17.9.16

पैरों में होने वाले दर्द के घरेलू उपचार


पैरों में होने वाले दर्द का कारण और आसान उपचार

हमें अक्‍सर पैरों में दर्द होने लगता है। पैरों के दर्द की कई वजहें हो सकती हैं, मसलन मांसपेशियों में सिकुड़न, मसल्स की थकान, ज्यादा वॉक करना, एक्सरसाइज, स्ट्रेस, ब्लड क्लॉटिंग की वजह से बनी गांठ, घुटनों, हिप्स व पैरों में सही ब्लड सर्कुलेशन न होना। पानी की कमी, सही डाइट ना लेना, खाने में कैल्शियम व पोटेशियम जैसे मिनरल्स और विटामिंस की कमी, अंदर गहरी चोट होना, किसी प्रकार का संक्रमण हो जाना, नाखून का पकना आदि। कई बार शरीर की हड्डियां कमजोर होने से भी पैरों में दर्द की शिकायत हो जाती है।
केमिकल बेस्ड दवाइयां ज्यादा मात्रा में लेना, चोट, कॉलेस्ट्रॉल लेवल कम होना, शरीर व मांसपेशियों का कमजोर पड़ जाना, आर्थराइटिस, डायबिटीज, कमजोरी, मोटापा, हॉमोर्नल प्रॉब्लम्स, नसों में दर्द, स्किन व हड्डियों से संबंधित इंफेक्शन और ट्यूमर से भी पैरों में दर्द की शिकायत रहती है।
*रेग्युलर एक्सरसाइज और योग आपको दिमागी व फिजिकल तौर पर फिट रखता है। यह आपको पैरों में दर्द और सांस की समस्या से भी दूर रखता है।
*कुछ खास तरह की लेग स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज भी फायदेमंद साबित होती है। दरअसल, इससे ब्लड सर्कुलेशन और मस्कुलर कॉन्ट्रेक्शन सही होता है।



*यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप अपने वजन को कंट्रोल में रखें। फिटनेस और सही डाइट को अच्छी तरह फॉलो करें।
* नीम के पत्तो को पानी में उबाले और इस पानी में थोड़ी फिटकरी भी मिक्स कर ले, जितना गर्म सह सको इस पानी में अपने पैरो को 10 से 15 मिनट तक रखे।
* पानी पीना बहुत जरूरी है। यह मसल्स की सिकुड़न और पैरों के दर्द को कम करता है। जिम या वॉक पर जाने या किसी भी तरह की फिजिकल एक्सरसाइज करने से पहले सही मात्रा में पानी पीएं। यह बॉडी को पूरी तरह हाइड्रेट रखता है।
* जितना हो सके, उतना फ्रूट जूस पीएं। बैलेंस्ड न्यूट्रिशियस डाइट लें। इसमें हरी सब्जियां, गाजर, केले, नट्स, अंकुरित मूंग, सेब, खट्टे फल, संतरा और अंगूर जैसे फलों को शामिल करें।
*दूध से बने प्रॉडक्ट्स ज्यादा लें। चीज, दूध, सोयाबीन, सलाद वगैरह से आपको पूरी मात्रा में विटामिंस मिलेंगे। अपने खाने में ऐसी चीजों की मात्रा बढ़ा दें जिनमें कैल्शियम और पोटैशियम ज्यादा हो।
सामान्य पैरों के दर्द को दूर करने के उपाय:
 *गर्म पानी में ऑयल की बूंद डालकर सेंक लें। पैरों को पैडीक्‍योर करें और फिर क्रीम लगाकर रिलेक्‍स करें।
कई बार पैरों में ब्‍लड सर्कुलेशन सही ढंग से न होने की वजह से भी पैरों में दर्द होने लगता है। इसलिए पैरों की *हल्‍की मसाज दें, इससे भी दर्द चला जाता है।
* फुट मसाज: पैरों के दर्द को दूर करने में फुट मसाज बहुत कारगर होती है। टेनिस बॉल या रोलिंग पिन से आप फुट मसाज कर सकते हैं। इससे काफी राहत मिलती है।
* लैवेंडर ऑयल को दो चम्‍मच लें, इसमें ऑलिव ऑयल मिक्‍स करें और पैरों पर लगाएं। सर्कुलर मोशन में मसाज करें। आराम मिलेगा।
*. लौंग के तेल को तिल के तेल के साथ मिलाकर पैरों में लगाएं। इससे पैरों की खुजली दूर होगी।
*एक्‍युप्रेशर वाली चप्‍पलें पहनें।
*ठंडे पानी से अपने पैरों को धो लें। चाहें तो 15 मिनट तक भिगोकर भी रख सकते हैं।
* ठंडे पानी से पैरों को धुलने के बाद गर्म पानी से पैरों को सेंक दें। पानी हल्‍का गुनगुना होना चाहिए।
* अगर आपको ऐसा लगता है कि आपके पैर में किसी प्रकार का संक्रमण है तो आप गुनगुने पानी में नमक डालकर पैरों की सिकाई करें। इससे पैरों में होने वाले बैक्‍टीरिया मर जाते हैं।. पिपरमेंट ऑयल या रोजमेरी ऑयल से पैरों की मालिश करें। वैसे लैवेंडर ऑयल भी मददगार होता है।

विशिष्ट परामर्श-  


संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है|   बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े  अस्पताल   मे  महंगे इलाज के  बावजूद   निराश रोगी   इस  औषधि से लाभान्वित हुए हैं|औषधि  के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 







*हर दिन साफ मोजे पहनें।
*पैरों को नियमित रूप से पैडीक्‍योर करवाएं।
*पैरों को धोने के लिए एंटी-बैक्‍टीरियल प्रोडक्‍ट का इस्‍तेमाल करें।
*जोड़ो और हड्डियों में होने वाले दर्द के कुछ घरेलु आयुर्वेदिक उपचार।
*विजयसार का चूर्ण :- विजयसार का चूर्ण एक छोटा चम्मच एक गिलास पानी में भिगोये और 15 घंटे के बाद इसको अच्छी तरह निचोड़ छान कर इसको घूँट घूँट कर पी लीजिये।
*अगर आपको पत्थरी (स्टोन) की समस्या नहीं है तो आप इस पानी में गेंहू के दाने के सामान चुना (जो पान में लगते हैं, जो लोग जर्दे में मिलते हैं) मिलाये। और इसको पिए।
*अरण्डी के तैल से मालिश करने से भी दर्द में फायदा होता हैं।
*देसी घी के साथ गिलोय का रस लेने से भी इसमें बहुत फायदा होता हैं।
*गर्मियों में एक चम्मच अलसी के बीज नित्य खाए और सर्दियों में ३ चम्मच खाए।
     
