26.6.16

सर्प दंश के उपचार,How to tackle snake bite






     एक समय था जब साँप के काटने से ज्यादातर लोग बिना सही इलाज के ही मर जाते थे। लोगों को यह पता ही नहीं था कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं। बहुत कम लोगों को मालूम है कि सारे साँप जहरीले नहीं होते हैं। भारत में लगभग पाँच से छह सौ किस्म के साँप मिलते हैं जिनमें बहुत कम साँप ही जहरीले होते हैं। लेकिन आम तौर पर लोग साँप के काटने पर वह जहरीला है कि नहीं इसके बारे में बिना जाने ही डर से मर जाते हैं, शायद डर के मारे उन्हें दिल का दौरा पड़ जाता है।
सर्पदंश का प्राथमिक उपचार शीघ्र से शीध्र करना चाहिए। दंशस्थान के कुछ ऊपर और नीचे रस्सी, रबर या कपड़े से ऐसे कसकर बाँध देना चाहिए कि धमनी का रुधिर प्रवाह भी रुक जाए। लाल गरम चाकू से दंशस्थान को 1/2 इंच लंबा और 1/4 इंच चौड़ा चीरकर वहाँ का रक्त निकाल देना चाहिए। तत्पश्चात् दंशस्थान साबुन, या नमक के पानी, या 1 प्रतिशत पोटाश परमैंगनेट के विलयन से धोना चाहिए। यदि ये प्राप्य न हों तो पुरानी दीवार के चूने को खुरचकर घाव में भर देना चाहिए। कभी कभी पोटाश परमैंगनेट के कणों को भी घाव में भर देते हैं, पर कुछ लोगों की राय में इससे विशेष लाभ नहीं होता। यदि घाव में साँप के दाँत रह गए हों, तो उन्हें चिमटी से पकड़कर निकाल लेना चाहिए। प्रथम उपचार के बाद व्यक्ति को शीघ्र निकटतम अस्पताल या चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। वहाँ प्रतिदंश विष (antivenom) की सूई देनी चाहिए। दंशस्थान को पूरा विश्राम देना चाहिए। किसी दशा में भी गरम सेंक नहीं करना चाहिए। बर्फ का उपयोग कर सकते हैं। ठंडे पदार्थो का सेवन किया जा सकता है। घबराहट दूर करने के लिए रोगी को अवसादक औषधियाँ दी जा सकती हैं। श्वासावरोध में कृत्रिम श्वसन का सहारा लिया जा सकता है। चाय, काफी तथा दूध का सेवन कराया जा सकता है, पर भूलकर भी मद्य का सेवन नहीं कराना।किसी  जहरीले साँप के काटे जाने पर संयम रखना चािहये ताकि  ह्रदय गति तेज न हाे। साँप के काटे जाने पर जहर सीधे खून में पहुँच कर रक्त कणिकाआे काे नष्ट करना प्रारम्भ कर देते है, ह्रदय गति तेज हाेने पर पर जहर तुरन्त ही रक्त के माध्यम से ह्रदय में पहुँच कर उसे नुक़सान पहुँचा सकते हैं। काटे जाने के बाद तुरन्त बाद काटे गये स्थान काे पानी से धाेते रहना चाहिये। साँप के काटे जाने पर बिना घबराये तुरन्त ही नजदीकी प्रतिविष केन्द्र में जाना चाहिये।


कोबरा के काट लेने के लक्षण क्या हैं- काटा हुआ स्थान पन्द्रह मिनट के भीतर सूजने लगता है. यह कोबरा के काटे जाने का सबसे प्रमुख पहचान है. ध्यान से देखें तो दो मोटी सूई के धसने से बने निशान-विषदंत के निशान दिखेंगे. प्राथमिक उपचार में नयी ब्लेड से धन के निशान का चीरा सूई के धसने वाले दोनों निशान पर लगा कर दबा दबा कर खून निकालें और किसी के मुहँ में यदि छाला घाव आदि न हो तो वह खून चूस कर उगल भी सकता है.

विष का असर केवल खून में जाने पर ही होता है यदि किसी के मुंह में छाला, पेट में अल्सर आदि न हो तो वह सर्पविष बिना नुकसान के पचा भी सकता है. करैत जयादा खतरनाक है मगर इसके लक्षण बहुत उभर कर सामने नही आते यद्यपि थोड़ी सूजन इसमें भी होती है. करैत और कोबरा दोनों के विष स्नायुतंत्र पर घातक प्रभाव डालते हैं.अक्सर यह कहा जाता है कि साँप का जहर दिल और मस्तिष्क तक पहुँचने या पूरे शरीर तक फैलने में लगभग तीन से चार घंटे का समय लेता है, उसके बाद धीरे-धीरे विष का असर पूरे शरीर में होने लगता है। लेकिन इन घंटों में अगर आप अपने दिमाग का सही प्रयोग करके डॉक्टर के पास ले जाने की तैयारी करने के बीच कुछ घरेलू इलाजों के मदद से विष के खतरे को कुछ हद तक कम कर सकते हैं-
घी -पहले मरीज को 100 एम.एल. (लगभग आधा कप) घी खिलाकर उल्टी करवाने की कोशिश करें, अगर उल्टी न हो तो दस-पंद्रह के बाद गुनगुना पानी पिलाकर उल्टी करवायें, इससे विष के निकल जाने या असर के कम होने की संभावना होती है।
तुअर दाल-
तुअर दाल का जड़ पीसकर रोगी को खिलाने से भी इन्फेक्शन या विष का असर कम होता है।
कंटोला-
कंटोला दो तरह का होता है, एक में फूल और फल दोनों होता है और दूसरे में सिर्फ फूल आता है उसको ‘बांझ कंटोला’ कहते हैं, उसका कंद (bulb) घिसकर सर्पदंश वाले जगह पर लगाने से विष का असर या इन्फेक्शन की संभावना कम होती है।
लहसुन-
लहसुन तो हर किचन में मिल जाता है,उसको पीसकर पेस्ट बना लें और सर्पदंश वाले जगह पर लगायें या लहसुन के पेस्ट में शहद मिलाकर खिलाने या चटवाने से इन्फेक्शन कम हो जाता है।

सर्प दंश का विष नष्ट करने हेतु सरल उपाय
पहला प्रयोगः 

तपाये हुए लोहे से डंकवाले भाग को जला देने से नाग का प्राणघातक जहर भी उतर जाता है।
दूसरा प्रयोगः 

सर्पदंश की जगह पर तुरंत चीरा करके विषयुक्त रक्त निकालकर पोटेशियम परमैंगनेट भर देने से जहर फैलना एवं चढ़ना बंद हो जाता है।
साथ में मदनफल (मिंडल) का 1 तोला चूर्ण गरम या ठण्डे पानी में पिला देने से वमन होकर सर्पविष निकल जाता है। मिचाईकंद का टुकड़ा दो ग्राम मात्रा में घिसकर पिलाना तथा दंशस्थल पर लेप करना सर्पविष की अक्सीर दवा है।
तीसरा प्रयोगः 

