20.5.20

सोयाबीन के स्वास्थ्य लाभ:Soyabeen ke fayde


सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पायें जाते है। जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योकि इसमें कायटोकेमिकल्स पायें जाते है, खासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नही है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
*अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का खतरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लियें सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 अखरोट, सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें।
*उच्च रक्त चाप : रोज कम नमक में भुने आधा कप सोयाबीन का 8 हफ्तों तक सेवन करने से ब्लड़प्रेशर काबू मे रहता है। इसका स्वाद बढ़ाने के लियें इसमें कालीमिर्च भी डालकर सकते हैं। सिर्फ आधा कप रोस्टेड सोयाबीन खाने से महिलाओं का बढ़ा हुआ ब्लडप्रेशर कम होने लगता है। लगातार 8 हफ्ते तक सोयाबीन खाने से महिलाओं का 10 प्रतिशत सिस्टोलिक प्रेशर, 7 प्रतिशत डायस्टोलिक और सामान्य महिलाओं का 3 प्रतिशत ब्लडप्रेशर कम हो जाता है। तो आप भी एक मुट्ठी सोयाबीन को 8 से 12 घण्टे पानी में भिगोकर रख दें और सुबह ही गर्म कर के खायें।

*मानसिक रोगों में :

सोयाबीन में फॉस्फोरस इतनी होती है कि यह मस्तिष्क (दिमाग) तथा ज्ञान-तन्तुओं की बीमारी, जैसे-मिर्गी, हिस्टीरिया, याददाश्त की कमजोरी, सूखा रोग (रिकेट्स) और फेफड़ो से सम्बन्धी बीमारियों में उत्तम पथ्य का काम करता है। सोयाबीन के आटे में लेसीथिन नमक एक पदार्थ तपेदिक और ज्ञान-तन्तुओं की बीमारी में बहुत लाभ पहुंचता है। भारत में जो लोग गरीब है। या जो लोग मछली आदि नही खा सकते है, उनके लियें यह मुख्य फास्फोरस प्रदाता खाद्य पदार्थ है। इसको खाना गरीबों के लियें सन्तुलित भोजन होता है।

*मूत्ररोग : 

सोयाबीन का रोजाना सेवन करने से मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी का मूत्ररोग (बार-बार पेशाब के आने का रोग) ठीक हो जाता है।

*मधुमेह (डायबिटीज) : 

सोयाबीन मोटे भारी-भरकम शरीर वालों के तथा मधुमेह (डायबिटीज) वाले लोगों के लियें उत्तम पथ्य है। सोया आटे की रोटी उत्तम आहार है।

दूध को बढ़ाने के लियें :

 दूध पिलाने वाली स्त्री यदि सोया दूध (सोयाबीन का दूध) पीये तो बच्चे को पिलाने के लिये उसके स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।

*रजोनिवृत्ति : 

महिलाओं में जब रजोनिवृत्ति (मासिकधर्म) होती है, उस समय स्त्रियों को बहुत ही कष्ट होते हैं। रजोनिवृत्त महिलाएं हडि्डयों में तेजी से होने वाले क्षरण से मुख्य रूप से ग्रसित होती है, जिसके कारण उन्हें आंस्टियो आर्थराइटिस बीमारी आ जाती है। घुटनों में दर्द रहने लगता है। यह इसलियें होता है, क्योंकि मासिक धर्म बंद होने से एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है क्योकि सोयाबीन में फायटोएस्ट्रोजन होता है। जो उस द्रव की तरह काम करता है, इसलियें 3-4 महीने तक सोयाबीन का उपयोग करने से स्त्रियों की लगभग सभी कठिनाइयां समाप्त हो जाती है।
*महिलाओ को सोयाबीन न केवल अच्छे प्रकार का प्रोटीन देती है बल्कि मासिकधर्म के पहले होने वाले कष्टों-शरीर में सूजन, भारीपन, दर्द, कमर का दर्द, थकान आदि में भी बहुत लाभ करती है हड्डी के कमजोर होने पर : सोयाबीन हडि्डयों से सम्बन्धित रोग जैसे हडि्डयों में कमजोरी को दूर करता है। सोयाबीन को अपनाकर हम स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अस्थिक्षारता एक ऐसा रोग है जिसमें हडि्डयां कमजोर हो जाती हैं और उसमें फैक्चर हो जाता है। हडि्डयो में कैल्श्यिम की मात्रा कम हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि *हडि्डयां टूटती ज्यादा है और बनती कम है। 

दिल के रोग में 

सोयाबीन में 20 से 22 प्रतिशत वसा पाई जाती है। सोयाबीन की वसा में लगभग 85 प्रतिशत असन्तृप्त वसीय अम्ल होते हैं, जो दिल के रोगियों के लियें फायदेमंद है। इसमें ‘लेसीथिन’ नामक प्रदार्थ होता है। जो दिल की नलियों के लियें आवश्यक है। यह कोलेस्ट्रांल को दिल की नलियों में जमने से रोकता है।
सोयाबीन खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए यह दिल के रोगियों के लिये फायदेमंद है। ज्यादातर दिल के रोगों में खून में कुछ प्रकार की वसा बढ़ जाती है, जैसे-ट्रायग्लिसरॉइड्स, कोलेस्ट्रॉल और एलडीएल, जबकि फायदेमंद वसा यानी एचडीएल कम हो जाती है। सोयाबीन में वसा की बनावट ऐसी है कि उसमें 15 प्रतिशत सन्तृप्त वसा, 25 प्रतिशत मोनो सन्तृप्त वसा और 60 प्रतिशत पॉली असन्तृप्त वसा है। खासकर 2 वसा अम्ल, जो सोयाबीन में पायें जाते हैं। यह दिल के लियें काफी उपयोगी होते हैं। सोयाबीन का प्रोटीन कोलेस्ट्रल एवं एलडीएल कम रखने में सहायक है। साथ ही साथ शरीर में लाभप्रद कोलेस्ट्रॉल एचडीएल भी बढ़ाता है।
*सोया प्रोटीन और आइसोफ्लेवोंस से भरपूर आहार का सेवन रजोनिवृत्त महिलाओं में हड्डियों को कमजोर होने और हड्डियों के क्षरण से संबंधित बिमारी ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है. एक अध्ययन में यह दावा किया गया है. इंग्लैंड के हुल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक, सोयाबीन खाद्य उत्पादों में आइसोफ्लेवोंस नामक रसायन होता है जो कि संरचना में इस्ट्रोजन हार्मोन जैसा होता है और महिलाओं को ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है.
*अध्ययन के दौरान प्रारंभिक रजोनिवृत्ति की अवस्था वाली 200 महिलाओं को छह महीनों तक आइसोफ्लेवोंस सहित सोया प्रोटीन युक्त अनुपूरक आहार या केवल सोया प्रोटीन दिया गया.
उसके बाद शोधकर्ताओं ने महिलाओं के रक्त में कुछ प्रोटीनों की जांच करके हड्डियों में हुए परिवर्तन का अध्ययन किया.
*शोधकर्ताओं ने पाया कि केवल सोया प्रोटीन लेने वाली महिलाओं की तुलना में आइसोफ्लेवोंस युक्त सोया आहार लेने वाली महिलाओं में हड्डियों के क्षरण की रफ्तार धीमी पड़ गई थी और उनमें ओस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हो गया था.
*केवल सोया लेने वाली महिलाओं की तुलना में आइसोफ्लेवोंस के साथ सोया लेने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा भी कम पाया गया.
*अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता थोझुकट सत्यापालन के मुताबिक, “हमें ज्ञात हुआ कि रजोनिवृत्ति की प्रारंभिक अवस्था के दौरान महिलाओं की हड्डियों का स्वास्थ्य सुधारने के लिए सोया प्रोटीन और आइसोफ्लेवोंस सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है.
*महिलाओं में रजोनिवृत्ति के तत्काल बाद के वर्षो में हड्डियों का क्षरण सबसे तेजी से होता है क्योंकि इस अवधि में हड्डियों को सुरक्षित रखने वाले इस्ट्रोजन हार्मोन का उनके शरीर में बनना कम हो जाता है.
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चना खाने के स्वास्थ्य लाभ:chana khane ke fayde



