13.11.23

चना और गुड साथ खाने के सेहत को लाभ और नुकसान




स्वस्थ रहने के लिए हम सभी सुबह खाली पेट तरह-तरह की चीजों का सेवन करते हैं। इसमें गुड़ और चना भी शामिल हैं। जी हां, गुड़ और चना, दोनों ऐसी चीजें हैं, जो आपको हेल्दी रखने में मदद कर सकते हैं। दरअसल, गुड़ में कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर और प्रोटीन जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। वहीं, चने में भी प्रोटीन, फाइबर, मैंगनीज, विटामिन बी6, फोलेट और आयरन की मात्रा अधिक होती है। वैसे तो अकसर लोग गुड़ और चने का सेवन कई तरीकों से करते ही हैं। लेकिन आप चाहें तो गुड़ और चने को एक साथ मिलाकर भी खा सकते हैं। गुड़ और चने को साथ में खाने से मांसपेशियों और हड्डियों को मजबूती मिलेगी। साथ ही, इन दोनों को सुबह खाली पेट साथ में खाने से प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत बनती है।
 गुड़ का सेवन सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है. गुड़ और चने का साथ में सेवन कर शरीर को कई लाभ मिल सकते हैं. भूने चने सेहत के लिए गुणकारी माने जाते हैं. चने को प्रोटीन का सबसे अच्छा सोर्स माना जाता है. गुड़ (Benefits Of Jaggery) एंटी-ऑक्सिडेंट और सेलेनियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माने जाते हैं. तो वहीं चना (Roasted Gram) कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, फाइबर व विटामिन-बी सहित कई अन्य पोषक तत्वों का अच्छा सोर्स है. रोजाना गुड़ और चना खाने से इम्यूनिटी को मजबूत, एनर्जी को बूस्ट किया जा सकता है. इतना ही नहीं एनीमिया की शिकायत होने पर गुड़ और चने का सेवन फायदेमंद माना जाता है
 भुना चना (Roasted Chana) सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है. अगर भुने चने के साथ गुड़ को खाया जाए तो सर्दियों में ये सोने पर सुहागा जैसा हो जाता है. गुड़ और चना दोनों ही सेहत के लिए काफी लाभदायक होते हैं. इसके साथ ही गुड़ चना प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट्स का पावर हाउस भी होता है. भुने हुए चने के साथ गुड़ (Jaggery) को खाने से ये न सिर्फ इम्यूनिटी को बूस्ट करता है बल्कि कैल्शियम से भरपूर होने की वजह से हड्डियों में भी मजबूती लाता है. गुड़-चना साथ खाने से मेटाबॉलिज्म बेहतर होने के साथ ही मेमोरी में भी सुधार आता है. भुने हुए चने और गुड़ का सेवन स्किन और दांतों के लिए भी काफी फायदेमंद होता है.

चना और गुड़ साथ खाने के फायदे :

कब्ज से छुटकारा दिलाए


आजकल ज्यादातर लोगों को पेट से जुड़ी समस्याओं से परेशान होना पड़ रहा है। अगर आपको भी अपच या कब्ज जैसी दिक्कतें हैं, तो आप रोज सुबह खाली पेट गुड़ और चना खा सकते हैं। गुड़ और चना शरीर में पाचन एंजाइमों को सक्रिय करते हैं। इससे रोज सुबह आपका पेट आसानी से साफ होने लगेगा। इससे शरीर में जमा सारे विषाक्त पदार्थ आसानी से बाहर निकलेंगे और लिवर की भी सफाई होगी।

इम्यूनिटी बूस्टर – 

भुना हुआ चना हो या फिर सादा चना दोनों ही सेहत को बराबर फायदा पहुंचाते हैं. विंटर में रोस्टेड चने के साथ गुड़ को भी खाया जाए तो ये शरीर की एनर्जी को बढ़ाने के साथ ही इम्यूनिटी भी बूस्ट करते हैं. गुड़-चना एंटीऑक्सीडेंट्स और मिनरल्स जैसे जिंक, सेलेनियम से भी भरपूर होते हैं जो फ्री रेडिकल डेमैज को रोकते हैं और संक्रमण के खिलाफ प्रतिरोधकता को बढ़ाते हैं.

पेट के लिए-

गुड़ और चने का सेवन करने से पेट संबंधी कई समस्‍याओं से बचा जा सकता है. गुड़ और भुने चने में मौजूद फाइबर के गुण पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं.

मस्तिष्क के लिए लाभकारी


गुड़ और चना खाने से सिर्फ शारीरिक लाभ ही नहीं मिलते हैं, बल्कि इन दोनों को खाने से मस्तिष्क का विकास भी तेजी से होता है। रोज सुबह खाली पेट गुड़ और चना खाने से याद्दाश्त तेज करने में मदद मिलती है। दरअसल, चने में विटामिन बी6 होता है, जो दिमाग की कार्यक्षमता में सुधार करता है और मेमोरी पावर को बढ़ाता है।

एनीमिया-

अगर आपको खून की कमी की शिकायत है तो आप गुड़ और चने का सेवन कर सकते हैं. चने और गुड़ में आयरन पाया जाता है, जो खून की कमी को दूर करने में मदद कर सकता है.

मोटापा-

भुने चने मोटापे को कम करने के लिए फायदेमंद माने जाते हैं. चने में फाइबर के गुण पाए जाते हैं, जो पेट को लंबे समय तक भरा हुआ एहसास कराते हैं. जिससे आप अधिक खाने से बच सकते हैं.

हड्डियों का दर्द दूर करे

अगर आपको हड्डियों में दर्द रहता है, तो अपनी डाइट में गुड़ और चने को जरूर शामिल करें। गुड़ और गुड़ में कैल्शियम, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। अगर आप रोजाना गुड़ और चना एक साथ खाएंगे, तो हड्डियां मजबूत बनेंगी। इससे हड्डियों का दर्द दूर होगा और आप हेल्दी महसूस करेंगे।

हड्डियों-

हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए रोज गुड़ और चने का सेवन करें. गुड़ और चने में मौजूद कैल्शियम हड्डियों को कमजोर होने से बचाने में मदद कर सकता है.

सावधानी-

  गर्मी बढ़ने के साथ-साथ हमें आहार संबंधी आदतों में भी बदलाव लाने की जरूरत होती है. क्योंकि अच्छी डाइट हमारे स्वास्थ्य को हेल्दी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. हालांकि कई चीजें ऐसी भी होती हैं जो पोषक तत्वों का भंडार मानी जाती हैं, लेकिन उनको मौसम के अनुसार ही खाए जाए तो बेहतर होता है. ऐसी एक करामाती चीज का नाम है गुड़. यह खाने में जितना टेस्टी, सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद भी होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक्सपर्ट गर्मियों में गुड़ खाने की सलाह क्यों नहीं देते हैं. दरअसल गर्मियों में खनिज और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर गुड़ का सेवन स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है. गुड़ का अधिक सेवन पाचन को धीमा कर सकता है.


बढ़ सकता वजन: 

नेचुरल मिठाई के नाम से पहचाना जाने वाला गुड़ (Jaggery) कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. गुड़ बॉडी को एनर्जी देने के साथ-साथ मेटाबॉलिज्म को मजबूत करने में भी मदद करता है. यही वजह है कि ज्यादातर लोग गुड़ का सेवन करते हैं. बेशक गुड़ खाने के कई फायदे हों, लेकिन इसके नुकसान भी हो सकते हैं. दरअसल 100 ग्राम गुड़ में करीब 385 कैलोरी पाई जाती है. साथ ही गुड़ में कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है. ऐसे में डायटिंग करने वाले लोगों को गुड़ खाने से बचना चाहिए. हालांकि कम मात्रा में गुड़ खाने से अधिक असर नहीं पड़ता है

ब्लड शुगर की समस्या: 

चीनी के मुकाबले गुड़ अधिक मीठा होता है. ऐसे में यदि गुड़ का सेवन ज्यादा किया जाए, तो ब्लड शुगर की समस्या बढ़ सकती है. दरअसल, गुड़ का सेवन करने से ब्लड शुगर को बढ़ावा मिलता है. इसको खाने से रातों-रात आपका शुगर लेवल बढ़ सकता है. ऐसे में जरूरी है कि डायबिटीज के मरीज गर्मियों में गुड़ के सेवन से बचें.

आंतों के लिए घातक: 

गुड़ का अधिक सेवन करने से आंतों को भी नुकसान हो सकता है. इससे आंतों में कीड़े होने की आशंका बढ़ जाती है. दरअसल, गुड़ ज्‍यादातर गांवों में तैयार किया जाता है, जहां इसे बनाते समय इसकी शुद्धता पर कम ध्‍यान दे पाते हैं. इस स्थिति में इनमें छोटे जीव रह जाते हैं, जो आपकी हेल्थ को खराब कर सकते हैं. इसके अलावा कई बार गुड़ का गर्मियों में ज्यादा सेवन करने से एलर्जी की परेशानी हो सकती है.

गठिया में नुकसानदायक: 

गर्मियों में गुड़ का अधिक सेवन करने से गठिया का दर्द बढ़ सकता है. दरअसल, गुड़ पूरी तरह शुद्ध नहीं होता है. इसमें काफी मात्रा में सुक्रोज पाया जाता है, इसलिए गठिया के मरीजों को खासकर गर्मियों में गुड़ नहीं खाना चाहिए. इसके अलावा सुक्रोज आपके शरीर में बनने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड में दिक्कत करता है, जिससे शरीर में जलन और सूजन की शिकायत हो जाती है.