मेष राशि का सूर्य होने पर नीम के दो पत्तों के साथ एक मसूर का दाना चबाकर खा जाने से उस दिन से लेकर एक वर्ष तक साँप काटे तो उसका जहर नहीं चढ़ता।
साँप के काटने पर शीघ्र ही तुलसी का सेवन करने से जहर उतर जाता है एवं प्राणों की रक्षा होती है।
अनुभूत प्रयोगः जिस व्यक्ति को सर्प ने काटा हो उसे कड़वे नीम के पत्ते खिलायें। यदि पत्ते कड़वे न लगें तो समझें कि सर्प विष चढ़ा है। छः सशक्त व्यक्तियों को बुलाकर दो व्यक्ति मरीज के दो हाथ, दो व्यक्ति दो पैर एवं एक व्यक्ति पीछे बैठकर उसके सिर को पकड़े रखे। उसे सीधा सुला दें एवं इस प्रकार पकड़ें कि वह जरा भी हिल न सके।
इसके बाद पीपल के हरे चमकदार 20-25 पत्तों की डाली मँगवाकर उसके दो पत्ते लें। फ़िर ‘सुपर्णा पक्षपातेन भूमिं गच्छ महाविष।’ मंत्र जपते हुए पत्तों के डंठल को दूध निकलनेवाले सिरे से धीरे-धीरे मरीज के कानों में इस प्रकार डालें कि डंठल का उँगली के तीसरे हिस्से जितना भाग ही अंदर जाय अन्यथा कान के परदे को हानि पहुँच सकती है। जैसे ही डंठल का सिरा कान में डालेंगे, वह अंदर खिंचने लगेगा व मरीज पीडा से खूब चिल्लाने लगेगा, उठकर पत्तों को निकालने की कोशिश करेगा। सशक्त व्यक्ति उसे कसकर पकड़े रहें एवं हिलने न दें। डंठल को भी कसकर पकड़े रहें, खिंचने पर ज्यादा अंदर न जानें दे।
जब तक मरीज चिल्लाना बंद न कर दे तब तक दो-दो मिनट के अंतर से पत्ते बदलकर इसी प्रकार कान में डालते रहें। सारा जहर पत्तें खिंच लेंगे। धीरे-धीरे पूरा जहर उतर जायेगा तब मरीज शांत हो जायेगा। यदि डंठल डालने पर भी मरीज शांत रहे तो जहर उतर गया है ऐसा समझें।
जहर उतर जाने पर नमक खिलाने से खारा लगे तो समझें कि पूरा जहर उतर गया है। मरीज को राहत होने पर सौ से डेढ़ सौ ग्राम शुद्ध घी में 10-12 काली मिर्च पीसकर वह मिश्रण पिला दें एवं कानों में बिल्वादि तेल की बूँदे डाल दें ताकि कान न पकें। कम से कम 12 घण्टे तक मरीज को सोने न दें। उपयोग में आये पत्तों को या तो जला दें या जमीन में गाड़ दें क्यों कि उन्हें कोई जानवर खाये तो मर जायेगा।
इस प्रयोग के द्वारा बहुत मनुष्यों को मौत को मुख में से वापस लाया गया है। भले ही व्यक्ति बेहोश हो गया हो या नाक बैठ गयी हो, फिर भी जब तक जीवित हो तब तक यह प्रयोग चमत्कारिक रूप से काम करता है।
जहर पी लेने परः कितना भी खतरनाक विषपान किया हो, नीम का रस अधिक मात्रा में पिलाकर या घोड़ावज (वच) का चूर्ण या मदनफल का चूर्ण या मुलहठी का चूर्ण या कड़वी तुम्बी के गर्भ का चूर्ण एक तोला मात्रा में पिलाकर वमन (उलटी) कराने से लाभ होगा। जब तक नीला-नीला पित्त बाहर न निकले तब तक वमन कराते रहें।
साँप -दंश  के मंत्र तंत्र  मे कितने सच्चाई है ?
गांवों में एक प्रथा सी है कि जब भी किसी व्यक्ति को कोई सर्प या बिच्छु काट लेता है तो तुरंत ही किसी तांत्रिक या ओझा को बुलाकर झाड़फुंक कराया जाता है, कई लोग झाड़फुंक से बिल्कुल स्वस्थ्य हो जाते हैं |, तब उन तांत्रिक ओझाओं की वाह-वाही होने लगती है। लोगों को लगता है कि वह बहुत बड़ा तांत्रिक है। दिन प्रतिदिन ऐसे तांत्रिक ओझाओं की ख्याती बढ़ने लगती है, और दूर-दूर से लोग सर्पदंश का ईलाज कराने आने लगते है। मगर कभी-कभी उन्ही प्रसिद्ध तांत्रिकों के झाड़फुंक करने के बावजूद भी सर्पदंश के ग्रसित व्यक्ति बच नहीं पाता तब ऐसे तांत्रिकों पर सवालिया निशान लग जाता है,| आखिर ऐसा क्यों होता है कि जिस तांत्रिक ने कई लोगों को झाड़फुंक कर पूर्णतः स्वस्थ्य कर दिया हो वही तांत्रिक किसी व्यक्ति को झाड़फुंक करते हुये उसके मृत्यु का कारण बन जाता है। आईये इसे मै आपको विस्तार पूर्वक समझाता हूँ।
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यह नहीं कहा जा सकता की मंत्र में शक्ति नहीं होती ,क्योकि मन्त्रों की शक्ति अकाट्य रूप से प्रमाणित है |अतः सर्पदंश में भी मन्त्रों से प्रभाव पड़ सकता है ,किन्तु इसके लिए ऐसे मान्त्रिक साधक की जरुरत होती है जो अपने मंत्र बल से शरीर में रासायनिक परिवर्तन ला सके ,,क्योकि सर्पदंश में मंत्र से सर्प विष को कहने को तो कहते हैं उतारा जा रहा है किन्तु उसका अर्थ होता है की उसे निष्प्रभावी किया जा रहा है ,क्योकि वह बाहर नहीं निकलता अपितु रक्त में मिलता जाता है |अर्थात उसे निष्प्रभावी करने पर ही इलाज संभव है और यह एक शारीरिक रासायनिक परिवर्तन होगा ,विष के गुणों को बदल देना |अच्छे से अच्छे साधकों में यह क्षमता नहीं पायी जाती की वह किसी व्यक्ति के शरीर में रासायनिक परिवर्तन कर दें |इसके लिए बेहद उच्च शक्ति की साधना और कम से कम कुंडलिनी के किसी एक चक्र की विशेष क्रियाशीलता होनी चाहिए |जबकि सर्पदंश का इलाज आपको गावों में आपको ऐसे ओझा -मान्त्रिक करते मिलेंगे जो कुंडलिनी तो क्या उसका नाम तक नहीं जानते |उन्होंने कभी किसी उच्च शक्ति की साधना नहीं की |झाडफूंक ही किये और सामान्य पूजा आदि किये |यह लोग शाबर मन्त्रों का प्रयोग करते मिलेंगे |यद्यपि शाबर मंत्र कुछ मामलों में बेहद प्रभावी होते हैं किन्तु कम से कम रासायनिक परिवर्तन तो नहीं कर सकते ,सामान्य साधकों द्वारा उच्चारित होने पर | शाबर मन्त्रों के उच्च प्रभाव के लिए भी बेहद उत्कृष्ट साधक की जरूरत होगी जो सामान्य जन मानस में उस स्थिति में आने पर नहीं मिलेगा |यद्यपि शाबर मंत्र से कुंडलिनी साधना नहीं होती हाँ शक्तियों की साधना होती है और विरला साधक उच्च स्तर पर भी पहुँच जाता है |
जीव वैज्ञानिकों के द्वारा निरंतर अध्ययन एवं शोध करने पर वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को प्रमाणित किया है कि भारत वर्ष में पाये जाने वाले सर्पो में से लगभग 90 प्रतिशत सर्प जहरीले नही होते या फिर कम जहरीले होते हैं , जिनके काटने पर व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती मात्र हल्का सा नशा होता है और चक्कर आने लगता है। परंतु कुछ समय बाद ही सर्प विष का प्रभाव समाप्त हो जाता है और पीडि़त व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ्य हो जाता है। लेकिन सर्प द्वारा अचानक काटे जाने पर व्यक्ति भयभीत हो जाता है, और लगता है शरीर में जहर फैल रहा है, तथा डर से व्यक्ति के हाथ-पांव थर-थराने लगते हैं। कई व्यक्ति तो डर से बेहोश तक हो जाते हैं। इस दौरान गांवों में तांत्रिको के द्वारा झाड़फुंक चालू हो जाता है, और कुछ समय बाद जब जहर का असर समाप्त होता है तो व्यक्ति होश में आने लगता है, तथा वह व्यक्ति स्वस्थ्य होने लगता है।
