25.6.23

लोध्र के आयुर्वेदिक उपयोग Ayurvedic uses of Lodhra

 



लोध्रा क्या है?

लोध्रा (lodhra herb) के पेड़ मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल पतली तथा छिलकेदार होती है। इसके फूल सफेद और हल्के पीले रंग के तथा सुगन्धित होते हैं। लोध्रा के द्वारा लाख (लाक्षा) को साफ किया जाता है, इसलिए इसे लाक्षाप्रसादन भी कहते हैं।
इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिन्हें क्रमश: लोध्र व पठानी लोध्र कहते हैं। लोध्रा कषैला, कड़ुआ, पचने में हल्का, रूखा, कफ-पित्त का नाशक और आँखों के लिए लाभकारी होता है।

अनेक भाषाओं में लोध्रा के नाम

लोध्रा का लैटिन नाम Symplocos racemosa Roxb. (सिम्प्लोकॉस रेसिमोसा) Syn-Symplocos intermedia Brand है और यह कुल Symplocaceae (सिम्प्लोकेसी) का है। इसे अन्य इन नामों से भी जाना जाता हैः-
Lodhra in –
Hindi (lodhra meaning in hindi) – लोध
Urdu – लोधपठानी (Lodapathani)
Oriya – लोधो (Lodho)
English – Californian cinchona (कैलीफोर्नियन सिनकोना) लोध बार्क (Lodh tree), स्माल बार्क ट्री (Small bark tree), लॉटर बार्क (Lotur bark)
Arabic – मूगामा (Moogama)।
Sanskrit – लोध्र, तिल्व, तिरीट, गालव, स्थूलवल्कल, जीर्णपत्र, बृहत्पत्र, पट्टी, लाक्षाप्रसादन, मार्जन
Assamese -भोमरोटी (Bhomroti); कन्नड़ : पाछेट्टू (Pachettu), लोध (Lodh), लोध्र (Lodhara)
Konkani – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Gujarati – लोधर (Lodar)
Telugu (Lodhra in Telugu) – लोड्डूगा (Lodduga), लोधूगा चेट्टु (Lodhdhuga-chettu)
Tamil (Lodhra Meaning in Tamil) – वेल्ली-लोथी (Velli-lothi), काम्बली वेत्ती (Kambali vetti)
Bengali – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Marathi – मराठी – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Nepali – लोध्र (Lodhara)
Malayalam – पाछोत्ती (Pachotti)

लोध्रा का औषधीय गुण

लोध्रा आँख, कान, मुंह और स्त्री रोगों आदि के लिए रामबाण का काम करती है। यह खून की गर्मी, मधुमेह, थैलीसिमिया आदि रक्त से जुड़े रोग, बुखार, पेचिश, सूजन, अरुचि, विष तथा जलन आदि का नाश करता है। इसके फूल तीखे, कड़ुए, ठंडी तासीर वाले होते हैं जो कफ व पित्त का नाश करने वाले होते हैं। इसके तने की छाल सूजन कम करने वाली, बुखार को ठीक करने वाली, खून का बहाव रोकने वाली, पाचन सुधारने वाली होती है।

लोध्रा के फायदे

अब तक आपने जाना कि लोध्रा के कितने नाम हैं। आइए अब जानते हैं कि लोध्रा का औषधीय प्रयोग कैसे और किन बीमारियों में किया जा सकता हैः-

मोटापा घटाने के लिए करें लोध्रा का सेवन

लोध्रा का औषधीय गुण वजन कम करने में बहुत काम आता है। 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से मोटापा जल्दी कम होने में मदद मिलती है।

आँखों के रोग में लोध्रा का प्रयोग 

आँखों के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता हैं-
आँख में शुक्र रोग होने पर हल्दी, मुलेठी, सारिवा तथा पठानी लोध्र के काढ़ा से सेंकना चाहिए। इसके अलावा लोध्र के सूक्ष्म चूर्ण (Lodhra Powder) को स्वच्छ कपड़े के टुकड़े में बांधकर पोटली बना लें। इसे गुनगुने जल में डुबाकर आंखों को सेंकना चाहिए।
सफेद लोध्र को घी में भूनकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुनगुने जल में भिगोकर, खूब मल लें। इसे ठंडा करके कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आँखों के दर्द से छुटकारा मिलता है।
लोध्र को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लेप करने से भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
सेंधा नमक, त्रिफला, पीपल, लोध्र तथा काला सुरमा को बराबर मात्रा में लें। इसे नींबू के रस में घोंटकर आंख में काजल की तरह लगाएं। इससे भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
हरड़ की गुठली की मींगी, हरड़ चूर्ण, हल्दी, नमक तथा लोध्र का बराबर मात्रा ले। इनके चूर्ण को हरड़ के पत्तों के रस में घोटकर आंख पर लगाने से भी आंखों से जुड़े विकारों का नाश होता है।
आँख आने पर पठानी लोध्र की छाल के चूर्ण को घी में भून लें। इसे आँख के बाहरी भाग में लेप लगाने से लाभ होता है। आप चिकित्सक से सलाह लेकर पतंजलि लोध्रा चूर्ण का प्रयोग भी कर सकते हैं।
पित्तरक्त के कारण आँख आने पर बराबर मात्रा में श्वेत लोध्र की छाल तथा मुलेठी का चूर्ण बना लें। इन्हें घी में भूनकर उसकी पोटली बनाकर दूध से भिगोएं। इसकी बूंदों को आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।
आँख फूलने पर सफेद लोध्र की छाल के चूर्ण को गाय के घी में भून लें। इसकी पोटली बनाकर गुनगुने जल में भिगोकर, मसलकर, ठंडा कर लें। इस जल से आंखों को धोने से लाभ होता है।
आँखों में जलन, खुजली तथा दर्द आदि की हालत में घी में भुने लोध्र एवं सेंधा नमक को कांजी से पीसकर पोटली बना लें। इसकी बूँदों को आंखों में गिरने से जलन, खुजली तथा दर्द का नाश होता है।
पित्त, रक्त एवं वात विकार के कारण आँख आने पर नींबू के पत्ते तथा लोध्र की छाल को पुटपाक विधि से पकाएं।। इसके चूर्ण अथवा काढ़े में दूध मिलाकर आंखों में 2-2 बूंद टपकाने से लाभ होता है।
लोध्र तथा मुलेठी को समान मात्रा में लें। इनके चूर्ण बनाकर घी में भूनकर, बकरी के दूध में मिला लें। इसे आँखों पर लगाने से भी आँख आने की समस्या में लाभ होता है।
खून की अशुद्धता से आंख आने पर त्रिफला, लोध्र, मुलेठी, शक्कर और नागरमोथा का उपयोग करें। इनको समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर चारों तरफ लगाने से लाभ होता है।
लाख, मुलेठी, मंजीठ, लोध्र, कृष्ण सारिवा तथा कमल को समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर लगाने से भी आंखों की समस्या में लाभ होता है।

पीलिया में लोध्रा का इस्तेमाल लाभदायक

अगर पीलिया के लक्षणों से आराम नहीं मिल रहा है तो 15-20 मिली लोध्रासव (symplocos racemosa) का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग में लाभ मिलने की संभावना रहती है।

कान के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल फायदेमंद

कान के रोग से परेशान हैं? लोध्रा को दूध में पीसकर, छान लें। इसे कान में 1-2 बूंद डालने से कान के रोगों से राहत मिलती है।

