18.12.22

अकरकरा की जड़ के औषधीय उपयोग:Akarkara jadi buti ke upyog

 



अकरकरा के पौधे के बारे में कुछ जरूरी जानकारी :-

यह पेड़ भारत में बहुत  कम पाया जाता है | यह पेड़ मुख्य रूप से अरब देश में पाया जाता है | जब बारिश का मौसम शुरू होता है तो इसके छोटे - छोटे पेड़ स्वयं ही उग जाते है |यदि इसकी जड़ को मुंह में चबाते है तो गर्मी लगने लगती है और जीभ पर लेने से जीभ जलनेलगती है | अकरकरा के पौधे को मुख्य रूप से औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है | 
इसको  अलग - अलग स्थान पर अलग - अलग नाम से जानते है |
जैसे :- संस्कृत भाषा में :- आकारकरभ
हिंदी भाषा में :- अकरकरा
पंजाबी भाषा में :- अकरकरा

इस पौधे का स्वरूप :- Akarkara herb

अकरकरा का पौधा झाड़ीदार और रोयदार होता है | इसके फूल का रंगसफेद और बैंगनी और पीला होता है | इसकी डंठल भुत ही नाजुक होती है | महाराष्ट्र में इसकीडंडी का आचार बनाया जाता है | इसके आलावा इसके डंठल का उपयोग सब्जी बनाने के लिएभी किया जाता है |

अकरकरा का एक औषधि में प्रयोग :- 

अकरकरा के पौधे के गुण :- Akarkara herb

यह बल में वृद्धि करता है | इसमें ५० % इंसुलिन की मात्रा पीजाती है | इसमें एक तत्व होता है तो एक क्रिश्टल के रूप में प्राप्त होते है | इसके उपयोग से प्रतिशाय नामक रोग का नाश होता है | यह मनुष्य की नाड़ियों को बल प्रदान करता है |

मंद्बुद्धि के लिए :- 

अकरकरा और ब्राह्मी को एक समान मात्रा में लें | इन दोनों को बारीक़पीसकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को रोजाना एक चम्मच की मात्रा में खाएं इससे मंद्बुधि तीव्रहोती है |

सिर का दर्द :- 

अकरकरा की जड़ को बारीक़ पीसकर हल्का गर्म करके लेप तैयार करें | इस लेपको सिर पर लगाने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

दंत शूल :- 

अकरकरा और कपूर को एक समान मात्रा में लेकर बारीक़ पीस लें | इस पिसे हुएचूर्ण का मंजन करने से दातों का दर्द ठीक हो जाता है | इसके आलावा अकरकरा की जड़ कोदांत से चबाने से दाड का दर्द मिट जाता है |
2. अकरकरा की जड़ का क्वाथ से कुल्ला करने से या गरागरा करने से दांत का दर्द ठीक होजाता है और साथ ही साथ हिलते हुए दांत भी जम जाते है |

अकरकरा की जड़

हकलाना :-

अकरकरा की जड़ को पीसकर बारीक़ चूर्ण बना लें | इसमें काली मिर्च और शहदमिलाकर जीभ पर मलने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर हो जाती है | अगर कोई व्यक्तिज्यादा हकलाता और या तोतला बोलता है तो उसे कम से कम 4 या 6 हफ्ते तक प्रयोग करें |

कंठ का रोग :-

अकरकरा के पत्ते को पानी में डालकर गर्म कर लें | इस पानी से कुल्ला करनेसे तालू , दांत और गले के रोग ठीक हो जाते है |


हिचकी :- Akarkara herb

अकरकरा के एक ग्राम चूर्ण को शहद के साथ चटाने से हिचकी जैसी समस्या ठीक होजाती है |

कंठ्य स्वर के लिए :-Akarkara herb

अकरकरा के चूर्ण की 250 से 400 मिलीग्राम की मात्रा में फंकी लेनेसे बच्चो का कंठ्य स्वर सुरीला हो जाता है |

अपस्मार :-Akarkara herb 

अकरकरा और ब्राह्मी को एक साथ क्वाथ बनाकर मिर्गी वाले रोगी को पिलाने से मिर्गी ठीक हो जाती है |



अकरकरा के पत्तों को सिरके के साथ पीसकर इसमें शहद मिलाकर चाटने से अपस्मार का वेगरुक जाता है |

हृदय के रोग :-Akarkara herb

अकरकरा की जड़ और अर्जुन की छाल को बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें |इन दोनों के चूर्ण को दिन में कम से कम दो बार आधा -आधा चम्मच खाने से दिल की धड़कन, घबराहट और कमजोरी में लाभ मिलता है |
सौंठ , अकरकरा और कुलंजन की 25 मिलिग्राम की मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी मेंमिलाकर उबल लें | जब इस पानी का चौथा हिस्सा रह जाये तो इसे हृदय के रोगी को पिलाने सेहृदय रोग कम हो जाता है | यदि इसे लगातार कई महीनों तक रोगी को देते है तो यह बीमारी जड़ से दूर हो जाती है |



अकरकरा के फूल

बुखार :- 

अकरकरा की जड़ को पीस लें | इस पिसे हुए चूर्ण में जैतून मिलाकर मंद अग्नि परपका लें | इस पके हुए तेल से मालिश करने से पसीना आता है जिससे तेज बुखार ठीक हो जाताहै |

साँस की बीमारी के लिए :-

अकरकरा की जड़ का चूर्ण बना लें और इस चूर्ण को किसी कपड़े मेंसे छान लें | छन्ने हुए चूर्ण को नाक से सूंघे इससे साँस का अवरोध दूर हो जाता है 

पेट का दर्द :-

अकरकरा की जड़ का पीसकर बारीक़ चूर्ण बना लें इस चूर्ण में पिपली का चूर्ण भी मिला दें इन दोनों के मिश्रण की आधे चम्मच की मात्रा को भोजन के बाद लेने से पेट का दर्दठीक हो जाता है |


मासिक धर्म :- 

अकरकरा की जड़ का क्वाथ बना लें | इस क्वाथ को सुबह - शाम पीने सेमासिक धर्म उचित प्रकार से होने लगता है |



पक्षाघात :-

अकरकरा की जड़ को बारीक़ पीसकर इसे महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ मिलता है 
अकरकरा की जड़ के चूर्ण की 500 मिलीग्राम की मात्रा को शहद के साथ लेने से पक्षाघात ठीक हो जाता है | इस दवा को रोजाना सुबह और शाम के समय खाएं |

आलस दूर करने के लिए :- 

अकरकरा की जड़ का 100 मिलीग्राम क्वाथ का सेवन करने सेआलस्य दूर हो जाता है |



अकरकरा के पत्ते

गृध्रसी :- 

अकरकरा की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी का रोगठीक हो जाता है |

