14.12.19

जल्दी जल्दी खाना खाने से वजन बढ़ता है और होती हैं ये बीमारियां/fast eating


  क्या आप भी रोज की भागदौड़ के कारण जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं या जल्दी निकलने के लिए जल्दी-जल्दी खाना आपकी आदत बन गई है। अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए।

  वैसे तो हमें बचपन से ही धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना सिखाया जाता हैं, लेकिन फिर भी कई लोग व्यस्तता के चलते जल्दी-जल्दी में ही खाने खाने की आदत बना लेते हैं। अगर आप भी ऐसा ही करते हैं, तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ऐसा करना सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। यहां तक की आपको मोटापे का शिकार भी बना सकता है। आइए, जानते हैं कि आखिर क्यों जल्दी में न खाते हुए, धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना चाहिए -
क्या आपकी आदत भी जल्दी-जल्दी खाना खाने की है? कुछ लोगों के खाने की स्पीड इतनी तेज होती है कि उन्हें अक्सर अपने साथ खाने वालों का या तो इंतजार करना पड़ता है या लोगों को खाता हुआ छोड़कर उठना पड़ता है। ऐसे लोग जल्दी-जल्दी खाने को अपनी क्वलिटीज में गिनना शुरू कर देते हैं बकियों को 'स्लो ईटर' कहकर चिढ़ाने लगते हैं। मगर वो शायद नहीं जानते हैं कि जल्दी-जल्दी खाने की आदत उनके लिए कितनी नुकसानदायक हो सकती है। जी हां, वैज्ञानिकों के अनुसार हमें अपना खाना हमेशा धीरे-धीरे, अच्छी तरह चबाकर और स्वाद लेकर खाना चाहिए। इससे खाना पचाने में आसानी रहती है। जल्दी-जल्दी खाना खाने की आदत आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है।

तेजी से बढ़ने लगता है वजन

अगर आप जल्दी-जल्दी बिना ढँग से चबाए खाना खाते हैं तो आपकी इस आदत से आपका वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तेजी से खाना खाने से आपके शरीर में मेटाबलिज्म की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है, जिसका वजन से सीधा संबंध है। जब आप धीरे-धीरे खाना खाते हैं तो आप सही मात्रा में जरूरत के अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हार्मोन्स ब्रेन में पेट भरने का संकेत भेजते हैं। अध्ययन में देखा गया है कि 5 साल के समय के दौरान 84 लोगों में मैटाबॉलिज्म सिंड्रोम पनपा, जो प्रतिभागी तेजी से खाना खाते थे उनका वजन बढ़ा, रक्त शर्करा में भी बढ़ौतरी हुई, बैड कोलेस्ट्राल भी बढ़ा और कमर के आकार में भी बढ़ोतरी हुई।भले ही आप किसी भी कारणवश जल्दी में खाना खाएं, इसके कारण आपका वजन बढ़ना तय है और बढ़ता वजन अपने आप में ही एक गंभीर समस्या है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना-खाने से दिमाग को पेट भरने का अहसास नहीं हो पाता है। ऐसे में आप ज्यादा खाना खा लेते हैं जो वजन बढ़ने या मोटापे का मुख्य कारण बन जाता है।इसलिए बढ़ते वजन से बचने के लिए खाने को हमेशा अच्छे से चबाकर ही खाएं।

प्रभावित होता है इंसुलिन

शोधकर्ताओं ने कहा कि जल्दी-जल्दी खाना खाने से दिमाग को जरूरी संदेश नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से जरूरी हार्मोन्स नहीं निकल पाते हैं। इस कारण इंसान का इंसुलिन प्रभावित होता है और इंसुलिन प्रभावित होने की वजह से टाइप-2 मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। खाना अच्छी तरह चबाकर खाने से मुंह में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। देर तक खाने से मुंह में बनने वाली लार बैक्टीरिया खत्म कर देती है, जिससे शरीर बैक्टीरियल संक्रमण से दूर रहता है।
  डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे -धीरे चबाकर खाना चाहिए इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लूकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है

हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट रोग का खतरा

इंसान का खान पान उसे कई बीमारियों से बचाता है. तो वहीं जल्दी जल्दी खाने की वजह से कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
जब इंसान मेटाबॉलिक सिंड्रोम का शिकार होता है तो उसे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगती है. हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी की वजह से हार्ट रोग का खतरा बढ़ जाता है
 
हो सकता है मेटाबॉलिक सिंड्रोम

जल्दबाजी में खाना खाने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने की संभावना भी बढ़ सकती है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना खाने से शरीर में रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है और ये दोनों समस्याएं मिलकर मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम की स्थिति बना सकती हैं।इसमें मेटाबॉलिज्म का स्तर असंतुलित हो जाता है जो शरीर में अन्य कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।इसलिए कभी भी जल्दबाजी में खाना खाने की भूल न करें।

अच्छी तरह नहीं पचता है खाना

आप तेज खाना इसलिए खा पाते हैं क्योंकि खाने को दांत से देर तक चबाने के बजाय सीधा निगल लेते हैं। खाने को चबाना इसलिए जरूरी है ताकि आपका खाना छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाए और डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए उसे पचाना और प्रॉसेसिंग करना आसान हो जाए। इसके अलावा जब आप खाने को चबाकर खाते हैं, तो आपके मुंह की राल उसमें मिल जाती है। आपका थूक पेट में डाइजेस्टिव एंजाइम्स को एक्टिवेट करता है, ताकि वो खाने को तोड़कर पोषक तत्वों को अलग कर सकें।

ब्लड शुगर बढ़ सकता है

  जी हां, यह बात पढ़कर आपको भी झटका लग सकता है कि तेजी से खाना खाने से आपका ब्लड शुगर बढ़ सकता है। दरअसल तेजी से खाना खाने से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस शुरू हो जाता है, जिसके कारण आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। लंबे समय में ये आदत आपको डायबिटीज का शिकार बना सकती है। अगर आप पहले से डायबिटीज का शिकार हैं, तो आपके लिए तेजी से खाना खाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए आपको हमेशा खाना धीरे-धीरे खाना चाहिए।
  धीरे-धीरे और अच्छी तरह से चबाकर खाने से भोजन में लार अच्छी तरह मिल जाती है, जिससे भोजन को पचाना आसान हो जाता है। इससे आपका मेटाबॉलिज्म भी सही रहता है।
माना जाता है कि डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए। इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
धीरे-धीरे और चबाकर खाने से पेट से जुड़ी कई समस्याएं खत्म हो जाती हैं, जैसे कब्ज व गैस आदि। धीरे-धीरे खाने से मन भी शांत रहता है और छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाना या गुस्सा आना भी कम हो जाता है।
 धीरे-धीरे, चबाकर खाने से भोजन करने में समय लगता है और आप ज्यादा खाने से बच जाते हैं, जिससे मोटापे जैसे परेशानी से भी बचाव होने में मदद मिलती है।

  गैस की समस्या 

भी आमतौर पर खाने की गलत आदतों के कारण होती है।यह समस्या होने पर उल्टी, जी मचलाना, पेट में जलन, पेट में गुड़गुड़ाहट और सीने में दर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं।वहीं इस कारण गैस्ट्रोइंट्सटाइनल डिजीज होने का भी खतरा रहता है। यह गैस से संबंधित गंभीर समस्या है।इसलिए अगर आपकी जल्दबादी में खाना खाने की आदत है तो इसे जल्द सुधारने की कोशिश करें।

