19.9.23

पेट दर्द , मरोड़ ,पतले दस्त के घरेलु उपचार






पेट से जुड़ी आम समस्याओं में दस्त भी है। यह वो चिकित्सीय स्थिति है, जब मल सामान्य से बिल्कुल पतला यानी पानी की तरह आता है। मरीज को बार-बार शौच जाना पड़ता है। दस्त को डायरिया और लूस मोशन भी कहा जाता है। इस अवस्था में शरीर में पानी और ऊर्जा की कमी होने लगती, जिससे मरीज कमजोरी महसूस करने लगता है। लूस मोशन दो प्रकार के होते हैं। पहला एक्यूट डायरिया, जो 1-2 दिन तक रहता है। वहीं, दूसरा क्रोनिक डायरिया है, जो दो से अधिक दिन तक बना रहता है दूसरी स्थिति ज्यादा गंभीर होती है। दस्त से पीड़ित मरीज बस यही सोचता है कि लूस मोशन कैसे रोकें। स्टाइलक्रेज के आर्टिकल में हम विभिन्न शोधों पर आधारित दस्त रोकने के घरेलू उपाय बता रहे हैं।
दस्त के लक्षण – Symptoms of Loose Motion 

दस्त होने पर नजर आने वाले प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं (1):पेट में ऐंठन या दर्द का होना।
बार-बार शौचालय जाना।
आंतों के कार्य प्रणाली का कमजोर होना।
अगर वायरस या बैक्टीरिया दस्त का कारण है, तो बुखार, ठंड लगना और खूनी दस्त भी हो सकते हैं।

नमक चीनी का घोल -

नमक चीनी के घोल के सेवन से दस्त से होने वाली कमजोरी दूर हो सकती है। यह दस्त को रोकने में भी काफी मददगार है। इस उपाय को आजमाने के लिए आप को बराबर मात्रा में पानी में नमक और चीनी का घोल तैयार करना है और इसे थोड़ी थोड़ी देर में पीना है। ताकि आपके शरीर में जो पानी की कमी हो रही है, उस पर काबू पाया जा सके।

छाछ-

छाछ दस्त के लिए एक बेहतरीन विकल्प है क्योंकि इसमें मौजूद एसिड जर्म्स और बैक्टीरिया से लड़ता है और पेट साफ करने में मदद करता है। सोडियम और पोटेशियम सहित इलेक्ट्रोलाइट्स का एक अच्छा स्रोत है, साथ ही इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस जैसे मिनरल्स होते हैं।

दही और केला-

अगर आप पतले से दस्त से पीड़ित हैं, तो आपको दही और केले के मिश्रण का सेवन करना चाहिए। इससे दस्त को रोकने और पेट को साफ करने में मदद मिलती है।


सेब, घी, इलायची और जायफल-

घी में एक या दो केले, एक चुटकी इलायची और जायफल का पाउडर डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें। इस मिश्रण के सेवन से पतले मल को रोकने में मदद मिल सकती है क्योंकि इस मिश्रण में पोटेशियम सामग्री भरपूर होती है।


नींबू का रस-

नींबू का रस आंतों की सफाई करने में काफी मददगार है। यह आपके दस्त को रोकने में काफी मदद कर सकता है। इसके लिए आपको एक कप पानी में नींबू का रस मिला देना है और रोज दिन में तीन बार यानी सुबह, दोपहर, शाम इसका सेवन करना है। कई लोगों को दस्त के साथ पेचिश या खूनी पेचिश की समस्या भी हो जाती है, यह उसमें काफी मददगार साबित हो सकता है।

कच्चा केला-

कच्चा केला दस्त या लूज मोशन के लिए बढ़िया घरेलू उपाय है। यह आंतों को शांत करता है। बेहतर रिजल्ट के लिए आप कच्चे केले को दही और काले नमक के साथ खा सकते हैं। कच्चा केला अल्सरेटिव कोलाइटिस के लिए भी फायदेमंद है

खसखस -

दस्त होने पर एक चुटकी खसखस लेकर उसे मुंह में रखकर धीरे-धीरे चबाना शुरू करें और फिर निगल लें। इसके बाद एक गिलास पानी पिएं। इससे लूज मोशन की शिकायत दूर होगी।

​इलायची, काली चाय, नींबू का रस

एक कप गर्म काली चाय में एक चुटकी नींबू का रस और एक चुटकी इलायची या जायफल का पाउडर मिलाकर पीने से दस्त को रोकने में मदद मिल सकती है।


जीरा पानी-

1 लीटर पानी में एक चम्मच जीरे को ऊबाल लें और फिर ठंडा करके रख लें। आपको पानी तब तक उबालना है, जब तक यह उबलकर आधा न रह जाए। उसके बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में उसका सेवन करें। यह दस्त रोकने का काफी अच्छा उपाय है।

नारियल पानी-

ताजा नारियल पानी दस्त से पीड़ित रोगियों को पिलाने की सलाह दी जाती है। दरअसल नारियल पानी में पोटैशियम और सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स होते हैं। जो शरीर के इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं। ये लूज मोशन की वजह से होने वाले डिहाइड्रेशन से बचाता है और ब्लड सर्कुलेशन को बेहतर करता है।

सेब के सिरका-

दस्त के इलाज के लिए सेब के सिरके का सहारा लिया जा सकता है। सेब के सिरके में एंटी माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं और यह प्रकृतिक एंटीबायोटिक होता है। ये गुण बैक्टीरिया के संक्रमण से होने वाले दस्त के इलाज के लिए प्रभावी हो सकते हैं। इस प्रकार के संक्रमण अक्सर खराब या दूषित भोजन के कारण होते हैं, जिसमें एस्चेरिचिया कोलाई या साल्मोनेला नामक बैक्टीरिया हो सकते हैं

अदरक का उपयोग-

दस्त रोकने के उपाय में अदरक का उपयोग कर सकते हैं। अदरक एक गुणकारी खाद्य-पदार्थ है, जो एंटीबैक्टीरियल और एंटी माइक्रोबियल गुणों से समृद्ध होता है अदरक पाचन तंत्र को संक्रमित करने वाले बैक्टेरिया से लड़ने के साथ-साथ आंतों को आराम पहुंचाता है। शोध में पाया गया कि आयुर्वेद में अदरक का उपयोग पेट कर कई समस्याओं के साथ ही दस्त को दूर करने के लिए भी किया जाता रहा है। इसके अलावा यह पाचन को सुधारने के साथ ही कब्ज और मतली में भी फायदेमंद हो सकता है । अदरक में पाए जाने वाले बायोएक्टिव कंपाउंड दस्त और संक्रमण का कारण बनने वाले एस्चेरिचिया कोलाई और हीट-लैबाइल नामक बैक्टीरिया को कम कर सकते हैं। इससे बैक्टीरिया के द्वारा होने वाले दस्त को रोका जा सकता है

पुदीना दस्त की घरेलू दवा -

पुदीना दस्त की घरेलू दवा के रूप में काम कर सकता है । एनसीबीआई की वेबसाइट पर इस संबंध में शोध प्रकाशित हुआ है। इस अध्ययन में डायरिया के लक्षणों से राहत के लिए पुदीना के तेल के फायदे देखे गए हैं। अध्ययन में यह बात सामने आई कि पुदीना का उपयोग दस्त के दौरान होने वाले पेट दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकता है । नींबू और शहद के साथ मिलकर यह और भी प्रभावकारी हो जाता है। शहद में मौजूद एंटीबैक्टीरियल व एंटीइंफ्लेमेशन गुण पेट को संक्रमित करने वाले बैक्टीरिया से लड़ने का काम कर सकते हैं। इस प्रकार दस्त रोकने के उपाय में पुदीने को इस्तेमाल किया जा सकता है।

दालचीनी -

सेहत के लिए दालचीनी के फायदे देखे गए हैं। यह एंटीमाइक्रोबियल, एंटी-ऑक्सीडेंट व एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होती है। इसके तेल में पाया जाने वाला एंटीमाइक्रोबियल गुण दस्त का कारण बनने वाले और संक्रमण फैलाने वाले ई. कोलाई नामक बैक्टीरिया से लड़ने में मदद कर सकता है । यूनाइटेड स्टेट्स नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की ओर से किए गए जांच से पता चला है कि दस्त के इलाज में दालचीनी प्रभावी हो सकती है । शहद के साथ मिलकर यह और भी प्रभावशाली हो जाती है और संक्रमित पेट को आराम पहुंचाने का काम कर सकती है।
दस्त में क्या खाएं, क्या न खाएं – Foods to Eat in Loose Motion 

क्या खाएँ-

दस्त के दौरान शरीर में ऊर्जा के साथ-साथ जरूरी पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, इसलिए खानपान ठीक रखना जरूरी है। इस अवस्था में मसालेदार, जंक फूड्स और शराब से दूर रहे हैं और नीचे बताई जा रही चीजों का सेवन करें

ईसबगोल: -

कई बार पेट में मरोड़ का कारण अपच हो सकता है. ऐसी स्थिति में दो चम्मच ईसबगोल एक कटोरी दही में मिलाकर खाना चाहिए. इससे आंतों की सफाई भी होती है व पेट की मरोड़ भी ठीक होती है. आजवाइन: - पेट में मरोड़ होने पर तीन ग्राम आजवाइन को तवा पर भून कर इसमें सेंधा नमक या काला नमक मिलाकर पानी के साथ सेवन करना चाहिए.


