31.1.22

योग आसन बेहतर सेक्स लाईफ के लिए//Yogasan for better sex life

 


योग एक ऐसा आसन होता है जो आपको पूर्ण रूप से स्वस्थ होने में मदद करता है। खुद को स्वस्थ रखने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती है। आप किसी भी उम्र में योगासन करना शुरू कर सकते हैं। सिर्फ योग करने का सही तरीका और जानकारी के बारे में पता होना चाहिए। योग आपको शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने में सहायता करता है। जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ होंगे तभी किसी भी उम्र में एक स्वस्थ सेक्स जीवन को जी पायेंगे। जीवन हो या शरीर किसी भी क्षेत्र में कोई भी समस्या हो उसका सीधा प्रभाव आपके सेक्स जीवन पर पड़ता है।


 अगर आप किसी भी कारणवश तनाव या अवसाद में हैं सेक्स के प्रति रूची कम हो जाएगी। शरीर में किसी भी प्रकार का कष्ट सेक्स के दौरान चरम अवस्था तक पहुँचने में बाधा उत्पन्न कर सकता है। आपके खराब जीवनशैली या किसी भी प्रकार के बीमारी के कारण कई प्रकार के सेक्स संबंधी समस्याओं का सामना आपको करना पड़ सकता है, जैसे- इरेक्टाइल डिसफंक्शन(erectile dysfunction) या शीघ्रपतन (premature ejaculation) आदि। कहने का मतलब यह है कि सेक्स लाइफ का पूरा आनंद उठाने के लिए खुद को स्वस्थ रखना ज़रूरी होता है। तभी आप एक दूसरे को पूर्ण रूप से संतुष्ट और खुश कर पायेंगे।
स्वस्थ और बेहतर सेक्स जीवन का आनंद उठाने के लिए अन्य उपायों का सहारा लेने के बजाय योग का सहारा लेना सबसे सुरक्षित और सही उपाय होता है। इन योगासनों के द्वारा आप अपने सेक्स लाइफ का पूरा आनंद उठा सकते हैं-

behtar sex ke liye yoga 

हलासन-

 इस आसन को करने के लिए पहले शवासन के मुद्रा में लेट जाये। फिर अच्छी तरह से साँस लेने के बाद कमर से पैरों को पीछे की ओर धीरे-धीरे ले जाये। और हाथों को उल्टे दिशा में सीधा करके रखें। कुछ सेंकेड इस अवस्था में रहने के बाद शरीर को पूर्व के अवस्था में लेकर जाये।

लाभ-

 यह आसन करने से यौनांगों में उत्तेजना का संचार होता है जिसके कारण काम की इच्छा जागृत होती है। अगर किसी को नपुंसकता की समस्या है तो इस आसन के द्वारा इस समस्या से भी धीरे-धीरे राहत मिलने लगती है।

behtar sex ke liye yoga 

उष्ट्रासन-

  इस आसन को करने के लिए चटाई पर पहले घुटनों के बल बैठना चाहिए। फिर घुटनों को फर्श पर टिकाये रखते हुए शरीर को सीधा करके बैठ जाना चाहिए। फिर धीरे-धीरे शरीर को पीछे झुकाते हुए पैर के तलवों को छुने की कोशिश करनी चाहिए। कुछ सेंकेड तक इस अवस्था में रहने के बाद शरीर को फिर से पूर्व के अवस्था में लौटाकर लाना चाहिए।
लाभ- 
इस आसन को करने से गुप्तागों में रक्त का संचार अच्छी तरह से हो पाता है। इसके कारण सेक्स के दौरान शरीर में अपुर्व ऊर्जा का संचार होने लगता है जो सेक्स के आनंद को उठाने में मदद करता है।

behtar sex ke liye yoga 

सर्वांगासन- 


  इस आसन को करने के लिए पहले चटाई पर सीधा लेट जाये। फिर दोनों पैरों को मिलाते हुए हाथों के सहारे शरीर को धीरे-धीरे ऊपर उठायें। इस अवस्था में हथेली फर्श से सटी हुई होनी चाहिए। 
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25.1.22

सूजाक की होम्योपैथिक चिकित्सा:gonorrhea

 



होमियोपैथिक चिकित्सा विज्ञान के जनक डॉ. हैनीमैन ने तीन प्रकार के विषों को सभी प्रकार के रोगों को उत्पन्न करनेवाला बताया है। इन तीन विषों के नाम हैं – ‘सोरा’, सिफिलिस’ और ‘साइकोसिस’।

इस सूजाक रोग का संबंध ‘साइकोसिस’ से होता है। इस रोग की उत्पत्ति संक्रामक कारणों से छूत लगने पर होती है। सूजाक रोग से ग्रस्त स्त्री या पुरुष से सहवास करने वाले स्त्री या पुरुष को यह रोग हो जाता है। ‘निसेरिया गोनोरियाई’ नामक जीवाणु द्वारा यह रोग होता है। जननांगों की उचित सफाई न होने पर इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। इस रोग की तीन अवस्थाएं होती हैं –

इस रोग में रोगी के लिंग के अन्दर मूत्र-नली में से मवाद आता है । मूत्र-नली में जलन, सुरसुराहट, खुजली, मूत्र-त्याग के समय जलन एवं दर्द होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।

gonorrhea homeopathic remedy

थूजा 30, 200- रोग की द्वितीयावस्था में लाभकर है जबकि मूत्र-मार्ग में जलन हो और पीला मवाद आये । वैसे सूजाक की सभी अवस्थाओं में लाभकारी है । डॉ० ई० जोन्स का कहना है कि चाहे सूजाक में कोई भी दवा क्यों न दी जाये परन्तु रात को सोने से पहले रोगी को थूजा 30 की पाँच बूंद अवश्य दे देनी चाहिये- इससे सूजाक का विष शरीर से बाहर निकल जाता है ।