धीरे खाना खाने का शरीर पर असर

जब हम धीरे और चबाकर खाना खाते हैं तो हमारी आंतों को इस भोजन को पचाने में आसानी होती है। धीमी गति से खाना खाने के दौरान हमारे पाचनतंत्र और दिमाग के हॉर्मोन्स के बीच सही कनेक्शन बन पाता है और हमारा दिमाग सिग्नल देता है कि हमें कितना खाना खाना है या नहीं खाना है।
लेकिन जल्दबाजी में खाना खाने के दौरान हम इस तरह का कनेक्शन डिवेलप नहीं कर पाते हैं। जब इस तरह भोजन करना हमारी आदत बन जाती है हमारे शरीर में कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं। इनमें पाचन से लेकर मोटापे तक कई समस्याएं शामिल हैं।
जब हम धीरे-धीरे खाना खाते हैं तब सही मात्रा में और जरूरत अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हॉर्मोन्स ब्रेन में अलार्म करते हैं। इसकी वजह होती है कि शरीर में इंसुलिन का स्तर प्रभावित होता है। यदि इंसुलिन शरीर में कम होने लगता है तो डाबिटीज टाइप-2 का खतरा बढ़ जाता है।
 
*विशेषज्ञ कहते हैं कि खाना खाने में करीब 20 मिनट का वक्त लेना चाहिए, ताकि आप अपने खाने को अच्छे तरीके से चबाकर खा सकें। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के शोधकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि खाने को ज्यादा देर तक चबाने से आप कम खाना तो खाते ही हैं, साथ ही 2 घंटे बाद कुछ हल्का खाने की आदत भी नियंत्रण में रहती है
*हीरोशिमा यूर्निवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. ताकायुकी यामाजी और उनकी टीम ने 1,000 प्रतिभागियों पर 5 वर्ष तक अध्ययन किया। इस अध्ययन का प्रमुख उद्देशय खाना खाने की गति और मैटाबॉलिक सिंड्रोम के बीच संबंधों की खोज करना था। मैटाबॉलिक सिंड्रोम ऐसे 5 जोखिम कारकों का समायोजन है, जिससे दिल के रोगों, डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। इन जोखिमों में हाई ब्लड प्रेशर, हाई ट्राइग्लिसराइड, रक्त में मौजूद वसा, उच्च रक्त शर्करा व गुड कोलैस्ट्रॉल की कमी और बढ़ता हुआ वजन शामिल है।


  • बैंगन के जूस के स्वास्थ्य लाभ



    बैंगन बहुत आम सब्जी माना जाता है क्योंकि इसके फायदों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मगर बैंगन में मौजूद मिनरल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स बताते हैं कि बैंगन को सामान्य सब्जी समझकर आप बड़ी भूल कर रहे हैं। रिसर्च बताती हैं कि बैंगन में ऐसे बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं, जो हमारे बॉडी फंक्शन को बेहतर बनाते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि बैंगन की सब्जी या अन्य डिश बनाने से कहीं ज्यादा फायदेमंद इसका जूस हो सकता है। अगर आपने पहले कभी बैंगन के जूस के बारे में नहीं सुना है, तो आपको हैरानी हो सकती है। मगर आज हम आपको बता रहे हैं बैंगन का जूस पीने के 5 जबरदस्त फायदे।
    हाई ब्लड प्रेशर को करता है कंट्रोल

    बैंगन का जूस हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) के मरीजों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। इसका कारण यह है कि इसमें पोटैशियम अच्छी मात्रा में होता है। रिसर्च बताती हैं कि हाई ब्लड प्रेशर का एक बड़ा कारण शरीर में पोटैशियम की कमी और सोडियम की अधिकता है। इसलिए पोटैशियम वाले आहार ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं। इसलिए हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी बैंगन का जूस पीना फायदेमंद है।
    डायबिटीज में भी हो सकता है फायदेमंद

    चूंकि बैंगन में फाइबर भी अच्छी मात्रा में होता है और बहुत कम मात्रा में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट होता है। इसलिए बैंगन डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। डायबिटीज के मरीज चाहे बैंगन की सब्जी, अन्य डिश खाएं या जूस पिएं, इससे उनका ब्लड शुगर कंट्रोल रहेगा।
    हार्ट के रोगियों के लिए फायदेमंद

    बैंगन में विटामिन बी6, विटामिन सी, पोटैशियन, फाइबर और साइटोन्यूट्रिएंट्स आदि की मात्रा अच्छी होती है। ये सभी तत्व दिल के लिए बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। इसलिए अगर दिल के मरीज रोजाना एक कप बैंगन का जूस पीते हैं, तो ये उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। अगर स्वस्थ व्यक्ति इस जूस को पीते हैं, तो उन्हें भविष्य में कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होने की संभावना कम हो जाती है। बैंगन में फ्लैवोनॉइड्स की मात्रा भी अच्छी होती है इसलिए ये स्ट्रोक और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है।

    कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करेगा बैंगन का जूस


    बैंगन का जूस आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल को भी कम कर सकता है। जानवरों पर किए गए एक शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया था कि बैंगन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल घट सकता है। दरअसल बैंगन में क्लोरोजेनिक एसिड होता है, जो फ्री रेडिकल्स से लड़ता है और बैड कोलेस्ट्रॉल कम करता है।
    वजन भी घटाता है बैंगन का जूस

    अपनी डाइट में बैंगन को और रोजाना की आदत में 1 कप बैंगन का जूस पीकर आप अपना वजन भी घटा सकते हैं। बैंगन आपके बॉडी फैट को बर्न करने में मदद करता है और आपके मेटाबॉलिज्म को तेज करता है। बैंगन में मौजूद फाइबर आपके पेट को देरतक भरा रखता है, जिससे आपके द्वारा ली गई कैलोरीज में भी अंतर आता है। इस तरह बैंगन का जूस वेट लॉस के लिए भी अच्छा विकल्प है।
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    13.12.19

    इमली की पतियों से बढ़ता है ब्रेस्ट मिल्क



     खट्टी-मीठी स्वाद वाली इमली ही नहीं उसकी पत्तियां भी कम काम की नहीं। इन पत्तियों में कई ऐसे तत्व होते हैं जो सेहत को दुरुस्त करने के साथ बीमारियों को दूर करने में भी काम आते हैं।
    इमली का प्रयोग आप खाने पीने की कई चीजों में उसका स्वाद बढ़ाने के लिए करते रहे होंगे, लेकिन इमली की पत्तियों की चटनी या इसे विविध रूप में प्रयोग करना भी सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
    इमली ही नहीं इसकी पत्तियां भी एंटीसेप्टिक गुण से भरी होती हैं। यदि आपका घाव लंबे समय से सही नहीं हो रहा तो आप इमली की पत्तियों का रस निकाल कर उसे अपने घाव पर लगाएं। एंटीसेप्टिक गुणों से भरी ये पत्तियां घावों को तेजी से भरती हैं। ये पत्तियां संक्रमण और परजीवी विकास को रोकतती हैं और घाव तेजी से भरने लगता है।
    बढ़ाता है ब्रेस्ट मिल्क
    जिन महिलाओं को डिलेवरी के बाद ब्रेस्ट मिल्क न निकलने या कम निकलने की दिक्कत होती हो, उन्हें इमली की पत्तियों का रस निकाल कर पिलाया जाए तो उनके दूध में बढ़ोरती होगी। वहीं, जिन लोगों को बार बार जननांग संक्रमण होता रहता है, उनके लिए इमली की पत्तियों के रस का सेवन करना बहुत फायदेमंद साबित होगा।
    इमली की पत्तियां विटामिन सी भरी होती हैं और ये सूक्ष्मजीव संक्रमण से हमें बचाती हैं। इमली की पत्तियों का सेवन करने से शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर हमेशा संतुलित रहता है। यदि आपको शुगर की समस्या है तो इमली की पत्तियों का सेवन किसी भी रूप में रोज करें।



