20.7.23

आयुर्वेदिक जड़ी बूटी तेज पत्ता के सेहत के लिए फायदे Bay Leaf Fayde

                                             



तेज पत्ता एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। इसकी पत्तियों और तेल का उपयोग दवा बनाने के लिए किया जाता है। कैंसर और गैस के इलाज के लिए तेज पत्‍ते का उपयोग किया जाता है। यह पित्‍त प्रवाह (bile flow) को उत्‍तेजित करता है जो पसीने का कारण बनता है। कुछ लोग डेंड्रफ के लिए सिर में तेज पत्‍ते का उपयोग करते हैं। तेजपत्ता के फायदे में दर्द को दूर करने के लिए त्‍वचा पर इसका उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द (rheumatism) के लिए।
  तेज पत्ता की पत्तियों और फैटी तेल त्वचा पर बाल गिरने के कारण होने वाले संक्रमित फोडे़ (furuncles) का इलाज करने के लिए प्रयोग किया जाता है। तेज पत्ते का उपयोग भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए मसाले के रूप में भी किया जाता है। तेज पत्ते बहुत सारे पोषक तत्व होते है जो हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद होते हैं। इसमें प्रोटीन, आहार फाइबर, मोनोससैचुरेटेड वसा (Monosaturated fat), ओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन ए, विटामिन सी, थायमिन, रिबोफ्लाविन, नियासिन, विटामिन बी 6 और फोलेट की अच्‍छी मात्रा होती है। इसमें बहुत से खनिज जैसे कि मैग्‍नीशियम, कैल्शियम, लौह, फॉस्‍फोरस, पोटेशियम और बहुत सारे एंटीऑक्‍सीडेंट भी मौजूद रहते हैं।

पीले दांतों को सफेद करने के लिए

पीले दांतों को सफेद करने के घरेलू नुस्खे हों या फिर बेदाग और दमकती त्वचा पाने के उपाय. आपको एक नहीं हजारों उपाय मिलेंगे. डायबिटीज को कंट्रोल करने के आसान घरेलू नुस्खे भी इंटरनेट पर बेहद भरे हुए हैं. ऐसे में हो सकता है कि आप दुविधा में आ जाएं कि कौन सा उपाय अपनाएं और कौन सा नहीं.
डायबिटीज को कंट्रोल करने के आसान घरेलू नुस्खे भी इंटरनेट पर बेहद भरे हुए हैं. ऐसे में हो सकता है कि आप दुविधा में आ जाएं कि कौन सा उपाय अपनाएं और कौन सा नहीं. लेकिन आज हम आपको सिर्फ एक ऐसा फूड बताने जा रहे हैं, जो आपकी इन सभी समस्याओं को दूर कर सकता है. यह सर्दी के मौसम में जुकाम का सबसे कारगर रामबाण इलाज भी साबित होगा और जमी हुई कफ को झट से बाहर निकालने का नुस्खा भी. इतना ही नहीं यह पीले दांतों को सफेद करने का भी एक बेहतरीन उपाय है..

डायिबिटीज का उपचार

आयुर्वेद के अनुसार तेज पत्‍तों का उपयोग कर डायिबिटीज का उपचार किया जा सकता है। क्‍योंकि यह रक्‍त ग्‍लूकोज, कोलेस्‍ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) के स्‍तर को कम करने में मदद करते हैं। और अधिक लाभ प्राप्‍त करने के लिए आप इन पत्‍तों का पाउडर भी बना सकते हैं और 30 दिनों तक सेवन कर अपने शरीर में चीनी के स्‍तर को कम कर स‍कते हैं। इसका सेवन करने से आपके दिल की कार्य प्रणाली को नियंत्रित किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि तेज पत्‍ते में एंटीऑक्सिडेंट होते है जो शरीर के इंसुलिन को स्‍वस्‍थ्‍य बनाते हैं। इस प्रकार मधुमेह और इंसुलिन प्रतिरोध (insulin resistance) वाले लोगों के लिए तेज पत्‍ता एक अच्‍छा विकल्‍प होता है।

सांस लेने में होने वाली परेशानी

तेजपत्ता सांस लेने में होने वाली परेशानी से भी निजात दिलाने में असरदार होता है. सांस लेने में दिक्कत होने पर तेजपत्ते को पानी में डालकर उबाल लें. अब इस पानी में 10 मिनट तक भाप बनने दें. 10 मिनट बाद पानी में कपड़ा भिगोकर उसे निचोड़ लें और अपने सीने पर रखें. ऐसा करने से सदी, खांसी छू हो जाएगी.

सांस लेने में होने वाली परेशानी

अगर आप 
सांस लेने में होने वाली परेशानीसे हर वक्त घिरे रहते हैं तो तेजपत्ता आपके लिए रामबाण है. रोज रात को सोने से पहले 2 तेजपत्ता लेकर जला लें और अपने कमरे में रख दें. कुछ देर तक इस तेज पत्ते के धुएं के पास बैठें. ऐसा करने से आपका स्ट्रेस और सारी परेशानियां दूर हो जाएंगी.

पाचन स्‍वास्‍थ्‍य के लिए -

पाचन स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आयुर्वेदिक उपचार तेज पत्‍ते से किया जा सकता है। तेज पत्‍तों का गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल प्रणाली (gastrointestinal) पर बहुत अच्‍छा प्रभाव पड़ता है। अच्‍छे पाचन और स्‍वस्‍थ्‍य गैस्‍ट्रोइंस्‍टाइनल प्रणाली आपके शरीर में मूत्र वर्धक (diuretic) का काम करती है जिससे आपके शरीर के विषाक्‍ता को कम करने में मदद मिलती है। तेज पत्‍तों में पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिक पेट की परेशानी, चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (bowel syndrome) या सेलियाक रोग के लक्षणों को कम करने के लिए बहुत अच्‍छा होता है। आधुनिक आहार में कुछ अधिक जटिल प्रोटीन होते हैं जिन्‍हें पचाना मुश्किल हो सकता है, लेकिन तेज पत्‍तों में पाए जाने वाले एंजाइम अच्‍छे पाचन और पोषक तत्‍वों को प्राप्‍त करने में मदद करते हैं।
दरअसल, तेजपत्ता अरौमेटिक होता है. हम अक्सर खुद को रिलैक्स करने के लिए अरोमा थेरेपी लेते हैं. तेजपत्ता आपको उसी थेरेपी का आनंद दे सकता है.
तेज पत्ता टाइप 2 डायबिटीज के इलाज में भी काफी कारगर है. तेजपत्ता ब्लड कोलेस्ट्रॉल, ग्लूकोज और ट्राइग्लिसराइड के लेवल में कमी लाता है.
डायबिटीज के मरीज इसकी पत्तियों का पाउडर एक महीने तक खाएं. इससे बॉडी का शुगर लेवल कम करने में हेल्प मिलती है.

