25.12.19

कद्दू के जूस के स्वास्थ्य लाभ



कद्दू का रस पीने के फायदे ठीक उसी तरह होते हैं जैसे कि किसी औषधीय पेय के होते हैं। आपने अब तक कद्दू के बीज और कद्दू खाने के फायदे सुने होगें। लेकिन अब कद्दू का जूस पीने के लाभ के बारे में भी जान लें। क्‍योंकि यह जूस कोई साधारण पेय नहीं है। कद्दू का रस पीने के फायदे आपको कई बीमारियों से दूर कर सकता है। कद्दू के जूस का उपयोग किडनी को स्‍वस्‍थ रखने, कब्‍ज का इलाज करने, मूत्र संक्रमण को कम करने, उच्‍च रक्‍तचाप को कम करने के लिए लाभकारी होता है। यदि आप कद्दू से बनाए गए जूस के लाभ नहीं जानते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। इस लेख में आप कद्दू के जूस के फायदे, औषधीय गुण, उपयोग, इस्‍तेमाल और नुकसान संबंधी जानकारी प्राप्‍त करेगें।
पम्‍पकिन या कद्दू का जूस एक प्रभावी पेय पदार्थ है जिसे कद्दू के गूदे से बनाया जाता है। कद्दू के ऊपरी और कठोर छिलके को हटाया जाता है। फिर कद्दू के गूदे का पेस्‍ट बनाकर पानी के साथ घोलकर कद्दू का जूस तैयार किया जाता है। इस कद्दू के जूस का सेवन करना कई गंभीर और सामान्य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी योगदान दे सकता है। आइए विस्‍तार से जाने कद्दू के जूस संबंधी अन्‍य तथ्‍य क्‍या हैं।
वजन कम करने का सबसे अच्‍छा उपाय

जब स्‍वास्‍थ्‍य की बात आती है तो कद्दू का जूस एक बेहतरीन विकल्‍प है। यह विटामिन सी, पोटेशियम, मैग्नीशियम और अन्‍य महत्‍वपूर्ण पोषक तत्‍वों से भरपूर है। इसमें कैलोरी कम होती है और कद्दू जूस का लगभग 94 प्रतिशत हिस्‍सा केवल पानी होता है। इसलिए यह शरीर को हाइड्रेट रखने और पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में मदद कर सकता है। आप आपने मन में कद्दू के रस को लेकर किसी प्रकार की शंका न रखें क्‍योंकि यह वजन कम करने का सबसे अच्‍छा उपाय है।


सामान्‍य रूप से कद्दू के जूस के 1 बड़े कप को दिन में दो बार सेवन किया जा सकता है। यह पेट में एसिड के स्‍तर को बेहतर बनाए रखने और पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होता है। आप भोजन के बाद भी इस जूस का सेवन कर सकते हैं। हालांकि निर्धारित मात्रा से अधिक कद्दू का जूस पीना आपकी पाचन समस्‍याओं को बढ़ा भी सकता है।
स्‍वास्‍थ्‍य के साथ ही साथ कद्दू के रस के फायदे त्वचा और बालों के लिए भी होते हैं। इस लेख आपको कद्दू के फल से बनाए गए जूस संबंधी उन सभी लाभों के बारे में बताया जा रहा है। जिन्‍हें जानकर आप भी इस अद्भुद जूस के लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।
गुर्दे की पथरी या पित्ताशय की समस्‍याएं
जिन लोगों को गुर्दे की पथरी या पित्ताशय की समस्‍याएं होती हैं उनके लिए कद्दू के रस का सेवन फायदेमंद हो सकता है। किडनी और लिवर संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन किया जा सकता है। जो बीमारी को प्रभावी रूप से दूर करने में मदद करता है। कुछ लोगों का मानना है कि 10 दिन तक लगातार कद्दू का रस पीना लिवर और किडनी की समस्‍या को कम करके उन्‍हें हेल्‍थी बना सकता है। आप भी कद्दू के जूस का सेवन कर अपनी किड़नी और लीवर को स्‍वस्‍थ रख सकते हैं।

पाचन संबंधी समस्‍याओं का प्रभावी उपचार
पाचन संबंधी समस्‍याओं का प्रभावी उपचार करने के लिए कद्दू का रस एक बेहतर विकल्‍प है। कद्दू के रस में फाइबर की अच्‍छी मात्रा होती है जो पूरे पाचन तंत्र को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आवश्‍यक है। कद्दू के रस के लाभ आंतों में चिकनाहट को बढ़ाता है जिससे मल को पारित होने में आसानी होती है। यदि आप भी कब्‍ज और अन्‍य पाचन समस्‍याओं का उपचार करना चाहते हैं तो कद्दू के रस के लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं। अच्‍छी बात यह है कि कद्दू के जूस को आप आसानी से घर पर तैयार कर सकते हैं जो कब्‍ज का सबसे अच्‍छा घरेलू उपाय हो सकता है।

क्‍या आपको पूरी और अच्‍छी नींद लेने में असुविधा होती है। इसका मतलब यह है कि आपको अनिद्रा की समस्‍या है जिसके कारण आप रात में अपनी नींद नहीं ले पा रहे हैं। इस समस्‍या का प्राकृतिक उपचार कद्दू के जूस से किया जा सकता है। अनिद्रा का घरेलू उपचार करने के लिए आप नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन कर सकते हैं। प्रतिदिन आप 1 गिलास कद्दू के रस में थोड़ा शहद मिलाएं और सेवन करें। यह आपकी नसों को आराम दिलाने और मस्तिष्‍क को शांत करने में मदद कर सकता है। जिससे आपको अच्‍छी नींद लेने में आसानी हो सकती है।
कद्दू के जूस का सेवन करे रक्‍तचाप नियंत्रित
जिन लोगों को उच्‍च रक्‍तचाप संबंधी समस्‍या है उन्‍हें कद्दू के जूस का सेवन फायदा दिला सकता है। अध्‍ययनों से पता चलता है कि कद्दू के रस में ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल और उच्च रक्‍तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं। पम्‍पकिन जूस में पेक्टिन की अच्‍छी मात्रा होती है जो शरीर में खराब कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है। उच्‍च रक्‍तचाप और हाई कोलेस्ट्रॉल दोनों ही हृदय संबंधी समस्‍याओं का प्रमुख कारण होते हैं। लेकिन आप इन समस्‍याओं से बचने के लिए अपने आहार में कद्दू के रस का प्रयोग कर सकते हैं।
कद्दू जूस का फायदा मार्निग सिकनेस के लिए
अक्‍सर महिलाओं को गर्भावस्‍था के दौरान सुबह की बीमारी (Morning Sickness) का सामना करना पड़ता है, उन महिलाओं के लिए कद्दू के रस पीने के फायदे हो सकते हें। गर्भावस्‍था के दौरान एसिड रिफ्लक्‍स के कारण होने वाली उल्‍टी और मतली को रोकने के लिए नियमित रूप से कद्दू के जूस का सेवन किया जा सकता है। सुबह की बीमारी का घरेलू उपचार करने के लिए नियमित रूप से प्रतिदिन 1 गिलास कद्दू का जूस पीना महिलाओं को लाभ दिला सकता है।



बॉडी को डिटॉक्सिफाई करने के लिए
क्‍या आप अपने शरीर की आंतरिक अशुद्धियों को दूर करने प्राकृतिक उपाय खोज रहे हैं? यदि हां तो आप अपनी बॉडी को डिटॉक्सिफाई करने के लिए कद्दू के जूस का सेवन कर सकते हैं। यह एक चमत्‍कारिक पेय पदार्थ है जो शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को प्रभावी रूप से दूर कर सकता है। इसके अलावा यह आपके शरीर की आंतरिक क्षतिग्रस्‍त कोशिकाओं की मरम्मत करने में भी प्रभावी योदान दे सकता है। आप अपने शरीर से अशुद्धियों को दूर करने के लिए सुबह के समय खाली पेट कद्दू के जूस का उपभोग कर सकते हैं। यह पाचन तंत्र और गुर्दों की बेहतर सफाई करने का अच्‍छा और प्राकृतिक घरेलू उपाय माना जाता है।

