11.2.22

गुदा के रोगों की होम्योपैथिक चिकित्सा:Guda ke rog

 


भगन्दर गुद प्रदेश में होने वाला एक नालव्रण है जो भगन्दर पीड़िका  से उत्पन होता है। इसे इंग्लिश में फिस्टुला (Fistula-in-Ano) कहते है। यह गुद प्रदेश की त्वचा और आंत्र की पेशी के बीच एक संक्रमित सुरंग का निर्माण करता है जिस में से मवाद का स्राव होता रहता है। यह बवासीर से पीड़ित लोगों में अधिक पाया जाता है। 

मलद्वार एवं गुदा से संबंधित बीमारियां कोई असाधारण बीमारियां नहीं हैं। हर तीसरा या चौथा व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, किसी-न-किसी रूप में इन बीमारियों से पीड़ित पाया जाता है।

बवासीर : 

मलद्वार के अन्दर अथवा बाहर हीमोरायडल नसों के अनावश्यक फैलाव की वजह से ही बवासीर होता है।

बवासीर का कारण

कब्ज बने रहने, पाखाने के लिए अत्यधिक जोर लगाने एवं अधिक देर तक पाखाने के लिए बैठे रहने के कारण नसों पर दबाव पड़ता है एवं खिंचाव उत्पन्न हो जाता है, जो अन्तत: रोग की उत्पत्ति का कारण बनता है।
गुदा में खुजली महसूस होना, कई बार मस्से जैसा मांसल भाग गुदा के बाहर आ जाता है। कभी-कभी बवासीर में दर्द नहीं होता, किन्तु बहुधा कष्टप्रद होते हैं। मलत्याग के बाद कुछ बूंदें साफ एवं ताजे रक्त की टपक जाती हैं। कई रोगियों में मांसल भाग के बाहर निकल आने से गुदाद्वार लगभग बंद हो जाता है।  ऐसे रोगियों में मलत्याग अत्यंत कष्टप्रद होता है।

बवासीर का लक्षण

भगन्दर : 


गुदा की पिछली भित्ति पर उथला घाव बन जाता है। दस प्रतिशत रोगियों में अगली भिति पर बन सकता है अर्थात् गुदाद्वार से लेकर थोड़ा ऊपर तक एक लम्बा घाव बन जाता है। यदि यही घाव और गहरा हो जाए एवं आर-पार खुल जाए, तो इसे ‘फिस्चुला’ कहते हैं। इस स्थिति में घाव से मवाद भी रिसने लगता है।

भगन्दर का लक्षण

अक्सर स्त्रियों में यह बीमारी अधिक पाई जाती है। वह भी युवा स्त्रियों में अधिक। इस बीमारी का मुख्य लक्षण है ‘दर्द’ मल त्याग करते समय यह पीड़ा अधिकतम होती है। दर्द की तीक्ष्णता की वजह से मरीज पाखाना जाने से घबराता है। यदि पाखाना सख्त होता है या कब्ज रहती है, तो दर्द अधिकतम होता है। कई बार पाखाने के साथ खून आता है और यह खून बवासीर के खून से भिन्न होता है। इसमें खून की एक लकीर बन जाती है, पाखाने के ऊपर तथा मलद्वार में तीव्र पीड़ा का अनुभव होता है।
भगन्दर की स्थिति अत्यंत तीक्ष्ण दर्द वाली होती है। इस स्थिति में प्राय: ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच नहीं करते। यदि किसी कारणवश प्राक्टोस्कोप का इस्तेमाल करना ही पड़े, तो मलद्वार को जाइलोकेन जेली लगाकर सुन कर देते हैं।
जांच के दौरान मरीज को जांच वाली टेबल पर करवट के बल लिटा देते हैं। नीचे की टांग सीधी व ऊपर की टांग को पेट से लगाकर लेटना होता है। मरीज को लम्बी सांस लेने को कहा जाता है। उंगली से जांच करते समय दस्ताने पहनना आवश्यक है। ‘प्राक्टोस्कोप’ से जांच के दौरान पहले यंत्र पर कोई चिकना पदार्थ लगा लेते हैं।

भगन्दर रोग की पहिचान 

बार-बार गुदा के पास फोड़े का निर्माण होता
मवाद का स्राव होना
मल त्याग करते समय दर्द होना
मलद्वार से खून का स्राव होना
मलद्वार के आसपास जलन होना
मलद्वार के आसपास सूजन
मलद्वार के आसपास दर्द
खूनी या दुर्गंधयुक्त स्राव निकलना
थकान महसूस होना
इन्फेक्शन (संक्रमण) के कारण बुखार होना और ठंड लगनाबचाव
कब्ज नहीं रहनी चाहिए, पाखाना करते समय अधिक जोर नहीं लगाना चाहिए।

Guda ke rog ke upachar

उपचार

आधुनिक चिकित्सा पद्धति में बवासीर का इलाज आपरेशन एवं भगन्दर का इलाज यंत्रों द्वारा गुदाद्वार को चौड़ा करना है। होमियोपैथिक औषधियों का इन बीमारियों पर चमत्कारिक प्रभाव होता है।
‘एलो’, ‘एसिड नाइट्रिक’, ‘एस्कुलस’, ‘कोलोसिंथर’, ‘हेमेमिलिस’, ‘नवसवोमिका’, ‘सल्फर’, ‘थूजा’, ‘ग्रेफाइटिस’, ‘पेट्रोलियम’, ‘फ्लोरिक एसिड’, ‘साइलेशिया’, औषधियां हैं। कुछ प्रमुख दवाएं इस प्रकार हैं –

एलो : 

मलाशय में लगातार नीचे की ओर दबाव, खून जाना, दर्द, ठंडे पानी से धोने पर आराम मिलना, स्फिक्टर एनाई नामक मांसपेशी का शिथिल हो जाना, हवा खारिज करते समय पाखाने के निकलने का अहसास होना, मलत्याग के बाद मलाशय में दर्द, गुदा में जलन, कब्ज रहना, पाखाने के बाद म्यूकस स्राव, अंगूर के गुच्छे की शक्ल के बाहर को निकले हुए बवासीर के मस्से आदि लक्षण मिलने पर 6 एवं 30 शक्ति की कुछ खुराक लेना ही फायदेमंद रहता है।

Guda ke rog ke upachar

एस्कुलस : 