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7.9.16

सायनस ,नाक की हड्डी बढ़ने के उपचार // Cyanosis, nasal bone treatment




आजकल की अनियमित जीवन शैली में लोग अपनी सेहत का सही प्रकार से ख्याल नहीं रख पाते. जिसे कारण उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. साइनस नाक में होने वाला एक रोग है. आयुर्वेद में इसे प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है. साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व सांस वाली हवा की नमी को युक्त करते हैं.
साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है. जब किसी व्यक्ति को साइनस का संक्रमण हो जाता है तो इसके कारण व्यक्ति के सिर में भी अत्यधिक दर्द होने लगता है. नाक का रोग होने के कारण व्यक्ति को सांस लेने में रुकावट, हड्डी का बढ़ना, तिरछा होना, साइनस भरना तथा एलर्जी जैसी समस्याएं होने लगती हैं. इस समस्या का सही समय पर उपचार ना करने के कारण अस्थमा और दमा जैसे कई गंभीर रोग हो सकते हैं
साइनस के लक्षण ( Symptoms of Sinus ) :
जब कभी साइनस संक्रमित होता है तो इसके लक्षणों को आँखों और माथों पर साफ़ तौर से महसूस किया जा सकता है.
· सिर दर्द ( Headache ) : इस दर्द में अगर आप लेटना भी चाहो तो आपको तेज सिरदर्द होने लगता है.
· पलकों के ऊपर दर्द ( Pain over Eyes ) : आपको ऐसा महसूस हो रहा होता है कि आपकी आँखें अपने आप बंद हो रही है, आँखों के ऊपर इतना दर्द होता है कि आप अपनी उँगलियों से अपनी आँखों को खोलने की कोशिश करते हो.
· आधासीसी ( Migraine ) : अगर ये अपने अगले चरण में चला जाएँ तो आपको आधासीसी का दर्द आरम्भ हो जाता है अर्थात आपको आधे सिर में दर्द रहने लगता है.
· नाक बंद होना ( Nasal Congestion ) : इसे आप साइनस का प्रमुख लक्षण मान सकते है क्योकि साइनस सीधे रूप से नाक को ही प्रभावित करता है और उसे बंद करके रोगी की हालत खराब करता है.
· नाक से पानी गिरना ( Water from Nose ) : क्योकि नाक में काफ जम जाता है तो नाक से पानी आना भी आरम्भ हो जाता है.
*अकसर कुछ लोगों को साँस लेने में तकलीफ होती है, उन्हें नाक की हड्डी बढ़ी हुई महसूस होती है, नाक में कुछ जमा हुआ सा महसूस होता है। और जब वे नाक में जमा मैल निकालने की कोशिश करते हैं तो उनकी नाक से खून भी निकलने लगता है।


*नाक विशेषज्ञों का कहना है कि एक बार नाक की हड्डी बन जाने के बाद वह कभी भी किसी दिशा में नहीं बढ़ती। जो लोग यह समझते हैं कि हड्डी बढ़ गई है तो उसके कई कारण हैं।
अगर बचपन में कभी हड्डी पर चोट लग गई हो, दब गई हो या दबाव से अपने स्थान से खिसक जाए तो इन दशाओं में नाक की मध्य हड्डी एक तरफ झुक जाती है।
*सिकाई ( Give Warmth ) :
साइनस में सिकाई बहुत कारगर होती है तो आप भी 2 गिलास पानी को गर्म करके उसे किसी रबड़ या प्लास्टिक की बोतल में डाल लें और उससे अपने चेहरे, आँखों और सिर की सिकाई करें. आप इस बोतल को कुछ देर गले पर भी अवश्य रखें ताकि आपको मलगम में राहत मिल सके.
·* सहजन ( Drumstick ) :
अगर साइनस बहुत अधिक परेशान करने लगा है तो आप सहजन की फलियों का सूप निकालें और उसमें अदरक, काली मिर्च, प्याज और लहसुन डालकर एक काढा तैयार करें. इस तरह आपको रोजाना 1 कप काढा बनाना है और उसे गरमा गर्म पीना है. 
· *प्याज ( Onion ) : वहीँ अगर आपकी नाक से अधिक पानी बह रहा है तो आप अपनी नाक में थोडा प्याज का रस डाल लें. इससे नाक से पानी बहना बंद होता है और आपको साइनस से होने वाले सिर दर्द से भी आराम मिलता है.
· *सब्जियां ( Vegetables ) :
साइनस होने पर आपको अपने आहार पर ख़ास ध्यान देना होता है क्योकि आहार से आपको ताकत और वे पौषक तत्व मिलते है जो बीमारियों से लड़ने में सक्षम होते है. इसलिए आप रोजाना 300 मिली गाजर, 200 ग्राम पालक और 100 –100 ग्राम ककड़ी व चुकंदर का रस निकालकार पियें.
·* गर्म पेय ( Hot Drinks ) :
साइनस होने पर आप गर्म पेय जैसे कि सूप इत्यादि अवश्य पियें क्योकि इन्हें साइनस में बहुत कारगर माना जाता है. ये छाती में और नाक में जमे हुए कफ़ को बाहर निकालने में सहायक होता है और बंद नाक को खोलता है. अगर आप चिकन का सूप पिए तो आपके शरीर को अंदर से गर्मी मिलती है और आपको जल्दी आराम मिलता है.
*नाक की हड्डी टूटने, दबने या कभी-कभी पूरी तरह अपने स्थान से खिसकने के कारण भी नाक का आकार ही टेढ़ा दिखाई देने लगता है।
*जब बच्चा युवावस्था में आता है तो ऐसी दशा में टूटी हुई नाक आधी लंबाई में तो बढ़ती ही है, इसके साथ ही टूटा हिस्सा भी अलग दिशा में बढ़ने लगता है, जो नसिका को छोटा कर देता है तथा नाक का छेद छोटा होने से साँस और जुकाम रहने की तकलीफें प्रारंभ हो जाती हैं।
*तीसरी दशा में नाक की हड्डी टूटती नहीं, बल्कि दबकर मुड़ जाती है और 'एस' या 'सी' के आकार में आकर नाक के किसी हिस्से के एक छिद्र को छोटा कर देती है। इससे नाक के एक छिद्र से तो साँस भी नहीं ली जा सकती और दूसरे छिद्र में ज्यादा खुला स्थान होने के कारण धूल के कण भी साँस के साथ भीतर जाने का डर बना रहता है।
शुद्धता ( Purity ) : आपके लिए शुद्धता बहुत जरूरी है इसलिए आप शुद्ध भोजन खाएं, अगर भोजन ज्यादा शुद्ध ना भी हो तो शुद्ध जल अवश्य पिए और आपके लिए सर्वाधिक जरूरी है शुद्ध वायु का होना. क्योकि ये नाक संबंधी रोग है तो आपके लिए वायु बहुत मायने रखती है. किसी भी तरह की एलर्जी आपके रोग को बहुत बढ़ा सकती है और आपके आँख, नाक, मस्तिष्क, कान या फेफड़ें इत्यादि किसी को भी नुकसान पहुंचा सकती है.
चोट या दबाव के अलावा कभी-कभी गर्भ में बच्चे की नाक पर दबाव पड़ जाने से नाक की हड्डी मुड़-तुड़ जाती है। कई बार फारसेप डिलीवरी में भी नाक पर चोट लग जाती है, इसलिए प्रसव के दौरान 10-15 मिनट का सामान्य समय पार हो जाने पर अन्य विकारों के साथ यह विकार आना भी स्वाभाविक है
हल्का बुखार ( Mild Fever ) : जब व्यक्ति को सिर दर्द,बंद नाक और आंखों में भारीपन रहने लगता है तो उसके शरीर में निरंतर ताप बना रहता है जिसे बुखार का नाम दे दिया जाता है.
·

