19.3.22

विभिन्न रोगों मे कलमी शोरा के के उपयोग:kalmi shora

 



विभिन्न रोगों मे कलमी शोरा के के उपयोग

बवासीर -

*कलमी शोरा और रसोंत बराबर मात्रा में लेकर मूली के रस में पीस लें,यह पेस्ट बवासिर के मस्सो पर लगाने से
तुरंत राहत मिलती है।
*घोड़े के बाल से मस्से को काटकर  उस पर कलमी शोरा नींबू के रस मे मिलाकर लगाने से  मस्सा समाप्त हो जाता है| और घाव भी नहीं बनता है|

स्त्रियॉं मे सफ़ेद पानी जाना -

  आधा ग्राम कलमी शोरा और एक ग्राम का चौथा भाग  फिटकरी का चूर्ण दिन मे तीन बार पानी के साथ लेने से श्वेत प्रदर  काबू मे आ जाता है|

अगर उल्टी दस्त और पेशाब बंद हो जाये तो कलमी शोरा को पीसकर उसमे कपड़ा भिगोकर रोगी के पेडू(नाभि) पर रखने से पेशाब खुल कर आने लगता है|

पथरी मे-

कलमी शोरा, बड़ी इलायची के दाने, मलाई रहित ठंडा दूध व पानी। कलमी शोरा व बड़ी इलायची के दाने महीन पीसकर दोनों चूर्ण समान मात्रा में लाकर मिलाकर शीशी में भर लें।एक भाग दूध व एक भाग ठंडा पानी मिलाकर फेंट लें, इसकी मात्रा 300 एमएल होनी चाहिए। एक चम्मच चूर्ण फांककर यह फेंटा हुआ दूध पी लें। यह पहली खुराक हुई। दूसरी खुराक दोपहर में व तीसरी खुराक शाम को लें।दोदिन तक यह प्रयोग करने से पेशाब की जलन दूर होती है व मुँह के छाले व पित्त सुधरता है। शीतकाल में दूध में कुनकुना पानी मिलाएँ।
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14.3.22

गोदन्ती भस्म के उपयोग:godanti bhasm

 


 
गोदंती भस्म एक सुरक्षित दर्द निवारक औषधि है | गोदंती भस्म को गोदंती हरताल , घाषान , कर्पूर शिला व अंग्रेजी में Gypsum(जिप्सम) भी कहते है | गोदंती एक प्रकार का खनिज है | इसका यह नाम गोदंती = गो + दंती , यहाँ गो का आशय गाय से है व दंती का दांत से | यह दिखने में बिल्कुल गाय के दांत के जैसा दिखाई प्रतीत होता है इसलिए इसका नाम गोदंती रखा गया है | आयुर्वेद में गोदंती भस्मका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है | गोदंती भस्म का प्रयोग ज्वर पीड़ा में , सिर दर्द में , कैल्शियम पूरक के रूप में , टाइफाइड बुखार में , हड्डियों के रोग और भी विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है |

गोदंती भस्म बनाने की विधि :

गोदंती शोधन विधि : 

अच्छी गोदंती को गर्म पानी से धोकर साफ़ करके धुप में सुखाकर रख ले |

भस्म विधि :

जमीन में एक हाथ गहरा गड्डा बना उसका चौथाई भाग कंडों से भरकर उस पर गोदंती की टुकड़ों को अछि तरह बिछा दे और ऊपर कंडों से शेष भाग को भरकर आँच दे | स्वांगशीतल होने पर कंडों की राख को सावधानी से हटाकर गोदन्ती भस्म को निकाल चन्दानादि अर्क ( उत्तम चन्दन का चूर्ण, मौसमी गुलाब तथा केवड़ा, वेदमुश्क या मौलसरी और कमल के फूल सबको एकत्र कर उसमें आठ गुना पानी डालकर भबके से आधा अर्क खींचे ) इसमें या ग्वारपाठा(घीकुमारी) के रस में घोंट टिकियाँ बना धुप में सुखावें, जब टिकियाँ खूब सूख जाए तो सराव सम्पूट में बंद कर लघुपट में फूंक दे | यह स्वच्छ-सफेद और बहुत मुलायम भस्म तैयार होगी |

गोदन्ती भस्म के लाभ 

godanti bhasm ke fayde

आयुर्वेद में गोदन्ती भस्म को एक अच्छी दर्द निवारक औषधि के रूप में जाना गया है | जिसके प्रयोग से रोगी अपने दर्द से शीघ्र ही राहत पाता है |
हर प्रकार के ज्वर में शरीर का ताप कम करने में गोदन्ती भस्म का प्रयोग किया जाता है | ज्वर( बुखार) होने पर गोदंती भस्म पैरासिटामोल के रूप में कार्य करती है |
मलेरिया रोग में भी गोदंती भस्म का प्रयोग बड़े स्तर पर किया जाता है |
स्त्रियों के श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर, रक्तस्त्राव में गोदन्ती भस्म लाभ प्रदान करती है |

godanti bhasm ke fayde

सिर दर्द दूर करने में भी गोदंती भस्म का प्रयोग किया गया है |
शरीर में कैल्सियम की कमी को दूर करने में गोदंती भस्म उपयोगी है | हड्डियों की सूजन व हड्डियों की कमजोरी दूर करने में भी इसका प्रयोग बड़े स्तर पर किया गया है |
सूखी खांसी दूर करने में यह उपयोगी है
पेट में एसिड की समस्या या पेट का अल्सर दूर करने में भी इसका प्रयोग अन्य औषधियों के साथ में किया जाता है |
शरीर में कोई भी सामान्य दर्द व पीड़ा दूर करने में भी गोदंती भस्म का प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है |
कब्ज व अजीर्ण आदि रोग दूर करने में भी इसका प्रयोग किया गया है |
रोगों के उपचार में गोदंती भस्म के प्रयोग :

