Guda ke rog ke upachar
उपचार
आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बवासीर का इलाज आपरेशन एवं भगन्दर का इलाज यंत्रों द्वारा गुदाद्वार को चौड़ा करना है। होमियोपैथिक औषधियों का इन बीमारियों पर चमत्कारिक प्रभाव होता है।‘एलो’, ‘एसिड नाइट्रिक’, ‘एस्कुलस’, ‘कोलोसिंथर’, ‘हेमेमिलिस’, ‘नवसवोमिका’, ‘सल्फर’, ‘थूजा’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘पेट्रोलियम’, ‘फ्लोरिक एसिड’, ‘साइलेशिया’, औषधियां हैं। कुछ प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –
एलो :
मलाशय में लगातार नीचे की ओर दबाव, खून जाना, दर्द, ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलना, स्फिक्टर एनाई नामक मांसपेशी का शिथिल हो जाना, हवा खारिज करते समय पाखाने के निकलने का अहसास होना, मलत्याग के बाद मलाशय में दर्द, गुदा में जलन, कब्ज रहना, पाखाने के बाद म्यूकस स्राव, अंगूर के गुच्छे की शक्ल के बाहर को निकले हुए बवासीर के मस्से आदि लक्षण मिलने पर 6 एवं 30 शक्ति की कुछ खुराक लेना ही फायदेमंद रहता है।
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एस्कुलस :
गुदा में दर्द, ऐसा प्रतीत होना, जैसे मलाशय में छोटी-छोटी डंडिया भरी हों, जलन, मलत्याग के बाद अधिक दर्द, कांच निकलना, बवासीर, कमर में दर्द रहना, खून आना, कब्ज रहना, मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली की सूजन आदि लक्षणों पर, खड़े होने से, चलने से परेशानी बढ़ती हो, 30 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।
साइलेशिया :
मलाशय चेतनाशून्य महसूस होना, भगन्दर, बवासीर, दर्द, ऐंठन, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना बाहर निकलता है, किन्तु पुन:अंदर मलाशय में चढ़ जाता है, स्त्रियों में हमेशा माहवारी के पहले कब्ज हो जाती है। फिस्चुला बन जाता है, मवाद आने लगता है, पानी से दर्द बढ़ जाता है। गर्मी में आराम मिलने पर साइलेशिया 6 से 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
दवाओं के साथ-साथ खान-पान पर भी उचित ध्यान देना आवश्यक है। गर्म वस्तुएं, तली वस्तुएं, खट्टी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। पानी अधिक पीना चाहिए। रेशेदार वस्तुएं – जैसे दलिया, फल – जैसे पपीता आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए।
कोलिन्सोनिया :
महिलाओं के लिए विशेष उपयुक्त। गर्भावस्था में मस्से हों, योनिमार्ग में खुजली, प्रकृति ठण्डी हो, कब्ज रहे, गुदा सूखी व कठोर हो, खांसी चले, दिल की धड़कन अधिक हो।
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हेमेमिलिस :
नसों का खिंचाव, खून आना, गुदा में ऐसा महसूस होना जैसे चोट लगी हो, गंदा रक्त टपकना, गुदा में दर्द, गर्मी में परेशानी बढ़ना, रक्तस्राव के बाद अत्यधिक कमजोरी महसूस करना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति की दवा कारगर है|
एसिड नाइट्रिक :
कब्ज रहना, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना होना, मलाशय में ऐसा महसूस होना, जैसे फट गया हो, मलत्याग के दौरान तीक्ष्ण दर्द, मलत्याग के बाद अत्यधिक बेचैन करने वाला दर्द, जलन काफी देर तक रहती है। चिड़चिड़ापन, मलत्याग के बाद कमजोरी, बवासीर में खून आना, ठंड एवं गर्म दोनों ही मौसम में परेशानी महसूस करना एवं किसी कार आदि में सफर करने पर आराम मालूम देना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति एवं 6 शक्ति की दवा उपयोगी है।
थूजा :
सख्त कब्ज, बड़े-बड़े सूखे मस्से, मल उंगली से निकालना पड़े, प्यास अधिक, भूख कम, मस्सों में तीव्र वेदना जो बैठने से बढ़ जाए, मूत्र विकार, प्रकृति ठण्डी, प्याज से परहेज करे, अधिक चाय पीने से रोग बढ़े, तो यह दवा लाभप्रद। बवासीर की श्रेष्ठ दवा।
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रैटेन्हिया :
मलद्वार में दर्द व भारीपन, हर वक्त ऐसा अहसास जैसे कटा हो, 6 अथवा 30 शक्ति में लें।
नक्सवोमिका : प्रकृति ठण्डी, तेज मिर्च-मसालों में रुचि, शराब का सेवन, क्रोधी स्वभाव, दस्त के बाद आराम मालूम देना, मल के साथ खून आना, पाचन शक्ति मन्द होना।
सल्फर :
भयंकर जलन, खूनी व सूखे मस्से, प्रात: दर्द की अधिकता, पैर के तलवों में जलन, खड़े होने पर बेचैनी, त्वचा रोग रहे, भूख सहन न हो, रात को पैर रजाई से बाहर रखे, मैला-कुचैला रहे।
लगाने की दवा :
बायोकेमिक दवा ‘कैल्केरिया फ्लोर’ 1 × शक्ति में पाउडर लेकर नारियल के तेल में इतनी मात्रा में मिलाएं कि मलहम बन जाए। इस मलहम को शौच जाने से पहले व बाद में और रात को सोते समय उंगली से गुदा में अन्दर तक व गुदा मुख पर लगाने से दर्द और जलन में आराम होता है। ‘केलेण्डुला आइंटमेंट’ से भी आराम मिलता है। लगाने के लिए ‘हेमेमिलिस’ एवं ‘एस्कुलस आइंटमेंट’ (मलहम) भी शौच जाने के बाद एवं रात में सोते समय, मलद्वार पर बाहर एवं थोड़ा-सा अंदर तक उंगली से लगा लेना चाहिए। बवासीर, भगन्दर के रोगियों के लिए ‘हॉट सिट्जबाथ’ अत्यधिक फायदेमंद रहता है। इसमें एक टब में कुनकुना पानी करके उसमें बिलकुल नंगा होकर इस प्रकार बैठना चाहिए कि मलद्वार पर पानी का गर्म सेंक बना रहे। 15-20 मिनट तक रोजाना 10-15 दिन ऐसा करने पर आशाजनक लाभ मिलता है।
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