28.12.21

नसों को मजबूत बनाने के घरेलू आयुर्वेदिक उपाय:nason ki majbooti ke nuskhe

 



नसों की कमजोरी के परिणामस्वरूप गंभीर चिकित्सकीय स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यहां तक ​​कि लंबे समय तक तनाव की स्थिति भी नसों की कमजोरी का कारण बन सकती है। नसों की कमजोरी कई रोगों का कारण बन सकती है, इसलिए समय रहते उपचार करना जरूरी है। अतः व्यक्तियों को स्वाभाविक रूप से तंत्रिका तंत्र को मजबूत रखने के लिए उचित प्रयास करने चाहिए।

किसी भी व्यक्ति में नसों की कमजोरी की समस्या अचानक या धीरे-धीरे विकसित हो सकती है। नसों की कमजोरी शरीर के सभी हिस्सों या केवल एक ही हिस्से को प्रभावित कर सकती है। उदाहरण के लिए, रीढ़ की हड्डी के क्षतिग्रस्त होने पर, केवल पैरों की नसों में कमजोरी उत्पन्न हो सकती है।
नसों की कमजोरी अनेक कारणों से उत्पन्न हो सकती है, जिनमें निम्न को शामिल किया जा सकता हैं:
तंत्रिका में सूजन
तंत्रिका कोशिकाओं पर ट्यूमर का विकास होना
नसों में विकृति उत्पन्न होना
विषाक्त पदार्थों के कारण तंत्रिका आवेग में कमी
नसों का क्षतिग्रस्त होना
अस्वास्थ्यकर आहार और जीवनशैली
तंत्रिका तंत्र या रीढ़ की हड्डी पर दवाब या संकुचित
तनाव की स्थिति, इत्यादि।

तंत्रिका की कमजोरी के लक्षण क्या होते हैं? 

नसों की कमजोरी  tantrika tantra ki kamjori  के लक्षण व्यापक रूप से प्रभावित तंत्रिका (नस) के प्रकार और स्थान के आधार पर भिन्न-भिन्न होते हैं। हालांकि, कुछ सामान्य लक्षण निम्न होते हैं, जैसे:
पिन और सुई जैसी चुभन या गुदगुदी की अनुभूति होना
दर्द या पीड़ा का अनुभव होना
झुनझुनी और सुन्नता
चिंता और अवसाद (depression) की भावनाएं उत्पन्न होना
कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से सम्बंधित समस्याएँ
थकान महसूस होना
देखने, सूंघने, स्वाद लेने, सुनने या स्पर्श का अनुभव करने की क्षमता में कमी
ज्ञान संबंधी समस्याएं उत्पन्न होना
मांसपेशियों की कमजोरी और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचना
कार्यों में अनैच्छिक रूप से विचलन जैसे- चलने के दौरान हाथ पैर कांपना, इत्यादि।
कमजोर या क्षतिग्रस्त नसें विभिन्न प्रकार की चिकित्सकीय स्थितियों का भी कारण बन सकती हैं। नसों की कमजोरी tantrika tantra ki kamjori  से जुड़े रोगों के अंतर्गत निम्न को शामिल किया जा सकता है:

साइटिका  (Sciatica) – 

नर्व रूट (nerve root) पर दवाब पड़ने के कारण साइटिका की समस्या उत्पन्न हो सकती है। साइटिका Sciatica दर्द की वह स्थिति है, जिसमें दर्द पीठ के निचले हिस्से शुरू होकर नितंबों और पैरों तक फैलता है।

डायबिटिक न्यूरोपैथी (Diabetic Neuropathy) –
 

डायबिटिक न्यूरोपैथी, तंत्रिका की क्षति का एक प्रकार है, जो मधुमेह की स्थिति में उच्च रक्त शर्करा (ग्लूकोज) के कारण नसों के क्षतिग्रस्त होने का कारण बनती है।

मल्टीपल स्क्लेरोसिस (Multiple Sclerosis) – 

मल्टीपल स्क्लेरोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है। इस रोग में पीड़ित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली नसों के सुरक्षात्मक आवरण को नुकसान पहुंचती है। यह बीमारी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है।

बेल्स पाल्सी (Bell’s Palsy) –
 

इस स्थिति में चेहरे की नसों में कमजोरी, सूजन आ जाने के कारण चेहरे का एक हिस्सा लटका या मुरझाया हुआ दिखाई देता है। यह एक प्रकार से आधे चेहरे का लकवा होता है।

स्ट्रोक (Stroke) – 

ब्रेन की नसों में कमजोरी के परिणामस्वरुप स्ट्रोक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। ब्रेन में स्थिति रक्त वाहिकाओं के फट जाने से मस्तिष्क में रक्त का थक्का (Blood Clot) बनने लगता है और स्ट्रोक की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

पार्किंसन रोग (Parkinson’s Disease) –
 

यह न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार (Neurodegenerative disorder) है, जो मस्तिष्क में डोपामाइन को उत्पन्न करने वाली नसों (substantia nigra) को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाता है। जिससे डोपामाइन का स्तर कम होने लगता है और पार्किंसन रोग से सम्बंधित लक्षण प्रगट होने लगते हैं।
अगर नसें कमजोर है,दर्द करती है। नसों को मजबूत को मजबूत बनाने के लिए पांच चीजे जरूर खाएं| जो बुरे रोगो को जड़ से खत्म करती है, आप अंजीर को सोंफ के साथ लेंगे तो नसों की कमजोरी दूर होती है, नसों में मजबूती आती है|
एलोवेरा ज्यूस पीना चाहिए।
गिलोय का ज्यूस पीना चाहिए।
शिलाजीत लेना चाहिए।
नर्व सिस्टम हमारे शरीर का सबसे जटिल हिस्सा होता है, जहां नसों का एक दूसरे से कनेक्शन होता है। अगर नसें कमजोर हो रही है या दब रही है तो बड़ा संकेत है, शरीर का वो हिस्सा अकड़ जाता है। उसे मूव करने में तकलीफ होती है व्यक्ति की यादाश्त भी घटने लगती है, चकर आने लगते है|
क्योंकि खून का प्रवाह सही तरीके से नहीं हो पाता|
नसों की कमजोरी tantrika tantra ki kamjori  से छुटकारा पाने के लिए हमें सारे तरह के विटामिन्स और मिनरल्स चाहिए|
लेकिन मुख्य विटामिन K, मैग्नीशियम, ओमेगा थ्री,फेटी एसिड युक्त चीजों को खाने से नसों की कमजोरी दूर होती है|
सेंधा नमक सूजन को कम करता है, मांसपेशियों व् नसों के बीच के संतुलन को बनाकर रखता है।
नमक में मैग्नीशियम और सल्फेड पाया जाता है|
सेंधा नमक के पानी से नहाने से भी नसों व् मांसपेशियों को मजबूती मिलती है|

नसों की कमजोरी का आयुर्वेदिक इलाज तेल मालिश

बादाम तेल या तिल के तेल की मालिश, नसों की कमजोरी को दूर करने और तंत्रिका तंत्र स्वस्थ तथा सक्रिय रखने में मदद कर सकती है। आयुर्वेदिक तेल की मालिश, नसों की कमजोरी के साथ-साथ विभिन्न बीमारियों के लिए एक प्रसिद्ध उपचार है।
बादाम या तिल  के तेल को पर्याप्त मात्रा में, लेकर इसे थोड़ा गर्म करें और शरीर की मालिश कराएं। यह उपाय प्रतिदिन स्नान से आधे घंटे पहले अपनाएँ।

नसों की कमजोरी का आयुर्वेदिक उपाय अश्वगंधा

अश्वगंधा के अनेक फायदे हैं। यह नसों की कमजोरी tantrika tantra ki kamjori  का कारण बनाने वाली समस्याओं जैसे- तनाव और चिंता से राहत प्रदान करने के लिए आवश्यक होता है। इसके साथ ही अश्वगंधा तंत्रिका (नसों) की कमजोरी के अनेक लक्षणों से भी राहत प्रदान कर सकता है। अश्वगंधा को सप्लीमेंट के रूप में ग्रहण किया जा सकता है।