इंद्री :- 

अकरकरा की 10 ग्राम की मात्रा का चूर्ण को 50 ग्राम काढ़े के रस में पीसकर लेप करने से इंद्री मोटी हो जाती है |

विशेष बात :- 

अकरकरा की मात्रा को किसी अच्छे वैद्य से पूछ कर उपयोग करें | अन्यथा हानि पंहुच सकती है |
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15.12.22

सौंफ़ खाने के फायदे और उपयोग :sounf ke nuskhe

 


 सामान्यत; सौंफ के औषधीय गुणों से लोग परिचित होते हैं| इसमें अनेक चमत्कारी औषिधीय गुण मौजूद  हैं | सोंफ के रस से कई प्रकार के एन्जाईम भी बनाये जाते हैं। भोजन के बाद माउथ फ्रैशनर के तौर पर भी इसका इस्तेमाल  किया जाता हैं। सौंफ का अचार में, मसालो में, पान में, आम की चटनी में, शरबत में, चाय में, इत्र और विभिन्न घरेलु नुस्खों आदि में पाचक के रूप में, औषधीयों में और सुगंघ के लिए, खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए कढ़ी एवं सूप में भी प्रयोग किया जाता है। और इन सब में सौंफ को विशेष स्थान हैं। सौंफ की तासीर ठंडी होती है। सौंफ का तेल भी कई प्रकार के रोगों का उपचार के लिए काम में आता है। सौंफ में कैल्शियम, सोडियम, फॉस्फोरस, आयरन और पोटेशियम जैसे महत्वपूर्ण तत्व होते हैं पेट के कई विकारों जैसे मरोड़, दर्द और गैस्ट्रो विकार, अस्थमा, कफ और खाँसी का इलाज हो सकता है और कॉलेस्ट्रोल भी काबू में रहता है। लीवर और आँखों की ज्योति ठीक रहती है। गुड़ के साथ सौंफ खाने से मासिक धर्म नियमित होता है। तवे पर भुनी हुई सौंफ से अपच के मामले में बहुत लाभ होता है।

अब सौंफ के प्रयोग से होने वाले स्वास्थ्य लाभों का विवेचन किया जाता  है-
*सौंफ को नीबू के रस में मिलाकर भोजन के बाद थोड़ा-थोड़ा खाने से भोजन पचाने में आसानी होती है और पेट का भारीपन तथा बेचैनी भी दूर होती है।
*एक गिलास पानी में दस ग्राम सौंफ में पुरानी ईमली और काला नमक मिलाकर शर्बत बनाकर पीएं। इससे पाचन शक्ति, मन्दाग्नि और कब्ज के रोग दूर होते है।
*सौंफ के रस में थोड़ी हींग डालकर पीने से पेशाब खुल कर आता है। बताशे में सौंफ के तेल की दस पंद्रह बूंदे डालकर कर सेवन करने से भी पेशाब खुलकर आने लगता है।
*रात को सौंफ पानी में भिगोकर रख दें सुबह सौंफ को छानकर चबा ले ऊपर से सोंफ के पानी को घूंट घूंट करके पीने से सभी मूत्ररोग रोग दूर होते हैं।
*सौंफ और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना कर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से शरीर को शक्ति व सफुर्ति मिलती है। इससे बुखार में भी फायदा होता है ।
*सौंफ के पत्तों का काढ़ा प्रसूता स्त्री को पिलाने से खून साफ होता है गर्भाशय की शुद्धि होती है और सभी रक्तविकार दूर होते हैं।
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सौंफ का काढ़ा बनाकर दूध में मिलाकर पीने से नींद न आना (अनिंद्रा) दूर होता है। अथवा सौंफ का काढ़ा बना कर दस पंद्रह ग्राम घी व इच्छानुसार मिश्री मिलाकर रात को सोते समय सेवन करें। इससे नींद अच्छी आती है। अथवा जब रोगी हर समय नींद में या सुस्ती में रहता है, ऐसे रोगी को सौंफ का काढ़ा बना कर थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह-शाम हफ्ते तक पिलाएं। इससे सुस्ती दूर होती है तथा जरुरत से अधिक नींद भी नहीं आती।
*सौंफ, काला नमक और काली मिर्च को 10 : 2 : 1 के अनुपात में लेकर पीस ले और सुबह-शाम खाना खाने के बाद एक चम्मच गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज और कब्जसे उत्पन्न गैस, मरोड़ व दर्द भी ठीक होता है। सौंफ और हरड़ को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। रात को खाना खाने के बाद यह चूर्ण सेवन करने से कब्ज दूर हो जाती है। अथवा बराबर का जीरा और सौंफ ले और दो दो गुना मात्रा में एलोवेरा का गूदा और सोंठ को मिलाकर पीस ले और छोटी-छोटी गोलियां बना लें और कब्ज के लिए एक गोली सुबह-शाम पानी के साथ ले। सौंफ की जड़ को सुबह-शाम सलाद के रूप में सेवन करने से कब्ज नष्ट होता है।

*सौंफ को घी में भून कर इसमें मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण हर रोज एक चम्मच 3 बार ठंडे पानी के साथ सेवन से आंव दस्त में आराम होता है। सौंफ का तेल, मिश्री में मिलाकर हर रोज तीन चार बार सेवन करने से दस्त में आंव आना बंद होता है। अथवा 4 : 2 :1 के अनुपात में सौंफ, बेलगिरी और ईसबगोल का मिश्रण बना ले इस चूर्ण के सेवन करने से आंव दस्त बंद हो जाता है। या सौंफ, धनिया और भुना हुआ जीरा ये सब बराबर मात्रा में लेकर खूब पीस ले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन बार मट्ठे के साथ सेवन करे आंव दस्त में आराम मिलेगा ।
*सौंफ और छोटी हरड़ सामान मात्रा में लेकर घी में भून लें और कुल मात्रा के बराबर मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का सेवन करने से दस्तो में आराम आता है। और लस्सी, दही या रस के साथ सौंफ का चूर्ण पीने से दस्त में आंव व खून आना बंद होता है।
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सौंफ, अजवायन और जायफल इन सब के चूर्ण को थोड़े सौंफ के रस के साथ दस्त वाले रोगी को पिलाएं आराम मिलेगा ।
*सौंफ एक चम्मच धनिया एक चम्मच, जीरा आधा चम्मच और बराबर मात्रा में एक कलि वाला लहसुन लेकर बारीख पीस लें इच्छानुसार सेंधा नमक मिलाकर एक-एक चम्मच दिन में तीन चार बार मट्ठा के साथ सेवन से बार-बार का दस्त आना ठीक हो जाता है। और शरीर में पानी की कमी भी नहीं आएगी।
*सौंफ को थोड़ा भूनकर मिश्री या शक्कर के साथ मिलाकर पीने से अथवा भुनी सौंफ, भुनी सोंठ और भुनी हरड़ 3 : 3 : 1 के अनुपात में मिलाकर खूब पीस ले। इसमें खण्ड या बूरा मिलाकर दो चम्मच दिन में 3 बार सेवन करने से दस्तो में आराम मिलता है।
*देसी गाय के दूध में थोड़ा सौंफ उबालकर प्रतिदिन तीन चार बार पिलाने से दांत आसानी से निकल आते हैं। अथवा सौंफ को पानी में उबालकर भी दिन में 3 से 4 बार बच्चे को पिलाने से दांत आसानी से निकल आते है।
बराबर का सौंफ व धनियां मिलाकर पीस लें और इसमें डेढ़ गुना घी और दो गुना मिश्री या खांड मिलाकर सुबह-शाम 25-30 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से हर प्रकार की खुजली में आराम आता है।