केला-

दस्त के दौरान केला काफी लाभदायक माना गया है। यह पोटैशियम से समृद्ध होता है, जो लूस मोशन को रोककर पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है।

अनार: दस्त के दौरान अनार का सेवन कर सकते हैं, इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण पाए जाते हैं, जो लूस मोशन को नियंत्रित करने का काम करते हैं। यह शरीर की कमजोरी को भी दूर कर सकते हैं।
स्ट्रॉबेरी : मरीज स्ट्रॉबेरी भी खा सकता है। इसमें फाइबर होता है, जो मल को सामान्य कर देता है, जिससे लूस मोशन बंद हो जाते हैं।
ब्राउन राइस : दस्त के दौरान ब्राउन राइस का सेवन भी कर सकते हैं। यह विटामिन-बी से समृद्ध होता है, जो आराम पहुंचा सकता है।
गाजर : डायरिया को नियंत्रित करने के लिए गाजर या गाजर का जूस पी सकते हैं। इसमें पेक्टिन पाया जाता है, जो लूस मोशन को रोकने का काम करता है। इसके अलावा, अमरूद भी खा सकते हैं।
ओआरएस : डायरिया के दौरान शरीर में तरल की कमी हो जाती है। इसे पूरा करने के लिए ओआरएस पीते रहें। ओआरएस को एक लीटर पानी में छह चम्मच चीनी और आधा चम्मच नमक के साथ घोलकर बनाकर दे सकते हैं। ओआरएस दस्त के देसी इलाज के रूप में काम करता है।








16.9.23

नाभि में तेल लगाने से क्या फायदे होते हैं?

  





  आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में रोग पहचानने के कई तरीके हैं। नाभि स्पंदन से रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके।

कैसे होती है नाभि स्पंदन से रोगों की पहचान :


यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है याने छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियां होने लगती हैं। यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाए तो पतले दस्त होने लगते हैं। बाईं ओर खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती है, सर्दी-जुकाम, खांसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं।
यदि यह ज्यादा दिनों तक रहेगी तो स्थायी रूप से बीमारियां घर कर लेती हैं। दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है।पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती हैं। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा जैसी बीमारियां होने लगती हैं।
यदि नाभि पेट के ऊपर की तरफ आ जाए यानी रीढ़ के विपरीत, तो मोटापा हो जाता है। वायु विकार हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा।
नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएं कम हो जाती हैं। नाभि को पाताल लोक भी कहा गया है। कहते हैं मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहते है। यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियां गर्भधारण योग्य होती हैं। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसककर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो ऐसी स्त्रियां गर्भ धारण नहीं कर सकतीं।
अकसर यदि नाभि बिलकुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलोपियन ट्यूब नहीं खुलती और इस कारण स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर सकतीं। कई वंध्या स्त्रियों पर प्रयोग कर नाभि को मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे वंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गईं। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया।
उपचार पद्धति आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में पूर्व से ही विद्यमान रही है। नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़बड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है। नाभि-नाड़ियों का संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है।
यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाए तो परिणाम अत्यधिक खराब हो सकता है। इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थल बैठाने के लिए इसके योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाली पेट उपचार के लिए जाना चाहिए। क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।
नाभि में 72000 नाड़िया जुड़ी है इसीलिए नाभि शरीर का केंद्र होती है नाभि थैरेपी से कई रोगों को ठीक किया जा सकता है जैसे जोड़ो और घुटनों का दर्द, गठिया को, पेट के सभी रोगो को, चेहरे की चमक और सौंदर्यीकरण बढ़ती है। नाभि से ही माँ के गर्भ में पल रहे 9 महीने तक बच्चे का पालन-पोषण होता है। इस लिए जिसने नाभि को शुध्द रखा वो कई रोगों से दूर रहता है।
अक्सर आपने महसूस किया होगा या सुना होगा कि नाभि अपने स्थान से हट जाती है तो शरीर में कई दिक्कतें आने लगती है जैसे पेट के रोग, मुह में लार सुखना और भूख नही लगना, कमजोरी आना आदि। क्योंकि अगर नाभि में कोई दिक्कत आती है तो 72000 नाड़िया भी प्रभावित होती है जो शरीर के प्रत्येक अंग से जुड़ी है।
अगर आप रीढ़ की शारीरिक बनावट के बारे में जानते हैं, तो आप जानते होंगे कि रीढ़ के दोनों ओर दो छिद्र होते हैं, जो वाहक नली की तरह होते हैं, जिनसे होकर सभी धमनियां गुजरती हैं। ये इड़ा और पिंगला, यानी बायीं और दाहिनी नाड़ियां हैं।
शरीर के ऊर्जा‌-कोष में, जिसे प्राणमयकोष कहा जाता है, 72,000 नाड़ियां होती हैं। ये 72,000 नाड़ियां तीन मुख्य नाड़ियों- बाईं, दाहिनी और मध्य यानी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं। ‘नाड़ी’ का मतलब धमनी या नस नहीं है। नाड़ियां शरीर में उस मार्ग या माध्यम की तरह होती हैं जिनसे प्राण का संचार होता है।
इन 72,000 नाड़ियों का कोई भौतिक रूप नहीं होता। यानी अगर आप शरीर को काट कर इन्हें देखने की कोशिश करें तो आप उन्हें नहीं खोज सकते। लेकिन जैसे-जैसे आप अधिक सजग होते हैं, आप देख सकते हैं कि ऊर्जा की गति अनियमित नहीं है, वह तय रास्तों से गुजर रही है। प्राण या ऊर्जा 72,000 अलग-अलग रास्तों से होकर गुजरती है।
यदि आप नाभि के ऊपर दो बूंद किसी भी तेल या घी की लगाते हैं, तो आपके पेट से जुड़ी हर दुख, तकलीफ जड़ से खत्म हो जाएगी यह कुछ इस तरह से काम करता है, कि नाभि के द्वारा दी गई दवा शरीर के अंग तक जाती है जिससे शरीर को काफी फायदा मिलता है, यदि आप तेल की जगह किसी दवा का प्रयोग करते हैं तो वह है सीधे ही पेट पर असर करती हैं तो आइए जानते हैं नाभि पर तेल लगाने अर्थात नाभि थेरेपी से होने वाले फायदे के बारे में…

नाभि थेरेपी कैसे करे -

नाभि पर आप किसी भी तेल का उपयोग कर सकते हैं जैसे कि सरसों का तेल, जैतून का तेल या नारियल का तेल आदि लगाने के लिए आपको दो बूंद रात को सोने से पहले नाभि के गड्ढे में दो या चार बूंदें डालकर हल्के हाथ से मालिश कर सकते हैं या फिर उड़द के आटे की दीवार बनाकर नाभि में तेल भरकर आधे घंटे के लिए उड़द के आटे की दीवार को लगा सकते हैं।

नाभि थेरेपी के फायदे -

1. नाभि पर तेल लगाने से अच्छी नींद आती है और पेट दर्द सिर दर्द आदि की शिकायत भी दूर हो जाती है|
2. त्वचा खूबसूरत वे मुलायम हो जाती है नाभि पर दो बूंद तेल लगाने से चेहरे की चमक भी बढ़ने लग जाती है|
3. जोड़ों में होने वाले हर प्रकार के दर्द का को खत्म कर देता है।
4. स्त्रियों के मासिक धर्म से होने वाले दर्द को भी कम कर देता है।
5. बालों के झड़ने की समस्या से भी छुटकारा मिल जाता है।
क्या होता है? जब नाभि पर 2 घंटे के लिए आँवले का चूर्ण अदरक के रस में मिलाकर बाँध दिया जाता है
क्या होता है? जब नाभि पर 2 घंटे के लिए आँवले का चूर्ण अदरक के रस में मिलाकर बाँध दिया जाता है, अगर पेट से सम्बंधित कोई भी विकार हो उन सभी रोगों में रामबाण उपाय बताने जा रहे है। मरीज को सीधा (चित्त) सुलाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आँवले का आटा बनाकर उसमें अदरक का रस मिलाकर बाँध दें एवं उसे दो घण्टे चित्त ही सुलाकर रखें। दिन में दो बार यह प्रयोग करने से नाभि अपने स्थान पर आ जाती है तथा दस्त और सभी पेट के विकारों आदि उपद्रव शांत हो जाते हैं।
नाभि खिसक जाने पर व्यक्ति को मूँगदाल की खिचड़ी के सिवाय कुछ न दें। दिन में एक-दो बार अदरक का 2 से 5 मिलिलीटर रस पिलाने से लाभ होता है।

नाभि थेरेपी 

आप अपनी त्वचा को अच्छा बनाने के लिए और अपनी दर्दो के लिए और प्रजनन के लिए पता नहीं क्या-क्या नुस्खे अपनाते होंगे और आप कई सारी दवाओं का उपयोग भी करते होंगे लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि पेट की नाभि पर तेल की कुछ बूंदें लगाने से आपको कितना फायदा हो सकता है क्या आप जानते है यहाँ तेल रगड़ने से जोड़ों के दर्द, घुटने का दर्द, सर्दी, जुकाम, नाक बहने और त्वचा संबंधी परेशानियों से निजात मिल सकती है।

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15.9.23

चक्कर आना ,सिर घुमना के घरेलु उपचार Vertigo home remedies

 



अचानक आंखों के आगे अंधेरा-सा छाना या फिर सिर घूमने जैसा अहसास होना, किसी के साथ भी हो सकता है। इसके अलावा, कभी-कभी थकान व कमजोरी भी महसूस हो सकती है। ये सब चक्कर आने के लक्षण हैं। हालांकि, यह समस्या चिंताजनक नहीं है, लेकिन कभी-कभी गंभीर रूप भी ले सकती है।
 चक्कर आना या सिर घूमना या आंखों के सामने गोल गोल घूमती हुई दिखाई देने वाली स्तिथि को चक्कर आना या(vertigo )कहते है ।कुछ देर बैठे रहने के बाद जब उठते हैं तो चक्कर आने लगते हैं और आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है। रोगी को लगता है कि उसके चारों तरफ़ की चीजें बडी तेजी से घूम रही हैं।चक्कर का एक कारण दिमाग में खून की पूर्ति कम हो जाना है। चक्कर आने के विस्तृत कारण हो सकते हैंचक्कर आने के कारण
चक्कर आने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ सामान्य कारणों के बारे हम नीचे बता रहे हैं :

अचानक से बैठने या उठने पर:

कई लोग अचानक से बैठने या उठने पर लाइटहेडनेस (Lightheaded) यानी चक्कर आने की एक स्थिति महसूस करते हैं। चक्कर आने का एक कारण यह भी हो सकता है।