नसों की कमजोरी का इलाज सेंधा नमक

एप्सम साल्ट बाथ का उपयोग नसों की कमजोरी की स्थिति का इलाज करने के साथ-साथ मांसपेशियों में दर्द और सूजन की स्थिति को दूर करने के लिए भी किया जाता है। सेंधा नमक में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण और उच्च मैग्नीशियम की मात्रा पाई जाती है, जो तंत्रिका कमजोरी के इलाज के लिए फायदेमंद है।
नहाने के पानी में एक कप सेंधा नमक मिलाकर शरीर को 15 से 20 मिनट तक भिगोएँ रखें और फिर साफ पानी से नहायें। यह उपाय हफ्ते में कम से कम तीन बार अपनाना चाहिए।

नसों की कमजोरी का प्राकृतिक इलाज धूप

सुबह-सुबह धूप सेंकना नसों की कमजोरी के इलाज का एक सबसे आसान और असरदार तरीका है। नसों की दुर्बलता अक्सर विटामिन डी की कमी से सम्बंधित होती है। चूँकि सूर्य की किरणें शरीर द्वारा विटामिन डी के अधिक उत्पादन में मदद करती हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन सुबह की धूप लेने पर विचार करना चाहिए।

वाटर थेरेपी का उपयोग

वाटर थेरेपी का उपयोग, दर्द और सूजन जैसी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसके साथ ही यह नसों की कमजोरी के लिए एक उत्कृष्ट घरेलू उपचार है। बारी-बारी से ठंडा और गर्म पानी कमजोर या क्षतिग्रस्त नसों के कारण होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है। वाटर थेरेपी के तहत सामान्य पानी या गर्म पानी से स्नान करने के बाद ठंडे पानी से स्नान करें। इसके अतिरिक्त एक दिन गर्म स्नान और एक दिन ठंडा स्नान अपनाया जा सकता है, लेकिन स्नान समाप्त करने के बाद ठंडा पानी शरीर से डालना जरुरी है।

ग्रीन टी green tea

ग्रीन टी अनेक प्रकार के लाभ प्रदान करती है, जिसमें से एक स्वस्थ तंत्रिका तंत्र कार्यों को बढ़ावा देना प्रमुख है। ग्रीन टी में मुख्य रूप से एल थेनाइन (L-theanine) नामक यौगिक उपस्थित होता है, जो मस्तिष्क-कार्यों में सुधार करने के लिए जाना जाता है। अतः ग्रीन टी green tea  में उपस्थित ये सभी गुण अवसाद, चिंता और तनाव जैसी स्थितियों से निपटने में भी मदद करते हैं।

नसों की कमजोरी से बचने के लिए गहरी सांस लें

प्रतिदिन योग और अभ्यास करते समय गहरी सांस लेना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकता हैं। यह अभ्यास चिंता और तनाव से संबंधित विकारों से निपटने में मदद करने के साथ-साथ शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता में सुधार करता है।

नर्व पेन का इलाज सामान्यतया कठिन है, और प्राय: दर्द से राहत देने वाले इलाजों से इस दर्द में कोई अंतर नहीं आता। आपको कई प्रकार के चिकित्सा पद्धतियों को आजमाने की आवश्यकता होती है, ताकि पता चल सके कि कौन सी प्रणाली आपके लिए लाभकारी है। कभी-कभी स्वयं या समय के साथ हालत में खुद-ब-खुद सुधार आ जाता है। चूंकि नर्व पेन का इलाज आसान नहीं है, इसके उपचार के मुख्य लक्ष्य हैं-
दर्द की तीव्रता कम करना
स्थायी दर्द से जूझने में आपकी सहायता करना
आपके दैनिक जीवन पर दर्द के प्रभाव कम करना
अगर किसी आंतरिक बीमारी(जैसे-डायबिटीज, ट्यूमर) के कारण दर्द हो रहा है तो इसका पता चलने पर अगर इस बीमारी का इलाज संभव है तो इलाज करना।
डायबिटीज के रोगियों में शुगर पर कड़े नियंत्रण से न्यूरॉल्जिया में लाभ होता है।
कभी-कभी ट्यूमर या किसी अन्य वजह से नर्व पर दबाव पड़ने की वजह से उसमें दर्द होता है, ऐसी स्थिति में जिस कारण से दबाव पड़ रहा है उसे सर्जरी से हटाने की जरूरत होती है।
सबसे पहले आपने अंजीर और सोंफ का सेवन करना है |
आपने रात को दो अंजीर भिगो देनी है, सुबह उसे हल्का सा मैश कर लेना है|
उसके साथ आपने आधा चमच सोंफ का पाउडर मिक्स करके खा लेना है
ये नसों की कमजोरी को दूर करता है|
नसों की कमजोरी और मांसपेशियों की तकलीफ को दूर करने के लिए आपने अलोंग विलोंग करना है|
दो चमच एलोवेरा ज्यूस, दो चमच गिलोय का का ज्यूस ले लीजिए|
इसे आधा गिलास पानी में मिक्स करके ले लीजिए|
दिन में कभी भी शिलाजीत लेना भी बहुत फायदेमंद होगा, नसों की कमजोरी को दूर करने के लिए|
नर्व सिस्टम के लिए सबसे फायदेमंद चीज है मछली, अगर आप नॉनवेजिटेरियन नहीं है|
तो आप फिश ऑयल लेकर उसकी कमी को पूरा कर सकते है|
वैसे तो हरी सब्जिया खाना बहुत फायदेमंद होती है
लेकिन हरी सब्जियों में जो पालक होती है उसका स्थान सबसे ऊपर है
क्योंकि इसमें बहुत सारा विटामिन K होता है।
विटामिन K हमारे नर्व सिस्टम को सही तरीके से चलने में मदद करता है,
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पित्ताशय की पथरी इलाज़ और परहेज:Gallstone herbal medicine

 


  आजकल कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो साइंस की तरक्की की तरह ही बढ़ती जा रही हैं। यहां हम वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे आविष्कारों को घेरे में नहीं ले रहे, अपितु यह बताना चाहते हैं कि भले ही साइंस ने इतनी तरक्की कर ली हो लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी हैं जो खत्म होने की बजाय और भी बढ़ती चली जा रही हैं। इन्हीं शारीरिक परेशानियों में से एक है ‘पित्त (गॉल ब्लैडर) की पथरी’(gallstone)                                    
 खानपान की गलत आदतों की वजह से आजकल लोगों में गॉलस्टोन यानी पित्त की पथरी की समस्या तेजी से बढ़ रही है। पित्ताशय हमारे शरीर का एक छोटा सा अंग होता है जो लीवर के ठीक पीछे होता है। पित्त की पथरी गंभीर समस्या है क्योंकि इसके कारण असहनीय दर्द होता है। इस पथरी pitte ki pathri से निजात पाने के लिए आपको अपने खान-पान की आदतों में कुछ बदलाव करने जरूरी हैं।
 पित्त की थैली यानि गालब्लेडर gall bladder शरीर का एक छोटा सा अंग है जो लीवर के ठीक पीछे होता है. इसका कार्य पित्त को संग्रहित करना तथा भोजन के बाद पित्त नली के माध्यम से छोटी आंत में पित्त का स्त्राव करना है. पित्त रस वसा के अवशोषण में मदद करता है. कभी-कभी पित्ताशय में कोलेस्ट्राल,बिलीरुबिन और पित्त लवणों का जमाव हो जाता है. अस्सी प्रतिशत पथरी कोलेस्ट्राल की बनी होती है. धीरे धीरे वे कठोर हो जाती हैं तथा पित्ताशय के अंदर पत्थर का रूप ले लेती हैं. ज्यादातर डॉक्टर इलका ईलाज केवल ऑपरेशन ही बताते हैं लेकिन पित्त की पथरी का घरेलू उपचार संभव है.