    घावों को सही करे


    इमली की पत्तियों का रस निकाल कर घावों पर लगाया जाता है, तो वे घाव को तेजी से ठीक करते हैं। इसके पत्तों का रस किसी भी अन्य संक्रमण और परजीवी विकास को रोकता है। इसके अलावा यह नई कोशिकाओं का निर्माण भी तेजी से करता है।
    जननांग संक्रमण
     इमली की पत्तियों के रस का सेवन जननांग संक्रमण रोकता है और पहले से होने वाली ऐसी बिमारी के लक्षणों से राहत प्रदान करता है। इमली की पत्तियों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो कि किसी भी सूक्ष्मजीव संक्रमण से हमारे शरीर की पूर्णत: दूर रखता है। जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
    स्कर्वी से होगा बचाव
    स्कर्वी विटामिन सी की कमी के कारण होता है और इमली की पत्तियों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। स्कर्वी रोग में मसूड़ों और नाखूनों, थकान होने लगती है। इमली के पत्तों में मौजूद उच्च एस्कॉर्बिक एसिड सामग्री एंटी-स्कर्वी के रूप में काम करता है।
    इमली की पत्तियों के रस का सेवन यदि आप रोज करें तो शरीर में सूजन और जोड़ों का दर्द भी कम होता है। पत्तियों का रस पीने एलर्जी की समस्या भी दूर होती है। इमली की पत्तियों के इतने गुण सुनने के बाद आपको भी अपनी डाइट में इस पत्तियों को किसी न किसी रूप में जरूर शामिल करना चाहिए।
    डायबिटीज को करें न‍ियंत्रित
    इमली की पत्तियों का सेवन करने से शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इससे डायबिटीज जैसी बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
    सूजन और जोड़ों से राहत
    इमली की पत्तियों के रस के सेवन से शरीर की सूजन और जोड़ो के दर्द में राहत मिलती है और किसी भी प्रकार की शारीरिक सूजन को इसके इस्तेमाल से कम किया जा सकता है। पत्तियों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए पपीता,नमक और पानी को पत्तियों में मिलाया जा सकता है। लेकिन, सुनश्चिति करें कि आप बहुत अधिक नमक का उपयोग ना करें। इमली के पत्तों का रस शरीर में होने वाली एलजी को भी रोकता है।
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    8.12.19

    सर्दी के मौसम के फलों से तंदुरुस्ती बढ़ाएँ



     सभी मौसम के सीजनल फलों का सेवन करना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बेहद फायदेमंद होता है। लेकिन क्‍या आप सर्दियों में खाये जाने वाले फल और उनके लाभ जानते हैं? कई बार हम फलों की तासीर जाने बिना ही उनका उपभोग कर लेते हैं जिससे हम सर्दी और खांसी की तरह ही अन्‍य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं का शिकार हो सकते हैं। जबकि ठंडी के मौसम में हमें गर्म तासीर वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। वैसे तो सर्दियों के मौसम में ही सबसे ज्‍यादा फल और सब्जियां मिलती हैं। ऐसी स्थिति में यह निश्चित करना मुश्किल होता है कि सर्दियों में क्‍या खाना चाहिए और क्‍या नहीं।
    सर्दी के मौसम में हमारे शरीर को विभिन्‍न प्रकार के खनिज पदार्थ और पोषक तत्‍वों की अतिरिक्‍त मात्रा की आवश्‍यकता होती है। हालांकि इस मौसम में अधिक कैलोरी और वसा वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचना चाहिए। सर्दी के सीजन में हमारे शरीर को विटामिन, मिनरल, फोलेट, एंटीऑक्‍सीडेंट और एंटी-बैक्‍टीरियल गुणों से भरपूर खाद्य पदार्थों का पर्याप्‍त सेवन करना चाहिए। इन पोषक तत्‍वों को प्राप्‍त करने के लिए आपको सर्दियों में मिलने वाले लगभग सभी प्रकार के फलों का सेवन करना चाहिए। इन फलों को सेवन करने का फायदा वजन घटाने, मधुमेह को रोकने, कैंसर की रोकथाम करने, त्‍वचा सौंदर्य और बालों के लिए भी होता है। ये सभी फल हमें सर्दी के दौरान होने वाली समस्‍याओं से लड़ने की शक्ति देते हैं और शरीर की ऊर्जा को बढ़ाने में मदद करते हैं।
    सामान्‍य रूप से सर्दियों में खाये जाने वाले फलों के लिए कोई निश्चित समय निर्धारित नहीं किया गया है। इसका मतलब यह है कि आप अपनी सुविधा के अनुसार इन्‍हें कभी भी खा सकते हैं। लेकिन जानकारों का मानना है कि सुबह के नाश्‍ते के समय और दोपहर के भोजन के कुछ समय पहले इनका सेवन करना अच्‍छा होता है। खाली पेट फलों का सेवन अधिक लाभकारी माना जाता है। इसलिए भोजन करने के बाद फलों का सेवन करने से बचना चाहिए।
    ठंडी के मौसम में फल खाने का सबसे अच्‍छा समय भोजन करने के लगभग 15 से 20 मिनिट पहले या भोजन करने के लगभग 1 से 2 घंटे बाद होता है। ऐसा करने पर इन्‍हें पचाने में आसानी होती है साथ ही इनके पूरे पोषक तत्‍वों और खनिज पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। सर्दियों के मौसम में खाये जाने वाले फलों को रात के समय खाने से बचना चाहिए।
    फल तो हमें हर मौसम में प्राप्‍त होते हैं जो हमारे शरीर के लिए बहुत ही फायदेमंद होते हैं। लेकिन सर्दियों में कुछ विशेष फलों का सेवन करना हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के बहुत ही लाभकारी हो सकता है। आइए जाने सर्दियों में कौन-कौन से फलों का सेवन करना चाहिए।


    खजूर



    खजूर एक छोटा और अनोखा फल है जिसके बहुत से फायदे होते हैं। इस अद्भुद फल में कई प्रकार के विटामिन और खनिज पदार्थों की उच्‍च मात्रा होती है। जिसके कारण सर्दियों में मौसम में विशेष रूप से खजूर का सेवन किया जाता है। खजूर में आयरन और कैल्सियम की उच्‍च मात्रा एनीमिया के उपचार में मदद कर सकती है। साथ ही उन लोगों के लिए भी खजूर फायदेमंद होता है जिनकी हड्डियों भंगुर या हड्डी का घनत्‍व कम होता है।
    ठंडी में खजूर खाने का सबसे बड़ा फायदा इसमें मौजूद फाइबर के कारण होता है। जो कि आपकी पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होता है। यदि आप सर्दी के मौसम में कब्‍ज से परेशान हैं तो खजूर आपके लिए सबसे अच्‍छे घरेलू उपाय साबित हो सकते हैं।

