23.5.16

करोंदे के लाभ और उपयोग




करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। करौंदा के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के करौंदों में छोटे फल लगते हैं। दूसरी प्रकार के करौदें में बड़े करौंदे लगते हैं।
करौंदे में विटामिन C प्रचुर मात्रा में होने के साथ-साथ अत्याधिक एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाया जाता है| जो अन्य फलों तथा सब्जियों की तुलना में कई अधिक है| करौंदा विटामिन E तथा K का भी अच्छा स्त्रोत है|
इससे हमें इन विटामिनों के अतिरिक्त कई मिनरल्स भी प्राप्त होते हैं जैसे- आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक इत्यादि| करौंदे के नियमित सेवन से हम कुछ स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं|

करौंदे के स्वास्थ्य लाभ इस प्रकार हैं:
• करौंदे का सेवन ज़ुकाम तथा बुखार में लाभप्रद है|
• कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर ह्रदय संबंधी रोगों से बचाता है|

• स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण कर हमें रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है|
• करौंदे का रस फेफड़ों की सूजन दूर करने में लाभदायक है|
• स्त्री स्वास्थ्य सम्बन्धी रोगों में विशेष रूप से लाभप्रद है| जैसे- मूत्र संक्रमण (urine infection)
कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।
एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है।
फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। ख़ासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक है।
सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस का सेवन लाभकारी होता है।

पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जड़ों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।
करोंदा के फल को खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।
सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ़ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।

ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
खांसी में करौंदे के पत्‍तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तीन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहले मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।
चांदी की भस्म करने के लिये करौंदों की लुग्दी बनाकर ऊपर की विधि द्वारा सही सम्पुट बनाकर फूकें। इस प्रकार इक्कीस बार फूंकने पर चांदी की भस्म बनेगी।

• करौंदे के रस का सेवन रक्तचाप को कम करता है|
• झुर्रियों के निर्माण की प्रक्रिया को रोक कर, झुर्रियों का आना कम करता है|
• करौंदा कैल्शियम प्रदान कर हमारी हड्डियों तथा दांतों को मज़बूत बनाता है|
• इसमें कम कैलोरी होने के कारण, यह वज़न घटाने में भी सहायक है|
• दांतों को सडन से बचने के साथ सांस की दुर्गन्ध को रोकता है|
• करौंदे के रस का प्रतिदिन सेवन करके स्तन कैंसर से बचा जा सकता है|