कैंसर प्रभावों को दूर करने के लिये

कैंसर प्रभावों को दूर करने के लिए तेज पत्‍ता बहुत ही उपयोगी होता है। क्‍योंकि इसमें एंटी-कैंसर (Anti-cancer) गुण होते हैं। तेज पत्‍ते में कैफीक एसिड, कार्सेटिन, यूगानोल और कैचिन होते हैं जिनमें केमो- सुरक्षात्‍मक (chemo-protective) गुण होते हैं जो विभिन्‍न प्रकार के कैंसर को रोकने में मदद करते हैं। तेज पत्‍ते में पार्टनोलॉइड नामक एक फाइटोन्‍ययूट्रिएंट भी होता है जो विशेष रूप से सर्वाइकल कैंसर कोशिकाओं (cervical cancer cells) के विकास को रोकने में मदद करता है।

तेज पत्ते से निकाले गए तेल में एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज़ होती है. तेज पत्ते के तेल की मालिश करने से पैरों में आने वाली मोच, अकड़न, अर्थराइटिस और नॉर्मल पेन में आराम मिलता है.

दिल के दौरे और स्‍ट्रोक

दिल के दौरे और स्‍ट्रोक जैसे हृदय रोगों (cardiovascular diseases) को रोकने की क्षमता तेज पत्‍तों में होती है। क्‍योंकि इसमें शक्तिशाली फाइटोन्‍यूट्रिएंट होते है जो इन समस्‍याओं से हमारे शरीर को सुरक्षा दिलाते हैं। तेज पत्‍तों में रूटिन, सैलिसिलट्स, कैफीक एसिड और फाइटोन्‍यूट्रिएंट (phytonutrient) जैसे उपयोगी यौगिक होते है जो दिल के स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देते हैं और हृदय कार्य में सुधार करते हैं।

तेज पत्ता दांतों की शाइन और सफेदी को बढ़ाने में भी मदद करता है. सफेद दांत पाने के लिए वीक में दो बार तेज पत्ते के पाउडर से ब्रश करें.

गुर्दे और गुर्दे के पत्‍थरों के इलाज के लिए

गुर्दे और गुर्दे के पत्‍थरों के इलाज के लिए तेज पत्‍तों का उपयोग किया जाता है। इसके लिए 200 मिली लीटर पानी में 5 ग्राम तेज पत्‍तों को उबालें जब तक की यह मिश्रण 50 ग्राम न बन जाए। इस काढ़ें का सेवन नियमित रूप से दिन में दो बार करें यह गुर्दे के पत्‍थरों (Kidney Stone) के गठन को रोकने में मदद करेगा।
तेजपत्ता आपकी स्किन पर रिंकल्स पड़ने से बचाता है. इसके लिए आपको तेज पत्ते के पांच सूखे पत्तों को पानी में 2 मिनट तक ढक कर उबालना है. कुछ देर बाद ढक्कन हटाकर खुले में उबालना है. फिर इसके पानी से अपने चेहरे पर भाप लेनी है.

वजन कम करने में तेज पत्‍ते

वजन कम करने में तेज पत्‍ते का उपयोग आपके लिए लाभकारी हो सकता है। तेज पत्‍ते और दाल चीनी के मिश्रण का उपयोग आपके पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्‍छा होता है। जो आपके शरीर में अवांछित वसा दूर करने में मदद करता है। इस मिश्रण में आप हरी चाय को भी मिला सकते है जो आपके चयापचय को बढ़ावा देने और वसा जलने की प्रक्रिया को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है।
इसके लिए आपको 3 तेज पत्‍ते, 1 तुकड़ा दाल चीनी का और एक चम्‍मच हरी चाय की आवश्‍यक्‍ता होती है।
इन अवयवों को उबलते पानी में मिलाएं और इसे 10-15 मिनिट उबलने दें। फिर आप इसे छान कर वजन घटाने वाले पेय की तरह सेवन कर सकते हैं। एक सप्‍ताह के लिए इस चाय को दिन में तीन बार पीएं। ऐसा माना जाता है कि सुबह, नास्‍ते के बाद और सोने के पहले इस चाय का सेवन 7 दिनों तक करने से आपका वजन कम हो सकता है।

तनाव को दूर करने  में 

मन को शांत करने और तनाव को दूर करने के लिए तेज पत्ता को प्रभावी माना जाता है। लिनलूल (linalool) अधिकतर थाइम और तुलसी में पाया जाता है। लेकिन यह तेज पत्‍तों में भी उपस्थित होता है और शरीर में तनाव हार्मोन के स्‍तर को कम करने में मदद करता है। लंबे समय तक स्‍वस्‍थ्‍य के लिए अतिरिक्‍त तनाव हार्मोन खतरनाक हो सकते हैं, इसलिए तेज पत्‍तों का उपयोग करना चाहिए। यह आपके तनाव और चिंता को दूर करने में मदद करता है।

19.7.23

आँखों की रोशनी तेज करने की सबसे अच्छी औषधि बताओ,Netra Jyoti badhane ki aushadhi

 

बचपन से ही हमारे माता-पिता आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए स्वस्थ भोजन, सभी सब्जियां खासकर गाजर खाने की सलाह देते आए हैं। जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, आप भूल जाते हैं कि ये छोटी-छोटी चीजें कितनी महत्वपूर्ण हैं। अगर आप आयुर्वेद में विश्वास करते हैं, तो यहां कुछ जड़ी-बूटियां दी गई हैं जिनका उपयोग आपकी आंखों की रोशनी के लिए किया जा सकता है। ये सभी जड़ी-बूटियां आयुर्वेदिक डॉ. द्वारा सुझाई गई हैं जिनका इस्तेमाल आप भरोसे के साथ कर सकते हैं।
 आजकल हम देखते है की छोटी उम्र से ही बच्चों में आँखों की कमजोरी देखने मिलती है। उसकी सबसे बड़ी वजह है हमारा स्क्रीन टाइम का बढ़ना। आजकाल बच्चे और युवाओं में फोन का ज्यादा इस्तेमाल देखा जाता है और हाल ही में कोविड के बाद वर्क फ्रॉम होम के कारण लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल करने से आँखें कमजोर हो रही है। इसके अलावा जीवनशैली में परिवर्तन, हमारे खानें में पोषक तत्वों की कमी और आनुवांशिक कारणों से भी आँखें कमजोर हो जाती है। अब सवाल यह है की हम कैसे जान सकते है की हमारी आँखें कमजोर हो रही है और आँखों की रौशनी को तेज करने के उपाय क्या है ?
आँखों की रोशनी कम होने के लक्षणआँखों में दर्द होना और पानी निकलना
दूर की चीज़े धुंधली दिखाई देना
पढ़ने में दिक्कत होना
कलर – कंट्रास्ट का अंतर समझ न आना
सिरदर्द होना
आँखें लाल होना
किसी भी चीज पर ध्यान केन्द्रित न कर पाना
ज्यादा रोशनी होने पर रंग बिरंगी रोशनी दिखाई देना