    पपीता


    अक्‍सर बीमार होने पर डॉक्‍टर हमें पपीता का सेवन करने की सलाह देते हैं। क्‍योंकि पपीता में ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। हालांकि पपीता साल के 12 महिने बाजार में उपलब्‍ध होता है। लेकिन सर्दी के मौसम में पपीता खाना अधिक फायदेमंद होता है। क्‍योंकि पपीता में न केवल विटामिन सी बल्कि विटामिन बी की भी अच्‍छी मात्रा होती है। इसके अलावा इसमें बहुत से एंटीऑक्‍सीडेंट और खजिन पदार्थ भी होते हैं। जिनमें हृदय और पाचन संबंधी समस्‍याओं को रोकने की क्षमता होती है। इसलिए आप पपीता को न केवल सर्दी में बल्कि पूरे साल तक उपभोग कर सकते हैं।

    नाशपाती

    सर्दियों के सीजन में इम्‍यूनिटी पावर को बेहतर बनाना सरल होता है, क्योंकि इस समय हमारा डायजेशन सिस्‍टम ज्यादा अच्‍छे से काम करता है। सर्दी के मौसम में आप अपने आहार में नाशपाती को भी शामिल कर सकते हैं। ठंड के सीजन में यदि आप अपनी और अपने बच्‍चों की सुरक्षा सर्दी और वायरल फ्लू से करना चाहते हैं तो नाशपाती एक अच्‍छा विकल्‍प है। क्‍योंकि इसमें कई प्रकार के विटामिन, खनिज पदार्थ और अन्‍य पोषक तत्‍व होते हैं। जो हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक होते हैं।

    सेब


    अक्‍सर सर्दियों के मौसम में फलों की बहार आ जाती है। जिसके कारण बाजार में कई रंगों के फल दखाई देने लगते हैं। सेब भी उन्‍हीं फलों में से एक है। अंग्रेजी में कहा भी जाता है कि ‘’ एन एप्पल अ डे कीप्स द डॉक्टर अवे’’ (An apple a day keeps the doctor away) क्‍योंकि सेब है ही ऐसा अद्भुद फल। सेब में ग्लूकोज के स्तर को हमारे शरीर में कम करने और कैंसर से लड़ने की क्षमता देता है। सर्दियों में सेब का सेवन करने से हमारे सारे सिस्टम को डिटोक्सिंग करने में मदद मिलती है। आप भी सर्दियों में खाये जाने वाले फलों की सूची में सेब को शामिल कर सकते हैं।



    ठंडी के मौसम अक्‍सर आवला न खाने की सलाह दी जाती है। कारण कि इसका सेवन करने से सर्दी हो सकती है। लेकिन लोगों को शायद पता नहीं है कि आंवला में रोग प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाने की क्षमता होती है। आंवला में विटामिन ए, सी और बहुत से खनिज पदार्थ उच्‍च मात्रा में होते हैं। नियमित आधार पर आंवला का सेवन करने से रक्‍त शर्करा के स्‍तर को भी नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। आप अपने आहार में आंवले को कई प्रकार से शामिल कर सकते हैं। जैसे आंवले का अचार या आंवले का मुरब्‍बा या कच्‍चे ही आंवले के रूप में।

    नींबू


    नींबू में विटामिन सी की सबसे अधिक मात्रा होती है। विटामिन सी एक प्रकार का एंटीऑक्‍सीडेंट है जो हमारे शरीर को फ्री रेडिकल्‍स से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करता है। सर्दियों के मौसम में आप अपने आहार के साथ ताजा नींबू के रस का उपयोग कर सकते हैं। यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है।

    संतरा


    ठंडी के मौसम में खाये जाने वाले फलों में संतरा सबसे प्रमुख है। क्‍योंकि इन दिनों पूरे बाजार में केवल संतरा का सुनेहरा रंग अलग ही दिखाई देता है। ठंड में फ्लू और सर्दी से बचने के लिए आप संतरा का सेवन कर सकते हैं। सभी लोग जानते हैं कि संतरा विटामिन सी के सबसे अच्‍छे स्रोत में से एक है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि ऑरेंज में फाइटोकेमिकल्‍स (phytochemicals) भी होते हैं जिनमें कैंसर रोधी (Anti-Cancer) गुण होते हैं। इसके अलावा संतरा में मौजूद अन्‍य पोषक तत्‍व किड़नी संबंधी बीमारियों से लड़ने में भी सहायक होते हैं। अच्‍छी बात यह है कि संतरा आज कल केवल सर्दियों में ही नहीं बल्कि इसके अलावा साल के कुछ महिनों में प्राप्त किये जा सकते हैं। आप अपने शरीर को विभिन्‍न प्रकार की बीमारियों से बचाने और इम्‍यूनिटी बढ़ाने के लिए संतरे का नियमित सेवन कर सकते हैं।

    केला


    सर्दियों के मौसम में खाये जाने वाले फलों में केला को भी शामिल किया जा सकता है। अधिकांश लोगों का मानना होता है कि ठंडी के मौसम में केला खाने से सर्दी हो सकती है। जबकि इसमें ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बए़ाने में मदद कर सकते हैं। आप अपने शरीर स्‍वस्‍थ रखने के लिए सर्दियों के मौसम में केला को नियमित आहार के रूप में जगह दे सकते हैं। यह आपके लिए बेहतरीन आहार साबित हो सकता है।



    सर्दी के मौसम में स्‍वस्‍थ रहने का सबसे अच्‍छा घरेलू उपाय अनार का नियमित सेवन करना हो सकता है। अनार में एलैजिक एसिड, एलैजिटानिंस, प्यूनिसिक एसिड, फ्लेनॉयड, एंथोसायनिन जैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के सैकड़ों बायोएक्टिव यौगिक पाये जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए कई मायनों में गुणकारी होते हैं। विभिन्न बीमारियों के इलाज में अनार का उपयोग वर्षों से किया जा रहा है। अनार का उपयोग परजीवी और माइक्रोबियल संक्रमण, डायरिया, अल्सर, रक्तस्राव और श्वसन संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। अनार प्रोबायोटिक बैक्टीरिया को उत्तेजित करता है जिससे यह संक्रमण से लड़ने में सक्षम होता है और बीमारियों से हमें छुटकारा दिलाता है। हालांकि अनार भी ऐसा फल है जो 12 महिने उपलब्‍ध होता है। लेकिन ठंडी में इस फल का नियमित सेवन करने के लाभ बहुत अधिक होते हैं।

    शकरकंद

    सर्दियों के मौसम में शकरकंद भी पर्याप्‍त मात्रा में मिलता है। हालांकि यह फल न होकर एक कंद है। लेकिन सर्दियों में मौसम में इसका पर्याप्‍त सेवन करना आपको कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिला सकता है। शकरकंद में विटामिन ए और विटामिन सी की पर्याप्‍त मात्रा होती है। इसके अलावा शकरकंद की गर्म तासीर हमारे शरीर को सर्दियों के मौसम में गर्म रखने में मदद कर सकती है। यह फाइबर का सबसे अच्‍छा स्रोत होता है जो पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में सहायक होता है। आप भी इस मौसम में अपने शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए शकरकंद का नियमित सेवन कर सकते हैं।

    शरीफा या सीताफल

    कस्टर्ड एप्पल, जिसे शरीफा या सीताफल के रूप में भी जाना जाता है, एक मीठा फल है, जो दुनिया भर में व्यापक रूप से उगाया जाता है। भारत में इसे आमतौर पर ‘सीताफल’ के रूप में जाना जाता है। यह व्यापक रूप से सर्दियों के मौसम में उपलब्ध होता है और भारत के स्थानीय बाजारों में बेचा जाता है। नियमित रूप से सीताफल का सेवन आपकी त्वचा को प्राकृतिक रूप से सुंदर बनाने में मदद कर सकता है। इस फल में प्रचुर मात्रा में मौजूद विटामिन ए त्वचा को स्वस्थ रखने में मदद करती है।