एकोनाइट 1x, 30- रोग की प्रथमावस्था में लाभकर है । मूत्र-मार्ग में लाली, सूजन, मूत्र-त्याग में जलन, बूंद-बूंद पेशाब आना आदि लक्षणों में उपयोगी हैं ।

gonorrhea homeopathic remedy

सीपिया 200– मूत्र-त्याग में जलन, मूत्रेन्द्रिय में टनक जैसा दर्द- इन लक्षणों में दें ।
कोपेवा 3x, 30-
 मूत्र-नली तथा मूत्राशय में सुरसुराहट हो, पतला-दूधिया स्राव आये, मूत्र बूंद-बूंद करके आये, मूत्र रक्त मिला और दर्द व जलन के साथ हो- इन लक्षणों में लाभप्रद है ।

gonorrhea homeopathic remedy

कोपेवा जब मवाद ज्यादा गाढ़ा न होकर दूध जैसा पतला आता हो, जलन के साथ पेशाब हो, पेशाब के साथ गोंद जैसा लसदार व चिकना स्राव निकलता हो, पेशाब का वेग मालूम होने पर भी पेशाब न होता हो, बूंद-बूंद करके पेशाब होना, हरा पेशाब, तीखी बदबू आना आदि लक्षणों पर 30 शक्ति में दवा का सेवन फायदेमंद है।
क्यूबेवा : पहली अवस्था में जब अन्य दवाओं के सेवन से जलन में कुछ कमी हो जाए, पेशाब के अंत में जलन न होती हो, मवाद गाढ़ा होने लगे, तब क्यूबेवा का प्रयोग उत्तम है। पेशाब के बाद जलन होने और मूत्र नली में सिकुड़न-सी मालूम देने और स्राव पतला हो जाने पर इस दवा का 30 शक्ति में प्रयोग करना हितकर होता है।
अर्जेण्टमनाइट्रिकम : मूत्र-विसर्जन के अन्त में पुरुषेंद्रिय से लेकर गुदा-द्वार तक असहनीय पीड़ा होना, इस दवा का मुख्य लक्षण है। मूत्रनली में तेज जलन होना, अकड़न और सूजन होना, बूंद-बूंद कर पेशाब होना, आंखों से ज्यादा कीचड़ आना इसके मुख्य लक्षण हैं। ज्यादा मीठा खाना और शरीर का दुबला-पतला होना आदि लक्षणों के आधार पर यह दवा अत्यंत उपयोगी है।

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केप्सिकम : जब पेशाब की हाजत लगातार मालूम दे, पर पेशाब न हो, बड़ी मुश्किल से और जलन के साथ पेशाब हो, पेशाब में छाछ जैसा सफेद मवाद आए और पुरुषेंद्रिय के तनाव से दर्द मालूम दे, तब केप्सिकम का प्रयोग करना गुणकारी होता है। बात-बात पर क्रोधित होना और मोटापा बढ़ते जाना भी इसका लक्षण है। 6 शक्ति से 30 शक्ति तक दवा लेनी चाहिए।
दूसरी अवस्था : यदि प्राथमिक स्थिति में ही इलाज न किया जाए, तो रोग बढ़ने लगता है। बड़ी तकलीफ के साथ बूंद-बूंद करके पेशाब होता है, पेशाब निकलते समय तीव्र जलन होती है, शिश्न-मुण्ड (पुरुष जननेंद्रीय का अग्रभाग) पर सूजन आ जाती है, वह लाल हो जाता है और मूत्र-मार्ग से लगातार मवाद आने लगता है। यह अवस्था बहुत कष्टपूर्ण होती है।
उपचार-
रोग की द्वितीय अवस्था में यह दवा महान औषधि की तरह काम करती है। मूत्रनली में इतना दर्द हो कि सहन न किया जा सके और दोनों पैर चौड़े करके चलना पड़े, ये इस दवा के मुख्य दो लक्षण हैं। कमर में दर्द रहना, गाढ़ा पीले रंग का मवाद आना, ऐसा लगे कि मूत्रनली ही बंद है। अत: पेशाब नहीं आ रहा है, बूंद-बूंद कर पेशाब होना, मूत्र मार्ग से खून आना, पुरुषेंद्रिय के तनाव से दर्द होना आदि प्रमुख लक्षण हैं। ठंडे पानी से आराम मिलता है। दवा अर्क अथवा 6 × से 30 शक्ति तक दवा श्रेष्ठ है।

केंथेरिस : अधिकतर लक्षण ‘कैनाबिस इण्डिका’ के लक्षणों जैसे ही हैं। इसमें पेशाब के वेग का और चुभन का अनुभव कैनाबिस इण्डिका की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में होता है। पेशाब बूंद-बूंद करके, कष्टप्रद हो। पेशाब से पहले, पेशाब के दौरान और पेशाब करने के बाद जलन हो, पुरुषेंद्रिय में खिंचाव होने पर अधिक दर्द हो, कभी-कभी पेशाब में खून भी आने लगे, तो 6 से 30 शक्ति तक की दवा की कुछ खुराकें जल्दी-जल्दी लेने पर फायदा होता है।

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पल्सेटिला : जांघों और टांगों में दर्द होना, रोग शुरू हुए कई दिन बीत गए हों, मूत्र-मार्ग से गाढ़ा, पीला या नीला मवाद आने लगे और मवाद का दाग न लगता हो, अण्डकोषों पर सूजन आ गई हो, मरीज अपनी परेशानी बताते-बताते रोने लगे और चुप कराने पर थोड़ी देर में शांत हो जाए, पेशाब बूंद-बूंद हो, प्रोस्टेटाइटिस हो, पेशाब करते समय दर्द एवं चुभन महसूस हो, गर्मी में परेशानी बढ़े, मूत्र द्वार ठंडे पानी से धोने पर कुछ आराम मिले, तो 30 शक्ति में दवा उपयोगी है।


