जल का तापमान :
-कटि स्नान में प्रयोग में लाये जाने वाले जल का तापमान शरीर के तापमान से कम रहना चाहिए तभी जल का प्रभाव शरीर पर हो सकेगा | सामान्यतः गर्मी के दिनों में जल का तापमान 55 डिग्री फारनहाईट तथा सर्दियों में ७५ से ८४ डिग्री फारनहाईट रहना चाहिए | ठन्डे जल का तापमान बढ़ाने के लिए उसमे अलग से गर्म पानी मिला देना चाहिए |
कटि स्नान करने का समय :-
कटि स्नान प्रारंभ में पांच मिनट से शुरू करके प्रतिदिन एक -एक मिनट बढ़ाते हुए पंद्रह मिनट तक किया जा सकता है | बच्चों व् कमजोर व्यक्तियों को पांच मिनट से अधिक नही लेना चाहिए | प्रातः खाली पेट कटि स्नान करना चाहिए |
कटि स्नान करने की विधि :-
टब में लगभग 12 से 14 इंच गहराई तक पानी भरें जिससे कि टब में बैठने पर पानी उपर नाभि तक एवं नीचे आधी जंघाओं तक आ जाये |
टब में अधलेटी अवस्था [ जैसे आराम कुर्सी पर बैठते हैं ] में बैठ जाएँ | दोनों पैर टब के बाहर चौकी पर रख लें | ध्यान रहे कि पानी से पैर न भीगने पायें |
रोयेंदार तौलिये से पेडू पर दायें से बाएं अर्ध चंद्राकर घर्षण करें [ मालिश करें ] |
कटि स्नान के बाद शरीर में गर्मी लाने के लिए लगभग 15 -20 मिनट टहलें,व्यायाम करें अथवा कम्बल ओढ़कर लेट जाएँ |
विशेष :-
यदि कमजोरी अधिक हो तो सिर को छोडकर टब सहित पूरा शरीर एक कम्बल से ढक लें |
कटि स्नान करते समय तब में पीछे से पीठ को बीच-बीच में हिलाते रहें, इससे रीढ़ के स्नायु उद्दीप्त होंगे फलस्वरूप शरीर में चेतनता आयेगी और रोगप्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि होगी |
कटि स्नान से शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया :-
साधारण सी दिखने वाली इस क्रिया का प्रभाव सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है | यदि यह कहा जाय कि “कटि स्नान प्राकृतिक चिकित्सा की संजीवनी बूटी है |” तो अतिशयोक्ति नही होगा |
पानी का तापमान शरीर के तापमान से कम होने के कारण टब में बैठते ही पेडू की अतिरिक्त गर्मी कम होकर पूरे पाचन तंत्र में संकुचन की स्थिति उत्पन्न होती है जिससे कई अंग जैसे लीवर,क्लोम ग्रंथि,आमाशय, छोटी आंत आदि में सक्रियता आती है और वे पर्याप्त मात्रा में पाचक रसों को स्रवित करना प्रारंभ कर देते हैं जिससे पाचन तंत्र की मजबूती के साथ ही जीर्ण कब्ज, जो सभी रोगों की जननी है , से भी छुटकारा मिलता है | इसके अतिरिक्त रीढ़ की हड्डी में पानी का स्पर्श होने से स्नायुविक रोग भी दूर हो जाते हैं |
कटि स्नान से लाभ :-
छोटी व् बड़ी आंत के अधिकांशतः सभी रोग कटि स्नान से दूर हो जाते हैं |
पीलिया रोग में स्टीम बाथ के तुरंत बाद २-३ मिनट कटि स्नान करने के उपरांत पूर्ण स्नान करने से पित्त पर्याप्त मात्रा में निकलता है एवं पीलिया समाप्त हो जाता है |
कटि स्नान जननेंद्रिय की दुर्बलता एवं वीर्य के पतलेपन को दूर करता है |
बबासीर , आंत, गर्भाशय की रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान अत्यंत हितकारी है | रक्तस्राव की अवस्था में कटि स्नान लेते समय यह ध्यान रहे कि दोनों पैर चौकी पर रखने की बजाय किसी बर्तन में गर्म पानी में डुबोकर रखें |इस क्रिया को करने से पेडू में स्थित अतिरिक्त रक्त पैरों में उतर जाता है तथा पानी की ठंडक से पेडू सिकुड़ने लगता है, फलस्वरूप रक्तस्राव बंद हो जाता है |
पेडू की अतिरिक्त गर्मी के फलस्वरूप मल में जो स्वाभाविक नमी होती है, वह सूख जाती है जिसके कारण मल आंत में सूखकर कड़ा हो जाता है, इसी अवस्था को जीर्ण कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं | कटि स्नान से पेट की अतिरिक्त गर्मी पानी में निकल जाती है एवं कब्ज से मुक्ति मिलती है |
