19.7.23

पेट दर्द के लिए सबसे अच्छी गोली के बारे में बताएं:Pet dard ki sabse acchi dawa batao

 



ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट

डॉक्टर की पर्ची ज़रूरी है

निर्माता

नमेड

दवा के घटक

ड्रोटावेरिन (80मि.ग्रा) + मेफेनेमिक एसिड (250मि.ग्रा)

परिचय
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट एक कॉम्बिनेशन दवा है जिसका इस्तेमाल पेट में दर्द के इलाज के लिए किया जाता है. यह पेट और गट की मांसपेशियों को आराम देकर पेट में दर्द, ब्लोटिंग, असुविधा और ऐंठन को कम करने के लिए असरदार ढंग से काम करता है. यह उन विशेष केमिकल मैसेंजरों को भी ब्लॉक करता है जिसकी वजह से दर्द और असहजता महसूस होती है.
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट को डॉक्टर द्वारा सलाह दी गई खुराक और अवधि के अनुसार भोजन के साथ लिया जाता है. डोज़ आपकी कंडीशन और दवा के प्रति आपके रिसपॉन्स पर निर्भर करेगी. डॉक्टर द्वारा निर्धारित अवधि तक इस दवा का सेवन जारी रखें. अगर आप इलाज को जल्दी रोकते हैं तो आपके लक्षण वापस आ सकते हैं और आपकी स्थिति और भी खराब हो सकती है. अपनी हेल्थकेयर टीम को अन्य सभी दवाओं के बारे में बताएं जो आप ले रहे हैं क्योंकि वह दवाएं इस दवा को प्रभावित या इससे प्रभावित हो सकती हैं.
इस दवा के सामान्य साइड इफेक्ट के रूप में डायरिया (दस्त), मिचली आना , उल्टी, पेट में दर्द, मुंह में सूखापन, भूख ना लगना, ज़्यादा प्यास लगना और सीने में जलन जैसी समस्याएं हो सकती हैं. इनमें से अधिकांश अस्थायी होते हैं और आमतौर पर समय के साथ सही हो जाते हैं. अगर आप इनमें से किसी भी साइड इफेक्ट को लेकर चिंतित हैं तो अपने डॉक्टर से बात करें. इससे चक्कर आने और उनींदापन आने जैसी समस्याएं आ सकती हैं, इसलिए जब तक आपको यह पता न चल जाए कि दवा आपको किस प्रकार से प्रभावित करती है, तब तक ड्राइविंग या मानसिक एकाग्रता की आवश्यकता वाली कोई भी गतिविधि न करें. यह दवा लेने के दौरान शराब पीने से बचें क्योंकि इससे आपको अधिक चक्कर आ सकते हैं.

इस दवा को लेने से पहले, अगर आप गर्भवती हैं, गर्भवती होने की योजना बना रहें हैं या स्तनपान करा रहें हैं तो आपको अपने डॉक्टर को बताना चाहिए. अगर आपको किडनी से जुड़ी कोई बीमारी है तो भी आपको अपने डॉक्टर को बताना चाहिए ताकि डॉक्टर आपके लिए उपयुक्त खुराक पर्ची पर लिख सके.

ड्रोमेफ टैबलेट के मुख्य इस्तेमाल

ड्रोमेफ टैबलेट के फायदे

पेट में दर्द के इलाज में

ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट पेट और आंत (gut) में अचानक मांसपेशियों में ऐंठन या संकुचन से असरदार ढंग से राहत देता है, जिससे मांसपेशियों को आराम मिलता है और भोजन पाचन में सुधार होता है. यह मस्तिष्क में उन केमिकल मैसेंजर को भी ब्लॉक करता है जो दर्द की अनुभूति के लिए जिम्मेदार होता है.. यह पेट में दर्द (या स्टमक पेन) और मरोड़, पेट फूलना और असुविधा के इलाज में मदद करता है. डॉक्टर की सलाह के अनुसार ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट लें. आखिरकार, यह आपको अपनी दैनिक गतिविधियों के बारे में अधिक आसानी से जाने में और बेहतर, अधिक सक्रिय, जीवन स्तर प्राप्त करने में मदद करेगा.
ड्रोमेफ टैबलेट के साइड इफेक्ट
इस दवा से होने वाले अधिकांश साइड इफेक्ट में डॉक्टर की सलाह लेने की ज़रूरत नहीं पड़ती है और नियमित रूप से दवा का सेवन करने से साइट इफेक्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं. अगर साइड इफ़ेक्ट बने रहते हैं या लक्षण बिगड़ने लगते हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह लें

ड्रोमेफ के सामान्य साइड इफेक्ट

मिचली आना
उल्टी
डायरिया (दस्त)
मुंह में सूखापन
सीने में जलन
चक्कर आना
अनिद्रा (नींद में कठिनाई)
हाइपोटेंशन (निम्न रक्तचाप)
Fast heart rate
पसीना आना
कब्ज
लीवर एंजाइम में बढ़ जाना
सफ़ेद रक्त कोशिकाओं (वाइट ब्लड सेल्स) में वृद्धि
सफेद रक्त कोशिकाओं (वाइट ब्लड सेल्स) की संख्या में कमी
ब्लड प्लेटलेट्स कम होना
Purpura
एग्रेन्युलोसाइटोसिस (खून में ग्रेन्युलोसाईट की कमी)
सांस फूलना
कान में घंटी बजना
पेट में दर्द
पेट फूलना (गैस बनना)
अपच
पेट में सूजन
उलझन
डिप्रेशन


ड्रोमेफ टैबलेट का इस्तेमाल कैसे करें

इस दवा की खुराक और अनुपान की अवधि के लिए अपने डॉक्टर से सलाह लें. इसे साबुत निगल लें. इसे चबाएं, कुचलें या तोड़ें नहीं. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट को भोजन के साथ लेना बेहतर होता है.