इस प्राकृतिक प्रक्रिया के द्वारा स्वयं ठीक हुये व्यक्ति को तथा देखने वाले को लगता है कि झाड़फुंक के माध्यम से ही सर्प का विष उतरा वरना व्यक्ति मर जाता। इसी अंधविश्वास के कारण लोगों की श्रद्धा और बढ़ जाती है। तब किसी जहरीले सांपों के द्वारा काटे जाने पर भी अन्ध श्रद्धा और अन्धविश्वास में आकर जो व्यक्ति झाड़फुंक करवाने में विश्वास रखता है उसे अपने जान से हाथ धोना पड़ जाता है, और पछताने के लिए अपने परिजनो को छोड़ जाता है।
यहि बात बिच्छु के काटने पर भी लागु होती है, मगर बिच्छु के काटने पर किसी की जान नहीं जाती मगर कष्ट बहुत होता है। इसका विष भी धीरे-धीरे स्वयं ही उतर जाता है तथा किसी बिच्छु का विष विलम्ब से उतरता है, मगर उतरता स्वयं ही है, लेकिन जिसे बिच्छु ने काटा हो वह कहाँ मानने वाला वह तो झाड़फुंक करायेगा ही भले ही वह झाड़फुंक घंटों तक ही क्यों न चले। आखिरकार जहर तो उतारना ही है सो उतरेगा ही अन्ततः व्यक्ति स्वस्थ्य हो जाता है और तांत्रिक वाह-वाही बटोर लेता है।
कई प्रकार के तांत्रिक ग्रंथों तथा शाबर मंत्र के ग्रंथों में भी सर्प विष झाड़ने के मंत्र तथा प्रयोग उल्लेखित है, मेरे पास भी ऐसे कई प्रकार के शाबर मंत्र तथा प्रयोग है, मगर मै यहां पर उन मंत्रो का उल्लेख कर आपको भ्रमित नहीं करना चाहता बल्कि उस वास्तविक्ता से परिचित कराना चाहता हूँ, जिसके माध्यम से सर्पदंश द्वारा पीडि़त व्यक्ति को उचित ईलाज के द्वारा बचाया जा सके। वैसे तो कई प्रकार के सर्प झाड़़ने के मंत्र तथा प्रयोग है जो देखने और सुनने में अटपटे भी लग सकते हैं, और उन पर यकीन करना भी संभव नही।
एक प्रयोग तो ऐसा है कि जो व्यक्ति तांत्रिक को बुलाने जाता है और कहता है कि अमुक व्यक्ति को सर्प ने काटा है। चलिए उसे ठीक कर दीजिए मै आपको लेने आया हूँ। तांत्रिक द्वारा वहीं पर मंत्र पढ़कर बुलाने गये हुये व्यक्ति के गालों पर जोरदार थप्पड़ मारा जाता है और इसके प्रभाव से सर्प द्वारा काटे गये व्यक्ति पर असर होता है तथा उसका जहर धीरे-धीरे उतरने लगता है।
कई लोग चित्ती कौड़ी उड़ाने की बात भी करते हैं, जिसमें एक सादे कागज पर एक विशेष प्रकार का यंत्र बनाया जाता है, जिसके चारो कोनो पर कौड़ी तथा बीच में चित्ती कोड़ी रखकर विशेष मंत्रो द्वारा नाग देवता का आह्वान किया जाता है। कुछ ही क्षणों में मंत्रशक्ति के माध्यम से बीच में रखा हुआ चित्ती कौड़ी उड़ जाता है तथा उड़कर उसी सर्प के मस्तक पर चिपक जाता है जिसने व्यक्ति को काटा हो फिर वह सर्प मंत्रशक्ति से आकर्षित होकर दंशित व्यक्ति के पास आकर उसका जहर खींच लेता है। मगर ऐसी कहानी एक कोरी कल्पना के अतिरिक्त और कुछ नहीं लगती क्योंकि आज तक मैंने ऐसा कहीं देखा नहीं। फिर भी इससे में इनकार नहीं कर सकता की ऐसा हो ही नहीं सकता ,क्योकि में मन्त्रों की शक्ति से खुद अच्छे से परिचित और tantra के क्षेत्र में हूँ ,पर ऐसी क्षमता के लिए साधक को बहुत उच्च स्तर का होना चाहिए ,सभी साधक ऐसा नहीं कर सकते ,जबकि आपको ऐसे ऐसे साधक झाड फूंक करते मिलेंगे जो साल में एक दिन इसका शाबर मंत्र जगाते हैं |
कई तांत्रिक सर्प दंशित व्यक्ति के पीठ पर कांसे की थाली चिपका कर ईलाज करते हैं, जब तक विष नहीं उतरता तब तक कांसे की थाली पीठ पर चिपका रहता है, तथा मंत्र पढ़कर राई के दाने थाली पर फेंके जाते हैं। विष समाप्त होते ही थाली पीठ से गिर जाती है और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। ऐसा ही एक पत्थर सपेरों के पास भी रहता है। जिसे सर्प के काटे हुए स्थान पर रखने से वह पत्थर चिपक जाता है तथा विष को खींच लेता है। मगर ऐसे पत्थरों पर भी ज्यादा यकीन नहीं करना चाहिए क्योंकि सपेरे इस पत्थर का प्रेक्टिकल करने के लिए अपने पास पाले हुए सर्प से कटवाकर वहाँ पर पत्थर को चिपका कर दिखाते है। जिसकी वास्तविक्ता यह है, कि वह सर्प विषैला नहीं होता है या फिर उसके विष के दांत तोड़े जा चुके होते हैं तथा पत्थर का उस स्थान पर चिपकना महज ही सर्प के मुंह से निकले हुये चिपचिपे पदार्थ की वजह से होता है।
यह एकदम से नहीं कहा जा सकता की सर्पदंश का इलाज इन विधियों से नहीं हो सकता ,क्योकि अगर शास्त्रों में इनका उल्लेख है तो कुछ सच्चाई तो जरुर होगी |किन्तु जिस समय यह शास्त्र लिखे गए उस समय के साधकों और आज के साधकों में जमीन आसमान का फर्क हो सकता है |तब के साधकों का काम केवल साधना था ,ईष्ट प्रबलता और आत्मबल इतना हो सकता है की व्यक्तियों में वह रासायनिक परिवर्तन कर सकें ,पदार्थों के गुण बदल सकें ,मंत्र शक्ति से सर्प को खींच सके ,किन्तु क्या आज भी वाही स्थिति है |आज तो एक दो दिन शाबर मंत्र करके खुद को सिद्ध मान लेते हैं ,ऐसे ही लोग इलाज करते हैं और तुक्के लग जाते हैं क्योकि ९० प्रतिशत सांप जहरीले नहीं होते और यह मात्र भय का इलाज करते हैं ,इनमे जो जहरीले साँपों से दंशित हो जाते हैं उनको भाग्य का लिखा कहकर यह मुक्त हो लेते हैं |अतः सर्पदंश पर ओझा-मान्त्रिक के पास जाकर समय बर्बाद कर पीड़ित की जान जोखिम में डालना मूर्खता हो सकता है ,क्योकि कोई यह नहीं जानता की जिसके पास वह लेकर जा रहा है उसमे इतनी शक्ति है की नहीं की वह विष को प्रभावहीन कर सके ,पदार्थ के गुण बदल सके ,शरीर में रासायनिक परिवर्तन ला सके |जिस साधक में इतनी क्षमता आ जायेगी वह इस तरह आराम से नहीं मिल सकता |उसका लक्ष्य बदल जाता है |इससे बेहतर तो सामान्य जड़ीबूटियों का उपयोग करते हुए यथा शीघ्र पीड़ित को डाक्टर के पास ले जाना ही होता है |
आयुर्वेद में है सर्पदंश का ईलाज
भारत के प्राचीनतम् आयुर्वेदिक ग्रंथों में ऐसे सैकड़ों प्रकार के आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिलता है। जिसके माध्यम से सर्पविष का निवारण किया जा सकता है। ऐसे ही कुछ विशेष विशिष्ट जड़ी-बूटियों का उल्लेख नीचे किया जा रहा है।
निर्विषी:- 