तृतीय अवस्था : 
इस अवस्था में पहुंचने पर रोग को पुराना माना जाता है। इस अवस्था में रोगी को ऐसा लगता है कि रोग चला गया है, क्योंकि सूजन मिट जाती है, जलन बंद हो जाती है और पेशाब आसानी से होने लगता है। ज्यादा जोर देकर पेशाब करने पर मूत्र-मार्ग से गाढ़ा चिकना मवाद निकलता है। इसे ही सूजाक होना कहते हैं। इस अवस्था में कुछ समय बीत जाने पर नाना प्रकार के उपद्रव होने लगते हैं। इन उपद्रवों में मूत्राशय प्रदाह (सिस्टाइटिस), बाधी (ब्यूबो), पौरुषग्रंथी प्रदाह (प्रोस्टेटाइटिस), लसिकाओं का प्रदाह (लिम्फेजांइटिस), प्रमेहजन्य संधिवात (गोनोरियल आर्थराइटिस), स्त्रियों में जरायु-प्रदाह (मेट्राइटिस), डिम्ब प्रणाली प्रदाह (सालपिंजाइटिस), वस्ति आवरण प्रदाह (पेल्विक पेरीटोनाइटिस) आदि प्रमुख उपद्रव हैं।
लक्षणों की समानता (सिमिलिमम) के आधार पर, अलग-अलग अवस्थाओं के लिए अलग-अलग औषधियां हैं। रोगी एवं अवस्थाओं की भिन्नता के आधार पर लगभग चालीस (40) औषधियां इस रोग हेतु प्रयुक्त की जा सकती हैं। कुछ विशेष लक्षणों के आधार पर निम्न औषधियों का प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है। लक्षणों के अनुसार दवा का चुनाव करके नियमित रूप से दवा का सेवन करने पर जरूर लाभ होगा।

उपचार-

थूजा : पुराने (क्रॉनिक) सूजाक और साइकोटिक विष के लिए थूजा श्रेष्ठ औषधि है। जब मवाद पतला आने लगे, पेशाब करते समय ऐसा लगे, जैसे उबलता हुआ पानी निकल रहा हो, तीव्र कष्ट व जलन हो, बूंद-बूंद पेशाब हो, लगातार पेशाब की हाजत बनी रहे, अण्डकोष कठोर हो गए हों और ‘सूजाक जन्य वात रोग’ (गोनोरियल रयुमेटिजम) की स्थिति बन जाए, प्रोस्टेटिक ग्रंथियों में सूजन हो जाए, सिरदर्द, बालों का झड़ना, ऐसा महसूस होना जैसे पैर शीशे के बने हुए हैं और टूट जाएंगे, जैसे पेट में कोई जीवित वस्तु है, जैसे आत्मा और शरीर अलग हो गए हैं, शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मस्से निकलने लगते हैं, तब 30 शक्ति से 200 शक्ति तक की दवा की कुछ खुराकें ही कारगर होती हैं।

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फ्लोरिक एसिड : यह भी पुराने सूजाक की अच्छी दवा है। दिन में प्राय: स्राव नहीं होता, पर रात में होता रहता है। कपड़ों में दाग लगते हैं, पेशाब में जलन होती है और अत्यधिक कामोत्तेजना रहती है। रोगी कमजोर होते हुए भी दिन भर परिश्रम करता है। गर्मी-सर्दी में कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन रात के लक्षणों से प्रभावित होता है। 30 शक्ति में एवं तत्पश्चात् 200 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।
क्लीमेटिस : पल्सेटिला नामक दवा के बाद जो लक्षण बचे रहते हैं, उनके लिए ‘क्लीमेटिस’ उपयोगी है। इस रोग की तीसरी अवस्था में जब मूत्रनली सिकुड़ जाए, मवाद आना बंद हो चुका हो, अण्डकोषों पर सूजन हो और वे कठोर हो गए हों, विशेषकर अण्डकोषों के दाएं हिस्से पर सूजन होती है, तब ‘क्लीमेटिस’ 30 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए। इसमें भी पेशाब रुक-रुक कर होता है।
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23.1.22

कांचनार गुग्गुल आयुर्वेदिक औषधि के फायदे: Benefits of Kanchanar Guggul

 


कांचनार गुग्गुल बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः यूटीआई, घेंघा रोग के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। Kanchnar Guggul के मुख्य घटक हैं गुग्गुल, इलायची, तेज पत्ता, त्रिकटु, त्रिफला जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है।

गूगल और 1 ग्राम शिलाजीत डालकर इसमें 3 ग्राम सौंठ का चूर्ण डालकर सुबह-शाम 4-4 चम्मच पीएं और ऊपर से एक कप चावल का धोवन पिएँ। यह प्रयोग 45 दिन तक करें। यदि गांठ पक गई हो तो कचनार, चित्रक और अड़ूसे की जड़, पानी के साथ पत्थर पर घिसकर लेप करें। इस लेप को गांठ पर लेप करें, इस प्रयोग से गांठ फूट जाती है। फूट जाए तो यह लेप लगाना बंद कर दें। इसकी जगह कचनार और अमरकंद का लेप तैयार कर लगाएँ।
कण्ठमाला के लिए कांचनार गुग्गुल आयुर्वेद की प्रसिद्ध और उत्तम औषधि मानी जाती है। त्रिफला के काढ़े के साथ इस औषधि की 2- 2 गोली सुबह-शाम, एक वर्ष लेते रहें तो फिर गांठ पैदा होने की संभावना ही समाप्त हो जाएगी। कचनार या त्रिफला का काढ़ा बनाने की विधि यह है कि 10 ग्राम चूर्ण 2 कप पानी में डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब छानकर ठंडा कर लें। काढ़ा तैयार है।


Benefits of Kanchanar Guggul

इस रोग के रोगी को कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण आधा-आध चम्मच (3-3 ग्राम) लेकर मख्खन में मिलाकर या एक गिलास छाछ के साथ, सुबह-शाम सेवन कराना चाहिए। इससे उदर शुद्धि होती है और बवासीर में खून गिरना बंद होता है।