आयुर्वेद में चने की दाल और चने को शरीर के लिए स्वास्थवर्धक बताया गया है। चने के सेवने से कई रोग ठीक हो जाते हैं। क्योंकि इसमें प्रोटीन, नमी, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम और विटामिन्स पाये जाते हैं। चना दूसरी दालों के मुकाबले सस्ता होता है और सेहत के लिए भी यह दूसरी दालों से पौष्टिक आहार है। चना शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है। साथ ही यह दिमाग को तेज और चेहरे को सुंदर बनाता है। चने के सबसे अधिक फायदे इन्हे अंकुरित करके खाने से होते है।

*चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है।
* 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है।
* गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है। रातभर भिगे हुए चनों से पानी को अलग कर उसमें अदरक, जीरा और नमक को मिक्स कर खाने से कब्ज और पेट दर्द से राहत मिलती है। मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। शरीर को सबसे ज्यादा पोषण काले चनों से मिलता है। काले चने अंकुरित होने चाहिए। क्योंकि इन अंकुरित चनों में सारे विटामिन्स और क्लोरोफिल के साथ फास्फोरस आदि मिनरल्स होते हैं जिन्हें खाने से शरीर को कोई बीमारी नहीं लगती है। काले चनों को रातभर भिगोकर रख लें और हर दिन सुबह दो मुट्ठी खाएं। कुछ ही दिनों में फर्क  दिखने लगेगा।
*अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है।चने का सत्तू भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद औषघि है। शरीर की क्षमता और ताकत को बढ़ाने के लिए गर्मीयों में आप चने के सत्तू में नींबू और नमक मिलकार पी सकते हैं। यह भूख को भी शांत रखता है।
* गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
*चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है। >*पथरी की समस्या अब आम हो गई है। दूषित पानी और दूषित खाना खाने से पथरी की समस्या बढ़ रही है। गाल ब्लैडर और किड़नी में पथरी की समस्या सबसे अधिक हो रही है। एैसे में रातभर भिगोए चनों में थोड़ा शहद मिलाकर रोज सेवन करें। नियमित इन चनों का सेवन करने से पथरी आसानी से निकल जाती है। इसके अलावा आप आटे और चने का सत्तू को मिलाकर बनी रोटियां भी खा सकते हो।

* सर्दियों में चने के आटे का हलवा अस्थमा में फायदेमंद होता है।
* चने के आटे की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं।अधिक काम और तनाव की वजह से पुरूषों में कमजोरी होने लगती है। एैसे में अंकुरित चना किसी वरदान से कम नहीं है। पुरूषों को अंकुरित चनों को चबा-चबाकर खाने से कई फायदे मिलते हैं। इससे पुरूषों की कमजोरी दूर होती है। भीगे हुए चनों के पानी के साथ शहद मिलाकर पीने से पौरूषत्व बढ़ता है। और नपुंसकता दूर होती है।
*लंबे समय से चली आ रही कफ की परेशानी में भुने हुए चनों को रात में सोते समय अच्छे से चबाकर खाएं और इसके बाद दूध पी लें। यह कफ और सांस की नली से संबंधित रोगों को ठीक कर देता है।

* शहद मिलाकर पीने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है।पीलिया की बीमारी में चने की 100 ग्राम दाल में दो गिलास पानी डालकर अच्छे से चनों को कुछ घंटों के लिए भिगो लें और दाल से पानी को अलग कर लें अब उस दाल में 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 से 5 दिन तक रोगी को देते रहें। पीलिया मे  लाभ जरूरी मिलेगा।

*चने के पौधे के सूखे पत्तों का धुम्रपान करने से हिचकी तथा आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
*. चीनी के बर्तन में रात को चने भिगोकर रख दे। सुबह उठकर खूब चबा-चबाकर खाएं इसके लगातार सेवन करने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है व पुरुषों की कमजोरी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
* दस ग्राम चने की भीगी दाल और 10 ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर 40 दिनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है।
*बार-बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हूए चनों का सेवन करना चाहिए। गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से संबंधित समस्या में राहत मिलती है। रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।
*चने को आप खाने में जरूर इस्तेमाल करें। यह किसी दवा से कम नहीं है। चने खाने से एक नहीं कई फायदे मिलते हैं तो क्यों नहीं अंकुरित चनों का इस्तेमाल रोज किया जा सकता है।
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18.5.20

