14.10.21

कैन्सर रोगी क्या खाएं क्या न खाएं :how what to reat a cancer patient



   

सारी बीमारी एक तरफ और कैंसर एक तरफ. कैंसर का नाम सुनते ही लोग डर और असुरक्षा की भावनाओं से घिर जाते हैं. सूरज की रोशनी से होने वाली क्षति से लेकर धूम्रपान और संक्रमण तक, ऐसे कई कारक हैं जो कैंसर का कारण बन सकते हैं. स्वस्थ आहार न केवल कैंसर को दूर रखने के लिए ज़रूरी है, बल्कि ये 5 फल आपको कैंसर से दूर रखने में मदद करते हैं-

  ऐसे फलों का सेवन करें जो खाने में आसान, ताजा और उच्च पानी की मात्रा वाले होते हैं, इनमें जामुन, खरबूजा, केला, अनानास, नाशपाती आदि शामिल हैं। ब्लूबेरी में कई फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व होते हैं, जो कैंसर विरोधी प्रभाव, एंटीऑक्सीडेंट गतिविधि और डीएनए को नुकसान से बचाने की क्षमता दिखाते हैं।
रसभरी और स्ट्रॉबेरी विटामिन सी, फाइटोकेमिकल्स और फ्लेवोनोइड जैसे एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं।
टमाटर में लाइकोपीन नामक एक फाइटोकेमिकल होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है और प्रोस्टेट कैंसर के कम जोखिम से जुड़ा हो सकता है। टमाटर विटामिन सी का अच्छा स्रोत होने के साथ-साथ जैविक सोडीयम, फासफोरस, कैल्शीयम, पोटैशीयम, मैगनेशीयम और सल्फर का अच्छा स्रोत है। टमाटर में मौजूद ग्लूटाथीयोन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है और प्रास्ट्रेट कैंसर से भी शरीर की सुरक्षा करता है।

गहरे रंग की पत्तेदार सब्जियाँ


पत्तेदार सब्जियाँ जैसे कि गोभी और पालक कैंसर से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे फाइबर और फोलेट से समृद्ध होते हैं, जो कुछ कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं। फोलेट नई कोशिकाओं का उत्पादन करने और डीएनए की मरम्मत करने में मदद करता है।
गोभी में कैरोटेनॉइड होते हैं, जो एंटीऑक्सिडेंट के रूप में कार्य करते हैं और शरीर के एंटीऑक्सिडेंट सुरक्षा को बढ़ाते हैं। ये बचाव डीएनए को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों को रोकते हैं।
केले में विटामिन सी भी होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है और कार्सिनोजन के निर्माण को रोकता है।
पालक ज़ेक्सैंथिन और ल्यूटिन जैसे कैरोटिनॉइड में समृद्ध है, जो शरीर से मुक्त कणों को हटाते हैं। हरी पत्ते वाली सब्जियों में जैसे सलाद और पालक को हर रोज भोजन में शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि वे एंटीऑक्सीडेंट बीटा कैरोटीन और ल्यूटेन जो कैंसर कोशिकाओं के विकास को कम करने में मदद करता है का एक अच्छा स्रोत हैं।
कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका मरीज के सामान्य स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पडता है. इतना ही नहीं, कैंसर के इलाज के चलते मरीज के आहार पर भी बुरा असर पडता है. इलाज पूरी तरह असरदार हो, इसके लिए जरूरी है कि आहार में कुछ सावधानियां बरती जाएं.

कैंसर में हो जाती है पोषण की कमी

कैंसर कई तरह से मरीज के आहार पर बुरा प्रभाव डालती है. आम तौर पर कैंसर के मरीजों की भूख मिट जाती है. यह सबसे सामान्य समस्या है. इसके परिणामस्वरूप आहार की मात्रा और आवश्यक पोषक पदार्थो जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा और खनिज लवण आदि की कमी आ जाती है.
कैंसर के बहुत से मरीजों का आहार इसलिए भी कम हो जाता है, क्योंकि बीमारी उनके पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों जैसे इसोफैगस, पेट, छोटी या बडी आंत, लीवर, गाल ब्लैडर या पैंक्रियाज को प्रभावित कर देती है.

कैंसर के दौरान क्या खाएं

ऐसे मरीजों को पोषक आहार लेना चाहिए ताकि पोषण संबंधी जरूरतें पूरी हों. कार्बोहाइड्रेट से भरपूर आहार एक अच्छा उपाय है.अनाज, फल एवं साग-सब्जियां मसलन आलू कार्बोहाइड्रेट के अच्छे स्रोत हैं. मीठे खाद्य पदार्थ भी कार्बोहाइड्रेट के स्रोत होते हैं. हालांकि इनका सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए और डायबिटीज की समस्या से पीडित लोगों को इनसे परहेज करना चाहिए.

प्रोटीन

मांसपेशियों के विकास और काम के लिए ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रोटीन बहुत जरूरी है. इसके अलावा घाव भरने, बीमारी से लडने और खून का थक्का जमने आदि विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के लिए भी प्रोटीन अनिवार्य है. अंडा, मीट, मसूर की दाल, मटर, बींस, सोया और नट्स आदि प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं.

विटमिंस व मिनरल्स


ऐसे मरीजों में विटमिंस और मिनरल्स की कमी आम समस्या है, क्योंकि इन दोनों तत्वों की मांग अधिक और आपूर्ति कम होती है. इसलिए उचित आहार के साथ बेहतर पोषण के लिए विटमिन और मिनरल की अतिरिक्त खुराक जरूरी है.

तरल पदार्थ

कैंसर के मरीजों को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना जरूरी है.तली-भुनी, बहुत मसालेदार या फिर अधिक ठोस आहार न लें. कम मात्रा में अधिक बार खाने से पाचन आसान हो जाता है और पेट भी भारी नहीं लगता.

कीमोथेरेपी के मरीज

कैंसर के मरीजों के लिए कीमोथेरेपी एक आम उपचार है, जो चार से छह महीने तक चलता है. इस दौरान आहार संबंधी कई महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना जरूरी है.
कीमोथेरेपी के पहले दिन और उससे एक-दो दिन बाद तक भूख कम लगती है. मितली और कई बार उल्टी भी आती है. उल्टी से बचने की दवाइयां दी जाती हैं. इस अवधि में आहार में अधिक मात्रा में ऐसे तरल और नर्म खाद्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए जिनसे एनर्जी तुरंत मिल जाए और इसके बाद मरीज को सामान्य ठोस आहार या आधा ठोस आहार लेना चाहिए.फल-सब्जियों को अच्छी तरह धोकर खाना चाहिए. दूध हमेशा उबाल कर पीना चाहिए.

