10.2.17

हाइड्रोसील(अंडकोष वृद्धि) के घरेलू और होम्योपैथिक उपचार


हाइड्रोसील ( Hydrocele )
हाइड्रोसील पुरुषों का रोग है जिसमे इनके एक या दोनों अंडकोषों में पानी भर जाता है. इस रोग में अंडकोष एक थैली की भांति फुल जाते हैं और गुब्बारें की तरह प्रतीत होते है. इस अवस्था को प्रोसेसस वजायनेलिस या पेटेंट प्रोसेसस वजायनेलिस भी कहा जाता है. ये स्थिति पुरुषों के लिए बहुत पीडादायी होती है. अंडकोष में अधिक पानी भर जाने के कारण इन्हें वहाँ सुजन भी हो जाती है. वैसे तो ये किसी को भी हो सकती है किन्तु अकसर ये रोग 40 से अधिक उम्र के पुरुषों में ही देखा जाता है. इसका उपचार करने के लिए जरूरी है कि इस पानी को बाहर निकाला जाएँ

जब अंडकोष में अधिक पानी भर जाता है तो अंडकोष गुब्बारे की तरह फुला हुआ दिखाई देता है। हाइड्रोसील की चिकित्‍सा में पानी निकालने की आवश्‍यकता होती है, अंडकोष में अधिक पानी भर जाने से सूजन और दर्द की शिकायत हो सकती है।
अंडकोष में सूजन या पानी भरना कई कारणों से होता है। अंडकोष पर चोट लगना, नसों का सूज जाना, स्वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के कारण भी अंडकोष में सूजन आ सकती है।
कुछ लोगों में हाइड्रोसील की समस्‍या वंशानुगत या जन्मजात भी हो सकती है। जन्मजात हाइड्रोसील नवजात बच्चे में होता है और जन्‍म पहले वर्ष में समाप्त हो सकता है। वैसे तो यह समस्‍या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन 40 वर्ष के बाद इसकी शिकायत अक्‍सर देखी जाती है। कभी-कभी अंडकोष की सूजन में दर्द बिल्कुल भी नही होता और कभी होता है और वह बढ़ता रहता है।



हाइड्रोसील के कारण लक्षण और इलाज

हाइड्रोसील के कारण ( Causes of Hydrocele ) :- अंडकोष पर चोट

- नसों का सूजना
- भारी वजन उठाने
- दूषित मल के इक्कठा होने
- गलत खानपा

- स्वास्थ्य समस्यायें
- बिना लंगोट के जिम / कसरत करना
- आनुवांशिक
- अधिक शारीरिक संबंध बनाना

हाइड्रोसील के लक्षण (Symptoms of Hydrocele) :

अंडकोषों में तेज दर्द (शुरूआती लक्षण)
अंडकोष के आगे का भाग सूजना
चलने फिरने में दिक्कत
ज्ञानेन्द्रियों की नसों का ढीला और कमजोर पड़ना
उल्टी, दस्त और कब्ज होना 
हाइड्रोसील का उपचार ( Treatment for Hydrocele ) :
हाइड्रोसील के उपचार के रूप में अधिकतर रोगी इसकी सर्जरी या एस्पीरेशन कराते है. जिसमे बहुत धन समय लगता है साथ ही इसके कुछ अन्य परिणाम भी हो सकते है. किन्तु इस रोग से उपचार के रूप में रोगी कुछ प्राकृतिक आयुर्वेदिक उपायों को भी अपना सकते है. ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में आज हम आपको बता रहें है जिनका उपयोग करने आप घर बैठे इस रोग से मुक्ति पा सकते हो.

काटेरी की जड़ ( Roots of Kateri ) : 
अंडकोषों में पानी भर जाने पर रोगी 10 ग्राम काटेरी की जड़ को सुखाकर उसे पीस लें. फिर उसके पाउडर / चूर्ण में 7 ग्राम की मात्रा में पीसी हुई काली मिर्च डालें और उसे पानी के साथ ग्रहण करें. इस उपाय को नियमित रूप से 7 दिन तक अपनाएँ. ये हाइड्रोसील का रामबाण इलाज माना जाता है क्योकि इससे ये रोग जड़ से खत्म हो जाता है और दोबारा अंडकोषों में पानी नही भरता.
सूर्यतप्त जल ( Make Water Warm Under Sunrays ) : रोगी 25 मिलीलीटर पानी को पीतल के गिलास या पिली बोतल में सूरज की रोशनी में गर्म करें और उस पानी का दिन में 4 से 5 बार ग्रहण करना चाहियें. जलतप्त पानी पीने के 1 घंटे बाद रोगी अपने अंडकोष पर लाल प्रकाश डालें और अगले 2 घंटे बाद नीला प्रकाश डालें. इस प्रक्रिया को अपनाने से भी रोगी को हाइड्रोसील से जल्द ही आराम मिलता है
 हाइड्रोसील के इलाज के लिए आयुर्वेद में मुख्य रूप से लेप का इस्तेमाल किया जाता है इसलिए आप कुछ लेप का इस्तेमाल कर भी इस रोग से मुक्त हो सकते हो.
5 ग्राम काली मिर्च और 10 ग्राम जीरा लें और उन्हें अच्छी तरह पीस लें. इसमें आप थोडा सरसों या जैतून का तेल मिलाएं और इसे गर्म कर लें. इसके बाद इसमें थोडा गर्म पानी मिलाकर इसका पतला घोल बना लें और इसे बढे हुए अंडकोषों पर लगायें. इस उपाय को सुबह शाम 3 से 4 दिन तक इस्तेमाल करें आपको जरुर लाभ मिलेगा.
आप 20 ग्राम माजूफल और 5 ग्राम फिटकरी को पीसकर उनका लेप तैयार करें और उसे सूजे हुए अंडकोषों पर लगायें. जल्द ही उनका पानी सुख जायेगा.

स्नान ( Bath ) : 
हाइड्रोसील के रोगियों के उपचार में स्नान भी विशेष स्थान रखता है इसलिए इन्हें हमेशा गर्म पानी में नमक डालकर ही स्नान करना चाहियें. इसके अलावा रोगी कटिस्नान, सूर्यस्नान और मेह्स्नान भी ले सकता है. इससे रोगी को जल्द ही आराम मिलता है.
इन सब प्राकृतिक उपायों से हाइड्रोसील / अंडकोष में वृद्धि जैसी समस्या का समाधान किया जाता है. इन उपायों को अपनाने के साथ साथ रोगी को रोज सुबह खुली हवा में व्यायाम भी करना चाहियें. इन प्राकृतिक उपायों में ना तो अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता होती है और ना ही इनसे किसी तरह के साइड इफ़ेक्ट का ही ख़तरा होता है. ये इस रोग को जड़ से समाप्त कर देते है जिससे इसके दोबारा होने की संभावना

· संतरे का रस ( Orange and Pomegranate Juice ) : 
रोगी रोजाना 15 से 20 दिनों तक दिन में 2 बार संतरे या अनारे के रस का सेवन करें. साथ ही सलाद में भी कच्चा नींबू डालकर खायें. ये हाइड्रोसील की सफल प्राकृतिक चिकित्सा है. इसके साथ ही रोगी को उपवास भी रखने चाहियें. इससे भी अंडकोषों में जलभराव कम होता है.
नमक मिले गर्म पानी का स्नान
हाइड्रोसील के रोगियों के उपचार में स्नान भी विशेष महत्व रखता है. इसलिए इन्हें हमेशा गर्म पानी में नमक डालकर ही स्नान करना चाहियें. इसके अलावा रोगी कटिस्नान, सूर्यस्नान और मेह्स्नान भी ले सकता है. इससे रोगी को जल्द ही आराम मिलता है.





