19.7.18

फलों के छिलके मे छुपा है सेहत का राज:Secrets of health in fruit peels


                                                 

फलों और सब्जियों से कहीं अधिक पौष्टिक और फायदेमंद उनके छिलके होते हैं। फलों तथा सब्जियों को छिलके समेत खाना अत्यधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है।

फलों के छिलके
हम फलों का सेवन करने के बाद उनके छिलकों फेंक देते हैं। अगर आपकी भी यहीं आदत है तो इसे बदल दीजिए। फलों के साथ इसके छिलके भी बेहद गुणकारी तथा औषधीय तत्वयुक्त पौष्टिक होते है। कई फलों के छिलके शरीर कीप्रतिरोधी क्षमता को बढ़ाते हैं। सभी फलों को छिलकों सहित नहीं खाया जा सकता है। इसके लिए उन्हें उतारने के बाद गूदों को खा जाएं और छिलकों को पानी में उबालकर चाय की तरह सेवन करें।

संतरे का छिलका

लगभग सभी एंटी कोलेस्ट्रोल यौगिक संतरे के छिलके में पाए जाते हैं। ये यौगिक हमारे शरीर में एलडीएल या बुरे कोलेस्ट्रोल से लड़ने में सहायक होते हैं। ये कोलेस्ट्रोल हृदय की धमनियों में थक्के और प्लाक जमने का कारण होते हैं। अत: अपने आहार में संतरे के छिलके शामिल करके आप अपने शरीर में कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम कर सकते हैं।
पपीते का छिलका
पपीते के छिलके सौंदर्यवर्धक माने जाते हैं। पपीते को खाने से पेट की समस्याओं का निदान होता है। लेकिन इसकसे छिलके को धूप में सुखाकर बरीक पीस लें और ग्लिसरीन में मिलाकर लेप बनायें और चेहरे पर लगायें। इससे चेहरे की खुसकी दूर होगी और चेहरे पर चमक आयेगी। त्वचा पर लगाने से खुश्की दूर होती है। एड़ियों पर लगाने से वे मुलायम होती हैं।
केला का छिलका
केले के छिलके में सेरोटोनिन हार्मोन को सामान्य बनाए रखने के गुण मौजूद होते हैं। यह हार्मोन खुश रहने के लिए जरूरी होता है। केले के छिलकों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और कार्बोहाइड्रेट होते हैं। इसमें विटामिन बी-6, बी-12, मैगनीशियम, कार्बोहाइड्रेट, एंटीऑक्सीडेंट, पोटेशियम, मैगनीशियम और मैंगनीज जैसे पोषक तत्व होते हैं जो मेटाबॉलिज्म के लिए बेहद उपयोगी होते हैं।
बेरी-अंगूर
अंगूर के छिलकों में कोलैस्ट्रोल घटाने की क्षमता है । इसलिए मिक्सर में अंगूर व बेरी का जूस तैयार कर पीने के बजाय उन्हें चूसकर खाना चाहिए । जूस बनाने से उनके छिलकों में विद्यमान पौष्टिक तत्व पिसकर नष्ट हो जाते हैं ।इसी प्रकार अमरूद के छिलकों में एंटीआक्सीडैंट गूदे से अधिक मात्रा में पाया जाता है
अनार का छिलका
अनार के छिलकों में भी एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं जो त्वचा को मुंहासों व संक्रमण से दूर रखने में मदद करते हैं। इसके छिलके को सुखाकर तवे पर भुन लें। ठंडा होने पर मिक्सर में पीसे और पैक की तरह चेहरे पर लगाएं। मुंहासे दूर होंगे। इसके साथ ही छिलके को मुंह में रखकर चूसने से खांसी का वेग शांत होता है। अनार के छिलके के बूरादे को बारीक पीसकर उसमें दही मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बनाकर सिर पर लगाने से बाल मुलायम होते हैं।
सेब
सेब के छिलकों में इतने अधिक पोषक तत्व हैं के ये सेहत से जुड़ी कई समस्याओं को दूर कर सकता है। इसलिए ही डॉक्टर सेब को बिना छीले खाने की सलाह देते हैं।सेब के छिलकों में मौजूद क्यूरसेटिन नामक तत्व सांसों से संब‌िधित दिक्कतों जैसे दमा आदि से बचाव में काफी मददगार है। सेब के छिलकों में युरसोलिक एसिड अच्छी मात्रा में होता है जो शरीर में ब्राउन फैट्स की मात्रा बढ़ाता है जिससे फैट्स बर्न होता है और वेट लॉस आसान हो जाता है।


















































पोहा है वजन कम करनेवाला सेहतमंद नाश्ता //poha ka nashta

                                                                                     
                                                       





पोहा पीटे हुए चावल से बना एक स्‍वस्‍थ नाश्ता है। यह आसानी से तैयार होने वाला स्‍वादिष्‍ट और अधिक मात्रा में सब्जियों की मौजूदगी के कारण बेहद पौष्टिक होता है। भारत के विभिन्न राज्यों में, पोहा अलग अलग तरीकों से तैयार किया जाता है और कई घरों का तो यह एक प्रधान नाश्ता है।