दांतों के रोग में लोध्रा के उपयोग से लाभ

दांत की जड़ों/मसूड़ों से खून आने की स्थिति में लोध्रा की छाल का काढ़ा बना लें। इसका गरारा/कुल्ला करने से दांतों से खून आना बंद हो जाता है और मुंह के रोगों में लाभ होता है।

लोध्रा के सेवन से सूखी खाँसी का इलाज

लोध्रा के 2-3 ग्राम पत्तों को पीस लें। इसे घी में भूनकर उसमें शक्कर मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी बंद होती है, अधिक प्यास लगने की समस्या ठीक होती है, खांसी ठीक होती है तथा आँव-पेचिश आदि में लाभ होता है।

पेट के कीड़े को खत्म करने के लिए करें लोध्रा का उपयोग

पेट में कीड़ा हुआ है और इस परेशानी के कारण रातों की नींद हराम है। इसके लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से पेट के कीड़े या तो नष्ट हो जाते हैं या निकल जाते हैं।

लोध्रा के उपयोग से श्वेतप्रदर/ल्यूकोरिया का इलाज

2-3 ग्राम पठानी लोध्र की छाल के पेस्ट में बरगद की छाल का 20 मिली काढ़ा मिला लें। इसे पीने से श्वेत प्रदर मतलब ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
लोध्र का काढ़ा बनाकर योनि को धोने से ल्यूकोरिया तथा अन्य योनि-विकारों में लाभ होता है।
तुम्बी के पत्ते और लोध्र की छाल को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे योनि पर लेप करने से प्रसूता स्त्री के योनि के घाव भर जाते हैं।

गर्भपात रोकने में मदद करता है लोध्रा

आठवें माह में यदि गर्भपात की आशंका हो तो 1-2 ग्राम लोध्र चूर्ण (lodhra powder), मधु और एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दूध में घोलकर गर्भवती को पिलाने से गर्भ स्थिर हो जाता है और गर्भपात होने का खतरा कम हो जाता है।

मासिक धर्म विकार में लोध्रा से फायदा

लोध्र की छाल को पीसकर पेट के निचले हिस्से में लगाएं। इससे मासिक धर्म विकारों में लाभ होता है। लोध्र को पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन के दर्द ठीक होते हैं।

घाव सुखाने के लिए करें लोध्रा का इस्तेमाल

अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कटहल की छाल के महीन चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भरता है।
लोध्र, मुलेठी, प्रियंगु आदि के चूर्ण को घाव के मुंह पर छिड़कें। इसे हल्का रगड़ कर पट्टी बाँध देने से खून का थक्का जम जाता है।
उभर रहे घाव में प्रियंगु, लोध्र, कट्फल, मंजिष्ठा तथा धातकी के फूल का चूर्ण छिड़कें। इससे घाव शीघ्र भर जाता है।
मुक्ताशुक्ति चूर्ण मिले हुए धातकी फूल के चूर्ण तथा लोध्र के चूर्ण (lodhra Churna) का प्रयोग करने से भी घाव शीघ्र भर जाता है।

डायबिटीज में लोध्रा 

डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से धीरे धीरे रक्त मे शर्करा की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है।

रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना) की समस्या में लोध्रा 

खून की अशुद्धता में उशीरादि चूर्ण (खस, कालीयक, लोध्र आदि) अथवा लोध्र चूर्ण (1-2 ग्राम) में बराबर मात्रा में लें। इनमें लाल चंदन चूर्ण मिला लें। इसे चावल के धोवन में घोल कर शक्कर मिला कर पिएं। इससे रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना), जलन, बदबूदार सांसों की बीमारी ठीक होती है।

लोध्रा के इस्तेमाल से मुंहासे का इलाज

लोध्र तथा अरहर को पीसकर मुंह पर लेप के रूप में लगाने से चेहरा कान्तियुक्त होता है तथा मुंहासों का नाश होता है।

बवासीर में लोध्रा 

15-20 मिली लोध्रासव (lodhradi) का सेवन करने से अर्श (बवासीर) में फायदा होता है।

बुखार में लोध्रा से फायदा

लोध्र (lodhradi), चन्दन, पिप्पली मूल तथा अतीस के 1-2 ग्राम चूर्ण में शक्कर, घी तथा शहद मिलाकर दूध के साथ पीने से बुखार उतर जाता है।

कुष्ठ रोग में लोध्रा 

कुष्ठ रोग के लक्षणों से आराम पाने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग से राहत मिलने में आसानी होती है।

त्वचा के लिए फायदेमंद लोध्रा

लोध्रा में शीत और कषाय गुण होने के कारण यह त्वचा पर होने वाले कील मुंहासे, जलन आदि स्थिति में ठंडक प्रदान करता है साथ ही त्वचा की सामान्य संरचना को बनाये रखता है।

अल्सर में सहायक लोध्रा 

अल्सर होने का कारण पित्त दोष का बढ़ना होता है जिसके वजह से प्रभावित स्थान पर अत्यधिक जलन होने लगता है। ऐसे में लोध्र के शीत गुण के कारण यह अल्सर जैसी परेशानी में भी लाभ पहुंचाता है साथ ही ये कषाय होने से अल्सर को शीघ्र भरने में मदद करता है।

नकसीर के इलाज में लोध्रा का उपयोग 

नकसीर होने का मुख्य कारण शरीर में पित्त होता है। ऐसे में शरीर में गर्मी बढ़ती है जो कि नकसीर का कारण बनती है। ऐसे में लोध्रा में पाए जाने वाले शीत गुण के कारण यह इस अवस्था में लाभ मदद करता है।

लोध्रा के सेवन की मात्रा

पेस्ट – 2-3 ग्राम

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21.6.23

गुहेरी अंजनहारी Guheri Anjahari ठीक करने के उपाय

 



आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के मत मे विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |


 अंजनहारी के कारण-


डॉक्टर अंजनहारी का कारण विटामिन A और D की कमी मानते हैं।
अंजनहारी का कारण, आम तौर पर एक स्टाफीलोकोकस बैक्टीरिया (staphylococcus bacteria) के कारण होने वाला संक्रमण भी माना जाता है।
पाचन क्रिया में खराबी भी अंजनहारी का कारण है।
अंजनहारी का एक कारण, लगातार रहने वाली कब्ज भी मानी जाती है।
धूल और धुंए समेत अन्य हानिकारक कणों का आँखों में जाना।
बिना हाथ धोए आँखों को छूना।
संक्रमण होना।

आँखों की सफाई पर ध्यान न देना। निरंतर रूप से पानी से न धोना।
वैसे अंजनहारी होने के सटीक कारणों की जानकारी नहीं है, लेकिन ये कुछ कारण हैं जिनकी वजह से यह दिक्क्त आती है।


अंजनहारी के घरेलू उपचार -


१. लौंग को जल के साथ किसी सिल पर घिसकर अंजनहारी पर दिन में दो तीन लेप करने से शीघ्र ही अंजनहारी नष्ट हो जाती है।
२. बोर के ताजे कोमल पत्तों को कूट पीसकर, किसी कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।

३. इमली के बीजों को सिल पर घिसकर उनका छिलका अलग कर दें। अब इमली के सफेद बीज को जल के साथ सिल पर घिस कर दिन में कई बार अंजनहारी (फुसी) पर लगाएं । इसके लगाने से अंजनहारी शीघ्र नष्ट होता है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

3.  १० ग्राम त्रिफला के चूर्ण को ३०० ग्राम जल में डालकर रखें। सुबह बिस्तर से उठने पर त्रिफला के उस जल को कपड़े से छानकर नेत्रों को साफ करने से गुहेरी की विकृति नष्ट होती है। त्रिफला के जल से नेत्रों की सब गंदगी निकल जाती है। प्रतिदिन त्रिफला का ३ ग्राम चूर्ण जल के साथ सुबह शाम सेवन करने से गुहरी की विकृति से राहत मिलती है।

