30.1.17

पलाश(ढाक) के औषधीय गुण//Palash (Dhak) medicinal properties





पलाश (पलास, परसा, ढाक, टेसू, किंशुक, केसू) एक वृक्ष है जिसके फूल बहुत ही आकर्षक होते हैं। इसके आकर्षक फूलो के कारण इसे "जंगल की आग" भी कहा जाता है। प्राचीन काल ही से होली के रंग इसके फूलो से तैयार किये जाते रहे है। भारत भर मे इसे जाना जाता है। एक "लता पलाश" भी होता है। लता पलाश दो प्रकार का होता है। एक तो लाल पुष्पो वाला और दूसरा सफेद पुष्पो वाला। लाल फूलो वाले पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है। सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। वैज्ञानिक दस्तावेजो मे दोनो ही प्रकार के लता पलाश का वर्णन मिलता है। सफेद फूलो वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा है जबकि लाल फूलो वाले को ब्यूटिया सुपरबा कहा जाता है। एक पीले पुष्पों वाला पलाश भी होता है।

    जिसकी समिधा यज्ञ में प्रयुक्त होती है, ऐसे हिन्दू धर्म में पवित्र माने गये पलाश वृक्ष को आयुर्वेद ने 'ब्रह्मवृक्ष' नाम से गौरवान्विति किया है। पलाश के पाँचों अंग (पत्ते,फूल, फल, छाल, व मूल) औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। यह रसायन (वार्धक्य एवं रोगों को दूर रखने वाला), नेत्रज्योति बढ़ाने वाला व बुद्धिवर्धक भी है।
*पलाश व बेल के सूखे पत्ते, गाय का घी व मिश्री समभाग मिलाकर धूप करने से बुद्धि शुद्ध होती है |
*वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है। इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें। यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है, कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
इसके पत्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी के पात्र में किये गये भोजन के समान लाभ प्राप्त होते हैं।
*इसके पुष्प मधुर व शीतल हैं। उनके उपयोग से पित्तजन्य रोग शांत हो जाते हैं।
*.पलाश के बीज उत्तम कृमिनाशक व कुष्ठ (त्वचारोग) दूर करने वाले हैं।
.इसकी जड़ अनेक नेत्ररोगों में लाभदायी है।

पलाश के फूलों द्वारा उपचारः

*महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें। अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।
*रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
*मेह (मूत्र-संबंधी विकारों) में पलाश के फूलों का काढ़ा (50 मि.ली.) मिलाकर पिलायें।
*आँख आने पर (Conjunctivitis) 
फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँख मे आंजे|

पलाश के बीजों द्वारा उपचारः

*पलाश के बीज आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है।
1.पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है, जो उत्तम कृमिनाशक है। 3 से 6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें । चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें, इससे कृमि निकल जायेंगे।
*इसके बीजों को नींबू के रस के साथ पीस कर खुजली तथा एक्जिमा तथा दाद जैसी परेशानियां दूर करने में काम में लिया जाता है।


छाल व पत्तों द्वारा उपचारः

*नाक, मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें।
*.बवासीर में पलाश के पत्तों की सब्जी घी व तेल में बनाकर दही के साथ खायें।
*बालकों की आँत्रवृद्धि (Hernia) में छाल का काढ़ा (25 मि.ली.) बनाकर पिलायें।
*इसकी पत्तियां रक्त, शर्करा ,ब्लड शुगर को कम करती हैं तथा ग्लुकोसुरिया को नियंत्रित करती है, इसलिए मधुमेह की बीमारी में यह खासा आराम देती हैं।

पलाश के गोंद द्वारा उपचारः

*पलाश का  गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है।
*पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।


*पलाश की गोंद को बंगाल में किनो नाम से भी जाना जाता है और डायरिया व पेचिश जैसे रोगों की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
और भी-
*बवासीर के मरीजों को पलाश के पत्तों का साग ताजे दही के साथ खाना चाहिए लेकिन साग में घी ज्यादा चाहिए।
*बुखार में शरीर बहुत तेज दाहक रहा हो तो पलाश के पत्तों का रस लगा लीजिये शरीर पर 15 मिनट में सारी जलन ख़त्म हो जाती है।
*जो घाव भर ही न रहा हो उस पर पलाश की गोंद का बारीक चूर्ण छिड़क लीजिये फिर देखिये।
*फीलपांव या हाथीपाँव में पलाश की जड़ के रस में सरसों का तेल मिला कर रख लीजिये बराबर मात्रा में और फिर सुबह शाम 2-2 चम्मच पीजिये।


*नेत्रों की ज्योति बढानी है तो पलाश के फूलों का रस निकाल कर उसमें शहद मिला लीजिये और आँखों में काजल की तरह लगाकर सोया कीजिए- अगर रात में दिखाई न देता हो तो पलाश की जड़ का अर्क आँखों में लगाइए।
*दूध के साथ प्रतिदिन एक (पलाश) पुष्प पीसकर दूध में मिला के गर्भवती माता को पिलायें-इससे बल-वीर्यवान संतान की प्राप्ति होती है।
*यदि अंडकोष बढ़ गया हो तो पलाश की छाल का 6 ग्राम चूर्ण पानी के साथ निगल लीजिये।
*नारी को गर्भ धारण करते ही अगर गाय के दूध में पलाश के कोमल पत्ते पीस कर पिलाते रहिये तो शक्तिशाली और पहलवान बालक पैदा होगा।
*यदि इसी पलाश के बीजों को मात्र लेप करने से नारियां अनचाहे गर्भ से बच सकती हैं।

*पेशाब में जलन हो रही हो या पेशाब रुक रुक कर हो रहा हो तो पलाश के फूलों का एक चम्मच रस निचोड़ कर दिन में बस 3 बार पी लीजिये।
*नाक-मल-मूत्रमार्ग अथवा योनि द्वारा रक्तस्राव होता हो तो छाल का काढ़ा (50 मि.ली.) बनाकर ठंडा होने पर मिश्री मिला के पिलायें- इसे इन्ही गुणों के कारण ब्रह्मवृक्ष कहना उचित है।
*प्रमेह (वीर्य विकार) : पलाश की मुंहमुदी (बिल्कुल नई) कोपलों को छाया में सुखाकर कूट-छानकर गुड़ में मिलाकर लगभग 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से प्रमेह नष्ट हो जाता है। ◆ टेसू की जड़ का रस निकालकर उस रस में 3 दिन तक गेहूं के दाने को भिगो दें। उसके बाद दोनों को पीसकर हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन (धातु का जल्दी निकल जाना) और कामशक्ति की कमजोरी दूर होती है।
*स्तम्भन एवम शुक्र शोधन हेतु : इसके लिए पलाश कि गोंद घी में तलकर दूध एवम मिश्री के साथ सेवन करें। दूध यदि देसी गाय का हो तो श्रेष्ठ है।
वसंत ऋतु में पलाश लाल फूलों से लद जाता है इन फूलों को पानी में उबालकर केसरी रंग बनायें- यह रंग पानी में मिलाकर स्नान करने से आने वाली ग्रीष्म ऋतु की तपन से रक्षा होती है तथा कई प्रकार के चर्मरोग भी दूर होते हैं।
*महिलाओं के मासिक धर्म में अथवा पेशाब में रूकावट हो तो फूलों को उबालकर पुल्टिस बना के पेड़ू पर बाँधें-अण्डकोषों की सूजन भी इस पुल्टिस से ठीक होती है।