पल्सेटिला 30- सूजाक के बाद अण्डकोषों में पानी भर जाये, हाथ-पैरों से दहक निकले, प्यास न लगे- इन लक्षणों में दें ।
फॉस्फोरस 30- पहले अण्डकोषों में सूजन आई हो, फिर उनकी वृद्रि हो गयी हो तो यह दवा देनी चाहिये ।
ऑरम मेट 200- दाँये अण्डकोष का बढ़ जाना, सूजन, दर्द होना- इन लक्षणों में दें । मानसिक अवसाद और जीवन से ऊब- यह लक्षण भी हों तो यह दवा अति लाभकारी है ।
स्पांजिया 30, 200- बाँये अण्डकोष का बढ़ जाना, सूजन, दर्द होनाಳ್ಗೆ । इसमें दर्द चुभने की तरह होता है और अण्डकोष लटक जाता है |
रोडोडेण्ड्रॉन 200, 1M- दोनों अण्डकोषों के फूल जाने पर उपयोगी है। इसमें अण्डकोष कड़े हो जाते हैं, उनमें खिंचाव होता है, दर्द भी रहता है जो जाँघों तक फैल जाता है ।

आर्सेनिक 6– गण्डमाला धातु वाले बच्चों को रोग होने पर इस दवा का प्रयोग लाभकारी सिठ्द्र होता है ।

एपिस मेल 30- अण्डकोषों में लाली, सूजन, जलन और डंक मारने जैसा दर्द होने की अवस्था में इस दवा का प्रयोग करना चाहिये
साइलीशिया 30, 200- जब रोगी ठण्ड महसूस करता हो, रोग एकादशी से लेकर पूर्णिमा या अमावस्या तक बढ़े- इन लक्षणों में दें ।
ग्रेफाइटिस 30– किसी भी प्रकार के चर्म-रोग के दब जाने के कारण अण्डकोष-वृद्धि हो जाने पर लाभप्रद है ।इन सब प्राकृतिक उपायों से हाइड्रोसील या अंडकोष (Hydrocele) में वृद्धि जैसी समस्या का समाधान किया जाता है. इन उपायों को अपनाने के साथ साथ रोगी को रोज सुबह खुली हवा में व्यायाम भी करना चाहियें. इन प्राकृतिक उपायों में ना तो अधिक धन व्यय करने की आवश्यकता होती है. ना ही इनसे किसी तरह के दुष्प्रभाव का ही ख़तरा होता है. ये इस रोग को जड़ से ख़त्म कर देते है. जिससे इसके दोबारा होने की संभावना भी कम हो जाती है.

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9.2.17

बहेड़ा के औषधीय उपयोग//Medicinal use of bahera

   

बहेड़ा या बिभीतक (Terminalia bellirica) के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं। इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है। इसके पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं तथा पेड़ लगभग सभी प्रदेशों में पाये जाते हैं। इसके पत्ते लगभग 10 सेंटीमीटर से लेकर 20 सेंटीमीटर तक लम्बे तथा और 6 सेंटीमीटर से लेकर 9 सेंटीमीटर तक चौडे़ होते हैं। इसका फल अण्डे के आकार का गोल और लम्बाई में 3 सेमी तक होता है, जिसे बहेड़ा के नाम से जाना जाता है। इसके अंदर एक मींगी निकलती है, जो मीठी होती है। औषधि के रूप में अधिकतर इसके फल के छिलके का उपयोग किया जाता है।
हिन्दी बहेड़ा
संस्कृत विभीतक
बंगाली बहेड़े
कर्नाटकी तारीकायी
मलयालम तान्नि
तमिल अक्कनडं
तेलगू बल्ला
फारसी वलैले
लैटिन टर्मिनेलिया बेलेरिका
अंग्रेजी बेलेरिक मिरोबोलम
मराठी बहेड़ा
गुजराती बहेड़ां
बहेड़े का पेड़ जंगलों और पहाड़ों पर होता है। इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं। इसके फूल बहुत ही छोटे-छोटे होते हैं। इसके फल वरना के गुच्छों के फल के समान गुच्छों में लगते हैं। बहेड़े की छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। बहेड़ा शीतल होता है।





गुण

बहेड़ा कब्ज को दूर करने वाला होता है। यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है, भूख को बढ़ाता है, वायु रोगों को दस्तों की सहायता से दूर करता है, पित्त के दोषों को भी दूर करता है, सिर दर्द को दूर करता है, बवासीर को खत्म करता है, आंखों व दिमाग को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है, यह कफ को खत्म करता है तथा बालों की सफेदी को मिटता है। बहेड़ा-कफ तथा पित्त को नाश करता है तथा बालों को सुन्दर बनाता है। यह स्वर भंग (गला बैठना) को ठीक करता है। यह नशा, खून की खराबी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है तथा क्षय रोग (टी.बी) तथा कुष्ठ (कोढ़, सफेद दाग) में भी बहुत लाभदायक होता है।

थायरायड रोग के आयुर्वेदिक उपचार 

*आयुर्वेदिक मतानुसार
बहेड़ा रस में मधुर, कषैला, गुण में हल्का, खुश्क, प्रकृति में गर्म, विपाक में मधुर, त्रिदोषनाशक, उत्तेजक, धातुवर्द्धक, पोषक, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला तथा आंखों के लिए गुणकारी होता है। यह कब्ज, पेट के कीड़े, सांस, खांसी, बवासीर, अपच, गले के रोग, कुष्ठ, स्वर भेद, आमवात, त्वचा के रोग, कामशक्ति की कमी, बालों के रोग, जुकाम तथा हाथ-पैरों की जलन में लाभकारी होती है।
बहेड़े की मींगी :
 बहेड़े की मींगी प्यास को मिटाती है। यह उल्टी को रोकती है, कफ को शांत करती है तथा वायु दोषों को दूर करती है। यह हल्की, कषैली और नशीली होती है। आंवला की मींगी के गुण भी इसी के समान होता है। इसका सुरमा आंखों के फूले को दूर करता है।
विभिन्न रोंगों का बहेड़ा का उपयोग
आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए :- 



बहेड़े का छिलका और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से दो-तीन सप्ताह में आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।