नाक से खून आना: 

सर्दियों में गुड़ खाना जितना फायदेमंद, गर्मियों में उतना ही नुकसानदायक हो सकता है. गर्मियों में गुड़ के सेवन से नकसीर फूटने का भी खतरा बढ़ सकता है. दरअसल, गुड़ की तासीर गर्म होती है, इसलिए नाक से खून निकलने की शिकायत बढ़ जाती है. इसी वजह है एक्सपर्ट गर्मियों में गुड़ ना खाने की सलाह देते हैं


ग्रीन काफी के फायदे और नुकसान




  चाय और कॉफी हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गए हैं। जहां पहले लोग इन्हें सिर्फ स्वाद के लिए पीते थे, वहीं आज स्वास्थ्य के लिहाज से इनका सेवन किया जा रहा है। आज हर्बल और ग्रीन-टी के रूप में कई विकल्प बाजार में उपलब्ध हैं। इसके साथ ही ग्रीन कॉफी का नाम भी इसी क्रम में जुड़ गया है। बात हो वजन घटने की या फिर अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं की, तो ग्रीन कॉफी एक बेहतर विकल्प हो सकती है। स्टाइलक्रेज के इस लेख में आप पढ़ेंगे ग्रीन कॉफी के फायदे किस प्रकार शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। साथ ही इस लेख में आप ग्रीन कॉफी के उपयोग और ग्रीन कॉफी के नुकसान के विषय में भी जानेंगे। पाठक इस बात पर जरूर गौर करें कि ग्रीन कॉफी लेख में शामिल किसी भी स्वास्थ्य समस्या का इलाज नहीं है। यह केवल इनके प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मददगार हो सकती है।
बाकी सभी खाने की चीजों की तरह, ग्रीन कॉफी भी पिछले कुछ साल से वजन कम करने में फायदे के तौर पर सामने आई है। यह सच है कि ग्रीन कॉफी को वजन कम करने के लिए जानी जाती है और इसका सेवन करने से कुछ किलो जरुर कम हो जाते हैं। लेकिन ग्रीन कॉफी के फायदे सिर्फ यहां तक ही सीमित नहीं हैं। ग्रीन कॉफी एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है जो अपने साथ कई सारे फायदे लेकर आता है। इस बात की तह तक जाने के लिए हम आपके लिए ग्रीन कॉफी के फायदे और नुकसान के साथ- साथ ग्रीन कॉफी को बनाने की विधि की जानकारी लेकर आए हैं।
 ग्रीन कॉफी भी एक ऐसा उत्‍पाद है जो हमारे अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें मौजूद पोषक तत्‍व और विशेष रूप से एंटीऑक्‍सीडेंट हमारे शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए लाभकारी होते हैं। कुछ लोग वजन घटाने और विशेष स्‍वास्‍थ्‍य उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए इसका नियमित सेवन करने की सलाह देते हैं। इस लेख में आप ग्रीन कॉफी के फायदे और नुकसान की जानकारी प्राप्‍त करेगें।
  चाय से ज्यादा लोग कॉफी को प्राथमिकता देते है। कोई इसे सुबह पीना पसंद करता है तो कोई अपनी थकान मिटाने के लिए पीता है तो कोई इसे मीठा खाने के बाद पीना पसंद करते है। इस कॉफी को पीने के फायदे है लेकिन वो सीमित है। हाल ही में ग्रीन कॉफी के बारे में पता चला है ये वजन कम करने में काफी मदद करता है। इस कॉफी में ज्यादा कुछ खास फर्क नहीं है, बस इस कॉफी की बीन्स कच्चे रुप में होती है। आमतौर पर कॉफी बीन्स को निकाल कर भूना जाता है ताकि उनका स्वाद अच्छा हो और महक अच्छी हो जाए। कई शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि इस कॉफी की बीन्स का स्वास्थ से महत्वपूर्ण संबंध है।
समय-समय पर पेय पदार्थों के स्वरूप और उनके सेवन के तरीकों में बदलाव कर स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाने की कवायद दुनिया भर में होती रहती है। ग्रीन कॉफी ऐसा ही एक प्रयोग है। फिलहाल इसके लाभ और नुकसान को लेकर कई तरह के शोध किए जा रहे हैं।
हाल ही में आए शोधों के मुताबिक नई ग्रीन कॉफी ईजाद की गई है। इतना ही नहीं ग्रीन कॉफी को लेकर शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि सुबह-सुबह खाली पेट यानी नाश्ते से पहले ग्रीन कॉफी का नियमित रूप से सेवन किया जाए तो आप आसानी से अपना वजन कम कर सकते हैं।

* क्या है ग्रीन कॉफी?

ग्रीन टी के चलन के साथ ही ग्रीन कॉफी को लेकर भी बहुत चर्चाएं की जाने लगीं। यह असल में कच्चे, बिना सिके हुए कॉफी के बीज होते हैं। इन्हें इसी स्वरूप में पीसकर काम में लाया जाता है। चूंकि ये प्राकृतिक और कच्चे रूप में काम में लिए जाते हैं, इसलिए इसे ग्रीन कॉफी कहा जाता है।

*शोधों में इस बात का भी खुलासा हुआ कि ग्रीन काफी कुछ ग्रीन टी के समान है। लेकिन ग्रीन कॉफी इसलिए भी अधिक फायदेमंद है क्योंकि ग्रीन कॉफी के कच्चे और बिना भुने स्वरूप में जो तत्व मौजूद होते हैं उनसे पाचन क्षमता ठीक रहती है और ठीक इसके विपरीत इन्हीं तत्वों से वजन नियंत्रण में भी मदद मिलती है।
*रिसर्च के दौरान यह भी बात सामने आई है कि यदि ग्रीन कॉफी के कच्चे और बिना भुने स्वरूप को भूना जाएगा तो इससे असरकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि जो लोग सामान्य कॉफी पीने के शौकीन हैं उनका वजन कम नहीं होता क्योंकि इसे असरकारक तत्व भूनने के दौरान खत्म हो चुके होते हैं।
*दुनिया भर में कॉफी के इन बीजों का प्रयोग वजन घटाने के लिए विकल्प के तौर पर किया जा रहा है। लोग तेजी से इस ट्रैंड को अपना रहे हैं। असल में जानकारों का कहना है कि रोस्ट होने, यानी सिकने की प्रक्रिया में कॉफी के बीजों में मौजूद कुछ हेल्दी, प्राकृतिक रसायन नष्ट हो जाते हैं। पिछले कुछ समय में हुए कुछ शोध इस परिणाम को दर्शाने में सफल रहे हैं कि ग्रीन कॉफी का प्रयोग वजन घटाने में मदद कर सकता है।

 रक्तचाप में ग्रीन कॉफी पीने के फायदे – 

कई समस्याओं को दूर करने के साथ ही ग्रीन कॉफी रक्तचाप की समस्या को कम करने में भी फायदेमंद हो सकती है। एनसी

बीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, ग्रीन कॉफी में पाए जाने वाले उच्च पॉलीफोनिक पदार्थो में क्लोरोजेनिक एसिड का महत्वपूर्ण स्थान है। यह माना जाता है कि एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर क्लोरोजेनिक एसिड रक्तचाप की समस्या को कुछ हद तक कम करने में कारगर हो सकता है।

हड्डियों की मजबूती के लिए ग्रीन कॉफी 

 सेहत के साथ ही ग्रीन कॉफी का उपयोग हड्डियों को मजबूती प्रदान करने के लिए भी किया जा सकता है। दरअसल, 100 ग्राम ग्रीन कॉफी में 108 मिलीग्राम कैल्शियम की मात्रा पाई जाती है। वहीं, हड्डियों की मजबूती और विकास के लिए कैल्शियम जरूरी पोषक तत्व है। इससे हम अनुमान लगा सकते हैं कि कैल्शियम की कमी के कारण होने वाली हड्डियों के नुकसान को रोकने के लिए ग्रीन कॉफी का सेवन फायदेमंद हो सकता है। फिलहाल, सीधे तौर पर ग्रीन टी हड्डियों के लिए किस प्रकार फायदेमंद हो सकती है, यह शोध का विषय है।

एकाग्रता और मूड में सुधार –

याददाश्त और मानसिक सुधार में भी ग्रीन काॅफी फायदेमंद हो सकती है। एक शोध के अनुसार, ग्रीन कॉफी बीन्स में कुछ मात्रा कैफीन की होती है। शोध में पाया गया कि कैफीन, सामान्य तौर पर मूड, ध्यान, स्मृति और सतर्कता को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकता है। इसके अलावा, एक अन्य शोध में पाया गया कि अल्जाइमर के रोगियों पर ग्रीन कॉफी बीन्स का उपयोग फायदेमंद हो सकता है। शोध के अनुसार, इसमें न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं, जो अल्जाइमर की समस्या में फायदेमंद हो सकते हैं।

. एंटीऑक्सीडेंट –

ग्रीन कॉफी के बीजों में क्लोरोजेनिक एसिड पाया जाता है, जिसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर को फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस से बचाए रखने में मददगार हो सकता है। वहीं, एक शोध में जिक्र मिलता है कि एंटीऑक्सीडेंट गुण फ्री रेडिकल्स को जन्म देने वाले रोग जैसे कि उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पार्किंसंस (केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से जुड़ा विकार) और अल्जाइमर (भूलने की बीमारी) से बचाव में मदद कर सकते हैं। फिलहाल, इस विषय पर अभी और शोध किए जाने की आवश्यकता है।

. भूख पर नियंत्रण –

लगातार भूख लगने की समस्या को ग्रीन कॉफी के जरिए ठीक किया जा सकता है। दरअसल, इसमें भूख को कम करने की क्षमता होती है। यह खाने की इच्छा को नियंत्रित कर सकती है, जिससे वजन को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। हालांकि, ग्रीन कॉफी का कौन-सा गुण भूख को कम करता है, यह अभी शोध का विषय है.