कद्दू जूस के औषधीय गुण मूत्र संक्रमण रोके
पम्‍पकिन जूस का सेवन कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिलाता है जिनमें मूत्र पथ को स्‍वस्‍थ रखना भी शामिल है। यदि आप मूत्र पथ के संक्रमण और अन्‍य समस्‍याओं का समाधान चाहते हैं तो कद्दू के रस का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। यह आपके मूत्र पथ और गुर्दे में मौजूद अपशिष्‍ट पदार्थों को साफ करने और उन्‍हें बाहर निकालने में मदद कर सकता है। यदि आप कद्दू के जूस का सेवन कर सकते हैं तो यह आपके गुर्दे और मूत्र पथ को संक्रमण से बचा सकता है।
हेयर बेनिफिट्स के लिए कद्दू के जूस के इस्‍तेमाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कद्दू के रस में विटामिन ए की उच्‍च मात्रा होती है जो आपके स्‍कैल्‍प (scalp) के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके अलावा कद्दू के जूस में पोटेशियम की भी अच्‍छी मात्रा होती है जो बालों में रि-ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद करता है। नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन करने से बालों को झड़ने से भी बचाया जा सकता है।
घर में कद्दू का जूस कैसे बनाए
घर में कद्दू का जूस बनाना बहुत ही आसान है। घर में तैयार किये गए प‍म्‍पकिन जूस को अधिक प्रभावी माना जाता है क्‍योंकि इसे बनाने में किसी भी केमिकल्‍स का उपयोग नहीं किया जाता है। साथ ही यह ताजा होता है। आइए जाने किस प्रकार हम घर पर ही कद्दू का रस बना सकते हैं।
कद्दू का रस बनाने के लिए आपको केवल पके हुए कद्दू का 1 टुकड़ा और पानी की आवश्‍यकता होती है।
आप कद्दू के ऊपरी छिलके को लिकाल लें और इसके छोटे-छोटे टुकड़े बना लें। इसके बाद थोड़े से पानी के साथ इन कद्दू के टुकडों को जूसर ब्‍लेंड में डालकर मिक्स करें। आपका कद्दू का जूस तैयार है। यह कम मीठा होता है। वैसे तो प्राकृतिक रूप से इतना मीठा जूस ही आपको सेवन करना चाहिए। लेकिन अतिरिक्‍त मिठास बढ़ाने के लिए आप शक्‍कर की जगह शहद का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

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    19.12.19

    सरसों का तेल है सबसे सेहतमंद



    भोजन हमारे जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा है, हम सचमुच खाने के लिए जीते हैं! लेकिन साथ ही स्वस्थ भोजन के बारे में जागरूकता भी हमारी जीवन-शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। हम सब अपने स्तर पर स्वस्थ खाने और फिट रहने के लिए जागरूक होने का प्रयास कर रहे हैं। भोजन पकाने के लिए तेल के इस्तेमाल को लेकर कई तरह की धारणाएं बनी हुई हैं। जिसमें आमतौर पर तेल के इस्तेमाल को सेहत के लिए नुकसानदायक बताते हैं। तेल चूंकि फैट का मुख्य स्रोत है, इसलिए ये शरीर में चर्बी को बढ़ाता है। लेकिन कई स्टडीज यह दावा करती हैं कि कुछ तेल आपके हृदय को सेहदमंद रखने के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं और यह शरीर को कई बीमारियों से दूर रखते हैं। आमतौर पर भोजन पकाने के लिए जैतून के तेल (ऑलिव ऑयल) को सबसे हेल्दी माना जाता है। मगर भारत में कुकिंग के लिए ज्यादातर सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इस लेख के जरिए जानें कि कौन सा तेल आपकी सेहत बेहतर है।
    इन दिनों बाज़ार में ऑलिव ऑयल या फ्लेक्ससीड ऑयल का चलन बढ़ता जा रहा है। ऑलिव ऑयल के अपने कई फायदे हैं लेकिन अगर भोजन पकाने की बात जाए तो सरसों तो सरसों के तेल से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। हमारे देश में सरसों के तेल का इस्तेमाल ज्यादातर घरों में किया जाता है। सरसों तेल हर किचन का अहम हिस्सा है और लगभग हर घर में सरसों के तेल में भोजन पकाया जाता है। काफी पुराने समय से इसका इस्तेमाल खाना बनाने के लिए किया जा रहा है। वैसे मार्किट में और भी कुकिंग ऑयल हैं जैसे- ऑलिव ऑयल यानी जैतून का तेल, रिफाइंड ऑयल, कैनोला तेल, राईस ब्रान ऑयल, वेजिटेबल ऑयल, तिल का तेल और मूंगफली का तेल।


    जैतून का तेल (ऑलिव ऑयल)
    जैतून का तेल आज के समय में बहुत ही जाना पहचाना नाम बन चुका है। बड़े-बड़े फिटनेस एक्सपर्ट्स ने इसका खूब प्रचार किया है और जैतून के तेल को केवल एक विकल्प भर ही नहीं बताया है। फिटनेस फ्रीक्स के लिए यह तेल अधिक पॉपुलर बन गया है। इस तेल में वसा अच्छी मात्रा में होती है जो हृदय स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी होता है। यह एक ऐसा जादुई तेल है जिसके इस्तेमाल से आपका वजन नहीं बढ़ता।
    सरसों का तेल
    सरसों के तेल का इस्तेमाल आयुर्वेद से जुड़ा हुआ है जिसका इस्तेमाल भारतीय घरों में युगों से होता चला आ रहा है। इस तेल की तीखी गंध और गहरे पीले रंग से इसकी पहचान को मान्यता मिली है। भारतीय घरों इसका इस्तेमाल व्यापक स्तर पर किया जाता है। खासतौर पर पूर्वी भारत में इसका इस्तेमाल अधिक किया जाता है। हमारे पारंपरिक भोजन जैसे मछली या झालमुरी को पकाने के लिए सरसों के तेल की जगह किसी और तेल का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
    सरसों का तेल है सबसे सेहतमंद
    सरसों का तेल प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेंट और जरूरी फैटी एसिड पर्याप्त मात्रा में होते हैं। दोनों ही तेल दिल की सेहत को बनाए रखने के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं। इसमें मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड, पॉलीअनसेचुरेटेड वसा और कुछ अन्य अच्छे वसा भरपूर मत्रा में होते हैं जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। साथ ही यह तेल गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है और शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (बैड कोलेस्ट्रॉल) को बनने से रोकता है।


    यह तेल ओमेगा-3 फैटी एसिड का बहुत ही अच्छा स्रोत है साथ ही इसमें शरीर के लिए अन्य जरूरी हेल्दी फैट्स भी होते हैं। भोजन पकाते समय तेल में मौजूद अच्छे फैटी एसिड और तेल न सिर्फ आपके भोजन के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि खून में मौजूद फैट को भी कम करता है।
    ज्यादातर शोधकर्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि जैतून के तेल की तुलना में सरसों का तेल अधिक सेहतमंद होता है। क्योंकि इसमें जरूरी फैटी एसिड मौजूद होते हैं। इसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड दोनों ही पर्याप्त मात्रा में होते हैं। यह आपके भोजन स्वस्थ बनाते हैं जो आपके हृदय स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है। वहीं जैतून के तेल में इन सभी जरूरी फैटी एसिड की मात्रा कम होती है और इसकी कीमत सरसों की तेल की तुलना में बहुत अधिक होती है
    क्या है प्रमाण
    बहुत सारी स्टडीज के अनुसार सरसों के तेल को उसमें मौजूद सभी जरूरी फैटी एसिड के अनुपात कारण सबसे सेहदमंद तेलों में से एक माना जाता है। साथ ही यह भी पाया गया है कि सरसों का तेल हृदय संबंधि रोगों से बचाने में भी मदद करता है और सरसों का तेल कोरोनरी धमनी रोगों और अन्य हृदय संबंधि रोगों से बचाता है। इसके अलावा यह तेल ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है और हाई ब्लड प्रेशर के खतरे से बचाता है।