गोदन्ती भस्म के उपयोग :

मलेरिया बुखार में गोदंती भस्म से उपचार : 

गोदंती भस्म 2 रत्ती , फिटकरी भस्म 2 रत्ती , सफ़ेद जीरे का चूर्ण 4 रत्ती – तीनों को तुलसीपत्र -रस और शहद में मिलाकर चटाने और ऊपर से सुदर्शन अर्क 5 तोला पिलाने से मलेरिया की गर्मी दूर होकर रोगी को आराम मिलता है |

godanti bhasm ke fayde

शीत ज्वर व पारी वाले बुखार में गोदंती भस्म से उपचार : 

गोदंती भस्म 6 रत्ती में एक चावल संखिया भस्म मिला शहद के साथ दे | इसके तुरंत बाद सुदर्शन चूर्ण का क्वाथ बनाकर अथवा सुदर्शन अर्क 5 तोला पिला देने से बहुत लाभ मिलता है |

सिरदर्द के उपचार में गोदन्ती भस्म का प्रयोग :

 3 रत्ती गोदन्ती भस्म और 1 माशा मिश्री तथा 1 तोला गोघृत सब को मिलाकर दिन में तीन बार देने से रोगी को विशेष लाभ मिलता है | इसी प्रकार सूर्यावर्त, अर्धावभेदक(अधकपारी) में सूर्योदय से एक -एक घंटा पहले दो मात्रा गोदन्ती भस्म शहद के साथ देने से अवश्य लाभ मिलता है |

स्त्रियों के श्वेत प्रदर में गोदन्ती भस्म का प्रयोग :

गोदंती भस्म 6 रत्ती तथा त्रिवंग भस्म 1 रत्ती मिला शर्बत बनप्सा या मधूकाद्य्वलेह के साथ देने से उत्तम लाभ होता है | रक्त प्रदर में पूर्व मिश्रण सहित देकर ऊपर से अशोकारिष्ट या पत्रांगासव पिलाने से बहुत शीघ्र लाभ मिलने लगता है |

मात्रा व सेवन विधि :

गोदन्ती भस्म के सेवन की मात्रा रोगी की उम्र व उसके वजन के अनुसार 125 मिलीग्राम से लेकर एक ग्राम तक हो सकती है | बच्चों के लिए 65 मिलीग्राम से लेकर 250मिलीग्राम तक इसकी मात्रा हो सकती है | व्यस्क के लिए 250 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक हो सकती है |

ध्यान देने योग्य :

गोदन्ती भस्म के उपरोक्त सभी प्रयोग सिर्फ और सिर्फ आपकी जानकारी हेतु प्रस्तुत किये गये है | बिना उचित जानकारी के स्वयं से रोग का उपचार हानिकारक सिद्ध हो सकता है | गोदंती भस्म का प्रयोग एक सीमित अवधि के लिए ही किया जाना चाहिए | चिकित्सक की देख-रेख में ही इस औषधि का सेवन करना चाहिए |
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12.3.22

सेब का सिरका ,शहद,अदरक ,हल्दी मिलाकर सेवन करने के फायदे :apple cyder

  


सेब का सिरका सेहत से लेकर त्वचा तक सभी को फायदा पहुंचाता है। मगर यदि आप सेब के सिरके में शहद, अदरक का रस और हल्दी मिला लें, तो इससे मिलने वाले फायदे और भी दोगुने हो जाते हैं। आइए जानते हैं सेब के सिरके में शहद, अदरक का रस और हल्दी मिलाकर पीने से मिलने वाले फायदे.

पहले जानते हैं एप्पल साइडर ड्रिंक बनाने का तरीका...

पानी - 1 कप
सेब का सिरका - 1 टीस्पून
शहद - 1 टेबलस्पून
अदरक का रस - 1 चम्मच
हल्दी पाउडर - 1 चुटकी

 

गैस पर 1 कप पानी को गर्म होने के लिए रख दें। उसके बाद उसमें अदरक का रस और हल्दी डाल दें। ध्यान रखें पानी को लगातार चलाते रहें। कप में शहद और सेब का सिरका डाल लें। 2 मिनट तक पानी को उबालें और थोड़ा ठंडा होने के बाद कप में डाल लें। आपकी हेल्दी और बीमारियां दूर रखने वाली ड्रिंक तैयार है। आप चाहें तो इसे ठंडा करके भी पी सकते हैं।

फायदे...


