28.2.23

कनेर के फुल के आयुर्वेदिक उपयोग :Uses of kaner flowers




  कनेर जिसे कई लोग कनैल के नाम से भी जानते है, बता दे की इसका पौधा सम्पूर्ण भारत में करीब हर जगहों पर पाया जाता है। आपने अगर ध्यान दिया होगा तो देखा होगा की कनेर का पौधा लगभग हर मंदिरों में, उद्यान में, घर और राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारों पर दिख जाते होंगे। आपको बता दे की कनेर का पौधा तीन अलग अलग प्रजाति होती है जिसमे लाल, सफेद और पीले रंग के कनेर के फूल होते हैं।
यह एक सदाबहार फूल है मगर इसके साथ ही इस पौधे में बहुत से औषधीय गुण भी पाये जाते है जिसकी जानकारी बहुत कम ही लोगों को होती है। जैसे आपको बता दे की यदि आपको कोई विषैला जीव जैसे बिच्छू काट ले तो उस स्थिति में सफेद कनेर के फूल की जड़ को घिसकर डंक के स्थान पर लेप करने या इसके पत्तों का रस पिलाने से सांप या बिच्छू का जहर उतर जाता है।
 जिनके शरीर के घाव जल्दी नहीं भरते हैं, बता दे की इसके लिए कनेर के सूखे हुए पत्तों का चूरन बनाकर घाव पर लगाने से काफी आराम मिलता है। इसके साथ ही आपको बता दे की यदि आप फोड़े फुंसियां से परेशान हैं तो कनेर के लाल फूलों को पीसकर उसका लेप बना लें और इस लेप को फोड़े-फुंसियों पर कम से कम 2-3 बार रोजाना लगाएं। ऐसा करने से आप देखेंगे कि आपकी फोड़े और फुंसियां ठीक हो जाएंगी।


अगर आप हर रोज कनेर के सफेद फूल वाले पौधे की डंठल से 2 बार दातुन करते है तो आपके डाटों में हो रहा दर्द ठीक हो जाता है साथ ही आपके दांत भी मजबूत रहते हैं। इसके अलावा आपको बता दे की सफेद और लाल कनेर के फूल या पीले रंग वाले कनेर के फूल के पौधे के पत्ते को दूध में पीसकर सिर में लगाने से बालों का सफेद होना एकदम से रुक सा जाता है और बाल काफी स्वस्थय भी हो जाते है।

नेत्र रोग

आँखों के रोग को दूर करने के लिए पीले कनेर के पौधे की जड़ को सौंफ और करंज के साथ मिलाकर बारीक़ पीसकर एक लेप बनाएं | इस लेप को आँखों पर लगाने से पलकों की मुटाई जाला फूली और नजला आदि बीमारी ठीक हो जाती है |


सिर दर्द

कनेर के फूल और आंवले को कांजी में पीसकर लेप बनाएं | इस लेप को अपने सिर पर लगायें | इस प्रयोग से सिर का दर्द ठीक हो जाता है |

सफेद कनेर के पौधे के पीले पत्तों को अच्छी तरह सुखाकर बारीक़ पीस लें | इस पिसे हुए पत्ते को नाक से सूंघे | इससे आपको छीक आने लगेगी जिससे आपका सिर का दर्द ठीक हो जायेगा |

उपदंश

यदि किसी व्यक्ति को घाव हो जाते है तो सफेद कनेर के पौधे की जड़ को पानी में पीसकर लगाने से उपदंश के घाव ठीक हो जाते है |
पक्षघात के रोग में
सफेद कनेर के पौधे की जड़ की छाल , सफेद गूंजा की दाल तथा काले धतूरे के पौधे के पत्ते आदि को एक समान मात्रा में लेकर इनका कल्क तैयार कर लें | इसके बाद चार गुना पानी में कल्क के बराबर तेल मिलाकर किसी बर्तन में धीमी आंच पर पकाएं | जब केवल तेल रह जाये तो किसी सूती कपड़े से छानकर मालिश करें | इससे पक्षाघात का रोग ठीक हो जाता है |
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22.2.23

अफारा वायु विकार का घरेलू इलाज:Afara Vayu vikar ilaj




  गलत खान-पान और लापरवाही के कारण पेट में दूषित वायु इकट्ठा हो जाती है, जो अफारा पैदा करती है। अफारा होने पर पेट भारी हो जाता है इससे पेट दर्द बेचैनी और कभी-कभी मितली आने लगती है। पेट में भारीपन महसूस होता है, एसिडिटी एवं वमन आदि की शिकायत हो जाती है। पेट से जुड़ी कई समस्याओं को घरेलू उपचार के जरिए ठीक किया जा सकता है। पहले जानिए क्यों होती है खाना खाने के बाद ब्लोटिंग? एक्सपर्ट के मुताबिक, पेट के एब्डोमिनल एरिया में सूजन आने के कारण गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में बड़ी मात्रा में हवा या गैस जमा हो जाती है। इसके अलावा भोजन के बाद जब शरीर भोजन को पचाता है, तब अत्यधिक मात्रा में गैस पैदा होती है।
वायु विकार का प्रमुख कारण अधिक मात्रा में गरिष्ठ भोजन है। इसके अतिरिक्त भोजन को भली-भांति न चबाकर जल्दी-जल्दी खाने से भोजन के पाचन में समय लगता है तथा भोजन आंतों में पड़ा रहकर वायु विकार उत्पन्न करता है। बार-बार बदबूदार वायु का निष्कासन व पेट व पेट में दर्द होना वायु विकार के प्रमुख लक्षण है।