दर्द रहित पेडू की पुरानी सूजन में विशेष लाभकारी है |
नये एक्जिमा में कटि स्नान अत्यंत लाभकारी है |
नियमित कटि स्नान करने से शरीर की जीवनीशक्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जिससे कैंसर, लकवा, क्षय जैसे भयंकर रोगों से बचाव होता है |
अनिद्रा, हिस्टीरिया, चिडचिडापन, स्नायुविक रोगों में कटि स्नान अति लाभप्रद है |
पेडू की अतिरिक्त गर्मी के फलस्वरूप मल में जो स्वाभाविक नमी होती है, वह सूख जाती है जिसके कारण मल आंत में सूखकर कड़ा हो जाता है, इसी अवस्था को जीर्ण कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं | कटि स्नान से पेट की अतिरिक्त गर्मी पानी में निकल जाती है एवं कब्ज से मुक्ति मिलती है |
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स्त्री रोगों में कटि स्नान से लाभ :-
स्त्रियों के लगभग सभी रोगों में कटि स्नान बहुत लाभकारी है |
गर्भाशय की स्थानभ्रष्टता एवं जब गर्भाशय आदि अन्दर से बाहर आते मालूम हों तो कटि स्नान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है |
स्त्रियों के लगभग सभी रोगों में कटि स्नान बहुत लाभकारी है |
गर्भाशय की स्थानभ्रष्टता एवं जब गर्भाशय आदि अन्दर से बाहर आते मालूम हों तो कटि स्नान से आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचता है |
पुराने रक्तप्रदर, श्वेतप्रदर में कटि स्नान लाभ करता है |
गर्भवती स्त्री प्रसव से दो माह पूर्व से ही कटि स्नान लेना प्रारंभ कर दे तो बिना कष्ट के सामान्य रूप से प्रसव होगा |
गर्भपात के लक्षण दिखाई पड़ने पर यदि २० से ३० मिनट तक कटि स्नान लिया जाय तो गर्भपात रुक सकता है | इस अवस्था में सावधानीपूर्वक पेट को बहुत धीरे -धीरे रगड़ना आवश्यक है |
गर्भवती स्त्री प्रसव से दो माह पूर्व से ही कटि स्नान लेना प्रारंभ कर दे तो बिना कष्ट के सामान्य रूप से प्रसव होगा |
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बाल रोगों में कटि स्नान से लाभ :-
बच्चों को कटि स्नान करने से उनकी स्मरण शक्ति व् बुद्धि का विकास होता है |
बच्चों को सोते समय बिस्तर में पेशाब करना एक ऐसा रोग है जिससे बच्चे में इस रोग के आलावा हीनभावना आनी प्रारंभ हो जाती है | इन बच्चों को यदि नियमित कटि स्नान कराना प्रारंभ कर दिया जाय तो कुछ ही दिनों में रोग से छुटकारा मिल जाता है |
सावधानियां :-
कटि स्नान खाली पेट ही लें |
कटि स्नान खाली पेट ही लें |
पानी और शरीर का तापमान समान नही होना चाहिए |
पहले दिन ही अधिक ठन्डे जल से कटि स्नान नहीं करना चाहिए बल्कि प्रथम दो-तीन दिन सामान्य जल [
कटि स्नान ऐसी जगह में करना चाहिए, जहाँ पर ठंडी हवा के झोंके न आ रहे हों |
कटि स्नान लेने के डेढ़-दो घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए |
कटि स्नान ऐसी जगह में करना चाहिए, जहाँ पर ठंडी हवा के झोंके न आ रहे हों |
कटि स्नान लेने के डेढ़-दो घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए |
एपेंडिक्स, गर्भाशय, मूत्राशय, बड़ी आंत, जननेंद्रिय के विभिन्न अवयवों की नई सूजन तथा ह्रदय रोग की ख़राब स्थिति में कभी भी ठन्डे पानी से कटि स्नान नहीं करना चाहिए |
न्युमोनिया, गठिया, दमा, साईटिका के तीव्र दर्द में कटि स्नान नही लेना चाहिए |
शरीर के तापमान से थोडा कम तापमान का जल ] का प्रयोग करें तत्पश्चात क्रमशः प्रतिदिन जल के तापमान को कम करते जाएँ |सामान्यतः कटि स्नान लम्बे समय तक करने पर भी कोई हानि नही है बल्कि लम्बे समय तक ही क्यों इसे अपनी जीवन शैली में ही सम्मिलित कर लेना चाहिए, ताकि आपका शरीर स्वस्थ्य एवं जीवन सुखमय रहे |
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