ड्रोमेफ टैबलेट किस प्रकार काम करता है

ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट दो दवाओं का मिश्रण हैः ड्रोटावेरिन और मेफेनेमिक एसिड, जो पेट में दर्द और ऐंठन से राहत देता है. ड्रोटैवेराइन एक एंटी-स्पैजमोडिक दवा है जो पेट की अरेखित या चिकनी मांसपेशियों से होने वाले संकुचन या ऐंठन से आराम दिलाती है. मेफेनैमिक एसिड नॉन-स्टेरॉयडल एंटी-इन्फ्लामेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) नामक दवाओं के एक समूह से सम्बन्ध रखता है. यह पेट में दर्द और सूजन का कारण बनने वाले कुछ रासायनिक मैसेंजर के स्राव को अवरुद्ध करके काम करता है.


सुरक्षा संबंधी सलाह

अल्कोहल
असुरक्षित
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के साथ शराब पीना सुरक्षित नहीं है.

गर्भावस्था

डॉक्टर की सलाह लें
गर्भावस्था के दौरान ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल करना असुरक्षित हो सकता है.. हालांकि, इंसानों से जुड़े शोध सीमित हैं लेकिन जानवरों पर किए शोधों से पता चलता है कि ये विकसित हो रहे शिशु पर हानिकारक प्रभाव डालता है. आपके डॉक्टर पहले इससे होने वाले लाभ और संभावित जोखिमों की तुलना करेंगें और उसके बाद ही इसे लेने की सलाह देंगें. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

स्तनपान

डॉक्टर की सलाह लें
स्तनपान के दौरान ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के इस्तेमाल से संबंधित जानकारी उपलब्ध नहीं है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

ड्राइविंग

असुरक्षित
ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के इस्तेमाल से ऐसे साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं जिससे आपकी गाड़ी चलाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है.
जैसे ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट के कारण वर्टिगो (चक्कर आने) की समस्या हो सकती है.

किडनी

सावधान
किडनी की बीमारियों से पीड़ित मरीजों में ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल सावधानी के साथ किया जाना चाहिए. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट की खुराक में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.
किडनी की गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल करने की सलाह नहीं दी जाती है.

लिवर

सावधान
लिवर की बीमारियों से पीड़ित मरीजों में ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट का इस्तेमाल सावधानी से किया जाना चाहिए. ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट की खुराक में बदलाव की आवश्यकता हो सकती है. कृपया अपने डॉक्टर से सलाह लें.

अगर आप ड्रोमेफ टैबलेट लेना भूल जाएं तो?

अगर आप ड्रोमेफ 80 एमजी/250 एमजी टैबलेट निर्धारित समय पर लेना भूल गए हैं तो जितनी जल्दी हो सके इसे ले लें. हालांकि, अगर अगली खुराक का समय हो गया है तो छूटी हुई खुराक को छोड़ दें और नियमित समय पर अगली खुराक लें. खुराक को डबल न करें.

18.7.23

सुपर फूड है आंवला, जानिए गुण और उपयोग Benefits of Amala




सेहत के लिहाज से आंवले को बेहद फायदेमंद माना जाता है. आंवले में तमाम औषधीय तत्‍व पाए जाते हैं, जो कई रोगों से बचाने में मददगार हैं. आयुर्वेद में आंवले को कुदरत का वरदान माना गया है. आंवला विटामिन-सी, कैल्शियम, एंटीऑक्‍सीडेंट्स, आयरन, पोटैशियम जैसे तमाम पोषक तत्‍वों का खजाना है. आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. रमाकांत शर्मा की मानें तो आंवले को अगर रोजाना सुबह खाली पेट खाया जाए, तो इसके लाभ कई गुना बढ़ जाते हैं. आप आंवले को कच्‍चा या मुरब्‍बे के रूप में खा सकते हैं. हालांकि डायबिटीज के मरीज इसे कच्‍चा ही लें या अपनी डाइट में जूस, अचार या चटनी के रूप में शामिल कर सकते हैं. नियमित आंवला का सेवन डाइजेस्टिव सिस्टम को बेहतर करने के साथ-साथ ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर लेवल और स्किन के लिए कई फायदेमंद होता है.
आंवला एक ऐसा फूड है, जिसका फल और सब्जी दोनों के रूप में उपयोग किया जाता है. फल और सब्जी के अलावा आंवला एक बहुत कारगर औषधि है. आयुर्वेद में आंवला कई सामान्य से लेकर गंभीर रोगों के उपचार में उपयोग किया जाता है. वात, पित्त या कफ प्रकृति के रोगों को ठीक करने के लिए आप आंवला चूर्ण का किस तरह से उपयोग कर सकते हैं,

वात प्रकृति के रोगों के लिए

वात प्रकृति (Vata Dosha) के रोग यानी वे रोग जो मुख्य रूप से शरीर में दर्द की वजह बनते हैं. यदि आपको वात संबंधी किसी भी रोग की समस्या रहती है तो आप हर दिन 5 ग्राम आंवला चूर्ण को तिल के तेल में मिलाकर इसका सेवन कर सकते हैं. इस मिक्स को आप खाना खाने के पहले या फिर खाना खाने के बाद ले सकते हैं.