अजवायन के रोग नाशक प्रयोग


भारतीय खानपान में अजवाइन का प्रयोग सदियों से होता आया है। आयुर्वेद के अनुसार अजवाइन पाचन को दुरुस्त रखती है। यह कफ, पेट तथा छाती का दर्द और कृमि रोग में फायदेमंद होती है। साथ ही हिचकी, जी मचलाना, डकार, बदहजमी, मूत्र का रुकना और पथरी आदि बीमारी में भी लाभप्रद होती है। 
सामान्य परिचय -
अजवाईंन की खेती सारे भारतवर्ष में होती है लेकिन पश्चिम बंगाल, दक्षिणी प्रदेश और पंजाब में अधिकता से पैदा होता है। इसके पौधे एक दो फुट ऊंचे और पत्ते छोटे आकार में कुछ कंटीले होते हैं। डालियों पर सफेद फूल गुच्छे के रूप में लगते हैं, जो पककर एवं सूख जाने पर अजवाइन के दानों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये दाने ही हमारे घरों में मसाले के रूप में और औषधियों में उपयोग किए जाते हैं।
जरूरी सावधानियाँ -
1. अजवाइन पित्त प्रकृति वालों में सिर दर्द पैदा करती है और दूध कम करती है। 
2. अजवाइन ताजी ही लेनी चाहिए क्योंकि पुरानी हो जाने पर इसका तैलीय अंश नष्ट हो जाता है जिससे यह वीर्यहीन हो जाती है। काढ़े के स्थान पर रस या फांट का प्रयोग बेहतर है। 
3. अजवाइन का अधिक सेवन सिर में दर्द उत्पन्न करता है। 
मात्रा (खुराक) : अजवाइन 2 से 5 ग्राम, तेल 1 से 3 बूंद तक ले सकते हैं। 
गुण -
अजवाइन की प्रशंसा में आयुर्वेद में कहा गया है-“एका यमानी शतमन्न पाचिका” अर्थात इसमें सौ प्रकार के अन्न पचाने की ताकत होती है। 
आयुर्वेदिक मतानुसार-
अजवाइन पाचक, तीखी, रुचिकारक (इच्छा को बढ़ाने वाली), गर्म, कड़वी, शुक्राणुओं के दोषों को दूर करने वाली, वीर्यजनक (धातु को बढ़ाने वाला), हृदय के लिए हितकारी, कफ को हरने वाली, गर्भाशय को उत्तेजना देने वाली, बुखारनाशक, सूजननाशक, मूत्रकारक (पेशाब को लाने वाला), कृमिनाशक (कीड़ों को नष्ट करने वाला), वमन (उल्टी), शूल, पेट के रोग, जोड़ों के दर्द में, वादी बवासीर (अर्श), प्लीहा (तिल्ली) के रोगों का नाश करने वाली गर्म प्रकृति की औषधि है। 

यूनानी मतानुसार -
अजवाइन आमाशय, यकृत, वृक्क को ऊष्णता और शक्ति देने वाली, आर्द्रतानाशक, वातनाशक, कामोद्वीपक (संभोग शक्ति को बढ़ाने वाली), कब्ज दूर करने वाली, पसीना, मूत्र, दुग्धवर्द्धक, मासिक धर्म लाने वाली, तीसरे दर्जे की गर्म और रूक्ष होती है। 
विभिन्न रोगों में अजवाइन से उपचार:- 
1 पेट में कृमि (पेट के कीड़े) होने पर - 
1) अजवायन के लगभग आधा ग्राम चूर्ण में इसी के बराबर मात्रा में कालानमक मिलाकर सोते समय गर्म पानी से बच्चों को देना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं। कृमिरोग में पत्तों का 5 मिलीलीटर अजवाइन का रस भी लाभकारी है। 
2) अजवाइन को पीसकर प्राप्त हुए चूर्ण की 1 से 2 ग्राम को खुराक के रूप में छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 
3) अजवाइन के बारीक चूर्ण 4 ग्राम को 1 गिलास छाछ के साथ पीने या अजवाइन के तेल की लगभग 7 बूंदों को प्रयोग करने से लाभ होता है। 
4) अजवाइन को पीसकर प्राप्त रस की 4 से 5 बूंदों को पानी में डालकर सेवन करने आराम मिलता है। 
5) आधे से एक ग्राम अजवाइन का बारीक चूर्ण करके गुड़ के साथ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसे दिन में 3 बार खिलाने से छोटे बच्चों (3 से लेकर 5 साल तक) के पेट में मौजूद कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 
6) अजवाइन का आधा ग्राम बारीक चूर्ण और चुटकी भर कालानमक मिलाकर सोने से पहले 2 गाम की मात्रा में पिलाने से पेट में मौजूद कीड़े समाप्त हो जाते हैं।  
7) अजवाइन का चूर्ण आधा ग्राम, 60 ग्राम छाछ के साथ और बड़ों को 2 ग्राम चूर्ण और 125 मिलीलीटर छाछ में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। अजवाइन का तेल 3 से 7 बूंद तक देने से हैजा तथा पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। 
8) 25 ग्राम पिसी हुई अजवाइन आधा किलो पानी में डालकर रात को रख दें। सुबह इसे उबालें। जब चौथाई पानी रह जाये तब उतार कर छान लें। ठंडा होने पर पिलायें। यह बड़ों के लिए एक खुराक है। बच्चों को इसकी दो खुराक बना दें। इस तरह सुबह, शाम दो बार पीते रहने से पेट के छोटे-छोटे कृमि मर जाते हैं। 
9) अजवाइन के 2 ग्राम चूर्ण को बराबर मात्रा में नमक के साथ सुबह-सुबह सेवन करने से अजीर्ण (पुरानी कब्ज), जोड़ों के दर्द तथा पेट के कीड़ों के कारण उत्पन्न विभिन्न रोग, आध्मान (पेट का फूलना और पेट में दर्द आदि रोग ठीक हो जाते हैं। 
10) पेट में जो हुकवर्म नामक कीडे़ होते हैं, उनका नाश करने के लिए अजवाइन का बारीक चूर्ण लगभग आधा ग्राम तक खाली पेट 1-1 घंटे के अंतर से 3 बार देने से और मामूली जुलाब (अरंडी तैल नही दें) देने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। यह प्रयोग, पीलिया के रोगी और निर्बल पर नहीं करना चाहिए।


