29.8.23

हाथ पैर कम्पन के घरेलु आयुर्वेदिक उपाय

 



पार्किंसन रोग (Parkinson’s disease or PD) में शरीर में कंपन होता है। रोगी के हाथ-पैर कंपकंपाने लगते हैं। पूरे विश्व विश्व में पार्किंसन रोगियों की संख्या 60 लाख से ज़्यादा है, अकेले अमेरिका में इस रोग से प्रभावित लोगों की संख्या लगभग दस लाख है। आमतौर पर यह बीमारी 50 वर्ष की उम्र के बाद होती है। वृद्धावस्था में भी हाथ-पैर हिलने लगते हैं, लेकिन यह पता कर पाना कि यह पार्किंसन है या उम्र का असर, सामान्य व्यक्ति के लिए मुश्किल है। पार्किंसन यदि है तो शरीर की सक्रियता कम हो जाती हैं, मस्तिष्क ठीक ढंग से काम नहीं करता है।
यह बीमारी होती इसीलिए है कि मस्तिष्क में बहुत गहरे केंद्रीय भाग में स्थित सेल्स डैमेज हो जाते हैं। दिमाग़ के ख़ास हिस्से बैसल गैंग्लिया ( Basal ganglia disease) में स्ट्रायटोनायग्रल नामक सेल्स होते हैं। सब्सटेंशिया निग्रा ( Substantia nigra ) की न्यूरान कोशिकाओं की क्षति होने से उनकी संख्या कम होने लगती है। आकार छोटा हो जाता है। स्ट्राएटम तथा सब्सटेंशिया निग्रा नामक हिस्सों में स्थित इन न्यूरान कोशिकाओं द्वारा रिसने वाले रासायनिक पदार्थों (न्यूरोट्रांसमिटर) का आपसी संतुलन बिगड़ जाता है। इस वजह से शरीर का भी संतुलन बिगड़ जाता है।
कुछ शोधों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह बीमारी वंशानुगत भी हो सकती है। इस रोग को ख़त्म करने वाली दवाइयां अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन दवाइयों से इसकी रोकथाम संभव है। इस बीमारी के लिए एम्स में अब डीप ब्रेन स्टिम्युलेशन सर्जरी (Deep brain stimulation surgery, AIIMS, India) होने लगी है।

➡ पार्किंसन रोग के लक्षण :

पार्किंसन रोग में पूरा शरीर ख़ासतौर से हाथ-पैर तेज़ी से कंपकंपाने लगते हैं। कभी कंपन ख़त्म हो जाता है, लेकिन जब भी रोगी व्यक्ति कुछ लिखने या कोई काम करने बैठेगा तो पुन: हाथ कांपने लगते हैं। भोजन करने में भी दिक्कत होती है। कभी-कभी रोगी के जबड़े, जीभ व आंखे भी कंपकंपाने लगती हैं। इसमें शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है। चलने-फिरने में दिक्कत होने लगती है। रोगी सीधा नहीं खड़ा हो पाता। कप या गिलास हाथ में पकड़ नहीं पाता। ठीक से बोल नहीं पाता, हकलाने लगता है। चेहरा भाव शून्य हो जाता है। बैठे हैं तो उठने में दिक्कत होती है। चलने में बाँहों की गतिशीलता नहीं दिखती, वे स्थिर बनी रहती हैं। जब यह रोग बढ़ता है तो नींद नहीं आती है, वज़न गिरने लगता है, सांस लेने में तकलीफ़, कब्ज़, रुक-रुक कर पेशाब होना, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना व सेक्स में कमी जैसी कई समस्याएं घेर लेती हैं। साथ ही मांसपेशियों में तनाव व कड़ापन, हाथ-पैरों में जकड़न होने लगती है, ऐसी अवस्था में किसी योग्य चिकित्सा से परामर्श लेना ज़रूरी होता है।
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन एक दिमाग का रोग है जो लम्बे समय दिमाग में पल रहा होता है। इस रोग का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है।
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर कंपकंपाने लगते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण कम होकर खत्म हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित बहुत से रोगियों में हाथ तथा पैरों के कंप-कंपाने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वह लिखने का कार्य करता है तब उसके हाथ लिखने का कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।

कारण-

इस बीमारी का कारण हर व्यक्ति में अलग होता है। दिमाग के कुछ हिस्सों में न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल होते हैं। यह केमिकल पूरे शरीर या किसी विशेष हिस्से की मांसपेशियों को नियंत्रित करते हैं।
जब यह केमिकल लीक होने लगते हैं तो ट्रेमरनाम की समस्या सामने आती है। मांसपेशियों के असामान्य होने के कारण भी यह समस्या पैदा होती है। यह समस्या न्यूरोडीजेनरेटीव बीमारी के कारण भी होती है। इसके अलावा अन्य कारणों जैसे अधिक मात्रा में शराब पीना, लीवर का खराब हो जाना, पार्किंसन, थाइराइड , मेंटल डिसआर्डर, कैल्शियम, पोटाशियम की भी इस समस्या का कारण बन सकती है। कई बार यह समस्या वंशानुगत भी होती है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (Parkinson’s disease)

यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।

hath pair kampana 

जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (parkinson’s disease )के लक्षण कारण और उपचार

*शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन एक दिमाग का रोग है जो लम्बे समय दिमाग में पल रहा होता है। इस रोग का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है।

hath pair kampana 

*जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर कंपकंपाने लगते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण कम होकर खत्म हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित बहुत से रोगियों में हाथ तथा पैरों के कंप-कंपाने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वह लिखने का कार्य करता है तब उसके हाथ लिखने का कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।
*यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
*बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
*जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग के लक्षण : Parkinson’s disease  Symptoms :- 

आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो ।
चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नज़र आते हैं।
खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं।

hath pair kampana 

हाथों से कौर टपकता है। मुंह से पानी-लार अधिक निकलने लगता है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है।
आवाज़ धीमी हो जाती है तथा कंपकंपाती, लड़खड़ाती, हकलाती तथा अस्पष्ट हो जाती है, सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है और रोगी व्यक्ति चुपचाप बैठना पसन्द करताहै।
नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमज़ोरी, पसीना अधिक आता है।
उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत, डगमगापन आदि

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन (Parkinson’s disease)

यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। 
प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग के लक्षण : Parkinson’s disease

आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो ।
चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नज़र आते हैं।
खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं।

hath pair kampana: 

हाथों से कौर टपकता है। मुंह से पानी-लार अधिक निकलने लगता है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है।
आवाज़ धीमी हो जाती है तथा कंपकंपाती, लड़खड़ाती, हकलाती तथा अस्पष्ट हो जाती है, सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है और रोगी व्यक्ति चुपचाप बैठना पसन्द करताहै।
नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमज़ोरी, पसीना अधिक आता है।
उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत, डगमगापन आदि
*किसी प्रकार से दिमाग पर चोट लग जाने से भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो सकता है। इससे मस्तिष्क के ब्रेन पोस्टर कंट्रोल करने वाले हिस्से में डैमेज हो जाता है।
*कुछ प्रकार की औषधियाँ जो मानसिक रोगों में प्रयुक्‍त होती हैं, अधिक नींद लाने वाली दवाइयों का सेवन तथा एन्टी डिप्रेसिव दवाइयों का सेवन करने से भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
अधिक धूम्रपान करने, तम्बाकू का सेवन करने, फास्ट-फूड का सेवन करने, शराब, प्रदूषण तथा नशीली दवाईयों का सेवन करने के कारण भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
*शरीर में विटामिन `ई´ की कमी हो जाने के कारण भी पार्किन्सन रोग (Parkinson’s disease) हो जाता है।
तरह -तरह के इन्फेक्शन — मस्तिष्क में वायरस के इन्फेक्शन (एन्सेफेलाइटिस) ।
*मस्तिष्क तक ख़ून पहुंचाने वाले नलियों का अवरुद्ध होना ।
*मैंगनीज की विषाक्तता।
हाथ पांव कापने का घरेलु उपचार
यहाँ कुछ घरेलु उपाय दिए गए हैं जो की आपके शरीर के कम्पन की समस्या को काफी हद  तक कम करने में सक्षम हो सकते हैं|*कुछ चाय जैसे chamomile, laung और lavandula आदि पीने से आपके दिमाग में शान्ति बनती है और दिमाग की तंत्रिकाओं को आराम मिलता है इसके फलसवरूप मानसिक तनाव में कमी आती है| यदि आपको मानसिक तनाव और टेंशन के कारण हाथ काम्पने की शिकायत है तो आज से ही इन चाय का सेवन करना शुरू कर दीजिये| 

*तगार की जड़ nerves और दिमाग को शांत करने वाले और अनिद्रा दूर करने वाले गुण होते हैं| तगार की जड़ की चाय रोजाना दिन में २-३ बार पीने से हाथ पांव काम्पने में काफी आराम मिलता है|
विटामिन B की कमी होने से भी कम्पन और दिमाग के कार्यों में बाधा पड़ने की समस्या हो सकती है इसलिए जरुरी सप्लीमेंट लीजिये साथ ही फल, सब्जियां, दाल, बीन्स, अंडा आदि से जरुरी विटामिन्स और मिनरल्स प्राप्त कीजिये|
   * ध्यान और योग के साथ अपने दिन की शुरुवात कीजिये क्योंकि इससे आपका दिमाग रिलैक्स होगा और मानसिक तनाव, अनिद्रा की परेशानी दूर होगी|  आप कुछ देर दिन में सुबह और शाम रनिंग या जॉगिंग करके अपने दिमाग को कण्ट्रोल में रख सकते हैं
*शराब, मैदा जैसी refined शुगर से दूर रहे क्योंकि refiend शुगर आपके खून में ग्लूकोस का स्तर असंतुलित करते हैं जिससे आपके शरीर में कम्पन की समस्या पैदा होती

25.8.23

बार बार में सांस फूलने की तकलीफ के कारण और उपचार ,frequent shortness of breath

 


सांस की समस्या बुजुर्गों के साथ कम उम्र के युवाओं में भी देखने को मिल रही है. ऐसे में यह जानना बहुत आप के लिए जरूरी है आखिर ऐसा हो क्यों रहा है?
आमतौर पर अधिक समय तक एक्सरसाइज करने से सांसे तेज हो जाती हैं, कई लोगों को सीढ़ियां चढ़ने वक्त सांस में दिक्कत की समस्या का सामना करना पड़ता है कई बार ज्यादा तनाव में रहने कारण भी ऐसी दिक्कत हो जाती है. यह देखा गया है कि ऐसी स्थितियों में जल्दी ही सब नॉर्मल भी हो जाता है. अगर आप को भी सांस लेने में परेशानी हो रही है और उपर्युक्त परेशानी हो रही है तो ध्यान देना बहुत जरूरी है. 

कहीं हृदय रोग तो नहीं

दिल की बीमारियों के चलते भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. दिल के रोग मसलन, एन्जाइना, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, जन्मजात दिल में परेशानी या एरीथीमिया आदि में सांस लेने में दिक्कत होने लगती है. दिल की मांसपेशियां कमजोर होने पर वे सामान्य गति से पंप नहीं कर पातीं, जिससे फेफड़ों पर दबाव बढ़ जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है. इसमें पैरों में भी सूजन और रात सोते वक्त बार-बार खांसी भी आती है.

जब वजन हो ज्यादा


मोटे लोगों को सांस फूलने की बहुत ही ज्यादा समस्या रहती है. वजन बढ़ जाने के कारण सांस के लिए मस्तिष्क से आने वाले निर्देश का पैटर्न बदल जाता है. सीढ़ियां चढ़ते-उतरते वक्त, अक्सर इन की सांसें फूलने लगती हैं. यह सब मोटापे के कारण होता है. जिसका वजन जितना ज्यादा होता है, उसे सांस लेने में उतनी ही दिक्कत होती है.