क्यों महत्वपूर्ण है पित्त की थैली

लिवर से बाइल नामक डाइजेस्टिव एंजाइम का सैक्रीशन निरंतर होता रहता है। उसके पिछले हिस्से में नीचे की ओर छोटी थैली के आकार वाला अंग होता है, जिसे गॉलब्लैडर या पित्ताशय कहते हैं। पित्ताशय हमारे पाचन तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो लिवर और छोटी आंत के बीच पुल की तरह काम करता है। इसी पित्ताशय  gall bladder  में ये बाइल जमा होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति का लिवर पूरे 24 घंटे में लगभग 800 ग्राम बाइल का निर्माण करता है।

कैसे बनती है पित्त में पथरी

पाचन के लिए आवश्यक एंजाइम को सुरक्षित रखने वाले महत्वपूर्ण अंग यानी पित्ताशय से जुड़ी सबसे प्रमुख समस्या यह कि इसमें स्टोन बनने की आशंका बहुत अधिक होती है, जिन्हें गॉलस्टोन कहा जाता है। दरअसल जब गॉलब्लैडर में तरल पदार्थ की मात्रा सूखने लगती है तो उसमें मौज़ूद चीनी-नमक और अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट तत्व एक साथ जमा होकर छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों जैसा रूप धारण कर लेते हैं, जिन्हें गॉलस्टोन्स कहा जाता है।
कभी-कभी पित्ताशय में कोलेस्ट्राल, बिलीरुबिन और पित्त लवणों का जमाव हो जाता है। अस्सी प्रतिशत पथरी कोलेस्ट्राल की बनी होती है। धीरे धीरे वे कठोर हो जाती हैं तथा पित्ताशय के अंदर पत्थर का रूप ले लेती हैं। कोलेस्ट्रॉल स्टोन पीले-हरे रंग के होते हैं।

पित्त की पथरी के लक्षण

शुरुआती दौर में गॉलस्टोन gallstone  के लक्षण नज़र नहीं आते। जब समस्या बढ़ जाती है तो गॉलब्लैडर में सूजन, संक्रमण या पित्त के प्रवाह में रुकावट होने लगती है। ऐसी स्थिति में लोगों को पेट के ऊपरी हिस्से की दायीं तरफ दर्द, अधिक मात्रा में गैस की फर्मेशन, पेट में भारीपन, वोमिटिंग, पसीना आना जैसे लक्षण नज़र आते हैं।
पित्त की पथरी में परहेज
पित्त की पथरी pitte ki pathri से पीड़ित लोगों को हाई कोलेस्ट्रॉल वाले खाद्य पदार्थ जैसे कि तला हुआ भोजन, फ्राइड चिप्स, उच्च वसा वाला मांस जैसे बीफ और पोर्क, डेयरी उत्पाद जैसे क्रीम, आइसक्रीम, पनीर, फुल-क्रीम दूध से बचना चाहिए। इसके अलावा चॉकलेट, तेल जैसे नारियल तेल से बचा जाना चाहिए। मसालेदार भोजन, गोभी, फूलगोली, शलजम, सोडा और शराब जैसी चीजों से एसिडिटी और गैस का खतरा होता है, इसलिए ये चीजें भी ना खाएं।

पित्त की पथरी का इलाज gallstone herbal medicine 

अगर शुरुआती दौर में लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो इस समस्या को केवल दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है। ज्य़ादा गंभीर स्थिति में सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है। पुराने समय में इसकी ओपन सर्जरी होती थी, जिसकी प्रक्रिया ज्य़ादा तकलीफदेह थी लेकिन आजकल लेप्रोस्कोपी के ज़रिये गॉलब्लैडर को ही शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है और मरीज़ शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है।

परहेज और आहार

फल और सब्जियों की अधिक मात्रा।
स्टार्च युक्त कार्बोहाइड्रेट्स की अधिक मात्रा। उदाहरण के लिए ब्रेड, चावल, दालें, पास्ता, आलू, चपाती और प्लान्टेन (केले जैसा आहार)। जब संभव हो तब साबुत अनाजों से बनी वस्तुएं लें।
थोड़ी मात्रा में दुग्ध और डेरी उत्पाद लें। कम वसा वाले डेरी उत्पाद चुनें।
कुछ मात्रा में मांस, मछली अंडे और इनके विकल्प जैसे फलियाँ और दालें।
वनस्पति तेलों जैसे सूरजमुखी, रेपसीड और जैतून का तेल, एवोकेडो, मेवों और गिरियों में पाए जाने वाली असंतृप्त वसा।
रेशे की अधिकता से युक्त आहार ग्रहण करें। यह फलियों, दालों, फलों और सब्जियों, जई और होलवीट उत्पादों जैसे ब्रेड, पास्ता और चावल में पाया जाता है।
तरल पदार्थ अधिक मात्रा में लें – जैसे कि पानी या औषधीय चाय आदि प्रतिदिन कम से कम दो लीटर सेवन करें।

इनसे परहेज करें

वसा और शक्कर की अधिकता से युक्त पदार्थों की मात्रा सीमित करें। पशुजन्य उत्पादों जैसे मक्खन, घी, पनीर, मांस, केक, बिस्कुट और पेस्ट्री आदि में पाई जाने वाली संतृप्त वसा को सीमित प्रयोग में लें।
योग और व्यायामनियमित व्यायाम रक्त ऊतकों में कोलेस्ट्रॉल को घटाता है, जो कि पित्ताशय gall bladder की समस्या उत्पन्न कर सकता है। प्रतिदिन 30 मिनट तक, सप्ताह में पाँच बार, अपेक्षाकृत मध्यम मात्रा की शारीरिक सक्रियता, व्यक्ति के पित्ताशय की पथरी के उत्पन्न होने के खतरे पर अत्यधिक प्रभावी होती है।
योग
पित्ताशय की पथरी pitte ki pathri के उपचार हेतु प्रयुक्त होने वाले योगासनों में हैं:
सर्वांगासन
शलभासन
धनुरासन
भुजंगासन

पित्त की पथरी के लिए असरकारी घरेलू उपचार : gallstone herbal medicine 

पित्ताशय की पथरी pitte ki pathri एक पीड़ादायक बीमारी है, जो अधिकतर लोगों को होती हैं। पित्त की पथरी का निर्माण पित्त में कोलेस्ट्रॉल और बिलरुबिन की मात्रा बढ़ जाने पर होता है। पित्ते में पथरी होने पर पेट में असहनीय दर्द होने लगता है। रोगी को खाना पचाने में मुश्किल होती हैं। इसके अलावा पेट में भारीपन होने से कई बार उल्टी भी हो सकती हैं। बहुत से लोगों को पित्ते की पथरी के शुरूआती लक्षणों के बारे में भी नहीं पता होता। अगर पता चल भी जाता है तो डॉक्टर ऑपरेशन की सलाह देते हैं, जो बिल्कुल ठीक भी है लेकिन ऑपरेशन का नाम सुनते ही रोगी डर जाता है और अपने इस रोग के प्रति लापरवाही बरतने लगता हैं। अगर आप या आपका कोई संबंधी इस रोग से झूझ रहा है तो ऑपरेशन से पहले कुछ घरेलू नुस्खे अपनाकर देंखे, शायद इनकी मदद से ही पित्ते की पथरी pitte ki pathri के दर्द से छुटकारा मिल जाए।

एप्पल साइडर विनेगर

सेब के रस में एप्पल साइडर विनेगर का एक बड़ा चम्मच मिलाकर रोजाना दिन में एक बार खाएं। इसमें मौजूद मेलिक एसिड और विनेगर लीवर को पित्ते में कोलेस्ट्रॉल बनाने से रोकता है। इसी के साथ इसके सेवन से पथरी से होने वाली दर्द gallstone pain भी कम होती है।

गाजर और ककड़ी का रस

अगर आपको पित्ती की पथरी की समस्या है तो गाजर और ककड़ी का रस प्रत्येक 100 मिलिलिटर की मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार पीएं. इस समस्या में ये अत्यन्त लाभदायक घरेलू नुस्खा माना जाता है. ये कॉलेस्ट्रॉल के सख्त रूप को नर्म कर बाहर निकालने में मदद करती है.

नाशपाती

पित्ते की पथरी gallstone से परेशान रोगी के लिए नाशपाती बहुत फायदेमंद होता हैं क्योंकि इसमें मौजूद पेक्टिन पित्त की पथरी को बाहर निकालने में मदद करता हैं।

चुकंदर और गाजर का रस

चुकंदर, खीरा और गाजर का रस मिलाकर पीने से पित्ताशय की थैली तो साफ और मजबूत होती ही है साथ ही पथरी से भी आराम मिलता है।
ऐसे फलों का जूस पी सकते हैं जिनमें विटामिन सी प्रचुर मात्रा में हो जैसे संतरा, टमाटर आदि का रस पिएं. इनें मौजूद विटामिन सी शरीर के कोलेस्ट्राल को पित्त अम्ल में परिवर्तित करती है जो पथरी को तोड़कर बाहर निकालता है. आप विटामिन सी संपूरक ले सकते हैं या पथरी के दर्द के लिए यह एक उत्तम घरेलू उपचार है.

