4.3.17

नपुंसकता,शीघ्र पतन नामर्दी को जड़ से मिटाएँ: Namardi ,Shighra patan



   

    मैथुन के योग्य ना रहना, नपुंसकता का मुख्य लक्षण है। थोड़े समय के लिए कामोत्तेजना होना, या थोड़े समय के लिए ही लिंगोत्थान होना, इसका दूसरा लक्षण है। मैथुन अथवा बहुमैथुन के कारण उत्पन्न ध्वजभंग नपुंसकता में शिशन पतला, टेढ़ा और छोटा भी हो जाता है। अधिक अमचूर खाने से धातु दुर्बल होकर नपुंसकता आ जाती है।
*/नपुंसकता के दो कारण होते हैं। शारीरिक और मानसिक। चिन्ता और तनाव से ज्यादा घिरे रहने से मानसिक रोग होता है। नपुंसकता शरीर की कमजोरी के कारण होती है। ज्यादा मेहनत करने वाले व्यक्ति को जब पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता, तो कमजोरी बढ़ती जाती है और नपुंसकता पैदा हो सकती है। हस्तमैथुन, ज्यादा काम-वासना में लगे रहने वाले नवयुवक नपुंसक के शिकार होते हैं। ऐसे नवयुवकों की सहवास की इच्छा कम हो जाती है।
 /*कुछ लोग शारीरिक रूप से नपुंसक नहीं होते, लेकिन कुछ प्रचलित अंधविश्वासों के चक्कर में फसकर, सेक्स के शिकार होकर मानसिक रूप से नपुंसक हो जाते हैं। मानसिक नपुंसकता के रोगी अपनी पत्नी के पास जाने से डर जाते हैं। सहवास भी नहीं कर पाते और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।

   *इस रोग में रोगी अपनी यह परेशानी, किसी दूसरे को नहीं बता पाता या सही उपचार नहीं करा पाता, मगर जब वह पत्नी को संभोग के दौरान पूरी सन्तुष्टि नहीं दे पाता, तो रोगी की पत्नी को पता चल ही जाता है कि वह नंपुसकता के शिकार हैं। इससे पति-पत्नी के बीच में लड़ाई-झगड़े होते हैं और कई तरह के पारिवारिक मन मुटाव हो जाते हैं। बात यहां तक भी बढ़ जाती है कि आखिरी में उन्हें अलग होना पड़ता है। 
    *नपुंसकता से परेशान रोगी को औषधियों खाने के साथ कुछ और बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे सुबह शाम किसी पार्क में घूमना चाहिए, खुले मैदान में, किसी नदी या झील के किनारे घूमना चाहिए। सुबह सूर्य उगने से पहले घूमना ज्यादा लाभदायक है। सुबह साफ पानी और हवा शरीर में पहुंचकर शक्ति और स्फूर्ति पैदा करती है। इससे खून भी साफ होता है।
 *नपुंसकता के रोगी को अपने खाने (आहार) पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। आहार में पौष्टिक खाद्य पदार्थों घी, दूध, मक्खन के साथ सलाद भी ज़रूर खाना चाहिए। फ़ल और फ़लों के रस के सेवन से शारीरिक क्षमता बढ़ती है। नपुंसकता की चिकित्सा के चलते रोगी को अश्लील वातावरण और फिल्मों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि इसका मस्तिष्क पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। इससे बुरे सपने भी आते हैं, जिसमें वीर्यस्खलन होता है।

*बड़ी गोखरू का फांट या घोल सुबह - शाम लेने से काम शक्ति यानी संभोग की वृद्धि दूर होती है। 250 मिलीलीटर को खुराक के रूप में सुबह और शाम सेवन करें।



  *बड़ा गोखरू और काले तिल, इन दोनों को 14 ग्राम की मात्रा में कूट - पीस लें। फिर इस को 1 किलो गाय के दूध में पकाकर खोआ बना लें। यह एक मात्रा है। इस खोयें को खाकर ऊपर से 250 मिली लीटर गाय के निकाले दूध के साथ पी लें। 40 दिन तक इसको खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है।
*25 ग्राम बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण, 250 मिली लीटर उबले पानी में डालकर रखें। इसमें से थोड़ा - थोड़ा बार - बार पिलाने से कामोत्तेजना बढ़ती है।
*बड़ी गोखरू के फल का चूर्ण 2 ग्राम को चीनी और घी के साथ सेवन करें तथा ऊपर से मिस्री मिले दूध का सेवन करने से कामोत्तेजना बढ़ती है।
*हस्तमैथुन की बुरी लत से पैदा हुई नपुंसकता को दूर करने के लिए 1 - 1 चम्मच, गोखरू के फ़ल का चूर्ण और *काले तिल को मिलाकर शहद के साथ दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करें। इससे नपुंसकता में लाभ होता है।
*गाजर का हलवा, रोज़ 100 ग्राम खाने से सेक्स की क्षमता बढ़ती है।
*कौंच के बीज के चूर्ण में तालमखाना और मिश्री का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर 3 - 3 ग्राम की मात्रा में खाने और दूध के साथ पीने से नपुंसकता (नामर्दी) ख़त्म होती है।
*कौंच के बीजों की गिरी तथा राल ताल मखाने के बीज। दोनों को 25 - 25 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर छान लें, फिर इसमें 50 ग्राम मिस्री मिला लें। इसमें 2 चम्मच चूर्ण रोज़ दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
*गिलोय, बड़ा गोखरू और आंवला सभी बराबर मात्रा में लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। 5 ग्राम चूर्ण रोज़ मिस्री और घी के साथ खाने से प्रबल मैथुन शक्ति विकसित होती है।
*जायफल का चूर्ण लगभग आधा ग्राम शाम को पानी के साथ खाने से 6 हफ्ते में ही धातु (वीर्य) की कमी और मैथुन में कमजोरी दूर होगी।
*जायफल का चूर्ण एक चौथाई चम्मच सुबह - शाम शहद के साथ खाऐं और इसका तेल सरसों के तेल के मिलाकर शिश्न (लिंग) पर मलें।
*बेल के पत्तों का रस 20 मिली लीटर निकालकर, उसमें सफेद जीरे का चूर्ण 5 ग्राम, मिस्री का चूर्ण 10 ग्राम के साथ खाने और दूध पीने से शरीर की कमजोरी ख़त्म होती है।
*बेल के पत्तों का रस लेकर, उसमें थोड़ा सा शहद मिलाकर शिश्नि पर 40 दिन तक लेप करने से नपुंसकता में लाभ होगा।
*सफेद मूसली और मिस्री, बराबर मिलाकर, पीसकर चूर्ण बना कर रखें और चूर्ण बनाकर 5 ग्राम सुबह - शाम दूध के साथ खाने से शरीर की शक्ति और खोई हुई मैथुन शक्ति, वापस मिल जाती है।
*सफेद मूसली 250 ग्राम बारीक चूर्ण बना लें। उसे 2 लीटर दूध में मिलाकर खोया बना लें। फिर 250 ग्राम घी में डालकर इस खोए को भून लें। ठंडा हो जाने पर आधा किलो पीसकर शक्कर (चीनी) मिलाकर पलेट या थाली में जमा लें। सुबह - शाम 20 ग्राम खाने से काम शक्ति बढ़ती है।



