोना रोक दिया जाए।


शिशुओं में गैस बनना कम करने के लिए पेट की मालिश एक बेहतरीन तरीका होता है। बच्चे को पीठ के बल लिटाएं और पेट पर धीरे–धीरे, घड़ी की दिशा में सहलाएं और फिर हाथ को उसके पेट के नीचे की गोलाई तक ले जाएं । यह प्रक्रिया आंतों के बीच से फंसी हुई गैस को सरलता से निकलने में मदद करती है।

5. पैडियाट्रिक प्रोबायोटिक्स

दही जैसे प्रोबायोटिक्स, भरपूर मात्रा में सहायक बैक्टीरिया से परिपूर्ण होता है जो आंतों के लिए अच्छे होते हैं। नए शोध से पता चला है कि पैडियाट्रिक प्रोबायोटिक्स, जब कई हफ्तों की अवधि के लिए दिए जाते हैं तो गैस और पेट की समस्याओं से निपटने में आसानी होती है।

6. ग्राईप वाटर

शिशुओं की गैस समस्याओं और उदरशूल को शांत करने के लिए दशकों से ग्राइप वॉटर का उपयोग किया जाता रहा है। ग्राइप वाटर, सोडियम बाइकार्बोनेट, डिल का तेल और चीनी के साथ मिश्रित पानी का एक घोल होता है जो 5 मिनट से कम समय में गैस से सुरक्षित और प्रभावी राहत देता है।
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  • 3.1.21

    सुबह-सुबह पीएंगे ऐलोवेरा जूस, तो ये होंगे फायदे:Aloe vera juice fayde





    आपने एलोवेरा का बहुत नाम सुना होगा, और यह भी सुना होगा कि एलोवेरा को औषधि की तरह इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एलोवेरा के औषधीय गुण क्या-क्या हैं। क्‍या आपको पता है कि किस-किस रोग में एलोवेरा के इस्तेमाल से लाभ मिलता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में एलोवेरा के फायदे के बारे में कई सारी अच्छी बातें बताई गई हैं।

    अगर सुबह-सुबह पीएंगे ऐलोवेरा जूस, तो ये होंगे फायदे

    अगर आपका पेट साफ नहीं रहता है या पेट से संबंधित कोई समस्या है तो आप खाली पेट ऐलोवेरा के जूस का सेवन कर सकते हैं. पानी के साथ इस जूस का सेवन करने से पेट साफ होता है. इसके साथ ही कब्ज की समस्या भी आसानी से दूर हो जाती है. ऐलोवेरा एक ऐसा पौधा है, जो आजकल हर घर में मिल जाता है. यह एक औषधि भी है, जिससे जुड़े कई घरेलू नुस्‍खे मौजूद हैं. ऐलोवेरा का इस्तेमाल करने से स्किन से संबंधित समस्याओं, पेट से संबंधित कई बीमारियों, दांतों की समस्या, सिरदर्द, भूख न लगना जैसी दिक्कतों को बड़ी आसानी से दूर किया जा सकता है.
    इसमें प्रोटीन, विटामिन समेत एंटी-ऑक्‍सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं, जो आपके शरीर को स्वस्थ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं. आपको भले विश्वास न हो लेकिन ऐलोवेरा का जूस पेट से संबंधित 200 से ज़्यादा बीमारियों को दूर करता है. ऐलोवेरा के जूस से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है. ऐलोवेरा का जूस पीने में भले ही थोड़ा कड़वा लगे लेकिन इसके फायदे अनेक हैं. बाज़ार में ऐलोवेरा के इन फायदों की वज़ह से ही कई फ्लेवर में ये जूस आसानी से मिलता है. ऐसे में इस स्वास्थ्यवर्धक जूस का सेवन आप आसानी से कर सकते हैं.

    अगर अक्सर रहता है सिरदर्द तो पिएं इसे

    अगर आपको अक्सर सिरदर्द रहता है तो आप ऐलोवेरा के जूस का खाली पेट सेवन कर सकते हैं. इससे आपको अक्सर रहने वाले सिरर्द की समस्या से भी छुटकारा मिल जाएगा.

    कब्ज की समस्या से मिलेगा छुटकारा

    अगर आपका पेट साफ नहीं रहता है या पेट से संबंधित कोई समस्या है तो आप खाली पेट ऐलोवेरा के जूस का सेवन कर सकते हैं. पानी के साथ इस जूस का सेवन करने से पेट साफ होता है. इसके साथ ही कब्ज की समस्या भी आसानी से दूर हो जाती है.

    शरीर के विषैले तत्वों को करता है दूर

    हमारी बदलती दिनचर्या में सही खान पान और सही समय पर पोषक तत्व न मिल पाने की वजह से शरीर के अंदर कई विषैले तत्व पैदा हो जाते हैं. इन विषैले तत्वों से सिर्फ पेट की ही नहीं बल्कि स्किन से संबंधित समस्याएं हो जाती हैं. ऐलोवेरा शरीर की डिटॉक्सीफिकेशन की प्रक्रिया के जरिए उससे विषैले तत्वों को बाहर निकालता है.


    ऐलोवेरा का जूस खाली पेट पीने से रेड ब्लड सेल्स की संख्या बढ़ने लगती है. ऐसे में अगर शरीर में ख़ून की कमी है तो इस जूस का सेवन रोज़ाना खाली पेट करें.