५. काली मिर्च को जल के साथ पीसकर या जल के साथ घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से प्रारंभ में थोड़ी सी जलन होती है, लेकिन जल्दी ही गुहेरी का निवारण हो जाता है।
६. ग्रीष्म ऋतु में पसीने के कारण अंजनहारी की विकृति बहुत होती है। प्रतिदिन सुबह और रात्रि को नेत्रों में गुलाब जल की कुछ बूंदे डालने से बहुत लाभ होता है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

७. त्रिफला चूर्ण ३ ग्राम मात्रा में उबले हुए दूध के साथ सेवन करने से अंजनहारी से सुरक्षा होती है।
८. लौंग को चंदन और केशर के साथ जल के छींटे डालकर, घिसकर अंजनहारी का लेप करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
९. सहजन के ताजे व कोमल पत्तों को कूट पीसकर कपड़े में बांधकर रस निकालें। इस रस को दिन में कई बार अंजनहारी पर लगाने से शीघ्र लाभ होता है।
१०. नीम के ताजे व कोमल पत्तों का रस मकोय का रस बराबर मात्रा में कपड़े से छानकर नेत्रों में लगाने से अंजनहारी के कारण शोथ व नेत्रों की लालिमा शीघ्र नष्ट होती है।

guheree anjanahaaree  ke ghareloo  upachaar

११. अंजनहारी में शोथ के कारण तीव्र जलन व पीड़ा हो तो चंदन के जल के साथ घिसकर दिन में कई बार लेप करने से तुरंत लाभ होता है।

१२) छुहारे के बीज को पानी के साथ घिस लें | इसे दिन में २-३ बार अंजनहारी पर लगाने से लाभ होता है |
१३) तुलसी के रस में लौंग घिस लें | अंजनहारी पर यह लेप लगाने से आराम मिलता है |
१४) हरड़ को पानी में घिसकर अंजनहारी पर लेप करने से लाभ होता है |
१५) आम के पत्तों को डाली से तोड़ने पर जो रस निकलता है,उस रस को गुहेरी पर लगाने से गुहेरी जल्दी समाप्त हो जाती है |
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20.6.23

सफ़ेद मूसली Safed Musli के लाभ : Sex power बढाने वाली जड़ी बूटी

 



 वियाग्रा और जिन्सेंग से कहीं बढ़कर है भारतीय सफ़ेद मूसली. आयुर्वेद में सदियों से ही इसका उपयोग कमजोरी से ग्रस्त रोगियों के लिए किया जाता रहा है. सफ़ेद मूसली के पौधे की जड़ मूसल के समान होती और इसका रंग सफ़ेद होता है इसलिए इसे मुस्ली या मूसली कहा जाता है। यह सफ़ेद मूसली बहुत ही जानी मानी हर्ब है जिसे बहुत सी बिमारियों, मुख्यतः पुरूषों के यौन रोगों male sexual diseases, के उपचार में प्रयोग किया जाता है। सफ़ेद मूसली का कोई साइड-इफेक्ट नहीं होता है। सफ़ेद मूसली एक वाजीकारक aphrodisiac दवा है। सारी दुनिया में सफेद मूसली की बहुत मांग है।
भारत में आजकल इसकी बड़े पैमाने पर सफ़ेद मूसली की खेती भी होने लगी है. भारत में मुख्य रूप से इसकी खेती राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में की जाती है। सफ़ेद मूसली की जड़ या कन्द को जमीन से खोद के निकला जाता है और साफ़ करके सुखा लिया जाता है। फिर इसका पाउडर बना कर दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। सफेद मूसली को आयुर्वेद की दुनिया में चमत्कार माना जाता है। इसे इस्तेमाल करनें से पहले आप यह जान लें कि सफेद मूसली खाने की विधि क्या है?
सफेद मूसली एक प्रकार का पौधा है, जिसके भीतर सफेद छोटे फूल मौजूद होते हैं। यह बहुत सी बिमारियों के इलाज में कारगार साबित हुआ है। इसके अलावा इसे दुसरे पदार्थों के साथ मिलाकर भी औषधि तैयार की जाती है।
मुख्य रूप से सफेद मूसली का प्रयोग सेक्स सम्बन्धी रोगों के लिए किया जाता है। मर्दों में शुक्राणुओं की कमी होनें पर इसका प्रयोग किया जाता है।
मूसली मर्दों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन की मात्रा भी बढ़ाता है। इससे एड्रेनल नामक ग्रंथि अच्छे से कार्य करती है, जो शरीर के कई कार्यों के लिए जिम्मेदार होती है।
सफेद मूसली शरीर में विभिन्न क्रियाओं के सुचारू रूप से चलने को भी सुनिश्चित करता है। यह खून के बहने का भी संचालन करता है। इसके अलावा थकान के समय इसे लेने से थकान दूर होती है।

सफेद मूसली खाने का तरीका:

यदि आप सेक्स सम्बन्धी समस्याओं के लिए मूसली का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप रोजाना सुबह और शाम में एक-एक सफेद मूसली का कैप्सूल दूध के साथ ले सकते हैं।
इसके अलावा यदि आप पाउडर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक बार में आप 3 से 5 ग्राम मूसली का सेवन करें।

सफेद मूसली खाने के तरीके

विभिन्न लोगों के लिए सफेद मूसली खाने के तरीके अलग-अलग होते हैं:
विभिन्न लोगों के लिए सफेद मूसली खाने का तरीका निम्न है:
छोटे बच्चे एक बार में 1 ग्राम से कम
बच्चे (13 -19 साल) 1.5 से 2 ग्राम
जवान (19 से 60 साल) 3 से 6 ग्राम
बुजुर्ग (60 साल से ज्यादा) 2 से 3 ग्राम
गर्भावस्था में 1 से 2 ग्राम
दूध पिलाने वाली माँ 1 से 2 ग्राम
अधिकतम खुराक 12 ग्राम (3-4 बार में)
कब लें: खाना खाने के 2 घंटे बाद
यदि सफेद मूसली लेते समय आपको भूख लगनी बंद हो जाती है, तो खुराक को उसे हिसाब से कम कर लें।
जैसा हमनें बताया कि सफेद मूसली को खाने का तरीका विभिन्न लोगों के लिए अलग है। कई लोग इसे जड़ी-बूटी के रूप में खाना पसंद करते हैं। कई लोग इसे मिठाई के रूप में खाते हैं, जिसे मूसली पाक भी कहते हैं।

सफेद मूसली का सेवन करें थकान और कमजोरी में

सफेद मूसली आपकी थकान और कमजोरी दूर करती है।
मूसली को शक्कर के साथ लेने से शरीर में ताकत आती है और कमजोरी दूर भागती है।
इसके लिए रोजाना दिन में दो बार सफेद मूसली को शक्कर के साथ बराबर मात्रा में लें।

सफेद मूसली के फायदे सेक्स-सम्बन्धी रोग में

अश्वगंधा की तरह ही सफेद मूसली भी आपकी सेक्स ड्राइव को बढ़ाकर आपकी निजी जिन्दगी को बेहतर बनाती है।
यह आपके गुप्तांगों में खून की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे आप लम्बे समय तक उत्तेजित रह सकते हैं।
सफेद मूसली मर्दों में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को काफी हद तक बढ़ा देता है। यह हार्मोन बहुत से कार्यों में जरूरी होता है।
बेहतर परिणाम के लिए आप इसे अकरकरा के साथ लें।