अफारा का उपचार

वायु-विकार में छाछ में पिसी हल्दी मिलाकर पीने से भी लाभ होता है। पानी में हल्दी मिलाकर पीने से भी अफारा दूर होता। यदि अफारा का कारण कब्ज है तो रोगी को हिन्गुत्रिगुल तेल नामक औषधि का सेवन दिन में एक बार खाली पेट में एक प्याला गर्म जल के साथ करना चाहिए। 9 भोजन में दही छाछ का प्रयोग करना अत्यन्त लाभदायक है।

जिन्हें गैस या एसिडिटी की समस्या बार-बार होती है उन्हें पानी का भरपूर सेवन करना चाहिए। खासकर गुनगुना पानी पीने से सिर्फ पाचन क्रिया ही ठीक नहीं होती बल्कि, गैस भी नहीं बनती।

आहार में फाइबर को शामिल करें

पेट संबंधी समस्या होने पर अपने आहार में फाइबर को शामिल करना चाहिए। इससे कब्ज, पेट का भारीपन जैसी समस्याओं की शिकायत खत्म हो जाती है। कब्ज और अफारा की शिकायत दूर करने के लिए फाइबर से भरपूर आहार लें। लगभग एक इंच ताजा कच्चे अदरक को कद्दूकस कर लें और इसे खाने के बाद एक चम्मच नींबू के रस के साथ लें. अदरक पेट फूलने की समस्या में बहुत कारगर है. गैस की समस्या से राहत पाने के लिए अदरक की चाय पीना भी एक अच्छा घरेलू उपचार है. एप्पल साइडर विनेगर- रोज सुबह खाली पेट एक ग्लास पानी में एप्पल साइडर विनेगर मिला कर अफरा मरीज़ जरूर लें.
सोंठ, काली मिर्च व सेंधा नमक 2-2 ग्राम तथा थोड़ी-सी हींग को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की एक से 2 ग्राम मात्रा लेने पर पेट दर्द एवं अफारे में लाभ होता है।
• एक या डेढ़ चम्मच आंवले का चूर्ण पानी के साथ लेने से एसिडिटी से छुटकारा मिलता है।
• पेट दर्द और अफारा में हींग का लेप टुंडी (नाभि) पर करने से आराम मिलता है।
• जिन्हें पेट दर्द, अफारा, गैस या फिर डाइजेशन की समस्या है उन्हें 10 ग्राम शहद में 3 ग्राम अजवाइन (बारीक पीसकर मिला दें) मिलाकर पीना चाहिए। ऐसा करने से कुछ ही देर में इस समस्या में राहत मिलती है।
• हींग, सेंधा नमक, पीपल का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण लें और सभी को समान भाग में मिलाकर लेप तैयार करें और पेट पर लगाएं। ये पेट दर्द और अफारा का उत्तम इलाज है।

फूलना कौन सी बीमारी का लक्षण है?

