20.11.21

जलोदर रोग (Ascites) के कारण, लक्षण एवं उपचार:jalodar ka ilaj

 





जलोदर शब्द ही रोग को स्पष्ट कर देता है अर्थात पेट में जल भर जाना. संक्षेप में इतना बतला देना ही काफी है के जब रोगी के पेट में पानी भर जाता है तो उस हालत को जलोदर रोग कहते हैं. पेट में जल भरने के अलावा हाथ, पाँव और मुख पर शोथ अर्थात सूजन आ जाती है. और इसमें खांसी, श्वांस के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.

                                                                                                                                                
जलोदर के कारण--

जलोदर रोग ” या पेट में पानी भरने की समस्या एक प्राणघातक विकार है | अत्याधिक मात्रा में शराब का सेवन करना लिवर में पानी भरने का प्रमुख कारण है
जलोदर मुख्यतः लिवर के पुराने रोग से उत्पन्न होता है।
खून में एल्ब्युमिन के स्तर में गिरावट होने का भी जलोदर से संबंध रहता है।
पेट या लीवर में पानी भर जाना जलोदर (Ascites) कहलाता है | यह कोई रोग नही अपितु अन्य रोगों के कारण उत्पन्न हुयी समस्या है | लिवर में इन्फेक्शन, ह्रदय एवं वृक्क में उत्पन्न हुए विकार इसका प्रमुख कारण है | अगर पेट में 25 ml से ज्यादा पानी इक्कठा हो जाये तो Ascites हो सकता है |
मिथ्या आहार विहार, मीठे तथा चिकने पदार्थों एवं शराब का अधिक सेवन, गरिष्ठ भोजन (मीट, मांस अधिक वसा वाला) करते रहना और शारीरिक परिश्रम ना करना. वायु तथा प्रकाशहीन गंदे मकानों में रहना, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम करना, हर समय चिंतित रहना, बहुत समय तक पेट के रोगों तथा मलेरिया आदि रहने से प्लीहा अर्थात Spleen यकृत अर्थात liver के दूषित हो जाने के साथ मन्दाग्नि आदि हो जाने से उदर व् उदावरण के बीच में एक तरल द्रव्य एकत्र होने लगता है. इसी प्रकार यकृत दूषित हो जाने से यकृतजन्य जलोदर उत्पन्न होता है. हृदय विकार में अंत में जलोदर उत्पन्न होता है.यह रोग सभी स्त्री पुरुषों में सामन रूप से देखने में आता है.जलोदर वास्तव में कोई स्वतंत्र रोग नहीं है. Liver Heart और Kidney के दूषित होने से यह रोग उत्पन्न होता है. Liver के कारण हुए जलोदर की यह भी एक परीक्षा है के उदर में जल भरने के अतिरिक्त शरीर के अन्य अंगो पर शोथ अर्थात सूजन दिखाई नहीं देती बल्कि हाथ पाँव पतले पड़ जाते हैं. किन्तु हृदय, प्लीहा, और वृक्क दोष अर्थात किडनी रोगों से उत्पन्न होने वाले जलोदर में हाथ पाँव और मुख पर शोथ आ जाता है. हृदय दोष, जलोदर में कास अर्थात खांसी, श्वांस रोगों के चिन्ह भी प्रकट हो जाते हैं.

जलोदर के लक्षण--

पेट का फूलना
सांस में तकलीफ
टांगों की सूजन
बेचैनी और भारीपन मेहसूस होना
आयुर्वेदानुसार उदर रोग 8 प्रकार के होते हैं | त्रिदोषों में विकार आयुर्वेद में हर रोग का कारण माना जाता है | उदर रोग वात दोष में विकार के कारण होते हैं | जब वात प्रकुपित होकर पेट में त्वचा एवं मांसपेशियों के उत्तको के मध्य जमा हो जाये तो इससे सुजन आ जाती है | उत्तेजित वात के अलावा पाचन अग्नि (जठराग्नि) के मंद हो जाने से भी उदर रोग हो जाते हैं | इस प्रकार किसी रोग या विकार के कारण पेट में पानी भर जाने की समस्या जलोदर रोग कहलाती है |

जलोदर की चिकित्सा


जलोदर की उत्तम चिकित्सा आयुर्वेद में ही मिलती है, डॉक्टरी में तो यंत्र द्वारा पेट से पानी निकालते हैं. किन्तु थोड़े दिन ही लाभ प्रतीत होता है और पुनः पेट में पानी भर जाता है. इस प्रकार 3 से 4 बार पेट में पानी भरने से और निकालने की क्रिया (Tapping) अंत में सफल नहीं होती और रोगी क्रमशः क्षीण होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.
इस रोग की चिकित्सा कष्ट साध्य है. यदि रोग के आरम्भ होते ही योग्य चिकित्सक से निदान कराकर इलाज कराया जाए तो निश्चय ही आराम हो जाता है. इस रोग की चिकित्सा में दस्तों और मूत्र द्वारा जल निकालने के साथ साथ रक्त शुद्धि और रोगी के बल को स्थिर रखने का ध्यान रखना आवश्यक है. सबसे पहले रोगी के पेट की शुद्धि करनी चाहिए, और रोग का उचित निदान करके चिकित्सा करें. यथा पांडूजन्य अर्थात पीलिया से हुआ जलोदर में शोथहर लोह, यकृतजन्य अर्थात लीवर के कारण हुए जलोदर में लोह शिलाजीत युक्त चंद्रप्रभा पुनर्नवा के काढ़े के साथ उचित अनुपान से दें.