पित्त प्रकृति के रोगों के लिए

जब शरीर में पित्त (Pitta Dosha) की मात्रा अधिक बढ़ जाती है तो पेट और पाचन संबंधी रोगों की समस्या अधिक होती है. जैसे, एसिडिटी (Acidity), अपच (Low Digestion), कब्ज (Constipation), सिर दर्द, खट्टी डकारें आना इत्यादि बीमारियों की वजह शरीर में बढ़ा हुआ पित्त होता है.
इन समस्याओं पर कंट्रोल करने के लिए आफ 5 ग्राम आंवला पाउडर को घी के साथ मिलाकर खाना खाने के बाद इसका सेवन करें. कोई भी दवाई खाना खाने के बाद लेने की सलाह दी जाती है तो इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं होता है कि खाना खाते ही आप दवाई खा लें. कम से कम 20 से 25 मिनट का गैप देकर दवाई का सेवन करना चाहिए.

कफ के कारण होने वाले रोगों में

जब शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है तो शरीर हमेशा सुस्त रहता है, नींद आने की समस्या या आलस रहता है. पसीने में बहुत चिपचिपाहट होती है, खांसी और सांस लेने में तकलीफ की समस्या हो सकती है. डिप्रेशन हो सकता है. इन सभी रोगों से बचाव के लिए आप आंवला पाउडर को शहद के साथ मिलाकर खाएं. इसका सेवन आप भोजन से पहले या भोजन के बाद कर सकते हैं.

आंवले  के गुण 

आंवले का स्वाद शुरू में बहुत खट्टा लगता है लेकिन इसे चबाकर खाने के बाद मुंह का टेस्ट मीठा हो जाता है.
आंवला शरीर में पित्त की मात्रा को घटाने का काम करता है.
आंवला शरीर में शीतलता बढ़ाता है और गर्मी के असर को शांत करता है.
आंवला पेट के रोगों के साथ ही त्वचा के रोगों को दूर करने में भी बहुत प्रभावी औषधि है
चरक संहिता में आयु बढ़ाने, बुखार कम करने, खांसी ठीक करने और कुष्ठ रोग का नाश करने वाली औषधि के लिए अमला का उल्लेख मिलता है। इसी तरह सुश्रुत संहिता में आंवला के औषधीय गुणों के बारे में बताया गया है. इसे अधोभागहर संशमन औषधि बताया गया है, इसका मतलब है कि आंवला वह औषधि है, जो शरीर के दोष को मल के द्वारा बाहर निकालने में मदद करता है। पाचन संबंधित रोगों और पीलिया के लिए आंवला (Indian gooseberry) का उपयोग किया जाता है। इसे कई जगहों पर अमला नाम से भी जाना जाता है।

आंवला के फायदे

आंवला के प्रयोग से अनगिनत फायदे (amla ke fayde) होते हैं। आंवला खून को साफ करता है, दस्त, मधुमेह, जलन की परेशानी में लाभ पहुंचाता है। इसके साथ ही यह जॉन्डिस, हाइपर-एसिडिटी, एनीमिया, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की समस्या), वात-पित्त के साथ-साथ बवासीर या हेमोराइड में भी फायदेमंद होता है। यह मल त्याग करने की प्रक्रिया को आसान बनाता है। यह सांसों की बीमारी, खांसी और कफ संबंधी रोगों से राहत दिलाने में सहायता करता है। अमला आंखों की रोशनी को भी बेहतर करता है। अम्लीय गुण होने के कारण यह गठिया में भी लाभ पहुंचाता है।


25.6.23

लोध्र के आयुर्वेदिक उपयोग Ayurvedic uses of Lodhra

 



लोध्रा क्या है?

लोध्रा (lodhra herb) के पेड़ मध्यम आकार के होते हैं। इसकी छाल पतली तथा छिलकेदार होती है। इसके फूल सफेद और हल्के पीले रंग के तथा सुगन्धित होते हैं। लोध्रा के द्वारा लाख (लाक्षा) को साफ किया जाता है, इसलिए इसे लाक्षाप्रसादन भी कहते हैं।
इसकी दो प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिन्हें क्रमश: लोध्र व पठानी लोध्र कहते हैं। लोध्रा कषैला, कड़ुआ, पचने में हल्का, रूखा, कफ-पित्त का नाशक और आँखों के लिए लाभकारी होता है।

अनेक भाषाओं में लोध्रा के नाम

लोध्रा का लैटिन नाम Symplocos racemosa Roxb. (सिम्प्लोकॉस रेसिमोसा) Syn-Symplocos intermedia Brand है और यह कुल Symplocaceae (सिम्प्लोकेसी) का है। इसे अन्य इन नामों से भी जाना जाता हैः-
Lodhra in –
Hindi (lodhra meaning in hindi) – लोध
Urdu – लोधपठानी (Lodapathani)
Oriya – लोधो (Lodho)
English – Californian cinchona (कैलीफोर्नियन सिनकोना) लोध बार्क (Lodh tree), स्माल बार्क ट्री (Small bark tree), लॉटर बार्क (Lotur bark)
Arabic – मूगामा (Moogama)।
Sanskrit – लोध्र, तिल्व, तिरीट, गालव, स्थूलवल्कल, जीर्णपत्र, बृहत्पत्र, पट्टी, लाक्षाप्रसादन, मार्जन
Assamese -भोमरोटी (Bhomroti); कन्नड़ : पाछेट्टू (Pachettu), लोध (Lodh), लोध्र (Lodhara)
Konkani – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Gujarati – लोधर (Lodar)
Telugu (Lodhra in Telugu) – लोड्डूगा (Lodduga), लोधूगा चेट्टु (Lodhdhuga-chettu)
Tamil (Lodhra Meaning in Tamil) – वेल्ली-लोथी (Velli-lothi), काम्बली वेत्ती (Kambali vetti)
Bengali – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Marathi – मराठी – लोध (Lodh), लोध्र (Lodhra)
Nepali – लोध्र (Lodhara)
Malayalam – पाछोत्ती (Pachotti)