लाल शिमला मिर्च

लाल शिमला मिर्च में विटामिन सी भरपूर होता है। यह विटामिन पथरी की समस्या में काफी फायदेमंद साबित होता है। इसलिए पित्ते की पथरी pitte ki pathri के रोगी को अपनी डाइट में शिमला मिर्च जरूर शामिल करनी चाहिए क्योंकि इसमें लगभग 95 मि. ग्रा विटामिन सी होता है।

पुदीना

पुदीना पाचन को दुरूस्त तो रखता है। साथ ही इसमें मौजूद टेरपेन नामक प्राकृतिक तत्‍व पित्त में पथरी को घुलाने में भी मदद करता हैं। पित्ते की पथरी के रोगी को पुदीने की चाय बनाकर पिलाएं। काफी फायदा मिलेगा।

हल्दी

पथरी के लिए यह एक उत्तम घरेलू उपचार है.यह एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इन्फ्लेमेट्री होती है. हल्दी पित्त, पित्त यौगिकों और पथरी को आसानी से विघटित कर देती है. ऐसा माना जाता है कि एक चम्मच हल्दी लेने से लगभग 80 प्रतिशत पित्ताशय -पथरी gallstone खत्म हो जाती हैं.

विशिष्ट परामर्श-



सिर्फ हर्बल चिकित्सा ही इस रोग में सफल परिणाम देती है| दामोदर चिकित्सालय रजिस्टर्ड की हर्बल दवा से बड़ी साईज़ की पित्तपथरी में भी आशातीत लाभ होता है|माडर्न चिकित्सा मे सर्जरी द्वारा पित्त की थैली को ही निकाल दिया जाता है जिसके प्रतिकूल प्रभाव जीवन भर भुगतने पड़ते हैं| हर्बल दवा से पथरी के भयंकर कष्ट,यकृत दोष,पेट मे गेस ,जी मिचलाना आदि उपद्रवों से इलाज के शुरू के दिन से ही निजात मिल जाती है और रोगी आपरेशन की त्रासदी से बच जाता है| दवा के लिए वैध्य दामोदर जी से  98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|

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27.12.21

सितोपलादि चूर्ण के फायदे:Sitopaladi churn

 


सितोपलादि चूर्ण क्षय (TB), खांसी, जीर्णज्वर (पुराना बुखार), धातुगत ज्वर, मंदाग्नि , अरुचि , प्रमेह, छाती मे जलन, पित्तविकार, खांसी मे कफ के साथ खून आना, बालको की निर्बलता, रात्री मे बुखार आना, नेत्रो (आंखो) मे उष्णता (गरमी) तथा गले मे जलन आदि विकारो को दूर करता है। सगर्भा स्त्रियो को 3-4 मास तक सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna  का सेवन कराने से गर्भ पुष्ट और तेजस्वी बनता है।

 राज्यक्षमा (TB) की प्रथम अवस्थामे श्वास प्रणालिका और फुफ्फुसों के भीतर रहे हुए वायुकोषो मे क्षय किटाणुओ के विष प्रकोप से शुष्कता (सूखापन) आजाती है। उस अवस्था मे यदि बुखार को शमन करने के लिये क्वीनाइन आदि उग्र औषधियो का, या त्रिक्टु, चित्रकमूल आदि अग्निप्रदीपन औषधियोका सेवन प्रधानरूप से या विशेष रूप से किया जाय, तो फुफ्फुस संस्थान मे शुष्कता की वृद्धि होती है। फिर शुष्क कास (सुखी खांसी) अति बढ़ जाती है और किसी-किसी रोगी को रक्त मिश्रित थूक आता रहता है। दिनमे शांति नहीं मिलती और रात्री को पूरी निंद्रा भी नहीं मिलती। व्याकुलता बनी रहती है। अग्निमांद्य, शारीरिक निर्बलता, मलावरोध (कब्ज), मूत्र मे पीलापन, शुष्क कास का वेग चलने पर बार-बार पसीना आते रहना, नेत्र मे जलन होते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है। एसी अवस्था मे अभ्रक आदि उत्तेजक औषधि से लाभ नहीं मिलता, किन्तु कष्ट और भी बढ़ जाता है। शामक औषधि के सेवन की ही आवश्यकता रहती है। अतः यह सितोपलादि चूर्ण अमृतके सद्रश उपकार दर्शाता है।
 मात्रा 2-2 ग्राम गौधृत (गायका घी) और शहद के साथ मिलाकर दिनमे 4 समय देते रहना चाहिये। मुक्तापिष्टि या प्रवालपिष्टि साथ मे मिला दी जाय तो लाभ सत्वर मिलता है।

सूचना: 

 याद रखे घी और शहद कभी समान-मात्रा मे न ले। समान-मात्रा मे लेने से विष के समान बन जाता है। या तो शहद को घी से कम ले या घी को शहद से कम ले।
 ज्वर जीर्ण होने पर शरीर निर्बल बन जाता है, फिर थोड़ा परिश्रम भी सहन नहीं होता; आहार विहार मे थोड़ा अंतर होने पर भी ज्वर बढ़ जाता है। शरीर मे मंद-मंद ज्वर बना रहता है या रात्री को ज्वर आ जाता है और सुखी खांसी भी चलती रहती है। उन रोगियो को प्रवालपिष्टि और सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna शहद मिलाकर दिन मे 3 समय देते रहने से थोड़े ही दिनो मे खांसी शांत हो जाती है, ज्वर विष का पचन हो जाता है और रस, रक्त आदि धातुए पुष्ट बनकर ज्वर का निवारण हो जाता है।
 माता निर्बल होने पर संतान निर्बल रह जाती है। उनकी हड्डीयां बहुत कमजोर होती है। ऐसे शिशुओ को प्रवाल और सितोपलादि चूर्ण का मिश्रण 1 से 2 रत्ती (125 से 250 mg) दिनमे 2 समय लंबे समय तक देते रहने से बालक पुष्ट बन जाता है। यह उपचार प्रथम वर्ष मे ही कर लिया जाय तो लाभ अधिक मिलता है।
 कितने ही मनुस्यों की निर्बलता से उनकी संतान निर्बल होती है। ऐसी संतान की माताओ को सगर्भावस्था मे अभ्रक-प्रवालसह सितोपलादि का सेवन 5-7 मास तक कराया जाय, तो संतान बलवान, तेजस्वी और बुद्धिमान बनती है। इससे गर्भिणी और गर्भ दोनों पुष्ट बन जाते है, शरीर मे स्फूर्ति रहती है और मन भी प्रसन्न रहता है।
कोई रोग की वजह से अथवा अधिक गरम-गरम मसाला, अधिक गरम चाय आदि अथवा आमाशय पित्त (Gastric Juice)की वृद्धि करने वाले लवण भास्कर आदि चूर्णोका सेवन होने पर आमाशयस्थ पित्त की वृद्धि हो जाती है या पित्त तीव्र बन जाता है अर्थात लवणाम्ल की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे छाती और गलेमे जलन, मुह मे छाले, खट्टी-खट्टी डकारे आते रहना आदि लक्षण प्रतीत होते है, आहार का योग्य पचन नहीं होता और अरुचि भी बनी रहती है। इन रोगियो को प्रवाल भस्म या वराटिका भस्म और सितोपलादि चूर्ण का सेवन कराने से थोड़े ही दिनों मे अम्लपित्त के लक्षण और अरुचि दूर होकर अग्नि प्रदीप्त हो जाती है।
आमाशय  पित्त (Gastric Juice) तीव्र बनने के कारण पचन क्रिया मंद हो जाती है। इसका उपचार शीघ्र न किया जाय तो किसी किसि को विदग्धाजीर्ण (अजीर्णका एक प्रकार है) हो जाता है। पेसाब का वर्ण अति पीला भासता है। सर्वांग मे दाह (पूरे शरीरमे जलन), तृषा (प्यास), मूत्रके परिमाणमे कमी, मूत्रस्त्राव अधिक बार होना, देह (शरीर) शुष्क (सूखा) हो जाना, चक्कर आते रहना आदि लक्षण उपस्थि होते है। इस अवस्था मे मुख्य औषधि चन्द्रकला रस के साथ साथ आमाशय पित्त की शुद्धि करने के लिये सितोपलादि चूर्णका सेवन कराया जाय तो जल्दी लाभ पहुंचता है।
 जीर्णज्वर (पुराना बुखार) या प्रकुपित हुआ ज्वर दिर्धकाल पर्यन्त रह जाने पर शरीर अशक्त बन जाता है और मस्तिष्क मे उष्णता आ जाती है। जिससे सहनशीलता कम हो जाती है, थोड़ीसी प्रतिकूलता होने या विचार विरुद्ध होने पर अति क्रोध आ जाता है। यकृत (Liver) निर्बल हो जाता है। मलावरोध (Constipation) रहता है और मल मे दुर्गंध आती है, एवं पांडुता (शरीर मे पीलापन), ह्रदय मे धड़कन और अति निर्बलता आदि लक्षण उपस्थित होते है। ऐसे रोगियोको सितोपलादि चूर्ण sitopaladi churna खमीरेगावजवा के साथ कुच्छ दिनों तक देते रहने पर सब लक्षणोसह पित्तप्रकोप दूर होकर शरीर बलवान बन जाता है।
मात्रा: 2 से 4 ग्राम दिनमे 2 बार घी और शहद के साथ। कफ प्रधान रोगो मे घी से शहद दूना (Double) ले। वात और पित्त प्रधान रोगो मे घी मे शहद आधा मिलावे। घी पहले मिलावे फिर शहद मिलावे। कफ सरलता से निकलता हो ऐसी खांसी मे केवल शहद के साथ।
सितोपलादि चूर्ण बनाने की विधि: मिश्री 16 तोले (1 तोला = 11.66 ग्राम), वंशलोचन 8 तोले, पीपल 4 तोले, छोटी इलायची के बीज 2 तोले और दालचीनी 1 तोला लें। सबको कूटकर बारीक चूर्ण बनावें।
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26.12.21