  *गोखरू, कौंच के बीज, सफेद मूसली, सफेद सेमर की कोमल जड़, आंवला, गिलोय का सत और मिस्री, बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम से लगभग 20 ग्राम तक चूर्ण दूध के साथ खाने से नपुंसकता और वीर्य की कमजोरी दूर होती है।
*सिरस के थोड़े से बीज सुखाकर पीस लें। इसमें 3 ग्राम चूर्ण सुबह - शाम दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
नपुंसक व्यक्ति को मुनक्का खाने से वीर्य की वृद्धि होती है।
नपुंसकता में अंबर आधा से एक ग्राम सुबह - शाम मिस्री मिले दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
*उटंगन के बीज, जो चपटे और रोमाच्छादित होते हैं, पानी में भिगोनें पर काफी लुआबदार हो जाते हैं। इनको शतावरी, कौंच बीच चूर्ण आदि के साथ सुबह शाम मिस्री मिले गर्म - गर्म दूध के साथ सेवन करने से काफी लाभ होता है।
*बहमन सफेद या बहमन सुर्ख की जड़ का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह और शाम मिस्री को मिलाकर गर्म - गर्म दूध से खाने से कामोद्दीपन होता है।
*पिप्पली, उड़द, लाल चावल, जौ, गेहूं। सब को 100 - 100 ग्राम की मात्रा में लेकर आटा पीसकर फिर इसको देशी घी में पूरियां बनाकर, रोज़ 3 पूरियां 40 दिन तक खाऐं। ऊपर से दूध पी लें। इससे नपुंसकता दूर हो जाती है।
*आंवलों का रस निकाल कर एक चम्मच आंवले के चूर्ण में मिलाकर लें। उसमें थोड़ी सी शक्कर (चीनी) और शहद मिलाकर घी के साथ सुबह - शाम खाऐं।
*अरण्ड के बीज 5 ग्राम, पुराना गुड़ 10 ग्राम, तिल 5 ग्राम, बिनौले की गिरी 5 ग्राम, कूट 2 ग्राम, जायफल 2 ग्राम, जावित्री 2 ग्राम तथा अकरकरा 2 ग्राम। इन सबको कूट - पीसकर एक साफ कपड़े में रखकर, पोटली बना लें और इस पोटली को बकरी के दूध में उबालें। दूध जब अच्छी तरह पक जायें, तो इसे ठंड़ा करके 5 दिन तक पियें तथा पोटली से शिश्न की सिंकाई करें।
*मुलेठी, विदारीकन्द, तज, लौग, गोखरू, गिलोय और मूसली। सब चीजे 10 - 10 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से आधा चम्मच चूर्ण रोज 40 दिन तक सेवन करें।
*नागौरी असगंध और विधारा। दोनों 250 - 250 ग्राम की मात्रा में लेकर इसे पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2 चम्मच चूर्ण देसी घी या शहद के साथ लें।
*सालम मिस्री, तोदरी सफेद, कौंच के बीजों की मींगी, ताल मखाना, सखाली के बीज, सफेद व काली मूसली, शतावर तथा बहमन लाल। इन सबका 10 - 10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट पीस लें और चूर्ण बना लें। 2 चम्मच रोज़ दूध से 40 दिन तक बराबर खाने से पूरा लाभ होता है।
*नारियल कामोत्तेजक है। वीर्य को गाढ़ा करता है।
*15 चिलगोजे रोज़ खाने से नपुंसकता दूर होती है।

*अंकुरित गेहूंओं को बिना पकायें ही खाऐं। स्वाद के लिए गुड़ या किशमिश मिलाकर खा सकते हैं। इन अंकुरित गेहूंओं में विटामिन ´ई` मिलता है। यह नपुंसकता और बांझपन में लाभकारी है।
पिस्ता में विटामिन `ई´ बहुत होता है। विटामिन `ई´ से वीर्य बढ़ता है।



  *सफेद कनेर की जड़ की छाल बारीक पीसकर भटकटैया के रस में खरल करके 21 दिन इन्द्री की सुपारी छोड़कर लेप करने से तेजी आ जाती है।
*किसी कपड़े को आक के दूध में चौबीस घंटे तक भिगोकर रखा रहने दें, उसके बाद निकालकर सुखा लें। फिर उस पर घी लपेट कर 2 बत्तियां बना लें और उसको लोहे की सलाई पर रखे। नीचे एक कांसे की थाली रख दे और बत्तियां जला दें, जो तेल नीचे थाली पर गिरेगा। उसे लिंग पर सुपारी छोड़ कर पूरे पर मलते रहें। आधा घंटे तक, उसके बाद एरण्ड का पत्ता लपेट कर ऊपर से कच्चा धागा बांध दें। इससे हस्तमैथुन का दोष दूर हो जाता है।
*लौंग 8 ग्राम, जायफल 12 ग्राम, अफीम शुद्ध 16 ग्राम, कस्तूरी लगभग आधा ग्राम, इनको कूट पीसकर शहद में मिलाकर आधे आधे ग्राम की गोलियां बनाकर रख लें। 1 गोली बंगला पान में रखकर खाने से स्तम्भन होता है। अगर स्तम्भन ज्यादा हो जाऐ, तो खटाई खा ले। स्खलन हो जायेगा।
*चमेली के पत्तों का रस तिल के तेल की बराबर की मात्रा में मिलाकर आग पर पकाएं। जब पानी उड़ जाए और *केवल तेल शेष रह जाए, तो इस तेल की मालिश शिश्न पर सुबह - शाम प्रतिदिन करना चाहिए। इससे नपुंसकता और शीघ्रपतन नष्ट हो जाता है।
*ढाक की जड़ का काढ़ा आधा कप की मात्रा दिन में 2 बार पीने से, बीज का तेल शिश्न पर मुण्ड छोड़कर मालिश करते रहने से कुछ ही दिनों में लाभ मिलता है।
*हींग को शहद के साथ पीसकर शिश्न या लिंग पर लेप करने से वीर्य ज्यादा देर तक रुकता है और संभोग करने में आंनद मिलता है।
*मालकांगनी के तेल को पान के पत्ते पर लगा कर रात में शिश्न (लिंग) पर लपेटकर सो जाऐं और 2 ग्राम बीजों को दूध की खीर के साथ सुबह - शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।



*छुआरों के अन्दर की गुठली निकाल कर उनमें आक का दूध भर दे, फिर इनके ऊपर आटा लपेट कर पकायें, ऊपर का आटा जल जाने पर छुआरों को पीसकर मटर जैसी गोलियां बना लें, रात्रि के समय 1 - 2 गोली खाकर तथा दूध पीने से स्तम्भन होता है।
*आक की छाया सूखी जड़ के 20 ग्राम चूर्ण को 500 मिली लीटर दूध में उबालकर दही जमाकर घी तैयार करें, इसके सेवन से नामर्दी दूर होती है।

*शहद और दूध को मिलाकर पीने से धातु (वीर्य) की कमी दूर होती है। शरीर बलवान होता है।
*अंकुरित गेहूंओं को बिना पकायें ही खाऐं। स्वाद के लिए गुड़ या किशमिश मिलाकर खा सकते हैं। इन अंकुरित गेहूंओं में विटामिन ´ई` मिलता है। यह नपुंसकता और बांझपन में लाभकारी है।
*ब्रहमदण्डी का रस 10 से 20 मिलीलीटर सुबह शाम शहद के साथ सुबह - शाम खाने से पुरुषत्व शक्ति बढ़ती है।
*सालव मिस्री का चूर्ण 3 से 6 ग्राम सुबह - शाम खाने से नपुंसकता दूर होती है।
*हरमल के बीज का चूर्ण 2 से 4 ग्राम मिस्री को मिलाकर गर्म - गर्म दूध के साथ सुबह - शाम लेने से लाभ होता है।
*आम की मंजरी 5 ग्राम की मात्रा में सुखाकर दूध के साथ लेने से काम शक्ति बढ़ती है।
2 - 3 महीने आम का रस पीने से ताक़त आती है। शरीर की कमजोरी दूर होती है और शरीर मोटा होता है। इससे वात संस्थान (नर्वस सिस्टम) भी ठीक हो जाता है।
*रोज़ मीठे अनार के 100 ग्राम दानों को दोपहर के समय खाने से संभोग शक्ति बढ़ाती है।

उपयोगी सूचना-

टाई और बादीयुक्त समान ना खाऐं। औषधि खाने के साथ दूध और घी का प्रयोग ज्यादा करें।
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विशिष्ट परामर्श-

नपुंसकता एक ऐसी समस्या है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. किसी भी पुरुष के एक पिता बनने में असमर्थ होने को पुरुष बांझपन या नपुंसकता कहा जाता है।यह तब होता है जब कोई पुरुष संभोग के लिए पर्याप्त इरेक्शन प्राप्त नहीं कर पाता या उसे मजबूत नहीं रख पाता. दामोदर चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र 
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24.2.17

तेलिया कन्द एक चमत्कारी जड़ी बूटी

    

उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र के सुदूर हिमालयी वन्य क्षेत्रों में एक चमत्कारी औषधि तेलियाकन्द का अन्वेषण हुआ है|। आचार्य बालकृष्ण जी ने बताया कि जिस वनस्पति की खोज में हम वर्षों से लगे थे उसको अनायास सामने देखकर अपार प्रसन्नता हुई। आयुर्वेद शास्त्रों मे विभिन्न चमत्कारी वनौषधियों का वर्णन है। आज कई जडी-बूटियों के सन्दर्भ में तो मात्र लोकोक्तियां ही रह गयी हैं। उन्हीं दिव्य एवं अत्यंत दुर्लभ औषधियों में से एक औषधि का नाम है तेलिया कन्द (सेरोमेटम वेनोसम) (Sauromatumsa venosum) जिसके सन्दर्भ में आयुर्वेद शास्त्र में लिखा है कि यह वनस्पति बहुत चमत्कारिक है और भाग्यशाली मनुष्यों को ही प्राप्त होती है।तेलिया कन्द दुर्गम पहाड़ों के मध्य उत्पन्न होता है । तो कुछ लोग कहते है कि, तेलिया कन्द नाम की वनस्पति पृथ्वी से नामशेष हो गई है । इस प्रकार तेलिया कन्द क्या है, उसका वास्तविक प्राप्ति स्थान कहाँ है इस सन्दर्भ में लोग अन्धेरे में भटक रहे है । 
   एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । 
   लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है ।     कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है । मेरी जानकारी में इस कन्द के अनेक भाषाओं में नाम उल्लिखित है किन्तु गुरुदेव की अनुमति न होने से प्रकाशित नहीं कर सकता हूँ ।
प्राप्ति स्थानः- 
इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-
   पतंजलि योगपीठ जडी-बूटियों के ऊपर जिस व्यापक अनुसंधान एवं विश्वभेषज संहिता (World Herbal) के निर्माण कार्य के संलग्न है, वहां इस दुलर्भ जडी-बूटी की खोज इसमें मील का पत्थर बनेगा। इससे पहले भी पतंजलि योगपीठ द्वारा अनेक जडी-बूटियों-अष्टवर्ग, संजीवनी आदि अनेक दिव्य औषधियोम की खोज की जा चुकी है।
तेलिया कन्द के लिए राज निघण्टु में लिखा है कि “तैल कन्द: देह सिद्धिं विद्यते” अर्थात तेलिया कन्द के द्वारा व्यक्ति देह सिद्घि को प्राप्त कर सकता है। दु:साध्य नपुंसक को भी पुरुषार्थ प्राप्त हो सकता है। कैन्सर जैसे रोगों के लिए यह रामबाण माना गया है। वास्तव में यह चमत्कारिक औषधि है जो आधुनिक जनसमाज के ज्ञान में छिपी हुई है, साधु सन्तों के मुँह से ही सन्दर्भ में आश्चर्यजनक बाते सुनने में आती है कि पारे की गोली बाँधते वाली तथा ताँबे के सोने के रुप में परिवर्तित करने वाली प्रभावशाली व दिव्य औषधि है।एक महात्मा के बताने के अनुसार तेलिया कन्द लोहे को गला सकता है । एक लोहे के सरिये को लेकर जो उसे कंद के अन्दर डालकर थोड़े समय पश्चात बाहर निकालकर उसे मोड़ने पर वह आसानी से मुड़ जायेगा और कोई इसे जोगिया कन्द भी कहते है । लोग कहते है कि केन्सर के लिए यह कन्द अत्यन्त उपयोगी है । एक महात्मा के अनुसार हिमालय में साधु – महात्मा अपने शरीर की ठंड से रक्षा हेतु तेलिया कंद को चिलम में भर कर पीते है । इसके अतिरिक्त एक महात्मा ने तेलिया कन्द के द्वारा पारा एवं तांबे में से सोना (सुवर्ण) बनाया था । इसके अनेक उदाहरण हमें पढ़ने हेतु मिलते है । कई राज्यों में अनेक वनस्पतियों के मूल को लोग तेलिया कन्द नाम से जानते है । तो इस स्थिति में यहा निर्णय करना कठिन है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन है । तो इस अनुसन्धान में यथोचित प्रयास किया है ।  प्राप्ति स्थानः- इसके प्राप्ति स्थान के विषय में किसी भी प्राचीन ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त नहीं होता है इसके नाम और गुणधर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है । जैसे कि राजनिघण्टु में तेलिया कन्द का उल्लेख प्राप्त होता है- अर्शारि पत्र संकाशं तिल बिन्दु समन्वितः सस्निग्धारस्थ भूमिस्थ तिल कन्दोति विस्तृत। इसी प्रकार का उल्लेख रसेन्द्र चूड़ामणी में भी दृष्टिगत होता है-
    तिलकन्देति व्याख्याता तिलवत् पत्रीणी, लता क्षीरवती सुत निबंधनात्यातये खरे) । लोहद्रावीतैलकन्दं कटुष्णो वातापस्मार हारी विषारिः शोफध्नः स्याबन्धकारी रसस्य दागेवासो देहसिद्धि विद्यते । (निघण्टु भूषण) इस अतिरिक्त शब्दकल्पद्रुम के द्वितीय भाग के ८३ वें पृष्ठ पर इसका उल्लेख प्राप्त होता है । रशशास्त्र के एक ग्रन्थ सुवर्ण तंत्र (परमेश्वर परशुराम संवाद) नाम के एक ग्रन्थ में उल्लेख प्राप्त होता है कि, एक कमल कन्द जैसा कन्द होता है पानी में उत्पन्न होता है और जहाँ पर यह कन्द होता है उसमें से तेल स्रवित होकर निकटवर्ती दस फिट के घेरे में पानी के ऊपर फैला रहता है और उस कन्द के आस-पास भयंकर सर्प रहते है । इसके अतिरिक्त सामलसा गौर द्वारा लिखित जंगल की जंडी बूटी में भी पृष्ठ संख्या २२३ में भी इस कन्द का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। तेलिया कन्द के विषय में कहा जाता है कि यह कन्द विन्ध्याचल, आबु, गिरनार, अमरनाथ, नर्मदा नदी के किनारे, हिमालय, काश्मीर आदि स्थानों में प्राप्त होता है । मध्यभारत में छतींसगढ़, रांगाखार, भोपालपय्नम के पहाड़ों में तेलिया कन्द होतां है । उसके नाम से असके मूल बजार में बेचे जाते है । वहाँ के वृद्धों का ऐसा मत है कि जो तेलिया कन्द के रस में तांबा को गलाकर डालने पर वह(ताँबा) सोना बन जाता है । और यदि कोई व्यक्ति इस रस का सेवन करता है तो उसे बुढापा जन्दी नहीं आता है । तेलीया कंद के उपयोगः- तेलीया कंद जहरी औषधि है उसका उपयोग सावधानी पुर्वक करना, संघिवा, फोडा, जख्म दाद, भयंकर, चर्मरोग, रतवा, कंठमाल, पीडा शामक गर्भनिरोधक गर्भस्थापक शुक्रोत्पादक, शुक्रस्थंभक, धनुर अपस्मार, सर्पविष, जलोदर कफ, क्षय, श्वास खासी, किसी भी प्रकार का के´शर, पेटशुल आचकी, अस्थिभंग मसा, किल, कृमी तेलीया कंद इन तमाम बीमारीयो मे रामबाण जैसा कार्य करता है, और उसका अर्क जंतुध्न केल्शीयम कि खामी, स्वाद कडवा, स्वेदध्न सोथहर और स्फुर्ति दायक हैं तेलीया कंद को कोयले मे जला के उसकी राख को द्याव, चर्मरोग, किल वगेरे बिमारीओ मे काम करता है । अन्न नली कि सुजन मे इसके बीज को निमक के साथ मिलाकर सेवन करना, इके फूल पीले सफेद ओर खुशबु दार होते है ।
सावधानियाः- 
  तेलीया कंद एक जहरी-औषधी है इसलिये उसका उपयोग सावधानी पूर्वक करना, तेलीया कंद के भीतर तीन प्रकार के जहरी रसायन होते है जो ज्यादा मात्रा मे लेने से गले मे सुजन आना, चककर, किडनी का फेल होना या ज्यादा मात्रा मे लेने से मृत्यु तक हो सकती है इसलिए इसका पुराने कंद का ही उपयोग करना या तो कंद को रातभर पानी मे भीगोने से या पानी मे नमक डाल के ऊबालने से उसका जहर निकल जाता है ।
तेलीया कंद की बुआईः- 
तेलीया कंद की खेती बीज से और कंद बोने से होती है । पहले बीज को एमरी पेपर से घिस कर रात भर पानी मे भिगोये रखे उसके बाद गमले मे या गड्डे मे बोएं । जगा हंमेशा सडी हुई गीली अनुकुल आती है । उसके उपर ज्यादा द्युप नहि होनी चाहिए । यह प्लान्ट को ग्रिन हाउस ज्यादा अनुकुल आता हैं । मीटी थोडी क्षार वाली काली मीटी रेत और चुना मिला के इसके कंद का या बीज को रोपण करना ।
तेलीया कंद से काया कल्पः- 
गाय के दुध मे तेलीया कंद के चुर्ण को 15 दिन तक सेवन करने से व्यक्ति का काया कल्प हो जाता है । चूर्ण को दुध मे मिलाकर सेवन करना ।
तेलीया कंद से सुवर्ण निर्माणः- 
तेलीया कंद के रसको हरताल मे मिलाकर इकीस दिन तक द्युटाई करने पर हरताल निद्युम हो जाती है । वो आग मे डालने पर धुआ नहि देती । कहते है फिर वो हरताल ताम्र या चाँदी को गलाकर ऊसमे डालने पर वो सोना बन जाता है, पारें को तेलीया कंद के रस मे घोटने से वो बध्ध हो जाता हैं और ताम्र और चाँदी का वेद्य करता है ।
   तेलीया कंद के द्वारा पारद भस्म निर्माणः- 
कंद को अच्छी तरह से घोट के ऊसकी लुब्दी बनाओ और ऊसी के रसमे द्योटा हुआ पारा ऊस लुब्दी के बीच मे रख शराब संपुट कर पुट देने से भस्म हो जाती है । तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंधः-
 ऊसके पुष्प का आकार सर्प जेसा होता है । संस्कृत नाम सर्पपुष्पी और सर्पिणी है । इसको सर्प कंद भी कहते है । तेलीया कंद का कंद सर्प विष निवारक है । ऊस कंद के निचे सर्प रहता हैं । क्युकी ऊस कंद मे बकरी के मखन जेसी गंद्य वाला रसायन कि वजह सर्प ऊसके तरफ आकर्षित रहते है । तेलीया कंद के कांड मे सर्प के शरीर जैसा निशान होता है । जैसे कोब्रा सर्प का शरीर तेल जैसा चमकता है वैसा यह पोद्या भी तेली होता है । इस प्रकार तेलीया कंद का सर्प के साथ संबंध है । किसी किसी जगह पर कंद को ऊखाडने मे सर्प अडचन भी खडी करते हैं ।
तेलीया कंद की जातीः-
 तेलीया कंद एकलींगी औषधि है । उसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग-अलग होते है और एक काला तेलीया कंद भी होता है । तेलीया कंद की अनेक प्रजातिया होती हैं । ऊसमे यहा दर्शाई गई प्रख्यात है ।
तेलीया कंद की दालः-
 जरुरी मटेरीयलः- ऊबाले हुई तेलीया कंद के पते ऊबाली हुई चने की दाल ,लहसुन, लाल मिर्च ,नमक ,तेल, दाल की रीत, तेल को एक फ्राय पान मे डाल के सब मसाले डालकर पानी जब,तक ऊबलने लगे तब तक ऊबाली इस दाल को भात के साथ खाने से पुरे साल भर कोई बिमारी नही लगती अगर शरीर के किसी भाग मे पिडा होती हैं तो वो,भी ठिक हो जाती है ।
तेलीया कंद की चीप्स (वेफर)-
 तेलीया कंद कि छोटी-छोटी वेफर बनाके सुखा दो बाद मे वेफर को फ्राय करके ऊसमे थोडा निमक मिर्च डालके खाने से अच्छा स्वाद लगता है,
गर्भनिरोधक के रूप में तेलीया कंद का उपयोगः- 
तेलीया कंद के एक चमच चुर्ण को पानी के साथ एक बार लेने से एक सप्ताह तक गर्भ स्थापन नही होता । 
तेलीया कंद लुप्त होने के कारण- 
भारत वर्ष मे से तेलीया कंद लुप्त होने का एक यही कारण रहा है कि यहा के लोगो की मानसिकता अगर किसी ने यह पौधा देख लिया तो वो ऊखाड देते है ।
 दुसरा तेलीया कंद
एकलींगी औषधि है और ऊसके स्त्री और पुरुष जाती के कंद अलग अलग होते है इस लिए उसको फलीभुत होने के लिए दोनो पोंधो का आजु बाजु होना जरुरी हो जाता है । तिशरा कारण हैं इस कंद को लाल चिटीया नष्ट कर देती है और इस कंद को छाव वाली और गीली जगह ज्यादा अनुकुल आती है वो ना मिलने पर पौधा नष्ट हो जाता है ।
तेलीया कंद का परिक्षणः- 
एक लोहे कि किल लेकर उस कंद के भीतर गाडदो दुसरे दिन वो किल पर अगर जंग लग जाता है तो वो सही तेलीया कंद दुसरा परिक्षण यह है कि अगर कपुर को इस कंद के ऊपर रखने पर वो गल जाता है । 
तेलीया कंद के नाम का विश्लेषणः-
 लोह द्रावक के दो अर्थ निकलते है इसके कंद का रस धातु को गला देता है । दुसरा अर्थ है अष्ट लोह मेसे किसी भी धातु को गलाते समय ऊसमें इस कंद कि मात्रा डालने पर ऊसको वो द्रवित कर देता है वो है लोहद्रावक । दुसरा करविरकंद, तेलीया कंद की एक जाती के पत्र कनेर जेसे होते हैं इसलिए इसको करविरकंद कहते है, पत्र और कांड पर रहे तिल जैसे निशान कि वजह से इसको तिलचित्रपत्रक भी कहते है । तेल जेसा द्रव स्त्रवित करता हैं इसलीए तैलकन्द इसका कंद जहरी होने से ऊसको विषकंद भी कहते है और देहसिद्धि और लोहसिद्धि प्रदाता होने की वजह से सिद्धिकंद और विशाल कंद होने की वजह से इसको कंदसंज्ञ भी कहते है ।
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22.2.17