पलाश के बीजों में पैलासोनिन नामक तत्त्व पाया जाता है जो उत्तम कृमिनाशक है- 3 से *6 ग्राम बीज-चूर्ण सुबह दूध के साथ तीन दिन तक दें -चौथे दिन सुबह 10 से 15 मि.ली. अरण्डी का तेल गर्म दूध में मिलाकर पिलायें इससे पेट के कृमि निकल जायेंगे।
*पलाश के बीज + आक (मदार) के दूध में पीसकर बिच्छूदंश की जगह पर लगाने से दर्द मिट जाता है
*वाजीकरण (सेक्स पावर) :  5 से 6 बूंद टेसू के जड़ का रस प्रतिदिन 2 बार सेवन करने से अनैच्छिक वीर्यस्राव (शीघ्रपतन) रुक जाता है और काम शक्ति बढ़ती है। 
* टेसू के बीजों के तेल से लिंग की सीवन सुपारी छोड़कर शेष भाग पर मालिश करने से कुछ ही दिनों में हर तरह की नपुंसकता दूर होती है और कामशक्ति में वृद्धि होती है।
*लिंग कि दृढ़ता हेतु : पलाश के बीजों के तेल कि हल्की मालिश लिंग पर करने से वह दृढ होता है। यदि तेल प्राप्त ना कर सकें तो पलाश के बीजों को पीसकर तिल के तेल में जला लें तथा उस तेल को छानकर प्रयोग करें। इससे भी वही परिणाम प्राप्त होते है।

*रतौंधी की प्रारम्भिक अवस्था में फूलों का रस आँखों में डालने से लाभ होता है।
आँख आने पर फूलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर आँखों में आँजें।

 

आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचा




19.1.17

मोच, चोट और सूजन के उपाय //Sprains, bruising and inflammation treatment



   


   कई बार काम करते समय, खेलते कूदते सीढ़ी चढ़ते हमें यह मालूम ही नहीं हो पाता कि हमारे हाथ-पाँव या कमर में मोच लग गई है, लेकिन कुछ समय बाद उस जगह दुःखने पर हमें यह पता लगता है। मोच आने पर उस अंग पर सूजन आ जाती है और काफी दर्द होने लगता है , अगर आपको असहनीय दर्द या ज्यादा परेशानी है तो आप तुरंत डॉक्टर को दिखाएँ ,लेकिन यदि मोच छोटी है तो आप उस का घरेलू उपचार भी कर सकते है ।चोट कभी भी लग सकती है और मोच कभी भी आ सकती है और यह ऐसे समय पर
आती है जब आप या तो अपने घर पर होतें हैं या एैसी जगह जो अस्पताल से काफी
दूर होता है एैसे समय पर आप कुछ घरेलू  नुस्खे अपना सकते हैं जो प्राचीन काल
में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं और जिनसे मोच, चोट और सूजन में राहत मिल सकती
है।
मोच, चोट और सूजन के लिए घरेलू उपाय

*आक के पत्तों को गरम करके बाँधने से चोट अच्छी हो जाती है। सूजन दूर हो जाती है।
*चोट के कारण कटे हुए स्थान पर पिसी हुई हल्दी भर देने से खून का बहना बंद
हो जाता है तथा हल्दी कीटाणुनाशक भी होती है।
* 2 कली लहसुन, 10 ग्राम शहद, 1 ग्राम लाख एवं 2 ग्राम मिश्री इन सबको चटनी जैसा पीसकर, घी डालकर देने से टूटी हुई अथवा उतरी हुई हड्डी जल्दी जुड़ जाती है।
*लकड़ी-पत्थर आदि लगने से आयी सूजन पर हल्दी एवं खाने का चूना एक साथ पीसकर गर्म लेप करने से अथवा इमली के पत्तों को उबालकर बाँधने से सूजन उतर जाती है।
* यदि आप के पैर में मोच आ गई है तो आप तेजपात को पीसकर मोच वाले स्थान
पर लगायें ।
*मोच अथवा चोट के कारण खून जम जाने एवं गाँठ पड़ जाने पर बड़ के कोमल पत्तों पर शहद लगाकर बाँधने से लाभ होता है।
*अगर आपके पैर या हाथ में मोच आ गई है तो बिना देर किए थोडा सा बर्फ एक कपड़े में रखकर सूजन वाले जगह पर लगायें इससे सूजन कम हो जाता है। बर्फ लगाने से सूजन वाले जगह पर रक्त का संचालन अच्छी तरह से होने लगता है जिससे दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है।
* हल्दी और सरसों के तेल को मिला लें और इसे हल्की आंच में गर्म करके फिर इसे
मोच वाली जगह पर लगाएं और किसी कपड़े से इसे ढक दें।
*अरनी के उबाले हुए पत्तों को किसी भी प्रकार की सूजन पर बाँधने से तथा 1 ग्राम हाथ की पीसी हुई हल्दी को सुबह पानी के साथ लेने से सूजन दूर होती 
* पका हुआ लहसुन और अजवायन को सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। और फिर इस तेल की मालिश मोच वाले हिस्से पर करें। आपको राहत मिलेगी।
* महुआ और तिल को कपड़े में बांध कर लगाने से हड्डी की मोच ठीक हो सकती
है।
* 1 से 3 ग्राम हल्दी और शक्कर फाँकने और नारियल का पानी पीने से तथा खाने का चूना एवं पुराना गुड़ पीसकर एकरस करके लगाने से भीतरी चोट में तुरंत लाभ होता है|
* एलोवेरा के गूदे को सूजन और मोच वाली जगह पर लगाने से आराम मिलता है।
* इमली की पत्तियों को पीसें और इसे आग में थोड़ा गुनगुना करें। और इसे मोच
वाली जगह पर लगाने से दर्द से तुरंत राहत मिलती है।
* ढ़ाक के गोंद को पानी में मिलाकर उसका लेप करने से चोट में सूजन सही हो
जाती है ।
*मोच को ठीक करने का एक और कारगर उपाय यह है कि आप अनार के पत्ते पीसकर मोच वाली जगह पर मलें।
* चोट किसी भी स्थान पर लगी हो तो आप कपूर और घी की बराबर मात्रा में मिलाकर चोट वाले स्थान पर कपडे से बांधे एैसा करने से कम हो जाता
है तथा रक्त बहना भी बंद हो जाता है।
* सरसों के तेल में नमक को मिला लें और इसे गर्म करके मोच वाली जगह पर लगाएं। एैसा करने मोच में राहत मिलती है।
* हाथ पैरों की ऐठन और पैर की मोच पर अखरोट का तेल लगाने से दर्द से राहत
मिलती है।
* चूने को शहद के साथ मिला लें और इससे मोच वाली जगह पर आराम से मालिश
करें। इस उपाय से भी मोच में बहुत राहत मिलती है।

मोच, चोट और सूजन मे लेने योग्य आहार

*विटामिन डी आपकी हड्डियों के निर्माण और मरम्मत के लिए, आपके शरीर को कैल्शियम और फॉस्फोरस के अवशोषण में मदद करता है। अंडे, दूध और कुछ प्रकार की मछलियाँ विटामिन डी प्रदान करती हैं; सूर्य के सम्मुख होने पर आपका शरीर भी इसका निर्माण करता है।
*जिंक घाव और ऊतकों की मरम्मत में सहायता करता है और हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। जिंक के उत्तम स्रोत में जौ, गेहूँ, चिकन और पालक आते हैं।
*ओमेगा 3 फैटी एसिड सूजन कम करने में सहायक होते हैं, इन एसिड्स के उत्तम स्रोत में मीठे पानी की मछली, अखरोट, अलसी के बीज और पत्तागोभी आते हैं।
*माँसपेशियों और जोड़ों के स्वास्थ्य के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन के अच्छे स्रोतों में अंडा, चिकन, मछली, मेवे दूध आदि हैं।
*कैल्शियम हड्डियों को पोषण देने वाला खनिज है। कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थों में ब्रोकोली, दूध, केल, फलियाँ, पनीर, सोयाबीन, दही, मछली आदि हैं।
*बीटा कैरोटीन कोलेजन का, जो कि मोच के दौरान क्षतिग्रस्त स्नायुओं का निर्माण करता है, मुख्य कारक तत्व है। प्राकृतिक बीटा कैरोटीन के अच्छे स्रोतों में गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक या केल, ब्रोकोली, और गाजर आदि हैं।
*विटामिन सी शरीर की सूजन घटाने में सहायक होता है। विटामिन सी के बढ़िया स्रोतों में पत्तागोभी, शिमला मिर्च, कीवी, खट्टे फल जैसे संतरे, नीबू और ग्रेपफ्रूट आदि हैं।