आँखों की रोशनी तेज करने के कुछ उपाय

अगर आप ऊपर के किसी लक्षणों का सामना कर रहे है तो यह बेहद जरूरी है की आप आपनी आँखों का ख़ास ख्याल रखें, नीचे लिखें हुए उपायों को अपनाएं और अपने डॉक्टर का संपर्क जरूर करें। कम से कम दो बार आँखों को ठंडे पानी से धोएं
पढ़ते समय रोशनी का ध्यान अवश्य रखें क्योंकि कम रोशनी में पढ़ने से आँखें ख़राब होती है।
लंबे समय तक कंप्यूटर या फोन की स्क्रीन पर काम न करें। थोड़े थोड़े अंतराल पर आँखें बंध करके उसे आराम दें।
धूल, प्रदूषण, तेज धूप और सूरज की यूवी किरणों से आँखों को बेहद नुकसान होता है, इसलिए जब भी बाहर निकलें अच्छी गुणवत्ता वाले चश्मों का प्रयोग करें।
खाने में विटामिन ए, सी और ओमेगा – 3 फैटी एसिड समेत पोषण युक्त आहार खाईए।
इसके अलावा भी आर्युवेद में कुछ खास नुस़्खें है जिससे आप अपनी आँखों की रोशनी तेज कर सकते है ।

आँखों को तेज करने वाले आर्युवेदिक नुस्खे

आंवले का रस

सर्दियों में मिलने वाला आंवला हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। आंवले में विटामिन सी और एंटीऑक्सीडेंट पर्याप्त मात्रा में होता है। इसके प्रतिदिन सेवन करने से आँखें तेज होती है और रेटिना अच्छे से काम करती है । इसलिए आप को हर रोज़ सुबह आंवले का रस पीना चाहिए।

गाय का घी 

अगर आपको लगता है कि आपकी आँखें कमजोर हो रही है और आप घरेलू नुस्खे अपनाने के बारे में सोच रहे हो तो गाय का घी अक्सीर इलाज है। गाय का घी विटामिन और मिनरल्स से भरपूर है। इसलिए हर रोज़ आपको अपनी आँखों पर घी से हल्की मालिश करनी चाहिए।

भिगोए हुए बादाम

रात भर पानी में भिगो कर रखे हुए बादाम स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभदायक है ही पर आँखों के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस लिए अगर आप अपनी आँखों को स्वस्थ रखना चाहते है तो रात को भिगोए हुए बादाम को सुबह पीसकर पानी में मिलाकर पी जाएं। इस के साथ अगर आप किशमिश और अंजीर भी भीगोकर खाइए क्योंकि वह आंखो की रोशनी तेज करने वाले खाद्यपदार्थ माने जाते है।
इसके अलावा सौंफ और मिश्री हमारे शरीर के लिए बेहद ठंडी होती है इसलिए अगर आप बादाम के साथ सौंफ और मिश्री को मिलाकर उसका पाउडर बना लें और उसे हर रोज़ रात को गरम दूध में मिलाकर पीएंगे तो आँखों की रोशनी तेज करने में मदद मिलेगी।

कैलेंडुला फूल

कैलेंडुला फूल आंखों की विभिन्न समस्याओं के लिए एक शक्तिशाली जड़ी बूटी है। पॉट मैरीगोल्ड के रूप में भी जाना जाता है, कैलेंडुला में विरोधी भड़काऊ, एंटीवायरल और जीवाणुरोधी गुण होते हैं। इसका उपयोग नेत्रश्लेष्मलाशोथ, लालिमा, सूजन और सामान्य आंखों में जलन जैसी आंखों की स्थिति के इलाज और सुधार के लिए किया जाता है।

सौंफ

सौंफ हमारे शरीर को ठंडक तो देती ही है, साथ ही उसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट हमारी आँखों की रोशनी को बरकरार रखने में मदद करते है। इस लिए आप सौंफ का शरबत पी सकते है या फिर दूध में एक चम्मच सौंफ पाउडर मिलाकर पीने से आँखों को काफी फायदा होता है।

नियमित व्यायाम करें

जैसे विविध शारीरिक व्यायाम करने से हमारा शरीर स्वस्थ रहता है वैसे ही आँखों के कुछ व्यायाम है जिससे करने से आँखें ज्यादा लचीली बनती है और उनमें रक्तप्रवाह बढ़ता है। जिसके कारण आपकी एकाग्रता भी बढ़ती है। इस लिए दिन में दो बार आँखों का व्यायाम करें। जिसमें अपनी आँखों को बंद करें फिर आँखों को क्लाकवाइज और एन्टीक्लोकवाइज धुमाएं। उसके बाद आँखों को थोड़ा आराम दें और फिर थोड़ी देर आँखें खोले और बंद करें क्योंकि इससे आपकी आँखों को आराम मिलेगा।

त्रिफला (Triphala)

जैसा कि नाम से पता चलता है, त्रिफला एक सूत्र है जिसमें तीन फल होते हैं - हरीतकी, आंवला और बिभीतकी। यह शक्तिशाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटी शरीर में तीन दोषों को प्रभावित करती है और उन्हें संतुलित करने में मदद करती है। त्रिफला के औषधीय गुण शरीर में टॉक्सिन के लेवल को कम करने में मदद करते हैं।
इस आयु्र्वेदिक जड़ी बूटियों का उपयोग बाहरी और आंतरिक रूप से भी किया जा सकता है। त्रिफला एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन सी से भरपूर होता है, जो आंखों के अंदर और आसपास सूजन, लालिमा और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करता है।

गुलाब जल

गुलाब जल हमारी आँखों को ठंडा रखता है और आँखों को स्वस्थ रखने का बेहद अच्छा आयुर्वेदिक उपाय है। कोटन को गुलाब जल में भिगों कर आँख पर रखने से आँखों में ठंडक रहती है साथ ही अगर आप गुलाब जलनी कुछ बूंदे आँखों में डालते है तो आँखों का कचरा तो साफ हो जाता है साथ ही आँखों की रोशनी भी तेज होती है।

बादाम

बादाम हमारी समग्र सेहत के लिए फायदेमंद है। इसका उपयोग स्मरण शक्ति और आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। डेली 5-7 को रात में भिगो दें और फिर नाश्ते के साथ इनका सेवन करें। बादाम के सेवन पर कोई सख्त नियम नहीं हैं। बादाम में विटामिन ई होता है, और यह स्वस्थ ऊतकों को बढ़ावा देने के लिए सिद्ध होता है और उम्र से संबंधित समस्याओं जैसे कि दृष्टि की गिरावट पर काम करता है। विटामिन ई मोतियाबिंद के इलाज में भी मदद करता है।

FAQs

Q) आँखों की रौशनी तेज करने के लिए घरेलू उपाय

अगर आपको लगता है की आपकी आँखें कमज़ोर हो रही है तो यह कुछ सरल उपाय है जिससे आप अपनी आँखों की रोशनी तेज कर सकते है।

भीगे हुए बादाम, किशमिश और अंजीर खाएं
देसी घी का सेवन करे
आंवला और त्रिफला के सेवन करे
बादाम, सौंफ और मिश्री के सेवन करे
हरीपत्ती वाली सब्जीयॉं और गाजर खाएं

Q) आँखों की रौशनी तेज करने Yoga

कुछ प्रकार के योग करने से है हमारी आँखों की कमजोरी दूर होती है।अगर आप लंबे समय तक कम्प्यूटर पर काम कर रहे है तो पलकें झपकाते रहें
आँखों को गोल गोल घुमाएं
हथेली से आँखों को ढकें
सर्वांगासन करें

कभी दूर तो कभी पास देंखे


Q) आँखों की कमजोरी कैसे दूर करे

हम दुनिया देख पा रहे है उसका कारण है हमारी सुंदर आँखें, अगर आपकी आँखें कमजोर हो रही है तो आप इन बातों का जरूर ध्यान रखें।