गुदा में दर्द, ऐसा प्रतीत होना, जैसे मलाशय में छोटी-छोटी डंडिया भरी हों, जलन, मलत्याग के बाद अधिक दर्द, कांच निकलना, बवासीर, कमर में दर्द रहना, खून आना, कब्ज रहना, मलाशय की श्लेष्मा झिल्ली की सूजन आदि लक्षणों पर, खड़े होने से, चलने से परेशानी बढ़ती हो, 30 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।

साइलेशिया :

 मलाशय चेतनाशून्य महसूस होना, भगन्दर, बवासीर, दर्द, ऐंठन, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना बाहर निकलता है, किन्तु पुन:अंदर मलाशय में चढ़ जाता है, स्त्रियों में हमेशा माहवारी के पहले कब्ज हो जाती है। फिस्चुला बन जाता है, मवाद आने लगता है, पानी से दर्द बढ़ जाता है। गर्मी में आराम मिलने पर साइलेशिया 6 से 30 शक्ति में लेनी चाहिए।
दवाओं के साथ-साथ खान-पान पर भी उचित ध्यान देना आवश्यक है। गर्म वस्तुएं, तली वस्तुएं, खट्टी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। पानी अधिक पीना चाहिए। रेशेदार वस्तुएं – जैसे दलिया, फल – जैसे पपीता आदि का प्रयोग अधिक करना चाहिए।

कोलिन्सोनिया : 

महिलाओं के लिए विशेष उपयुक्त। गर्भावस्था में मस्से हों, योनिमार्ग में खुजली, प्रकृति ठण्डी हो, कब्ज रहे, गुदा सूखी व कठोर हो, खांसी चले, दिल की धड़कन अधिक हो।

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हेमेमिलिस : 

नसों का खिंचाव, खून आना, गुदा में ऐसा महसूस होना जैसे चोट लगी हो, गंदा रक्त टपकना, गुदा में दर्द, गर्मी में परेशानी बढ़ना, रक्तस्राव के बाद अत्यधिक कमजोरी महसूस करना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति की दवा कारगर है|

एसिड नाइट्रिक :

 कब्ज रहना, अत्यधिक जोर लगाने पर थोड़ा-सा पाखाना होना, मलाशय में ऐसा महसूस होना, जैसे फट गया हो, मलत्याग के दौरान तीक्ष्ण दर्द, मलत्याग के बाद अत्यधिक बेचैन करने वाला दर्द, जलन काफी देर तक रहती है। चिड़चिड़ापन, मलत्याग के बाद कमजोरी, बवासीर में खून आना, ठंड एवं गर्म दोनों ही मौसम में परेशानी महसूस करना एवं किसी कार आदि में सफर करने पर आराम मालूम देना आदि लक्षणों के आधार पर 30 शक्ति एवं 6 शक्ति की दवा उपयोगी है।

थूजा : 


सख्त कब्ज, बड़े-बड़े सूखे मस्से, मल उंगली से निकालना पड़े, प्यास अधिक, भूख कम, मस्सों में तीव्र वेदना जो बैठने से बढ़ जाए, मूत्र विकार, प्रकृति ठण्डी, प्याज से परहेज करे, अधिक चाय पीने से रोग बढ़े, तो यह दवा लाभप्रद। बवासीर की श्रेष्ठ दवा।

Guda ke rog ke upachar


रैटेन्हिया : 


मलद्वार में दर्द व भारीपन, हर वक्त ऐसा अहसास जैसे कटा हो, 6 अथवा 30 शक्ति में लें।
नक्सवोमिका : प्रकृति ठण्डी, तेज मिर्च-मसालों में रुचि, शराब का सेवन, क्रोधी स्वभाव, दस्त के बाद आराम मालूम देना, मल के साथ खून आना, पाचन शक्ति मन्द होना।


सल्फर : 

भयंकर जलन, खूनी व सूखे मस्से, प्रात: दर्द की अधिकता, पैर के तलवों में जलन, खड़े होने पर बेचैनी, त्वचा रोग रहे, भूख सहन न हो, रात को पैर रजाई से बाहर रखे, मैला-कुचैला रहे।

लगाने की दवा :


 बायोकेमिक दवा ‘कैल्केरिया फ्लोर’ 1 × शक्ति में पाउडर लेकर नारियल के तेल में इतनी मात्रा में मिलाएं कि मलहम बन जाए। इस मलहम को शौच जाने से पहले व बाद में और रात को सोते समय उंगली से गुदा में अन्दर तक व गुदा मुख पर लगाने से दर्द और जलन में आराम होता है। ‘केलेण्डुला आइंटमेंट’ से भी आराम मिलता है। लगाने के लिए ‘हेमेमिलिस’ एवं ‘एस्कुलस आइंटमेंट’ (मलहम) भी शौच जाने के बाद एवं रात में सोते समय, मलद्वार पर बाहर एवं थोड़ा-सा अंदर तक उंगली से लगा लेना चाहिए। बवासीर, भगन्दर के रोगियों के लिए ‘हॉट सिट्जबाथ’ अत्यधिक फायदेमंद रहता है। इसमें एक टब में कुनकुना पानी करके उसमें बिलकुल नंगा होकर इस प्रकार बैठना चाहिए कि मलद्वार पर पानी का गर्म सेंक बना रहे। 15-20 मिनट तक रोजाना 10-15 दिन ऐसा करने पर आशाजनक लाभ मिलता है।
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25.1.22

सूजाक की होम्योपैथिक चिकित्सा:gonorrhea

 



होमियोपैथिक चिकित्सा विज्ञान के जनक डॉ. हैनीमैन ने तीन प्रकार के विषों को सभी प्रकार के रोगों को उत्पन्न करनेवाला बताया है। इन तीन विषों के नाम हैं – ‘सोरा’, सिफिलिस’ और ‘साइकोसिस’।

इस सूजाक रोग का संबंध ‘साइकोसिस’ से होता है। इस रोग की उत्पत्ति संक्रामक कारणों से छूत लगने पर होती है। सूजाक रोग से ग्रस्त स्त्री या पुरुष से सहवास करने वाले स्त्री या पुरुष को यह रोग हो जाता है। ‘निसेरिया गोनोरियाई’ नामक जीवाणु द्वारा यह रोग होता है। जननांगों की उचित सफाई न होने पर इस रोग की सम्भावना बढ़ जाती है। इस रोग की तीन अवस्थाएं होती हैं –