पार्किंसंस बीमारी में फायदे मंद

ऐसे लोग जो पार्किंसंस नामक मस्तिष्क के विकार से पीड़ित हैं उनके लिए कॉफी पीने के फायदे देखे जा सकते हैं। आपको बता दें कि इस रोग के दौरान व्यक्ति को चलने फिरने में भी दिक्कत होने लगती है। ऐसे में कॉफी के अंदर मौजूद कैफीन तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित कर देता है। जिससे पार्किंसंस की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। वहीं अगर आप नियमित रूप से कॉफी का सेवन करते हैं तो यह आपको पार्किंसंस रोग से बचाकर भी रखती है।

अल्जाइमर और डिमेंशिया में

आज के समय में अल्जाइमर और डिमेंशिया के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। आपको बता दें कि अल्जाइमर एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति धीरे – धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है। ऐसे में अल्जाइमर से बचने के लिए कॉफी का सहारा लिया जा सकता है। ज्ञात हो कि कॉफी के अंदर कैफीन होता है और यह हमारे नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करके कॉग्निटिव काम करने में हमारी सहायता करता है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि कॉफी के लाभ आपको अल्जाइमर और डिमेंशिया में देखने को मिल सकते हैं। 

ग्रीन काफी मे ओआरएसी ज्यादा मात्रा में होता है-

*ओआरएसी यानि ऑक्सीजन रेडिकल एबजॉरबेंस केपेसिटी ये एक तरीका होता है जिससे एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा की जांच की जाती है। जब ग्रीन कॉफी की बीन्स की जांच की गई तो पाया गया कि इसमें एंटीऑक्सीडेंट अधिक मात्रा में है। हाल ही के अध्यन में पता चला है कि ये कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को भी रोकने में कारगर है। दरअसल ये कैंसर के सेल को बनने से रोकती है।

*स्ट्रोक से बचाने में -

कॉफी के सेवन का लाभ ना केवल स्ट्रोक से बचाने में देखा गया है। बल्कि कई अध्ययन तो यह तक बताते हैं कि कॉफी के सेवन से उच्च रक्तचाप की समस्या कम होती है और डायबिटीज एंव हृदय रोग से भी बचा जा सकता है। इस स्थिति में अगर आपके परिवार में डायबिटीज के या उच्च रक्तचाप के मरीज हैं तो आपको इसका सेवन जरूर करना चाहिए। वरना यह रोग आपको भी कभी भी हो सकता है।

*ऊर्जा बढ़ाती है- 

ये भी पाया गया कि ग्रीन कॉफी मेटाबॉलिजम रेट को बढ़ाती है जो कि आपकी दिनचर्या को पूरा करने में ऊर्जा देता है।

*वजन कम करता है- 

कॉफी पीने के फायदे वजन घटाने में भी देखे जाते हैं। आपको बता दें कि कॉफी के सेवन से हमारा मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है। इसके जरिए शरीर खाए गए भोजन के जरिए अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। इसके अलावा कॉफी के जरिए शरीर में गर्मी पैदा होती है जो फैट को जलाने का काम करती है। कॉफी के इन्हीं गुणों की वजह से वजन घटाने में कारगर माना जाता है।

डिप्रेशन की समस्या 

आज के समय में ज्यादातर लोग डिप्रेशन की समस्या से परेशान हैं। इन सभी लोगों के लिए कॉफी बहेत गुणकारी हो सकती है। आपको बता दें कि हाल ही में कुछ अध्ययन हुए हैं। यह अध्ययन बताते हैं कि कॉफी के सेवन से अल्फा एमिलेज नामक एंजाइम को बढ़ावा देता है। ज्ञात हो कि यह गुण ही तनाव, डिप्रेशन से राहत दिलाने का काम करता है। ऐसे में अगर आपको डिप्रेशन या तनाव रहता है तो कॉफी का सेवन कर सकते हैं। साथ ही अगर आप नियमित रूप से कॉफी का सेवन करते हैं तो इससे आप डिप्रेशन से भी बचे रहते हैं।

पार्किंसंस बीमारी में फायदे मंद

ऐसे लोग जो पार्किंसंस नामक मस्तिष्क के विकार से पीड़ित हैं उनके लिए कॉफी पीने के फायदे देखे जा सकते हैं। आपको बता दें कि इस रोग के दौरान व्यक्ति को चलने फिरने में भी दिक्कत होने लगती है। ऐसे में कॉफी के अंदर मौजूद कैफीन तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित कर देता है। जिससे पार्किंसंस की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है। वहीं अगर आप नियमित रूप से कॉफी का सेवन करते हैं तो यह आपको पार्किंसंस रोग से बचाकर भी रखती है।

अल्जाइमर और डिमेंशिया में

आज के समय में अल्जाइमर और डिमेंशिया के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। आपको बता दें कि अल्जाइमर एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति धीरे – धीरे अपनी याददाश्त खोने लगता है। ऐसे में अल्जाइमर से बचने के लिए कॉफी का सहारा लिया जा सकता है। ज्ञात हो कि कॉफी के अंदर कैफीन होता है और यह हमारे नर्वस सिस्टम को उत्तेजित करके कॉग्निटिव काम करने में हमारी सहायता करता है। इस लिहाज से कहा जा सकता है कि कॉफी के लाभ आपको अल्जाइमर और डिमेंशिया में देखने को मिल सकते हैं। 


यूं सामान्य तौर पर किसी भी चीज का सेवन हद से ज्यादा करना तकलीफदेह हो सकता है। ग्रीन कॉफी के मामले में भी यह बात लागू होती है। इसके अलावा, कुछ विशेष परिस्थितियों में इसके साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
*पेट की खराबी
 
* सिरदर्द
*एंग्जायटी आदि।
वहीं इसमें मौजूद कैफीन की मात्रा के कारण ग्रीन कॉफी का ज्यादा सेवन नुकसान पहुंचा सकता है। विशेषकर कुछ खास शारीरिक स्थितियों वाले लोगों के लिए, जिनमें शामिल हैं:
* ऑस्टियोपोरोसिस
* ब्लीडिंग डिसऑर्डर्स आदि से ग्रसित लोग।
* ग्लूकोमा
* डायबिटीज
* हाई ब्लड प्रेशर
* इरिटेबल बाउल सिंड्रोम
*ग्रीन कॉफी या इसके सप्लीमेंट्स का सेवन करने के लिए भी कुछ खास बातों को ध्यान में रखना जरूरी है। अन्यथा इससे तकलीफ हो सकती है। इसलिए इसके सेवन से पहले डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी है। डॉक्टर विशेष तौर पर बच्चों और गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन न करने की सलाह देते हैं।
*इसके साथ ही कुछ विशेष औषधियों का सेवन करने वालों के लिए भी ग्रीन कॉफी के सेवन को लेकर सतर्कता बरतने की सलाह दी जाती है, क्योंकि ग्रीन कॉफी में मौजूद कुछ तत्व इन औषध्ाियों के रसायनों के साथ मिलकर प्रतिक्रिया कर सकते हैं। ऐसी औषधियाँ हृदय रोगों के लिए, कमजोर हड्डियों के लिए, लंग डिसीज, मेनोपॉज, डिप्रेशन, स्कित्जोफ्रेनिया जैसी तकलीफों के लिए ली जाने वाली औषधियाँ शामिल हैं।
शोधों के मुताबिक, यदि आप अपने वजन से बहुत परेशान हैं लेकिन आप डायट चार्ट भी फॉलो नहीं करना चाहते तो आपको ग्रीन कॉफी का सेवन करना चाहिए।
*ग्रीन कॉफी का सबसे बड़ा फायदा है कि आप एक महीने में ही लगभग 2 किलोग्राम वजन आसानी से कम कर सकते हैं। इसके लिए आपको कोई अतिरिक्त मेहनत भी नहीं करनी होगी।

यदि आप नियमित रूप से ग्रीन कॉफी यानी हरी काफी  का सेवन करते हैं तो ग्रीन कॉफी में मौजूद क्लोरोजेनिक एसिड आपकी आहार नली में शुगर की मात्रा को कम कर देता है। इसके साथ ही ग्रीन कॉफी से आपके फैट के खत्म होने के प्रक्रिया एकदम तेज हो जाती है।

दिमाग को तेज करता है- 

इस ग्रीन कॉफी को पीने से आपका मूड तो अच्छा हो ही जाता है लेकिन ये आपके दिमाग को भी तेज करता है। ये आपके दिमाग की गतिविधियों, प्रतिक्रिया, याददाश्त, सतर्कता को तेज करता है।

एंटी एजिंग- 

आजकल ऐसा कौन है जो जवां दिखना नहीं चाहता है, हर कोई अपनी बढ़ती उम्र को रोकना चाहता है। ग्रीन कॉफी इस मामले में काफी मददगार है, जी हां ये उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा कर देती है।

कैफीन की मात्रा कम होती है- 

जैसा की आपको हमने पहले बताया है कि इस कॉफी के बीन्स को भूना नहीं जाता है, इसका कच्चे रुप में ही सेवन किया जाता है। इसलिए इसमें सामान्य कॉफी की तुलना में कैफीन की मात्रा कम होती है। हालांकि कैफीन वजन कम करने में मदद करता है और आपके एकाग्रता में सुधार लाता है। लेकिन इसका ज्यादा सेवन करना आपके स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है।


11.11.23

सूखी आँख की समस्या क्या है? क्या हैं उपचार? Dry Eye Syndrome





पानी वाली आंखें क्या हैं?