निर्विषी नामक जड़ी का चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच एक-एक घंटे के अंतर में पानी में घोलकर पीलाये तो कुछ ही देर में विष से बेहोश व्यक्ति को भी होश आ जाता है तथा कुछ ही देर में रोगी पूर्णतः स्वस्थ्य हो जाता है।
कुचला:-

 दोला यंत्र द्वारा एक प्रहर तक शुद्ध किया हुआ कुचला को चूर्ण बनाकर सर्प दंशित व्यक्ति को 2 रत्ती चूर्ण पानी के साथ पिलावे साथ ही 1 तोला चूर्ण को पानी में लेप बनाकर सर्प दंश के स्थान पर लगायें तथा शरीर पर भी लेप करें ऐसा करने से सर्पविष से मुर्छित मनुष्य को आधे घंटे में होश में आ जायेगा। यदि वह इतना बेहोश हो कि मृत्यु के समीप हो तो 5 से 6 रत्ती चूर्ण को नीबू के रस के साथ बूंद बूंद गले में टपकाये तथा शरीर पर पारे का मर्दन करें ऐसा करने पर रोगी विषमुक्त होकर स्वस्थ हो जाता है।
अंकोल:- 

अंकोल के जड़ का चूर्ण बनाकर 1-1 तोला सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति को दिया जाय तो उल्टी तथा वमन के माध्यम से सारा विष बाहर निकल जाता है तथा पीडि़त रोगी पूर्णतः स्वस्थ्य हो जाता है।
आक (मदार):- 

जहाँ पर सर्प ने काटा हो उस स्थान पर मदार की पत्ती को तोड़ कर उसका दूध उस स्थान पर टपकाये कुछ ही देर में वह दूध विष के जगह में काला हो जाता है, फिर उसे पोछकर फिर से ताजा दूध टपकाये फिर काला होने पर पोछे इस प्रकार यह क्रिया तबतक करते रहें जबतक की दूध सफेद न रह जाये जब मदार का दूध सफेद का सफेद ही रहे तो समझ ले कि सर्प का विष समाप्त हो गया है।
द्रोण पुष्पी:- 

द्रोण पुष्पी के पंचांग का स्वरस काली र्मिच मिलाकर दो-दो तोला थोड़ी -थोड़ी देर में पिलाते रहें तथा नाक, कान, आंख में भी टपकाते रहें ऐसा करने से व्यक्ति बेहोश नहीं होता तथा सर्पदंश से बेहोश व्यक्ति भी होश में आ जाता है।
ऐसे सैकड़ो प्रकार की जड़ी बूटीयाँ हैं जिनके माध्यम से सर्पदंशित व्यक्ति का इलाज कर पूर्णतः विष मुक्त किया जा सकता है। फिर भी आज के आधुनिक वैज्ञानिक युग में मात्र किसी एक औषधी अथवा झाड़ फूंक के चक्कर में पड़ कर अपना तथा अपने परिवार का जान संकट में डालना मूर्खता ही होगा।
परामर्श
यदि दुर्भाग्यवश आपको या आपके परिवार या पड़ोस में किसी को भी सर्प काट ले तो यथाशीघ्र किसी अच्छे अस्पताल में जाकर ईलाज कराएं तब तक उपर बताये हुए आयुर्वेदिक जड़ी - बूटियों में से जो भी मिल जाए उसका उपयोग करना चाहिए। सर्व प्रथम जहाँ पर सर्प ने काटा हो उसके उपर तथा नीचे रस्सी से कस कर बांध दे जिससे जहर न फैले, फिर किसी धारदार हथियार या ब्लेड से चिरा लगाकर वहाँ का खून निकाल दें तथा बिना बुझा चूना उस पर रखें चूना विषैले रक्त को अवशोषित कर लेती है चूना नहीं मिलने पर मदार का दूध उपयोग करना चाहिए। तथा सर्पदंशित व्यक्ति को 12 घन्टे तक सोने नहीं देना चाहिए नींद आने पर द्रोणपुष्पी का रस आखों में डाले तथा तत्काल किसी योग्य चिकित्सक से ईलाज कराना चाहिए। ...



एंटीवेनम सूई है एकमात्र इलाज (Antivenom Injection):

यह सूई अगर आसपास किसी बाजार हाट के मेडिकल स्टोर पर मिल जाय तो पहले इंट्रामस्कुलर (Intramuscular Injection) देकर अस्पताल तक पहुंचा जा सकता है, जहाँ आवश्यकता जैसी होगी चिकित्सक फिर इंट्रा वेनस दे सकता है. अगर आप के क्षेत्र में साँप काटने की घटनाएँ अक्सर होती है तो पी एच सी के चिकित्सक से तत्काल मिल कर एंटी वेनम की एडवांस व्यवस्था सुनिशचित करें- मेडिकल दूकानों पर भी इसे पहले से रखवाया जा सकता है. एंटीवेनम 10 हज़ार लोगों में एकाध को रिएक्शन करता है-कुशल चिकित्सक एंटीवेनम के साथ डेकाड्रान(Decadron)/कोरामिन(Coramin) की भी सूई साथ साथ देता है-बल्कि ऐसा अनिवार्य रूप से करना भी चाहिए। याद रखें जहरीले सांप के काटने पर कई वायल एंटीवेनम के लग सकते हैं. इसलिए इनका पहले से ही प्रयाप्त इंतजाम जरुरी है.

साँप काटने पर क्या न करें?


साँप के काटने पर झाड़-फूँक और जड़ी-बूटी आदि के द्वारा इलाज के चक्कर में समय न गंवाएँ। क्योंकि सर्पदंश के मामले में एक क्षण की भी देरी पीड़ित के लिए मौत का सबब बन सकती है।
किसी व्यक्ति को साँप काटने पर काटने वाले साँप की खोजबीन करके उसे पकड़ने की कोशिश कत्तई न करें, इससे साँप भड़क सकता है और वह अन्य लोगों को भी अपना शिकार बना सकता है।
पीड़ित व्यक्ति को दर्द से तड़पता देखकर उसे अपने मन से कोई दवा विशेष एस्प्रिन वगैरह कदापि न दें न ही कोई दादी-नानी का नुस्खा उसपर आजमाएँ।
यदि आप उपरोक्त सावधानियों को ध्यान में रखें और यथा समय पीड़ित को अस्पताल पहुँचाकर एन्टीवेनम दिलवा सकें, तो बहुत सम्भव है कि साँप के ज़हर के दुष्प्रभाव को कम किया जा सके और पीड़ित की जान बचाई जा सके।

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  • वीर्य बढ़ाने और गाढ़ा करने के आयुर्वेदिक उपाय
  • लंबाई ,हाईट बढ़ाने के अचूक उपाय
  • टेस्टेटरोन याने मर्दानगी बढ़ाने के उपाय