लोध्रा का औषधीय गुण

लोध्रा आँख, कान, मुंह और स्त्री रोगों आदि के लिए रामबाण का काम करती है। यह खून की गर्मी, मधुमेह, थैलीसिमिया आदि रक्त से जुड़े रोग, बुखार, पेचिश, सूजन, अरुचि, विष तथा जलन आदि का नाश करता है। इसके फूल तीखे, कड़ुए, ठंडी तासीर वाले होते हैं जो कफ व पित्त का नाश करने वाले होते हैं। इसके तने की छाल सूजन कम करने वाली, बुखार को ठीक करने वाली, खून का बहाव रोकने वाली, पाचन सुधारने वाली होती है।

लोध्रा के फायदे

अब तक आपने जाना कि लोध्रा के कितने नाम हैं। आइए अब जानते हैं कि लोध्रा का औषधीय प्रयोग कैसे और किन बीमारियों में किया जा सकता हैः-

मोटापा घटाने के लिए करें लोध्रा का सेवन

लोध्रा का औषधीय गुण वजन कम करने में बहुत काम आता है। 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से मोटापा जल्दी कम होने में मदद मिलती है।

आँखों के रोग में लोध्रा का प्रयोग 

आँखों के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता हैं-
आँख में शुक्र रोग होने पर हल्दी, मुलेठी, सारिवा तथा पठानी लोध्र के काढ़ा से सेंकना चाहिए। इसके अलावा लोध्र के सूक्ष्म चूर्ण (Lodhra Powder) को स्वच्छ कपड़े के टुकड़े में बांधकर पोटली बना लें। इसे गुनगुने जल में डुबाकर आंखों को सेंकना चाहिए।
सफेद लोध्र को घी में भूनकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुनगुने जल में भिगोकर, खूब मल लें। इसे ठंडा करके कपड़े से छानकर आंखों को धोने से आँखों के दर्द से छुटकारा मिलता है।
लोध्र को पीसकर आंखों के बाहर चारों तरफ लेप करने से भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
सेंधा नमक, त्रिफला, पीपल, लोध्र तथा काला सुरमा को बराबर मात्रा में लें। इसे नींबू के रस में घोंटकर आंख में काजल की तरह लगाएं। इससे भी आंखों के रोगों का नाश होता है।
हरड़ की गुठली की मींगी, हरड़ चूर्ण, हल्दी, नमक तथा लोध्र का बराबर मात्रा ले। इनके चूर्ण को हरड़ के पत्तों के रस में घोटकर आंख पर लगाने से भी आंखों से जुड़े विकारों का नाश होता है।
आँख आने पर पठानी लोध्र की छाल के चूर्ण को घी में भून लें। इसे आँख के बाहरी भाग में लेप लगाने से लाभ होता है। आप चिकित्सक से सलाह लेकर पतंजलि लोध्रा चूर्ण का प्रयोग भी कर सकते हैं।
पित्तरक्त के कारण आँख आने पर बराबर मात्रा में श्वेत लोध्र की छाल तथा मुलेठी का चूर्ण बना लें। इन्हें घी में भूनकर उसकी पोटली बनाकर दूध से भिगोएं। इसकी बूंदों को आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।
आँख फूलने पर सफेद लोध्र की छाल के चूर्ण को गाय के घी में भून लें। इसकी पोटली बनाकर गुनगुने जल में भिगोकर, मसलकर, ठंडा कर लें। इस जल से आंखों को धोने से लाभ होता है।
आँखों में जलन, खुजली तथा दर्द आदि की हालत में घी में भुने लोध्र एवं सेंधा नमक को कांजी से पीसकर पोटली बना लें। इसकी बूँदों को आंखों में गिरने से जलन, खुजली तथा दर्द का नाश होता है।
पित्त, रक्त एवं वात विकार के कारण आँख आने पर नींबू के पत्ते तथा लोध्र की छाल को पुटपाक विधि से पकाएं।। इसके चूर्ण अथवा काढ़े में दूध मिलाकर आंखों में 2-2 बूंद टपकाने से लाभ होता है।
लोध्र तथा मुलेठी को समान मात्रा में लें। इनके चूर्ण बनाकर घी में भूनकर, बकरी के दूध में मिला लें। इसे आँखों पर लगाने से भी आँख आने की समस्या में लाभ होता है।
खून की अशुद्धता से आंख आने पर त्रिफला, लोध्र, मुलेठी, शक्कर और नागरमोथा का उपयोग करें। इनको समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर चारों तरफ लगाने से लाभ होता है।
लाख, मुलेठी, मंजीठ, लोध्र, कृष्ण सारिवा तथा कमल को समान मात्रा में लेकर जल में पीसकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के बाहर लगाने से भी आंखों की समस्या में लाभ होता है।

पीलिया में लोध्रा का इस्तेमाल लाभदायक

अगर पीलिया के लक्षणों से आराम नहीं मिल रहा है तो 15-20 मिली लोध्रासव (symplocos racemosa) का सेवन करने से पाण्डु (पीलिया) रोग में लाभ मिलने की संभावना रहती है।

कान के रोग में लोध्रा का इस्तेमाल फायदेमंद

कान के रोग से परेशान हैं? लोध्रा को दूध में पीसकर, छान लें। इसे कान में 1-2 बूंद डालने से कान के रोगों से राहत मिलती है।

दांतों के रोग में लोध्रा के उपयोग से लाभ

दांत की जड़ों/मसूड़ों से खून आने की स्थिति में लोध्रा की छाल का काढ़ा बना लें। इसका गरारा/कुल्ला करने से दांतों से खून आना बंद हो जाता है और मुंह के रोगों में लाभ होता है।

लोध्रा के सेवन से सूखी खाँसी का इलाज

लोध्रा के 2-3 ग्राम पत्तों को पीस लें। इसे घी में भूनकर उसमें शक्कर मिला लें। इसका सेवन करने से उल्टी बंद होती है, अधिक प्यास लगने की समस्या ठीक होती है, खांसी ठीक होती है तथा आँव-पेचिश आदि में लाभ होता है।