  यह हेपेटाइटिस, अत्यधि‍क अल्कोहल का सेवन, दवाईयां या फिर लिवर कैंसर के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। 
आंत की समस्या - अगर पेट फूलने के साथ ही कठोर भी हो और आप उल्टी, जी मचलाना, कब्जियत जैसी समस्याओं का भी सामना कर रहे हैं, तो यह आंत की गड़बड़ी या आंत में ट्यूमर के कारण भी हो सकता है।
अफारा, पेट दर्द एवं अम्लपित्त का रामबाण आयुर्वेदिक इलाज –
 आलू को नियमित रूप से कुछ दिनों तक खाने से पेट की अम्लीयता मे लाभ होता है।प्याज की एक गाँठ महीन काटकर दही के साथ लेने से अमलपित में आराम मिलता है। इसका सेवन 1 सप्ताह तक करना चाहिए।1 ग्राम सोंठ का चूर्ण और चौथाई ग्राम हींग को सेंधा नमक के पानी के साथ सेवन करने से पेट दर्द दूर हो जाता है।सोंठ, काली मिर्च व सेंधा नमक 2-2 ग्राम तथा थोड़ी-सी हींग को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण की एक से 2 ग्राम की मात्रा लेने पर पेट दर्द एवं अफारे में लाभ होता है।
  एक या डेढ़ चम्मच आंवले का चूर्ण पानी के साथ लेने से पेट में बनने वाले तेजाब (एसिडिटी) से मुक्त पाई जा सकती है।पेट के सभी रोगों विशेषकर पित्त विकार एवं पेट दर्द में काला नमक, अजवाइन, काला जीरा व शोधित हींग मिलाकर चूर्ण के रूप में चाटना चाहिए। इसे हिंग्वाष्टक चूर्ण कहा जाता है।पेट दर्द और अफारा में हींग का लेप टुंडी (नाभि) पर करने से आराम मिलता है।10 ग्राम शहद में 3 ग्राम अजवाइन बारीक करके मिला दे और उसे पेट के रोगी को खिलाएं। 15 मिनट में पेट का दर्द, अफारा, गैस एवं बदहजमी दूर हो जाएगी।अगर पेट में पीड़ा अथवा अफारा हो तो उत्तम हींग, सेंधा नमक, पीपल का चूर्ण, काली मिर्च का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण.. सभी का समान भाग लेकर उसमें जल मिलाकर पेट पर लेप कर दें। इस उपाय से पेट का अफारा एवं पीड़ा निश्चित ही शांत हो जाएगी।असली की पतली पुल्टिस में जरा-सा कपूर मिलाकर पेट पर बांधने से पेट दर्द, अफारा और जलन शांत हो जाती है।बड़ी इलायची को पीसकर उसमें आवश्यकतानुसार मिर्च मिला लें। फिर उसे 3-3 माशे की खुराक बनाकर सुबह-शाम भोजन के बाद प्रयोग करें। पेट दर्द बदहजमी और पीत का प्रकोप नष्ट हो जाएगा।यदि भोजन के बाद अफ़रा एवं जलन महसूस हो तो मुनक्का, मिश्री तथा शहद के साथ हरड़ का सेवन करना चाहिए।
  गुड के साथ पीसी हुई लाल मिर्च खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है।मूली का नियमित सेवन कब्ज दूर करके पेट साफ करता है और एसिडिटी, खट्टी डकारे, एवं अफरे से छुटकारा मिलता है।पेट में दर्द होने और जी मिचलाने पर तुलसी और अदरक का रस मिलाकर, एक-एक चम्मच 2-2 घंटे बाद दिन में तीन-चार बार लें। इस रस को हल्का गुनगुना करके लेने से तत्काल लाभ होता है।
  अमलपित होने पर तुलसी की मंजरी, नीम की छाल, कालीमिर्च और पीपल को बराबर मात्रा मे लेकर चूर्ण बना लें। 3 ग्राम सुबह फाँककर ताजा पानी पिए। मल-मूत्र के रास्ते अम्लता और पित्त साथ-साथ निकल जाएंगे।ढाई सौ ग्राम नींबू का रस, ढाई सौ ग्राम अदरक का रस, ढाई सौ ग्राम ग्वारपाठे का रस, एवं 2-2 तोले पांचों नमक पीसकर मिला दे। इस रस को किसी सफेद कांच की बोतल या स्टील के बर्तन में 15 दिन धूप में रखें। तत्पश्चात इसकी एक-एक चम्मच खुराक सुबह-शाम लेने से अफ़रा, पेट दर्द, गैस प्रकोप, अपच एवं कब्ज आदि खत्म हो जाएगा। यदि यह पीने में तेज लगे तो थोड़ा सा पानी मिला लें।दो चम्मच नींबू के रस और एक चम्मच अदरक के रस में थोड़ी-सी शक्कर मिलाकर पीने से पेट दर्द एवं उदरशूल नष्ट हो जाएगा।
 पुदिने और नींबू का रस एक-एक चम्मच लें। अब इसमें आधा चम्मच अदरक का रस और थोडा सा काला नमक मिलाकर उपयोग करें। दिन में 3 बार इस्तेमाल करें, पेट दर्द में आराम मिलेगा।
 इसबगोल के बीज दूध में 4 घंटे भिगोएं। रात को सोते समय लेते रहने से पेट में मरोड का दर्द और पेचिश ठीक होती है।छाछ के स्वाद के अनुसार काला नमक और अजवायन का चूर्ण मिलाकर पीने से वायु विकार दूर होता है।‘कुमारी आसव’ भी लाभदायक औषधि है।
 इसे भोजन के बाद दिन में दो बार 2-2 चम्मच की मात्रा में समान भाग जल मिलाकर रोगी को पिलाना चाहिए।
इमली का गूदा छानकर हींग-जीरे के पानी में मिलाएं और सेवन करें। यह भूख बढ़ाता है।
इसमें दालचीनी, लौंग और कपूर मिश्रित कर स्वादिष्ट पेय भी बनाया जा सकता हैं ।
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15.1.23

किडनी फेल रोग की हर्बल औषधि, kidney failure herbal treatment

 



 
किडनी फेल्योर क्या है ?