शीघ्र पतन के उपचार का ऑडियो  सुनिए 

सफेद मूसली शुक्राणु बढ़ाने में

शरीर में शुक्राणु की कमी से कई अन्य रोग हो सकते हैं। इसके अलावा इस स्थिति में पुरुष अपना आत्म-विश्वास खोने लगता है। ऐसे में वह कई इलाज खोजता है।
ऐसे स्थिति के लिए काफी समय से लोग सफेद मूसली का इस्तेमाल करते आये हैं।
सफ़ेद मूसली आपके शुक्राणु की मात्रा बढ़ाता है, इनकी गति तेज करता है और शुक्राणु को स्वस्थ बनाता है।

सफेद मूसली जोड़ों के दर्द में

सफ़ेद मूसली को अक्सर लोग शरीर में दर्द के लिए लेते आये हैं। इसका सेवन दर्द में, विशेषकर जोड़ों के दर्द में, बहुत लाभदायक होता है।
यदि आपको लगातार जोड़ों में दर्द है, तो आपको आर्थराइटिस हो सकता है। इसके लिए एक प्राकृतिक इलाज सफ़ेद मूसली है।
आपको बस रोजाना दूध के साथ आधा चम्मच सफेद मूसली लेना है।

ब्रेस्टमिल्क को बढ़ाने में उपयोगी सफेद मूसली

माताओं के स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए सफेद मूसली फायदे का लाभ उठाना चाहिए। इसके लिए सफेद मूसली का प्रयोग इस तरह से करना चाहिए। 2-4 ग्राम सफेद मूसली के चूर्ण में बराबर भाग मिश्री मिला लें। इसे दूध के साथ सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।सफेद मूसली गर्भावस्था में लेने से महिला के प्राकृतिक दूध की मात्रा में बढ़त होती है।
इसके लिए इसे कुछ विशेष पदार्थों जैसे, गन्ना, जीरा आदि के साथ ही लेना चाहिए।
यहाँ एक बात का ध्यान रखें कि यदि आप गर्भ से हैं, तो आपको मूसली लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भावस्था में आप पहले से ही कई दवाइयां लेते हैं, जिससे मूसली आपको नुकसान कर सकती है।

सफेद मूसली डायबिटीज में

सफेद मूसली एक बेहतरीन औषधि है। इसमें डायबिटीज से लड़ने की क्षमता होती है। यदि एक दुबले-पतले व्यक्ति को डायबिटीज है, तो मूसली उसका इलाज करने में सक्षम होती है, लेकिन मोटे व्यक्ति में यह थोड़ा मुश्किल होता है।

सफेद मूसली के फायदे वज़न बढ़ाने में


सफेद मूसली ऐसे व्यक्तियों के लिए वरदान साबित होती हैं जोकि दुबलेपन से परेशान हैं और किसी तरह अपना वजन बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। बता दें कि इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार करने के साथ साथ वजन बढ़ाने में भी लाभदायक सिद्ध होते हैं। सफेद मुसली कुपोषण से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए फायदा पहुंचाती हैं। इसका फायदा प्राप्त करने के लिए सफेद मूसली कैप्सूल का भी उपयोग किया जाता है।सफेद मूसली को दूध के साथ लेने से आपका रक्त चाप भी नियंत्रित होगा।

दस्त को रोकने में सफेद मूसली के फायदे

सफेद मूसली का सेवन करने पर दस्त की परेशानी से निजात मिल सकता है। 2-4 ग्राम सफ़ेद मूसली की जड़ के चूर्ण को दूध में मिला लें। इसका प्रयोग करने से दस्त, पेचिश तथा भूख की कमी जैसी परेशानियों में लाभ मिलता है।
पेट की बीमारी में सफेद मूसली के फायदे

पेट में गड़बड़ी, पेट दर्द, खाना ना खाने की इच्छा, दस्त जैसी समस्याएं होने पर सफेद मूसली का सेवन करें। इसके लिए सफेद मूसली के कंद के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। 1-2 ग्राम कंद (bulb) के चूर्ण का सेवन करने से दस्त, पेट की गड़बड़ी, पेट दर्द और भूख ना लगने की समस्या ठीक होती है।
आप सफेद मूसली को बॉडी बनाने के लिए खा सकते हैं। यह आपकी मांसपेसियों को बढ़ाने में मदद करती है और आपके टिश्यू को मजबूत बनाती है
सफेद मूसली को खाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
आप सफेद मूसली के पाउडर को दूध में मिलाकर ले सकते हैं।
इसके अलावा आप इसे शहद के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं।
आप सफेद मूसली के कैप्सूल को भी दूध या पानी के साथ ले सकते हैं।
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18.6.23

यकृत( Liver) के रोग (Ailments) और निष्क्रियता के लक्षण और रामबाण हर्बल औषधि



 पीलिया यकृत की विकृति अर्थात यकृत के रोगग्रस्त होने के कारण होने वाला रोग है | यकृत के रोग ग्रस्त होने के बाद सबसे पहले लक्षण के रूप में पीलिया (Jaundice) ही प्रकट होता है | इसमें रोगी के त्वचा, नाखूनों, आँखों, एवं मूत्र में पीले रंग की अधिकता हो जाती है | इसका मुख्य कारण रक्त में पित रस की अधिकता (Bile Juice) होना होता है | वैसे दिखने में यह बहुत ही साधारण सा रोग प्रतीत होता है , लेकिन अगर सही समय पर उपचार एवं उचित आहार न लिए जाएँ तो पीलिया जानलेवा रोग बन जाता है |

  पीलिया और अन्य लिवर विकारों से छुटकारा पाने के लिए आयुर्वेदिक उपचार की मदद ली जा सकती है। पीलिया एक बहुत ही आम यकृत विकार है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बहुत अधिक बिलीरुबिन रक्त में घूल जाता है। (बिलीरुबिन लाल रक्त कोशिकाओं से हीमोग्लोबिन के टूटने से उत्पन्न एक यौगिक है)। पीलिया एक शब्द है जिसका उपयोग त्वचा, श्लेष्मा झिल्ली और आंखों का पीला रंग, रक्त में सीरम बिलीरुबिन की अपर्याप्त समाशोधन और बढ़ी हुई मात्रा के कारण होता है।

लिवर में खराबी की पहचान 

पेट के एक हिस्से में लगातार दर्द होना: वैसे तो पेट दर्द होने के कई कारण हो सकते है लेकिन अगर आपके पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से या पसलियों के नीचे दाहिने भाग में लगातार दर्द हो रहा है तो इसका मतलब आपके लिवर में कुछ खराबी है। इस स्थिति में तुरंत डॉक्टर को दिखाएं और उन फूड का सेवन कम करें जिससे आपकी स्थिति बिगड़ने की आशंका हो जैसे जंक फूड, फास्ट फूड आदि।

पेट पर सूजन आना: 

पेट पर सूजन आ जाना या फिर पेट बाहर की ओर निकल जाना लिवर सिरोसिस नाम की बीमारी का संकेत है। इस स्थिति में आपके पेट में तरल पदार्थ जमा होने लगता है और आंतों से रक्तस्राव होने लगता है। अगर समय रहते इस स्थिति का उपचार ना किया जाए तो लिवर कैंसर की शिकायत हो सकती है।

स्किन पर रैशेज़ की समस्या: 

स्किन पर शुरुआत में खुजली और फिर त्वचा पर पड़ने वाले चकत्ते लिवर में खराबी आने की ओर इशारा करते हैं। अगर आपकी स्किन रूखी होने लगी है तो समझ लीजिए कि आपका लिवर सही तरीके से काम नहीं कर रहा है। त्वचा का नम बने रहना जरूरी होता है इसलिए हाइड्रेट रखने वाले फूड का सेवन करते रहें।