एलर्जी के कारण, लक्षण एवं घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार


   एलर्जी कई प्रकार की होती हैं। इस तरह के सभी रोग परेशान करने वाले होते हैं। इन रोगों का यदि ठीक समय पर इलाज न किया गया, तो परेशानी बढ़ जाती है। त्वचा के कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो अधिक पसीना आने की जगह पर होते हैं दाद या खुजली। परंतु मुख्य रूप से दाद, खाज और कुष्ठ रोग मुख्य हैं। इनके पास दूसरे लोग बैठने से घबराते हैं। परंतु इतना परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। इन रोगों में ज्यादातर साफ सफाई रखने की जरूरत होती है। वरना ये खुद आपके ही शरीर पर जल्द से जल्द फैल सकते हैं। तथा आपके द्वारा इस्तेमाल की गई चीजें अगर दूसरे लोग इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें भी यह रोग लग सकता है। ये रोग रक्त की अशुद्धि से भी होता है। एक्जिमा, दाद, खुजली हो जाये तो उस स्थान का उपचार करें। ये रोग अधिकतर बरसात में होता है। जो बिगड़ जाने पर जल्दी ठीक नहीं होता है।
"एलर्जी" एक आम शब्द, जिसका प्रयोग हम कभी 'किसी ख़ास व्यक्ति से मुझे एलर्जी है' के रूप में करते हैं। ऐसे ही हमारा शरीर भी ख़ास रसायन उद्दीपकों के प्रति अपनी असहज प्रतिक्रया को 'एलर्जी' के रूप में दर्शाता है।
बारिश के बाद आयी धूप तो ऐसे रोगियों क़ी स्थिति को और भी दूभर कर देती है। ऐसे लोगों को अक्सर अपने चेहरे पर रूमाल लगाए देखा जा सकता है। क्या करें छींक के मारे बुरा हाल जो हो जाता है।
एलर्जी,! एलर्जी कई प्रकार की होने के साथ इसके कई कारण भी होते हैं। अक्सर धूल-मिट्टी या मौसम में आए बदलाव के कारण एलर्जी हो जाती है। एलर्जी किसी भी मौसम में हो सकती है, लेकिन सर्दियों के दिनों में ज्यादा परेशान करती है।
*एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है l
मौसमी एलर्जी को आमतौर पर घास-फूस का बुखार भी कहा जाता है। साल में किसी खास समय के दौरान ही यह होता है। घास और शैवाल के पराग कण जो मौसमी होते हैं, इस तरह की एलर्जी की आम वजहें हैं।
*नाक की बारहमासी एलर्जी के लक्षण मौसम के साथ नहीं बदलते। इसकी वजह यह होती है कि जिन चीजों के प्रति आप अलर्जिक होते हैं, वे पूरे साल रहती हैं।

एकदम गरम से ठन्डे और ठन्डे से गरम वातावरण में ना जाएं l
*बाइक चलाते समय मुंह और नाक पर रुमाल बांधे,आँखों पर धूप का अच्छी क़्वालिटी का चश्मा लगायें l
*गद्दे, रजाई,तकिये के कवर एवं चद्दर आदि समय समय पर गरम पानी से धोते रहे l
*रजाई ,गद्दे ,कम्बल आदि को समय समय पर धूप दिखाते रहे l
*पालतू जानवरों से एलर्जी है तो उन्हें घर में ना रखें l
*ज़िन पौधों के पराग कणों से एलर्जी है उनसे दूर रहे l
*घर में मकड़ी वगैरह के जाले ना लगने दें समय समय पर साफ सफाई करते रहे l
धूल मिटटी से बचें ,यदि धूल मिटटी भरे वातावरण में काम करना ही पड़ जाये तो फेस मास्क पहन कर काम करेंl