भारत में पोहा सुबह के नाश्ते के तौर पर खासा पसंद किया जाता है। लंबे समय से भारतीय पोहे का सुबह के नाश्ते में सेवन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर अब बाजार में ओट और कीनोआ जैसे नाश्ते के तौर पर सेवन किए जाने वाले आहार भी मौजूद हैं, इनको बनाने वाली कंपनिया दावा करती हैं कि इनसे आप तेजी से वजन कम कर सकते हैं। लेकिन इन सब के बीच विशषज्ञों का मानना है कि पोहा सबसे सेहतमंद नाश्ता है। पोहे में 76.9 फीसदी कार्बोहाइड्रेट्स और 23.1 फीसदी प्रोटीन होता है। जो कि इसे एक सेहतमंद नाश्ता बनाता है, जो आपको सुबह-सुबह ऊर्जा देता है।
हल्का आहार :
अधिकांश स्‍वास्‍थ्‍य के प्रति जागरूक लोग वजन घटाने वाले आहार में कुछ समय के लिए पोहा को शामिल कर इसके प्रभाव को देखते हैं। यह आहार पेट के लिए हल्‍का होता है और आमतौर पर कम मात्रा में परोसा जाता है साथ ही यह एक स्‍वस्‍थ जीवन शैली को आगे बढ़ने में मदद करता है। इस आहार को नींबू के साथ परोसा जाता है। पोहे पर नींबू के रस की मौजूदगी इसे अतिरिक्‍त स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रदान करती हैं।
- पोहा खाने से पेट से संबंधित समस्याएं नहीं होंगी क्योंकि इसमें बहुत ही कम मात्रा में ग्लूटीन पाया जाता है.
- डायबिटीज के मरीज को पोहा खिलाने से भूख कम लगती है साथ ही ब्लडप्रेशर लेवल में रहता है.
- पोहे में बहुत ज्यादा मात्रा में कैलोरी पायी जाती है. इसे कई तरीके से बनाया जाता है. जहां वेजीटेबल पोहा में 244 किलो कैलोरी होती है वहीं मूंगफली पोहा में 549 किलो कैलारी शामिल होती है.
पोहा भारत का एक मशहुर नाश्ता है, जिसे चावल से बनाया जाता है। वे कहती हैं कि यह अपने आप में एक पूर्ण आहार है। इसमें भारी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट्स, आयरन और फाइबर होते हैं। साथ ही पोहे में एंटी ऑक्सीडेंट और जरूरी विटामिन की भी जरूरी मात्रा में होती है। वे कहती हैं कि यह सुबह के नाश्ते के लिए या दिन में किसी भी समय स्नैक की तरह खाया जा सकता है। इसके अलावा इसमें कार्ब्स की मात्रा बहुत कम होती है। साथ ही इसमें इंसुलिन न होने के कारण पोहा वजन कम करने में भी मदद करता है।
क्योंकि पोहा को चावलों को पीटकर बनाया जाता है। जिसके कारण ये आासनी से पच जाता है, जिस कारण पेट पर दबाव नहीं रहता और आपको पूरे दिन पेट फुला हुआ महसूस नहीं होता।
अगर आप सोचते हैं पोहा सिर्फ ब्रेकफास्ट मील है तो यह काफी नहीं है. पोहे में ऐसे कई गुण हैं जो आपको हेल्दी रखने में काफी मददगार हैं. जानिए एक्सपर्ट क्या कहते हैं पोहे के बारे में.
- पोहे में भरपूर मात्रा में आयरन पाया जाता है. इसको खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन और इम्यूनिटी पावर बढ़ती है.
- पोहे में सबसे ज्यादा सब्जियों का इस्तेमाल किया जाता है. जिस कारण यह खनिज, विटामिन और फाइबर का खजाना हो जाता है.
- अगर पोहे में सोयाबीन, सूखे मेवे और अंडा मिलाकर खाया जाए तो विटामिन के साथ ही प्रोटीन भी मिलेगा.
- पोहे में अच्छी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है. जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है. इससे शरीर को बीमीरियों से लड़ने में मदद मिलती है.
पोहे को पचाने में शरीर को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. यह आसानी से पचने वाला खाना है.
- वहीं एक्सपर्ट का मानना है कि पोहे को ब्रेकफास्ट में खाने से इसका फायदा कई गुना बढ़ जाता है.
कार्बोहाइड्रेट से भरपूर
आप पोहे पर भरोसा कर इसे कार्बोहाइड्रेट के लिए अपना प्राथमिक स्रोत बना सकते हैं। पीटा चावल अन्य कार्बोहाइड्रेट विकल्पों की तुलना में स्वस्थ होता है। आप चिप्स या अन्य नाश्ते की तुलना में नाश्ते में इसे खा सकते हैं। पर्याप्त कार्बोहाइड्रेट के बिना, आप अपनी दैनिक गतिविधियों को नहीं कर सकते हैं। एक और अच्छी खबर, पोहा फाइबर से भी समृद्ध होता है।
पोषक तत्व से भरपूर
पोहे में अनेक प्रकार की सब्जियों को मिलाने के कारण इसमें विटामिन और मिनरल की अधिकता पाई जाती है। आप इसे स्‍वादिष्‍ट और प्रोटीन युक्‍त बनाने के लिए इसमें मूंगफली और अंकुरित दालों को भी मिला सकते हैं। कुछ लोग पोहे को प्रोटीन से भरपूर बनाने के लिए इसमें अंडा भी मिला देते हैं। आप इसे अपने बच्‍चे के लंच बॉक्‍स में भी पैक कर सकते हैं।
ग्लूटेन का कम स्तर
पोहा में ग्‍लूटेन के कम स्‍तर के कारण, कम ग्‍लूटेन खाद्य पदार्थों का उपभोग करने वाले डॉक्‍टर की सलाह से इसे अपने आहार में शामिल कर सकते हैं। पोहा मधुमेह रोगियों द्वारा भी सेवन किया जा सकता है। यह पोहे के स्वास्थ्य लाभ में से एक है।
मधुमेह रोगियों के लिए
खून में शुगर के धीमी गति से बढ़ावा देने के कारण पोहा मधुमेह रोगियों के लिए भोजन का अच्‍छा विकल्प माना जाता है। साथ ही यह आपको लंबे समय तक पूर्ण महसूस करता है। एक बार इसके सेवन से आप भूख के कष्‍ट और अस्वास्थ्यकर मिठाई और जंक फूड को दूर रखने में पर्याप्‍त होता है। इसके पोषक मूल्य में वृद्धि करने के लिए आप इसमें सोया मिला सकते हैं।
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17.7.18