आँखों में पानी आना, एपिफोरा या फटना, एक ऐसी स्थिति है जिसमें चेहरे पर आँसुओं का अतिप्रवाह होता है, अक्सर बिना किसी स्पष्ट स्पष्टीकरण के, आँसू आँख की सामने की सतह को स्वस्थ रखते हैं और स्पष्ट दृष्टि बनाए रखते हैं, लेकिन बहुत अधिक आँसू होने पर दृष्टि में बाधा। एपिफोरा किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है, हालांकि, यह उन लोगों में अधिक आम है जो एक वर्ष से कम या 60 वर्ष से अधिक उम्र के हैं और एक या दोनों आंखों पर इसका प्रभाव हो सकता है।

1 – ड्राई आई सिंड्रोम की परेशानी उम्र के बढ़ने से भी हो सकती है| अक्सर 60 साल के बाद लोगो की आँखों में ये परेशानी आमतौर पर ज्यादा होती है|

2 – गर्भावस्था हर महिला की जिंदगी में एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है, महिलाओ में गर्भावस्था के दौरान उनके शरीर में हार्मोन्स बदलाव काफी होते है जिसकी वजह से उनकी आँखों में ड्राई आई सिंड्रोम की परेशानी हो सकती है|

3 – बहुत सारे लोग उच्च रक्तचाप, मुँहासे, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी, पार्किंसंस रोग, मधुमेह, थायरॉइड विकार, रूमेटोइड गठिया इत्यादि परेशानी से ग्रस्त होते है| जिसकी वजह से वो दवाई खाते है, जिनमे से कुछ दवाइओ की वजह से भी ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या हो सकती है|

4 – कई बार बहुत से लोगो की आँख में चोट लग जाती है या किसी भी कारण से आँख में सूजन हो जाती है, तो इन कारणों से कई बार आँखों की ग्रंथियों को चोट या परेशानी हो जाती है| इस चोट या परेशानी से आंसुओ में पानी की कमी हो जाती है जिसकी वजह से ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या देखने को मिल सकती है, ऐसे में आपको कभी भी लापरवाही नहीं करनी चाहिए|

5 – कांटेक्ट लेंस का बहुत अधिक इस्तेमाल करने से भी आपकी आंखो मे ड्राई आई सिंड्रोम हो सकता है, इसीलिए लगातार बहुत अधिक समय तक कांटेक्ट लेंस न लगाए, लेंस लगाना जरुरी हो तो बीच बीच में थोड़ी देर के लिए लेंस जरूर हटाए|

6 – बहुत से इंसान मोबाइल, टीवी और कंप्यूटर के आगे बहुत देर तक बैठे रहते है जिसकी वजह से उनकी आँखों में आंसुओ का पानी सूखने लगने लगता है जिसकी वजह से ड्राई आई सिंड्रोम की दिक्कत हो सकती है, इसीलिए कभी भी मोबाइल, टीवी और कंप्यूटर पर लगातार नजर न जमाए थोड़ी देर आँखों को आराम जरूर दे |

सूखी आँख की समस्या क्या है? What is the problem of dry eye?

सूखी आंखें तब हो सकती हैं जब आंसू बहुत जल्दी वाष्पित (evaporated) हो जाते हैं, या आंखें बहुत कम आंसू पैदा करती हैं। आँखों से जुड़ी यह समस्या मनुष्यों और कुछ जानवरों में आम है। यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है और इससे सूजन हो सकती है। दृष्टि को सही बनाए रखने के लिए और आँखों को स्वस्थ बनाएं रखने के लिए आँसू की आवश्यकता होती है। आँखों में बनने वाले आँसू निम्नलिखित उत्पादों का एक संयोजन है:

पानी, नमी के लिए

तेल, स्नेहन के लिए और आंसू तरल के वाष्पीकरण को रोकने के लिए
बलगम, आंख की सतह पर आंसू भी फैलाने के लिए

संक्रमण के प्रतिरोध के लिए एंटीबॉडी और विशेष प्रोटीन

यह सभी घटक आंख के आसपास स्थित विशेष ग्रंथियों द्वारा स्रावित (secreted) होते हैं। जब इस आंसू प्रणाली में असंतुलन या कमी होती है, या जब आँसू बहुत जल्दी वाष्पित हो जाते हैं, तो व्यक्ति को सूखी आंख की समस्या यानि ड्राई आई सिंड्रोम (Dry Eye Syndrome) की समस्या हो सकती है।
ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या क्यों होती है? Why does dry eye syndrome occur?
ड्राई आँख की समस्या आँसुओं की वजह से होती है। अगर आँसू की किसी भी परत में समस्या आ जाए तो सुखी आँखों की समस्या हो सकती है। आँसुओं की तीन परतें होती हैं, तैलीय बाहरी परत, पानी वाली बीच की परत और भीतरी बलगम की परत होती है। यदि किसी व्यक्ति के आँसू के विभिन्न तत्वों का उत्पादन करने वाली ग्रंथियां सूज जाती हैं या पर्याप्त पानी, तेल या बलगम का उत्पादन नहीं करती हैं, तो इससे ड्राई आई सिंड्रोम (Dry Eye Syndrome) हो सकता है। जब व्यक्ति के आँसुओं से तेल गायब हो जाता है, तो वे जल्दी से वाष्पित हो जाते हैं और आपकी आँखों में नमी की निरंतर आपूर्ति नहीं हो पाती है। ड्राई आई सिंड्रोम के कारणों में शामिल हैं :-
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी
किसी एलर्जी के कारण
लेसिक नेत्र शल्य चिकित्सा
उम्र बढ़ने के कारण
लंबेसमय तक संपर्क लेंस पहनना
लंबे समय तक कंप्यूटर पर बैठना
आँखें न झपकने से
आँखों को सामान्य से ज्यादा धोना
कुछ दवाएं, जिनमें एंटीहिस्टामाइन, नेज़ल डीकॉन्गेस्टेंट, बर्थ कंट्रोल पिल्स और एंटीडिप्रेसेंट शामिल हैं
हवा या शुष्क हवा के संपर्क में आने से, जैसे कि सर्दियों के दौरान हीटर के लगातार संपर्क में रहना।

जब कोई व्यक्ति सूखी आँखों की समस्या से जूझता है तो वह निम्नलिखित लक्षणों की सहायता से इसकी पहचान कर सकता है :-

आँखों में चुभन या जलन
आंखों में सूखापन
आँखे लाल होना
आँखों में किरकिरापन
आँखों में दर्द महसूस होना
आँख में रेत जैसा अहसास होना
दोहरी दृष्टि होना
आँखों में या उसके आस-पास कठोर बलगम
धुएं या हवा के प्रति आंख की संवेदनशीलता
आँखें खुली रखने में कठिनाई
पढ़ने के बाद आंखों की थकान
ज्यादा रोने की आदत
आग के संपर्क में ज्यादा रहने की वजह से
धुंधली दृष्टि, विशेष रूप से दिन के अंत में
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता
कॉन्टैक्ट लेंस पहनते समय बेचैनी
जागते समय पलकें आपस में चिपक जाना
ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या के जोखिम कारक क्या है? 
ड्राई आई सिंड्रोम 50 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में अधिक आम है। ग्रामीण भारत में यह समस्या मुख्य रूप से महिलाओं में ज्यादा दिखाई देती है, क्योंकि महिलाएं खाना बनाने के लिए आग के संपर्क में रहती है और दूसरा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा रोती है जिसकी वजह से काफी बार यह समस्या देखि जाती है। इतना ही नहीं पूर्ण पोषण न मिलने की वजह से भी सूखी आँखों की समस्या हो सकती है। जो पुरुष धुम्रपान करते हैं या जो आग के संपर्क में ज्यादा रहते हैं उन्हें भी यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है। जो महिलाएं गर्भवती हैं, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी पर हैं, या रजोनिवृत्ति से गुजर रही हैं, उनमें जोखिम अधिक होता है। निम्नलिखित अंतर्निहित स्थितियां भी आपके जोखिम को बढ़ा सकती हैं:
पुरानी एलर्जी
थायराइड रोग या अन्य स्थितियां जो आंखों को आगे बढ़ाती हैं
ल्यूपस, रुमेटीइड गठिया, और अन्य प्रतिरक्षा प्रणाली विकार
एक्सपोजर केराटाइटिस, जो आंशिक रूप से खुली आँखों से सोने से होता है
विटामिन ए की कमी, जो पर्याप्त पोषण मिलने पर संभव नहीं है
कुछ लोगों का मानना ​​है कि कंप्यूटर स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी के अत्यधिक संपर्क में आने से ड्राई आई सिंड्रोम हो सकता है। फ़िलहाल इसे लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।

सूखी आँखों का उपचार कैसे किया जा सकता है? 