इस रोग में रोगी के लिंग के अन्दर मूत्र-नली में से मवाद आता है । मूत्र-नली में जलन, सुरसुराहट, खुजली, मूत्र-त्याग के समय जलन एवं दर्द होना आदि लक्षण प्रकट होते हैं ।

gonorrhea homeopathic remedy

थूजा 30, 200- रोग की द्वितीयावस्था में लाभकर है जबकि मूत्र-मार्ग में जलन हो और पीला मवाद आये । वैसे सूजाक की सभी अवस्थाओं में लाभकारी है । डॉ० ई० जोन्स का कहना है कि चाहे सूजाक में कोई भी दवा क्यों न दी जाये परन्तु रात को सोने से पहले रोगी को थूजा 30 की पाँच बूंद अवश्य दे देनी चाहिये- इससे सूजाक का विष शरीर से बाहर निकल जाता है ।

एकोनाइट 1x, 30- रोग की प्रथमावस्था में लाभकर है । मूत्र-मार्ग में लाली, सूजन, मूत्र-त्याग में जलन, बूंद-बूंद पेशाब आना आदि लक्षणों में उपयोगी हैं ।

gonorrhea homeopathic remedy

सीपिया 200– मूत्र-त्याग में जलन, मूत्रेन्द्रिय में टनक जैसा दर्द- इन लक्षणों में दें ।
कोपेवा 3x, 30-
 मूत्र-नली तथा मूत्राशय में सुरसुराहट हो, पतला-दूधिया स्राव आये, मूत्र बूंद-बूंद करके आये, मूत्र रक्त मिला और दर्द व जलन के साथ हो- इन लक्षणों में लाभप्रद है ।

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कोपेवा जब मवाद ज्यादा गाढ़ा न होकर दूध जैसा पतला आता हो, जलन के साथ पेशाब हो, पेशाब के साथ गोंद जैसा लसदार व चिकना स्राव निकलता हो, पेशाब का वेग मालूम होने पर भी पेशाब न होता हो, बूंद-बूंद करके पेशाब होना, हरा पेशाब, तीखी बदबू आना आदि लक्षणों पर 30 शक्ति में दवा का सेवन फायदेमंद है।
क्यूबेवा : पहली अवस्था में जब अन्य दवाओं के सेवन से जलन में कुछ कमी हो जाए, पेशाब के अंत में जलन न होती हो, मवाद गाढ़ा होने लगे, तब क्यूबेवा का प्रयोग उत्तम है। पेशाब के बाद जलन होने और मूत्र नली में सिकुड़न-सी मालूम देने और स्राव पतला हो जाने पर इस दवा का 30 शक्ति में प्रयोग करना हितकर होता है।
अर्जेण्टमनाइट्रिकम : मूत्र-विसर्जन के अन्त में पुरुषेंद्रिय से लेकर गुदा-द्वार तक असहनीय पीड़ा होना, इस दवा का मुख्य लक्षण है। मूत्रनली में तेज जलन होना, अकड़न और सूजन होना, बूंद-बूंद कर पेशाब होना, आंखों से ज्यादा कीचड़ आना इसके मुख्य लक्षण हैं। ज्यादा मीठा खाना और शरीर का दुबला-पतला होना आदि लक्षणों के आधार पर यह दवा अत्यंत उपयोगी है।

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केप्सिकम : जब पेशाब की हाजत लगातार मालूम दे, पर पेशाब न हो, बड़ी मुश्किल से और जलन के साथ पेशाब हो, पेशाब में छाछ जैसा सफेद मवाद आए और पुरुषेंद्रिय के तनाव से दर्द मालूम दे, तब केप्सिकम का प्रयोग करना गुणकारी होता है। बात-बात पर क्रोधित होना और मोटापा बढ़ते जाना भी इसका लक्षण है। 6 शक्ति से 30 शक्ति तक दवा लेनी चाहिए।
दूसरी अवस्था : यदि प्राथमिक स्थिति में ही इलाज न किया जाए, तो रोग बढ़ने लगता है। बड़ी तकलीफ के साथ बूंद-बूंद करके पेशाब होता है, पेशाब निकलते समय तीव्र जलन होती है, शिश्न-मुण्ड (पुरुष जननेंद्रीय का अग्रभाग) पर सूजन आ जाती है, वह लाल हो जाता है और मूत्र-मार्ग से लगातार मवाद आने लगता है। यह अवस्था बहुत कष्टपूर्ण होती है।
उपचार-
रोग की द्वितीय अवस्था में यह दवा महान औषधि की तरह काम करती है। मूत्रनली में इतना दर्द हो कि सहन न किया जा सके और दोनों पैर चौड़े करके चलना पड़े, ये इस दवा के मुख्य दो लक्षण हैं। कमर में दर्द रहना, गाढ़ा पीले रंग का मवाद आना, ऐसा लगे कि मूत्रनली ही बंद है। अत: पेशाब नहीं आ रहा है, बूंद-बूंद कर पेशाब होना, मूत्र मार्ग से खून आना, पुरुषेंद्रिय के तनाव से दर्द होना आदि प्रमुख लक्षण हैं। ठंडे पानी से आराम मिलता है। दवा अर्क अथवा 6 × से 30 शक्ति तक दवा श्रेष्ठ है।

केंथेरिस : अधिकतर लक्षण ‘कैनाबिस इण्डिका’ के लक्षणों जैसे ही हैं। इसमें पेशाब के वेग का और चुभन का अनुभव कैनाबिस इण्डिका की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में होता है। पेशाब बूंद-बूंद करके, कष्टप्रद हो। पेशाब से पहले, पेशाब के दौरान और पेशाब करने के बाद जलन हो, पुरुषेंद्रिय में खिंचाव होने पर अधिक दर्द हो, कभी-कभी पेशाब में खून भी आने लगे, तो 6 से 30 शक्ति तक की दवा की कुछ खुराकें जल्दी-जल्दी लेने पर फायदा होता है।