जलोदर में परहेज


जलोदर होने पर सर्वप्रथम रोगी को कुछ परहेज तुरंत करवाने चाहिए, परहेज ना करने पर ये रोग बिलकुल भी सही नहीं हो पाटा. एक तो रोगी का पानी बिलकुल बंद कर देना चाहिए, पानी की जगह पर रोगी को प्यास लगने पर आधा दूध और आधा पानी दोनों को मिलाकर अच्छे से उबाल कर ठंडा कर के रख लेना चाहिए, और यही पीने को दीजिये, अगर फिर भी प्यास ना मिटे तो अर्क मकोय (हमदर्द का मिल जाता है) थोडा थोडा देते रहें. दिन में मक्खन निकली हुई छाछ दे सकते हैं, रोगी के लिए सब प्रकार के नमक ज़हर के समान है, हरी सब्जी नहीं देनी है.

जलोदर के रोगी की छाछ

छाछ बनाने की विधि ये है के रात्रि को दूध गर्म करते समय इसमें एक चममच त्रिकटु पाउडर मिलाना है, जब यह गर्म हो जाए तो इसी में ही दही का जामण लगाना है और दही को मिटटी की हांडी में जमाना है. और इसी दही से रोगी के लिए छाछ बनानी है. छाछ बनाने के बाद इसमें से अच्छे से मथ कर मक्खन निकाल देना है. और यही छाछ देनी है.
जलोदर रोग (Ascites) का पता करने के लिए कोनसा टेस्ट किया जाता है ?
सामान्यतः रोगी के लक्षणों से इस रोग का पता चल जाता है | इसके लिए आप टेस्ट भी करा सकते है | दो तरह के टेस्ट इस रोग का पता करने के लिए किये जाते हैं |
फ्लूइड सैंपल (द्रव जांच) :- इसमें एक सुई की मदद से आप के पेट से तरल पदार्थ निकाल कर उसकी जांच होती है | इससे किसी इन्फेक्शन या कैंसर का पता चलता है |
MRI या CT scan :- अल्ट्रासाउंड, MRI या CT Scan की मदद से पेट के अन्दर की स्थिति का जायजा लेकर भी इसका पता लगाया जा सकता है |

आधुनिक विज्ञानं ने चिकित्सा क्षैत्र में बहुत उन्नति की है | बहुत से रोगों का इलाज आज आधुनिक चिकित्सा से संभव है | लेकिन ऐसा कोई उपचार या दवा एलोपथी में उपलब्ध नहीं है जिससे जलोदर का पुर्णतः इलाज संभव हो | अंग्रेजी दवाओं एवं इलाज से एक बार पानी को निकाल दिया जाता है लेकिन कुछ समय उपरांत यह पुनः भर जाता है | आयुर्वेद ग्रंथो में बताये उपचार, खान-पान एवं दवा के माध्यम से ही इस रोग का पुर्णतः इलाज संभव है |
आचार्य चरक ने चरक संहिता में उदररोगों के बहुत से कारण बताये हैं जिसमे जठराग्नि कम हो जाना, अशुद्ध आहार, प्रकुपित वात दोष एवं आंत में इन्फेक्शन हो जाना प्रमुख है | अतः इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए इसका इलाज किया जाता है | सिमित एवं शुद्ध भोजन करके एवं आयुर्वेदिक उपचार अपनाकर जलोदर का पूर्णतया इलाज किया जा सकता है | जानते है जलोदर रोग का इलाज क्या है :-

विरेचन से करें जलोदर रोग (Ascites) का इलाज :-

आयुर्वेदानुसार इस रोग का कारण प्रकुपित वातदोष है | विरेचन त्रिदोषों के संतुलन एवं पेट में द्रव को उचित मात्रा में बनाये रखने के लिए उत्तम उपाय है | यकृत रक्त के मुख्य स्थान है एवं रक्त एवं पित्त एक दुसरे पर आश्रित होते है | पित्त दोष को दूर करने के लिए विरेचन सबसे अच्छा उपाय है | इसके साथ ही विरेचन से पेट की गुहा में जमा द्रव कम होता है एवं पेट की सुजन कम होती है |
विरेचन एक आयुर्वेद चिकित्सा की प्रक्रिया है जिसमे औषधियों से रोगी के दूषित दोषों को मल के द्वारा बाहर निकाला जाता है | इस प्रक्रिया से त्वचा रोगों, सोरायसिस, मधुमेह एवं उदर रोगों में बहुत लाभ होता है | जलोदर रोग को ठीक करने के लिए विरेचन जरुरी है |

आयुर्वेदिक औषधियों से पेट में भरे द्रव को निकाल कर जलोदर का इलाज :-

जलोदर रोग का कारण पेट में द्रव का निश्चित मात्रा से ज्यादा एकत्र हो जाना है | इस द्रव को पेट से निकाल कर इस रोग का इलाज संभव है | इसके लिए सबसे पहले तो जरुरी है की रोगी को तरल पदार्थ एवं भोजन कम दिया जाये | सामान्यतः जलोदर रोग के इलाज के लिए रोगी को सिर्फ दूध पिलाया जाता है | पेट में जमा पानी को कम करने के लिए गोमूत्र का सेवन करना चाहिए | गोमूत्र में उष्ण एवं तीक्ष्ण गुण के कारण यह पेट में पानी भरने की समस्या को कम करता है |

जठराग्नि को मजबूत करके Ascites रोग का इलाज करें :-


किसी भी प्रकार के उदर रोग में मन्दाग्नि (पाचन शक्ति कमजोर होना) प्रमुख कारण होती है | पाचन अग्नि को मजबूत करके जलोदर रोग का इलाज किया जा सकता है | आयुर्वेद में त्रिकटू चूर्ण एवं शिवाक्षर पाचन चूर्ण पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी औषधि हैं | जलोदर रोग में इन दोनों औषधियों का सेवन करना चाहिए | इसके सेवन से जठराग्नि मजबूत होगी एवं पेट में पानी भरने की समस्या में लाभ मिलेगा |