पीलिया होना: 

अगर आपके कुछ दिनों से आंखों का रंग पीला और त्वचा का रंग सफेद हो रहा है तो यह इस बात का संकेत है कि आपके खून में बिलीरुबिन का स्तर बढ़ने लगा है। इस स्थिति में आपके शरीर से अनावश्यक पदार्थों का बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता।

वजन कम होना:

 अगर आपका वजन बिना किसी वजह के कम हो रहा है तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। लिवर में किसी प्रकार की खराबी आने पर भूख कम लगने लगती है, जिस कारण वजन कम होना शुरू हो जाता है। इस स्थिति में आपको इलाज लेने की आवश्यकता होती है।

मुंह से बदबू आना


अगर आपके मुंह में लगातार बदबू (Smell in Mouth) आने की समस्या रहती है तो यह लिवर में खराबी या उसके कमजोर होने का एक संकेत हो सकता है। मुंह से बदबू आना शरीर में पानी की कमी के कारण भी हो सकता है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं। ऐसा करने से आपके मुंह से बदबू नहीं आती है। दरअसल सिरोसिस (Cirrhosis) की परेशानी होने पर रक्त में मौजूद डाइमिथाइल सल्फाइड (Dimethyl sulfide) की वजह से भी ऐसा होता है।

त्वचा पर नीली रेखाएं पड़ना

अगर आपका लिवर कमजोर हो गया है या उसमें किसी प्रकार की खराबी आ गई है या फिर वह सही तरीके से काम नहीं कर रहा है तो आपकी त्वचा पर मकड़ी के जाले जैसे नीली रेखाएं बनने लगती है। ऐसा शरीर में एस्ट्रोजन (Estrogen) की मात्रा बढ़ने की वजह से भी होता है। इसलिए त्वचा पर भी जब आपको ऐसा लगे कि नीली रंग की रेखाएं उभरने लगी हैं तो समझ लीजिए कि आपका लिवर कमजोर हो चुका है।

मल में परिवर्तन आना: 

लिवर खराब होने की स्थिति में किसी भी व्यक्ति को कब्ज और अपच की शिकायत होने लगती है। इस स्थिति के लंबे वक्त तक बने रहने से मल में खून आने लगता है और मल का रंग काला हो जाता है।

थकान महसूस होना:

 ज्यादा देर तक काम करने के बाद थकान होना स्वाभाविक है। लेकिन अगर आपने पूरे दिन कुछ काम नहीं किया फिर भी आपको थकान महसूस हो रही है, चक्कर आने जैसा महसूस हो रहा है और मांसपेशियों में कमजोरी सी लग रही है तो यह आपके लिवर खराब होने का संकेत है।|

हथेलियों का लाल होना


अगर आपकी हथेलियां नियमित रूप से लाल रहने लगी है या फिर उनमें आपको रैशेज जैसी दिक्कत हो रही है तो या उनमें जलन व खुजली हो रही हैं तो समझ लीजिए आपका लिवर कमजोर होने लगा है और आपके लिवर में किसी न किसी प्रकार की दिक्कत आ रही है।


मूली के पत्ते

मूली के कुछ पत्ते लें और एक छलनी की मदद से इसका रस निकालें। लगभग आधा लीटर रस प्रतिदिन पीने से लगभग दस दिनों में रोगी को पीलिया रोग से छुटकारा मिल जाता है।

पपीता के पत्ते

एक चम्मच पपीते के पत्तों के पेस्ट में एक चम्मच शहद मिलाएं। इसे नियमित रूप से लगभग एक या दो सप्ताह तक खाएं। यह पीलिया के लिए एक बहुत प्रभावी घरेलू इलाज है।

गन्ना

गन्ना उचित पाचन और उचित यकृत के कार्य में मदद करता है, जिससे रोगी को पीलिया ( Jaundice) से जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है। एक गिलास गन्ने का रस लें और इसमें थोड़ा सा नींबू का रस मिलाएं। बेहतर परिणाम के लिए इस रस को रोजाना दो बार पियें। गन्ने से रस निकालने से पहले गन्ने को अच्छी तरह साफ करना सुनिश्चित करें।

तुलसी के पत्ते

लगभग 10-15 तुलसी के पत्ते लें और इसका पेस्ट बना लें। इसमें आधा गिलास ताजा तैयार मूली का रस मिलाएं। बेहतर परिणाम के लिए लगभग दो से तीन सप्ताह तक इस जूस को रोजाना पिएं।

आंवला

आंवला विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत है और Jaundice (पीलिया) के लक्षणों को कम करने में बहुत उपयोगी है।

पीलिया का इलाज जौ:liver disease 

जौ का पानी बनाने के लिए जो को लगभग तीन लीटर पानी में उबालें और इसे लगभग तीन घंटे तक उबालने दें। Jaundice (पीलिया) से जल्दी ठीक होने के लिए इस पानी को दिन भर में जितनी बार पी सकें पीयें।

टमाटर का रस

एक गिलास टमाटर का रस, एक चुटकी नमक और काली मिर्च के साथ मिलाकर सुबह खाली पेट पीना पीलिया के लिए बहुत प्रभावी घरेलू उपाय है।

एलो वेरा के पत्ते

भारतीय एलोवेरा की पत्तियों का गूदा लें और इसे काले नमक और अदरक के साथ मिलाएं। इसे रोज सुबह लगभग दस दिनों तक लें।

चुकंदर और नींबू का रस:liver disease 

एक कप चुकंदर का रस लें और इसमें नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाएं और प्रभावी परिणाम के लिए कुछ दिनों तक नियमित रूप से इसका सेवन करें।

चिकोरी प्लांट

जड़ी बूटी (फल, पत्ते, फूल, बीज और जड़) का एक रस बनाएं। इस रस का एक चम्मच दिन में कई बार लें। इसका प्रयोग कम से कम 15 दिन करें। जिगर की समस्याओं को ठीक करने में पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। फूल, बीज और जड़ें उपयोग किए जाने वाले अधिक सामान्य भाग हैं। शिमला मिर्च का रस तिल्ली के बढ़ने, जिगर की सुस्ती का इलाज करने में मदद करता है और यह पित्त के स्वस्थ स्राव को भी बढ़ावा देता है।

पीलिया को जड़ से ख़त्म करे छाछ:liver disease 

पर्याप्त मात्रा में छाछ लें, उसमें भुनी हुई फिटकरी (roasted alum) और थोड़ी सी काली मिर्च मिलाएं। इन्हें अच्छे से मिलाएं। बेहतर परिणाम के लिए दिन में कम से कम तीन बार पियें।

बादाम

बादाम की 8 , दो खजूर और पांच इलायची लें और उन्हें पानी में भिगो दें। इसे रात भर छोड़ दें। सुबह में, छिलके को हटा दें और इसका पेस्ट बनाएं। थोड़ी चीनी और मक्खन मिलाएं। इस मिश्रण को दिन में कई बार लें।

हल्दी:liver disease 

एक गिलास गर्म पानी लें और इसमें एक चुटकी हल्दी मिलाएं। अच्छी तरह से मिलाएं और दिन में तीन या चार बार पिएं।

लौकी के पत्ते

लगभग 7-10 पत्ते लें और इसे एक कप पानी में उबालें और इसे ठंडा होने दें। 10-15 धनिया के बीज लें और इसे आधा लीटर पानी में उबालें। इसे पहले से तैयार काढ़े के साथ मिलाएं। पीलिया के प्रभावी इलाज के लिए दिन में कम से कम तीन बार पियें।