रक्त पित्त :

 इस रोग में शरीर के किसी भी हिस्से से खून गिरने लगता है। इसे होमोरेजिक डिसीज कहते हैं। कचनार के फूलों की सब्जी खिलाने या सूखे फूलों का चूर्ण आधा-आधा चम्मच थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम खिलाने से यह व्याधि नष्ट हो जाती है।

दाह (जलन) :

 कचनार की छाल का काढ़ा 4 चम्मच, आधा चम्मच पिसा जीरा और कपूर एक रत्ती मिलाकर सुबह-शाम लेने से विष प्रकोप, रक्त विकार या मद्यपान आदि से होने वाली जलन शांत हो जाती है। य ह प्रयोग अम्ल पित्त (हायपर एसिडिटी) के कारण होने वाली जलन के लिए सेवन योग्य नहीं है।

अफारा :

 अपच और गैस के कारण पेट में अफारा हो जाता है। कचनार की छाल का काढ़ा 4 चम्मच और आधा चम्मच पिसी अजवायन मिलाकर लेने से अफारा दूर हो जाता है। कचनार को प्रमुख घटक द्रव्य का रूप में लेकर आयुर्वेद के कुछ उत्तम योग बनाए जाते हैं जैसे कांचनार गुग्गुल, कांचनादि क्वाथ, कांचन गुटिका, गुलकंद कांचनार, पंचनिम्बादि वटी, रक्त शोधांतक आदि।


Benefits of Kanchanar Guggul

गुग्गुल

चोट या संक्रमण के कारण होने वाली सूजन को कम करने वाली दवाएं।
ये एजेंट मुक्त कणों को साफ करके ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
शारीरिक ऊतकों को संकुचित करने वाले तत्व जिनका इस्तेमाल अत्यधिक खून बहने को रोकने के लिए किया जाता है।
रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने वाले एजेंट।

इलायची

वे घटक जिनका इस्‍तेमाल फ्री रेडिकल्‍स की सक्रियता को कम करने और ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (मुक्त कणों के बनने और उनके शरीर के प्रति हानिकरक प्रभाव को न रोक पाने के बीच का असंतुलन) को रोकने के लिए किया जाता है।
भूख बढ़ाने में मददगार तत्‍व।
पाचन क्रिया और पेट को आराम देने वाले घटक।
खांसी को नियंत्रित करने वाली दवाएं।

Benefits of Kanchanar Guggul

तेज पत्ता

वे घटक जिनका इस्‍तेमाल फ्री रेडिकल्‍स की सक्रियता को कम करने और ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (मुक्त कणों के बनने और उनके शरीर के प्रति हानिकरक प्रभाव को न रोक पाने के बीच का असंतुलन) को रोकने के लिए किया जाता है।
ये दवाएं जठरांत्र से अनावश्यक गैस को हटाने में मदद करती हैं।
पाचन क्रिया और पेट को आराम देने वाले घटक।

त्रिकटु

एजेंट या तत्‍व जो सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
दवाएं जो भूख को बढ़ाती हैं और एनोरेक्सिया व भूख न लगने के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं।
वे दवाएं जो गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल मार्ग से अत्‍यधिक गैस को निकालने में मदद करती हैं।

त्रिफला

दर्द को कम करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं या एजेंट।
एजेंट या तत्‍व जो सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
घटक जो पेट व आंत की गैस से राहत दिलाते हैं।
वो दवा जो पेट और आंत के काम को आसान कर पाचन तंत्र को बेहतर करती है।
ऐसे पदार्थ जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य को उत्तेजित करके या कम करके उसे ठीक करता है|
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  • 21.1.22

    गुहेरी अंजनहारी के घरेलू उपचार:Guheri anjanhari ke nuskhe




    आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के मत मे विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |


     अंजनहारी के कारण-


    डॉक्टर अंजनहारी का कारण विटामिन A और D की कमी मानते हैं।
    अंजनहारी का कारण, आम तौर पर एक स्टाफीलोकोकस बैक्टीरिया (staphylococcus bacteria) के कारण होने वाला संक्रमण भी माना जाता है।
    पाचन क्रिया में खराबी भी अंजनहारी का कारण है।
    अंजनहारी का एक कारण, लगातार रहने वाली कब्ज भी मानी जाती है।
    धूल और धुंए समेत अन्य हानिकारक कणों का आँखों में जाना।
    बिना हाथ धोए आँखों को छूना।
    संक्रमण होना।

    आँखों की सफाई पर ध्यान न देना। निरंतर रूप से पानी से न धोना।
    वैसे अंजनहारी होने के सटीक कारणों की जानकारी नहीं है, लेकिन ये कुछ कारण हैं जिनकी वजह से यह दिक्क्त आती है।


    अंजनहारी के घरेलू उपचार -


    १. लौंग को जल के साथ किसी सिल पर घिसकर अंजनहारी पर दिन में दो तीन लेप करने से शीघ्र ही अंजनहारी नष्ट हो जाती है।
    २. बोर के ताजे कोमल पत्तों को कूट पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

    ३. इमली के बीजों को सिल पर घिसकर उनका छिलका अलग कर दें। अब इमली के सफेद बीज को जल के साथ सिल पर घिस कर दिन में कई बार अंजनहारी (फुसी) पर लगाएं । इसके लगाने से अंजनहारी शीघ्र नष्ट होता है।

    guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

    3.  १० ग्राम त्रिफला के चूर्ण को ३०० ग्राम जल में डालकर रखें। सुबह बिस्तर से उठने पर त्रिफला के उस जल को कपड़े से छानकर नेत्रों को साफ करने से गुहेरी की विकृति नष्ट होती है। त्रिफला के जल से नेत्रों की सब गंदगी निकल जाती है। प्रतिदिन त्रिफला का ३ ग्राम चूर्ण जल के साथ सुबह शाम सेवन करने से गुहरी की विकृति से राहत मिलती है।