प्राकृतिक चिकित्सा मे कटि स्नान के स्वास्थ्य लाभ//nature cure


                                                             




साधन :-

टब, छोटा स्टूल, छोटा तौलिया, कम्बल, पानी |

जल का तापमान :

-कटि स्नान में प्रयोग में लाये जाने वाले जल का तापमान शरीर के तापमान से कम रहना चाहिए तभी जल का प्रभाव शरीर पर हो सकेगा | सामान्यतः गर्मी के दिनों में जल का तापमान 55 डिग्री फारनहाईट तथा सर्दियों में ७५ से ८४ डिग्री फारनहाईट रहना चाहिए | ठन्डे जल का तापमान बढ़ाने के लिए उसमे अलग से गर्म पानी मिला देना चाहिए |

कटि स्नान करने का समय :-

कटि स्नान प्रारंभ में पांच मिनट से शुरू करके प्रतिदिन एक -एक मिनट बढ़ाते हुए पंद्रह मिनट तक किया जा सकता है | बच्चों व् कमजोर व्यक्तियों को पांच मिनट से अधिक नही लेना चाहिए | प्रातः खाली पेट कटि स्नान करना चाहिए |

कटि स्नान करने की विधि :-

टब में लगभग 12 से 14 इंच गहराई तक पानी भरें जिससे कि टब में बैठने पर पानी उपर नाभि तक एवं नीचे आधी जंघाओं तक आ जाये |
टब में अधलेटी अवस्था [ जैसे आराम कुर्सी पर बैठते हैं ] में बैठ जाएँ | दोनों पैर टब के बाहर चौकी पर रख लें | ध्यान रहे कि पानी से पैर न भीगने पायें |
रोयेंदार तौलिये से पेडू पर दायें से बाएं अर्ध चंद्राकर घर्षण करें [ मालिश करें ] |
कटि स्नान के बाद शरीर में गर्मी लाने के लिए लगभग 15 -20 मिनट टहलें,व्यायाम करें अथवा कम्बल ओढ़कर लेट जाएँ |

विशेष :-

यदि कमजोरी अधिक हो तो सिर को छोडकर टब सहित पूरा शरीर एक कम्बल से ढक लें |
कटि स्नान करते समय तब में पीछे से पीठ को बीच-बीच में हिलाते रहें, इससे रीढ़ के स्नायु उद्दीप्त होंगे फलस्वरूप शरीर में चेतनता आयेगी और रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होगी |

कटि स्नान से शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया :-

साधारण सी दिखने वाली इस क्रिया का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है | यदि यह कहा जाय कि “कटि स्नान प्राकृतिक चिकित्सा की संजीवनी बूटी है |” तो अतिशयोक्ति नही होगा |

पानी का तापमान शरीर के तापमान से कम होने के कारण टब में बैठते ही पेडू की अतिरिक्त गर्मी कम होकर पूरे पाचन तंत्र में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे कई अंग जैसे लीवर,क्लोम ग्रंथि,आमाशय, छोटी आंत आदि में सक्रियता आती है और वे पर्याप्त मात्रा में पाचक रसों को स्रवित करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे पाचन तंत्र की मजबूती के साथ ही जीर्ण कब्ज, जो सभी रोगों की जननी है , से भी छुटकारा मिलता है | इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी में पानी का स्पर्श होने से स्नायुविक रोग भी दूर हो जाते हैं |

कटि स्नान से लाभ :-


छोटी व् बड़ी आंत के अधिकांशतः सभी रोग कटि स्नान से दूर हो जाते हैं |
पीलिया रोग में स्टीम बाथ के तुरंत बाद २-३ मिनट कटि स्नान करने के उपरांत पूर्ण स्नान करने से पित्त पर्याप्त मात्रा में निकलता है एवं पीलिया समाप्त हो जाता है |
कटि स्नान जननेंद्रिय की दुर्बलता एवं वीर्य के पतलेपन को दूर करता है |
बबासीर , आंत, गर्भाशय की रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान अत्यंत हितकारी है | रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान लेते समय यह ध्यान रहे कि दोनों पैर चौकी पर रखने की बजाय किसी बर्तन में गर्म पानी में डुबोकर रखें |इस क्रिया को करने से पेडू में स्थित अतिरिक्त रक्त पैरों में उतर जाता है तथा पानी की ठंडक से पेडू सिकुड़ने लगता है, फलस्वरूप रक्तस्राव बंद हो जाता है |
पेडू की अतिरिक्त गर्मी के फलस्वरूप मल में जो स्वाभाविक नमी होती है, वह सूख जाती है जिसके कारण मल आंत में सूखकर कड़ा हो जाता है, इसी अवस्था को जीर्ण कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं | कटि स्नान से पेट की अतिरिक्त गर्मी पानी में निकल जाती है एवं कब्ज से मुक्ति मिलती है |

दर्द रहित पेडू की पुरानी सूजन में विशेष लाभकारी है |
नये एक्जिमा में कटि स्नान अत्यंत लाभकारी है |
नियमित कटि स्नान करने से शरीर की जीवनीशक्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जिससे कैंसर, लकवा, क्षय जैसे भयंकर रोगों से बचाव होता है |
अनिद्रा, हिस्टीरिया, चिडचिडापन, स्नायुविक रोगों में कटि स्नान अति लाभप्रद है |

स्त्री रोगों में कटि स्नान से लाभ :-

स्त्रियों के लगभग सभी रोगों में कटि स्नान बहुत लाभकारी है |
गर्भाशय की स्थानभ्रष्टता एवं जब गर्भाशय आदि अन्दर से बाहर आते मालूम हों तो कटि स्नान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है |
पुराने रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर में कटि स्नान लाभ करता है |
गर्भवती स्त्री प्रसव से दो माह पूर्व से ही कटि स्नान लेना प्रारंभ कर दे तो बिना कष्ट के सामान्य रूप से प्रसव होगा |