रेडियोथेरेपी के मरीज

चेहरे और गर्दन की रेडियोथेरपी कराने वालों में सेंसिटिविटी और अल्सरेशन (फोडे) का खतरा रहता है. जिसके कारण निगलने में दिक्कत होती है. इसलिए ऐसे लोगों को लिक्विड और लाइट डाइट लेने की सलाह दी जाती है. इन्हें तले-भुने, मसालेदार और गर्म खाद्य पदार्थो से परहेज करना चाहिए. यदि बहुत दर्द हो तो नियमित रूप से दर्द दूर करने की दवा ली जा सकती है. इससे दर्द बेकाबू नहीं होता.

सर्जरी के मरीज

सर्जरी के बाद मरीज को अधिक कैलरी, प्रोटीन, विटमिंस और मिनरल्स चाहिए ताकि जख्म जल्दी भर सकें. सर्जरी के बाद जितनी जल्दी संभव हो मुंह से आहार देना शुरू कर दिया जाता है.

जामुन और अन्य फल:

ऐसे फल जो खाने में आसान होते हैं, ताज़ा होते हैं और पानी की मात्रा अधिक होती है वे फल कैंसर के लिए सबसे अच्छे फल हैं। इनमें जामुन, खरबूजे, केले, अनानास, नाशपाती आदि शामिल हैं।

यदि कैंसर के मरीज अपनी डाइट में एक निश्चित मात्रा में सुपर फूड शामिल करते हैं तो ये सुपर फूड उनके सेहत को काफी अच्छा बना सकते हैं।
ब्लूबेरी में कई फाइटोकेमिकल्स और पोषक तत्व होते हैं, जो कैंसर रोधी प्रभाव, एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि और डीएनए को नुकसान से बचाने की क्षमता दिखाते हैं। ब्लूबेरी में विटामिन सी और के, मैंगनीज और भरपूर फाइबर होते हैं, जो कैंसर के खतरे को कम करने में भी मदद करते हैं।

रसभरी और स्ट्रॉबेरी विटामिन सी, फाइटोकेमिकल्स और फ्लेवोनोइड्स जैसे एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध हैं।

टमाटर में लाइकोपीन नामक एक फाइटोकेमिकल होता है, जो कैंसर रोधी गुणों से भरपूर माना जाता है। कई अध्ययनों में भी यह बात सामने आ चुकी है कि टमाटर के सेवन से कैंसर का खतरा कम हो सकता है

हरे पत्तेदार सब्जियां:

पत्तेदार सब्जियां जैसे कि पालक कैंसर से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे फाइबर और फोलेट से समृद्ध होते हैं, जो कुछ कैंसर के जोखिम को कम कर सकते हैं। फोलेट नई कोशिकाओं का उत्पादन करने और डीएनए की मरम्मत करने में मदद करता है।
पालक में कैरोटीन और क्लोरोफिल होते हैं। जो कैंसर के खतरे को कम करने में मददगार माने जाते हैं।
पालक में विटामिन सी भी होता है, जो एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है और कार्सिनोजेन्स के निर्माण को रोकता है।
पालक ज़ीकैन्थिन और ल्यूटिन जैसे कैरोटीनॉयड में समृद्ध है, जो शरीर से मुक्त कणों को हटाते हैं।
हरी बीन्स फाइबर से भरपूर होती हैं। बीन्स खाने से कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव संभव होता है। कैंसर रोगी को हफ्ते में 3-4 बार बीन्स की सब्जी अवश्य खानी चाहिए। इसके अलावा सलाद और अन्य डिशेज में आप कच्चे बीन्स खा सकते हैं।

गाजर:

गाजर बीटा-कैरोटीन (एक एंटीऑक्सीडेंट), विटामिन और फाइटोकेमिकल्स युक्त गैर-स्टार्च वाली सब्जियां हैं जो विभिन्न कैंसर से बचा सकती हैं। इसके अलावा, गाजर में एक प्राकृतिक कीटनाशक होता है, जिसे फाल्सीरोनॉल कहा जाता है, जो कैंसर के प्रभाव को कम कर देता है।
जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री की एक रिपोर्ट बताती है कि पकी हुई गाजर कच्चे की तुलना में अधिक एंटीऑक्सीडेंट की आपूर्ति करती है। पूरे गाजर को उबाल लें और पक जाने के बाद उन्हें काट लें; यह गाजर के पोषक तत्वों को बरकरार रखता है, जिसमें फाल्कारिनॉल भी शामिल है।

साबुत अनाज:

साबुत अनाज पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं क्योंकि वे फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, फाइटोकेमिकल्स, विटामिन और खनिजों से भरपूर होते हैं। साबुत अनाज में कैंसर से लड़ने वाले कुछ पदार्थ होते हैं, जिसमें सैपोनिन भी शामिल है, जो कैंसर कोशिकाओं के गुणन को रोक सकता है, और लिग्नान, जो एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है।
चीन के सूझोऊ में सोकोव विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि उच्च फाइबर सामग्री हार्मोन-निर्भर कैंसर के हार्मोनल कार्यों को बदल सकती है। आप उन उत्पादों को प्राथमिकता दें जिसपर 100% ‘साबुत अनाज’ का लेबल लगा हो।

मांस और मछलियां:

प्रोटीन के अच्छे स्रोत मांसपेशियों को प्राप्त करने और शरीर के स्वस्थ वजन को बनाए रखने में मदद करते हैं। मुर्गी, मांस, मछली सभी प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। इसके अलावा, ठीक से पके हुए अंडे और मांस का सेवन करें, किसी भी तरह के कच्चे सेवन से बचें।


ब्रोकली

ब्रोकली को दुनिया की सबसे हेल्दी सब्जियों में माना जाता है। ब्रोकली को कैंसररोधी सब्जी कहा जाता है। ब्रोकली में आइसोथायोसायनेट तत्व पाया जाता है, जो आपके शरीर में कैंसर सेल्स को पनपने से रोकता है और शरीर में मौजूद गंदगी को साफ करता है। इसके साथ ही इसमें ऑक्सिडेटिव गुण पाए जाते हैं, जो स्ट्रेस को घटाने में मददगार होते हैं। ब्रोकली कई प्रकार के कैंसर के जोखिम को कम करने में मदद करता है।