लिवर में इन्फेक्शन को ठीक करके इस रोग का इलाज संभव है :-

अगर लिवर में इन्फेक्शन हो जाये या अन्य कोई लिवर का रोग हो तो जलोदर रोग हो सकता है | आयुर्वेद में बहुत सारी औषधियां हैं जो लिवर रोगों में अत्यंत लाभदायी हैं | आरोग्यवर्धिनी वटी एवं सर्पुन्खा स्वरस लिवर के लिए बहुत उपयोगी है | इनका सेवन करके लिवर इन्फेक्शन को कम किया जा सकता है | एवं जलोदर रोग में इनसे अत्यंत लाभ मिलता है |
मूली के पत्तों के 50 ग्राम रस में थोड़ा-सा जल मिलाकर सेवन करें।
* अनार का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* प्रतिदिन दो-तीन बार खाने से, अधिक मूत्र आने पर जलोदर रोग की विकृति नष्ट होती है।
* आम खाने व आम का रस पीने से जलोदर रोग नष्ट होता है।
* लहसुन का 5 ग्राम रस 100 ग्राम जल में मिलाकर सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट होता हैं।

पेट में पानी भरने की समस्या की आयुर्वेदिक दवा क्या है ?

चरक संहिता एवं अन्य आयुर्वेद ग्रंथो में इस रोग के निदान के लिए बहुत सी औषधियों का उल्लेख है | आइये जानते है कुछ बेहतरीन आयुर्वेदिक दवाएं जिनसे उदर रोग का इलाज हो सकता है :-
आरोग्यवर्धिनी वटी |
सर्पुन्खा स्वरस |
गौमूत्र |
पुनर्नवादी क्वाथ |
पुनर्नवादी मंडूर |
एरंडभृष्ट हरीतकी |

त्रिकटू चूर्ण |
शिवाक्षर पाचन चूर्ण |

Ascites (पेट में पानी भरना) रोग में क्या खाएं ?

इस रोग के इलाज के लिए बहुत जरुरी है की उचित खान-पान करें एवं परहेज रखें | आइये जानते है जलोदर रोग में क्या खाएं एवं क्या न खाएं ?
तरल पदार्थ कम खाएं |
ज्यादा मसाले वाला भोजन न करें |
अम्लीय खाना न खाएं |
नमकीन चीजें न खाएं |
शराब का सेवन बिलकुल भी न करें |
कम खाना खाएं |
जहाँ तक हो सके सिर्फ दूध का सेवन करें |
धुम्रपान न करें |
फलों का सेवन करें |

पेट में पानी भरने की बीमारी में उपयोगी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां

आयुर्वेद में इस रोग के उपचार के लिए बहुत सी औषधियो का उल्लेख है | ऐसी जड़ी बूटियां जो जलोदर रोग में लाभदायी हैं :-
कपूर |
कुमारी |
ज्योतिष्मती |
जंगली प्याज |
दंती |
देवदारु |
कटुकी |

क्या जलोदर रोग (Ascites) प्राणघातक है ?

यह रोग व्यक्ति के लिए बहुत कष्टदायी है | जलोदर रोग में पेट में भारीपन रहना, साँस लेने में तकलीफ एवं वजन बढ़ जाना जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है | लेकिन नजरंदाज करने एवं उच्चित इलाज के अभाव में यह प्राणघातक भी हो सकता है |* 25-30 ग्राम करेले का रस जल में मिलाकर पीने से जलोदर रोग में बहुत लाभ होता है।
* बेल के पत्तों के 25-30 ग्राम रस में थोड़ा-सा छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
* करौंदे के पत्तों का रस 10 ग्राम मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से जलोदर राग में बहुत लाभ होता है।
गोमूत्र में अजवायन को डालकर रखें। शुष्क हो जाने पर प्रतिदिन इस अजवायन का सेवन करने पर जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।*जलोदर रोग में लहसुन का प्रयोग हितकारी है। लहसुन का रस आधा चम्मच आधा गिलास जल में मिलाकर लेना कर्तव्य है। कुछ रोज लेते रहने से फर्क नजर आएगा।

*देसी चना करीब ३० ग्राम ३०० मिली पानी में उबालें कि आधा रह जाए। ठंडा होने पर छानकर पियें। २५ दिन जारी रखें।
*करेला का जूस ३०-४० मिली आधा गिलास जल में दिन में ३ बार पियें। इससे जलोदर रोग निवारण में अच्छी मदद मिलती है।
*जलोदर रोगी को पानी की मात्रा कम कर देना चाहिये। शरीर के लिये तरल की आपूर्ति दूध से करना उचित है। लेकिन याद रहे अधिक तरल से टांगों की सूजन बढेगी।
*जलोदर की चिकित्सा में मूली के पत्ते का रस अति गुणकारी माना गया है। १०० मिली रस दिन में ३ बार पी सकते हैं।
*मैथी के बीज इस रोग में उपयोग करना लाभकारी रहता है। रात को २० ग्राम बीज पानी में गला दें। सुबह छानकर पियें।
*अपने भोजन में प्याज का उपयोग करें इससे पेट में जमा तरल मूत्र के माध्यम से निकलेगा और आराम लगेगा।
*जलोदर रोगी रोजाना तरबूज खाएं। इससे शरीर में तरल का बेलेंस ठीक रखने में सहायता मिलती है।
*छाछ और गाजर का रस उपकारी है। ये शक्ति देते हैं और जलोदर में तरल का स्तर अधिक नहीं बढाते हैं।
*अपने भोजन में चने का सूप ,पुराने चावल, ऊंटडी का दूध , सलाद ,लहसुन, हींग को समुचित स्थान देना चाहिये।
*रोग की गंभीरता पर नजर रखते हुए अपने चिकित्सक के परामर्शानुसार कार्य करें।
क्या न खाएं?
* जलोदर रोग में पीड़ित व्यक्ति को उष्ण मिर्च-मसालें व अम्लीस रसों से बने चटपटे खाद्य पदार्थो का सेवन नही करना चाहिए।
* घी, तेल, मक्खन आदि वसा युक्त खाद्य पदार्थाो का सेवन न करेें
* गरिष्ठ खाद्य पदार्थों, उड़द की दाल, अरबी, कचालू, फूलगोभी आदि का सेवन न करें।
* चाय, कॉफी व शराब का सेवन न करें।