सांस की तकलीफ क्या है? 

सांस की तकलीफ या डिस्पेनिया एक असहज स्थिति है जहां लोगों को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। हृदय और फेफड़ों के विकार हवा को पूरी तरह से फेफड़ों में जाने से रोक सकते हैं और सांस लेने में परेशानी का कारण बन सकते हैं।

डिस्पेनिया की समस्या हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है और इस स्थिति की अवधि लगभग कुछ घंटों से लेकर कुछ दिनों तक और कभी-कभी लगभग कुछ हफ्तों तक रह सकती है। यह आमतौर पर एक गंभीर चिकित्सा स्थिति का चेतावनी संकेत है।

ज्यादातर बार सांस की तकलीफ किसी अन्य मेडिकल इमरजेंसी के साइड इफेक्ट के रूप में होती है। हृदय और फेफड़ों के विकारों के अलावा, सांस की तकलीफ एनीमिया के परिणामस्वरूप, हाइपरवेंटिलेशन के परिणामस्वरूप या धूम्रपान की आदतों या हवा में प्रदूषकों के कारण हो सकती है जो जलन पैदा करती हैं।
अक्सर आपने देखा होगा कि कई लोगों को अचानक से सांस की तकलीफ होने लगती हैं और वे ठीक से सांस भी नहीं ले पाते हैं। इसका कारण कई बार अस्थमा की परेशानी बनता हैं लेकिन इसके अलावा भी कई ऐसी बीमारियाँ है जिनसे सांस की तकलीफ जुड़ी हुई होती हैं। ऐसे में यह तकलीफ होने पर जल्द चिकित्सकीय परामर्श लेना जरूरी होता हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं उन बिमारियों के बारे में जो सांस की तकलीफ से जुड़ी हुई होती हैं। तो आइये जानते हैं।

* पल्नोमरी हाइपरटेंशन

अगर आपकी सांस फूल रही है, चक्कर आ रहे हैं, थकान या सीने में दर्द है तो यह पल्नोमरी हाइपरटेंशन का संकेत हो सकता है। इसमें फेफड़े में जाने वाली आर्टरी में ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इस कारण आप दिल की बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

* गुर्दे फेल होना


सांस लेने में तकलीफ हो रही है तो ये गुर्दे फेल होने का संकेत होता है। गुर्दे के फेल हो जाने के कारण रक्त में यूरिया का स्तर बढ़ जाता है। इससे मुह में अमोनिया ब्रेथ के कारण बदबू आने लगती है। मुंह का स्वाद भी खराब होने लगता है।

* फिजिकल वर्क करने में दिक्कत

मोटे लोगों को अक्सर फिजिकल वर्क करने में दिक्कत होती है। गले और छाती के आसपास जमा अतिरिक्त चर्बी के कारण सांस लेने में दिक्कत होती है। ऐसे लोगों की सांस में मेथेन और हाइड्रोजन गैस की मात्रा बढ़ जाने के कारण भी सांस लेने में समस्या आने लगती है। ऐसे में डॉक्टर को तुरंत दिखाना चाहिए।

* डायबटीज

डायबटीज के मरीज जिन ग्लूकोमीटर्स के लिए जिन स्ट्रिप्स का इस्तेमाल करते है वो एक बार इस्तेमाल करके फैंक देना चाहिए। इससे आपको डायबटीज के साथ-साथ अस्थना होने का भी डर रहता है। इसके अलावा इसके दोबारा इस्तेमाल से सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

क्या है सीओपीडी के लक्षण

सीओपीडी एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरुआती समय में पता ही नहीं चलता. इसके लक्षण अक्सर तब तक प्रकट नहीं होते हैं जब तक कि पूरी तरह से फेफड़ों खराब ना हो जाएं. हालांकि वे आमतौर पर समय के साथ खराब हो जाते हैं, खासकर अगर धूम्रपान करना आप जारी रखते है तो. क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के के मुख्‍य लक्षण में रोजाना की खांसी और बलगम का उत्पादन शामिल है यह लगातार दो साल तक या कम से कम तीन महीने तक होता है.
3. कैसे पहचाने सीओपीडीसांस की तकलीफ, खासकर शारीरिक गतिविधियों के दौरान
घरघराहट
सीने में जकड़न
आपके फेफड़ों में अतिरिक्त बलगम
होंठ या नाखूनों का नीलापन (सायनोसिस)
बार-बार श्वसन संबंधी संक्रमण
शक्ति की कमी
वजन में कमी (बाद के चरणों में)
टखनों, पैरों या पैरों में सूजन

 सीओपीडी के कारण

विकसित देशों में सीओपीडी का मुख्य कारण तंबाकू धूम्रपान है. विकासशील देशों में, सीओपीडी अक्सर खराब हवादार घरों में खाना पकाने और हीटिंग के लिए जलने वाले ईंधन से धुएं के संपर्क में आने वाले लोगों में होता है.
केवल 20 से 30 प्रतिशत लोग जो लंबे समय से धूम्रपान कर रहे हैं उनमें स्‍पष्‍ट रूप से सीओपीडी विकसित हो सकता है. हालांकि लंबे धूम्रपान इतिहास वाले लोगों में धूम्रपान से फेफड़ों के कार्यों में बाधा पैदा करते है.
5. किन लोगों को हो सकता है सीओपीडी रोग धूम्रपान करने वालों के संपर्क में रहने वालों को ये समस्‍या हो सकती है।
जो लोग अस्‍थमा से पीडि़त हैं और स्‍मोक करते हैं।
ऐसे लोग जो केमिकल और धुएं युक्‍त फैक्ट्रियों के आस-पास रहते हैं।
कुछ लोगों की थोड़ा सा काम करने पर, दौड़ने पर या सीढ़ियां चढ़ते हुए सांस फूलने लगती है। हल्की-फुल्की मेहनत करने पर ही सांस फूलने लगना कमजोर फेफड़ों की निशानी है। हालांकि ऐसा कई बार जुकाम या किसी वायरल इंफेक्शन के कारण भी हो सकता है। दरअसल जुकाम या इंफेक्शन होने पर श्वांसनली के अंदरूनी हिस्से मे सूजन आ सकती है, जिससे आपके फेफड़ों तक पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ महसूस होने लगती है या सांस उखड़ने लगती है। इस तरह की समस्या अलग लंबे समय तक होती रहे, तो आपको डॉक्टर से मिलकर इसका इलाज कराना चाहिए। लेकिन अगर कभी-कभार ऐसी समस्या होती है, तो आप कुछ घरेलू उपायों को अपनाकर भी राहत पा सकते हैं।

आगे की ओर झुककर बैठें या पंखे के सामने बैठें

अगर आपको अचानक कभी सांस की तकलीफ होने लगती है या सांस की गति तेज हो जाती है, तो आपको तुरंत आसपास मौजूद किसी कुर्सी या बेंच पर बैठ जाना चाहिए और आगे की तरफ झुक कर कंफर्टेबल पोजीशन में थोड़ी देर रहना चाहिए, ताकि मसल्स रिलैक्स हो जाएं और सांस लेने में हुई तकलीफ तुरंत दूर हो जाए।
एक अध्ययन में बताया गया है कि सांस लेने में तकलीफ होने पर पंखे के सामने बैठने पर आराम मिलता है। इसका कारण यह है कि तेज चल रहे पंखे के सीधे सामने बैठने से आपके द्वारा खींची गई सांस में एक फोर्स होता है, जिससे हवा शरीर में ज्यादा मात्रा में पहुंचती है और आपकी तकलीफ दूर हो जाती है।

अदरक वाली चाय पिएं

अदरक में एंटी-इंफ्लेमेट्री, एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जिसके कारण इसका सेवन करने से आपके गले और श्वांसनली की सूजन कम होती है और जमा हुआ बलगम भी पिघलकर निकल जाता है। इसीलिए जुकाम, खांसी में अदरक की चाय बहुत फायदेमंद मानी जाती है। सांस की तकलीफ होने पर आपको अदरक की चाय पीनी चाहिए। इसे बनाने के लिए एक पैन में पानी के साथ अदरक उबालें और इसे पिएं।

ब्लैक कॉफी पिएं

सांस लेने की तकलीफ होने पर ब्लैक कॉफी पीना आपके लिए फायदेमंद होता है। कॉफी में कैफीन होता है, जो कि आपके मस्तिष्क को उत्तेजित करता है। इसके अलावा ये मसल्स को रिलैक्स भी करता है। सांस की तकलीफ श्वांसनली की मांसपेशियों में सूजन के कारण भी होती है। इसलिए अगर आपको सांस लेने में तकलीफ हो, तो गर्म-गर्म ब्लैक कॉफी पिएं। इससे आपको तुरंत राहत मिलेगी। लेकिन ध्यान रखें कि कॉफी का सेवन बहुत ज्यादा भी न करें क्योंकि इसका असर आपके हार्ट रेट पर बुरा पड़ेगा। दिनभर में 3 कप से ज्यादा ब्लैक कॉफी न पिएं।

लेट कर गहरी सांस लें

अगर आपको सांस लेने में तकलीफ महसूस हो या सांस उखड़ती हुई महसूस हो, तो जहां भी हैं वहां तुरंत जमीन पर सीधा लेट जाएं और अपना हाथ पेट पर रखें। इसके बाद नाक से जोर से इतनी जोर से सांस खींचें कि आपका पेट फूल आए। इस सांस को कुछ सेकेंड तक रोक कर रखें और फिर मुंह के रास्ते से सांस को बाहर छोड़ दें। इस तरह कई बार करने से आपके सांस की तकलीफ तुरंत दूर हो जाएगी। अगर फिर भी सांस की समस्या है, तो इमरजेंसी मेडिकल सहायता लें।
कई बार बंद नाक या अधिक बलगम जमा होने के कारण भी सांस की समस्या हो जाती है। इसलिए अगर आपको ऐसी तकलीफ बीते कुछ दिनों से हो रही है, तो आप बलगम को बाहर निकालने के लिए और एयर पैसेज को क्लियर करने के लिए स्टीम भी ले सकते हैं। स्टीम लेने के लिए एक चौड़े मुंह वाले बर्तन को ढककर पानी देर तक उबालें, ताकि इसमें पर्याप्त भाप बन जाए। इसके बाद इस पानी को जमीन पर रखें और ढक्कन हटाकर भाप को अपने नाक, गले और सीने के हिस्से में लें। अगर घर में कोई एसेंशियल ऑयल तो उसे भी इसमें डाल लें। इससे आपको तुरंत बंद नाक से राहत मिलेगी और सांस लेने में होने वाली तकलीफ दूर हो जाएगी।

प्राणायाम- 

इससे सांस की समस्याओं से निपटने में मदद मिलती है। यह गंभीर सीओपीडी मरीजों के इलाज में लाभकारी साबित हुआ है। अध्ययन का कहना है कि प्राणायाम सीओपीडी मरीजों के उपचार के लिए सहायक हो सकता है।

हंसना- 

लाफ्टर थेरेपी तनाव को कम करके जर्नल वेलनेस को बढ़ावा देती है। लेकिन सीओपीडी रोगियों में यह फेफड़ों की इलास्टिसिटी और मूड में भी सुधार कर सकता है।


गाना- 

सांस की समस्या से निपटने के लिए सीओपीडी रोगियों के लिए गाना एक बेहतर थेरेपी है। इस दौरान आपको सांस पर कंट्रोल करना पड़ता है जिससे उसकी एक्सरसाइज होती है और फेफड़े मजबूत बनते हैं।
-जो लोग बहुत अधिक तनाव में रहते हैं, उन्हें अक्सर सांस लेने में समस्या होती है। वे या तो बहुत जल्दी-जल्दी सांस लेते हैं या सीने में भारीपन का अहसास होने के कारण उनकी सांस लेने की गति बहुत धीमी होती है।
-इन दोनों ही स्थितियों में उनकी सांस बहुत छोटी होती है। इस कारण उनके फेफड़ों में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है और इससे सांस लेने में दिक्कत होती है।