लंबे समय तक कम्प्यूटर और मोबाइल पर काम न करें, थोड़ी थोड़ी देर पर आँखें बंद करें और खोले।
ठंडे पानी से आँखों धोएं
आँखों की एक्सरसाइज करें

पेट दर्द के लिए सबसे अच्छी गोली के बारे में बताएं:Pet dard ki sabse acchi dawa batao

 



ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट

डॉक्टर की पर्ची ज़रूरी है

निर्माता

नमेड

दवा के घटक

ड्रोटावेरिन (80मि.ग्रा) + मेफेनेमिक एसिड (250मि.ग्रा)

परिचय
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट एक कॉम्बिनेशन दवा है जिसका इस्तेमाल पेट में दर्द के इलाज के लिए किया जाता है. यह पेट और गट की मांसपेशियों को आराम देकर पेट में दर्द, ब्लोटिंग, असुविधा और ऐंठन को कम करने के लिए असरदार ढंग से काम करता है. यह उन विशेष केमिकल मैसेंजरों को भी ब्लॉक करता है जिसकी वजह से दर्द और असहजता महसूस होती है.
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट को डॉक्टर द्वारा सलाह दी गई खुराक और अवधि के अनुसार भोजन के साथ लिया जाता है. डोज़ आपकी कंडीशन और दवा के प्रति आपके रिसपॉन्स पर निर्भर करेगी. डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि तक इस दवा का सेवन जारी रखें. अगर आप इलाज को जल्दी रोकते हैं तो आपके लक्षण वापस आ सकते हैं और आपकी स्थिति और भी खराब हो सकती है. अपनी हेल्थकेयर टीम को अन्य सभी दवाओं के बारे में बताएं जो आप ले रहे हैं क्योंकि वह दवाएं इस दवा को प्रभावित या इससे प्रभावित हो सकती हैं.
इस दवा के सामान्य साइड इफेक्ट के रूप में डायरिया (दस्त), मिचली आना , उल्टी, पेट में दर्द, मुंह में सूखापन, भूख ना लगना, ज़्यादा प्यास लगना और सीने में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इनमें से अधिकांश अस्थायी होते हैं और आमतौर पर समय के साथ सही हो जाते हैं. अगर आप इनमें से किसी भी साइड इफेक्ट को लेकर चिंतित हैं तो अपने डॉक्टर से बात करें. इससे चक्कर आने और उनींदापन आने जैसी समस्याएं आ सकती हैं, इसलिए जब तक आपको यह पता न चल जाए कि दवा आपको किस प्रकार से प्रभावित करती है, तब तक ड्राइविंग या मानसिक एकाग्रता की आवश्यकता वाली कोई भी गतिविधि न करें. यह दवा लेने के दौरान शराब पीने से बचें क्योंकि इससे आपको अधिक चक्कर आ सकते हैं.

इस दवा को लेने से पहले, अगर आप गर्भवती हैं, गर्भवती होने की योजना बना रहें हैं या स्तनपान करा रहें हैं तो आपको अपने डॉक्टर को बताना चाहिए. अगर आपको किडनी से जुड़ी कोई बीमारी है तो भी आपको अपने डॉक्टर को बताना चाहिए ताकि डॉक्टर आपके लिए उपयुक्त खुराक पर्ची पर लिख सके.

ड्रोमेफ टैबलेट के मुख्य इस्तेमाल

ड्रोमेफ टैबलेट के फायदे

पेट में दर्द के इलाज में

ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट पेट और आंत (gut) में अचानक मांसपेशियों में ऐंठन या संकुचन से असरदार ढंग से राहत देता है, जिससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और भोजन पाचन में सुधार होता है. यह मस्तिष्क में उन केमिकल मैसेंजर को भी ब्लॉक करता है जो दर्द की अनुभूति के लिए जिम्मेदार होता है.. यह पेट में दर्द (या स्टमक पेन) और मरोड़, पेट फूलना और असुविधा के इलाज में मदद करता है. डॉक्टर की सलाह के अनुसार ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट लें. आखिरकार, यह आपको अपनी दैनिक गतिविधियों के बारे में अधिक आसानी से जाने में और बेहतर, अधिक सक्रिय, जीवन स्तर प्राप्त करने में मदद करेगा.
ड्रोमेफ टैबलेट के साइड इफेक्ट
इस दवा से होने वाले अधिकांश साइड इफेक्ट में डॉक्टर की सलाह लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और नियमित रूप से दवा का सेवन करने से साइट इफेक्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं. अगर साइड इफ़ेक्ट बने रहते हैं या लक्षण बिगड़ने लगते हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह लें

ड्रोमेफ के सामान्य साइड इफेक्ट

मिचली आना
उल्टी
डायरिया (दस्त)
मुंह में सूखापन
सीने में जलन
चक्कर आना
अनिद्रा (नींद में कठिनाई)
हाइपोटेंशन (निम्न रक्तचाप)
Fast heart rate
पसीना आना
कब्ज
लीवर एंजाइम में बढ़ जाना
सफ़ेद रक्त कोशिकाओं (वाइट ब्लड सेल्स) में वृद्धि
सफेद रक्त कोशिकाओं (वाइट ब्लड सेल्स) की संख्या में कमी
ब्लड प्लेटलेट्स कम होना
Purpura
एग्रेन्युलोसाइटोसिस (खून में ग्रेन्युलोसाईट की कमी)
सांस फूलना
कान में घंटी बजना
पेट में दर्द
पेट फूलना (गैस बनना)
अपच
पेट में सूजन
उलझन
डिप्रेशन


ड्रोमेफ टैबलेट का इस्तेमाल कैसे करें

इस दवा की खुराक और अनुपान की अवधि के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें. इसे साबुत निगल लें. इसे चबाएं, कुचलें या तोड़ें नहीं. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट को भोजन के साथ लेना बेहतर होता है.

ड्रोमेफ टैबलेट किस प्रकार काम करता है

ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट दो दवाओं का मिश्रण हैः ड्रोटावेरिन और मेफेनेमिक एसिड, जो पेट में दर्द और ऐंठन से राहत देता है. ड्रोटैवेराइन एक एंटी-स्पैजमोडिक दवा है जो पेट की अरेखित या चिकनी मांसपेशियों से होने वाले संकुचन या ऐंठन से आराम दिलाती है. मेफेनैमिक एसिड नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लामेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) नामक दवाओं के एक समूह से सम्बन्ध रखता है. यह पेट में दर्द और सूजन का कारण बनने वाले कुछ रासायनिक मैसेंजर के स्राव को अवरुद्ध करके काम करता है.


सुरक्षा संबंधी सलाह

अल्कोहल
असुरक्षित
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के साथ शराब पीना सुरक्षित नहीं है.

गर्भावस्था

डॉक्टर की सलाह लें
गर्भावस्था के दौरान ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल करना असुरक्षित हो सकता है.. हालांकि, इंसानों से जुड़े शोध सीमित हैं लेकिन जानवरों पर किए शोधों से पता चलता है कि ये विकसित हो रहे शिशु पर हानिकारक प्रभाव डालता है. आपके डॉक्टर पहले इससे होने वाले लाभ और संभावित जोखिमों की तुलना करेंगें और उसके बाद ही इसे लेने की सलाह देंगें. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

स्तनपान

डॉक्टर की सलाह लें
स्तनपान के दौरान ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के इस्तेमाल से संबंधित जानकारी उपलब्ध नहीं है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

ड्राइविंग

असुरक्षित
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के इस्तेमाल से ऐसे साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं जिससे आपकी गाड़ी चलाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
जैसे ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के कारण वर्टिगो (चक्कर आने) की समस्या हो सकती है.