    ५. काली मिर्च को जल के साथ पीसकर या जल के साथ घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से प्रारंभ में थोड़ी सी जलन होती है, लेकिन जल्दी ही गुहेरी का निवारण हो जाता है।
    ६. ग्रीष्म ऋतु में पसीने के कारण अंजनहारी की विकृति बहुत होती है। प्रतिदिन सुबह और रात्रि को नेत्रों में गुलाब जल की कुछ बूंदे डालने से बहुत लाभ होता है।

    guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

    ७. त्रिफला चूर्ण ३ ग्राम मात्रा में उबले हुए दूध के साथ सेवन करने से अंजनहारी से सुरक्षा होती है।
    ८. लौंग को चंदन और केशर के साथ जल के छींटे डालकर, घिसकर अंजनहारी का लेप करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
    ९. सहजन के ताजे व कोमल पत्तों को कूट पीसकर कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को दिन में कई बार अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
    १०. नीम के ताजे व कोमल पत्तों का रस मकोय का रस बराबर मात्रा में कपड़े से छानकर नेत्रों में लगाने से अंजनहारी के कारण शोथ व नेत्रों की लालिमा शीघ्र नष्ट होती है।

    guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

    ११. अंजनहारी में शोथ के कारण तीव्र जलन व पीड़ा हो तो चंदन के जल के साथ घिसकर दिन में कई बार लेप करने से तुरंत लाभ होता है।

    १२) छुहारे के बीज को पानी के साथ घिस लें | इसे दिन में २-३ बार अंजनहारी पर लगाने से लाभ होता है |
    १३) तुलसी के रस में लौंग घिस लें | अंजनहारी पर यह लेप लगाने से आराम मिलता है |
    १४) हरड़ को पानी में घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से लाभ होता है |
    १५) आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है,उस रस को गुहेरी पर लगाने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है |
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    सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

    किडनी फेल ,गुर्दे ख़राब की अनुपम औषधि

    वजन कम करने के लिए कितना पानी कैसे पीएं?

    प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

    सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे


    आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

    खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

    महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

    मुँह सूखने की समस्या के उपचार

    गिलोय के जबर्दस्त फायदे

    इसब गोल की भूसी के हैं अनगिनत फ़ायदे

    कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

    छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

    सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

    किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

    तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

    यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power


    19.1.22

    मानसिक रोगों के लक्षण और चिकित्सा:mental diseases




    आधुनिक दवाएं किस तरह से मानसिक रोगों का उपचार करती हैं इस बारे में लोगों में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है। और इस बारे में भी कि मानसिक रोगों में दी जाने वाली दवाएं कितनी असरकारी हैं। ज़्यादातर लोग मानते हैं कि इस क्षेत्र में डॉक्टर कुछ नहीं कर सकते और मानसिक बीमारियों के लिए वे केवल ओझाओं साधुओं आदि पर ही विश्वास करते हैं।

     mental diseases

     ज़्यादातर लोगों को मानसिक रोगों के इलाज के लिए बिजली के झटकों और बंद करके रखे जाने के बारे में ही पता है। इस भाग में मानसिक रोगों के उपचार के बारे में बताया जा रहा है। निरोगण के मुख्य अवयव हैं दवाएं, बातचीत, आपातकालीन स्थिति में बिजली के झटके देना, अस्पताल में रखना और पुनर्वास। हर मामले में इनमें से सब की ज़रूरत नहीं होती। साधारण बीमारी दवाइयों और सुझावों से ही ठीक हो सकती है। गंभीर बीमारियॉं जैसे विखन्डित मनस्कता तक भी केवल दवाओं से दूर हो जाती हैं।
      अस्पताल में रखे जाने और बिजली के झटकों की ज़रूरत कभी कभी ही होती है। विखन्डित मनस्कता और उन्माद अवसादी विक्षिप्ति में लंबे समय तक मानसिक रोगों mental diseases
     के इलाज की ज़रूरत होती है।इन बीमारियों में हालांकि पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है परन्तु इलाज से स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है। मानसिक रोगों में इलाज लगातार चलने की ज़रूरत होती है।
    इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके का खान-पान है। शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाने के कारण मस्तिष्क के स्नायु में विकृति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मस्तिष्क के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और मानसिक रोग हो जाता है।
    • शरीर के खून में अधिक अम्लता हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता हैं क्योंकि अम्लता के कारण मस्तिष्क (नाड़ियों में सूजन) में सूजन आ जाती है जिसके कारण मस्तिष्क शरीर के किसी भाग पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और उसे मानसिक रोग  mental diseases हो जाता है।
    • अधिक चिंता, सोच-विचार करने, मानसिक कारण, गृह कलेश, लड़ाई-झगड़े तथा तनाव के कारण भी मस्तिष्क की नाड़ियों में रोग उत्पन्न हो जाता है और व्यक्ति को पागलपन का रोग हो जाता है।
    • अधिक मेहनत का कार्य करने, आराम न करने, थकावट, नींद पूरी न लेने, जननेन्द्रियों की थकावट, अनुचित ढ़ग से यौनक्रिया करना, आंखों पर अधिक जोर देना, शल्यक्रिया के द्वारा शरीर के किसी अंग को निकाल देने के कारण भी मानसिक रोग हो सकता है।
    • यह रोग पेट में अधिक कब्ज बनने के कारण भी हो सकता है क्योंकि कब्ज के कारण आंतों में मल सड़ने लगता है जिसके कारण दिमाग में गर्मी चढ़ जाती है और मानसिक रोग हो जाता है।

    होम्योपैथी-

      होम्योपैथी मानसिक बीमारियों mental diseases  के इलाज के लिए काफी उपयोगी होती है। इसलिए आपको जहॉं भी ज़रूरी हो होम्योपैथी का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • नजला जुकाम के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार

    मानसिक रोगों के लिए होम्योपैथिक दवाओं के बारे ध्यान से पढें।
    इन्हें शायद सहायता की ज़रूरत है
    जिन लोगों को मनोचिकित्सा की ज़रूरत होती है, उनकी सूची नीचे दी गई है।
    जो कि बेसिरपैर की बातें करता हो और अजीबोगरीब और असामान्य व्यवहार करता हो।
    जो बहुत चुप हो गया हो और औरों से मिलना जुलना और बात करना छोड़ दे।
    अगर कोई ऐसी बातें सुनने या ऐसी चीज़ें देखने का दावा करे जो औरों को न सुनाई / दिखाई दे रही हों।
    अगर कोई बहुत ही शक्की हो और वह हमेशा यह शिकायत करता रहे कि दूसरे लोग उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
       अगर कोई ज़रूरत से ज़्यादा खुश रहने लगे, हमेशा चुटकुले सुनाता रहे या कहे कि वह बहुत अमीर है या औरों से बहुत बेहतर है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हो।
    अगर कोई बहुत दु:खी रहने लगे और बिना मतलब रोता रहे।
    अगर कोई आत्महत्या की बातें करता रहे या उसने आत्महत्या की कोशिश की हो।
    अगर कोई कहे कि उसमें भगवान या कोई आत्मा समा गई है। या अगर कोई कहता रहे कि उसके ऊपर जादू टोना किया जा रहा है या कोई बुरी छाया है।
    अगर किसी को दौरे पड़ते हों और उसे बेहोशी आ जाती हो और वो बेहोशी में गिर जाता हो।
    अगर कोई बहुत ही निष्क्रिय रहता हो, बचपन से ही धीमा हो और अपनी उम्र के हिसाब से विकसित न हुआ हो।


    गुस्सा आना
    कुछ लोगो को बहुत गुस्सा आता है। छोटी-छोटी बातों पर भी उन्हें इतना गुस्सा आता है कि गुस्से में सामान फेंकना, मार-पीट करना, चीखना ये सब करने लगते हैं। धीरे-धीरे उनका यह स्वाभाव बन जाता हैं। स्वाभाव ईर्ष्या करना
    आज के समय में जहां हर जगह प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ रही है, वहीं लोगों में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना भी बढती जा रही है। जब ये विचार मन में बार-बार आने लगते हैं तो मन और तन में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

    ईर्ष्या से बचने के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-

    हांयसोमस (Hyos)
    लेकेसिस (Lach)
    एपिस-मेलिफिका (Apis-Melifica)चिड़चिड़ा हो जाता हैं।
    कई बार यह विचार आता है कि लोग उसके बारे में क्या कहेंगे और इसी वजह से उसे बहुत क्रोध आता है। कभी-कभी जब कोई व्यक्ति इस गुस्से और अपमान को मन में दबा कर रखता हैं तो कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इस विकार की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    केमोमिला (chamomila)
    नक्स-वोमिका (Nux-Vomica)
    स्टेफीसेंग्रिया (Staphy)
    लायकोपोडियम (Lycopodium)

    डर लगना

    कुछ लोगों को हमेशा डर लगता हैं। जैसे अंधेरे से, अकेले रहने से, ऊंचाई से, मरने से, भीड़ से, एग्जाम से, रोड पार करने से और अकेलेपन से। धीरे-धीरे ये डर कई तरह के शारीरिक और मानसिक रोग पैदा कर देता हैं। डर की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    आर्जेंटिकम-नाइट्रीकम (Arg-Nit)
    एकोनाईट (Aconite)
    स्ट्रामोनियम (Stramonium)
    एनाकार्डियम (Anacard)

    रोना

    अक्सर कुछ लोग खासकर महिलाएं जरा-जरा सी बात पर रो देती हैं। किसी ने कुछ कहा नहीं कि आंसू बहने लगते हैं। छोटी-छोटी बात पर रोना आता है, जो एक प्रकार का मनोविकार हैं। इसके लिए कुछ होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    नेट्रम-म्यूर(Nat-Mur)
    पल्सेटिला(Puls)
    सीपिया (Sepia)

    आत्महत्या करने का विचार

    कई बार बहुत से लोगों को छोटी-छोटी बात पर आत्महत्या करने का विचार मन में आने लगता है। जरा सी कोई परेशानी आई नहीं, कि वो मरने का सोचने लगते हैं। लेकिन होम्योपैथिक मेडिसिन देने से इस प्रकार के विचार धीरे-धीरे कम हो जाते हैं। ऐसी ही कुछ दवाइयां हैं-
    औरम-मेट (Aur-Met)
    आर्स-एल्बम (Ars-Alb)

    शक करना

    कुछ लोगों को हर बात में शक करने की आदत होती है। छोटी-छोटी बातो में वो शक करते हैं। हर किसी को शक भरी नजर से देखते हैं। ऐसे लोगों के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-
    हांयसोमस (Hyos)
    लेकेसिस (Lach)

    झूठ बोलना

    बहुत से लोगों की हर बात पर झूठ बोलने की आदत होती हैं जोकि आजकल ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है। इसे दूर करने के लिए कुछ होम्योपैथी दवाइयां हैं-
    आर्ज-नाईट्रीकम (Arg-Nit)
    कौस्टिकम (Caust)

    उचित मानसिक स्वास्थ्य-

    अभी तक हमने मानसिक रोगों और समस्याओं के बारे में बात की है। परन्तु उचित मानसिक स्वास्थ्य भी कोई चीज़ है और हम सबको अपना मानसिक स्वास्थ्य वैसा बनाना चाहिए। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य ठीक रख पाने में दूसरों की मदद करनी चाहिए।
     यह ज़्यादातर लोगों के लिए बचपन से ही शुरू हो जाता है, परन्तु कभी भी बहुत देर नहीं हुई होती।
    रोज़ कसरत करना, सैर करना और खेलना अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
    टीम वाले खेल सबसे ज़्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि इनसे दिमाग में गलत विचार नहीं आते।
    योगा से मदद मिलती है। और योगा ज़रूर करना चाहिए 
      सार्थक काम करने और काम में संतुष्टी होने से भी मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
    हमें अपने बारे में ध्यान से सोच कर अपनी स्वाभाव को समझना चाहिए और अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए। किताबों और दोस्तों से सबसे ज़्यादा मदद मिलती है।