अधिक वजन 

जिन लोगों का वजन बहुत अधिक होता है, उन्हें भी सांस लेने में दिक्कत होती है। क्योंकि इन लोगों का सांस बहुत अधिक फूलता है। सांस फूलने के कारण ब्रिदिंग पैटर्न डिस्टर्ब होता है और लंग्स में पूरी ऑक्सीजन सप्लाई नहीं हो पाती है
यदि आपको फेफड़ों में इंफेक्शन या सीने में भारीपन की समस्या है तो बिना समय गवाएं एक बार डॉक्टर से जरूर जांच कराएं।
-आयुर्वेदिक काढ़े और हर्बल चाय का नियमित उपयोग करें। दिन में गर्म पानी का सेवन करें। इसके आपको काफी राहत मिलेगी।
-प्राणायाम, ध्यान और योग करें। वॉकिंग और रनिंग करें। इससे आपको अपने लंग्स को मजबूत बनाने में सहायता मिलेगी।
-दिन के समय कम से कम 2 घंटे के लिए घर के सभी खिड़की और दरवाजे खोलकर रखें और एग्जॉस्ट फैन ऑन करें। इससे आपके घर की दूषित हवा बाहर जाएगी और ताजी हवा घर में आएगी। इस एयर सर्कुलेश से घर में घुटन कम होगी।

सूजन और इंफेक्शन के कारण छोटी सांसे



-सांस की नली में सूजन, किसी इंफेक्शन या किसी अन्य कारण से जब ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में शरीर के अंदर प्रवेश नहीं कर पाती है तो आपकी सांसे छोटी होने लगती हैं।
-यानी आप पहले जितनी गहरी और लंबी सांसें लेते थे, उनकी अपेक्षा आपकी सांसों की अवधि छोटी होने लगती है। यह बीमारी अगर लंबे समय से चली आ रही है तो अस्थमा, निमोनिया या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का लक्षण हो सकती है।

23.8.23

बढती उम्र में घुटनों में ग्रीस (Greece in the knees) बढाने के उपाय

 


आजकल अधिकतर लोग जोड़ों में दर्द की शिकायत करते हैं। पहले जोड़ों में दर्द की शिकायत अधिकतर बुजुर्ग लोग किया करते थे, लेकिन आजकल वयस्कों को भी जोड़ों का दर्द परेशान कर रहा है। वैसे तो जोड़ों या घुटनों में दर्द होने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं। लेकिन घुटनों में ग्रीस कम होना इसका सबसे मुख्य कारण माना जाता है। उम्र बढ़ने के साथ घुटनों का ग्रीस भी कम होने लगता है। घुटनों में ग्रीस कम होने के कारण चलने पर घुटनों से कट-कट की आवाज आने लगती है। जब घुटनों में ग्रीस कम होता है, तो इस दौरान व्यक्ति को चलने, उठने, बैठने और लेटने में परेशानी होने लगती है। ऐसे में लोग घुटनों का ग्रीस बढ़ाने के लिए तरह-तरह की दवाइयों का सहारा लेते हैं। लेकिन आप चाहें तो कुछ उपायों की मदद से भी घुटनों के ग्रीस को बढ़ाया जा सकता है।
घुटने में चटकने या चटकने की आवाज, जकड़न या दर्द, श्लेष द्रव में कमी का संकेत हो सकता है। यदि इसका इलाज नहीं किया गया तो यह घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारण बन सकता है।
श्लेष द्रव या आम तौर पर संयुक्त द्रव के रूप में जाना जाता है, इसमें मोटी और चिपचिपी स्थिरता होती है, जो घर्षण को कम करने के लिए घुटने के जोड़ में स्नेहक के रूप में कार्य करता है और एक सदमे अवशोषक के रूप में कार्य करता है, जो हमारे शरीर की गति में मदद करता है। उठना, बैठना या खड़ा होना सहजता से किया जा सकता है। सिनोवियल द्रव घुटने के जोड़ पर दबाव को भी कम करता है क्योंकि यह चलने या दौड़ने के दौरान हड्डी की सतह के सिरों को मुलायम बनाता है।
स्वाभाविक रूप से हमारा शरीर स्वयं ही श्लेष द्रव का उत्पादन करता है। जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, हमारा शरीर ख़राब होने लगता है और घुटनों में जोड़ों के तरल पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है। ऐसे अन्य कारक भी हैं जिनके कारण द्रव जल्दी सूख जाता है। चाहे वह अधिक वजन हो, घुटने की चोट या आघात हो जिसने घुटने के जोड़ में द्रव उत्पादन की क्षमता को गंभीर रूप से प्रभावित किया हो या घुटनों की गलत शारीरिक गतिविधि, जैसे कि करवट से बैठना या नियमित रूप से घुटनों को मोड़ना। कुछ पुरानी बीमारियाँ जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, या गठिया जैसे गठिया या गठिया भी श्लेष द्रव के सूखने का कारण बनने वाले कुछ कारक हैं।
वेजथानी अस्पताल में घुटने और कूल्हे की रिप्लेसमेंट सर्जरी में विशेषज्ञता रखने वाले आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. प्रेमस्टीन सिरिथानापिपट ने खुलासा किया कि सूखे सिनोवियल तरल पदार्थ के परिणामस्वरूप घुटने में दर्द और कठोरता हो सकती है। घुटने के जोड़ के ख़राब होने या चोट लगने पर घुटने की टोपी में तेज़ आवाज़ आना, ख़ासकर चलने या झुकने पर, घुटने की सतह के आसपास सूजन या लालिमा जैसे लक्षण होते हैं। यदि इसका शीघ्र उपचार न किया जाए, तो यह संभावित रूप से ऑस्टियोआर्थराइटिस का कारण बन सकता है।

"दवा के उपयोग के अलावा, घुटने के जोड़ में श्लेष द्रव को बढ़ाने के लिए, डॉक्टर दर्द को कम करने के लिए जोड़ के बीच उपास्थि और खोखले स्थान में हयालूरोनिक एसिड या कृत्रिम तरल पदार्थ को इंजेक्ट करने पर विचार करेंगे, जिसकी संरचना प्राकृतिक श्लेष द्रव के समान होती है। सूजन, सूजन, घर्षण और घुटने की गतिशीलता में सुधार होता है। परिणाम लगभग 6-12 महीनों तक प्रभावी रह सकते हैं। कृत्रिम श्लेष द्रव के अलावा, क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत, चोट का इलाज और सूजन को कम करने के लिए एक अन्य उपचार विकल्प प्लेटलेट-समृद्ध प्लाज्मा या पीआरपी इंजेक्शन है। यह उपचार रोगी के स्वयं के रक्त का उपयोग करता है और एक सघन स्थिरता के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरता है और इसे घुटने के जोड़ में वापस इंजेक्ट करता है। प्रत्येक उपचार विकल्प रोगी की स्थिति और डॉक्टर के मूल्यांकन पर भिन्न होता है", डॉ. प्रेमस्टियन ने कहा।
सूखे श्लेष द्रव की स्थिति के निदान में इतिहास लेना और घुटने की शारीरिक विकृति की जांच शामिल है। डॉक्टर घुटने के जोड़ में तरल पदार्थ के दबाव का पता लगाने के लिए बैलेटमेंट परीक्षण करेंगे और घुटने की सतह पर पानी की लहर के दबाव को देखने के लिए बैलून साइन की तलाश करेंगे, ताकत या स्थिरता, आंतरिक घर्षण या क्रेपिटेशन की जांच करेंगे और साथ ही एक्स- प्रदर्शन करेंगे। जोड़ की क्षति की जांच करने के लिए किरण। प्रत्येक नैदानिक ​​परीक्षण डॉक्टर के मूल्यांकन पर निर्भर करता है। उन रोगियों के लिए जिनका श्लेष द्रव सूख गया है और उन्होंने चिकित्सीय सलाह नहीं ली है, जिसके परिणामस्वरूप इलाज नहीं किया गया है, जब तक कि यह घुटने के ऑस्टियोआर्थराइटिस के गंभीर चरण तक नहीं पहुंच जाता है। उपरोक्त उपचार विकल्प उतने प्रभावी नहीं हो सकते जितने होने चाहिए और डॉक्टर को सर्जिकल उपचार पर विचार करना पड़ सकता है।
अगर आपको घुटनों में दर्द, चलने-फिरने में दिक्कत हो, तो इस स्थिति में आप रंग-बिरंगी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। इसके साथ ही ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करना भी शुरू कर देना चाहिए। इसके लिए आप अपनी डाइट में प्याज, लहसुन, ग्रीन टी, जामुन और हल्दी को शामिल कर सकते हैं। ड्राई फ्रूट्स और सीड्स भी घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
घुटने खराब होने के लक्षण

घुटने खराब होने के कुछ निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं:

घुटने वाली जगह या पैरो में सुजन आना.
चलते-फिरते समय घुटनों में दर्द होना.
घुटनों का चटकना.
घुटनों में अकडन जैसा महसूस होना.
उठते या बैठते समय भी घुटनों में दर्द होना.

रेगुलर एक्सरसाइज करें

जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए रेगुलर एक्सरसाइज करना भी बहुत जरूरी होता है। रोजाना एक्सरसाइज करके घुटनों के ग्रीस को बढ़ाया जा सकता है। एक्सरसाइज करने से घुटनों में ग्रीस बनता है। इसके लिए आप स्ट्रेचिंग, स्ट्रेंथ ट्रेनिंग, क्वाड्रिसेप, स्क्वाट्स और हील राइज आदि एक्सरसाइज कर सकते हैं। इसके अलावा आप वॉर्मअप कर सकते हैं।

सप्लीमेंट्स ले सकते हैं

जब घुटनों का ग्रीस कम होने लगता है, तो डॉक्टर आपको कुछ सप्लीमेंट लेने की सलाह दे सकते हैं। इसलिए अगर आपको भी अकसर घुटनों में दर्द रहता है, आपके घुटनों का ग्रीस खत्म हो गया है, तो आप कुछ सप्लीमेंट्स ले सकते हैं। घुटनों का ग्रीस बढ़ाने के लिए आप ओमेगा-3 फैटी एसिड, कोलेजन और अमिनो एसिड सप्लीमेंट ले सकते हैं। ये सभी सप्लीमेंट्स हड्डियों के बीच ऊतक बनाने में मदद करते हैं। इससे ग्रीस बढ़ता है और घुटने मजबूत बनते हैं। लेकिन कोई भी सप्लीमेंट बिना डॉक्टर की सलाह के बिल्कुल न लें।

नारियल पानी पिएं

नारियल पानी संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। अगर आपको घुटनों में दर्द रहता है, तो भी आप नारियल पानी का सेवन कर सकते हैं। नारियल पानी पीने से घुटनों का लचीलापन बढ़ता है। दरअसल, नारियल पानी में विटामिन्स और मिनरल्स पाए जाते हैं। नारियल पानी हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।

अखरोट घुटने का ग्रीस बढ़ाने में उपयोगी
घुटने का ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट बहुत फायदेमंद होता हैं. अखरोट में कैल्शियम, बी-6, मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, विटामिन इ, फैट आदि प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. जो घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में हमारी मदद करते हैं. घुटने का ग्रीस बढ़ाने का यह सबसे सरल और आसान उपाय हैं. आपको सिर्फ रोजाना दो अखरोट का सेवन सुबह के समय करना हैं. इससे आपके घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगेगा.