*नाक की एलर्जी -



"दिल की बीमारी जिन लोगों को नाक की एलर्जी बार बार होती है उन्हें सुबह भूखे पेट 1 चम्मच गिलोय और 2 चम्मच आंवले के रस में 1चम्मच शहद मिला कर कुछ समय तक लगातार लेना चाहिए इससे नाक की एलर्जी में आराम आता है ,सर्दी में घर पर बनाया हुआ या किसी अच्छी कंपनी का च्यवनप्राश खाना भी नासिका एवं साँस की एलर्जी से बचने में सहायता करता है आयुर्वेद की दवा सितोपलादि पाउडर एवं गिलोय पाउडर को 1-1 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भूखे पेट शहद के साथ कुछ समय तक लगातार लेना भी नाक एवं श्वसन संस्थान की एलर्जी में बहुत आराम देता है
जिन्हे बार बार त्वचा की एलर्जी होती है उन्हें मार्च अप्रेल के महीने में जब नीम के पेड़ पर कच्ची कोंपलें आ रही हों उस समय 5-7 कोंपलें 2-3 कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह चबा चबा कर 15-20 रोज तक खाना त्वचा के रोगों से बचाता है, हल्दी से बनी आयुर्वेद की दवा हरिद्रा खंड भी त्वचा के एलर्जी जन्य रोगों में बहुत गुणकारी है
*सभी एलर्जी जन्य रोगों में खान पान और रहन सहन का बहुत महत्व है इसलिए अपना खान पान और रहन सहन ठीक रखते हुए यदि ये उपाय अपनाएंगे तो अवश्य एलर्जी से लड़ने में सक्षम होंगे और एलर्जी जन्य रोगों से बचे रहेंगे एलर्जी जन्य रोगों में अंग्रेजी दवाएं रोकथाम तो करती हैं लेकिन बीमारी को जड़ से ख़त्म नहीं करती है जबकि आयुर्वेद की दवाएं यदि नियम पूर्वक ली जाती है तो रोगों को जड़ से ख़त्म करने की ताकत रखती हैं l
*र्बल चाय एलर्जी की समस्या से बचने व इसे दूर करने के लिए घर में ही मौजूद अदरक, काली मिर्च, तुलसी के पत्ते, लौंग व मिश्री को मिलाकर बनायी गयी हर्बल चाय पीनी चाहिए। इस चाय से न सिर्फ एलर्जी से निजात मिलती है, बल्कि एनर्जी भी मिलती है।
*फल या सब्जी के जूस में 5 बूंद कैस्टर ऑयल डालकर सुबह खाली पेट पिएं। चाहें तो फल व सब्जी के जूस के अलावा पानी में भी इसे ले सकते हैं। इससे आप आंतों, स्किन और नाक की एलर्जी से छुटकारा पा सकते हैं।
*नीम चढी गिलोय के डंठल को छोटे टुकड़ों में काटकर इसका रस हरिद्रा खंड चूर्ण के साथ1.5 से तीन ग्राम नियमित प्रयोग पुरानी से पुरानी एलर्जी में रामबाण औषधि है।
*गुनगुने निम्बू पानी का प्रातःकाल नियमित प्रयोग शरीर सें विटामिन-सी की मात्रा की पूर्ति कर एलर्जी के कारण होने वाले नजला-जुखाम जैसे लक्षणों को दूर करता है।
*अदरख,काली मिर्च,तुलसी के चार पत्ते ,लौंग एवं मिश्री को मिलाकर बनायी गयी 'हर्बल चाय' एलर्जी से निजात दिलाती है।
*बरसात के मौसम में होनेवाले विषाणु (वायरस)संक्रमण के कारण 'फ्लू' जनित लक्षणों को नियमित ताजे चार नीम के पत्तों को चबा कर दूर किया जा सकता है।
*आयुर्वेदिक दवाई 'सितोपलादि चूर्ण' एलर्जी के रोगियों में चमत्कारिक प्रभाव दर्शाती है।
*नमक पानी से 'कुंजल क्रिया' एवं ' नेती क्रिया" कफ दोष को बाहर निकालकर पुराने से पुराने एलर्जी को दूर करने में मददगार होती है।
* पंचकर्म की प्रक्रिया 'नस्य' का चिकित्सक के परामर्श से प्रयोग 'एलर्जी' से बचाव ही नहीं इसकी सफल चिकित्सा है।
* प्राणायाम में 'कपालभाती' का नियमित प्रयोग एलर्जी से मुक्ति का सरल उपाय है।
कुछ सावधानियां जिन्हें अपनाकर आप एलर्जी से खुद को दूर रख सकते हैं :-
* धूल,धुआं एवं फूलों के परागकण आदि के संपर्क से बचाव।
* अत्यधिक ठंडी एवं गर्म चीजों के सेवन से बचना।
* कुछ आधुनिक दवाओं जैसे: एस्पिरीन, निमासूलाइड आदि का सेवन सावधानी से करना।
*खटाई एवं अचार के नियमित सेवन से बचना।
आधे नींबू का रस और एक चम्मच शहद एक गिलास गुनगुने पानी में मिला दें। इसे आप रोजाना सुबह कई महीनों तक पिएं।
*फिटकरी के पानी से प्रभावित स्थान को धोकर साफ करें। उस पर कपूर सरसों का तेल लगाते रहें। आंवले की गुली जलाकर राख कर लें उसमें एक चुटकी फिटकरी, नारियल का तेल मिलाकर इसका पेस्ट उस स्थान पर लगाते रहें। एक विकार दूर करने के लिये खट्टी चीजें, चीबी, मिर्च, मसाले से दूर रहें।

* जब तक उपलब्ध हो गाजर का रस पियें दाद में। विटामिन ए की कमी से त्वचा शुष्क होती है। ये शुष्कता सर्दियों में अधिक बढ़ जाती है। इस कारण सर्दियों में गाजर का रस पियें ये विटामिन ए का भरपूर स्त्रोत है। चुकंदर के पत्तों का रस, नींबू का रस मिलाकर लगायें दाद ठीक होगा। गाजर व खीरे का रस बराबर-बराबर लेकर चर्म रोग पर दिन में चार बार लगायें।
 चर्म रोग कैसा भी हो उस स्थान को नींबू पानी से धोते रहें लाभ होगा। रोज सुबह नींबू पानी पियें लाभ होगा। नींबू में फिटकरी भरकर पीड़ित स्थान पर रगड़ने  से लाभ होगा। चंदन का बूरा, नींबू का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पेष्ट बनाऐं व दाद, खुजली पर लगायें। 



* दाद होने पर नीला थोथा, फिटकरी दोनों को आग में भूनकर पीस लें फिर नींबू निचोड़कर लेप बनाऐं और दाद पर लगायें पुराना दाद भी ठीक हो जायेगा। दाद पर जायफल, गंधक, सुहागा को नींबू के रस में रगड़कर लगाने से लाभ होगा। 
* दाद व खाज के रोगी, उबले नींबू का रस, शहद, अजवाइन के साथ रोज सुबह शाम पियें। दाद खाज में आराम होगा। नींबू के रस में इमली का बीज पीसकर लगाने से दाद मिटता है। 
* पिसा सुहागा नींबू का रस मिलाकर लेप बनाऐं तथा दाद को खुजला कर उस पर लेप करें। दिन में चार बार दाद को खुजलाकर उस पर नींबू रगड़ें। 
* सूखें सिंघाड़े को नींबू के रस घिसें इसे दाद पर लगायें पहले तो थोड़ी जलन होगी फिर ठंडक पड़ जायेगी इससे दाद ठीक होगा। 
* तुलसी के पत्तों को नींबू के साथ पीसें यानी चटनी जैसा बना लें इसे 15 दिन तक लगातार लगायें। दाद ठीक होगा। प्याज का बीज नींबू के रस के साथ पीस लें फिर रोज दाद पर करीब दो माह तक लगायें दाद ठीक होगा। 
* नहाते समय उस स्थान पर साबुन न लगायें। पानी में नींबू का रस डालकर नहायें। दाद फैलने का डर नहीं रहेगा। पत्ता गोभी, चने के आटे का सेवन करें। नीम का लेप लगायें। नीम का शर्बत पियें थोड़ी मात्रा में। प्याज पानी में उबालकर प्रभावित स्थान पर लगायें। कैसा भी रोग होगा ठीक हो जायेगा। लंम्बे समय तक लगाये। 