वजन कम करने में मददगार


तीनों चीजों को इकट्ठा पीने से आपकी भूख पर कंट्रोल रहता है। खासतौर पर शहद में मौजूद Peptide YY आपके पाचन तंत्र को तंदरूस्त करके भूख लगने वाले हार्मोन्स को कंट्रोल में रखता है।


जी मचलाना


कई बार मां बनने वाली औरत का मन खराब होता है, ऐसे में सेब के सिरके में शहद और अदरक का रस मिलाकर पीने से लाभ मिलता है। जिन लोग की कीमोथेरेपी हो रही है या फिर किसी भी अन्य वजह से जी घबराए तो आप सेब के सिरके को आधा गिलास गुनगुने पानी में डालकर 1 चम्मच शहद  और अदर का रस डालकर पिएं। मन घबराना ठीक हो जाएगा।


लिवर की करे सफाई


सेब का सिरका शरीर में मौजूद टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करता है। शरीर से सारी गंदगी बाहर निकालने का काम लिवर का होता है, जिसमें सेब का सिरका, शहद और हल्दी उसकी मदद करते हैं। अगर आप हर रोज सुबह सेब के सिरके में ह्लदी और शहद मिलाकर पिएं तो आपका लिवर हमेशा अच्छे से काम करेगा।


इंटेस्टाइन के लिए बेहतरीन ड्रिंक


आपके गट का हेल्दी रहना बहुत जरूरी है। इन चारों चीजों का मिश्रण आपके गट की लाइफ बढ़ने में मदद करता है, यह बॉडी में गुड बैक्टीरिया को जन्म देता है। जो आपकी आंतों की सफाई में शरीर की मदद करता है।


मतली से राहत

पुराने जमाने से हल्दी और अदरक मतली के इलाज और रोकथाम में इस्तमाल होता रहा है. उसका कारण अदरक में पाया जानेवाला जिंजरोल है जो चक्कर, मतली और उल्टी की समस्या को कम कर सकता है. ये प्रेगनेन्ट महिला या कीमोथेरेपी से गुजरने वाले मरीजों में उल्टी के लक्षणों को राहत देनेमें के लिए बिल्कुल मददगार है. इसके अलावा, हल्दी में मौजूद करक्यूमिन असर को सुधारेगा

घुटनों का दर्द या आर्थराइटिस


अदरक का रस शरीर के जोड़ों में पैदा होने वाली सूजन को कम करने में मदद करता है। आर्थराइटिस की समस्या में यह आपके लिए एंटी-इंफलेमेंटरी का काम करता है, जिससे शरीर में सूजन को आराम मिलता है। अदरक का रस जोड़ों में पैदा होने वाली दर्द में भी राहत देता है, उसी तरह हल्दी भी एंटी-बायोटिक का काम करती है।


बैक्टीरिया से लड़ने में करता है मदद


इन तीनों चीजों का मिश्रण पेट में किसी भी तरह की इंफेक्शन नहीं होने देता। यह बॉडी की इम्यून पॉवर को स्ट्रांग करके शरीर को रोगों से लड़ने और बचने में मदद करता है।


डायबिटीज का खतरा करे कम


आज हर वर्ष पूरी दुनिया में 1.4 मिलियन लोग डायबिटीज का शिकार हो रहे हैं। खाने से पहले इस ड्रिंक को लेने से यह शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को कम करने में मदद करती है, खासतौर पर जब आपके भोजन में कार्बस की मात्रा अधिक हो। टाइप -1 डायबिटिक पेशेंट्स के लिए इस ड्रिंक का सेवन बहुत ही फायदेमंद सिद्ध हुआ है।


भूख कम करनेवाला

स्वस्थ सामग्रियों का ये मिश्रण बिल्कुल मददगार हो सकता है जब आप वजन कम करने की कोशिश कर रहे हों. क्योंकि ये आपकी भूख को कम करेगा, आप गैर जरूरी अस्वस्थ स्नैक्स के इस्तेमाल से बचेंगे. शहद खुद घ्रेलिन (भूख महसूस करानेवाला हार्मोन) और लेप्टिन (तृप्ति हार्मोन) को काबू करता है.
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11.3.22

अमरूद के पेड़ और फल के स्वस्थ्य लाभ : Amrud ke fayde

 



अमरूद हमारे देश का एक प्रमुख फल है. हल्के हरे रंग का अमरूद खाने में मीठा होता है. इसके अंदर सौकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे बीज होते हैं. अमरूद बेहद आसानी से मिल जाने वाला फल है. लोग घरों में भी इसका पेड़ लगाते हैं. पर बेहद सामान्य फल होने के कारण ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता है कि ये स्वास्थ्य के लिहाज से कितना फायदेमंद होता है.

अमरूद की तासीर ठंडी होती है. ये पेट की बहुत सी बीमारियों को दूर करने का रामबाण इलाज है. अमरूद के सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है. इसके बीजों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होता है. अमरूद में विटामिन सी की पर्याप्त मात्रा होती है जिससे अनेक बीमारियों में फायदा होता है.