हरसिंगार के पत्ते घुटने का ग्रीस बढ़ाने में उपयोगी

घुटने की ग्रीस बढाने के लिए हरसिंगार के पत्ते बहुत ही फायदेमंद होते हैं. जिसे नाईट जैस्मीन या पारिजात के नामसे भी जाना जाता हैं. हरसिंगार के पत्तो में ग्लुकोसाइड, मैथिल सिलसिलेट तथा टेनिक एसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं. जो घुटनों का ग्रीस बढ़ाने में हमारी मदद करते हैं.
इसके लिए आप ३-४ हरसिंगार के पत्तो को पीसकर पेस्ट बना लीजिए. अब एक बड़ा गिलास पानी लीजिए और पेस्ट को पानी में डालकर उबालने के लिए रख दीजिए. जब तक पानी आधा नहीं हो जाता तब तक उबालते रहिए. पानी उबालने के बाद छान लीजिए. जब पानी ठंडा हो जाए. तो इस पानी का सेवन सुबह खाली पेट रोजाना कीजिए. कुछ ही दिनों में आपको रिजल्ट दिखाई देगा.

घुटनों के दर्द के लिए तेल

अगर आपके घुटनों में दर्द है. तो सरसों का तेल, जैतून का तेल तथा नारियल का तेल घुटनों के दर्द से छुटकारा दिलवाने में मदद कर सकता हैं. इनमें से किसी भी एक तेल से घुटनों की रोजाना हल्के हाथ से मालिश करने से फायदा होता हैं.

घुटने मजबूत करने के लिए क्या खाएं

घुटनों को मजबूत करने के लिए बादाम, अखरोट, अंजीर, पालक, सलाद, रागी, दलिया आदि को अपने डायट में शामिल करना चाहिए.


घुटनों के दर्द में कौन सा फल खाना चाहिए?


पपीता एक ऐसी फल है जिसमें कई सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसे खाने से शरीर के कई रोगों दूर भाग जाते हैं. पपीते को आप डेली डाइट में शामिल कर सकते हैं. इसके सेवन से घुटनों के दर्द में बहुत आराम मिलेगा
घुटनों की ताकत के लिए क्या खाना चाहिए?

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए कैल्शियम अति आवश्यक है। कैल्शियम की कमी से घुटने ना स्रिफ कमज़ोर हो सकते हैं बल्कि उनमें दर्द भी हो सकता है। इसलिए घुटने की ताकत बढ़ाने के लिए कैल्शियमयुक्त आहार लें। दूध ,दही ,पनीर ,हरी पत्तेदार सब्जियां, पिस्ता ,बादाम जैसी चीज़ों का सेवन करें।

क्या दूध घुटने के दर्द को कम कर सकता है?

आप रोजाना दूध का सेवन कर सकते हैं। इसे पीने से आपको दर्द से आराम मिल सकता है। अदरक के सेवन से घुटने के दर्द में आराम मिल सकता है।

हल्दी दूध 

हल्दी दूध का सेवन घुटनों के दर्द में फायदेमंद (Turmeric Milk Beneficial in Knee Pain in Hindi) एक ग्लास दूध में एक चम्मच हल्दी के पाउडर को मिलाकर सुबह-शाम कम से कम दो बार पीने से घुटनों के दर्द (Ghutno ka dard) में लाभ मिलता है। यह जोड़ों का दर्द दूर करने का सबसे कारगर घरेलू इलाज है।

जोड़ों के दर्द के लिए सबसे अच्छा फल कौन सा है?

संतरा का करें सेवन

आप अपनी डाइट में संतरे का सेवन जरूर करें. सभी जानते हैं कि इसके खाने से पानी की कमी पूरी हो जाती है. इसमें काफी मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है जो जोड़ों के दर्द के लिए फायदेमंद होता है.

सोया दूध घुटने के दर्द के लिए अच्छा है?

क्या सोया मेरे जोड़ों की मदद कर सकता है? जोड़ों के दर्द के रोगियों के लिए सोया एक उत्कृष्ट आहार है । यह ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर है, जिसका अर्थ है कि यह शरीर के भीतर सूजन को कम कर सकता है। सूजन पैदा करने वाले रसायन जोड़ों के ऊतकों पर हमला करते हैं, जिससे जोड़ों में अधिक तरल पदार्थ जमा हो जाता है और उपास्थि क्षतिग्रस्त हो जाती है।
घुटने के दर्द से तुरंत राहत कैसे मिल सकती है?

घुटने के दर्द के विभिन्न हिस्सों को प्रबंधित करने के लिए गर्मी और बर्फ दोनों का उपयोग किया जा सकता है। बर्फ सूजन और सूजन को कम करने में मदद करता है और चोटों के लिए सबसे अच्छा है। गर्मी दर्द प्रबंधन में मदद कर सकती है, खासकर कठोर जोड़ों पर। यह गतिशीलता में भी मदद कर सकता है।

क्या सेब जोड़ों के दर्द में मदद करता है?

क्वेरसेटिन शरीर में सूजन को कम करने में मदद कर सकता है, जो बदले में गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। सेब को अपने आहार में शामिल करके, आप सूजन को कम करने और गठिया के लक्षणों को संभावित रूप से कम करने में मदद कर सकते हैं।
सोने से पहले 15-20 मिनट तक घुटने पर गर्माहट या ठंडक लगाने से दर्द कम हो सकता है। गर्मी घुटने में परिसंचरण में सुधार करती है और कठोर ऊतकों को नरम बनाती है। ठंड सूजन को शांत करती है और सूजन को कम करती है।
हाल ही में अपोलो अस्पताल के हड्डी रोग विभाग के डॉक्टरों ने यह अध्ययन किया। विशेषज्ञ डॉ. राजू वैश्य ने इस शोध में देश के अलग-अलग शहरों के एक हजार ऐसे मरीजों को शामिल किया जो जोड़ों के दर्द व आर्थराइटिस से जूझ रहे थे। इन सभी की जांच करवाई तो इसमें से 95 प्रतिशत मरीजों में विटामिन-डी की कमी थी। डॉ. वैश्य ने बताया कैल्शियम की कमी के कारण हड्डियों व जोड़ों में दर्द होता है। हड्डियां घिसने लगती हैं और कमजोर हो जाती हैं। जोड़ों पर यूरिक एसिड जमने लगता है।
दरअसल विटामिन (डी) का मुख्य स्रोत सूर्य की रोशनी है जो हड्डियों के अलावा पाचन क्रिया में भी बहुत उपयोगी है। व्यस्त दिनचर्या और आधुनिक संसाधनों के कारण लोग तेज धूप सहन नहीं कर पाते। सुबह से शाम तक ऑफिसों में रहते हैं। खुले मैदान में घूमना-फिरना और खेलना भी बंद हो गया। इस कारण धूप के जरिए मिलने वाला विटामिन उन तक नहीं पहुंच पाता। जब भी किसी को घुटने या जोड़ में दर्द होता है तो उसे लगता है कैल्शियम की कमी हो गई। विटामिन डी की ओर ध्यान नहीं जाता। डॉक्टर वैश्य का कहना है अगर कैल्शियम के साथ-साथ विटामिन (डी) की भी समय पर जांच करवा ली जाए तो आर्थराइटिस को बढ़ने से रोका जा सकता है।


चेहरे पर होने वाले मस्से आसानी से हटाएँ ,Chehre ke masse hataen

 


 

मस्से त्वचा पर होने वाली टिश्यू की वृद्धि है जो ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) के कारण होती है। आमतौर पर यह फटी हुई त्वचा पर होता है क्योंकि वायरस त्वचा की ऊपरी परत के माध्यम से आसानी से प्रवेश कर जाता है। संक्रमण के बाद त्वचा की ऊपरी परत पर मस्से तेजी से अपना विकास करते हैं।
मस्से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुंचाते हैं। यह कुछ महीनों या वर्षों के बाद अपने आप कम हो जाते हैं। मस्से दिखने में छोटे होते हैं और आकार व संरचना में एक पिनहेड से लेकर मटर के दाने तक भिन्न हो सकते हैं। यह रफ, हार्ड बम्प्स, मांसल वृद्धि या छोटा बम्प कुल तीन तरह के होते हैं।एक अध्ययन के अनुसार विटामिन की कमी के कारण मस्से होते हैं। इस बात की पुष्टि विभिन्न प्रकार के विटामिन के सीरम लेवल के अध्ययन में हुई है। इस अध्ययन में कई लोगों के विटामिन में मौजूद सीरम के लेवल की जांच की गई थी।
मस्से HPV (ह्यूमन पैपिलोमा वायरस) संक्रमण के कारण होते हैं। इसके 150 स्ट्रेन मौजूद हैं जिनमें से महज 10 स्ट्रेन के कारण ही मस्से होते हैं। यह वायरस त्वचा में छोटे से कट के माध्यम से प्रवेश करता है। इससे त्वचा की बाहरी परत मोटी और सख्त हो जाती है, जो आगे चलकर मस्से का रूप ले लेती है।
एचपीवी के सम्पर्क में आने से या इससे संक्रमित किसी सरफेस को छूने से यह संक्रमण हो सकता है, जो आगे चलकर मस्से का रूप ले लेता है।
एचपीवी वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से मस्से हो सकते हैं।
दूसराें का तौलिया या अन्य निजी वस्तुओं के इस्तेमाल से मस्से हो सकते हैं।
किसी भी प्रकार के घाव वाले स्थान की त्वचा के संक्रमित होने से मस्से होने की आशंका बढ़ जाती है।
मस्से को छूने के बाद अपने शरीर के दूसरे हिस्से पर टच करने से यह नए सिरे से संक्रमित कर सकता है।
इस प्रकार के मस्से आमतौर पर व्यक्ति की हांथ या पैर की उंगलियों पर होते हैं। यह शरीर के किसी अन्य स्थान पर भी हो सकते हैं। आम तौर पर मस्से अपने आसपास की त्वचा की तुलना में भूरे रंग के होते हैं।

चेहरे के तिल मस्से हटाने के रामबाण नुस्खे

आज सभी लोग सुंदर दिखना चाहते है एक कहावत है की अगर आपके चेहरे पर एक या दो तिल हों तो आपके सुंदरता में चार चाँद लग जाता। लेकिन यही तिल और मस्से अगर आपके फेस पर ज्यादा हो जाय तो ही बहुत बुरा लगने लगता है। इस समस्या से काफी लड़के-लड़कियां परेशान हैं।अधिकतर लोग तिलों तथा मस्सों को हटाने के लिए लेजर थेरेपी का ही इलाज मानते है,
इसलिए इन्हे नजर अंदाज कर देते हैं तो ये ज्यादा होते है तो और भी ज्यादा होते चले जाते है वैसे तिल दो प्रकार के होते हैं एक वो जो जन्मजात होते हैं और दूसरे जो धीरे-धीरे खुद ही पनपने लगते हैं तो इनको हटाया भी जा सकता है वो भी बिना किसी थेरेपी के बस कुच्ग देसी इलाज से आप घर पर भी इनको हटा सकते है इसके लिए में आज आपको कुछ घरेलू उपाए बताउगा वो भी सस्ता सा तो इसके लिए में आपको दो तरीके बताउगा और उनके लिए क्या क्या चैये वो भी बताउगा तो देखिये क्या क्या चाहिए और कैसे करना है |

धनिए के पत्ते से तिल और मुंहासे हटाए

क्या क्या सामग्री चाहिएधनिया
गुलाब जल
करने की विधि

सबसे पहले आप धनिए के जड़ वाले हिस्से को अलग कर दें और पते अलग करें फिर इसको पत्ते-पत्ते को किसी हम लोग होम जस्ते या मिक्सी के अंदर पत्ते का पेस्ट तैयार कर लें और इसे किसी बर्तन में निकाल लें फिर उस पेस्ट को रुई की सहायता से अपने तिल मुहासे पर लगाएं और धीरे-धीरे लगाएं उसको करीब आधे घंटे तक लगा ही रहने दें बाद में रुई की सहायता से गुलाब जल से धीरे-धीरे साफ करें और यह करीब 1 महीने तक करें जिससे आपके मुहासे तो झड़ने लग जाएंगे और तिलों का रंग बदलने लग जाएगा और कुछ दिनों में वह साफ हो जाएंगे यह एक आसान और सस्ता घरेलू तरीका है जिससे आप अपने तिल और मुंहासे हटा सकते हैं|