  • 21.6.16

    याददाश्त तेज करने के उपाय ,yaddasht tej karne ke upay




                                                       
                                                                                                
    स्मरण शक्ति की कमजोरी या विकृति से विद्यार्थी और दिमागी काम करने वालों को असुविधाजनक स्थिति से रुबरु होना पडता है। यह कोई रोग नहीं है और न किसी रोग का लक्छण है। इसकी मुख्य वजह एकाग्रता(कन्संट्रेशन) की कमी होना है।
    स्मरण शक्ति बढाने के लिये दिमाग को सक्रिय रखना आवश्यक है। शरीर और मस्तिष्क की कसरतें अत्यंत लाभदायक होती हैं। किसी बात को बार-बार रटने से भी स्मरण शक्ति में इजाफ़ा होता है और वह मस्तिष्क में द्रडता से अंकित हो जाती है। आजकल कई तरह के विडियो गेम्स प्रचलन में हैं । ये खेल भी मस्तिष्क को ताकतवर बनाने में सहायक हो सकते हैं|पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित पहेलियां हल करने से भी मस्तिष्क की शक्ति बढती है।
    मैं नीचे कुछ ऐसे सरल उपचार प्रस्तुत कर रहा हूं जो मेमोरी पावर बढाने मे अत्यंत उपकारी सिद्ध होते हैं-- १) बादाम ९ नग रात को पानी में गलाएं।सुबह छिलके उतारकर बारीक पीस कर पेस्ट बनालें। अब एक गिलास दूध गरम करें और उसमें बादाम का पेस्ट घोलें। इसमें ३ चम्मच शहद भी डालें।भली प्रकार उबल जाने पर उतारकर मामूली गरम हालत में पीयें। यह मिश्रण पीने के बाद दो घंटे तक कुछ न लें। यह स्मरण शक्ति वृद्दि करने का जबर्दस्त उपचार है। दो महीने तक करें।
    २) ब्रह्मी दिमागी शक्ति बढाने की मशहूर जडी-बूटी है। इसका एक चम्मच रस नित्य पीना हितकर है। इसके ७ पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है। ब्राह्मी मे एन्टी ओक्सीडेंट तत्व होते हैं जिससे दिमाग की शक्ति घटने पर रोक लगती है।
    ३) अखरोट जिसे अंग्रेजी में वालनट कहते हैं स्मरण शक्ति बढाने में सहायक है। नियमित उपयोग हितकर है। २० ग्राम वालनट और साथ में १० ग्राम किशमिस लेना चाहिये।
    ४) एक सेवफ़ल नित्य खाने से कमजोर मेमोरी में लाभ होता है। भोजन से १० मिनिट पहिले खाएं।
    ५)जिन फ़लों में फ़ास्फ़ोरस तत्व पर्यात मात्रा में पाया जाता है वे स्मरण शक्ति बढाने में विशेषतौर पर उपयोगी होते है। अंगूर ,खारक ,अंजीर एवं संतरा दिमागी ताकत बढाने के लिये नियमित उपयोग करना चाहिये।
    ६) भोजन में कम शर्करा वाले पदार्थ उपयोगी होते हैं। पेय पदार्थों में भी कम ्चीनी का प्रयोग करना चाहिये।इन्सुलीन हमारे दिमाग को तेज और धारदार बनाये रखने में महती भूमिका रखता है। इसके लिये मछली बहुत अच्छा भोजन है। मछली में उपलब्ध ओमेगा ३ फ़ेट्टी एसीड स्मरण शक्ति को मजबूती प्रदान करता है।
    ७) दालचीनी का पावेडर बनालें। 5 ग्राम पावडर शहद में मिलाकर चाटलें। कमजोर दिमाग की अच्छी दवा है।
    ८) धनिये का पावडर दो चम्मच शहद में मिलाकर लेने से स्मरण शक्ति बढतीहै।
    ९) आंवला का रस एक चम्मच २ चम्मच शहद मे मिलाकर उपयोग करें। भुलक्कड पन में आशातीत लाभ होता है।
    १०) अदरक ,जीरा और मिश्री तीनों को पीसकर लेने से कम याददाश्त की स्थिति में लाभ होता है।
    ११) दूध और शहद मिलाकर पीने से भी याद दाश्त में बढोतरी होती है। विद्ध्यार्थियों के लिये फ़ायदेमंद उपचार है।२५० मिलि गाय के दूध में २ चम्मच शहद मिलाकर उपयोग करना चाहिये।
    १२) तिल में स्मरण शक्ति वृद्दि करने के तत्व हैं। २० ग्राम तिल और थोडा सा गुड का तिलकुट्टा बनाकर नित्य सेवन करना परम हितकार उपचार है।
    १३) काली मिर्च का पावडर एक चम्मच असली घी में मिलाकर उपयोग करने से याद दाश्त में इजाफ़ा होता है|
    १४) गाजर में एन्टी ओक्सीडेंट तत्व होते हैं। इससे रोग प्रतिरक्षा प्राणाली ताकतवर बनती है। दिमाग की ताकत बढाने के उपाय के तौर पर इसकी अनदेखी नहीं करना चाहिये।
    १५) आम रस (मेंगो जूस) मेमोरी बढाने में विशेष सहायक माना गया है। आम रस में २ चम्मच शहद मिलाकर लेना उचित है।
    १६) पौष्टिकता और कम वसा वाले भोजन से अल्जाईमर्स नामक बीमारी होने का खतरा कम रहता है और दिमाग की शक्ति में इजाफ़ा होता है इसके लिये अपने भोजन में ताजा फ़ल-सब्जियां.मछलियां ,ओलिव आईल आदि प्रचुरता से शामिल करें।
    १७) तुलसी के ९ पत्ते ,गुलाब की पंखुरी और काली मिर्च नग एक खूब चबा -चबाकर खाने से दिमाग के सेल्स को ताकत मिलती है।
    १७) चित्र में प्रदर्शित योगासन करने से भी मेमोरी पावर में इजाफ़ा होता है। योग और प्राणायाम की अनदेखी करना ठीक नहीं।





    2.6.16

    दाद और खुजली की घरेलू चिकित्सा //Home remedies for ring worm and itching



       दाद और खुजली, यह त्वचा संबंधी रोग है जिसकी वजह से काफी परेशानी होती है। आइये आपको इन रोगों के लक्षणों और इनके कारगर घरेलू उपायों के बारे में बताते हैं जो इन बीमारीयों को दूर करेगा।
    दाद के लक्षण
    दाद यह त्वचा का रोग है जो आपकी त्वचा पर फफूंद के रूप में दिखता है और इसका आकार गोल व रंग लाल होता है जो धीरे-धीरे बढ़ने भी लगता है। दाद त्वचा, बालों और नाखूनों को प्रभावित करता है।
    दाद के कारण
    1. यह संक्रमित व्यक्ति को छूने से या उसके तौलिए का इस्तेमाल करने से भी हो सकता हैं।










    2. कुत्ता, बिल्ली या अन्य पालतू जानवरों की संक्रमित त्वचा के संपर्क में आने से भी दाद फैल सकता है।
    दाद का इलाज
    तुलसी के पत्तों को पीसकर उसका पेस्ट बनाएं और इसे दाद वाले स्थान पर मलें।
    दाद होने पर आप उसकी ठंठे पानी और गरम पानी दोनों की बारी-बारी से सिंकाई करें।
    अपना बिस्तर हमेशा साफ रखें।
    *साफ सुथरे कपड़े पहनें और भोजन सादा खायें।
    * आप नीम के पत्तों को पीसकर उसका लेप तैयार करें और इस लेप को दाद वाले स्थान पर मलें।
    नहाने के पानी में नीम की पत्तीयां डालकर स्नान करें और स्नान रोज करें।
    कपड़े साफ और सूखे पहने क्योंकि गीला कपड़ा पहने से दाद का आकार बढ़ता है।
    खुजली-
    खुजली यह भी त्वचा संबंधी रोग है और त्वचा को ज्यादा रगड़ने से त्वचा पर जलन भी होती है। आइये जानते है इसके कारण और इलाज-
    खुजली होने की वजह-
    दवाई के गलत असर होने से।
    गलत तरह से यौन संबंध बनाने से।
    संक्रमित जानवर के संपर्क में आने से।
    सिर पर जुंओं की वजह से।
    पसीना आने की वजह से।
     तनाव की वजह से।