15.1.17

मुंह की बदबू से परेशान है तो अपनाएं ये उपाय //The stench of mouth treatment

   

 भले ही आपने महंगे और अच्छे कपड़े पहन हुए हों और मेकअप भी परफेक्ट हो लेकिन मुंह की दुर्गंध आपकी इस अच्छी-खासी इमेज को मिनटों में बर्बाद कर सकती है.
अगर आपके मुंह से बदबू आ रही है तो न कोई आपके साथ बैठना पसंद करेगा और न ही बात करना. ऐसी स्थिति में आपका आत्मविश्वास भी डगमगा जाता है. कई बार ये खाने-पीने की वजह से होता है तो कई बार मुंह से जुड़ी कुछ बीमारियों की वजह से. पर अच्छी बात ये है कि इसे दूर करने के कुछ घरेलू और असरदार उपाय हैं. इनके इस्तेमाल से आप मुंह की बदबू को दूर कर सकती हैं और अपने दोस्तों संग एकबार फिर से हंस-बोल सकती हैं:
मुंह की दुर्गन्ध की बदबू एक ऐसी स्वास्थ समस्या है जो कई लोगों में पाई जाती है कई बार तो लोग इस समस्या से अंजान होते हैं। साँस की दुर्गंध उन बैक्टीरिया से पैदा होती है, जो मुँह में पैदा होते हैं और दुर्गंध पैदा करते हैं। नियमित रूप से ब्रश नहीं करने से मुँह और दांतों के बीच फंसा भोजन बैक्टीरिया पैदा करता है। इस बदबू के कई कारण होते हैं, जैसे-गंदे दांत, पाचन की समस्या आदि
मुंह की दुर्गन्ध के कारण- 
*भोजन है मुंह की दुर्गन्ध का कारण – 
आपके दांतों में और इसके आसपास भोजन के टुकड़ो के फसने कारण मुंह में बैक्टीरिया पनपने लगते है जिस कारण हमारे मुंह से बदबू आने लगती है इसीलिए भोजन करने के बाद अपने मुंह की अच्छी तरह से सफाई करना आवस्यक है|
ग्रीन टी के इस्तेमाल से
ग्रीन टी के इस्तेमाल से मुंह की बदबू को कम किया जा सकता है. इसमें एंटीबैक्ट‍िरियल कंपोनेंट होते हैं जिससे दुर्गंध दूर होती है.
*निम्बू का रस मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए –
नींबू रस का प्रयोग मुंह से बदबू को खत्म करने में किया जा रहा है। नींबू के रस में एक चुटकी काला नमक मिलाकर मुंह की सफाई करने से मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा मिलता है|
अनार की छाल




अनार के छिलके को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ला करने से मुंह की बदबू दूर हो जाती है.
*कच्चा अमरुद मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए –
यह मसूढ़े और दातों के स्वास्थ्य को बढ़ाने में सहायता करता है। यह न केवल मुंह की दुर्गंध को रोकता है बल्कि मसूढ़ों से आने वाले खून को भी रोकता है।
*इलायची के दाने चबायें पाए मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा –
अगर आप दुर्गंध सासों से छुटकारा पाना चाहते हैं तो आपको कुछ इलायची बीजों को चबाना चाहिये|.
*लौंग मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा पाने के लिए – 
 हर भोजन के बाद, आप कुछ लौंग निश्चित रूप से खायें। यह दुर्गंध सासों को रोकने का सबसे प्राकृतिक तरीका है।और असरदार भी.
. तुलसी की पत्त‍ियां
तुलसी की पत्ती चबाने से भी मुंह की बदबू दूर हो जाती है. साथ ही मुंह में अगर कोई घाव है तो तुलसी उसके लिए भी फायदेमंद है.
*भोजन के बाद ब्रश जरूर करे 

हमेशा भोजन करने के बाद अपने दांतों को टूथ ब्रश से अवस्य करे हमें दिन में दो बार ब्रश करना चाहिए एस करने से मुंह की दुर्गन्ध में रहत मिलती है
इन सभी उपायो को अपनाकर आप भी अपने मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा प सकते है इसके अलावा आप इन समस्याओं से बचने के लिए कुछ अन्य उपायो को अपना सकते है जैसे भोजन करने के बाद अपने मुंह की अच्छी तरह से सफाई करे दिन में दो बार ब्रश करे आदि|
सरसों के तेल और नमक से मसाज




हर रोज दिन में एकबार सरसों के तेल में चुटकीभर नमक मिलाकर मसूड़ों की मसाज करने से मसूड़े स्वस्थ रहते हैं और बदबू पनपने का खतरा भी कम हो जाता है.
*दांतों की समस्या के कारण आती है मुँह से दुर्गन्ध –
यदि आप हर दिन ब्रश और कुल्ला नहीं करते हैं, तो भोजन के टुकड़े आपके मुँह में रह जाते हैं और बैक्टीरिया पैदा करते है जिस कारण मुंह में सड़न होने लगती है यह मुंह की बदबू का एक विषेश कारण है
*मुँह सूखने के कारण आती है मुँह से दुर्गन्ध – 
 लार से मुँह में नमी रहने और मुँह को साफ रखने में मदद मिलती है। सूखे मुँह में मृत कोशिकाओं का आपकी जीभ, मसूड़े और गालों के नीचे जमाव होता रहता है। ये कोशिकाएं क्षरित होकर दुर्गंध पैदा कर सकती हैं।
*मुंह की दुर्गन्ध को दूर करे पानी – 
पानी सांसों को ताज़ा बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। खाना खाने के बाद, आपको अपने मुँह को साफ करना चाहिए , यह आपके दांतों में अटके भोजन के कणों को सफाई करने पर बाहर निकाल देता है। मुँह की दुर्गंध, भोजन के दौरान पानी पीना भी कई मायनों में सहायता कर सकता है। पानी एक अच्छा उपाय है जो आसानी से बुरी सांसों को निकालता है। खूब पानी पीने मुंह से दुर्गन्ध नहीं आती है.|
*मुंह की दुर्गन्ध से छुटकारा दिलाए मैथी – 
एक कप पानी को लेकर इसमें एक चम्मच मेंथी के बीज़ को मिला दें। इस पानी को छानकर दिन में एक बार अवश्य पियें जब तक कि इस समस्या से छुटकारा नहीं मिल जाता है।

*मुंह की दुर्गन्ध के लिए सौंफ 
एक छोटी चम्मच सौंफ लेकर इसे धीरे-धीरे चबाये सौंफ में ताज़ा सांस देने का गुण होता है यह मुंह को ताज़गी प्रदान करता है और मुंह की दुर्गंद को दूर करता है
अमरूद की पत्तियां
अमरूद की कोमल पत्त‍ियों को चबाने से भी मुंह की दुर्गंध पलभर में दूर हो जाती है.
*दालचीनी करे मुंह की दुर्गन्ध को दूर – 
एक चम्मच दालचीनी पाउडर को लेकर एक कप पानी में उबालें। इसमें कुछ इलायची और तेजपत्ते की पत्तियों को भी मिला सकते हैं। इस मिश्रण को छान लें और इससे अपने मुंह को साफ करें जिससे कि आपकी सांसे ताजा रहेंगी।