पेट के कीड़े को खत्म करने के लिए करें लोध्रा का उपयोग

पेट में कीड़ा हुआ है और इस परेशानी के कारण रातों की नींद हराम है। इसके लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से पेट के कीड़े या तो नष्ट हो जाते हैं या निकल जाते हैं।

लोध्रा के उपयोग से श्वेतप्रदर/ल्यूकोरिया का इलाज

2-3 ग्राम पठानी लोध्र की छाल के पेस्ट में बरगद की छाल का 20 मिली काढ़ा मिला लें। इसे पीने से श्वेत प्रदर मतलब ल्यूकोरिया में लाभ होता है।
लोध्र का काढ़ा बनाकर योनि को धोने से ल्यूकोरिया तथा अन्य योनि-विकारों में लाभ होता है।
तुम्बी के पत्ते और लोध्र की छाल को बराबर मात्रा में पीस लें। इसे योनि पर लेप करने से प्रसूता स्त्री के योनि के घाव भर जाते हैं।

गर्भपात रोकने में मदद करता है लोध्रा

आठवें माह में यदि गर्भपात की आशंका हो तो 1-2 ग्राम लोध्र चूर्ण (lodhra powder), मधु और एक ग्राम पिप्पली चूर्ण को दूध में घोलकर गर्भवती को पिलाने से गर्भ स्थिर हो जाता है और गर्भपात होने का खतरा कम हो जाता है।

मासिक धर्म विकार में लोध्रा से फायदा

लोध्र की छाल को पीसकर पेट के निचले हिस्से में लगाएं। इससे मासिक धर्म विकारों में लाभ होता है। लोध्र को पीसकर स्तनों पर लेप करने से स्तन के दर्द ठीक होते हैं।

घाव सुखाने के लिए करें लोध्रा का इस्तेमाल

अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा कटहल की छाल के महीन चूर्ण को घाव पर छिड़कने से घाव जल्दी भरता है।
लोध्र, मुलेठी, प्रियंगु आदि के चूर्ण को घाव के मुंह पर छिड़कें। इसे हल्का रगड़ कर पट्टी बाँध देने से खून का थक्का जम जाता है।
उभर रहे घाव में प्रियंगु, लोध्र, कट्फल, मंजिष्ठा तथा धातकी के फूल का चूर्ण छिड़कें। इससे घाव शीघ्र भर जाता है।
मुक्ताशुक्ति चूर्ण मिले हुए धातकी फूल के चूर्ण तथा लोध्र के चूर्ण (lodhra Churna) का प्रयोग करने से भी घाव शीघ्र भर जाता है।

डायबिटीज में लोध्रा 

डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से धीरे धीरे रक्त मे शर्करा की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है।

रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना) की समस्या में लोध्रा 

खून की अशुद्धता में उशीरादि चूर्ण (खस, कालीयक, लोध्र आदि) अथवा लोध्र चूर्ण (1-2 ग्राम) में बराबर मात्रा में लें। इनमें लाल चंदन चूर्ण मिला लें। इसे चावल के धोवन में घोल कर शक्कर मिला कर पिएं। इससे रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना), जलन, बदबूदार सांसों की बीमारी ठीक होती है।

लोध्रा के इस्तेमाल से मुंहासे का इलाज

लोध्र तथा अरहर को पीसकर मुंह पर लेप के रूप में लगाने से चेहरा कान्तियुक्त होता है तथा मुंहासों का नाश होता है।

बवासीर में लोध्रा 

15-20 मिली लोध्रासव (lodhradi) का सेवन करने से अर्श (बवासीर) में फायदा होता है।

बुखार में लोध्रा से फायदा

लोध्र (lodhradi), चन्दन, पिप्पली मूल तथा अतीस के 1-2 ग्राम चूर्ण में शक्कर, घी तथा शहद मिलाकर दूध के साथ पीने से बुखार उतर जाता है।

कुष्ठ रोग में लोध्रा 

कुष्ठ रोग के लक्षणों से आराम पाने के लिए 15-20 मिली लोध्रासव का सेवन करने से कुष्ठ (कोढ़) रोग से राहत मिलने में आसानी होती है।

त्वचा के लिए फायदेमंद लोध्रा

लोध्रा में शीत और कषाय गुण होने के कारण यह त्वचा पर होने वाले कील मुंहासे, जलन आदि स्थिति में ठंडक प्रदान करता है साथ ही त्वचा की सामान्य संरचना को बनाये रखता है।

अल्सर में सहायक लोध्रा 

अल्सर होने का कारण पित्त दोष का बढ़ना होता है जिसके वजह से प्रभावित स्थान पर अत्यधिक जलन होने लगता है। ऐसे में लोध्र के शीत गुण के कारण यह अल्सर जैसी परेशानी में भी लाभ पहुंचाता है साथ ही ये कषाय होने से अल्सर को शीघ्र भरने में मदद करता है।

नकसीर के इलाज में लोध्रा का उपयोग 

नकसीर होने का मुख्य कारण शरीर में पित्त होता है। ऐसे में शरीर में गर्मी बढ़ती है जो कि नकसीर का कारण बनती है। ऐसे में लोध्रा में पाए जाने वाले शीत गुण के कारण यह इस अवस्था में लाभ मदद करता है।

लोध्रा के सेवन की मात्रा

पेस्ट – 2-3 ग्राम

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20.6.23

सफ़ेद मूसली Safed Musli के लाभ : Sex power बढाने वाली जड़ी बूटी

 