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    15.12.19

    बढ़ती उम्र मे आँखों की सावधानी और उपाय



    आप भी बढ़ती उम्र के साथ अपनी आंखों का ख्याल रखना चाहते हैं? अगर आप अपनी आंखों को हमेशा स्वस्थ रखना चाहते हैं तो, इसके लिए जरूरी है स्वस्थ खानपान। आंखों को स्वस्थ रखने और बेहतर रोशनी के लिए विटामिन ए और विटामिन के से भरपूर भोजन लेना बहुत जरूरी है।
     शोधकर्ताओं ने पाया की जो लोग रेड मीट, फ्राइड फूड और हाई फैट डेयरी प्रोडक्ट का सेवन ज्यादा मात्रा में करते हैं उनकी आंखों पर इसका सीधा असर पड़ता है। ये आंखों के रेटिना को डेमैज करने का काम करता है साथ ही आंखों की रोशनी पर भी असर डालता है।
    इस स्थिति को ऐज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (AMD) कहा जाता है। इससे आपकी आंखों की रोशनी पर असर धीरे-धीरे पड़ता है। न्यूवैस्कुलर(ऐज रिलेटेड मैक्युलर डिजेनेरेशन) AMD काफी महंगा है और जियोग्राफिक ऐट्रोफी में इसका कोई इलाज नहीं है। अगर AMD का दूसरा रूप देखें तो वो ये है की उससे आपकी आंखों की रोशनी कम होने लगती है।
    यूएस की यूनिवर्सिटी में श्रुति धीगे के द्वारा किए गए शोध के मुताबाकि, AMD से बचने के लिए हमे इसके लिए पहले से तैयार होने की जरूरत है और अगर हम पहले से ही इस समस्या को पकड़ लेंगे तो ये हमारे लिए फायदेमंद होगा।
      धीगे और उनके साथियों ने 66 अलग-अलग खाने की चीजों पर डेटा का प्रयोग किया जो लोगों ने साल 1987 और 1995 के बीच सेवन किया। इसमें दो तरह के डाइट की पहचान की गई। इनमें दो तरह के डाइट शामिल थे एक वेस्टर्न और हेल्दी, जिनके बीच में काफी ज्यादा अंतर पाया गया।
    अध्ययन के लेखक ऐम्मी मिलेन जो कि यूनिवर्सिटी के बफैलो में प्रोफेसर है, उनके मुताबिक अध्ययन में पाया गया था की जिन लोगों को AMD नहीं है और जिन्हें AMD से पहले उन्होंने ज्यादा मात्रा में अनहेल्दी फूड का सेवन किया जिससे उनकी आंखों की रोशनी के कम होने का खतरा बढ़ गया।
    AMD से पहले वाली स्थिति को अस्यमपटोमेटिक कहा जाता है, जो कि किसी को भी इसका पता नहीं होता। AMD से पहले आंखों में नए ब्लड वैसल्स बनते हैं जिसे मैक्युला से जाना जाता है।
    मैक्युलर डिजनरेशन क्या है?
    आंखों में मैक्युला पैनी और केंद्रीत नजरों के लिए जरूरी होता है। ये रेटिना के पास एक छोटे से रूप में दिखाई देता है। जिससे हमारी आंखों के सामने आने वाली किसी भी चीज को देखने में मदद करता है। मैक्युलर डिजनरेशन इसी मैक्युला के खराब होने के कारण ही मैक्युलर डिजनरेशन होता है। इससे कई लोगों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।
    मैक्युलर डिजनरेशन के लक्षण
    आंखें लाल होना या दर्द होना
    आंखों के सामने बार-बार कालापन आना
    धुंधला दिखाई देना
    कोई भी चीज ज्यादा छोटी दिखना
    नजर की चमक में बदलाव
    नजदीक की चीजों को देखने में परेशानी

    अगर आप आंखों को बुढ़ापे तक ठीक रखना चाहते हैं तो आंखों की एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए. जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे ही आपकी आंखों की रोशनी कम होती जाती है. लेकिन एक्सरसाइज से आप इसे हमेशा ही स्वस्थ रख सकते हैं. आँखें हमेशा ठीक रहे उसके लिए कुछ आसान सी एक्सरसाइज होती है. आंखों की एक्‍सरसाइज, आंखों को स्‍वस्‍थ बनाएं रखती है और इन पर पड़ने वाले तनाव को कम करने में भी मदद करती है. तो चलिए आपको बता देते हैं कि आँखों के लिए कौनसी एक्सरसाइज जरुरी हैं.

    आंखों की एक्सरसाइज कैसे करें

    एक कुर्सी पर आराम से बैठें. अपनी दोनो हाथों को हथेलियों को रगड़ कर गर्म करें.
    अपनी आखें बंद कर लें और गर्म हथेलियों से हल्‍के से उन्‍हे ढक लें.

    आईवॉल पर प्रेशर न डालें.

    आंखों को इस प्रकार कवर करें कि उंगलियों या हथेलियों के बीच से उन तक रोशनी की एक भी किरण न पहुंचे.इस दौरान आप धीमे से गहरी सांस लें और किसी अच्‍छी घटना के बारे में या फ्यूचर में होने वाली किसी अच्‍छी बात के बारे में सोचें.इसके बाद आप हथेलियों को हटा लें और धीमे से आखें खोल लें.इस प्रक्रिया को दिन में कम से कम 3 मिनट या ज्‍यादा करें.

    आंखों को तरोताजा कैसे करें

    दो तौलियां लीजिए, एक को गर्म पानी में भिगोएं और दूसरे को ठंडे पानी में भिगो दें.पहले किसी एक तौलिया को लीजिए और चेहरे पर हल्‍का दबाव डालते हुए घुमाइए.अपने भौं और आखों के आस-पास के एरिया में आराम से आहिस्‍ता से टच करवाएं.इस दौरान अपनी पलकों को बंद रखें ताकि आखों पर अच्‍छे से सेक हो सके.इस प्रकार दोनो तौलिए से एक-एक बार आंखों और चेहरे पर सेक दें.अंत में ठंडे पानी की तौलिया को इस्‍तेमाल करें.

    अपनी आखें बंद कर लें और अपनी अंगुलियों के सिरो से आखों पर हल्‍के-हल्‍के से गोलाई में घुमाएं, ऐसा 2 से 3 मिनट तक करें.इस प्रक्रिया को बेहद धीमी तरीके से करें और बाद में बिना आखों को नुकसान पहुंचाए हाथों को धुल लें.ऊपर दी गयी सभी प्रक्रिया अगर आप करते हैं तो आंखों की एक्सरसाइज ज्यादा फायदेमंद होती है.
    जिस प्रकार हमारी शारीरिक शक्ति, उम्र के साथ कम होती जाती है, वैसे ही हमारी दृष्टि भी कमज़ोर होती जाती है विशेषकर 60 वर्ष की आयु के बाद ।
    कुछ आयु-संबंधी नेत्र परिवर्तन, जैसे कि प्रेस्बायोपिया (निकट वस्तुओं पर फोकस करने की हमारी क्षमता का नुकसान), सामान्य और आसानी से चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या सर्जरी के साथ इलाज किया जाता है । मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) , भारत में दृष्टिविहीनता का प्रमुख कारण है , मोतियाबिंद का उपचार सर्जरी द्वारा आसानी से ठीक किया जा सकता है ।
    हम में से कुछ, हालांकि, अधिक गंभीर उम्र-से-संबंधित नेत्र रोगों (ग्लोकोमा (काला मोतिया) ,मैकुलर डिजनरेशन ( धब्बेदार अध: पतन ) और मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी) का अनुभव करेंगे जो हमारे बड़े होने के साथ ही हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने की अधिक क्षमता रखते हैं ।
    आयु संबंधी दृष्टि परिवर्तन कब होते हैं ?