     शरीर मे किडनी का मुख्य कार्य शुद्धिकरण का होता है| लेकिन किडनी के किसी रोग की वजह से जब दोनों गुर्दे अपना सामान्य कार्य करने मे अक्षम हो जाते हैं तो इस स्थिति को हम किडनी फेल्योर कहते हैं| खून मे क्रिएट्नीन और यूरिया की मात्रा की जांच से किडनी की कार्यक्षमता का पता चलता है| वैसे तो किडनी की क्षमता शरीर की आवश्यकता से ज्यादा होती है इसलिए गुर्दे को थोड़ा नुकसान हो भी जाये तो भी खून की जाच मे कोई खराबी देखने को नहीं मिलती है| जब रोग के कारण किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो जाती तभी खून की जांच मे यूरिया और क्रिएट्नीन की बढ़ी हुई मात्रा का प्रदर्शन होता है|किडनी वास्तव में रक्त का शुद्धिकरण करने वाली एक प्रकार की 11 सैं.मी. लम्बी काजू के आकार की छननी है जो पेट के पृष्ठभाग में मेरुदण्ड के दोनों ओर स्थित होती हैं। प्राकृतिक रूप से स्वस्थ गुर्दे में रोज 60 लीटर जितना पानी छानने की क्षमता होती है। सामान्य रूप से वह 24 घंटे में से 1 से 2 लीटर जितना मूत्र बनाकर शरीर को निरोग रखती है। किसी कारणवश यदि एक गुर्दा कार्य करना बंद कर दे अथवा दुर्घटना में खो देना पड़े तो उस व्यक्ति का दूसरा गुर्दा पूरा कार्य सँभालता है एवं शरीर को विषाक्त होने से बचाकर स्वस्थ रखता है।
 गुर्दों का विशेष सम्बन्ध हृदय, फेफड़ों, यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली) के साथ होता है। ज्यादातर हृदय एवं गुर्दे परस्पर सहयोग के साथ कार्य करते हैं। इसलिए जब किसी को हृदयरोग होता है तो उसके गुर्दे भी बिगड़ते हैं और जब गुर्दे बिगड़ते हैं तब उस व्यक्ति का रक्तचाप उच्च हो जाता है और धीरे-धीरे दुर्बल भी हो जाता है।गुर्दे के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसका मुख्य कारण आजकल के समाज  मे हृदयरोग, दमा, श्वास, क्षयरोग,मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोगों में किया जा रहा अंग्रेजी दवाओं का दीर्घकाल तक अथवा आजीवन सेवन है।


1. उल्टी होना   
2. भूख न लगाना  
3. थकावट और कमजोरी महसूस होना  
4. नींद की समस्या होना 
5. पेशाब की मात्रा कम हो जाना 
 6. दिमाग ठीक से काम नहीं करना 
 7. हिचकी आना 
8. मांसपेशयों मे खिंचाव और आक्षेप आना 
 9. पैरों और टखने मे सूजन आना 
 12. हाई ब्ल प्रेशर जिसे से कट्रोल करना कठिन हो|