कब्ज :-
 बहेड़े के आधे पके हुए फल को पीस लेते हैं। इसे रोजाना एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़े से पानी से लेने से पेट की कब्ज समाप्त हो जाती है और पेट साफ हो जाता है।
श्वास या दमा :-
बहेड़े और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में लेकर पीस लेते हैं इसे चिलम या हुक्के में भरकर पीने से सांस और दमा के रोग में आराम मिलता है। बहेड़े को थोड़े से घी से चुपड़कर पुटपाक विधि से पकाते हैं। जब वह पक जाए तब मिट्टी आदि हटाकर बहेड़ा को निकाल लें और इसका वक्कल मुंह में रखकर चूसने से खांसी, जुकाम, स्वरभंग (गला बैठना) आदि रोगों में बहुत जल्द आराम मिलता है। 40 ग्राम बहेड़े का छिलका, 2 ग्राम फुलाया हुआ नौसादर और 1 ग्राम सोनागेरू लें। अब बहेड़े के छिलकों को बहुत बारीक पीसकर छान लें और उसमें नौसादर व गेरू भी बहुत बारीक करके मिला देते हैं। इसे सेवन करने से सांस के रोग में बहुत लाभ मिलता है। मात्रा : उपयुर्क्त दवा को 2-3 ग्राम तक शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग ठीक हो जाता है।
*10 ग्राम बहेड़े के फल का गूदा लेकर पीसकर छान लें और फिर इसमें 10 ग्राम फूलाया हुआ नौसादर और 5 ग्राम असली सोनागेरू लेकर पीसकर मिला दें। अब इस तैयार सामग्री को 3 ग्राम रोजाना सुबह व शाम को शहद में मिलाकर चाटने से सांस लेने में फायदा मिलता है तथा इससे धीरे-धीरे दमा भी खत्म हो जाता है।बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पकायें और ठण्डा होने पर शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार रोगी को चटाने से सांस की बीमारी दूर हो जाती है।
* बंदगांठ :- 
अरंडी के तेल में बहेड़े के छिलके को भूनकर तेज सिरके में पीसकर बंदगाठ पर लेप करने से 2-3 दिन में ही बंदगांठ बैठ जाती है।
*पित्त की सूजन : –
 बहेड़े की मींगी का लेप करने से पित्त की सूजन दूर हो जाती है। आंख की पित्त की सूजन पर बहेड़े का लेप करने से लाभ मिलता है।
*ज्वर(बुखार) : –
40 से 60 मिलीलीटर बहेड़े का काढा़ सुबह-शाम पीने से पित्त, कफ, ज्वर आदि रोगों में लाभ मिलता है।
* खुजली :- 
फल की मींगी का तेल खुजली के रोग में लाभकारी होता है तथा यह जलन को मिटाता है। इसकी मालिश से जलन और खुजली मिट जाती है।
* अपच :- 
भोजन करने के बाद 3 से 6 ग्राम विभीतक (बहेड़ा) फल की फंकी लेने से भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है। इससे आमाशय को ताकत मिलती है।
* खांसी :- 



*एक बहेड़े के छिलके का टुकड़ा या छीले हुए अदरक का टुकड़ा सोते समय मुंह में रखकर चूसने से बलगम आसानी से निकल जाता है। इससे सूखी खांसी और दमा का रोग भी मिट जाता है। 3 से 6 ग्राम बहेड़े का चूर्ण सुबह-शाम गुड़ के साथ खाने से खांसी के रोग में बहुत लाभ मिलता है। बहेड़े की मज्जा अथवा छिलके को हल्का भूनकर मुंह में रखने से खांसी दूर हो जाती है। या 250 ग्राम बहेड़े की छाल, 15 ग्राम नौसादर भुना हुआ, 10 ग्राम सोना गेरू को एक साथ पीसकर रख लेते हैं। यह 3 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से सांस का रोग ठीक हो जाता है।

* कनीनिका प्रदाह :-
 2 भाग पीली हरड़ के बीज, 3 भाग बहेड़े के बीज और 4 आंवले की गिरी को एक साथ पीसकर और छानकर पानी में भिगोकर गोली बनाकर रख लें। जरूरत पड़ने पर इसे पानी या शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से कनीनिका प्रदाह का रोग दूर हो जाता है।
*. बालों के रोग :-
 2 चम्मच बहेड़े के फल का चूर्ण लेकर एक कप पानी में रात भर भिगोकर रख देते हैं और सुबह इसे बालों की जड़ पर लगाते हैं। इसके एक घंटे के बाद बालों को धो डालते हैं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है।
*अतिसार (दस्त):-
 *बहेड़ा के फलों को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लेते हैं। इसमें एक चौथाई मात्रा में कालानमक मिलाकर एक चम्मच दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
* पेचिश :-
 बहेड़ा के छिलके का चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से लेने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
* मुंहासे :-
 बीजों की गिरी का तेल रोजाना सोते समय मुंहासों पर लगाने से मुंहासे साफ हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।
* शक्ति बढ़ाने के लिए :- 
आंवले के मुरब्बे के साथ बहेड़ा को रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से शरीर मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।




* बच्चों का मलावरोध (मल रुकने) पर :-
 बहेडे़ का फल पत्थर से पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच दूध के साथ बच्चे को सेवन कराने से पेट साफ हो जाता है।
*कोढ़ (कुष्ठ रोग) और पेचिश : –
 बहेड़े के पेड़ की छाल का काढ़ा स्वित्र कोढ़ और पेचिश को नष्ट करता है।
* सीने का दर्द :- 
सीने के दर्द में बहेड़ा जलाकर चाटना लाभकारी होता है।
* हिचकी का रोग :-
 10 ग्राम बहेड़े की छाल के चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर रख लें। इसे थोड़ा-थोड़ा करके चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।36 गले के रोग में :- बहेड़े का छिलका, छोटी पीपल और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर 6 ग्राम गाय के दही में या मट्ठे में मिलाकर खाने से स्वर-भेद (गला बैठना) दूर हो जाता है।
बहेड़े की छाल को आग में भूनकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण को लगभग 480 मिलीग्राम तक्र (मट्ठा) के साथ सेवन करने से स्वरभेद (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
*कमजोरी :-
 लगभग 3 से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर होती है और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
* दिल की तेज धड़कन :-
 बहेड़ा के पेड़ की छाल का चूर्ण दो चुटकी रोजाना घी या गाय के दूध के साथ सेवन करने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है।
* स्वर यंत्र में जलन : – 
3 ग्राम से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से स्वरयंत्र शोथ (गले में सूजन) और गले में जलन दूर हो जाती है। साथ ही इसके सेवन से गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं।:
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8.2.17

चमेली के गुण,फायदे,उपयोग //Benefits of Jasmine





   चमेली का फूल काफी सुंदर और सफेद रंग का होता है। इसकी सुगंध काफी अच्छी होती है। अपनी महक से यह पूरे माहौल को सुगंधित कर देता है। इसी वजह से इसका उपयोग विभिन्न तरह के परफ्यूम बनाने में भी होता है। वैसे तो यह फूल अपनी मनमोहक सुगंध के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके सौंदर्य से संबंधित भी कई लाभ हैं। शरीर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए इस फूल का उपयोग कई तरह से किया जा सकता है। चमेली की खुशबू मन को जितनी आकर्षित करती है उससे कहीं ज्‍यादा स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद भी है। चमेली के फूल सफेद और पीले रंग के होते हैं। इसका स्‍वाद तीखा और प्रकृति ठंडी होती है।
   चमेली के फूल के अलावा इसकी पत्तियों में भी कई प्रकार के औषधीय गुण विद्यमान हैं। यह दांत, मुख, त्‍वचा और आंख के रोगों में फायदा करती है। आइए जानें चमेली हमारे लिए कितनी फायदेमंद है।
पैरों में बिवाई होने पर चमेली के पत्‍तों का रस फटी एडि़यों में लगाने से बिवाई ठीक हो जाती है।
पेट में अगर कीड़े हों तो चमेली के पत्‍तों को पीसकर पीने से कीड़े निकल जाते हैं।  
माहवारी की समस्‍या के लिए-
चमेली के 10 ग्राम पत्‍तों को पीसकर पीने से समस्‍या दूर होती है।
भगंदर होने पर-
 चमेली के पत्‍ते, बरगद के पत्‍ते, गिलोय, सोंठ और सेंधानमक को मिलाकर छाछ के साथ पीजिए। 
   उल्‍टी होने पर -
10 ग्राम सफेद चमेली के पत्‍तों के रस को 2 ग्राम कालीमिर्च के चूर्ण में मिलाकर चाटने से उल्‍टी आना बंद हो जाता है। 
*इसके अलावा चमेली चेहरे के दाग, हांथी-पांव, ट्यूमर, पक्षाघात, मूत्ररोग आदि में फायदेमंद है। इन नुस्‍खों को आजमाने से पहले किसी चिकित्‍सक से सलाह अवश्‍य लीजिए।
*मसूड़ों में दर्द होने पर चमेली के पत्‍तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से दर्द समाप्‍त हो जाता है।