    प्रेसबायोपिया

    40 वर्ष की आयु पार करने के बाद, करीब की वस्तुओं पर फोकस करना कठिन होता है । प्रेसबायोपिया फोकस करने की क्षमता का एक सामान्य नुकसान है जैसे ही आप बड़े होते हैं ।
    एक समय के लिए, आप अपनी आंखों से दूर पढ़ने वाली सामग्री को पकड़कर प्रेसबायोपिया के लिए क्षतिपूर्ति कर सकते हैं, लेकिन अंततः आपको पढ़ने के लिए चश्मा, प्रोग्रेसिव लेंसस, मल्टीफ़ोकल कांटैक्ट लेंस या दृष्टि सर्जरी की आवश्यकता होगी ।

    मोतियाबिंद (कैटरेक्ट), जो वर्षों के दौरान विकसित होता है, वृद्धावस्था में एक सामान्य स्थिति है .. मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) का मुख्य लक्षण धुंधली दृष्टि है जो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप किसी धुंधली खिड़की से देख रहे हों ।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) के नवीनतम आंकलन के अनुसार, मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) दुनिया भर में 51 प्रतिशत दृष्टिविहीनता के लिए जिम्मेदार है । भारत में हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 63 प्रतिशत दृष्टिविहीनता मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के कारण होती है ।
    मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) सर्जरी सुरक्षित है , इसलिए अपनी स्पष्ट दृष्टि को बहाल करने के लिए अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें । मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के कारण होने वाली धुँधली दृष्टि को ड्राइव करने, पढ़ने, किराने का सामान खरीदने, अपने फोन का उपयोग करने और अपने घर के आसपास आने-जाने में कठिनाई होती है ।

    उम्र बढ़ने पर हमारी आंखों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

    जबकि आम तौर पर हम उम्र बढ़ने के बारे में सोचते हैं क्योंकि यह प्रेस्बायोपिया और मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) जैसी स्थितियों से संबंधित है, हमारी दृष्टि और आंखों में अधिक सूक्ष्म परिवर्तन भी होते हैं जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं । इन परिवर्तनों में शामिल हैं :

    • पुतली का आकार कम होना

    जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है,, मांसपेशियों जो हमारे पुतली के आकार और प्रकाश की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं, कुछ ताकत खो देती हैं । इससे पुतली, परिवेशीय प्रकाश में परिवर्तन के लिए छोटी और कम प्रतिक्रियाशील हो जाती है ।
    इन परिवर्तनों के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को युवा पीढ़ी की तुलना में आरामदायक पढ़ने के लिए तीन गुना अधिक परिवेश प्रकाश की आवश्यकता होती है ।
    इसके अलावा, सीनियर्स को उज्ज्वल सूरज की रोशनी और चौंध से चकाचौंध होने की संभावना है जब एक फिल्म थिएटर जैसे मंद रोशनी वाली इमारत से बाहर आते है । फोटोक्रोमिक लेंस और एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग वाले चश्मे इस समस्या को कम करने में मदद कर सकते हैं ।

    शुष्क आंखें (ड्राई आईज) :

    जैसे – जैसे हमारी उम्र बढ़ती है , हमारी आँखें कम आँसू पैदा करती हैं । यह मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) के बाद महिलाओं के लिए विशेष रूप से सत्य है ।
    यदि आप शुष्क आंखें ( ड्राई आईज) से संबंधित जलन, चुभने या आंखों की अन्य परेशानी का अनुभव करते हैं, तो आवश्यकतानुसार कृत्रिम आँसू का उपयोग करें, या अन्य विकल्पों के लिए अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें ।


    एजिंग भी परिधीय दृष्टि के सामान्य नुकसान का कारण बनता है, जो हमारे दृश्य क्षेत्र के आकार के साथ जीवन के दशक में लगभग एक से तीन डिग्री कम हो जाता है । जब तक आप अपने 70 और 80 के दशक तक पहुंचते हैं, तब तक आपको 20 से 30 डिग्री का परिधीय दृश्य क्षेत्र नुकसान हो सकता है ।
    वाहन चलाते समय अधिक सतर्क रहें क्योंकि दृश्य क्षेत्र की हानि से दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है .. अपनी दृष्टि की सीमा को बढ़ाने के लिए, अपने सिर को घुमाएं और चौराहों पर पहुंचने के दौरान दोनों तरफ देखें ।

    रेटिना में कोशिकाएं जो रंग दृष्टि के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है उनकी संवेदनशीलता में गिरावट आती है, जिससे रंग कम उज्ज्वल हो जाते हैं और रंगों के बीच कंट्रास्ट कम ध्यान देने योग्य हो जाते हैं 
    विशेष रूप से, नीले रंग फीके दिखाई दे सकते हैं । यदि आप किसी ऐसे पेशे में काम करते हैं जिसमें रंग-भेदभाव (जैसे कलाकार, सीमस्ट्रेस, या इलेक्ट्रीशियन) की आवश्यकता होती है, तो आपको पता होना चाहिए कि रंग-बोध के इस उम्र से संबंधित नुकसान का कोई इलाज नहीं है ।

    जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, आंख के अंदर जेल की तरह विट्रियस द्रवीभूत (लिक्विडीफ्य) होकर और रेटिना से दूर खींचने के लिए शुरू होता है, जिससे "स्पॉट और फ्लोटर्स" और (कभी-कभी) प्रकाश की चमक होती है । यह स्थिति, जिसे विट्रियस डिटैचमेंट कहा जाता है, आमतौर पर हानिरहित होती है ।
    लेकिन फ्लोटर्स और प्रकाश की चमक भी रेटिना डिटैचमेंट की शुरुआत का संकेत दे सकती है - एक गंभीर समस्या जो तुरंत इलाज न होने पर दृष्टिविहीनता (ब्लाईंडनेस्स) का कारण बन सकती है । यदि आपको चमक और फ्लोटर्स का अनुभव होता है, तो कारण निर्धारित करने के लिए तुरंत अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें 
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    14.12.19

    जल्दी जल्दी खाना खाने से वजन बढ़ता है और होती हैं ये बीमारियां/fast eating


      क्या आप भी रोज की भागदौड़ के कारण जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं या जल्दी निकलने के लिए जल्दी-जल्दी खाना आपकी आदत बन गई है। अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए।

      वैसे तो हमें बचपन से ही धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना सिखाया जाता हैं, लेकिन फिर भी कई लोग व्यस्तता के चलते जल्दी-जल्दी में ही खाने खाने की आदत बना लेते हैं। अगर आप भी ऐसा ही करते हैं, तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ऐसा करना सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। यहां तक की आपको मोटापे का शिकार भी बना सकता है। आइए, जानते हैं कि आखिर क्यों जल्दी में न खाते हुए, धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना चाहिए -
    क्या आपकी आदत भी जल्दी-जल्दी खाना खाने की है? कुछ लोगों के खाने की स्पीड इतनी तेज होती है कि उन्हें अक्सर अपने साथ खाने वालों का या तो इंतजार करना पड़ता है या लोगों को खाता हुआ छोड़कर उठना पड़ता है। ऐसे लोग जल्दी-जल्दी खाने को अपनी क्वलिटीज में गिनना शुरू कर देते हैं बकियों को 'स्लो ईटर' कहकर चिढ़ाने लगते हैं। मगर वो शायद नहीं जानते हैं कि जल्दी-जल्दी खाने की आदत उनके लिए कितनी नुकसानदायक हो सकती है। जी हां, वैज्ञानिकों के अनुसार हमें अपना खाना हमेशा धीरे-धीरे, अच्छी तरह चबाकर और स्वाद लेकर खाना चाहिए। इससे खाना पचाने में आसानी रहती है। जल्दी-जल्दी खाना खाने की आदत आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है।