किडनी खराब करने  वाली 10 आदतें-

1) पेशाब आने पर करने न जाना (रोकना) 
2) रोज 8 गिलास से कम पानी पीना 
3) बहुत ज्यादा नमक खाना 
4) उच्च रक्त चाप के ईलाज मे लापरवाही
 5) शुगर के ईलाज मे लापरवाही 
6) अधिक मांसाहार करना 
दर्द नाशक(पेन किलर) दवाएं लगातार लेते रहना 
8) ज्यादा शराब पीना 
9) काम के बाद जरूरी मात्रा मे आराम नहीं करना
 10) कोला , पेप्सी आदि साफ्ट ड्रिंक्स और सोडा पीना 
  हमारे गुर्दे रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों और जल को फ़िल्टर कर मूत्र के रूप में बाहर निकालने की क्रिया संपन्न करते हैं। हमारी मांसपेशियों में उपस्थित क्रिएटिन फ़ास्फ़ेटस के विखंडन से उर्जा उत्पन होती है और इसी प्रक्रिया में अपशिष्ट पदार्थ क्रिएटनीन बनता है । स्वस्थ गुर्दे अधिकांश क्रिएटनीन को फ़िल्टर कर मूत्र में निष्कासित करते रहते हैं। 
  अगर खून में क्रिएटनीन का स्तर १.५ से ज्यादा हो जाता है तो समझा जाता है कि गुर्दे ठीक से काम नहीं कर रहे हैं। इसलिये खून में क्रिएटनीन की मात्रा का परीक्षण करना जरूरी होता है। 
  अब मैं कुछ ऐसे उपाय बताना चाहूंगा जिनको व्यवहार में लाकर रोगी अपने खून मे क्रिटनीन की मात्रा घटा सकते हैं। ये ऊपाय गुर्दे का कार्य-भार कम करते हैं जिससे खून में उपस्थित क्रिएटनीन का लेविल कम होने में मदद मिलती है। क्रिएटनीन कम करने वाले भोजन में प्रोटीन, फ़ास्फ़ोरस,पोटेशियम,नमक की मात्रा बिल्कुल कम होने पर ध्यान दिया जाता है। जिन भोजन पदार्थों में इन तत्वों की अधिकता हो उनका परहेज करना आवश्यक है।
 जब उच्च प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ उपयोग नहीं किये जाएंगे तो मांसपेशियों में कम क्रिएटीन मौजूद रहेगा अत: क्रिएटनीन भी कम बनेगा। किडनी को भी अपशिष्ट पदार्थ को फ़िल्टर करने में कम ताकत लगानी पडेगी जिससे किडनी की तंदुरस्ती में इजाफ़ा होगा। याद रखने योग्य है कि क्रिएटिन के टूटने से ही क्रिएटनीन बनता है। एक और जहां उच्च क्रिएटनीन लेविल गुर्दे की गंभीर विकृति की ओर संकेत करता है वही शरीर में जल की कमी से समस्या और गंभीर हो जाती है। जल की कमी से रक्तगत क्रिएटनीन में वृद्धि होती है। 
  अत: महिलाओं को २४ घंटे में २.५ लिटर तथा पुरुषों को ३.५ लिटर पानी पीने की सलाह दी जाती है। चाय ,काफ़ी में केफ़ीन तत्व ज्यादा होता है जो गुर्दे के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है।अत: इनका सर्वथा परित्याग आवश्यक है। 
  मूत्र प्रणाली में कोई संक्रामक रोग हो जाने से भी रक्तगत क्रिएटनीन बढ सकता है। अत: इस विषय में सावधानी पूर्वक इलाज करवाना चाहिये। उच्च रक्त चाप से गुर्दे को रक्त पहुंचाने वाली नलिकाओं को नुकसान होता है। इससे भी रक्त गत क्रिएटनीन बढ जाता है। अत: ब्लड प्रेशर नियंत्रित करने के उपाय करना जरूरी है।
 नमक ३ ग्राम से ज्यादा हानिकारक है।नियमित २० मिनिट व्यायाम करने और ३ किलोमिटर घूमने से खून में क्रिएटनीन की मात्रा काबू करने में मदद मिलती है।व्यायाम और घूमने के मामले में बिल्कुल आलस्य न करें ।     मधुमेह रोग धीरे -धीरे गुर्दे को नुकसान पहुंचाता रहता है। इसलिये यह रोग भी रक्तगत क्रिएटनीन को बढाने में अपनी भूमिका निर्वाह करता है। खून में शर्करा संतुलित बनाये रखने के उपाय आवश्यक हैं। 
 प्रोटीन हमारे शरीर के ऊतकों और मांसपेशियों के निर्माण में उपयोग होता है। इससे रोगों के विरुद्ध लडने में भी मदद मिलती है। जब प्रोटीन शारीरिक क्रियाओं के लिये टूटता है तो इससे यूरिया अपशिष्ट पदार्थ बनता है। अकर्मण्य अथवा क्षतिग्रस्त किडनी इस यूरिया को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाती है। खून में यूरिया का स्तर बढने पर क्रिएटनीन भी बढेगा । मांस में और अंडों में किडनी के लिये सबसे ज्यादा हानिकारक प्रोटीन पाया जाता है।अत: किडनी रोगी को ये भोजन पदार्थ नहीं लेना चाहिये।प्रोटीन की पूर्ति थोडी मात्रा में दालो के माध्यम से कर सकते हैं।
  किडनी के सुचारु कार्य नहीं करने से खून में पोटेशियम का लेविल बहुत ज्यादा बढ जाता है। पोटेशियम की अधिकता से अचानक हार्ट अटेक होने की सम्भावना बढ जाती है। अगर लेबोरेटरी जांच में रक्त में पोटेशियम बढा हुआ पाया जाए तो कम पोटेशियम वाला खाना लेना चाहिये। 
  पाईनेपल,शिमला मिर्च,पत्ता गोभी,फूल गोभी,लहसुन,प्याज,अंडे की सफेदी,जेतुन का तेल,मछली,, खीरा ककडी,गाजर,सेव,लाल अंगूर और सफ़ेद चावल  कम पोटेशियम वाले भोजन  पदार्थ है 
  केला,तरबूज,किशमिस,पालक टमाटर, आलू बुखारा ,भूरे  चावल,संतरा,आलू का उपयोग वर्जित है।इनमे अधिक पोटेशियम पाया जाता है।लेकिन अगर पोटेशियम वांछित स्तर का हो तो इन फ़लों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

क्रोनिक किडनी फेल्योर  के कारणों का उपचार - 

*डायबीटीज और उच्च रक्तचाप  का उचित इलाज | 
*पेशाब में इन्फेक्शन का  सही उपचार| 
*किडनी में पथरी  का हर्बल उपचार जो गुर्दे की कार्यक्षमता  बढाता हो| एलौपथिक पद्धति में  किडनी फेल्योर के लिए कोई  स्पेसिफिक  मेडिसिन नहीं है और  शुगर और ब्लड  प्रेशर  नियंत्रण  पर ही ज्यादा  ध्यान देते हैं|


रोगी की किडनी कितने प्रतिशत काम रही है, उसी के हिसाब से उसे खाना दिया जाए तो किडनी की आगे और खराब होने से रोका जा सकता है :