    अमरूद


    सर्दियों के मौसम में अमरूद भी बहुत देखने मिलते हैं। पके हुए अमरूद देखकर कोई भी इन्‍हें खाने का मन बना सकता है। लेकिन क्‍या आप अमरूद खाने के फायदे जानते हैं। सर्दियों में अमरूद खाना आपकी सेहत के लिए बहुत ही अच्‍छा माना जाता है। क्‍योंकि अमरूद में फोलेट, फाइबर, विटामिन और कई प्रकार के एंटीऑक्‍सीडेंट भरपूर मात्रा में होते हैं। जिसके कारण सर्दियों में होने वाली बहुत सी स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं की रोकथाम करने में अमरूद आपकी मदद कर सकती है।



    सिंघाड़ा एक जलीय फल है जिसे वॉटर चेस्‍टनट्स (Water Chestnut) भी कहा जाता है। यह सर्दीयों के मौसम में विशेष रूप से भारतीय बाजारों में मिलता है। सिंघाड़ा के फायदे इसमें उपस्थित पोषक तत्‍वों और स्‍वाद के कारण स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत अधिक होते हैं। पानी में पैदा होने वाले फल सिंघाड़ा सर्दियों के मौसम में अक्सर बाजार में देखने को मिलता है। सिघाड़े में साइट्रिक एसिड, कर्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फैट, निकोटेनिक एसिड, रीबोफ्लेविन, थायमाइन, विटामिन्स-ए, सी, मैगनीज तथा फास्फोरस आदि होते हैं। सिंघाड़ा सर्दियों में खाये जाना वाला एक अच्छा फल है।

    बेर


    ठंड के मौसम में मिलने वाला एक खास और खट्टा-मीठा फल है ‘बेर’। यह फल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, इसके फायदे भी उतने ही अधिक होते है। पकी हुई बेर का नाम सुनते ही आपके मुंह में पानी आना लाजमी है क्‍योंकि यह फल है ही इतना स्‍वादिष्‍ट। बेर खाने के फायदे वजन कम करने, हृदय स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ाने, कैंसर रोकने, रक्‍तचाप नियंत्रित करने, पेट की समस्‍याओं आदि के लिए होते हैं।

    26.11.19

    प्रेडनिसोलोन दवा का कैसे उपयोग करें ?


    प्रेडनिसोलोन क्या है?
    प्रेडनिसोलोन एक ग्लुकोकोर्टिकोइड दवा है जिसमें प्रिडनिसोलोन मुख्य घटक के रूप में पाया जाता है| यह मुख्य रूप से एलर्जी, सूजन और प्रतिरक्षा संबंधी विकारों के लिए प्रयोग होता है|
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग
    इसका उपयोग कई विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनमें निम्न हो सकते हैं
    लुपस, सोरायसिस और एलर्जी की स्थिति।
    संधिशोथ; किशोर पुरानी गठिया, पॉलीमेल्जिया संधिशोथ
    ड्यूकेन मांसपेशी डिस्ट्रॉफी (एक प्रगतिशील बीमारी जिसमें मांसपेशियां ठीक से काम नहीं करती हैं)
    अस्थमा, गंभीर अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाएं
    प्रत्यारोपण सर्जरी (प्रतिरक्षा दमन के लिए)
    पेम्फिगस, बुलस पेम्फिगोइड (प्रतिरक्षा-मध्यस्थ त्वचा रोग)
    रक्त विकार जैसे ऑटोम्यून्यून हेमोलाइटिक एनीमिया, इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक purpura
    तीव्र और लिम्फैटिक ल्यूकेमिया, घातक लिम्फोमा, एकाधिक माइलोमा
    प्रेडनिसोलोन कैसे काम करता है
    प्रेडनिसोलोन सूजन के शुरुआत से लेकर पुरानी सूजन के विकास के लिए एक प्रभावी अवरोधक है।
    प्रेडनिसोलोन मोनोन्यूक्लियर कोशिकाओं (सूजन कोशिकाओं की विशेषता) के प्रसार और इन कोशिकाओं द्वारा सूजन पैदा करने वाले उत्पादों या पदार्थों की रिहाई को रोकता है – जिससे प्रतिरक्षा-दमनकारी क्रियाएं होती हैं।
    प्रेडनिसोलोन कैसे लें
    इस दवा की खुराक और इसे लेने का समय डॉक्टर द्वारा तय किया जाना चाहिए।
    इसकी खुराक आयु, चिकित्सा की स्थिति और चिकित्सा के प्रति प्रतिक्रिया पर आधारित है।
    प्रेडनिसोलोन गोलियों और सिरप के रूप में मिलता है।
    इन गोलियों को सुबह के समय लेना चाहिए या जब तक डॉक्टर द्वारा सलाह ना दी जाए|
    इन्हें रोजाना एक ही समय पर लेना चाहिए।
    सिरप का उपयोग करने से पहले सिरप की बोतल को अच्छी तरह से हिला लें और सही खुराक लेने के लिए हमेशा मापने वाले चम्मच का उपयोग करें।
    प्रेडनिसोलोन इंजेक्शन के रूप में भी मिलता है जिसे एक पेशेवर स्वास्थ्यकर्मी के द्वारा ही लगवाना चाहिए|
    प्रेडनिसोलोन की सामान्य खुराक
    इसकी खुराक आपकी हालत पर निर्भर होती है| वयस्कों के लिए इसकी खुराक रोजाना 20 से 40 मि.ग्रा. से 80 मि.ग्रा. तक है जिसे कम करके प्रतिदिन 5 से 20 मि.ग्रा. किया जा सकता है।
    प्रेडनिसोलोन से कब बचें?
    आपको निम्न स्थितियों में प्रेडनिसोलोन का उपयोग नहीं करना चाहिए:
    यदि इसके किसी से एलर्जी हो
    रक्तचाप बढने पर
    थ्रोम्बोम्बोलिक विकार
    मधुमेह मेलिटस
    ऑस्टियोपोरोसिस,
    स्क्लेरोडर्मा,
    मियासथीनिया ग्रेविस,
    जिगर, गुर्दे, दिल, आंतों, एड्रेनल या थायराइड रोग।
    हेपेटाइटिस-बी
    हरपीस, आंख का संक्रमण, चिकनपॉक्स, शिंगल या खसरा।
    मोतियाबिंद, आंख का रोग
    भावनात्मक समस्याएं, अवसाद या मानसिक बीमारी के अन्य प्रकार
    फेच्रोमोसाइटोमा (गुर्दे के पास एक छोटी ग्रंथि में ट्यूमर)
    अल्सर