अमरूद के औषधीय प्रयोग : 

*बवासीर (पाइल्स) :-

*सुबह खाली पेट 200-300 ग्राम अमरूद नियमित रूप से सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है।
*पके अमरुद खाने से पेट का कब्ज खत्म होता है, जिससे बवासीर रोग दूर हो जाता है।
*कुछ दिनों तक रोजाना सुबह खाली पेट 250 ग्राम अमरूद खाने से बवासीर ठीक हो जाती है। बवासीर को दूर करने के लिए सुबह खाली पेट अमरूद खाना उत्तम है। 
*मल-त्याग करते समय बांयें पैर पर जोर देकर बैठें। इस प्रयोग से बवासीर नहीं होती है और मल साफ आता है।"

*सूखी खांसी :-

 *गर्म रेत में अमरूद को भूनकर खाने से सूखी, कफयुक्त और  काली खांसी में आराम मिलता है। यह प्रयोग दिन में तीन बार करें।
*एक बड़ा अमरूद लेकर उसके गूदे को निकालकर अमरूद के अंदर थोड़ी-सी जगह बनाकर अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में भर देते हैं। इसके बाद अमरूद में कपड़ा भरकर ऊपर से मिट्टी चढ़ाकर तेज गर्म उपले की राख में भूने, अमरूद के भुन जाने पर मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद पीसकर छान लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम मिलाकर चाटने से सूखी खांसी में लाभ होता है।"



* दांतों का दर्द :- 

*अमरूद की कोमल पत्तियों को चबाने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।
*अमरूद के पत्तों को दांतों से चबाने से आराम मिलेगा।
*अमरूद के पत्तों को जल में उबाल लें। इसे जल में फिटकरी घोलकर कुल्ले करने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।

*आधाशीशी आधे सिर का दर्द) :-

 *अमरूद के पत्तों को चबाने से दांतों की पीड़ा दूर होती है। मसूढ़ों में दर्द, सूजन और आंतों में दर्द होने पर अमरूद के पत्तों को उबालकर गुनगुने पानी से कुल्ले करें।"
*आधे सिर के दर्द में कच्चे अमरूद को सुबह पीसकर लेप बनाएं और उसे मस्तक पर लगाएं।
*सूर्योदय के पूर्व ही सवेरे हरे कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर जहां दर्द होता है, वहां खूब अच्छी तरह लेप कर देने से सिर दर्द नहीं उठने पाता, अगर दर्द शुरू हो गया हो तो शांत हो जाता है। यह प्रयोग दिन में 3-4 बार करना चाहिए।"

* जुकाम :- 

रुके हुए जुकाम को दूर करने के लिए बीज निकला हुआ अमरूद खाएं और ऊपर से नाक बंदकर 1 गिलास पानी पी लें। जब 2-3 दिन के प्रयोग से स्राव (बहाव) बढ़ जाए, तो उसे रोकने के लिए 50-100 ग्राम गुड़ खा लें। ध्यान रहे- कि बाद में पानी न पिएं। सिर्फ 3 दिन तक लगातार अमरूद खाने से पुरानी सर्दी और जुकाम दूर हो जाती है।
लंबे समय से रुके हुए जुकाम में रोगी को एक अच्छा बड़ा अमरूद के अंदर से बीजों को निकालकर रोगी को खिला दें और ऊपर से ताजा पानी नाक बंद करके पीने को दें। 2-3 दिन में ही रुका हुआ जुकाम बहार साफ हो जायेगा। 2-3 दिन बाद अगर नाक का बहना रोकना हो तो 50 ग्राम गुड़ रात में बिना पानी पीयें खा लें"

 :-*रक्तविकार के कारण फोड़े-फुन्सियों का होना

 4 सप्ताह तक नित्य प्रति दोपहर में 250 ग्राम अमरूद खाएं। इससे पेट साफ होगा, बढ़ी हुई गर्मी दूर होगी, रक्त साफ होगा और फोड़े-फुन्सी, खाज-खुजली ठीक हो जाएगी।

* पुरानी सर्दी :-

3 दिनों तक केवल अमरूद खाकर रहने से बहुत पुरानी सर्दी की शिकायत दूर हो जाती है।
*शक्ति (ताकत) और वीर्य की वृद्धि के लिए :- अच्छी तरह पके नरम, मीठे अमरूदों को मसलकर दूध में फेंट लें और फिर छानकर इनके बीज निकाल लें। आवश्यकतानुसार शक्कर मिलाकर सुबह नियमित रूप से 21 दिन सेवन करना धातुवर्द्धक होता है।

* पेट दर्द :- 


*नमक के साथ पके अमरूद खाने से आराम मिलता है।
*अमरूद के पेड़ के कोमल 50 ग्राम पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर छानकर पीने से लाभ होगा।
*अमरूद के पेड़ की पत्तियों को बारीक पीसकर काले नमक के साथ चाटने से लाभ होता है।
*अमरूद के फल की फुगनी (अमरूद के फल के नीचे वाले छोटे पत्ते) में थोड़ा-सी मात्रा में सेंधानमक को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट में दर्द समाप्त होता है।
*यदि पेट दर्द की शिकायत हो तो अमरूद की कोमल पततियों को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से आराम होता है। अपच, अग्निमान्द्य और अफारा के लिए अमरूद बहुत ही उत्तम औषधि है। इन रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को 250 ग्राम अमरूद भोजन करने के बाद खाना चाहिए। जिन लोगों को कब्ज न हो तो उन्हें खाना खाने से पहले खाना चाहिए।"


* पुराने दस्त :-
 अमरूद की कोमल पित्तयां उबालकर पीने से पुराने दस्तों का रोग ठीक हो जाता है। दस्तों में आंव आती रहे, आंतों में सूजन आ जाए, घाव हो जाए तो 2-3 महीने लगातार 250 ग्राम अमरूद रोजाना खाते रहने से दस्तों में लाभ होता है। अमरूद में-टैनिक एसिड होता है, जिसका प्रधान काम घाव भरना है। इससे आंतों के घाव भरकर आंते स्वस्थ हो जाती हैं।