गर्भपात के लक्षण दिखाई पड़ने पर यदि २० से ३० मिनट तक कटि स्नान लिया जाय तो गर्भपात रुक सकता है | इस अवस्था में सावधानीपूर्वक पेट को बहुत धीरे -धीरे रगड़ना आवश्यक है |

बाल रोगों में कटि स्नान से लाभ :-

बच्चों को कटि स्नान करने से उनकी स्मरण शक्ति व् बुद्धि का विकास होता है |
बच्चों को सोते समय बिस्तर में पेशाब करना एक ऐसा रोग है जिससे बच्चे में इस रोग के आलावा हीनभावना आनी प्रारंभ हो जाती है | इन बच्चों को यदि नियमित कटि स्नान कराना प्रारंभ कर दिया जाय तो कुछ ही दिनों में रोग से छुटकारा मिल जाता है |

सावधानियां :-

कटि स्नान खाली पेट ही लें |
पानी और शरीर का तापमान समान नही होना चाहिए |
पहले दिन ही अधिक ठन्डे जल से कटि स्नान नहीं करना चाहिए बल्कि प्रथम दो-तीन दिन सामान्य जल [ 
कटि स्नान ऐसी जगह में करना चाहिए, जहाँ पर ठंडी हवा के झोंके न आ रहे हों |

कटि स्नान लेने के डेढ़-दो घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए |
एपेंडिक्स, गर्भाशय, मूत्राशय, बड़ी आंत, जननेंद्रिय के विभिन्न अवयवों की नई सूजन तथा ह्रदय रोग की ख़राब स्थिति में कभी भी ठन्डे पानी से कटि स्नान नहीं करना चाहिए |
न्युमोनिया, गठिया, दमा, साईटिका के तीव्र दर्द में कटि स्नान नही लेना चाहिए |

शरीर के तापमान से थोडा कम तापमान का जल ] का प्रयोग करें तत्पश्चात क्रमशः प्रतिदिन जल के तापमान को कम करते जाएँ |सामान्यतः कटि स्नान लम्बे समय तक करने पर भी कोई हानि नही है बल्कि लम्बे समय तक ही क्यों इसे अपनी जीवन शैली में ही सम्मिलित कर लेना चाहिए, ताकि आपका शरीर स्वस्थ्य एवं जीवन सुखमय रहे |
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प्राकृतिक चिकित्सा मे गीली पट्टियों का चमत्कार/ The wonders of wet bandage in natural medicine

                                           


 

प्राकृतिक चिकित्सा में साधारण सी दिखने वाली क्रियाएं शरीर पर अपना रोगनिवारक प्रभाव छोडती हैं | किसी सूती या खादी के कपडे की पट्टी को सामान्य ठन्डे जल में भिगोकर , निचोड़कर अंग विशेष पर लपेटने के पश्चात् उसके ऊपर से ऊनी कपडे की [सूखी] पट्टी इस तरह लपेटी जाती है कि अन्दर वाली सूती/खादी पट्टी पूर्ण रूप से ढक जाये | इस लेख में रोगनिवारण हेतु विभिन्न "जल पट्टी लपेट" के विषय में जानकारी प्रस्तुत है -

1. सिर की गीली पट्टी -
लाभ : सिर की गीली पट्टी से कान का दर्द , सिरदर्द व सिर की जकड़न दूर होती है |
साधन
एक मोटे खद्दर के कपडे की पट्टी जो कि इतनी लम्बी हो कि गले के पीछे, के ऊपर से कानों को ढकते हुए आँखों और मस्तक को पूरा ढक ले |
ऊनी कपडे कि पट्टी [ खादी की पट्टी से लगभग दो इंच चौड़ी और दोगुनी लम्बी ]विधि :
खद्दर की पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें तत्पश्चात इस पट्टी को आँखें,मस्तक एवं पीछे कानों को ढकते हुए एक राउण्ड लपेट दें | अब इसके ऊपर ऊनी पट्टी को लगभग दो राउण्ड इस तरह लपेट दें कि नीचे वाली गीली पट्टी अच्छी तरह से ढक जाये | लगभग एक घंटा इस पट्टी को लगायें |

2. पेडू की गीली पट्टी : 
लाभ : पेट के समस्त रोगों,पुरानी पेचिस, कोलायिटिस,पेट की नयी-पुरानी सूजन,अनिद्रा,बुखार एवं स्त्रियों के गुप्त रोगों की रामबाण चिकित्सा है |इसे रात्रि भोजन के दो घंटे बाद पूरी रात तक लपेटा जा सकता है |
साधन : 
खद्दर या सूती कपडे की पट्टी इतनी चौड़ी जो पेडू सहित नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक आ जाये एवं इतनी लम्बी कि पेडू के तीन-चार लपेट लग सकें |
सूती कपडे से दो इंच चौड़ी एवं इतनी ही लम्बी ऊनी पट्टी |विधि :
उपर्युक्त पट्टियों की विधि से सूती/खद्दर की पट्टी को भिगोकर,निचोड़कर पेडू से नाभि के तीन अंगुल ऊपर तक लपेट दें ,इसके ऊपर से ऊनी पट्टी इस तरह से लपेट दें कि नीचे वाली गीली पट्टी पूरी तरह से ढक जाये |एक से दो घंटा या सारी रात इसे लपेट कर रखें |

 wonders of wet bandage 

3 जोड़ों की गीली पट्टी : 

शरीर के विभिन्न जोड़ों के दर्द एवं सूजन की अवस्था में एक घंटे के लिए जोड़ के आकर के अनुसार गीली फिर ऊनी पट्टी का प्रयोग करें |