2. गठिया का दर्द -


1) जोड़ों के दर्द में पीड़ित स्थानों पर अजवाइन के तेल की मालिश करने से राहत मिलेगी।
2) गठिया के रोगी को अजवाइन के चूर्ण की पोटली बनाकर सेंकने से रोगी को दर्द में आराम पहुंचता है।
3) जंगली अजावयन को अरंड के तेल के साथ पीसकर लगाने से गठिया का दर्द  ठीक होता है।
4) अजवाइन का रस आधा कप में पानी मिलाकर आधा चम्मच पिसी सोंठ लेकर
ऊपर से इसे पीलें। इससे गठिया का रोग ठीक हो जाता है।
5) 2-3 ग्राम दालचीनी पिसी हुई में 3 बूंद अजवाइन का तेल डालकर सुबह-शाम
सेवन करें। इससे गठिया- दर्द् ठीक होता है।
3. मिट्टी या कोयला खाने की आदत -
एक चम्मच अजवाइन का चूर्ण रात में सोते समय नियमित रूप से 3 हफ्ते तक खिलाएं। इससे बच्चों की मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
4. पेट में दर्द -
एक ग्राम काला नमक और 2 ग्राम अजवाइन गर्म पानी के साथ सेवन कराएं।
5. स्त्री रोगों में -
प्रसूता (जो स्त्री बच्चे को जन्म दे चुकी हो) को 1 चम्मच अजवाइन और 2 चम्मच गुड़ मिलाकर दिन में 3 बार खिलाने से कमर का दर्द दूर हो जाता है और गर्भाशय की शुद्धि होती है। साथ ही साथ भूख लगती है व शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा मासिक धर्म की अनेक परेशानियां इसी प्रयोग से दूर हो जाती हैं। नोट : प्रसूति (डिलीवरी) के पश्चात योनिमार्ग में अजवाइन की पोटली रखने से गर्भाशय में जीवाणुओं का प्रवेश नहीं हो पाता और जो जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं वे नष्ट हो जाते है। जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए योनि-मार्ग से अजवाइन का धुंआ भी दिया जाता है तथा अजवाइन का तेल सूजन पर लगाया जाता है।
6. खांसी -
1) एक चम्मच अजवाइन को अच्छी तरह चबाकर गर्म पानी का सेवन करने से लाभ होता है।
2) रात में चलने वाली खांसी को दूर करने के लिए पान के पत्ते में आधा चम्मच अजवाइन लपेटकर चबाने और चूस-चूसकर खाने से लाभ होगा। 1 ग्राम साफ की हुई अजवाइन को लेकर रोजाना रात को सोते समय पान के बीडे़ में रखकर खाने से खांसी में लाभ मिलता है।
3) जंगली अजवाइन का रस, सिरका तथा शहद को एक साथ मिलाकर रोगी को रोजाना दिन में 3 बार देने से पुरानी खांसी, श्वास, दमा एवं कुक्कुर खांसी (हूपिंग कफ) के रोग में लाभ होता है।
4) अजवाइन के रस में एक चुटकी कालानमक मिलाकर सेवन करें। और ऊपर से गर्म पानी पी लें। इससे खांसी बंद हो जाती है।
5) अजवाइन के चूर्ण की 2 से 3 ग्राम मात्रा को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से भी जुकाम सिर दर्द, नजला, मस्तकशूल (माथे में दर्द होना) और कृमि (कीड़ों) पर लाभ होता है।
6) कफ अधिक गिरता हो, बार-बार खांसी चलती हो, ऐसी दशा में अजवाइन का बारीक पिसा हुआ चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, घी 2 ग्राम और शहद 5 ग्राम में मिलाकर दिन में 3 बार खाने से कफोत्पित्त कम होकर खांसी में लाभ होता है।
7) खांसी तथा कफ ज्वर यानि बुखार में अजवाइन 2 ग्राम और छोटी पिप्पली आधा ग्राम का काढ़ा बनाकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
8) 1 ग्राम अजवाइन रात में सोते समय मुलेठी 2 ग्राम, चित्रकमूल 1 ग्राम से बने काढ़े को गर्म पानी के साथ सेवन करें।
9) 5 ग्राम अजवाइन को 250 मिलीलीटर पानी में पकायें, आधा शेष रहने पर, छानकर नमक मिलाकर रात को सोते समय पी लें।
10) खांसी पुरानी हो गई हो, पीला दुर्गन्धमय कफ गिरता हो और पाचन क्रिया मन्द पड़ गई हो तो अजवाइन का जूस दिन में 3 बार पिलाने से लाभ होता है।
7. बिस्तर में पेशाब करना -
 
सोने से पूर्व 1 ग्राम अजवाइन का चूर्ण कुछ दिनों तक नियमित रूप से खिलाएं।
8. बार पेशाब आना-
1) 2 ग्राम अजवाइन को 2 ग्राम गुड़ के साथ कूट-पीसकर, 4 गोली बना लें, 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 गोली पानी से लें। इससे बहुमूत्र रोग दूर होता है।
2) अजवाइन और तिल मिलाकर खाने से बहुमूत्र रोग ठीक हो जाता है।
3) गुड़ और पिसी हुई कच्ची अजवाइन समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच रोजाना 4 बार खायें। इससे गुर्दे का दर्द भी ठीक हो जाता है।
4) जिन बच्चे को रात में पेशाब करने की आदत होती है उन्हें रात में लगभग आधा ग्राम अजवाइन खिलायें।
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30.4.20

आलू से वजन कम करने के तरीके /potato weight loss





आपने अक्सर लोगों को यह कहते सुना होगा कि अगर आप वजन घटाने की कोशिश कर रहे हैं तो आपको कार्बोहाइड्रेट्स से दूर रहना चाहिए या फिर बेहद कम मात्रा में इनका सेवन करना चाहिए। वजन घटाते वक्त ज्यादातर लोग आलू से तो सबसे पहले दूरी बना लेते हैं। लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक खास पटेटो डायट के बारे में जिसमें आपको 5 दिन तक सिर्फ पटेटो यानी आलू खाना है और फिर देखें कैसे घटेगा आपका वजन|


रोजाना खाएं आलू

जर्नल मॉलिक्युलर ऑफ न्यूट्रिशन एंड फूड रिसर्च में प्रकाशित एक नई स्टडी के मुताबिक, अगर पतला होना है तो रोजाना आलू खाएं। इतना ही नहीं, अगर आप केवल 5 दिन तक पटेटो डायट फॉलो कर लें, तो आपका वजन कई किलो तक कम हो जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आलू खाने के बाद आपको भूख का एहसास नहीं होता। इससे पेट जल्दी भर जाता है और आप ओवरईटिंग से भी बच जाते हैं।

कैलरी होती है कम

इस नई स्टडी के मुताबिक आलू वजन घटाने  aloo se vajan kam में असरदार रूप से काम करता है क्योंकि यह एक ऐसा स्टार्ची फूड है जिसमें कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट ज्यादा होता है जबकी कैलरीज कम। साथ ही मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने के साथ साथ वजन को कंट्रोल करने में मदद करता है आलू।
जब हम कहते हैं कि आलू वजन कम करने में मदद करता है तो इसका मतलब फ्राइज और चिप्स खाने से नहीं होता है। जाहिर है तेल में तले खाद्य पदार्थ खाने से आपका वजन तो बढ़ेगा ही साथ ही यह आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी होता है फिर चाहे वह आलू हो या खीरा। इसलिए जब आलू की बात आती है तो इसे खाने का सही तरीका वजन कम करने में काफी सहायक होता है। हम जानते हैं कि शरीर में फैट जमा होने से तरह-तरह की बीमारियां होने लगती है। इसके कारण वजन बढ़ना, कोलेस्ट्रॉल बढ़ जाना, हाई ब्लड प्रेशर और घुटनों में दर्द की शिकायत शुरू हो जाती है।

वजन घटाता है, सेहत नहीं

एक मीडियम साइज के आलू में जहां 168 कैलरी होती है वहीं उबले आलू में सिर्फ 100 कैलरीज। वैज्ञानिकों का कहना है आलू एक ऐसा फूड है जो वजन तो घटाता है लेकिन सेहत नहीं। इसे अगर आप दिनभर में 10 भी खा लेते हैं, तो भी आप दूसरे फूड से कम कैलरी इनटेक करेंगे और साथ में हेल्दी भी रहेंगे।

पोषक तत्व से भरपूर

आलू में फाइबर और प्रोटीन के अलावा विटमिन बी, सी, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीज, फॉस्फॉरस जैसे पोषक तत्व काफी तादाद में होते हैं।

उबालकर खाना फायदेमंद


यदि दो-तीन आलू उबालकर छिलके सहित थोड़े से दही के साथ खा लिए जाएं तो ये एक संपूर्ण आहार का काम करता है।