*आंखों में दर्द होने पर आंखों को बंद करके चमेली के फूलों का लेप लगाने से दर्द समाप्‍त होता है।
*नियमित रूप से चमेली के फूलों को चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ जाती है।
*मुंह में छाले होने पर इसकी पत्तियां धीरे-धीरे चबाइए, इससे छाले समाप्‍त हो जाएंगे।
*चर्म रोग होने पर चमेली के पत्‍तों का तेल लगाने से फायदा होता है।
*सिर दर्द होने पर चमेली के फूलों का लेप सिर पर लगाने से सिरदर्द समाप्‍त हो जाता है।
*इसके अलावा चमेली चेहरे के दाग, हांथी-पांव, ट्यूमर, पक्षाघात, मूत्ररोग आदि में फायदेमंद है।
शरीर को रिलैक्‍स करने में सहायक-
चमेली के फूल से मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को रिलैक्स रखने में काफी मदद मिलती है, जिसके कारण दिमाग को आराम महसूस होता है। नारियल के तेल में चमेली का तेल मिलाकर अगर शरीर की मालिश की जाए तो इससे बॉडी को काफी रिलैक्स मिलता है। अरोमाथेरेपी में इस तरीके का इस्तेमाल कई स्पा करते हैं।
स्किन को टाइट करता है-
चमेली में ऐसे गुण होते हैं जो स्किन को पूरे दिन-भर मॉइस्चराइ-ज रखने में सहायता करते हैं। लेकिन चमेली के फूल को सीधे ही स्किन पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। इसकी बजाय चमेली के अर्क से बने लोशन या फिर क्रीम का उपयोग करना चाहिए।
बेहतरीन स्प्रे
यदि आपके शरीर से बहुत दुर्गंध आती है, तो लोग आपसे दूर भागते है| शरीर की दुर्गन्ध भगाने के लिए चमेली के फूल आपकी मदद कर सकते है| आप घर पर भी जैस्मिन स्‍प्रे बना सकते हैं। इसे बनाना बहुत ही आसान है| इसे बनाने के लिए सबसे पहले एक स्‍प्रे बोतल लेकर उसमें पानी डालें। फिर इस पानी में चमेली के तेल का एक चम्म्च डाले| अब बोतल को अच्‍छे से हिला लें ताकि मिश्रण मिल जाये। और इन आसान स्टेप्स में ही आपका स्प्रे इस्तेमाल करने के लिए तैयार है|
इसके अलावा चमेली चेहरे के दाग, हांथी-पांव, ट्यूमर, पक्षाघात, मूत्ररोग आदि में फायदेमंद है
स्‍कैल्‍प को स्वस्थ रखने में मददगार है-
चमेली के फूल में कई एंटीसेप्टिक और एंटीमाइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं। इस वजह से अगर चमेली का तेल स्कैल्प पर लगाया जाए तो से यह सर की त्वचा के संक्रमण को दूर करता है। नारियल तेल में, चमेली के तेल की कुछ बूंदे मिलाकर स्कैल्प की धीरे-धीरे मसाज करें। कुछ घंटों तक तेल को बालों में ऐसे ही लगा रहने दें उसके बाद बालों को अच्छे से वॉश कर लें। अच्छे नतीजों के लिए हफ्ते में एक बार ऐसा जरूर करें, कम से कम 1 या 2 महीनों तक ।
शरीर को रिलैक्‍स करने में सहायक-
चमेली के फूल से मस्तिष्क की तंत्रिकाओं को रिलैक्स रखने में काफी मदद मिलती है, जिसके कारण दिमाग को आराम महसूस होता है। नारियल के तेल में चमेली का तेल मिलाकर अगर शरीर की मालिश की जाए तो इससे बॉडी को काफी रिलैक्स मिलता है। अरोमाथेरेपी में इस तरीके का इस्तेमाल कई स्पा करते हैं।
    चमेली के फूल का इस्‍तेमाल बालों की कंडीशनिंग के लिए भी होता है। हो सकता है आपको यह जानकर आश्‍चर्य हो रहा हो, लेकिन यह बिल्कुल सच है। चमेली के फूलों से बालें की कंडीशनिंग करने के लिए चमेली के कुछ फूल लें और उन्हें कुछ घंटों तक गर्म पानी में भिगों कर रख दें। अगर आपके घुंघराले बाल हैं तो इस पानी में चमेली के तेल की कुछ बूंदे भी मिला लें। अब पानी को कमरे के तापमान पर ठंडा होने दें। अब इस पानी से अपने बाल धोएं। इसके बाद नॉर्मल पानी से बाल वॉश कर लें।



2.2.17

चीकू के स्वास्थ्य लाभ और औषधीय गुण//Naseberry health benefits and medicinal properties




चीकू एक स्वादिष्ट फल होने के साथ साथ अनेक स्वास्थ्य लाभ के बारे में जाना जाता है। इसमें पोषण तत्वों एवं उर्ज़ा की बहुलता होती है। यह फ्रूक्टोज एवं सुक्रोज का एक अच्छा स्रोत है। वैसे इस फल को आप कभी भी खा सकते हैं लेकिन भोजन ग्रहण करने के बाद चीकू खाने से इसका स्वास्थ्य लाभ एवं औषधीय गुण कई गुना बढ़ जाता है।रंग में आलू की तरह दिखने वाला चीकू हर किसी का पसंदीदा फल है, ये तो नहीं कहा जा सकता है, लेकिन जब आप चीकू की इन खूबियों के बारे में जानेगे तो आप हैरान रह जाएंगे कि एक फल में इतनी सारी खूबियां कैसे हो सकती है।
*चीकू उर्जा का एक बहुत ही अच्छा स्रोत है। यह कसरत और मेहनत के करने वालों के लिए एक टॉनिक के रूप में काम करता है।
*यह दिमाग की तंत्रिकाओं को शांत और तनाव को कम करने में मदद करता है। पोटेशियम और सोडियम से भरपूर चीकू के सेवन से पेशाब में जलन की समस्या दूर होती है। जिन्हें कब्ज और दस्त की बीमारी हो उन्हें नियमित रूप से चीकू का सेवन करना चाहिए। स्वाद में मीठे और विटामिन सी स्रोत चीकू शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए ठीक रहता है। इसके अलावा यह गुर्दे के रोगियों के लिए भी गुणकारी है।

आँख की बीमारी के लिए चीकू-
 चीकू में विटामिन ए प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जो आपके आँखों की बिमारिओं को दूर ही नहीं करता बल्कि नेत्र शक्ति भी प्रदान करता है।