 वियाग्रा और जिन्सेंग से कहीं बढ़कर है भारतीय सफ़ेद मूसली. आयुर्वेद में सदियों से ही इसका उपयोग कमजोरी से ग्रस्त रोगियों के लिए किया जाता रहा है. सफ़ेद मूसली के पौधे की जड़ मूसल के समान होती और इसका रंग सफ़ेद होता है इसलिए इसे मुस्ली या मूसली कहा जाता है। यह सफ़ेद मूसली बहुत ही जानी मानी हर्ब है जिसे बहुत सी बिमारियों, मुख्यतः पुरूषों के यौन रोगों male sexual diseases, के उपचार में प्रयोग किया जाता है। सफ़ेद मूसली का कोई साइड-इफेक्ट नहीं होता है। सफ़ेद मूसली एक वाजीकारक aphrodisiac दवा है। सारी दुनिया में सफेद मूसली की बहुत मांग है।
भारत में आजकल इसकी बड़े पैमाने पर सफ़ेद मूसली की खेती भी होने लगी है. भारत में मुख्य रूप से इसकी खेती राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में की जाती है। सफ़ेद मूसली की जड़ या कन्द को जमीन से खोद के निकला जाता है और साफ़ करके सुखा लिया जाता है। फिर इसका पाउडर बना कर दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। सफेद मूसली को आयुर्वेद की दुनिया में चमत्कार माना जाता है। इसे इस्तेमाल करनें से पहले आप यह जान लें कि सफेद मूसली खाने की विधि क्या है?
सफेद मूसली एक प्रकार का पौधा है, जिसके भीतर सफेद छोटे फूल मौजूद होते हैं। यह बहुत सी बिमारियों के इलाज में कारगार साबित हुआ है। इसके अलावा इसे दुसरे पदार्थों के साथ मिलाकर भी औषधि तैयार की जाती है।
मुख्य रूप से सफेद मूसली का प्रयोग सेक्स सम्बन्धी रोगों के लिए किया जाता है। मर्दों में शुक्राणुओं की कमी होनें पर इसका प्रयोग किया जाता है।
मूसली मर्दों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन की मात्रा भी बढ़ाता है। इससे एड्रेनल नामक ग्रंथि अच्छे से कार्य करती है, जो शरीर के कई कार्यों के लिए जिम्मेदार होती है।
सफेद मूसली शरीर में विभिन्न क्रियाओं के सुचारू रूप से चलने को भी सुनिश्चित करता है। यह खून के बहने का भी संचालन करता है। इसके अलावा थकान के समय इसे लेने से थकान दूर होती है।

सफेद मूसली खाने का तरीका:

यदि आप सेक्स सम्बन्धी समस्याओं के लिए मूसली का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो आप रोजाना सुबह और शाम में एक-एक सफेद मूसली का कैप्सूल दूध के साथ ले सकते हैं।
इसके अलावा यदि आप पाउडर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं, तो एक बार में आप 3 से 5 ग्राम मूसली का सेवन करें।

सफेद मूसली खाने के तरीके

विभिन्न लोगों के लिए सफेद मूसली खाने के तरीके अलग-अलग होते हैं:
विभिन्न लोगों के लिए सफेद मूसली खाने का तरीका निम्न है:
छोटे बच्चे एक बार में 1 ग्राम से कम
बच्चे (13 -19 साल) 1.5 से 2 ग्राम
जवान (19 से 60 साल) 3 से 6 ग्राम
बुजुर्ग (60 साल से ज्यादा) 2 से 3 ग्राम
गर्भावस्था में 1 से 2 ग्राम
दूध पिलाने वाली माँ 1 से 2 ग्राम
अधिकतम खुराक 12 ग्राम (3-4 बार में)
कब लें: खाना खाने के 2 घंटे बाद
यदि सफेद मूसली लेते समय आपको भूख लगनी बंद हो जाती है, तो खुराक को उसे हिसाब से कम कर लें।
जैसा हमनें बताया कि सफेद मूसली को खाने का तरीका विभिन्न लोगों के लिए अलग है। कई लोग इसे जड़ी-बूटी के रूप में खाना पसंद करते हैं। कई लोग इसे मिठाई के रूप में खाते हैं, जिसे मूसली पाक भी कहते हैं।

सफेद मूसली का सेवन करें थकान और कमजोरी में

सफेद मूसली आपकी थकान और कमजोरी दूर करती है।
मूसली को शक्कर के साथ लेने से शरीर में ताकत आती है और कमजोरी दूर भागती है।
इसके लिए रोजाना दिन में दो बार सफेद मूसली को शक्कर के साथ बराबर मात्रा में लें।

सफेद मूसली के फायदे सेक्स-सम्बन्धी रोग में

अश्वगंधा की तरह ही सफेद मूसली भी आपकी सेक्स ड्राइव को बढ़ाकर आपकी निजी जिन्दगी को बेहतर बनाती है।
यह आपके गुप्तांगों में खून की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे आप लम्बे समय तक उत्तेजित रह सकते हैं।
सफेद मूसली मर्दों में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को काफी हद तक बढ़ा देता है। यह हार्मोन बहुत से कार्यों में जरूरी होता है।
बेहतर परिणाम के लिए आप इसे अकरकरा के साथ लें।

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सफेद मूसली शुक्राणु बढ़ाने में

शरीर में शुक्राणु की कमी से कई अन्य रोग हो सकते हैं। इसके अलावा इस स्थिति में पुरुष अपना आत्म-विश्वास खोने लगता है। ऐसे में वह कई इलाज खोजता है।
ऐसे स्थिति के लिए काफी समय से लोग सफेद मूसली का इस्तेमाल करते आये हैं।
सफ़ेद मूसली आपके शुक्राणु की मात्रा बढ़ाता है, इनकी गति तेज करता है और शुक्राणु को स्वस्थ बनाता है।