आलू नहीं, चिकनाई से मोटापा

आलू को तलकर तीखे मसाले, घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई मोटापा बढ़ाती है आलू नहीं। वहीं, अगर आप आलू को उबालकर खाते हैं तो हेल्थ को तो फायदा मिलता ही है साथ ही वजन भी कम aloo se vajan kam  होता है।

आलू के छिलके भी हैं फायदेमंद

आलू के छिलके ज्यादातर फेंक दिए जाते हैं, जबकि छिलके सहित आलू खाने से ज्यादा शक्ति मिलती है। जिस पानी में आलू उबाले गए हों, वह पानी न फेंकें, बल्कि इसी पानी से आलुओं का रसा बना लें। इस पानी में मिनरल और विटमिन बहुत होते हैं।

आवश्यक सामग्री:

उबला हुआ आलू - 2
दही - 1 मीडियम साइज कप
नमक - 1 चम्मच यदि आप इस प्राकृतिक उपाय का सही तरीके से और नियमित इस्तेमाल करते तो खासतौर पर वजन घटाने में aloo se vajan kam यह काफी सहायक है।
इस उपाय के साथ-साथ आपको नियमित कम से कम 45 मिनट व्यायाम करना चाहिए और कम ऑयली और कम फैटी खाद्य पदार्थों को खाना चाहिए। उचित भोजन और नियमित आहार के बिना यह उपाय प्रभावी तरीके से काम नहीं करता है।
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हरी मिर्च खाने के स्वास्थ्य लाभ व नुकसान//hari mirch





हरी मिर्च स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होती है। हरी मिर्च एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होती है जो कई तरह की होती है। शिमला मिर्च भी हरी मिर्च की श्रेणी में आती है जो कि स्वास्थ्य के लिए उपयोगी सुपरफूड होता है। भारतीय घरों में हरी मिर्च पाउडर और हरी मिर्च का खाना बनाने, मसालों और चटनी आदि बनाने में इस्तेमाल करते हैं साथ ही इसे कच्चा खाने का इस्तेमाल कर सकते हैं।

हरी मिर्च खाने के स्वास्थ्यवर्धक लाभ
विटामिन सी हरी मिर्च में पर्याप्त मात्रा में होता है। आपने अक्सर महसूस किया होगा की हरी मिर्च खाने से बंद नाक खुल जाती है। हरी मिर्च का सेवन करने से उसमें मौजूद विटामिन सी इम्यूनिटी बूस्ट करते हैं। जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

खाना पचाने के लिए लाभकारी

मिर्च में फाईबर पर्याप्त मात्रा में होता है इसलिए इसे खाने से पाचन तंत्र को मदद मिलती है। यहीं कारण है कि खाना पचाने के हेतु हरी मिर्च का सेवन लाभकारी होता है।

त्वचा के लिए लाभकारी

मिर्च में विटामिन सी के साथ विटामिन ई भी पर्याप्त मात्रा में होता है । इसका सेवन करने से त्वचा को नेचुरल ऑयल मिलता है जिससे त्वचा खूबसूरत और निखरी बनी रहती है।

ब्लड शुगर लेवल को सही रखने में

डायबिटीज के रोगियों के लिए हरी मिर्च खाना बहुत लाभदायक होता है। हरी मिर्च खाने से रक्त शर्करा का लेवल सही बना रहता है इस कारण डायबिटीज के पीड़ित लोगों के लिए हरी मिर्च खाना लाभकारी रहता है।

जुकाम और साइनस के लिए

कैप्साइसिन नामक तत्व हरी मिर्च में पाया जाता है जो कि म्यूकस को तरल बनाता है। यह नाक और साइनस के छिद्रों को खोलने में मदद करता है। इसलिए हरी मिर्च खाना सर्दी-जुकाम और साइनस इंफेक्शन के लिए फायदेमंद होता है।

खून की कमी दूर करने में

मिर्च मे पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है। इसलिए इसे खाने से खून में हिमोग्लोबिन की कमी नहीं होती है। यहीं कारण है कि हरी मिर्च खाने से खून की कमी जैसे रोग नहीं होते हैं।

कैंसर का खतरा दूर होता है

में एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं जो मुक्त-मूलकों को खत्म करते हैं और कैंसर के खतरे को दूर करते हैं।

तनाव को कम करने में

जब आप हरी मिर्च का सेवन करते हैं तो यह एंडोर्फिन नामक एक हार्मोन के स्तर को बढ़ा देती है। एंडोर्फिन तनाव को कम करके मूड को ठीक करने वाला एक हार्मोन होता है इसलिए हरी मिर्च का सेवन करने से तनाव कम होता है।

हरी मिर्च खाने के नुकसान

वैसे तो हरी मिर्च खाना सेहत के लिए लाभकारी होता है पर अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती। ऐसे में आवश्यकता से अधिक सेवन आपकी सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। 

ज्यादा हरी मिर्च खाने के नुकसान और हानिकारक दुष्प्रभाव

ज्यादा हरी मिर्च खाना मां बनने वाली महिलाओं के लिए हानिकारक: हरी मिर्च खाने से पेट की गर्मी बढ़ जाती है जिससे मां बनने वाली महिलाओं को ज्यादा हरी मिर्च ना खाने की सलाह दी जाती है।
हरी मिर्च खाना जीभ के लिए हानिकारक: ज्यादा हरी मिर्च खाने से मुंह में जलन लग सकती है और इसका तीखापन आपकी जीभ की त्वचा को काट सकता है। इसलिए अधिक हरी मिर्च का सेवन हानिकारक होता है।
ज्यादा हरी मिर्च खाने से मेटाबोलिज्म प्रभावित होना: हरी मिर्च में कैप्साइसिन नामक तत्व पाया जाता है जिसकी मात्रा शरीर में ज्यादा होने पर यह मेटाबोलिज्म को प्रभावित करता है इसलिए जरूरत से ज्यादा हरी मिर्च का सेवन नहीं करना चाहिए।
इसके अलावा ज्यादा हरी मिर्च खाने से निम्न लक्षण भी हो सकते है
डायरिया
अल्सर
जलन
ब्लीडिंग जैसी समस्याएं भी हो सकती है।
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29.4.20

कार्बोवेज औषधि के गुण और लाभ:carboveg




व्यापक-लक्षण 

पेट के ऊपरी भाग में वायु का प्रकोप – पुराना अजीर्ण रोग, खट्टी तथा खाली डकारें आना ठंडी हवा; पंखे की हवा
किसी कठिन रोग के पश्चात उपयोगी डकार आने से कमी
सिर्फ गर्म हालत से जुकाम; अथवा गर्म से एकदम ठंडक में आने से होने वाले रोग (जैसे, जुकाम, सिर-दर्द आदि) पांव ऊँचे कर के लेटना
हवा की लगातार इच्छा (न्यूमोनिया, दमा, हैजा आदि) लक्षणों में वृद्धि
जलन, ठंडक तथा पसीना-भीतर जलन बाहर ठंडक (जैसे, हैजा आदि में) गर्मी से रोगी को परेशानी
शरीर तथा मन की शिथिलता (रुधिर का रिसते रहना, विषैला फोड़ा, सड़ने वाला वैरीकोज़ वेन्ज, थकान आदि ) वृद्धावस्था की कमजोरी
यह मृत-संजीवनी दवा कही जाती है गरिष्ट भोजन से पेट में वायु का बढ़ जाना