* मलेरिया :- 

*मलेरिया बुखार में अमरूद का सेवन लाभकारी है। नियमित सेवन से तिजारा और चौथिया ज्वर में भी आराम मिलता है।
*अमरूद और सेब का रस पीने से बुखार उतर जाता है।
*अमरूद को खाने से मलेरिया में लाभ होता है।"

*भांग का नशा :-

 2-4 अमरूद खाने से अथवा अमरूद के पत्तों का 25 ग्राम रस पीने से भांग का नशा उतर जाता है।

*मानसिक उन्माद (पागलपन) :- 

*सुबह खाली पेट पके अमरूद चबा-चबाकर खाने से मानसिक चिंताओं का भार कम होकर धीरे-धीरे पागलपन के लक्षण दूर हो जाते हैं और शरीर की गर्मी निकल जाती है।
*250 ग्राम इलाहाबादी मीठे अमरूद को रोजाना सुबह और शाम को 5 बजे नींबू, कालीमिर्च और नमक स्वाद के अनुसार अमरूद पर डालकर खा सकते हैं। इस तरह खाने से दिमाग की मांस-पेशियों को शक्ति मिलती है, गर्मी निकल जाती है, और पागलपन दूर हो जाता है। दिमागी चिंताएं अमरूद खाने से खत्म हो जाती हैं।"

*पेट में गड़-बड़ी होने पर :-

 अमरूद की कोंपलों को पीसकर पिलाना चाहिए।

* अमरूद का मुरब्बा :-

 अच्छी किस्म के तरोताजा बड़े-बड़े अमरूद लेकर उसके छिलकों को निकालकर टुकड़े कर लें और धीमी आग पर पानी में उबालें। जब अमरूद आधे पककर नरम हो जाएं, तब नीचे उतारकर कपड़े में डालकर पानी निकाल लें। उसके बाद उससे 3 गुना शक्कर लेकर उसकी चासनी बनायें और अमरूद के टुकड़े उसमें डाल दें। फिर उसमें इलायची के दानों का चूर्ण और केसर इच्छानुसार डालकर मुरब्बा बनायें। ठंडा होने पर इस मुरब्बे को चीनी-मिट्टी के बर्तन में भरकर, उसका मुंह बंद करके थोड़े दिन तक रख छोड़े। यह मुरब्बा 20-25 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है।

*आंखों के लिए :- 

*अमरूद के पत्तों की पोटली बनाकर रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। आंखों की लालिमा, आंख की सूजन और वेदना तुरंत मिट जाती है।
*अमरूद के पत्तों की पुल्टिस (पोटली) बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों की सूजन, आंखे लाल होना और आंखों में दर्द करना आदि रोग दूर होते हैं।"

आंखों के नीचे काले घेरे में अमरूद के फायदे.

ऐसे तो आपने अमरूद के पत्ते के फायदे कई सारी सुनी होंगी, लेकिन आप जानते है अमरूद के पत्तो का इस्तेमाल करके आंखों के नीचे काले घेरे को ठीक किया जा सकता है. इसके लिए अमरूद की पत्त‍ियों को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और फिर इस पेस्ट को आंखों के नीचे काले घेरे पर लगाए, इससे आंखों के नीचे काले घेरे के साथ सूजन भी ठीक हो जाते है.

Aamrud ke fayde 

*कब्ज :- 

*250 ग्राम अमरूद खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से कब्ज दूर होती है।
*अमरूद के कोमल पत्तों के 10 ग्राम रस में थोड़ी शक्कर मिलाकर प्रतिदिन केवल एक बार सुबह सेवन करने से 7 दिन में अजीर्ण (पुरानी कब्ज) में लाभ होता है।
*अमरूद को नाश्ते के समय कालीमिर्च, कालानमक, अदरक के साथ खाने से अजीर्ण, गैस, अफारा (पेट फूलना) की तकलीफ दूर होकर भूख बढ़ जाएगी। नाश्ते में अमरूद का सेवन करें। सख्त कब्ज में सुबह-शाम अमरूद खाएं।
*अमरूद को कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने से 3-4 दिन में ही मलशुद्धि होने लग जाती है। कोष्ठबद्धता मिटती है एवं कब्जियत के कारण होने वाला आंखों की जलन और सिर दर्द भी दूर होता है।
*अमरूद खाने से आंतों में तरावट आती है और कब्ज दूर हो जाता है। इसे खाना खाने से पहले ही खाना चाहिए, क्योंकि खाना खाने के बाद खाने से कब्ज करता है। कब्ज वालों को सुबह के समय नाश्ते में अमरूद लेना चाहिए। पुरानी कब्ज के रोगियों को सुबह और शाम अमरूद खाना चाहिए। इससे पेट साफ हो जाता है।
*अमरूद खाने से या अमरूद के साथ किशमिश के खाने से कब्ज़ की शिकायत नहीं रहती है।"

डायबिटीज को करे नियंत्रित

जिस तरह से अमरूद का फल डायबिटीज वालों के लिए फायदेमंद होता है, उसी तरह इसके पत्तों का पानी डायबिटीज कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं
एक अमरूद को आग में भूनकर खाने से कफयुक्त खांसी में लाभ होता है।


सर्दी-खांसी में राहत में असरदार

चूंकि अमरूद की पत्तियों में विटामिन सी और आयरन की मात्रा अधिक होती है, इसलिए अमरूद की पत्तियों का काढ़ा खांसी और सर्दी को दूर करने में मददगार होता है. अमरूद का जूस फेफड़े और गले को साफ करने में मदद करता है.