    तेजी से बढ़ने लगता है वजन

    अगर आप जल्दी-जल्दी बिना ढँग से चबाए खाना खाते हैं तो आपकी इस आदत से आपका वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तेजी से खाना खाने से आपके शरीर में मेटाबलिज्म की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है, जिसका वजन से सीधा संबंध है। जब आप धीरे-धीरे खाना खाते हैं तो आप सही मात्रा में जरूरत के अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हार्मोन्स ब्रेन में पेट भरने का संकेत भेजते हैं। अध्ययन में देखा गया है कि 5 साल के समय के दौरान 84 लोगों में मैटाबॉलिज्म सिंड्रोम पनपा, जो प्रतिभागी तेजी से खाना खाते थे उनका वजन बढ़ा, रक्त शर्करा में भी बढ़ौतरी हुई, बैड कोलेस्ट्राल भी बढ़ा और कमर के आकार में भी बढ़ोतरी हुई।भले ही आप किसी भी कारणवश जल्दी में खाना खाएं, इसके कारण आपका वजन बढ़ना तय है और बढ़ता वजन अपने आप में ही एक गंभीर समस्या है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना-खाने से दिमाग को पेट भरने का अहसास नहीं हो पाता है। ऐसे में आप ज्यादा खाना खा लेते हैं जो वजन बढ़ने या मोटापे का मुख्य कारण बन जाता है।इसलिए बढ़ते वजन से बचने के लिए खाने को हमेशा अच्छे से चबाकर ही खाएं।

    प्रभावित होता है इंसुलिन

    शोधकर्ताओं ने कहा कि जल्दी-जल्दी खाना खाने से दिमाग को जरूरी संदेश नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से जरूरी हार्मोन्स नहीं निकल पाते हैं। इस कारण इंसान का इंसुलिन प्रभावित होता है और इंसुलिन प्रभावित होने की वजह से टाइप-2 मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। खाना अच्छी तरह चबाकर खाने से मुंह में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। देर तक खाने से मुंह में बनने वाली लार बैक्टीरिया खत्म कर देती है, जिससे शरीर बैक्टीरियल संक्रमण से दूर रहता है।
      डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे -धीरे चबाकर खाना चाहिए इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लूकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है

    हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट रोग का खतरा

    इंसान का खान पान उसे कई बीमारियों से बचाता है. तो वहीं जल्दी जल्दी खाने की वजह से कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
    जब इंसान मेटाबॉलिक सिंड्रोम का शिकार होता है तो उसे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगती है. हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी की वजह से हार्ट रोग का खतरा बढ़ जाता है
     
    हो सकता है मेटाबॉलिक सिंड्रोम

    जल्दबाजी में खाना खाने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने की संभावना भी बढ़ सकती है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना खाने से शरीर में रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है और ये दोनों समस्याएं मिलकर मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम की स्थिति बना सकती हैं।इसमें मेटाबॉलिज्म का स्तर असंतुलित हो जाता है जो शरीर में अन्य कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।इसलिए कभी भी जल्दबाजी में खाना खाने की भूल न करें।

    अच्छी तरह नहीं पचता है खाना

    आप तेज खाना इसलिए खा पाते हैं क्योंकि खाने को दांत से देर तक चबाने के बजाय सीधा निगल लेते हैं। खाने को चबाना इसलिए जरूरी है ताकि आपका खाना छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाए और डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए उसे पचाना और प्रॉसेसिंग करना आसान हो जाए। इसके अलावा जब आप खाने को चबाकर खाते हैं, तो आपके मुंह की राल उसमें मिल जाती है। आपका थूक पेट में डाइजेस्टिव एंजाइम्स को एक्टिवेट करता है, ताकि वो खाने को तोड़कर पोषक तत्वों को अलग कर सकें।

    ब्लड शुगर बढ़ सकता है

      जी हां, यह बात पढ़कर आपको भी झटका लग सकता है कि तेजी से खाना खाने से आपका ब्लड शुगर बढ़ सकता है। दरअसल तेजी से खाना खाने से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस शुरू हो जाता है, जिसके कारण आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। लंबे समय में ये आदत आपको डायबिटीज का शिकार बना सकती है। अगर आप पहले से डायबिटीज का शिकार हैं, तो आपके लिए तेजी से खाना खाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए आपको हमेशा खाना धीरे-धीरे खाना चाहिए।
      धीरे-धीरे और अच्छी तरह से चबाकर खाने से भोजन में लार अच्छी तरह मिल जाती है, जिससे भोजन को पचाना आसान हो जाता है। इससे आपका मेटाबॉलिज्म भी सही रहता है।
    माना जाता है कि डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए। इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
    धीरे-धीरे और चबाकर खाने से पेट से जुड़ी कई समस्याएं खत्म हो जाती हैं, जैसे कब्ज व गैस आदि। धीरे-धीरे खाने से मन भी शांत रहता है और छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाना या गुस्सा आना भी कम हो जाता है।
     धीरे-धीरे, चबाकर खाने से भोजन करने में समय लगता है और आप ज्यादा खाने से बच जाते हैं, जिससे मोटापे जैसे परेशानी से भी बचाव होने में मदद मिलती है।

      गैस की समस्या 

    भी आमतौर पर खाने की गलत आदतों के कारण होती है।यह समस्या होने पर उल्टी, जी मचलाना, पेट में जलन, पेट में गुड़गुड़ाहट और सीने में दर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं।वहीं इस कारण गैस्ट्रोइंट्सटाइनल डिजीज होने का भी खतरा रहता है। यह गैस से संबंधित गंभीर समस्या है।इसलिए अगर आपकी जल्दबादी में खाना खाने की आदत है तो इसे जल्द सुधारने की कोशिश करें।

    धीरे खाना खाने का शरीर पर असर

    जब हम धीरे और चबाकर खाना खाते हैं तो हमारी आंतों को इस भोजन को पचाने में आसानी होती है। धीमी गति से खाना खाने के दौरान हमारे पाचनतंत्र और दिमाग के हॉर्मोन्स के बीच सही कनेक्शन बन पाता है और हमारा दिमाग सिग्नल देता है कि हमें कितना खाना खाना है या नहीं खाना है।
    लेकिन जल्दबाजी में खाना खाने के दौरान हम इस तरह का कनेक्शन डिवेलप नहीं कर पाते हैं। जब इस तरह भोजन करना हमारी आदत बन जाती है हमारे शरीर में कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं। इनमें पाचन से लेकर मोटापे तक कई समस्याएं शामिल हैं।
    जब हम धीरे-धीरे खाना खाते हैं तब सही मात्रा में और जरूरत अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हॉर्मोन्स ब्रेन में अलार्म करते हैं। इसकी वजह होती है कि शरीर में इंसुलिन का स्तर प्रभावित होता है। यदि इंसुलिन शरीर में कम होने लगता है तो डाबिटीज टाइप-2 का खतरा बढ़ जाता है।
     
    *विशेषज्ञ कहते हैं कि खाना खाने में करीब 20 मिनट का वक्त लेना चाहिए, ताकि आप अपने खाने को अच्छे तरीके से चबाकर खा सकें। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के शोधकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि खाने को ज्यादा देर तक चबाने से आप कम खाना तो खाते ही हैं, साथ ही 2 घंटे बाद कुछ हल्का खाने की आदत भी नियंत्रण में रहती है
    *हीरोशिमा यूर्निवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. ताकायुकी यामाजी और उनकी टीम ने 1,000 प्रतिभागियों पर 5 वर्ष तक अध्ययन किया। इस अध्ययन का प्रमुख उद्देशय खाना खाने की गति और मैटाबॉलिक सिंड्रोम के बीच संबंधों की खोज करना था। मैटाबॉलिक सिंड्रोम ऐसे 5 जोखिम कारकों का समायोजन है, जिससे दिल के रोगों, डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। इन जोखिमों में हाई ब्लड प्रेशर, हाई ट्राइग्लिसराइड, रक्त में मौजूद वसा, उच्च रक्त शर्करा व गुड कोलैस्ट्रॉल की कमी और बढ़ता हुआ वजन शामिल है।