दही:

दही का अगर प्रतिदिन सेवन किया जाए तो महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के रिस्क को काफी हद तक कम किया जा सकता है। दही में मौजूद गुड बैक्टीरिया, शरीर में मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को हटाने में मदद करता है। इसके अलावा दही के साथ 
दालचीनी, जामुन, या कटे हुए बादाम स्वाद के लिए लिए जा सकते हैं।

सोयाबीन:

सोयाबीन में आइसोफ्लेवोन्स नामक एक फाइटोन्यूट्रिएंट होता है, सोयाबीन में पाया जाने वाला प्रोटीन, कई तरह के कैंसर को रोकने में सहयता करता है, अत: सोयाबीन को कैंसर निरोधक भी कहा जाता है।

एक शोध के अनुसार इसमें पाया जाने वाला जेनेस्टीन, स्तन कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर को रोकने में सहायक होता है। जेनेस्टीन, कैंसर की किसी भी स्थि‍ति में आंतरिक रूप से सक्रिय होकर उसे बढ़ने से रोकता है। यह एन्जाइना को नष्ट कर देता है, जो बाद में कैंसर जीन में परिवर्तित हो जाते हैं।
अंत में यह समझना महत्वपूर्ण है कि हमें उच्च पोषक तत्वों वाले खाद्य पदार्थों के उपयोग में एक संतुलित दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है और एक ’सुपरप्लेट’ आहार जिसमें कई खाद्य पदार्थों को शामिल किया जाता है जिसमें अच्छे पोषक तत्व होते हैं, अतः ‘सुपरफूड’ कैंसर के रोगियों के लाभकारी साबित हो सकता है।

कैंसर के मरीज जरूर खाएं ये फल

कैंसर का इलाज कराने के दौरान आप केला, स्ट्रॉबेरी, आड़ू, कीवी, संतरा, आम, नाशपाती जैसे फलों का सेवन करना चाहिए। ये सभी विटामिन और फाइबर से भरपूर होते हैं। साथ ही अमरूद, एवोकाडो, अंजीर, खुबानी भी शरीर की खोई हुई एनर्जी को वापस पाने के लिए खा सकते हैं।

कैंसर के मरीज जरूर खाएं ये सब्जियां

यदि आपका कैंसर का इलाज चल रहा है, तो आप अपनी डाइट में कुछ खास सब्जियों को जरूर (Anti cancer foods) शामिल करें। गाजर, कद्दू, टमाटर, मटर, शलजम आदि सब्जियों को जरूर खाएं। टमाटर, शलजम, गाजर को तो आप कच्चा सलाद के तौर पर भी सेवन कर सकते हैं। टमाटर में मौजूद खास पोषक तत्व प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा ब्रोकली, पत्तागोभी, फूलगोभी भी कैंसर के मरीज खा (anti cancer foods in hindi) सकते हैं। इन सभी सब्जियों में प्लांट केमिकल्स होते हैं, जो खराब एस्ट्रोजन को अच्छे एस्ट्रोजन में तब्दील कर देते हैं। इससे कैंसर के दोबारा होने की संभावना कम हो जाती है।

डाइट में शामिल करें गुड कार्ब्स

आप खाना पीना ना छोड़ें। जब भी आपको इच्छा ना हो जबरदस्ती ना खाएं, लेकिन थोड़े-थोड़े गैप में जरूर कुछ ना कुछ हेल्दी चीजें खाएं। आप चावल, रोटी, साबुत अनाज, पास्ता का सेवन करें, इनमें गुड कार्ब्स होते हैं। साथ ही नाश्ते में ओट्स, दलिया, कॉर्न, आलू, बीन्स, डेयरी प्रोडक्ट्स भी खाएं। वो फूड्स खाएं जिनमें एंटीबैक्टीरियल और एंटी-फंगल प्रॉपर्टीज होती हैं जैसे शहद। इससे संक्रमण होने की संभावना कम होती है।