अगर आपको लगता है कि आप सूखी आँखों की समस्या से जूझ रहे हैं तो आप सबसे पहले इस बारे में किसी पंजीकृत चिकित्सक से बात करें और इसका जल्द से जल्द उपचार लेना शुरू करें। सूखी आँखों का उपचार निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है :-

बनावटी आंसू Artificial tears – आंखों की नमी बढ़ाने वाली आई ड्रॉप ड्राई आई सिंड्रोम के सबसे सामान्य उपचारों में से हैं। कृत्रिम आँसू भी कुछ लोगों के लिए अच्छा काम करते हैं, जिससे व्यक्ति की दृष्टि की यह समस्या जल्द ही ठीक हो जाती है।
लैक्रिमल प्लग Lacrimal plugs – नेत्र चिकित्सक रोगी की आंखों के कोनों में जल निकासी छिद्रों को अवरुद्ध करने के लिए प्लग का उपयोग कर सकता है। यह एक अपेक्षाकृत दर्द रहित, प्रतिवर्ती प्रक्रिया है जो आंसू के नुकसान को धीमा करती है। यदि रोगी की स्थिति गंभीर है, तो ही स्थायी समाधान के रूप में प्लग की सिफारिश की जा सकती है।
शल्य चिकित्सा Surgery – यदि रोगी को गंभीर ड्राई आई सिंड्रोम है और यह अन्य उपचारों से दूर नहीं होता है, तो आपका डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश कर सकता है। रोगी की आंखों के अंदरूनी कोनों पर जल निकासी छेद स्थायी रूप से प्लग किया जा सकता है ताकि आपकी आंखों में पर्याप्त मात्रा में आंसू बने रहें।
दवाएं Medications – ड्राई आई सिंड्रोम के लिए सबसे अधिक निर्धारित दवा एक विरोधी भड़काऊ (anti-inflammatory) है जिसे साइक्लोस्पोरिन (रेस्टेसिस) कहा जाता है। दवा आपकी आँखों में आँसू की मात्रा को बढ़ाती है और आपके कॉर्निया को नुकसान के जोखिम को कम करती है। यदि रोगी की सूखी आंख का मामला गंभीर है, तो दवा के प्रभावी होने तक आपको थोड़े समय के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड आई ड्रॉप्स का उपयोग करने की आवश्यकता हो सकती है। वैकल्पिक दवाओं में कोलीनर्जिक्स शामिल हैं, जैसे कि पाइलोकार्पिन। यह दवाएं आंसू उत्पादन को प्रोत्साहित करने में मदद करती हैं। यदि कोई अन्य दवा आपकी आँखों को शुष्क बना रही है, तो रोगी का डॉक्टर आपके नुस्खे को बदल सकता है ताकि आपकी आँखों को सूखा न जाए।

घरेलु उपाय 

 सूखी आँखों की समस्या होने पर आप निम्नलिखित घरेलु उपायों की मदद से भी इससे छुटकारा पा सकते हैं :-
हवा और गर्म हवा से सुरक्षा के लिए रैपराउंड चश्मा पहनना
कंप्यूटर का उपयोग करते समय या टीवी देखते समय होशपूर्वक अधिक बार आँखें झपकाएं
धूम्रपान और धुएँ वाली जगहों से जितना हो सके बचना चाहिए
कमरे का तापमान मध्यम रखना चाहिए
आँखों को ज्यादा धोने से बचें
हवा को नम करने में मदद करने के लिए घर में ह्यूमिडिफायर का उपयोग करना। पर्दों को पानी के महीन स्प्रे से स्प्रे करने से हवा को नम रखने में मदद मिल सकती है
सूखी आँख की समस्या क्या है? What is the problem of dry eye?
सूखी आंखें तब हो सकती हैं जब आंसू बहुत जल्दी वाष्पित (evaporated) हो जाते हैं, या आंखें बहुत कम आंसू पैदा करती हैं। आँखों से जुड़ी यह समस्या मनुष्यों और कुछ जानवरों में आम है। यह एक या दोनों आंखों को प्रभावित कर सकता है और इससे सूजन हो सकती है। दृष्टि को सही बनाए रखने के लिए और आँखों को स्वस्थ बनाएं रखने के लिए आँसू की आवश्यकता होती है। आँखों में बनने वाले आँसू निम्नलिखित उत्पादों का एक संयोजन है:
पानी, नमी के लिए
तेल, स्नेहन के लिए और आंसू तरल के वाष्पीकरण को रोकने के लिए
बलगम, आंख की सतह पर आंसू भी फैलाने के लिए
संक्रमण के प्रतिरोध के लिए एंटीबॉडी और विशेष प्रोटीन
यह सभी घटक आंख के आसपास स्थित विशेष ग्रंथियों द्वारा स्रावित (secreted) होते हैं। जब इस आंसू प्रणाली में असंतुलन या कमी होती है, या जब आँसू बहुत जल्दी वाष्पित हो जाते हैं, तो व्यक्ति को सूखी आंख की समस्या यानि ड्राई आई सिंड्रोम (Dry Eye Syndrome) की समस्या हो सकती है।

ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या क्यों होती है? 

ड्राई आँख की समस्या आँसुओं की वजह से होती है। अगर आँसू की किसी भी परत में समस्या आ जाए तो सुखी आँखों की समस्या हो सकती है। आँसुओं की तीन परतें होती हैं, तैलीय बाहरी परत, पानी वाली बीच की परत और भीतरी बलगम की परत होती है। यदि किसी व्यक्ति के आँसू के विभिन्न तत्वों का उत्पादन करने वाली ग्रंथियां सूज जाती हैं या पर्याप्त पानी, तेल या बलगम का उत्पादन नहीं करती हैं, तो इससे ड्राई आई सिंड्रोम (Dry Eye Syndrome) हो सकता है। जब व्यक्ति के आँसुओं से तेल गायब हो जाता है, तो वे जल्दी से वाष्पित हो जाते हैं और आपकी आँखों में नमी की निरंतर आपूर्ति नहीं हो पाती है। ड्राई आई सिंड्रोम के कारणों में शामिल हैं :-

हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी
किसी एलर्जी के कारण
लेसिक नेत्र शल्य चिकित्सा
उम्र बढ़ने के कारण
लंबे समय तक संपर्क लेंस पहनना
लंबे समय तक कंप्यूटर पर बैठना
आँखें न झपकने से
आँखों को सामान्य से ज्यादा धोना
कुछ दवाएं, जिनमें एंटीहिस्टामाइन, नेज़ल डीकॉन्गेस्टेंट, बर्थ कंट्रोल पिल्स और एंटीडिप्रेसेंट शामिल हैं
हवा या शुष्क हवा के संपर्क में आने से, जैसे कि सर्दियों के दौरान हीटर के लगातार संपर्क में रहना।
सूखी आँख की समस्या होने पर इसके क्या लक्षण दिखाई देते हैं? What are the symptoms of dry eye problem?
जब कोई व्यक्ति सूखी आँखों की समस्या से जूझता है तो वह निम्नलिखित लक्षणों की सहायता से इसकी पहचान कर सकता है :-
आँखों में चुभन या जलन
आंखों में सूखापन
आँखे लाल होना
आँखों में किरकिरापन
आँखों में दर्द महसूस होना
आँख में रेत जैसा अहसास होना
दोहरी दृष्टि होना
आँखों में या उसके आस-पास कठोर बलगम
धुएं या हवा के प्रति आंख की संवेदनशीलता
आँखें खुली रखने में कठिनाई
पढ़ने के बाद आंखों की थकान
ज्यादा रोने की आदत
आग के संपर्क में ज्यादा रहने की वजह से
धुंधली दृष्टि, विशेष रूप से दिन के अंत में
प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता
कॉन्टैक्ट लेंस पहनते समय बेचैनी
जागते समय पलकें आपस में चिपक जाना
ड्राई आई सिंड्रोम की समस्या के जोखिम कारक क्या है? What are the risk factors for dry eyes?
ड्राई आई सिंड्रोम 50 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में अधिक आम है। ग्रामीण भारत में यह समस्या मुख्य रूप से महिलाओं में ज्यादा दिखाई देती है, क्योंकि महिलाएं खाना बनाने के लिए आग के संपर्क में रहती है और दूसरा पुरुषों के मुकाबले ज्यादा रोती है जिसकी वजह से काफी बार यह समस्या देखि जाती है। इतना ही नहीं पूर्ण पोषण न मिलने की वजह से भी सूखी आँखों की समस्या हो सकती है। जो पुरुष धुम्रपान करते हैं या जो आग के संपर्क में ज्यादा रहते हैं उन्हें भी यह समस्या होने की आशंका ज्यादा रहती है। जो महिलाएं गर्भवती हैं, हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी पर हैं, या रजोनिवृत्ति से गुजर रही हैं, उनमें जोखिम अधिक होता है। निम्नलिखित अंतर्निहित स्थितियां भी आपके जोखिम को बढ़ा सकती हैं:
पुरानी एलर्जी
थायराइड रोग या अन्य स्थितियां जो आंखों को आगे बढ़ाती हैं
ल्यूपस, रुमेटीइड गठिया, और अन्य प्रतिरक्षा प्रणाली विकार
एक्सपोजर केराटाइटिस, जो आंशिक रूप से खुली आँखों से सोने से होता है
विटामिन ए की कमी, जो पर्याप्त पोषण मिलने पर संभव नहीं है
कुछ लोगों का मानना ​​है कि कंप्यूटर स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी के अत्यधिक संपर्क में आने से ड्राई आई सिंड्रोम हो सकता है। फ़िलहाल इसे लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है।
सूखी आँखों का उपचार कैसे किया जा सकता है? How can dry eyes be treated?
अगर आपको लगता है कि आप सूखी आँखों की समस्या से जूझ रहे हैं तो आप सबसे पहले इस बारे में किसी पंजीकृत चिकित्सक से बात करें और इसका जल्द से जल्द उपचार लेना शुरू करें। सूखी आँखों का उपचार निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है :-
बनावटी आंसू Artificial tears – आंखों की नमी बढ़ाने वाली आई ड्रॉप ड्राई आई सिंड्रोम के सबसे सामान्य उपचारों में से हैं। कृत्रिम आँसू भी कुछ लोगों के लिए अच्छा काम करते हैं, जिससे व्यक्ति की दृष्टि की यह समस्या जल्द ही ठीक हो जाती है।
लैक्रिमल प्लग Lacrimal plugs – नेत्र चिकित्सक रोगी की आंखों के कोनों में जल निकासी छिद्रों को अवरुद्ध करने के लिए प्लग का उपयोग कर सकता है। यह एक अपेक्षाकृत दर्द रहित, प्रतिवर्ती प्रक्रिया है जो आंसू के नुकसान को धीमा करती है। यदि रोगी की स्थिति गंभीर है, तो ही स्थायी समाधान के रूप में प्लग की सिफारिश की जा सकती है।
शल्य चिकित्सा Surgery – यदि रोगी को गंभीर ड्राई आई सिंड्रोम है और यह अन्य उपचारों से दूर नहीं होता है, तो आपका डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश कर सकता है। रोगी की आंखों के अंदरूनी कोनों पर जल निकासी छेद स्थायी रूप से प्लग किया जा सकता है ताकि आपकी आंखों में पर्याप्त मात्रा में आंसू बने रहें।
दवाएं Medications – ड्राई आई सिंड्रोम के लिए सबसे अधिक निर्धारित दवा एक विरोधी भड़काऊ (anti-inflammatory) है जिसे साइक्लोस्पोरिन (रेस्टेसिस) कहा जाता है। दवा आपकी आँखों में आँसू की मात्रा को बढ़ाती है और आपके कॉर्निया को नुकसान के जोखिम को कम करती है। यदि रोगी की सूखी आंख का मामला गंभीर है, तो दवा के प्रभावी होने तक आपको थोड़े समय के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड आई ड्रॉप्स का उपयोग करने की आवश्यकता हो सकती है। वैकल्पिक दवाओं में कोलीनर्जिक्स शामिल हैं, जैसे कि पाइलोकार्पिन। यह दवाएं आंसू उत्पादन को प्रोत्साहित करने में मदद करती हैं। यदि कोई अन्य दवा आपकी आँखों को शुष्क बना रही है, तो रोगी का डॉक्टर आपके नुस्खे को बदल सकता है ताकि आपकी आँखों को सूखा न जाए।

घरेलु उपाय

1– सबसे पहले आपको थोड़ी सी हरी चाय की पत्तियाँ लेनी है, उन पत्तियों को पानी में उबाल ले, जब तक पानी उबल कर आधा ना रह जाए| पानी जब ठंडा हो जाए तब थोड़ी सी रुई लेकर उसे पानी में भिगो कर अपनी आँख के ऊपर रखे, रुई को अपनी आँख पर 15 से 20 मिनट तक रखे फिर हटा दे| ऐसा करने से आपको काफी आराम मिलेगा |

2 – एक कच्चा आलू लेकर छील ले, छिलने के बाद अच्छी तरह से धो ले| अच्छी तरह से धोने के बाद आलू को महीन पीस ले, पीसने के बाद आलू के गुद्दे को अच्छी तरह से निचोड़ ले| गुद्दे को अपनी आँखों की पलकों पर लगाए और 10 से 15 मिनट के लिए लेट जाए, रोजाना ऐसा करने से आपको जल्द ही ड्राई आई सिंड्रोम की परेशानी से मुक्ति मिल जाएगी|

3 – ड्राई आई सिंड्रोम की परेशानी से छुटकारा पाने के लिए कैमोमाइल फूल, आईब्राइट डंठल और एलथिया की जड़ लेकर सूखा ले और बारीक पीस ले, फिर आधे गिलास पानी में एक चम्मच मिश्रण को डाल कर अच्छी तरह से उबाल ले और ठंडा होने दे| एक कपास पेड लेकर उसे उस पानी में भिगोए और अपनी आँखों पर रखे कुछ देर बाद हटाए और भिगो कर फिर लगाए| ऐसा करने से आपको जल्द आराम मिलेगा|

4 – अक्सर देखा जाता है बहुत से लोग पानी काफी कम पीते है, जिसकी वजह से परेशानी हो सकती है, इसीलिए दिन में कम से कम 8 से 10 गिलास पानी जरूर पिए|

5 – टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर पर कभी भी लगातार काम ना करे, बहुत अधिक जरुरत हो तो हमेशा थोड़े थोड़े समय बाद 10 से 15 मिनट का ब्रेक जरूर ले | ऐसा करने से आप ड्राई आई सिंड्रोम की परेशानी से निजात पा सकते है|

10.11.23

नौसादर के फायदे और उपयोग की विधि

                                               

 

  नौसादर एक सफ़ेद रंग का दानेदार लवण द्रव्य है | यह करीर और पीलू आदि वृक्षों के कोष्ठों को जलाने पर क्षार के रूप में प्राप्त होता है | इसे ईंटो के भट्टे से प्राप्त राख के क्षार से भी प्राप्त किया जाता है |
आयुर्वेद चिकित्सा में नौसादर को शोधन पश्चात स्वास्थ्य उपयोग में लिया जाता है | यह विभिन्न रोगों जैसे – खांसी, जुकाम, दांतों की पीड़ा, अस्थमा, अपच एवं अजीर्ण आदि में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है |
यह त्रिदोषघन औषधि है जो दीपन, पाचन, सारक, गुल्म एवं प्लीहा जैसी समस्याओं में उपयोगी साबित होती है
नौसादर के अन्य नाम – इसे हिंदी में नौसादर, संस्कृत में नवसादर कहते है | अंग्रेजी में Ammonium Chloride कहा जाता है | इसका रासायनिक सूत्र NH4CL है |

नौसादर का शोधन

इसका शोधन करने के लिए सबसे पहले नौसादर का एक भाग एवं जल तीन भाग लेकर नवसादर को पानी में घोल कर मोटे एवं साफ़ वस्त्र से दो बार छान लें | अब इस छने हुए घोल को एक पात्र में डालकर अग्नि पर चढ़ा दें |
जब जल पूरा भाप बन कर उड़ जाए तब पात्र में बचे शुद्ध नवसादर को इक्कठा कर लें | इसे किसी कांच की शीशी में रख लें |
इस शुद्ध नौसादर का प्रयोग चिकित्सार्थ किया जाता है | इसका सेवन 2 से लेकर 8 रति तक किया जा सकता है |
नौसादर के सहयोग से विभिन्न औषध योगों का निर्माण होता है जैसे – क्षार पर्पटी, शंखद्रावक रस, वृश्चिकदंशहर लेप आदि |

नौसादर के फायदे / रोगोपयोग

खट्टी डकारे : 

नौसादर, कालीमिर्च 5 ग्राम इलायची दाना, 10 ग्राम पोदीना का चूर्ण एक साथ पीसकर रख लें। इसे रोज 3 बार आधा ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लेने से खट्टी डकारें, बदहजमी, प्यास का अधिक लगना, पेट में दर्द, जी मिचलाना और छाती में जलन आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।

खांसी : 

1 कप पानी में 1 चुटकी नौसादर मिलाकर दिन में 3 बार पीने से खांसी ठीक हो जाती है।

 पुराना सिर दर्द : 

10 ग्राम नौसादर को पीस लें, फिर इसे बोतल में भरकर पानी डाल दें। इसे 1-1 चम्मच सुबह-शाम 10-12 दिनों तक लेने से पुराने सिर के दर्द में लाभ होता है। सिर दर्द होने से 1 घण्टे पहले और दर्द बन्द होने के 1 घण्टे बाद 1-1 चम्मच पिलाने से दर्द ठीक हो जाता है।

अण्डकोष की सूजन और दर्द :

1 ग्राम नौसादर को 50 मिलीलीटर शराब में पीसकर अण्डकोषों पर लगाने से अण्डकोषों की सूजन कम हो जाती है।
10 ग्राम नौसादर को पीसकर 400 मिलीलीटर पानी में उबालें इसी पानी में कपड़ा भिगोकर अण्डकोषों को सेंकने से सुजाक के कारण अण्डकोषों की सूजन और दर्द सही हो जाते हैं।

दांतों का दर्द :