8.1.17

कद की लंबाई बढ़ाने के लिए घरेलू उपचार,How to Increase Your Height:





व्यक्तित्व को निखारने में हाइट का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं जिनकी हाइट कम होती है वे अपनी हाइट को थोडा और बढ़ाना चाहते हैं। हाइट की कमी से आत्मविश्वास में भी कमी देखी जाती है। पुलिस, मॉडलिंग तथा सैन्य जैसी सेवाओं में अच्छी हाइट का होना जरुरी हैं। कई बार यह माना जाता है की लम्बाई एक निश्चित उम्र तक ही बढ़ सकती हैं या माता-पिता की हाइट के अनुसार ही बच्चों की लम्बाई होगी किन्तु यदि संतुलित एवं पौष्टिक आहार,व्यायाम एवं योग का नियमित अभ्यास तथा जीवन शैली में सही आदतें अपनाई जायें तो हम अधिकतम संभव हाइट को प्राप्त कर सकते हैं। 
सूखी नागौरी अश्वगंधा की जड़ को कूटकर चूर्ण बना लें और इसमें उतनी ही मात्रा में खांड मिलाकर कांच की शीशी में रखें। इसे रात को सोने से पहले गाय के दूध (दो चम्मच) के साथ लें। ये लम्बाई और मोटापा बढ़ाने में फायदेमंद होता है साथ ही इससे नया नाखून भी बनना शुरू होता है। इस चूर्ण को लगातार 40 दिन खाएं। सर्दियों में ये ज्यादा फायदेमंद होता है।












  • 30.12.16

    वायरल बुखार के घरेलू उपचार //Home Remedies For Viral Fever

        

     तापमान में अचानक परिवर्तन होने या संक्रमण का दौर होने पर अधिकतर लोग बुखार से पीड़ित होते हैं। ऐसा ही एक मौसमी संक्रमण वाला बुखार होता है वायरल बुखार (Viral Fever)। इस बुखार से निपटने के लिए कुछ एंटीबायोटिक दवाओं या कुछ ओटीसी (ओवर-द-काउंटर) का सहारा लिया जाता है। आप चिकित्सक के पास जाएं उससे पहले कुछ घरेलू नुस्खे आजमाकर भी बुखार को कम या इससे पूरी तरह आराम पाया जा सका है।तेज बुखार अपने आप में कोई बीमारी नहीं है, यह किसी छुपी हुई परिस्थिति का संकेत हो सकता है। आमतौर पर यह बुखार या तबीयत खराब का संकेत हो सकता है। हालांकि, बुखार के कई गैर-संक्रामक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन वायरल संक्रमण बुखार का एक सामान्‍य लक्षण हो सकता है। वायरल संक्रमण कई प्रकार के वायरस से हो सकता है। इनमें इंफ्लूएंजा यानी फ्लू सबसे ज्‍यादा प्रचलित है। वायरल शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकता है जैसे आंत, फेफड़े, वायु मार्ग और अन्‍य कई हिस्‍से। इस बात से कोई अंतर नहीं पड़ता कि आपके शरीर का कौन सा हिस्‍सा इससे प्रभावित हुआ है, आपको सामान्‍य तौर पर बुखार की शिकायत होती है। इसके अलावा सिरदर्द, बहती नाक, गले में सूजन, आवाज बैठना, खांसी, मांसपेशियों में दर्द, पेट में दर्द, डायरिया और/अथवा उल्‍टी जैसी शिकायतें हो सकती हैं। 
    जब आपको बुखार होता है, तो इसका अर्थ है कि बीमारी या संक्रमण की प्रतिक्रिया के रूप में आपके शरीर का तापमान बढ़ गया है। विशेषज्ञ इस बात पर सहमत हैं कि बुखार संक्रमण के प्रति शरीर की कुदरती प्रतिरक्षा का हिस्‍सा है। गर्मी से शरीर संक्रमण को नष्‍ट करने का काम करता है। और यह बात समझ लें कि एंटी बायोटिक्‍स का संक्रमण पर कोई असर नहीं होगा। 
     आइए आपको बताते वायरल बुखार के इलाज के लिए कुछ आसान घरेलू उपचार, जो कि निम्नलिखित हैं-
    मेथी का पानी (Fenugreek Water)
    रसोई घर में आसानी से उपलब्ध, मेथी के बीज में डायेसजेनिन, सपोनिन्स और एल्कलॉइड जैसे औषधीय गुण शामिल है। मेथी के बीजों का प्रयोग अन्य बहुत सी बीमारियों के इलाज में भी किया जाता है और यह वायरल बुखार के लिए बेहतरीन औषधि है।कैसे तैयार करें- आधा कप पानी में में एक बड़ा चमचा मेथी के बीच भिगोएँ। सुबह में, वायरल बुखार के इलाज के लिए नियमित अंतराल पर इस पेय को पिएं। कुछ और राहत के लिए मेथी के बीज, नींबू और शहद का एक मिश्रण तैयार कर उसका प्रयोग भी किया जा सकता है।

    स्‍नान करें

    गुनगुने या ठंडे पानी के टब में बैठने से आपको बेहतर महसूस होगा।

    सूखी अदरक मिश्रण (Dry ginger mixture)

    अदरक स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है। इसमें एंटी फ्लेमेबल, एंटीऑक्सिडेंट और वायरल बुखार के लक्षणों को कम करने के लिए Analgesic गुण होते हैं। इसलिए, वायरल बुखार से पीड़ित लोगों को परेशानी को दूर करने के लिए शहद के साथ सूखी अदरक का उपयोग करना चाहिए।कैसे करें तैयार- एक कप पानी में दो मध्यम आकार के सूखे टुकड़े अदरक या सौंठ पाउडर को डालकर उबालें। दूसरे उबाल में अदरक के साथ थोड़ी हल्दी, काली मिर्च, चीनी आदि को उबालें। इसे दिन में चार बार थोड़ा थोड़ा पिएं। इससे वायरल बुखार में आराम मिलता है।

    गर्मी को नियंत्रित रखें

    कमरे के तापमान को कम करें इसके लिए आप खिड़की खोल सकते हैं। और अगर ठंड हो तो अपने पास एक गर्म कंबल रखें। अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए उन कपड़ों का इस्‍तेमाल करने के बजाय जिन्‍हें उतारना मुश्किल हो, कंबल का इस्‍तेमाल बेहतर रहता है। ठंडा भोजन करने से भी आपको मदद मिल सकती है।

    चावल स्टार्च (Rice starch)

    वायरल बुखार के इलाज के लिए प्राचीन काल से आम घर उपाय है चावल स्टार्च (हिंदी में कांजी के रूप में जाना जाता है)। यह पारंपरिक उपाय प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ा देता है। यह विशेष रूप से वायरल बुखार से पीड़ित बच्चों और बड़े लोगों के लिए, एक प्राकृतिक पौष्टिक पेय के रूप में कार्य करता है।
    कैसे तैयार करें- एक भाग चावल और आधा भाग पानी डालकर चावल के आधा पकने तक पकाएं। इसके बाद पानी को निथार कर अलग कर लें और इसमें स्वादानुसार नमक मिलाकर, गर्म गर्म ही पिएं। इससे वायरल बुखार में बहुत आराम मिलता है।

    खूब पानी पियें

    वायरल की हालत में आपको खूब पानी पीना चाहिये। इसके अलावा जूस और कैफीन रहित चाय का सेवन करें। ज्‍यादातर फलों में एंटी-ऑक्‍सीडेंट्स पाये जाते हैं जिनका सेवन करने से आपके शरीर की प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और शरीर से विषैले पदार्थ बाहर निकलते हैं। अगर आपको डायरिया या उल्‍टी की शिकायत है तो इलेक्‍ट्रॉल का सेवन आपके लिए फायदेमंद होगा। इसके अलावा, नींबू, लैमनग्रास, पुदीना, साग, शहद आदि भी आपके लिए फायदेमंद हो सकते हैं।