पीलिया का रामबाण इलाज केला:liver disease 

पके केले को मसल लें और थोड़ा शहद मिलाएं और इसे दिन में कम से कम दो बार पीलिया के प्रबंधन में बेहतर परिणाम के लिए लें।

गाजर का रस

ताजा गाजर का रस जूसर की मदद से या क्रशिंग और एक्सट्रैक्टिंग विधि से बनाएं। Jaundice (पीलिया) के प्रभावी इलाज के लिए इस रस को दिन में कई बार पिएं। इसे रोगी के आहार में भी शामिल किया जा सकता है।

बेल के पत्ते

सूखे बेल के पत्ते लें और पीसकर पाउडर बना लें। इसे एक गिलास पानी में मिलाएं। पीलिया के प्रभावी इलाज के लिए इसे दिन में एक बार पियें।

नींबू

नींबू में उपलब्ध एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पीलिया (jaundice) के इलाज में मदद करता है। यह पित्त नलिकाओं को भी अनब्लॉक करता है, जिससे यह पीलिया के लिए सबसे प्रभावी घरेलू उपाय बन जाता है। 2 नींबू का रस निचोड़ें और इसे एक गिलास पानी में मिलाएं। दिन में तीन बार इस थोड़ा-थोड़ा पीयें, क्योंकि यह जिगर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है।

मटर के पत्ते

मटर के पत्तों के रस को कुचलकर रस निकाल लें और पीलिया के इलाज के लिए इस रस का कम से कम 60 मिली प्रतिदिन सेवन करें। इनमें से फलियां भी बहुत पौष्टिक होती हैं और इन्हें आहार में जोड़ा जा सकता है।

पीलिया रोगी का आहार;liver disease 

दवाइयों से ज्यादा आहार की व्यवस्था इस रोग में आराम पहुंचती है | हमेशां रोगी के लिए क्या खाना है और क्या नहीं खाना की एक लिस्ट होनी चाहिए उसी के अनुसार रोगी को आहार देना चाहिए | बहुत से भोजन एसे है जो रोग को कम करने की बजाय और अधिक बढ़ा देतें है | इस रोग में निम्न आहार को अपनाना लाभदायक होता है |
इस रोग में गन्ने का रस लेना सर्वोतम सिद्ध होता है | हमेशां साफ़ एवं स्वच्छ गन्ने का रस सेवन करे , इससे जल्द ही पीलिया कम होने लगता है |
प्रात: के समय गन्ने के रस के साथ नारंगी का जूस भी सेवन करना फायदेमंद होता है |
संतरे का सेवन करे | संतरे का जूस निकाल कर भी सेवन कर सकते है |
पीलिया रोग में कच्चे नारियल का पानी पीना बहुत लाभकारी होता है | नित्य सुबह एवं शाम नारियल के पानी का सेवन करे |
अनार का रस लिया जा सकता है |
डाभ एवं जौ के पानी से भी पीलिया उतरने लगता है |
मूली के साफ़ सुथरे पतों को लेकर इनका जूस निकाल ले | इसका सेवन प्रात: काल के समय करना चाहिए |
दही में पानी मिलाकर इसकी छाछ बना ले एवं सेवन करे |
रात के समय एक गिलास पानी में मुन्नका को भिगों दे | सुबह मुन्नका के बीज निकाल कर इन्हें खालें और ऊपर से बच्चा हुआ पानी पीलें |
अनार , संतरा, अंगूर आदि फलों का सेवन इस रोग में लाभकारी होता है |
पपीता का सेवन करें |
मौसमी, पपीता, चीकू, अनार, संतरा आदि फलों का या इनके रस का सेवन करना चाहिए |
हमेशां पौष्टिक एवं सुपाच्य भोजन लें |
उष्ण, तीक्षण और अम्लीय पदार्थों का त्याग कर दें , अन्यथा रोग को गंभीर होते समय नहीं लगता |
शराब एवं अन्य प्रकार के नशे से दूर रहना ही अच्छा रहता है |

आसानी से पचने योग्य आहार को लेना चाहिए। आमतौर पर पहले 4 से 5 दिनों के लिए तरल आहार की सलाह दी जाती है।
मसाले और वसा के बिना उच्च कार्बोहाइड्रेट आहार लेने की सलाह दी जाती है।
 हमेशा उबला हुआ पानी पियें। तरल पदार्थों का एक अच्छा सेवन मूत्र और मल के माध्यम से शरीर से अतिरिक्त बिलीरुबिन को हटाने में मदद करता है। सुनिश्चित करें कि आप साफ, बिना प्रदूषित पानी पीते हैं।
 सब्जियों और फलों के रस को कच्चे या स्टीम्ड रूप में लिया जाना चाहिए, क्योंकि वे शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स के संतुलन को विनियमित करने में मदद करते हैं। डिब्बाबंद जूस से बचें।
लगभग एक सप्ताह तक फलों का रस रोगी के लिए बहुत प्रभावी है।
 एक बार जब बिलीरुबिन का स्तर कम होने लगता है, तो हल्के खाद्य पदार्थ जैसे फल, दही और दलिया को आहार में जोड़ा जा सकता है। इस समय गाजर और पालक जैसी सब्जियों का भी सेवन कर सकते हैं। दुबले प्रोटीन की कुछ मात्रा जल्दी ठीक होने में मदद करेगी और इसलिए आप अंडे का सेवन भी कर सकते हैं। यह सलाह दी जाती है कि अपने भोजन को छोटे भागों में विभाजित करें और दिन में उन्हें बार बार खाएं।
जैसा कि बिलीरुबिन का स्तर लगभग सामान्य स्तर पर कम हो जाता है, आप अपने आहार में चावल, मछली या दाल जैसे खाद्य पदार्थ शामिल कर सकते हैं। सुनिश्चित करें कि खाद्य पदार्थों को पकाने के लिए किसी तेल का उपयोग नहीं किया गया है। मछली को उबला हुआ या स्टीम्ड हो तो खा सकते हैं। मांस या मुर्गी खाने से बचें क्योंकि इस समय इसे पचाना मुश्किल हो सकता है।
एक बार पीलिया के लक्षण कम हो गए हैं और रोगी को इसके लिए डॉक्टर की मंजूरी मिल गई है, तो जैतून के तेल में पकाए गए खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन कोलेस्ट्रॉल से भरपूर खाद्य पदार्थ खाने से बचने की कोशिश करें और जो इस समय पचाने में मुश्किल होते हैं क्योंकि शरीर को अपने सामान्य कामकाज को फिर से हासिल करने के लिए समय की आवश्यकता होती है।
करेला और सहजन की फली (ड्रमस्टिक) पीलिया के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद हैं।
कैल्शियम और अन्य खनिजों जैसे आयरन और मैग्नीशियम से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाएं।

सोडा और कोल्ड ड्रिंक का सेवन ना करें: 

कोल्ड ड्रिंक और सोडा में बहुत ज्यादा शुगर की मात्रा होती है। इससे आपका वजन बढ़ता है साथ ही ये लिवर के लिए भी खतरनाक हैं। लंबे समय तक सोडा और कोल्ड ड्रिंक के सेवन से लिवर डैमेज होने का खतरा होता है। इसका खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है, जो पहले से ही मोटे हैं।

अत्याधिक शराब का सेवन -

 शराब का ज्यादा सेवन करना भी आपके लिवर को खराब कर देता है।

मोटापा खतरनाक है: 