आलू की सहायता से तिल और मुंहासे हटाए


क्या क्या सामग्री चाहिएआलू
गुलाब जल
रुई
करने की विधि

सबसे पहले साफ दो आलू लीजिए जो बिल्कुल साफ और बढ़िया हो फिर उनको किसी होम जस्ते या किसी कद्दूकस या मिक्सी की सहायता से उनका अच्छा सा पेस्ट तैयार कर लीजिए और इस पेस्ट को कुछ देर रखिए फिर आप रुई की सहायता से इस पेस्ट को अपने तिल मुंहासे पर लगाइए और करीब 5 से 7 मिनट उसकी मालिश कीजिए और उसको आधे घंटे तक ऐसा ही रहने दें आधे घंटे बाद साफ रुई से गुलाबजल के साथ धीरे-धीरे उसको साफ कीजिए और यह विधि दिन में दो बार कीजिए यह लगातार एक महीने पर करने पर आपके तिल और मुहासे साफ होने लगेंगे इससे मुंहासे तो झरने लगेंगे और तीन का रंग बदलने लगेगा और यदि एक महीने में भी थोड़ी बहुत कमी रह जाए तो आप एक्स्ट्रा कुछ दिन कीजिए पर यह विधि बिल्कुल आपके तिल और मुंहासे साफ कर देंगे यह एक बहुत ही आसान और सस्ता घरेलू नुसका है जिसे आप उपयोग करके अपने तिल और मुंहासे साफ कर सकते हैं|

मस्से ना काटें, ना फोड़ें

कुछ लोग मस्सों को हटाने के लिए उसे कटवा देते हैं या घर पर ही खुद से काट व फोड़ लेते हैं। लेकिन ऐसा कभी नहीं करना चाहिए। मस्से को काटने और फोड़ने के कारण मस्से के वायरस का शरीर के अन्य हिस्सों में भी जाने का खतरा होता है। जिससे और मस्से हो जाते हैं। कई बार तो मस्से का वायरस एक आदमी से दूसरे आदमी की त्वचा पर भी चला जाता है।
शरीर पर मस्से होना एक प्रकार का चर्मरोग माना जाता है। यह प्रायः सरसों अथवा मूँग के आकार से लेकर बेर तक के आकार का होता है।
मस्से विषाणु संक्रमण से पैदा होते हैं। प्रायः ‘मानव पेपिल्लोमैविरस’ नामक विषाणु की प्रजाति इसका कारण होती है। त्‍वचा पर पेपीलोमा वायरस के कारण छोटे, खुरदुरे कठोर पिंड बन जाते हैं जिसे मस्‍सा कहते हैं।
मस्‍से काले और भूरे रंग के होते हैं। मस्‍से 8 से 12 प्रकार के होते हैं। जिनमें से कुछ मस्से अपने-आप खत्म हो जाते हैं, लेकिन कुछ मस्‍से इलाज के बाद जाते हैं।
मस्‍से को काटने और फोड़ने के कारण मस्‍से का वायरस शरीर के अन्‍य हिस्‍सों में भी चला जाता है जिसके कारण मस्‍से हो जाते हैं। मस्से संक्रमण (छुआछूत) से हो सकते हैं और शरीर में वहाँ प्रवेश करते हैं जहाँ त्वचा कटी-फटी हो।

प्याज  से मस्से हटायें 

प्याज हर तरह से हमारे लिए फायदेमंद है। खाने से लेकर इसके रस को लगाने तक के फायदे हैं। मस्सों के लिए तो ये रामबाण है। मस्सों को हटाने के लिए लगातर बीस से तीस दिनों तक प्याज के रस को मस्सों में लगाएं। जब समय मिले तब प्याज को काटकर मस्सों पर रगड़ें। दिन में दो-तीन बार ऐसा करें। प्याज के रस से मस्सों का वायरस मर जाता है और मस्से जड़ से खत्म हो जाते हैं।

मस्सा को ठीक करने के घरेलू उपाय

सिरका का इस्तेमाल: सिरका के इस्तेमाल से मस्से के वायरस को आसानी से नष्ट किया जा सकता है। यह एसिड होने के कारण इसके संपर्क में आने वाले वायरस को मार देता है। इससे संक्रमित त्वचा जल जाती है और धीरे-धीरे मस्से गिरने लगते हैं। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।
नींबू का रस: साइट्रिक एसिड से भरपूर होने के कारण नींबू का रस मस्से के इलाज में कारगर होता है। HPV वायरस इस एसिड के संपर्क में आते ही नष्ट हो जाता है। इसके इलाज के बाद मस्से वाली जगह पर सीधे नींबू का रस नहीं लगा सकते हैं। इसे लगाने के लिए इसमें पानी मिलाया जाता है। पानी के साथ नींबू के रस को मस्से पर लगाने से वह ठीक हो जाते हैं।
एप्पल साइडर विनेगर: एप्पल साइडर विनेगर, एसिड की तरह मस्से पर कार्य करता है। यह एक एसिड का हल्का रूप है जो संक्रमित त्वचा के साथ मस्से को जला देता है। एसिड इसके संपर्क में आने वाले वायरस को मारने का काम करता है। इसे पानी के साथ मिलाकर उपयोग किया जाता है।
एलोवेरा: एलोवेरा जेल में मैलिक एसिड होता है, जो मस्से के इलाज में प्रभावशाली है। इसका एंटी वायरल, एंटी बैक्टीरियल और एंटी बायोटिक गुण मस्से की स्किन को सुखाने में मदद करता है। इसे लहसुन के साथ मिलाकर लगाने से मस्से जल्द ठीक हो जाते हैं।
बेकिंग सोडा: बेकिंग सोडा का एंटी इंफ्लेमेट्री और एंटीसेप्टिक गुण मस्से के इनफ्लेमेशन और दर्द को कम करने में मदद करता। इसमें एप्पल साइडर विनेगर मिलाकर लगाने से मस्से को जलाने में मदद मिलती है।
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने से रोकने के तरीके:नियमित रूप से हाथ साफ करना या धोना।
दूसरे लोगों के मस्से को छूने से बचना।
मस्से को साफ, सूखा और कीटाणुओं रहित रखना।
शरीर के अन्य भागों में फैलने से रोकने के तरीके:मस्से को सूखा रखें।
शेविंग के समय मस्से पर रेजर का यूज न करें।
मस्से को ढक कर रखें।
मस्से को नोंचने या खंरोंचने से बचें।
प्रभावित त्वचा पर नेल फाइलर या पिकर जैसे उपकरण का उपयोग न करें।
सतह से व्यक्ति तक मस्से को फैलने से रोकने के तरीके:संक्रमित व्यक्ति के तौलिए और व्यक्तिगत वस्तुओं को शेयर न करें।
सार्वजनिक स्थानों जैसे जिम, पूल, लॉकर रूम में जूते पहनकर जाएं।
यदि किसी और के मस्से के साथ संपर्क हुआ है, तो उस जगह को तुरंत साफ करें।

मस्सा से बचाव-

अपनी डाइट में कुछ बदलाव करके मस्सा को होने से या बढ़ने से रोक सकते हैं:

क्या खाना चाहिए: 

सब्जियां जैसे, पालक, केला, ब्रोकली आदि सब्जियां विटामिन से भरपूर होती हैं जो वायरस से मुकाबले के लिए आपके इम्यून सिस्टम को शक्ति देती हैं। इम्यून सिस्टम को शक्ति देने के लिए और मस्सों को घटाने के लिए जामुन, टमाटर, चेरी और कद्दू आदि फलों का सेवन भी कर सकते हैं। इसके अलावा प्रोटीन युक्त आहार जैसे; मांस, मछली, मेवे और साबुत अनाज आदि मस्सों में लाभकारी होते हैं।

क्या नहीं खाना चाहिए:

 मस्सा होने पर रिफाइंड और प्रोसेस्ड आहार जैसे व्हाइट ब्रेड और पास्ता का सेवन करने से बचना चाहिए। ट्रांस फैट युक्त आहार जैसे; केक, कूकीज और डोनट को आहार में शामिल न करें। फास्ट फूड जैसे अनियन रिंग्स और फ्रैंच फ्राइज को खाने से बचें। इसके अलावा शक्कर की अधिक मात्रा वाले आहार न लें।

22.8.23

हार्ट अटैक से बचने के लिए कोलेस्ट्रोल कैसे कम करें? How to reduce cholestrol ?

 



कोलेस्ट्रॉल एक तरह का फैट होता है जो खून में मौजूद होता है। कोलेस्ट्रॉल शरीर के अंदर बहुत से कार्यों के लिए जिम्मेदार होता है, जैसे सेल्स को लचीला बनाए रखने के लिए, और विटामिन डी के संशलेषण आदि के लिए। ज्ञात हो कि दो तरह के कोलेस्ट्रॉल होते हैं एक होता है एलडीएल और दूसरा होता है एचडीएल।
हाई कोलेस्ट्रॉल की वजह से तमाम लोग हार्ट अटैक का शिकार हो रहे हैं. कोलेस्ट्रॉल हमारे ब्लड में पाया जाने वाला एक वैक्स जैसा पदार्थ होता है, जिसकी मात्रा बढ़ने से नुकसान होना शुरू हो जाता है. आज के जमाने में कम उम्र के लोग भी हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं. घंटों स्क्रीन पर बैठकर काम करना, देर रात तक जागना, जंक फूड का सेवन और फिजिकल एक्टिविटी न करने से कोलेस्ट्रॉल की समस्या तेजी से फैल रही है. इससे बचने के लिए लोग कई तरह की दवाओं का सहारा भी लेते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि आयुर्वेद के कुछ नुस्खे अपनाकर कोलेस्ट्रॉल की समस्या को आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है. जब कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल रहता है, तो हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है.
एनसीबीआई (NCBI) के अनुसार हाल के अध्ययनों से पता चला है कि भारत में 25-30% शहरी और 15-20% ग्रामीण लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की परेशानी से पीड़ित हैं। क्या होता है कोलेस्ट्रॉल की बीमारी? कोलेस्ट्रॉल आपके रक्त में पाया जाने वाला एक मोम जैसा पदार्थ है। स्वस्थ कोशिकाओं के निर्माण के लिए आपके शरीर को कोलेस्ट्रॉल की आवश्यकता होती है, लेकिन कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर आपके हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है।
हाई कोलेस्ट्रॉल की शिकायत अनुवांशिक कारको के वजह से भी हो सकती है। लेकिन यह अक्सर अस्वास्थ्यकर जीवनशैली का परिणाम होता है। कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर आपके हृदय रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है। दवाईंयों बजाय आप इसे कुछ प्राकृतिक चीजों की मदद से भी ठीक कर सकते हैं।
कैसे कंट्रोल करें कोलेस्ट्रॉल? वैसे तो इसे कंट्रोल करने के लिए कई तरह की दवाईंया बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन आप इसे कुछ प्राकृतिक चीजों की मदद से भी ठीक कर सकते हैं। ऐसा ही एक औषधीय पौधा है धनिया। इस बात की पुष्टि कई अध्ययनों में भी की गई है। आइए जानते हैं।

कैसे पता करें बढ़ रहा है कोलेस्ट्रॉल

रक्त में कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर के कोई स्पष्ट लक्षण नहीं होते हैं। लेकिन यह उन स्थितियों के लिए आपके जोखिम को बढ़ा सकता है जिनमें लक्षण होते हैं, जैसे- एनजाइना (हृदय रोग के कारण सीने में दर्द), उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक आदि।