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21.5.16

अश्वगंधा के प्रयोग और उपचार :The use and treatment with Ashwagandha






अश्वगंधा एक शक्तिवर्धक रसायन है। अश्वगंधा एक श्रेष्ठ प्रचलित औषधि है और यह आम लोगो का टॉनिक है इसके गुणों को देखते हुए इस जड़ी को संजीवनी बूटी कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। यह शरीर की बिगडी हूई अवस्था (प्रकृति) को सुधार कर सुसंगठित कर शरीर का बहुमुखी विकास करता है। इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और बुद्धि का विकास भी करती है। अश्वगंधा में एंटी एजिड, एंटी ट्यूमर, एंटी स्ट्रेस तथा एंटीआक्सीडेंट के गुण भी पाये जाते हैं।
घोडे जैसी महक वाला अश्वगंधा इसको खाने वाला घोडे की तरह ताकतवर हो जाता है। अश्वगंधा की जड़ ,पत्तियां ,बीज, छाल और फल अलग अलग बीमारियों के इलाज मे प्रयोग किया जाता है। यह हर उम्र के बच्चे जवान बूढ़े नर नारी का टोनिक है जिससे शक्ति, चुस्ती, सफूर्ति तथा त्वचा पर कान्ति (चमक) आ जाती है। 
अश्वगंधा का सेवन सूखे शरीर का दुबलापन ख़त्म करके शरीर के माँस की पूर्ति करता है। यह चर्म रोग, खाज खुजली, गठिया, धातु, मूत्र, फेफड़ों की सूजन, पक्षाघात, अलसर, पेट के कीड़ों, तथा पेट के रोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है, खांसी, साँस का फूलना अनिद्रा, मूर्छा, चक्कर, सिरदर्द, हृदय रोग, शोध, शूल, रक्त कोलेस्ट्रॉल कम करने में स्त्रियों को गर्भधारण में और दूध बढ़ाने में मदद करता है, श्वेत प्रदर, कमर दर्द एवं शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती हैं।
अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण का सेवन 1 से 3 महीने तक करने से शरीर मे ओज, स्फूर्ति, बल, शक्ति तथा चेतना आती है। वीर्य रोगो को दूर कर के शुक्राणुओं की वृद्धि करता है, कामोतेजना को बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति को सुधारता है। सूखिया और क्षय रोगों मे लाभकारी है। शक्ति दायक और हर तरह का बदन दर्द को दूर करता है। रूकी पेशाब भी खुल कर आती है। इसके पत्तो को पिस कर त्वचा रोग, जोड़ो के सूजन, घावों को भरने तथा अस्थि क्षय के लिए किया जाता है। गैस की बीमारी, एसिडिटी, जोडों का दर्द, ल्यूकोरिया तथा उच्च रक्तचाप में सहायक और कैंसर से लड़ने की क्षमता आ जाती है। अश्वगंधा एक आश्चर्यजनक औषधि है, कैंसर की दवाओं के साथ अश्वगंधा का सेवन करने से केवल कैंसर ग्रस्त कोशिकाएँ ही नष्ट होती है जब कि स्वस्थ (जीवन रक्षक) कोशिकाओं को कोई क्षति नही पहुँचती। अश्वगंधा मनुष्य को लंबी उम्र तक जवान रखता है और त्वचा पर लगाने से झुर्रियां मिटती है।
अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण सेवन तीन माह तक लगातार सेवन करने से कमजोर (बच्चा, बड़ा, बुजुर्ग, स्त्री ,पुरुष) सभी की कमजोरी दूर होती है, चुस्ती स्फूर्ति आती है चेहरे ,त्वचा पर कान्ति (चमक) आती है शरीर की कमियों को पूरा करते हुए धातुओं को पुष्ट करके मांशपेशियों को सुसंठित करके शरीर को गठीला बनाता है। लेकिन इससे मोटापा नहीं आता।
समय से पहले बुढ़ापा नहीं आने देती और इसके तने की सब्जी बनाकर खिलने से बच्चो का सूखा रोग बिलकुल ठीक हो जाता है।
अश्वगंधा एक शक्तिवर्धक रसायन है। इसकी जड़ का चूर्ण दूध या घी के साथ लेने से निद्रा लाता है तथा शुक्राणुओं की वृद्धि करता है।यदि कोई वृद्ध व्यक्ति शरद ऋतु में इसका एक माह तक सेवन करता है तो उसकी मांस मज्जा की वृद्धि और विकास हो कर के वह युवा जैसा हल्का व् चुस्त महसूस करने लगता है।

अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन तक दूध या पानी से लेने पर बच्चो का शरीर पुष्ट होता है
मोटापा दूर करने के लिए अश्वगंधा, मूसली , काली मूसली की समान मात्रा लेकर कूट छानकर रख लें, इसका सुबह 1 चम्मच की मात्रा दूध के साथ लेना चाहिए। डायबिटीज के लिए अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
इसके नियमित सेवन से हिमोग्लोबिन में वृद्धि होती है। कैंसर रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढाती है।
अश्वगंधा और बहेड़ा को पीसकर चूर्ण बना लें और थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर इसका एक चम्मच( टी स्पून) गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे दिल की धड़कन नियमित और मजबूत होती है। दिल और दिमाग की कमजोरी को ठीक करने के लिए एक एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण सुबह-शाम एक कप गर्म दूध से लें।
अश्वगंधा का चूर्ण को शहद एवं घी के साथ लेने से श्वांस रोगों में फायदा होता है और दर्द निवारक होने के कारण बदन दर्द में लाभ मिलता है।
समान मात्रा में अश्वगंधा, विधारा, सौंठ और मिश्री को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। सुबह और शाम इस एक एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शरीर में शक्ति, ऊर्जा वीर्य बल बढ़ता है। या सुबह-शाम एक-एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को घी और मिश्री मिले हुए दूध के साथ लेने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आ जाती है।
अश्वगंधा के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से शरीर बलवान होता है।हाई ब्लड प्रेशर के लिए 10 ग्राम गिलोय चूर्ण, 20 ग्राम सूरजमुखी बीज का चूर्ण, 30 ग्राम अश्वगंधा जड़ का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री लेकर इन सब को एक साथ मिळाले और शीशे के जार में भर कर रख ले और एक एक टी स्पून दिन में 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होगा।
एक गिलास पानी में अश्वगंधा के ताजा पत्ते उबाल कर छानकर चाय की तरह तीन-चार दिन तक पीयें, इससे कफ और खांसी ठीक होती है।अश्वगंधा की जड़ से तैयार तेल से जोड़ों पर मालिश करने से गठिया जकडन को कम करता है तथा अश्वगंधा के पत्तों को पिस कर लेप करने से थायराइड ग्रंथियों के बढ़ने की समस्या दूर होती है।
अश्वगंधा पंचांग यानि जड़, पत्ती, तना, फल और फूल को कूट छानकर एक-डेढ़ चम्मच (टेबल स्पून) सुबह शाम सेवन करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। आधा चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण को सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ लेने से गठिया रोगों को शिकस्त मिलती है तथा समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और घी में थोडा शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है।
अश्वगंधा का चूर्ण में बराबर का घी मिलाकर या एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण में आधा चम्मच सोंठ चूर्ण और इच्छानुसार चीनी मिला कर सुबह-शाम नियमित सेवन से गठिया में आराम आता है।
अश्वगंधा और मेथी की समान मात्रा और इच्छानुसार गुड़ मिलाकर रसगुल्ले के समान गोलियां बना लें। और सुबह-शाम एक एक गोली दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं।
अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को सामान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक-एक (टी स्पून) दूध के साथ लेने से वीर्य में वृद्धि होती है और संभोग क्षमता बढ़ती है, स्नायुतंत्र ठीक होकर क्रोध नष्ट हो जाता है, बार-बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं और जोड़ो का दर्द खत्म हो जाता है।
एक चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण के साथ एक चुटकी गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी रोगो में लाभ मिलता हैं।
गिलोय की छाल और अश्वगंधा को मिलाकर शाम को गर्म पानी से सेवन करने से जीर्णवात ज्वर ठीक हो जाता है।
जीवाणु नाशक औषधियों के साथ अश्वगंधा चूर्ण को क्षय रोग (टी. बी.) के लिए देसी गाय के घी या मिश्री के साथ देते हैं।
एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण के क्वाथ (काढा) में चार चम्मच घी मिलाकर पाक बनाकर तीन माह तक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता दूर होती हैं।
अश्वगंधा, शतावरी और नागौरी तीनो को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनायें, फिर देशी घी में मिलाकर इस चूर्ण को मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी एक चम्मच चूर्ण को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों का आकार बढ़ता है।
मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और चीनी मिला कर रख ले इस चूर्ण की दो चम्मच सुबह खाली पेट पानी से सेवन करे। मासिक-धर्म शुरू होते ही इसका सेवन बंद कर दे।इससे मासिक धर्म सम्बन्धी सभी रोग समाप्त होंगे।
अश्वगंधा चूर्ण का लगातार एक वर्ष तक सेवन करने से शरीर के सारे दोष बाहर निकल जाते हैं पुरे शरीर की सम्पूर्ण शुद्धी होकर कमजोरी दूर होती है।
दूध में अश्वगंधा को अच्छी तरह पका कर छानकर उसमें देशी घी मिलकर माहवारी समाप्त होने के बाद महिला को एक दिन के लिए सुबह और शाम पिलाने से गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं और बाँझपन दूर हो जाता है।
अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध या ताजे पानी के साथ 1 चम्मच महीने भर तक नियमित सेवन करने से स्त्री निश्चित तोर पर गर्भधारण करती है।अथवा अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से भी स्त्री गर्भधारण करती है।
गर्भपात का बार-बार होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ का दो-दो चम्मच रस गर्भवती महिला 5 - 6 माह तक सेवन करने से गर्भपात नहीं होता।
गर्भधारण न कर पाने पर अश्वगंधा के काढे़ में दूध और घी मिलाकर स्त्री को एक सप्ताह तक पिलाए या अश्वगंधा का एक चम्मच चूर्ण मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग सप्ताह पहले से सेवन करना चाहिए।
समानं मात्रा में अश्वगंधा और नागौरी को लेकर चूर्ण बना ले। मासिक-धर्म समाप्ति के बाद स्नान शुद्धी होने के उपरांत दो चम्मच इस चूर्ण का सेवन करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।