*बांझ स्त्रियों को सौंफ का चूर्ण घी के साथ तीन माह तक सेवन करायें। इससे स्त्री गर्भ धारण करके माँ बनती है। और मोटापा भी समाप्त होता है। कमजोर स्त्री को सौंफ और शतावरी का चूर्ण बनाकर घी के साथ तीन माह तक सेवन करायें कमजोरी के साथ साथ बाँझपन भी दूर होता है।
*गर्भपात का अंदेशा होने वाली गर्भवती महिला को सौंफ और गुलाब का गुलकन्द को 2 :1 के अनुपात में मिलाकर पानी के साथ पीसकर हर रोज नियमित पिलाने से गर्भपात की सम्भावना समाप्त हो जाती है। गर्भधारण करने के बाद से ही बच्चे के जन्म तक सौंफ का रस नियमित पीने से भी गर्भ सुरक्षित रहता है।
*सौंफ पेट साफ करने वाला, हृदय को शक्ति देने वाला, घाव, उल्टी, दस्त, खांसी, जुकाम, बुखार, अफारा, वायु विकार, रतौंधी, बवासीर (अर्श), पित्त, रक्तविकार, ज्वर, वमन (उल्टी), अनिंद्रा और अतिनिंद्रा, पेट के सभी रोग (अपच, कब्ज (अजीर्ण) दस्त, खाने के बाद तुरंत दस्त लग जाना, आंव आना, पेट का दर्द, खूनी बवासीर, पाचन, मासिक स्राव, संग्रहणी, बच्चो के दांत निकलना, खाज-खुजली, आंखों की रोशनी के लिए, दिन में दिखाई न देना, मोतियाबिन्द, बांझपन व गर्भपात, धूम्रपान, मुंह के छाले, याददास्त का कमजोर होना, अधिक भूख लगना, हिचकी आना, कान का दर्द, मुंह की दुर्गन्ध, मूत्ररोग, हकलाना, तुतलाना, बहरापन, मासिकधर्म सम्बंधी परेशानियां, प्यास अधिक लगना, गर्मी अधिक लगना, सिर का दर्द, माइग्रेन, स्तनों में दूध की कमी, नकसीरी, बेहोशी, हैजा, हृदय सम्बंधी परेशानियां, मानसिक पागलपन, नाभि का हटना (धरण) पसीना लाने के लिए शारीरिक शक्ति आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।
सौंफ की उपयोगिता:-
*सौंफ का रस दही के साथ मिलाकर हर रोज 2-3 बार सेवन करने अधिक भूख पर रोक लगती है।
सौंफ पीसकर प्रतिदिन सुबह पानी के साथ सेवन से पेट सम्बंधित सभी रोगो के लिए लाभकारी हैं।
*बदहजमी होने पर सौंफ को उबालकर छान कर गुनगुना ठंडा करके पीने से गैस एवं बदहजमी दूर होती है।
सौंफ को पीसकर सिर पर लेप कने से सिर दर्द, गर्मी व चक्कर आना शांत होता है।
*सौंफ के पत्तों का रस पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से पसीना आने लगता है।
*सौंफ का शरबत बनाकर पीने से जी का मिचलाना बंद हो जाता है और पेट की गर्मी भी शांत हो जाती है।
*पेट में वायु की शिकायत हो तो कुछ दिनों तक दाल अथवा सब्जी में सौंफ का छोंक लगा कर प्रयोग करे।
सामान मात्रा में सौंफ का रस और गुलाबजल मिलाकर पीने से हिचकी आना रुक जाती है।
सौंफ और थोड़े से पुदीने के पत्ते आधा रह जाने तक पानी में उबालें। इस पानी को ठंडा करके दिन में तीन बार सेवन करने से उल्टी होने पर या जी घबराने पर आराम आता है।
*सौंफ में लौंग डालकर पानी में उबालकर काढ़ा बनाए इसे छानकर देशी बूरा या खांड मिलकर पीने से जुकाम शीघ्र ही ठीक हो जाता है।
*सौंफ को घी में सेंक कर रख लें। जब भी धूम्रपान की तलब लगे तो इसे चबाये इससे धुम्रपान की लत धीरे धीरे छूट जाएगी।
*सौंफ और मिश्री का समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना कर रख ले। खाने के बाद इस मिश्रण के दो चम्मच सुबह शाम दो महीने तक सेवन करने से दिमागी कमजोरी दूर हो जाती है तथा मंदाग्नि भी दूर होती है।
सौंफ, धनिया व मिश्री समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर भोजन के बाद एक चम्मच लेने से हाथ-पाँव और पेशाब की जलन, एसिडिटी व सिरदर्द का उपचार हो जाता है।
*सौंफ ,धनिया और मिश्री मिलाकर दिन में दो तीन बार पानी के साथ लेंने से माइग्रेन दर्द (आधे सिर का दर्द) दूर होता है।
*बच्चों के पेट के रोगों में दो चम्मच सौंफ का चूर्ण एक गिलास पानी में एक चौथाई पानी शेष रहने तक अच्छी तरह उबाल कर काढ़ा बना ले और छानकर ठण्डा कर लें। इसे दिन में तीन-चार बार एक-एक चम्मच पिलाने से पेट का अफारा, अपच, उलटी ,प्यास, जी मिचलाना, पित्त-विकार, जलन, पेट दर्द, भूख में कमी, पेचिश मरोड़ आदि शिकायतें दूर होती हैं।
*सौंफ, जीरा और धनिये को बराबर मात्रा मिलाकर काढ़ा बनाये इसे सुबह-शाम सेवन से या सौंफ और मिश्री को पीसकर चूर्ण बना ले प्रतिदिन सुबह-शाम दूध के साथ सेवन से बवासीर के रोगो में लाभ होता है।
*सौंफ और मिश्री को पीसकर प्रतिदिन दूध के साथ सेवन से खूनी बवासीर से छुटकारा मिलता है। या सौंफ, जीरा और धनियां को मिलाकर काढ़ा बनाये इसमें देशी घी मिलाकर नियमित सेवन करने से खूनी बवासीर से निजात मिलती है।
*सौंफ रक्तशोधक एवं चर्मरोग नाशक है। खालिस सौंफ (बिना कुछ मिलाए) एक एक चम्मच सुबह शाम रोजना चबाने से या ठंडे पानी से नियमित सेवन करने से खून साफ हो जाता है और त्वचा भी साफ हो जाती है। प्यास उल्टी जी मिचलाना अजीर्ण पेट में दर्द और जलन पित्त विकार मरोडे आंव आदि में भी सौफ का सेवन बेहद लाभकारी होता है।
 