जरूरी है प्रोटीन का सेवन भरपूर

कैंसर के इलाज के दौरान अच्छा महसूस करने के लिए आपको प्रोटीन से भरपूर चीजों का सेवन करना चाहिए। नट्स, ड्राइड बीन्स, काबुली चना, अंडा, मछली, चर्बी रहित मीट, दूध से बने उत्पाद आपकी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद साबित हो सकते हैं। जिन मरीजों को प्रोस्टेट कैंसर है उन्हें मछली और सोया से बनी चीजों का सेवन करना चाहिए। कैंसर होने पर तली-भुनी चीजें, मसालेदार चीजें, बाहर के प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड, पैकेज्ड फूड बिल्कुल खाना कम कर दें। साथ ही नमक और चीनी का सेवन भी सीमित मात्रा में करें। शराब ना पिएं। स्मोकिंग ना करें। नाइट्राइट्स से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे जैम, अचार भी ना खाएं।
कैंसर के फैलने और पनपने के पीछे वातावरण का प्रदूषण और बदलती जीवन शैली जिम्मेदार है। नित नए शोध बता रहे हैं कि समय बचाने के लिए हम जो डिब्बाबंद और माइक्रोवेव सामग्री इस्तेमाल कर रहे हैं वह भी घातक होती जा रही है। जानिए 7 कौन सी ऐसी चीजें है जिन्हें खाने से हमें बचना चाहिए वरना भविष्य में कैंसर की संभावना के लिए तैयार रहना चाहिए।
माइक्रोवेव पॉपकॉर्न : माइक्रोवेव में बनाया गया पॉपकॉर्न कैंसर की वजह बन रहा है। क्योंकि माइक्रोवेव में पॉपकॉर्न डालने से परफ्यूरोक्टानोइक एसिड बनता है। इससे कैंसर पनपता है। इसीलिए अमेरिका में पॉपकॉर्न बनाने के लिए सोयाबीन का तेल इस्तेमाल किया जाता है।
नॉन ऑर्गेनिक फल : जो फल लंबे समय से कोल्डस्टोरेज में रखे रहते हैं,लाख सफाई के बावजूद उन पर केमिकल की परत चढ़ी ही रहती है। इसकी वजह से कैंसर होता है। निश्चित समय के बाद स्टोर किए हुए फलों को नष्ट कर दिया जाना चाहिए। यह कैंसर की वजह बन रहे हैं।
डिब्बाबंद टमाटर : टमाटर को लंबे समय तक डिब्बाबंद रखने से बिसफेनॉल-ए नाम का केमिकल बनता है। जो कैंसर को बढ़ावा देता है। इसके बावजूद हम इसका उपयोग कर रहे हैं और कैंसर का खतरा मोल ले रहे हैं।
प्रोसेस्ड मीट : प्रोसेस्ड मीट खाने से कैंसर होता है। मीट को सुरक्षित रखने के लिए जो केमिकल प्रयुक्त होते हैं, उसमें सोडियम का इस्तेमाल होता है। सोडियम से सोडियम नाइट्रेट बनने की वजह से कैंसर फैलता है।
आलू चिप्स : हमारे देश में एक तरफ आलू के चिप्स को तमाम कंपनियां पैक कर के बेचती हैं, जबकि आलू चिप्स में सोडियम, नकली रंग का इस्तेमाल आसानी से किया जाता है। जिसकी वजह से कैंसर फैलता है।
कैंसर रोगी के लिए अधिक कैलोरी और प्रोटीन प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाव:
दिनभर की तीन टाइम लिए जाने वाले भोजन को आप छोटे-छोटे भोजन में विभाजित करें, जिन्हें आप कुछ अंतराल में खा सकते हैं।
कुछ घंटों के अंतराल पर अपने छोटे भोजन का सेवन करें, जब तक आपको भूख नहीं लगती तब तक प्रतीक्षा न करें।
अपने सलाद या मिठाई पर कुछ सूखी अखरोट या फाइबर युक्त बीज लें।
जब आपको बहुत भूख लगती है, तो अपना सबसे बड़ा भोजन करें। उदाहरण के लिए, अगर आपको सुबह सबसे ज्यादा भूख लगती है तो नाश्ते के जगह पर पूर्ण भोजन कर सकते हैं।
अधिक उच्च कैलोरी, उच्च प्रोटीन वाले पेय लें।
अपने भोजन के साथ भोजन करने के बजाय भोजन के बीच तरल पदार्थ पिएं। भोजन के साथ तरल पदार्थ लेने से आप भरा हुआ महसूस कर सकते हैं।
अपनी भूख को सुधारने के लिए भोजन से पहले थोड़ा टहलें या हल्का व्यायाम करें।
अगर आपको ऐसा लगता है कि आपका पसंदीदा भोजन है, तो उसे खाएं, अपने खानपान का विरोध न करें।
घर में बनें ताजें भोजन का ही प्रयोग करें। कच्चा, बासी और स्टोर्ड फूड से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे संक्रमण का अधिक खतरा रहता है।
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13.10.21

कब्ज पेचिश ,पाखाना की हाजत बनी रहने की होम्योपैथिक रेमेडीज़:Constipation



कब्ज किसे कहते हैं? हम लोग नित्य जो खाते हैं, उसका सार अंश रक्त और असार अंश मल में परिणत होकर रोज निकल जाता है, यही स्वाभाविक नियम है। जब ऐसा न होकर वही मल बहुत दिनों तक आंतों में रुका रह जाए, रोज निकल न जाए या कष्ट से निकलता हो, तो उसे कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं।

 कब्ज निम्न कारणों से होता है-

(1) नित्य अधिक परिमाण में गरिष्ठ चीजें खाने पर और जिनमें जलीय अंश कम होता है, ऐसे सूखे पदार्थ – जैसे मोटी रोटी इत्यादि रोज खाने पर मल सूख जाता है और कष्ट से निकलता है, इससे कब्ज होता है।
(2) गरम और मसाले वाली चीजों में पानी का अंश कम रहता है, अतः ऐसी चीजें और नित्य मांसादि खाने से कब्ज होता है।
(3) उपवास करने अथवा किसी एक ही तरह की चीज रोज खाने से और केवल गाय का दूध पीकर रहने से भी कब्ज रहता है।
(4) पाखाना लगने पर ठीक उसी समय न जाकर असमय में जाया जाय, तो कुछ दिन बाद कब्ज हो जाता है (बवासीर के रोगी कष्ट से बचने के लिए ऐसा किया करते हैं)।
(5) बहुत दिनों तक पतले दस्त आने के बाद अथवा जुलाब लेने का अभ्यास होने पर कब्ज होता है। रक्ताल्पता (एनीमिया), हरित्पाण्डु-रोग (क्लोरोसिस), पक्षाघात आदि रोगों में आंतों की पेशी कमजोर पड़ जाती है, उससे तथा बहुत अधिक मानसिक परिश्रम करने और शारीरिक परिश्रम न करने पर, बहुत पसीना और बहुमूत्र आदि रोगों में अधिक मात्रा में पेशाब होने के कारण फेफड़े के किसी रोग में बहुत अधिक श्लेष्मा निकलने से तथा मस्तिष्क और मेरुमज्जा के रोग इत्यादि में कब्ज होता है।
(6) आंतों में बहुत थोड़ा पाचक रस निकलने और पित्त-कोष से बहुत थोड़ा पित्त निकलने पर कब्ज होता है।
आंतों के भीतर बहुत दिनों तक मल अड़ा रहने से वह सड़ना आरंभ हो जाता है, जिस कारण एक प्रकार का विषैला पदार्थ उत्पन्न होकर रक्त में मिल जाता है, इस कारण सिरदर्द, आँखों में ऐसा दिखाई देना मानो सामने कुछ उड़ रहा है, पाचन-शक्ति का नाश, अरुचि, भूख न लगना, मुंह बेस्वाद, जिह्वा मैली, पेट तना, कलेजे में धड़कन, चिड़चिड़ा मिजाज, रक्तहीनता, नींद न आना, ज्वर इत्यादि का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है। यदि मल बहुत दिनों तक आंतों में पड़ा रहे, तो आंत की पेशी की वृद्धि, आंत के भीतर का आयतन बढ़ जाना और सूखा मल जमा रहता है, तो आंतों का प्रदाह, आंतों का घाव और बहुधा आंतों में छिद्र हो जाता है। आंतों में मल अड़ा रहने से बवासीर होती है, वीर्यक्षय होता है, पैर का तलवा फूलता है और स्नायविक-दर्द और शियाटिका हो जाता है।
  कब्ज के कष्ट से छुटकारा पाने के लिए बहुत से अनजान लोग प्रायः जुलाब लिया करते हैं, उससे पहले तो सामयिक लाभ हो जाता है, पर अंत में कुछ भी लाभ नहीं होता, रोगी क्रमशः जुलाब की मात्रा और परिमाण बढ़ाता जाता है, किंतु उससे लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है। जिस दिन जुलाब लिया जाता है, उस दिन किसी तरह दो-चार बार दस्त हो जाता है, लेकिन दूसरे दिन से और भी अधिक कब्ज के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, इसलिए यह क्रिया बंद कर देनी चाहिए।
 जिन्हें बहुत अधिक कब्ज रहता है, जिनको प्रायः जुलाब लेना पड़ता है, औषधियों से स्थायी लाभ नहीं होता, वे 
*बड़ी हरड़, सोंठ-सनाय की पत्ती और सौंफ ये कई चीजें अलग-अलग कूटकर, कपड़छन करके सबको समान वजन में मिलाकर एक शीशी में भर कर रखें और नित्य भोजन के बाद आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें।