​कोलेस्ट्रॉल में हरा धनिया है फायदेमंद

एक स्टडी के अनुसार, कुछ जानवरों और टेस्ट-ट्यूब अध्ययनों से पता चलता है कि धनिया हृदय रोग के जोखिम वाले कारकों को कम कर सकता है, जैसे उच्च रक्तचाप और एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल का स्तर। एक्सपर्ट बताते हैं कि अन्य मसालों के साथ बड़ी मात्रा में धनिया का सेवन करने वाली आबादी में हृदय रोग की दर कम होती है।
इसमें एंटी-माइक्रोबियल व एंटीऑक्सीडेंट समेत एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाला), एंटी-डिस्लिपिडेमिक (रक्त में लिपिड्स कम करने वाला), एंटी-हाइपरटेंसिव (रक्तचाप कम करने वाला), न्यूरोप्रोटेक्टिव (तंत्रिका को सुरक्षा देने वाला) और मूत्रवर्धक जैसे गुण होते हैं। साथही, यह मधुमेह, मिर्गी, चिंता और अवसाद दूर करने और शरीर से टॉक्सिक पदार्थों की सफाई करने का काम भी करते हैं।

​कैसे करें धनिया का सेवन

धनिया को अपने खाने में शामिल करने से आप कोलेस्ट्रॉल की समस्या का समाधान कर सकते हैं। लोग अक्सर धनिया के पत्तों का सेवन शरबत, चटनी, सलाद के रूप में करते हैं। वहीं, इसके बीजों को भी आप पानी में फूलाकर और छानकर पी सकते हैं।

धनिया को नियमित पर थोड़े मात्रा में खाएं। एक स्टडी के अनुसार ज्यादा धनिया खाने से स्वास्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यह लीवर, एलर्जी, दाने, खुजली से लेकर त्वचा कैंसर तक का खतरा बढ़ा सकती है। इसेक अलावा धनिया ब्लड प्रेशर को कम करने का काम करती है जिससे निम्न ब्लड प्रेशर को लोगों को परेशानी हो सकती है।
एलडीएल कोलेस्ट्रॉल रक्त धमनियों में बाधा उत्पन्न कर हृदय को नुकसान पहुँचाता है। जबकि एचडीएल कोलेस्ट्रॉल आपके दिल का ख्याल रखने का कार्य करता है। कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का कारण केवल खराब जीवनशैली या बेकार खान पान ही नहीं. बल्कि इसके लिए फैमिली हिस्ट्री भी जिम्मेदार होती है। लेकिन स्वस्थ्य भोजन, हल्की एक्सरसाइज और जीवनशैली में बदलाव के जरिए इससे राहत पाई जा सकती है।

हल्दी है गुणकारी

यह बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करने का कार्य भी करती है। दरअसल हल्दी के अंदर पाए जाने वाले तत्व रक्त की धमनियों से कोलेस्ट्ऱॉल हटाने का कार्य करते हैं। इसके लिए आप चाहें तो हल्दी वाला दूध पी सकते हैं। या फिर आप सुबह गर्म पानी के अंदर आधा चम्मच हल्दी पाउडर डालकर सेवन कर सकते हैं।


कोलेस्ट्रोल घटाने के लिए आयुर्वेद के अचूक नुस्खे !

अलसी के बीज पोषक तत्वों का खजाना होते हैं. इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, आयरन और विटामिन की मात्रा होती है. जो लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं, वे अलसी के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें. फिर इस चूर्ण को एक गिलास गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच लें. रोज़ ऐसा करने से कुछ ही सप्ताह में कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल हो जाएगा. खास बात यह है कि इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, इसलिए जिन लोगों को डाइजेशन की समस्या है, उन्हें दोगुना फायदा मिलेगा.

अलसी के बीज (Flaxseed) और दालचीनी 

आयुर्वेद में अलसी के बीज (Flaxseed) और दालचीनी (Cinnamon) को कोलेस्ट्रॉल घटाने में सबसे कारगर माना गया है. इन चीजों का सेवन सही तरीके से किया जाए, तो कोलेस्ट्रोल कम करने के साथ कई दिक्कतों से राहत मिल जाएगी. अलसी के बीज पोषक तत्वों का खजाना होते हैं. इनमें भरपूर मात्रा में फाइबर, प्रोटीन, हेल्दी फैट्स, आयरन और विटामिन की मात्रा होती है. जो लोग हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या से जूझ रहे हैं, वे अलसी के बीजों को पीसकर चूर्ण बना लें. फिर इस चूर्ण को एक गिलास गुनगुने पानी के साथ एक चम्मच लें. रोज़ ऐसा करने से कुछ ही सप्ताह में कोलेस्ट्रॉल लेवल कंट्रोल हो जाएगा. खास बात यह है कि इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, इसलिए जिन लोगों को डाइजेशन की समस्या है, उन्हें दोगुना फायदा मिलेगा.

कैसे होता है कोलेस्ट्रॉल कम

1-इंफ्लेमेटरी फूड्स का सेवन न करें

2- ट्रांस-फैट वाले फूड्स
3- मांस और ज्यादा तली-भुनी चीजों के साथ तेल में पकी हुई सब्जियों के सेवन से
4-शराब और धूम्रपान का सेवन कम करें।
5-अच्छी नींद लें
6- वजन कम करें
7-हर दिन कम से कम 5 किमी पैदल चलें।
8-नियमित व्यायाम के साथ-साथ हेल्दी डाइट लें

दवा से कोलेस्ट्रॉल कितने दिन में कम

कोलेस्ट्रॉल को कम करने वाली दवा का नाम है स्टैटिन्स, जिसे आमतौर पर कोलेस्ट्रॉल को कम करने में 4 से 6 सप्ताह तक का वक्त लगता है। अगर आपका एलडीएल कोलेस्ट्रॉल बहुत ज्यादा है यानि 190 तो आपको स्टैटिन की हाई डोज देने की जरूरत होती है ताकि आपका कोलेस्ट्रॉल लेवल तेजी से कम हो सके।

कैसे होता है कोलेस्ट्रॉल कम

अगर आपको पहले से ही कोई बीमारी है तो कोलेस्ट्रॉल कम होने में वक्त लग सकता है। डायबिटीज, हाइपरटेंशन, ह्रदय रोग जैसी क्रॉनिक स्थिति से जूझ रहे लोगों को लंबे वक्त तक दवा खानी पड़ सकती है। जब किसी रोगी को हाई कोलेस्ट्रॉल के लिए दवा लिख दी जाती है को उसे आमतौर पर लंबे वक्त तक दवा का सेवन करने की जरूरत है। हालांकि डॉक्टर की सलाह के बाद दवा जरूर बंद की जा सकती है। हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है जैसेः

इंफ्लेमेटरी फूड्स का सेवन न करें
ट्रांस-फैट वाले फूड्स
3- मांस और ज्यादा तली-भुनी चीजों के साथ तेल में पकी हुई सब्जियों के सेवन से
4-शराब और धूम्रपान का सेवन कम करें।
5-अच्छी नींद लें
6- वजन कम करें
7-हर दिन कम से कम 5 किमी पैदल चलें।
8-नियमित व्यायाम के साथ-साथ हेल्दी डाइट लें
कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करने के लिए गर्म पानी फायदेमंद माना जाता है, लेकिन गरम पानी में इन चीजों को मिलाकर पीने से और भी ज्यादा फायदा पहुंचता है
जब शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है तो कई बीमारियों का जोखिम भी बढ़ाता है. इससे हार्ट अटैक, डायबिटीज और ब्लड प्रेशर भी बढ़ सकता है. इतने में तो आप समझ ही गए होंगे कि कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करके रखना कितना जरूरी है. सही खानपान और हेल्दी लाइफ़स्टाइल से आप कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल कर सकते हैं. इसे दूर करने में गर्म पानी के साथ-साथ हमारे किचन में मौजूद कई सारी चीजें भी काम आ सकती है. आइए जानते हैं कोलेस्ट्रॉल घटाने के लिए किस तरह से इन चीजों का सेवन करना चाहिए.
लहसुन औऱ गर्म पानी-कोलेस्ट्रॉल को दूर करने के लिए लहसुन और गर्म पानी का सेवन किया जा सकता है. ये हाई क्वालिटी वालों की समस्याओं को दूर करने के साथ-साथ हार्ट डिजीज से भी आप को सुरक्षित रख सकता है. आप एक गिलास पानी में कुछ लहसुन की कलियों को डालकर उसे अच्छी तरह से उबाल लें, इसके बाद इसका सेवन करें. इससे आपको काफी मदद मिलेगी.

दालचीनी, शहद औऱ गर्म पानी-

गर्म पानी में आप दालचीनी और शहद को मिक्स करके पी सकते हैं. इससे भी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है. आधा लीटर गुनगुना पानी ले और इसमें दालचीनी पाउडर और शहद को मिक्स कर दें और फिर इसे पीएं इससे कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल होना मुमकिन है.

हल्दी और गर्म पानी-

हल्दी एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुणों के लिए जाना जाता है.इससे सेहत को कई फायदे मिल सकते हैं. आप कोलेस्ट्रॉल कम करने के लिए एक गिलास गुनगुने पानी में हल्दी मिक्स करके पिएं. इससे कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल होगा,आपकी इम्यूनिटी भी बूस्ट होगी,पाचन शक्ति में भी सुधार होगा.

शहद नींबू औऱ गर्म पानी-

शहद नींबू डालकर भी गर्म पानी पीने से कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद मिल सकती है.दरअसल शहर में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है जिससे शरीर से कई बीमारियों को दूर रख सकता है. नींबू में विटामिन सी होता है, जिससे आपकी इम्यूनिटी बूस्ट होती है.

रोगों का इलाज फूलो-पत्तियों से : क्या है तरीका?

 




भारतीय आयुर्वेद (Ayurveda) में विभिन्न प्राकर के फूलों का इस्तेमाल बहुत पहले से ही होता रहा है. कहते हैं कि कुछ खास प्रकार के फूल (Special Flowers) बीमारियों को ठीक करने में सक्षम होते हैं. इन फूलों का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है. फूल हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग हैं और यह न केवल आपके आसपास की सुंदरता को बढ़ाते हैं बल्कि पोषण और औषधीय उपयोग के लिए भी इस्तेमाल होते हैं. सुंदर से दिखने वाले कई तरह के फूलों में त्वचा की समस्याओं से लेकर कई तरह के संक्रमण (Infection) तक को ठीक करने की शक्ति होती है. आपको बता दें कि कुंभी फूल, गुलाब और केसर के फूल का औषधीय प्रयोजनों के लिए इस्‍तेमाल किया जाता है. इनका सेवन पंखुड़ियों के रूप में या जूस और काढ़े के रूप में भी किया जा सकता है. इसे टिंचर के रूप में शरीर पर लगाया जा सकता है. यदि आपको घाव हो जाए या कहीं चोट लग जाए तो आपको गेंदे के फूल का रस वहां लगाना चाहिए। ये एंटीसेप्टिक होता है और घाव भरने में करागर होता है। फोड़े-फुंसी हो जाए तो गेंदे कि पत्तियों को पीस कर वहां लगा दें।
गुलाब स्कर्वी के उपचार और गुर्दे से जुड़ी समस्याओं पर बेहद कारगर होता है। गुलाब का फूल विटामिन सी की कमी को पूरा करने में भी सहायक है। इसे आप किसी भी रूप में लें ये आपके शरीर को डिटॉक्स भी करता है।
गुलाब की कलियों का अर्क यूरिन से जुड़ी बीमारियों को दूर करता है। साथ ही पेट की जलन को शांत भी करता है।
गुलाब की पंखुड़ियां को पीस कर अगर पीएं या शरीर पर लगा लें तो गर्मी के कारण हो रहे सिर दर्द और बुखार को ठीक किया जा सकता है। साथ ही ये झाइयों को दूर करने में भी कारगर है।