*बुखार में रोगी यदि बार-बार उल्टी करता हो तो हरी सौंफ को पीसकर उसका रस निकालकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद रोगी को पिलाएं। या सौंफ का काढ़ा बनाकर, छानकर इसमें थोड़ी सी मिश्री मिलाकर रोगी को पिलाएं तथा सौंफ के चूर्ण का सेवन करने से भी उल्टी बंद हो जाती है।
*सौंफ, कालानमक और कालीमिर्च को 10 : 2 : 1 के अनुपात में लेकर पीस ले और सुबह-शाम खाना खाने के बाद एक चम्मच गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज और कब्ज से उत्पन्न गैस, मरोड़ व पेट दर्द भी ठीक होता है। सौंफ और हरड़ को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। रात को खाना खाने के बाद यह चूर्ण सेवन करने से कब्ज दूर हो जाती है। अथवा बराबर का जीरा और सौंफ ले और दो दो गुना मात्रा में एलोवेरा का गूदा और सोंठ को मिलाकर पीस ले और छोटी-छोटी गोलियां बना लें और कब्ज के लिए एक गोली सुबह-शाम पानी के साथ ले। सौंफ की जड़ को सुबह-शाम सलाद के रूप में सेवन करने से कब्ज नष्ट होता है।
*सौंफ को घी में भून कर इसमें मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। यह चूर्ण हर रोज एक चम्मच 3 बार ठंडे पानी के साथ सेवन से आंव दस्त में आराम होता है। सौंफ का तेल, मिश्री में मिलाकर हर रोज तीन चार बार सेवन करने से दस्त में आंव आना बंद होता है। अथवा 4 : 2 :1 के अनुपात में सौंफ, बेलगिरी और ईसबगोल का मिश्रण बना ले इस चूर्ण के सेवन करने से आंव दस्त बंद हो जाता है। या सौंफ, धनिया और भुना हुआ जीरा ये सब बराबर मात्रा में लेकर खूब पीस ले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन बार मट्ठे के साथ सेवन करे आंव दस्त में आराम मिलेगा ।
*सौंफ और छोटी हरड़ सामान मात्रा में लेकर घी में भून लें और कुल मात्रा के बराबर मिश्री मिलाकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण का सेवन करने से दस्तो में आराम आता है। और लस्सी, दही या रस के साथ सौंफ का चूर्ण पीने से दस्त में आंव व खून आना बंद होता है।
*सौंफ, अजवायन और जायफल इन सब के चूर्ण को थोड़े सौंफ के रस के साथ दस्त वाले रोगी को पिलाएं आराम मिलेगा ।
*सौंफ एक चम्मच धनिया एक चम्मच, जीरा आधा चम्मच और बराबर मात्रा में एक कलि वाला लहसुन लेकर बारीख पीस लें इच्छानुसार सेंधा नमक मिलाकर एक-एक चम्मच दिन में तीन चार बार मट्ठा के साथ सेवन से बार-बार का दस्त आना ठीक हो जाता है। और शरीर में पानी की कमी भी नहीं आएगी।
*सौंफ को थोड़ा भूनकर मिश्री या शक्कर के साथ मिलाकर पीने से अथवा भुनी सौंफ, भुनी सोंठ और भुनी हरड़ 3 : 3 : 1 के अनुपात में मिलाकर खूब पीस ले। इसमें खण्ड या बूरा मिलाकर दो चम्मच दिन में 3 बार सेवन करने से दस्तो में आराम मिलता है।
*यदि जिगर या प्लीहा रोग हो जाएं तो सौंफ से काबू में लाए जा सकते हैं। पेशाब जलन के साथ आता हो तो सौंफ का चूर्ण ठंडे पानी से, दिन में दो बार लेना फायदेमंद रहता है।
*धनिया, सौंफ और मिश्री समान मात्रा में मिलाकर पीस लें इस चूर्ण का खाना खाने के बाद एक चम्मच हर रोज लगभग दो माह तक सेवन करने से हाथ परों में जलन छाती की जलन, नेत्रों की जलन, पेशाब की जलन व सिरदर्द की शिकायत दूर हो जाती है। चक्कर आना, अफरा, एसिडिटी व कमज़ोरी दूर होती है नींद नियमित होती है, नेत्र की ज्योति व याददस्त भी बढ़ती है|
*सौंफ में कॉलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने की क्षमता होती है अत: भोजन के बाद सौंफ और मिश्री अवश्य चबाये जिससे हाजमा भी दुरूस्त रहता है। लीवर और आंखों की ज्योति भी ठीक रहती है। प्रतिदिन दो से पांच ग्राम सौंफ नियमित सेवन से मोतियाबिन्द ठीक हो जाता है।
*आँखों की रोशनी की बेहतरी के लिए सौंफ, बादाम और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। सुबह-शाम इस चूर्ण का एक चम्मच पानी के साथ दो महीने तक लगातार सेवन करने से आंखों की कमजोरी दूर हो जाती है।
हरी सौंफ का रस गाजर के रस में मिलाकर तीन माह तक सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है तथा रात को न दिखाई देने (रतौंधी) वाले को भी दिखाई देने लगता है।
*कच्ची व भुनी सौंफ बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना ले दो चम्मच चूर्ण मठ्‌ठे के साथ सेवन करने से अतिसार (दस्तो) में लाभ होता है। तथा इस सौंफ चूर्ण को सुबह शाम भोजन के बाद पानी के साथ दो माह तक नियमित सेवन करने से नेत्र ज्योति में भी वृद्धि होती है।
*सौंफ और मिश्री समान भाग लेकर पीस लें। इसकी एक चम्मच मात्रा सुबह-शाम पानी के साथ दो माह तक लें। इससे आँखों की कमजोरी दूर होती है तथा नजर  तेज  होती है।
*सौंफ का चूर्ण बनाकर रात को सोते समय मिश्री मिले दूध या पानी के साथ लेने से आंखों की रोशनी बढ़ती हैं। भोजन के बाद नियमित सौंफ खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। पाचन क्रिया में सुधार आता है और मूत्र रोग भी दूर होते है।
*तवे पर भुनी हुई सौंफ के मिश्रण से अपच, एसिडिटी और दस्तो में भी बहुत लाभ होता है।
अच्छी उबली हुई एक चम्मच सौंफ को दिन में तीन बार लेने से अपच, अस्थमा, कफ और खांसी के इलाज के लिए काफी फायदेमंद है।