जलोदर का प्रथम योग


पीपल बड़ी 50 ग्राम., बड़ी हर्र्ड का बक्कल अर्थात इसका उपरी छिलका 50 ग्राम, इन दोनों को यवकूट अर्थात मोटा मोटा कूट कर अष्टधारा सेंहुड (थोहर) के दूध में 24 घंटे भिगोकर फिर इसको बारीक पीसकर झडबेरी के बेर के समान गोली बना लें. (झडबेरी के बेर मोटे और बड़े होते हैं) इसकी फोटो नीचे लगा दी गयी है. बलवान आदमी को एक गोली और निर्बल को आधी गोली खिलाकर ऊपर से शरपुंखा का काढ़ा पिलादें. शरपुंखा का काढ़ा बनाने की विधि यह है के 25 ग्राम शरपुंखा को 400 मि.ली. पानी में औटावें, जब यह 1/4 रह जाए अर्थात 100 ग्राम रह जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री मिला दें. यह काढ़ा ऊपर वाली गोली खिला कर पिला दें.
 यह ऊपर बताई गयी गोली दांत से नहीं लगनी चाहिए और ना ही चबाना चाहिए. यह दांतों के लिए हानिप्रद है. सीधे ही निगल लें. यदि इस गोली से दस्त ना हों तो हर तीसरे दिन ऊंटनी का दूध या भेड़ का दूध आधा पाव 125 ग्राम, ग्राम पिलाकर दस्त करा देना चाहिए, यदि ऊँटनी या भेड़ का दूध ना मिले तो इच्छा भेदी रस या किसी रेचक चूर्ण से दस्त करा देना उचित है. जलोदर रोगी का कोष्ठ बहुत क्रूर हो जाता है अतः कोई रेचक दवा पाच जाए और दस्त ना हो तो घबराएं नहीं. उसके अनुपान में बदलाव करवा कर दस्त करवा देना चाहिए.
इस प्रयोग में केवल बकरी का दूध मिश्री मिला हुआ पिलाना चाहिए, अन्न आदि कोई वस्तु कदापि खाने को न दें. नमक और पानी देना भी बंद कर दें. रोगी को जब भी प्यास या भूख लगे तो दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत ना हो तो आधे गिलास पानी को अच्छे से उबाल दिला कर इसमें आधा गिलास दूध मिला कर दें. यदि बकरी का दूध ना मिले तो देसी गाय का दूध दीजिये.
थूहर या सेंहुड की कई प्रजातियाँ आती है, इसमें त्रिधारा, चार धारा इत्यादि आती है, इसकी डंडी के ऊपर कितनी डंडियाँ निकल रही हैं ये इस से पता चलता है के ये कौन सा सेंहुड है, कोशिश करे के अष्टधारा सेंहुड ही मिले अन्यथा इनको भी ले सकते हैं.

जलोदर का दूसरा योग

50 ग्राम पीपल को अष्टधारा थोहर के दूध में घोटकर चणक के जैसी गोलियां बनाकर प्रातः और सांय 2 2 गोलियां गर्म दूध के साथ सेवन करना लिखा है. और खाने में केवल गर्म दूध ही देना है. अन्न जल कुछ भी नाह देना है. अगर अधिक प्यास हो तो अर्क मकोय पिला सकते हैं. इस योग को बहुत बार का अनुभात बताया है.
यह योग बहुत उत्तम है किन्तु इसमें भी हर तीसरे दिन रेचन अर्थात दस्त कराना उचित है. और अगर गोलियों के सेवन से ही दस्त होते रहें तो फिर रेचन करवाने की ज़रूरत नहीं.

जलोदर का तीसरा प्रयोग


कुटकी 40 ग्राम यवकूट कर के 200 ग्राम जल में काढ़ा बना लें. चौथाई जल शेष रहने पर अर्थात 50 ग्राम रहने पर इसको अच्छे से मल ले पानी में ही, फिर इसको कपडे की मदद से छान लें. इसी प्रकार प्रतिदिन सुबह नया काढ़ा बनाकर 21 दिन तक रोगी को निरंतर पिलायें. इस प्रयोग में दिन में 4 से 5 दस्त आयेंगे और रोगी की शारीरिक शक्ति दिन बी दिन क्षीण होती जाएगी. तीसरे सप्ताह जलोदर से बढ़ा हुआ पेट अपने असली आकार में आ जायेगा. हाथों पांवो की सूजन मिट कर शरीर बेहद नर कंकाल जैसा दिखेगा. किन्तु चिकित्सक इसकी परवाह ना करें बल्कि धैर्य पूर्वक चिकित्सा उचित अनुपान से चालु रखें.