सुजन
( Swelling ) : रोगी इस बिमारी से इतना परेशान और तनाव ग्रस्त हो जाता है कि उसके मन में निराशा छा जाती है जो सुजन के रूप में उसके चेहरे से साफ़ दिखाई देने लगती है. सुजन का एक कारण झिल्ली में सुजन भी होता है.
साइनस के रोग की एक खास बात ये भी है कि इसके अगले चरण इससे भी भयंकर और गंभीर रोग लाते है जैसेकि अस्थमा, आधासीसी, सिर में नासूर इत्यादि. वैसे तो साइनस में अधिकतर लोग ऑपरेशन का सहारा लेते है किन्तु इसमें बहुत खर्चा होता है और इसके सफल होने की संभावना भी बहुत कम होती है इसलिए इसके इलाज के लिए आयुर्वेद को ही सर्वोत्तम माना जाता है,आज हम आपको कुछ ऐसे ही घरेलू आयुर्वेदिक उपाय बताने जा रहे है जिनको अपनाकर आप साइनस के रोग को तुरंत दूर कर सकते हो.
नमक और बेकिंग सोडा का उपयोग
साइनस की समस्या होने पर करीब आधा लीटर पानी में एक चम्‍मच नमक और बेकिंग सोडा मिला लीजिए. अब इस पानी के मिश्रण से नाक को धोए. इससे साइनस की समस्या को आसानी से कम किया जा सकता है.
साइनस के घरेलू आयुर्वेदिक उपाय ( Home Aayurvedic Tips to Cure Sinus ) :
· मेथीदाना ( Fenugreek Seeds ) : साइनस को भागने के लिए आप 1 कप पानी में 1 चम्मच मेथी के दाने डालकर उन्हें अच्छी तरह से उबाल लें. अब आप पानी को ठंडा होने के लिए रख दें और छानकर उसे पी जाएँ. कुछ दिन नियमित रूप से उपाय को अपनाएँ आपको जरुर आराम मिलेगा.
साइनस की समस्या को दूर करने के लिए योग


सूर्य नमस्‍कार

सूर्य नमस्‍कार से अधिकतर रोगों को दूर किया जा सकता है. इससे साइनस की समस्या से भी राहत मिलती है. सूर्य नमस्‍कार को करने के लिए सुबह को उगते हुए सूरज की तरफ मुंह करके करना चाहिए. इससे शरीर में ऊर्जा उतपन्न होती है साथ ही साइनस की समस्या को दूर करने में मदद मिलती है.



कपालभाति
कपालभाति में श्वास को शक्ति पूर्वक बाहर छोड़ने में ही पूरा ध्यान दिया जाता है. इसमें श्वास को भरने के लिए प्रयत्न नहीं करते क्योकि सहजरूप से जितना श्वास अन्दर चला जाता है. इस प्राणायाम को 5 मिनिट तक अवश्य ही करना चाहिए. प्रणायाम करते समय जब-जब थकान अनुभव हो तब-तब बीच में विश्राम कर लें. प्रारम्भ में पेट या कमर में दर्द हो सकता है. वो धीरे धीरे कम हों जायेगा.
अनुलोम-विलोम
अनुलोम-विलोम को करने से सांस से सम्बंधित बीमारी ठीक करने में मदद मिलती है. साइनस होने पर आप सबसे पहले आप पद्मासन या सुखासन की स्थिति में बैठ जाए. फिर अपने दाएं हाथ के अंगूठे से नाक के दाएं छिद्र को बंद कर लें और बाएं छिद्र से भीतर की ओर सांस खीचें. अब बाएं छिद्र को अंगूठे के बगल वाली दो अंगुलियों से बंद करें. दाएं छिद्र से अंगूठा हटा दें और सांस छोड़ें. अब इसी प्रक्रिया को बाएं छिद्र के साथ दोहराएं. अनुलोम-विलोम को रोजाना करीब 10 मिनट तक करें. इससे साइनस की समस्या से राहत मिलेगी.
अधिक से अधिक मात्रा में पानी पिए. पानी हमारे शरीर के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है. स्वस्थ शरीर के लिए शरीर में उचित मात्रा में पानी होना अनिवार्य है.
प्याज से ईलाज 
प्याज हमारे शरीर को स्वस्थ रखने में काफी सहायक होता है. यह साइनस की समस्या को आसानी से दूर करता है. रोजाना अपने आहार में प्याज को शामिल करें. इससे साइनस की समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है.
भस्त्रिका अभ्यास विधि
भस्त्रिका आसान को करने के लिए सबसे पहले पद्मासन, सिद्धासन, सुकासन या कुर्सी पर रीढ़, गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं. अब अपने हाथो को घुटनों पर रख कर आंखों को ढीला बन्द कर लीजिए. इसके बाद अपनी नाक से हल्के झटके से सांस अन्दर और बाहर कीजिए. पहले इस क्रिया को धीरे-धीरे करें फिर इसकी क्रिया को बढ़ाते जाए. इस प्राणायाम को 3 से लेकर 5 मिनट तक रोज करे.
गाजर के रस का प्रयोग
गाजर के रस में अनेक पोष्टिक गुण पाये जाते हैं. जिनके द्वारा साइनस की समस्या को आसानी से दूर किया जा सकता है. कुछ समय तक गाजर के रस का सेवन करने से साइनस की समस्या को दूर किया जा सकता है.
गाजर, चुकंदर, खीरे या पालक का रस
एक ग्लास गाजर का रस में चुकंदर, खीरे या पालक के रस मिला कर इसका सेवन करें. कुछ समस्य तक इस मिश्रण के सेवन से साइनस के लक्षणो के उपचार में मदद मिलेगी.
लहसुन का प्रयोग
लहसुन जैसे तीखे खाद्य पदार्थों से साइनस की समस्या से आसानी से राहत मिलती है. इन खाद्य पदार्थों की की कुछ मात्रा ले सकते हैं और उन्हें धीरे – धीरे बढ़ा सकते हैं. अपने नियमित भोजन में लहसुन को शामिल करे. इससे साइनस रोग को दूर किया जा सकता है.