4. गले की गीली पट्टी :

लाभ : इस पट्टी को रोगनिवारक प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ता है | गले की पट्टी से गले के ऊपर-नीचे की अनावश्यक गर्मी समाप्त होती है |
टांसिलायिटिस, गले के आस-पास की सूजन, गला बैठना,घेंघा जैसे रोगों में लाभकारी है |
साधन :
एक सूती पट्टी -गले की चौडाई जितनी चौड़ी एवं इतनी लम्बी कि गले में तीन-चार लपेट लग जाएँ |
गले में तीन-चार लपेट लगने भर की लम्बी, ऊनी पट्टी या मफलर |विधि :
सूती पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर , निचोड़कर गले में तीन-चार लपेटे लगा दें ऊपर से ऊनी पट्टी या मफलर लपेट लें | समय – ४५ मिनट से १ घंटा |

 wonders of wet bandage 

5. छाती की पट्टी :

लाभ : छाती के सभी रोग जैसे -खांसी,निमोनिया,क्षय [ फेफड़ों का ] दमा, कफ,पुरानी खांसी में लाभकारी |
सावधानी :
अत्यंत निर्बल रोगी को पट्टी देते समय सूती/खादी पट्टी को गुनगुने पानी में भिगोकर,निचोड़कर प्रयोग करना चाहिए |
फेफड़ों के रक्तस्राव की अवस्था में पट्टी का प्रयोग कम समय के लिए एवं फेफड़ों की कैविटी [ जैसा कि क्षय में होता है ] भरने हेतु अधिक समय के लिए पट्टी का प्रयोग करना चाहिए |साधन :
खद्दर या सूती कपडे की एक पट्टी जो कि छाती की चौडाई के बराबर चौड़ी हो एवं लम्बाई इतनी कि छाती से पीठ तक घुमाते हुए तीन राउण्ड लग जाएँ |
ऊनी या गर्म कपडे की पट्टी जो नीचे की सूती/खद्दर की पट्टी को ढक ले |विधि :
खद्दर या सूती पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर निचोड़ लें , अब इसे पूरी छाती पर पसलियों के नीचे तक लपेट दें | इस पट्टी के ऊपर ऊनी पट्टी लपेट दें | यह पट्टी रोग की अवस्था के अनुसार १ से ४ घंटे तक बांधी जा सकती है |

6. धड की गीली पट्टी :

लाभ :- योनि की सूजन, आमाशायिक रोग, पेट-पेडू का दर्द व सूजन, लीवर,तिल्ली के रोगों में अत्यंत लाभकारी है |
विधि :
यह भी छाती पट्टी की तरह लपेटनी होती है बस इस पट्टी की चौडाई नाभि के नीचे तक बढ़ा लेनी चाहिए एवं पट्टी के दौरान रोगी को लिटाकर सिर खुला रखकर पैर से गर्दन तक कम्बल उढ़ा देना चाहिए | एक से दो घंटा इस पट्टी का प्रयोग करना चाहिए |
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16.7.18

चक्कर आने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार

                                                                               
अधिक शारीरिक निर्बलता के कारण सिर में चक्कर आने का रोग होता है। रक्ताल्पता के रोगी चक्कर आने की विकृति से अधिक पीड़ित होते हैं। रोगी बैठे-बैठे अचानक उठकर खड़ा होता है तो उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा जाता है और सिर में चक्कर आने लगते हैं।
चक्कर क्यों आता है?
 रोग की उत्पत्ति : 
मानसिक तनाव की अधिकता के कारण चक्कर आने की विकृति हो सकती है। सिर पर चोट लगने से स्नायुओं में रक्त का अवरोध होने से चक्कर आने की उत्पत्ति हो सकती है। रक्ताल्पता होने पर जब शरीर में रक्त की अत्यधिक कमी हो जाती है तो मस्तिष्क को पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता और ऐसे में सिर में चक्कर आने लगते हैं।

नीम के पत्ते खाने के फायदे 

निम्न रक्तचाप अर्थात लो ब्लड प्रेशर में भी सिर चकराने की विकृति हो सकती है। चिकित्सकों के अनुसार कान में विषाणुओं के संक्रमण से, मस्तिष्क के स्नायुओं को हानि पहुंचने पर चक्कर आने की विकृति हो सकती है।


अत्यधिक मानसिक काम करने वाले स्त्री-पुरुषों को जब पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता तो वे सिर में चक्कर आने की विकृति से पीड़ित होते हैं।

चक्कर के लक्षण क्या है?

लक्षण : रोगी को उठकर खड़े होने पर नेत्रों के सामने कुछ पलों के लिए अंधेरा छाने की विकृति होती है। कभी-कभी नेत्रों के सामने सितारे नाचने लगते हैं। सिर चकराने पर रोगी अपने को लड़खड़ाकर गिरता हुआ अनुभव करता है और आस-पास की दीवार या अन्य वस्तु का सहारा लेता है। अधिक शारीरिक निर्बलता होने पर रोगी लड़खड़ाकर गिर पड़ता है। रक्ताल्पता की अधिकता होने पर सिर चकराने पर रोगी को गिर जाने की अधिक आशंका रहती है। अधिक व्रत-उपवास के कारण भी स्त्री-पुरुषों के चक्कर आने से लड़खड़ाकर गिर पड़ने की स्थिति बन जाती है।

मलेरिया की जानकारी और विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों से इलाज  

हिस्टीरिया और मिर्गी रोग में भी सिर चकराने की विकृति होती है और फिर रोगी पर बेहोशी का दौरा पड़ जाता है। अधिक चोट लगने पर रक्त निकल जाने पर रोगी खड़ा नहीं रह पाता और शारीरिक निर्बलता के कारण सिर में चक्कर आने से गिर पड़ता है। रक्त की कमी को पूरा करके रोगी को इस विकृति से सुरक्षित किया जा सकता है।