सफेद मूसली जोड़ों के दर्द में

सफ़ेद मूसली को अक्सर लोग शरीर में दर्द के लिए लेते आये हैं। इसका सेवन दर्द में, विशेषकर जोड़ों के दर्द में, बहुत लाभदायक होता है।
यदि आपको लगातार जोड़ों में दर्द है, तो आपको आर्थराइटिस हो सकता है। इसके लिए एक प्राकृतिक इलाज सफ़ेद मूसली है।
आपको बस रोजाना दूध के साथ आधा चम्मच सफेद मूसली लेना है।

ब्रेस्टमिल्क को बढ़ाने में उपयोगी सफेद मूसली

माताओं के स्तनों में दूध बढ़ाने के लिए सफेद मूसली फायदे का लाभ उठाना चाहिए। इसके लिए सफेद मूसली का प्रयोग इस तरह से करना चाहिए। 2-4 ग्राम सफेद मूसली के चूर्ण में बराबर भाग मिश्री मिला लें। इसे दूध के साथ सेवन करें। इससे स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।सफेद मूसली गर्भावस्था में लेने से महिला के प्राकृतिक दूध की मात्रा में बढ़त होती है।
इसके लिए इसे कुछ विशेष पदार्थों जैसे, गन्ना, जीरा आदि के साथ ही लेना चाहिए।
यहाँ एक बात का ध्यान रखें कि यदि आप गर्भ से हैं, तो आपको मूसली लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श करना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि गर्भावस्था में आप पहले से ही कई दवाइयां लेते हैं, जिससे मूसली आपको नुकसान कर सकती है।

सफेद मूसली डायबिटीज में

सफेद मूसली एक बेहतरीन औषधि है। इसमें डायबिटीज से लड़ने की क्षमता होती है। यदि एक दुबले-पतले व्यक्ति को डायबिटीज है, तो मूसली उसका इलाज करने में सक्षम होती है, लेकिन मोटे व्यक्ति में यह थोड़ा मुश्किल होता है।

सफेद मूसली के फायदे वज़न बढ़ाने में


सफेद मूसली ऐसे व्यक्तियों के लिए वरदान साबित होती हैं जोकि दुबलेपन से परेशान हैं और किसी तरह अपना वजन बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए हैं। बता दें कि इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण हमारे शरीर में ऊर्जा का संचार करने के साथ साथ वजन बढ़ाने में भी लाभदायक सिद्ध होते हैं। सफेद मुसली कुपोषण से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए फायदा पहुंचाती हैं। इसका फायदा प्राप्त करने के लिए सफेद मूसली कैप्सूल का भी उपयोग किया जाता है।सफेद मूसली को दूध के साथ लेने से आपका रक्त चाप भी नियंत्रित होगा।

दस्त को रोकने में सफेद मूसली के फायदे

सफेद मूसली का सेवन करने पर दस्त की परेशानी से निजात मिल सकता है। 2-4 ग्राम सफ़ेद मूसली की जड़ के चूर्ण को दूध में मिला लें। इसका प्रयोग करने से दस्त, पेचिश तथा भूख की कमी जैसी परेशानियों में लाभ मिलता है।
पेट की बीमारी में सफेद मूसली के फायदे

पेट में गड़बड़ी, पेट दर्द, खाना ना खाने की इच्छा, दस्त जैसी समस्याएं होने पर सफेद मूसली का सेवन करें। इसके लिए सफेद मूसली के कंद के चूर्ण का सेवन करना चाहिए। 1-2 ग्राम कंद (bulb) के चूर्ण का सेवन करने से दस्त, पेट की गड़बड़ी, पेट दर्द और भूख ना लगने की समस्या ठीक होती है।
आप सफेद मूसली को बॉडी बनाने के लिए खा सकते हैं। यह आपकी मांसपेसियों को बढ़ाने में मदद करती है और आपके टिश्यू को मजबूत बनाती है
सफेद मूसली को खाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?
आप सफेद मूसली के पाउडर को दूध में मिलाकर ले सकते हैं।
इसके अलावा आप इसे शहद के साथ मिलाकर भी ले सकते हैं।
आप सफेद मूसली के कैप्सूल को भी दूध या पानी के साथ ले सकते हैं।
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29.5.23

ज्यादा उम्र में भी जवान बनाये रखने वाली आयुर्वेदिक जड़ी बूटियाँ ,Antiageing Ayurvedic herbs

                                        


Anti Ageing Herbs: हमेशा जवान दिखने के लिए दूध में मिलाकर डेली पिएं ब्राह्मी, इन आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों के सेवन से नहीं आएगा बुढ़ापा!
Ayurveda Anti Ageing Herbs: जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है वैसे-वैसे हमारे चेहरा का ग्लो जाने लगता है और बाल सफेद होने लगते हैं। चेहरे पर झुर्रियां, झाइयां, सफेद बाल आदि उम्र बढ़ने के लक्षण हैं और इन परिवर्तनों से कोई नहीं बच सकता है। लेकिन मौजूदा दौर में जिस तरह की लाइफ स्टाइल को हमना अपना रूटीन बना रखा है उसे फॉलो करके तो हम लोग उम्र से पहले भी बूढ़े दिखने लगते हैं। हालांकि, अगर हम अपने खान-पान और एक बेहतरीन दिनचर्या अपनाते हैं तो लंबे समय तक इन समस्याओं से बच सकते हैं। आयुर्वेद में ऐसी प्राकृतिक जड़ी-बूटियां हैं जिनके माध्यम से निश्चित रूप से हम काफी उम्र तक जवान दिख सकते हैं।
प्रजेंट सिनेरियो में हर कोई चाहता है कि वो लंबे समय तक जवान दिखे और ऐसे लोग न जाने कितने ही प्रोडक्ट्स का चयन करते हैं। लेकिन कभी-कभी फार्मेसी प्रोडक्ट्स हमारी सेहत के लिए नुकसानदायक भी हो जाते हैं। लिहाजा अगर हम नेचुरल चीजों का इस्तेमाल करते हैं तो किसी भी तरह के जोखिम से बच सकते हैं। एंटी एजिंग (Anti Ageing) को लेकर हमें आयुर्वेदिक डॉक्टर ने कुछ जड़ी-बूटियों के सेवन करने का सुझाव दिया है जिनके जरिए हम उम्र बढ़ने वाले लक्षणों को कम कर सकते हैँ।
जीवोत्तम आयुर्वेद केंद्र के विशेषज्ञ शरद कुलकर्णी मानते हैं कि आयुर्वेद कुछ जड़ी-बूटियों (Ayurvedic Herbs) का सुझाव देता है जो शरीर की कोशिकाओं को फिर से उत्पन्न करके उम्र बढ़ने के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकती हैं। क्योंकि आयुर्वेद की अधिकांश जड़ी-बूटियां एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होती हैं जो शरीर में मुक्त कणों (Free radicals) को नुकसान पहुंचाने वाले सेल्स के विकास को रोकती हैं।