 अथवा-

*छिलका उतारा तिल, मक्खन, ताल मिश्री-सबको एक साथ पीसकर नित्य सवेरे खाने से कोठा साफ होता है। इससे पेट ठंडा रहता है और पौष्टिक भी है। 
इसके अलावा 
*गुलाब की सूखी कली 2 तोला, मिश्री 4 तोला को एक साथ अच्छी तरह पीसकर एक पाव गरम दूध के साथ लेने से दस्त होकर पेट साफ हो जाता है। यह यूनानी गुलकंद का जुलाब है।
कब्ज के रोग में जब औषधियों के सेवन से लाभ नहीं होता, उस समय नित्य नियमित रूप से कुछ समय के लिए कुछ दिनों तक व्यायाम करने से विशेष लाभ होता है। बहुत अधिक पढ़ना-लिखना, एक ही ढंग से बहुत देर तक बैठे रहकर काम करना मना है। रोज सुबह-शाम घूमना लाभ करता है।

कब्ज़ से जुड़ी कुछ जरूरी बातें:

कब्ज़, आमतौर पर आंतों द्वारा भोजन से ज्यादा पानी सोखे जाने के कारण होता है।
कब्ज़, शारीरिक रूप से एक्टिव न होने, कुछ दवाइयों और बड़ी उम्र के कारण भी हो सकता है।
कब्ज़ की समस्या को अपनी लाइफस्टाइल को बदलकर भी दूर किया जा सकता है।
जुलाब, जमालगोटा, रेचक औषधियों या फिर पेट साफ करने की दवाइयों को आखिरी इलाज के तौर पर ही लिया जाना चाहिए।

आहार –

 सवेरे भात, तीसरे पहर फल, रात में चक्की के पिसे आटे की रोटी। भात खूब सिझाकर और नरम बनाकर अच्छी तरह चबा-चबाकर खाना चाहिए। फल-ताजे और पके ही लाभ करते हैं। पका पपीता, केला, आम, जामुन, बेल, अंगूर, नाशपाती, सेब, मेहताबी नींबू, संतरे, खजूर और अमरूद इच्छापूर्ण खाये जा सकते हैं। इनमें अमरूद सबसे ज्यादा दस्तावर है, पर अमरूद खाने के समय उसके बीजों को साबुत ही निगलना चाहिए। तरकारियों में साग-सब्जी उपकारी और विरेचक हैं। इसलिए बथुआ, पालक, कलमी, परवल के पत्ते आदि नित्य एकेक सागा खाना चाहिए। केले का गामा, केले का फूल, गूलर, कच्चू और ओल भी लाभ करते हैं। मूंग की दाल खाना मना नहीं है। मछली-मांस हानि करते हैं, विशेष इच्छा हो तो मछली सप्ताह में केवल एक बार खाई जा सकती है। तीसरे पहर रोटी के साथ थोड़ा गुड़ खाना चाहिए।
  डॉ० जहार का कथन है कि होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिए कब्ज का उपचार करना बहुत ही कठिन कार्य है। यदि किसी रोगी को एक सप्ताह तक मल न हो, एनीमा या पिचकारी देकर भी कोई लाभ न हो, तो ऐसे रोगी के लिए वे पहले ओपियम प्रयोग करते थे। यदि 24 घंटों में ओपियम से कोई लाभ नहीं होता, तो उसके बाद प्लम्बम 30 या एल्यूमिना का प्रयोग करते थे। चेष्टा करने पर बहुत थोड़ा मल निकलने का लक्षण रहने पर प्लैटिना और जिन व्यक्तियों को बवासीर का रोग है, उनके उक्त लक्षण में नक्सवोमिका या सल्फर लाभ करती है। पाकस्थली में बहुत अधिक दबाव मालूम होना, मल बहुत कड़ा होना, इन दोनों लक्षणों में लैकेसिस देनी चाहिए।
  गर्मी के दिनों के कब्ज में ब्रायोनिया, लाभ न हो, तो कार्बोवेज या एण्टिम क्रूड, सर्दी के दिनों के कब्ज में वेरेट्रम एल्बम, जो बैठे-बैठ काम किया करते हैं, शारीरिक परिश्रम नहीं करते, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया या काक्युलस, जो बच्चे घुटनों के बल चलते हैं, चलना नहीं सीख पाए हैं, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, गर्भवती स्त्रियों की कब्जियत में सिपिया, नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, ऐल्यूमिना, प्रसूता स्त्री के कब्ज में प्लैटिना, ओपियम, गाड़ी में घूमने से या पैदल चलने से कब्ज होने पर ऐल्यूमिना, प्लैटिना, वृद्धों के कब्ज में एण्टिम क्रूड, फासफोरस, ब्रायोनिया, लैकेसिस, शराबियों के कब्ज में नक्सवोमिका, कैल्केरिया, सल्फर और लैकेसिस उपयोगी है।