त्वचा की खूबसूरती के लिए चीकू खाएं- 
अगर आप अपनी त्वचा की खूबसूरती चाहते हैं तो नियमित रूप से इस फल का सेवन करें। इसमें विटामिन ई पाया जाता है जो आपके त्वचा को नमी प्रदान करने के साथ साथ इसकी खूबसूरती एवं सुंदरता को भी बढ़ाता है।
चीकू वजन घटाता है-
 यह फल गैस्ट्रिक एंजाइम को संतुलित करते हुए और पाचन तंत्र को मजबूत बनाने में मदद करता है, इस तरह से यह वजन को कम करने में कारगर है।
झुरिओं को रोकता है चीकू-
 चीकू में विभिन्य प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट्स पाया जाता है जो फ्री रेडिकल्स के गतिविधिओं को रोकते हुए चेहरे से धब्बे एवं झुरिओं कम करता है।
*बवासीर और दस्त में एक उपचार के तौर पर काम करता है चीकू। इसके अलावा यह कोलन कैंसर को कम करने में भी सहायक है।
*इसमें विटामिन ए के साथ विटामिन सी भी पाया जाता है। विटामिन सी शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कब्ज और दस्त की बीमारी को ठीक करने में सहायक चीकू खाने से आंतों की शक्ति बढती है और आंतें अधिक मजबूत होती हैं।
*चीकू हमारे ह्रदय और रक्त वाहिकाओं के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसमें बेटा-क्राइटॉक्सथीन होता है, इसलिए माना जाता है कि यह फेफड़ो के कैंसर के होने के खतरे को कम करता है।
खूबसूरत बालों के लिए चीकू-
चीकू आपके बालों के लिए बहुत अच्छा है। इसके बीज से निकाला गया तेल बालों को नमी, मुलायम और खूबसूरत बनाता है।
बालों को झडने से रोकता है चीकू : चीकू खाने से आपके बाल का झड़ना एवं टूटना बंद हो जाता है। इसके तेल से मालिश करने से बाल मजबूत बनता है। बालों का झड़ना एवं डैड्रफ रुक जाता है।
*चीकू विटामिन ‘ए’ का एक बड़ा स्रोत है। यह आंखो के लिए कारगर है, इसलिए इसका नित्य सेवन करने से आंखो की रोशनी बढ़ती है।
*चीकू की छाल में टैन्निक पाया जाता है इसलिए सूजन और बुखार में चीकू बहुत ही फायदेमंद है।
*विटामिन ‘ए’ के अलावा चीकू में विटामिन ‘बी’ और ‘ई’ भी होता है जो त्वचा को सुरक्षा प्रदान करता है तथा त्वचा की नमी को बरकरार रखता है।
*कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन जैसे तत्वों से भरपूर चीकू शरीर की हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है।
कब्ज से राहत दिलाता है चीकू-
 इसमें पर्याप्त मात्रा में फाइबर पाया जाता है जो पाचन में मदद करता है और कब्ज से राहत दिलाता है।
गुर्दे की पथरी को दूर करता है चीकू- 
जब चीकू के फल को मसल कर खाने से गुर्दे एवं ब्लैडर के पत्थर को दूर करने मददगार है।
हड्डियों को मजबूत बनाता है चीकू -
 इसमें कैल्शियम, फ़ास्फ़रोस एवं आयरन की अच्छा खासा मात्रा पाया जाता है जो हड्डियों को मजबूती के लिए जरूरी है। इसके अतरिक्त चीकू कैंसर से बचाने, गर्भावस्था में फायदा पहुंचाने, गैस्ट्रिक विकार, अपच, एंटी वॉयरल, एंटी बैक्टीरियल, ह्रदय रोग आदि के लिए कारगर है।
*नित्य इसका सेवन शरीर की कमजोरियों को दूर करता है। साथ ही कार्बोंहाइड्रेड और न्यूट्रिएंट से भरपूर चीकू स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भी लाभकारी है।
हृदय और गुर्दे के रोगों में एक अहम भूमिका निभाने वाला चीकू एनिमिया होने से भी रोकता है।
*चीकू शीतल और पित्तनाशक है। इसका नित्य सेवन से पेशाब में जलन की परेशानी दूर होती है।
*चीकू को सूजन कम करने के लिए भी जाना जाता है। चीकू में टैन्निन पाया जाता है जिससे सूजन उतरने में मदद मिलती है। इसके अलावा चीकू पाचन को ठीक करने साथ पेट से जुड़ी समस्याओं से भी निजात दिलाता है।
*चीकू शीतल, पित्तनाशक, पौष्टिक, मीठे और रूचिकारक हैं।
* चीकू के पे़ड की छाल से चिकना दूधिया- `रस-चिकल` नामक गोंद निकाला जाता है। उससे चबाने का गोंद च्युंइगम बनता है। यह छोटी-छोटी वस्तुओं को जो़डने के काम आता है। दंत विज्ञान से संबन्धित शल्य çRया में `ट्रांसमीशन बेल्ट्स` बनाने में इसका उपयोग होता है। `
* चीकू ज्वर के रोगियों के लिए पथ्यकारक है।
* भोजन के एक घंटे बाद यदि चीकू का सेवन किया जाए तो यह निश्चित रूप से लाभ कारक है।
* चीकू के नित्य सेवन से धातुपुष्ट होती है तथा पेशाब में जलन की परेशानी दूर होती है

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1.2.17

अमलतास के गुण ,लाभ,उपचार Cassia properties, benefits, treatment


      

     शहरों में उद्यानों और सड़कों के सौंदर्यीकरण के लिए लगाए जाने वाले अमलतास के पेड़ के सभी अंग जैसे छाल, फल और पत्तियों का इस्‍तेमाल प्राचीन काल से ही औषधि के रूप में किया जा रहा है।
   पीले फूलों वाले अमलतास का पेड़ सड़कों के किनारे और बगीचों में प्राय देखने को मिल जाता हैं। इस खूबसूरत पेड़ को शहरों में सड़क के किनारे अक्सर सजावट वाले पेड़ के तौर पर लगाया जाता है। इसकी पत्तियां गहरे हरे रंग की और फूल पीले चमकीले होते है। लेकिन क्‍या आप जानते हैं कि शहरों में उद्यानों और सड़कों के सौंदर्यीकरण के लिए लगाए जाने वाले इस पेड़ के सभी अंगों जैसे छाल, फल और पत्तियों का इस्‍तेमाल प्राचीन काल से ही औषधि के रूप में किया जा रहा है।
     भारत में इसके वृक्ष प्राय: सब प्रदेशों में मिलते हैं। तने की परिधि तीन से पाँच कदम तक होती है, किंतु वृक्ष बहुत उँचे नहीं होते। शीतकाल में इसमें लगनेवाली, हाथ सवा हाथ लंबी, बेलनाकार काले रंग की फलियाँ पकती हैं। इन फलियों के अंदर कई कक्ष होते हैं जिनमें काला, लसदार, पदार्थ भरा रहता है। वृक्ष की शाखाओं को छीलने से उनमें से भी लाल रस निकलता है जो जमकर गोंद के समान हो जाता है। फलियों से मधुर, गंधयुक्त, पीले कलझवें रंग का उड़नशील तेल मिलता है।
इसका प्रयोग कई रोगों को ठीक करने में किया जाता है और इसके मुख्य प्रयोग नीचे दिये है-
   



श्वास कष्ट ठीक करने के लिए-

अस्थमा के रोगी में कफ को निकालने और कब्ज को दूर करने के लिये फलों का गूदा दो ग्राम पानी में घोलकर गुनगुना सेवन करना चहिये ।अस्थमा की शिकायत होने पर पत्तियों को कुचलकर 10 मिली रस पिलाया जाए तो सांस की तकलीफ में काफी आराम मिल जाता है।प्रतिदिन दिन में दो बार लगभग एक माह तक लगातार पिलाने से रोगी को राहत मिल जाती है।


सर्दी जुकाम में लाभकारी-
अमलतास आम सर्दी जुकाम के उपचार में कारगर होता है। जलती अमलतास जड़ का धुआं बहती नाक का इलाज करने में सहायक होता है। यह धुआं बहती नाक को उत्‍तेजित करने के लिए जाना जाता है, और तुरंत राहत प्रदान करता है।
शरीर में जलन होने पर-
पेशाब में जलन होने पर अमलतास के फल के गूदे, अंगूर, और पुनर्नवा की समान मात्रा (प्रत्येक ६ ग्राम) लेकर 250 मिली पानी में उबाला जाता है और 20 मिनिट तक धीमी आँच पर उबाला जाता है। ठंडा होने पर रोगी को दिया जाए तो पेशाब में जलन होना बंद हो जाती है।
घाव ठीक करने के लिए- :
 इसकी छाल के काढ़े का प्रयोग घावों को धोने के लिये किया जाता है । इससे संक्रमण नही होता है ।