* प्याज के बीज को पीसकर गोमूत्र में मिलाकर दाद वाले हिस्से पर लगायें। प्याज भी खायें। बड़ी हरड़ को सिरके में घिसकर लगाने से दाद ठीक होगा। ठीक होने तक लगायें। *चर्म रोग कोई भी हो, शहद, सिरका मिलाकर चर्म रोग पर लगाये मलहम की तरह। कुष्ठ रोग में भी शहद खायें, शहद लगायें। 
दिल की बीमारी* सफेद दाग में नीम एक वरदान है। कुष्ठ रोग का इलाज नीम के जितने करीब होगा, उतना ही फायदा होगा। नीम लगाएं, नीम खाएं, नीम पर सोएं, नीम के नीचे बैठे, सोये यानि कुष्ठ रोग के व्यक्ति जितना संभव हो नीम के नजदीक रहें। नीम के पत्ते पर सोएं, उसकी कोमल पत्तियां, निबोली चबाते रहें। रक्त शुद्धिकरण होगा। अंदर से त्वचा ठीक होगी। कारण नीम अपने में खुद एक एंटीबायोटिक है। इसका वृक्ष अपने आसपास के वायुमंडल को शुद्ध, स्वच्छ, कीटाणुरहित रखता है। इसकी पत्तियां जलाकर पीसकर नीम के ही तेल में मिलाकर घाव पर लेप करें। नीम की फूल, पत्तियां, निबोली पीसकर इसका शर्बत चालीस दिन तक लगाताकर पियें। कुष्ठ रोग से मुक्ति मिलेगी। नीम का गोंद, नीम के ही रस में पीसकर पिएं थोड़ी-थोड़ी मात्रा से शुरू करें इससे गलने वाला कुष्ठ रोग भी ठीक हो जाता है 
*त्वचा की एलर्जी के लिए नींबू के रस को आप नारियल तेल में मिलकर भी लगा सकते हैं। इसे लगा कर पूरी रात रहने दें। इसे नीम के पानी से धोएं। यह एंटी-बैक्टीरियल होता है, इसलिए यह किसी भी त्वचा संबंधी बीमारी को दूर कर सकता है।खसखस के बीज, शहद और नींबू के रस का मिश्रण बनाकर इसे प्रभावित जगह पर लगाने से त्वचा की एलर्जी का इलाज संभव है.
जिन लोगों को एलर्जी की समस्या है, उन्हें लगातार कपालभाति का अभ्यास करना चाहिए और इसकी अवधि को जितना हो सके, उतना बढ़ाना चाहिए। तीन से चार महीने का अभ्यास आपको एलर्जी से मुक्ति दिला सकता है।

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21.2.17

फाइलेरिया , श्लीपद,हाथीपांव के उपचार (Elephantiasis Treatment)


 यह रोग उन स्थानों के निवासियों में ज्यादातर होता है, जिन स्थानों में जल का प्रभाव ज्यादा हो, जहां वर्षा ज्यादा समय तक ज्यादा मात्रा में होती हो, शीतलता ज्यादा रहती हो, जहां के जलाशय गन्दे हों। फाइलेरिया (Lymphatic Filariasis) एक परजीवीजन्य संक्रामक बीमारी है जो धागे जैसे कृमियों से होती है। वैश्विक स्तर पर इसे एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी (Neglected Tropical Disease) माना जाता है। फाइलेरिया दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। जिसमें भारत भी शामिल है। विश्व में लगभग 1.3 अरब लोगों को इस बीमारी के संक्रमण का खतरा है और लगभग 12 करोड़ लोग इससे वर्तमान में संक्रमित हो चुके हैं, जिनमें से लगभग 4 करोड़ लोग इस बीमारी की वजह से किसी विकृति का शिकार हो गए हैं या अक्षम हो चुके हैं।
*फाइलेरिया 2.5 करोड़ से ज्यादा पुरुषों को जननांग के विकार और 1.5 करोड़ से ज्यादा लोगों को सूजन से प्रभावित कर चुका है। हाथीपांव (Elephantiasis) फाइलेरिया का सबसे सामान्य लक्षण है जिसमें शोफ (Oedema) के साथ चमड़ी तथा उसके नीचे के ऊतक मोटे हो जाते हैं।
वातज श्लीपद : 
वात के कुपित होने पर हुए श्लीपद रोग में त्वचा रूखी, मटमैली, काली और फटी हुई हो जाती है, तीव्र पीड़ा होती है, अकारण दर्द होता रहता है एवं तेज बुखार होता है।

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पित्तज श्लीपद :
 इसमें कुपित पित्त का प्रभाव रहता है। रोगी की त्वचा पीली व सफेद हो जाती है, नरम रहती है और मन्द-मन्द ज्वर होता रहता है।
कफज श्लीपद : 
इसमें कफ कुपित होने का प्रभाव होता है। त्वचा चिकनी ,पीली, सफेद हो जाती है, पैर भारी और कठोर हो जाता है। ज्वर होता भी है और नहीं भी होता।
फाइलेरिया से बचाव (Treatment of Elephantiasis)
*ऐसे कपड़े पहनें जिनसे पाँव और बांह पूरी तरह से ढक जाएं।
*आवश्यकता पड़े तो पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक *कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें। बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपड़े मिलते हैं।
*मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे का छिड़काव करें।
इ*लाज बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए।



*मच्छरों से बचाव फाइलेरिया (Hathipaon) को रोकने का एक प्रमुख उपाय है। क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।

*किसी ऐसे क्षेत्र में जहां फाइलेरिया फैला हुआ है वहां खुद को मच्छर के काटने से बचाना चाहिए।
कैसे फैलता है फाइलेरिया?
फाइलेरिया मच्छरों से फैलता है जो परजीवी कृमियों के लिए रोगवाहक का काम करते हैं। इस परजीवी के लिए मनुष्य मुख्य पोषक है जबकि मच्छर इसके वाहक और मध्यस्थ पोषक हैं। कृमि प्रभावित क्षेत्रों से लोगों का रोजगार की तलाश में बाहर जाना, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, अज्ञानता, आवासीय सुविधाओं की कमी और स्वच्छता की अपर्याप्त स्थिति से यह संक्रमण फैलता है। संक्रमण के बाद कृमि के लार्वा संक्रमित व्यक्ति की रक्तधारा में बहते रहते हैं जबकि वयस्क कृमि मानव लसीका तंत्र में जगह बना लेता है। एक वयस्क कृमि की आयु सात वर्ष तक हो सकती है।
क्या हैं फाइलेरिया के लक्षण?
इस तथ्य का अभी तक सटीक आकलन नहीं किया जा सका है कि संक्रमण के बाद फाइलेरिया के लक्षण प्रकट होने में कितना समय लगता है। हालांकि मच्छर के काटने के 16-18 महीनों के पश्चात बीमारी के लक्षण प्रकट होते हैं। फाइलेरिया के ज्यादातार लक्षण और संकेत वयस्क कृमि के लसीका तंत्र में प्रवेश के कारण पैदा होते हैं। कृमि द्वारा ऊतकों को नुकसान पहुंचाने से लसीका द्रव का बहाव बाधित होता है जिससे सूजन, घाव और संक्रमण पैदा होते हैं। पैर और पेड़ू सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले अंग हैं। फाइलेरिया का संक्रमण सामान्य शारीरिक कमजोरी, सिरदर्द, मिचली, हल्के बुखार और बार-बार खुजली के रूप में प्रकट होता है।



कैसे फाइलेरिया का पता लगाया जाता है?