चक्कर आने पर पथ्य-

*प्रतिदिन भोजन में गाजर, मूली, खीरा, ककड़ी, चुकंदर का सलाद सेवन करें।
*शारीरिक निर्बलता के कारण चक्कर आने पर पौष्टिक खाद्य पदार्थ और मेवों का सेवन करें।
*हरी सब्जियों का अधिक मात्रा में सेवन करें।
*सब्जियों का सूप बनाकर पिएं।
*अंगूर, अनार, आम, सेब, संतरा, मौसमी आदि फलों का सेवन करें या रस पिएं।
*आंवले, फालसे, शहतूत का शरबत पीने से उष्णता नष्ट होने से चक्कर आने की विकृति नष्ट होती है।
*रात को 4-5 बादाम जल में डालकर रखें। प्रातः उनके छिलके उतार करके, बादाम पीसकर, दूध में मिलाकर सेवन करें।


गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि





*प्रतिदिन सुबह-शाम दूध का सेवन करें। दूध में घी डालकर पिएं।

*आंवले, सेब या गाजर का मुरब्बा प्रतिदिन खाएं और दूध पिएं।
*दूध में बादाम का तेल डालकर पिएं।
*सिर के बाल छोटे रखें और ब्राह्मी के तेल की मालिश करें।
*दाल-सब्जी में शुद्ध घी डालकर खाएं।
*हल्के उष्ण जल में नींबू का रस मिलाकर पीने से पेट की गैस नष्ट होने से चक्कर आने की विकृति नष्ट होती है।
*10-15 मुनक्के घी में तवे पर भूनकर खाएं और ऊपर से दूध पिएं।
*ग्रीष्म ऋतु में उष्णता के कारण चक्कर आने पर दिन में कई बार शीतल जल से स्नान करें।
*रक्ताल्पता के कारण निम्न रक्तचाप होने पर चक्कर आने पर अदरक व नमक का सेवन करें।
*टमाटर का सूप बनाकर सेवन करें।

पित्त पथरी (gallstone)  की अचूक औषधि 

*सुबह-शाम किसी पार्क में भ्रमण के लिए जाएं और हरी घास पर नंगे पांव चलें।

चक्कर आने पर अपथ्य-

*उष्ण मिर्च-मसालों व अम्लीय रसों से बने खाद्य पदार्थों का सेवन न करें।
*चाइनीज व्यंजन व फास्ट फूड न खाएं।
*एलोपैथी औषधियों के सेवन से चक्कर आने की विकृति हो तो उन औषधियों का सेवन न करें।
*चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।
*मांस, मछली, अंडों का सेवन न करें।
*ग्रीष्म ऋतु में धूप में अधिक न घूमें।

*अरंडी के तेल के गुण और उपयोग

नीम के पत्ते खाने के फायदे 




9.7.18

मर्दानगी बढ़ाने वाले नुस्खे // sex power




आज की भाग दौड़ भरी जिन्दगी मे अक्सर लोगों को सेक्स संबन्धित समस्याए हो जाती हैं जिसके चलते अक्सर पुरुष, शीघ्रपतन व सेक्स पावर में कमी की समस्या के लिए परेशान रहते हैं। अगर आप अपनी प्रेमिका को बिस्तर पर चरम सुख प्रदान नहीं कर पा रहे तो परेशान न हो क्योकि आज हम आपको ऐसा नुस्खा बताने वाले हैं जो सेक्स से पहले अगर मर्द खा ले तो उसकी सेक्स क्षमता अचानक से बढ़ जाती है-

सफेद प्याज आपको बना देगा सेक्स का महारथी
अगर कोई पुरूष लगातार कई दिनों तक सफ़ेद प्याज का मुरब्बा खाता है तो उसकी सेक्स पॉवर कई गुना बढ जाती है पहले जमाने में सफ़ेद प्याज का मुरब्बा राजा और अधिक शादियां करने वाले लोग खाते थे। बस ध्यान रखने वाली बात यह है कि मुरब्बा सही विधि से बनाया गया हो। सेक्स से पहले इसको इस्तेमाल करने से तत्काल फायदा मिलता है।
 
कई गुना बढ़ जाएगी सेक्स पावर
एक किलो प्याज के रस में आधा किलो उड़द की काली दाल मिलाकर पीस कर पेस्ट बना लें। इसे सुखाकर एक किलो प्याज के रस में मिलाकर फिर से पीस लें। इस पेस्ट को दस ग्राम मात्रा में लेकर गाय के दूध में पकाएं और मिश्री डाल कर पी लें। इसका सेवन एक से दो माह तक नियमित सुबह-शाम करने से कमजोरी दूर होती है और सेक्स पावर में बढ़ोतरी होती है।

100 ग्राम अजवाइन को सफेद प्याज के रस में भिगोकर सुखा लें और अच्छी तरह सूख जाने पर इसका बारीक पाउडर बना लें। इस पाउडर को पांच ग्राम घी और पांच ग्राम मिश्री के साथ सेवन करें। इसको एक माह तक लेने पर शीघ्रपतन की समस्या से राहत मिलती है।
एक किलो प्याज का रस, एक किलो शहद और आधा किलो मिश्री मिलाकर डिब्बे में पैक कर लें। इसे पंद्रह ग्राम की मात्रा में एक माह तक नियमित सेवन करें। इस योग के प्रयोग से सेक्शुअल डिजायर में वृद्धि होती है।
धूम्रपान, शराब खट्टी चीजो, फ़ास्ट फ़ूड, कोल्ड ड्रिंक्स, आदि का सेवन ना करे। इस प्रयोग का सम्पूर्ण फायदा लेने के लिए प्रयोग काल के 21 दिन सम्भोग नहीं करना चाहिए। इस प्रयोग से ऐसी ताक़त मिलेगी जिसका कोई जवाब नहीं। ये प्रयोग उन लोगो के लिए ही बताया हैं जो लोग अपनी शादी शुदा ज़िंदगी से परेशान हैं।
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5.7.18

