13.9.23

हार सिंगार का पत्ता गठिया और सायटिका का रामबाण उपचार

 





हरसिंगार का पौधा आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। इसके फल, पत्ते, बीज, फूल और यहां तक कि इसकी छाल तक का इस्तेमाल विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है। हरसिंगार को नाइट जैस्मीन और पारिजात के नाम से भी जाना जाता है। इसके फूलों का इस्तेमाल अक्सर भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए किया जाता है। इसका सामान्य नाम निक्टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस लिनन (Nyctanthes Arbortristis linn) है। इस फूल की खुशबू काफी तेज और मनमुग्ध करने वाली होती है। हरसिंगार के फूलों की खुशबू रात भर आती है और सुबह होते-होते धीमी हो जाती है
क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है? या फि‍र इसके फूल, बीज या छाल का प्रयोग स्वास्थ्य एवं सौंदर्य उपचार के लिए क्या है? आप नहीं जानते तो, जरूर जान लीजिए इसके चमत्कारी औषधीय गुणों के बारे में। इसे जानने के बाद आप हैरान हो जाएंगे...
हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां, छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं। इसकी चाय, न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है बल्कि सेहत के गुणों से भी भरपूर है। इस चाय को आप अलग-अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं। जानिए विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका -
वि‍धि -1.:हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के साथ तुलसी की कुछ पत्त‍ियां लीजिए और इन्हें 1 गिलास पानी में उबालें। जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे छानकर गुनगुना  ठंडा करके पी लें। आप चाहें तो स्वाद के लिए शहद या मिश्री भी डाल सकते हैं। यह खांसी में फायदेमंद है।
वि‍धि 2 :
रसिंगार के दो पत्ते और चार फूलों को पांच से 6 कप पानी में उबालकर, 5 कप चाय आसानी से बनाई जा सकती है। इसमें दूध का इस्तेमाल नहीं होता। यह स्फूर्तिदायक होती है।
चाय के अलावा भी हरसिंगार के वृक्ष के कई औषधीय लाभ हैं। जानिए कौन-कौन सी बीमारियों में कैसे करें इसका इस्तेमाल -
जोड़ों में दर्द - 
हरसिंगार के 6 से 7 पत्ते तोड़कर इन्हें पीस लें। पीसने के बाद इस पेस्ट को पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए। अब इसे ठंडा करके प्रतिदिन सुबह खालीपेट पिएं। नियमित रूप से इसका सेवन करने से जोड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी।
खांसी - 
खांसी हो या सूखी खांसी, हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से बिल्कुल खत्म की जा सकती है। आप चाहें तो इसे सामान्य चाय में उबालकर पी सकते हैं या फिर पीसकर शहद के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं।
बुखार - 

किसी भी प्रकार के बुखार में हरसिंगार की पत्तियों की चाय पीना बेहद लाभप्रद होता है। डेंगू से लेकर मलेरिया या फिर चिकनगुनिया तक, हर तरह के बूखार को खत्म करने की क्षमता इसमें होती है।
साइटिका - 
दो कप पानी में हरसिंगार के लगभग 8 से 10 पत्तों को धीमी आंच पर उबालें और आधा रह जाने पर इसे अंच से उतार लें। ठंडा हो जाने पर इसे सुबह शाम खाली पेट पिएं। एक सप्ताह में आप फर्क महसूस करेंगे।
बवासीर - 
हरसिंगार को बवासीर या पाइल्स के लिए बेहद उपयोगी औषधि माना गया है। इसके लिए हरसिंगार के बीज का सेवन या फिर उनका लेप बनाकर संबंधित स्थान पर लगाना फायदेमंद है।
त्वचा के लिए - 
हरसिंगार की पत्त‍ियों को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याएं समाप्त होती हैं। इसके फूल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा उजला और चमकदार हो जाता है।
हृदय रोग - 
हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है। इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने में कारगर है।
दर्द - 
हाथ-पैरों व मांसपेशियों में दर्द व खिंचाव होने पर हरसिंगार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस मिलाकर पीने से फायदा होता है।
अस्थमा -
 सांस संबंधी रोगों में हरसिंगार की छाल का चूर्ण बनाकर पान के पत्ते में डालकर खाने से लाभ होता है। इसका प्रयोग सुबह और शाम को किया जा सकता है।
प्रतिरोधक क्षमता -
हरसिंगार के पत्तों का रस या फिर इसकी चाय बनाकर नियमित रूप से पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर हर प्रकार के रोग से लड़ने में सक्षम होता है। इसके अलावा पेट में कीड़े होना, गंजापन, स्त्री रोगों में भी बेहद फायदेमंद है।

हरसिंगार पाउडर के फायदे

गठिया रोग के उपचार के लिए

आयुर्वेद के जाने माने वैध्य  डॉ . दयाराम  आलोक  ने अनुसंधान किया है कि परिजात के पत्ते गठिया के रोगियों के लिए बहुत ही असरदार होता है। गठिया रोग यानी जिनको जोड़ो में दर्द रहता है या शरीर के किसी भाग में सूजन है तो उनके लिए परिजात के पत्ते बहुत ही लाभकारी होते हैं। गठिया रोग में परिजात के पत्ते का सेवन कुछ इस प्रकार करते हैं परिजात के 5-7 पत्तियां तोड़कर पीस लें और उसे एक गिलास पानी में डालकर उबालें चकवाल तेरे जब तक की पानी की मात्रा आधा ना हो जाए  इसका इसको  ठंडा होने दें ठंडा होने के बाद इसे सुबह में खाली पेट पी लें इसे पीने के बाद कम से कम एक घंटा तक खाना ना खाएं।
बूढ़े लोगों में अर्थराइटिस (Arthritis) की समस्या आम बात है लेकिन आजकल यह वयस्कों को भी प्रभावित कर रही है। अर्थराइटिस के बेतहाशा दर्द और सूजन से निजात दिलाने में हरसिंगार की पत्तियां बहुत ही ज्यादा कारगर साबित होती हैं। अगर आप अर्थराइटिस से पीड़ित हैं तो हरसिंगार के पत्ते के पावडर को एक कप पानी में उबालकर और इसे ठंडा करके पीने से अर्थराइटिस के दर्द में राहत मिलता है। हरसिंगार का उपयोग प्रतिदिन करने से यह समस्या पूरी तरह दूर हो जाती है।
अगर आप गठिया रोग से बहुत ज्यादा दिन या आपको दर्द बहुत ज्यादा हो तो इसे आप दिन में दो या तीन बार भी इस्तेमाल कर सकते हैं। हरसिंगार के पत्ते गठिया रोग के लिए बहुत ही फायदेमंद है इसका इस तरह से सेवन करने से 10 से 15 दिन में इसका असर दिखना शुरू हो जाता है पुराना से पुराना गठिया रोग कुछ ही महीनों में ठीक हो जाता है।

एंटी-अस्थमाटिक और एंटी-एलर्जीक

औषधीय अध्ययनों के मुताबिक हरसिंगार के पत्ते एंटी-अस्थमाटिक और एंटी-एलर्जीक गुणों से समृद्ध होते हैं। इसके पीछे का कारण इसमें मौजूद β-साइटोस्टेरॉल (β-sitosterol) नामक केमिकल कंपाउंड को माना जाता है। इसके अलावा, इसकी पत्तियों का अर्क नाइट्रिक ऑक्साइड का उत्पादन बढ़ाकर नाक की नली को आराम पहुंचाने में मदद कर सकता है । दरअसल, अस्थमा में नाक की नली सूज जाती है और उसके आसपास की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैंदेखा जाए तो प्राचीन काल से ही हरसिंगार का इस्तेमाल अस्थमा को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है। आप अस्थमा का इलाज करने के लिए इसके फूलों और पत्तियों का उपयोग कर सकते हैं । फूलों को सूखाकर पाउडर बनाने के बाद इसे उपयोग में लाया जा सकता है।

गंजेपन की समस्या ( Baldness Problem )

आज के इस दौर में अधिकांश लोग महिला हो या पुरुष गंजेपन की समस्या से परेशान है। हरसिंगार के पौधे के पास गंजेपन की समस्या का भी हल है इसका उपयोग हम लोग गंजेपन की समस्या को दूर करने के लिए भी कर सकते है। इसके लिए हम लोगों को हरसिंगार के बीजों का पेस्ट बनाकर अपने सिर पर लगाना होगा जिससे हमलोग को गंजेपन की परेशानी से छुटकारा मिलेगी।

सूजन को करे कम

शरीर में किसी भी प्रकार की सूजन (inflammation) की समस्या होने पर अगर आप हरसिंगार के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, तो यह फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी गुण सूजन को कम करने में मदद करता है। साथ ही इसका सेवन साइटिक के दर्द में भी आराम पहुंचता है।

बुखार ( Fever )

हरसिंगार का उपयोग बुखार से छुटकारा दिलाने के लिए होता है। बुखार में हरसिंगार के जड़ और पत्तों का उपयोग किया जाता है। हरसिंगार के पत्ते का रस या हरसिंगार के जड़ के काढ़ा बनाकर पीने से बुखार से काफी राहत मिलती है।
हरसिंगार के पत्तों का प्रयोग मलेरिया बुखार में भी किया जाता है मलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को हरसिंगार के 4-5 पत्तों के पेस्ट बनाकर इसका सेवन करने से मलेरिया का संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो जाता है