यह औषधि काया कल्प योग की एक प्रमुख औषधि मानी जाती है एक वर्ष तक नियमित सेवन काया कल्प हो जाता है।

रक्तशोधन के लिए अश्वगंधा और चोपचीनी का बारीक चूर्ण समान मात्रा में मिला कर हर रोज सुबह-शाम शहद के साथ चाटे।
अश्वगंधा कमजोर, सूखा रोग पीड़ित बच्चों व रोगों के बाद की कमजोरी में, शारीरिक और मानसिक थकान बुढ़ापे की कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी व थकान आदि में अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण देसी गाय का घी और पाक निर्धारित मात्रा में सेवन कराते हैं । मूल चूर्ण को दूध के अनुपात के साथ देते हैं।
सामान्य चेतावनी :-गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
साधारणत: सामान्य आदमी अश्वगंधा जड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह खाली पेट पानी से ले ऊपर से एक कप गर्म दूध या चाय लें सकते है।नाश्ता 15-20 मिनट बाद ही करें। किसी भी जडी -बूटी को सवेरे खाली पेट सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
और कोई भी और्वेदिक औषधि तीन माह तक नियमित सेवन के बाद 10-15 दिन का अंतराल देकर दोबारा फिर से शुरू कर सकते है
आपको कोई बीमारी न हो तो भी अश्वगंधा का तीन माह तक नियमित सेवन किया जा सकता है। इससे शारीरिक क्षमता बढ़ने के साथ साथ सभी उक्त बिमारियों से निजात मिल जाती है|

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17.5.16

किडनी खराब होने के प्रमुख लक्षणऔर जीवन रक्षक औषधि kidney failure herbal medicine



   मानव शरीर मे किडनी शरीर के बीचो बीच कमर के पास होती है. यह अंग मुट्ठी के बराबर होता है. हमारे शरीर में दो किडनियां होती हैं. अगर एक किडनी पूरी तरह से खराब हो जाए तो भी शरीर ठीक से चलता रहता है|
  हृदय के द्वारा पम्प किए गए रक्त का 20 प्रतिशत किडनी में जाता है, जहां यह रक्त साफ होकर वापस शरीर में चला जाता है. इस तरह से किडनी हमारे रक्त को साफ कर देती है और सारे विजातीय द्रव्य पेशाब के जरिए शरीर से बाहर कर देती है|
खराब जीवनशैली और कभी-कभी दवाईयों के कारण किडनी पर दुष्प्रभाव होता है| किडनी की बीमारी के बारे में सबसे चिंता जनक बात यह है कि इसका पता प्रथम अवस्था में नहीं चलता है| जब ये अंतिम अवस्था में चला जाता है तब इसका पता चलता है, इसलिए इसको साइलन्ट किलर कहते हैं. इसलिए किडनी के बीमारी के प्रथम अवस्था को समझने के लिए उसके लक्षणों के बारे में पता लगाना ज़रूरी होता है|
किडनी के खराब होने के दूसरे लक्षण उसके 80% खराब होने के बाद नजर में आते हैं|