बढ़ती उम्र के कारण:

बढ़ती उम्र के साथ लोगों को कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिसके कारण उन्हें ज्यादा दवाओं का सेवन करना पड़ सकता है। इस कारण भी चक्कर आने की समस्या हो सकती है।

अन्य किसी कारण से:

कभी-कभी उपरोक्त स्थितियों के अलावा कुछ अन्य कारणों से भी चक्कर आने की समस्या हो सकती है। इस स्थिति में देर किए बिना डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

माइग्रेन के कारण:

माइग्रेन की स्थिति में सिर में तेज दर्द होता है। इसके कारण भी चक्कर आने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
दवाओं के कारण: कान के अंदर किसी तरह की समस्या होने पर या फिर किसी दवा के रिएक्शन के कारण भी चक्कर आ सकते हैं।

ब्लड प्रेशर कम होना:

अचानक से ब्लड प्रेशर लो होना भी चक्कर आने की स्थिति को पैदा कर सकता है।
डिहाइड्रेशन: डिहाइड्रेशन के कारण शरीर में पानी की कमी होने पर पर भी चक्कर आ सकते हैं।

मोशन सिकनेस के कारण:

मोशन सिकनेस के कारण भी चक्कर भी आ सकते हैं। मोशन सिकनेस एक ऐसी दशा है, जो कुछ लोगों में बस या कार से यात्रा करने के दौरान होती है।
निम्न घरेलू उपचार से लाभ पाने की आशा करना बेहतर विकल्प है --

अदरक


चक्कर से राहत दिलाने के लिए अदरक का सेवन फायदेमंद हो सकता है। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार अदरक में विशेष औषधीय गुण पाए जाते हैं। यात्रा करने के दौरान अगर इसका सेवन किया जाए, तो यह मोशन सिकनेस (चक्कर आने के कारण में से एक) की समस्या को ठीक करने में मदद कर सकता है। 
*नारियल का पानी रोज पीने से चक्कर आना बंद हो जाते हैं।
* खरबूजे के बीज की गिरी गाय के घी में भुन लें। इसे पीसकर रख लें। ५ ग्राम की मात्रा में सुबह शाम लेने से चक्कर आने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
*१५ ग्राम मुनक्का देशी घी में भुनकर उस पर सैंधा नमक बुरककर सोते समय खाने से चक्कर आने का रोग मिट जाता है।
*सूखा आंवला पीस लें। दस ग्राम आंवला चूर्ण और १० ग्राम धनिया का पावडर एक गिलास पानी में डालकर रात को रख दें। सुबह अच्छी तरह मिलाकर छानकर पी जाएं। चक्कर आने में आशातीत लाभ होगा।

शहद

चक्कर आने पर शहद प्रभावी तरीके से काम आ सकता है। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की ओर से प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, शहद में पोषक तत्वों के रूप में अधिक ऊर्जा की मात्रा पाई जाती है। इसके सेवन के तुरंत बाद शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिलती है। इससे वर्टिगो (चक्कर आने का एक प्रकार) की समस्या को ठीक करने में मदद मिल सकती है । इससे चक्कर आने का उपचार हो सकता है। एक अन्य वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, शहद का सेवन चक्कर की दवा के रूप में किया जा सकता है |अदरक लगभग 20 ग्राम की मात्रा में बारीक काटकर पानी में उबालें आधा रह जाने पर छानकर पीयें। अदरक का रस भी इतना ही उपकारी है।सब्जी बनाने में भी अदरक का भरपूर उपयोग करें। चाय बनाने में अदरक का प्रयोग करें।अदरक किसी भी तरह खाएं चक्कर आने के रोग में आशातीत लाभकारी है।

भरपूर मात्रा में पिएं पानी

जैसा कि ऊपर भी बताया जा चुका है कि चक्कर आने का एक कारण डिहाइड्रेशन भी हो सकता है | इसलिए, दिनभर में पानी का भरपूर सेवन किया जाना चाहिए। यह चक्कर आने का घरेलू उपाय के रूप में फायदेमंद हो सकता है। दरअसल, इससे शरीर दिनभर हाइड्रेट रहता है और चक्कर आने की समस्या को कुछ कम किया जा सकता है
* तुलसी के २० पत्ते पीसकर शहद मिलाकर चाटने से चक्कर आने की समस्या काफ़ी हद तक नियंत्रण में आ जाती है।

बादाम

पौष्टिक तत्वों से भरपूर बादाम को बेहतरीन ड्राई फूट माना जाता है। बादाम का सेवन चक्कर आने का घरेलू उपाय हो सकता है। बादाम में विटामिन-बी 6 की मात्रा पाई जाती है । वहीं, विटामिन-बी6 का सेवन करने से सिर में चक्कर आने जैसी समस्या को रोका जा सकता है
*१० ग्राम गेहूं,५ ग्राम पोस्तदाना,७ नग बादाम,७नग कद्दू के बीज लेकर थोडे से पानी के साथ पीसकर इनका पेस्ट बनालें। अब कढाई में थोडा सा गाय का घी गरम करें और इसमें २-३ नग लोंग पीसकर डाल दें। अब बनाया हुआ पेस्ट इसमें डालकर एक मिनट आंच दें। इस मिश्रण को एक गिलास दूध में घोलकर पियें। चक्कर आने में असरदार स्वादिष्ट नुस्खा है।

तुलसी

कई लोग यह सोचते हैं कि चक्कर आने पर क्या उपचार करें, लेकिन यह इतना भी मुश्किल नहीं है। दरअसल, चक्कर आने की समस्या को ठीक करने के तुलसी के पौधे के अर्क का सेवन फायदेमंद हो सकता है। एक वैज्ञानिक रिसर्च के अनुसार, तुलसी में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। ये दोनों गुण चक्कर आने की समस्या को कुछ हद तक कम कर सकते हैं
*चाय,काफ़ी और तली गली मसालेदार चीजों से परहेज करना आवश्यक है। इनके उपयोग से चक्कर आने की तकलीफ़ में इजाफ़ा होता है।
*कभी-कभी नमक की मात्रा शरीर में कम होने पर भी चक्कर आने लगते हैं। आलू की नमकीन चिप्स खाने से लाभ होता देखा गया है

नींबू

सिर का चक्कर आने पर नींबू का सेवन करना भी लाभदायक साबित हो सकता है। एक रिसर्च के मुताबिक, नींबू का सेवन मतली आने के जोखिम को कम करने के साथ-साथ चक्कर आने की समस्या को भी कम कर सकता है। हालांकि, यह किस प्रकार सिर घूमने का घरेलू उपचार हो सकता है
,*जब चक्कर आने का हमला हुआ हो , बर्फ़ के समान ठंडा पानी ३ गिलास पीने से भी तुरंत राहत मिलती है
* चक्कर आने की तकलीफ़ में रोगी को आहिस्ता घूमना चाहिये। तेज चलने से गिरकर चोंट लगने की संभावना रहती है।आहिस्ता चलने से वर्टिगो का प्रभाव कम हो जाता है।
*अचानक चक्कर आने पर सबसे बढिया बात यह है कि लेट जाएं। चित्त लेटना उचित नहीं है। साइड से लेटें और सिर के नीचे तकिया अवश्य लगाएं।
हींग : घी में सेंकी हुई हींग को घी के साथ खाने से गर्भावस्था के दौरान आने वाले चक्कर और दर्द खत्म हो जाते हैं।
धनिया : आंवले और हरे धनिये के रस को पानी में मिलाकर पीने से चक्कर आना बन्द हो जाता है।
चीनी : चीनी और सूखा धनिया 2-2 चम्मच मिलाकर चबाने से चक्कर आना बन्द हो जाता है।
आंवला : यदि गर्मी के कारण चक्कर आते हों व जी मिचलाता हो तो आंवले का शर्बत पीना चाहिए।
मुनक्का : लगभग 20 ग्राम मुनक्का को घी में सेंककर सेंधानमक डालकर खाने से चक्कर आने बन्द होते हैं।
भांगरा : भांगरा का रस 4 ग्राम, चीनी 3 ग्राम को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से थोड़े ही दिनों में दुर्बलता दूर हो जाती है तथा चक्कर आने बन्द हो जाते हैं।
कॉफी : समुद्र यात्रा के दौरान होने वाली उल्टियों और चक्करों से बचने के लिए जहाज में सवार होने के लगभग एक घंटे पहले तेज कॉफी पीना चाहिए तथा बोतल में काफी भरकर अपने साथ रखना चाहिए ताकि यात्रा के समय कॉफी पी सकें। इससे समुद्री यात्रा के दौरान आने वाले चक्कर बन्द होते हैं।* अगर विडियो गेम्स की वजह से चक्कर आते हो तो यह रुचि नियंत्रित करें।
*अनुलोम विलोम प्राणायाम से चक्कर आने की व्याधि से हमेशा के लिये छुटकारा मिल जाता है। टीवी पर बाबा रामदेव से इस प्राणायाम की तकनीक सीखें।
*तुलसी के २० पत्ते पीसकर शहद मिलाकर चाटने से चक्कर आने की समस्या काफ़ी हद तक नियंत्रण में आ जाती है।
*१० ग्राम गेहूं,५ ग्राम पोस्तदाना,७ नग बादाम,७नग कद्दू के बीज लेकर थोडे से पानी के साथ पीसकर इनका पेस्ट बनालें। अब कढाई में थोडा सा गाय का घी गरम करें और इसमें २-३ नग लोंग पीसकर डाल दें। अब बनाया हुआ पेस्ट इसमें डालकर एक मिनट आंच दें। इस मिश्रण को एक गिलास दूध में घोलकर पियें। चक्कर आने में असरदार स्वादिष्ट नुस्खा है।
*जब चक्कर आने का हमला हुआ हो , बर्फ़ के समान ठंडा पानी ३ गिलास पीने से भी तुरंत राहत मिलती है।
*अनुलोम विलोम प्राणायाम से चक्कर आने की व्याधि से हमेशा के लिये छुटकारा मिल जाता है
*खरबूजे के बीज की गिरी गाय के घी में भुन लें। इसे पीसकर रख लें। ५ ग्राम की मात्रा में सुबह शाम लेने से चक्कर आने की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
*१५ ग्राम मुनक्का देशी घी में भुनकर उस पर सैंधा नमक बुरककर सोते समय खाने से चक्कर आने का रोग मिट जाता है।
*प्याज का रस और शुद्ध शहद बराबर मात्रा में मिलाकर रोज करीब दस ग्राम की मात्रा में लेने से उच्च रक्तचाप में लाभ मिलता है.
*तरबूज के बीज की गिरि और खसखस इन दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें. रोज सुबह-शाम एक चम्मच खाली पेट पानी के साथ सेवन करें. यह प्रयोग करीब एक महीने तक नियमित रूप से जारी रखें
.* होम्योपैथी में इस रोग को काबू में करने की कई औषधियां हैं लेकिन मेरे अनुभव मे चार औषधियां विशेष कारगर हैं-
जेल्सेमियम,
काकुलस,
लोबेलिया इनफ़्लाटा,
ब्रायोनिया ३० शक्ति की
 इन चारों दवाओं की २-२ बूंदे आधा कप पानी में टपकाकर दिन में तीन बार पीयें।
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14.9.23