  • बैंगन के जूस के स्वास्थ्य लाभ



    बैंगन बहुत आम सब्जी माना जाता है क्योंकि इसके फायदों के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। मगर बैंगन में मौजूद मिनरल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन्स बताते हैं कि बैंगन को सामान्य सब्जी समझकर आप बड़ी भूल कर रहे हैं। रिसर्च बताती हैं कि बैंगन में ऐसे बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं, जो हमारे बॉडी फंक्शन को बेहतर बनाते हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि बैंगन की सब्जी या अन्य डिश बनाने से कहीं ज्यादा फायदेमंद इसका जूस हो सकता है। अगर आपने पहले कभी बैंगन के जूस के बारे में नहीं सुना है, तो आपको हैरानी हो सकती है। मगर आज हम आपको बता रहे हैं बैंगन का जूस पीने के 5 जबरदस्त फायदे।
    हाई ब्लड प्रेशर को करता है कंट्रोल

    बैंगन का जूस हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) के मरीजों के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। इसका कारण यह है कि इसमें पोटैशियम अच्छी मात्रा में होता है। रिसर्च बताती हैं कि हाई ब्लड प्रेशर का एक बड़ा कारण शरीर में पोटैशियम की कमी और सोडियम की अधिकता है। इसलिए पोटैशियम वाले आहार ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करते हैं। इसलिए हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए भी बैंगन का जूस पीना फायदेमंद है।
    डायबिटीज में भी हो सकता है फायदेमंद

    चूंकि बैंगन में फाइबर भी अच्छी मात्रा में होता है और बहुत कम मात्रा में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट होता है। इसलिए बैंगन डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है। डायबिटीज के मरीज चाहे बैंगन की सब्जी, अन्य डिश खाएं या जूस पिएं, इससे उनका ब्लड शुगर कंट्रोल रहेगा।
    हार्ट के रोगियों के लिए फायदेमंद

    बैंगन में विटामिन बी6, विटामिन सी, पोटैशियन, फाइबर और साइटोन्यूट्रिएंट्स आदि की मात्रा अच्छी होती है। ये सभी तत्व दिल के लिए बहुत फायदेमंद माने जाते हैं। इसलिए अगर दिल के मरीज रोजाना एक कप बैंगन का जूस पीते हैं, तो ये उनके लिए फायदेमंद हो सकता है। अगर स्वस्थ व्यक्ति इस जूस को पीते हैं, तो उन्हें भविष्य में कार्डियोवस्कुलर बीमारियां होने की संभावना कम हो जाती है। बैंगन में फ्लैवोनॉइड्स की मात्रा भी अच्छी होती है इसलिए ये स्ट्रोक और हार्ट अटैक के खतरे को कम करता है।

    कोलेस्ट्रॉल घटाने में मदद करेगा बैंगन का जूस


    बैंगन का जूस आपके शरीर में कोलेस्ट्रॉल को भी कम कर सकता है। जानवरों पर किए गए एक शोध के बाद वैज्ञानिकों ने इस बात का दावा किया था कि बैंगन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल घट सकता है। दरअसल बैंगन में क्लोरोजेनिक एसिड होता है, जो फ्री रेडिकल्स से लड़ता है और बैड कोलेस्ट्रॉल कम करता है।
    वजन भी घटाता है बैंगन का जूस

    अपनी डाइट में बैंगन को और रोजाना की आदत में 1 कप बैंगन का जूस पीकर आप अपना वजन भी घटा सकते हैं। बैंगन आपके बॉडी फैट को बर्न करने में मदद करता है और आपके मेटाबॉलिज्म को तेज करता है। बैंगन में मौजूद फाइबर आपके पेट को देरतक भरा रखता है, जिससे आपके द्वारा ली गई कैलोरीज में भी अंतर आता है। इस तरह बैंगन का जूस वेट लॉस के लिए भी अच्छा विकल्प है।
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    13.12.19

    इमली की पतियों से बढ़ता है ब्रेस्ट मिल्क



     खट्टी-मीठी स्वाद वाली इमली ही नहीं उसकी पत्तियां भी कम काम की नहीं। इन पत्तियों में कई ऐसे तत्व होते हैं जो सेहत को दुरुस्त करने के साथ बीमारियों को दूर करने में भी काम आते हैं।
    इमली का प्रयोग आप खाने पीने की कई चीजों में उसका स्वाद बढ़ाने के लिए करते रहे होंगे, लेकिन इमली की पत्तियों की चटनी या इसे विविध रूप में प्रयोग करना भी सेहत के लिए फायदेमंद होता है।
    इमली ही नहीं इसकी पत्तियां भी एंटीसेप्टिक गुण से भरी होती हैं। यदि आपका घाव लंबे समय से सही नहीं हो रहा तो आप इमली की पत्तियों का रस निकाल कर उसे अपने घाव पर लगाएं। एंटीसेप्टिक गुणों से भरी ये पत्तियां घावों को तेजी से भरती हैं। ये पत्तियां संक्रमण और परजीवी विकास को रोकतती हैं और घाव तेजी से भरने लगता है।
    बढ़ाता है ब्रेस्ट मिल्क
    जिन महिलाओं को डिलेवरी के बाद ब्रेस्ट मिल्क न निकलने या कम निकलने की दिक्कत होती हो, उन्हें इमली की पत्तियों का रस निकाल कर पिलाया जाए तो उनके दूध में बढ़ोरती होगी। वहीं, जिन लोगों को बार बार जननांग संक्रमण होता रहता है, उनके लिए इमली की पत्तियों के रस का सेवन करना बहुत फायदेमंद साबित होगा।
    इमली की पत्तियां विटामिन सी भरी होती हैं और ये सूक्ष्मजीव संक्रमण से हमें बचाती हैं। इमली की पत्तियों का सेवन करने से शरीर में ब्लड ग्लूकोज का स्तर हमेशा संतुलित रहता है। यदि आपको शुगर की समस्या है तो इमली की पत्तियों का सेवन किसी भी रूप में रोज करें।



    घावों को सही करे


    इमली की पत्तियों का रस निकाल कर घावों पर लगाया जाता है, तो वे घाव को तेजी से ठीक करते हैं। इसके पत्तों का रस किसी भी अन्य संक्रमण और परजीवी विकास को रोकता है। इसके अलावा यह नई कोशिकाओं का निर्माण भी तेजी से करता है।
    जननांग संक्रमण
     इमली की पत्तियों के रस का सेवन जननांग संक्रमण रोकता है और पहले से होने वाली ऐसी बिमारी के लक्षणों से राहत प्रदान करता है। इमली की पत्तियों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है जो कि किसी भी सूक्ष्मजीव संक्रमण से हमारे शरीर की पूर्णत: दूर रखता है। जिससे शरीर स्वस्थ रहता है।
    स्कर्वी से होगा बचाव
    स्कर्वी विटामिन सी की कमी के कारण होता है और इमली की पत्तियों में विटामिन सी भरपूर मात्रा में होता है। स्कर्वी रोग में मसूड़ों और नाखूनों, थकान होने लगती है। इमली के पत्तों में मौजूद उच्च एस्कॉर्बिक एसिड सामग्री एंटी-स्कर्वी के रूप में काम करता है।
    इमली की पत्तियों के रस का सेवन यदि आप रोज करें तो शरीर में सूजन और जोड़ों का दर्द भी कम होता है। पत्तियों का रस पीने एलर्जी की समस्या भी दूर होती है। इमली की पत्तियों के इतने गुण सुनने के बाद आपको भी अपनी डाइट में इस पत्तियों को किसी न किसी रूप में जरूर शामिल करना चाहिए।
    डायबिटीज को करें न‍ियंत्रित
    इमली की पत्तियों का सेवन करने से शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। इससे डायबिटीज जैसी बीमारी को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
    सूजन और जोड़ों से राहत
    इमली की पत्तियों के रस के सेवन से शरीर की सूजन और जोड़ो के दर्द में राहत मिलती है और किसी भी प्रकार की शारीरिक सूजन को इसके इस्तेमाल से कम किया जा सकता है। पत्तियों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए पपीता,नमक और पानी को पत्तियों में मिलाया जा सकता है। लेकिन, सुनश्चिति करें कि आप बहुत अधिक नमक का उपयोग ना करें। इमली के पत्तों का रस शरीर में होने वाली एलजी को भी रोकता है।
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    26.11.19

    प्रेडनिसोलोन दवा का कैसे उपयोग करें ?