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पल्सेटिला : जांघों और टांगों में दर्द होना, रोग शुरू हुए कई दिन बीत गए हों, मूत्र-मार्ग से गाढ़ा, पीला या नीला मवाद आने लगे और मवाद का दाग न लगता हो, अण्डकोषों पर सूजन आ गई हो, मरीज अपनी परेशानी बताते-बताते रोने लगे और चुप कराने पर थोड़ी देर में शांत हो जाए, पेशाब बूंद-बूंद हो, प्रोस्टेटाइटिस हो, पेशाब करते समय दर्द एवं चुभन महसूस हो, गर्मी में परेशानी बढ़े, मूत्र द्वार ठंडे पानी से धोने पर कुछ आराम मिले, तो 30 शक्ति में दवा उपयोगी है।


तृतीय अवस्था : 
इस अवस्था में पहुंचने पर रोग को पुराना माना जाता है। इस अवस्था में रोगी को ऐसा लगता है कि रोग चला गया है, क्योंकि सूजन मिट जाती है, जलन बंद हो जाती है और पेशाब आसानी से होने लगता है। ज्यादा जोर देकर पेशाब करने पर मूत्र-मार्ग से गाढ़ा चिकना मवाद निकलता है। इसे ही सूजाक होना कहते हैं। इस अवस्था में कुछ समय बीत जाने पर नाना प्रकार के उपद्रव होने लगते हैं। इन उपद्रवों में मूत्राशय प्रदाह (सिस्टाइटिस), बाधी (ब्यूबो), पौरुषग्रंथी प्रदाह (प्रोस्टेटाइटिस), लसिकाओं का प्रदाह (लिम्फेजांइटिस), प्रमेहजन्य संधिवात (गोनोरियल आर्थराइटिस), स्त्रियों में जरायु-प्रदाह (मेट्राइटिस), डिम्ब प्रणाली प्रदाह (सालपिंजाइटिस), वस्ति आवरण प्रदाह (पेल्विक पेरीटोनाइटिस) आदि प्रमुख उपद्रव हैं।
लक्षणों की समानता (सिमिलिमम) के आधार पर, अलग-अलग अवस्थाओं के लिए अलग-अलग औषधियां हैं। रोगी एवं अवस्थाओं की भिन्नता के आधार पर लगभग चालीस (40) औषधियां इस रोग हेतु प्रयुक्त की जा सकती हैं। कुछ विशेष लक्षणों के आधार पर निम्न औषधियों का प्रमुख रूप से प्रयोग किया जाता है। लक्षणों के अनुसार दवा का चुनाव करके नियमित रूप से दवा का सेवन करने पर जरूर लाभ होगा।

उपचार-

थूजा : पुराने (क्रॉनिक) सूजाक और साइकोटिक विष के लिए थूजा श्रेष्ठ औषधि है। जब मवाद पतला आने लगे, पेशाब करते समय ऐसा लगे, जैसे उबलता हुआ पानी निकल रहा हो, तीव्र कष्ट व जलन हो, बूंद-बूंद पेशाब हो, लगातार पेशाब की हाजत बनी रहे, अण्डकोष कठोर हो गए हों और ‘सूजाक जन्य वात रोग’ (गोनोरियल रयुमेटिजम) की स्थिति बन जाए, प्रोस्टेटिक ग्रंथियों में सूजन हो जाए, सिरदर्द, बालों का झड़ना, ऐसा महसूस होना जैसे पैर शीशे के बने हुए हैं और टूट जाएंगे, जैसे पेट में कोई जीवित वस्तु है, जैसे आत्मा और शरीर अलग हो गए हैं, शरीर के विभिन्न हिस्सों पर मस्से निकलने लगते हैं, तब 30 शक्ति से 200 शक्ति तक की दवा की कुछ खुराकें ही कारगर होती हैं।

gonorrhea homeopathic remedy

फ्लोरिक एसिड : यह भी पुराने सूजाक की अच्छी दवा है। दिन में प्राय: स्राव नहीं होता, पर रात में होता रहता है। कपड़ों में दाग लगते हैं, पेशाब में जलन होती है और अत्यधिक कामोत्तेजना रहती है। रोगी कमजोर होते हुए भी दिन भर परिश्रम करता है। गर्मी-सर्दी में कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन रात के लक्षणों से प्रभावित होता है। 30 शक्ति में एवं तत्पश्चात् 200 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।
क्लीमेटिस : पल्सेटिला नामक दवा के बाद जो लक्षण बचे रहते हैं, उनके लिए ‘क्लीमेटिस’ उपयोगी है। इस रोग की तीसरी अवस्था में जब मूत्रनली सिकुड़ जाए, मवाद आना बंद हो चुका हो, अण्डकोषों पर सूजन हो और वे कठोर हो गए हों, विशेषकर अण्डकोषों के दाएं हिस्से पर सूजन होती है, तब ‘क्लीमेटिस’ 30 शक्ति में प्रयोग करनी चाहिए। इसमें भी पेशाब रुक-रुक कर होता है।
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23.1.22

कांचनार गुग्गुल आयुर्वेदिक औषधि के फायदे: Benefits of Kanchanar Guggul

 


कांचनार गुग्गुल बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः यूटीआई, घेंघा रोग के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। Kanchnar Guggul के मुख्य घटक हैं गुग्गुल, इलायची, तेज पत्ता, त्रिकटु, त्रिफला जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है।

गूगल और 1 ग्राम शिलाजीत डालकर इसमें 3 ग्राम सौंठ का चूर्ण डालकर सुबह-शाम 4-4 चम्मच पीएं और ऊपर से एक कप चावल का धोवन पिएँ। यह प्रयोग 45 दिन तक करें। यदि गांठ पक गई हो तो कचनार, चित्रक और अड़ूसे की जड़, पानी के साथ पत्थर पर घिसकर लेप करें। इस लेप को गांठ पर लेप करें, इस प्रयोग से गांठ फूट जाती है। फूट जाए तो यह लेप लगाना बंद कर दें। इसकी जगह कचनार और अमरकंद का लेप तैयार कर लगाएँ।
कण्ठमाला के लिए कांचनार गुग्गुल आयुर्वेद की प्रसिद्ध और उत्तम औषधि मानी जाती है। त्रिफला के काढ़े के साथ इस औषधि की 2- 2 गोली सुबह-शाम, एक वर्ष लेते रहें तो फिर गांठ पैदा होने की संभावना ही समाप्त हो जाएगी। कचनार या त्रिफला का काढ़ा बनाने की विधि यह है कि 10 ग्राम चूर्ण 2 कप पानी में डालकर उबालें। जब पानी आधा कप बचे तब छानकर ठंडा कर लें। काढ़ा तैयार है।