    अगर आपको भूख न लगने की समस्या है तो ऐलोवेरा का जूस आपके लिए रामबाण की तरह है. ये आपके भूख न लगने की परेशानी को दूर करता है. दरअसल पेट न साफ होने की वजह से आपकी भूख पर भी सीधा असर पड़ता है. जब आपका पेट साफ होने लगता है तो भूख भी आसानी से लगने लगती है.

    दांतों से संबंधित नहीं होगी समस्या

    ऐलोवेरा में मौजूद एंटी - माइक्रोवाइल प्रॉपर्टी आपके दांतों को साफ रखती है. इसके साथ ही बैक्टीरियल इंफैक्शन से भी आपको बचाती है. मुंह में अगर छाले होते हैं तो ऐलोवेरा का जूस उन्हें भी दूर करने में मदद करता है.

    चेहरा चमकने लगेगा

    ऐलोवेरा का जूस पीने से चेहरे पर चमक आती है. क्योंकि कील, मुहांसे और स्किन से संबंधित बीमारियां अक्सर पेट की बीमारियों से संबंध रखती हैं. ऐलोवेरा का जूस इन सारी परेशानियों को दूर कर चेहरे पर चमक लाता है.

    आंखों की बीमारी का इलाज

    आप एलोवेरा के औषधीय गुण से आंखों की बीमारी का इलाज कर सकते हैं। एलोवेरा जेल को आंखों पर लगाएंगे तो आंखों की लालिमा खत्म होती है। यह विषाणु से होने वाले आखों के सूजन (वायरल कंजक्टीवाइटिस) में लाभदायक होता है।
    एलोवेरा का औषधीय गुण आँखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आप एलोवेरा के गूदे पर हल्दी डालकर थोड़ा गर्म कर लें। इसे आंखों पर बांधने से आंखों के दर्द का इलाज होता है।

    कान दर्द में 

    भी एलोवेरा से लाभ मिलता है। एलोवेरा के रस को हल्का गर्म कर लें। जिस कान में दर्द हो रहा है, उसके दूसरी तरफ के कान में दो-दो बूंद टपकाने से कान के दर्द में आराम मिलता है।