पुष्पों के औषधीय प्रयोग-

पुष्प शीत-गरमी-वर्षा पूरे वर्ष रंग-बिरंगे, परस्पर प्रतिस्पर्धा करते हुए, विभिन्न आकार-प्रकार में दृष्टिगोचर होते हैं। फूलों को शरीर पर धारण करने से शोभा, कांति, सौंदर्य और श्री की वृद्धि होती है। इनको प्राचीनकाल से रानी-महारानी अपनी त्वचा को कोमल बनाने में तथा शृंगार में उपयोग करती रही हैं। जंगली आदिवासी आभूषण बनाने तथा केश सज्जा में करते हैं। फूलों की सुगंध रोग नाशक भी है। इनके सुगंधित परमाणु वातावरण में घुलकर नासिका की झिल्ली में पहुँचकर अपनी सुगंध का एहसास कराते हैं, जिससे मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्सों पर प्रभाव दिखाकर उत्तेजना-सी अनुभव कराते हैं। जिनका मस्तिष्क, हृदय, आँख, कान, पाचन क्रिया, रति क्रिया पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। थकान को तुरंत दूर करते हैं। इसकी सुगंध से की गयी उपचार-प्रणाली को ‘ऐरोमा थैरेपी’ कहते हैं। पुष्पों के कुछ औषधीय प्रयोग निम्न हैं-


कमल-

कमल और लक्ष्मी का संबंध अविभाज्य है। कमल सृष्टि की वृद्धि का द्योतक है। इसके पराग से मधुमक्खी शहद तो बनाती ही है, इसके फूलों के गुलकंद का प्रत्येक प्रकार के रोगों में, कब्ज निवारण के लिए उपयोग किया जाता है। फूल के अदंर हरे रंग के दाने-से निकलते हैं जिन्हें भूनकर मखाने बनाये जाते हैं, लेकिन उनको कच्चा छीलकर खाना स्तंभन में उपनयोगी होता है। इसका गुण शीत वीर्य है। इसका प्रयोग सबसे अधिक अंजन की भांति नेत्रों में ज्योति बढ़ाने के लिए, शहद में मिलाकर किया जाता है। इसी कारण आँख को ‘कमल नयन’ भी कहते हैं। पंखुड़ियों को पीसकर उबटन में मिलाकर मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है।


केवड़ा-

इसकी गंध कस्तूरी-जैसी मादक होती है। इसके पुष्प दुर्गन्धनाशक मदनोन्मादक हैं। इसका तेल उत्तेजक श्वास विकार में लाभकारी है। सिरदर्द और गठिया में इसका इत्र उपयोगी है। इसकी मंजरी का उपयोग पानी में उबालकर कुष्ठ, चेचक, खुजली, हृदय रोगों में स्नान करके किया जा सकता है। इसका अर्क पानी में डालकर पीने से सिरदर्द तथा थकान दूर होती है। बुखार में एक बूँद देने से पसीना बाहर आता है। इत्र की दो बूँद कान में डालने से दर्द ठीक हो जाता है।


गुलाब-

आशिक मिजाजी, प्रेम का प्रतीक गुलाब है। इसका गुलकंद रेचक है, जो पेट व आँतों की गरमी शांत कर हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है। गुलाब जल से आँखें धोने से आँखों की लाली, सूजन कम होती है। इसका इत्र कामोत्तेजक है। इसका तेल मस्तिष्क को ठंडा रखता है। गुलाब का अर्क मिठाइयों में प्रयोग किया जाता है। गर्मी में इसका प्रयोग शीतवर्द्धक है।


चंपा-

इसके फूलों को पीसकर कुष्ठ रोग के घाव में लगाया जा सकता है। इसका अर्क रक्त के कृमि को नष्ट करता है। फूलों को सुखाकर चूर्ण खुजली में उपयोगी है। ज्वरहर, मूत्रल, नेत्र ज्योति वर्द्धक तथा पुरुषों को रतिदायक उत्तेजना प्रदान करता है। कहावत है ‘चंपा एक चमेली सौ’ अर्थात सौ चमेली पुष्पों के बराबर एक चंपा पुष्प होता है।


सौंफ (शतपुष्पा)-

सौंफ के पुष्पों को पानी में डालकर उबालें, साथ में एक बड़ी इलायची तथा कुछ पोदीना के पत्ते भी लें। अच्छा यह रहेगा कि मिट्टी के बर्तन में उबालें। पानी को ठंडा करके दाँत निकलने वाले बच्चे या छोटे बच्चे जो गर्मी से पीड़ित हों, एक-एक चम्मच कई बार दें, तो उनको पेट में पीड़ा इत्यादि शांत होगी तथा दाँत भी ठीक प्रकार निकलेंगे।


धतूरा-

यह मादक तथा विषैला पौधा है, जिनको उन्माद रोग के कारण अनिद्रा रोग हो, उन्हें फूलों को एकत्रित करके बारीक कपड़े में बाँधकर सिरहाने रखने से निद्रा आना शुरू हो जाती है।


गैंदा-

मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप सारे देश में है, लेकिन इनकी खेती यदि गंदे नालों और घर के आसपास की जाए, तो इसकी गंध से मच्छर दूर भागते हैं। यह जंगली फूलों वाला पौधा है, जो आसानी से एक बार बोने पर लग जाता है। लीवर की सूजन, पथरी-नाशक, चर्मरोगों में इसका प्रयोग किया जा सकता है।


बेला-

अत्यधिक सुगंध का गर्मी में अधिकता से फूलने वाला पौधा है, लेकिन आजकल घरों में इसे कम लगाते हैं। गर्मी में इसके हार या पुष्पों को अपने पास रखने से पसीने में गंध नहीं आती है। महिलाएँ इसको केश-सज्जा में बहुत प्रयोग करती हैं। इसकी सुगंध प्रदाह नाशक है। स्त्रियों के गर्भाशय में उत्तेजना को प्रदान करने वाला एकमात्र पुष्प है, रतिदायक है। इसकी कलियाँ चबाने से मासिक खुलकर आता है।


रात की रानी-

इसकी गंध इतनी तीव्र होती है कि पड़ोसियों तक को लुभायमान कर देती है। यह सायं ७ से ११ बजे रात्रि तक खुशबू अधिक देता है। इसके बाद सुप्त हो जाता है। इसकी गंध में मच्छर नहीं आते। इसकी गंध मादकता और निद्रादायक है।


सूरजमुखी-

विटामिन ए/डी होता है। सूर्य की रोशनी न मिलने के कारण होने वाले रोगों को रोकता है। इसकी खेती व्यापारिक स्तर पर लाभकर है। इसका तेल हृदय रोगों में कोलेस्ट्रोल को कम करता है।


चमेली-

चर्म रोगों की औषधि, पायरिया, दंतशूल, घाव, नेत्ररोगों और फोड़ों-फुंसियों में इसका तेल बनाकर उपयोग किया जाता है। इसका तेल बाजीकरण में मालिश के योग्य है। शरीर में रक्त संचार की मात्रा बढ़ाकर स्फूर्तिदायक बन जाता है। इसके पत्ते चबाने से मुँह के छाले तुरंत दूर होते हैं। इसकी माला रति इच्छा बढ़ाने में सहायक है।


केसर-

मन को प्रसन्न करता है। चेहरे को कांतिवान बनाता है। रज दोषों का नाशक, शक्तिवर्द्धक, वमन को रोककर वात, पित्त, कफ (त्रिदोषों का) नाशक है। तंत्रिकाओं में व्याप्त उद्विगन्ता एवं तनाव को केसर शांत रखता है, इसलिए इसे प्रकृति प्रदत्त ‘ट्रैंकुलाइजर’ भी कहा जाता है। यह काम तथा रति में उद्दीपन का कार्य करता है, अतः दूध या पान के साथ सेवन योग्य है।


अशोक-

यह मदन वृक्ष भी कहलाता है। इसके फूल, छाल, पत्तियों का स्त्रियों की औषधि में उपयोग किया जा सकता है। अशोक का अर्थ है जिसको पाकर शोक न रहे। छाल का आसव बनाकर पीने से स्त्रियों की अधिकांश बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं।


ढाक (पलाश)-

इसको अप्रतिम सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इसके गुच्छेदार फूल बहुत दूर से ही आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण वन की ज्योति भी कहते हैं। इसका चूर्ण पेट के किसी भी प्रकार के कृमि का हनन करने में सहायक है। इसके पुष्पों को पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर पेडू पर रखने से पथरी के कारण दर्द होने या मूत्र न उतरने पर मूत्रल का कार्य करता है।


गुड़हल (जवा)-

गणेश एवं काली देवी का प्रिय है। इसका पूर्ण संबंध गर्भाशय से है। ऋतु काल के बाद यदि फूल को घी में भूनकर महिलाएँ सेवन करें, तो उन्हें ‘गर्भ-निरोध’ हो सकता है। मुँह के छाले दूर हो जाते हैं। इसके फूलों को पीसकर बालों में लेप लगाने से बालों का गंजापन मिटता है। यह उन्माद को दूर करने वाला एकमात्र पुष्प है। शीतवर्द्धक, वाजीकारक, रक्तशोधक, सूजाक रोग में गुलकंद या शरबत बनाकर दिया जा सकता है। शरबत हृदय को फूल की भाँति प्रफुल्लित करने वाला रुचिकर है।

गुलमोहर से इलाज 

आयुर्वेद में असरदार औषधि माने जाने वाले गुलमोहर में तमाम औषधीय गुण पाए जाते हैं। यही कारण है कि इनका इस्तेमाल पुराने समय से लोग बीमारियों के इलाज में करते आ रहे हैं। गुलमोहर के इस्तेमाल से बवासीर की बीमारी और गठिया जैसी गंभीर समस्या का भी इलाज किया जाता है। इसकी पत्तियों और फूल में तमाम औषधीय गुण मौजूद होते हैं। खासतौर से इसमें एंटी-डायबिटिक, एंटी-बैक्टीरियल, एंटीऑक्सीडेंट्स, एंटी-माइक्रोबियल, एंटी-डायरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो शरीर के लिए कई तरह से उपयोगी होते हैं। गुलमोहर के फूल, फल, पत्तियों और तने में ये औषधीय गुण मौजूद होते हैं।फूल - एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीमाइरियल, एंटीमाइक्रोबियल, एंटीऑक्सिडेंट, कार्डियो-प्रोटेक्टिव, गैस्ट्रो-प्रोटेक्टिव और घाव भरने के औषधीय गुण पाए जाते हैं।
पत्तियां - गुलमोहर की पत्तियों में अतिसार-रोधी, हेपेटोप्रोटेक्शन, फ्लेवोनोइड्स और एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होते हैं।
तने - गुलमोहर के तने की छाल में खून को बहने से रोकने के गुण, मूत्र और सूजन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने के गुण पाए जाते हैं।
गुलमोहर के पेड़ तो तरह के होते हैं, एक पीला गुलमोहर और दूसरा लाल गुलमोहर। दोनों तरह के पेड़ के फूल और पत्तियों का औषधीय इस्तेमाल किया जाता है। इसके इस्तेमाल से गठिया, बवासीर जैसी बीमारियों समेत स्किन और बालों से जुड़ी कई समस्याएं भी दूर की जाती हैं। गुलमोहर के पत्तों का इस्तेमाल बालों की समस्या में बहुत फायदेमंद माना जाता है। आप इसके इस्तेमाल से बाल झड़ने की समस्या में भी फायदा पा सकते हैं। आइये जानते हैं गुलमोहर के फायदे और आयुर्वेद के मुताबिक इसके इस्तेमाल के तरीके के बारे में।
गुलमोहर फूल को सुखाकर इसका चूर्ण बना लें। अब रोजाना इसके 2 से 4 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ मिलकर खाएं। ऐसा करने से पीरियड्स के दौरान होने वाले दर्द (Menstrual Cramp) और इससे जुड़ी अन्य समस्याओं में फायदा होगा।
 बाल झड़ने की समस्या में गुलमोहर की पत्तियों का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पत्तों को सुखाकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब इसे गर्म पानी में मि
अगर किसी को भी दस्त या डायरिया की समस्या हो रही है तो उसे गुलमोहर के तने की छाल का सेवन करना चाहिए। आप गुलमोहर के पेड़ के तने की छाल का चूर्ण बना लें और इसका 2 ग्राम चूर्ण डायरिया की समस्या में खाएं। पेचिश और दस्त या डायरिया में इसके सेवन से बहुत फायदा मिलता है।
 पीले गुलमोहर के पत्तों को पीसकर गठिया की दर्द वाली जगह पर लगाने से दर्द की समस्या से छुटकारा मिलता है। गठिया की समस्या में आप इसके पत्तों का का काढ़ा बनाकर उसका भाप दें, इससे भी दर्द से आराम मिलता है।
बवासीर (Piles) की समस्या में गुलमोहर का इस्तेमाल बहुत फायदेमंद माना जाता है। बवासीर की समस्या होने पर आप इसके पत्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पीले गुलमोहर के पत्ते को दूध के साथ पीसकर बवासीर के मस्सों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और बवासीर की समस्या से आराम मिलता है।