Benefits of Kanchanar Guggul

इस रोग के रोगी को कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण आधा-आध चम्मच (3-3 ग्राम) लेकर मख्खन में मिलाकर या एक गिलास छाछ के साथ, सुबह-शाम सेवन कराना चाहिए। इससे उदर शुद्धि होती है और बवासीर में खून गिरना बंद होता है।

रक्त पित्त :

 इस रोग में शरीर के किसी भी हिस्से से खून गिरने लगता है। इसे होमोरेजिक डिसीज कहते हैं। कचनार के फूलों की सब्जी खिलाने या सूखे फूलों का चूर्ण आधा-आधा चम्मच थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम खिलाने से यह व्याधि नष्ट हो जाती है।

दाह (जलन) :

 कचनार की छाल का काढ़ा 4 चम्मच, आधा चम्मच पिसा जीरा और कपूर एक रत्ती मिलाकर सुबह-शाम लेने से विष प्रकोप, रक्त विकार या मद्यपान आदि से होने वाली जलन शांत हो जाती है। य ह प्रयोग अम्ल पित्त (हायपर एसिडिटी) के कारण होने वाली जलन के लिए सेवन योग्य नहीं है।

अफारा :

 अपच और गैस के कारण पेट में अफारा हो जाता है। कचनार की छाल का काढ़ा 4 चम्मच और आधा चम्मच पिसी अजवायन मिलाकर लेने से अफारा दूर हो जाता है। कचनार को प्रमुख घटक द्रव्य का रूप में लेकर आयुर्वेद के कुछ उत्तम योग बनाए जाते हैं जैसे कांचनार गुग्गुल, कांचनादि क्वाथ, कांचन गुटिका, गुलकंद कांचनार, पंचनिम्बादि वटी, रक्त शोधांतक आदि।


Benefits of Kanchanar Guggul

गुग्गुल

चोट या संक्रमण के कारण होने वाली सूजन को कम करने वाली दवाएं।
ये एजेंट मुक्त कणों को साफ करके ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
शारीरिक ऊतकों को संकुचित करने वाले तत्व जिनका इस्तेमाल अत्यधिक खून बहने को रोकने के लिए किया जाता है।
रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने वाले एजेंट।

इलायची

वे घटक जिनका इस्‍तेमाल फ्री रेडिकल्‍स की सक्रियता को कम करने और ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (मुक्त कणों के बनने और उनके शरीर के प्रति हानिकरक प्रभाव को न रोक पाने के बीच का असंतुलन) को रोकने के लिए किया जाता है।
भूख बढ़ाने में मददगार तत्‍व।
पाचन क्रिया और पेट को आराम देने वाले घटक।
खांसी को नियंत्रित करने वाली दवाएं।

Benefits of Kanchanar Guggul

तेज पत्ता

वे घटक जिनका इस्‍तेमाल फ्री रेडिकल्‍स की सक्रियता को कम करने और ऑक्‍सीडेटिव स्‍ट्रेस (मुक्त कणों के बनने और उनके शरीर के प्रति हानिकरक प्रभाव को न रोक पाने के बीच का असंतुलन) को रोकने के लिए किया जाता है।
ये दवाएं जठरांत्र से अनावश्यक गैस को हटाने में मदद करती हैं।
पाचन क्रिया और पेट को आराम देने वाले घटक।

त्रिकटु

एजेंट या तत्‍व जो सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
दवाएं जो भूख को बढ़ाती हैं और एनोरेक्सिया व भूख न लगने के इलाज में इस्तेमाल की जाती हैं।
वे दवाएं जो गैस्‍ट्रोइंटेस्‍टाइनल मार्ग से अत्‍यधिक गैस को निकालने में मदद करती हैं।

त्रिफला

दर्द को कम करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं या एजेंट।
एजेंट या तत्‍व जो सूजन को कम करने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
घटक जो पेट व आंत की गैस से राहत दिलाते हैं।
वो दवा जो पेट और आंत के काम को आसान कर पाचन तंत्र को बेहतर करती है।
ऐसे पदार्थ जो प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य को उत्तेजित करके या कम करके उसे ठीक करता है|
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  • 19.1.22

    मानसिक रोगों के लक्षण और चिकित्सा:mental diseases




    आधुनिक दवाएं किस तरह से मानसिक रोगों का उपचार करती हैं इस बारे में लोगों में बहुत ज़्यादा जानकारी नहीं है। और इस बारे में भी कि मानसिक रोगों में दी जाने वाली दवाएं कितनी असरकारी हैं। ज़्यादातर लोग मानते हैं कि इस क्षेत्र में डॉक्टर कुछ नहीं कर सकते और मानसिक बीमारियों के लिए वे केवल ओझाओं साधुओं आदि पर ही विश्वास करते हैं।