तनाव

हरसिंगार का पौधा एंटीडिप्रेसेंट गुण से समृद्ध होता है। ऐसे में इसके सेवन से आप तनाव और अवसाद से खुद को बचा सकते हैं। इसके लिए आपको रसिंगार की चाय का सेवन करना होगा, जो आपको रिलैक्स रखने में मदद कर सकती है। वहीं, इसकी मदद से आप अपना मूड भी ठीक कर सकते हैं

डेंगू और चिकनगुनिया

डेंगू और चिकनगुनिया से जूझने वालों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन आप हरसिंगार के सेवन से इसके कुछ लक्षणों और इससे संबंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं। इसमें एंटीवायरल, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो आपको डेंगू और चिकनगुनिया मच्छरों के कारण होने वाले बुखार से बचाते हैं। साथ ही जोड़ों में होने वाले दर्द को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, हरसिंगार डेंगू में घटने वाले प्लेटलेट काउंट को भी बढ़ाने में मदद कर सकता है

घाव भरने में उपयोगी

कई बार हमारे शरीर के घाव और खरोंच सही समय से नहीं भर पाते हैं, जो कई अंदरूनी समस्याओं और बीमारियों के कारण हो सकते हैं। ऐसे में अगर आप हरसिंगार के पत्तों का इस्तेमाल करते हैं, तो यह फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें एंटीसेप्टिक और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होता है, जो घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।

डायबिटीज ( Diabetes )

हरसिंगार का पेड़ डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। डायबिटीज से ग्रसित लोग परिजात के पत्ते का 15-25 मिली काढ़ा बनाकर इसका सेवन करें ।

हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा कैसे बनाएं

हरसिंगार के पत्ते का काढ़ा बनाने के लिए सबसे पहले हम हरसिंगार का पत्ता 7-8 लेंगे फिर उसको पिसेगे पिसने बाद 1गिलास पानी ले फिर उस पेस्ट को अच्छा से घोल लें ओर उसे धीमी आंच पर पकाने वास्ते छोड़ दें जब पानी उबालकर आधा हो जाय तो उसे ठंडा होने के लिए छोड़ दें फिर उसे सूबह उठकर खाली पेट उस काढ़ा को पिले फिर उसका उपयोग 1
हपते करने जोड़ो का दर्द से राहत मिलती हैं।

रिंगवर्म या दाद

यदि आप रिंगवर्म या दाद की समस्या से परेशान हैं तो हरसिंगार की पत्तियां इस समस्या को दूर करने में बहुत लाभकारी होती हैं। हरसिंगार की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें और प्रभावित स्थान पर लगाने से दाद की समस्या दूर हो जाती है।

हरसिंगार के पत्ते का चाय कैसे बनाएं

हरसिंगार की चाय बनाने के लिए दो कप पानी हरसिंगार के दो पत्ते तीन फूल के साथ तुलसी के साथ कुछ पत्ते तुलसी के साथ कुछ पत्तियां लीजिए इसको अच्छी तरह धीमी आंच पर उबालें आधी चाय उबलने के बाद गुड़ का छोटा सा टुकड़ा डालें और इससे 2 मिनट इसे धीमी आंच पर पकाएं 2 मिनट और यह चाय बनकर तैयार है यह चाय पीने से बुखार में राहत मिलती है यह चाय का सेवन प्रत्येक 2 दिन बाद करनी चाहिए।

हरसिंगार के पत्ते के फायदे

हरसिंगार का उपयोग अस्थमा रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। अध्ययनों के अनुसार हरसिंगार के पत्ते में एंटी अस्थमैटिक और एंटी अलर्जिक गुण पाए जाते हैं जो कि अस्थमा रोग के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है।

आप इसका उपयोग करने के लिए हरसिंगार के फूलों तथा हरसिंगार के पत्ते का उपयोग कर सकते हैं, इन्हें सुखा कर पाउडर बना लें और इसका इस्तेमाल करें।
हरसिंगार के पत्ते के फायदे शरीर की पाचन क्रियाओं में भी होते हैं , हरसिंगार के पत्तियों के रस के उपयोग से पेट में मौजूद भोजन को पचाने में बहुत ही मदद करता है, हरसिंगार में एंटी स्पस्मोडिक (Anti Spasmodic) गुण भी पाए जाते हैं जो कि शरीर की पाचन तंत्र को स्वास्थ्य और तंदुरुस्त रखने में मदद करते हैं ।
हरसिंगार में एंटीएंफ्लेमेट्री के गुण भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं जो कि गठिया मरीजों के लिए उपयोगी होता है ।हरसिंगार का अर्क गठिया को बढ़ने से रोक सकता है, हरसिंगार में एंटी आर्थराइटिस गुण भी मौजूद होते हैं ।
हरसिंगार का पौधा जो की एंटीडिप्रीसेंट गुणों से भरा होता है इसके सेवन से आप खुद को अवसाद और तनाव से बचा सकते हैं । अगर आप थके हुए हैं तथा आपका मूड सही नहीं है मन विचलित है तो आप हरसिंगार के चाय का सेवन करें, आपको तुरंत रिलेक्स रखने में हरसिंगार बहुत ही फायदेमंद है।
डायबिटीज, उच्च रक्तचाप कोलेस्ट्रॉल और मोटापा के होने से हृदय का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, जिसके कारण आप हृदय रोग से संबंधी कई बीमारियों के शिकार हो सकते हैं, हरसिंगार या परिजात के जड़ के छाल के इस्तेमाल से हृदय रोग से संबंधित बीमारियों से बचाया जा सकता है , चुकी यह डायबिटीज के खतरे को भी कम करने के साथ साथ यह उच्च रक्तचाप को भी कंट्रोल करता है।
हरसिंगार के पौधे लेक्सोटिव गुणों से भरपूर होता है जो की शरीर की पाचन क्रियाओं में मदद करता है और गैस की समस्याओं को खत्म करने का काम करता है।
अक्सर ये देखा जाता है की डेंगू और चिकनगुनिया से पीड़ित वायक्ति को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाता है, लेकिन आप हरसिंगार के पत्ते के उपयोग से इसके कुछ लक्षणों और इससे संबंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं। हरसिंगार में एंटीवायरल, एंटीएंफ्लोमेंट्री तथा एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं, ये गुण आपको डेंगू और चिकनगुनिया मच्छर से होने वाले बुखार से बचाने में सक्षम होते हैं । साथ ही यह आपके जोड़ों में होने वाले दर्द को कम कर सकने में कारगर होते हैं, इसके अलावा हरसिंगार के पत्ते डेंगू में घटने वाले प्लेटलेट काउंट को भी बढ़ाने में मदद करता है।
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11.9.23

आयुर्वेद की महौषधि अश्वगंधा बढाती है पुरुषों की यौन क्षमता

 





अश्वगंधा का वैज्ञानिक नाम विथानिया सोम्नीफेरा है और इसे विंटर चैरी और इंडियन गिनसेंग के नाम से जाना जाता है। यह आमतौर पर भारत और उत्तरी अफ्रीका में उगाया जाता है।अश्वगंधा एक जड़ी-बूटी है। अश्वगंधा का प्रयोग कई रोगों में किया जाता है। क्‍या आप जानते हैं कि मोटापा घटाने, बल और वीर्य विकार को ठीक करने के लिए अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा अश्वगंधा के फायदे और भी हैं। अश्वगंधा के अनगिनत फायदों के अलावा अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से अश्वगंधा के नुकसान से सेहत के लिए असुविधा उत्पन्न हो सकता है।
आयुर्वेद में अश्‍वगंधा का इस्‍तेमाल अश्वगंधा के पत्‍ते, अश्वगंधा चूर्ण के रुप में किया जाता है। 

बढ़ी हुई सेक्स ड्राइव

अश्वगंधा को कामोत्तेजक माना जाता है-जैसे गुण, जिसका अर्थ है कि यह यौन इच्छा को बढ़ा सकता है।
निरंतर तनाव कम सेक्स ड्राइव और खराब यौन प्रदर्शन का एक आम कारण है।
शोध से पता चला है कि अश्वगंधा तनाव से राहत दे सकता है, जो बदले में सेक्स ड्राइव और इच्छा और आनंद महसूस करने के लिए पर्याप्त आराम करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, टेस्टोस्टेरोन के स्तर पर अश्वगंधा का प्रभाव पुरुषों में यौन इच्छा और ड्राइव को बढ़ाने में मदद कर सकता है।

प्रजनन क्षमता में वृद्धि

अश्वगंधा पुरुष प्रजनन क्षमता में मदद कर सकता है। शोध से पता चला है कि अश्वगंधा शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाता है और बांझपन वाले पुरुषों में शुक्राणु की गति (गतिशीलता) में सुधार करता है।
एक अन्य अध्ययन में इसी तरह के परिणाम मिले, जिससे पता चला कि अश्वगंधा शुक्राणुओं की संख्या और गतिशीलता में काफी सुधार कर सकता है। 

रक्त शर्करा और सूजन में कमी

कुछ सबूत हैं कि अश्वगंधा रक्त शर्करा के स्तर और शरीर में सूजन के स्तर को कम करने में मदद कर सकता है।
शोध के अनुसार, अश्वगंधा मधुमेह से पीड़ित लोगों को उनके रक्त शर्करा को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। हालाँकि, कई अध्ययन जो बताते हैं कि अश्वगंधा रक्त शर्करा को कम करने में मदद कर सकता है, मनुष्यों में नहीं बल्कि प्रयोगशाला में किए गए थे। कई छोटे मानव अध्ययन जिन्होंने रक्त शर्करा को कम करने वाले प्रभाव दिखाए हैं, उन लोगों में किए गए थे जिन्हें मधुमेह नहीं था।