21.8.16

ब्राम्ही के फायदे ,उपयोग ,उपचार ,Health benefits of hydrocotyle asiatica


 ब्राह्मी (वानस्पतिक नाम :Bacapa monnieri) का एक औषधीय पौधा है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियाँ मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। यह पौधा नम स्‍थानों में पाया जाता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है। इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्‍दी में सफेद चमनी, संस्‍कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आदि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है।

Brahmi का पौधा हिमालय की तराई में हरिद्वार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग में अधिक मात्रा में पाया जाता है। जो बहुत उत्तम किस्म का होता है। ब्राह्मी पौधे का तना जमीन पर फैलता जाता है। जिसकी गांठों से जड़, पत्तियां, फूल और बाद में फल भी लगते हैं। इसकी पत्तियां स्वाद में कड़वी और काले चिन्हों से मिली हुई होती है। ब्राह्मी के फूल छोटे, सफेद, नीले और गुलाबी रंग के होते हैं। ब्राह्मी के फलों का आकार गोल लम्बाई लिए हुए तथा आगे से नुकीलेदार होता है जिसमें से पीले और छोटे बीज निकलते हैं। ब्राह्मी की जड़ें छोटी और धागे की तरह पतली होती है। इसमें गर्मी के मौसम में फूल लगते हैं। जहां नदी, नाले और नहरों की बहुलता होगी, वहां इसे अध्कि मात्रा में उपलब्ध् किया जा सकता है। जडी-बूटी की पहचान न होने के कारण लोग कभी-कभी मण्डूकपर्णी को भी ब्राह्मी समझ बैठते है। जबकि उसके गुण धर्म बिल्कुल पृथक है। इसकी पत्तियाँ एक इंच अथवा इंच के चौथाई भाग तक चौडी गोलाकार होती है। फलों का रंग नीला अथवा हल्का गुलाबी होता है। पफलों की आकृति गोल और अग्रभाग नुकीला रहता है। गर्मी के दिनों में फल और बाद में पफलित होती है। औषध्यि दृष्टि से पूरा पंचाग ;जड, तना, पत्ती, फल और पफलद्ध ही प्रयुक्त होता है।

Brahmi के पत्ते पतले, पुष्प सफेद अथवा नीले और स्वाद में कडवापन होता है। जबकि मण्डूकपर्णी के फूल लाल तीखा स्वाद होता है और सूखने के बाद उसकी औषधीय विशेषताएँ प्रायः नष्ट हो जाती है। ब्राह्मी को सुखाकर भी पाउडर के रूप में उतना ही उपयोगी माना जाता रहा है। एक वर्ष की अवधि तक इसका पूर्ण प्रयोग किया जा सकता है।
यह पूर्ण रूपेण औषधीय पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है। कब्‍ज को दूर करती है। इसके पत्‍ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर करती है। ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है।


*मिर्गी (अपस्मार) होने पर :-

14 से 28 मिलीलीटर ब्राह्मी की जड़ का रस या 3 से 6ग्राम चूर्ण को दिन में3 बार 100 से 250 मिलीलीटर दूध के साथ लेने से मिर्गी का रोग ठीक हो जाता है।


*धातु क्षय (वीर्य का नष्ट होना) :-

15 ब्राह्मी के पत्तों को दिन में 3 बार सेवन करने से वीर्य के रोग का नष्ट होना कम हो जाता है।


*आंखों की बीमारी में :-

3 से 6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों को घी में भूनकर सेंधानमक के साथ दिन में 3 बार लेने से आंखों के रोग में लाभ होता है।


*आंखों का कमजोर होना :-

3 से 6 ग्राम ब्राह्मी के पत्तों का चूर्ण भोजन के साथ लेने से आंखों की कमजोरी दूर हो जाती है।


*स्मरण शक्ति वर्द्धक : 

 10 मिलीलीटर सूखी ब्राह्मी का रस, 1 बादाम की गिरी, 3 ग्राम कालीमिर्च को पानी से पीसकर 3-3 ग्राम की टिकिया बना लें। इस टिकिया को रोजाना सुबह और शाम दूध के साथ रोगी को देने से दिमाग को ताकत मिलती है।
*3 ग्राम ब्राह्मी, 3 ग्राम शंखपुष्पी, 6 ग्राम बादाम गिरी, 3 ग्राम छोटी इलायची के बीज को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को थोड़े-से पानी में पीसकर, छानकर मिश्री मिलाकर पीने से खांसी, पित्त बुखार और पुराने पागलपन में लाभ मिलता है।



*ब्राह्मी के ताजे रस और बराबर घी को मिलाकर शुद्ध घी में 5 ग्राम की खुराक में सेवन करने से दिमाग को ताकत प्रदान होती है।”


*नींद को कम करने के लिए :-

*ब्राह्मी के 3 ग्राम चूर्ण को गाय के आधा किलो कच्चे दूध में घोंटकर छान लें। इसे 1 सप्ताह तक सेवन करने से लाभ पहुंचता है।
*5-10 मिलीलीटर ताजी ब्राह्मी के रस को 100-150 ग्राम कच्चे दूध में मिलाकर पीने से लाभ होता है।”