     mental diseases

     ज़्यादातर लोगों को मानसिक रोगों के इलाज के लिए बिजली के झटकों और बंद करके रखे जाने के बारे में ही पता है। इस भाग में मानसिक रोगों के उपचार के बारे में बताया जा रहा है। निरोगण के मुख्य अवयव हैं दवाएं, बातचीत, आपातकालीन स्थिति में बिजली के झटके देना, अस्पताल में रखना और पुनर्वास। हर मामले में इनमें से सब की ज़रूरत नहीं होती। साधारण बीमारी दवाइयों और सुझावों से ही ठीक हो सकती है। गंभीर बीमारियॉं जैसे विखन्डित मनस्कता तक भी केवल दवाओं से दूर हो जाती हैं।
      अस्पताल में रखे जाने और बिजली के झटकों की ज़रूरत कभी कभी ही होती है। विखन्डित मनस्कता और उन्माद अवसादी विक्षिप्ति में लंबे समय तक मानसिक रोगों mental diseases
     के इलाज की ज़रूरत होती है।इन बीमारियों में हालांकि पूरी तरह से ठीक होना मुश्किल है परन्तु इलाज से स्थिति को बिगड़ने से रोका जा सकता है। मानसिक रोगों में इलाज लगातार चलने की ज़रूरत होती है।
    इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण गलत तरीके का खान-पान है। शरीर में दूषित द्रव्य जमा हो जाने के कारण मस्तिष्क के स्नायु में विकृति उत्पन्न हो जाती है जिसके कारण मस्तिष्क के स्नायु अपना कार्य करना बंद कर देते हैं और मानसिक रोग हो जाता है।
    • शरीर के खून में अधिक अम्लता हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता हैं क्योंकि अम्लता के कारण मस्तिष्क (नाड़ियों में सूजन) में सूजन आ जाती है जिसके कारण मस्तिष्क शरीर के किसी भाग पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और उसे मानसिक रोग  mental diseases हो जाता है।
    • अधिक चिंता, सोच-विचार करने, मानसिक कारण, गृह कलेश, लड़ाई-झगड़े तथा तनाव के कारण भी मस्तिष्क की नाड़ियों में रोग उत्पन्न हो जाता है और व्यक्ति को पागलपन का रोग हो जाता है।
    • अधिक मेहनत का कार्य करने, आराम न करने, थकावट, नींद पूरी न लेने, जननेन्द्रियों की थकावट, अनुचित ढ़ग से यौनक्रिया करना, आंखों पर अधिक जोर देना, शल्यक्रिया के द्वारा शरीर के किसी अंग को निकाल देने के कारण भी मानसिक रोग हो सकता है।
    • यह रोग पेट में अधिक कब्ज बनने के कारण भी हो सकता है क्योंकि कब्ज के कारण आंतों में मल सड़ने लगता है जिसके कारण दिमाग में गर्मी चढ़ जाती है और मानसिक रोग हो जाता है।

    होम्योपैथी-

      होम्योपैथी मानसिक बीमारियों mental diseases  के इलाज के लिए काफी उपयोगी होती है। इसलिए आपको जहॉं भी ज़रूरी हो होम्योपैथी का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • नजला जुकाम के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार

    मानसिक रोगों के लिए होम्योपैथिक दवाओं के बारे ध्यान से पढें।
    इन्हें शायद सहायता की ज़रूरत है
    जिन लोगों को मनोचिकित्सा की ज़रूरत होती है, उनकी सूची नीचे दी गई है।
    जो कि बेसिरपैर की बातें करता हो और अजीबोगरीब और असामान्य व्यवहार करता हो।
    जो बहुत चुप हो गया हो और औरों से मिलना जुलना और बात करना छोड़ दे।
    अगर कोई ऐसी बातें सुनने या ऐसी चीज़ें देखने का दावा करे जो औरों को न सुनाई / दिखाई दे रही हों।
    अगर कोई बहुत ही शक्की हो और वह हमेशा यह शिकायत करता रहे कि दूसरे लोग उसे नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
       अगर कोई ज़रूरत से ज़्यादा खुश रहने लगे, हमेशा चुटकुले सुनाता रहे या कहे कि वह बहुत अमीर है या औरों से बहुत बेहतर है जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हो।
    अगर कोई बहुत दु:खी रहने लगे और बिना मतलब रोता रहे।
    अगर कोई आत्महत्या की बातें करता रहे या उसने आत्महत्या की कोशिश की हो।
    अगर कोई कहे कि उसमें भगवान या कोई आत्मा समा गई है। या अगर कोई कहता रहे कि उसके ऊपर जादू टोना किया जा रहा है या कोई बुरी छाया है।
    अगर किसी को दौरे पड़ते हों और उसे बेहोशी आ जाती हो और वो बेहोशी में गिर जाता हो।
    अगर कोई बहुत ही निष्क्रिय रहता हो, बचपन से ही धीमा हो और अपनी उम्र के हिसाब से विकसित न हुआ हो।


    गुस्सा आना
    कुछ लोगो को बहुत गुस्सा आता है। छोटी-छोटी बातों पर भी उन्हें इतना गुस्सा आता है कि गुस्से में सामान फेंकना, मार-पीट करना, चीखना ये सब करने लगते हैं। धीरे-धीरे उनका यह स्वाभाव बन जाता हैं। स्वाभाव ईर्ष्या करना
    आज के समय में जहां हर जगह प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ रही है, वहीं लोगों में एक-दूसरे के प्रति ईर्ष्या की भावना भी बढती जा रही है। जब ये विचार मन में बार-बार आने लगते हैं तो मन और तन में कई प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं। 

    ईर्ष्या से बचने के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-

    हांयसोमस (Hyos)
    लेकेसिस (Lach)
    एपिस-मेलिफिका (Apis-Melifica)चिड़चिड़ा हो जाता हैं।
    कई बार यह विचार आता है कि लोग उसके बारे में क्या कहेंगे और इसी वजह से उसे बहुत क्रोध आता है। कभी-कभी जब कोई व्यक्ति इस गुस्से और अपमान को मन में दबा कर रखता हैं तो कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न होने लगते हैं। इस विकार की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    केमोमिला (chamomila)
    नक्स-वोमिका (Nux-Vomica)
    स्टेफीसेंग्रिया (Staphy)
    लायकोपोडियम (Lycopodium)

    डर लगना

    कुछ लोगों को हमेशा डर लगता हैं। जैसे अंधेरे से, अकेले रहने से, ऊंचाई से, मरने से, भीड़ से, एग्जाम से, रोड पार करने से और अकेलेपन से। धीरे-धीरे ये डर कई तरह के शारीरिक और मानसिक रोग पैदा कर देता हैं। डर की होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    आर्जेंटिकम-नाइट्रीकम (Arg-Nit)
    एकोनाईट (Aconite)
    स्ट्रामोनियम (Stramonium)
    एनाकार्डियम (Anacard)

    रोना

    अक्सर कुछ लोग खासकर महिलाएं जरा-जरा सी बात पर रो देती हैं। किसी ने कुछ कहा नहीं कि आंसू बहने लगते हैं। छोटी-छोटी बात पर रोना आता है, जो एक प्रकार का मनोविकार हैं। इसके लिए कुछ होम्योपैथिक मेडिसिन्स हैं-
    नेट्रम-म्यूर(Nat-Mur)
    पल्सेटिला(Puls)
    सीपिया (Sepia)

    आत्महत्या करने का विचार

    कई बार बहुत से लोगों को छोटी-छोटी बात पर आत्महत्या करने का विचार मन में आने लगता है। जरा सी कोई परेशानी आई नहीं, कि वो मरने का सोचने लगते हैं। लेकिन होम्योपैथिक मेडिसिन देने से इस प्रकार के विचार धीरे-धीरे कम हो जाते हैं। ऐसी ही कुछ दवाइयां हैं-
    औरम-मेट (Aur-Met)
    आर्स-एल्बम (Ars-Alb)