    खांसी-जुकाम में 

    एलोवेरा के फायदे लेने के लिए इसका गूदा निकालें। गूदा और सेंधा नमक लेकर भस्म तैयार कर लें। इस भस्‍म को 5 ग्राम की मात्रा में मुनक्का के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे पुरानी खांसी और जुकाम में लाभ होता है।
    घृतकुमारी  के औषधीय गुण से पेट के रोग में भी लाभ होता है। गूदे को पेट के ऊपर बांधने से पेट की गांठ बैठ जाती है। इस उपचार से आंतों में जमा हुआ मल भी आराम से बाहर निकल जाता है।
    *एलोवेरा की 10-20 ग्राम जड़ को उबाल लें। इसे छानकर भुनी हुई हींग मिला लें। इसे पीने से पेट दर्द में आराम मिलता है।
    *एलोवेरा के 6 ग्राम गूदा और 6 ग्राम गाय का घी, 1 ग्राम हरड़ चूर्ण और 1 ग्राम सेंधा नमक लें। इसे मिलाकर सुबह-शाम खाने से वात विकार से होने वाले गैस की समस्या ठीक होती है।
    *गाय के घी में 5-6 ग्राम घृतकुमारी के गूदे में त्रिकटु सोंठ, मरिच पिप्‍प्‍ली, हरड़ और सेंधा नमक मिला लें। इसका सेवन करने से गैस की समस्या में लाभ होता है।
    *60 ग्राम घृतकुमारी के गूदे में 60 ग्राम घी, 10 ग्राम हरड़ चूर्ण तथा 10 ग्राम सेंधा नमक मिला लें। इसे अच्छी तरह मिला लें।इसको 10-15 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से वात दोष से होने वाले पेट की गैस की समस्या से निजात मिलता है। इस पेस्‍ट का सेवन पेट से जुड़ी बीमारियों व वात दोष से होने दूसरे रोगों में भी फायदेमंद होता है।
    *एलोवेरा के पत्ते के दोनों ओर के कांटों को अच्छे से साफ कर लें। इसके छोटे-छोटे टुकड़े काटकर मिट्टी के एक बर्तन में रख लें। इसके 5 किलो के टुकड़े में आधा किलो नमक डालकर बर्तन का मुंह बंद कर दें। इसे 2-3 दिन धूप में रखें। इसे बीच-बीच में हिलाते रहें। तीन दिन बाद इसमें 100 ग्राम हल्दी, 100 ग्राम धनिया, 100 ग्राम सफेद जीरा, 50 ग्राम लाल मिर्च, 6 ग्राम भुनी हुई हींग डाल लें। इसी में 30 ग्राम अजवायन, 100 ग्राम सोंठ, 6 ग्राम काली मिर्च, 6 ग्राम पीपल, 5 ग्राम लौंग भी डाल लें। इसके साथ ही 5 ग्राम दाल चीनी, 50 ग्राम सुहागा, 50 ग्राम अकरकरा, 100 ग्राम कालाजीरा, 50 ग्राम बड़ी इलायची और 300 ग्राम राई डालकर महीन पीस लें। रोगी की क्षमता के अनुसार 3-6 ग्राम तक की मात्रा में सुबह-शाम देने से पेट के वात-कफ संबंधी सभी विकार खत्म होते हैं। सूखने पर अचार, दाल, सब्जी आदि में डालकर प्रयोग करें।
    तिल्ली बढ़ गई हो तो एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदा होता है। 10-20 मिलीग्राम एलोवेरा के रस में 2-3 ग्राम हल्दी चूर्ण मिलाकर सेवन करें। इससे तिल्‍ली के बढ़ने के साथ-साथ अपच में लाभ होता है।
     बवासीर में एलोवेरा के प्रयोग से फायदा ले सकते हैं। एलोवेरा जेल के 50 ग्राम गूदे में 2 ग्राम पिसा हुआ गेरू मिलाएं। अब इसकी टिकिया बना लें। इसे रूई के फाहे पर फैलाकर गुदा स्‍थान पर लंगोट की तरह पट्टी बांधें। इससे मस्‍सों में होने वाली जलन और दर्द में आराम मिलता है। इससे मस्‍से सिकुड़कर दब जाते हैं। यह प्रयोग खूनी बवासीर में भी लाभदायक है।     
    पीलिया का इलाज करने के लिए भी एलोवेरा का सेवन करना फायदेमंद होता है। इसके लिए 10-20 मिलीग्राम एलोवेरा के रस को दिन में दो तीन बार पिलाने से पीलिया रोग में लाभ होता है।
    इस प्रयोग से कब्‍ज से मुक्ति पाने में भी मदद मिलती है।
    एलोवेरा रस की 1-2 बूंद नाक में डालने से भी लाभ होता है।
    कुमारी लवण को 3-6 ग्राम तक की मात्रा में छाछ के साथ सेवन करें। इससे लीवर, तिल्‍ली के बढ़ाना, पेट की गैस, पेट में दर्द और पाचनतंत्र से जुड़ी अन्य समस्‍याओं में लाभ होता है
    लीवर विकार में एलोवेरा (ग्वारपाठा) के फायदे
    दो भाग एलोवेरा के पत्तों का रस और 1 भाग शहद लेकर उसे चीनी मिट्टी के बर्तन में रखें। इस बर्तन का मुंह बन्द कर 1 सप्ताह तक धूप में रख दें। एक सप्ताह बाद इसे छान लें। इस औषधि को 10-20 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से लीवर से संबंधित बीमारियों में लाभ होता है।
    अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से पेट साफ होता है। उचित मात्रा में सेवन करने से मल एवं वात से जुड़ी समस्‍याएं ठीक होने लगती हैं। इससे लीवर स्वस्थ हो जाता है।
    मासिक धर्म विकार में एलोवेरा के सेवन से लाभ
    एलोवेरा के 10 ग्राम गूदे पर 500 मिलीग्राम पलाश का क्षार बुरककर दिन में दो बार सेवन करें। इससे मासिक धर्म की परेशानियां दूर होती हैं।
    मासिक धर्म के 4 दिन पहले से दिन में तीन बार कुमारिका वटी की 1-2 गोली का सेवन करें। इसे मासिक धर्म खत्म होने तक सेवा करना है। इससे मासिक धर्म के समय होने वाला दर्द, गर्भाशय का दर्द और योनि से जुड़ी अनेक बीमारी से आराम मिलता है।
    गठिया के इलाज की आयुर्वेदिक दवा है एलोवेरा
    जोड़ो के दर्द में भी एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदे मिलते हैं। 10 ग्राम एलोवेरा जेल नियमित रूप से सुबह-शाम सेवन करें। इससे गठिया में लाभ होता है।
    एलोवेरा के सेवन से कमर दर्द का इलाज
    कमर दर्द से परेशान रहते हैं तो एलोवेरा के इस्तेमाल से फायदा ले सकते हैं। गेंहू का आटा, घी और एलोवेरा जेल (एलोवेरा का गूदा इतना हो जिससे आटा गूंथा जाए) लेकर आटा गूंथ लें। इससे रोटी बनाएं। रोटी का चूर्ण बनाकर लड्डू बना लें। रोज 1-2 लड्डू को खाने से कमर दर्द ठीक होता है।
    एलोवेरा जेल कमर दर्द में दर्द निवारक दवा की तरह काम करता है।
    घाव और चोट में एलोवेरा के गुण से फायदा
    फोड़ा ठीक से पक न रहा हो तो एलोवेरा के गूदे में थोड़ा सज्जीक्षार और हरड़ चूर्ण मिलाकर घाव पर बांधें। इससे फोड़ा जल्दी पक कर फूट जाता है।
    *घृतकुमारी के पत्ते को एक ओर से छील लें। इस पर थोड़ा हरड़ का चूर्ण बुरक कर हल्‍का गर्म कर लें। इसे गांठ पर बांधें। इससे गांठों की सूजन दूर होगी।
    *स्त्रियों के स्तन में गांठ पड़ गई हो या सूजन हो गई हो तो एलोवेरा की जड़ का पेस्‍ट बना लें। इसमें थोड़ा हरड़ चूर्ण मिलाकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। इसे दिन में 2-3 बार बदलना चाहिए।
    *घृतकुमारी का गूदा घावों को भरने के लिए सबसे उपयुक्त औषधि है। रेडिएशन के कारण हुए गंभीर घावों पर इसके प्रयोग से बहुत ही अच्छा फायदा मिलता है।
    *आग से जले हुए अंग पर एलोवेरा के गूदे को लगाने से जलन शांत हो जाती है। इससे फफोले नहीं होते हैं।
    एलोवेरा और कत्‍था को समान मात्रा में पीसकर लेप करने से नासूर में फायदा होता है।
    *एलोवेरा के रस को तिल और कांजी के साथ पका लें। इसका लेप करने पर घाव में लाभ होता है।
    केवल एलोवेरा के रस को पकाकर घाव पर लेप करने से भी लाभ होता है।
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    2.1.21