पानी का एनीमा – 

डॉ० हेरिंग का कथन है कि जिन लोगों को अधिक समय से कब्ज की शिकायत है, वे यदि रात को सोते समय ठंडे पानी का एनीमा लेते रहें, तो दो-एक सप्ताह में ही आंतें ठीक काम करने लगती हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। कभी-कभी कब्ज किसी अन्य रोग के साथ जुड़ा होता है। यदि उस रोग का उपचार हो, तो कब्ज अपने आप दूर हो जाता है। उदाहरण के लिए, हृदय-रोग में स्पाइजेलिया, माइग्रेन में आइरिस तथा सिरदर्द में जेल्सीमियम के लक्षण पाए जाते हैं। इन रोगों का उपचार करते हुए यदि कब्ज हो, तो हृदय-रोग में स्पाइजेलिया से, माइग्रेन में आइरिस से और सिरदर्द में जेल्सीमियम से हृदय-रोग, माइग्रेन और सिरदर्द ही नहीं जाएगा, कब्ज भी जाता रहेगा।
कई स्टडीज में ऐसा पाया गया है कि कब्ज़ का होम्योपैथिक दवाओं से इलाज करने पर सफलता की दर खासी अच्छी रही है।
कब्ज़ की आम होम्योपैथिक दवाओं में
 कैलकेरिया calcarea carbonica
नक्स वोमिका (nux vomica),
 सिलिका (silica), 
ब्रायोनिया (bryonia) 
और 
lycopodium

कब्ज की होम्योपथिक रेमेडीज़ के लक्षण 

हाइड्रेस्टिस 2x, 30 – 

यह औषधि नक्सवोमिका से भी अच्छा काम करती है। प्रातः काल का जलपान से पहले इसके मूल-अर्क की 1 बूंद कई दिनों तक लेते रहने से कब्ज में लाभ होता है। अधिकतर होम्योपैथ कब्ज में नक्सवोमिका दिया करते हैं। यदि रोगी को केवल कब्ज की ही शिकायत हो, तब हाइड्रेस्टिस सर्वोत्तम औषधि है। उनके कथनानुसार 2x शक्ति में भी यह बहुत अच्छा काम करती है। कब्ज और दस्त के पर्यायक्रम में भी यह उपयुक्त है। प्रायः दस्तावर औषधियों के लेने के बाद कब्ज की शिकायत हो जाती है, तब यह तथा नक्सवोमिका उपयोगी होती हैं। हाइड्रेस्टिस के कब्ज में पेट अंदर को धंसता-सा अनुभव होता है जो लक्षण नक्सवोमिका में नहीं है।

नक्सवोमिका 200, 1M –

 जब मल-निष्काशन के लिए बार-बार जाना पड़े, किंतु हर बार पेट साफ न हो और पुनः जाना पड़े, तो इसे नक्सवोमिका का लक्षण नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह लक्षण लाइकोपोडियम में भी पाया जाता है, किंतु इन दोनों के कब्ज में भेद यह है कि नक्सवोमिका में आंतों की अनियमित-गति के कारण कब्ज होता है और लाइकोपोडियम में गुदा की संकोचक-पेशी के कारण कब्ज होता है; रोगी को ऐसा लगता है कि गुदा में डाट लग गया है, वहां का मल को बाहर नहीं निकलने देता। डॉ० कार्टियर का कहना है कि कब्ज दूर करने के लिए नक्सवोमिका को निम्न शक्ति में नहीं देना चाहिए, न ही बार-बार देना चाहिए।

एलू-3 – 

यह औषधि एलूमिना से उल्टी है। हर समय हाजत बनी रहती है, अनजाने में सख्त मल भी निकल पड़ता है।

सीपिया 30, 200 –

 मल निकलने के बाद भी गुदा में डाट-सी लगी महसूस होती है। ध्यान रहे, इसके कब्जे में कोई न कोई जरायु-संबंधी रोग शामिल रहता है, इसलिए यह औषध प्रायः स्त्रियों के कब्ज में हितकर है।

ग्रैफाइटिस 30, 200 –

 स्त्रियों में ऋतु-धर्म के विलम्ब से होने के साथ ऐसा मल, जिस पर आंव चिपटी रहे, कठिनाई से निकले, कई दिन मल न आए, तब यह औषध देनी चाहिए। सख्त मल आने से गुदा में चीर पड़ जाता है, जिससे मल आने में बहुत तकलीफ होती है। इस प्रकार के चीर में नाइट्रिक एसिड भी उपयोगी है।

मैग्नेशिया म्यूर 30 – 

बच्चों के दांत निकलते समय के कब्ज में यह औषधि हितकर है।

सल्फर 30 – 

इस औषधि में नक्सवोमिका और लाइकोपोडियम की तरह पेट पूरी तरह से साफ नहीं होता। यों इसमें कई अन्य लक्षण भी पाए जाते हैं, जैसे कि रोगी को कोई त्वचा का रोग हो, खाज, छाले, फुसियां हों, बेहोशी के दौरे पड़ते हों, सिर की तरफ गर्मी की झलें उठती हों, 11 बजे जी डूबता-सा लगता हो, कमजोरी का अनुभव होता हो, तो सल्फर उपयोगी है। नक्सवोमिका से लाभ न हो, तो सल्फर उसकी कमी को पूरा कर देती है। बहुत से होम्योपैथ कब्ज की चिकित्सा सल्फर से प्रारंभ करते हैं।

मर्क डलसिस 1x – 

बोरिक का कथन है कि मल न आ रहा हो, किसी भी प्रकार उसे लाना हो, तो इस औषधि का 1.x विचूर्ण 2 से 3 ग्रेन की मात्रा में हर घंटे देते रहने से पेट खुलकर साफ हो जाता है।

ब्रायोनिया 30, 200 –

 आंतें काम न करती हों, मल खुश्क आता हो, लंबा, सख्त, सूखा हुआ, अंतड़ियों का स्राव न बनता हो, इसी सूखेपन के कारण बहुत प्यास लगी हो। ब्रायोनिया का रोगी सूर्य की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

ओपियम 30, 200 – 

इसमें भी ब्रायोनिया की तरह आंतें खुश्क होती हैं, वे काम नहीं करतीं, उनमें से स्राव नहीं रिसता। यही कारण है कि रोगी को मल कठोर मार्बल की तरह होता है। ब्रायोनिया, ओपियम तथा एलूमिना-इन तीनों में मल की हाजत नहीं पाई जाती। ओपियम के रोगी को कुछ औंघाई भी रहती है, किंतु मल की हाजत बिल्कुल नहीं होती।