    धनिया चाय (Coriander Tea)

    धनिया के बीज में phytonutrients होते हैं जो कि शरीर को विटामिन देते हैं और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी बढ़ाते हैं। धनिया में मौजूद एंटीबायोटिक यौगिक वायरल संक्रमण से लड़ने की शक्ति देते हैं।
    कैसे तैयार करें- एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्म्च धनिया के बीच डालकर उबाल लें। इसके बाद इसमें थोड़ा दूध और चीनी मिलाएं। धनिया की चाय तैयार है, इसे पीने से वायरल बुखार में बहुत आराम मिलता है।

    नींबू के पानी की जुराब

    एक कप गर्म पानी में एक नींबू का रस निचोड़ लें। इस पानी में रूई के पतले फोहे डुबो लें। अतिरिक्‍त पानी को निचोड़ लें और इसे जुराबों के जोड़े में डालकर रात भर पहनकर सो जाएं।

    तुलसी के पत्ते का काढ़ा (Brew of Basil leaves)

    वायरल बुखार के लक्षण होने पर प्राकृतिक उपचार के लिए सबसे प्रभावी और व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली औषधि है तुलसी के पत्ते। बैक्टीरियल विरोधी, कीटाणुनाशक, जैविक विरोधी और कवकनाशी गुण तुलसी को वायरल बुखार के लिए सबसे उत्तम बनाते हैं।
    कैसे तैयार करें- आधे से एक चम्मच लौंग पाउडर को करीब 20 ताजा और साफ तुलसी के पत्तों के साथ एक लीटर पानी में डालकर उबाल लें। पानी को तब तक उबालें जब तक कि पानी घट कर आधा न रह जाए। इस काढ़े का हर दो घंटे में सेवन करें।

    लहसुन

    कच्‍चे लहसुन के टुकड़े खायें। आप इस पर शहर लगाकर भी खा सकते हें। इसके अलावा लहसुन की दो कलियों को दो चम्‍मच ऑलिव ऑयल में मिलाकर इसे गर्म कर लें और इससे अपने पैरों के तलों में मसाज करें। अपने पैरों को सारी रात के लिए लपेटकर रखें।

    नींबू

    नींबू को बीच में से काट लें और फिर इस टुकड़े से पैरों के तलों पर मसाज करें। आप चाहें तो नींबू के इस कटे हुए टुकड़े को जुराबों में डालकर सारी रात पहनकर रख सकते हैं।

  • पायरिया के घरेलू इलाज
  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
  • लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
  • नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  • सांस फूलने के उपचार
  • कत्था के चिकित्सा लाभ
  • गांठ गलाने के उपचार
  • चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  • व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ




  • 28.12.16

    पार्किंसन रोग :लक्षण एवम उपचार //Parkinson's disease: symptoms and treatment


    पार्किंसंस दिमाग से जुड़ी बीमारी है। इसमें दिमाग की कोशिकाएं बनना बंद हो जाती हैं। शुरुआती सालों में इसके लक्षण काफी धीमे होते हैं जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। विशेषज्ञ आम लक्षणों से इस बीमारी की पहचान करते हैं जिसमें कांपना, शारीरिक गतिविधियों का धीरे होना (ब्राडिकिनेसिया), मांसपेशियों में अकडऩ, पलकें न झपका पाना, बोलने व लिखने में दिक्कत होना शामिल हैं। यह बीमारी कुछ साल पहले तक बुजुर्गों में देखने को मिलती थी, आजकल युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।यह एक दिमागी बीमारी है इसमें व्यक्ति को कंपकंपी महसूस होती है साथ ही मांसपेशियों में कठोरता और धीमापन होने की शिकायत होती है | जानकारों कहते है कि यह दिमाग के हिस्से बेंसल गेंगिला में विकृति के चलते पैदा होती है और न्यूरोट्रांसमीटर डोपामीन में कमी के चलते पैदा होती है और आंकड़े बताते है कि दुनियाभर में 6.3 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडित है और आपको बता दें वैसे तो यह बीमारी अमूमन 60 साल के बाद की उम्र में ही होती है और महिलाओं के मुकाबले पुरुषो को यह निशाना अधिक बनाती है 
    प्रमुख लक्षण-
     हाथ-पैरों में कंपन
    पार्किंसंस बीमारी का प्रमुख लक्षण हाथ-पैरों में कंपन होना है। लेकिन बीस प्रतिशत रोगियों में ये दिखाई नहीं देते। फोर्टीस अस्पताल की कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुषमा शर्मा के अनुसार, यह बीमारी शारीरिक व मानसिक रूप से रोगी को प्रभावित करती है। अक्सर डिप्रेशन, दिमागी रूप से ठीक न होना, चिंता व मानसिकता को इस बीमारी से जोड़कर देखा जाता है। इसके कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं लेकिन इसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।
    कीटनाशकों (Insecticide) के सम्पर्क में आने के कारण भी यह हो सकती है – एक पत्रिका में छपे लेख के अनुसार कई रोगी जो पार्किंसन बीमारी (parkinson disease )से ग्रस्त मिले उनमे से ज्यादा संख्या उन लोगो की थी जो कभी न कभी कीटनाशकों के साथ लम्बे समय तक सम्पर्क में रहे थे और अमेरिका की एक अकादमी ने इस बात का समर्थन भी किया है इसलिए तो हर जगह सलाह दी जाती है कि जब भी आप बाजार से कभी भी सब्जी या फल लेकर आते है तो उन्हें अच्छे से पानी में धो लेना आवश्यक है क्योंकि न धोने पर हम कीटनाशकों के सम्पर्क में आते है और हो सकता है हम भी आगे जाकर पार्किंसन बीमारी (parkinson disease ) का शिकार हो जाएँ हाँ ऐसा अगर संभव हो तो बेहतर है कि हम आर्गेनिक फल और सब्जियों का उपयोग करना शुरू कर दें जो कि समय और मांग के अनुसार अभी तो हमारे लिए महंगा होता है अगर हम एक मिडिल क्लास फॅमिली से बिलोंग करते है तो क्योंकि आमतौर पर आर्गेनिक फल सब्जियां बाजार भाव से महंगी मिलती है क्योंकि वो कंही अधिक शुद्ध और प्राकृतिक तरीके से पैदा की गयी होती है इसलिए उनकी पैदावार कम होती है फलस्वरूप वो तुलनात्मक रूप से महंगी भी होती है |