मोटापा शरीर के लिए खतरनाक है। जरूरत से ज्यादा खाने से शरीर में एक्सट्रा फैट हो जाता है, जो स्टोरिंग सेल से बाहर आकर लिवर में जमा होने लगता है। इससे लिवर डैमेज होने लगता है। लिवर फैटी होने से हार्ट और कैंसर का खतरा बढ़ जाता है इसलिए अपने आहार और एक्सरसाइज पर ध्यान दें।

हेपेटाइटिस:

हेपेटाइटिस के कारण लिवर प्रभावित होता है और इसमे सूजन आ जाती है। अगर सही समय पर हेपेटाइटिस का इलाज ना किया जाए, तो यह गंभीर रूप ले लेती है जिसे फाइब्रोसिस अथवा लिवर कैंसर तक हो सकता है। एल्‍कोहल, गंदे पानी और ऑटोइम्‍यून डिजीज के कारण हेपेटाइटिस का खतरा होता है।

नींद की कमी होना: 

नींद की कमी के कुछ ऐसे प्रभाव हैं जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं होती। जिस वजह से हम लिवर को नुकसान पहुँचा देते है। नींद की कमी से लीवर पर अधिक दबाव पड़ता है। लीवर के साथ साथ अपने शरीर के अन्य अंगों को ठीक रखने के लिए भी हमें 8 घंटे की नींद लेना जरूरी है।

 सिगरेट और शराब की लत होना: 

सिगरेट की आदत एक जानवेला आदत है जो आपके शरीर को किसी भी तरह से नुकसान पहुँचा सकती है। सिगरेट के धुए में पाए जाने वाले जहरीले केमिकल्स अंत में आपके लीवर तक पहुँचते हैं और लिवर सेल्स को नुकसान पहुँचाते हैं। इसके अलावा शराब लिवर के लिए जहर की तरह काम करता है। लंबे वक्त तक अधिक मात्रा में शराब पीने वाले लोगों का लिवर फेल हो सकता है।
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विशिष्ट परामर्श-



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अजवाइन (Ajwain) के उपयोग (Uses) और नुस्खे

 



  अजवाइन को आमतौर पर कैरम या बिशप वीड्स के रूप में जाना जाता है। इसमें एसेंशियल ऑयल होता है, जो कई बायोएक्टिव कंपाउंड से बना होता है, और इसलिए इसका औषधीय महत्व है। अजवाइन साल भर उपलब्ध रहती है। अजवाइन के पत्ते पंखदार होते हैं। अजवाइन झाड़ी का फल है, जो छोटा, अंडाकार आकार का और हल्के पीले रंग का होता है।
अजवाइन सौंफ और जीरे की तरह दिखती है। प्राचीन काल से भारतीय, अफ्रीकी और मध्य पूर्वी देशों में खाना पकाने के लिए अजवाइन का इस्तेमाल किया जाता रहा है। यह खाने का स्वाद भी बढ़ाती है और चटनी, अचार और जैम में प्रेज़रवेटिव की तरह काम करती है। इसमें डाइजेस्टिव फाइबर का एक अनूठा स्रोत होता है जो पेट की सेहत अच्छी रखने में मदद करता है।
पाचन प्रक्रिया को ठीक रखने के लिए अजवाइन और हरड़ को बराबर मात्रा में पीस लें। हींग और सेंधा नमक स्वादानुसार मिलाकर चूर्ण बना कर किसी बोतल में भर लें। इस चूर्ण का एक चम्मच गर्म पानी के साथ लें। 10 ग्राम पुदीने का चूर्ण, 10 ग्राम अजवाइन और 10 ग्राम कपूर एक साफ बोतल में डालकर धूप में रखें। तीनों चीजें गलकर पानी बन जाएंगी। इसकी 5-7 बूंदें बताशे के साथ खाने से मरोड़, पेट दर्द, जी मिचलाने जैसी समस्या में लाभ होगा।

ajwain benefits

एक कप छाछ के साथ एक चम्मच अजवाइन खाने से सर्दी-जुकाम के कारण बनने वाले कफ में राहत मिलती है। एक चम्मच अजवाइन के दानों को हाथ से मसल कर बारीक कर लें और इसे थोड़े से गुड़ के साथ मिलाकर टॉफी की तरह चूसकर सेवन करें, लाभ होगा। एक मुलायम कपड़े में थोड़ी सी अजवाइन डाल कर पोटली बना लें। इसे तवे पर गर्म कर चेस्ट की सिकाई करें, आराम मिलेगा।

ajwain benefits

कब्ज होने पर 10 ग्राम अजवायन, 10 ग्राम त्रिफला और 10 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर पीसकर चूर्ण बना लें। रोजाना इसमें से 3 से 5 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें, बहुत जल्द ही आराम होगा।
एक कप पानी में एक चम्मच पिसी अजवाइन और थोड़ा सा नमक उबालें। पानी गुनगुना रह जाए तो उसे मुंह में लेकर कुछ देर रोकें और फिर कुल्ला कर फेंक दें। ऐसा दिन में तीन बार करें। अजवाइन भून कर पीस लें। इस तैयार चूर्ण से मंजन करने पर मसूढ़ों की बीमारियों में आराम मिलता है।