    धर्म – 

    सहानुभूति, वैराग्य, आदर और अच्छा इन्सान बनने के धर्म के बुनियादी सिद्धांत से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इससे जीवन के दु:खों और मुश्किलों से निपटने में मदद मिलती है। परन्तु उन लोगों से सावधान रहें जो कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश करते हैं।
    नाच गाने, होली, डांडिया आदि जैसी सामाजिक घटनाएं लोगों के दिमाग से गलत विचार निकलाने में मदद करती हैं। जब भी ऐसे मौके आएं तो लोगों के साथ मिलने जुलने की कोशिश करें।

    देसी घरेलु उपचार व आयुर्वेदिक नुस्खे-

    • अखरोट की बनावट मानव-मस्तिष्क जैसी  होती है । अतः प्रातःकाल एक अखरोट व मिश्री दूध में मिलाकर ‘ ॐ ऐं नमः’ या ‘ ॐ श्री सरस्वत्ये नमः ‘ जपते हुए पीने से मानसिक रोगों mental diseases  में लाभ होता है व यादशक्ति पुष्ट होती है ।
    • मालकाँगनी का 2-2 बूँद तेल एक बताशे में डालकर सुबह-शाम खाने से मस्तिष्क के एवं मानसिक रोगों में लाभ होता है।
    • स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते, एक काली मिर्च तथा गुलाब की कुछ पंखुड़ियों को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह पीने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। इसमें एक से तीन बादाम मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं। इसके लिए पहले रात को बादाम भिगोकर सुबह छिलका उतारकर पीस लें। यह ठंडाई दिमाग को तरावट व स्फूर्ति प्रदान करती है।
  • नजला जुकाम के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार


    • रोज सुबह आँवले का मुरब्बा खाने से भी स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अथवा च्यवनप्राश खाने से इसके साथ कई अन्य लाभ भी होते हैं।
    • गर्म दूध में एक से तीन पिसी हुई बादाम की गिरी और दो तीन केसर के रेशे डालकर पीने से मानसिक रोगों  mental diseases में लाभ होता है साथ ही स्मरणशक्ति तीव्र होती है।
    • सिर पर देसी गाय के घी की मालिश करने से भी मानसिक रोगों में लाभ होता है।
    • मूलबन्ध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध (कंठकूप पर दबाव डालकर ठोडी को छाती की तरफ करके बैठना) से भी बुद्धि विकसित होती है, मन स्थिर होता है।
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    18.1.22

    रुद्राक्ष थैरेपी से करें रोग उन्मूलन:Rudraksh ke fayde

                                                   


      rudraksh therapy

    रुद्र का मतलब भगवान शंकर (शिव) है। अक्ष आंख को कहते हैं। इन दोनों शब्दों से रुद्राक्ष बना। रुद्राक्ष मूल रूप से पर्वतीय क्षेत्र में होता है। जावा सुमात्रा (इन्डोनेशिया) में छोटे आकार के और नेपाल में बड़े आकार के रुद्राक्ष होते हैं। भारत में भी अब कई स्थलों पर यह वृक्ष लगाया गया है।
    रुद्राक्ष हमारे लिए कितना लाभकारी है, यह हमारे पूर्वज जानते थे और प्रयोग करते थे। पुराणों के अनुसार भगवान शंकर के नेत्र से ज्ञानानंद अश्रु (आंसू) की बूंद से यह वृक्ष जन्म लेता है। शिव का अर्थ ही कल्याण है तो यह रुद्राक्ष कल्याण के लिए ही धरती पर आया है। इसके अनेक नाम हैं रुद्राक्ष, शिवाक्ष, भूतनाशक, पावन, नीलकंठाक्ष, हराक्ष, शिवप्रिय, तृणमेरु, अमर, पुष्पचामर, रुद्रक, रुद्राक्य, अक्कम, रूद्रचल्लू आदि।
    रुद्राक्ष को हम एक साधारण वृक्ष बीज समझ लेते हैं। कोई-कोई इसे गले में तरह-तरह के लाकेट बनाकर माला बनाकर पहन लेते हैं। उसका भी असर होता है, लेकिन विधि-विधान से इसे धारण करना परम लाभकारी है। रुद्राक्ष वृक्ष और फल दोनों ही पूजनीय हैं। मानव के अनेकों रोग, शोक, बाधा नष्ट करने की शक्ति रुद्राक्ष में है।
    रुद्राक्ष के दानों में गैसीय तत्व हैं जो इस प्रकार हैं कार्बन 50.031 प्रतिशत, हाईड्रोजन 17.897 प्रतिशत नाइट्रोजन 0.095 प्रतिशत, आक्सीजन 30.453 प्रतिशत इसके अतिरिक्त एल्युमिनियम, कैल्शियम, तांबा, कोबाल्ट, तांबा, आयरन की मात्रा भी होती है। इसमें चुम्बकीय और विद्युत ऊर्जा से शरीर को रुद्राक्ष का अलग-अलग लाभ होता है। एक मुखी रुद्राक्ष दुर्लभ है। शायद ही कभी उसके दर्शन हो पाएं लेकिन बाजार, टैलीविजन में बेधड़क एक मुखी रुद्राक्ष बिक रहे हैं जो शायद ही शुद्ध हों।

    rudraksh therapy

    एक मुखी रुद्राक्ष :