    पार्किन्संस बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते हंै। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए।
    शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
    पार्किंसंस के लिए आयुर्वेदिक उपचार
    पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्‍योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।
    दिमाग का टॉनिक ब्राह्मी
    पार्किसन के लिए ब्राह्मी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरह काम करती है। भारत में सदियों से कुछ चिकित्‍सक इसका उपयोग स्‍मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्‍ययन के अनुसार, ब्राह्मी मस्तिष्‍क में ब्‍लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्‍क को‍शिकाओं की रक्षा करती है। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढि़या इलाज है। यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने करने का दावा करती है।
    लोकप्रिय जड़ी-बूटी काऊहेग (Cowhage)
    भारत में लोकप्रिय जड़ी बूटी काऊहेग या कपिकछु देश भर में तराई के जंगलों की झाड़ि‍यों में पाया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने काऊहेग के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें लेवोडोपा या एल-डोपा, दवा में मौजूद एल-डोपा की तुलना में पार्किसंस रोग के उपचार में बेहतर तरीके से काम करता है।
    पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्‍योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।
    हल्दी का प्रयोग 
    हल्‍दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्‍वास्‍थ्‍य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्‍टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्‍होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्‍होंने पाया कि हल्‍दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्‍व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्‍मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।
    जिन्कगो बिलोबा
    जिन्‍कगो बिलोबा को पार्किंसंस से ग्रस्‍त मरीजों के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी माना जाता है। मेक्सिको में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी के राष्ट्रीय संस्थान में 2012 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन्कगो पत्तियों के सत्‍त पार्किंसंस के रोगी के लिए फायदेमंद होता है।
    दालचीनी से ईलाज
    एक नए अध्ययन से पता चला है कि भोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी
    पार्किंसन के रोग को बढ़ने से रोकने में मददगार हो सकती है।
    अमेरिका में रश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह पता लगाया है कि दालचीनी का इस्तेमाल इस बीमारी के दौरान बायोकेमिकल, कोशिकीय और संरचनात्मक परिवर्तनों को बदल सकता है। इस अध्ययन के दौरान दालचीनी के इस्तेमाल से चूहे के दिमाग में इस तरह के परिवर्तन हुए।
    अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता कलिपदा पहन और रश में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डेविस ने कहा, सदियों से दालचीनी का इस्तेमाल व्यापक रूप से एक मसाले के रूप में दुनिया भर में होता रहा है। उन्होंने कहा, पार्किंसन से ग्रस्त रोगियों में इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए संभवत यह सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक हो सकता है।11 अप्रैल को हम वर्ल्ड पार्किंसंस डिज़ीज़ डे के तौर पर भी जानते हैं। आँकड़े बताते हैं कि भारत में पार्किंसन के क़रीब 25 फीसदी मरीज़ 40 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए इस रोग के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है।
    आमतौर पर पार्किंसन की बीमारी 50 की उम्र से अधिक के लोगों में ही होती है, लेकिन एम्स के मुताबिक, भारत में 25% मामलों में यह 40 से कम उम्र के लोगों में देखी गई है।
       अगर रास्ता चलते हुए आपको झटका-सा लगता है और आप अपना बैलेंस नहीं बना पाते। आप आराम से बैठे हैं और हाथों में स्टिफनेस महसूस करने लगते हैं या फिर अचानक ही आपकी आवाज भी धीमी होने लगती है, तो आपको फिक्रमंद होना चाहिए। ये लक्षण पार्किंसन के हो सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो, पार्किंसन में आदमी थोड़ा स्लो हो जाता है, लेकिन कोई भारी खतरा नहीं होता है। सही इलाज और नियमित व्यायाम काफ़ी कारगर साबित होते हैं।
        विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अजीब किस्म की बीमारी हजार में से किसी एक को ही हो सकती है। दरअसल, इसमें शरीर को जितनी डोपामिन की जरूरत है, उससे कम बनने लगता है। इसकी वजह से 80% सेल्स का जब लॉस हो जाता है, तब जाकर बीमारी का पहला सिंपटम दिखाई देता है। जाहिर है कि जब लक्षण ही देर से पता लगेंगे, तो समस्या स्वाभाविक है।




    न्यूरोलोजिस्ट्स की मानें तो इस रोग के लिए सबसे बड़ी समस्या, लोगों में जागरूकता की कमी है। मरीज़ जब किसी फिजिशियन के पास स्पीड के स्लो होने जैसी प्रॉब्लम लेकर जाते हैं, तो उन्हें विटामिंस लेने का सुझाव दे दिया जाता है जबकि विटामिन और प्रोटीन की डोज इस बीमारी में दवाइयों के प्रभाव को कम करता है। इसलिए जो न्यूरॉलॉजिस्ट पार्किंसन के इलाज का विशेषज्ञ हो, वही सही ट्रीटमेंट दे सकता है।
    डॉक्टर्स के मुताबिक अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हैं, तो पार्किंसन का सामना अच्छी तरह से कर सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि, डिप्रेशन और एंग्जाइटी का भी इसमें निगेटिव रोल होता है। कई रोगियों में पार्किंसन के अटैक से पहले सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि यह रोग होने से 5-10 साल पहले लोगों को नींद में अधिक बड़बड़ाने या हाथ-पैर चलाने की शिकायत होती है।
    पार्किंसन की जाँच हर जगह नहीं हो सकती। इसे आप न्यूरोलॉजिस्ट से ही करा सकते हैं। जितनी जल्दी मरीज़ का इलाज शुरू हो जाए, असर भी उसी के अनुसार जल्दी होता है। ज़रूरी है कि इलाज के दौरान दवाइयों में लापरवाही बिल्कुल न की जाए । पार्किंसन के रोगी को योग और व्यायाम किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए।






    24.12.16

    ज्यादा पसीना होना:कारण और उपचार:// Excess sweating treatment


       

    गर्मियों के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है। और पसीना आना शरीर के लिए सेहतमंद भी है। लेकिन जिन लोगों को बहुत अधिक पसीना आता है उन्हें डीहाइड्रेशन या नमक की कमी जैसी दिक्कतें हो सकती है। जी हां बहुत ज्यादा पसीना आना वैसे तो कोई बीमारी नहीं, लेकिन कभी-कभी इसके पीछे स्वेट ग्लैंड में गड़बड़ी, स्ट्रेस, हार्मोनल बदलाव, मसालेदार डाइट, अधिक दवाएं, मौसम और मोटापे जैसे कारण हो सकते हैं। बहुत अधिक पसीना आने की स्थिति को हाइपरहाइड्रोसिस भी कहा जाता है।

    हायपरहाइड्रोसिस से हमारी आबादी का दो से तीन प्रतिशत हिस्सा प्रभावित है
    क्यों आता है पसीना
    हमें पसीना इसलिए आता है ताकि हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित रहे। क्योंकि हमारे शरीर का तापमान 98.6 डिग्री फैरनहाइट के आसपास ही रहना चाहिए। इसे नियंत्रण में रखने के लिए हमारे शरीर में कोई 25 लाख पसीने की ग्रंथियां हैं। ये ग्रंथियां एयर कंडीशनिंग का काम करती हैं। जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है (चाहे वह बाहरी कारणों से हो या खान-पान की वजह से), तो शरीर को ठंडा करने के लिए इन ग्रंथियों से पसीने की बूंदें निकलना शुरू हो जाती हैं। जब पसीना हवा में सूखता है तो ठंडक पैदा होती है और हमारे शरीर का तापमान कम हो जाता है।
    पसीना ज्यादा आने पर बचने के घरेलु उपाय-
    *साफ-सफाई का ध्यान रखें
    पसीना अधिक आने की समस्या होने पर साफ सफाई का खास खयाल रखें। इससे पसीने को रोकने में बहुत मदद मिलती है। इससे पर्सनल हाइजीन होती है और आपकी त्‍वचा भी संक्रमण और बीमारी से बचती है। जब भी कोई कपड़ा पहने तो उससे पहले अपने अंडरआर्म को सुखा लें। इससे कम पसीना आएगा। ठीक प्रकार से नहाएं और गर्मियों के मौसम में रोजाना दो बार नहाएं।

      *जैतून का तेल
      अन्य तेलों से ज्यादा गुणकारी होता है, यह पसीने को कम करता है। यह पाचन तंत्र को ठीक करता है जिससे शरीर सही काम करता है। इसमें एंटी-ओक्सीडेंट्स होते हैं जो कि पसीना पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित रखते हैं। इसलिए जैतून के तेल को अपने रोजाना के खाने में शामिल करें। साथ ही सब्जियों को भी जैतून के तेल में पकाए।
      .* विटामिन बी
      आपके शरीर में विटामिन बी और प्रोटीन का संतुलन सही हो तो शरीर सही कार्य करता है। विटामिन बी शरीर के लिए ईंधन की तरह काम करता है जिससे आवश्यक मेटाबोलिक क्रियाएँ और शरीर का नर्वस तंत्र ठीक तरह काम करता है। यदि बिना ज्यादा वर्कआउट के ही आपको पसीने ज्यादा आते है तो अपने आहार में विटामिन बी की चीजें शामिल करें। आप रोजाना इसकी एक टेबलेट भी ले सकते हैं। विटामिन बी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सब्जियाँ, प्रोटीन और अनाज ले।