जलोदर में अति विशेष 

यदि हाथ, पाँव, पिंडलियों तथा चेहरे पर शोथ हो तो भैंस के दूध के मक्खन में काले तिल एवं शुष्क मकोय फल अर्थात मकोय का सूखा फल समान समान भाग में मिला कर अर्थात मक्खन काले तिल और मकोय बराबर बराबर ले कर सुबह सुबह सूजन वाली जगह पर अच्छे से लेप कर दें. और शाम को ये छुड़ा दें. इसी प्रकार ये प्रयोग कम से कम 21 दिन तक करें. और इन दिनों में गाय का दूध ही सेवन करें. इसमें देशी शक्कर मिला कर दे सकते हैं. रोगी को जब प्यास या भूख लगे तो केवल दूध ही दें. यदि दूध से प्यास शांत न हो तो आधे गिलास पानी को उबाल कर इसमें आधा दूध मिला कर ही दें. रोगी को सादा पानी और नमक बिलकुल बंद कर देना चाहिए. 21 दिन के बाद रोगी को 25 ग्राम साठी चावल का मांड तैयार करके 60 ग्राम की मात्रा में दें. (मांड चावलों को उबालने के लिए डाला गया पानी है, जो चावलों के पकने के बाद बचता है) हर रोज़ 6 – 6 ग्राम चावल का वजन बढ़ाना चाहिए, एक हफ्ते तक दिन में पहले पहर अर्थात सुबह 9 baje तक यही देना चाहए. बाकी समय जब भी भूख प्यास लगे तो सिर्फ दूध ही दें. 26 वें दिन 50 ग्राम चावलों का मांड तैयार करके इस मांड मिले हुए चावल अगर मिश्री मिला कर खाना चाहें तो मिश्री मिला कर एक हफ्ते तक खाने को दें. बाकी समय रोगी को दूध और फल दें. 36 वें दिन से मांड मिश्रित चावलों के साथ मूंग तथा मोठ का यूष बनाकर देना शुरू करें. फिर दोनों समय सुबह और शाम यह यूष और मांड वाले साठी चावल खाएं. और क्रमशः रोगी को भोजन पर लायें. इस प्रकार नियमित चिकित्सा से भयंकर जलोदर भी शमन हो जाती है. इन प्रयोग काल में जितना परहेज हो उतना ही बेस्ट है. वैसे तो इस समय दूध से उत्तम कुछ भी नहीं, अगर फिर भी रोगी को कुछ खाने को मन करें तो वो थोड़े बहुत फल ले सकता है.
1. आरोग्यवर्धनी गुटिका,
मात्रा 1- 1 गोली (3 – 6 रत्ती)
अनुपान – दूध, पुनार्नावादी कवाथ या केवल पुनर्नवा का क्वाथ, दशमूलक्वाथ, मूत्रलकषाय आदि. यह जलोदर में शोथ में पीलिया में किया जाता है.
2. पुनर्नवा मंडूर
मात्रा – 1 से 2 गोली
अनुपान – यकृत की वृद्धि तथा सूजन में पुनार्नावादिक्वाथ और क्रिमी विकार में मुस्तादिक्वाथ में
इसके अलावा पुनार्नावादी (पुनार्नावाष्टक) कषाय, मूत्रलकषाय, कुमार्यासव को रोग देखकर उचित अनुपान के साथ देना चाहिए.
उपरोक्त बताये हुए प्रयोग सिर्फ अनुभवी वैध्य के सानिध्य में करने चाहिए, इनको करने से दस्त वगैरह हो कर रोगी का शरीर कमज़ोर हो सकता है.
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18.11.21

ग्रीन टी के फ़ायदे :Green Tea Benefits




अगर आप लंबे समय तक यंग और फिट रहना चाहते हैं तो ग्रीन टी को अपने रूटीन का हिस्सा जरूर बनाएं। दिन में एक से दो प्याली ग्रीन टी पीने से कोलेस्ट्रॉल, ब्लड प्रेशर तो कंट्रोल में रहता ही है साथ ही मेटाबॉलिज्म भी दुरूस्त रहता है। ग्रीन टी में विटामिन, फाइबर, कैल्शियम, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल जैसे कई गुण होते हैं। लेकिन ग्रीन-टी में कुछ और भी चीजें मिलाकर पीएं तो इसका फायदा दोगुना हो जाता है।

शहद


ग्रीट टी का स्वाद और असर बढ़ाने के लिए उसमें शहद मिलाएं। क्योंकि शहद एंटी-ऑक्सीजेंट, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल जैसे गुणों से भरा होता है। इसलिए इसे ग्रीन-टी में मिलाकर पिएं। इससे शरीर में मौजूद सारी गंदगी बाहर निकल जाती है जिससे स्किन पर ग्लो आता है।इम्यूनिटी बूस्ट होती है जिससे कई तरह की बीमारियां दूर रहती हैं।

नींबू

पेट, कमर और जांघ पर जमे फैट को कम करना है तो ग्रीन टी में नींबू मिलाकर पिएं। सिर्फ मोटापा ही नहीं ग्रीट टी औरनींबू का कॉम्बिनेशन सर्दी, खांसी, जैसे इंफेक्शन से भी दूर रखता है रोजाना इसके सेवन से डायबिटीज और ब्लड प्रेशर भी कंट्रोल में रहता है।