नौसादर को ज्वार के दाने के बराबर रूई में लपेटकर सड़न वाले दांतों के नीचे दबाने से दांतों में हो रही पीड़ा नष्ट होती है।
नौसादर, फिटकरी और सेंधानमक बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर पॉउडर (मंजन) बना लें। इसके मंजन से रोजाना मंजन करें तथा सुबह-शाम गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करें। इससे दांतों के दर्द में आराम रहता है।
नौसादर को रूई में लपेटकर दर्द वाले दांत की जड़ में दबाकर रखें।
नौसादर और कपूर को मिलाकर टिकिया अथवा पोटली बनाकर दांतों के खोखल में दबाकर रखें। इससे दांतों के कीड़े मर जाते हैं तथा जबड़े का दर्द खत्म होता है।

श्वास या दमा :

नौसादर पान में रखकर खाने से श्वास-नली के विभिन्न रोग नष्ट हो जाते हैं।
नौसादर को चिलम में रखकर इसका धूम्रपान करने से श्वास रोग नष्ट हो जाते हैं।
नौसादर 10 ग्राम पीसकर तवे के बीचोबीच रख दें। फिर इसके चारों तरफ 3-4 इंच दूर, 200 ग्राम पिसे हुए नमक को गोलाकार में रख दें। तवे के ऊपर एक बड़ा प्याला का कटोरा से ढक दें। फिर तवे को चूल्हे पर चढ़ाकर करीब 1 घंटे तक धीमी आंच पर रखना चाहिए। इसे 1 चुटकी प्रतिदिन शक्कर के बताशे में रखकर दिन में 2 बार लेने से दमे में राहत मिलती है।
 
बादी का बुखार : 

नौसादर 3 ग्राम और कालीमिर्च का चूर्ण 2 ग्राम को मिलाकर देने से पारी का बुखार नहीं चढ़ता है।

 मोतियाबिन्द : 

भुने हुए नौसादर को बारीक पीसकर आंखों में सोते समय सलाई के द्वारा लगाने से मोतियाबिन्द ठीक हो जाता है।

रतौंधी (रात में न दिखाई देना) :

 1 ग्राम नौसादर को 3 ग्राम असली सिंदूर में अच्छी तरह मिलाकर शीशी में भरकर शहद मिलाकर रख दें। इस मिश्रण को सलाई से आंखों पर लगाने से रतौंधी की बीमारी दूर हो जाती है।

 जीभ का स्वाद ठीक करना : 

नौसादर 5 ग्राम और कालीमिर्च 5 ग्राम को पीसकर इसमें शहद मिलाकर जीभ पर रगड़े तथा गंदा पानी बाहर गिरने दें। इससे जीभ की कड़वाहट दूर होती है।

 मसूढ़ों की सूजन : 

नौसादर, संगजराहत एवं फिटकरी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर पॉउडर (मंजन) बना लें। रोजाना इससे मसूढ़ों पर मलने से मसूढ़ों की सूजन दूर होती है।

गर्भनिरोध : 

नौसादर तथा फिटकरी को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर योनि में रखने से स्त्री बन्ध्या (बांझ) हो जाती है।

 जुकाम :

 नौसादर, कपूर और चूने को बराबर मात्रा में मिलाकर 1 शीशी मे भरकर रख लें। इस शीशी को बन्द करके अच्छी तरह से हिला लें और फिर शीशी को खोलकर नाक से सूंघने से बन्द जुकाम खुल जाता है और सिर के दर्द में भी लाभ मिलता है।

चोट : 

चोट और मोच से पैदा दर्द और सूजन पर नौसादर और कलमीशोरा पानी में घोलकर कपड़े भिगोकर पट्टी करने से लाभ होता है।
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 मोच होने पर : 

नौसादर, कलमी शोरा 10-10 ग्राम पीसकर 200 मिलीलीटर पानी में मिलाकर इससे कपड़ा भिगोकर बार-बार मोच पर लगायें।

 आधासीसी (माइग्रेन, आधे सिर का दर्द ) अधकपारी :

नौसादर और कुटकी को पीसकर जल में मिलाकर माथे पर लेप की तरह लगाने से आधासीसी का दर्द दूर हो जाता है।
नौसादर और बड़ी इलायची के छिलकों को महीन पीसकर जिस तरफ आधासीसी है उस तरफ की नाक के छेद से सूंघने से आधासीसी खत्म हो जाती है।
लगभग 10-10 ग्राम नौसादर और हल्दी को पीसकर सूंघने से आधे सिर का दर्द दूर हो जाता है।
लगभग लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम नौसादर खिलाने से आधासीसी का दर्द खत्म हो जाता है।
10 ग्राम नौसादर और 1 ग्राम कपूर को पीसकर चुटकी भर नाक से जोर से सूंघने से आधाशीशी (आधे सिर का दर्द), पूरे सिर का दर्द और दांत का दर्द ठीक हो जाता है।

 उपदंश (फिरंग) : 

नौसादर को पानी में घोल लें, फिर उसमें एक साफ कपड़ा भिगोकर गांठ के ऊपर से रख दें तो वह बैठ जाती है।

 हिस्टीरिया :

 नौसादर और चूना को बराबर मात्रा में मिलाकर एक शीशी में अच्छी तरह से बन्द करके रख दें और जब हिस्टीरिया या सिरदर्द हो या बेहोशी, गुल्यवायु, हो तो शीशी को खोलकर उसकी गैस सूंघा दें, इससे तुरन्त ही लाभ मिलता है।

 मुंह को सुन्न करना : 

अकरकरा और नौसादर को पीसकर तालु और मुख (मुंह) में बहुत ज्यादा रगड़ने से मुंह में इतनी शून्यता (सुन्न हो जाना) पैदा हो जाती है कि अगर मुंह में अंगारे भी भर लें तो मुंह नहीं जलता है।

\गिल्टी (ट्यूमर) : 

नौसादर को पानी में डालकर किसी कपड़े को उस में भिगोकर गिल्टी पर बांधने से आराम मिलता है।

प्लेग (चूहों से होने वाला) रोग :

 नौसादर, आक के फूल, शुद्ध वत्सनाग और पांचों नमक बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक पीस लें। फिर इसे 3 घंटे तक प्याज के बारीक रस में घोंटकर लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसकी 1-1 गोली ताजे पानी के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम और रात को खाने से प्लेग के रोगी को लाभ होता है।

. सिर दर्द :

नौसादर और सीप के चूर्ण को बराबर मात्रा में लेकर सूंघने से सिर का दर्द दूर हो जाता है।
नौसादर में चोआ डालकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को चुटकी भर नाक में रखकर सूर्य की ओर देखने से छींकें आती हैं। इससे सिर का दर्द दूर हो जाता है।

 मिर्गी (अपस्मार) :

नौसादर और बिना बुझा हुआ चूने को बराबर भाग में लेकर एक शीशी में भरकर डॉट लगाकर रख दें। मिर्गी का दौरा आने पर रोगी की नाक से लगाकर तुरन्त हटा लेना चाहिए। इस तरह से रोगी होश में आ जाता है।
50 ग्राम नौसादर को 1 लीटर केले के पत्तों के रस में डालकर रख दें और मिर्गी का दौरा पड़ने पर नाक में इस रस को टपकाने से यह रोग खत्म हो जाता है।

श्वास एवं कास में नौसादर के फायदे

खांसी की समस्या में एक चुटकी नौसादर को गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करने से खांसी से राहत मिलती है |
श्वांस या अस्थमा की शिकायत में यह बहुत लाभदायक रहता है | इसे पान में रखकर खाने से श्वांस नली की रूकावट दूर होती है |
इसकी चिलम भर कर सेवन करने से भी दमा में आराम मिलता है |

जुकाम / बंद नाक

नौसादर के साथ चुने और कपूर को बराबर मात्रा में मिलाकर एक शीशी में भर लें | इस शीशी को अच्छी तरह हिलाकर रख लें | इसे बंद नाक में सूंघने से जुकाम में आराम मिलता है एवं बंद नाक खुल जाती है |

प्लीहा रोग

2 रति के बराबर नौसादर को सेवन करने से प्लीहा रोग में लाभ मिलता है |

नाक से खून का आना (नकसीर) :

 पिसे हुए नौसादर को नाक से सूंघने से नकसीर (नाक से खून बहना) रुक जाती है।

 पेट में दर्द :

नौसादर ठीकरी 10 ग्राम, अजवायन 10 ग्राम, भुनी हुई हींग 10 ग्राम सौंठ 10 ग्राम को अच्छी तरह बारीक पीसकर रख लें, फिर उसमें मीठा सोडा 10 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें, इस बने चूर्ण को 3 ग्राम लेकर गर्म पानी के साथ पीने से लाभ होता है।
नौसादर 4 ग्राम, सुहागा 4 ग्राम और सौंफ 2 ग्राम को अच्छी तरह से बारीक पीसकर उसमें मीठा सोडा 4 ग्राम की मात्रा में मिलाकर रख लें, फिर आधे से 2 ग्राम की मात्रा में सुबह, दोपहर और शाम को रोगी को देने से पेट की बीमारियों में आराम होता है।
नौसादर, सुहागा, एलुआ, हल्दी और फिटकिरी को बारीक पीसकर पानी मिलाकर लेप बना लें, फिर इस लेप को पेट पर लेप लगाने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।
नौसादर लगभग 2 ग्राम को पानी में मिलाकर पीने से पेट के दर्द में आराम मिलता है।

 स्तनों के रोग : 

नौसादर 8 ग्राम को लगभग 50 मिलीलीटर पानी में अच्छी तरह घोलकर स्तनों पर लगाने से स्तनों में पड़ी हुई गांठें पिघल जाती हैं तथा सूजन भी समाप्त हो जाती है। नोट : पहली बार स्तनों में दूध आते समय प्राय: गांठ पड़ जाती है। जिसके कारण सूजन आ जाती है तथा दर्द होने लगता है।

 बच्चों के रोग 

 2 चावल भर नौसादर लें, जितनी उम्र का बच्चा हो उतनी मात्रा के हिसाब से हर रोज दूध में मिलाकर पिला दें। इससे बच्चे का जिगर नहीं बढ़ेगा।

दांतों का दर्द या कीड़े

दांतों की समस्या में नौसादर के साथ फिटकरी, सैन्धव लवण बराबर मात्रा में मिलाकर दांतों पर मालिश करने से दांतों की सभी समस्या से निजात मिलती है |
अगर दांतों में कीड़े लगे हो तो 4 रति नौसादर को 1 / 4 ग्राम अफीम मिलाकर दांतों में दबाने से कीड़े मरकर बाहर निकल जाते है |
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1.11.23

कान में हवा बहने ,गर्जना,सिटी बजने जैसी आवाज (Tinitus) होने लगे तो क्या करें ?