कब्ज दूर भगाने के घरेलु नुस्खे



कब्ज के बारे मे एक बात अच्छी तरह समझ लें| पूर्णतया पेट साफ करने के चक्कर में ऐसी दवाएं ना खाएं जो आपकी आंतों से पानी अवशोषित कर लेती है | ये दवाएं सिर्फ आपका पेट नहीं साफ करती है बल्कि धीरे धीरे आपको भी साफ कर देती है | ये दवाएं आपको कई सारी बीमारियां दे सकती हैं |
इनके साइड इफेक्ट्स को समझें | ऐसी दवाएं आयुर्वेद में भी हैं और उस भ्रम कि तत्काल अपने दिमाग से निकाल दें की आयुर्वेदिक दवाएं साइड इफेक्ट नहीं देती हैं हला हल जैसा जहर भी आयुर्वेदिक ही है दवा के आयुर्वेदिक होने का ये मतलब तो नहीं ना कि आप इसके नाम पर हलाहाल पी जायेंगे?
अब पहले समझते हैं कि ये दवाएं काम कैसे करती हैं | इन्हे आयुर्वेद में विरेचक औषधि कहते हैं यह नमक और चीनी दोनों पर आधारित हो सकती हैं | इन औषधियों का सबसे मुख्य काम होता है आंतों के आसपास के उत्तकों से पानी अवशोषित करना और उसे आंतों में भर देना| इससे मल हल्का हो जाता है और आसानी से बाहर निकल जाता है |
इससे मल तो आसानी से निकल जाता है लेकिन आंटोंबके आसपास के अंगों और अंततः पूरे शरीर में पानी की कमी हो जाती है जिसके गंभीर परिणाम होते हैं | शरीर इन परिणामों की बर्दाश्त नहीं कर सकता इसलिए यह पहला काम तो यह करता है कि इन दवाओं को निष्क्रिय करने का उपाय करने लग जाता है | इसीलिए कुछ दिनों के नियमित इस्तेमाल के बाद इन दवाओं का प्रभाव कम होने लगता है | पहले जो काम एक गोली में होता था उसके लिए अब दो गोलियां चाहिए |
दूसरी बात यह होती है कि मल के साथ सिर्फ मल नहीं निकलता है बल्कि जो एक्स्ट्रा पानी दवा ने आंतों में खींची थी उसके साथ कई सारे जरूरी मिनरल भी आ जाते है जो कि मल ये साथ शरीर से बाहर निकाल जाते हैं और आपको कमजोर बना देते हैं |
 तो फिर उपाय क्या है ? मैंने सिर्फ प्रवचन नहीं दिया है में आपको कब्ज से छुटकारा पाने के उपाय भी बताऊंगा |
.सबसे पहला उपाय तो यह है कि सुबह उठने के साथ काम से कम 500 ml गुनगुना पानी पीएं दोनों हाथ ऊपर उठाएं और करीब सौ मीटर तक पंजों के बल चलें |
रात को तीन चार कच्चे अमरूद खाकर ऊपर से एक कप गुनगुना दूध पी लें | अमरूद की जगह नारियल या फिर भूना हुआ चूरा भी इस्तेमाल कर सकते हैं |कब्ज़ के बारे में दो बातें हमेशा याद रखें | कब्ज़ दूर करने के लिए ज़ोर कभी ना लगाएं इससे बवासीर हो सकता है और कब्ज़ खुद उतना बुरा नहीं है जितना कि इसे दूर करने वाली दवाएं 
होम्योपैथिक दवा नक्स वोमिका 3x एक बहुत ही कारगर दवा है | यह बहुत ही softly और बड़े आराम से कब्ज़ को दूर करता है | पहले हफ्ते दो गोली दिन में तीन बार खाएं उसके बाद दो गोली रात में एक बार सोने से ए पहले | दो तीन हफ्ते दवा खाने के बाद छोड़ दें | जरूरत पड़ने पर दुबारा से शुरू करें |


13.9.23

हार सिंगार का पत्ता गठिया और सायटिका का रामबाण उपचार

 





हरसिंगार का पौधा आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। इसके फल, पत्ते, बीज, फूल और यहां तक कि इसकी छाल तक का इस्तेमाल विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है। हरसिंगार को नाइट जैस्मीन और पारिजात के नाम से भी जाना जाता है। इसके फूलों का इस्तेमाल अक्सर भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए किया जाता है। इसका सामान्य नाम निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस लिनन (Nyctanthes Arbortristis linn) है। इस फूल की खुशबू काफी तेज और मनमुग्ध करने वाली होती है। हरसिंगार के फूलों की खुशबू रात भर आती है और सुबह होते-होते धीमी हो जाती है
क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है? या फि‍र इसके फूल, बीज या छाल का प्रयोग स्वास्थ्य एवं सौंदर्य उपचार के लिए क्या है? आप नहीं जानते तो, जरूर जान लीजिए इसके चमत्कारी औषधीय गुणों के बारे में। इसे जानने के बाद आप हैरान हो जाएंगे...
हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां, छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं। इसकी चाय, न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है बल्कि सेहत के गुणों से भी भरपूर है। इस चाय को आप अलग-अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं। जानिए विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका -
वि‍धि -1.:हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के साथ तुलसी की कुछ पत्त‍ियां लीजिए और इन्हें 1 गिलास पानी में उबालें। जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे छानकर गुनगुना  ठंडा करके पी लें। आप चाहें तो स्वाद के लिए शहद या मिश्री भी डाल सकते हैं। यह खांसी में फायदेमंद है।
वि‍धि 2 :
रसिंगार के दो पत्ते और चार फूलों को पांच से 6 कप पानी में उबालकर, 5 कप चाय आसानी से बनाई जा सकती है। इसमें दूध का इस्तेमाल नहीं होता। यह स्फूर्तिदायक होती है।
चाय के अलावा भी हरसिंगार के वृक्ष के कई औषधीय लाभ हैं। जानिए कौन-कौन सी बीमारियों में कैसे करें इसका इस्तेमाल -
जोड़ों में दर्द - 
हरसिंगार के 6 से 7 पत्ते तोड़कर इन्हें पीस लें। पीसने के बाद इस पेस्ट को पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए। अब इसे ठंडा करके प्रतिदिन सुबह खालीपेट पिएं। नियमित रूप से इसका सेवन करने से जोड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी।
खांसी - 
खांसी हो या सूखी खांसी, हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से बिल्कुल खत्म की जा सकती है। आप चाहें तो इसे सामान्य चाय में उबालकर पी सकते हैं या फिर पीसकर शहद के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं।
बुखार - 

किसी भी प्रकार के बुखार में हरसिंगार की पत्तियों की चाय पीना बेहद लाभप्रद होता है। डेंगू से लेकर मलेरिया या फिर चिकनगुनिया तक, हर तरह के बूखार को खत्म करने की क्षमता इसमें होती है।
साइटिका - 
दो कप पानी में हरसिंगार के लगभग 8 से 10 पत्तों को धीमी आंच पर उबालें और आधा रह जाने पर इसे अंच से उतार लें। ठंडा हो जाने पर इसे सुबह शाम खाली पेट पिएं। एक सप्ताह में आप फर्क महसूस करेंगे।
बवासीर - 
हरसिंगार को बवासीर या पाइल्स के लिए बेहद उपयोगी औषधि माना गया है। इसके लिए हरसिंगार के बीज का सेवन या फिर उनका लेप बनाकर संबंधित स्थान पर लगाना फायदेमंद है।
त्वचा के लिए - 
हरसिंगार की पत्त‍ियों को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याएं समाप्त होती हैं। इसके फूल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा उजला और चमकदार हो जाता है।
हृदय रोग - 
हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है। इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने में कारगर है।
दर्द - 
हाथ-पैरों व मांसपेशियों में दर्द व खिंचाव होने पर हरसिंगार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस मिलाकर पीने से फायदा होता है।
अस्थमा -
 सांस संबंधी रोगों में हरसिंगार की छाल का चूर्ण बनाकर पान के पत्ते में डालकर खाने से लाभ होता है। इसका प्रयोग सुबह और शाम को किया जा सकता है।
प्रतिरोधक क्षमता -
हरसिंगार के पत्तों का रस या फिर इसकी चाय बनाकर नियमित रूप से पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर हर प्रकार के रोग से लड़ने में सक्षम होता है। इसके अलावा पेट में कीड़े होना, गंजापन, स्त्री रोगों में भी बेहद फायदेमंद है।