किडनी फेल होने के लक्षण और औषधि का विडिओ- 



किडनी खराब होने के प्रमुख  लक्षण:
1)  पेशाब करते वक्त जलन महसूस होना: कभी-कभी ऐसे अवस्था में बुखार या मूत्र मार्ग में जलन जैसा अनुभव होने लगता है. कभी-कभी पीठ का दर्द भी दूसरे लक्षणों में शामिल होता है|
2) पेशाब करते वक्त रक्त का आना : जब पेशाब में रक्त आने लगता है तब बिना एक मिनट सोचे डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि यह किडनी के खराब होने का निश्चित संकेत होता है|
3)  झाग (foam) जैसा पेशाब आना. मूत्र त्याग करने के बाद जब उसमें झाग जैसा पैदा होने लगता है तब यह किडनी के खराब होने के प्रथम लक्षणों के संकेत होते हैं|
4)  किडनी में सूजन आना: किडनी का प्रधान कार्य होता है शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालना, लेकिन जब यह कार्य बाधित होने लगता है तब शरीर में अतिरिक्त फ्लूइड जमने लगता है|
  किडनी खराब होने के कारण शरीर से अतिरिक्त पानी और नमक नहीं निकल पाता है. फलस्वरूप पांव, टखना (ankle), हाथ और चेहरे में सूजन आ जाती है इस अवस्था को इडिमा (oedema) कहते हैं|
5) अतिरिक्त थकना और कमजोरी आना: किडनी से एथ्रोप्रोटीन (erythropoietin) नाम का प्रोटीन निकलता है, जो लाल रक्त कोशिकाओं को ऑक्सिजन लाने में मदद करता है.



जब इस कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है तब इस हार्मोन का स्तर गिर जाता है. जिसके कारण अनीमीआ का रोग होता है, जो शरीर में कमजोरी और थकान का कारण बन जाता है.
6) चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी: किडनी के बीमारी के कारण मस्तिष्क में ऑक्सिजन की कमी हो जाती है जिसके कारण चिड़चिड़ापन और एकाग्रता में कमी आ जाती है.
7) हर समय ठंड महसूस होना: किडनी के बीमारी के कारण जो रक्ताल्पता  का रोग होता है उससे गर्म परिवेश में भी ठंडक महसूस होती है.
8)  त्वचा में रैशेज़ और खुजली: वैसे तो यह लक्षण कई तरह से बीमारियों के लक्षण होते हैं लेकिन किडनी के खराब होने पर शरीर में विषाक्त पदार्थों के जम जाने के कारण शरीर के त्वचा के ऊपर रैशेज और खुजली निकलने लगती है|
.9) पेशाब करने की मात्रा और समय में बदलाव आना: किडनी के बीमारी के प्रथम अवस्था में पेशाब की मात्रा और होने के समय में बदलाव आने लगता है. यूरिनरी सिस्टम के कार्य में बदलाव|
10)  पेशाब की मात्रा बढ़ जाना या एकदम कम हो जाना: पेशाब की मात्रा या तो बढ़ जाती है या कम हो जाती है.
11)  पेशाब का रंग बदल जाना: पेशाब का रंग गाढ़ा हो जाना या रंग में बदलाव आना|
12)  बार-बार पेशाब आने का अहसास होना: जब आपको बार-बार पेशाब होने का एहसास होने लगे मगर करने पर नहीं होना कि़डनी में खराबी की तरफ असर करता है|
13)  बार-बार पेशाब आना या उसकी मात्रा बढ़ जाना: रात में पेशाब होने की मात्रा या तो बढ़ जाती है या कम हो जाती है. रात को बार-बार उठकर पेशाब करने जाना. किडनी के अस्वस्थ्य होने का सबसे प्रहला और प्रधान लक्षण होता है.|