फाइलेरिया परजीवी के माइक्रोफाइलेरि (Microfiliariae) रक्त में सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं। माइक्रोफाइलेरि मध्यरात्रि के समय लिए गए रक्त के नमूनों में देखे जा सकते हैं क्योंकि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में इन परजीवियों में ‘निशाचरी आवधिकता’ (Nocturnal Periodicity) देखी जाती है जिससे रक्त में इनकी उपस्थिति मध्य रात्रि के आसपास के कुछ घंटों तक ही सीमित रहती है। यह भी देखा गया है कि रक्त में इस परजीवी की उपस्थिति मरीज के सोने की आदतों पर भी निर्भर करती है।
फाइलेरिया की पहचान में सीरम संबंधी तकनीकें माइक्रोस्कोपिक पहचान का विकल्प हैं। सक्रिय फाइलेरिया संक्रमण के मरीजों के रक्त में फाइलेरियारोधी आईजी जी 4 (Immunoglobulin G 4) का स्तर बढ़ा हुआ रहता है जिसका सामान्य तरीकों से पता लगाया जा सकता है।
*फाइलेरिया कभी-कभार ही जानलेवा साबित होता है, हालांकि इससे बार-बार संक्रमण, बुखार, लसीका तंत्र में गंभीर सूजन और फेफड़ों की बीमारी ‘ट्रॉपिकल पल्मोनरी इओसिनोफीलिया (Tropical Pulmonary Eosinophilia) हो जाती है। ट्रॉपिकल पल्मोनरी इओसिनोफीलिया के लक्षणों में खांसी, सांस लेने में परेशानी और सांस लेने में घरघराहट की आवाज होती है। लगभग 5 प्रतिशत मामलों में पैरों में सूजन आ जाती है जिसे फ़ीलपांव अथवा हाथीपांव कहते हैं। फाइलेरिया से गंभीर विकृति, चलने-फिरने में परेशानी और लंबी अवधि की विकलांगता हो सकती है।
*फाइलेरिया के कारण हाइड्रोसील (Hydrocoele) भी हो सकता है। मरीज के वृषणकोष (Scrotum) में सूजन भी आ सकती है जिसे ‘फाइलेरियल स्क्रोटम’ (Filarial scrotum) कहा जाता है। कुछ मरीजों में मूत्र का रंग दूधिया हो जाता है। महिलाओं में वक्ष या बाह्य जननांग भी प्रभावित होते हैं। कुछ मामलों में पेरिकार्डियल स्पेस (हृदय और उसके झिल्लीदार आवरण के बीच की जगह) में भी द्रव जमा हो जाता है।
घरेलू उपाय, उपचार
*कीटाणुरोधक और मच्छरदानी का प्रयोग करें।
*उचित स्वास्थ्यवर्धक स्थितियाँ बनाए रखें।
*सूजे हिस्से को प्रतिदिन साबुन और पानी से सावधानीपूर्वक स्वच्छ करें।
*लसिका प्रवाह बढ़ाने के लिए सूजे हुए हाथ या पैर को ऊपर उठा कर व्यायाम करें।
*बैक्टीरिया रोधी और फफूंद नाशक क्रीमों के प्रयोग से घावों को संक्रमण रहित करें।
*धतूरा, एरण्ड की जड़, सम्हालू, सफेद पुनर्नवा, सहिजन की छाल और सरसों, इन सबको समान मात्रा में पानी के साथ पीसकर गाढ़ा लेप तैयार करें। इस लेप को श्लीपद रोग से प्रभावित अंग पर प्रतिदिन लगाएं। इस लेप से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
*चित्रक की जड़, देवदार, सफेद सरसों, सहिजन की जड़ की छाल, इन सबको समान मात्रा में, गोमूत्र के साथ, पीसकर लेप करने से धीरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।
*बड़ी हरड़ को एरण्ड (अरण्डी) के तेल में भून लें। इन्हें गोमूत्र में डालकर रखें। यह 1-1 हरड़ सुबह-शाम खूब चबा-चबाकर खाने से धीेरे-धीरे यह रोग दूर हो जाता है।



लेने योग्य आहार

कम-वसा, प्रोटीन की अधिकता वाला आहार लाभकारी होता है।
तरल पदार्थों की पर्याप्त मात्रा लें।
प्रोबायोटिक (पाचन में सहायक लाभकारी बैक्टीरिया)।
ओरिगानो (एक वनस्पतीय औषधि)।
विटामिन सी युक्त भोज्य पदार्थ।
स्थितियों के ठीक होने के लिए वसायुक्त और मसालेदार आहार ना लें।
पथ्य : लहसुन, पुराने चावल, कुल्थी, परबल, सहिजन की फली, अरण्डी का तेल, गोमूत्र तथा सादा-सुपाच्य ताजा भोजन। उपवास, पेट साफ रखना।

*परहेज- दूध से बने पदार्थ, गुड़, मांस, अंडे तथा भारी गरिष्ट व बासे पदार्थों का. सेवन न करें। आलस्य, देर तक सोए रहना, दिन में सोना आदि |

किडनी फेल (गुर्दे खराब) की अमृत औषधि 

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आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार 

   





20.2.17

मालकाँगनी के औषधीय प्रयोग


मालकांगनी (Staff Tree) :
परिचय : 1. इसे ज्योतिष्मती (संस्कृत), मालकांगनी (हिन्दी), मालकागोणी (मराठी), मालकांगणी (गुजराती), बालुलवे (तमिल), तैलान (अरबी) तथा सिलेक्ट्रस पैनिक्यूलेटा (लैटिन) कहते हैं।
मालकांगनी की बेल भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में विशेषकर कश्मीर और पंजाब आदि में अधिक मात्रा में पाई जाती है। इसकी बेल दूसरे पेड़ों पर चढ़कर फलती-फूलती है। इसकी झुकी हुई नई शाखाओं पर सफेद बिन्दु के समान धब्बे होते हैं। इसके पत्ते नुकीले, लट्वाकार, 5 से 10 सेमी लंबे और 6-7 सेमी चौडे़ होते हैं। इसमें फूल नई पत्तियों के साथ अप्रैल-जून में आते हैं और शरद ऋतु में फल लगते और पकते हैं।
मालकांगनी के बारे में एक बात कही जाती है कि “ एक तरह सभी टॉनिक जैसे कि च्यवनप्राश,होर्लिक्स, सुप्लिमेंट और बूट इत्यदि रख दें तथा दूसरी तरफ मालकांग नी को रख दें तब भी वे सारे मिलकर मालकांगनी का मुकाबला नहीं कर सकते. सर्दियों में तो इसे अद्वितीय टॉनिक माना जाता है. इसके गुण और क्षमता सोना चाँदी च्यवनप्राश इत्यादि टॉनिकों से हजार गुना अच्छी और बेहतर है.
दरअसल ये मालकांगनी के पौधे के बीजों से तैयार होती है और हर जगह किसी भी जड़ी बूटी वाले की दूकान पर आसानी से मिल जाती है. इनके बीजों में एक तेल होता है जो गाढा तथा पीले रंग का होता है साथ ही इस तेल का स्वाद भी कडवा होता है. ध्यान रहें कि अगर आप बाजार से इसका तेल खरीदना चाहते है तो अच्छी तरह जांच कर लें क्योकि अधिकतर लोग इसका नकली तेल बेचते है. वैसे अच्छा रहेगा कि आप बाजार से इसके बीज ही खरीदें और खुद इसका तेल निकलवाएँ.
एक अन्य बात इसके बीज और तेल दोनों ही समान रूप से गुणी होते है. इसका हर बीज चने के आकार का होता है जिसमें 6 अन्य छोटे छोटे बीज भी पाये जाते है. साथ ही संस्कृत भाषां में इसे ज्योतिष्मती के नाम से जाना जाता है.
रंग : मालकांगनी के फूल पीले और हरे रंग के होते हैं।
स्वाद : इसका स्वाद कड़वा और तीखा होता है।
प्रकृति : मालकांगनी गर्म प्रकृति की होती है।

हानिकारक :

इसके बीजों का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी या दस्त का रोग हो सकता है। मालकांगनी का सेवन गर्म स्वभाव वाले व्यक्तियों के लिए हानिकारक हो सकता है।

मात्रा : 

मालकांगनी के बीजों का 1 से 2 ग्राम चूर्ण और रस 5 से 15 बूंद तक ले सकते हैं।

मालकांगनी के उपयोग ( Uses ) :

लिंग वृद्धि: 


भुने सुहागे को पीसकर मालकांगनी के तेल में मिलाकर लिंग पर सुबह-शाम मालिश करने से लिंग में सख्तपन और मोटापन बढ़ता है।
* शरीर का ताकतवर और शक्तिशाली बनाना:लगभग 250 ग्राम मालकांगनी को गाय के घी में भूनकर, इसमें 250 ग्राम शक्कर मिलाकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण को लगभग 6 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ सुबह-शाम खाने से मनुष्य के शरीर में ताकत का विकास होता है। इसका सेवन लगभग 40 दिनों तक करना चाहिए।

* कमजोरी:

मालकांगनी के बीजों को दबाकर निकाला हुआ तेल, 2 से 10 बूंद को मक्खन या दूध में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से दिमाग तेज होता है और कमजोरी मिट जाती है।
मालकांगनी के बीज को गाय के घी में भून लें। फिर इसमें इसी के समान मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम एक कप दूध के साथ सेवन करें। इससे शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है।

नपुंसकता:

मालकांगनी के तेल की 10 बूंदे नागबेल के पान पर लगाकर खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है। इसके सेवन के साथ दूध और घी का प्रयोग ज्यादा करें।
मालकांगनी के तेल को पान के पत्ते में लगाकर रात में शिश्न (लिंग) पर लपेटकर सो जाएं और 2 ग्राम बीजों को दूध की खीर के साथ सुबह-शाम सेवन करें। इससे नपुंसकता के रोग में लाभ मिलता है।
50 ग्राम मालकांगनी के दाने और 25 ग्राम शक्कर को आधा किलो गाय के दूध में डालकर आग पर चढ़ा दें। जब दूध का खोया बन जाये तब इसे उतारकर मोटी-मोटी गोली बनाकर रख लें और रोज 1-1 गोली सुबह-शाम गाय के दूध के साथ खाये। इससे नपुंसकता दूर होती है।
मालकांगनी के बीजों को खीर में मिलाकर खाने से नपुंसकता मिट जाती है।

स्मृति भ्रंश ( Alzimar’s Diseases ) : 

ये रोग बुढापे का रोग है इसमें व्यक्ति अपनी कही बात या कार्य को भूल जाता है, कुछ समय बात उसे बात याद आ जाती है तो अगले ही कुछ समय बात वो फिर से बात को भूल जाता है. किन्तु इस रोग से छुटकारा पाने के लिए इस औषधि का प्रयोग किया जा सकता है.