*पेट के ऊपरी भाग में वायु का प्रकोप – 

कार्बो वेज औषधि वानस्पतिक कोयला है। हनीमैन का कथन है कि पहले कोयले को औषधि शक्तिहीन माना जाता था, परन्तु कुछ काल के बाद श्री लोविट्स को पता चला कि इसमें कुछ रासायनिक तत्त्व हैं जिनसे यह बदबू को समाप्त कर देता है। इसी गुण के आधार पर ऐलोपैथ इसे दुर्गन्धयुक्त फोड़ों पर महीन करके छिड़कने लगे, मुख की बदबू हटाने के लिये इसके मंजन की सिफारिश करने लगे और क्योंकि यह गैस को अपने में समा लेता है इसलिये पेट में वायु की शिकायत होने पर शुद्ध कोयला खाने को देने लगे। कोयला कितना भी खाया जाय वह नुकसान नहीं पहुँचाता है। परन्तु हनीमैन का कथन था कि स्थूल कोयले का यह असर चिर-स्थायी नहीं है। मुँह की बदबू यह हटायेगा परन्तु कुछ देर बाद बदबू आ जायेगी, फोड़े की बदबू में जब तक यह लगा रहेगा तभी तक हटेगी, पेट की गैस में भी यह इलाज नहीं है। हनीमैन का कथन है कि स्थूल कोयला वह काम नहीं कर सकता जो शक्तिकृत कोयला कर सकता है। कार्बो वेज पेट की गैस को भी रोकता है, विषैले, सड़ने वाले जख्म-गैंग्रीन-को भी ठीक करता है। पेट की वायु के शमन में होम्योपैथी में तीन औषधियां मुख्य हैं – वे हैं: कार्बो वेज, चायना तथा लाइको।

कार्बो वेज, चायना तथा लाइकोपोडियम की तुलना – 

डॉ० नैश का कथन है कि पेट में गैस की शिकायत में कार्बो वेज ऊपरी भाग पर, चायना संपूर्ण पेट में गैस भर जाने पर, और लाइको पेट के निचले भाग में गैस होने पर विशेष प्रभावशाली है।

*पुराना अजीर्ण रोग, खट्टी तथा खाली डकारें आना – 

पुराने अजीर्ण रोग में यह लाभकारी है। रोगी को खट्टी डकारें आती रहती हैं, पेट का ऊपर का हिस्सा फूला रहता है, हवा पसलियों के नीचे अटकती है, चुभन पैदा करती है, खट्टी के साथ खाली डकारें भी आती हैं। डकार आने के साथ बदबूदार हवा भी खारिज होती है। डकार तथा हवा के निकास से रोगी को चैन पड़ता है। पेट इस कदर फूल जाता है कि धोती या साड़ी ढीली करनी पड़ती है। कार्बो वेज में डकार से आराम मिलता है, परन्तु चायना और लाइको में डकार से आराम नहीं मिलता।

*किसी कठिन रोग के पश्चात उपयोगी – 

अगर कोई रोग किसी पुराने कठिन रोग के बाद से चला आता हो, तब कार्बो वेज को स्मरण करना चाहिये। इस प्रकार किसी पुराने रोग के बाद किसी भी रोग के चले आने का अभिप्राय यह है कि जीवनी-शक्ति की कमजोरी दूर नहीं हुई, और यद्यपि पुराना रोग ठीक हो गया प्रतीत होता है, तो भी जीवनी शक्ति अभी अपने स्वस्थ रूप में नहीं आयी। उदाहरणार्थ, अगर कोई कहे कि जब से बचपन में कुकुर खांसी हुई तब से दमा चला आ रहा है, जब से सालों हुए शराब के दौर में भाग लिया तब से अजीर्ण रोग से पीड़ित हूँ, जब से सामर्थ्य से ज्यादा परिश्रम किया तब से तबीयत गिरी-गिरी रहती है, जब से चोट लगी तब से चोट तो ठीक हो गई किन्तु मौजूदा शिकायत की शुरूआत हो गई, ऐसी हालत में चिकित्सक को कार्बो वेज देने की सोचनी चाहिये। बहुत संभव है कि इस समय रोगी में जो लक्षण मौजूद हों वे कार्बो वेज में पाये जाते हों क्योंकि इस रोग का मुख्य कारण जीवनी-शक्ति का अस्वस्थ होना है, और इस शक्ति के कमजोर होने से ही रोग पीछा नहीं छोड़ता।
जब तक कार्बो वेज के रोगी का नाक बहता रहता है, तब तक उसे आराम रहता है, परन्तु यदि गर्मी से हो जाने वाले इस जुकाम में वह ठंड में चला जाय, तो जुकाम एकदम बंद हो जाता है और सिर-दर्द शुरू हो जाता है। बहते जुकाम में ठंड लग जाने से, नम हवा में या अन्य किसी प्रकार से जुकाम का स्राव रुक जाने से सिर के पीछे के भाग में दर्द, आँख के ऊपर दर्द, सारे सिर में दर्द, हथौड़ों के लगने के समान दर्द होने लगता है। पहले जो जुकाम गर्मी के कारण हुआ था उसमें कार्बो वेज उपयुक्त दवा थी, अब जुकाम को रुक जाने पर कार्बो वेज के अतिरिक्त कैलि बाईक्रोम, कैलि आयोडाइड, सीपिया के लक्षण हो सकते हैं।