    आपके पैरों, फेफड़ों या आंखों में खून का थक्का
    यदि आप किसी भी सर्जरी या दांतों की सर्जरी से गुजर रहे हैं तो डॉक्टर को सूचित करें|
    यदि आपको टीकाकरण की आवश्यकता है तो अपने डॉक्टर को सूचित करें।
    मांसपेशियों की समस्याओं वाले मरीजों या पूर्व में प्रीनीसोलोन टैबलेट (या एक समान दवा) ले रहर हों तो डॉक्टर को सूचित करें|
    प्रेडनिसोलोन के दुष्प्रभाव?
    कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के अचानक विघटन से एक स्टेरॉयड “विदड्राल सिंड्रोम” हो सकता है। इस सिंड्रोम की वजह से भूख, मतली, उल्टी, थकावट, सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द, त्वचा का झड़ना, मांसपेशियों में दर्द या वजन घटना हो सकता है|
    प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक प्रयोग करने से कुशिंग सिंड्रोम हो सकता है। इसके लक्षणों में रक्तचाप में वृद्धि, शरीर के चारों ओर मोटापे में वृद्धि और अंगों की पतली, त्वचा पर बैंगनी पट्टियां, चेहरे की गोलियां, मांसपेशियों की कमजोरी, पतली नाजुक त्वचा के साथ आसान और लगातार चोट लगाना आदि हैं|
    इसके इलावा गर्दन के पिछले हिस्से पर वसा जमना, मुँहासे, मासिक धर्म चक्र में परेशानी, शरीर पर बाल और मनोवैज्ञानिक असामान्यताओं में वृद्धि होना भी है|
    प्रेडनिसोलोन रक्त ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा सकता है, पहले से मौजूद मधुमेह को बिगाड़ सकता है और मधुमेह विरोधी दवाओं के प्रभाव को भी कम कर सकता है। इसलिए नियमित अंतराल पर खून में ग्लूकोज की जांच करते रहना चाहिए|



    शरीर में होने वाले संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकता है जैसे वायरल, बैक्टीरिया, फंगल, प्रोटोज़ोन या हेल्मिंथिक आदि| यह संक्रमण के प्रतिरोध को कम करके मौजूदा संक्रमणों को खराब कर सकता है।

    प्रेडनिसोलोन रक्तचाप को बढ़कर शरीर में नमक और पानी के प्रतिधारण को बढ़ा सकता है और शरीर से पोटेशियम और कैल्शियम के निकलने का कारण बन सकता है।
    इससे गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जैसे अक्रामकता, अवसाद, भावनात्मक विकार, अनिद्रा, मनोदशा बदलना, नींद के विकार आदि|
    प्रेडनिसोलोन हड्डी के गठन और दोबारा जुड़ने दोनों को ही को कम कर सकते हैं|
    प्रेडनिसोलोन आंखों की बीमारियों का कारण भी बन सकता है जैसे मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, बैक्टीरिया, कवक या वायरस के कारण आंख का संक्रमण इत्यादि|
    त्वचा पर गंभीर चकत्ते प्रेडनिसोलोन का एक अन्य दुष्प्रभाव है।
    प्रेडनिसोलोन को लम्बे समय तक उपयोग करने से बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे मामलों में तुरंत डॉक्टर से सलाह लें|
    अंगों पर प्रभाव
    जिगर – जिगर के गंभीर रोगों वाले मरीजों में खुराक के समायोजन की जरूरत होती है।
    गुर्दा – इसमें खुराक के समायोजन की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि किसी प्रकार के अवांछित लक्षण पाए जाते हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
    एलर्जी प्रतिक्रियाएं
    यदि किसी भी सामग्री से एलर्जी हो तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें| इससे होने वाली एलर्जी प्रतिक्रियाओं में त्वचा पर गंभीर चकत्ते, सांस की तकलीफ और खुजली इत्यादि हैं|
    दवा इंटरैक्शन के बारे में सावधानी
    इंटरैक्शन करने वाली सभी दवाओं को यहां सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता इसलिए प्रेडनिसोलोन निम्न दवाओं और उत्पादों के साथ प्रभाव डाल सकता हैं:
    एस्पिरिन और अन्य नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे इबुप्रोफेन और नाप्रोक्सेन,
    गर्भनिरोधक गोली
    एंटीएसिड्स- एंटीएसिड्स के साथ इसे लेने के बीच में कम से कम 2 घंटे का अंतराल छोड़ दें।
    क्लैरिथ्रोमाइसिन, रिफाबूटिन, रिफाम्पिसिन, एम्फोटेरिसिन, केटोकोनाज़ोल, टेट्रासाइक्लिन, फ्लुकोनाज़ोल
    इंसुलिन सहित मधुमेह के लिए दवाएं,
    फ़िनाइटोइन
    थायराइड की दवा
    वेरापामिल
    उच्च रक्तचाप या मूत्रवर्धक दवाएं
    मिर्गी का इलाज करने वाली दवाएं जैसे कि कार्बामाज़ेपाइन, फेनोबार्बिटल, बार्बिटेरेट्स, फेनीटोइन, प्राइमिडोन, फेनिलबूटज़ोन
    मेथोट्रेक्सेट (गठिया के लिए, क्रोन रोग, छालरोग)
    मिफेप्रिस्टोन (गर्भपात के लिए उपयोग किया जाता है)
    सिक्लोपोरिन (अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति को रोकने के लिए)
    एंटीकोगुलेंट दवाएं (खून पतला करने वाली के लिए प्रयोग किया जाता है)
    एमिनोग्लुटाइथिमाइड, एसीटाज़ोलोमाइड, कार्बोक्सोलोन या सैलिसिलेट्स
    रेटिनोइड्स (त्वचा की स्थितियों के लिए)
    कार्बिमाज़ोल (हाइपरथायरायडिज्म के लिए)
    थियोफाइललाइन (अस्थमा के लिए)

    अपने द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी दवाओं और उत्पादों की सूचना चिकित्सक को दें| जिन हर्बल उत्पादों का आप उपयोग कर रहे हैं उनके बारे में भी डॉक्टर को सूचित करें| बिना अपने डॉक्टर की मंजूरी के दवा संशोधित न करें|
    प्रभाव या परिणाम
    इससे ठीक होने के लिए लिया गया समय चिकित्सा की स्थिति पर निर्भर करता है।
    लक्षणों को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अपने डॉक्टर द्वारा तय की गयी खुराक को पूरा लें|
    अपने डॉक्टर से सलाह किए बिना दवा लेना बंद ना करें|
    सामान्य प्रश्न


    क्या प्रेडनिसोलोन नशे की लत है?

    नहीं। लेकिन इन दवाइयों पर निर्भरता से बचना चाहिए।
    क्या शराब के साथ प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अल्कोहल लेने से बचना चाहिए।
    क्या किसी विशेष खाद्य पदार्थ से बचना चाहिए?
    प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अंगूर या अंगूर का रस ना लें|
    क्या गर्भवती होने पर प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    यदि आप गर्भवती हैं या गर्भवती होने की योजना बना रही हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में बताएं| गर्भावस्था के दौरान प्रेडनिसोलोन को लंबे समय तक लेने से भ्रूण का विकास मंद हो सकता है। प्रेडनिसोलोन को केवल तभी लेना चाहिए जब मां और बच्चे को हानि ना हो।
    क्या बच्चे को स्तनपान करने के दौरान प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    50 मि.ग्रा. प्रतिदिन तक की खुराक शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती| यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान करा रही हैं तो अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इस दवा का उपयोग करें|
    क्या प्रेडनिसोलोन लेने के बाद ड्राइव कर सकते हैं?
    यदि आप निम्न में से कुछ भी अनुभव हो तो इस दवा को लेकर ना तो वाहन चलाएं और ना ही भारी मशीनरी चलायें:
    आलस्य
    सरदर्द
    चक्कर आना
    रक्तचाप में वृद्धि
    यदि प्रेडनिसोलोन अधिक मात्र में लें तो क्या होता है?
    यदि आपने प्रेडनिसोलोन अधिक मात्रा में ली है तो तुरंत अपने डॉक्टर को सूचित करें।
    यदि एक्सपायरी हो चुकी प्रेडनिसोलोन लें तो क्या होता है?
    एक्सपायरी हो चुकी एक खुराक लेने से कोई बड़ा प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो सकता लेकिन दवा की शक्ति कम हो सकती है इसलिए आपको हमेशा एक्सपायरी दवा की जांच करें और कभी भी उपयोग ना करें|
    यदि प्रेडनिसोलोन की खुराक लेनी याद ना रहे तो क्या होता है?
    प्रभावी रूप से काम करने के लिए हर समय आपके शरीर में दवा की एक निश्चित मात्रा का होना जरूरी है| इसलिए जैसे ही आपको याद आये हमेशा अपनी भूली हुई खुराक लें| यदि दूसरी खुराक का पहले से ही समय हो गया हो तो दुगुनी खुराक ना लें|
    प्रेडनिसोलोन का भंडारण
    इसे कमरे के तापमान पर सीधे प्रकाश और गर्मी से 25 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखें।
    इस दवा को फ्रिज में न रखें|
    बोतल खोलने के 1 महीने के बाद तक प्रेडनिसोलोन ओरल सस्पेंशन को खुला न छोड़ें।
    प्रेडनिसोलोन लेते समय टिप्स