लकवा रोग की जानकारी और घरेलू उपचार:Lakwa ke nuskhe

 




लकवा (Paralysis)

मस्तिष्क की धमनी में किसी रुकावट के कारण उसके जिस भाग को खून नहीं मिल पाता है मस्तिष्क का वह भाग निष्क्रिय हो जाता है अर्थात मस्तिष्क का वह भाग शरीर के जिन अंगों को अपना आदेश नहीं भेज पाता वे अंग हिलडुल नहीं सकते और मस्तिष्क (दिमाग) का बायां भाग शरीर के दाएं अंगों पर तथा मस्तिष्क का दायां भाग शरीर के बाएं अंगों पर नियंत्रण रखता है। यह स्नायुविक रोग है तथा इसका संबध रीढ़ की हड्डी से भी है।
लकवा रोग निम्नलिखित प्रकार का होता है-

निम्नांग का लकवा- 

इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर के नीचे का भाग अर्थात कमर से नीचे का भाग काम करना बंद कर देता है। इस रोग के कारण रोगी के पैर तथा पैरों की उंगुलियां अपना कार्य करना बंद कर देती हैं।

अर्द्धाग का लकवा- 

इस प्रकार के लकवा रोग में शरीर का आधा भाग कार्य करना बंद कर देता है अर्थात शरीर का दायां या बायां भाग कार्य करना बंद कर देता है।

एकांग का लकवा-

इस प्रकार के लकवा रोग में मनुष्य के शरीर का केवल एक हाथ या एक पैर अपना कार्य करना बंद कर देता है।

पूर्णांग का लकवा-

इस लकवा रोग के कारण रोगी के दोनों हाथ या दोनों पैर कार्य करना बंद कर देते हैं।


मेरूमज्जा-प्रदाहजन्य लकवा- 

इस लकवा रोग के कारण शरीर का मेरूमज्जा भाग कार्य करना बंद कर देता है। यह रोग अधिक सैक्स क्रिया करके वीर्य को नष्ट करने के कारण होता है।

मुखमंडल का लकवा-

इस रोग के कारण रोगी के मुंह का एक भाग टेढ़ा हो जाता है जिसके कारण मुंह का एक ओर का कोना नीचे दिखने लगता है और एक तरफ का गाल ढीला हो जाता है। इस रोग से पीड़ित रोगी के मुंह से अपने आप ही थूक गिरता रहता है।

जीभ का लकवा- tongue paralysis

इस रोग से पीड़ित रोगी की जीभ में लकवा मार जाता है और रोगी के मुंह से शब्दों का उच्चारण सही तरह से नहीं निकलता है। रोगी की जीभ अकड़ जाती है और रोगी व्यक्ति को बोलने में परेशानी होने लगती है तथा रोगी बोलते समय तुतलाने लगता है।

स्वरयंत्र का लकवा-

इस रोग के कारण रोगी के गले के अन्दर के स्वर यंत्र में लकवा मार जाता है जिसके कारण रोगी व्यक्ति की बोलने की शक्ति नष्ट हो जाती है।

सीसाजन्य लकवा- 

इस रोग से पीड़ित रोगी के मसूढ़ों के किनारे पर एक नीली लकीर पड़ जाती है। रोगी का दाहिना हाथ या फिर दोनों हाथ नीचे की ओर लटक जाते हैं, रोगी की कलाई की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं तथा कलाई टेढ़ी हो जाती हैं और अन्दर की ओर मुड़ जाती हैं। रोगी की बांह और पीठ की मांसपेशियां भी रोगग्रस्त हो जाती हैं।

लकवा रोग का लक्षण  symptoms of paralysis

लकवा रोग से पीड़ित रोगी के शरीर का एक या अनेकों अंग अपना कार्य करना बंद कर देते हैं। इस रोग का प्रभाव अचानक होता है लेकिन लकवा रोग के शरीर में होने की शुरुआत पहले से ही हो जाती है। लकवा रोग से पीड़ित रोगी के बायें अंग में यदि लकवा मार गया हो तो वह बहुत अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसके कारण रोगी के हृदय की गति बंद हो सकती है और उसकी मृत्यु भी हो सकती है। रोगी के जिस अंग में लकवे का प्रभाव है, उस अंग में चूंटी काटने से उसे कुछ महसूस होता है तो उसका यह रोग मामूली से उपचार से ठीक हो सकता है।

लकवा रोग होने के और भी कुछ लक्षण है  symptoms of paralysis

*रोगी के शरीर के जिस अंग में लकवे का प्रभाव होता है, उस अंग के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं तथा उस अंग में शून्यता आ जाती है।
*लकवा रोग के हो जाने के कारण शरीर का कोई भी भाग झनझनाने लगता है तथा उसमें खुजलाहट होने लगती है।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को भूख कम लगती है, नींद नहीं आती है और रोगी की शारीरिक शक्ति कम हो जाती है।
*इस रोग से ग्रस्त रोगी के मन में किसी कार्य को करने के प्रति उत्साह नहीं रहता है।
*शरीर के जिस भाग में लकवे का प्रभाव होता है उस तरफ की नाक के भाग में खुजली होती है।

साध्य लकवा रोग होने के लक्षण-


*इस रोग के कारण रोगी की पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है और रोगी जिस भोजन का सेवन करता है वह सही तरीके से नहीं पचता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।
*इस रोग के कारण शरीर के कई अंग दुबले-पतले हो जाते हैं।

असाध्य लकवा रोग होने के लक्षण इस प्रकार हैं-

*असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी के मुहं, नाक तथा आंख से पानी निकलता रहता है।
*असाध्य लकवा रोग के कारण रोगी को देखने, सुनने तथा किसी चीज से स्पर्श करने की शक्ति नष्ट हो जाती है।
*असाध्य लकवा रोग गर्भवती स्त्री, छोटे बच्चे तथा बूढ़े व्यक्ति को होता है और इस रोग के कारण रोगी की शक्ति काफी कम हो जाती है।
*इस प्रकार के लकवे के कारण कई शरीर के अंगों के रंग बदल जाते हैं तथा वह अंग कमजोर हो जाते हैं।
*असाध्य लकवा रोग से प्रभावित अंगों पर सुई चुभाने या नोचने पर रोगी व्यक्ति को कुछ भी महसूस नहीं होता है।
*इस रोग से पीड़ित रोगी की ज्ञानशक्ति तथा काम करने की क्रिया शक्ति कम हो जाती है।
*असाध्य लकवा रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई अन्य रोग हो जाते हैं।

लकवा रोग होने के निम्नलिखित कारण lakwa ke karan हैं-

*मस्तिष्क तथा रीढ़ की हड्डी में बहुत तेज चोट लग जाने के कारण लकवा रोग हो सकता है।
*सिर में किसी बीमारी के कारण तेज दर्द होने से लकवा रोग हो सकता है।
*दिमाग से सम्बंधित अनेक बीमारियों के हो जाने के कारण lakwa ke karan भी लकवा रोग हो सकता है।
*अत्यधिक नशीली दवाईयों के सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
*बहुत अधिक मानसिक कार्य करने के कारण लकवा रोग हो सकता है।
*अचानक किसी तरह का सदमा लग जाना, जिसके कारण रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक कष्ट होता है और उसे लकवा रोग हो जाता है