1. प्रोटीन :

 1 ग्राम प्रोटीन/किलो मरीज के वजन के हिसाब से लिया जा सकता है। नॉनवेज खाने वाले 1 अंडा, 30 ग्राम मछली, 30 ग्राम चिकन और वेज लोग 30 ग्राम पनीर, 1 कप दूध, 1/2 कप दही, 30 ग्राम दाल 

बच्चों के रोग के नुखे 


2. कैलरी :

 दिन भर में 7-10 सर्विंग कार्बोहाइड्रेट्स की ले सकते हैं।  1 सर्विंग बराबर होती है - 1 स्लाइस ब्रेड, 1/2 कप चावल या 1/2 कप पास्ता।

3. विटामिन : 

दिन भर में 2 फल और 1 कप सब्जी लें।

4. सोडियम : 

एक दिन में 1/4 छोटे चम्मच से ज्यादा नमक न लें। अगर खाने में नमक कम लगे तो नीबू, इलाइची, तुलसी आदि का इस्तेमाल स्वाद बढ़ाने के लिए करें। पैकेटबंद चीजें जैसे कि सॉस, आचार, चीज़, चिप्स, नमकीन आदि न लें।

5. फॉसफोरस : 

दूध, दूध से बनी चीजें, मछली, अंडा, मीट, बीन्स, नट्स आदि फॉसफोरस से भरपूर होते हैं इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में ही लें।

6. कैल्शियम :

 दूध, दही, पनीर, फल और सब्जियां उचित मात्रा में लें। ज्यादा कैल्शियम किडनी में पथरी का कारण बन सकता है।

7. पोटैशियम :

 फल, सब्जियां, दूध, दही, मछली, अंडा, मीट में पोटैशियम काफी होता है। इनकी ज्यादा मात्रा किडनी पर बुरा असर डालती है। इसके लिए केला, संतरा, पपीता, अनार, किशमिश, भिंडी, पालक, टमाटर, मटर न लें। सेब, अंगूर, अनन्नास, तरबूज़, गोभी ,खीरा , मूली, गाजर ले सकते हैं।

8. फैट :

 खाना बनाने के लिए वेजिटेबल या ऑलिव आईल  का ही इस्तेमाल करें। बटर, घी और तली -भुनी चीजें न लें। फुल क्रीम दूध की जगह स्किम्ड दूध ही लें।
 
9. तरल चीजें :

 शुरू में जब किडनी थोड़ी ही खराब होती है तब सामान्य मात्रा में तरल चीजें ली जा सकती हैं, पर जब किडनी काम करना कम कर दे तो तरल चीजों की मात्रा का ध्यान रखें। सोडा, जूस, शराब आदि न लें। किडनी की हालत देखते हुए पूरे दिन में 5-7 कप तरल चीजें ले सकते हैं।

अंकुरित मूंग

10. अंकुरित मूंग किडनी खराब रोगी के लिए उत्तम आहार है| अंकुरित मूंग को भली प्रकार उबालकर जीवाणु रहित कर लेना चाहिए|

विशिष्ट परामर्श 


किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह  जीवन रक्षक सिद्ध होती है| डायलिसिस  पर   आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|

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18.12.22

फैटी लिवर का इलाज घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खों से :Fatty Liver ayurvedic ilaj



आज कल हर व्यक्ति को पेट से सम्बंधित कुछ न कुछ परेशानी लगी रहती है. यह परेशानी लीवर में गड़बड़ी की वजह से अधिक होती हैं. खान पान पर विशष ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिसकी वजह से लीवर ख़राब हो जाता है. इसमें लीवर का फैटी होना, सूजन आ जाना और लीवर में इन्फेक्शन हो जाना शामिल है. यदि हमारा खाना ठीक प्रकार सेनहीं पच रहा है या हमे पेट में किसी प्रकार की परेशानी आ रही हैं तो हमे समझ जाना चाहिए की ये लीवर की खराबी के लक्षण हैं.
 लीवर हमारे शरीर का एक प्रमुख अंग है। यह हमारे शरीर में भोजन पचाने से लेकर पित्त बनाने तक का काम करता है। लीवर शरीर को संक्रमण से लड़ने, रक्त शर्करा या ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने, शरीर से विषैले पदार्थो को निकालने, फैट को कम करने तथा प्रोटीन बनाने में अहम भूमिका अदा करता है। अत्यधिक मात्रा में खाने, शराब पीने एवं अनुचित मात्रा में फैट युक्त भोजन करने से फैटी लीवर जैसे रोग होने की संभावना रहती है। आप घर पर ही फैटी लीवर का इलाज कर सकते हैं।

फैटी लीवर होने के कारण

  आपको फैटी लीवर का इलाज करना है फैटी लीवर होने कारण का पता होना जरूरी है। इसलिए फैटी लीवर को होने से रोकने के लिए सबसे पहले आम कारणों के जान लेना जरूरी है जिससे वयस्कों के साथ बच्चों में होने के संभावनाओं को रोका जा सकता है, साथ ही घरेलू उपायों को शारीरिक अवस्था को संभाला जा सकता है।
फैटी लीवर होने के आम कारण निम्नलिखित है-