ajwain benefits

अपच होने पर एक कप पानी में एक चम्मच अजवाइन के बीज उबालें। थोड़ा ठंडा होने पर पिएं। एक ग्राम अजवाइन में एक चुटकी नमक मिलाकर चबा-चबा कर खाने से पेट में बनी गैस से होने वाले पेट दर्द में आराम मिलता है। तीन चम्मच अजवाइन के बीजों में नीबू का रस और थोड़ा सा काला नमक मिलाएं। इस मिश्रण को गुनगुने पानी के साथ दिन में दो बार खाएं। आधा लीटर पानी में एक-एक चम्मच अजवाइन और सौंफ के बीज डाल कर धीमी आंच पर पकाएं। ठंडा होने के बाद भोजन के बाद हर रोज पिएं
अजवाइन के औषधीय उपयोग और सेहत को मिलने वाले फायदे:अजवाइन के अर्क से मेथॉक्ससेलेन दवा बनाई जाती है। यह कैप्सूल, टॉपिकल क्रीम जैसा अलग-अलग फॉर्मेट में उपलब्ध है। विटिलिगो (स्किन पिगमेंटेशन का आंशिक नुकसान) सोरायसिस जैसी त्वचा की समस्याओं के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
प्राचीन काल से हर्बल फॉर्मूलेशन तैयार करने के लिए अजवाइन का इस्तेमाल किया जा रहा है क्योंकि उनका मानना है कि यह शरीर के सिस्टम को संतुलित कर सकता है।
अजवाइन में कई स्वास्थ्यप्रद और उपचारात्मक गुण हैं।
अजवाइन घुलनशील डाइटरी फाइबर का एक अच्छा स्रोत है, और यह पेट की समस्याओं में पाचन तंत्र को बेहतर करने, आंतों की सेहत में सुधार करने के लिए जाना जाता है। यह पेट फूलने की समस्या से राहत दिलाने में भी मदद करती है।
अजवाइन मांसपेशियों में ऐंठन के दर्द, अपच के कारण पेट की समस्या, छाती में जलन और भूख न लगने के इलाज में फायदेमंद होती है।
अजवाइन एंटी-ऑक्सीडेंट का बेहतरीन स्रोत है और इसलिए यह दिल के मरीजों के लिए वरदान है। एंटीऑक्सीडेंट शरीर में अच्छे और खराब कोलेस्ट्रॉल को मैनेज कर सकते हैं और इस तरह से ये दिल की बीमारियों को रोकते हैं।
अजवाइन में एंटी-बैक्टीरियल (जीवाणुरोधी) और एंटी-फंगल (फंगस रोधी) गुण होते हैं और इसलिए यह फूड पोइज़निंग और आंत व पेट की समस्याओं को रोकने के लिए साल्मोनेला, ई कोली और फंगई जैसे बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करती है।
अजवाइन के अर्क में प्रमुख केमिकल कंपाउंड (रासायनिक यौगिक) होते हैं जो कैल्शियम चैनलों को ब्लॉक करते हैं, जो ब्लड प्रेशर लेवल को और कम कर सकते हैं।
अजवाइन को चबाना अपच और पेट फूलने जैसी समस्याओं को खत्म करने के लिए सबसे अच्छा तरीका है।
अजवाइन की चाय डायरिया, पेचिश, स्पास्मोडिक (ऐंठन) दर्द के इलाज के लिए बहुत फायदेमंद है।
अजवाइन का तेल स्टीम डिस्टिलेशन (भाप आसवन) प्रक्रिया द्वारा तैयार किया जाता है और यह रह्यूमेटिक दर्द के इलाज में बहुत असरदार है इसलिए इसे दर्द वाली जगह पर लगाया जाता है।
अस्थमा (दमा) और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस की बीमारियों के इलाज के लिए अजवाइन और अदरक के अर्क का मेल काफी असरदार होता है।
अजवाइन वायु प्रवाह और फेफड़ों के कामकाज में सुधार करती है।
अजवाइन में ब्रोंको-डाइलेटिंग प्रभाव होता है, यह फेफड़ों में ब्रोन्कियल नलियों को फैलाने में मदद करता है जिससे हल्के अस्थमा में राहत मिलती है।
अजवाइन का पानी एक बेहतरीन माउथ वॉश है, और यह अच्छी ओरल हाइजीन बनाए रखने में मदद कर सकता है।
अजवाइन गर्भवती महिलाओं की अपच संबंधी समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद है; यह गर्भाशय और पेट को साफ करने में मदद करती है, जिससे अनियमित पीरियड्स की समस्या दूर हो जाती है।
नियमित रूप से अजवाइन का पानी पीने से मेटाबोलिज्म बढ़ता है, जिससे शरीर की चर्बी कम करने में मदद मिलती है
अजवाइन में एंटीबायोटिक गुण होते हैं, और यह लाली को कम करने और जलन व सूजन के लिए फायदेमंद होती है।
अजवाइन के एनेस्थेटिक गुणों के कारण यह दर्द और सूजन को दूर करने में मदद करती है।
सिर, कान और दांत दर्द के लिए अजवाइन :

कान के दर्द से राहत पाने के लिए अजवाइन के तेल की कुछ बूंदें काफी हैं। दांत दर्द से तुरंत राहत पाने के लिए अजवाइन और नमक का गुनगुने पानी का मिश्रण बहुत असरदार होता है। कभी-कभी जले हुए अजवाइन का धुंआ दांत दर्द के लिए ज़्यादा असरदार होता है। अजवाइन में एक आवश्यक बायोएक्टिव घटक, यानी थाइमोल होता है जो एक मजबूत कवकनाशी और कीटाणुनाशक है। इसलिए, स्किन इंफेक्शन से राहत पाने के लिए अजवाइन को पीसकर लगाया जाता है।
एक्ने और पिंपल्स की रोकथाम के लिए अजवाइन:
अजवाइन में अलग-अलग एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी घटक होते हैं, और इसलिए अजवाइन के बायोएक्टिव अर्क भी एक्ने और पिंपल्स जैसी स्किन की समस्याओं को कम करने में मददगार होते हैं। अजवाइन में मौजूद थाइमोल और कार्वैक्रोल बैक्टीरिया और फंगस को बढ़ने से रोकने में मदद करते हैं। अजवाइन पाउडर सप्लीमेंट मुँहासे के निशान को हल्का करने में मदद करते हैं।
अजवाइन के प्रोडक्ट और उनकी अनुशंसित डोज़:
अजवाइन की आयुर्वेदिक डोज़ इसके रूपों के मुताबिक अलग-अलग होती है। अजवाइन प्रोडक्ट्स के विभिन्न रूप
प्रोडक्ट कैसे इस्तेमाल करें दिन में कितनी बार
चूर्ण पाचन को बेहतर बनाने के लिए खाने से पहले और बाद में गुनगुने पानी के साथ आधा चम्मच अजवाइन चूर्ण लें। दो बार
काढ़ा एक गिलास पानी में एक चम्मच अजवाइन डालकर 10 मिनट तक उबालें। अस्थमा (दमा) और सर्दी के लिए आधा चम्मच अजवाइन का काढ़ा लें। तीन बार
पेस्ट भुने हुए अजवाइन और गुड़ को मिलाकर मिक्सी में पेस्ट बना लें। इसे खाना खाने के बाद लें। दो बार
गोली गर्म पानी के साथ अजवाइन की एक गोली लें। दो बार
अर्क खाने के बाद अजवाइन अर्क की पाँच बूँदें गर्म पानी के साथ लें।
दो बार
अजवाइन के साइड इफेक्ट और सावधानियां:अजवाईन के ज़्यादा सेवन से पेट में गैस बन सकती है, जिससे एसिडिटी और रिफ्लक्स हो सकता है।
कुछ लोगों को अजवाइन के बीज से एलर्जी होती है, जो थाइमोल की मौजूदगी के कारण होता है, जिससे चक्कर आना, मतली और उल्टी हो सकती है।
अजवाइन के कुछ बायोएक्टिव कंपाउंड ज़्यादा असर डाल सकते हैं, इनसे मुंह में इंफ्लेमेशन हो सकता है, जिसके कारण जलन और मुंह में छाले हो सकते हैं।
गर्भवती महिलाओं को बहुत ज़्यादा मात्रा में अजवाइन लेने से बचना चाहिए क्योंकि भ्रूण के विकास पर इसका उल्टा असर पड़ने की संभावना है।
अजवाइन को ज़्यादा मात्रा में खाने को विषैला माना जाता है; इसका परिणाम घातक पोइज़निंग हो सकता है।
सर्जरी के दौरान और बाद में अजवाइन सप्लीमेंट लेने से ब्लीडिंग का खतरा बढ़ सकता है। इसलिए, सर्जरी से 2 हफ्ते पहले अजवाइन का सेवन बंद करने की सलाह दी जाती है।
अजवाइन का अन्य दवाओं के साथ इंटरेक्शन (परस्पर क्रिया):कभी-कभी अजवाइन खून के थक्के जमने की प्रक्रिया को धीमा कर सकती है। अगर कोई खून पतला करने जैसी दवाएं ले रहा है तो अजवाइन का सेवन करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। आइबूप्रोफेन, डाइक्लोफेनेक, वार्फरिन और एस्पिरिन जैसी दवाओं में खून पतला करने वाले पदार्थ होते हैं।
अजवाइन उन दवाओं में भी हस्तक्षेप कर सकती है जो लीवर में ब्रेक डाउन होती हैं। लीवर में लवास्टैटिन, केटोकोनाज़ोल और इट्राकोनाज़ोल जैसी दवाएं ब्रेक डाउन होती हैं। अगर आप इनमें से कोई भी दवा ले रहे हैं तो अजवाइन का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह लें।
यदि आप ऐसी दवा ले रहे हैं जो लीवर पर दबाव डालती है, तो अजवाइन खाने से बचना चाहिए, अजवाइन लीवर को नुकसान पहुंचाने वाली दवाओं के साथ-साथ लीवर के खराब होने की संभावना को बढ़ा सकती।

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