*गलत तरीके के भोजन का सेवन करने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
*कोई अनुचित सैक्स संबन्धी कार्य करके वीर्य अधिक नष्ट करने के कारण से लकवा रोग हो जाता है।
*अधिक शराब तथा धूम्रपान करने के कारण भी लकवा रोग हो जाता है।
*अधिक पढ़ने-लिखने का कार्य करने तथा मानसिक तनाव अधिक होने के कारण लकवा रोग हो जाता है।
लकवा रोग के घरेलू उपचार-
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपने शरीर पर सूखा घर्षण करना चाहिए और स्नान करने के बाद रोगी को अपने शरीर पर सूखी मालिश करनी चाहिए। मालिश धीरे-धीरे करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को अपना उपचार कराते समय अपना मानसिक तनाव दूर कर देना चाहिए तथा शारीरिक रूप से आराम करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को योगनिद्रा का उपयोग करना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को पूर्ण रूप से व्यायाम करना चाहिए जिसके फलस्वरूप कई बार दबी हुई नस तथा नाड़ियां व्यायाम करने से उभर आती हैं और वे अंग जो लकवे से प्रभावित होते हैं वे ठीक हो जाते हैं।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए सबसे पहले इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। इसके बाद रोगी का उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से कराना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नींबू पानी का एनिमा लेकर अपने पेट को साफ करना चाहिए और रोगी व्यक्ति को ऐसा इलाज कराना चाहिए जिससे कि उसके शरीर से अधिक से अधिक पसीना निकले।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन भाप-स्नान करना चाहिए तथा इसके बाद गर्म गीली चादर से अपने शरीर के रोगग्रस्त भाग को ढकना चाहिए और फिर कुछ देर के बाद *धूप से अपने शरीर की सिंकाई करनी चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी यदि बहुत अधिक कमजोर हो तो रोगी को गर्म चीजों का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए।
*रोगी व्यक्ति का रक्तचाप अधिक बढ़ गया हो तो भी रोगी को गर्म चीजों को सेवन नहीं करना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को लगभग 10 दिनों तक फलों का रस नींबू का रस, नारियल पानी, सब्जियों के रस या आंवले के रस में शहद मिलाकर पीना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए अंगूर, नाशपाती तथा सेब के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
लकवा रोग से पीड़ित रोगी को कुछ सप्ताह तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी का रोग जब तक ठीक न हो जाए तब तक उसे अधिक से *अधिक पानी पीना चाहिए तथा ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए। रोगी को ठंडे स्थान पर रहना चाहिए।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी की रीढ़ की हड्डी पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए तथा कपड़े को पानी में भिगोकर पेट तथा रीढ़ की हड्डी पर रखना चाहिए।

*लकवा रोग से पीड़ित रोगी का उपचार करने के लिए उसके पेट पर गीली मिट्टी का लेप करना चाहिए तथा उसके बाद रोगी को कटिस्नान कराना चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से कुछ ही दिनों में लकवा रोग ठीक हो जाता है।
*लकवा रोग से पीड़ित रोगी को सूर्यतप्त पीले रंग की बोतल का ठंडा पानी दिन में कम से कम आधा कप 4-5 बार पीना चाहिए तथा लकवे से प्रभावित अंग पर कुछ देर के लिए लाल रंग का प्रकाश डालना चाहिए और उस पर गर्म या ठंडी सिंकाई करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से रोगी का लकवा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
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24.12.21

गाजर खाने के फायदे :Benefits of carrots

 



*मासिक धर्म के दिन हर महिला के लिए बहुत तकलीफदेह होते हैं. ज्यादातर महिलाओं को मासिक के दौरान तेज दर्द, चिड़चिड़ेपन और अनियमित स्त्राव की शिकायत रहती है.इसके साथ ही कई स्त्रियों को पीठ दर्द और पैर दर्द भी होता है|
*गाजर के जूस  gajar ka ras  
से मिलेगी राहत पीरियड्स के दौरान अगर आपको भी इन तकलीफों का सामना करना पड़ता है तो गाजर का जूस पीना आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा| गाजर का जूस काफी आसानी से मिल भी जाता है| अगर जूस न पीना चाहें तो गाजर खाना भी उतना ही फायदा देगा| किसी भी रूप में गाजर का सेवन करना पीरियड्स के दौरान फायदेमंद रहता है| गाजर रक्त परिसंचरण को ठीक रखता है, दर्द में राहत देता है और चिड़चिड़ाहट को भी कम करता है|आयरन से भरपूर मासिक के दौरान खून निकलने से अनीमिया की समस्या भी हो सकती है|ऐसे में आयरन की मात्रा लेते रहना फायदेमंद रहेगा| यह एक सबसे प्रमुख कारण है जिसकी वजह से पीरियड्स में गाजर खाने की सलाह दी जाती है|
* गाज़र के मीठेपन को लेकर आपको कैलोरी की चिंता करने की भी ज़रूरत नहीं क्योंकि इसमें बहुत कम मात्रा में कैलोरी होती है। गाज़र के जूस में खनिज तत्व , विटामिन्स और विटामिन ए पाया जाता है, इसलिए इसे त्वचा और आंखों के लिए अच्छा माना जाता है। गाज़र का प्रयोग आप सूप बनाने, सब्जि़यों, हल्वे और सलाद के रूप में भी कर सकते हैं।

*त्वचा निखार के लिए:gajar ka ras 

प्रतिदिन गाजर का सलाद खाने से या गाज़र का जूस पीने से चेहरे पर चमक आती है।
* गाजर रक्त की विषाक्तता कम करता है और इसके सेवन से कील-मुहासों से भी छुटकारा मिलता है।

*नजर तेज करने के लिए-:

गाजर में विटामिन ए प्रचूर मात्रा में होता है इसलिए इसके सेवन से आंखों की रोशनी ठीक होती है। आंखों से संबंधी सामान्य समस्याओं का कारण है विटामिन ए की कमी।
*पुरुषों को भी अपने खून की सफाई करनी जरुरी है। गाजर का जूस पीने से खून की सफाइ होती है।

* हृदय रोगी भी खा सकते हैं गाजर:

गाजर में कैरोटीनायड होता है, जो हृदय रोगियों के लिए अच्छा होता है। यह माना जाता है कि गाजर का प्रतिदिन सेवन कालेस्ट्राल के स्तर को कम करता है।

* डायबीटीज़ के मरीजों के लिए-

गाज़र के प्रतिदिन सेवन से रक्त में शर्करा का स्तर ठीक रहता है।
*गाजऱ में बीटा कैरोटीन होती है और यह प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अच्छा होता है।

*बीटा कैरोटीन से भरपूर-

मासिक के दौरान बीटा कैरोटीन से भरपूर चीजों का सेवन करना फायदेमंद रहता है| ये हैवी ब्लड फ्लो को नियंत्रित करने का काम करता है. दर्द से आराम दिलाने में गाजर न केवल रक्त बहाव को नियंत्रित करने का काम करता है बल्क‍ि इस दौरान होने वाले दर्द में भी राहत दिलाता है| साथ ही मूड को भी ठीक रखता है.