    शक करना

    कुछ लोगों को हर बात में शक करने की आदत होती है। छोटी-छोटी बातो में वो शक करते हैं। हर किसी को शक भरी नजर से देखते हैं। ऐसे लोगों के लिए कुछ होम्योपैथी मेडिसिन्स हैं-
    हांयसोमस (Hyos)
    लेकेसिस (Lach)

    झूठ बोलना

    बहुत से लोगों की हर बात पर झूठ बोलने की आदत होती हैं जोकि आजकल ज्यादातर लोगों में देखने को मिलती है। इसे दूर करने के लिए कुछ होम्योपैथी दवाइयां हैं-
    आर्ज-नाईट्रीकम (Arg-Nit)
    कौस्टिकम (Caust)

    उचित मानसिक स्वास्थ्य-

    अभी तक हमने मानसिक रोगों और समस्याओं के बारे में बात की है। परन्तु उचित मानसिक स्वास्थ्य भी कोई चीज़ है और हम सबको अपना मानसिक स्वास्थ्य वैसा बनाना चाहिए। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य ठीक रख पाने में दूसरों की मदद करनी चाहिए।
     यह ज़्यादातर लोगों के लिए बचपन से ही शुरू हो जाता है, परन्तु कभी भी बहुत देर नहीं हुई होती।
    रोज़ कसरत करना, सैर करना और खेलना अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
    टीम वाले खेल सबसे ज़्यादा अच्छे होते हैं क्योंकि इनसे दिमाग में गलत विचार नहीं आते।
    योगा से मदद मिलती है। और योगा ज़रूर करना चाहिए 
      सार्थक काम करने और काम में संतुष्टी होने से भी मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।
    हमें अपने बारे में ध्यान से सोच कर अपनी स्वाभाव को समझना चाहिए और अपनी गलतियों को सुधारना चाहिए। किताबों और दोस्तों से सबसे ज़्यादा मदद मिलती है।

    धर्म – 

    सहानुभूति, वैराग्य, आदर और अच्छा इन्सान बनने के धर्म के बुनियादी सिद्धांत से मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। इससे जीवन के दु:खों और मुश्किलों से निपटने में मदद मिलती है। परन्तु उन लोगों से सावधान रहें जो कि धर्म के नाम पर लोगों के बीच फूट डालने की कोशिश करते हैं।
    नाच गाने, होली, डांडिया आदि जैसी सामाजिक घटनाएं लोगों के दिमाग से गलत विचार निकलाने में मदद करती हैं। जब भी ऐसे मौके आएं तो लोगों के साथ मिलने जुलने की कोशिश करें।

    देसी घरेलु उपचार व आयुर्वेदिक नुस्खे-

    • अखरोट की बनावट मानव-मस्तिष्क जैसी  होती है । अतः प्रातःकाल एक अखरोट व मिश्री दूध में मिलाकर ‘ ॐ ऐं नमः’ या ‘ ॐ श्री सरस्वत्ये नमः ‘ जपते हुए पीने से मानसिक रोगों mental diseases  में लाभ होता है व यादशक्ति पुष्ट होती है ।
    • मालकाँगनी का 2-2 बूँद तेल एक बताशे में डालकर सुबह-शाम खाने से मस्तिष्क के एवं मानसिक रोगों में लाभ होता है।
    • स्वस्थ अवस्था में भी तुलसी के आठ-दस पत्ते, एक काली मिर्च तथा गुलाब की कुछ पंखुड़ियों को बारीक पीसकर पानी में मिलाकर प्रतिदिन सुबह पीने से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ती है। इसमें एक से तीन बादाम मिलाकर ठंडाई की तरह बना सकते हैं। इसके लिए पहले रात को बादाम भिगोकर सुबह छिलका उतारकर पीस लें। यह ठंडाई दिमाग को तरावट व स्फूर्ति प्रदान करती है।
  • नजला जुकाम के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार


    • रोज सुबह आँवले का मुरब्बा खाने से भी स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। अथवा च्यवनप्राश खाने से इसके साथ कई अन्य लाभ भी होते हैं।
    • गर्म दूध में एक से तीन पिसी हुई बादाम की गिरी और दो तीन केसर के रेशे डालकर पीने से मानसिक रोगों  mental diseases में लाभ होता है साथ ही स्मरणशक्ति तीव्र होती है।
    • सिर पर देसी गाय के घी की मालिश करने से भी मानसिक रोगों में लाभ होता है।
    • मूलबन्ध, उड्डीयान बंध, जालंधर बंध (कंठकूप पर दबाव डालकर ठोडी को छाती की तरफ करके बैठना) से भी बुद्धि विकसित होती है, मन स्थिर होता है।
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    23.12.21

    आलू खाने के स्वास्थ्य लाभ:benefits of potatoes

     




       हर इंसान को आलू खाना पंसद होता है। इसे सभी अपने-अपने तरीके से रेसिपी बनाकर खाते है। लेकिन आप जानते है कि यह हमारी सेहत के लिए कितना फायदेमंद है। इसका सेवन करने से आपको कई बीमारियों से निजात मिल जाता है। इसका इस्तेमाल करने से केवल सेहत ही नहीं बल्कि सौंदर्य के लिए भी किया जाता है। कई लोग मानते है कि आलू खाने से आप मोटे हो जाएगे। जबकि ऐसा कुछ नहीं है |   
    *उच्च रक्तचाप के रोगी भी आलू खाएँ तो रक्तचाप को सामान्य बनाने में लाभ करता है।
    * आलू को पीसकर त्वचा पर मलें। रंग गोरा हो जाएगा।
    * कच्चा आलू पत्थर पर घिसकर सुबह-शाम काजल की तरह लगाने से 5 से 6 वर्ष पुराना जाला और 4 वर्ष तक का फूला 3 मास में साफ हो जाता है।
    benefits potatoes -आलू का रस दूध पीते बच्चों और बड़े बच्चों को पिलाने से वे मोटे-ताजे हो जाते हैं। आलू के रस में मधु मिलाकर भी पिला सकते हैं। 