    इसके मुख्य ग्रह सूर्य होते हैं। इसे धारण करने से हृदय रोग, नेत्र रोग, सिर दर्द का कष्ट दूर होता है। चेतना का द्वार खुलता है, मन विकार रहित होता है और भय मुक्त रहता है। लक्ष्मी की कृपा होती है।

    दो मुखी रुद्राक्ष : 

    मुख्य ग्रह चन्द्र हैं यह शिव और शक्ति का प्रतीक है मनुष्य इसे धारण कर फेफड़े, गुर्दे, वायु और आंख के रोग को बचाता है। यह माता-पिता के लिए भी शुभ होता है।

    तीन मुखी रुद्राक्ष : 

    मुख्य ग्रह मंगल, भगवान शिव त्रिनेत्र हैं। भगवती महाकाली भी त्रिनेत्रा है। यह तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना साक्षात भगवान शिव और शक्ति को धारण करना है। यह अग्रि स्वरूप है इसका धारण करना रक्तविकार, रक्तचाप, कमजोरी, मासिक धर्म, अल्सर में लाभप्रद है। आज्ञा चक्र जागरण (थर्ड आई) में इसका विशेष महत्व है।

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    चार मुखी रुद्राक्ष : 

    चार मुखी रुद्राक्ष के मुख्य देवता ब्रह्मा हैं और यह बुधग्रह का प्रतिनिधित्व करता है इसे वैज्ञानिक, शोधकर्त्ता और चिकित्सक यदि पहनें तो उन्हें विशेष प्रगति का फल देता है। यह मानसिक रोग, बुखार, पक्षाघात, नाक की बीमारी में भी लाभप्रद है।

    पांच मुखी रुद्राक्ष :

    यह साक्षात भगवान शिव का प्रसाद एवं सुलभ भी है। यह सर्व रोग हरण करता है। मधुमेह, ब्लडप्रैशर, नाक, कान, गुर्दा की बीमारी में धारण करना लाभप्रद है। यह बृहस्पति ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है।

    छ: मुखी रुद्राक्ष : 

    शिवजी के पुत्र कार्तिकेय का प्रतिनिधित्व करता है। इस पर शुक्रग्रह सत्तारूढ़ है। शरीर के समस्त विकारों को दूर करता है, उत्तम सोच-विचार को जन्म देता है, राजदरबार में सम्मान विजय प्राप्त कराता है।

    सात मुखी रुद्राक्ष : 

    इस पर शनिग्रह की सत्तारूढ़ता है। यह भगवती महालक्ष्मी, सप्त ऋषियों का प्रतिनिधित्व करता है। लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, हड्डी के रोग दूर करता है, यह मस्तिष्क से संबंधित रोगों को भी रोकता है।

    आठ मुखी रुद्राक्ष :

    भैरव का स्वरूप माना जाता है, इसे धारण करने वाला व्यक्ति विजय प्राप्त करता है। गणेश जी की कृपा रहती है। त्वचा रोग, नेत्र रोग से छुटकारा मिलता है, प्रेत बाधा का भय नहीं रहता। इस पर राहू ग्रह सत्तारूढ़ है।

    नौ मुखी रुद्राक्ष : 

    नवग्रहों के उत्पात से रक्षा करता है। नौ देवियों का प्रतीक है। दरिद्रता नाशक होता है। लगभग सभी रोगों से मुक्ति का मार्ग देता है।

    दस मुखी रुद्राक्ष :

    भगवान विष्णु का प्रतीक स्वरूप है। इसे धारण करने से परम पवित्र विचार बनता है। अन्याय करने का मन नहीं होता। सन्मार्ग पर चलने का ही योग बनता है। कोई अन्याय नहीं कर सकता, उदर और नेत्र का रोग दूर करता है।

    ग्यारह मुखी रुद्राक्ष :

    रुद्र के ग्यारहवें स्वरूप के प्रतीक, इस रुद्राक्ष को धारण करना परम शुभकारी है। इसके प्रभाव से धर्म का मार्ग मिलता है। धार्मिक लोगों का संग मिलता है। तीर्थयात्रा कराता है। ईश्वर की कृपा का मार्ग बनता है।

    बारह मुखी रुद्राक्ष :

    बारह ज्योतिर्लिंगों का प्रतिनिधित्व करता है। शिव की कृपा से ज्ञानचक्षु खुलता है, नेत्र रोग दूर करता है। ब्रेन से संबंधित कष्ट का निवारण होता है।

    तेरह मुखी रुद्राक्ष :

    इन्द्र का प्रतिनिधित्व करते हुए मानव को सांसारिक सुख देता है, दरिद्रता का विनाश करता है, हड्डी, जोड़ दर्द, दांत के रोग से बचाता है।

    चौदह मुखी रुद्राक्ष :

    भगवान शंकर का प्रतीक है। शनि के प्रकोप को दूर करता है, त्वचा रोग, बाल के रोग, उदर कष्ट को दूर करता है। शिव भक्त बनने का मार्ग प्रशस्त करता है।
    रुद्राक्ष को विधान से अभिमंत्रित किया जाता है, फिर उसका उपयोग किया जाता है। रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने से वह अपार गुणशाली होता है। अभिमंत्रित रुद्राक्ष से मानव शरीर का प्राण तत्व अथवा विद्युत शक्ति नियमित होती है। भूतबाधा, प्रेतबाधा, ग्रहबाधा, मानसिक रोग के अतिरिक्त हर प्रकार के शारीरिक कष्ट का निवारण होता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को सशक्त करता है, जिससे रक्त चाप का नियंत्रण होता है।
    रोगनाशक उपाय रुद्राक्ष से किए जाते हैं, तनावपूर्ण जीवन शैली में ब्लडप्रैशर के साथ बे्रन हैमरेज, लकवा, मधुमेह जैसे भयानक रोगों की भीड़ लगी है। यदि इस आध्यात्मिक उपचार की ओर ध्यान दें तो शरीर को रोगमुक्त कर सकते हैं।
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