*कैंसर से बचने के लिए:

गाज़र खाने से, पेट और फेफड़ों के कैंसर का जोखिम कम होता है।
*कैसे करें सेवन -
आप चाहें तो गाजर को चबा-चबाकर खा सकती हैं लेकिन अगर दर्द बहुत ज्यादा है और आप कुछ भी करने की हालत में नहीं हैं तो इसका जूस फायदेमंद रहेगा. दिन में एक या दो गिलास गाजर का जूस gajar ka ras 

गाजर खाने के फायदे और भी हैं-

1. गाजर को पीस या कूचलकर बालो की जड़ या माथे पर रगड़ने से रुसी बिलकुल ही खतम हो जाती है|

2. यदि हम गाजर के रस मे पालक का रस मिला कर सेवन करते है मोतियाबिद की बिमारी से छुटकारा मिल जाता है।
3. गाजर के रस को रोज सेवन करने से कब्ज  की बिमारी ठीक हो जाता है।
4. एक गिलास गाजर के रस मे २ चमच शहद डाल कर रोजाना सेवन करने से कैसर जैसी बिमारी मे भी आराम मिलता है।
5. लगातार उम्र बढ़ने से शरीर कमजोर होता जाता है। इस कमजोरी की पूर्ति करने के गाजर का सेवन की जाती है जिससे से रोग अपने आप ही दूर हो जाते हैं। गाजर के रस या जूस से रक्त में बढ़ोतरी होती हैं |
6. कच्ची गाजर चबाकर खाने से सबसे ज्यादा लाभ होता है। गाजर की पत्तियों में गाजर से 6 गुना अधिक आयरन होता है।
7. अगर कोई लम्बी बीमारी से बाहर निकला है तो उसके शरीर में कई प्रकार के विटामिन की कमी हो जाती है उसकी क्षतिपूर्ति करने में गाजर का जूस बहुत ही प्रभावकारी है। इससे रोगी चुस्त, ताजगी से भरपूर और शक्तिशाली बनता है।
8. गाजर और पालक के रस में भुना हुआ जीरा, काला नमक मिलाकर पीने से इसकी गुणवत्ता बढ़ जाती है। गाजर का रस हर प्रकार के ज्वर, दुर्बलता, नाड़ी सम्बन्धी रोग, अवसाद की अवस्था में लाभदायक है।
9. सर्दी के मौसम में गाजर के सेवन से शरीर गर्म रहता है और सर्दी से बचाव होता है।
10. गाजर में दूध के समान गुण हैं। गाजर का रस दूध से भी उत्तम है। दूध नहीं मिलने पर गाजर सेवन करके दूध के सारे गुण प्राप्त किये जा सकते हैं।
11. गाजर के रस में शहद मिलाकर पीने से शक्ति बढ़ती है, शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली यानि (immune system) मजबूत होता है| गाजर के रस में मिश्री व काली मिर्च मिलाकर पीने से खाँसी ठीक हो जाती है तथा ठंड से उत्पन्न कफ भी दूर होता है।
12. गाजर के छोटे-छोटे टुकड़े 150 ग्राम, तीन टुकड़े लहसुन, पाँच लौंग लेकर सबकी चटनी बनाकर प्रतिदिन एक बार सुबह खाने से सर्दियों में होने वाली बीमारिया जैसे जुकाम, कफ आदि दूर रहते है |
13. गाजर के और आंवला के रस में काला नमक मिलाकर प्रतिदिन पियें। इससे पेशाब की जलन और अन्य बीमारियों से छुटकारा मिलेगा।
14. गाजर के हरे पत्तों से सब्जी बनती है। गाजर की सब्जी बनाते समय पानी नहीं फेंके क्योकि उसमे काफी पोषक तत्व होते है।
15. गाजर कद्दूकस करके दूध में उबालकर प्रतिदिन लें। यह बहुत पौष्टिक आहार होता है |
16. रक्तवर्धक—गाजर, पालक, चुकन्दर का मिश्रित रस एक-एक गिलास प्रतिदिन दो बार पीने से खून बढ़ता है।
17. नेत्र ज्योति कम होना-विटामिन ‘ए’ की कमी से नेत्रज्योति कमजोर होते-होते व्यक्ति अंधा भी हो सकता है। गाजर विटामिन ‘ए’ का भण्डार है। लम्बे समय तक गाजर और पालक का एक गिलास रस पीते रहने से चश्मा भी हट सकता है।
18. घी में और खुले बर्तन में तेज आंच पर पकाने से विटामिन ए पूरी तरह नष्ट हो जाता है | तो अगर आप आँखों की रोशनी बढ़ाने के लिए गाजर का सेवन करना चाहते है तो काली गाजर का रस ही पियें |
19. बाल झड़ना (Hair Fall)- गाजर, प्याज, हरे धनिया का सलाद प्रतिदिन खाने से बाल झड़ना बन्द हो जाते है। इस सलाद से फॉस्फोरस अधिक मिलता है, जो बालों का झड़ना रोकता है।
20. गाजर+पालक के रस का एक गिलास प्रतिदिन पीने से बहुत लाभ होता है।
21. गर्भपात की समस्या – एक गिलास दूध और एक गिलास गाजर का रस उबालें। उबलते हुए आधा रहने पर प्रतिदिन पीती रहें। गर्भपात नहीं होगा। जिनको बार-बार गर्भपात होता हो, वे गर्भधारण करते ही इसका सेवन आरम्भ कर दें। 
22. गाजर का रस 3 भाग, टमाटर का रस 2 भाग और चुकंदर का रस 1 भाग निकालकर आधा गिलास की मात्रा में निरंतर 15-20 दिन सेवन करने से चेहरे की झुर्रियां, झांई, दाग-धब्बे, कील-मुहांसे दूर होकर चेहरा सुंदर हो जाता है
आप खुद को स्वस्थ रखना चाहते हैं, अपनी आंखों की रोशनी eyesight बनाए रखना चाहते हैं या फिर अपनी त्वचा की रंगत निखारने के साथ-साथ बालों को भी चमकदार बनाए रखना चाहते हैं तो गाजर का सेवन करें। 
  खाने में स्वादिष्ट और कम कैलरी वाली गाजर में पौष्टिक तत्वों की बहुतायत होती है, जो आपकी सेहत को दुरुस्त रखने में मददगार साबित होते हैं। इसमें बीटा कैरोटिन, विटामिन ए, विटामिन सी, खनिज लवण, विटामिन बी 1 के साथ-साथ एंटी ऑक्सिडेंट की बहुतायत होती है। अगर आप गाजर को नियमित तौर पर अपने आहार का हिस्सा बनाते हैं तो आप खुद को बहुत सारी स्वास्थ्य समस्याओं से बचाये रख सकते हैं। गाजर का इस्तेमाल आप कच्चा या फिर पकाकर किसी भी तरह से कर सकते हैं। गाजर का इस्तेमाल केवल भोजन में ही नहीं होता, बल्कि इसका इस्तेमाल बहुत सारी दवाओं के निर्माण में भी किया जाता है।
* हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने एक शोध में बताया कि जो लोग सप्ताह में पांच या उससे अधिक गाजर खाते हैं, उन्हें उन लोगों के मुकाबले हार्ट अटैक का खतरा काफी कम रहता है, जो महीने में एक बार गाजर खाते हैं या कभी गाजर का सेवन करते ही नहीं है। गाजर का नियमित सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी नियंत्रित रहता है, क्योंकि इसमें मौजूद फाइबर शरीर में मौजूद पित्त के प्रभाव को कम करते हैं।
* विटामिन ए शरीर से विषैले पदार्थों को बाहर निकालने में मददगार साबित होता है। गाजर में मौजूद फाइबर कोलोन की सफाई करके कोलोन कैंसर की आशंका को काफी हद तक कम करते हैं।
*गाजर के इस्तेमाल से दांतों की सेहत भी दुरुस्त रहती है। यह दांतों की सफाई करने के साथ साथ सांसों को स्वच्छ रखता है और मसूड़ों को मजबूत करता है।
* अगर त्वचा कहीं जल गई हैतो प्रभावित हिस्से पर बार-बार गाजर का रस gajar ka ras लगाने से अराम मिलता है। खुजली की समस्या से परेशान हैं तो गाजर को कद्दूकस करके उसमें नमक मिलाकर खाने से आपको इस समस्या से मुक्ति मिलेगी।
* यह त्वचा की सेहत को दुरुस्त रखने में भी मददगार साबित होता है। इसमें विटामिन सी और एंटी ऑक्सिडेंट की बहुतायत होती है, जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल करने से त्वचा को सूर्य की तेज रोशनी से होने वाले किसी भी प्रकार के नुकसान से बचाया जा सकता है। विटामिन ए की कमी की वजह से त्वचा, नाखून और बाल रूखे होने लगते हैं। अगर आप नियमित तौर पर गाजर को अपने आहार में शामिल करते हैं तो साफ सुथरी निखरी हुई त्वचा के मालिक बन सकते हैं। इसके इस्तेमाल से वक्त से पहले आने वाली झुर्रियों wrinkles, रूखी त्वचा, एक्ने, पिगमेंटेशन, झांइयां, चितकबरी त्वचा आदि की समस्याओं को अपने से दूर रख सकते हैं।
* गाजर के जूस gajar ka ras में काला नमक, धनिया की पत्ती, भुना हुआ जीरा, काली मिर्च और नीबू का रस मिलाकर नियमित तौर पर पीने से पाचन संबंधी गड़बड़ी से तुरंत छुटकारा मिलता है।
* गाजर का किसी भी रूप में नियमित तौर पर सेवन करने से आपकी आंखों की रोशनी eyesight दुरुस्त रहती है। इसमें बीटा कैरोटिन की बहुतायत होती है, जो खाने के बाद पेट में जाकर विटामिन ए में परिवर्तित हो जाता है। आंखों के लिए विटामिन ए बेहद जरूरी है, यह हम सब जानते हैं। विटामिन ए रेटिना के अंदर परिवर्तित होता है। इसके बैंगनी से दिखने वाले पिगमेंट में इतनी शक्ति होती है कि गाजर खाने से रतौंधी जैसे रोग की आशंका कम हो जाती है। यह आंखों के रोग मोतियाबिंद की आशंका को कम करता है।
* गाजर को अपने आहार का हिस्सा बनाने से फेफड़े, ब्रेस्ट और कोलोन कैंसर का खतरा कम होता है। एक मात्र गाजर ही ऐसा खाद्य पदार्थ है, जिसमें फाल्केरिनोल नामक प्राकृतिक कीटनाशक पाया जाता है। विभिन्न सर्वेक्षणों में यह पाया गया है कि गाजर का सेवन करने से किसी भी कैंसर का खतरा एक तिहाई तक कम होता है।
* गाजर का सेवन करने से आप पर उम्र का असर देर से नजर आता है। यह एंटी एजिंग एजेंट की तरह कार्य करता है। इसमें भरपूर मात्रा में पाया जाने वाला बीटा कैरोटिन, एंटी ऑक्सिडेंट हमारे शरीर की कोशिकाओं की मरम्मत करता है, इससे कोशिकाओं की उम्र देरी से घटती है और शरीर पर झुर्रियां wrinkles नहीं पड़तीं।
* गाजर में मौजूद औषधीय गुण किसी भी किस्म के संक्रमण की आशंका को कम करते हैं। आप चाहें इसका जूस पिएं या इसे उबालकर खाएं, यह फायदेमंद है।
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23.12.21