    खुजली दूर करने के उपचार

    *टमाटर के मिश्रण में नारियल का पानी मिला कर खुजली वाली जगह पर लगाने से खुजली दूर होती है।
    खुजली यदि पूरे शरीर में हो रही है तो आप दूध की मलाई को खुजली वाले स्थानों पर लगायें।
    नीम के पत्तों का लेप लगाने से खुजली से निजात मिलता है।
    *खूजली वाली जगह पर नारियल का तेल लगाने से आराम मिलता है।
    *चर्म रोग का तेल बनाने की विधि : नीम की छाल, चिरायता, हल्दी, लाल चन्दन, हरड़, बहेड़ा, आँवला और अड़ूसे के पत्ते, सब समान मात्रा में। तिल्ली का तेल आवश्यक मात्रा में। सब आठों द्रव्यों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगोकर निकाल लें और पीसकर कल्क बना लें।
    पीठी से चार गुनी मात्रा में तिल का तेल और तेल से चार गुनी मात्रा में पानी लेकर मिलाकर एक बड़े बरतन में डाल दें। इसे मंदी आंच पर इतनी देर तक उबालें कि पानी जल जाए सिर्फ तेल बचे। इस तेल को शीशी में भरकर रख लें।
    जहाँ भी खुजली चलती हो, दाद हो वहाँ या पूरे शरीर पर इस तेल की मलिश करें। यह तेल चमत्कारी प्रभाव करता है। लाभ होने तक यह मालिश जारी रखें, मालिश स्नान से पहले या सोते समय करें और चमत्कार देखें।

    पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 

    *किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

    गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका के अचूक उपचार 

    गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

    पित्त पथरी (gallstone) की अचूक औषधि








    23.5.16

    करोंदे के लाभ और उपयोग




    करौंदे का पौधा एक झाड़ की तरह होता है। इसके पेड़ कांटेदार और 6 से 7 फुट ऊंचे होते हैं। पत्तों के पास कांटे होते है जो मजबूत होते है। करौंदा के वृक्ष दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के करौंदों में छोटे फल लगते हैं। दूसरी प्रकार के करौदें में बड़े करौंदे लगते हैं।
    करौंदे में विटामिन C प्रचुर मात्रा में होने के साथ-साथ अत्याधिक एंटी-ऑक्सीडेंट भी पाया जाता है| जो अन्य फलों तथा सब्जियों की तुलना में कई अधिक है| करौंदा विटामिन E तथा K का भी अच्छा स्त्रोत है|
    इससे हमें इन विटामिनों के अतिरिक्त कई मिनरल्स भी प्राप्त होते हैं जैसे- आयरन, कैल्शियम, पोटैशियम, जिंक इत्यादि| करौंदे के नियमित सेवन से हम कुछ स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते हैं|

    करौंदे के स्वास्थ्य लाभ इस प्रकार हैं:
    • करौंदे का सेवन ज़ुकाम तथा बुखार में लाभप्रद है|
    • कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर ह्रदय संबंधी रोगों से बचाता है|

    • स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली का निर्माण कर हमें रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है|
    • करौंदे का रस फेफड़ों की सूजन दूर करने में लाभदायक है|
    • स्त्री स्वास्थ्य सम्बन्धी रोगों में विशेष रूप से लाभप्रद है| जैसे- मूत्र संक्रमण (urine infection)
    कच्चे करौंदे का अचार बहुत अच्छा होता है। इसकी लकड़ी जलाने के काम आती है।
    एक विलायती करौंदा भी होता है, जो भारतीय बगीचों में पाया जाता है। इसका फल थोड़ा बड़ा होता है और देखने में सुन्दर भी। इस पर कुछ सुर्खी-सी होती है। इसी को आचार और चटनी के काम में ज्यादा लिया जाता है।
    फलों के चूर्ण के सेवन से पेट दर्द में आराम मिलता है। करोंदा भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है, प्यास रोकता है और दस्त को बंद करता है। ख़ासकर पैत्तिक दस्तों के लिये तो अत्यन्त ही लाभदायक है।
    सूखी खाँसी होने पर करौंदा की पत्तियों के रस का सेवन लाभकारी होता है।

    पातालकोट में आदिवासी करौंदा की जड़ों को पानी के साथ कुचलकर बुखार होने पर शरीर पर लेपित करते है और गर्मियों में लू लगने और दस्त या डायरिया होने पर इसके फ़लों का जूस तैयार कर पिलाया जाता है, तुरंत आराम मिलता है।
    खट्टी डकार और अम्ल पित्त की शिकायत होने पर करौंदे के फलों का चूर्ण काफ़ी फ़ायदा करता है, आदिवासियों के अनुसार यह चूर्ण भूख को बढ़ाता है, पित्त को शांत करता है।
    करोंदा के फल को खाने से मसूढ़ों से खून निकलना ठीक होता है, दाँत भी मजबूत होते हैं। फलों से सेवन रक्त अल्पता में भी फ़ायदा मिलता है।
    सर्प के काटने पर करौंदे की जड़ को पानी में उबालकर क्वाथ करें। फिर इस क्वाथ को सर्प काटे रोगी को पिलाने से लाभ होता है।
    घाव के कीड़ों और खुजली पर करौंदे की जड़ निकाल कर पानी में साफ़ धोकर उसे पानी के साथ महीन पीस कर फिर तेल में डालकर खूब पकायें, फिर इस तेल का प्रयोग घाव के कीड़ों और खुजली पर करने से फायदा पहुँचता है।

    ज्वर आने पर करौंदे की जड़ का क्वाथ बनाकर देने से लाभ मिलता है।
    खांसी में करौंदे के पत्‍तों के अर्स को निकालकर उसमें शहद मिलाकर चाटना श्रेष्ठ है।
    जलंदर रोग में करौंदों का शर्बत, हर दिन एक तोला दूसरे दिन दो तोला तीसरे दिन तीन तोला इसी प्रकार एक हफ्ते तक एक तोला रोज बढ़ाते जाए। एक हफ्ते के भीतर लाभ मिलना शुरू हो जायेगा।
    करौंदा का प्रयोग मूंगा व चांदी की भस्म बनाने में भी किया जाता है। मूंगा भस्म बनाने के लिये कच्चे करौंदों को लेकर बारीक पीसें फिर उसकी भली भांति लुगदी बनाकर उस लुगदी में मूगों को रखें फिर उस लुगदी के ऊपर सात कपट मिट्टी कर, उपलों की आग में रखकर फूंके। पहले मन्दाग्नि, बीच में मध्यम तीक्ष्ण अग्नि दें तो मूंगा भस्म बन जायेगी।
    चांदी की भस्म करने के लिये करौंदों की लुग्दी बनाकर ऊपर की विधि द्वारा सही सम्पुट बनाकर फूकें। इस प्रकार इक्कीस बार फूंकने पर चांदी की भस्म बनेगी।