*पागलपन (उन्माद) में :-

*6 मिलीलीटर ब्राह्मी का रस, 2 ग्राम कूठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद को मिलाकर दिन में 3 बार पीने से पुराना उन्माद कम हो जाता है। 3 ग्राम ब्राह्मी, 2 पीस कालीमिर्च, 3 ग्राम बादाम की गिरी, 3-3 ग्राम मगज के बीज तथा सफेद मिश्री को25 गाम पानी में घोंटकर छान लें, इसे सुबह और शाम रोगी को पिलाने से पागलपन दूर हो जाता है।
*3 ग्राम ब्राह्मी के थोड़े से दाने कालीमिर्च के पानी के साथ पीसकर छान लें। इसे दिन में3 से 4 बार पिलाने से भूलने की बीमारी से छुटकारा मिलता है।
*ब्राह्मी के रस में कूठ के चूर्ण और शहद को मिलाकर चाटने से पागलपन का रोग ठीक हो जाता है।
*ब्राह्मी की पत्तियों का रस तथा बालवच, कूठ, शंखपुष्पी का मिश्रण बनाकर गाय के पुराने घी के साथ सेवन करने से पागलपन का रोग दूर हो जाता है।”


*बालों के लिए :

100 ग्राम ब्राह्मी की जड़, 100 ग्राम मुनक्का और 50 ग्राम शंखपुष्पी को चौगुने पानी में मिलाकर रस निकाल लें। इस रस का सेवन करने से बालों के सभी रोग दूर हो जाते हैं।


*पेशाब करने में कष्ट होना (मूत्रकृच्छ) :-

ब्राह्मी के 2 चम्मच रस में, 1 चम्मच मिश्री मिलाकर सेवन करने से पेशाब करने की रुकावट दूर हो जाती है।
जलन :-
5 ग्राम ब्राह्मी के साथ धनिया मिलाकर रात को भिगो दें। इसे सुबह पीसकर,छानकर मिश्री के साथ मिलाकर पीने से जलन शांत हो जाती है।


*उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) :-

ब्राह्मी के पत्तों का रस एक चम्मच की मात्रा में आधे चम्म्च शहद के साथ लेने से उच्च रक्तचाप ठीक हो जाता है।


*कब्ज (Constipation):- 

ब्राह्मी में पाये जाने वाले औषधीय गुण कब्ज की परेशानी को दूर करने में मदद करते हैं। नियमित रूप से ब्राह्मी का सेवन करने से पुरानी से पुरानी कब्ज की परेशानी दूर हो जाती है। इसके अलावा ब्राह्मी में कई रक्तशोधक गुण भी होते हैं, जो पेट से संबंधित समस्या से बचाव करते हैं।


*अनिद्रा (Insomnia):-

जो व्यक्ति को अनिद्रा की समस्या से परेशान हैं, उन्हें ब्राह्मी इस्तेमाल करना चाहिए। रोजाना सोने से एक घंटा पहले एक गिलास दूध में एक चम्मच ब्राह्मी चूर्ण मिलाकर पीने से व्यक्ति तनावमुक्त होता है और नींद अच्छी आती है।
*इसके सेवन से शरीर की शक्ति का क्षरण तो रूकता ही है पर मस्तिष्क की क्षमता में अप्रत्याशित अभिवृद्धि होने लगती है। Brahmi के घटक स्नायुकोषों का परिपोषण तो करते ही है साथ ही स्फूर्ति प्रदान करने का प्रयोग भी पूरा होता है। विद्युतीय स्फुरणों से स्नायु कोषों की उत्तेजना कम होती और मिर्गी रोग स्वतः ही भागने लगता है।बोलने में हकलाने और अध्कि बोलने से स्वर भंग होने में ब्राह्मी का सेवन ही लाभकारी सिद्ध होता है।


*उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure):-

ब्राह्मी में मौजूद औषधीय गुण रक्तचाप को संतुलित रखते हैं। यदि कोई व्यक्ति उच्च रक्तचाप की वजह से परेशान है तो उसे ब्राह्मी की ताजी पत्तियों का रस शहद में मिलाकर पीना चाहिए। ऐसा करने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है।


*निद्राचारित या नींद में चलना :-

ब्राह्मी, बच और शंखपुष्पी इनको बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी के रस को 12 घंटे छाया में सुखाकर और 12 घंटे धूप में रखकर पूरी तरह से सुखाकर इसका चूर्ण तैयार कर लें। लगभग 480 मिलीग्राम से 960 मिलीग्राम सुबह और शाम को समान मात्रा में घी और शहद के साथ मिलाकर नींद में चलने वाले रोगी को देने से उसका स्नायु तंत्र मजबूत हो जाता है। इसका सेवन करने से नींद में चलने का रोग दूर हो जाता है।


*वीर्य रोग : -

ब्रह्मी, शंखपुष्पी, खरैटी, ब्रह्मदंडी तथा कालीमिर्च को पीसकर खाने से वीर्य रोग दूर होकर शुद्ध होता है।


*अवसाद उदासीनता सुस्ती :-

लगभग 10 ग्राम ब्राह्मी (जलनीम) का रस या लगभग480 से 960मिलीग्राम चूर्ण को लेने से उदासीनता, अवसाद या सुस्ती दूर हो जाती है।


*बुद्धिवैकल्प, बुद्धि का विकास कम होना : -

ब्राह्मी, घोरबच (बच), शंखपुष्पी को बराबर मात्रा में लेकर ब्राह्मी रस में तीन भावनायें (उबाल) देकर छाया में सुखाकर चूर्ण बना लें और रोजाना 1 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम को असमान मात्रा में घी और शहदके साथ मिलाकर काफी दिनों तक चटाने से बुद्धि का विकास हो जाता है।


*मूत्ररोग :-

4 मिलीलीटर ब्राह्मी के रस को शहद के साथ चाटने से मूत्ररोग में लाभ होता है।


*दिल की धड़कन :-

20 मिलीलीटर ताजी ब्राह्मी का रस और 5 ग्राम शहद को मिलाकर रोजाना सेवन करने से दिल की कमजोरी दूर होकर तेज धड़कन भी सामान्य हो जाती है।


*गुल्यवायु हिस्टीरिया :-

10-10 ग्राम ब्राह्मी और वचा को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सुबह और शाम 3-3 ग्राम की मात्रा में त्रिफला के जल से खाने पर हिस्टीरिया के रोग में बहुत लाभ होता है।