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सौंफ और धनिया बराबर मात्रा में कूट-छानकर मिश्री मिलाकर खाना खाने के बाद एक चम्मच लेने से कुछ ही दिनों में हाथ-पाँव की जलन में आराम आता है।
*सौंफ के चूर्ण को शकर के साथ बराबर मिलाकर लेने से हाथों और पैरों की जलन दूर होती है।
*सोंफ एक अच्छा माउथ फरसनर भी है। सौंफ खाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। सांसो को तरोताजा रखने के लिए भोजन के बाद सौंफ चबाइए। इससे पाचन क्रिया भी दुरुस्त रहती है।
*सौंफ को पानी में उबालकर मिश्री डालकर ठंडा करके दिन में दो-तीन बार पीने से प्रयोग से खट्टी डकार में भी आराम मिलता है ।
*दूध में सौंफ उबालकर, छान ले और मीठा मिलाकर सेवन से उल्टी आना बंध हो जाती है।
सौंफ तथा मिश्री को एक साथ पीसकर एक चम्मच चूर्ण दिन में दो तीन बार पानी के साथ सेवन से खूनी दस्तो में लाभ होता है।
*सौंफ को उबालकर तथा मिश्री मिलाकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाता है। तथा पेट दर्द के लिए भुनी हुई सौंफ चबाने से शीघ्र फायदा मिलता है।
*बच्चे के जन्म के बाद यदि माता के स्तनों में दूध न उतरे तो सौंफ, सफेद जीरा व मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर पीस ले इस का एक चम्मच चूर्ण दूध के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से स्तनों में दूध उतरने लगता है।
*सौंफ के पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन करने से स्त्रियों के स्तनों में दूध की कमी दूर होती है और पाचन क्रिया भी तेज होती है।
 
*सौंफ, मिश्री और शतावर को मिलाकर चूर्ण बना लें और गर्म दूध में डालकर दिन में 4 बार पीने से स्त्री के स्तनों में दूध की कमी नहीं रहती। तथा सौंफ में पिसी हुई मिश्री मिलाकर सुबह-शाम नियमित गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से भी स्त्री के स्तनों में दूध बढ़ जाता है।
*गोरा व सुंदर बच्चे की चाह रखने वाली गर्भवती माता को गर्भावस्था के बाद से प्रतिदिन भोजन के बाद सुबह शाम सौंफ चबाना चाहिए। प्रतिदिन सौंफ और मिश्री नियमित रूप से चबा चबाकर खाने से खून और रंग दोनों साफ होते हैं।
*सौंफ को उबालकर काढ़ा बना लें। इसमें थोडा सेंधा या कालानमक मिलाकर छान लें। और इसका प्रतिदिन सेवन करने से पेट की गैस, अफारा, मरोड और दर्द सब ठीक हो जाता है। यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी बहुत लाभदायक है।
*बेल पत्थर का गूदा और सौंफ का सुबह शाम सेवन से अजीर्ण मिटता है तथा अतिसार (दस्तों) में लाभ होता है।
*ग़ुड में पिसी सौंफ, मिलाकर एक सप्ताह तक रोज खाने से पेट की नाभि का अपनी जगह से खिसकना रुक जाता है।
*बारबार मुंह में छाले होने पर सौंफ का काढ़ा बना कर इसमें चुटकी भर भुनी फिटकरी मिलाकर दिन में दो तीन बार गरारे करें। सौंफ को मुंह में चबाते रहने से भी बैठा गला साफ हो जाता है और गले में खारिश ठीक हो जाती है। सौंफ का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन भोजन के बाद चबाने से और मुंह के छालों पर लगाने से भी छाले ठीक होते हैं।
*रात्रि को कब्ज की शिकायत को दूर करने के लिए सोते समय गुनगुने पानी के साथ पिसी सौंफ का सेवन करने से कब्ज की शिकायत दूर होती है। या सौंफ को पीसकर इस को गुलकंद के साथ मिला कर सुबह-शाम भोजन के बाद खाएँ।
*गले में खराश होने पर सौंफ को मुँह में डाल कर दिन में कई बार चबाने से बैठा गला धीरे धीरे साफ हो जाता है। मुँह की दुर्गंध भी दूर हो जाती है। और पाचन क्रिया भी सुधरती है।
*सौंफ का रस और शहद मिलाकर दिन में दो तीन बार इसे चाटने से खांसी ठीक हो जाती है। या सौंफ में दुगनी मात्रा में अजवायन मिलकर पानी में उबाल लें और इसमें शहद मिलाकर छान लें। यह काढ़ा दो तीन चम्मच की मात्रा में हर घंटे के अंतर से रोगी को देने से खांसी में लाभ मिलता है। सौंफ के चूर्ण को भी शहद में मिलाकर लेंने से खाँसी में तुरंत आराम मिलता है।
*पेट में वायु की शिकायत हो तो कुछ दिनों तक दाल अथवा सब्जी में सौंफ का छोंक लगा कर अवश्य प्रयोग करे लाभ मिलेगा।
*सौंफ को पानी में उबालकर मिश्री डालकर ठंडा करके दिन में दो-तीन बार पीने से प्रयोग से खट्टी डकार में आराम मिल आता है।
*सौंफ और जीरा सामान मात्रा में लेकर हल्का हल्का भूनले और स्वादानुसार काला नमक मिलाकर चूर्ण बना लें। यह प्रभाव शाली पाचक चूर्ण है। भोजन के बाद इसे गुनगुने पानी से लें।
*सौंफ एक चम्मच, दो-दो चम्मच छोटी हरड़ और मिश्री लेकर बारीक चूर्ण बना लें। सोते समय 5 ग्राम गुनगुने पानी से लेंने से कब्ज, मंदाग्नि, गैस व आफरा में आराम मिलता है।
*यदि माहवारी स्राव अधिक हो रहा हो तो सौंफ का सेवन करने से मासिक धर्म नियमित हो जाता है।
सौंफ की गीरी और बराबर की मिश्री मिलाकर बारीक पीसकर चूर्ण बना कर सुबह शाम ताजा पानी या गर्म दूध से फंकी लें। इसके सेवन से दिमाग ठंडा और स्मरण शक्ति तेज होती है।
*सौंफ और बादाम की गिरी को पीसकर चूर्ण बना लें। रात को सोते समय गुनगुने दूध या पानी के साथ सेवन से भूलने वालो की समरण शक्ति तीव्र हो जाती है।
*घमोरियों को दूर करने के लिए एक घडे़ में रात को आधा कप सौंफ भिगों कर सुबह उसी पानी से नहाएं। इससे शरीर की गर्मी और घमोरियां ठीक हो जाती हैं।
*बुखार में कभी कभी तेज प्यास लगती है तो सौंफ को पानी में उबालकर ठंडा करके रोगी को थोडा थोडा करके पिलाए तेज प्यास शांत हो जाएगी।
*सूखी खांसी होने पर खांसी आते ही मुंह में सौंफ रखकर चबाते रहना चाहिए इससे निश्चित तोर से आराम होता है।
*सौंफ के चूर्ण का काढ़ा बना कर एक गिलास दूध और मिश्री मिलाकर रात को सोने से पहले कुछ महीनों तक नियमित सेवन से हकलाने का रोग ठीक हो जाता है।
*सौंफ के चूर्ण का काढ़ा बना कर इसको दो तीन चम्मच घी और एक गिलास गाय के दूध में मिलाकर पीने से बहरापन ठीक हो कर कानो से ठीक से सुनाई देने लगता है।
*सौंफ का काढ़ा बना लें और काढ़े को छानकर खांड मिलाकर सेवन करें। इससे पित्त बुखार ठीक होता है।
*सौंफ और पोदीना, तीन चार लौंग तथा गुलाब का गुलकन्द मिलाकर बना काढ़ा हैजा से पीड़ित रोगी को सेवन कराने से हैजे में आराम मिलता है।
*बदहजमी में बच्चे को प्रतिदिन सौंफ व पोदीना पीसकर शहद में मिलाकर चटाने से बदहजमी दूर हो जाती है।
सौंफ को रात को पानी में भिगो दें। सुबह सौंफ को इसी पानी में हल्का पीस कर छाल लें और मिश्री मिलाकर नियमित सेवन करने से हृदय रोग दूर होता है। तथा सौंफ और सूखा धनिया मोटा-मोटा कूटकर रात को एक कप गुलाब जल में भिगो दें। सुबह सौंफ व धनियां को इसी पानी में रगड़ मसल कर छान लें और किसमिस खाकर ऊपर से इस पानी को पीने से हृदय शूल में आराम आ जाता है।