*हवा की लगातार इच्छा (न्यूमोनिया, दमा, हैज़ा आदि) – 

कार्बो वेज गर्म-मिजाज़ की है, यद्यपि कार्बो एनीमैलिस ठंडे मिजाज़ की है। गर्म-मिजाज की होने के कारण रोगी को ठंडी और पंखे की हवा की जरूरत रहती है। कोई भी रोग क्यों न हो-बुखार, न्यूमोनिया, दमा, हैजा-अगर रोगी कहे-हवा करो, हवा करो-तो कार्बो वेज को नहीं भुलाया जा सकता। अगर रोगी कहे कि मुँह के सामने पंखे की हवा करो तो कार्बो वेज, और अगर कहे कि मुँह से दूर पंखे को रख कर हवा करो तो लैकेसिस औषधि है। कार्बो वेज में जीवनी-शक्ति अत्यन्त शिथिल हो जाती है इसलिये रोगी को हवा की बेहद इच्छा होती है। अगर न्यूमोनिया में रोगी इतना निर्बल हो जाय कि कफ जमा हो जाय, और ऐन्टिम टार्ट से भी कफ नहीं निकल रहा। उस हालत में अगर रोगी हवा के लिये भी बेताब हो, तो कार्बो वेज देने से लाभ होगा। दमे का रोगी सांस की कठिनाई से परेशान होता है। उसकी छाती में इतनी कमजोरी होती है कि वह महसूस करता है कि अगला सांस शायद ही ले सके। रोगी के हाथ-पैर ठंडे होते हैं, मृत्यु की छाया उसके चेहरे पर दीख रही होती है, छाती से सांय-सांय की आवाज आ रही होती हे, सीटी-सी बज रही होती है, रोगी हाथ पर मुंह रखे सांस लेने के लिये व्याकुल होता है और कम्बल में लिपटा खिड़की के सामने हवा के लिये बैठा होता है और पंखे की हवा में बैठा रहता है। ऐसे में कार्बो वेज दिया जाता है। न्यूमोनिया और दमे की तरह हैजे में भी कार्बो वेज के लक्षण आ जाते हैं जब रोगी हवा के लिये व्याकुल हो जाता है। हैजे में जब रोगी चरम अवस्था में पहुँच जाय, हाथ-पैरों में ऐंठन तक नहीं रहती, रोगी का शरीर बिल्कुल बर्फ के समान ठंडा पड़ गया हो, शरीर के ठंडा पसीना आने लगे, सांस ठंडी, शरीर के सब अंग ठंडे-यहां तक कि शरीर नीला पड़ने गले, रोगी मुर्दे की तरह पड़ जाय, तब भी ठंडी हवा से चैन मिले किन्तु कह कुछ भी न सके-ऐसी हालत में कार्बो वेज रोगी को मृत्यु के मुख से खींच ले आये तो कोई आश्चर्य नहीं।

*सिर्फ गर्म हालत से जुकाम; यह गर्म से एकदम ठंड में आने से होने वाले जुकाम, खांसी, सिर दर्द आदि – 

कार्बो वेज जुकाम-खांसी-सिरदर्द आदि के लिए मुख्य-औषधि है। रोगी जुकाम से पीड़ित रहा करता है। कार्बो वेज की जुकाम-खांसी-सिरदर्द कैसे शुरू होती है? – रोगी गर्म कमरे में गया है, यह सोच कर कि कुछ देर ही उसने गर्म कमरे में रहना है, वह कोट को डाले रहता है। शीघ्र ही उसे गर्मी महसूस होने लगती है, और फिर भी यह सोचकर कि अभी तो बाहर जा रहा हूँ-वह गर्म कोट को उतारता नहीं। इस प्रकार इस गर्मी का उस पर असर हो जाता है और वह छीकें मारने लगता है, जुकाम हो जाता है। नाक से पनीला पानी बहने लगता है और दिन-रात वह छींका करता है। यह तो हुआ गर्मी से जुकाम हो जाना। औषधियों का जुकाम शुरू होने का अपना-अपना ढंग है। कार्बो वेज का जुकाम नाक से शुरू होता है, फिर गले की तरफ जाता है, फिर श्वास-नलिका की तरफ जाता है और अन्त में छाती में पहुंचता है। फॉसफोरस की ठंड लगने से बीमारी पहले ही छाती में या श्वास-नलिका में अपना असर करती है।

*शरीर तथा मन की शिथिलता (रुधिर का रिसते रहना, विषैला फोड़ा, सड़ने वाला वैरीकोज़ वेन्ज, थकान आदि 

शिथिलता कार्बो वेज का चरित्रगत-लक्षण है। प्रत्येक लक्षण के आधार में शिथिलता, कमजोरी, असमर्थता बैठी होती है। इस शिथिलता का प्रभाव रुधिर पर जब पड़ता है तब हाथ-पैर फूले दिखाई देते हैं क्योंकि रुधिर की गति ही धीमी पड़ जाती है, रक्त-शिराएं उभर आती हैं, रक्त-संचार अपनी स्वाभाविक-गति से नहीं होता, वैरीकोज़ वेन्ज़ का रोग हो जाता है, रक्त का संचार सुचारु-रूप से चले इसके लिये टांगें ऊपर करके लेटना या सोना पड़ता है। रक्त-संचार की शिथिलता के कारण अंग सूकने लगते हैं, अंगों में सुन्नपन आने लगती है। अगर वह दायीं तरफ लेटता है तो दायां हाथ सुन्न हो जाता है, अगर बायीं तरफ लेटता है तो बायां हाथ सुन्न हो जाता है। रक्त-संचार इतना शिथिल हो जाता है कि अगर किसी अंग पर दबाव पड़े, तो उस जगह का रक्त-संचार रुक जाता है। रक्त-संचार की इस शिथिलता के कारण विषैले फोड़े, सड़ने वाले फोड़े, गैंग्रीन आदि हो जाते हैं जो रक्त के स्वास्थ्यकर संचार के अभाव के कारण ठीक होने में नहीं आते, जहां से रुधिर बहता है वह रक्त-संचार की शिथिलता के कारण रिसता ही रहता है।

रुधिर का नाक, जरायु, फेफड़े, मूत्राशय आदि से रिसते रहना – 

रुधिर का बहते रहना कार्बो वेज का एक लक्षण है। नाक से हफ्तों प्रतिदिन नकसीर बहा करती है। जहां शोथ हुई वहाँ से रुधिर रिसा करता है। जरायु से, फेफड़ों से, मूत्राशय से रुधिर चलता रहता है, रुधिर की कय भी होती है। यह रुधिर का प्रवाह वेगवान् प्रवाह नहीं होता जैसा एकोनाइट, बेलाडोना, इपिकाका, हैमेमेलिस या सिकेल में होता है। इन औषधियों में तो रुधिर वेग से बहता है, कार्बो वेज में वेग से बहने के स्थान में वह रिसता है, बारीक रक्त-वाहिनियों द्वारा धीमे-धीमे रिसा करता है। रोगिणी का ऋतु-स्राव के समय जो रुधिर चलना शुरू होता है वह रिसता रहता है और उसका ऋतु-काल लम्बा हो जाता है। एक ऋतु-काल से दूसरे ऋतु-काल तक रुधिर रिसता जाता है। बच्चा जनने के बाद रुधिर बन्द हो जाना चाहिये, परन्तु क्योंकि इस औषधि में रुधिर-वाहिनियां शिथिल पड़ जाती हैं, इसलिये रुधिर बन्द होने के स्थान में चलता रहता है, धीरे-धीरे रिसता रहता है। ऋतु-काल, प्रजनन आदि की इन शिकायतों को, तथा इन शिकायतों से उत्पन्न होनेवाली कमजोरी को कार्बो वेज दूर कर देता है। कभी-कभी जनने के बाद प्लेसेन्टा को बाहर धकेल देने की शक्ति नहीं होती। अगर इस हालत में रुधिर धीरे-धीरे रिस रहा हो, तो कार्बो वेज की कुछ मात्राएँ उसे बहार धकेल देंगी और चिकित्सक को शल्य-क्रिया करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