एलूमिना 30, 200 – 

पाखाना जाने की इच्छा नहीं होती। कई दिन का मल जब तक जमा नहीं हो जाता, तब तक व्यक्ति मल-त्याग के लिए नहीं जाता। गुदा काम ही नहीं करती, मल-त्याग के लिए गुदा पर बहुत जोर लगाना पड़ता है। गुदा के काम न करने की हालत यहां तक होती है कि नरम मल भी आसानी से नहीं आता, उसके लिए भी बहुत जोर लगाना, कांखना पड़ता है। ओपियम, एलूमिना, प्लम्बम और ब्रायोनिया में मल बहुत सख्त होता है। सिलेनियम देने से गुदा को ताकत मिलती है, जिससे वह कार्य-सक्षम हो जाती है।

लाइकोपोडियम 30 – 

कब्जियत या बड़े कष्ट से सूखा, कड़ा मल थोड़ा-सा निकलना, पेट फूल जाना, पेट में गर्मी मालूम होना, पेट में आवाज होना, भोजन के बाद ही तलपेट का फूलना, पाखाना लगना, पर न होना, मुंह में पानी भर आना आदि लक्षणों में यह औषध दें।


ऐनाकार्डियम 3, 6 – 

पाखाने की हाजत, किंतु पाखाना निकालने की चेष्टा करते ही उसका बंद हो जाना।

कालिंसोनिया 3 –

 यदि कब्जियत के साथ बवासीर भी हो, तो इससे लाभ होता है।

पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम


पुरानी कब्ज की शिकायत जिसमें सख्त और सूखा मल आता हो उसके लिए नैट्रम म्यूरिएटिकम सबसे उत्तम होम्योपैथिक दवा है | रोगी के मुहं में छालें हो जाते है और मुहं का स्वाद कड़वा रहता हो, रोगी भूख कम लगती है और पाचन-क्रिया ठीक प्रकार से काम नही करती इस तरह के लक्षण दिखने पर होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम का उपयोग किया जा सकता है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वैज

कब्ज की शिकायत में अगर मल त्याग के बाद दर्द हो, बदबूदार हवा निकले, रात के समय मलद्वार में खुजली और उसके साथ दर्द हो, डकार आये और रोगी को पेट में भारीपन लगे, इस प्रकार के लक्षण आने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वेज का उपयोग कर सकते है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा लाइकोपोडियम


रोगी जब सुबह जगता है तो मुहं से गन्दी बदबू आती है, गले में सुजन आ जाती है, शाम के समय लक्षण बढ़ जाते है, मुहं सूखना और मुहं के छालें आदि लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होमियोपैथी की दवा लाइकोपोडियम का उपयोग कर सकते है |

पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा ब्रायोनिया अल्बा


रोगी की जीभ पर सफ़ेद और पीलेपन की मैल जमा हो जाती है, मुहं सुखना, रोगी के पेट में उसको दवाब महसूस होता है, उसके पेट से हाथ लगाने पर दर्द होता है, रोगी जब मल त्याग के लिए जाता है तो उसको सख्त और बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में मल आता है, गर्मी के मौसम में रोगी के लक्षण बढ़ जाते है, इस प्रकार के लक्षण कब्ज में देखने पर ब्रायोनिया एल्बा का उपयोग कब्ज में लाभ देता है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका


रोगी को मलत्याग बहुत ही कम हो पाता है, मल करते समय उसके मस्सों में सूजन आ जाती है, रोगी का पेट फूला हुआ रहता है और उसके साथ पेट में ठंडक महसूस करता है, पेट ऐठन होती है जो रात के समय अधिक बढ़ जाती है, लगातार भूक लगती रहती है और खाने के बाद मुहं का में कड़वाहट महसूस होती है, इस प्रकार के लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका का उयोग कर सकते है |
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12.10.21

मुनक्का( raisins) कई रोगों की औषधि है ,जानें फायदे:Benefits of raisins



आयुर्वेद में तो मुनक्का को औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है। इसकी प्रकृति या तासीर गर्म होती है। यह कई रोगों में दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

कब्ज में राहत

यदि किसी को कब्ज की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें, फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें। इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ मिलेगा। 

मुंह के रोग से आराम

मुनक्के में मौजूद ओलेक्रोलिक एसिड और फाइटोकेमिकल्स मुंह और दांतों को सुरक्षित रखते हैं और आपके दांतों के क्षय और कैविटी का डर भी दूर होता है। मुनक्के मेें भरपूर मात्रा में कैल्शियम भी होता है, साथ ही यह दांतों में बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है। इसके अलावा मुनक्के में मौजूद बोरान मुंह में रोगाणु के निर्माण को कम करता है।

बढ़ता है खून

रात को सोने से पहले 10 मुनक्का पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इन्हें दूध के साथ उबाल लें और हल्का ठंडा करके पियें। इसके नियमित सेवन से खून बढ़ता है। अगर आप इसे दूध के साथ नहीं लेना चाहते तो अच्छे से चबा-चबाकर खायें। 

हड्डियों के लिए फायेदमंद

मुनक्के में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं, जिस कारण मुनक्का खाने से आपकी हड्डियां मजबूत बनती हैं। यह आपको गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से बचने में सहायता करता है।

वजन बढ़ाने में

हर मेवे की तरह मुनक्का भी वजन बढ़ाने में मदद करता है क्योंकि इसमे फ्रुक्टोज़ और ग्लूकोस पाया जाता है जो हमें एनर्जी प्रदान करता है.
10 मुनक्का 5 छुहारे को सुबह शाम दूध में उबाल कर इस का सेवन करें, आप का वजन बढ़ना शुरू हो जायेगा

गठिया जैसी बीमारी होगी दूर

मुनक्के में पोटेशियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है। यह अम्लता को कम करने और सिस्टम से विषाक्त पदार्थों को दूर कर किडनी स्टोन, दिल की बीमारियों और गाठिया जैसी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है।

सर्दी-जुकाम होने पर

सर्दी-जुकाम हो जाए तो रात को सोने से पहले दूध में 2-3 मुनक्के उबाल कर सेवन करें। यदि सर्दी-जुकाम पुराना हो गया है तो सप्ताह भर यह दूध पीते रहें। सर्दी-जुकाम होने पर सात मुनक्का रात्रि में सोने से पूर्व बीज निकालकर दूध में उबालकर लें।

बुखार में

मुनक्का में मौजूद फिनोलिक पायथोन्यूट्रिएंट, जर्मीशिडल और एंटीऑक्सीडेंट तत्वों की वजह से जाने जाते हैं. यह जीवाणु संक्रमण और वायरल से लड़कर बुखार को जल्दी ठीक करने में मदद करते हैं. रात को 10 मुनक्का और अंजीर को पानी में भिगोकर रख दें. सुबह एक गिलास दूध में इसे उबाल लें.