*खांसी और बुखार  -

ब्राह्मी, शंखपुष्पी, बादाम, छोटी या सफ़ेद इलायची चूर्ण एक समान मात्रा में लेकर पानी में घोलकर छान लें। इस पानी में मिश्री मिलाकर रोजाना सुबह- शाम आधा- आधा गिलास पीएं। इससे खांसी, जुकाम, बुखार आदि से राहत मिलती है।
*महर्षि चरक ने Brahmi को मानसिक दुर्बलता के कारण उत्पन्न रोगों की रामबाण औषधि घोषित किया है। मनोबल की कमी से ही तो मिरगी रोग की उत्पत्ति होती है। सुश्रुत संहिता में भी कुछ इसी तरह के तथ्यों का उल्लेख है। मानसिक विकृति के कारण ही तो नाडी दौर्बल्य, उन्माद, अप्रसार एवं स्मरण शक्ति के लोप होने लगता है। इसलिए तो ब्राह्मी को एक प्रकार का नर्वटॉनिक भी माना गया है। Brahmi के सूखे चूर्ण को मानसिक तनाव और घबराहट मिटती और अवसाद की प्रवृत्ति समाप्त होती है।



बालों की समस्या (Hair Problem):- यदि आप बालों से जुड़ी किसी समस्या से परेशान है तो पंचांग चूर्ण (ब्राह्मी के पांच भागों का चूर्ण) का एक चम्मच की मात्रा में रोजाना सेवन करने से बालों का झड़ना, रूसी, कमजोर बाल आदि परेशानी दूर होती हैं।
मिर्गी (अपस्मार) : -
*ब्राह्मी का रस शहद के साथ मिलाकर खाने से मिर्गी का रोग ठीक हो जाता है।
*मिर्गी के रोग में ब्राह्मी (जलनीम) से निकाले गये घी का सेवन करने से लाभ होता है।
ब्राह्मी, कोहली, शंखपुष्पी, सांठी, तुलसी और शहद को मिलाकर मिर्गी के रोगी को पिलाने से मिर्गी से छुटकारा मिल जाता है।”
ब्राह्मी का तीन ग्राम चूर्ण गौ दुग्ध् के साथ प्रतिदिन लेने से बीस-पच्चीस पत्तों को गाय के दूध् में उबालकर हर रोज लेने से अनिद्रा रोग सदा के लिए भाग खडा होता है।
*मिरगी के दौरों में आध चम्मच ब्राह्मी स्वरस मधु के साथ लेने से रोग से राहत मिलती है। स्वरस के स्थान पर चूर्ण का भी सेवन किया जा सकता है।
कभी-कभी शरीर कुष्ट तथा अन्यान्य प्रकार के क्षय रोगों का शिकार बन दुर्बलता के शिकंजे में कसता चला जाता है। ऐसी स्थिति में तेल की तरह ब्राह्मी का लेपन भी कापफी आराम दायक होता है।
*खाँसी तथा क्षय रोग में भी ब्राह्मी का लेपन से रोगोपचार की प्रक्रिया सफल होती है।
आंत भारी तो मॉथ भारी यानी पेट की कब्ज से रक्त विकार उत्पन्न होते और हृदयघात जैसी दुर्बलता सामने आती है।
*ब्राह्मी स्वरस में काली मिर्च मिलाकर खाने से पाचन संस्थान मजबूत होता तथा *विभिन्न प्रकार के विष और ज्वर में शीघ्र लाभ पहुँचता है।
प्रारम्भ में शरीर और मन को शक्ति और स्फर्ति प्रदान करने वाला यह टॉनिक अब आत्मबल बढाने में भी बडा सहायक सिद्व हो रहा है।
*स्मरण शक्ति के कमजोर तथा मंदबुद्वि होने पर इसका स्वरस और चूर्ण जल अथवा मिश्री के साथ लेने का विधन है।
*इसकी मालिश करने से भी मस्तिष्क की खुश्की मिटती और मेध संवर्धन का सदुद्देश्य पूरा होता है।
*मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए तो उसका प्रयोग ठण्डाई में भी करते है।
*हृदय की समस्या (Heart Disease):-
ब्राह्मी में ब्राहमीन एल्केलाइड (Brahmin Alkaloid) गुण मौजूद होता है, जो हृदय यानि दिल के लिए फायदेमंद साबित होता है। यदि ब्राह्मी का नियमित रुप से सेवन किया जाए तो सारी उम्र हृदय यानि दिल से जुड़ी बीमारी नहीं हो सकती।
*
मिर्गी के दौरे (Epilepsy Disease):- मिर्गी की बीमारी होने पर रोगी को ब्राह्मी की जड़ का रस या या ब्राह्मी चूर्ण का सेवन दिन में 3 दूध के साथ करवाएं। ऐसा करने से रोगी को लाभ मिलेगा और मिर्गी के दौरे आना बंद हो जाएंगे।
खसरा : -
ब्राह्मी के रस में शहद मिलाकर पिलाने से खसरा की बीमारी समाप्त होती है।
*बलगम :-
बालकों के सांस और बलगम में ब्राह्मी को थोड़ा-सा गर्म करके छाती पर लेप करने से लाभ होता है।
*पीनस :-
मण्डूकपर्णी की जड़ को नाक से लेने से पीनस (पुराना जुकाम) के रोग में लाभ होता है।
*दांतों के दर्द: -
दांतों में तेज दर्द होने पर एक कप पानी को हल्का गर्म करें। फिर उस पानी में 1 चम्मच ब्राह्मी डालकर रोजाना दो बार कुल्ला करें। इससे दांतों के दर्द में आराम मिलता है।
*हकलाना, तुतलाना :
-ब्राह्मी घी 6 से 10 ग्राम रोजाना सुबह-शाम मिश्री के साथ खाने से तुतलाना (हकलाना) ठीक हो जाता है।
*कमजोरी :-
40 मिलीलीटर केवांच की जड़ का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से स्नायु की कमजोरी मिट जाती है। इसके जड़ का रस अगर 10-20 मिलीलीटर सुबह-शाम लिया जाए तो भी कमजोरी में लाभ होता है।
    