बुखार में प्रयोग-

बुखार होने पर अमलतास के गूदे की 3 ग्राम मात्रा दिन में तीन बार 6 दिनों तक लगातार दिया जाए तो बुखार में आराम मिल जाता है और बुखार के साथ होने वाले बदन दर्द में भी राहत मिलती है।
गले की खरास ठीक करने के लिए: -
इसके लिए जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर, गुनगुने काढ़े से गरारा करने से फायदा मिलता है |
शुगर के लिए फायदेमंद-
आदिवासी मधुमेह (डायबिटीज़) के रोगियों को प्रतिदिन अमलतास की फल्लियों के गूदे का सेवन करने की सलाह देते हैं। प्रतिदिन सुबह शाम 3 ग्राम गूदे का सेवन गुनगुने पानी के साथ करने से मधुमेह में आराम मिलने लगता है।
एसिडिटी ठीक करने के लिए:-
 फल के गूदे को पानी मे घोलकर हलका गुन्गुना करके नाभी के चारों ओर 10-15 मिनट तक मालिस करें । यह प्रयोग नियमित करने से स्थायी लाभ होता है ।
अमलतास की फल्लियों और छाल के चूर्ण को उबालकर पिया जाए तो आर्थरायटिस और जोड़ दर्द में आराम देता है। 
सूखी खांसी ठीक करने के लिए :-
 इसकी फूलों का अवलेह बनाकर सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है |
आंवला और अमलतास के गूदे की समान मात्रा को मिलाकर 100 मिली पानी में उबाला जाए और जब यह आधा शेष बचे तो इसे छान लिया जाए और रक्त विकारों से ग्रस्त रोगियों को दिया जाए तो विकार शांत हो जाते है।

पेट के रोगों में लाभकारी-

बच्‍चों को अक्‍सर पेट में गैस, दर्द और पेट फूलना जैसी समस्‍याएं होती है। इन समस्‍याओं के होने पर अमलतास के गूदे को नाभि के आस-पास के हिस्‍से में लगाने फायदा होता है। यह प्रयोग नियमित रूप से करने से स्‍थायी रूप से फायदा होता है। इसके अलावा गूदे को बादाम या अलसी के तेल के साथ मिलाकर लेने से मल त्‍याग की समस्‍याओं को दूर करने में मदद मिलती है।|
त्वचा रोग- : 
त्वचा रोगों में इसका गूदा 5 ग्राम इमली और 3 ग्राम पानी में घोलकर नियमित प्रयोग से लाभ होता है | इसके पत्तों को बारीक पीसकर उसका लेप भी साथ-साथ करने से लाभ मिलता गये है |अमलतास की पत्तियों को छाछ के साथ कुचलकर त्वचा पर लगाया जाए तो त्वचा संबंधित अनेक समस्याओं में आराम मिल जाता है। दाद खाज खुजली होने पर अमलतास की फल्लियों के पल्प/ गूदे और मीठे नीम की पत्तियों को साथ में कुचला जाए और संक्रमित त्वचा पर इसे लेपित किया जाए तो आराम मिल जाता है।
कब्ज दूर करने के लिए - 
एक चम्मच फल के गूदे को एक कप पानी में भिगोकर मसलकर छान ले | इसके प्रयोग से कब्ज दूर हो जाता है |
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30.1.17

पलाश(ढाक) के औषधीय गुण//Palash (Dhak) medicinal properties





पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू) एक वृक्ष है जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलो के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। प्राचीन काल ही से होली के रंग इसके फूलो से तैयार किये जाते रहे है। भारत भर मे इसे जाना जाता है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। लाल फूलो वाले पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजो मे दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलो वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा है जबकि लाल फूलो वाले को ब्यूटिया सुपरबा कहा जाता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है।

    जिसकी समिधा यज्ञ में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद ने 'ब्रह्मवृक्ष' नाम से गौरवान्विति किया है। पलाश के पाँचों अंग (पत्ते,फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है।
*पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है |
*वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं।
*इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं।
*.पलाश के बीज उत्तम कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं।
.इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है।

पलाश के फूलों द्वारा उपचारः

*महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।
*रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
*मेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें।
*आँख आने पर (Conjunctivitis) 
फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँख मे आंजे|

पलाश के बीजों द्वारा उपचारः

*पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।
1.पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें । चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल जायेंगे।
*इसके बीजों को नींबू के रस के साथ पीस कर खुजली तथा एक्जिमा तथा दाद जैसी परेशानियां दूर करने में काम में लिया जाता है।


छाल व पत्तों द्वारा उपचारः

*नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।
*.बवासीर में पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें।
*बालकों की आँत्रवृद्धि (Hernia) में छाल का काढ़ा (25 मि.ली.) बनाकर पिलायें।
*इसकी पत्तियां रक्त, शर्करा ,ब्लड शुगर को कम करती हैं तथा ग्लुकोसुरिया को नियंत्रित करती है, इसलिए मधुमेह की बीमारी में यह खासा आराम देती हैं।

पलाश के गोंद द्वारा उपचारः

*पलाश का  गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
*पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।


*पलाश की गोंद को बंगाल में किनो नाम से भी जाना जाता है और डायरिया व पेचिश जैसे रोगों की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
और भी-
*बवासीर के मरीजों को पलाश के पत्तों का साग ताजे दही के साथ खाना चाहिए लेकिन साग में घी ज्यादा चाहिए।
*बुखार में शरीर बहुत तेज दाहक रहा हो तो पलाश के पत्तों का रस लगा लीजिये शरीर पर 15 मिनट में सारी जलन ख़त्म हो जाती है।
*जो घाव भर ही न रहा हो उस पर पलाश की गोंद का बारीक चूर्ण छिड़क लीजिये फिर देखिये।
*फीलपांव या हाथीपाँव में पलाश की जड़ के रस में सरसों का तेल मिला कर रख लीजिये बराबर मात्रा में और फिर सुबह शाम 2-2 चम्मच पीजिये।


*नेत्रों की ज्योति बढानी है तो पलाश के फूलों का रस निकाल कर उसमें शहद मिला लीजिये और आँखों में काजल की तरह लगाकर सोया कीजिए- अगर रात में दिखाई न देता हो तो पलाश की जड़ का अर्क आँखों में लगाइए।
*दूध के साथ प्रतिदिन एक (पलाश) पुष्प पीसकर दूध में मिला के गर्भवती माता को पिलायें-इससे बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है।
*यदि अंडकोष बढ़ गया हो तो पलाश की छाल का 6 ग्राम चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिये।
*नारी को गर्भ धारण करते ही अगर गाय के दूध में पलाश के कोमल पत्ते पीस कर पिलाते रहिये तो शक्तिशाली और पहलवान बालक पैदा होगा।
*यदि इसी पलाश के बीजों को मात्र लेप करने से नारियां अनचाहे गर्भ से बच सकती हैं।