दालचीनी

शहद, नींबू के अलावा ग्रीन-टी में दालचीनी मिलाकर पीना भी बेहद असरदार होता है। विटामिन, फाइबर, आयरन, एंटी-ऑक्सीडेंट, एंटी-वायरल से भरपूर दालचीनी सेहत के लिए कई तरीकों से फायदेमंद है। इससे डाइजेशन सुधरता है जिससे वजन कंट्रोल में रहता है। इसके अलावा ये इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है जिससे कई खतरनाक बीमारियों की संभावना कम हो जाती है।
 ग्रीन टी अनेक प्रकार से हमारी सेहत के लिए फायदेमंद होता है। इसके नियमित सेवन से वजन में कमी आती है, त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं, बालों का झड़ना बंद हो जाता है और टॉक्सिन्स शरीर से बाहर हो जाते हैं। लेकिन इतने सारे फायदे होने के बावजूद ज्यादा मात्रा में ग्रीन टी पीना आपकी सेहत के लिए घातक भी हो सकता है। इससे उल्टी, दस्त, कब्ज, सिर दर्द, पेट दर्द, अनिद्रा आदि समस्याएं जन्म लेती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक एक दिन में तकरीबन 300-400 मिग्रा ही ग्रीन टी का सेवन करना चाहिए।
  ग्रीन टी मे कई स्वास्थ्यवर्धक गुण पाए जाते हैं। इसके नियमित सेवन से वज़न घटाने, त्वचा को सुंदर बनाने, तेज़ स्मरण शक्ति, पाचन और शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र मज़बूत बनाने में मदद मिलती है। यह दांतों की सड़न, ऑर्थराइटिस, किडनी के रोग, दिल के रोग और अनियमित रक्तचाप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन इसका अत्यधिक सेवन फ़ायदे की जगह नुक़सान का सबब बन सकता है।

अति’अच्छी नहीं-

 हालांकि, ग्रीन टी में ज्यादा मात्रा में कैफीन नहीं होता, फिर भी एक सीमा के बाद इसका सेवन अनिद्रा, चिंता, चिड़चिड़ापन और शरीर में आयरन की कमी के लिए ज़िम्मेदार हो सकता है। जानकारी के मुताबिक, दिन में 2-3 कप तक ही ग्रीन टी पीनी चाहिए। इससे ज्यादा पीने से उन लोगों को परेशानी हो सकती है, जो कैफीन की ज्यादा मात्रा के आदी नहीं होते हैं।

गर्भावस्था में करें नज़रअंदाज़-

 ग्रीन टी में मौजूद कैफीन व टॉनिक एसिड गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु के लिए अच्छा नहीं
होता। गर्भवस्था के दौरान इसका सेवन न करें।

स्वास्थ्य के लिए लाभ

हृदय की सुरक्षा :- 

 ग्रीन टी में पाये जाने वाले एंटी – ऑक्सीडेंट ख़राब कोलेस्ट्रॉल को कम करने, अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने एवं ब्लडप्रेशर को कम करने में मदद करते हैं. और इस तरह से यह हृदय की सुरक्षा करने में मददगार होते हैं. ‘हार्वर्ड मेडिकल स्कूल’ के हेल्थ वॉच मैगज़ीन द्वारा किये गये एक अध्ययन में इसकी पुष्टि करते हुए यह कहा गया था.

मस्तिष्क की कार्यक्षमता में वृद्धि करती है :-

  ग्रीन टी में कैफीन की मात्रा पर्याप्त होती हैं, जोकि मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करती है. यह शरीर में एक उत्तेजक के रूप में कार्य करता है. यदि आप बहुत अधिक मात्रा में कैफीन लेते थे और आपको उसे छोड़ना है तो आप ग्रीन टी के माध्यम से धीरे – धीरे उसे छोड़ सकते हैं. मस्तिष्क को काम करने के विभिन्न पहलू जैसे मूड, प्रतिक्रिया और मेमोरी आदि में सुधार लाने के लिए ग्रीन टी बहुत मददगार होती है. ग्रीन टी में कैफीन के साथ ही साथ एमिनो एसिड एल – थीनिन भी होता है, जोकि विशेष रूप से मस्तिष्क के फंक्शन में सुधार करने में कुशल होता हैं.


 ग्रीन टी के लोकप्रिय होने का एक मुख्य कारण वजन घटाने की दिशा में इसका योगदान भी है. और ग्रीन टी इसमें कारगार साबित हुई है. यह शरीर के चयापचय को बढ़ाती है और कुछ हद तक फैट को बर्न करने का काम भी करती है. दरअसल ग्रीन टी में पाया जाने वाला पॉलीफेनॉल फैट को बर्न करने में मदद करता हैं. और जब आपके शरीर से अतिरिक्त फैट कम हो जाता है तो आपका वजन अपने आप ही कम होने लगता है. इसलिए यह वजन कम करने के लिये फायदेमंद हैं.

बैक्टीरियल इन्फेक्शन से सुरक्षा करती हैं :- 

 ग्रीन टी में कुछ ऐसे गुण होते हैं जोकि बैक्टीरिया और वायरस के कारण शरीर में होने वाले इन्फेक्शन से रक्षा करते हैं. ग्रीन टी में मौजूद बीटा – कैरोटीन श्वसन एवं पाचन तंत्र के रखरखाव में मदद करता है. और साथ ही विटामिन सी ठण्ड को रोकने और थकान को कम करने में मदद करता है.

  यह सच हैं कि यदि आप नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करते हैं तो यह आपको लंबे समय तक जीने में मदद करेगा. इसका कारण यह हैं कि यह आपको विभिन्न बीमारियों से बचाता है. एक कप ग्रीन टी आपके शरीर का कायाकल्प करती हैं, जिससे आप दिन की शुरुआत करने के लिए तरोताजा और सक्रीय महसूस करते हैं.

त्वचा के लिए लाभ

त्वचा में नई जान लाना :- 

 ग्रीन टी आपकी त्वचा में फिर से जान डालने एवं चमकदार बनाने में मदद कर सकती है. और उसे स्वस्थ बना सकती हैं. यह त्वचा से टोक्सिन को हटाने, सूजन को कम करने, और मुंहासों और निशान को ठीक करता है. यह त्वचा की इलास्टिसिटी को भी बेहतर बनाता है. इसके लिए आप 2 उपयोग किये हुए ग्रीन टी में 1-2 छोटी चम्मच शहद, एक छोटा नींबू आदि मिलाएं और इसे चेहरे पर लगायें. और 5 -10 मिनिट बाद गुनगुने पानी से धो लें. यह काफि असरदार होता है.