मूत्र रुक-रुक कर आने के आयुर्वेदिक उपचार

                                         

मूत्र रुकावट के लक्षण


पेशाब  रुक-रुक कर आना प्राय: वृद्धावस्था की ही बीमारी है। इस रोग का प्रमुख कारण या तो मूत्र मार्ग में आया कोई अवरोध या मांसपेशियों पर शरीर के नियंत्रण में कमी होना होता है।

पेशाब रुकावट के घरेलू नुस्खे

खीराः

 ताजे परंतु कच्चे खीरे को काटकर नमक में मसल लें व कुछ बूंद नीबूमिलाकर खाएं, दो घंटे तक पानी न पीएं पेशाब की सारी रुकावटें समाप्त हो जाएंगी।

शलगमः 

पेशाब के रुक-रुककर आने पर शलगम व कच्ची मूली काटकर खानी चाहिए। इससे काफी लाभ होगा।

खरबूजाः 

खरबूजा खाने से खुलकर पेशाब आता है। परंतु इसे खाने के बाद भी दो घंटे तक पानी न पीएं।
नारियलः नारियल के सेवन से मूत्र संबंधी रोगों में काफी फायदा होता |


बेलः 

पांच ग्राम बेल के पत्ते, पांच ग्राम सफेद जीरा व पांच ग्राम सफेद मिश्री को मिलाकर पीस लीजिए। इस प्रकार तैयार चटनी को तीन-तीन घंटे के अंतराल के बाद खाएं। इससे खुलकर पेशाब आएगा।

आंवलाः

 आंवले को पीसकर पेडू पर लेप कर दें। कुछ ही मिनटों में खुलकर पेशाब आ जाएगा।
इसके अतिरिक्त मूत्र नलिकाओं के अवरुद्ध हो जाने, मूत्राशय की पथरी बढ़ जाने व अन्य शारीरिक विकारों के कारण भी मूत्रावरोध की समस्या खड़ी हो जाती है। इसमें रोगी विचलित व बेचैन हो उठता है। उसके मूत्राशय व जननेंद्रियों में तीव्र पीड़ा होने लगती है।

उपचार

नीबूः 

नीबू के बीजों को महीन पीसकर नाभि पर रखकर ठंडा पानी डालें। इससे रुका हुआ पेशाब खुल जाता है।

केलाः 

केले के तने का चार चम्मच रस लेकर उसमें दो चम्मच घी मिलाकर पीएं। इससे बंद हुआ पेशाब तुरंत खुलकर आने लगता है। केले की जड़ के रस को गोमूत्र में मिलाकर सेवन करने से रुका हुआ पेशाब खुल जाता है। केले की लुगदी बनाकर उसका पेडू पर लेप करने से भी पेशाब खुल जाता है। यह काफी प्राचीन व मान्यता प्राप्त नुस्खा है।
नारियलः नारियल व जौ का पानी, गन्ने का रस व कुलथी का पानी मिलाकर पीने से पेशाब खुल जाता है।

 पीलापन


शहतूतः 

शहतूत के शरबत में थोड़ी शक्कर घोलिए और पी जाइए। इससे पेशाब का पीलापन दूर हो जाएगा।

संतराः

 पेशाब में जलन होने पर नियमित एक गिलास संतरे का रस पीएं।

अरंडीः 

अरंडी का तेल 25 से 50 ग्राम तक गरम पानी में मिलाकर पीने से भी 15-20 मिनट में ही रुका हुआ पेशाब खुल जाता है।

तरबूजः 

तरबूज के भीतर का पानी 250 ग्राम, 1 माशा जीरा व 6 माशा मिश्री को मिलाकर पीने से मूत्र का रुकना ठीक हो जाता है व रोगी को बहुत आराम मिलता है।


नीबूः

 नीबू की शिकंजी पीने से पेशाब का पीलापन दूर हो जाता है।

विशिष्ट परामर्श-



प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने मे हर्बल औषधि सर्वाधिक कारगर साबित हुई हैं| यहाँ तक कि लंबे समय से केथेटर नली लगी हुई मरीज को भी केथेटर मुक्त होकर स्वाभाविक तौर पर खुलकर पेशाब आने लगता है| प्रोस्टेट ग्रंथि के अन्य विकारों (मूत्र    जलन , बूंद बूंद पेशाब टपकना, रात को बार -बार  पेशाब आना,पेशाब दो फाड़)  मे रामबाण औषधि है|  केंसर की नोबत  नहीं आती| आपरेशन  से बचाने वाली औषधि हेतु वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|





4.7.18

आँखों से धुंधला दिखने के कारण और उपचार: How to tackle Blurred vision

                                           
                                          


     आंखों से धुंधला दिखाई देना आंखों की रोशनी कम होने की वजह से हो सकती हैं। कंप्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट ने हमारे लाइफ को आसान बना दिया है लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल से आंखें धुंधली होने की समस्या बढ़ रही है।
    अगर विशेषज्ञों की बात की जाए तो आंख की यह समस्या उस स्थिति के कारण उत्पन होती है, जिसे हम कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम के नाम से जानते हैं। कंप्यूटर विज़न सिंड्रोम आंखों और विजन से सम्बंधित समस्याओं का समूह है, जो लम्बे समय तक कंप्यूटर स्क्रीन देखने से उत्पन्न होता है। एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया भर में 7 करोड़ से ज्यादा वर्कर्स को कंप्यूटर विजन सिंड्रोम का खतरा है। कोई भी व्यक्ति जो 3 घंटे से ज्यादा कंप्यूटर पर बैठता है, उसको यह समस्या हो सकती है। हालांकि जिसका काम केवल कंप्यूटर पर है उसके लिए यह समस्या और बढ़ती हुई दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए आइए जानते हैं।