किडनी

सावधान
किडनी की बीमारियों से पीड़ित मरीजों में ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल सावधानी के साथ किया जाना चाहिए. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट की खुराक में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.
किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल करने की सलाह नहीं दी जाती है.

लिवर

सावधान
लिवर की बीमारियों से पीड़ित मरीजों में ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट की खुराक में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

अगर आप ड्रोमेफ टैबलेट लेना भूल जाएं तो?

अगर आप ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट निर्धारित समय पर लेना भूल गए हैं तो जितनी जल्दी हो सके इसे ले लें. हालांकि, अगर अगली खुराक का समय हो गया है तो छूटी हुई खुराक को छोड़ दें और नियमित समय पर अगली खुराक लें. खुराक को डबल न करें.

18.7.23

सुपर फूड है आंवला, जानिए गुण और उपयोग Benefits of Amala




सेहत के लिहाज से आंवले को बेहद फायदेमंद माना जाता है. आंवले में तमाम औषधीय तत्‍व पाए जाते हैं, जो कई रोगों से बचाने में मददगार हैं. आयुर्वेद में आंवले को कुदरत का वरदान माना गया है. आंवला विटामिन-सी, कैल्शियम, एंटीऑक्‍सीडेंट्स, आयरन, पोटैशियम जैसे तमाम पोषक तत्‍वों का खजाना है. आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत शर्मा की मानें तो आंवले को अगर रोजाना सुबह खाली पेट खाया जाए, तो इसके लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं. आप आंवले को कच्‍चा या मुरब्‍बे के रूप में खा सकते हैं. हालांकि डायबिटीज के मरीज इसे कच्‍चा ही लें या अपनी डाइट में जूस, अचार या चटनी के रूप में शामिल कर सकते हैं. नियमित आंवला का सेवन डाइजेस्टिव सिस्टम को बेहतर करने के साथ-साथ ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर लेवल और स्किन के लिए कई फायदेमंद होता है.
आंवला एक ऐसा फूड है, जिसका फल और सब्जी दोनों के रूप में उपयोग किया जाता है. फल और सब्जी के अलावा आंवला एक बहुत कारगर औषधि है. आयुर्वेद में आंवला कई सामान्य से लेकर गंभीर रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है. वात, पित्त या कफ प्रकृति के रोगों को ठीक करने के लिए आप आंवला चूर्ण का किस तरह से उपयोग कर सकते हैं,

वात प्रकृति के रोगों के लिए

वात प्रकृति (Vata Dosha) के रोग यानी वे रोग जो मुख्य रूप से शरीर में दर्द की वजह बनते हैं. यदि आपको वात संबंधी किसी भी रोग की समस्या रहती है तो आप हर दिन 5 ग्राम आंवला चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं. इस मिक्स को आप खाना खाने के पहले या फिर खाना खाने के बाद ले सकते हैं.

पित्त प्रकृति के रोगों के लिए

जब शरीर में पित्त (Pitta Dosha) की मात्रा अधिक बढ़ जाती है तो पेट और पाचन संबंधी रोगों की समस्या अधिक होती है. जैसे, एसिडिटी (Acidity), अपच (Low Digestion), कब्ज (Constipation), सिर दर्द, खट्टी डकारें आना इत्यादि बीमारियों की वजह शरीर में बढ़ा हुआ पित्त होता है.
इन समस्याओं पर कंट्रोल करने के लिए आफ 5 ग्राम आंवला पाउडर को घी के साथ मिलाकर खाना खाने के बाद इसका सेवन करें. कोई भी दवाई खाना खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है तो इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं होता है कि खाना खाते ही आप दवाई खा लें. कम से कम 20 से 25 मिनट का गैप देकर दवाई का सेवन करना चाहिए.

कफ के कारण होने वाले रोगों में

जब शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है तो शरीर हमेशा सुस्त रहता है, नींद आने की समस्या या आलस रहता है. पसीने में बहुत चिपचिपाहट होती है, खांसी और सांस लेने में तकलीफ की समस्या हो सकती है. डिप्रेशन हो सकता है. इन सभी रोगों से बचाव के लिए आप आंवला पाउडर को शहद के साथ मिलाकर खाएं. इसका सेवन आप भोजन से पहले या भोजन के बाद कर सकते हैं.

आंवले  के गुण 

आंवले का स्वाद शुरू में बहुत खट्टा लगता है लेकिन इसे चबाकर खाने के बाद मुंह का टेस्ट मीठा हो जाता है.
आंवला शरीर में पित्त की मात्रा को घटाने का काम करता है.
आंवला शरीर में शीतलता बढ़ाता है और गर्मी के असर को शांत करता है.
आंवला पेट के रोगों के साथ ही त्वचा के रोगों को दूर करने में भी बहुत प्रभावी औषधि है
चरक संहिता में आयु बढ़ाने, बुखार कम करने, खांसी ठीक करने और कुष्ठ रोग का नाश करने वाली औषधि के लिए अमला का उल्लेख मिलता है। इसी तरह सुश्रुत संहिता में आंवला के औषधीय गुणों के बारे में बताया गया है. इसे अधोभागहर संशमन औषधि बताया गया है, इसका मतलब है कि आंवला वह औषधि है, जो शरीर के दोष को मल के द्वारा बाहर निकालने में मदद करता है। पाचन संबंधित रोगों और पीलिया के लिए आंवला (Indian gooseberry) का उपयोग किया जाता है। इसे कई जगहों पर अमला नाम से भी जाना जाता है।

आंवला के फायदे

आंवला के प्रयोग से अनगिनत फायदे (amla ke fayde) होते हैं। आंवला खून को साफ करता है, दस्त, मधुमेह, जलन की परेशानी में लाभ पहुंचाता है। इसके साथ ही यह जॉन्डिस, हाइपर-एसिडिटी, एनीमिया, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की समस्या), वात-पित्त के साथ-साथ बवासीर या हेमोराइड में भी फायदेमंद होता है। यह मल त्याग करने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। यह सांसों की बीमारी, खांसी और कफ संबंधी रोगों से राहत दिलाने में सहायता करता है। अमला आंखों की रोशनी को भी बेहतर करता है। अम्लीय गुण होने के कारण यह गठिया में भी लाभ पहुंचाता है।

26.6.23

ट्राइग्लिसराइड्स बढ़ने Increased triglyceride के कारण और उपचार

 



ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides) एक तरह का फैट होता है, जो खून में पाया जाता है। हमारा शरीर इस फैट को इस्तेमाल करके ऊर्जा पैदा करता है। बेहतर सेहत के लिए कुछ ट्राइग्लिसराइड्स का शरीर में हेल्दी लेवल जरूरी है। लेकिन, इसकी ज्यादा मात्रा शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है। इससे दिल की बीमारी का खतरा पैदा हो सकता है। साथ ही इसके कारण हाई ब्लड प्रेशर और हाई ब्लड शुगर भी एक साथ हो सकते हैं। साथ ही हाई ट्राइग्लिसराइड्स (high triglycerides) मोटापा भी बढ़ाता है। पर प्रश्न ये है कि ट्राइग्लिसराइड्स बढ़ता कब और क्यों। साथ ही ट्राइग्लिसराइड्स बढ़ने के लक्षण क्या हैं? तो, आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से। पर इन सबसे पहले जानते हैं ट्राइग्लिसराइड्स कितना होना चाहिए।

  जैसी ही हमारे खुन में ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ता  increased triglyceride  है, यह रक्त कोशिकाओं की दीवारों के ऊपर एक परत बना देता है जिसके परिणामस्वरूप पुरे शरीर में रक्त का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता है। इस कारण हृदय की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है क्योंकि यह लगातार रक्त को आवश्यकता से अधिक बल से पंप करता है।
 यदि ट्राइग्लिसराइड का स्तर 200mg/dl से ज्यादा बढ़ता है तो कमर का भाग शरीर के अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा मोटा हो जाता है और यह डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है।
 ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ता  increased triglyceride है रक्त कोशिकाएं अवरूद्ध हो जाती है और इस अवरोध को दुर करने के लिए पैन्क्रीया लाइपेस एन्जाइम के उत्पादन के लिए पैन्क्रीया की कोशिकाएं संख्या में बढ़ जाती है। इस कारण पैन्क्रीया का आकार बढ़ जाता है जिससे पैन्क्रीयाइटिस होता है।
  ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर बढ़ने के कारण कई समस्याएँ जैसे आँखों की नसें प्रभावित होती है और इसका परिणाम अंधापन भी हो सकता है। इस दौरान हमें शरीर में कई जगहों जैसे घुटनों के जोड़, कोहनी आदि पर वसा की गांठे महसूस होती है। ये गांठे पीले रंग की हो सकती है।
आमतौर पर ट्राइग्लिसराइड का सामान्य स्तर स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है क्योंकि ये हमारे शरीर के द्वारा ऊर्जा के रूप में उपयोग होते है लेकिन ज्यादा कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थों के सेवन से हमारे शरीर में ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ता है और यह हृदय रोग और मेटाबॉलिक सिंड्रोम के खतरे को बढ़ाता है। सामान्यतया ट्राइग्लिसराइड के स्तर का पता कोलेस्ट्रॉल के लिए किए जाने वाले ब्लड टेस्ट से चल जाता है।

ट्राइग्लिसराइड का स्वास्थ्य पर प्रभाव - increased triglyceride

ट्राइग्लिसराइड के स्वास्थ्य पर कई प्रभाव पड़ते है। यदि ट्राइग्लिसराइड का स्तर मध्यम से ज्यादा हो तो हमें कई रोग होने का खतरा बढ़ जायेगा।

1. हृदय रोग: increased triglyceride

जैसी ही हमारे खुन में ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ता है, यह रक्त कोशिकाओं की दीवारों के ऊपर एक परत बना देता है जिसके परिणामस्वरूप पुरे शरीर में रक्त का प्रवाह ठीक से नहीं हो पाता है। इस कारण हृदय की मांसपेशियों पर दबाव बढ़ता है क्योंकि यह लगातार रक्त को आवश्यकता से अधिक बल से पंप करता है।
इससे हमें हृदय रोग और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

2. डायबिटीज : increased triglyceride

चीनी, ज्यादा कैलोरी युक्त खाद्य पदार्थ, कार्बोहाइड्रेट का सेवन जो आसानी से पच जाते है और खुन में ट्राइग्लिसराइड में बदल जाते है।
यदि ट्राइग्लिसराइड का स्तर 200mg/dl से ज्यादा बढ़ता है तो कमर का भाग शरीर के अन्य अंगों की तुलना में ज्यादा मोटा हो जाता है और यह डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है। यदि व्यक्ति को पहले से डायबिटीज है तो ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ना शुगर लेवल के नियंत्रण में नहीं होने का संकेत है। यह अनेक शारीरिक समस्याओं को पैदा करता है।

3. पैन्क्रीयाइटिस : increased triglyceride

पैन्क्रीया, एक अंग है जो इंसुलिन, ग्लूकागन आदि हार्मोन्स स्त्रावित करता है जो मेटाबॉलिज्म और भोजन के पाचन के लिए उत्तरदायी होते है। पैन्क्रीयाइटिस इस अंग में सुजन की एक अवस्था है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब भी रक्त में ट्राइग्लिसराइड का स्तर बढ़ता है रक्त कोशिकाएं अवरूद्ध हो जाती है और इस अवरोध को दुर करने के लिए पैन्क्रीया लाइपेस एन्जाइम के उत्पादन के लिए पैन्क्रीया की कोशिकाएं संख्या में बढ़ जाती है। इस कारण पैन्क्रीया का आकार बढ़ जाता है जिससे पैन्क्रीयाइटिस होता है।

4. अन्य ट्राइग्लिसराइड्स

ट्राइग्लिसराइड्स का स्तर बढ़ने के कारण कई समस्याएँ जैसे आँखों की नसें प्रभावित होती है और इसका परिणाम अंधापन भी हो सकता है। इस दौरान हमें शरीर में कई जगहों जैसे घुटनों के जोड़, कोहनी आदि पर वसा की गांठे महसूस होती है। ये गांठे पीले रंग की हो सकती है।

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25.6.23

हथेली और तलवों मे पसीना Hatheli talvon me pasina क्यों होता है क्या हैं उपचार

 



सामान्यत: शरीर के कुछ खास अंगों में अधि‍क पसीना आता है लेकिन हथेली और तलवों में हर किसी को पसीना नहीं आता। अगर आपको भी हथेली और पैर के तलवों में पसीना आता है, तो यह जानकारी आपके लिए है। समान्य तापमान पर भी हथेली और तलवों में पसीना आना बिल्कुल सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह किसी स्वास्थ्य समस्या का सूचक भी हो सकता है।  

hatheli aur talavon par paseena ke upchar  

दरअसल सामान्य या कम तापमान पर भी पसीना आना, और खास तौर से हथेली व पैर के तलवों में पसीना आने की यह समस्या हाइपरहाइड्रोसिस नामक बीमारी भी हो सकती है। कभी कभार ऐसा होना सामान्य हो सकता है, लेकिन अक्सर इस तरह से पसीना आना हाइपरहाइड्रोसिस की ओर इशारा करता है। केवल हथेली या तलवे ही नहीं पूरे शरीर में अत्यधि‍क पसीना आना भी इस समस्या को दर्शाता है।