हरसिंगार पाउडर के फायदे

गठिया रोग के उपचार के लिए

आयुर्वेद के जाने माने वैध्य  डॉ . दयाराम  आलोक  ने अनुसंधान किया है कि परिजात के पत्ते गठिया के रोगियों के लिए बहुत ही असरदार होता है। गठिया रोग यानी जिनको जोड़ो में दर्द रहता है या शरीर के किसी भाग में सूजन है तो उनके लिए परिजात के पत्ते बहुत ही लाभकारी होते हैं। गठिया रोग में परिजात के पत्ते का सेवन कुछ इस प्रकार करते हैं परिजात के 5-7 पत्तियां तोड़कर पीस लें और उसे एक गिलास पानी में डालकर उबालें चकवाल तेरे जब तक की पानी की मात्रा आधा ना हो जाए  इसका इसको  ठंडा होने दें ठंडा होने के बाद इसे सुबह में खाली पेट पी लें इसे पीने के बाद कम से कम एक घंटा तक खाना ना खाएं।
बूढ़े लोगों में अर्थराइटिस (Arthritis) की समस्या आम बात है लेकिन आजकल यह वयस्कों को भी प्रभावित कर रही है। अर्थराइटिस के बेतहाशा दर्द और सूजन से निजात दिलाने में हरसिंगार की पत्तियां बहुत ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं। अगर आप अर्थराइटिस से पीड़ित हैं तो हरसिंगार के पत्ते के पावडर को एक कप पानी में उबालकर और इसे ठंडा करके पीने से अर्थराइटिस के दर्द में राहत मिलता है। हरसिंगार का उपयोग प्रतिदिन करने से यह समस्या पूरी तरह दूर हो जाती है।
अगर आप गठिया रोग से बहुत ज्यादा दिन या आपको दर्द बहुत ज्यादा हो तो इसे आप दिन में दो या तीन बार भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हरसिंगार के पत्ते गठिया रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद है इसका इस तरह से सेवन करने से 10 से 15 दिन में इसका असर दिखना शुरू हो जाता है पुराना से पुराना गठिया रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

एंटी-अस्थमाटिक और एंटी-एलर्जीक

औषधीय अध्ययनों के मुताबिक हरसिंगार के पत्ते एंटी-अस्थमाटिक और एंटी-एलर्जीक गुणों से समृद्ध होते हैं। इसके पीछे का कारण इसमें मौजूद β-साइटोस्टेरॉल (β-sitosterol) नामक केमिकल कंपाउंड को माना जाता है। इसके अलावा, इसकी पत्तियों का अर्क नाइट्रिक ऑक्साइड का उत्पादन बढ़ाकर नाक की नली को आराम पहुंचाने में मदद कर सकता है । दरअसल, अस्थमा में नाक की नली सूज जाती है और उसके आसपास की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैंदेखा जाए तो प्राचीन काल से ही हरसिंगार का इस्तेमाल अस्थमा को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। आप अस्थमा का इलाज करने के लिए इसके फूलों और पत्तियों का उपयोग कर सकते हैं । फूलों को सूखाकर पाउडर बनाने के बाद इसे उपयोग में लाया जा सकता है।

गंजेपन की समस्या ( Baldness Problem )

आज के इस दौर में अधिकांश लोग महिला हो या पुरुष गंजेपन की समस्या से परेशान है। हरसिंगार के पौधे के पास गंजेपन की समस्या का भी हल है इसका उपयोग हम लोग गंजेपन की समस्या को दूर करने के लिए भी कर सकते है। इसके लिए हम लोगों को हरसिंगार के बीजों का पेस्ट बनाकर अपने सिर पर लगाना होगा जिससे हमलोग को गंजेपन की परेशानी से छुटकारा मिलेगी।

सूजन को करे कम

शरीर में किसी भी प्रकार की सूजन (inflammation) की समस्या होने पर अगर आप हरसिंगार के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, तो यह फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसका सेवन साइटिक के दर्द में भी आराम पहुंचता है।

बुखार ( Fever )

हरसिंगार का उपयोग बुखार से छुटकारा दिलाने के लिए होता है। बुखार में हरसिंगार के जड़ और पत्तों का उपयोग किया जाता है। हरसिंगार के पत्ते का रस या हरसिंगार के जड़ के काढ़ा बनाकर पीने से बुखार से काफी राहत मिलती है।
हरसिंगार के पत्तों का प्रयोग मलेरिया बुखार में भी किया जाता है मलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को हरसिंगार के 4-5 पत्तों के पेस्ट बनाकर इसका सेवन करने से मलेरिया का संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो जाता है

तनाव

हरसिंगार का पौधा एंटीडिप्रेसेंट गुण से समृद्ध होता है। ऐसे में इसके सेवन से आप तनाव और अवसाद से खुद को बचा सकते हैं। इसके लिए आपको रसिंगार की चाय का सेवन करना होगा, जो आपको रिलैक्स रखने में मदद कर सकती है। वहीं, इसकी मदद से आप अपना मूड भी ठीक कर सकते हैं

डेंगू और चिकनगुनिया

डेंगू और चिकनगुनिया से जूझने वालों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन आप हरसिंगार के सेवन से इसके कुछ लक्षणों और इससे संबंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं। इसमें एंटीवायरल, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो आपको डेंगू और चिकनगुनिया मच्छरों के कारण होने वाले बुखार से बचाते हैं। साथ ही जोड़ों में होने वाले दर्द को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, हरसिंगार डेंगू में घटने वाले प्लेटलेट काउंट को भी बढ़ाने में मदद कर सकता है

घाव भरने में उपयोगी

कई बार हमारे शरीर के घाव और खरोंच सही समय से नहीं भर पाते हैं, जो कई अंदरूनी समस्याओं और बीमारियों के कारण हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप हरसिंगार के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, तो यह फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें एंटीसेप्टिक और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होता है, जो घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।

डायबिटीज ( Diabetes )

हरसिंगार का पेड़ डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। डायबिटीज से ग्रसित लोग परिजात के पत्ते का 15-25 मिली काढ़ा बनाकर इसका सेवन करें ।

हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा कैसे बनाएं

हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा बनाने के लिए सबसे पहले हम हरसिंगार का पत्ता 7-8 लेंगे फिर उसको पिसेगे पिसने बाद 1गिलास पानी ले फिर उस पेस्ट को अच्छा से घोल लें ओर उसे धीमी आंच पर पकाने वास्ते छोड़ दें जब पानी उबालकर आधा हो जाय तो उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दें फिर उसे सूबह उठकर खाली पेट उस काढ़ा को पिले फिर उसका उपयोग 1
हपते करने जोड़ो का दर्द से राहत मिलती हैं।

रिंगवर्म या दाद

यदि आप रिंगवर्म या दाद की समस्या से परेशान हैं तो हरसिंगार की पत्तियां इस समस्या को दूर करने में बहुत लाभकारी होती हैं। हरसिंगार की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें और प्रभावित स्थान पर लगाने से दाद की समस्या दूर हो जाती है।

हरसिंगार के पत्ते का चाय कैसे बनाएं

हरसिंगार की चाय बनाने के लिए दो कप पानी हरसिंगार के दो पत्ते तीन फूल के साथ तुलसी के साथ कुछ पत्ते तुलसी के साथ कुछ पत्तियां लीजिए इसको अच्छी तरह धीमी आंच पर उबालें आधी चाय उबलने के बाद गुड़ का छोटा सा टुकड़ा डालें और इससे 2 मिनट इसे धीमी आंच पर पकाएं 2 मिनट और यह चाय बनकर तैयार है यह चाय पीने से बुखार में राहत मिलती है यह चाय का सेवन प्रत्येक 2 दिन बाद करनी चाहिए।

हरसिंगार के पत्ते के फायदे

हरसिंगार का उपयोग अस्थमा रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। अध्ययनों के अनुसार हरसिंगार के पत्ते में एंटी अस्थमैटिक और एंटी अलर्जिक गुण पाए जाते हैं जो कि अस्थमा रोग के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है।

आप इसका उपयोग करने के लिए हरसिंगार के फूलों तथा हरसिंगार के पत्ते का उपयोग कर सकते हैं, इन्हें सुखा कर पाउडर बना लें और इसका इस्तेमाल करें।
हरसिंगार के पत्ते के फायदे शरीर की पाचन क्रियाओं में भी होते हैं , हरसिंगार के पत्तियों के रस के उपयोग से पेट में मौजूद भोजन को पचाने में बहुत ही मदद करता है, हरसिंगार में एंटी स्पस्मोडिक (Anti Spasmodic) गुण भी पाए जाते हैं जो कि शरीर की पाचन तंत्र को स्वास्थ्य और तंदुरुस्त रखने में मदद करते हैं ।
हरसिंगार में एंटीएंफ्लेमेट्री के गुण भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो कि गठिया मरीजों के लिए उपयोगी होता है ।हरसिंगार का अर्क गठिया को बढ़ने से रोक सकता है, हरसिंगार में एंटी आर्थराइटिस गुण भी मौजूद होते हैं ।
हरसिंगार का पौधा जो की एंटीडिप्रीसेंट गुणों से भरा होता है इसके सेवन से आप खुद को अवसाद और तनाव से बचा सकते हैं । अगर आप थके हुए हैं तथा आपका मूड सही नहीं है मन विचलित है तो आप हरसिंगार के चाय का सेवन करें, आपको तुरंत रिलेक्स रखने में हरसिंगार बहुत ही फायदेमंद है।
डायबिटीज, उच्च रक्तचाप कोलेस्ट्रॉल और मोटापा के होने से हृदय का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, जिसके कारण आप हृदय रोग से संबंधी कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं, हरसिंगार या परिजात के जड़ के छाल के इस्तेमाल से हृदय रोग से संबंधित बीमारियों से बचाया जा सकता है , चुकी यह डायबिटीज के खतरे को भी कम करने के साथ साथ यह उच्च रक्तचाप को भी कंट्रोल करता है।
हरसिंगार के पौधे लेक्सोटिव गुणों से भरपूर होता है जो की शरीर की पाचन क्रियाओं में मदद करता है और गैस की समस्याओं को खत्म करने का काम करता है।
अक्सर ये देखा जाता है की डेंगू और चिकनगुनिया से पीड़ित वायक्ति को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन आप हरसिंगार के पत्ते के उपयोग से इसके कुछ लक्षणों और इससे संबंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं। हरसिंगार में एंटीवायरल, एंटीएंफ्लोमेंट्री तथा एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, ये गुण आपको डेंगू और चिकनगुनिया मच्छर से होने वाले बुखार से बचाने में सक्षम होते हैं । साथ ही यह आपके जोड़ों में होने वाले दर्द को कम कर सकने में कारगर होते हैं, इसके अलावा हरसिंगार के पत्ते डेंगू में घटने वाले प्लेटलेट काउंट को भी बढ़ाने में मदद करता है।
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संधिवात,कमरदर्द,गठियासाईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| बड़े अस्पताल के महंगे इलाज के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से निरोग हुए हैं| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| 
औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 
 