*पेशाब में जलन हो रही हो या पेशाब रुक रुक कर हो रहा हो तो पलाश के फूलों का एक चम्मच रस निचोड़ कर दिन में बस 3 बार पी लीजिये।
*नाक-मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें- इसे इन्ही गुणों के कारण ब्रह्मवृक्ष कहना उचित है।
*प्रमेह (वीर्य विकार) : पलाश की मुंहमुदी (बिल्कुल नई) कोपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ में मिलाकर लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से प्रमेह नष्ट हो जाता है। ◆ टेसू की जड़ का रस निकालकर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दाने को भिगो दें। उसके बाद दोनों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) और कामशक्ति की कमजोरी दूर होती है।
*स्तम्भन एवम शुक्र शोधन हेतु : इसके लिए पलाश कि गोंद घी में तलकर दूध एवम मिश्री के साथ सेवन करें। दूध यदि देसी गाय का हो तो श्रेष्ठ है।
वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें- यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है तथा कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
*महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें-अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।


पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है जो उत्तम कृमिनाशक है- 3 से *6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें -चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें इससे पेट के कृमि निकल जायेंगे।
*पलाश के बीज + आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है
*वाजीकरण (सेक्स पावर) :  5 से 6 बूंद टेसू के जड़ का रस प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव (शीघ्रपतन) रुक जाता है और काम शक्ति बढ़ती है। 
* टेसू के बीजों के तेल से लिंग की सीवन सुपारी छोड़कर शेष भाग पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में हर तरह की नपुंसकता दूर होती है और कामशक्ति में वृद्धि होती है।
*लिंग कि दृढ़ता हेतु : पलाश के बीजों के तेल कि हल्की मालिश लिंग पर करने से वह दृढ होता है। यदि तेल प्राप्त ना कर सकें तो पलाश के बीजों को पीसकर तिल के तेल में जला लें तथा उस तेल को छानकर प्रयोग करें। इससे भी वही परिणाम प्राप्त होते है।

*रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
आँख आने पर फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।

 

आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचा




19.1.17

मोच, चोट और सूजन के उपाय //Sprains, bruising and inflammation treatment



   


   कई बार काम करते समय, खेलते कूदते सीढ़ी चढ़ते हमें यह मालूम ही नहीं हो पाता कि हमारे हाथ-पाँव या कमर में मोच लग गई है, लेकिन कुछ समय बाद उस जगह दुःखने पर हमें यह पता लगता है। मोच आने पर उस अंग पर सूजन आ जाती है और काफी दर्द होने लगता है , अगर आपको असहनीय दर्द या ज्यादा परेशानी है तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ ,लेकिन यदि मोच छोटी है तो आप उस का घरेलू उपचार भी कर सकते है ।चोट कभी भी लग सकती है और मोच कभी भी आ सकती है और यह ऐसे समय पर
आती है जब आप या तो अपने घर पर होतें हैं या एैसी जगह जो अस्पताल से काफी
दूर होता है एैसे समय पर आप कुछ घरेलू  नुस्खे अपना सकते हैं जो प्राचीन काल
में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं और जिनसे मोच, चोट और सूजन में राहत मिल सकती
है।
मोच, चोट और सूजन के लिए घरेलू उपाय

*आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।
*चोट के कारण कटे हुए स्थान पर पिसी हुई हल्दी भर देने से खून का बहना बंद
हो जाता है तथा हल्दी कीटाणुनाशक भी होती है।
* 2 कली लहसुन, 10 ग्राम शहद, 1 ग्राम लाख एवं 2 ग्राम मिश्री इन सबको चटनी जैसा पीसकर, घी डालकर देने से टूटी हुई अथवा उतरी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
*लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों को उबालकर बाँधने से सूजन उतर जाती है।
* यदि आप के पैर में मोच आ गई है तो आप तेजपात को पीसकर मोच वाले स्थान
पर लगायें ।
*मोच अथवा चोट के कारण खून जम जाने एवं गाँठ पड़ जाने पर बड़ के कोमल पत्तों पर शहद लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
*अगर आपके पैर या हाथ में मोच आ गई है तो बिना देर किए थोडा सा बर्फ एक कपड़े में रखकर सूजन वाले जगह पर लगायें इससे सूजन कम हो जाता है। बर्फ लगाने से सूजन वाले जगह पर रक्त का संचालन अच्छी तरह से होने लगता है जिससे दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है।
* हल्दी और सरसों के तेल को मिला लें और इसे हल्की आंच में गर्म करके फिर इसे
मोच वाली जगह पर लगाएं और किसी कपड़े से इसे ढक दें।
*अरनी के उबाले हुए पत्तों को किसी भी प्रकार की सूजन पर बाँधने से तथा 1 ग्राम हाथ की पीसी हुई हल्दी को सुबह पानी के साथ लेने से सूजन दूर होती 
* पका हुआ लहसुन और अजवायन को सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। और फिर इस तेल की मालिश मोच वाले हिस्से पर करें। आपको राहत मिलेगी।
* महुआ और तिल को कपड़े में बांध कर लगाने से हड्डी की मोच ठीक हो सकती
है।
* 1 से 3 ग्राम हल्दी और शक्कर फाँकने और नारियल का पानी पीने से तथा खाने का चूना एवं पुराना गुड़ पीसकर एकरस करके लगाने से भीतरी चोट में तुरंत लाभ होता है|
* एलोवेरा के गूदे को सूजन और मोच वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है।
* इमली की पत्तियों को पीसें और इसे आग में थोड़ा गुनगुना करें। और इसे मोच
वाली जगह पर लगाने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।
* ढ़ाक के गोंद को पानी में मिलाकर उसका लेप करने से चोट में सूजन सही हो
जाती है ।
*मोच को ठीक करने का एक और कारगर उपाय यह है कि आप अनार के पत्ते पीसकर मोच वाली जगह पर मलें।
* चोट किसी भी स्थान पर लगी हो तो आप कपूर और घी की बराबर मात्रा में मिलाकर चोट वाले स्थान पर कपडे से बांधे एैसा करने से कम हो जाता
है तथा रक्त बहना भी बंद हो जाता है।
* सरसों के तेल में नमक को मिला लें और इसे गर्म करके मोच वाली जगह पर लगाएं। एैसा करने मोच में राहत मिलती है।
* हाथ पैरों की ऐठन और पैर की मोच पर अखरोट का तेल लगाने से दर्द से राहत
मिलती है।
* चूने को शहद के साथ मिला लें और इससे मोच वाली जगह पर आराम से मालिश
करें। इस उपाय से भी मोच में बहुत राहत मिलती है।

मोच, चोट और सूजन मे लेने योग्य आहार

*विटामिन डी आपकी हड्डियों के निर्माण और मरम्मत के लिए, आपके शरीर को कैल्शियम और फॉस्फोरस के अवशोषण में मदद करता है। अंडे, दूध और कुछ प्रकार की मछलियाँ विटामिन डी प्रदान करती हैं; सूर्य के सम्मुख होने पर आपका शरीर भी इसका निर्माण करता है।
*जिंक घाव और ऊतकों की मरम्मत में सहायता करता है और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जिंक के उत्तम स्रोत में जौ, गेहूँ, चिकन और पालक आते हैं।
*ओमेगा 3 फैटी एसिड सूजन कम करने में सहायक होते हैं, इन एसिड्स के उत्तम स्रोत में मीठे पानी की मछली, अखरोट, अलसी के बीज और पत्तागोभी आते हैं।
*माँसपेशियों और जोड़ों के स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन के अच्छे स्रोतों में अंडा, चिकन, मछली, मेवे दूध आदि हैं।
*कैल्शियम हड्डियों को पोषण देने वाला खनिज है। कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थों में ब्रोकोली, दूध, केल, फलियाँ, पनीर, सोयाबीन, दही, मछली आदि हैं।
*बीटा कैरोटीन कोलेजन का, जो कि मोच के दौरान क्षतिग्रस्त स्नायुओं का निर्माण करता है, मुख्य कारक तत्व है। प्राकृतिक बीटा कैरोटीन के अच्छे स्रोतों में गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक या केल, ब्रोकोली, और गाजर आदि हैं।
*विटामिन सी शरीर की सूजन घटाने में सहायक होता है। विटामिन सी के बढ़िया स्रोतों में पत्तागोभी, शिमला मिर्च, कीवी, खट्टे फल जैसे संतरे, नीबू और ग्रेपफ्रूट आदि हैं।