कैंसर की रोकथाम :-

  शोधकर्ताओं से यह पता चला है कि नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने में मदद मिल सकती हैं. साथ ही अन्य कोशिकाओं के आसपास कोई भी हेल्थ टिश्यू से शरीर को होने वाले नुकसान से यह बचाती भी है. ग्रीन टी में पाए जाने वाले एंटी – ऑक्सीडेंट कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकते हुए उसके सामने एक सुरक्षात्मक बैरियर लगा देता है. जिससे कि यह विभिन्न प्रकार के कैंसर जैसे स्तन कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर आदि से शरीर की रक्षा हो सके.

  ग्रीन टी में कैटेचिन कंपाउंड होता हैं जोकि मस्तिष्क की कोशिकाओं में न्यूरोंस पर कार्य करता है, और अल्जाइमर एवं पार्किन्सन रोगों के रिस्क को कम करने में मदद करता है, इस रोग से आमतौर पर बुजुर्ग महिलाएं एवं बुजुर्ग पुरुष पीड़ित होते हैं.

पफी आईज और डार्क सर्कल्स को कम करता है :- 

 एक शोध में यह पाया गया है कि ग्रीन टी में पाया जाने वाला विटामिन के पफी आईज और डार्क सर्कल्स को कम करता है. इसके लिए उपयोग किये हुए ग्रीन टी बैग्स को आधे घन्टे के लिए फ्रिज में रखें, फिर इसे अपनी आंखों को बंद करके उसके ऊपर रखें, और 15 मिनिट ऐसे ही रखें रहने दें, आप बहुत रिलेक्स महसूस करेंगे.
मुंहासों का इलाज एवं त्वचा के लिए टोनर :- इसी तरह उपयोग किये हुए ग्रीन टी बैग्स को पानी के साथ मिलाकर इसे कॉटन की सहायता से अपने चेहरे पर लगायें, यह मुंहासों और फुंसियों के ईलाज एवं एक त्वचा के टोनर के रूप में कार्य करता है.

बालों के लिए लाभ 

बालों के विकास को बढ़ाती है :- 

 ग्रीन टी में अधिक मात्रा में एंटी – ऑक्सीडेंट होते हैं, जो बालों के विकास को बढ़ाते हैं. इसमें मौजूद कैटेचिन में 5 अल्फ़ा – रिडक्टेज अवरोधक गुण होते हैं जो बालों के झड़ने के प्रमुख कारणों में से एक डीएचटी (डायहाइड्रोटेस्टोस्टेरोन) को ब्लॉक करने में मदद करता है. यह नए बालों के विकास को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकता है. ग्रीन टी आम बालों और स्कैल्प से सम्बंधित समस्याओं जैसे ड्राई स्कैल्प और रूसी को दूर रखने में भी उपयोगी है. इसके लिए आप अपने बालों को धोने के बाद ताज़ा ग्रीन टी में पानी मिलाकर बालों में इसका प्रयोग करें. और इसे 10 मिनिट ऐसे ही रखें और इसे फिर धो लें, ऐसा एक सप्ताह में 2 से 3 बार करें. इसके अलावा बालों को सुंदर बनाने के लिए 2 से 3 कप ग्रीन टी रोज पियें.

बालों को चमकदार बनाती है :- 

 अपने बालों को मजबूत और स्वस्थ बनाने के अलावा ग्रीन टी आपके स्कैल्प की चिकनाई से छुटकारा पाने में मदद कर सकती है, जिससे आपको चमकदार और सुंदर बाल प्राप्त होते हैं. साथ ही यह प्रदूषण और कठोर रसायन आधारित बालों में उपयोग होने वाले उत्पादों के नुकसान से भी बचाती है. ग्रीन टी में मौजूद पैंथेनॉल और विटामिन सी एवं ई के हाई लेवल आपके बालों को कंडीशन करते हैं. इसके लिए आप 4 कप गर्म पानी में 2 से 3 ग्रीन टी बैग्स डालें, दूसरी ओर अपने बालों को गीला करें. इसके बाद ग्रीन टी बैग्स को हटा कर उस घोल को अपने बालों में लगायें. फिर इसे 10 मिनिट रखने के बाद शैम्पू कर लें. इस तरह से आपके बाल चमकदार बनेंगे. यह आपके स्कैल्प के खुले हुए छिद्रों को भी सिकोड़ता भी हैं जिससे कि उसमें बेक्टेरिया का इन्फेक्शन नहीं हो पाता.
इस तरह से ग्रीन टी स्वास्थ्य लाभ के अलावा आपकी त्वचा एवं बालों को भी सुन्दरता प्रदान कर लाभ देती हैं. इसलिए यह बहुत ही उपयोगी व्यंजन हैं.

ग्रीन टी से होने वाले नुकसान एवं रिस्क 

 वयस्क लोगों के लिए ग्रीन टी का सेवन करने के लिए कोई ज्ञात दुष्प्रभाव नहीं हैं लेकिन फिर भी ग्रीन टी से होने वाले कुछ नुकसान या रिस्क का पता होना भी आवश्यक हैं तो आइये आपको इसके बारे में जानकारी देते हैं –

कैफीन सेंसिटिविटी :- 

 वे लोग जो अधिक मात्रा में ग्रीन टी का सेवन करते हैं उनके शरीर में कैफीन की मात्रा बढ़ जाती हैं जिससे वे लोग अनिद्रा, चिंता, चिड़चिड़ापन, उल्टी या पेट ख़राब, अनियमित दिल की धड़कन, आँख के रोग, ब्लीडिंग डिसऑर्डर और बार – बार पेशाब आना जैसी बीमारी जा अनुभव कर सकते हैं.