    आपकी आंखें दिन के दौरान कड़ी मेहनत करती हैं इसलिए इसे ब्रेक की आवश्यकता है। 20 का नियम यह कहता है कि आप हर 20 मिनट में 20 सेकेंड का ब्रेक लीजिए और 20 फीट दूर किसी चीज पर फोकस कीजिए। यह चीज आपकी आंखों पर पड़ने वाले दाबाव को कम करेगा और आपकी आंखें स्वस्थ भी रहेंगी।
    नियमित रूप से अपनी आंखों की एक्सरसाइज को कीजिए। इसके लिए आप अपनी आंखों को गोल-गोल घुमाएं, आंख को खोलें और बंद करें तथा दूर रखी चीजों पर फोकस कीजिए। इसके अलावा आप पलके झपकाएं आंखों पर देर तक रहने वाले तनाव को कम करने के लिए यह बहुत आसान आसान व्यायाम है।
आंखों से धुंधला दिखाई दे रहा है तो चश्मा लगाएं|

    कंप्यूटर या स्मार्टफोन से अपनी आंखों को बचाना है तो आप अपनी आंखों पर चश्मा को लगाएं रखें। विशेष रूप से आंखों के तनाव, सिरदर्द, आंखों की थकान और आंखों में दर्द को कम करने के लिए डिजाइन किए गए कंप्यूटर ग्लास ही आपके लिए सही रहेगा। ये ग्लास या चश्मा कंप्यूटर, स्मार्टफोन और टैबलेट से उत्सर्जित ब्लू लाइट को फिल्टर कर सकता है।
    अपनी आंखों की देखभाल करने के लिए आप अपने हाथ को साफ रखें और जिस लेंस को आप पहन रहे हैं उसे भी आप साफ रखें। आपकी आंखें विशेष रूप से रोगाणुओं और संक्रमणों के लिए कमजोर हैं। यहां तक कि ऐसी चीजें जो आपकी आंखों को परेशान करती हैं, वे आपकी विजन को प्रभावित कर सकती हैं। ऐसी स्थिति नें अपनी आंखों को छूने या अपने संपर्क लेंस से निपटने से पहले अपने हाथ हमेशा धोना चाहिए।
कम या ज्यादा लाइट का भी आपकी आंखो पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए सुनिश्चित करें कि आपकी आंखों पर ज्यादा लाइट न पड़े और जहां कम लाइट हो वहां काम मत कीजिए।

     धूम्रपान करना या सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। धूम्रपान करने से कैंसर और सांस की परेशानियां होती है। हमारे कई लेख में धूम्रपान के कई खतरों को अच्छी तरह से बताया गया है। जब आंखों के स्वास्थ्य की बात आती है, तो धूम्रपान करने वाले लोगों में उम्र से संबंधित मस्कुलर डिजनरेशन, मोतियाबिंद, यूवाइटिस और अन्य आंख की समस्याएं विकसित हो सकती है।


कंप्यूटर से कितनी दूरी?

कंप्यूटर या लैपटॉप पर काम करते हुए अगर आप उसकी स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी से आंखों को दूर रखते हैं तो आंखों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है। जब आप ऑफिस या घर पर मॉनिटर पर काम कर रहें हैं, तो उससे 20 से 28 इंच दूरी बनाकर रखें। जब भी आप कंप्यूटर पर काम कर रहे हो तो ध्यान रखें कि रूम में रोशनी पूरी हो। लाइट सीधी आंखों पर न पड़े।
    कई अध्ययनों से पता चला है कि एंटीऑक्सिडेंट आंख की समस्या के जोखिम को कम कर सकते हैं। ये एंटीऑक्सिडेंट आहार खाने से प्राप्त होता है। यह फल और रंगीन या गहरे हरे सब्जियों में भरपूर मात्रा में होती है। अध्ययनों ने यह भी दिखाया है कि ओमेगा -3 फैटी एसिड में समृद्ध मछली खाने से मस्कुलर डिजनरेशन के विकास के आपके जोखिम में कमी आ सकती है।
    इसके अलावा विटामिन के साथ अपने आहार को पूरक करने पर विचार करें ताकि सुनिश्चित हो सके कि आंखों को स्वस्थ रखने उसे पर्याप्त पोषक तत्व मिल रहा है।

परा बैंगनी किरणों से आंखों को बचाए

    जब आप बाहर जा रहें हैं तो हमेशा सनग्लास डालकर रखें। यह आपकी आंखों को सूरज के हानिकारक पराबैंगनी किरणों या यूवी किरणों से बचाता है। इससे मोतियाबिंद, पिंगुएकुला और अन्य नेत्र समस्याओं के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
   इसके अलावा सनग्लास गर्मियों में स्किन को धूप से बचाता है क्योंकि सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें इसे हानि पहुंचाती हैं। आपको बता दें कि हानिकारक पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुंचने लगेंगी। ये किरणें मनुष्य के साथ-साथ जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों के लिए भी बहुत हानिकारक है।

हर दो साल में अपनी आंख की जांच कराएं

    जिस तरह आप अपनी सेहत की जांच करवाते हैं उसी तरह आप अपनी आंखों को स्वस्थ रखने के लिए उसकी भी जांच करवाइए। आपकी आंखे आपके व्यक्तित्व के साथ साथ आपके रोगों के बारे में भी बताती है। जब ही बीमार होने पर डॉक्टर सबसे पहले आंखों की जांच करते हैं। इससे आप अपनी आंखों को बड़े रोग के खतरों से बचा सकते हैं।