*वायुरोग :

औषधि के लिए इसके बीजों का तेल निकाला जाता है। व्यापार की दृष्टि से अधिक बीज लेकर कोल्हू या मशीन से तेल निकाल लेते हैं। इसके तेल की मालिश से सन्धियों की वेदना, पक्षाघात (लकवा), अर्दित, गृध्रसी (साइटिका) और कमर का दर्द दूर हो जाता है।


* नेत्र ज्योतिवर्द्धक

मालकांगनी के तेल की मालिश पैर के तलुवों पर रोजाना करते रहने से आंखों की रोशनी बढ़ जाती है।
* सिर में दर्द: मालकांगनी का तेल और बादाम के तेल को 2-2 बूंद की मात्रा में सुबह खाली पेट एक बताशे में डालकर खा लें और ऊपर से 1 कप दूध पियें। मालकांगनी का लगातार सेवन करने से पुराने सिर का दर्द और आधासीसी (माइग्रेन) के दर्द में आराम मिलता है।
*जीभ और त्वचा की सुन्नता: मालकांगनी (ज्योतिष्मती) के बीज पहले दिन 1 बीज तथा दूसरे रोज से 1-1 बीज बढ़ाते हुए 50 वें दिन में 50 बीज खायें तथा 50 वें दिन से 1-1 बीज कम करते हुए 1 बीज की मात्रा तक खायें। इसके प्रयोग से मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है लेकिन इससे किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है तथा जीभ और त्वचा की सुन्नता ठीक होती है।

* दमा, श्वास:

 मालकांगनी के बीज और छोटी इलायची को बराबर मात्रा में पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम खाने से दमा के रोग में आराम मिलता है।

* बुद्धि और स्मृति बढ़ना: 

मालकांगनी के बीज, बच, देवदारू और अतीस आदि का मिश्रण बना लें। रोज सुबह-शाम 1 चम्मच घी के साथ पीने से दिमाग तेज और फूर्तीला बनता है। मालकांगनी तेल की 5-10 बूंद मक्खन के साथ सेवन करने से भी लाभ मिलता है।

* अनिद्रा (नींद का कम आना): 

मालकांगनी के बीज, सर्पगन्धा, जटामांसी और मिश्री को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इसे 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ खाने से अनिद्रा रोग (नींद का कम आना) में राहत मिलती है।

*सफेद दाग: 

मालकांगनी और बावची के तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर एक शीशी में रख लें, इसको सफेद दागों पर रोजाना सुबह-शाम लगाने से लाभ मिलता है।



*अफीम की आदत छुड़ाने के लिए:
 मालकांगनी के पत्तों का रस एक चम्मच की मात्रा में 2 चम्मच पानी के साथ दिन में 3 बार रोगी को पिलाते रहने से अफीम की गन्दी आदत से छुटकारा पाया जा सकता है।
चालविभ्रम (कलाया खन्ज) : 
ज्योतिष्मती (मालकांगनी) के बीजों के काढ़े में 2 से 4 लौंग डालकर सेवन करना चाहिए। इसका 40 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से चालविभ्रम रोग में लाभ पहुंचता है।
* उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना): 
10-15 मालकांगनी के तेल की बूंद के सेवन से शरीर की सुन्नता दूर हो जाती है और यह हड्डियों में पीव को खत्म करता है।
* नाखूनों का अन्दर की ओर बढ़ना: 
ज्योतिष्मती के बीजों को अच्छी तरह से पीसकर उसका लेप नाखून पर लगाने से नाखून की जलन व दर्द में राहत मिलती है।
* नाखूनों का जख्म: ज्योतिष्मती (मालकांगनी) के बीजों को पीसकर नाखून पर लेप करने से नाखूनों का जख्म ठीक होता है।
*. मिर्गी (अपस्मार):
 मालकांगनी के तेल में कस्तूरी को मिलाकर रोगी को चटाने से मिर्गी का दौरा आना बंद हो जाता है।
*. शरीर का सुन्न पड़ जाना: 
10 से 15 बूंद मालकांगनी के तेल का सेवन करने से शरीर की सुन्नता दूर हो जाती है।
* दाद: मालकांगनी को कालीमिर्च के बारीक चूर्ण के साथ पीसकर दाद पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में दाद ठीक हो जाता है।
* खूनी बवासीर:
 इसके बीजों को गोमूत्र (गाय के पेशाब) में पीसकर खुजली वाले अंग पर नियमित लगाने से खूनी बवासीर में आराम मिलता है।
* खुजली: 
मालकांगनी के बीजों को गोमूत्र में पीसकर खुजली वाले अंग पर नियमित लगाने से खुजली में लाभ मिलता है।



* एक्जिमा: 
ज्योतिष्मती (मालकांगनी) के पत्तों को कालीमिर्च के साथ पीसकर लेप करने से एक्जिमा समाप्त हो जाता है।
*दिमाग के कीड़े:पहले दिन मालकांगनी का 1 बीज, दूसरे दिन 2 बीज और तीसरे दिन 3 बीज इसी तरह से 21 दिन तक बीज बढ़ायें और फिर इसी तरह घटाते हुए एक बीज तक ले आएं। इसके बीजों को निगलकर ऊपर से दूध पीने से दिमाग की कमजोरी नष्ट हो जाती है।
लगभग 3 ग्राम मालकांगनी के चूर्ण को सुबह और शाम दूध के साथ खाने से स्मरण शक्ति (याददाश्त) बढ़ती है।
* गठिया रोग:
20 ग्राम मालकांगनी के बीज और 10 ग्राम अजवायन को पीस-छानकर चूर्ण बनाकर रोजाना 1 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से गठिया रोग (घुटनों का दर्द) में आराम होता है।
10-10 ग्राम मालकांगनी, काला जीरा, अजवाइन, मेथी और तिल को लेकर पीस लें फिर इसे तेल में पकाकर छानकर रख लें। इस तेल से कुछ दिनों तक मालिश करें। इससे गठिया रोग (घुटनों का दर्द) ठीक हो जाता है।
* बेरी-बेरी:
1 बताशे में मालकांगनी के बीजों को पानी में पीसकर बनी लुगदी (पेस्ट) को मस्सों पर लगाते रहने से खून का बहाव कम होता है।
शुरुआती बेरी-बेरी रोग में ज्योतिष्मती (मालकांगनी) तेल की 10 से 15 बूंद, दूध या मलाई के साथ मिलाकर सुबह-शाम पीने से यह रोग दूर हो जाता है।
*ज्योतिष्मती (माल कांगनी) के बीजों को सोंठ के साथ खाने से लाभ होता है। शुरुआत में 1 बीज और इसके बाद रोजाना 1-1 बीज की संख्या बढ़ाते हुए 50 बीज तक, सोंठ के साथ 50 दिन तक खायें। इसके बाद 50 वें दिन से प्रत्येक दिन इसके बीजों की 1-1 संख्या कम करते हुए 1 बीज तक, सोंठ के साथ खायें। ज्योतिष्मती (मालकांगनी) को खाने से पहले पेशाब की मात्रा बढ़ती है फिर धीरे-धीरे यह सूजन कम करती है। धीरे-धीरे संवेदनशीलता वापस आ जाती और शरीर की नसे स्वस्थ्य हो जाती हैं। ध्यान रहे : ज्योतिष्मती तेल या ज्योतिष्मती बीज में से किसी एक का ही प्रयोग करें।



*बंद माहवारी:
 मालकांगनी के बीज 3 ग्राम की मात्रा में लेकर गर्म दूध के साथ सेवन करने से अधिक दिनों का रुका हुआ मासिक-धर्म भी जारी हो जाता है।
* वीर्य रोग :
 40 ग्राम मालकांगनी का तेल, 80 ग्राम घी तथा 120 ग्राम शहद को मिलाकर कांच के बर्तन में रख दें। सुबह-शाम 6 ग्राम दवा खाने से नपुंसकता और टी.बी. के रोग में लाभ मिलता है।
मासिक-धर्म अवरोध:
मालकांगनी के पत्ते तथा विजयसार की लकड़ी दोनों को दूध में पीस-छानकर पीने से बंद हुआ मासिक-धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
मालकांगनी के पत्तों को पीसकर तथा घी में भूनकर महिलाओं को खिलाना चाहिए। इससे महिलाओं का बंद हुआ मासिक-धर्म दुबारा शुरू हो जाता है।
मालकांगनी के पत्ते, विजयसार, सज्जीक्षार, बच को ठंडे दूध में पीसकर स्त्री को पिलाने से मासिकस्राव (रजोदर्शन) आने लगता है।
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