      सब्जियाँ
      संतुलित आहार पसीने को नियंत्रित करने में कारगर हैं। सब्जियों में पानी और कैल्शियम होने के कारण यह पसीने जैसी शर्म की स्थिति को पैदा नहीं होने देती। सब्जियों के सेवन से ना केवल पसीना नियंत्रित होता है बल्कि ये आपको स्लिम रखती हैं, पाचन बढ़ता है और शरीर में नमी रहती है।
      *केले
      केले में पोटेशियम की अधिकता होती है। यह आपके शरीर को हाइड्रेट रखता है और पोटेशियम की कमी को पूरी करता है। केला आपके पाचन को ठीक रखता है, आपको खुश रखता है और अधिक पसीने को दूर रखता है।
      * ग्रीन टी
      ग्रीन टी वजन कम करने में मददगार है और साथ ही यह शरीर के नर्वस सिस्टम को शांत रखती है जिससे पसीना कम आता है। पसीने की परेशानी को दूर रखने के लिए वर्कआउट से पहले ग्रीन टी का सेवन करें।
      .*दही
      दही में कैल्शियम की अधिकता होती है और यह पसीने को कम करता है। यह आपके शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है जिससे पसीना कम आता है। यदि आप दही नहीं लेते हैं तो ऐसे खादय पदार्थ ले सकते हैं जिनमें पोटेशियम और कैल्शियम की अधिकता होती है।
      डाइट का खयाल रखें-
      टमाटर का जूस लें। प्रतिदिन एक बार एक कप टमाटर का जूस लेने से अधिक पसीने आने की समस्या से राहत मिलती है। इसके अलावा ग्रीन टी पियें, इससे न सिर्फ आपकी सेहत बेहतर रहहती है बल्कि यह पसीने को नियंत्रित करने में भी मददगार साबित होती है। हां पानी अधिक से अधिक पिएं। ताकि पसीने की दुर्गंध से आपको छुटकारा मिल सके और शरीर भी हाइड्रेट रहे। ध्यार रहे कि स्ट्राबेरी, अंगूर और बादाम आदि में सिलिकॉन अधिक मात्रा में होता है जिससे पसीना अधिक बनता है। कोशिश करें कि डाइट में इन्हें कम ही लें।
      *पसीने के साथ शरीर के अंदर मौजूद बहुत सारी नुकसानदायक चीजें भी बाहर निकलती रहती हैं। इसलिए पसीना निकलना भी बहुत जरूरी है लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है जब ये बहुत ही ज्यादा मात्रा में निकलने लगता है।
      *रोजाना के कामकाज में पसीने के साथ डिहाइड्रेशन की भी शिकायत होने लगती है।हाथ, पैरों में बहुत ज्यादा पसीने की प्रॉब्लम हो रही हो, तो ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि ये प्राइमरी या फोकल हाइपरहाइड्रोसिस भी हो सकता है। इससे ज्यादातर लोग प्रभावित होते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि ये किसी प्रकार की कोई बीमारी है। कई बार ज्यादा दवाइयां खाने, किसी प्रकार के इलाज के कारण भी पसीने की समस्या शुरू हो जाती है जिसे सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। इसमें मौसम ठंडा रहने पर भी पसीना निकलता ही रहता है।




      हृदय संबंधी समस्या का संकेत-
      बिना किसी काम और एक्‍सरसाइज के सामान्‍य से अधिक पसीना आना हृदय की समस्याओं की पूर्व चेतावनी संकेत हो सकते हैं। दरअसल अवरुद्ध धमनियों के माध्यम से खून को दिल तक पंप करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जिससे शरीर को अतिरिक्त तनाव में शरीर के तापमान को सामान्‍य बनाए रखने के लिए अधिक पसीना आता है। 
      *जिन लोगों को पसीना ज्यादा आता है उन लोगों को साफ सफाई का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना पड़ता है अगर आपको भी पसीना ज्यादा आता है तो आप अपने बदन की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें तभी आप अधिक पसीना आने की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं अगर हो सके तो गर्मियों के दिनों में आप कम से कम 2 बार जरूर नहाने और आपके नहाने का जो पानी है उसमें एक चुटकी बेकिंग सोडा डालकर भी ज्यादा पसीना आने की समस्या को कम कर सकते हैं.
      *पसीना ज्यादा आता है उन्हें दिन में एक बार रोजाना टमाटर का जूस पी लेना चाहिए ऐसा करने से भी आपके शरीर में पसीना आना कम हो जाता है.
      *उसके अलावा एक उपाय और है जिन लोगों को बहुत अधिक पसीना आता है उन्हें चाय या कॉफी छोड़ देनी चाहिए और उसकी जगह ग्रीन टी का इस्तेमाल कीजिए ग्रीन टी पीने से पसीने आने की शिकायत ना के बराबर ही हो जाती है.
      *जिनको ज्यादा पसीना आता है उन्हें पानी ज्यादा पीना चाहिए क्योंकि पसीना ज्यादा आएगा तो आपके शरीर में दुर्गंध भी ज्यादा होगी और अगर आप ज्यादा पानी पिएंगे तो यह दुर्गंध कम हो जाएगी.
      *जिन लोगों को ज्यादा पसीना आता है उन लोगों को स्ट्रोबेरी, बादाम या अंगूर जैसी चीजें नहीं खाने चाहिए क्योंकि स्ट्रॉबेरी, अंगूर और बादाम में सिलिकॉन अधिक मात्रा में होता है जोकि पसीना ज्यादा आने में सहायक होता है अगर आप यह बंद कर देंगे तो भी आप का पसीना आना कम हो सकता है.
      *जिन व्यक्तियों या महिलाओं को पसीना ज्यादा आने की शिकायत हो ऐसे लोगों को फंगल इंफेक्शन होने की संभावना अधिक बनी रहती है। आप इस दिक्कत से इस तरह बच सकते हैं, अपने बॉडी की सफाई पर विशेष ध्यान देना और जितना सम्भव हो आप सिर्फ सूती कपडे ही पहने क्योंकि रेशमी या सिंथेटिक कपडे आपका पसीना नहीं सोख पाते हैं और इस वजह से आपको फंगल स्किन या चार्म रोग होने की संभावना और ज़्यादा बढ़ जाती हैं
      *पसीना जिनको ज्यादा आता हूं उनको कुछ तेज पत्ते लाकर मैं पानी में बहुत अच्छी तरह से उबाल लेना चाहिए और अच्छे से उबाल आ जाने पर इस पानी को ठंडा होने के बाद यह पानी उन जगहों पर लगाएं जिस जगह से ज्यादा पसीना आता है. जैसे बगलों में, पढ़ पर, या रान पर.
      *शरीर में जिन हिस्सों में ज्यादा पसीना आता है उन्हें कच्चे आलू की स्लाइस को काटकर उन हिस्सों पर मलें ऐसा करने पर आप को पसीना आना कम हो जाएगा.
      * शर्ट के बगल वाले हिस्से को पसीने के निशान से बचाने के लिए स्वेट पैड्स का इस्तेमाल करना चाहिए।