आलू खाने के स्वास्थ्य लाभ:benefits of potatoes

 




   हर इंसान को आलू खाना पंसद होता है। इसे सभी अपने-अपने तरीके से रेसिपी बनाकर खाते है। लेकिन आप जानते है कि यह हमारी सेहत के लिए कितना फायदेमंद है। इसका सेवन करने से आपको कई बीमारियों से निजात मिल जाता है। इसका इस्तेमाल करने से केवल सेहत ही नहीं बल्कि सौंदर्य के लिए भी किया जाता है। कई लोग मानते है कि आलू खाने से आप मोटे हो जाएगे। जबकि ऐसा कुछ नहीं है |   
*उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएँ तो रक्तचाप को सामान्य बनाने में लाभ करता है।
* आलू को पीसकर त्वचा पर मलें। रंग गोरा हो जाएगा।
* कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से 5 से 6 वर्ष पुराना जाला और 4 वर्ष तक का फूला 3 मास में साफ हो जाता है।
benefits potatoes -आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं। 

* आलुओं में मुर्गी के चूजों जितना प्रोटीन होता है, सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आलू का प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला होता है।
भुना हुआ आलू पुरानी कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर करता है। आलू में पोटेशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।
* चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च डालकर नित्य खाएँ। इससे गठिया ठीक हो जाता है।
benefits potatoes- गुर्दे की पथरी में केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियाँ और रेत आसानी से निकल जाती हैं। 

*क्या आप जानते हैं आलू में बहुत अधिक मात्रा में पोटैशियम पाया जाता हैं. जो कि सेहत के लिए फायदेमंद है. ऐसे में आपको कोशिश करनी चाहिए कि जब आप आलू का इस्तेमाल करें तो उसे अच्छे से धोकर बिना छिलका उतारे ही इस्तेमाल करें. ताकि इसमें मौजूद पौटेशियम का पूरा-पूरा फायदा मिल सके|
* रक्तपित्त बीमारी में कच्चा आलू बहुत फायदा करता है।
* कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है। नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगाएँ ।
* शरीर पर कहीं जल गया हो, तेज धूप से त्वचा झुलस गई हो, त्वचा पर झुर्रियां हों या कोई त्वचा रोग हो तो कच्चे आलू का रस निकालकर लगाने से फायदा होता है।

आलू का रस पीने के फायदे / benefit of potato juice

आलू के जूस को पीने से आप आसानी से अपने कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रण में रख सकते हैं। यह आपके समस्त स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्या का हल भी है।
*आलू का जूस आपके बढ़ते हुए वजन को घटा देता है। इसके लिए सुबह अपने नाश्ते से दो घंटे पहले आलू का जूस का सेवन करें। यह भूख को नियंत्रित करता है और वजन को कम कर देता है।
*गठिया के रोग में आलू का जूस बेहद कारगर तरह से काम करता है। आलू के जूस को पीने से यूरिक एसिड शरीर से बाहर निकलता है। और गठिया की सूजन 
gout inflammation को कम करता है।
*लिवर और गॉल ब्लैडर की गंदगी को निकालने के लिए आलू का जूस काफी मददगार साबित होता है। जापानी लोग हेपेटाइटिस से निजात पाने के लिए आलू के जूस का इस्तमाल करते हैं ।
 *आपके बालों को जल्दी बड़ा करने के लिए आलू के जूस का नियमित मास्क काफी मददगार साबित होता है। एक आलू को लेकर इसका छिलका निकाल लें। इसके टुकड़ों में काटकर पीस लें। अब इससे रस निकाल लें और इसमें शहद और अंडे का उजला भाग मिला लें। अब इस पेस्ट को सर और बालों पर लगाएं। इसे दो घंटे तक रखें और उसके बाद शैम्पू से धो लें।

*अगर आप डाइबिटीज के मरीज हैं तो यह आपके लिए बेहद फायदेमंद चीज है। इसका सेवन करने से यह शरीर के खून में शर्करा के स्तर को कम करने में काफी प्रभावकारी साबित होगा।
*अगर आपको एसिडिटी की समस्या है तो आलू का रस काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके लिए इसके रस को रोजना आधा कप पिएं। इससे आपको लाभ मिलेगा।
*ह्रदय की बिमारी और स्ट्रोक से बचने और इसे कम करने के लिए आलू सबसे अच्छा उपाय है।
यह नब्ज़ के अवरोध, कैंसर, हार्ट अटैक और ट्यूमर को बढ़ने से कम करता है।
*potato juice-किडनी की बिमारियों का इलाज करने के लिए आलू का जूस पीने की आदत डालें। यह ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को नियंत्रण में रखने में भी मदद करता है। आलू का जूस मूत्राशय में कैल्शियम का पत्थर बनने नहीं देता।

*gout inflammation-आलू का जूस जोड़ों के दर्द व सूजन को खत्म करता है। अर्थराइटिस से परेशान लोगों को दिन में दो बार आलू का जूस पीना चाहिए। यह दर्द व सूजन में राहत देता है। शरीर में खून के संचार को भी बेहतर बनाता है आलू का जूस।
*अगर आपके चेहरे में दाग, धब्बे और पिपंल है तो आलू का रस काफी फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी और बी कॉम्प्लेक्स के साथ पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और जस्त जैसे खनिज पाया जाता है, जोकि हमारी स्किन के लिए फादेमंद है

क्या हम आलू का जूस स्टोर कर सकते हैं?

आलू का जूस फ्रिज में ज्यादा से ज्यादा 3 से 4 दिन तक रह सकता है। लेकिन इसे जितना हो सके ताजा सेवन करने की सलाह दी जाती है।

आलू का रस कैसे बनाएं

आलू का रस बनाने का तरीका बहुत ही आसान है। नीचे जानिए आलू का जूस कैसे बनाते हैं:

सामग्री :
1-2 आलू

बनाने की विधि:

सबसे पहले बिना किसी दाग-धब्बों वाला कच्चा आलू लें।

अब इसे अच्छी तरह धो लें।
अगर इस पर कोई अंकुरित कोंपले हैं, तो उसे भी हटा दें।
अब आलू को छीलकर इसे कद्दूकस कर लें।
अब एक कटोरी में आलू के इस गूदे को निचोड़कर उसका रस निकालें और उसका सेवन करें।

रोजाना आलू का जूस पीने से क्या हो सकता है?

अगर रोजाना उचित मात्रा में आलू का जूस का सेवन किया जाए, तो यह गठिया, कब्ज, शरीर की सफाई करने और पेट से जुड़ी समस्याओं से बचाव में मदद कर सकता है
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