14) पेशाब करते वक्त दर्द महसूस होना: जब पेशाब करते वक्त दर्द और दबाव जैसा अनुभव होने लगे तो तब समझ जाना चाहिए कि मूत्र मार्ग (urinary tract ) में कोई संक्रमण हुआ है|
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विशिष्ट परामर्श 


किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि लक्षणों  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह असरदार जीवन-रक्षक  सिद्ध  होती है|डायलिसिस  पर  आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|

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13.5.16

एलर्जी (चर्म रोग) की आयुर्वेदिक चिकित्सा.allergy



एलर्जी कई प्रकार की होती हैं। इस तरह के सभी रोग परेशान करने वाले होते हैं। इन रोगों का यदि ठीक समय   पर इलाज न किया गया, तो परेशानी बढ़ जाती है। त्वचा के कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो अधिक पसीना आने की जगह पर होते हैं दाद या खुजली। परंतु मुख्य रूप से दाद, खाज और कुष्ठ रोग मुख्य हैं। इनके पास दूसरे लोग बैठने से घबराते हैं। परंतु  इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इन रोगों में ज्यादातर साफ सफाई रखने की जरूरत होती है। वरना ये खुद आपके ही शरीर पर जल्द से जल्द फैल सकते हैं। तथा आपके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें अगर दूसरे लोग इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें भी यह रोग लग सकता है।

 यह  रोग रक्त की अशुद्धि से भी होता है। एक्जिमा, दाद, खुजली हो जाये तो उस स्थान का उपचार करें। ये रोग अधिकतर बरसात में होता है। जो बिगड़ जाने पर जल्दी ठीक नहीं होता है। उपचार ; फिटकरी के पानी से प्रभावित स्थान को धोकर साफ करें। उसपर  कपूर सरसों का तेल लगाते रहें।
आंवले की गुली जलाकर राख कर लें उसमें एक चुटकी फिटकरी, नारियल का तेल मिलाकर इसका पेस्ट उस स्थान पर लगाते रहें। विकार दूर करने के लिये खट्टी चीजें,, मिर्च, मसाले से दूर रहें। जब तक उपलब्ध हो गाजर का रस पियें दाद में।
विटामिन ए की कमी से त्वचा शुष्क होती है। ये शुष्कता सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है। इस कारण सर्दियों में गाजर का रस पियें ये विटामिन ए का भरपूर स्त्रोत है। 

चुकंदर के पत्तों का रस, नींबू का रस मिलाकर लगायें दाद ठीक होगा। गाजर व खीरे का रस बराबर-बराबर लेकर चर्म रोग पर दिन में चार बार लगायें। चर्म रोग कैसा भी हो उस स्थान को नींबू पानी से धोते रहें लाभ होगा। रोज सुबह नींबू पानी पियें लाभ होगा। नींबू में फिटकरी भरकर पीड़ित स्थान पर रगड़े लाभ होगा।