      * डियो, स्प्रे के बजाय रोलॉन या टेलकम पाउडर का इस्तेमाल ज्यादा अच्छा रहता है, लेकिन इसके ज्यादा प्रयोग करने से बचें क्योंकि ये स्किन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
      *पसीने की अधिकता से सिर की त्वचा में दाने निकल आते हैं जिसे दूर करने के लिए माइल्ड शैंपू बहुत ही कारगर होता है।
      * हमेशा खुश रहने की कोशिश करें, क्योंकि कई बार ज्यादा पसीना निकलने का कारण तनाव और गुस्सा भी होता है।
      * एंटी-बैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल करें। जितनी बार नहाएं उतनी बार इसका प्रयोग करें। नहाने के पानी में यूडी कोलन की कुछ बूंदें डालना भी फायदेमंद होता है।
      *पसीने की वजह से पैरों में फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। इससे बचने के लिए उंगलियों के बीच एंटी फंगल पाउडर छिड़कने के बाद ही मोजे और जूते पहनें।
      * इस मौसम में कुछ लोग मोजे पहनना छोड़ देते हैं। ऐसा करना ठीक नहीं, इससे पैरों में एलर्जी हो सकती है।
      * तलवों से अधिक पसीना निकलता हो तो इससे बचने के लिए नहाने से पहले, पानी से भरे टब में दो चम्मच फिटकरी पाउडर डालकर उसमें दो मिनट तक पैरों को डुबोकर रखना चाहिए।
      *गर्मी के मौसम में बगल से सबसे ज्यादा पसीने की प्रॉब्लम होती है। तो बाहर निकलने से पहले कुछ मिनटों तक शरीर के इस हिस्से पर बर्फ रखना फायदेमंद होता है। इससे ज्यादा पसीना नहीं निकलता।







      22.12.16

      डकार आने के कारण और घरेलू उपचार

        

        खाना खाने के बाद डकार आना ठीक माना जाता है। लेकिन जब यह बार-बार आने लगे तो यह एक समस्या बन सकती है जो आपको तकलीफ देती है। पेट के अंदर की गैस को बाहार निकालने का प्राकृतिक तरीका है डकार। यदि पेट के अंदर की गैस डकार के जरिए बाहार न आए तो यह कई पेरशानी पैदा करती है जैसे पेट में दर्द और पेट मे जलन आदि। यदि डकार अधिक आने लगे तो कुछ सरल उपायों को आप अजमाकर इससे तुरंत राहत पा सकते हैं। आइये जानते हैं डकार दूर करने के उपाय।
      दही या लस्सी-
      दही में मौजूद बेक्टीरिया आंतों और पेट से जुड़ी हुई हर तरह की दिक्कतों को दूर करते हैं। डकार आने पर आप लस्सी या छाछ भी पी सकते हैं।दही एक आसान घरेलू नुस्खा है और यह एक प्रभावी नुस्खा है जो आपको डकार की समस्या से बचने में मदद करता है। पेट की समस्या का उपचार करने के लिए अपने रोजाना के खानपान में दही को शामिल करें। दही में जीवित बैक्टीरिया (bacteria) होते हैं जो पेट की समस्याओं से आपको निजात दिलाते हैं और आपके पेट में अच्छे बैक्टीरिया का सृजन भी करते हैं। दही का प्रयोग दूध और दुग्ध उत्पादों के स्थान पर किया जा सकता है जो कि एक अच्छी बात है, क्योंकि दुग्ध उत्पादों से डकार में वृद्धि होती है। आपके लिए यही अच्छा होगा कि छाछ में दही को मिश्रित कर लें। छाछ का प्रयोग भी डकार आने से रोकने के लिए किया जाता है। पानी के साथ दही का मिश्रण करें और इन दोनों को अच्छे से मिलाएं। इसमें थोड़ा सा जीरा मिलाएं जिससे पेट का स्वास्थ्य बना रहेगा और डकार भी नहीं आएगी।
      *पपीते में पपेन नामक महत्वपूर्ण एंज़ाइम पाया जाता है जो आपके पाचन तंत्र को अच्छी स्थिति में रखता है। यह प्राय: उन व्यक्तियों द्वारा उपभोग में लाया जाता है जो अपनी त्वचा की देखभाल करते हैं लेकिन यह पाचन और डकार को ठीक करने की एक दवा है।
      बेकिंग सोडा और नींबू का प्रयोग- यदि डकार से ज्यादा ही दिक्कत बन गई हो तो आप इसको दूर करने के लिए दो गिलास पानी में एक चौथाई बेकिंग सोड़ा और एक छोटी चम्मच नींबू का रस को मिलाकर इसे अच्छे से घोलें और तुरंत इसे पी जाएं। ये उपाय थोडी ही देर में डकार को खत्म कर देगा।
      *काला जीरा- अधिक या ज्यादा डकार आने पर काला जीरा का सेवन करें। क्योंकि काला जीरा पेट और पाचन तंत्र को ठीक रखता है जिससे डकार की समस्या पल भर में दूर हो जाती है।
      *मेथी के हरे पत्ते उबालकर, दही में रायता बनाकर सुबह और दोपहर में खाने से खट्टी डकारे, अपच, गैस और आंव में लाभ होता है।
      *सौंफ के बीजों में पेट को अकड़ से छुटकारा दिलाने वाले गुण होते हैं। यह आपके हाजमे की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है, जिससे आपको व्यर्थ की परेशानियों से गुज़रना नहीं पड़ता। तनावमुक्त रहने और रोजाना व्यायाम करने से भी मरोड़ों की समस्या हल हो जाती है। कार्मिनेटिव (Carminative) भ पेट की जमी हुई गैस को निकालने का एक बेहतरीन तरीका है। यह पेट की सूजन को दूर करने में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक कप उबला पानी लेकर इसमें 1 चम्मच अच्छे से पिसे हुए सौंफ के बीजों का मिश्रण करें। इसे 10 से 15 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर इस मिश्रण को छान लें। इस मिश्रण का सेवन हर भोजन के पहले और बाद में करें। इससे पेट की गैस तेज़ी से बाहर निकलती है।
      *दालचीनी बेहतरीन प्राकृतिक नुस्खा है। यह पेट की समस्याओं को दूर करता है और आपके हाजमे को दुरुस्त करता है। यह आपको डकार और पेट में गैस की समस्याओं से भी छुटकारा दिलाता है। अपने द्वारा बनाई जा रही सब्जियों में भुनी हुई दालचीनी अवश्य डालें। आप चावल पका लेने से पहले इसमें भी दालचीनी भी डाल सकते हैं। इससे गैस की समस्या से आपका पीछा छूटता है। वैकल्पिक तौर पर दिन में 2 से 3 बार दालचीनी चबाएं। इससे भी गैस की परेशानी से निजात प्राप्त होती है। वैकल्पिक तौर पर चाय बनाएं और इसमें थोड़ी सी दालचीनी मिलाएं। इसमें थोड़ा सा ताज़ा अदरक भी मिश्रित करें। उबलते हुए पानी में एक चम्मच सौंफ डालें। इन्हें कुछ देर तक उबलने दें। इसके बाद इसे थोड़ा सा ठंडा होने दें और हल्की गर्म अवस्था में इसे पियें। इसका सेवन दिन में कई बार करने से पेट में गैस की समस्या से छुटकारा प्राप्त होता है।
      *नौसादर, कालीमिर्च, 5 ग्राम इलायची दाना, 10 ग्राम सतपोदीना पीस लें, इसे आधा ग्राम लेकर प्रतिदिन 3 बार खुराक के रूप में पानी के साथ लेने पर खट्टी डकारे, बदहजमी, प्यास का अधिक लगना, पेट में दर्द, जी मिचलाना तथा छाती में जलन आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
      *बिजौरे नींबू की जड़, अनार की जड़ और केशर पानी में घोटकर रोगी को पिलाने से डकार और जुलाब बंद हो जाते हैं।
      *हर्बल चाय- यदि आप नियमित रूप से हर्बल चाय पीते हैं तो इससे आपको अधिक डकार की समस्या नहीं आती है। हर्बल चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट पेट की गैस को कम करते हैं। इसलिए खाना खाने के बाद हर्बल चाय का सेवन कर सकते हैं।