Tinnitus एक प्रकार की बीमारी होती है जिसमें मरीज़ को कई प्रकार की ध्वनि का एहसास होता रहता है, जैसे घंटी बजना, भिनभिनाहट या फुफकारने की ध्वनि, आदि । ऐसी ध्वनि एक या दोनों कान में सुनाई दे सकती है, हालाँकि मरीज़ को कई बार भ्रम होता है की यह ध्वनि उसके सिर से आ रही है ।
 कान से आने वाली आवाज को दूर करने में कुछ घरेलू उपाय बेहद काम आ सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति के कानों से बार-बार आवाज आ रही है या उसे सीटी जैसा महसूस हो रहा है तो वह धनिया की चाय से इस समस्याओं को दूर कर सकता है। बता दें कि धनिया की चाय से कान से आवाज को कंट्रोल किया जा सकता है। ध्यान दें कि चाय में आपको साबूत धनिया का इस्तेमाल करना हाेता है। जब भी किसी व्यक्ति को बार-बार सीटी जैसी आवाज आए तो वह अपने बैकग्राउंड में म्यूजिक को चला सकता है। इससे उसका ध्यान कानों से आने वाली आवाज से हट जाएगा और बैकग्राउंड पर चल रहे म्यूजिक पर चला जाएगा। ऐसा करने से भी कानों से आने वाली आवाज बंद हो सकती है। हालांकि व्यक्ति को ज्यादा तेज म्यूजिक का इस्तेमाल नहीं करना है।
नियमित रूप से एक्ससाइज करने से न केवल दिमाग की कार्य क्षमता मजबूत होती है बल्कि आपकी रक्त वाहिकाएं भी तंदुरुस्त बनती है। तुलसी का उपयोग कान से आने वाली आवाज को दूर करने में उपयोगी है। ऐसे में व्यक्ति तुलसी की चाय के सेवन से कान की समस्या को दूर कर सकता है।
इसके अलावा तुलसी और शहद के सेवन से भी कान की समस्या दूर होती है। चाहें तो नियमित रूप से तुलसी की कुछ पत्तियों को अच्छे से धोकर सुबह के समय चबा सकता है। अदरक के अंदर कई एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं, जो न केवल शरीर की कई समस्याओं को दूर करने में उपयोगी हैं, बल्कि कान की कई समस्याओं को दूर करने में भी सहायक हैं। ऐसे में व्यक्ति अदरक की चाय का सेवन करने से कान से आने वाली आवाज को दूर कर सकता है। इसके अलावा व्यक्ति शहद और अदरक के रस का सेवन करने से भी सीटी की समस्या से निजात पा सकता है। सेव के सिरके के इस्तेमाल से भी कान में शोर टिनिटस की समस्या को दूर किया जा सकता है। बता दें कि सेव के सिरके के अंदर भरपूर मात्रा में दर्द निवारक और एंटी फंगल गुण मौजूद होते हैं, जो न केवल कान की समस्या को दूर करने में उपयोगी है, बल्कि कान से आने वाली आवाज से भी राहत पहुंचा सकते हैं।
Tinnitus की ध्वनि अलग-अलग प्रकार की होती है, जिसमें उसका स्वर ऊँचा या नीचा या बदलता हुआ हो सकता है, कभी यह ध्वनि लगातार हो सकती है या कभी रुक-रुक कर और इस ध्वनि की तीव्रता कभी तेज़, कभी धीमी या बदलती हुई हो सकती है ।
सामान्यतया जनता में Tinnitus की मौजूदगी बहुत आम होती है । यह सभी आयु वर्ग के लोगों को प्रभावित करता है परन्तु उम्र के साथ-साथ बढ़ता जाता है । यह दोनों लिंग के लोगों में हो सकता है, परन्तु पुरुषों में सामन्यतया ज्यादा देखा गया है । Tinnitus के साथ श्रवण शक्ति भी जा सकती है, हालाँकि ऐसा हमेशा होना जरुरी नहीं होता ।
*सैलिसिलिकम एसिडम यह दवा टिनिटस के कारण बहुत तेज गर्जना या बजने वाली आवाज़ सुनाई देने पर दी जाती है, जो बहरेपन या चक्कर के साथ हो सकता है। ऐसे रोगियों में समस्या फ्लू से शुरू हो सकती है, या मेनियार्स रोग वाले व्यक्ति में हो सकती है। अगर टिनिटस बहुत अधिक एस्पिरिन के कारण होता है तो सैलिसिलिकम एसिडम भी मददगार हो सकता है

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टिनिटस के लिए दवाएं

कुछ लोगों के लिए, चिंता-विरोधी दवाओं की कम खुराक जैसे वैलियम या एलाविल जैसे एंटीडिप्रेसेंट के साथ उपचार टिनिटस को कम करने में मदद करता है। अल्प्राजोलम नामक चिंता-विरोधी दवा के साथ मध्य कान में डाले गए स्टेरॉयड का उपयोग कुछ लोगों के लिए प्रभावी दिखाया गया है।

TINNITUS के कुछ मुख्य कारण हैं

-तेज़ ध्वनि सुनना
बढती उम्र की वजह से श्रवण शक्ति का हास अर्थात Presbyacusis
कान मने मेल का जमना
चोट- सिर में गहरी चोट, गर्दन की चोट
कान का संक्रमण – Otitis media, secretory otitis, labyrynthis.
दवाईयाँ – Tinnitus कुछ दवाईयों की वजह से भी हो सकता है – जैसे एसपिरिन, मलेरिया रोधी दवाईयाँ जैसे – quinine, chloro quinine, mycin group की एंटी बायोटिक दवाईयाँ जैसे Gentamycin, Streptomycin, कीमोथेरेपी की दवाईयाँ, कुछ diuretics.
Hypertension, anaemia, thyroid disorders, diabetes आदि चिकित्सकीय स्थितियाँ
Meniere’s disease.
Cerebellopontine angle के ट्यूमर जैसे acoustic neuroma.
अत्यधिक कैफीन का सेवन
शराब का सेवन
माइग्रेन
Tinnitus की शिकायत करने वाले मरीजों क०ओ audiological एवं गहन चिकित्सकीय जाँच करवानी चाहिए ताकि अन्तर्निहित कारणों का पता लगाया जा सके ।

TINNITUS का सामना करने की युक्तियाँ

आस-पास का शोर बढ़ा देना : धीमे स्वर में संगीत सुनने से मरीज़ का ध्यान tinnitus से भटकाया जा सकता है ।
ख़ामोशी से बचाव : Tinnitus की ध्वनि अक्सर भोर अथवा रात के सन्नाटे में ज्यादा परेशान करती है ।
मरीज़ के अत्यधिक नीरव अथवा चुप्पी वाले हालात से बचना चाहिए, क्योंकि ऐसे में tinnitus की ध्वनि अधिक तेज़ सुनाई देती है तथा परेशान करती है ।

धूम्रपान से बचें :

 धूम्रपान करने से श्रवण तंत्रिका को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों का संकुचन हो जाता है, जिससे संवेदनशील श्रवण कोशिकाओं का रक्त प्रवाह रुक जाता है और उससे tinnitus ज्यादा बढ़ जाता है ।
शराब का पूर्णतः प्रतिबन्ध

तेज़ ध्वनि से बचाव : 

अगर आप ऐसे वातावरण में कार्य करते हैं जहाँ आस-पास अत्यधिक तीव्रता की आवाजें होती हों तो आप को अपनी नाजुक श्रवण तंत्रिकाओं को नुकसान से बचाने के लिए कान के संरक्षण उपकरण जरुर पहनने चाहिए ।

TINNITUS से जुडी भ्रांतियां

यह लाइलाज बिमारी है ।
इससे श्रवण शक्ति का ह्वास होता है ।
श्रवण सहायक तंत्र से कोई मदद नहीं मिलती है ।
एक किसी मष्तिष्क रोग का संकेतक है ।
यह जानलेवा होती है ।
अगर उचित मूल्यांकन एवं जाँच की जाये तथा सही समय पर निदान किया जाये, तो tinnitus को पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है ।