    नाक में तेल डालने के फायदे:putting oil into nose




    नाक में तेल डालना हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। यह न केवल नाक में होने वाली परेशानी को दूर करता बल्कि अन्य शारीरिक समस्याओं को भी दूर करने में सहायक होता है।

    नाक में तेल डालने से यह मौसमी बीमारियों जैसे कि सर्दी, जुकाम, फ्लू, फंगल इंफेक्शन और बैक्टीरियल इंफेक्शन के खतरे को कम करता है। यह गले और फेफड़े में होने वाले इंफेक्शन और खुजली, रैशेज और फंगस जैसी दिक्कतें को दूर करने में सहायक होता है।

    सरसों का तेल
    सबसे लोकप्रिय तेलों में से एक माना जाता है। इसका उपयोग बहुत सारे आयुर्वेदिक उपचारों में किया जाता है। सरसों का तेल एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होता है। नाक में सरसों का तेल डालने से कई प्रकार के लाभ होते है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट सूजन संबंधी समस्याओं से निजात दिलाने का काम कर सकता है।
    नाक में सरसों का तेल डालने से यह यह मौसमी बीमारियों जैसे कि सर्दी, जुकाम, छींक आना और साँस लेने में परेशान होना आदि समस्यों को दूर करने में मददगार होता है। इसके लिए आप दिन में 3 बार सरसों के तेल को अपनी नाक के दोनों नॉस्टल्स में डालें। यह ड्राईनेस को दूर करके खुजली को खत्म करता है।


    बादाम तेल नाक में डालने के फायदे

    बादाम की तरह बादाम का तेल भी बहुत ही लाभकारी होता है। बादाम का तेल त्वचा संबंधी बीमारियों एवं संक्रमण के इलाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह त्वचा की जलन एवं खुजलाहट को कम करके त्वचा को आराम देता है।
    नाक में बादाम का तेल डालने से यह आपको कई प्रकार की बीमारियों से दूर रखता है। यह बाल झड़ने से रोकने, सिर दर्द ठीक करने, याददाश्त बढ़ाने और साइनस की समस्या को दूर करने मदद करता है। दिन में 2 बार बादाम तेल को नाक में जरूर डालें।


    नाक में नारियल तेल डालने के फायदे

    सर्दियों के मौसम में जुकाम होना और फिर नाक का बंद होना आम बात है। आप इसके लिए नारियल के तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। जब भी आपको सर्दी हो जाएं और नाक बंद हो जाएं तो आप नारियल तेल की कुछ बूंदों को अपनी नाक में डालें। इससे आपकी बंद नाक खुल जाएंगी और सर्दी भी ठीक हो जाएगी।
    इसके अलावा नारियल का तेल एक प्राकृतिक मॉश्चराइजर की तरह कार्य करता है। यह ड्राई स्किन को मॉश्चराइज करके नाक में होने वाली खुजली को भी दूर करता है।


    नाक में तिल का तेल डालने के फायदे

    तिल के तेल को इसके औषधीय गुणों के कारण जाने जाते है। इस तेल में एक जीवाणुरोधी गुण होते है जो सामान्य त्वचा रोगजनकों जैसे स्‍ट्रेप्‍टोकोकस और स्‍टाफिलोकोकस और एथलीट पैर जैसी त्वचा कवक को ठीक करता है। यह एक प्राकृतिक एंटीवायरल, एंटी इंफ्लामेंट्री  होता है।
    नाक में तिल का तेल डालने से बालों का सफ़ेद होना और झड़ना, नाक की खुश्की, दांत दर्द ,सेंसिटिविटी और मसूड़ों की समस्या आदि में लाभ मिलता है। इसके लिए आप रोज रात में सोने से पहले तिल के तेल की दो बूंदों को नाक में डालें।

    जैतून के तेल
    में भरपूर मात्रा में विटामिन E और एंटीऑक्सीडेंट होता है जो त्वचा को इन्फेक्शन से बचाये रखता है। जैतून के तेल का उपयोग मोइस्चराइजर के रूप में भी उपयोग किया जा सकता है। आप अपनी नाक में जैतून का तेल की कुछ बूंदों को रात में सोने से पहले डालें। इससे साइनस और साँस लेने में होने परेशानी में राहत मिलेगी।
    नाक में तेल डालने से कफ जमने की समस्या दूर होती है।
    आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए आप रात में सोते समय नाक में दो बूंद तेल डालें।
    नाक में तेल डालने से वात, पित्त और कफ दोष को संतुलित किया जा सकता है।
    नाक में तेल डालना तनाव दूर करने में सहायक होता है।
    रात में सोने से पहले नाक में तेल की दो बूंद डालने से अनिद्रा की समस्या दूर होती है।

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    दिव्य हृदयामृत वटी के फायदे और नुकसान:Hridayamrit vati