*एड्स : -ब्राह्मी नामक बूटी का रस 5 से 10 मिलीलीटर अथवा चूर्ण 2 ग्राम से 5 ग्राम सुबह शाम देने से एड्स में लाभ होता है क्योंकि यह गांठों को खत्म करता है और शरीर के अंदर गलने को रोकता है। निर्धारित मात्रा से अधिक लेने से चक्कर आदि आ सकतेहैं।
*दांत दर्द (Tooth Ache):-
ब्राह्मी का इस्तेमाल, दांत दर्द जैसी परेशानी में भी किया जाता है। आधा गिलास पानी में आधा चम्मच ब्राह्मी डालकर गर्म करके रख लें। इस पानी से रोजाना दिन में दो बार कुल्ला करें। ऐसा करने से दांतों के दर्द से छुटकारा मिलता है।
*एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant):-
ब्राह्मी का उपयोग बौद्धिक विकास बढ़ाने के लिए प्राचीनकाल से किया जा रहा है। ब्राह्मी में कई एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते हैं इसलिए ब्राह्मी रस या इसके 7 पत्तों का रोजाना सेवन करना चाहिए।
*ब्राह्मी क्वाथ को पिलाने के पीछे एक ही उद्देश्य रहा कि आत्मबल अर्थात ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है । हमारी दृष्टि में Brahmi का एक रासायनिक घटक हर्सेपोनिन सीधे पीनियल ग्रन्धि को प्रभावित करके सिरॉटानिन नामक स्नायु रसायन का उत्सर्जन करता है जो साध्ना की सपफलता का रहस्य भी यही है और आत्म बल सम्पन्न सपफल जीवन जीने की रीति-नीति भी। स्मृति, मेध और प्रतिभा के प्रमापन के लिए प्रयोगशाला भी बनाई थी जिसमें साध्ना काल में अनेकानेक तरह के उत्साहवर्धक परिणाम भी मिले।
*एकाग्रता बढ़ाए
(Increase Concentration):- एकाग्रता की कमी के कारण अक्सर बच्चों का ध्यान पढ़ाई से दूर भागता है। ऐसे में दूध के साथ ब्राह्मी चूर्ण का रोजाना सेवन करने से बच्चों में एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है, जिसके फलस्वरूप बच्चों का मन पढ़ाई में लगने लगता है।
*कार्यक्षमता बढ़ाए
(Increase Efficiency):- ब्राह्मी का सबसे ज्यादा प्रभाव मुख्य रूप से मस्तिष्क पर होता है। यह मस्तिष्क के लिए एक चमत्कारी औषधि है, मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है। लगातार काम करने से थकावट हो जाने पर कार्यक्षमता अक्सर कम हो जाती है। इससे बचने के लिए ब्राह्मी रस या ब्राह्मी चूर्ण का सेवन करना चाहिए। ऐसा करने से मानसिक तनाव, थकावट या सुस्ती कम होती है और कार्य क्षमता बढ़ती है।
ब्राह्मी की ताजा अवस्था का प्रयोग तो सर्वोत्तम है। कहीं उपलब्ध नहीं हो तो सुखाकर पाउडर के स्वरूप में भी प्रयोग किया जा सकता है।
मात्रा : 1 से 3 चम्मच ब्राह्मी के पत्तों का रस, ताजी हरी पत्तियां 10 तक सुखाया हुआ बारीक चूर्ण 1 से 2ग्राम तक, पंचांग (फूल, फल, तना, जड़ और पत्ती) चूर्ण 3 से 5 ग्राम तक और जड़ के चूर्ण का सेवन आधे से 2 ग्राम तक करना चाहिए।

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  • 16.7.16

    एलोवेरा के गुण ,लाभ, उपचार:Benefits of Aloe Vera


          हमारे आस पास तमाम ऐसी वनस्पतियां पाई जाती हैं जिनमें औषधीय गुण मिलते हैं। समझ और सजगता का अभाव होने के कारण इनका सही प्रयोग नहीं हो पाता। इन्हीं वस्पतियों में घृतकुमारी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। आयुर्वेद में इसे ग्वारपाठा, घी कुंवारा, स्थूलदला, कुमारी आदि नामों से इसे जाना जाता है। घृतकुमारी के पत्तों का इस्तेमाल यकृत विकार, आमवात, कोष्ठबद्धता, बवासीर, स्त्रियों के अनियमित मासिक चक्र और मोटापा घटाने के साथ ही चर्म रोग में भी लाभकारी होता है। घृतकुमारी सभी स्थानों पर पूरे वर्ष सुगमता से मिलता है। इसके गूदे में लौह, कैल्शियम, पोटैशियम एवं मैग्नीशियम पाया जाता है।एलोवेरा विवेचन निम्न प्रकार है-
    पीलिया रोग
    1. पीलिया रोग से ग्रसित रोगी के लिए एलोवीरा एक रामबाण औषधि है। 15 ग्राम एलोवेरा का रस सुबह शाम पीयें। आपको इस रोग में फायदा मिलेगा। मूत्र संबंधी रोग हो या गुर्दों की समस्या हो तो एलोवेरा आपको फायदा पहुंचाता है। एलोवेरा का गूदा या रस का सेवन करें।

    चेहरा सुंदर और चमकदार
    2. एलोवेरा का गूदा चेहरे पर लगाने से चेहरा सुंदर और चमकदार बन जाता है। पुरूष हो चाहे स्त्री दोनों को एलोवेरा का पेस्ट चेहरे पर लगाना चाहिए। यह पूर्णरूप से प्राकृतिक क्रिम है। यदि सिर में दर्द हो तो आप हल्दी में 10 ग्राम एलोवेरा मिलाकर सिर पर इसका लेप लगाएं एैसा करने से सिर दर्द में राहत मिलती है। और ताजगी का अहसास होता है।

    मोटापा-

    3. एलोवेरा मोटापा कम करने में फायदा करता है। 10 ग्राम एलोवेरा के रस में मेथी के ताजे पत्तों को पीसकर उसे मिलाकर प्रतिदिन सेवन करें या 20 ग्राम एलोवेरा के रस में 4 ग्राम गिलोय का चूर्ण मिलाकर 1 महिने तक सेवन करने से मोटापे से राहत मिलती है।

    प्राकृतिक कंडीशनर-

    4. यह एक तरह का प्राकृतिक कंडीशनर है। एलोवेरा को बालों पर 20 मिनट तक उंगलियों के जरिए बालों पर लगाते रहें। और थोड़ी देर में पानी से बालों को धों लें। यह बालों को सुदंर, घना और आकर्षक बनाता है। चेहरे की झुर्रियों को दूर करने में आप एलोवेरा का गूदा कच्चे दूध के साथ मिलाकर चेहरे पर मलें। यह झुर्रियों को खत्म करके चेहरे कांतिमान बनाता है।

    डायबिटीज की समस्या-

    5. डायबिटीज की समस्या से परेशान हैं तो 10 ग्राम एलोवेरा के रस में 10 ग्राम करेले का रस मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करने से डायबिटीज से मुक्ति मिलती है। 20 ग्राम आंवले के रस में 10 ग्राम एलोवेरा के गूदे को मिलाकर प्रतिदिन सुबह सेवन करें। यह शूगर की बीमारी को दूर करेगा।
    6. आग से शरीर का कोई अंग जल या झुलस गया हो तो आप एलोवेरा का गूदा उस जगह पर लगाएं आपको जलन से राहत मिलेगी और घाव भी जल्दी ठीक होगा।
    7. सर्दी, जुकाम या खांसी होने पर शहद में 5 ग्राम एलोवेरा के ताजे रस में मिलाकर सेवन करें आपको फायदा होगा। शरीर में कैल्शियम की कमी हो तो एलोवेरा के गूदे का सेवन जरूर करें ।