* मस्तिष्क विकार :-

 अमरूद के पत्तों का फांट मस्तिष्क विकार, वृक्क प्रवाह और शारीरिक एवं मानसिक विकारों में प्रयोग किया जाता है।

*आक्षेपरोग :- 

अमरूद के पत्तों के रस या टिंचर को बच्चों की रीढ़ की हड्डी पर मालिश करने से उनका आक्षेप का रोग दूर हो जाता है।

* हृदय :-

 अमरूद के फलों के बीज निकालकर बारीक-बारीक काटकर शक्कर के साथ धीमी आंच पर बनाई हुई चटनी हृदय के लिए अत्यंत हितकारी होती है तथा कब्ज को भी दूर करती है।

Aamrud ke fayde 

*कुकर खांसी, काली खांसी (हूपिंग कफ) :- 

*एक अमरूद को भूभल (गर्म रेत या राख) में सेंककर खाने से कुकर खांसी में लाभ होता है। छोटे बच्चों को अमरूद पीसकर अथवा पानी में घोलकर पिलाना चाहिए। अमरूद पर नमक और कालीमिर्च लगाकर खाने से कफ निकल जाती है। 100 ग्राम अमरूद में विटामिन-सी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक होता है। यह हृदय को बल देता है। अमरूद खाने से आंतों में तरावट आती है। कब्ज से ग्रस्त रोगियों को नाश्ते में अमरूद लेना चाहिए। पुरानी कब्ज के रोगियों को सुबह-शाम अमरूद खाना चाहिए। इससे दस्त साफ आएगा, अजीर्ण और गैस दूर होगी। अमरूद को सेंधानमक के साथ खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
 *एक कच्चे अमरूद को लेकर चाकू से कुरेदकर उसका थोड़ा-सा गूदा निकाल लेते हैं। फिर इस अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर भर देते हैं। इसके बाद अमरूद पर कपड़ा लपेटकर उसमें गीली मिट्टी का लेप चढ़ाकर आग में भून लेते हैं पकने के बाद इसके ऊपर से मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद को पीस लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम रोगी को चटाने से काली खांसी में लाभ होता है।

बालों झड़ने की समस्या को करे दूर

अमरूद की पत्तियां बालों का झड़ना कम कर सकती हैं या स्थिति को खराब होने से रोक सकती हैं. इसके लिए अमरूद की पत्तियां लेकर लगभग 20 मिनट के लिए पानी में उबाल लें, बाद में इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दें. सबसे पहले, अपने बालों को पानी से धो लें और फिर बालों की जड़ों पर अमरूद की पत्तियों के मिश्रण को लगाएं. *एक अमरूद को गर्म बालू या राख में सेंककर सुबह-शाम 2 बार खाने से काली खांसी ठीक हो जाती है।"

शक्ति और वीर्य वृद्धि :

अच्छी तरह पके नरम, मीठे अमरूदों को मसलकर दूध में फेंट लें और फिर छानकर इनके बीज निकाल लें। आवश्यकतानुसार शक्कर मिलाकर प्रात: नियमित रूप से 21 दिन सेवन करें। इसके सेवन से शरीर की शक्ति बढ़ती है और पुरुषों के वीर्य में वृधि होती है |

सिर दर्द :

आधे सिर के दर्द में कच्चे अमरूद को सुबह पीसकर लेप बनाएं और उसे मस्तक पर लगाएं।

बवासीर (पाइल्स ) का इलाज :

सुबह खाली पेट 200-300 ग्राम अमरूद नियमित रूप से सेवन करें। ऐसा करने से बवासीर में फायदा होता है

अमरुद खाने के नुकसान

जिन लोगो की प्रकृति शीत होती है या जिनका पाचन कमजोर है वे लोग अमरुद कम खाएं. ऐसे लोगों को यह सही तरीके से नहीं पचता और नुकसान करता है | आपने अक्सर देखा होगा कि बारिश के मौसम में अमरूद के छोटे – छोटे कीड़े पद जाते हैं, ये कीड़े यदि पेट में चले जाते है तो पेट दर्द, अफारा, हैजा जैसी परेशानियाँ हो सकती हैं। इसके बीज सख्त होते हैं और इस कारण से इनका पचना कठिन हो जाता है | जिन लोगो को इसके बीज नहीं पचते हैं उनको एपेन्डिसाइटिस रोग हो सकता है । अत: इनके बीजों के सेवन से बचना चाहिए।

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11.2.22

गुदा के रोगों की होम्योपैथिक चिकित्सा:Guda ke rog

 


भगन्दर गुद प्रदेश में होने वाला एक नालव्रण है जो भगन्दर पीड़िका  से उत्पन होता है। इसे इंग्लिश में फिस्टुला (Fistula-in-Ano) कहते है। यह गुद प्रदेश की त्वचा और आंत्र की पेशी के बीच एक संक्रमित सुरंग का निर्माण करता है जिस में से मवाद का स्राव होता रहता है। यह बवासीर से पीड़ित लोगों में अधिक पाया जाता है। 