एथलेटिक प्रदर्शन में वृद्धि


कुछ शोध बताते हैं कि अश्वगंधा लेने से एथलेटिक प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है। यह व्यायाम के बाद मांसपेशियों की रिकवरी में भी मदद कर सकता है। हालाँकि, यह देखने के लिए और अधिक अध्ययन किए जाने की आवश्यकता है कि क्या वास्तव में कोई लाभकारी प्रभाव है।

मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि अश्वगंधा सिज़ोफ्रेनिया सहित रोगियों में अवसाद और चिंता के लक्षणों में मदद कर सकता है।
कुछ अध्ययनों से पता चला है कि अश्वगंधा की खुराक या एक से अधिक जड़ी-बूटियों के साथ संयोजन की खुराक अनिद्रा से पीड़ित लोगों में चिंता को कम करने और नींद में सुधार करने में मदद कर सकती है।


अश्वगंधा के दुष्प्रभाव

अश्वगंधा को आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है लेकिन इसके दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
जड़ी-बूटी के सामान्य दुष्प्रभावों में शामिल हैं:
दस्त
तंद्रा
सिर दर्द
जी मिचलाना
आयुर्वेद में अश्वगंधा प्रसिद्ध जड़ी बूटी में से एक है. लिवर के लिए अश्वगंधा किसी रामबांण से कम नहीं है. लिवर को डिटॉक्स करने, सूजन दूर करने और फैटी लिवर में अश्वगंधा बहुत फायदेमंद है.
 हम जो भी खाते-पीते हैं, सांस लेते हैं उसे हमारा लिवर प्रोसेस करता है. इसीलिए लिवर को शरीर का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है. लिवर बॉडी से टॉक्सिन्स को बाहर निकालने का काम करता है. अगर शरीर में कहीं भी ब्लड का क्लॉट बनाने की जरूरत पड़ती है तो लिवर ही उसका काम करता है. हॉर्मोन्स को रेगुलेट करने में भी लिवर अहम रोल निभाता है. ऐसे में अगर आपको लिवर से जुड़ी परेशानी है या किसी भी तरह आपके लिवर को क्षति पहुंची है तो ये आपके स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है. कोरोना वायरस से लिवर भी प्रभावित हो रहा है. ऐसे में आपको लिवर को स्वस्थ रखने पर ध्यान देना चाहिए.

लिवर को स्वस्थ रखता है अश्वगंधा

*फैटी लिवर की समस्या कम करता है- जो लोग एल्कोहॉल का सेवन ज्यादा करते हैं उनके लिवर पर इसका हानिकारक असर पड़ता है, जिससे फैटी लिवर की समस्या हो जाती है. अगर आपको भी फैटी लिवर की समस्या है तो अश्वगंधा इस समस्या को कम करता है. अश्वगंधा बैली फैट, हाई कोलेस्ट्रॉल और पीसीओएस की समस्या में भी फायदा करता है.
*अश्वगंधा कैंसर की रोकथाम में भी मदद करता है। कई स्टडीज में यह दावा किया जा चुका है कि अश्वगंधा कैंसर सेल्स की ग्रोथ और प्रॉडक्शन पर लगाम लगाता है।
*जिन महिलाओं में सफेद पानी जाने की समस्या होती है, उसमें भी अश्वगंधा को कारगर माना गया है। इसके अलावा यह महिलाओं और पुरुषों दोनों में फर्टिलिटी को बढ़ावा देने में मदद करता है। साथ ही यह स्पर्म क्वॉलिटी को सुधारने में भी मदद करता है।
*अश्वगंधा को हाइपरटेंशन में भी लाभकारी माना गया है। इसके लिए अश्वगंधा का नियमित सेवन करना चाहिए। लेकिन जिन लोगों का ब्लड प्रेशर कम रहता है, उन्हें अश्वगंधा का सेवन नहीं करना चाहिए।
जिन्हें गहरी नींद नहीं आती उन्हें अश्वगंधा का खीर पाक खाना चाहिए। अश्वगंधा स्वाभाविक नींद लाने की दवा की तरह काम करता है। इसके अलावा पेट से जुड़ी परेशानियों को भी दूर करने में मदद करता है। इसके लिए अश्वगंधा, मिश्री और थोड़ी सोंठ को बराबर अनुपात में मिलाकर गर्म पानी के साथ लें।
इन रोगों से आपको बचाता है अश्वगंधा
*अगर पुरुषों में यौन क्षमता की कमी है और वे यौन सुख नहीं ले पाते तो फिर अश्वगंधा का सेवन करें। यह न सिर्फ यौन क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करता है बल्कि सीमन की क्वॉलिटी भी सुधारता है।
लिवर डैमेज से बचाता है- ज्यादातर एंटी-बायोटिक दवाएं लिवर को काफी नुकसान पहुंचाती हैं. ऐसे में अगर आप अश्वगंधा का सेवन करते हैं तो ये आपके लिवर को डैमेज होने से बचाता है. अश्वगंधा लिवर की कार्य प्रणाली को भी अच्छा बनाता है.
*लिवर को टॉक्सिन्स से सुरक्षित रखता है- आजकल की लाइफस्टाइल में अनहेल्दी खाने से शरीर में टॉक्सिन्स जमा हो जाते हैं. ये टॉक्सिन्स लिवर में एकट्ठा हो जाते हैं और लिवर फंक्शन को प्रभावित करते हैं. लेकिन अश्वगंधा का सेवन करने से लिवर हानिकारक टॉक्सिन्स के प्रभाव से बचता है. अश्वगंधा खाने से लिवर डिटॉक्स होता है.
*सूजन कम करता है- अगर आपके लिवर में सूजन है तो आपको अश्वगंधा का सेवन करना चाहिए. इसमें एंटी-इंफ्लेमेट्री गुण पाए जाते हैं जिससे लिवर की सूजन कम हो जाती है. लिवर को हेल्दी रखने के लिए अश्वगंधा काफी फायदेमंद है. आपको अश्वगंधा का सेवन जरूर करना चाहिए. आप रात को सोने से पहले दूध के साथ अश्वगंधा का सेवन कर सकते है.
अश्‍वगंधा और शतावरी का सेवन पुरूष और महिला द्वारा किसी भी उम्र में किया जा सकता है. इन दोनों औषधियों में ऐसे तत्‍व पाए जाते हैं जो मुश्किल बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं. आयुर्वेद के अनुसार, इस औषधि का असर एक सप्‍ताह के अंदर ही दिखने लगता है. इसके तेजी से वजन बढ़ता है.

अश्वगंधा के साइड इफ़ेक्ट:

लंबे समय तक अश्वगंधा के उपयोग की सुरक्षा को लेकर कोई भी पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि, अश्वगंधा के सबसे आम साइड इफ़ेक्ट इस प्रकार हैं:जी मिचलाना
दस्त
उल्टी आना
पेट खराब होना7
जो साइड इफेक्ट्स कम देखने को मिलते हैं:उनींदापन (नींद आते रहना)
वर्टिगो (चक्कर आना)
खांसी और बलगम जमा होना
ददोरे पड़ना
नज़र धुंधली होना
मुँह सूखना
वज़न बढ़ना
हैल्युसिनेशन होना (काल्पनिक ख्याल आना
अश्वगंधा(Ashwagandha) से लिवर डैमेज भी हो सकता है। अगर आप किसी भी साइड इफेक्ट्स का अनुभव करते हैं, खासतौर पर खुजली वाली त्वचा या पीलिया जैसा लिवर डैमेज की स्थिति में होता है, तो अपने डॉक्टर से तुरंत बात करना बहुत ज़रूरी है।7 इसलिए, अश्वगंधा का उपयोग करने से पहले कृपया किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह ज़रूर लें। वे आपके स्वास्थ्य की ज़रूरतों के हिसाब से आपको सही सलाह देंगे।
अश्वगंधा का सेवन कैसे करें अश्वगंधा को आमतौर पर कैप्सूल या पाउडर के रूप में लिया जाता है, और इसका सेवन भोजन के साथ या उसके बिना भी किया जा सकता है। कुछ लोग इसे खाली पेट लेना पसंद करते हैं तो कुछ लोग भोजन के साथ इसका सेवन करना पसंद करते हैं। अश्वगंधा लेने का सबसे अच्छा समय आपकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा।

इसका सेवन करने के लिए दिन का सबसे अच्छा समय है

यदि आप नींद में मदद के लिए अश्वगंधा ले रहे हैं, तो आमतौर पर इसे शाम को सोने से पहले लेने की सलाह दी जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अश्वगंधा में शांत प्रभाव होता है जो आराम और नींद को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है
यदि आप तनाव कम करने के लिए काम कर रहे हैं  तो दिन के किसी भी समय अश्वगंधा का सेवन किया जा सकता है। कुछ लोग पाते हैं कि इसे सुबह लेने से उन्हें अपने दिन की शुरुआत शांत और स्पष्ट दिमाग से करने में मदद मिलती है, जबकि अन्य लोग इसे शाम को सोने से पहले आराम करने में मदद करने के लिए लेना पसंद करते हैं।
सही खुराक को समझना यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप अश्वगंधा की सही मात्रा ले रहे हैं, उत्पाद लेबल पर खुराक के निर्देशों का पालन करें। अश्वगंधा का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट ख़राब होना और दस्त जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसके अलावा, इस जड़ी-बूटी को अपने आहार में शामिल करने से पहले अपने डॉक्टर से जांच अवश्य कर लें।