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11.9.23

आयुर्वेद की महौषधि अश्वगंधा बढाती है पुरुषों की यौन क्षमता

 





अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम विथानिया सोम्नीफेरा है और इसे विंटर चैरी और इंडियन गिनसेंग के नाम से जाना जाता है। यह आमतौर पर भारत और उत्तरी अफ्रीका में उगाया जाता है।अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। क्‍या आप जानते हैं कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अश्वगंधा के फायदे और भी हैं। अश्वगंधा के अनगिनत फायदों के अलावा अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से अश्वगंधा के नुकसान से सेहत के लिए असुविधा उत्पन्न हो सकता है।
आयुर्वेद में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल अश्वगंधा के पत्‍ते, अश्वगंधा चूर्ण के रुप में किया जाता है। 

बढ़ी हुई सेक्स ड्राइव

अश्वगंधा को कामोत्तेजक माना जाता है-जैसे गुण, जिसका अर्थ है कि यह यौन इच्छा को बढ़ा सकता है।
निरंतर तनाव कम सेक्स ड्राइव और खराब यौन प्रदर्शन का एक आम कारण है।
शोध से पता चला है कि अश्वगंधा तनाव से राहत दे सकता है, जो बदले में सेक्स ड्राइव और इच्छा और आनंद महसूस करने के लिए पर्याप्त आराम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर अश्वगंधा का प्रभाव पुरुषों में यौन इच्छा और ड्राइव को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

प्रजनन क्षमता में वृद्धि

अश्वगंधा पुरुष प्रजनन क्षमता में मदद कर सकता है। शोध से पता चला है कि अश्वगंधा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है और बांझपन वाले पुरुषों में शुक्राणु की गति (गतिशीलता) में सुधार करता है।
एक अन्य अध्ययन में इसी तरह के परिणाम मिले, जिससे पता चला कि अश्वगंधा शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में काफी सुधार कर सकता है। 

रक्त शर्करा और सूजन में कमी

कुछ सबूत हैं कि अश्वगंधा रक्त शर्करा के स्तर और शरीर में सूजन के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है।
शोध के अनुसार, अश्वगंधा मधुमेह से पीड़ित लोगों को उनके रक्त शर्करा को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। हालाँकि, कई अध्ययन जो बताते हैं कि अश्वगंधा रक्त शर्करा को कम करने में मदद कर सकता है, मनुष्यों में नहीं बल्कि प्रयोगशाला में किए गए थे। कई छोटे मानव अध्ययन जिन्होंने रक्त शर्करा को कम करने वाले प्रभाव दिखाए हैं, उन लोगों में किए गए थे जिन्हें मधुमेह नहीं था।

एथलेटिक प्रदर्शन में वृद्धि


कुछ शोध बताते हैं कि अश्वगंधा लेने से एथलेटिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। यह व्यायाम के बाद मांसपेशियों की रिकवरी में भी मदद कर सकता है। हालाँकि, यह देखने के लिए और अधिक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में कोई लाभकारी प्रभाव है।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि अश्वगंधा सिज़ोफ्रेनिया सहित रोगियों में अवसाद और चिंता के लक्षणों में मदद कर सकता है।
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि अश्वगंधा की खुराक या एक से अधिक जड़ी-बूटियों के साथ संयोजन की खुराक अनिद्रा से पीड़ित लोगों में चिंता को कम करने और नींद में सुधार करने में मदद कर सकती है।


अश्वगंधा के दुष्प्रभाव

अश्वगंधा को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है लेकिन इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
जड़ी-बूटी के सामान्य दुष्प्रभावों में शामिल हैं:
दस्त
तंद्रा
सिर दर्द
जी मिचलाना
आयुर्वेद में अश्वगंधा प्रसिद्ध जड़ी बूटी में से एक है. लिवर के लिए अश्वगंधा किसी रामबांण से कम नहीं है. लिवर को डिटॉक्स करने, सूजन दूर करने और फैटी लिवर में अश्वगंधा बहुत फायदेमंद है.
 हम जो भी खाते-पीते हैं, सांस लेते हैं उसे हमारा लिवर प्रोसेस करता है. इसीलिए लिवर को शरीर का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. लिवर बॉडी से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने का काम करता है. अगर शरीर में कहीं भी ब्लड का क्लॉट बनाने की जरूरत पड़ती है तो लिवर ही उसका काम करता है. हॉर्मोन्स को रेगुलेट करने में भी लिवर अहम रोल निभाता है. ऐसे में अगर आपको लिवर से जुड़ी परेशानी है या किसी भी तरह आपके लिवर को क्षति पहुंची है तो ये आपके स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है. कोरोना वायरस से लिवर भी प्रभावित हो रहा है. ऐसे में आपको लिवर को स्वस्थ रखने पर ध्यान देना चाहिए.

लिवर को स्वस्थ रखता है अश्वगंधा

*फैटी लिवर की समस्या कम करता है- जो लोग एल्कोहॉल का सेवन ज्यादा करते हैं उनके लिवर पर इसका हानिकारक असर पड़ता है, जिससे फैटी लिवर की समस्या हो जाती है. अगर आपको भी फैटी लिवर की समस्या है तो अश्वगंधा इस समस्या को कम करता है. अश्वगंधा बैली फैट, हाई कोलेस्ट्रॉल और पीसीओएस की समस्या में भी फायदा करता है.
*अश्वगंधा कैंसर की रोकथाम में भी मदद करता है। कई स्टडीज में यह दावा किया जा चुका है कि अश्वगंधा कैंसर सेल्स की ग्रोथ और प्रॉडक्शन पर लगाम लगाता है।
*जिन महिलाओं में सफेद पानी जाने की समस्या होती है, उसमें भी अश्वगंधा को कारगर माना गया है। इसके अलावा यह महिलाओं और पुरुषों दोनों में फर्टिलिटी को बढ़ावा देने में मदद करता है। साथ ही यह स्पर्म क्वॉलिटी को सुधारने में भी मदद करता है।
*अश्वगंधा को हाइपरटेंशन में भी लाभकारी माना गया है। इसके लिए अश्वगंधा का नियमित सेवन करना चाहिए। लेकिन जिन लोगों का ब्लड प्रेशर कम रहता है, उन्हें अश्वगंधा का सेवन नहीं करना चाहिए।
जिन्हें गहरी नींद नहीं आती उन्हें अश्वगंधा का खीर पाक खाना चाहिए। अश्वगंधा स्वाभाविक नींद लाने की दवा की तरह काम करता है। इसके अलावा पेट से जुड़ी परेशानियों को भी दूर करने में मदद करता है। इसके लिए अश्वगंधा, मिश्री और थोड़ी सोंठ को बराबर अनुपात में मिलाकर गर्म पानी के साथ लें।
इन रोगों से आपको बचाता है अश्वगंधा
*अगर पुरुषों में यौन क्षमता की कमी है और वे यौन सुख नहीं ले पाते तो फिर अश्वगंधा का सेवन करें। यह न सिर्फ यौन क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करता है बल्कि सीमन की क्वॉलिटी भी सुधारता है।
लिवर डैमेज से बचाता है- ज्यादातर एंटी-बायोटिक दवाएं लिवर को काफी नुकसान पहुंचाती हैं. ऐसे में अगर आप अश्वगंधा का सेवन करते हैं तो ये आपके लिवर को डैमेज होने से बचाता है. अश्वगंधा लिवर की कार्य प्रणाली को भी अच्छा बनाता है.
*लिवर को टॉक्सिन्स से सुरक्षित रखता है- आजकल की लाइफस्टाइल में अनहेल्दी खाने से शरीर में टॉक्सिन्स जमा हो जाते हैं. ये टॉक्सिन्स लिवर में एकट्ठा हो जाते हैं और लिवर फंक्शन को प्रभावित करते हैं. लेकिन अश्वगंधा का सेवन करने से लिवर हानिकारक टॉक्सिन्स के प्रभाव से बचता है. अश्वगंधा खाने से लिवर डिटॉक्स होता है.
*सूजन कम करता है- अगर आपके लिवर में सूजन है तो आपको अश्वगंधा का सेवन करना चाहिए. इसमें एंटी-इंफ्लेमेट्री गुण पाए जाते हैं जिससे लिवर की सूजन कम हो जाती है. लिवर को हेल्दी रखने के लिए अश्वगंधा काफी फायदेमंद है. आपको अश्वगंधा का सेवन जरूर करना चाहिए. आप रात को सोने से पहले दूध के साथ अश्वगंधा का सेवन कर सकते है.
अश्‍वगंधा और शतावरी का सेवन पुरूष और महिला द्वारा किसी भी उम्र में किया जा सकता है. इन दोनों औषधियों में ऐसे तत्‍व पाए जाते हैं जो मुश्किल बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं. आयुर्वेद के अनुसार, इस औषधि का असर एक सप्‍ताह के अंदर ही दिखने लगता है. इसके तेजी से वजन बढ़ता है.