    प्रेडनिसोलोन संक्रामक रोगों को विकसित करने के लिए आपकी संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है| इसलिए संक्रामक बीमारियों से पीड़ित लोगों को इससे दूर रहना चाहिए।
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग अचानक या डॉक्टर की सलाह के बिना कभी नहीं रोकना चाहिए।
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग करने के दौरान अतिरिक्त पूरक खुराक लेना जरूरी है जैसे तनाव के समय, शल्य चिकित्सा या संक्रमण के दौरान
    लंबी समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉयड थेरेपी लेने वाले मरीजों को नियमित रूप से नियमित अंतराल पर प्रयोगशाला अध्ययन (2 घंटे के पोस्टप्रैन्डियल ब्लड ग्लूकोज और सीरम पोटेशियम सहित), रक्तचाप, वजन, और छाती का एक्स-रे इत्यादि करवाने चाहिए।


    का लंबे समय तक उपयोग हड्डी के खनिज घनत्व को कम करता है और आंखों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इसलिए नियमित रूप से हड्डी के खनिज घनत्व की परीक्षा और नियमित आंखों की परीक्षा करवाते रहना चाहिए।

    बाल रोगियों के विकास पर नजर रखें|
    प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक उपयोग करने के दौरान हमेशा हाइपोथालेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (एचपीए) एक्सिस सप्रेशन, कुशिंग सिंड्रोम की भी निगरानी करें।
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    किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

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    दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

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    25.11.19

    आयुर्वेदिक चूर्ण का विवरण और फायदे



    हिंग्वाष्टक चूर्ण :

      पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

    व्योषादि चूर्ण

    श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।

    शतावरी चूर्ण : 

    धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।

    स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण 

    (सुख विरेचन चूर्ण) :  हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।

    सारस्वत चूर्ण :  

    दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या या दूध से। 

    सितोपलादि चूर्ण

    पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहद से |

    अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) :

    उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से। 

    अजमोदादि चूर्ण : 

    जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।

    त्रिकटु चूर्ण :

      खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।

    सैंधवादि चूर्ण : 

    अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से। 


    (महा) चूर्ण :
     

    सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ। 

    सुलेमानी नमक चूर्ण

    भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।

    त्रिफला चूर्ण : 

    कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ। 

    श्रृंग्यादि चूर्ण :

      बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।

    माजून मुलैयन :

      हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।

    18.11.19

    ग्रीन टी सेहत के लिए वरदान तुल्य



    ग्रीन टी में अधिक मात्रा में पौषक तत्व पाये जाते है जो हमारे शरीर के प्रतिरक्षातन्त्र को ताकतवर बनाते है| इससे हमारा शरीर विभिन्न तरह के रोगों से लड़ने लिये मजबूत हो जाता है, ग्रीन टी को मॉर्निंग ड्रिंक की तरह उपयोग करने के अलावा इसे हम अलग-अलग के तरह घरेलू नुस्खों और सौंदर्य संबंधी नुस्खों में भी इस्तेमाल करते है--आज हम भी आपसे घर पर ग्रीन टी बनाने की विधि बता रहे हैं जिससे आप भी इसे आसानी से बनाकर तैयार कर सकें तो आईये आज हम स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी (Green Tea) बनायेंगें-सामग्री :-
    ग्रीन टी की पत्ती एक चम्मच या 5 ग्राम
    पानी डेढ कप पावडर 1-2 चुटकी भर
    शकर या शहद एक चम्मच या स्वाद के मुताबिक
    ईलायची