आंखों के लिए

आंखों के लिए भी मुनक्का बेहद फायदेमंद होता है। इसमें बीटा कैरोटीन मौजूद होता है। इसका रोज सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है। मुनक्का को रात में भिगो कर रख दें और सुबह उठकर इसका सेवन करें। 

दूर करे एनीमिया

मुनक्के में मौजूद आयरन और साथ ही बी कॉम्लेक्स विटामिन एनीमिया के इलाज में मददगार साबित होते हैं। मुनक्के में मौजूद कॉपर लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है।

यौन दुर्बलता में

मुनक्का कामेच्छा को बढ़ाता है. मुनक्का में मौजूद एमिनो एसिड यौन दुर्बलता को दूर करता है. इस लिए तो शादी शुदा लोगों को पहली रात दूध का गिलास दिया जाता है जिसमें मुनक्का और केसर मिला होता है.

मुनक्का के कुछ अन्य फायदे

* फेफड़ों के रोग में मुनक्का के ताजे और साफ 15 दानों को पानी में साफ करके रात में 150 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह बीज निकालकर उन्हें 1-1 करके खूब चबा-चबाकर खा लें। बचे हुए पानी में थोड़ी सी चीनी मिलाकर या बिना चीनी मिलाएं ही पी लें। इसे लगतार एक महीने तक सेवन करने से फेफड़ों की कमजोरी और विषैले पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
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11.10.21

घुटनों के बीच गेप बढ़ना ग्रीस खत्म होना दर्द होने के उपचार :Knee gap herbal medicine


 

हमारे शरीर के हर भाग का अपना एक कार्य होता है और शरीर के उस भाग की अपनी ज़रुरतें भी होती हैं. जब हम बात घुटनों की कर रहे हैं तो आपको बता दें कि घुटने का प्रमुख कार्य होता है शरीर के वज़न को संतुलित कर हमारे चलने की क्रिया को बनाए रखना और इसके लिए घुटनों का कुछ सहयोगी अंग साथ देते हैं. इसलिए हमें यह ध्यान देना चाहिए कि ऐसा खानपान करें कि हमारे घुटनों को पोषण मिलता रहे और वह कमज़ोर न हो.

उम्र बढ़ने के साथ-साथ घुटनों की ग्रीस कम होने लगती है। लेकिन आजकल कम उम्र मे भी इस समस्‍या से जूझना पड़ता है। अगर किसी के घुटनों की ग्रीस खत्म हो चुकी हो और उनका चलना, उठना और सीढ़ी चढ़ना मुश्किल हो गया हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍हें रेगुलर खाने से आप अपने घुटनों की ग्रीस को आसानी से बढ़ा सकते हैं।
  दरअसल घुटनों में ग्रीस कहना एक अनपढ़ भाषा का उपयोग है, घुटनों में कोई ग्रीस ख़त्म नहीं होती, घुटनों में Synovial fluid की कमी हो जाती है, जो दो हड्डियों के बीच में Lubrication बनाये रखता है, जिस से उसकी Cartilage पर दबाव नहीं पड़ता, इसकी कमी होने के कारण घुटनों में उठते बैठते अत्यधिक दर्द होता है, घुटनों से आवाज़ भी आती है, फिर इसको लोग ये भी कह देते हैं के घुटनों में गैप बढ़ गया है. बॉडी में कैल्शियम की कमी

घुटने घिसने पर मरम्मत के उपचार -

                                 
हरसिंगार के पत्‍ते-

हरसिंगार जिसे पारिजात और नाइट जैस्मिन भी कहते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पौधे आपको अपने घर के आस-पास भी देखने को मिल जाएंगे। इस पेड़ के पत्‍ते जोड़ों के दर्द को दूर करने और घुटनों की ग्रीस बढ़ाने में मददगार होते हैं। इसके पत्तों में टेनिक एसिड, मैथिल सिलसिलेट और ग्लूकोसाइड होता है ये द्रव्य औषधीय गुणों से भरपूर हैं। घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए हरसिंगार के 3 पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को 1 बड़े गिलास पानी में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी आधा से भी आधा रह जाये तब इसे छानकर हल्‍का ठंडा करके पियें। इस काढ़े का सेवन सुबह खाली पेट करें।

घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट काफी फायदेमंद होता है। आप हर रोज दो अखरोट का सेवन जरूर कीजिये। ऐसा करने से घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि अखरोट में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ई, बी-6, कैल्शियम और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा अखरोट में एंटी-ऑक्‍सीडेंट के साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह एक प्रकार का फैट है जो सूजन को कम करने में हेल्‍प करता है।

नारियल पानी-

खाली पेट नारियल का पानी पीने से भी घुटनों में लचीलापन आता है। एक महीना इस उपाय को करके देखें। आपको बहुत फायदा मिलेगा! जरूरी विटामिन और मिनरल के अलावा यह मैग्नीज जैसे तत्वों से भरपूर है। सूखने के दौरान इसमें नेचुरल ऑयल बनने लगता है जो हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करता है।

रात में न खाएं खट्टी चीज़ें 

 खानपान का घुटनों से सीधा संबंध है इसलिए क्या खाएं, यह जानने से ज़्यादा ज़रुरी है कि क्या न खाएं. रात्रि के समय खट्टी चीजें जैसे- दही, संतरा,मौसमी, नींबू, कीनू, छाछ, इमली और आम का सेवन न करें. रात के समय इनका सेवन आपके खुटनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

रोजाना करें व्यायाम 


कहावत है कि अगर नईं मशीन भी हो परंतु उससे काम न लिया जाए तो पड़े-पड़े उसमें भी जंग लग जाता है. ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी भीतर से एक मशीन की तरह ही है, जहां हर भाग का अपना एक काम होता है और यदि हाथ और पैर न चलाएं जाएं तो शरीर में जंग लग जाता है. इसलिए नित्य व्यायाम करें- दौड़ें, योगा करें.

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