    बवासीर-

    8. बवासीर में यदि खून ज्यादा बहता हो तो एलोवेरा के पत्तों का सेवन 25-25 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम करते रहें। बवासीर के मस्से खत्म करने के लिए एलोवेरा के गूदे में नीम की पत्तियों को जलाकर उसका राख मिला लें और इस पेस्ट को मलद्वार पर बांध लें।
    9. खुजली, मुंहासों और फुंसी होने पर डेली 10 से 15 ग्राम एलोवेरा का रस पीना चाहिए यह खून को शु़द्ध करता है और चेहरे से मुंहासों को भी हटा देता है। दाद होने पर 10 ग्राम अनार के रस में 10 ग्राम एलोवेरा रस मिलाकर दाद वाली जगह पर लगाने से दाद ठीक हो जाते हैं।
    10. पेट संबंधी कोई भी बीमारी हो तो आप 20 ग्राम एलोवेरा के रस में शहद और नींबू मिलाकर उसका सेवन करें। यह पेट की बीमारी को दूर तो करता ही है साथ ही साथ पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है।
    आजकल किडनी रोग की समस्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में एलोवीरा का सेवन करने से किडनी समस्या ठीक हो सकती है। साथ ही साथ एलोवीरा के सेवन से किडनी की संक्रमण समस्या भी दूर हो जाती है।

    उर्जा बढ़ाने के लिए

    एलोवेरा शरीर में उर्जा को बढ़ाता है। यदि आप नियमित एलोवेरा का जूस पीते हैं तो इससे शरीर में मिनरल और विटामिन शरीर को मिलते हैं जिससे शरीर में स्फूर्ति बनी रहती है। एलोवेरा के रस से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।

    दांतों और छालों के लिए एलोवेरा-

    दांतो में कीटाणु लग जाने की वजह से दांत खराब हो जाते हैं। इससे बचने के लिए एलोवेरा का जूस पीएं। यदि मुंह में छाले पड़ गए हों और उनसे खून निकल रहा हो तो आप एलोवेरा जूस से कुल्ला करें।

    कब्ज नाशक है एलोवेरा-


    एलोवेरा कब्ज की समस्या को खत्म करता है। रोज सुबह एक गिलास एलोवेरा जूस का सेवन करने से पुरानी से पुरानी कब्ज पल भर में ठीक हो जाती है।

    एलोवेरा के गुण लाभ-

    * एलोवेरा में 18 धातु, 15 एमिनो एसिड और 12 विटामिन मौजूद होते हैं जो खून की कमी को दूर कर रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं।
    * एलोवेरा के कांटेदार पत्तियों को छीलकर रस निकाला जाता है। 3 से 4 चम्मच रस सुबह खाली पेट लेने से दिन-भर शरीर में चुस्ती व स्फूर्ति बनी रहती है।
    * एलोवेरा का जूस पीने से कब्ज की बीमारी से फायदा मिलता है।
    * एलोवेरा का जूस मेहंदी में मिलाकर बालों में लगाने से बाल चमकदार व स्वस्थ होते हैं।
    कब्ज की बीमारी 

    * एलोवेरा का जूस पीने से शरीर में शुगर का स्तर उचित रूप से बना रहता है।
    एलोवेरा का जूस बवासीर, डायबिटीज, गर्भाशय के रोग व पेट के विकारों को दूर करता है।
    * एलोवेरा का जूस पीने से त्वचा की खराबी, मुहांसे, रूखी त्वचा, धूप से झुलसी त्वचा, झुर्रियां, चेहरे के दाग धब्बों, आखों के काले घेरों को दूर किया जा सकता है।
    * एलोवेरा का जूस पीने से मच्छर काटने पर फैलने वाले इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है।
    * एलोवेरा का जूस ब्लड को प्यूरीफाई करता है साथ ही हीमोग्लोबिन की कमी को पूरा करता है।
    * एलोवेरा को सौंदर्य निखार के लिए हर्बल कॉस्मेटिक प्रोडक्ट जैसे एलोवेरा जैल, बॉडी लोशन, हेयर जैल, स्किन जैल, शैंपू, साबुन, फेशियल फोम आदि में प्रयोग किया जा रहा है।
    एलर्जी में एलोवेरा
    एलोवेरा में एमिनों एसिड की मात्रा भरपूर होती है जो एलर्जी को दूर करने का काम करता है। एलोवीरा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
    जो इंसान एलोवेरा का रस रोज पीता है वह कभी बीमार नहीं पड़ता है।
    एलोवेरा खून साफ करता है जिससे जोड़ों का दर्द ठीक होता है।
    यदि एडि़यां फट गई हों तो रोज एलोवेरा जेल से मालिश करें।
    त्वचा में नमी को बनाए रखता है एलोवेरा।
    अल्सर, वायु रोग और अम्लपित्त आदि की शिकायतें दूर होती हैं एलोवेरा जूस को पीने से।
    गर्मियों के समय में अक्सर त्वचा में सनबर्न की शिकायत हो जाती है। ऐसे में एलोवेरा को त्वचा पर लगाने से सनबर्न ठीक हो जाता है।
    स्कैल्प का ड्राई होना-
    एन्टीबैक्टिरीयल गुण होने की वजह से एलोवेरा जेल ड्राई स्कैल्प की समस्या को खत्म करता है। इसके लिए आप एलोवेरा जेल को अपने सिर पर लगा लें और पंद्रह मिनट के बाद शैंपू से अपने बालों को धो लें।
    एलोवेरा कोई साधारण पौधा नहीं है। इसमें समाया हुआ है प्राकृतिक तत्वों का रहस्य जिससे आप अभी तक अनजान थे। एलोवेरा में ही छिपा हुआ है कई बीमारियों का इलाज। आप भी एलोवेरा का पेड़ अपने घर आंगन में लगा सकते हो और इसके फायदे उठा सकते हो। भारत और जापान में पुराने समय से ही एलोवीरा का प्रयोग चिकित्सा के रूम में किया जाता रहा है। एलोवीरा का जरूरत से ज्यादा सेवन करना भी सेहत के लिए अच्छा नहीं माना जाता है।