अत्यधिक शराब पीना
आनुवांशिकता
मोटापा
फैटी फूड और मसालेदार खाने का सेवन
रक्त में वसा का स्तर ज्यादा होना
मधुमेह या डायबिटीज
स्टेरॉयड, एस्पिरीन या ट्रेटासिलीन जैसी दवाइयों का लम्बे समय तक सेवन
पीने के पानी में क्लोरीन की अत्यधिक मात्रा
वायरल हेपाटाइटिस

फैटी लिवर के अन्य उपाय

लिवर को रोग व फैटी लिवर से बचाव करने के लिए निम्न उपाय अपना सकते है।
जैसे – अपने आहार में विटामिन ई का सेवन करना चाहिए।
शरीर के वजन को संतुलित करने के लिए योगा, व्यायाम करना चाहिए।
अत्यधिक चीनी का सेवन नहीं करना चाहिए।
उच्च कोलेस्ट्रॉल को कम करे।
शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।
फैटी लिवर की समस्या होने पर कैफीन यानि चाय व कॉफी नहीं पीना चाहिए।
अपने जीवनशैली में सुधार करने की आवश्कयता होती है।

लिवर में खराबी के लक्षण

लिवर की खराबी के कई लक्षण हो सकते हैं। कुछ आम लक्षण हैं जैसे –
मुंह से स्‍मैल आना।
आंखों के नीचे काले धब्बे पड़ना।
पेट में हमेशा दर्द रहना।
भोजन का सही ढंग से नहीं पचना।
 त्वचा पर सफ़ेद धब्बे पड़ना।

यूरीन या स्‍टूल का गहरा रंग।
लिवर की खराबी के कुछ अन्य भी लक्षण हो सकते हैं, जो टेस्‍ट के बाद ही पता चल पाते हैं।

घरेलू आयुर्वेदिक उपचार 

  रात को सोने से पहले दूध में हल्दी मिला कर पीयें क्योंकि हल्दी इम्‍यूनिटी बूस्‍टर होती हैं और यह हेपेटाइटिस बी व सी के कारण होने वाले वायरस को बढ़ने से रोकता हैं। इसके अलावा यह डायबिटीज, फैटी लिवर, इंसुलिन और मोटापे जैसी खतरनाक बीमारियों से भी आपकी हेल्‍प करती है।

  एक गिलास पानी में एक चम्मच एप्‍पल साइडर सिरका एवं शहद मिला कर दिन में दो से तीन बार लें। यह बॉडी में मौजूद टॉक्सिन को निकालने में हेल्‍प करता हैं। जिससे आपका लिवर हेल्‍दी रहता है। खाना खाने से पहले सेब का सिरका पीने से फॅट कम होती है।

 हल्दी एक तरह की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है जिसका उपयोग फैटी लिवर के उपचार में किया जाता है। हल्दी में एंटीसेप्टिक गुण और एंटीऑक्सीडेंट उच्च मात्रा में होता है। यदि रोजाना हल्दी का उपयोग भोजन में करते है तो फैटी लिवर का जोखिम कम होता है। इसके अलावा हेपेटाइटिस बी व सी वायरस से खतरा कम रहता है। इसलिए दूध में हल्दी मिलाकर सेवन कर सकते है। आप चाहे तो एक ग्लास गुनगुने पानी में चुटकी भर हल्दी मिलाकर सेवन करना चाहिए।

फैटी लिवर के लिए ऐसे करें अश्वगंधा का इस्तेमाल

एक गिलास पानी में एक चम्मच अश्वगंधा पाउडर को डालकर 12 घंटे के लिए रख दें। 12 घंटे बाद अश्वगंधा वाले पानी को अच्छे से उबालें।
 लहसुन एक बेहतरीन जड़ीबूटी है जो फैट को कम करने में फायदेमंद होता है। लिवर में फैट बढ़ने पर लहसुन का सेवन करना चाहिए। लहसुन में ऐसा यौगिक होता है जो नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर रोग से सुरक्षा प्रदान करता है। शरीर के अतिरिक्त चर्बी को कम करने में लहसुन उपयोगी होता है। लहसुन का उपयोग सुप व सलाद के रूप में कर सकते है। इसके अलावा सुबह खाली पेट लहसुन की कालिया का सेवन कर सकते हैं।

गाजर

गाजर में मौजूद विटमिन ए लिवर की बीमारी को रोकता है। इसका जूस लीवर की गर्मी और सूजन को भी कम करता है। लीवर सिरोसिस में पालक व गाजर का मिश्रित रस फायदेमंद साबित होता है। गाजर में इनप्लांट
फ्लेवोनॉयड्स और बीटा-कैरोटीन नामक तत्व भी पाए जाते हैं जो लीवर के सुचारू संचालन में सहयोग करते हैं।