    दिव्य हृदयामृत वटी का उपयोग ह्रदय रोगों में किया जाता है। यह एक आयुर्वेदिक औषधि है। आइये इस ड्रग के बारे में और अधिक विस्तार से जानते हैं कि यह कहाँ इस्तेमाल होती है, कैसे काम करती है और इसके क्या साइड इफेक्ट्स होते हैं। नीचे के लेख में आप जानेगे Divya Hridyamrit Vati के लाभ, उपयोग करने के तरीके, खुराक और साइड इफेक्ट्स, नुकसान के बारें में।
    दिव्य हृदयामृत वटी में इस्तेमाल होने वाली सामग्री
    अर्जुन छाल – Terminalia Arjuna 157.61 मिलीग्राम
    निर्गुन्डी – Vitex Negundo 11 मिलीग्राम
    रासना – Pluchea Lanceolata 11 मिलीग्राम
    मकोय (काकमाची) – Solanum Nigrum 11 मिलीग्राम
    गिलोय – Tinospora Cordifolia 11 मिलीग्राम
    पुनर्नवा – Boerhavia Diffusa 11 मिलीग्राम
    चित्रक – Plumbago Zeylanica 11 मिलीग्राम
    नागरमोथा – Cyperus Rotundus 11 मिलीग्राम
    वायविडंग – Embelia Ribes 11 मिलीग्राम
    हरीतकी (हरड़ छोटी) – Terminalia Chebula 11 मिलीग्राम
    अश्वगंधा – Withania Somnifera 11 मिलीग्राम
    शुद्ध शिलाजीत – Asphaltum 11 मिलीग्राम
    शुद्ध गुग्गुलु – Commiphora Mukul 21 मिलीग्राम
    संजयस्व पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
    अकीक पिष्टी 0.1 मिलीग्राम
    मुक्ता पिष्टी 0.05 मिलीग्राम
    हीरक भस्म 0.005 मिलीग्राम
    रजत भस्म 0.03 मिलीग्राम
    जहरमोहरा पिष्टी 0.005 मिलीग्राम

    दिव्य हृदयामृत वटी कैसे काम करती है


    यह औषधि मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करती हैं और दिल से सम्बंधित रोगो की कठिनाईयों को दूर करती हैं। इसके अतिरिक्त यह उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने का भी कार्य करती है।

    दिव्य हृदयामृत वटी के सेवन की विधि –

    यह दवा बच्चों को एक बार में 1 गोली लेनी चाहिए एवं वयस्कों को 2 गोली लेनी चाहिए, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
    यह दवा सुबह – शाम ( दिन में 2 बार) लेनी चाहिए, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
    इस दवा को गुनगुने पानी से या फिर दूध से या फिर अर्जुन क्षीर पाक से लेना चाहिए।
    इस दवा बेहतर परिणाम के लिए कम से कम 3 माह तक सेवन करना चाहिए। और इस बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।


    दिव्य हृदयामृत वटी के साइड इफेक्ट्स और नुकसान

    दिव्य हृदयामृत वटी का इस्तेमाल करने से आपको कई सारे साइड इफ़ेक्ट हो सकते हैं लेकिन ये साइड इफेक्ट्स आपको हमेशा महसूस नहीं होंगे। जब भी आपको नीचे बताये गये साइड इफेक्ट्स महसूस हों तो आप तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
    उलटी होना
    कब्ज
    अनिद्रा
    थकान
    चक्कर आना
    पेट खराब होना
    मितली
    सिर दर्द
    दस्त

    हृदयामृत वटी की पारस्परिक क्रिया

    अगर आप इस टैबलेट के साथ कोई अन्य दूसरी ड्रग इस्तेमाल करना चाहते हैं तो हो सकता है कि इसके साइड इफेक्ट्स बढ़ जाएं या फिर इसका प्रभाव कुछ कम हो जाए। अगर इसके इस्तेमाल से ऐसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तो आप तुरंत डॉक्टर से सलाह लें जिससे कि आपको कोई गंभीर समस्या ना हो। निम्नलिखित ड्रग के साथ पारस्परिक क्रिया हो सकती है।
    Corticosteroids
    Clonazepam
    Basiliximab
    Antibiotics
    Cortisol
    Azathioprine
    Cyclosporine

    हृदयामृत वटी के इस्तेमाल में सावधानियां

    यदि आप अतिसंवेदनशीलता से पीड़ित हैं, तो इस दवा का प्रयोग न करें।
    यदि आप अस्थमा से पीड़ित हैं, तो इस दवा का प्रयोग न करें।
    इस दवा को 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को इस्तेमाल में नहीं लाया जाना चाहिए।
    अगर आपको इसमें मौजूद सामग्री से एलर्जी है तो इसका इस्तेमाल ना करें या फिर डॉक्टर से सलाह लें।
    स्तनपान के समय इस टैबलेट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरुर लें।
    प्रेगनेंसी के दौरान इसका इस्तेमाल करने के लिए डॉक्टर से सलाह जरुर लें।
    अगर आप पहले से ही कोई विटामिन ले रहें हैं तो इस टैबलेट का इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
    इस ड्रग को ऐल्कोहल के साथ इस्तेमाल न लें।
    हृदयामृत वटी अधिक मात्रा में इस्तेमाल करने पर होने वाले लक्षण
    यदि आप बहुत अधिक मात्रा में इस टैबलेट इस्तेमाल करते हैं, तो आपके शरीर में दवा के खतरनाक स्तर हो सकते हैं। ओवरडोज के लक्षणों में निम्न दुष्प्रभाव शामिल हो सकते हैं, जैसे
    उलटी होना
    कब्ज
    अनिद्रा
    थकान
    चक्कर आना
    पेट खराब होना
    मितली
    सिर दर्द
    दस्त
    बेहतर परिणाम के लिए इस दवा को कितने समय तक उपयोग किया जा सकता है?
    बेहतर परिणाम के लिए इस दवा को कम से कम 3 महीने तक उपयोग किया जाना चाहिए, इस बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
    क्या इस ड्रग को लेने के बाद वाहन चलाना सुरक्षित है?
    जी नही इस दवा को वाहन चलाते समय लेना सुरक्षित नही है, क्योंकि इसको लेने के बाद नींद आना, चक्कर आना, फोकस करने में कमी और सिर दर्द आदि समस्याओं का खतरा बना रहता है।
    इस दवा को दिन में कितनी बार सेवन करना चाहिए?
    इस दवा दिन में 2 बार सेवन करने की सलाह दी जाती है, और अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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    1.1.21