मलद्वार एवं गुदा से संबंधित बीमारियां कोई असाधारण बीमारियां नहीं हैं। हर तीसरा या चौथा व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, किसी-न-किसी रूप में इन बीमारियों से पीड़ित पाया जाता है।

बवासीर : 

मलद्वार के अन्दर अथवा बाहर हीमोरायडल नसों के अनावश्यक फैलाव की वजह से ही बवासीर होता है।

बवासीर का कारण

कब्ज बने रहने, पाखाने के लिए अत्यधिक जोर लगाने एवं अधिक देर तक पाखाने के लिए बैठे रहने के कारण नसों पर दबाव पड़ता है एवं खिंचाव उत्पन्न हो जाता है, जो अन्तत: रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।
गुदा में खुजली महसूस होना, कई बार मस्से जैसा मांसल भाग गुदा के बाहर आ जाता है। कभी-कभी बवासीर में दर्द नहीं होता, किन्तु बहुधा कष्टप्रद होते हैं। मलत्याग के बाद कुछ बूंदें साफ एवं ताजे रक्त की टपक जाती हैं। कई रोगियों में मांसल भाग के बाहर निकल आने से गुदाद्वार लगभग बंद हो जाता है।  ऐसे रोगियों में मलत्याग अत्यंत कष्टप्रद होता है।

बवासीर का लक्षण

भगन्दर : 


गुदा की पिछली भित्ति पर उथला घाव बन जाता है। दस प्रतिशत रोगियों में अगली भिति पर बन सकता है अर्थात् गुदाद्वार से लेकर थोड़ा ऊपर तक एक लम्बा घाव बन जाता है। यदि यही घाव और गहरा हो जाए एवं आर-पार खुल जाए, तो इसे ‘फिस्चुला’ कहते हैं। इस स्थिति में घाव से मवाद भी रिसने लगता है।

भगन्दर का लक्षण

अक्सर स्त्रियों में यह बीमारी अधिक पाई जाती है। वह भी युवा स्त्रियों में अधिक। इस बीमारी का मुख्य लक्षण है ‘दर्द’ मल त्याग करते समय यह पीड़ा अधिकतम होती है। दर्द की तीक्ष्णता की वजह से मरीज पाखाना जाने से घबराता है। यदि पाखाना सख्त होता है या कब्ज रहती है, तो दर्द अधिकतम होता है। कई बार पाखाने के साथ खून आता है और यह खून बवासीर के खून से भिन्न होता है। इसमें खून की एक लकीर बन जाती है, पाखाने के ऊपर तथा मलद्वार में तीव्र पीड़ा का अनुभव होता है।
भगन्दर की स्थिति अत्यंत तीक्ष्ण दर्द वाली होती है। इस स्थिति में प्राय: ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच नहीं करते। यदि किसी कारणवश प्राक्टोस्कोप का इस्तेमाल करना ही पड़े, तो मलद्वार को जाइलोकेन जेली लगाकर सुन कर देते हैं।
जांच के दौरान मरीज को जांच वाली टेबल पर करवट के बल लिटा देते हैं। नीचे की टांग सीधी व ऊपर की टांग को पेट से लगाकर लेटना होता है। मरीज को लम्बी सांस लेने को कहा जाता है। उंगली से जांच करते समय दस्ताने पहनना आवश्यक है। ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच के दौरान पहले यंत्र पर कोई चिकना पदार्थ लगा लेते हैं।

भगन्दर रोग की पहिचान 

बार-बार गुदा के पास फोड़े का निर्माण होता
मवाद का स्राव होना
मल त्याग करते समय दर्द होना
मलद्वार से खून का स्राव होना
मलद्वार के आसपास जलन होना
मलद्वार के आसपास सूजन
मलद्वार के आसपास दर्द
खूनी या दुर्गंधयुक्त स्राव निकलना
थकान महसूस होना
इन्फेक्शन (संक्रमण) के कारण बुखार होना और ठंड लगनाबचाव
कब्ज नहीं रहनी चाहिए, पाखाना करते समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए।

Guda ke rog ke upachar

उपचार

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बवासीर का इलाज आपरेशन एवं भगन्दर का इलाज यंत्रों द्वारा गुदाद्वार को चौड़ा करना है। होमियोपैथिक औषधियों का इन बीमारियों पर चमत्कारिक प्रभाव होता है।
‘एलो’, ‘एसिड नाइट्रिक’, ‘एस्कुलस’, ‘कोलोसिंथर’, ‘हेमेमिलिस’, ‘नवसवोमिका’, ‘सल्फर’, ‘थूजा’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘पेट्रोलियम’, ‘फ्लोरिक एसिड’, ‘साइलेशिया’, औषधियां हैं। कुछ प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –

एलो : 

मलाशय में लगातार नीचे की ओर दबाव, खून जाना, दर्द, ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलना, स्फिक्टर एनाई नामक मांसपेशी का शिथिल हो जाना, हवा खारिज करते समय पाखाने के निकलने का अहसास होना, मलत्याग के बाद मलाशय में दर्द, गुदा में जलन, कब्ज रहना, पाखाने के बाद म्यूकस स्राव, अंगूर के गुच्छे की शक्ल के बाहर को निकले हुए बवासीर के मस्से आदि लक्षण मिलने पर 6 एवं 30 शक्ति की कुछ खुराक लेना ही फायदेमंद रहता है।