सावधानी : 

सौफ की तासीर ठंडी होती है इसलिए इसका अधिक या लगातार सेवन से शरीर में जकडन हो सकती है। इसके लिए सौंफ को गर्म तवे  पर हल्का हल्का भुन लेते है या सोंठ मिलाकर सेवन करने से इस समस्या का समाधान हो जाता है |
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28.11.22

शीघ्र पतन के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार:shighra patan gharelu nuskhe

 

जल्दी वीर्य गिरने की अनुभूत चिकित्सा सुनिए इसी लिंक में 



 आमतौर पर यौन समस्याएं महिला और पुरुष दोनों को होती है, लेकिन वीर्य जल्दी बाहर निकल आना या शीघ्रपतन एक ऐसी समस्या है जो पुरुषों में बहुत सामान्य है। अक्सर पाया गया है कि ज्यादातर पुरुष जोश में जल्दी वीर्य गिरने की समस्या से परेशान रहते हैं। चूंकि जल्दी स्खलित हो जाने से पत्नी या पार्टनर को बेहतर शारीरिक सुख प्राप्त नहीं हो पाता है, इसलिए यह समस्या पुरुषों की मर्दानगी पर भी सवाल उठाती है।वीर्य का जल्दी बाहर निकल आना या शीघ्रपतन एक ऐसी समस्या है आप अपने साथी के साथ संभोग करते समय एक मिनट से भी कम समय में या बहुत जल्दी स्खलित हो जाते हैं और अपने साथी को यौन संतुष्टि प्रदान नहीं कर पाते और वह सेक्स का आनंद नहीं ले पाती है। 
जल्दी स्खलित होने की समस्या काफी शर्मनाक मानी जाती है और यह शादीशुदा जीवन को भी प्रभावित करती है।
 होमियोपैथिक एक लक्षण चिकित्सा-पद्धति है । इस पद्धति में रोग के नाम के अनुसार नहीं, अपितु रोगों के लक्षण के आधार पर चिकित्सा की जाती है । शीघ्रपतन premature ejaculation के लक्षणों में निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियाँ लाभकारी होती हैं –


लाइकोपोडियम –

 ये ध्वजभंग की मुख्य औषध है । जननेन्द्रिय की कमजोरी, जिन युवकों ने अधिक गुप्त-पाप (व्यभिचार) किये हो तथा उनकी जननेद्रिय क्लान्त हो गयी हो, अत्यधिक मैथुन तथा अप्राकृतिक मैथुन के कारण लिंगेन्द्रिय में उत्तेजना या कड़ापन न आना अथवा थोड़ी देर के लिए आना, शीघ्रपतन आदि लक्षणों में उपयोगी है । विशेषकर वृद्धों के लिए बहुत लाभकारी है ।

ग्रैफाइटिस

 प्रचण्ड कामोत्तेजना, रात्रिकालीन स्वप्नदोष, लिंगोतेजना इतनी कड़ी होना कि लिंग-प्रवेश के तुरन्त बाद ही वीर्य-स्खलन premature ejaculation  हो जाए अथवा संगमेच्छा का अभाव एवं लिंग में कड़ापन न आना । कमजोर लिंगोद्रेक के साथ स्वप्नदोष, गुप्त-दुराचार (हस्तमैथुन) आदि तथा अतिरिक्त काम-तृप्ति के कारण ध्वजभंग, लिंगमुण्ड पर कटे घाव तथा खाल उधड़ जाना, लिंग की शोथ (सूजन) तथा पुराने सुजाक के लसदार-चिपचिपे स्राव आदि लक्षणों में।

फास्फोरस 6, 30 –

 प्रचण्ड कामेच्छा, बार-बार, लिंगोद्रेक होना, दिन-रात लिंग में दर्द होना, बिना अश्लील स्वप्न देखे ही रात में स्वप्नदोष हो जाना, नमक के अत्यधिक व्यवहार के कारण इन्द्रिय दौर्बल्य, अत्यधिक उत्तेजना तथा गुप्त व्यभिचार के बाद ध्वजभंग,
दिन-रात बारम्बार पतले, लसदार वर्णहीन तरल पदार्थ का मूत्र-मार्ग से स्राव, मेरुदण्ड के रोग के साथ अत्यधिक कामोत्तेजना, मैथुन के समय वीर्य का शीघ्र स्खलित  premature ejaculation  हो जाना आदि लक्षणों में ।