विषैला फोड़ा, सड़नेवाला ज़ख्म, गैंग्रीन – 

क्योंकि रक्त-वाहिनियां शिथिल पड़ जाती हैं इसलिये जब भी कभी कोई चोट लगती है, तब वह ठीक होने के स्थान में सड़ने लगती है। फोड़े ठीक नहीं होते, उनमें से हल्का-हल्का रुधिर रिसा करता है, वे विषैले हो जाते हैं, और जब फोड़े ठीक न होकर विषैला रूप धारण कर लेते हैं, तब गैंग्रीन बन जाती है। जब भी कोई रोग शिथिलता की अवस्था में आ जाता है, ठीक होने में नहीं आता, तब जीवनी शक्ति की सचेष्ट करने का काम कार्बो वेज करता है।

वेरीकोज़ वेन्ज – 

रुधिर की शिथिलता के कारण हदय की तरफ जाने वाला नीलिमायुक्त अशुद्ध-रक्त बहुत धीमी चाल से जाता है, इसलिये शिराओं में यह रक्त एकत्रित हो जाता है और शिराएँ फूल जाती हैं। इस रक्त के वेग को बढ़ाने के लिये रोगी को अपनी टांगें ऊपर करके लेटना या सोना पड़ता है। रक्त की इस शिथिलता को कार्बो वेज दूर कर देता है क्योंकि इसका काम रक्त-संचार की कमजोरी को दूर करना है।



शारीरिक तथा मानसिक थकान –

 शारीरिक-थकान तो इस औषधि का चरित्रगत-लक्षण है ही क्योंकि शिथिलता इसके हर रोग में पायी जाती है। शारीरिक-शिथिलता के समान रोगी मानसिक-स्तर पर भी शिथिल होता है। विचार में शिथिल, सुस्त, शारीरिक अथवा मानसिक कार्य के लिये अपने को तत्पर नहीं पाता।

*यह दवा मृत-संजीवनी कही जाती है – 

कार्बो वेज को होम्योपैथ मृत-संजीवनी कहते हैं। यह मुर्दों में जान फूक देती है। इसका यह मतलब नहीं कि मुर्दा इससे जी उठता है, इसका यही अभिप्राय है कि जब रोगी ठंडा पड़ जाता है, नब्ज़ भी कठिनाई से मिलती है, शरीर पर ठंडे पसीने आने लगते हैं, चेहरे पर मृत्यु खेलने लगती है, अगर रोगी बच सकता है तब इस औषधि से रोगी के प्राण लौट आते हैं। कार्बो वेज जैसी कमजोरी अन्य किसी औषधि में नहीं है, और इसलिये मरणासन्न-व्यक्ति की कमजोरी हालत में यह मृत-संजीवनी का काम करती है। उस समय 200 या उच्च-शक्ति की मात्रा देने से रोगी की जी उठने की आशा हो सकती है।

*जलन, ठंडक तथा पसीना-भीतर जलन बाहर ठंडा (जैसे, हैज़ा आदि में) – 

कार्बो वेज का विशेष-लक्षण यह है कि भीतर से रोगी गर्मी तथा जलन अनुभव करता है, परन्तु बाहर त्वचा पर वह शीत अनुभव करता है। कैम्फर में हमने देखा था कि भीतर-बाहर दोनों स्थानों से रोगी ठंडक अनुभव करता है परन्तु कपड़ा नहीं ओढ़ सका। जलन कार्बो वेज का व्यापक-लक्षण है – शिराओं (Veins) में जलन, बारीक-रक्त-वाहिनियों (Capillaries) में जलन, सिर में जलन, त्वचा में जलन, शोथ में जलन, सब जगह जलन क्योंकि कार्बो वेज लकड़ी का अंगारा ही तो है। परन्तु इस भीतरी जलन के साथ जीवनी-शक्ति की शिथिलता के कारण हाथ-पैर ठंडे, खुश्क या चिपचिपे, घुटने ठंडे, नाक ठंडी, कान ठंडे, जीभ ठंडी। क्योंकि शिथिलावस्था में हृदय का कार्य भी शिथिल पड़ जाता है इसलिये रक्त-संचार के शिथिल हो जाने से सारा शरीर ठंडा हो जाता है। यह शरीर की पतनावस्था है। इस समय भीतर से गर्मी अनुभव कर रहे, बाहर से ठंडे हो रहे शरीर को ठंडी हवा की जरूरत पड़ा करती है। इस प्रकार की अवस्था प्राय: हैजे आदि सांघातिक रोग में दीख पड़ती है जब यह औषधि लाभ करती है।

 अन्य-लक्षण

*ज्वर की शीतावस्था में प्यास, ऊष्णावस्था में प्यास का अभाव –

 यह एक विचित्रण-लक्षण है क्योंकि शीत में प्यास नहीं होनी चाहिये, गर्मी की हालत में प्यास होनी चाहिये। सर्दी में प्यास और गर्मी में प्यास का न होना किसी प्रकार समझ में नहीं आ सकता, परन्तु ऐसे विलक्षण-लक्षण कई औषधियों में दिखाई पड़ते है। जब ऐसा कोई विलक्षण लक्षण दीखे, तब वह चिकित्सा के लिये बहुत अधिक महत्व का होता है क्योंकि वह लक्षण रोग का न होकर रोगी का होता है, उसके समूचे अस्तित्व का होता है। होम्योपैथी का काम रोग का नहीं रोगी का इलाज करना है, रोगी ठीक हो गया तो रोग अपने-आप चला जाता है।

* तपेदिक की अन्तिम अवस्था –
 
तपेदिक की अन्तिम अवस्था में जब रोगी सूक कर कांटा हो जाता है, खांसी से परेशान रहता है, रात को पसीने से तर हो जाता है, साधारण खाना खाने पर भी पतले दस्त आते हैं, तब इस औषधि से रोगी को कुछ बल मिलता है, और रोग आगे बढ़ने के स्थान में टिक जाता है।

*वृद्धावस्था की कमजोरी – 

युवकों को जब वृद्धावस्था की लक्षण सताने लगते हैं या वृद्ध व्यक्ति जब कमजोर होने लगते हैं, हाथ-पैर ठंडे रहते हैं, नसें फूलने लगती हैं, तब यह लाभप्रद है। रोगी वृद्ध हो या युवा, जब उसके चेहरे की चमक चली जाती है, जब वह काम करने की जगह लेटे रहना चाहता है, अकेला पड़े रहना पसन्द करता है, दिन के काम से इतना थक जाता है कि किसी प्रकार का शारीरिक या मानसिक श्रम उसे भारी लगता है, तब इस औषधि से लाभ होता है।
शक्ति तथा प्रकृति – यह गहरी तथा दीर्घकालिक प्रभाव करने वाली औषधि है।
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गिलोय के जबर्दस्त फायदे

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छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

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थायरायड समस्या का जड़ से इलाज

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दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

तुलसी है कई रोगों मे उपयोगी औषधि