Guda ke rog ke upachar

एस्कुलस : 


गुदा में दर्द, ऐसा प्रतीत होना, जैसे मलाशय में छोटी-छोटी डंडिया भरी हों, जलन, मलत्याग के बाद अधिक दर्द, कांच निकलना, बवासीर, कमर में दर्द रहना, खून आना, कब्ज रहना, मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली की सूजन आदि लक्षणों पर, खड़े होने से, चलने से परेशानी बढ़ती हो, 30 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।

साइलेशिया :

 मलाशय चेतनाशून्य महसूस होना, भगन्दर, बवासीर, दर्द, ऐंठन, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना बाहर निकलता है, किन्तु पुन:अंदर मलाशय में चढ़ जाता है, स्त्रियों में हमेशा माहवारी के पहले कब्ज हो जाती है। फिस्चुला बन जाता है, मवाद आने लगता है, पानी से दर्द बढ़ जाता है। गर्मी में आराम मिलने पर साइलेशिया 6 से 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
दवाओं के साथ-साथ खान-पान पर भी उचित ध्यान देना आवश्यक है। गर्म वस्तुएं, तली वस्तुएं, खट्टी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। पानी अधिक पीना चाहिए। रेशेदार वस्तुएं – जैसे दलिया, फल – जैसे पपीता आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए।

कोलिन्सोनिया : 

महिलाओं के लिए विशेष उपयुक्त। गर्भावस्था में मस्से हों, योनिमार्ग में खुजली, प्रकृति ठण्डी हो, कब्ज रहे, गुदा सूखी व कठोर हो, खांसी चले, दिल की धड़कन अधिक हो।

Guda ke rog ke upachar

हेमेमिलिस : 

नसों का खिंचाव, खून आना, गुदा में ऐसा महसूस होना जैसे चोट लगी हो, गंदा रक्त टपकना, गुदा में दर्द, गर्मी में परेशानी बढ़ना, रक्तस्राव के बाद अत्यधिक कमजोरी महसूस करना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति की दवा कारगर है|

एसिड नाइट्रिक :

 कब्ज रहना, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना होना, मलाशय में ऐसा महसूस होना, जैसे फट गया हो, मलत्याग के दौरान तीक्ष्ण दर्द, मलत्याग के बाद अत्यधिक बेचैन करने वाला दर्द, जलन काफी देर तक रहती है। चिड़चिड़ापन, मलत्याग के बाद कमजोरी, बवासीर में खून आना, ठंड एवं गर्म दोनों ही मौसम में परेशानी महसूस करना एवं किसी कार आदि में सफर करने पर आराम मालूम देना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति एवं 6 शक्ति की दवा उपयोगी है।

थूजा : 


सख्त कब्ज, बड़े-बड़े सूखे मस्से, मल उंगली से निकालना पड़े, प्यास अधिक, भूख कम, मस्सों में तीव्र वेदना जो बैठने से बढ़ जाए, मूत्र विकार, प्रकृति ठण्डी, प्याज से परहेज करे, अधिक चाय पीने से रोग बढ़े, तो यह दवा लाभप्रद। बवासीर की श्रेष्ठ दवा।

Guda ke rog ke upachar


रैटेन्हिया : 


मलद्वार में दर्द व भारीपन, हर वक्त ऐसा अहसास जैसे कटा हो, 6 अथवा 30 शक्ति में लें।
नक्सवोमिका : प्रकृति ठण्डी, तेज मिर्च-मसालों में रुचि, शराब का सेवन, क्रोधी स्वभाव, दस्त के बाद आराम मालूम देना, मल के साथ खून आना, पाचन शक्ति मन्द होना।


सल्फर : 

भयंकर जलन, खूनी व सूखे मस्से, प्रात: दर्द की अधिकता, पैर के तलवों में जलन, खड़े होने पर बेचैनी, त्वचा रोग रहे, भूख सहन न हो, रात को पैर रजाई से बाहर रखे, मैला-कुचैला रहे।

लगाने की दवा :


 बायोकेमिक दवा ‘कैल्केरिया फ्लोर’ 1 × शक्ति में पाउडर लेकर नारियल के तेल में इतनी मात्रा में मिलाएं कि मलहम बन जाए। इस मलहम को शौच जाने से पहले व बाद में और रात को सोते समय उंगली से गुदा में अन्दर तक व गुदा मुख पर लगाने से दर्द और जलन में आराम होता है। ‘केलेण्डुला आइंटमेंट’ से भी आराम मिलता है। लगाने के लिए ‘हेमेमिलिस’ एवं ‘एस्कुलस आइंटमेंट’ (मलहम) भी शौच जाने के बाद एवं रात में सोते समय, मलद्वार पर बाहर एवं थोड़ा-सा अंदर तक उंगली से लगा लेना चाहिए। बवासीर, भगन्दर के रोगियों के लिए ‘हॉट सिट्जबाथ’ अत्यधिक फायदेमंद रहता है। इसमें एक टब में कुनकुना पानी करके उसमें बिलकुल नंगा होकर इस प्रकार बैठना चाहिए कि मलद्वार पर पानी का गर्म सेंक बना रहे। 15-20 मिनट तक रोजाना 10-15 दिन ऐसा करने पर आशाजनक लाभ मिलता है।
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