    • करौंदे के रस का सेवन रक्तचाप को कम करता है|
    • झुर्रियों के निर्माण की प्रक्रिया को रोक कर, झुर्रियों का आना कम करता है|
    • करौंदा कैल्शियम प्रदान कर हमारी हड्डियों तथा दांतों को मज़बूत बनाता है|
    • इसमें कम कैलोरी होने के कारण, यह वज़न घटाने में भी सहायक है|
    • दांतों को सडन से बचने के साथ सांस की दुर्गन्ध को रोकता है|
    • करौंदे के रस का प्रतिदिन सेवन करके स्तन कैंसर से बचा जा सकता है|

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    21.5.16

    अश्वगंधा के प्रयोग और उपचार :The use and treatment with Ashwagandha






    अश्वगंधा एक शक्तिवर्धक रसायन है। अश्वगंधा एक श्रेष्ठ प्रचलित औषधि है और यह आम लोगो का टॉनिक है इसके गुणों को देखते हुए इस जड़ी को संजीवनी बूटी कहा जाए तो भी गलत नहीं होगा। यह शरीर की बिगडी हूई अवस्था (प्रकृति) को सुधार कर सुसंगठित कर शरीर का बहुमुखी विकास करता है। इसका शरीर पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। यह रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है और बुद्धि का विकास भी करती है। अश्वगंधा में एंटी एजिड, एंटी ट्यूमर, एंटी स्ट्रेस तथा एंटीआक्सीडेंट के गुण भी पाये जाते हैं।
    घोडे जैसी महक वाला अश्वगंधा इसको खाने वाला घोडे की तरह ताकतवर हो जाता है। अश्वगंधा की जड़ ,पत्तियां ,बीज, छाल और फल अलग अलग बीमारियों के इलाज मे प्रयोग किया जाता है। यह हर उम्र के बच्चे जवान बूढ़े नर नारी का टोनिक है जिससे शक्ति, चुस्ती, सफूर्ति तथा त्वचा पर कान्ति (चमक) आ जाती है। 
    अश्वगंधा का सेवन सूखे शरीर का दुबलापन ख़त्म करके शरीर के माँस की पूर्ति करता है। यह चर्म रोग, खाज खुजली, गठिया, धातु, मूत्र, फेफड़ों की सूजन, पक्षाघात, अलसर, पेट के कीड़ों, तथा पेट के रोगों के लिए यह बहुत उपयोगी है, खांसी, साँस का फूलना अनिद्रा, मूर्छा, चक्कर, सिरदर्द, हृदय रोग, शोध, शूल, रक्त कोलेस्ट्रॉल कम करने में स्त्रियों को गर्भधारण में और दूध बढ़ाने में मदद करता है, श्वेत प्रदर, कमर दर्द एवं शारीरिक कमजोरी दूर हो जाती हैं।
    अश्वगंधा की जड़ के चूर्ण का सेवन 1 से 3 महीने तक करने से शरीर मे ओज, स्फूर्ति, बल, शक्ति तथा चेतना आती है। वीर्य रोगो को दूर कर के शुक्राणुओं की वृद्धि करता है, कामोतेजना को बढ़ाता है तथा पाचन शक्ति को सुधारता है। सूखिया और क्षय रोगों मे लाभकारी है। शक्ति दायक और हर तरह का बदन दर्द को दूर करता है। रूकी पेशाब भी खुल कर आती है। इसके पत्तो को पिस कर त्वचा रोग, जोड़ो के सूजन, घावों को भरने तथा अस्थि क्षय के लिए किया जाता है। गैस की बीमारी, एसिडिटी, जोडों का दर्द, ल्यूकोरिया तथा उच्च रक्तचाप में सहायक और कैंसर से लड़ने की क्षमता आ जाती है। अश्वगंधा एक आश्चर्यजनक औषधि है, कैंसर की दवाओं के साथ अश्वगंधा का सेवन करने से केवल कैंसर ग्रस्त कोशिकाएँ ही नष्ट होती है जब कि स्वस्थ (जीवन रक्षक) कोशिकाओं को कोई क्षति नही पहुँचती। अश्वगंधा मनुष्य को लंबी उम्र तक जवान रखता है और त्वचा पर लगाने से झुर्रियां मिटती है।
    अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण सेवन तीन माह तक लगातार सेवन करने से कमजोर (बच्चा, बड़ा, बुजुर्ग, स्त्री ,पुरुष) सभी की कमजोरी दूर होती है, चुस्ती स्फूर्ति आती है चेहरे ,त्वचा पर कान्ति (चमक) आती है शरीर की कमियों को पूरा करते हुए धातुओं को पुष्ट करके मांशपेशियों को सुसंठित करके शरीर को गठीला बनाता है। लेकिन इससे मोटापा नहीं आता।
    समय से पहले बुढ़ापा नहीं आने देती और इसके तने की सब्जी बनाकर खिलने से बच्चो का सूखा रोग बिलकुल ठीक हो जाता है।
    अश्वगंधा एक शक्तिवर्धक रसायन है। इसकी जड़ का चूर्ण दूध या घी के साथ लेने से निद्रा लाता है तथा शुक्राणुओं की वृद्धि करता है।यदि कोई वृद्ध व्यक्ति शरद ऋतु में इसका एक माह तक सेवन करता है तो उसकी मांस मज्जा की वृद्धि और विकास हो कर के वह युवा जैसा हल्का व् चुस्त महसूस करने लगता है।