अश्वगंधा के साइड इफ़ेक्ट:

लंबे समय तक अश्वगंधा के उपयोग की सुरक्षा को लेकर कोई भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, अश्वगंधा के सबसे आम साइड इफ़ेक्ट इस प्रकार हैं:जी मिचलाना
दस्त
उल्टी आना
पेट खराब होना7
जो साइड इफेक्ट्स कम देखने को मिलते हैं:उनींदापन (नींद आते रहना)
वर्टिगो (चक्कर आना)
खांसी और बलगम जमा होना
ददोरे पड़ना
नज़र धुंधली होना
मुँह सूखना
वज़न बढ़ना
हैल्युसिनेशन होना (काल्पनिक ख्याल आना
अश्वगंधा(Ashwagandha) से लिवर डैमेज भी हो सकता है। अगर आप किसी भी साइड इफेक्ट्स का अनुभव करते हैं, खासतौर पर खुजली वाली त्वचा या पीलिया जैसा लिवर डैमेज की स्थिति में होता है, तो अपने डॉक्टर से तुरंत बात करना बहुत ज़रूरी है।7 इसलिए, अश्वगंधा का उपयोग करने से पहले कृपया किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह ज़रूर लें। वे आपके स्वास्थ्य की ज़रूरतों के हिसाब से आपको सही सलाह देंगे।
अश्वगंधा का सेवन कैसे करें अश्वगंधा को आमतौर पर कैप्सूल या पाउडर के रूप में लिया जाता है, और इसका सेवन भोजन के साथ या उसके बिना भी किया जा सकता है। कुछ लोग इसे खाली पेट लेना पसंद करते हैं तो कुछ लोग भोजन के साथ इसका सेवन करना पसंद करते हैं। अश्वगंधा लेने का सबसे अच्छा समय आपकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।

इसका सेवन करने के लिए दिन का सबसे अच्छा समय है

यदि आप नींद में मदद के लिए अश्वगंधा ले रहे हैं, तो आमतौर पर इसे शाम को सोने से पहले लेने की सलाह दी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अश्वगंधा में शांत प्रभाव होता है जो आराम और नींद को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है
यदि आप तनाव कम करने के लिए काम कर रहे हैं  तो दिन के किसी भी समय अश्वगंधा का सेवन किया जा सकता है। कुछ लोग पाते हैं कि इसे सुबह लेने से उन्हें अपने दिन की शुरुआत शांत और स्पष्ट दिमाग से करने में मदद मिलती है, जबकि अन्य लोग इसे शाम को सोने से पहले आराम करने में मदद करने के लिए लेना पसंद करते हैं।
सही खुराक को समझना यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप अश्वगंधा की सही मात्रा ले रहे हैं, उत्पाद लेबल पर खुराक के निर्देशों का पालन करें। अश्वगंधा का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट ख़राब होना और दस्त जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसके अलावा, इस जड़ी-बूटी को अपने आहार में शामिल करने से पहले अपने डॉक्टर से जांच अवश्य कर लें।

चूर्ण के सेवन का तरीका

इसके सेवन की विधि बहुत ही आसान है. अश्‍वगंधा और शता‍वरी का चूर्ण मार्केट में बड़ी आसानी से मिल जाता है. आप अगर चाहें तो 100-100 ग्राम के पैकेट लेकर उन्हें एकसाथ मिला लें, और फिर रोजाना दिन में दो बार आधा चम्‍मच यानी लगभग 5 ग्राम चूर्ण को गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं लेकिन आपको बता दें कि इसके सेवन के साथ-साथ व्‍यायाम करना भी जरूरी हैं.
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5.9.23

बवासीर के नायाब नुस्खे Ayurvedic treatment piles

 


बवासीर में गुदा और मलाशय के आसपास सूजन, और नसों में सूजन होती है। बवासीर या तो गुदा के अंदर या गुदा के आसपास त्वचा के नीचे होता है। वे अक्सर मल त्यागते समय लगने वाले दबाव की वजह से होते हैं। अन्य कारकों में गर्भावस्था, उम्र बढ़ना और पुरानी कब्ज या दस्त शामिल हैं।दोनों पुरुषों और महिलाओं में बवासीर बहुत आम हैं। लगभग आधे लोगों में 50 वर्ष की आयु तक बवासीर होता है। गुदा के अंदर बवासीर का सबसे आम लक्षण शौचालय पेपर या शौचालय में चमकीला लाल रक्त होता है। लक्षण आमतौर पर कुछ दिनों के भीतर चले जाते हैं।
अगर आपके गुदा से खून बह रहा है तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। आपको यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि रक्तस्राव किसी भी अधिक गंभीर स्थिति से न हो जैसे कि कोलोरेक्टल या गुदा कैंसर। उपचार में गर्म स्नान और क्रीम या अन्य दवा शामिल हो सकते हैं।
पुरानी कब्ज, लंबे समय तक बैठे रहना और कम फाइबर वाले आहार जैसे कारक पुरुषों में बवासीर के खतरे को बढ़ा सकते हैं। सौभाग्य से, विभिन्न जीवन शैली में परिवर्तन और चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ पाइल्स का प्रभावी ढंग से प्रबंधन और उपचार किया जा सकता है।
पाइल्स, जिसे बवासीर भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जो गुदा और निचले मलाशय में नसों को प्रभावित करती है। वे मल त्याग के दौरान असुविधा, दर्द और रक्तस्राव का कारण बन सकते हैं। पुरुषों में पाइल्स एक आम स्थिति है, खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में।
इलाज न होने पर हालात बिगड़ जाते हैं और प्रभावित हिस्से से खून भी बहने लगता है। आंतरिक और बाहरी दो प्रकार के बवासीर होते हैं, जो पुरुषों को प्रभावित कर सकते हैं।आंतरिक बवासीर मलाशय के अंदर होता है और बिना दर्द के रक्तस्राव हो सकता है। वे मल त्याग के दौरान गुदा से बाहर निकल सकते हैं और असुविधा या जलन पैदा कर सकते हैं।
दूसरी ओर बाहरी बवासीर, गुदा के बाहर विकसित होते हैं और गंभीर दर्द, खुजली और परेशानी पैदा कर सकते हैं। वे मल त्याग के दौरान रक्तस्राव भी कर सकते हैं।
एक आदमी के लिए एक ही समय में आंतरिक और बाहरी दोनों बवासीर होना भी संभव है। यदि आप बवासीर के किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, तो चिकित्सकीय ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि विभिन्न उपचार विकल्पों के साथ उनका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है।

बवासीर के लक्षण

आमतौर पर, पाइल्स की समस्या गंभीर नहीं होती है। हालांकि, कुछ सामान्य पुरुष बवासीर के लक्षण नीचे बताए गए हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से पहचान सकता है।मल त्याग के दौरान दर्द : बवासीर में गुदा और मलाशय की नसों में सूजन के कारण मल त्यागते समय दर्द हो सकता है।

गुदा क्षेत्र में खुजली और जलन : 

सूजन वाली नसों की उपस्थिति के कारण गुदा क्षेत्र में खुजली या जलन पैदा कर सकता है।

मल त्याग के दौरान रक्तस्राव : 

बवासीर में सूजी हुई नसों के फटने से मल त्याग के दौरान या बाद में रक्तस्राव हो सकता है।

गुदा के आसपास गांठ या सूजन : 

पाइल्स में नसों के बाहर निकलने के कारण गुदा के आसपास गांठ या सूजन हो सकती है।

अधूरे मल त्याग की अनुभूति : 

बवासीर अधूरा मल त्याग की भावना पैदा कर सकता है जो मल के सामान्य मार्ग को बाधित करता है।
बैठने में असुविधा : गुदा और मलाशय में सूजी हुई नसों पर दबाव पड़ने पर बैठने में असुविधा हो सकती है।

बवासीर के कारण

पुरुषों में पाइल्स की समस्या होने का कोई सटीक कारण बताना मुश्किल है। लेकिन गुदा में मौजूद रक्त वाहिकाओं और ऊतकों के ऊपर बढ़ते दबाव से बवसीर होने की संभावना बढ़ जाती है। निम्निलिखित कुछ सामान्य बवासिर होने के करण हैं:

कम फाइबर आहार :

 कम फाइबर वाले आहार का सेवन करने से आपका मल सख्त हो सकता है, जिससे मल त्याग के दौरान अधिक तनाव हो सकता है। इससे मलाशय और गुदा में नसों पर दबाव बढ़ जाता है।
मल त्याग के दौरान तनाव : पुरुषों में बवासीर के सबसे सामान्य कारणों में से एक मल त्याग के दौरान बहुत अधिक जोर लगाना है। इसकी संभावना तब ज़्यादा होती है जब कब्ज या दस्त हो।

लंबे समय तक बैठना : 

जो पुरुष लंबे समय तक बैठे रहते हैं, जैसे ट्रक ड्राइवर या ऑफिस वर्कर, उनमें बवासीर होने की संभावना अधिक होती है। लंबे समय तक बैठने से गुदा क्षेत्र में नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें सूजन आ जाती है।

भारी वजन उठाना : 

जो पुरुष नियमित रूप से भारी सामान उठाते हैं उन्हें भी बवासीर होने का खतरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारी उठाने के तनाव से गुदा में नसों में सूजन आ सकती है।

आयु :

उम्र बढ़ने के साथ बवासीर अधिक आम हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गुदा क्षेत्र में ऊतक उम्र के साथ कमजोर हो जाते हैं, जिससे उनमें सूजन होने की संभावना हो जाती है।