सेलिनियम 30 – 

लिंगेन्द्रिय की असीम दुर्बलता, प्रबल कामेच्छा होने पर भी लिंग में कड़ापन न आना अथवा लैंगिक-क्रिया का असन्तोषपूर्ण अथवा सम्पूर्ण न होना, बार-बार वीर्य-स्राव, बिना कामेच्छा के ही प्रात:काल लिंगोतेजना, परन्तु सहवास की चेष्टा करने पर लिंगेन्द्रिय का शिथिल हो जाना, जननेन्द्रिय में खुजली तथा सुरसुरी, नींद में चलते समय, पाखाने के समय अथवा अनजाने में लिंग से गोंद जैसा लसदार पदार्थ निकलना आदि लक्षणों में ।

सीपिया – 

पुरुषों का इन्जेक्शन के कारण रुके हुए पुराने प्रमेह का, मूत्र-नली से अत्यधिक पीला अथवा दूध जैसा स्राव अथवा अन्तिम बूंद दर्द रहित होना, मूत्रेन्द्रिय से रात के समय स्राव तथा प्रात:काल मूत्र-नली का मुख आपस में सट जाना, बहुत दिनों तक बीमारी बने रहना अथवा बारम्बार वीर्यस्राव के कारण कामेद्रिय का दुर्बल हो जाना । कामेच्छा का घट जाना अथवा कामेच्छा के प्रति अरुचि आदि लक्षणों में ।

फास्फोरिक एसिड – 

युवको की अत्यधिक कामलिप्सा तथा गुप्त-पाप (हस्तमैथुन, व्यभिचार आदि) के कारण कमजोरी, ध्वजभंग के साथ अचैतन्यता जैसी अवस्था, मानसिक अवसन्नता, शारीरिक रूप से स्वस्थ्य होने पर भी मानसिक क्षीणता, सम्पूर्ण शरीर में अत्यधिक क्लान्ति, इन्द्रिय-शैथिल्य, लिंगोद्रेक न होना, संगम से अनिच्छा, काम-वासना का नाश, आलिंगन काल में ही लिंगेन्द्रिय का शिथिल हो जाना तथा सम्पूर्ण क्रिया न कर पाना आदि लक्षणों में यह औषधि हितकर सिद्ध होती हैं ।

सल्फर –

 जननेन्द्रिय पर उदभेद, खुजली, जननेन्द्रिय के पास बहुत पसीना होना, जननेन्द्रिय की ठण्डक, पुरुषों में ध्वजभंग, कामेच्छा के समय जबरदस्त खाँसी उठना, लिंग में भरपूर कड़ापन न आना व योनि प्रवेश के पूर्व ही अथवा प्रवेश करते ही बहुत जल्दी वीर्य स्खलित  premature ejaculation  हो जाना, जननेन्द्रिय से बहुत दुर्गन्ध आना आदि लक्षणों में 
जिंकम मेटालिकम – बहुत अधिक काम के कारण रोगी का क्लान्त तथा उत्तेजनाशील होना तथा इसी कारण शीघ्रपतन के कारण होने पर इस औषध का सेवन करें ।

बर्बेरिस –

 गठिया प्रकृति वाली स्त्री के लिए यह औषध सर्वोत्तम है, जिसे सहवास-काल में वेदना होती है और पुरुष-संग की इच्छा नहीं होती ।कामोत्तेजना या तो देर से होती है अथवा होती ही नहीं, इससे उसे अवसन्नता भी आ जाती है । स्त्री की मूत्र-नली में जलन, योनि-पथ में जलन का दर्द आदि लक्षणों में।

कैलेडियम – 

स्त्रियों की जननेन्द्रिय में खुजली, जिसके साथ अस्वाभाविक उत्तेजना भी जाती रहती है । पुरुषों में, शिथिल लिंग के साथ भयानक कामेच्छा, प्रात:काल अर्द्ध-निद्रित अवस्था में लिंगोतेजना, जो जगते ही चली जाती हो, कामवासना के खूब जाग्रत होने पर भी शक्ति का न रहना, बिना इच्छा के स्वतः ही लिंगोतेजना, कड़ापन व नपुन्सकता तथा शीघ्रपतन  premature ejaculation  के लक्षणों में। कार्बोबेजिटेबिलस –

 पुरुष तथा स्त्री दोनों की जननेन्द्रिय में कमजोरी तथा शिथिलता, पुरुष-लिंग का झूल पड़ना, स्त्री-योनि की शिथिलता, ठण्डी तथा पसीने से भरी स्त्री-जननेन्द्रिय, जिससे अपने आप तरल रस रिसता रहता हो । यह औषध स्त्रियों के लिए अधिक उपयोगी है ।

कार्बोनियम सल्फ्यूरेटम – 

मूत्रनली से पुराने सूजाक जैसा स्राव, मूत्राशय के कष्ट, मूत्रनली में वेदना, सम्पूर्ण ध्वजभंग, लिंगमुण्ड का प्रदाह, अण्डकोष में दर्द, जननेन्द्रिय में खुजली, जननेन्द्रिय की शिथिलता, सहवास के समय अतिशीघ्र स्खलित हो जाना, रात में स्वप्नदोष, कामेन्द्रियों का सिकुड़ जाना, कामेच्छा का अभाव आदि लक्षणों में इस औषधि का सेवन करें ।

कोनियम मेकुलेटम 3 – 

पुरुषों की रमणशक्ति का दुर्बल पड़ जाना, ध्वजभंग, प्रचण्ड कामेच्छा रहने पर भी लिंग का उत्तेजित न होना, रात्रि में बिना स्वप्न के ही वीर्यस्राव, अत्यधिक रमणइच्छा होने पर भी सम्पूर्ण अथवा आंशिक, ध्वजभंग, दर्द भरा वीर्यस्राव तथा भारी वेदनापूर्ण लिंगोद्रेक, लिंगोद्रेक होने पर छुरी से काटने जैसा दर्द, विधुर तथा स्त्री प्रसंग के अनभ्यस्त पुरुषों की दबी हुई कामेच्छा का दुष्परिणाम, शीघ्रपतन के लक्षण में दें ।

ऐग्नस कैक्टस Q –

 लिंग में कमजोरी, परन्तु कामेच्छा का अधिक होना, मल-त्याग के समय जोर लगाने से अथवा नींद में वीर्य स्खलन, एकदम मानसिक अवसन्नता, कमजोर तथा अनमनेपन का भाव आदि लक्षणों में इसके मूल अर्क को 5 से 10 बूंद तक की मात्रा में सेवन करें ।

नूफर लूटिया –

 कामूक वार्तालाप एवं सामान्य उत्तेजना से ही वीर्य स्खलित हो जाना तथा स्वप्नदोष के साथ कमजोरी आने के लक्षणों में ।

कैल्केरिया कार्ब 6 –

 अत्यधिक मैथुनेच्छा  परन्तु लिंग में कड़ापन आने से पूर्व ही वीर्य का शीघ्र स्खलित  premature ejaculation हो जाना, सम्पूर्ण शरीर में दर्द तथा कमजोरी के लक्षणों में।