    * आलुओं में मुर्गी के चूजों जितना प्रोटीन होता है, सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। आलू का प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाला और बुढ़ापे की कमजोरी दूर करने वाला होता है।
    भुना हुआ आलू पुरानी कब्ज और अंतड़ियों की सड़ांध दूर करता है। आलू में पोटेशियम साल्ट होता है जो अम्लपित्त को रोकता है।
    * चार आलू सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च डालकर नित्य खाएँ। इससे गठिया ठीक हो जाता है।
    benefits potatoes- गुर्दे की पथरी में केवल आलू खाते रहने पर बहुत लाभ होता है। पथरी के रोगी को केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक पानी पिलाते रहने से गुर्दे की पथरियाँ और रेत आसानी से निकल जाती हैं। 

    *क्या आप जानते हैं आलू में बहुत अधिक मात्रा में पोटैशियम पाया जाता हैं. जो कि सेहत के लिए फायदेमंद है. ऐसे में आपको कोशिश करनी चाहिए कि जब आप आलू का इस्तेमाल करें तो उसे अच्छे से धोकर बिना छिलका उतारे ही इस्तेमाल करें. ताकि इसमें मौजूद पौटेशियम का पूरा-पूरा फायदा मिल सके|
    * रक्तपित्त बीमारी में कच्चा आलू बहुत फायदा करता है।
    * कभी-कभी चोट लगने पर नील पड़ जाती है। नील पड़ी जगह पर कच्चा आलू पीसकर लगाएँ ।
    * शरीर पर कहीं जल गया हो, तेज धूप से त्वचा झुलस गई हो, त्वचा पर झुर्रियां हों या कोई त्वचा रोग हो तो कच्चे आलू का रस निकालकर लगाने से फायदा होता है।

    आलू का रस पीने के फायदे / benefit of potato juice

    आलू के जूस को पीने से आप आसानी से अपने कोलेस्ट्रोल के स्तर को नियंत्रण में रख सकते हैं। यह आपके समस्त स्वस्थ्य सम्बन्धी समस्या का हल भी है।
    *आलू का जूस आपके बढ़ते हुए वजन को घटा देता है। इसके लिए सुबह अपने नाश्ते से दो घंटे पहले आलू का जूस का सेवन करें। यह भूख को नियंत्रित करता है और वजन को कम कर देता है।
    *गठिया के रोग में आलू का जूस बेहद कारगर तरह से काम करता है। आलू के जूस को पीने से यूरिक एसिड शरीर से बाहर निकलता है। और गठिया की सूजन 
    gout inflammation को कम करता है।
    *लिवर और गॉल ब्लैडर की गंदगी को निकालने के लिए आलू का जूस काफी मददगार साबित होता है। जापानी लोग हेपेटाइटिस से निजात पाने के लिए आलू के जूस का इस्तमाल करते हैं ।
     *आपके बालों को जल्दी बड़ा करने के लिए आलू के जूस का नियमित मास्क काफी मददगार साबित होता है। एक आलू को लेकर इसका छिलका निकाल लें। इसके टुकड़ों में काटकर पीस लें। अब इससे रस निकाल लें और इसमें शहद और अंडे का उजला भाग मिला लें। अब इस पेस्ट को सर और बालों पर लगाएं। इसे दो घंटे तक रखें और उसके बाद शैम्पू से धो लें।

    *अगर आप डाइबिटीज के मरीज हैं तो यह आपके लिए बेहद फायदेमंद चीज है। इसका सेवन करने से यह शरीर के खून में शर्करा के स्तर को कम करने में काफी प्रभावकारी साबित होगा।
    *अगर आपको एसिडिटी की समस्या है तो आलू का रस काफी फायदेमंद साबित हो सकता है। इसके लिए इसके रस को रोजना आधा कप पिएं। इससे आपको लाभ मिलेगा।
    *ह्रदय की बिमारी और स्ट्रोक से बचने और इसे कम करने के लिए आलू सबसे अच्छा उपाय है।
    यह नब्ज़ के अवरोध, कैंसर, हार्ट अटैक और ट्यूमर को बढ़ने से कम करता है।
    *potato juice-किडनी की बिमारियों का इलाज करने के लिए आलू का जूस पीने की आदत डालें। यह ब्लड प्रेशर और डायबिटीज को नियंत्रण में रखने में भी मदद करता है। आलू का जूस मूत्राशय में कैल्शियम का पत्थर बनने नहीं देता।

    *gout inflammation-आलू का जूस जोड़ों के दर्द व सूजन को खत्म करता है। अर्थराइटिस से परेशान लोगों को दिन में दो बार आलू का जूस पीना चाहिए। यह दर्द व सूजन में राहत देता है। शरीर में खून के संचार को भी बेहतर बनाता है आलू का जूस।
    *अगर आपके चेहरे में दाग, धब्बे और पिपंल है तो आलू का रस काफी फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में विटामिन सी और बी कॉम्प्लेक्स के साथ पोटेशियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और जस्त जैसे खनिज पाया जाता है, जोकि हमारी स्किन के लिए फादेमंद है

    क्या हम आलू का जूस स्टोर कर सकते हैं?

    आलू का जूस फ्रिज में ज्यादा से ज्यादा 3 से 4 दिन तक रह सकता है। लेकिन इसे जितना हो सके ताजा सेवन करने की सलाह दी जाती है।

    आलू का रस कैसे बनाएं

    आलू का रस बनाने का तरीका बहुत ही आसान है। नीचे जानिए आलू का जूस कैसे बनाते हैं:

    सामग्री :
    1-2 आलू

    बनाने की विधि:

    सबसे पहले बिना किसी दाग-धब्बों वाला कच्चा आलू लें।

    अब इसे अच्छी तरह धो लें।
    अगर इस पर कोई अंकुरित कोंपले हैं, तो उसे भी हटा दें।
    अब आलू को छीलकर इसे कद्दूकस कर लें।
    अब एक कटोरी में आलू के इस गूदे को निचोड़कर उसका रस निकालें और उसका सेवन करें।

    रोजाना आलू का जूस पीने से क्या हो सकता है?

    अगर रोजाना उचित मात्रा में आलू का जूस का सेवन किया जाए, तो यह गठिया, कब्ज, शरीर की सफाई करने और पेट से जुड़ी समस्याओं से बचाव में मदद कर सकता है
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