बवासीर के घरेलू उपाय

बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय करने में हल्दी काफी उपयोगी है। हल्दी में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते है जो घाव भरने और सूजन कम करने में मदद करते है। 1 चम्मच देसी घी में आधा चम्मच हल्दी मिला ले और मरहम की तरह मस्सों पर लगाए। इस उपाय में देशी घी के अलावा आप एलोवेरा जेल का भी प्रयोग कर सकते है।
केला भी बवासीर से राहत पाने में मदद करता है। एक पका हुआ केला ले कर इसे बीच से काट ले, अब इस पर थोड़ा कत्था छिड़क कर रात भर खुले आसमान के निचे छोड़ दे और अगली सुबह इसे खा ले। कैसी भी बवासीर हो 5 से 7 दिन इस घरेलू नुस्खे को करने पर आराम मिलता है।
बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय करने में लहसुन भी प्रयोग किया जा सकता है। रात को सोने से पूर्व लहसुन की 1 कली को छील कर गुदा के रास्ते अंदर डाले। शुरुआत में ये उपाय दर्द भरा हो सकता है। (ये देसी इलाज करने से पहले आप किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर ले।)
नारियल की जटा खुनी बवासीर के इलाज की अचूक दवा है। नारियल की जटा को जलाकर उसकी राख एक शीशी में भर कर रख ले। अब दिन में 3 बार इसे 3 ग्राम की मात्रा 1 कप छाछ या दही में मिलाकर खाएं। पाइल्स से खून रोकने के लिए ये उपाय किसी भी अंग्रेजी दवा से ज्यादा असरदार है। इस उपाय को सिर्फ 1 ही दिन करना है और पुरानी बवासीर हो तो 3 दिन ये उपाय करने पर आराम मिलने लगेगा।
 बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय के लिए मलहम घर पर बनाने के लिए अरंडी का तेल 80 ग्राम ले कर गरम कर ले और 10 ग्राम कपूर मिला कर रखे। अब गुदा के मस्सों को धो कर इसे कपड़े से पोंछ ले और इस तेल से मस्सों पर धीरे से मालिश करे। दिन में 2 बार इस उपचार को करने से मस्से की सूजन, जलन, दर्द और खारिश से आराम मिलता है।
 1 गिलास ताजे दूध में 1 निम्बू निचोड़ कर सुबह खाली पेट पिए। निम्बू डालते ही दूध तुरंत पी जाये। 5 से 7 दिन इस नुस्खे को करने पर बवासीर से राहत मिलने लगेगी।
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज में बाबा रामदेव की दवा पतंजलि दिव्य अर्शकल्प वटी भी ले सकते है। इस दवा की एक से दो गोली दिन में 2 बार पानी या फिर लस्सी के साथ ले।
एक बार बवासीर ठीक होने के कुछ समय बाद अगर फिर से बवासीर की शिकायत होती है या फिर बवासीर पुरानी हो या बार बार पाइल्स हो जाते है, ऐसी स्थिति में दोपहर को खाने के बाद छाछ में थोड़ी पीसी हुई अजवाइन और थोड़ा सेंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए और साथ ही आहार में मूली की सब्जी व मूली के पत्ते शामिल करे।
कब्ज का रोग बवासीर होने का प्रमुख कारण है इसलिए बवासीर से बचने और इस समस्या का उपचार करने के लिए पेट में कब्ज न होने दे।
बवासीर के मस्सों का होम्योपैथिक इलाज (homeopathic treatment) करने के लिए सल्फर 3, 4, 200, एकोनाइट 30, हैमामेलिस Q, इग्नेशिया 200, मूलेन आयल, हैमामेलिस मूलार्क जैसे मेडिसिन प्रयोग में लायी जाती है। इन दवाओं से ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले होम्योपैथिक चिकित्सक से मिलकर सलाह अवश्य ले।
गाय का घी और शहद एक समान मात्रा में मिला कर मस्सों पर लगाए। कुछ हफ्ते इस उपाय को करने पर बवासीर के मस्से सूख कर गिरने लगेंगे।
बवासीर के मस्से कैसे हटाये, सेहुंड के दूध में थोड़ी हल्दी मिलाकर इसकी 1 बूंद को मस्से पर लगाने से मस्से सूखने लगते है।
20 ग्राम नीला थोथा व 40 ग्राम अफीम पीस कर 40 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं। हर रोज सुबह शाम इस मिश्रण को रूई की मदद से मस्सों पर लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से सूखने लगेंगे।
नीम के कोमल पत्ते घी में भूनकर इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर इसकी टिकिया बना लें। अब प्रतिदिन 1 टिकिया गुदाद्वार पर बांधने पर मस्से नष्ट होने लगते है।
बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय में आक के पत्तों और सहजन के पत्ते का मलहम बना कर लगाने से मस्सों से छुटकारा मिलता है।
नीम का तेल और हल्दी कड़वी तोरई के रस में मिला कर मस्सों पर लगाये। नियमित रूप से इस रामबाण उपाय को करने पर मलद्वार के मस्से जड़ से खत्म हो जाते है।

आइस पैक : 

गंभीर और दर्दनाक बवासीर को कम करने के लिए, सूजन को कम करने के लिए प्रभावित क्षेत्र पर 10 से 15 मिनट के लिए आइस पैक का उपयोग करें, लेकिन किसी भी नुकसान या क्षति से बचने के लिए इसे त्वचा पर लगाने से पहले इसे कपड़े में लपेटना सुनिश्चित करें।

विच हैज़ल : 

आप एक रुई में थोड़ी मात्रा में विच हेज़ल को सीधे बवासीर पर लगा सकते हैं। धीरे-धीरे प्रभावित क्षेत्र को दिन में कई बार पोंछ सकते हैं, विशेष रूप से मल त्याग के बाद। इससे खुजली और जलन कम होगी।

एलोवेरा तेल : 

इसके प्राकृतिक विरोधी गुणों के कारण बवासीर से होने वाली खुजली और जलन को कम करता है। बस एलोवेरा के तेल की थोड़ी मात्रा को प्रभावित जगह पर लगाएं और धीरे से मालिश करें।

नारियल तेल : 

यह जीवाणुरोधी गुणों के कारण बवासीर के लिए एक प्रभावी उपचार हो सकता है। आप नारियल के तेल में खाना भी बना सकते हैं। इसमें मौजूद रेचक गुण कब्ज को दूर कर सकते हैं।

बवासीर के लिए आहार

भोजन बवासीर होने की संभावना को कम करने में भी मदद कर सकता है। आप शामिल कर सकते हैं:उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थ : मल को नरम करने और कब्ज को कम करने में मदद कर सकता है, जो बवासीर को बढ़ा सकता है। इन खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, मेवे, बीज और चोकर शामिल हैं।

विटामिन सी : 

यह एक एंटीऑक्सिडेंट है जो प्रतिरक्षा समारोह को बढ़ावा दे सकता है, सूजन को कम कर सकता है और रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकता है। विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे खट्टे फल, शिमला मिर्च और ब्रोकली, अपने आहार में शामिल करने के लिए अच्छे विकल्प हैं।

फ्लेवोनोइड्स : 

भोजन में पौधों के यौगिक फ्लेवोनोइड्स होते हैं जो सूजन को कम कर सकते हैं और बवासीर के लक्षणों को कम कर सकते हैं। खट्टे फल, जामुन और डार्क चॉकलेट ऐसे खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं।

प्रोबायोटिक्स : 

अपने आहार में दही को शामिल करें। इसमें अच्छे बैक्टीरिया होते हैं जो आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं और मल त्याग को नियंत्रित कर सकते हैं, अंततः कब्ज और बवासीर के लक्षणों के विकास की संभावना को कम कर सकते हैं।

जीवन शैली से बवसीर का उपचार

जीवनशैली में बदलाव लाकर बवासीर को बिगड़ने से रोका जा सकता है। ये उपाय बिना सर्जरी के प्रभावी रूप से बवासीर का स्थायी इलाज प्रदान कर सकते हैं। कुछ बदलावों में शामिल हैं:हाइड्रेटेड रखें : बवासीर के लक्षणों से राहत पाने और उपचार को बढ़ावा देने के लिए, मल को नरम करने और मल त्याग को आसान बनाने के लिए हाइड्रेटेड रहने की सलाह दी जाती है, जिससे प्रभावित नसों पर दबाव और तनाव कम होता है।
व्यायाम : नियमित व्यायाम शरीर में रक्त के प्रवाह को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। यह कब्ज को कम करता है, जो बवासीर के विकास के लिए एक सामान्य योगदान कारक है।

लाल मांस का सेवन सीमित करें : 

लाल मांस का सेवन पचाने में कठिन होता है और बवासीर के लक्षणों को बदतर बना देता है, इसलिए इसके बजाय चिकन, मछली या बीन्स जैसे अन्य प्रकार के प्रोटीन खाने की कोशिश करें।
प्रोसेस्ड फूड से बचें : बवासीर के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी जाती है क्योंकि उनमें अस्वास्थ्यकर वसा, नमक और चीनी का उच्च स्तर होता है, जो सूजन, पाचन समस्याओं और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है जो स्थिति को खराब कर सकता है।

 बवासीर की रोकथाम

आम तौर पर, पुरुषों में पाइल्स को रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। हालांकि, जब पाइल्स की पहचान जल्दी कर ली जाती है, तब इस रोग को बढ़ने और हालात को बिगड़ने से रोका जा सकता है। पाइल्स से बचाव के कुछ उपाय नीचे दिए गए हैं:स्वस्थ भोजन : फाइबर से भरपूर आहार मल त्याग को नियंत्रित करने और कब्ज को रोकने में मदद कर सकता है, जो गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव डाल सकता है, जिससे बवासीर का निर्माण हो सकता है।

वजन प्रबंधन : 

आहार और व्यायाम के माध्यम से स्वस्थ वजन बनाए रखने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव कम करने और बवासीर के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
सक्रिय जीवन शैली : नियमित व्यायाम भी कब्ज को रोकने और रक्त प्रवाह में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिससे बवासीर के खतरे को कम किया जा सकता है।

मलत्याग करते समय जोर न लगाएं : 

मल त्याग के दौरान जोर लगाने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। इसे रोकने के लिए, समय निकालना महत्वपूर्ण है और बाथरूम का उपयोग करते समय जल्दबाजी न करें।

भारी सामान उठाने से बचें :

 भारी सामान उठाने से भी गुदा और मलाशय की नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। उचित उठाने की तकनीक का उपयोग करना और बहुत भारी वस्तुओं को उठाने से बचना महत्वपूर्ण है।
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