ग्रीन टी आयुर्वेदिक उपचार में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। कुछ अध्ययन के अनुसार ग्रीन टी में कैटेचीन नामक एंटीऑक्सीडेंट होता है। यह लिवर में सूजन की समस्या को ठीक करता है। शरीर में वसा को कम करने के लिए ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए। यदि लिवर को रोगो से बचाना है तो चाय की जगह ग्रीन टी लेना शुरू कर दे।
फैटी लिवर का इलाज प्याज – प्याज एक सब्जी है जिसमे कई तरह के पोषक तत्व होता है जो स्वास्थ्य समस्या को कम करता है। आयुर्वेदिक उपचार मे प्याज के उपयोग से फैटी लिवर का उपचार किया जाता है। प्याज में एलियम और एलिल डाइसल्फाइड यौगिक होता है यह संक्रमण दूर करने में मदद करता है। कच्ची प्याज का सेवन कर फैटी लिवर को कम किया जा सकता है।

नींबू व संतरे करे फैटी लिवर का औषधी – 

नींबू और संतरे में उच्च मात्रा में विटामिन सी होता है जो शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देता है। आयुर्वेदिक उपचार में नींबू व संतरे का उपयोग फैटी लिवर की समस्या ठीक करने में किया जाता है। लिवर को मजबूत करने के लिए खाली पेट नींबू के रस का सेवन कर सकते है। इसके अलावा संतरे का सेवन कर सकते है। यह शरीर से हानिकारक पदार्थ को बाहर निकालता है और फैटी लिवर की समस्या को कम करता है।




लहसुन

लहसुन लिवर में मौजूद विषैले पदार्थों या टॉक्सिंस को हटाने में मदद करता है। वह उन एंजाइम को सक्रिय करता है जो टॉक्सिंस को हटाते हैं। इसके अलावा इसमें एलिसिन का उच्च स्तर होता है जिसमें एंटीऑक्सिडेंट, एंटीबायोटिक और एंटिफंगल गुण होते हैं। इसके अलावा इसमें सेलेनियम भी होता है जो एंटीऑक्सिडेंट की प्रक्रिया को और प्रभावी बनाता है। ये लिवर को साफ करने में सहायता करते हैं।

एवोकाडो करे फैटी लिवर का औषधी –

 आयुर्वेद के अनुसार एवोकाडो को रोजाना अपने फलो में शामिल करना चाहिए। इसमें भरपूर मात्रा में पोषक तत्व और खनिज होता है जो स्वास्थ्य की अनगिनत समस्या को दूर करता है। यह लिवर के सूजन को कम करता है साथ ही कोलेस्ट्रॉल के स्तर को सामान्य करता है। अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है और बुरे कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। एवोकाडो को नाश्ते में शामिल करे व फैटी लिवर को कम करें।
*आंवला विटामिन सी का सबसे अच्छा स्रोत हैं यह liver को कार्यशील बनाने में हेल्प करता हैं। हेल्दी लिवर के लिए दिन में 4-5 आंवले का सेवन जरूर करना चाहिए।

 
पपीता

पपीता में मौजूद बीटा कैरोटीन, कोलीन, फाइबर, फोलेट, पोटैशियम, विटामिन-ए, विटामिन-बी और विटामिन-सी शरीर के लिए एक नहीं बल्कि कई दृष्टिकोण से लाभकारी होते हैं। वहीं कच्चे पपीते में लेटेक्स (latex) और पपाइन (papain) की मौजूदगी इसे पौष्टिक बनाता है। इसलिए लिवर रोग का आयुर्वेदिक इलाज पपीते से किया जाता है।
*सेब और हरी पत्तेदार सब्जियां डाइजेस्टिव में उपस्थित टॉक्सिन को बाहर निकलने में और लिवर को हेल्दी रखने में हेल्प करता हैं।

प्याज से फैटी लिवर का इलाज


आयुर्वेद में फैटी लिवर का उपचार प्याज से करने को कहा जाता है. आयुर्वेद मानता है कि फैटी लिवर के रोगी को प्याज का सेवन करना चाहिए. फैटी लिवर डिजीज के मरीज को दिन में 2 बार प्याज खाना चाहिए. कच्चे प्याज का सेवन फैटी लिवर में फायदेमंद होता है.
  *आंवले के बारे में तो आपने सुना ही हैं लेकिन क्या भुई – आंवला के बारे में जानती हैं, शायद नहीं लेकिन यह एक ऐसी औषधि हैं जो हमारे लिवर को संपूर्ण सुरक्षा देती हैं। इसका प्रतिदिन सेवन करना चाहिए।

छाछ से फैटी लिवर का आयुर्वेदिक उपचार


संतुलित भोजन के साथ छाछ का सेवन फैटी लिवर की बीमारी में फायदेमंद होता है. भारतीय खान-पान में छाछ का विशेष स्थान है. फैटी लिवर के आयुर्वेदिक इलाज में छाछ के सेवन की सलाह दी जाती है.


 

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