चंदन का बूरा, नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पेष्ट बनाऐं व दाद, खुजली पर लगायें। दाद होने पर नीला थोथा, फिटकरी दोनों को आग में भूनकर पीस लें फिर नींबू निचोड़कर लेप बनाऐं और दाद पर लगायें पुराना दाद भी ठीक हो जायेगा।
दाद पर जायफल, गंधक, सुहागा को नींबू के रस में रगड़कर लगाने से लाभ होगा। दाद व खाज के रोगी, उबले नींबू का रस, शहद, अजवाइन के साथ रोज सुबह शाम पियें। दाद खाज में आराम होगा। नींबू के रस में इमली का बीज पीसकर लगाने से दाद मिटता है।
पिसा सुहागा नींबू का रस मिलाकर लेप बनाऐं तथा दाद को खुजला कर उस पर लेप करें। दिन में चार बार दाद को खुजलाकर उस पर नींबू रगड़ें। 
सूखें सिंघाड़े को नींबू के रस मे घिसें इसे दाद पर लगायें पहले तो थोड़ी जलन होगी फिर ठंडक पड़ जायेगी इससे दाद ठीक होगा। तुलसी के पत्तों को नींबू के साथ पीसें यानी चटनी जैसा बना लें इसे 15 दिन तक लगातार लगायें। दाद ठीक होगा।
प्याज का बीज नींबू के रस के साथ पीस लें फिर रोज दाद पर करीब दो माह तक लगायें दाद ठीक होगा। नहाते समय उस स्थान पर साबुन न लगायें। पानी में नींबू का रस डालकर नहायें। दाद फैलने का डर नहीं रहेगा।
पत्ता गोभी, चने के आटे का सेवन करें। नीम का लेप लगायें। नीम का शर्बत पियें थोड़ी मात्रा में। प्याज पानी में उबालकर प्रभावित स्थान पर लगायें। कैसा भी रोग होगा ठीक हो जायेगा। लंम्बे समय तक लगाये। प्याज के बीज को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर दाद वाले हिस्से पर लगायें। प्याज भी खायें। बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर लगाने से दाद ठीक होगा। ठीक होने तक लगायें। चर्म रोग कोई भी हो, शहद, सिरका मिलाकर चर्म रोग पर लगाये मलहम की तरह। कुष्ठ रोग में भी शहद खायें, शहद लगायें। तुलसी का तेल बनाएं चर्म रोग के लिये– जड़ सहित तुलसी का हरा भरा पौधा लेकर धो लें, इसे पीसकर इसका रस निकालें। यह रस आधा किलो पानी,आधा किलो तेल मे डालकर हल्की आंच पर पकाएं, जब तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर कर रख दें। तेल बन गया। इसे सफेद दाग पर लगाएं। इन सब इलाज के लिए धैर्य की जरूरत है। कारण ठीक होने में समय लगता है। 

सफेद दाग में नीम एक वरदान है। कुष्ठ रोग का इलाज नीम से करें| नीम लगाएं, नीम खाएं, नीम पर सोएं, नीम के नीचे बैठे, सोये यानि कुष्ठ रोग के व्यक्ति जितना संभव हो नीम के नजदीक रहें। नीम के पत्ते पर सोएं, उसकी कोमल पत्तियां, निबोली चबाते रहें। रक्त शुद्धिकरण होगा। अंदर से त्वचा ठीक होगी। कारण नीम अपने में खुद एक एंटीबायोटिक है। इसका वृक्ष अपने आसपास के वायुमंडल को शुद्ध, स्वच्छ, कीटाणुरहित रखता है। इसकी पत्तियां जलाकर पीसकर नीम के ही तेल में मिलाकर घाव पर लेप करें। नीम की फूल, पत्तियां, निबोली पीसकर इसका शर्बत चालीस दिन तक लगाताकर पियें। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलेगी। नीम का गोंद, नीम के ही रस में पीसकर पिएं थोड़ी-थोड़ी मात्रा से शुरू करें इससे गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है
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7.5.16

लू से बचने के उपाय ,Loo se bachne ke upay


   

बढ़ते तापमान के साथ गर्मी भी अपने चरम पर पहुंच रही है। इस दौरान सबसे ज्यादा खतरा लू लगने का होता है। गर्मियों में लू लगने से बहुत से लोग बीमार पड़ते हैं, लेकिन कुछ आसान घरेलू उपाय करके आप लू को मात दे सकते हैं।
उत्तर भारत में पारा 45 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच रहा है और साथ ही दोपहर में घर से बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है। लू से बचने के लिए अपनाएं यह आसान घरेलू उपाय-
पानी में ग्लूकोज मिलाकर पीते रहना चाहिए। इससे आपके शरीर को ऊर्जा मिलती है जिससे आपको थकान कम लगती है।
लू से बचने के लिए बेल या नींबू का शर्बत भी पिया जा सकता है। यह आपके शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है। लेकिन बाहर से आने के बाद तुरंत पानी नहीं पीयें। जब आपके शरीर का तापमान सामान्य हो जाए तभी पानी पीयें। 