hatheli aur talavon par paseena ke upchar  

पसीना आना भले ही शरीर से अवांछित तत्वों को बाहर निकालने की प्रक्रिया है जो त्वचा और शरीर की आंतरिक सफाई का एक हिस्सा है, लेकिन दूसरी ओर अधि‍क पसीना आना आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ भी सकता है। ज्यादा पसीना नमी पैदा करता है, और इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया आपके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और कई बीमारियों को पैदा करने में महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं।
  हाइपरहाइड्रोसिस का इलाज सामान्यत: स्वेद ग्रंथि के ऑपरेशन द्वारा होता है लेकिन अत्यधि‍क पसीने की परेशानी को आप कुछ हद तक कम कर सकते हैं।इसके लिए आपको ऐसे कपड़ों का चुनाव करना चाहिए जो पसीने को आसानी से सोख ले और आपकी त्वचा सांस ले सके।   
इसके अलावा हथेली और के तलवों में आने वाले पसीने से बचने के लिए उन्हें खुला रखना बेहद जरूरी है। दिनभर अगर आप ऑफिस में या बाहर, मोजे और जूतों से पैक रहते हैं, तो घर पर उन्हें पूरी तरह से खुला रखें। इसके अलावा जब भी संभव हो पैरों से जूते और मोजे निकाल दें। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी नहीं पनपेंगे। 

hatheli aur talavon par paseena ke upchar  

 हाथों के लिए भी खुलापन बहुत जरूरी है और इसमें लगातार हवा लगती रहे इस बात का भी ध्यान रखें। हाथों को हमेशा साफ रखें और शरीर की सफाई का भी विशेष ध्यान रखें।
प्रतिदिन नहाएं और त्वचा को अच्छी तरह से पोंछकर साफ करें, इसके बाद डिओ या अन्य उत्पादों का प्रयोग करें। हो सके तो नहाने के पानी में एंटी बैक्टीरियल लिक्विड की कुछ बूंदे डाल दें।
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लोध्र के आयुर्वेदिक उपयोग Ayurvedic uses of Lodhra

 



लोध्रा क्या है?

लोध्रा (lodhra herb) के पेड़ मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल पतली तथा छिलकेदार होती है। इसके फूल सफेद और हल्के पीले रंग के तथा सुगन्धित होते हैं। लोध्रा के द्वारा लाख (लाक्षा) को साफ किया जाता है, इसलिए इसे लाक्षाप्रसादन भी कहते हैं।
इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिन्हें क्रमश: लोध्र व पठानी लोध्र कहते हैं। लोध्रा कषैला, कड़ुआ, पचने में हल्का, रूखा, कफ-पित्त का नाशक और आँखों के लिए लाभकारी होता है।

अनेक भाषाओं में लोध्रा के नाम

लोध्रा का लैटिन नाम Symplocos racemosa Roxb. (सिम्प्लोकॉस रेसिमोसा) Syn-Symplocos intermedia Brand है और यह कुल Symplocaceae (सिम्प्लोकेसी) का है। इसे अन्य इन नामों से भी जाना जाता हैः-
Lodhra in –
Hindi (lodhra meaning in hindi) – लोध
Urdu – लोधपठानी (Lodapathani)
Oriya – लोधो (Lodho)
English – Californian cinchona (कैलीफोर्नियन सिनकोना) लोध बार्क (Lodh tree), स्माल बार्क ट्री (Small bark tree), लॉटर बार्क (Lotur bark)
Arabic – मूगामा (Moogama)।
Sanskrit – लोध्र, तिल्व, तिरीट, गालव, स्थूलवल्कल, जीर्णपत्र, बृहत्पत्र, पट्टी, लाक्षाप्रसादन, मार्जन
Assamese -भोमरोटी (Bhomroti); कन्नड़ : पाछेट्टू (Pachettu), लोध (Lodh), लोध्र (Lodhara)
Konkani – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Gujarati – लोधर (Lodar)
Telugu (Lodhra in Telugu) – लोड्डूगा (Lodduga), लोधूगा चेट्टु (Lodhdhuga-chettu)
Tamil (Lodhra Meaning in Tamil) – वेल्ली-लोथी (Velli-lothi), काम्बली वेत्ती (Kambali vetti)
Bengali – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Marathi – मराठी – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Nepali – लोध्र (Lodhara)
Malayalam – पाछोत्ती (Pachotti)

लोध्रा का औषधीय गुण

लोध्रा आँख, कान, मुंह और स्त्री रोगों आदि के लिए रामबाण का काम करती है। यह खून की गर्मी, मधुमेह, थैलीसिमिया आदि रक्त से जुड़े रोग, बुखार, पेचिश, सूजन, अरुचि, विष तथा जलन आदि का नाश करता है। इसके फूल तीखे, कड़ुए, ठंडी तासीर वाले होते हैं जो कफ व पित्त का नाश करने वाले होते हैं। इसके तने की छाल सूजन कम करने वाली, बुखार को ठीक करने वाली, खून का बहाव रोकने वाली, पाचन सुधारने वाली होती है।

लोध्रा के फायदे

अब तक आपने जाना कि लोध्रा के कितने नाम हैं। आइए अब जानते हैं कि लोध्रा का औषधीय प्रयोग कैसे और किन बीमारियों में किया जा सकता हैः-

मोटापा घटाने के लिए करें लोध्रा का सेवन

लोध्रा का औषधीय गुण वजन कम करने में बहुत काम आता है। 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से मोटापा जल्दी कम होने में मदद मिलती है।

आँखों के रोग में लोध्रा का प्रयोग 

आँखों के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता हैं-
आँख में शुक्र रोग होने पर हल्दी, मुलेठी, सारिवा तथा पठानी लोध्र के काढ़ा से सेंकना चाहिए। इसके अलावा लोध्र के सूक्ष्म चूर्ण (Lodhra Powder) को स्वच्छ कपड़े के टुकड़े में बांधकर पोटली बना लें। इसे गुनगुने जल में डुबाकर आंखों को सेंकना चाहिए।
सफेद लोध्र को घी में भूनकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुनगुने जल में भिगोकर, खूब मल लें। इसे ठंडा करके कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आँखों के दर्द से छुटकारा मिलता है।
लोध्र को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लेप करने से भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
सेंधा नमक, त्रिफला, पीपल, लोध्र तथा काला सुरमा को बराबर मात्रा में लें। इसे नींबू के रस में घोंटकर आंख में काजल की तरह लगाएं। इससे भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
हरड़ की गुठली की मींगी, हरड़ चूर्ण, हल्दी, नमक तथा लोध्र का बराबर मात्रा ले। इनके चूर्ण को हरड़ के पत्तों के रस में घोटकर आंख पर लगाने से भी आंखों से जुड़े विकारों का नाश होता है।
आँख आने पर पठानी लोध्र की छाल के चूर्ण को घी में भून लें। इसे आँख के बाहरी भाग में लेप लगाने से लाभ होता है। आप चिकित्सक से सलाह लेकर पतंजलि लोध्रा चूर्ण का प्रयोग भी कर सकते हैं।
पित्तरक्त के कारण आँख आने पर बराबर मात्रा में श्वेत लोध्र की छाल तथा मुलेठी का चूर्ण बना लें। इन्हें घी में भूनकर उसकी पोटली बनाकर दूध से भिगोएं। इसकी बूंदों को आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।
आँख फूलने पर सफेद लोध्र की छाल के चूर्ण को गाय के घी में भून लें। इसकी पोटली बनाकर गुनगुने जल में भिगोकर, मसलकर, ठंडा कर लें। इस जल से आंखों को धोने से लाभ होता है।
आँखों में जलन, खुजली तथा दर्द आदि की हालत में घी में भुने लोध्र एवं सेंधा नमक को कांजी से पीसकर पोटली बना लें। इसकी बूँदों को आंखों में गिरने से जलन, खुजली तथा दर्द का नाश होता है।
पित्त, रक्त एवं वात विकार के कारण आँख आने पर नींबू के पत्ते तथा लोध्र की छाल को पुटपाक विधि से पकाएं।। इसके चूर्ण अथवा काढ़े में दूध मिलाकर आंखों में 2-2 बूंद टपकाने से लाभ होता है।
लोध्र तथा मुलेठी को समान मात्रा में लें। इनके चूर्ण बनाकर घी में भूनकर, बकरी के दूध में मिला लें। इसे आँखों पर लगाने से भी आँख आने की समस्या में लाभ होता है।
खून की अशुद्धता से आंख आने पर त्रिफला, लोध्र, मुलेठी, शक्कर और नागरमोथा का उपयोग करें। इनको समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर चारों तरफ लगाने से लाभ होता है।
लाख, मुलेठी, मंजीठ, लोध्र, कृष्ण सारिवा तथा कमल को समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर लगाने से भी आंखों की समस्या में लाभ होता है।