चूर्ण के सेवन का तरीका

इसके सेवन की विधि बहुत ही आसान है. अश्‍वगंधा और शता‍वरी का चूर्ण मार्केट में बड़ी आसानी से मिल जाता है. आप अगर चाहें तो 100-100 ग्राम के पैकेट लेकर उन्हें एकसाथ मिला लें, और फिर रोजाना दिन में दो बार आधा चम्‍मच यानी लगभग 5 ग्राम चूर्ण को गर्म दूध में मिलाकर पी सकते हैं लेकिन आपको बता दें कि इसके सेवन के साथ-साथ व्‍यायाम करना भी जरूरी हैं.
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5.9.23

बवासीर के नायाब नुस्खे Ayurvedic treatment piles

 


बवासीर में गुदा और मलाशय के आसपास सूजन, और नसों में सूजन होती है। बवासीर या तो गुदा के अंदर या गुदा के आसपास त्वचा के नीचे होता है। वे अक्सर मल त्यागते समय लगने वाले दबाव की वजह से होते हैं। अन्य कारकों में गर्भावस्था, उम्र बढ़ना और पुरानी कब्ज या दस्त शामिल हैं।दोनों पुरुषों और महिलाओं में बवासीर बहुत आम हैं। लगभग आधे लोगों में 50 वर्ष की आयु तक बवासीर होता है। गुदा के अंदर बवासीर का सबसे आम लक्षण शौचालय पेपर या शौचालय में चमकीला लाल रक्त होता है। लक्षण आमतौर पर कुछ दिनों के भीतर चले जाते हैं।
अगर आपके गुदा से खून बह रहा है तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। आपको यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि रक्तस्राव किसी भी अधिक गंभीर स्थिति से न हो जैसे कि कोलोरेक्टल या गुदा कैंसर। उपचार में गर्म स्नान और क्रीम या अन्य दवा शामिल हो सकते हैं।
पुरानी कब्ज, लंबे समय तक बैठे रहना और कम फाइबर वाले आहार जैसे कारक पुरुषों में बवासीर के खतरे को बढ़ा सकते हैं। सौभाग्य से, विभिन्न जीवन शैली में परिवर्तन और चिकित्सा प्रक्रियाओं के साथ पाइल्स का प्रभावी ढंग से प्रबंधन और उपचार किया जा सकता है।
पाइल्स, जिसे बवासीर भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जो गुदा और निचले मलाशय में नसों को प्रभावित करती है। वे मल त्याग के दौरान असुविधा, दर्द और रक्तस्राव का कारण बन सकते हैं। पुरुषों में पाइल्स एक आम स्थिति है, खासकर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में।
इलाज न होने पर हालात बिगड़ जाते हैं और प्रभावित हिस्से से खून भी बहने लगता है। आंतरिक और बाहरी दो प्रकार के बवासीर होते हैं, जो पुरुषों को प्रभावित कर सकते हैं।आंतरिक बवासीर मलाशय के अंदर होता है और बिना दर्द के रक्तस्राव हो सकता है। वे मल त्याग के दौरान गुदा से बाहर निकल सकते हैं और असुविधा या जलन पैदा कर सकते हैं।
दूसरी ओर बाहरी बवासीर, गुदा के बाहर विकसित होते हैं और गंभीर दर्द, खुजली और परेशानी पैदा कर सकते हैं। वे मल त्याग के दौरान रक्तस्राव भी कर सकते हैं।
एक आदमी के लिए एक ही समय में आंतरिक और बाहरी दोनों बवासीर होना भी संभव है। यदि आप बवासीर के किसी भी लक्षण का अनुभव करते हैं, तो चिकित्सकीय ध्यान देना आवश्यक है, क्योंकि विभिन्न उपचार विकल्पों के साथ उनका प्रभावी ढंग से इलाज किया जा सकता है।

बवासीर के लक्षण

आमतौर पर, पाइल्स की समस्या गंभीर नहीं होती है। हालांकि, कुछ सामान्य पुरुष बवासीर के लक्षण नीचे बताए गए हैं जिन्हें कोई भी व्यक्ति आसानी से पहचान सकता है।मल त्याग के दौरान दर्द : बवासीर में गुदा और मलाशय की नसों में सूजन के कारण मल त्यागते समय दर्द हो सकता है।

गुदा क्षेत्र में खुजली और जलन : 

सूजन वाली नसों की उपस्थिति के कारण गुदा क्षेत्र में खुजली या जलन पैदा कर सकता है।

मल त्याग के दौरान रक्तस्राव : 

बवासीर में सूजी हुई नसों के फटने से मल त्याग के दौरान या बाद में रक्तस्राव हो सकता है।

गुदा के आसपास गांठ या सूजन : 

पाइल्स में नसों के बाहर निकलने के कारण गुदा के आसपास गांठ या सूजन हो सकती है।

अधूरे मल त्याग की अनुभूति : 

बवासीर अधूरा मल त्याग की भावना पैदा कर सकता है जो मल के सामान्य मार्ग को बाधित करता है।
बैठने में असुविधा : गुदा और मलाशय में सूजी हुई नसों पर दबाव पड़ने पर बैठने में असुविधा हो सकती है।

बवासीर के कारण

पुरुषों में पाइल्स की समस्या होने का कोई सटीक कारण बताना मुश्किल है। लेकिन गुदा में मौजूद रक्त वाहिकाओं और ऊतकों के ऊपर बढ़ते दबाव से बवसीर होने की संभावना बढ़ जाती है। निम्निलिखित कुछ सामान्य बवासिर होने के करण हैं:

कम फाइबर आहार :

 कम फाइबर वाले आहार का सेवन करने से आपका मल सख्त हो सकता है, जिससे मल त्याग के दौरान अधिक तनाव हो सकता है। इससे मलाशय और गुदा में नसों पर दबाव बढ़ जाता है।
मल त्याग के दौरान तनाव : पुरुषों में बवासीर के सबसे सामान्य कारणों में से एक मल त्याग के दौरान बहुत अधिक जोर लगाना है। इसकी संभावना तब ज़्यादा होती है जब कब्ज या दस्त हो।

लंबे समय तक बैठना : 

जो पुरुष लंबे समय तक बैठे रहते हैं, जैसे ट्रक ड्राइवर या ऑफिस वर्कर, उनमें बवासीर होने की संभावना अधिक होती है। लंबे समय तक बैठने से गुदा क्षेत्र में नसों पर दबाव पड़ता है, जिससे उनमें सूजन आ जाती है।

भारी वजन उठाना : 

जो पुरुष नियमित रूप से भारी सामान उठाते हैं उन्हें भी बवासीर होने का खतरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारी उठाने के तनाव से गुदा में नसों में सूजन आ सकती है।

आयु :

उम्र बढ़ने के साथ बवासीर अधिक आम हो जाती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि गुदा क्षेत्र में ऊतक उम्र के साथ कमजोर हो जाते हैं, जिससे उनमें सूजन होने की संभावना हो जाती है।