धनिया पत्ते को पानी में भिगोकर रखें, फिर उसे अच्छी तरह मसलकर छाल लें। उसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर पीने से लू नहीं लगती है।
कच्चा प्याज भी लू से बचाने में मददगार होता है। आप खाने के साथ कच्चा प्याज का सलाद बनाकर खा सकते हैं।
गर्मी के मौसम में शरीर में पानी की कमी न हो इसलिए तरबूज, ककड़ी, खीरा खाना चाहिए। इसके अलावा फलों का जूस लेना भी फायदेमंद है।
कच्चे आम का पन्ना बनाकर लू से बचा जा सकता है। आम पन्ना को लू से निजात पाने का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है। इसे बनाना भी आसान है। कच्चे आम को उबालें, छिल्का उतारकर उसे मसल लें। इसमें ठंडा पानी मिलाएं। इसके बाद भुना जीरा, काला नमक और हल्की सी चीनी डालकर इसे पी लें।
इमली के बीज को पीसकर उसे पानी में घोलकर कपड़े से छान लें। इस पानी में चीनी मिलाकर पीने से लू से बचा जा सकता है। 

बाहर निकलने से पहले हमेशा अपने साथ पानी की बोतल रखें और थोड़ी-थोड़ी थोडी देर में पानी पीते रहें। दिन में खाली पेट बाहर नहीं निकले। घर से निकलने के पहले कुछ खाकर ही निकले।
इन आसान घरेलू उपायों से आप गर्मी से कुछ हद तक निजात जरूर पा सकते हैं और साथ ही लू से भी बच सकते हैं।



1.5.16

नजर तेज करने के उपाय, Measures to sharpen eyesight





*सुबह उठकर मुह मे पानी भरकर आँखें खोलकर साफ पानी के छींटे आँखों मे मरने चाहिए इससे आँखों की नजर बढ़ती है|
*बालों पर रंग ,हैयर डाई और केमिकल शेम्पू लगाने से परहेज करें| ये चीजें आँखों की रोशनी घटाती हैं|
*सुबह खाली पेट आधा चम्मच मक्खन आधा चम्मच पीसी हुई मिश्री और 5 पीसी हुई काली मिर्च मिलाकर चाट लें| तत्पशचात कच्चे नारियल की गिरी के 2-3 टुकड़े भली भांति चबाकर खाएं| फिर थौड़ी सी सौंफ चबाकर खाएं| 2-3 माह तक यह उपाय करने से दृष्टि तेज हो जाती है|
*रात को एक चम्मच त्रिफला चूर्ण एक गिलास पानी डालें| सुबह उठकर छानकर इस पानी से आँखें धोएँ| इससे नेत्र ज्योति बढ़ती है | और आँखों के कई रोग नष्ट होते हैं|
*सरसों के तेल से पैरों के तलवों की मालिश करना चाहिए| नहाने से 15 मिनिट पहिले पेरों के अँगूठों को सरसो के तेल मे तर कर लें | आँखों की ज्योति लंबे समय तक कायम रखने मे मददगार उपाय है| *10 ग्राम छोटी हरी ईलायची ,20 ग्राम सौंफ के मिश्रण को महीन पीसकर काँच की शीशी मे भर लें| एक चम्मच मिश्रण दूध के साथ लेते रहने से नजर तेज हो जाती है|
*अंगूर नियमित रूप से खाएं | इससे रात मे देखने की शक्ति बढ़ती है|
*एक चम्मच त्रिफला चूर्ण,एक चम्मच शहद और दो चम्मच गाय के घी को भली प्रकार मिश्रित करें इसे रात को सोते वक्त चाट लें| इससे नेत्र रोग दूर होते हैं,नजर तेज होती है और शारीरिक कमजोरी मे भी लाभदायक है|
*एक चम्मच मुलेठी का चूर्ण,एक चम्मच शहद आधा चम्मच देसी घी को भली प्रकार मिश्रित कर एक पाव दूध के साथ सुबह शाम 3 माह तक सेवन करने से दृष्टि तेज होती है|

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