पीलिया में लोध्रा का इस्तेमाल लाभदायक

अगर पीलिया के लक्षणों से आराम नहीं मिल रहा है तो 15-20 मिली लोध्रासव (symplocos racemosa) का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग में लाभ मिलने की संभावना रहती है।

कान के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल फायदेमंद

कान के रोग से परेशान हैं? लोध्रा को दूध में पीसकर, छान लें। इसे कान में 1-2 बूंद डालने से कान के रोगों से राहत मिलती है।

दांतों के रोग में लोध्रा के उपयोग से लाभ

दांत की जड़ों/मसूड़ों से खून आने की स्थिति में लोध्रा की छाल का काढ़ा बना लें। इसका गरारा/कुल्ला करने से दांतों से खून आना बंद हो जाता है और मुंह के रोगों में लाभ होता है।

लोध्रा के सेवन से सूखी खाँसी का इलाज

लोध्रा के 2-3 ग्राम पत्तों को पीस लें। इसे घी में भूनकर उसमें शक्कर मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी बंद होती है, अधिक प्यास लगने की समस्या ठीक होती है, खांसी ठीक होती है तथा आँव-पेचिश आदि में लाभ होता है।

पेट के कीड़े को खत्म करने के लिए करें लोध्रा का उपयोग

पेट में कीड़ा हुआ है और इस परेशानी के कारण रातों की नींद हराम है। इसके लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से पेट के कीड़े या तो नष्ट हो जाते हैं या निकल जाते हैं।

लोध्रा के उपयोग से श्वेतप्रदर/ल्यूकोरिया का इलाज

2-3 ग्राम पठानी लोध्र की छाल के पेस्ट में बरगद की छाल का 20 मिली काढ़ा मिला लें। इसे पीने से श्वेत प्रदर मतलब ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
लोध्र का काढ़ा बनाकर योनि को धोने से ल्यूकोरिया तथा अन्य योनि-विकारों में लाभ होता है।
तुम्बी के पत्ते और लोध्र की छाल को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे योनि पर लेप करने से प्रसूता स्त्री के योनि के घाव भर जाते हैं।

गर्भपात रोकने में मदद करता है लोध्रा

आठवें माह में यदि गर्भपात की आशंका हो तो 1-2 ग्राम लोध्र चूर्ण (lodhra powder), मधु और एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दूध में घोलकर गर्भवती को पिलाने से गर्भ स्थिर हो जाता है और गर्भपात होने का खतरा कम हो जाता है।

मासिक धर्म विकार में लोध्रा से फायदा

लोध्र की छाल को पीसकर पेट के निचले हिस्से में लगाएं। इससे मासिक धर्म विकारों में लाभ होता है। लोध्र को पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन के दर्द ठीक होते हैं।

घाव सुखाने के लिए करें लोध्रा का इस्तेमाल

अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कटहल की छाल के महीन चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भरता है।
लोध्र, मुलेठी, प्रियंगु आदि के चूर्ण को घाव के मुंह पर छिड़कें। इसे हल्का रगड़ कर पट्टी बाँध देने से खून का थक्का जम जाता है।
उभर रहे घाव में प्रियंगु, लोध्र, कट्फल, मंजिष्ठा तथा धातकी के फूल का चूर्ण छिड़कें। इससे घाव शीघ्र भर जाता है।
मुक्ताशुक्ति चूर्ण मिले हुए धातकी फूल के चूर्ण तथा लोध्र के चूर्ण (lodhra Churna) का प्रयोग करने से भी घाव शीघ्र भर जाता है।

डायबिटीज में लोध्रा 

डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से धीरे धीरे रक्त मे शर्करा की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है।

रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना) की समस्या में लोध्रा 

खून की अशुद्धता में उशीरादि चूर्ण (खस, कालीयक, लोध्र आदि) अथवा लोध्र चूर्ण (1-2 ग्राम) में बराबर मात्रा में लें। इनमें लाल चंदन चूर्ण मिला लें। इसे चावल के धोवन में घोल कर शक्कर मिला कर पिएं। इससे रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना), जलन, बदबूदार सांसों की बीमारी ठीक होती है।

लोध्रा के इस्तेमाल से मुंहासे का इलाज

लोध्र तथा अरहर को पीसकर मुंह पर लेप के रूप में लगाने से चेहरा कान्तियुक्त होता है तथा मुंहासों का नाश होता है।

बवासीर में लोध्रा 

15-20 मिली लोध्रासव (lodhradi) का सेवन करने से अर्श (बवासीर) में फायदा होता है।

बुखार में लोध्रा से फायदा

लोध्र (lodhradi), चन्दन, पिप्पली मूल तथा अतीस के 1-2 ग्राम चूर्ण में शक्कर, घी तथा शहद मिलाकर दूध के साथ पीने से बुखार उतर जाता है।

कुष्ठ रोग में लोध्रा 

कुष्ठ रोग के लक्षणों से आराम पाने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग से राहत मिलने में आसानी होती है।

त्वचा के लिए फायदेमंद लोध्रा

लोध्रा में शीत और कषाय गुण होने के कारण यह त्वचा पर होने वाले कील मुंहासे, जलन आदि स्थिति में ठंडक प्रदान करता है साथ ही त्वचा की सामान्य संरचना को बनाये रखता है।

अल्सर में सहायक लोध्रा 

अल्सर होने का कारण पित्त दोष का बढ़ना होता है जिसके वजह से प्रभावित स्थान पर अत्यधिक जलन होने लगता है। ऐसे में लोध्र के शीत गुण के कारण यह अल्सर जैसी परेशानी में भी लाभ पहुंचाता है साथ ही ये कषाय होने से अल्सर को शीघ्र भरने में मदद करता है।

नकसीर के इलाज में लोध्रा का उपयोग 

नकसीर होने का मुख्य कारण शरीर में पित्त होता है। ऐसे में शरीर में गर्मी बढ़ती है जो कि नकसीर का कारण बनती है। ऐसे में लोध्रा में पाए जाने वाले शीत गुण के कारण यह इस अवस्था में लाभ मदद करता है।

लोध्रा के सेवन की मात्रा

पेस्ट – 2-3 ग्राम

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