बवासीर के घरेलू उपाय

बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय करने में हल्दी काफी उपयोगी है। हल्दी में प्राकृतिक एंटीसेप्टिक गुण मौजूद होते है जो घाव भरने और सूजन कम करने में मदद करते है। 1 चम्मच देसी घी में आधा चम्मच हल्दी मिला ले और मरहम की तरह मस्सों पर लगाए। इस उपाय में देशी घी के अलावा आप एलोवेरा जेल का भी प्रयोग कर सकते है।
केला भी बवासीर से राहत पाने में मदद करता है। एक पका हुआ केला ले कर इसे बीच से काट ले, अब इस पर थोड़ा कत्था छिड़क कर रात भर खुले आसमान के निचे छोड़ दे और अगली सुबह इसे खा ले। कैसी भी बवासीर हो 5 से 7 दिन इस घरेलू नुस्खे को करने पर आराम मिलता है।
बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय करने में लहसुन भी प्रयोग किया जा सकता है। रात को सोने से पूर्व लहसुन की 1 कली को छील कर गुदा के रास्ते अंदर डाले। शुरुआत में ये उपाय दर्द भरा हो सकता है। (ये देसी इलाज करने से पहले आप किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह जरूर ले।)
नारियल की जटा खुनी बवासीर के इलाज की अचूक दवा है। नारियल की जटा को जलाकर उसकी राख एक शीशी में भर कर रख ले। अब दिन में 3 बार इसे 3 ग्राम की मात्रा 1 कप छाछ या दही में मिलाकर खाएं। पाइल्स से खून रोकने के लिए ये उपाय किसी भी अंग्रेजी दवा से ज्यादा असरदार है। इस उपाय को सिर्फ 1 ही दिन करना है और पुरानी बवासीर हो तो 3 दिन ये उपाय करने पर आराम मिलने लगेगा।
 बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय के लिए मलहम घर पर बनाने के लिए अरंडी का तेल 80 ग्राम ले कर गरम कर ले और 10 ग्राम कपूर मिला कर रखे। अब गुदा के मस्सों को धो कर इसे कपड़े से पोंछ ले और इस तेल से मस्सों पर धीरे से मालिश करे। दिन में 2 बार इस उपचार को करने से मस्से की सूजन, जलन, दर्द और खारिश से आराम मिलता है।
 1 गिलास ताजे दूध में 1 निम्बू निचोड़ कर सुबह खाली पेट पिए। निम्बू डालते ही दूध तुरंत पी जाये। 5 से 7 दिन इस नुस्खे को करने पर बवासीर से राहत मिलने लगेगी।
बवासीर का आयुर्वेदिक इलाज में बाबा रामदेव की दवा पतंजलि दिव्य अर्शकल्प वटी भी ले सकते है। इस दवा की एक से दो गोली दिन में 2 बार पानी या फिर लस्सी के साथ ले।
एक बार बवासीर ठीक होने के कुछ समय बाद अगर फिर से बवासीर की शिकायत होती है या फिर बवासीर पुरानी हो या बार बार पाइल्स हो जाते है, ऐसी स्थिति में दोपहर को खाने के बाद छाछ में थोड़ी पीसी हुई अजवाइन और थोड़ा सेंधा नमक मिला कर सेवन करना चाहिए और साथ ही आहार में मूली की सब्जी व मूली के पत्ते शामिल करे।
कब्ज का रोग बवासीर होने का प्रमुख कारण है इसलिए बवासीर से बचने और इस समस्या का उपचार करने के लिए पेट में कब्ज न होने दे।
बवासीर के मस्सों का होम्योपैथिक इलाज (homeopathic treatment) करने के लिए सल्फर 3, 4, 200, एकोनाइट 30, हैमामेलिस Q, इग्नेशिया 200, मूलेन आयल, हैमामेलिस मूलार्क जैसे मेडिसिन प्रयोग में लायी जाती है। इन दवाओं से ट्रीटमेंट शुरू करने से पहले होम्योपैथिक चिकित्सक से मिलकर सलाह अवश्य ले।
गाय का घी और शहद एक समान मात्रा में मिला कर मस्सों पर लगाए। कुछ हफ्ते इस उपाय को करने पर बवासीर के मस्से सूख कर गिरने लगेंगे।
बवासीर के मस्से कैसे हटाये, सेहुंड के दूध में थोड़ी हल्दी मिलाकर इसकी 1 बूंद को मस्से पर लगाने से मस्से सूखने लगते है।
20 ग्राम नीला थोथा व 40 ग्राम अफीम पीस कर 40 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं। हर रोज सुबह शाम इस मिश्रण को रूई की मदद से मस्सों पर लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर के मस्से सूखने लगेंगे।
नीम के कोमल पत्ते घी में भूनकर इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर इसकी टिकिया बना लें। अब प्रतिदिन 1 टिकिया गुदाद्वार पर बांधने पर मस्से नष्ट होने लगते है।
बवासीर को जड़ से खत्म करने का घरेलू उपाय में आक के पत्तों और सहजन के पत्ते का मलहम बना कर लगाने से मस्सों से छुटकारा मिलता है।
नीम का तेल और हल्दी कड़वी तोरई के रस में मिला कर मस्सों पर लगाये। नियमित रूप से इस रामबाण उपाय को करने पर मलद्वार के मस्से जड़ से खत्म हो जाते है।

आइस पैक : 

गंभीर और दर्दनाक बवासीर को कम करने के लिए, सूजन को कम करने के लिए प्रभावित क्षेत्र पर 10 से 15 मिनट के लिए आइस पैक का उपयोग करें, लेकिन किसी भी नुकसान या क्षति से बचने के लिए इसे त्वचा पर लगाने से पहले इसे कपड़े में लपेटना सुनिश्चित करें।

विच हैज़ल : 

आप एक रुई में थोड़ी मात्रा में विच हेज़ल को सीधे बवासीर पर लगा सकते हैं। धीरे-धीरे प्रभावित क्षेत्र को दिन में कई बार पोंछ सकते हैं, विशेष रूप से मल त्याग के बाद। इससे खुजली और जलन कम होगी।

एलोवेरा तेल : 

इसके प्राकृतिक विरोधी गुणों के कारण बवासीर से होने वाली खुजली और जलन को कम करता है। बस एलोवेरा के तेल की थोड़ी मात्रा को प्रभावित जगह पर लगाएं और धीरे से मालिश करें।

नारियल तेल : 

यह जीवाणुरोधी गुणों के कारण बवासीर के लिए एक प्रभावी उपचार हो सकता है। आप नारियल के तेल में खाना भी बना सकते हैं। इसमें मौजूद रेचक गुण कब्ज को दूर कर सकते हैं।

बवासीर के लिए आहार

भोजन बवासीर होने की संभावना को कम करने में भी मदद कर सकता है। आप शामिल कर सकते हैं:उच्च फाइबर वाले खाद्य पदार्थ : मल को नरम करने और कब्ज को कम करने में मदद कर सकता है, जो बवासीर को बढ़ा सकता है। इन खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, फलियाँ, फल, सब्जियाँ, मेवे, बीज और चोकर शामिल हैं।

विटामिन सी : 

यह एक एंटीऑक्सिडेंट है जो प्रतिरक्षा समारोह को बढ़ावा दे सकता है, सूजन को कम कर सकता है और रक्त वाहिकाओं को मजबूत कर सकता है। विटामिन सी से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे खट्टे फल, शिमला मिर्च और ब्रोकली, अपने आहार में शामिल करने के लिए अच्छे विकल्प हैं।

फ्लेवोनोइड्स : 

भोजन में पौधों के यौगिक फ्लेवोनोइड्स होते हैं जो सूजन को कम कर सकते हैं और बवासीर के लक्षणों को कम कर सकते हैं। खट्टे फल, जामुन और डार्क चॉकलेट ऐसे खाद्य पदार्थों के उदाहरण हैं।

प्रोबायोटिक्स : 

अपने आहार में दही को शामिल करें। इसमें अच्छे बैक्टीरिया होते हैं जो आंत के स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं और मल त्याग को नियंत्रित कर सकते हैं, अंततः कब्ज और बवासीर के लक्षणों के विकास की संभावना को कम कर सकते हैं।

जीवन शैली से बवसीर का उपचार

जीवनशैली में बदलाव लाकर बवासीर को बिगड़ने से रोका जा सकता है। ये उपाय बिना सर्जरी के प्रभावी रूप से बवासीर का स्थायी इलाज प्रदान कर सकते हैं। कुछ बदलावों में शामिल हैं:हाइड्रेटेड रखें : बवासीर के लक्षणों से राहत पाने और उपचार को बढ़ावा देने के लिए, मल को नरम करने और मल त्याग को आसान बनाने के लिए हाइड्रेटेड रहने की सलाह दी जाती है, जिससे प्रभावित नसों पर दबाव और तनाव कम होता है।
व्यायाम : नियमित व्यायाम शरीर में रक्त के प्रवाह को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। यह कब्ज को कम करता है, जो बवासीर के विकास के लिए एक सामान्य योगदान कारक है।

लाल मांस का सेवन सीमित करें : 

लाल मांस का सेवन पचाने में कठिन होता है और बवासीर के लक्षणों को बदतर बना देता है, इसलिए इसके बजाय चिकन, मछली या बीन्स जैसे अन्य प्रकार के प्रोटीन खाने की कोशिश करें।
प्रोसेस्ड फूड से बचें : बवासीर के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए, प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों से बचने की सलाह दी जाती है क्योंकि उनमें अस्वास्थ्यकर वसा, नमक और चीनी का उच्च स्तर होता है, जो सूजन, पाचन समस्याओं और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है जो स्थिति को खराब कर सकता है।

 बवासीर की रोकथाम

आम तौर पर, पुरुषों में पाइल्स को रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। हालांकि, जब पाइल्स की पहचान जल्दी कर ली जाती है, तब इस रोग को बढ़ने और हालात को बिगड़ने से रोका जा सकता है। पाइल्स से बचाव के कुछ उपाय नीचे दिए गए हैं:स्वस्थ भोजन : फाइबर से भरपूर आहार मल त्याग को नियंत्रित करने और कब्ज को रोकने में मदद कर सकता है, जो गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव डाल सकता है, जिससे बवासीर का निर्माण हो सकता है।

वजन प्रबंधन : 

आहार और व्यायाम के माध्यम से स्वस्थ वजन बनाए रखने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव कम करने और बवासीर के विकास के जोखिम को कम करने में मदद मिल सकती है।
सक्रिय जीवन शैली : नियमित व्यायाम भी कब्ज को रोकने और रक्त प्रवाह में सुधार करने में मदद कर सकता है, जिससे बवासीर के खतरे को कम किया जा सकता है।

मलत्याग करते समय जोर न लगाएं : 

मल त्याग के दौरान जोर लगाने से गुदा और मलाशय में नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। इसे रोकने के लिए, समय निकालना महत्वपूर्ण है और बाथरूम का उपयोग करते समय जल्दबाजी न करें।

भारी सामान उठाने से बचें :

 भारी सामान उठाने से भी गुदा और मलाशय की नसों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे बवासीर हो सकता है। उचित उठाने की तकनीक का उपयोग करना और बहुत भारी वस्तुओं को उठाने से बचना महत्वपूर्ण है।





31.8.23

मोगरा पौधा (Mogra Plant) के औषधीय गुण और उपयोग

 