    अगर वृक्ष के आयुर्वेदिक उपचार




    अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्णकटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आसपास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है।


    व्यवहारिक नाम:

    ‌‌‌अंगेजी: ईगलवुड (Eaglewood)।

    अरबी: ऊदगर की।

    कर्नाटकी: अगर।

    गुजराती: अगरू।

    ग्रीक: अगेलोकन।

    तमिल: अगर।

    तेलुगु: अगरू चेट्टु।

    फारसी: कसबेबवा।

    बंगाली: अगर।

    मराठी: अगर।

    मलयालम: आकेल।

    लैटिन: एक्वीलारिया (Aquilaria sp.)

    ‌‌‌संस्कृत: स्वाद्वगरू।

    हिन्दी: अगर।

    स्वाद: ‌‌‌अगर तेज, कड़वा और सुगन्ध मिश्रित होता है।
    ‌‌‌पौधे का स्वरूप: ‌‌‌
    अगर एक पेड़ की लकड़ी है। वैसे तो यह कई प्रकार की होती है परन्तु इनमें काली अगर ही श्रेष्ठ होती है। अगर का पेड़ बहुत बड़ा होता है और हमेशा हरा रहता है। अगर का पेड़ ऊबड़-खाबड़ होता है। ‌‌‌इसमें मार्च-अप्रैल मास में फूल आते हैं, अगर के बीज जुलाई में पकते हैं। इसकी लकड़ी नर्म होती है। इसके छिद्रों में राल की तरह कोमल और सुगन्धित पदार्थ भरा रहता है। लोग उसे चाकू से कुतरकर रख लेते हैं, अगर की अगरबत्ती बनाने और शरीर पर मलने के काम में लाया जाता है, अगर की सुगन्ध से मन प्रसन्न होता ‌‌‌है। ‌‌‌अगर का रंग काला और भूरा होता है। इसकी लकड़ी जलाने में ‌‌‌सुगन्ध देती है।
    ‌‌‌विशेष: ‌‌‌
    अगर पित्त प्रकृति वालों के लिए हानिकारक होता है। ‌‌‌कपूर और गुलाब के फूल अगर के दोषों को दूर करते हैं और इसके गुणों में सहायक होते हैं।
    स्वभाव: ‌‌‌
    अगर खुष्क और गर्म प्रकृति का होता है।
    ‌‌‌औषधीय गुण: ‌‌‌
    अगर गर्म, चरपरी, त्वचा को हितकारी, कड़वी, तीक्ष्ण, शीत, वात और कफनाशक और मन को प्रसन्न करती है, शरीर में स्फूर्ति लाती है, स्मरण शक्ति को बढ़ाती है, मस्तिष्क को ताजा करती है और गर्भाशय की सर्दी को दूर करती है।
    अगर के पेड़ असम, मालाबार, चीन की सीमा के निकटवर्ती क्षेत्रों, बंगाल के दक्षिण की ओर के उष्ण कटिबन्ध के ऊपर के प्रदेश में और सिलहट जिले के आस-पास ‘जातिया’ पर्वत पर अधिक मात्रा में होता है

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    पुनर्नवादि मंडूर के फायदे उपयोग:punarnavadi mandoor fayade



    पुनर्नवादि मंडूर क्या है?

    पुनर्नवादि मंडूर एक आयुर्वेदिक औषधि है जिसका उपयोग शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह एनीमिया, पीलिया, हेपेटाइटिस, कोलाइटिस, गठिया जैसे रोगों का इलाज करने में मदद करता है। इसमें होग्वीड (पुनर्नवा), सूखी अदरक, ट्रिविट, काली मिर्च, लंबी काली मिर्च, देवदार, हल्दी, हरीतकी, बिभीत्की, आंवला, कैरम और कैरावे सहित कई तत्व होते हैं। ये सारी चीज़ें स्वस्थ शरीर और स्वस्थ दिमाग में योगदान करती हैं। इस दवा के लाभों के बारे में जानने के लिए आगे पढ़ें।