    अश्वगंधा का चूर्ण 15 दिन तक दूध या पानी से लेने पर बच्चो का शरीर पुष्ट होता है
    मोटापा दूर करने के लिए अश्वगंधा, मूसली , काली मूसली की समान मात्रा लेकर कूट छानकर रख लें, इसका सुबह 1 चम्मच की मात्रा दूध के साथ लेना चाहिए। डायबिटीज के लिए अश्वगंध और मेथी का चूर्ण पानी के साथ लेना चाहिए।
    इसके नियमित सेवन से हिमोग्लोबिन में वृद्धि होती है। कैंसर रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता बढाती है।
    अश्वगंधा और बहेड़ा को पीसकर चूर्ण बना लें और थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर इसका एक चम्मच( टी स्पून) गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। इससे दिल की धड़कन नियमित और मजबूत होती है। दिल और दिमाग की कमजोरी को ठीक करने के लिए एक एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण सुबह-शाम एक कप गर्म दूध से लें।
    अश्वगंधा का चूर्ण को शहद एवं घी के साथ लेने से श्वांस रोगों में फायदा होता है और दर्द निवारक होने के कारण बदन दर्द में लाभ मिलता है।
    समान मात्रा में अश्वगंधा, विधारा, सौंठ और मिश्री को लेकर बारीक चूर्ण बना लें। सुबह और शाम इस एक एक चम्मच चूर्ण को दूध के साथ सेवन करने से शरीर में शक्ति, ऊर्जा वीर्य बल बढ़ता है। या सुबह-शाम एक-एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण को घी और मिश्री मिले हुए दूध के साथ लेने से शरीर में चुस्ती स्फूर्ति आ जाती है।
    अश्वगंधा के चूर्ण को शहद के साथ चाटने से शरीर बलवान होता है।हाई ब्लड प्रेशर के लिए 10 ग्राम गिलोय चूर्ण, 20 ग्राम सूरजमुखी बीज का चूर्ण, 30 ग्राम अश्वगंधा जड़ का चूर्ण और 40 ग्राम मिश्री लेकर इन सब को एक साथ मिळाले और शीशे के जार में भर कर रख ले और एक एक टी स्पून दिन में 2-3 बार पानी के साथ सेवन करें हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होगा।
    एक गिलास पानी में अश्वगंधा के ताजा पत्ते उबाल कर छानकर चाय की तरह तीन-चार दिन तक पीयें, इससे कफ और खांसी ठीक होती है।अश्वगंधा की जड़ से तैयार तेल से जोड़ों पर मालिश करने से गठिया जकडन को कम करता है तथा अश्वगंधा के पत्तों को पिस कर लेप करने से थायराइड ग्रंथियों के बढ़ने की समस्या दूर होती है।
    अश्वगंधा पंचांग यानि जड़, पत्ती, तना, फल और फूल को कूट छानकर एक-डेढ़ चम्मच (टेबल स्पून) सुबह शाम सेवन करने से जोड़ों का दर्द ठीक होता है। आधा चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण को सुबह-शाम गर्म दूध तथा पानी के साथ लेने से गठिया रोगों को शिकस्त मिलती है तथा समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और घी में थोडा शक्कर मिलाकर सुबह-शाम खाने से संधिवात दूर होता है।
    अश्वगंधा का चूर्ण में बराबर का घी मिलाकर या एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण में आधा चम्मच सोंठ चूर्ण और इच्छानुसार चीनी मिला कर सुबह-शाम नियमित सेवन से गठिया में आराम आता है।
    अश्वगंधा और मेथी की समान मात्रा और इच्छानुसार गुड़ मिलाकर रसगुल्ले के समान गोलियां बना लें। और सुबह-शाम एक एक गोली दूध के साथ खाने से वात रोग खत्म हो जाते हैं।
    अश्वगंधा और विधारा चूर्ण को सामान मात्रा में मिलाकर सुबह शाम एक-एक (टी स्पून) दूध के साथ लेने से वीर्य में वृद्धि होती है और संभोग क्षमता बढ़ती है, स्नायुतंत्र ठीक होकर क्रोध नष्ट हो जाता है, बार-बार आने वाले सदमे खत्म हो जाते हैं और जोड़ो का दर्द खत्म हो जाता है।
    एक चम्मच अश्वगंधा के चूर्ण के साथ एक चुटकी गिलोय का चूर्ण मिलाकर शहद के साथ चाटने से सभी रोगो में लाभ मिलता हैं।
    गिलोय की छाल और अश्वगंधा को मिलाकर शाम को गर्म पानी से सेवन करने से जीर्णवात ज्वर ठीक हो जाता है।
    जीवाणु नाशक औषधियों के साथ अश्वगंधा चूर्ण को क्षय रोग (टी. बी.) के लिए देसी गाय के घी या मिश्री के साथ देते हैं।
    एक चम्मच अश्वगंधा चूर्ण के क्वाथ (काढा) में चार चम्मच घी मिलाकर पाक बनाकर तीन माह तक सेवन करने से गर्भवती महिलाओं की शारीरिक दुर्बलता दूर होती हैं।
    अश्वगंधा, शतावरी और नागौरी तीनो को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बनायें, फिर देशी घी में मिलाकर इस चूर्ण को मिट्टी के बर्तन में रखें, इसी एक चम्मच चूर्ण को मिश्री मिले दूध के साथ सेवन करने से स्तनों का आकार बढ़ता है।
    मासिक-धर्म शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले समान मात्रा में अश्वगंधा चूर्ण और चीनी मिला कर रख ले इस चूर्ण की दो चम्मच सुबह खाली पेट पानी से सेवन करे। मासिक-धर्म शुरू होते ही इसका सेवन बंद कर दे।इससे मासिक धर्म सम्बन्धी सभी रोग समाप्त होंगे।
    अश्वगंधा चूर्ण का लगातार एक वर्ष तक सेवन करने से शरीर के सारे दोष बाहर निकल जाते हैं पुरे शरीर की सम्पूर्ण शुद्धी होकर कमजोरी दूर होती है।
    दूध में अश्वगंधा को अच्छी तरह पका कर छानकर उसमें देशी घी मिलकर माहवारी समाप्त होने के बाद महिला को एक दिन के लिए सुबह और शाम पिलाने से गर्भाशय के रोग ठीक हो जाते हैं और बाँझपन दूर हो जाता है।
    अश्वगंधा का चूर्ण, गाय के घी में मिलाकर मासिक-धर्म स्नान के पश्चात् प्रतिदिन गाय के दूध या ताजे पानी के साथ 1 चम्मच महीने भर तक नियमित सेवन करने से स्त्री निश्चित तोर पर गर्भधारण करती है।अथवा अश्वगंधा की जड़ के काढ़े और लुगदी में चौगुना घी मिलाकर पकाकर सेवन करने से भी स्त्री गर्भधारण करती है।
    गर्भपात का बार-बार होने पर अश्वगंधा और सफेद कटेरी की जड़ का दो-दो चम्मच रस गर्भवती महिला 5 - 6 माह तक सेवन करने से गर्भपात नहीं होता।
    गर्भधारण न कर पाने पर अश्वगंधा के काढे़ में दूध और घी मिलाकर स्त्री को एक सप्ताह तक पिलाए या अश्वगंधा का एक चम्मच चूर्ण मासिक-धर्म के शुरू होने के लगभग सप्ताह पहले से सेवन करना चाहिए।
    समानं मात्रा में अश्वगंधा और नागौरी को लेकर चूर्ण बना ले। मासिक-धर्म समाप्ति के बाद स्नान शुद्धी होने के उपरांत दो चम्मच इस चूर्ण का सेवन करें तो इससे बांझपन दूर होकर महिला गर्भवती हो जाएगी।



    यह औषधि काया कल्प योग की एक प्रमुख औषधि मानी जाती है एक वर्ष तक नियमित सेवन काया कल्प हो जाता है।

    रक्तशोधन के लिए अश्वगंधा और चोपचीनी का बारीक चूर्ण समान मात्रा में मिला कर हर रोज सुबह-शाम शहद के साथ चाटे।
    अश्वगंधा कमजोर, सूखा रोग पीड़ित बच्चों व रोगों के बाद की कमजोरी में, शारीरिक और मानसिक थकान बुढ़ापे की कमजोरी, मांसपेशियों की कमजोरी व थकान आदि में अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण देसी गाय का घी और पाक निर्धारित मात्रा में सेवन कराते हैं । मूल चूर्ण को दूध के अनुपात के साथ देते हैं।
    सामान्य चेतावनी :-गर्म प्रकृति वालों के लिए अश्वगंधा का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।
    साधारणत: सामान्य आदमी अश्वगंधा जड़ का आधा चम्मच चूर्ण सुबह खाली पेट पानी से ले ऊपर से एक कप गर्म दूध या चाय लें सकते है।नाश्ता 15-20 मिनट बाद ही करें। किसी भी जडी -बूटी को सवेरे खाली पेट सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
    और कोई भी और्वेदिक औषधि तीन माह तक नियमित सेवन के बाद 10-15 दिन का अंतराल देकर दोबारा फिर से शुरू कर सकते है
    आपको कोई बीमारी न हो तो भी अश्वगंधा का तीन माह तक नियमित सेवन किया जा सकता है। इससे शारीरिक क्षमता बढ़ने के साथ साथ सभी उक्त बिमारियों से निजात मिल जाती है|

    विशिष्ट परामर्श-
    जोड़ों का दर्द ,संधिवात,,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि  वात जन्य रोगों में  जड़ी - बूटी निर्मित  हर्बल औषधि  ही अधिकतम प्रभावकारी  सिद्ध  होती है| रोग को जड़ से  निर्मूलन  करती है| बिस्तर पकड़े पुराने रोगी  भी निर्बाध सक्रियता हासिल करते हैं| बड़े अस्पताल मे महंगे इलाज के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से लाभान्वित हुए हैं|औषधि के लिए  वैध्य दामोदर  से  98267-95656 पर संपर्क  करने की सलाह दी जाती है|






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