मोगरा एक सुंदर फूलों वाला पौधा है। इसके पौधे की ऊंचाई लगभग 2 से 3 फीट तक होती है। इसके मसालेदार फूलों की सबसे खास बात यह है कि उनकी खुशबू बहुत मनमोहक होती है। मोगरे के फूल सफेद, पीले या गुलाबी रंग के होते हैं। इसे बागों और छतों पर लगाया जा सकता है। मोगरे के पौधे को जल और धूप की अच्छी मात्रा की आवश्यकता होती है। यह एक फूलों के अद्भुत विकास और मनोहारी सुंदरता का प्रतीक है। मोगरे के फूल सभी को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।
एक टेस्टी और सेहत को दुरुस्त रखने वाली चाय अगर किसी को मिल जाए तो भला कौन नहीं पीना चाहेगा। खासकर सुबह और शाम के टाइम तो लगभग हर कोई पीना पसंद करेगा। लेकिन, एक सामान्य चाय के मुकाबले कुछ ऐसी चाय होती हैं, जिसे टेस्ट के लिए नहीं बल्कि स्वास्थ्य लाभ लिए सेवन किया जाता है। जैसे-केले की चाय, ग्रीन टी, हिबिस्कस टी या फिर ओलॉन्ग टी। ऐसी ही एक सेहतमंद चाय है 'मोगरा की चाय'। देखने में तो ये चाय साधारण दिखाई देती है, लेकिन इसके कुछ बेहतरीन फायदों को जानने के बाद आप भी हर रोजअपनी डाइट में शामिल करना चाहेंगे|
 बदलते लाइफस्टाइल और गलत खानपान की वजह से आजकल हर दस महिलाओं में से कम से कम दो महिलाएं बढ़ते हुए वजन से ज़रूर परेशान रहती हैं। हालांकि, बढ़ते हुए वजन के कई कारण हो सकते हैं लेकिन, इस चाय के सेवन से आसानी से वजन कम किया जा सकता है। आपको बता दें कि मोगरा के फूलों और पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो वजन को कम करने में बहुत हद तक हेल्प करते हैं। इसके इस्तेमाल से चर्बी भी कम होती है।


मोगरे के फूल के बहुत सारे फायदे होते हैं। यह फूल हमारे स्वास्थ्य और सौंदर्य दोनों के लिए उपयोगी होता है। इसकी महक शांति और सुकून देती है और हमारी भावनाओं को प्रभावित करती है। मोगरे के फूल की खुशबू तनाव को कम करने में मदद करती है। इसका इस्तेमाल ध्यान केंद्रित करने और मन को शांत करने के लिए किया जा सकता है। यह मन को स्थिरता प्रदान करता है और चिंता को कम करता है।
 मोगरे के फूल के बूटी का उपयोग त्वचा के लिए भी किया जाता है। इसका तेल त्वचा को मुलायम और चमकदार बनाता है और उसे खूबसूरती प्रदान करता है। इसे त्वचा पर लगाने से चेहरे के दाग-धब्बे और झुर्रियां कम होती हैं। मोगरे के फूल के फायदे शारीरिक, मानसिक और सौंदर्यिक हैं। इसे इस्तेमाल करके हम तनाव से राहत पा सकते हैं और अपनी खूबसूरती को बढ़ा सकते हैं। इसलिए, मोगरे के फूल को नियमित रूप से इस्तेमाल करना हमारे स्वास्थ्य और सौंदर्य के लिए फायदेमंद होता है।
 काम न मिलना, अधिक काम का बोझ होना, परिवार देखना, खाना बनाना, घर की सफाई करना आदि हजारों काम है जिसे महिलाएं हर रोज करती हैं। ऐसे में थकान और तनाव का होना आम बात है। लेकिन, मोगरा की चाय को अगर नियमित और संतुलित मात्रा में कोई सेवन करता है, तो तनाव आसानी से कम हो सकता है। इसके पीने से हर कोई रिलैक्स फील करेगा। मोगरा की चाय सेवन करने के बाद नींद भी अच्छी आती है।
जिस तरह से केले की चाय, ग्रीन टी, हिबिस्कस टी या फिर ओलॉन्ग टी इम्‍यूनिटी सिस्टम के लिए बेस्ट मानी जाती है, ठीक उसी तरह मोगरा की चाय रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए एक बेस्ट चाय है। इस चाय में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट के गुण, शरीर में होने वाली अन्य बीमारी से भी लड़ने और दूर रखने में मदद करते हैं। इसके सेवन से घाव भी जल्दी भर जाता है। कई लोग आज भी मोगरे के फूल का पेस्ट बनाकर घाव के लिए इस्तेमाल करते हैं।

मोगरा के फूलों की चाय

हर्बल टी आपकी नसों को शांत करने और तनाव को कम करने का एक बेहतरीन उपाय हो सकती है। इस चाय को बनाने के लिए आप मोगरा के फूलों को लें। इसके बाद करीब दो कप उबलते हुए पानी में मोगरा के पत्तों को मिला दें। जब पानी आधा रह जाए तो गैस को बंद कर दें। इसके बाद इसे छानकर एक कप में रखें और इसमें शहद मिलाकर पिएं। कुछ दिनों के बाद ही आपका स्ट्रेस कम होने लगेगा। 
गर्मियों के साथ-साथ बरसात के दिनों में त्वचा पर कई तरह की परेशानियां देखी जाती है। कभी दाग तो कभी खुजली आदि होती रहती है। ऐसे में इन परेशानियों को दूर करने के लिए मोगरा की चाय एक बेस्ट दवा के रूप में काम कर सकती है। बालों के लिए भी ये चाय बेस्ट होती है। त्वचा और बालों की समस्या दूर करने के अलावा मोगरा की पत्तियों से गैस की परेशानी भी दूर हो सकती है। इसके लिए कई लोग पानी में मोगरा की पत्तियों और मिश्री को मिलाकर सेवन करते हैं।
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30.8.23

रीढ़ की हड्डी Back bone में गैप क्यों आता है ?कैसे करें इलाज ?

 




उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आवाज आना

5-पीठ सीधी करने में परेशानी

रीढ की हड्डी में आए गैप को कैसे कम करें? जानें आयुर्वेदिक तरीके से गैप को कम करने का तरीका

रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। जानें आयुर्वेदिक तरीका।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर में कई परेशानियां बढ़ने लगती हैं, जिसमें से एक है रीढ़ की हड्डी में गैप आ जाना। रीढ़ की हड्डी में गैप को साइंस की भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को परेशान कर देता है। ये स्थिति खासकर उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती है लेकिन कुछ कारणों से ये परेशानी कम उम्र के व्यक्ति को भी हो सकती है। बहुत से लोग इस परेशानी के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं लेकिन सही इलाज कभी भी आपके लिए पहले जैसा साबित नहीं हो सकता है। हालांकि अगर शुरुआत में ही इस स्थिति के लक्षणों को समझ लीजिए तो इस स्थिति को बढ़ने से रोका जा सकता है। आइए जानते हैं आप कैसे इस स्थिति से बच सकते हैं।

रीढ़ की हड्डी में गैप होने के लक्षण

1-रीढ़ की हड्डी में दर्द रहना

2-भारी-भरकम सामान उठाने पर दर्द होना

3-झुकते वक्त पीठ में दर्द

4-सीधे खड़े होने पर कमर से कट-कट की आLinks

6-सीधा लेटने में दिक्कत होना

रीढ़ की हड्डी में गैप का इलाज कैसे करें?

रीढ की हड्डी के जोड़ोंके सामान्य घिसाई को अंग्रेजी भाषा में स्पोंडिलोसिस कहा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप जोड़ों का गैप कम हो जाता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ रीढ़ की हड्डी की डिस्क में टूट-फूट होने लगती है, जिसके कारण परेशानी बढ़ने लगती है। स्पोंडिलोसिस आम समस्या है लेकिन ये उम्र के साथ बिगड़ती जाती है। इस स्थिति का उपयोग अक्सर रीढ़ की अपक्षयी गठिया (ऑस्टियोआर्थराइटिस) का वर्णन करने के लिए किया जाता है।

आयुर्वेदिक उपाय से ठीक हो सकती है ये स्थिति

रीढ की हड्डी में गैप आ जाने पर आप एलोपैथी के साथ-साथ आयुर्वेद का भी सहारा ले सकते हैं। आयुर्वेद में ऐसी कई औषधियां हैं, जो इस घिसाव को भरने में सफल साबित हो सकती हैं। आयुर्वेद में लिखी इन दवाओं का सेवन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लेंः

1-त्रयोदशांग गुग्गुल

2-लाक्षादि गुग्गुल

3-मुक्ता शुक्ति भस्म

अगर किसी व्यक्ति की रीढ़ की हड्डी कमजोर हो जाती है, तो इसकी वजह से कई परेशानियां हो सकती हैं। क्योंकि, रीढ़ की हड्डी शरीर का सपोर्ट सिस्टम है, इसमें कमजोरी आने से आपके शरीर का पोस्चर तो खराब होता ही है साथ ही कई गंभीर परेशानियां होती हैं। अगर आप इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो इसके लिए अपने खाने पर पूरा ध्यान देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं रीढ़ की हड्डी को मजबूत करने के लिए फायदेमंद फूड्स।

रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए क्या खाएं?-

हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन - 

अगर आप रीढ़ की हड्डी को मजबूत रखना चाहते हैं, तो इसके लिए हरी पत्तेदार सब्जियों Green Vegetable का सेवन करें। इन सब्जियों से शरीर को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाने में बहुत फायदेमंद है। उदाहरण के लिए आप - पालक, मेथी जैसी हरी पत्तेदार सब्जी का सेवन कर सकते हैं, इनसे शरीर को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फोलेट, और विटामिन ए, विटामिन ई मिलता है।

डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन -

 अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही, पनीर आदि का सेवन कर सकते हैं। इन सबके सेवन से शरीर को कैल्शियम, प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। अगर किसी व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम की कमी हो जाए, तो इसकी वजह से हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का खतरा रहता है। इसलिए रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाने के लिए डाइट में दूध, दही, पनीर, छाछ आदि को जरूर शामिल करे।
नट्स और ड्राई फ्रूट्स का सेवन - कहा जाता है कि रोजाना हर किसी को ड्राई फ्रूट्स Dry Fruits का सेवन जरूर करना चाहिए। इनके सेवन से शरीर की हड्डियां मजबूत होता हैं। नट्स और ड्राई फ्रूट्स में कैल्शियम, विटामिन ई, मैग्नीशियम और फास्फोरस की पर्याप्त मात्रा पाया जाता है। हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डाइट में बादाम, अखरोट, किशमिश, काजू, पिस्ता आदि को शामिल करना चाहिए। इनका सेवन हड्डियों को मजबूत बनाने और शरीर को बीमारियों से बचाने में फायदेमंद होता है।

बीन्स का सेवन करें - 

अगर आप अपनी रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाना और बीमारियों से बचाना चाहते हैं, तो रोजाना बीन्स का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। इसके लिए आप फलियों वाली सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। बीन्स में फाइबर, प्रोटीन, कैल्शियम और फोलेट जैसे तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। नियमित रूप से इनका सेवन करने से आपको बहुत फायदा मिलता है।

बुजुर्गों को होती है अधिक समस्या

बुजुर्ग लोग आम तौर पर इस समस्या से जूझते हैं। वृद्ध महिलाओं को अक्सर ऑस्टियोपोरेसिस होता है,जिसकी वजह से पीठ दर्द होता है। कभी-कभी शरीर के अन्य हिस्सों जैसे कंधे या कूल्हों में दर्द या बीमारी भी पीठ दर्द (Back Pain) का कारण बन सकती है। रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) की समस्या बुर्जुगों को अधिक होती है क्योंकि उम्र के साथ उनकी हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।डिस्क ब्रेक होना:रीढ़ में हर वर्टिब्रे के लिए डिस्क कुशन का काम करता है। यदि डिस्क फटती है तो नसों पर अधिक दबाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप पीठ दर्द होगा।
उभरा हुआ डिस्क: एक ही तरह से टूटे हुए डिस्क के रूप में, एक उभड़ा हुआ डिस्क एक नर्व पर अधिक दबाव डाल सकता है। बल्जिंग डिस्क की वजह से भी रीढ़ की हड्डी में दर्द (Back pain) हो सकता है।
सायटिका (Sciatica): एक तेज और तीखा दर्द बट्स के माध्यम से और पैर के पीछे से होकर, एक नस के दबने या हर्नियेटेड डिस्क के कारण होता है। इसकी वजह से लोगों को बैक में अधिक दर्द महसूस होता है।
गठिया: पुराने ऑस्टियोअर्थराइटिस कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और अन्य स्थानों में जोड़ों के साथ समस्याओं का कारण बन सकता है। कुछ मामलों में, रीढ़ की हड्डी के चारों ओर का स्थान संकरा हो जाता है। इसे स्पाइनल स्टेनोसिस के रूप में जाना जाता है।
रीढ़ की असामान्य वक्रता: अगर रीढ़ असामान्य तरीके से कर्व हो जाता है तो पीठ में दर्द हो सकता है। एक उदाहरण स्कोलियोसिस है, जिसमें रीढ़ एक तरफ झुकने लगता है।
ऑस्टियोपोरोसिस: रीढ़ की वर्टिब्रे सहित हड्डियां आसानी से टूटने वाली हो जाती है और छिद्रपूर्ण हो जाती हैं, जिससे जल्दी फ्रैक्चर की अधिक संभावना होती है।
किडनी की समस्या: किडनी में पथरी या किडनी में संक्रमण के कारण कमर दर्द हो सकता है।
रीढ़ की हड्डी में दर्द से परेशान हैं या इन्हें मजबूत करना चाहते हैं, तो कश्यपासन करें। कश्यपासन को अर्धबद्ध पद्म वशिष्ठासन के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को करने से कई लाभ होते हैं। खासकर रीढ़ की हड्डी को मजबूत करना चाहते हैं, तो इसका अभ्यास नियमित करना शुरू कर दें। इसे करने से शरीर के आंतरिक अंग सशक्त होते हैं।

कैसे करें कश्यपासन






दोनों पैरों को साथ-साथ रखते हुए खड़े हों। सांस भरते हुए शरीर का भार पंजों पर डालें और एड़ियों को ऊपर उठाएं। दोनों हाथों की उंगलियों से इंटरलॉक बनाकर हाथों को ऊपर ले जाएं और तानें। इस दौरान हथेलियों की दिशा ऊपर की ओर रहे। इस अवस्था में पेट को यथासंभव अंदर की ओर रखते हुए घुटने और जांघ की मांसपेशियों को ऊपर की ओर खींचें। अब सांस छोड़ते हुए आगे झुकें और दोनों हथेलियों को जमीन पर टिका दें। फिर अपने पैरों को पीछे ले जाकर दाएं घूम जाएं और दायीं हथेली जमीन पर टिका दें ताकि पूरे शरीर का भार दाहिने हाथ पर आ जाए।
उम्र के साथ-साथ हमारा शरीर कमजोर पड़ने लगता है, जिसे एजिंग प्रोसेस कहा जाता है और यह एक सामान्य क्रिया है। एजिंग के सबसे ज्यादा लक्षण हमारी त्वचा, मांसपेशियों और हड्डियों में होते हैं। ठीक इसी प्रकार एक निश्चित उम्र के बाद महिलाओं की हड्डियां कमजोर पड़ने लगती है और ऐसे में ऑस्टियोपोरोसिस से लेकर बोन फ्रैक्चर आदि का खतरा कम हो जाता है। इसके अलावा जोड़ों व हड्डियों के अन्य हिस्सों में दर्द भी होने लगता है। महिलाओं को एक खास उम्र के बाद ही हड्डियों में कमजोरी कमजोरी महसूस होने लगती है और वह उम्र आमतौर पर 50 साल के बाद होती है। दरअसल, 50 की उम्र तक आते-आते महिलाओं में मेनोपॉज खत्म होने लगता है और पोस्ट मेनोपॉज शुरू हो जाता है। कुछ अध्ययनों के अनुसार पोस्ट-मेनोपॉज उम्र के दौरान हड्डियों की कमजोरी 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। चलिए इस उम्र के बाद कौन सी डाइट लेने से हड्डियां मजबूत रहती हैं
रीढ़ की हड्डी का दर्द वाकई बेहद परेशानी का सबब बन जाता है। इसकी हड्डियों की संरचना जितनी जटिल है उससे ज्यादा इसके शारीरिक महत्व भी होते हैं। रीढ़ की हड्डी के जोड़ स्पाइनल में बेहद सुरक्षित रहते हैं। इन जोड़ों का सीधा संबंध दिमाग से होता है। मष्तिष्क को सूचना आदान प्रदान करने में रीढ़ के हड्डियों की उपयोगिता जगजाहिर है। वैसे तो कई बेहद सामान्य कारण होते हैं जो इस तरह के दर्दनाक कारण बनते है। लेकिन रीढ़ की हड्डी का ट्यूमर बेहद जटिलता पैदा कर सकता है। रीढ़ के किसी भी हिस्से में हुई गांठ वैसे तो कोशिकाओं ओर ऊतकों का एक समूह होता है जो दिमाग से सीधा संबंध वाली तरंगों के वेग को रोकने का का करता है। इस समस्या से इंसान को मानसिक रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। रीढ़ की समस्याओं की कई वजहें होती हैं और इसे रोक पाने में कई तत्व अपनी भूमिका का निर्वाह करते हैं। 