    पुनर्नवादि मण्डूर के फायदे

    जैसा कि पुनर्नवादि मंडूर कई महत्वपूर्ण सामग्रियों का एक पॉली हर्बल रूप है जिसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। इनमे से कुछ नीचे दिए गये हैं:—
    जिगर की समस्याएं
    अध्ययनों से यह पता चला है कि पुनर्नवादि मंडूर का सेवन करने से हेपेटोसाइट्स या जिगर की कोशिकाओं के बनने से जिगर की खराबी ठीक हो जाती है। यह लीवर की कोशिकाओं में फैट के इकठ्ठे होने को भी कम करता है जो कि फैटी लिवर जैसे रोगों और फॉस्टर लिवर के कार्य को रोकता है।
    आयरन की कमी को रोकता है
    यह मुख्य रूप से आयरन की कमी को रोकने के लिए दी जाती है। पुनर्नवादि मंडूर को नियमित रूप से लेने से हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार होता है और एनीमिया, क्रोनिक कोलाइटिस, वर्म के इन्फेक्शन आदि रोगों की घटना को कम किया जा सकता है।
    हृदय संबंधी विकार
    इसकी कार्डियो प्रोटेक्टिव प्रॉपर्टी ड्यूरेसिस को बढ़ावा देती है और फ्लूड रिटेंशन को खत्म कर देती है जो बदले में दिल से जुड़ी बीमारियों को कम करता है। यह पंपिंग की दर को बढ़ाकर हार्ट फेल होने से रोकता है, जिससे आपका दिल स्वस्थ रहता है।
    गुर्दे से संबंधित समस्याएं
    यह अपने औषधीय गुणों के कारण किडनी के काम को बढ़ा देता है और किडनी को फूलने से रोकता है जो कि किडनी से संबंधित सबसे अधिक समस्याओं में से एक है।
    महिलाओं के लिए लाभ
    एक महिला मासिक धर्म के दौरान लगभग 10 मि.ली. से 35 मि.ली. खून खो देती है। पुनर्नवादि मंडूर का सेवन करने से शरीर में आयरन के बनने की क्षमता में सुधार करता है जिससे महिलाओं को शीघ्र स्वस्थ होने में मदद मिलती है।
    पुनर्नवादि मंडूर के उपयोग
    पुनर्नवादि मंडूर में बहुत से उपयोग और लाभ हैं जो कई समस्याओं का हल कर सकते हैं। कुछ सर्वोत्तम उपयोग नीचे सूचीबद्ध हैं:
    हेमेटोजेनिक प्रकृति
    पुनर्नवादि मंडूर विशेष रूप से आयरन टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है क्योंकि इसमें आयरन ऑक्साइड होता है। इसके हेमेटोजेनिक गुण लाल रक्त कोशिकाओं (आरबीसी) बनाते हैं जो मासिक धर्म चक्र के दौरान खोए हुए खून की मात्रा को कम करने में मदद करता है और एनीमिया, जलोदर, पुराने बुखार जैसी समस्याओं से बचाता है।
    एंटी इंफ्लेमेटरी
    इसका उपयोग इसके तीव्र रूप में त्वचा की सूजन को ठीक करने के लिए भी किया जाता है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो त्वचा को ठंडा करने में मदद करती है। 1 से 2 महीने के लिए इसका उपयोग करना अच्छे परिणाम देता है|
    आयुर्वेदिक दवा
    इसमें शुंती, मरिचा, पुर्नवा, त्रिवृत, दंती, अमलकी आदि आयुर्वेदिक तत्व पाए जाते हैं जो पीलिया, बवासीर, पुराने बुखार, मलबासर्शन सिंड्रोम जैसे रोगों से लड़ने में बहुत प्रभावी तरीके से मदद करता है।
    पुनर्नवादि मंडूर का उपयोग कैसे करें?
    पुनर्नवादि मंडूर में उच्च गुणवत्ता वाले प्राकृतिक तत्व होते हैं जो विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य मुद्दों को पूरा करते हैं। पुनर्नवादि मंडूर का सेवन छाछ, गुड़ या दूध के साथ किया जा सकता है। हर रोज़ 500 मि.ग्रा. से ज्यादा का सेवन न करें। पुनर्नवादि मंडूर के सेवन से संबंधित कुछ प्रश्न नीचे दिए गए हैं:
    क्या इसका सेवन भोजन से पहले या बाद में किया जा सकता है?
    पुनर्नवादि मंडूर एक आयुर्वेदिक दवा है जिसका सेवन भोजन करने से पहले या बाद में किया जाना चाहिए। इसे डॉक्टर द्वारा तय किये अनुसार 500 मि.ग्रा. से 1 ग्रा. के अनुपात में लेना चाहिए।
    क्या पुनर्नवादि मंडूर को खाली पेट लिया जा सकता है?
    भोजन के बाद पानी, छाछ या गुड़ के साथ इसका सेवन करना सबसे फायदेमंद है।
    क्या पुनर्नवादि मंडूर को पानी के साथ लिया जा सकता है?
    हाँ। पुनर्नवादि मंडूर पानी के साथ लेने पर प्रभावी होता है। इसका सेवन छाछ या गुड़ के साथ भी लिया जा सकता है।
    पुनर्नवादि की खुराक
    इसका उपयोग शरीर में आयरन के स्तर को बढ़ाता है। पुनर्नवादि मंडूर को रोगी की समस्या की ऊंचाई, आयु, वजन और गंभीरता जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया गया है।
    आयु मात्रा समय
    वयस्क 500 मि.ग्रा. से 1 ग्रा. भोजन के बाद
    बच्चे अधिकतम 250 मि.ग्रा. एक दिन में
    भोजन के बाद
    इसका सेवन भोजन से पहले किया जाता है लेकिन यह सबसे अच्छा काम तब करता है जब इसका सेवन भोजन के बाद किया जाता है।