शंखपुष्पी (विष्णुकांत)-

गर्मियों में इसकी उत्पत्ति अधिक होती है। यह घास की तरह है। फूल-पत्ते तथा डंठल तीनों को उखाड़कर पीसकर पानी में मिलाकर छान लें, इसमें शहद या मिश्री मिलाकर पीने से शाम तक मस्तिष्क में ताजगी रहती है। कार्यालयों में बैठकर काम करने पर सुस्ती नहीं आएगी इसका सेवन विद्यार्थियों को अवश्य करना चाहिए।


बबूल (कीकर)-

फूलों को पीसकर सिर में लगाने से सिरदर्द गायब हो जाता है। इसका लेप दाद और एग्जिमा पर लगाने से चर्म रोग दूर होता है। इसके अर्क के सेवन से रक्त विकार दूर होते हैं। यह खाँसी और श्वास रोग में लाभकारी है। इसके कुल्ले दंतक्षय को रोकते हैं।


नीम-

फूलों को पीसकर लुग्दी बनाकर फोड़े-फुंसी पर रखने से जलन व गर्मी दूर होती है। इनको शरीर पर मलकर स्नान करने से दाद दूर हो जाता है। फूलों को पीसकर पानी में घोलकर छान दें। इसमें शहद मिलाकर पीयें, तो वजन कम होता है तथा रक्त साफ होता है। यह संक्रामक रोगों से रक्षा कारक है।


लौंग-

आमाशय और आँतों में रहने वाले उन सूक्ष्म कीटाणुओं को नष्ट करते हैं जिसके कारण मनुष्य का पेट फूलता है। रक्त के श्वेत कणों में वृद्धि करके शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की वृद्धि करते हैं, शरीर तथा मुँह की दुर्गंध का नाश करती हैं। शरीर के किसी भी हिस्से पर घिसकर लगाने से दर्दनाशक का काम करते हैं। दाढ़ या दंतशूल में मुख में डालकर चूसा जाता है। यज्ञ द्वारा इसका प्रयोग करने से शरीर में अनावश्यक जमा तत्वों को पसीने द्वारा बाहर निकाल देते हैं।


जूही-

फूलों का चूर्ण या गुलकंद अम्लपित्त को नष्ट कर पेट के अल्सर व छाले को दूर करता है। इसके निरंतर सानिध्य में रहने से क्षय रोग नहीं होता।


माधवी-

चर्म रोगों के निवारण के लिए इसके चूर्ण का लेप किया जाता है। गठिया रोग में प्रातःकाल फूलों को चबाने से आराम मिलता है। इसके फूल श्वास रोग भी हरते हैं।


कुसुम-

इस फूल की कलियाँ मासिक धर्म के बाद खाने से गर्भ निरोध होते देखा गया है।


हरसिंगार (पारिजात)-
गठिया रोगों का नाशक, इसका लेप चेहरे की कांति को बढ़ाता है। इसकी सुगंध ही रात्रि को मादकता प्रदान करती है।

आक-

इसका फूल कफ नाशक है। प्रदाह कारक भी है। यदि पीलिया में पान में रखकर एक या दो कली तीन दिन तक दी जाए, तो काफी हद तक आराम होगा।

गुड़हल का फूल-


गुड़हल का फूल सिर्फ देखने में सुंदर नहीं है बल्कि इसके सेहत को अनगिनत फायदे मिलते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि इस फूल का रस ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में सहायक हो सकता है।
ब्रेस्ट कैंसर का घरेलू इलाज? ब्रेस्ट कैंसर के कई लक्षण हैं और लक्षणों की गंभीरता कम करने के लिए आप दवाओं के साथ कुछ घरेलू या प्राकृतिक उपचार भी आजमा सकते हैं। ब्रेस्ट कैंसर का एक जबरदस्त प्राकृतिक उपचार गुड़हल का फूल भी है
शोधकर्ताओं का मानना है कि नेचुरल चीजें स्वास्थ्य पर साइड इफेक्ट्स नहीं डालती हैं। गुड़हल के फूल का रस लंबे समय तक खपत के लिए सुरक्षित है और इसे औषधीय रूप से सक्रिय माना गया है जिसमें कई बायोएक्टिव यौगिक शामिल हैं, जो कैंसर में कई कमजोरियों को निशाना बना सकते हैं।

कदंब-

पार्वती एवं कृष्ण प्रिय वृक्ष है। रसिक लोगों का मदन वृक्ष यही कहलाता है। कदंब वृक्ष पुराण वृक्ष है। इसको कल्प वृक्ष की संज्ञा भी प्राप्त है। यह कामोत्तेजक वृक्ष है। गाय की बीमारी में इसकी फूल-पत्ती वाली टहनी लेकर गौशाला में लगा देने से बीमारी दूर होती है। मदिरा या वारुणी बनाने में इसका प्रयोग है। वर्षा ऋतु में पल्लवित होने वाला गोपी प्रिय वृक्ष है जिसकी वृंदावन में बहुतायत है।

गुलमोहर के पेड़, फूलों की वजह से देखने में बहुत खूबसूरत लगते हैं। भारत में सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले सबसे पुराने पेड़ों में से एक गुलमोहर है। गुलमोहर को डेलोनिक्स रेजिया, रॉयल पॉइंसियाना, फ्लेम ट्री या फायर ट्री के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में गुलमोहर के फूल को काफी असरदार औषधि माना जाता है और इसके पेड़ की छाल, पत्तियां और फल को भी औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के पेड़ में फूल अप्रैल और मई के महीने में लगते हैं और नवंबर के आसपास इसकी पत्तियां पीली होकर गिर जाती हैं। कई आयुर्वेदिक दवाओं को बनाने में भी गुलमोहर के फूल, तने, पत्तियों और फल का इस्तेमाल किया जाता है। गुलमोहर के इस्तेमाल से आप कई बीमारियों को दूर कर सकते हैं। आयुर्वेद में गुलमोहर के औषधीय इस्तेमाल के बारे में विस्तार से बताया गया है, जिसका इस्तेमाल लोग पुराने समय से करते आ रहे हैं।

कचनार-

इसकी कली शरद ऋतु में आती है तथा इसका उपयोग सब्जी व अचार बनाने हेतु होता है। इसकी कलियाँ बार-बार मल त्याग की प्रवृत्ति को रोकती हैं। छाल एवं फूल को जल के साथ मिलाकर पुलटिस तैयार की जाती है, जो जले घाव एवं फोड़े के उपचार में उपयोगी है।


शिरीष-

यह जंगली, तेज सुगंध वाला वृक्ष है। इसकी सुगंध जब तेज हवा के साथ आती है, तो आदमी मस्त-सा हो जाता है। खुजली में फूल पीसकर लगाना चाहिए, शिरीष के फूलों के काढ़े से नेत्र धोने से किसी भी प्रकार के विकारों को लाभ मिलेगा।


नागकेशर-

यह कौंकण और गोवा में होता है। यह खुजली नाशक है। यह लौंग-जैसी लंबी डंठी में लगा रहता है। इसके (फूलों) का चूर्ण बनाकर मक्खन में साथ या दही के साथ खाने से रक्तार्श में लाभ होता है। इसका चूर्ण गर्भ धारण में भी सहायक है।


मौलसिरी (बकुल)-

इसका प्रसिद्ध नाम मौलसिरी है। आदिवासी स्त्रियाँ इसका प्रयोग श्रृंगार में फूलों के आभूषण बनाकर प्रयोग करती हैं। इसके पुष्प तेल में मिलाकर इत्र बनाते हैं। इसके फूलों का चूर्ण बनाकर त्वचा पर लेप करने से त्वचा अधिक कोमल हो जाती है। इसके फूलों का शर्बत स्त्रियों के बाँझपन को दूर कर सकने में समर्थ है।


अमलतास-

ग्रीष्म में फूलने वाला गहरे पीले रंग के गुच्छेदार पुष्पों का पेड़ दूर से देखने में ही आँखों को प्रिय लगता है। फूलों का गुलकंद बनाकर खाने से कब्ज दूर होता है। लेकिन अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्तावर, जी मिचलाना एवं पेट में ऐंठन उत्पन्न करता है।

अनार-

शरीर में पित्ती होने पर, अनार के फूलों का रस मिश्री मिलाकर पीना चाहिए। मुँह के छालों में फूल रखकर चूसना चाहिए। आँख आने पर कली का रस आँख में डालना चाहिए।
इन फूलों के पौधों की भीतरी कोशिकाओं में विशेष प्रकार के प्रदव्यी झिल्लियों के आवरण वाले कण कहलाते हैं इन्हें लवक (प्लास्टिड्स) कहते हैं। यह कण जीवित रहते हैं, जब तक फूलों का रंग समाप्त न हो जाए। यह लवक दो प्रकार के होते हैं। इनमें रंगीन लवकों को ‘वर्णी लवक’ कहते हैं। वर्णी लवक ही फूल पौधों को विभिन्न रंग प्रदान करते हैं। वर्णी लवक का आकार निश्चित नहीं होता, बल्कि लवक विभिन्न पौधों में अलग-अलग रचना वाले होते हैं। पौधों में सबसे महत्वपूर्ण लवक है हरित लवक (क्लोरोप्लास्ट), हरा लवक पौधों में हरा रंग ही नहीं देता, बल्कि पौधों में भोजन का निर्माण भी करता है। हरित लवक कार्बन डाइऑक्साइड, गैस, जल और सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोस-जैसे कार्बोहाइड्रेट पदार्थ का निर्माण करते हैं।

कमल-

कमल के बीज को गर्म पानी में डालें और जब ये फूल जाए तो इसमें काला नमक और चायपत्ती डाल कर उबाल लें। इसें आप दिन में कई बार पीएं।
कमल की पत्तियों को पीस कर जली या झुलसी त्वचा पर लगाने से उसकी जलन खत्म होने लगती है। साथ ही इससे जले का निशान भी धीरे-धीरे जला जाता है।
कमल कि पत्तियों को पीस कर इसका रस पीने से शरीर की वसा भी पिघलने लगती है।
एग्जिमा, दाग-धब्बे के साथ ही अगर आग से जल जाएं तो आप इस पर गेंदे और तुलसी की पत्तियों को पीस कर लगाएं। लगातार लगाने से ये समस्याएं दूर हो जाएंगी