    प्रेडनिसोलोन क्या है?
    प्रेडनिसोलोन एक ग्लुकोकोर्टिकोइड दवा है जिसमें प्रिडनिसोलोन मुख्य घटक के रूप में पाया जाता है| यह मुख्य रूप से एलर्जी, सूजन और प्रतिरक्षा संबंधी विकारों के लिए प्रयोग होता है|
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग
    इसका उपयोग कई विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनमें निम्न हो सकते हैं
    लुपस, सोरायसिस और एलर्जी की स्थिति।
    संधिशोथ; किशोर पुरानी गठिया, पॉलीमेल्जिया संधिशोथ
    ड्यूकेन मांसपेशी डिस्ट्रॉफी (एक प्रगतिशील बीमारी जिसमें मांसपेशियां ठीक से काम नहीं करती हैं)
    अस्थमा, गंभीर अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाएं
    प्रत्यारोपण सर्जरी (प्रतिरक्षा दमन के लिए)
    पेम्फिगस, बुलस पेम्फिगोइड (प्रतिरक्षा-मध्यस्थ त्वचा रोग)
    रक्त विकार जैसे ऑटोम्यून्यून हेमोलाइटिक एनीमिया, इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक purpura
    तीव्र और लिम्फैटिक ल्यूकेमिया, घातक लिम्फोमा, एकाधिक माइलोमा
    प्रेडनिसोलोन कैसे काम करता है
    प्रेडनिसोलोन सूजन के शुरुआत से लेकर पुरानी सूजन के विकास के लिए एक प्रभावी अवरोधक है।
    प्रेडनिसोलोन मोनोन्यूक्लियर कोशिकाओं (सूजन कोशिकाओं की विशेषता) के प्रसार और इन कोशिकाओं द्वारा सूजन पैदा करने वाले उत्पादों या पदार्थों की रिहाई को रोकता है – जिससे प्रतिरक्षा-दमनकारी क्रियाएं होती हैं।
    प्रेडनिसोलोन कैसे लें
    इस दवा की खुराक और इसे लेने का समय डॉक्टर द्वारा तय किया जाना चाहिए।
    इसकी खुराक आयु, चिकित्सा की स्थिति और चिकित्सा के प्रति प्रतिक्रिया पर आधारित है।
    प्रेडनिसोलोन गोलियों और सिरप के रूप में मिलता है।
    इन गोलियों को सुबह के समय लेना चाहिए या जब तक डॉक्टर द्वारा सलाह ना दी जाए|
    इन्हें रोजाना एक ही समय पर लेना चाहिए।
    सिरप का उपयोग करने से पहले सिरप की बोतल को अच्छी तरह से हिला लें और सही खुराक लेने के लिए हमेशा मापने वाले चम्मच का उपयोग करें।
    प्रेडनिसोलोन इंजेक्शन के रूप में भी मिलता है जिसे एक पेशेवर स्वास्थ्यकर्मी के द्वारा ही लगवाना चाहिए|
    प्रेडनिसोलोन की सामान्य खुराक
    इसकी खुराक आपकी हालत पर निर्भर होती है| वयस्कों के लिए इसकी खुराक रोजाना 20 से 40 मि.ग्रा. से 80 मि.ग्रा. तक है जिसे कम करके प्रतिदिन 5 से 20 मि.ग्रा. किया जा सकता है।
    प्रेडनिसोलोन से कब बचें?
    आपको निम्न स्थितियों में प्रेडनिसोलोन का उपयोग नहीं करना चाहिए:
    यदि इसके किसी से एलर्जी हो
    रक्तचाप बढने पर
    थ्रोम्बोम्बोलिक विकार
    मधुमेह मेलिटस
    ऑस्टियोपोरोसिस,
    स्क्लेरोडर्मा,
    मियासथीनिया ग्रेविस,
    जिगर, गुर्दे, दिल, आंतों, एड्रेनल या थायराइड रोग।
    हेपेटाइटिस-बी
    हरपीस, आंख का संक्रमण, चिकनपॉक्स, शिंगल या खसरा।
    मोतियाबिंद, आंख का रोग
    भावनात्मक समस्याएं, अवसाद या मानसिक बीमारी के अन्य प्रकार
    फेच्रोमोसाइटोमा (गुर्दे के पास एक छोटी ग्रंथि में ट्यूमर)
    अल्सर

    आपके पैरों, फेफड़ों या आंखों में खून का थक्का
    यदि आप किसी भी सर्जरी या दांतों की सर्जरी से गुजर रहे हैं तो डॉक्टर को सूचित करें|
    यदि आपको टीकाकरण की आवश्यकता है तो अपने डॉक्टर को सूचित करें।
    मांसपेशियों की समस्याओं वाले मरीजों या पूर्व में प्रीनीसोलोन टैबलेट (या एक समान दवा) ले रहर हों तो डॉक्टर को सूचित करें|
    प्रेडनिसोलोन के दुष्प्रभाव?
    कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के अचानक विघटन से एक स्टेरॉयड “विदड्राल सिंड्रोम” हो सकता है। इस सिंड्रोम की वजह से भूख, मतली, उल्टी, थकावट, सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द, त्वचा का झड़ना, मांसपेशियों में दर्द या वजन घटना हो सकता है|
    प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक प्रयोग करने से कुशिंग सिंड्रोम हो सकता है। इसके लक्षणों में रक्तचाप में वृद्धि, शरीर के चारों ओर मोटापे में वृद्धि और अंगों की पतली, त्वचा पर बैंगनी पट्टियां, चेहरे की गोलियां, मांसपेशियों की कमजोरी, पतली नाजुक त्वचा के साथ आसान और लगातार चोट लगाना आदि हैं|
    इसके इलावा गर्दन के पिछले हिस्से पर वसा जमना, मुँहासे, मासिक धर्म चक्र में परेशानी, शरीर पर बाल और मनोवैज्ञानिक असामान्यताओं में वृद्धि होना भी है|
    प्रेडनिसोलोन रक्त ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा सकता है, पहले से मौजूद मधुमेह को बिगाड़ सकता है और मधुमेह विरोधी दवाओं के प्रभाव को भी कम कर सकता है। इसलिए नियमित अंतराल पर खून में ग्लूकोज की जांच करते रहना चाहिए|



    शरीर में होने वाले संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकता है जैसे वायरल, बैक्टीरिया, फंगल, प्रोटोज़ोन या हेल्मिंथिक आदि| यह संक्रमण के प्रतिरोध को कम करके मौजूदा संक्रमणों को खराब कर सकता है।