रीढ़ की हड्डी में दर्द का कारण


एक अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देश में रीढ़ के रोग कई कारणों से उत्पन्न होते हैं। साथ ही यह समस्या पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा देखने को मिल जाती है। इस तरह के हड्डियों से संबंधित कई प्रमुख कारण हो सकते हैं।
• चोट या फिर मोच के दौरान मांसपेशियों में खिंचाव से ऊतकों की क्षति या फिर लिगामेंट में सूजन होंने से रीढ़ का दर्द बढ़ सकता है।
• रीढ़ की हड्डी का दर्द सही से खड़े ना होने से भी हो सकता है। ज्यादा समय तक झुक कर खड़े होने से हड्डियों में झुकाव हो जाता है जिससे सही ऊर्जा और रक्तवाहिनियों में संक्रमण होने की संभावना प्रबल हो जाती है। इस वजह को भी एक मुख्य कारक माना जा सकता है।
• शरीर में अवशिष्ट पदार्थों के जमाव से भी कई तरह के हड्डी विकार सामने आते हैं। अवशिष्ट पदार्थो के जमाने से हड्डियों के जोड़ों में तेज दर्द हो सकता है इसमें रीढ़ की हड्डी भी शमिल है।
• खून में यूरिया का बढा हुआ स्तर भी रीढ़ में दर्द बढ़ा सकता है। यूरिक एसिड से हड्डियों को नुकसान तो होता ही है साथ ही किडनी समेत कई अन्य आंतरिक अंग भी प्रभावित होते हैं।
• रीढ़ की हड्डी में आंतरिक विकार जैसे टीवी सहित कुछ अन्य रोग बेहद जटिल समस्या उत्पन्न कर सकते हैं।
• पीठ के दर्द को वजह से भी कई बार रीढ़ की हड्डियां प्रभावित हो जाती हैं। कई तरह के रोगों को वजह के रीढ़ की हड्डी में दर्द हो ही जाता है।
• खानपान में त्रुटि या समझौता अक्सर हड्डियों पर भारी पड़ता है। आहार में विकार रीढ़ की हड्डियों को भारी क्षति पहुंचा सकता है।
• बदलती जीवनशैली से इंसान हमेशा परेशान रहता है। इसकी वजह से कई बार तनाव और अनिद्रा उत्पन्न हो जाती है जो रीढ़ के रोग का बड़ा कारण बन जाती है।
• कई अनुवांशिक समस्याओं की वजह से भी रीढ़ की हड्डी की समस्या का होना देखा जाता है जो गठिया या अर्थराइटिस के रूप में सामने आती रहती है।
बदलता मौसम भी रीढ़ की हड्डियों को कर सकता है प्रभावित।
मौसम का बदलाव रीढ़ की हड्डी में दर्द उत्पन्न कर सकता है। सर्दी के मौसम में जहां हड्डियों के जोड़ों की समस्या बढ़ती है तो दूसरी तरफ गर्मी और बरसात भी इसके बड़े कारण होते हैं। गर्मियों के मौसम में कई बार शरीर निर्जलीकरण की तरफ जाता है जिसके कई कारण हो सकते हैं। इस वजह से लू लगने या अन्य कारणों से हड्डियों के दर्द बढ़ जाते हैं। बरसात या गर्मी के दिनों में बहती हुई पुरवाई हवा हड्डियों के पुराने चोट उभार देती है। पुरानी चोट के उभरने की वजह से रीढ़ की समस्या तो होती ही है साथ ही कई अन्य हड्डी रोग उत्पन्न होने लगते हैं। कई बार वायुमण्डल के दबाव से मौसम का परिवर्तन कई तरह के हड्डी विकारों को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है।

रीढ़ की हड्डी में दर्द के प्रमुख लक्षण


रीढ़ की हड्डियों में कई डिस्क होती है जो आपस में एक चैन की तरह एक दूसरे से जुड़ी होती है। हड्डियों के चेन की तरह जुड़ाव के दौरान किसी भी भाग में आये संक्रमण या अन्य कारणों से होने वाले लक्षण भिन्न- भिन्न ही सकते हैं।
• रीढ़ की हड्डियों में संकुचन होने की स्थिति में सूजन महसूस होती है और लगता है कि शरीर इधर उधर करने पर भी दर्द हो जाएगा।
• रीढ़ के निचले भाग में दर्द का अनुभव हो सकता है यह तेज या फिर धीमा हो सकता है।
• पेशाब में जलन और मलत्याग में परेशानी का अनुभव हो सकता है।
• आंतरिक रोगों की वजह से पीठ में दर्द होने से रीढ़ को इधर उधर करने में परेशानी या पीड़ा का अनुभव महसूस किया जा सकता है।
• बुखार या गर्दन में तेज दर्द का अनुभव होने की संभावना बढ़ जाती है।

महिलाओं में रीढ़ की हड्डी का दर्द

महिलाओं की काया पुरुषों की तुलना में ज्यादा कोमल होती है। कामकाजी महिलाएं जो ज्यादा देर तक खड़ी होकर दिनचर्या निपटने का काम करती हैं उनकी हड्डियों में दर्द उत्पन्न हो ही जाता है। रीढ़ में दर्द कई तरह के हार्मोन्स के परिवर्तन की वजह से भी देखा जा सकता है। गर्भवती महिलाओं में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है। गर्भावस्था के दौरान कई बार कमर के नीचे दर्द भी रीढ़ की हड्डी के दर्द का कारण बन सकता है। बेशक यह कई वजहों से देखा जाता है। कुपोषण सहित शरीर में कैल्शियम की कमी भी कई बार इस तरह की समस्या का कारण बन जाता है। एक स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक महिलाओं में रीढ़ की समस्या 30 से 50 साल की उम्र में ज्यादा दिखाई देती है। बेशक कई बार यह समस्या अर्थराइटिस या गठिया रोग
के रूप में देखने को मिल जाती है। बढ़ता मोटापा और शुगर रोगों की वजह से कई बार रीढ़ के रोग बड़ी तेजी परेशानी की वजह बन जाते हैं।

पुरुषों में रीढ़ की हड्डी का दर्द

कई लोग जो हमेशा झुक कर खड़े होते हैं उन्हें यह समस्या हो ही जाती है। झुककर खड़े होने से रीढ़ की हड्डी में खिंचाव ओर मुड़ाव होने लगता है। झुकाव की वजह से हड्डियों को सही पोषण नही मिल पाता। कई बार यही आदत जोड़ों में गांठ या ट्यूमर का रूप धारण कर लेता है। ट्यूमर बन जाने पर इंसान के दिमाग की तरंगों का रीढ़ को हड्डी को सही निर्देश ना दे पाने से समस्या जटिल होने लगती है। इसके अलावा भी कई अन्य कारण है जिससे रीढ़ की हड्डियां कमजोर भी हो जाती हैं। भारत जैसे देश मे कुपोषण ओर प्रदूषण एक बड़े कारण हैं साथ ही तनाव और अवसाद भी कई बार पुरुषों को इस तरह की बीमारियों की चपेट में ले लेता है। बढ़ता वजन या मोटापा भी इसके बड़े कारण माने जाते हैं।

रीढ़ की हड्डी का दर्द होने से पहले रोकथाम

रीढ़ का दर्द होने से पहले इसकी रोकथाम जहां बेहद सरल है वहीं कम खर्चीला भी है। दवाओं से बचने और रीढ़ का दर्द शरीर को ना सताए यह सुनिश्चित करने के लिए कुछ जरूरी एहतियात अपनाकर तकलीफ से बचा जा सकता है।
• खानपान या आहार की गुणवत्ता में सुधार की बेहद आवश्यकता होती है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से जीवन को कई तरह के कष्टों से मुक्ति दिलाई जा सकती है।
• अनियमित जीवनशैली या दिनचर्या में सुधार लाने की जरूरत होती है। दिनचर्या नियमित कर रीढ़ के दर्द से बच सकते हैं।
• महिलाओं को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके अंदर कैल्शियम या विटामिन डी की मात्रा की कमी न होने पाए। इस कमी से बचने पर उन्हें इस तरह की समस्या से निजात मिलेगी।
• कभी भी झुककर ना खड़े हों।
• ज्यादा देर तक एक जगह बैठकर काम करने से बचें।
• अल्कोहल से परहेज रखें
• तैलीय भोजन से करें तौबा।
रीढ़ की हड्डी का दर्द हो जाने पर रोकथाम।
रीढ़ में दर्द या रोग वास्तव में एक जटिल स्थिति है। दर्द के कारण कई बार इंसान बिस्तर पकड़ लेता है। कुछ स्थिति में इंसान को अपंगता भी हो जाती है। इस तरह के रोग ओर दर्द से बचाव के लिए आधुनिक युग में कई तरह की औषधि मौजूद है जिनके सटीक प्रयोग से काफी हद तक इससे बचाव किया जा सकता है।
रीढ़ का दर्द का यूनानी उपचार वास्तव में बेहद फायदेमंद होता है। जड़ी बूटियों के प्रयोग से निर्मित पूरी तरह से हर्बल आधारित इस उपचार माध्यम से रीढ़ के दर्द का इलाज काफी प्रचलित है। हालांकि इस उपचार माध्यम में थोड़ा समय जरूर लगता है लेकिन अक्सर समस्या जड़ से समाप्त हो जाती है। दुर्लभ जड़ी बूटियों से बनाई गई सुरंजन की दवाइयां वास्तव में हड्डियों के लिए किसी वरदान से कम नही होती। समय पर हकीम की सलाह से परहेज करने के साथ दवाओं का सेवन काफी लाभदायक साबित होता है। इस विधा में सबसे खास यह होता है कि इन दवाओं का।शरीर पर किसी भी प्रकार का साइड इफेक्ट नही होता है।

नॉन सर्जिकल ट्रीटमेंट

स्ट्रेन, स्प्रेन और न्यूरल कंप्रेशन जैसी समस्याएं कुछ दिन बेड रेस्ट करके और कम भागदौड़ करके ठीक की जा सकती हैं। अगर मोच हल्की है तो आमतौर पर एक से तीन दिन में ठीक हो जाती है। अगर दर्द ठीक हो जाए तो यह बेड रेस्ट को कम कर देना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक बिस्तर पर आराम करने से मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है। इससे मांसपेशियों में जकड़न भी बढ़ सकती है, जिससे दर्द बढ़ सकता है। अगर दर्द हल्का है, तो शुरुआती इलाज में आमतौर पर नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी (Non-steroidal anti-inflammatory) दवाएं ली जा सकती हैं।
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