प्लैटिना 6 – 

युवावस्था के आरम्भ में ही अत्यधिक शुक्रक्षय तथा हस्तमैथुन के दुष्परिणाम स्वरूप कामेच्छा न होने पर भी लिंग में कड़ापन होना तथा वीर्य का शीघ्र स्खलित हो जाना आदि लक्षणों में इस औषधि का सेवन करें ।

नक्सवोमिका 3x, 30 – 


थोड़े ही कारण से कामोत्तेजना । प्रातः नींद खुलने पर अस्वाभाविक लिंगोद्रेक, अश्लील स्वप्न देखने के बाद स्वप्नदोष, कमजोरी, बेचैनी, मेरुदण्ड में जलन आदि लक्षण प्रतीत होने पर दें ।

थूजा Q –

 अत्यधिक शुक्र-क्षरण की यह उत्तम औषधि है । विशेषकर सूजाक के कारण उत्पन्न हुए उपसर्गों में लाभप्रद है । मात्रा 4 बूद ।

बैल्लिस पेरेनिस Q –

 धातु-दौर्बल्य की यह उत्तम औषध है । हस्तमैथुन के कारण उत्पन्न हुए इस रोग में यह औषध विशेष लाभ करती है । मात्रा-5 बूंद, दिन में दो बार नित्य सेवन करें ।
उक्त औषधियो के अतिरिक्त लक्षणानुसार निम्नलिखित औषधियाँ भी उपयोगी सिद्ध होती हैं –

बैराइटा-कार्ब, पिक्रिक-

 एसिड, स्टैफिसेग्रिया, डिजिटेलिस, आर्निका, कैनाबिस-सैट, एसिड फास्फोरिक, चायना, कैन्थरिस, पल्स, इग्नेशिया, आर्जेण्ट-मेट, सिलिका, व्यूफो, कैल्के-फॉस, लैकेसिस, नेटूम, साइना आदि ।

आरम मेटालिकम 3x, 200 – 

शरीर में भयंकर कामोत्तेजना का भाव, चंचलता, परन्तु फिर शीघ्र ही एक निश्चिलता की स्थिति लिंगेन्द्रिय की अत्यधिक शिथिलता, मैथुन करते ही लिंग का ढीला पड़ जाना, हस्तमैथुन के परिणाम आदि लक्षणों में । यह औषध स्त्रियों के लिए बहुत उपयोगी है ।

प्लाटिनम –

 अत्यधिक उत्तेजना, जिसके कारण हस्तमैथुन आदि करने पड़ें, कामोत्तेजना के कारण उत्पन्न अपस्मार, असह्य कामोत्तेजना तथा जननेन्द्रिय में लगातार सुरसुरी, अत्यधिक कामोत्तेजना के कारण शीघ्रपतन के लक्षण में।

शीघ्रपतन के  घरेलू आयुर्वेदिक उपाय 

शतावरी : 

यह एक आयुर्वेदिक औषधि है और इसका इस्तेमाल कई तरह की बीमारियों के इलाज में किया जाता है। खासतौर पर यह सेक्स से जुड़ी समस्याओं के इलाज में बहुत अधिक फायदेमंद है। आयुर्वेद में शतावरी के फायदों के बारे में विस्तार से बताया गया है। शतावरी के नियमित सेवन से शीघ्रपतन के मरीजों को जल्दी आराम मिलता है।.
खुराक : रोजाना एक चम्मच शतावरी चूर्ण
सेवन का तरीका : आधा चम्मच शतावरी चूर्ण को दिन में दो बार शहद या दूध के साथ मिलाकर खाएं।

गोक्षुर :

आयुर्वेद में बताया गया है कि गोक्षुर एक ऐसी जड़ी बूटी है जो वात पित्त कफ तीनों को नियंत्रित रखने में मदद करती है।गोक्षुर का इस्तेमाल मुख्य रुप से यौन शक्ति बढ़ाने और शीघ्र स्खलन जैसी बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसके सेवन से मांसपेशियों में ताकत आती है और टेस्टोस्टेरोन का लेवल बढ़ता है।
खुराक : रोजाना एक चम्मच गोक्षुर चूर्ण
सेवन का तरीका : आधा चम्मच गोक्षुर चूर्ण को घी और चीनी के साथ मिलाकर दिन में दो बार खाएं।
 
केसर : 

केसर के मुख्य फायदों से तो सभी भलीभांति परिचित है लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि केसर में कामोत्तेजक गुण भी होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार केसर को दूध के साथ मिलाकर पीने से शीघ्रपतन की बीमारी ठीक हो जाती है। इसके अलावा केसर के नियमित सेवन से सेक्स पॉवर और कामेच्छा बढ़ती है।
खुराक : रोजाना 5-7 केसर के रेशे (Styles)
सेवन का तरीका : 5-7 केसर के रेशे को दूध में उबालकर रात में सोने से पहले पिएं। यह शरीर की ताकत बढ़ाने वाली जड़ी बूटी है। शीघ्र स्खलन के आयुर्वेदिक दवा के रुप में इसका इस्तेमाल प्रमुखता से किया जाता है। इसके अलावा यह वीर्य बढ़ाने और नपुंसकता दूर करने के इलाज में भी इस्तेमाल की जाती है। कई डॉक्टरों का भी मानना है कि शीघ्रपतन के लिए यह एक अचूक औषधि है। आप मकरध्वज का सेवन भष्म या वटी के रुप में कर सकते हैं। इसकी मात्रा या खुराक की अधिक जानकारी के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह लें।
खुराक : इसकी खुराक मरीज की वर्त्तमान स्थिति पर निर्भर करती है इसलिए खुराक के लिए डॉक्टर की सलाह लें।
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सेवन का तरीका : 

डॉक्टर द्वारा बताए गये निर्देशानुसार ही इसका सेवन करें।

 मुलेठी :

 अधिकतर लोग मुलेठी का इस्तेमाल खांसी-जुकाम या गले की खराश दूर करने के लिए करते हैं लेकिन आपको जानकार हैरानी होगी कि शीघ्रपतन के इलाज में भी आप मुलेठी का इस्तेमाल कर सकते हैं। आयुर्वेद में मुलेठी को वात-पित्त नाशक और शुक्रवर्धक माना गया है। मुलेठी का इस्तेमाल शीघ्रपतन रोकने के घरेलू उपाय के रुप में किया जाता है।
खुराक : रोजाना एक चम्मच मुलेठी चूर्ण
सेवन का तरीका : शीघ्रपतन दूर करने के लिए रोजाना आधा चम्मच मुलेठी चूर्ण को दूध या शहद के साथ मिलाकर सेवन करें।
अगर ऊपर बताए गए किसी भी आयुर्वेदिक औषधि के सेवन के दौरान आपको किसी तरह की परेशानी होती है तो तुरंत नजदीकी डॉक्टर से परामर्श लें। 

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