15.1.17

मुंह की बदबू से परेशान है तो अपनाएं ये उपाय //The stench of mouth treatment

   

 भले ही आपने महंगे और अच्छे कपड़े पहन हुए हों और मेकअप भी परफेक्ट हो लेकिन मुंह की दुर्गंध आपकी इस अच्छी-खासी इमेज को मिनटों में बर्बाद कर सकती है.
अगर आपके मुंह से बदबू आ रही है तो न कोई आपके साथ बैठना पसंद करेगा और न ही बात करना. ऐसी स्थिति में आपका आत्मविश्वास भी डगमगा जाता है. कई बार ये खाने-पीने की वजह से होता है तो कई बार मुंह से जुड़ी कुछ बीमारियों की वजह से. पर अच्छी बात ये है कि इसे दूर करने के कुछ घरेलू और असरदार उपाय हैं. इनके इस्तेमाल से आप मुंह की बदबू को दूर कर सकती हैं और अपने दोस्तों संग एकबार फिर से हंस-बोल सकती हैं:
मुंह की दुर्गन्ध की बदबू एक ऐसी स्वास्थ समस्या है जो कई लोगों में पाई जाती है कई बार तो लोग इस समस्या से अंजान होते हैं। साँस की दुर्गंध उन बैक्टीरिया से पैदा होती है, जो मुँह में पैदा होते हैं और दुर्गंध पैदा करते हैं। नियमित रूप से ब्रश नहीं करने से मुँह और दांतों के बीच फंसा भोजन बैक्टीरिया पैदा करता है। इस बदबू के कई कारण होते हैं, जैसे-गंदे दांत, पाचन की समस्या आदि
मुंह की दुर्गन्ध के कारण- 
*भोजन है मुंह की दुर्गन्ध का कारण – 
आपके दांतों में और इसके आसपास भोजन के टुकड़ो के फसने कारण मुंह में बैक्टीरिया पनपने लगते है जिस कारण हमारे मुंह से बदबू आने लगती है इसीलिए भोजन करने के बाद अपने मुंह की अच्छी तरह से सफाई करना आवस्यक है|
ग्रीन टी के इस्तेमाल से
ग्रीन टी के इस्तेमाल से मुंह की बदबू को कम किया जा सकता है. इसमें एंटीबैक्ट‍िरियल कंपोनेंट होते हैं जिससे दुर्गंध दूर होती है.
*निम्बू का रस मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए –
नींबू रस का प्रयोग मुंह से बदबू को खत्म करने में किया जा रहा है। नींबू के रस में एक चुटकी काला नमक मिलाकर मुंह की सफाई करने से मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा मिलता है|
अनार की छाल




अनार के छिलके को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करने से मुंह की बदबू दूर हो जाती है.
*कच्चा अमरुद मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए –
यह मसूढ़े और दातों के स्वास्थ्य को बढ़ाने में सहायता करता है। यह न केवल मुंह की दुर्गंध को रोकता है बल्कि मसूढ़ों से आने वाले खून को भी रोकता है।
*इलायची के दाने चबायें पाए मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा –
अगर आप दुर्गंध सासों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको कुछ इलायची बीजों को चबाना चाहिये|.
*लौंग मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा पाने के लिए – 
 हर भोजन के बाद, आप कुछ लौंग निश्चित रूप से खायें। यह दुर्गंध सासों को रोकने का सबसे प्राकृतिक तरीका है।और असरदार भी.
. तुलसी की पत्त‍ियां
तुलसी की पत्ती चबाने से भी मुंह की बदबू दूर हो जाती है. साथ ही मुंह में अगर कोई घाव है तो तुलसी उसके लिए भी फायदेमंद है.
*भोजन के बाद ब्रश जरूर करे 

हमेशा भोजन करने के बाद अपने दांतों को टूथ ब्रश से अवस्य करे हमें दिन में दो बार ब्रश करना चाहिए एस करने से मुंह की दुर्गन्ध में रहत मिलती है
इन सभी उपायो को अपनाकर आप भी अपने मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा प सकते है इसके अलावा आप इन समस्याओं से बचने के लिए कुछ अन्य उपायो को अपना सकते है जैसे भोजन करने के बाद अपने मुंह की अच्छी तरह से सफाई करे दिन में दो बार ब्रश करे आदि|
सरसों के तेल और नमक से मसाज




हर रोज दिन में एकबार सरसों के तेल में चुटकीभर नमक मिलाकर मसूड़ों की मसाज करने से मसूड़े स्वस्थ रहते हैं और बदबू पनपने का खतरा भी कम हो जाता है.
*दांतों की समस्या के कारण आती है मुँह से दुर्गन्ध –
यदि आप हर दिन ब्रश और कुल्ला नहीं करते हैं, तो भोजन के टुकड़े आपके मुँह में रह जाते हैं और बैक्टीरिया पैदा करते है जिस कारण मुंह में सड़न होने लगती है यह मुंह की बदबू का एक विषेश कारण है
*मुँह सूखने के कारण आती है मुँह से दुर्गन्ध – 
 लार से मुँह में नमी रहने और मुँह को साफ रखने में मदद मिलती है। सूखे मुँह में मृत कोशिकाओं का आपकी जीभ, मसूड़े और गालों के नीचे जमाव होता रहता है। ये कोशिकाएं क्षरित होकर दुर्गंध पैदा कर सकती हैं।
*मुंह की दुर्गन्ध को दूर करे पानी – 
पानी सांसों को ताज़ा बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। खाना खाने के बाद, आपको अपने मुँह को साफ करना चाहिए , यह आपके दांतों में अटके भोजन के कणों को सफाई करने पर बाहर निकाल देता है। मुँह की दुर्गंध, भोजन के दौरान पानी पीना भी कई मायनों में सहायता कर सकता है। पानी एक अच्छा उपाय है जो आसानी से बुरी सांसों को निकालता है। खूब पानी पीने मुंह से दुर्गन्ध नहीं आती है.|
*मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए मैथी – 
एक कप पानी को लेकर इसमें एक चम्मच मेंथी के बीज़ को मिला दें। इस पानी को छानकर दिन में एक बार अवश्य पियें जब तक कि इस समस्या से छुटकारा नहीं मिल जाता है।

*मुंह की दुर्गन्ध के लिए सौंफ 
एक छोटी चम्मच सौंफ लेकर इसे धीरे-धीरे चबाये सौंफ में ताज़ा सांस देने का गुण होता है यह मुंह को ताज़गी प्रदान करता है और मुंह की दुर्गंद को दूर करता है
अमरूद की पत्तियां
अमरूद की कोमल पत्त‍ियों को चबाने से भी मुंह की दुर्गंध पलभर में दूर हो जाती है.
*दालचीनी करे मुंह की दुर्गन्ध को दूर – 
एक चम्मच दालचीनी पाउडर को लेकर एक कप पानी में उबालें। इसमें कुछ इलायची और तेजपत्ते की पत्तियों को भी मिला सकते हैं। इस मिश्रण को छान लें और इससे अपने मुंह को साफ करें जिससे कि आपकी सांसे ताजा रहेंगी।