    विधि :-
    ग्रीन टी बनाने के लिये सबसे पहले चाय बनाने की एक तपेली में पानी डालकर गरम करने के लिये गैस पर रखें, जब पानी में उबाल आ जाए तब उबलते हुये पानी में ग्रीन टी पाउडर डालकर गैस बंद दें और तपेली को
    एक प्लेट से ढक दें जिससे ग्रीन टी पाउडर फ्लेवर पानी में अच्छी तरह से आ जाये। करीब 2 मिनट के बाद ग्रीन टी को एक छन्नी की सहायता से एक कप में छानकर निकाल लें और अब इस छनी हुई चाय में अपने स्वाद के अनुसार चीनी या फिर शहद और इलाइची पाउडर को डालकर चम्मच से अच्छी तरह मिला लें । स्वादिष्ट और पौष्टिक ग्रीन टी बनकर तैयार गयी है, आप ग्रीन टी को हल्का गुनगुना या फिर ठंडा करके सर्विंग कप में निकालकर सर्व करें। ग्रीन टी एंटी ऑक्सीडेंट की तरह काम करती है|
    व्यायाम से भी आपको लग रहा है कि आपका वज़न कम नहीं हो रहा, तो आप दिन में ग्रीन टी पीना शुरू करें। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होने की वजह से यह शरीर की चर्बी को खत्म करती है। एक अध्ययन के अनुसार, ग्रीन टी शरीर के वज़न को स्थिर रखती है। ग्रीन टी सिर्फ चर्बी ही कम नहीं होती बल्कि मेटाबॉल्ज़िम भी सुधरता है और पाचक संस्थान की परेशानियां भी खत्म होती हैं। यह मोटापा कम करने के लिये काफी सहायक सिद्ध होती है, इसलिये ग्रीन टी को रोजाना कम से कम एक बार अपनी दिनचर्या में जरूर शामिल करें|
    फ्रेश तैयार हरी चाय शरीर के लिए अच्छी और स्वस्थ्य वर्धक होती है। आप इसे या तो गर्म या ठंडा कर के पी सकते हैं, लेकिन इस बात का यकीन हो कि चाय एक घंटे से अधिक समय की पुरानी ना हो। ज्यादा खौलती गर्म चाय गले के कैंसर को आमंत्रित कर सकती है, तो बेहद गर्म चाय भी ना पिएं। यदि आप चाय को लंबे समय के लिए स्टोर कर के रखेंगे तो, इसके एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स खत्म हो जाएँगे| इसके अलावा, इसमें मौजूद जीवाणुरोधी गुण भी समय के साथ कम हो जाते हैं। वास्तव में, अगर चाय अधिक देर के लिये रखी रही तो यह बैक्टीरिया को शरण देना शुरू कर देगी। इसलिये हमेशा ताजी ग्रीन टी ही पिएं|
    *ग्रीन टी को भोजन से एक घंटा पहले पीने से वजन कम होता है। इसे पीने से भूख देर से लगती है दरअसल यह हमारी भूख को नियंत्रित करती है। ग्रीन टी को सुबह-सुबह खाली पेट बिल्‍कुल भी नहीं पीनी चाहिये|
    दवाई के साथ ग्रीन टी लेना वर्जित है | दवाई को हमेशा पानी के साथ ही लेना चाहिये|
    *ग्रीन टी में गुलाब जल मिलाने से इसमें मौजूद एंटी एजिंग और एंटी कार्सिनोजेनिक (कैंसर विरोधी तत्‍व) लाभ डबल हो जाते हैं। और शरीर में जमा अतिरिक्त टॉक्सिन निकल जाते है। इसे बनाने के लिए ग्रीन टी में एक बड़ा चम्‍मच गुलाब जल का मिलाये। 
    *ज्यादा  तेज ग्रीन टी में कैफीन और पोलीफिनॉल की मात्रा बहुत अधिक  होती है। ग्रीन टी में इन सब सामग्री से शरीर पर खराब प्रभाव पड़ता है। तेज और कड़वी ग्रीन टी पीने से पेट की खराबी, अनिद्रा और चक्‍कर आने जैसी प्राबलेंम  पैदा हो सकती है|
    *ज्यादा  चाय नुक्‍सानदायक हो सकती है। इसी तरह से अगर आप रोजाना 2-3 कप से ज्‍यादा ग्रीन टी पिएंगे तो यह नुक्‍सान करेगी। क्‍योंकि इसमें कैफीन होती है इसलिये तीन कप से ज्‍यादा चाय ना पिएं|
    ग्रीन टी सेवन करने के लाभ 
    *ग्रीन टी (Green Tea) मृत्यु दर को कम करने में सहायक होती हैं -
    *शोध द्वारा ज्ञात हुआ कि ग्रीन टी (Green Tea) पीने वालों को मृत्यु का खतरा अन्य की अपेक्षा कम रहता हैं |*ग्रीन टी (Green Tea) से हृदय रोगियों को राहत मिलती हैं इससे हार्ट अटैक का खतरा कम होता हैं | और आज के समय में हार्ट अटैक से ही अधिक मृत्यु होती हैं जिस पर उम्र का कोई बंधन नहीं रह गया हैं | इस तरह ग्रीन टी मृत्यु दर को कम करती हैं |
    ग्रीन टी कैंसर में भी फायदेमंद होती हैं -
    *एक शौध के अनुसार ग्रीन टी से ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी का खतरा 25 % तक कम होता हैं |यह कैंसर विषाणुओं को मारता हैं और शरीर के लिए आवश्यक तत्व को शरीर में बनाये रखता हैं |
    *ग्रीन टी से वजन कम होता हैं :
    ग्रीन टी से शरीर का मेटाबोलिज्म बढ़ता हैं जिससे उपापचय की क्रिया संतुलित होती हैं और शरीर का एक्स्ट्रा वसा कम होता हैं | और इससे वजन कम होता हैं और साथ ही उर्जा मिलती हैं |
    ग्रीन टी मधुमेह के रोगियों के लिए भी फायदेमंद हैं :ग्रीन टी के सेवन से मधुमेह रोगी के रक्त में शर्करा का स्तर कम होता हैं | मधुमेह रोगी जैसे ही भोजन करता हैं | उसके शर्करा का स्तर बढ़ता हैं इसी लेवल को ग्रीन टी संतुलित करने में सहायक होती हैं |



    ग्रीन टी से रक्त का कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं :
    ग्रीन टी से शरीर का हानिकारक कॉलेस्ट्रोल कम होता हैं और लाभकारी कॉलेस्ट्रोल का लेवल बनाये रखता हैं |ग्रीन टी ब्लडप्रेशर के रोगियों के लिए फायदेमंद हैं :
    ग्रीन टी के सेवन से शरीर का ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता हैं क्यूंकि यह कॉलेस्ट्रोल के लेवल को बनाये रखता हैं |अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसे रोगियों के लिए ग्रीन टी फायदेमंद होती हैं - ग्रीन टी के सेवन से अल्जाईमर एवम पार्किन्सन जैसी बीमारियाँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं |ग्रीन टी ब्रेन सेल्स को बचाती हैं |और डैमेज सेल्स को रिकवर करते हैं |

    ग्रीन टी दांत के लिए भी फायदेमंद होती हैं -
    ग्रीन टी में केफीन होता हैं जो दांतों में लगे कीटाणुओं को मारता हैं, बेक्टेरिया को कम करता हैं | इससे दांत सुरक्षित होते हैं |ग्रीन टी (Green Tea)के सेवन से मानसिक शांति मिलती हैं :
    ग्रीन टी (Green Tea)में थेनाइन होता हैं जिससे एमिनो एसिड बनता हैं जो शरीर में ताजगी बनाये रखता हैं इससे थकावट दूर होती हैं और मानसिक शांति मिलती हैं |
    ग्रीन टी (Green Tea)से स्किन की केयर होती हैं : ग्रीन टी में एंटीएजिंग तत्व होते हैं जिससे चेहरे की झुर्रियां कम होती हैं | और चेहरे पर चमक और ताजगी बनी रहती हैं |इससे सन बर्न ने भी राहत मिलती हैं | स्किन पर सूर्य की तेज किरणों का प्रभाव नहीं पड़ता |
    ग्रीन टी में केफीन की मात्रा अधिक होती हैं अतः इसका अत्यधिक सेवन हानिकारक हो सकता हैं | केफीन की अधिक मात्रा मेटाबोलिज्म बढाती हैं जिससे कई लाभ मिलते हैं जो उपर दिए गये हैं लेकिन अधिक मात्रा में केफीन भी शरीर के लिए गलत हो सकता हैं | खासतौर पर गर्भवती महिला या जो महिलायें गर्भ धारण करना चाहती हैं उनके लिए ग्रीन टी सही नहीं हैं कारण इससे आयरन और फोलिक एसिड कम होता हैं |ग्रीन टी को अदरक, नींबू एवम तुलसी के साथ लेना और भी फायदेमंद होता हैं | ऐसा नहीं हैं कि ग्रीन टी में केफीन होने से इसके सारे गुण अवगुण हो जाए लेकिन किसी भी चीज की अधिकता नुकसान का रूप ले लेती हैं |गर्भावस्था में हरी चाय के फायदे
    ग्रीन चाय गर्भावस्था के दौरान शरीर में लौह, कैल्शियम और मैग्नेशियम की मात्रा की पूर्ती करती है।
    आमतौर पर रात को सोते समय और भूख लगने पर कैफीन नहीं पीना चाहिये। रात को पीने से यह भूख बढ़ाता है और नींद भी ठीक से नहीं आती लेकिन इसके विपरीत गर्भावस्था के दौरान भी रात में हरी चाय पी सकते हैं, क्योंकि इसमें कैफीन की मात्रा कम होती है।

    हाल में हुए शोधों से पता चला है कि हरी चाय बहुत सी कैंसर जैसी भयावह बीमारियों से भी बचाती हैं।
    गर्भावस्था के दौरान हरी चाय रोगों से लड़ने का ना सिर्फ एक अच्छा उपाय है बल्कि इसमें सम्भावित रोगों से लड़ने की शक्ति भी है। यानी गर्भावस्था के दौरान होने वाली किसी भी संक्रमित बीमारी से बचाने का काम हरी चाय करती है।
    गर्भावस्था के दौरान दांतों और मसूड़ों की कई तरह की समस्याएं हो जाती हैं और कई अध्ययनों के अनुसार दांतों के लिए ग्रीन-टी काफी लाभदायक है।गर्भावस्था के दौरान तरोताजा महसूस करवाने और चुस्त-दुरूस्त रखने में हरी चाय फायदेमंद है|
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