देसी घी



घी खाने के कई सेहत लाभ हैं। कुछ लोग वेट लॉस की प्लानिंग के चलते देसी घी का सेवन बंद कर देते हैं लेकिन आयु्र्वेद घी को जवान रखने वाला सर्वश्रेष्ठ आहार मानता है। ऐसे में यदि आप खुद को लंबे समय तक जवान देखना चाहते हैं और सफेद बाल नहीं चाहते तो घी का सेवन कीजिए।

इसे रोजाना खाली पेट एक गिलास गुनगुने पानी में मिलाकर नियमित रूप से पीने से वजन कम होता है। इसे रोजाना पीने से मेटाबॉलिज्म तेज हो जाता है और खाली पेट एक चम्मच देसी घी खाने से बाल भी काले रहते हैं।

शंखपुष्पी

आयुर्वेदिक दवाओं में शंखपुष्पी का सेवन बड़े पैमाने पर किया जाता है। शंखपुष्पी की प्रकृति ठंडी होती है और यह स्वाद में कसैली होती है। यह मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अमृत का काम करती है। शंखपुष्‍पी को वैष्‍णव, विष्‍णुकांता और विष्‍णुगंधी जैसे कई नाम से भी जाना जाता है। यह आपको अस्थमा, बवासीर, मिर्गी, डायबिटीज जैसे कई बीमारियों से बचाती है और लंबी उम्र देती है। इसे पीने से आप तमाम तरह के रोगों से बच सकते हैं।

अश्वगंधा


अश्वगंधा तेजी से कोशिका पुनर्जनन और कायाकल्प में मदद करता है और बदले में बढ़ने वाली उम्र के संकतों को डिले करता है। इसके सेवन से स्किन पर कभी झाइयां या झुर्रियां पड़ती हैं। लेकिन सुनिश्चित करें कि आप इन जड़ी बूटियों का उपयोग आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की देखरेख में करते हैं। आप इसका कैप्सूल भी ले सकते हैं या फिर 2 ग्राम अश्वगंधा पाउडर को सुबह - शाम गर्म दूध या पानी के साथ भी खा सकते हैं।

आँवला

अगर आप लंबे समय तक जवान दिखना चाहते हैं और एंटी एजिंग से बचना चाहते हैं तो पिसा हुआ आंवला प्रतिदिन एक चम्मच पानी के साथ लें। इससे शरीर में स्फूर्ति आती है और ऊर्जावान रहते हैं। आंवले का पाउडर दो चम्मच गेंहू की ब्रेड या रोटी के साथ रोजाना खाने से बुढ़ापा देर से आता है।

जिनसेंग

जिनसेंग (Ginseng) भी आयुर्वेद की एक कमाल की जड़ी बूटी है। जिनसेंग का प्रयोग सेक्सुअल रोगों के इलाज में किया जाता है लेकिन अगर आप इसका सेवन करते हैं तो हमेशा जवान भी रह सकते हैं। जिनसेंग में बहुत सारे फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो त्वचा के चयापचय (skin metabolism) को उत्तेजित और सक्रिय करने में मदद करते हैं।

ये फाइटोकेमिकल्स आपको मुक्त कणों से छुटकारा पाने में भी मदद करते हैं जो आपकी त्वचा के प्रदूषण और धूप के संपर्क में आने पर जमा हो जाते हैं।

गुडुची या गिलोय हमारे त्वचा के ऊतकों (skin tissues) को पुनर्जीवित करता है और अपने एंटी इन्फ्लामेट्री गुणों के जरिए हमारी स्किन को टाइट रखता है। इसका प्रयोग स्मृति और प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। गिलोय शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालता है, ब्लड को शुद्ध करता है और बैक्टीरिया से लड़ता है।

हल्दी

कोरोना काल में हल्दी वाले दूध का सेवन काफी किया जा रहा है। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं और इम्यूनिटी भी बूस्ट होती है। लेकिन यह स्किन के लिए फायदेमंद है जिसके लेप लगाने से आप झाइयें से बच सकते हैं। हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो इसके एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रभावों (antioxidant and anti-inflammatory Effects) के लिए जाना जाता है।

गिलोय

गिलोए लिवर की बीमारी वाले लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है। यह डेंगू, स्वाइन फ्लू और मलेरिया जैसी जानलेवा बुखार के लक्षणों को कम करता है। वैज्ञानिकों ने गिलोय के पौधे में से विभिन्न प्रकार के तत्वों को पाया है जिसमें बरबेरिम, ग्लुकोसाइड गिलाइन आदि रासायनिक तत्व पाए जाते हैं।