    प्रेडनिसोलोन रक्तचाप को बढ़कर शरीर में नमक और पानी के प्रतिधारण को बढ़ा सकता है और शरीर से पोटेशियम और कैल्शियम के निकलने का कारण बन सकता है।
    इससे गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जैसे अक्रामकता, अवसाद, भावनात्मक विकार, अनिद्रा, मनोदशा बदलना, नींद के विकार आदि|
    प्रेडनिसोलोन हड्डी के गठन और दोबारा जुड़ने दोनों को ही को कम कर सकते हैं|
    प्रेडनिसोलोन आंखों की बीमारियों का कारण भी बन सकता है जैसे मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, बैक्टीरिया, कवक या वायरस के कारण आंख का संक्रमण इत्यादि|
    त्वचा पर गंभीर चकत्ते प्रेडनिसोलोन का एक अन्य दुष्प्रभाव है।
    प्रेडनिसोलोन को लम्बे समय तक उपयोग करने से बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे मामलों में तुरंत डॉक्टर से सलाह लें|
    अंगों पर प्रभाव
    जिगर – जिगर के गंभीर रोगों वाले मरीजों में खुराक के समायोजन की जरूरत होती है।
    गुर्दा – इसमें खुराक के समायोजन की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि किसी प्रकार के अवांछित लक्षण पाए जाते हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
    एलर्जी प्रतिक्रियाएं
    यदि किसी भी सामग्री से एलर्जी हो तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें| इससे होने वाली एलर्जी प्रतिक्रियाओं में त्वचा पर गंभीर चकत्ते, सांस की तकलीफ और खुजली इत्यादि हैं|
    दवा इंटरैक्शन के बारे में सावधानी
    इंटरैक्शन करने वाली सभी दवाओं को यहां सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता इसलिए प्रेडनिसोलोन निम्न दवाओं और उत्पादों के साथ प्रभाव डाल सकता हैं:
    एस्पिरिन और अन्य नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे इबुप्रोफेन और नाप्रोक्सेन,
    गर्भनिरोधक गोली
    एंटीएसिड्स- एंटीएसिड्स के साथ इसे लेने के बीच में कम से कम 2 घंटे का अंतराल छोड़ दें।
    क्लैरिथ्रोमाइसिन, रिफाबूटिन, रिफाम्पिसिन, एम्फोटेरिसिन, केटोकोनाज़ोल, टेट्रासाइक्लिन, फ्लुकोनाज़ोल
    इंसुलिन सहित मधुमेह के लिए दवाएं,
    फ़िनाइटोइन
    थायराइड की दवा
    वेरापामिल
    उच्च रक्तचाप या मूत्रवर्धक दवाएं
    मिर्गी का इलाज करने वाली दवाएं जैसे कि कार्बामाज़ेपाइन, फेनोबार्बिटल, बार्बिटेरेट्स, फेनीटोइन, प्राइमिडोन, फेनिलबूटज़ोन
    मेथोट्रेक्सेट (गठिया के लिए, क्रोन रोग, छालरोग)
    मिफेप्रिस्टोन (गर्भपात के लिए उपयोग किया जाता है)
    सिक्लोपोरिन (अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति को रोकने के लिए)
    एंटीकोगुलेंट दवाएं (खून पतला करने वाली के लिए प्रयोग किया जाता है)
    एमिनोग्लुटाइथिमाइड, एसीटाज़ोलोमाइड, कार्बोक्सोलोन या सैलिसिलेट्स
    रेटिनोइड्स (त्वचा की स्थितियों के लिए)
    कार्बिमाज़ोल (हाइपरथायरायडिज्म के लिए)
    थियोफाइललाइन (अस्थमा के लिए)

    अपने द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी दवाओं और उत्पादों की सूचना चिकित्सक को दें| जिन हर्बल उत्पादों का आप उपयोग कर रहे हैं उनके बारे में भी डॉक्टर को सूचित करें| बिना अपने डॉक्टर की मंजूरी के दवा संशोधित न करें|
    प्रभाव या परिणाम
    इससे ठीक होने के लिए लिया गया समय चिकित्सा की स्थिति पर निर्भर करता है।
    लक्षणों को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अपने डॉक्टर द्वारा तय की गयी खुराक को पूरा लें|
    अपने डॉक्टर से सलाह किए बिना दवा लेना बंद ना करें|
    सामान्य प्रश्न


    क्या प्रेडनिसोलोन नशे की लत है?

    नहीं। लेकिन इन दवाइयों पर निर्भरता से बचना चाहिए।
    क्या शराब के साथ प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अल्कोहल लेने से बचना चाहिए।
    क्या किसी विशेष खाद्य पदार्थ से बचना चाहिए?
    प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अंगूर या अंगूर का रस ना लें|
    क्या गर्भवती होने पर प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    यदि आप गर्भवती हैं या गर्भवती होने की योजना बना रही हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में बताएं| गर्भावस्था के दौरान प्रेडनिसोलोन को लंबे समय तक लेने से भ्रूण का विकास मंद हो सकता है। प्रेडनिसोलोन को केवल तभी लेना चाहिए जब मां और बच्चे को हानि ना हो।
    क्या बच्चे को स्तनपान करने के दौरान प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
    50 मि.ग्रा. प्रतिदिन तक की खुराक शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती| यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान करा रही हैं तो अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इस दवा का उपयोग करें|
    क्या प्रेडनिसोलोन लेने के बाद ड्राइव कर सकते हैं?
    यदि आप निम्न में से कुछ भी अनुभव हो तो इस दवा को लेकर ना तो वाहन चलाएं और ना ही भारी मशीनरी चलायें:
    आलस्य
    सरदर्द
    चक्कर आना
    रक्तचाप में वृद्धि
    यदि प्रेडनिसोलोन अधिक मात्र में लें तो क्या होता है?
    यदि आपने प्रेडनिसोलोन अधिक मात्रा में ली है तो तुरंत अपने डॉक्टर को सूचित करें।
    यदि एक्सपायरी हो चुकी प्रेडनिसोलोन लें तो क्या होता है?
    एक्सपायरी हो चुकी एक खुराक लेने से कोई बड़ा प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो सकता लेकिन दवा की शक्ति कम हो सकती है इसलिए आपको हमेशा एक्सपायरी दवा की जांच करें और कभी भी उपयोग ना करें|
    यदि प्रेडनिसोलोन की खुराक लेनी याद ना रहे तो क्या होता है?
    प्रभावी रूप से काम करने के लिए हर समय आपके शरीर में दवा की एक निश्चित मात्रा का होना जरूरी है| इसलिए जैसे ही आपको याद आये हमेशा अपनी भूली हुई खुराक लें| यदि दूसरी खुराक का पहले से ही समय हो गया हो तो दुगुनी खुराक ना लें|
    प्रेडनिसोलोन का भंडारण
    इसे कमरे के तापमान पर सीधे प्रकाश और गर्मी से 25 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखें।
    इस दवा को फ्रिज में न रखें|
    बोतल खोलने के 1 महीने के बाद तक प्रेडनिसोलोन ओरल सस्पेंशन को खुला न छोड़ें।
    प्रेडनिसोलोन लेते समय टिप्स

    प्रेडनिसोलोन संक्रामक रोगों को विकसित करने के लिए आपकी संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है| इसलिए संक्रामक बीमारियों से पीड़ित लोगों को इससे दूर रहना चाहिए।
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग अचानक या डॉक्टर की सलाह के बिना कभी नहीं रोकना चाहिए।
    प्रेडनिसोलोन का उपयोग करने के दौरान अतिरिक्त पूरक खुराक लेना जरूरी है जैसे तनाव के समय, शल्य चिकित्सा या संक्रमण के दौरान
    लंबी समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉयड थेरेपी लेने वाले मरीजों को नियमित रूप से नियमित अंतराल पर प्रयोगशाला अध्ययन (2 घंटे के पोस्टप्रैन्डियल ब्लड ग्लूकोज और सीरम पोटेशियम सहित), रक्तचाप, वजन, और छाती का एक्स-रे इत्यादि करवाने चाहिए।


    का लंबे समय तक उपयोग हड्डी के खनिज घनत्व को कम करता है और आंखों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इसलिए नियमित रूप से हड्डी के खनिज घनत्व की परीक्षा और नियमित आंखों की परीक्षा करवाते रहना चाहिए।

    बाल रोगियों के विकास पर नजर रखें|
    प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक उपयोग करने के दौरान हमेशा हाइपोथालेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (एचपीए) एक्सिस सप्रेशन, कुशिंग सिंड्रोम की भी निगरानी करें।
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    25.11.19

    आयुर्वेदिक चूर्ण का विवरण और फायदे


    हिंग्वाष्टक चूर्ण पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
    व्योषादि चूर्ण श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।
    शतावरी चूर्ण धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
    स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) :  हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।
    सारस्वत चूर्ण :  दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या या दूध से। सितोपलादि चूर्ण पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहद से |
    अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से। 
    अजमोदादि चूर्ण :  जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।
    त्रिकटु चूर्ण खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।
    सैंधवादि चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से। 


    (महा) चूर्ण :
      सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ। 
    सुलेमानी नमक चूर्ण भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
    त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ। 
    श्रृंग्यादि चूर्ण :  बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।
    माजून मुलैयन हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।