    इसे सबसे प्रभावी बनाने के लिए, इसे पानी, छाछ या गुड़ के साथ लेना चाहिए।
    पुनर्नवादि मंडूर के साइड इफेक्ट्स
    पुनर्नवादि मंडूर कई बीमारियों से निपटने के लिए उपयोगी है। इसके सेवन से कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं। लेकिन कुछ मामलों में इसके तत्वों के कारण इसका कुछ लोगों पर निम्न तरीकों से प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है:
    उच्च रक्तचाप: उच्च रक्तचाप से पीड़ित रोगियों में रक्तचाप में वृद्धि देखी जा सकती है जो तनाव, अपर्याप्त नींद, थकान जैसे कई कारकों का परिणाम है।
    गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रभाव: यह पाचन तंत्र में रुकावट या अत्यधिक गैस का कारण हो सकता है जिससे गैसट्रोइंटेस्टिनल समस्याएं हो सकती हैं।
    पुनर्नवादि मंडूर को लेने से कई अन्य दुष्प्रभाव जैसे रेस्पिरेटरी अरेस्ट, ऑप्टिक अट्रोफी, मतली, पेट में जलन, खुजली, खराश आदि होते हैं।
    ऊपर पूरी सूची नहीं है। ये पुनर्नवादि मंडूर के कुछ सबसे ज्यादा ध्यान देने लायक दुष्प्रभाव हैं जो ज्यादातर लोगों में देखे जाते हैं। ऊपर बताये गये दुष्प्रभावों से ज्यादा और भी कई हो सकते हैं जो मेटाबोलिज्म पर डिपेंड होता है।
    पुनर्नवादि मंडूर से बचाव और चेतावनी
    क्या गाड़ी चलाने से पहले इसका सेवन किया जा सकता है?
    ज्यादातर रोगियों को यह प्रभावित नहीं करता लेकिन यदि किसी को उनींदापन, सिरदर्द आदि हों तो डॉक्टर को बताएं|ऐसी स्थिति में ड्राइव करने से पहले पुनर्नवादि मंडूर ना लें|
    क्या इसे शराब के साथ लिया जा सकता है?
    नहीं, शराब शरीर में उनींदापन लाती है जो किसी पर भी निगेटिव प्रभाव डालती है। इसलिए इस दवा को शराब के साथ नहीं लिया जाना चाहिए।
    क्या इसकी लत लग सकती है?
    नहीं, इसकी तय की गयी मात्रा में लेने से नशा नहीं होता| यह आयुर्वेदिक तत्वों से भरपूर है|
    क्या यह मदहोश कर सकता है?
    पुनर्नवादि मंडूर लेने वाले दुष्प्रभावों में से एक उनींदापन है। यदि आपको किसी भी प्रकार की परेशानी हो तो तुरंत अपने डॉक्टर को सूचित करें|
    क्या पुनर्नवादि मंडूर को ज्यादा मात्रा में ले सकते हैं?
    नहीं, अधिक मात्रा में इसे लेने से आपकी बीमारी ठीक नहीं होगी। बल्कि यह गंभीर दुष्प्रभाव को जन्म देता है| इसलिए आयुर्वेदिक डॉक्टर द्वारा तय की गयी मात्रा से ज्यादा इस दवा को नहीं लेना चाहिए।
    पुनर्नवादि मंडूर के बारे में पूछे गए महत्वपूर्ण सवाल
    यह किस चीज से बना है?
    यह काली मिर्च, चित्रक मूल, वैदिंग, सोंठ, आंवला, दंती की जड़ें, कुटकी, मस्ताक, काला जीरा जैसी हर्बल सामग्री से बना है। इन सभी चीज़ों का मेल इसे एक रोग से लड़ने वाली दवा बनाता है।
    भंडारण?
    इसे कमरे के तापमान पर और सूखी जगह पर रखा जाना चाहिए। एक बार खोलने के बाद इसे बच्चों की पहुंच से दूर रखें|
    जब तक हालत में सुधार ना दिखे क्या तब तक पुनर्नवादि मंडूर का उपयोग करने की जरूरत है?
    आम तौर पर यह आयुर्वेदिक दवा पूरी तरह से 4 से 8 हफ्ते में परिणाम दिखाना शुरू कर देती है। इस दवा को नियमित रूप से लेना चाहिए और इसे तय की गयी मात्रा में ही लेना चाहिए।
    पुनर्नवादि मंडूर को दिन में कितनी बार लेने की जरूरत है?
    इसे दिन में दो बार लेना चाहिए। यह सबसे अच्छा काम तब करता है जब इसे गुनगुने पानी और भोजन के बाद लिया जाता है| इसे दिन में 2 से 3 ग्रा. से ज्यादा नहीं लेना चाहिए|
    क्या इसका स्तनपान पर कोई असर पड़ता है?
    हाँ, यदि आप स्तनपान करा रही हैं तो पुनर्नवादि को लेना उचित नहीं है। इसका दुष्प्रभाव आपको थका हुआ महसूस कराता है।
    क्या यह बच्चों के लिए सुरक्षित है?
    यह बच्चों के लिए सुरक्षित माना जाता है। लेकिन बच्चों को इसे तय की गयी मात्रा में ही दिया जाना चाहिए|  
    यदि इसे तय की गयी मात्रा से ज्यादा दिया जाता है तो कई नकारात्मक प्रभाव को जन्म दे सकता है।
    क्या गर्भधारण पर इसका कोई असर पड़ता है?
    यह गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माताओं पर नेगेटिव प्रभाव डाल सकता है क्योंकि यह रक्तचाप को बढ़ा सकता है| कुछ मामलों में यह सिरदर्द या मरोड़ पैदा कर सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए यह उचित नहीं है।
    क्या इसमें शुगर होती है?
    हाँ, इसमें चीनी होती है और इस प्रकार यह मधुमेह से पीड़ित रोगियों के लिए सही नहीं है।