गर्भावस्था के दौरान ग्रीन टी पीने में रिस्क :- 

 गर्भावस्था के दौरान, ग्रीन टी का निरंतर सेवन करने से गर्भपात होने की आशंका बढ़ जाती हैं. इसलिए यदि एक या अधिकतम दो कप ग्रीन टी का सेवन यदि ऐसी महिलाएं करती हैं तो उनके लिए उचित होगा. लेकिन यदि वे गर्भावस्था के उन कुछ महीनों के लिए इससे बच सकती हैं तो इसका सेवन न ही करें तो बेहतर होगा. क्योंकि ग्रीन टी में मौजूद कैफीन की स्तन के दूध में फैलने की सम्भावना होती हैं, जिससे बच्चे पर भी इसका दुष्प्रभाव हो सकता है.

आयरन की कमी :-

ग्रीन टी का अधिक सेवन करने से एनीमिया और आयरन की कमी जैसी समस्या भी बढ़ सकती है.

कब न पिएं...

*बासी ग्रीन टी- लंबे समय तक ग्रीन टी रखे रहने से उसमें मौजूद विटामिन और उसके एटी-ऑक्सीडेंट गुण कम होने लगते हैं। इतना ही नहीं, एक सीमा के बाद इसमें बैक्टीरिया भी पलने
लगते हैं। इसलिए एक घंटे से पहले बनी ग्रीन टी क़तई न पिएं।

*खाली पेट नहीं-

सुबह ख़ाली पेट ग्रीन टी पीने से एसिडिटी की शिकायत हो सकती है। इसके बजाय सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुना सौंफ का पानी पीने की आदत डालें। इससे पाचन सुधरेगा और शरीर के अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकालने में मदद मिलेगी।

*भोजन के तुरंत बाद- 

जल्दी वज़न घटाने के इच्छुक भोजन के तुरंत बाद ग्रीन टी पीते है, जबकि इससे पाचन और पोषक तत्वों के अवशोषण की प्रक्रिया प्रभावित होती है।

*देर रात पीना

कैफीन के सेवन के बाद दिमाग़ सक्रिय होता है और नींद भाग जाती है। इसलिए देर रात या सोने से ठीक पहले ग्रीन टी का सेवन न करें।
दवाई के बाद नहीं- किसी भी तरह की दवा खाने के तुरंत बाद ग्रीन टी न पिएं।
उबालना नहीं है
*उबलते पानी में ग्रीन टी कभी ना डालें। इससे एसिडिटी की समस्या हो सकती है। पहले पानी उबाल लें, फिर आंच से उतारकर उसमें ग्रीन टी की पत्तियां या टी बैग डालकर ढंक दें। दो मिनट बाद इसे छान लें या टी बैग अलग करें

आँखों की सूजन कम करने के लिए-

 चाय पत्ती आंखों की सूजन और थकान उतारने के लिए परफेक्ट उपाय है। इसके लिए आपको मशक्कत करने की ज़रूरत नहीं, बस दो टी बैग्स लीजिए और हल्के गर्म पानी में गीला करके 15 मिनट के लिए आंखों पर रखिए। इससे आपकी आंखों में होने वाली जलन और सूजन कम हो जाती है। चाय में प्राकृतिक एस्ट्रिजेंट होता है, जो आपकी आंखों की सूजन को कम करता है। टी बैग लगाने से डार्क सर्कल भी खत्म होते हैं।

*मुहासे की समस्या को कम करना

चाय एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटी-ऑक्सीडेंट होने के कारण सूजन को कम करती है। चेहरे के मुहांसों को दूर करने के लिए ग्रीन टी परफेक्ट है। चेहरे से मुहांसे खत्म करने के लिए रात में सोने से पहले ग्रीन टी की पत्तियां चेहरे पर लगाएं। खुद को फिट रखने के लिए सुबह ग्रीन टी पिएं। इससे चेहरे पर प्राकृतिक चमक और सुंदरता बनी रहती है।

*त्वचा की सुरक्षा

ग्रीन टी त्वचा  के लिए बेहद ही फायदेमंद होती है। इससे आपकी स्किन टाइट रहती है। इसमें बुढ़ापा रोकने  के तत्व  भी होते हैं। ग्रीन टी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स और एंटी-इन्फ्लामेंटरी एलिमेंट्स एक साथ होने की वजह से यह स्किन को प्रोटेक्ट करती है। ग्रीन टी से स्क्रब बनाने के लिए शकर , थोड़ा पानी और ग्रीन टी को अच्छे से मिलाएं। यह मिश्रण आपकी त्वचा  को पोषण करने के साथ-साथ मुलायम  बनाएगा और स्किन के हाइड्रेशन लेवल को भी बनाए रखेगा।

*बालों के लिए फायदेमंद

चाय बालों के लिए भी एक अच्छे कंडिशनर का काम करती है। यह बालों को नेचुरल तरीके से नरिश करती है। चाय पत्ती को उबाल कर ठंडा होने पर बालों में लगाएं। इसके अलावा, आप रोज़मेरी और सेज हरा (मेडिकल हर्बल) के साथ ब्लैक टी को उबालकर रात भर रखें और अगले दिन बालों में लगाएं। चाय बालों के लिए कुदरती कंडिशनर है।

*पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए

ग्रीन टी की महक स्ट्रॉन्ग और पावरफुल होती है। इसकी महक को आप पैरों की दुर्गंध दूर करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। यूज़ की हुई चाय पत्ती को पानी में डाल दें और उसमें पैरों को 20 मिनट के लिए डालकर रखें। इससे चाय आपके पैरों के पसीने को सोख लेती है और दुर्गंध को खत्म करती है।

* नव विवाहितों के लिए

ग्लोइंग स्किन, हेल्दी लाइफ के अलावा ग्रीन टी आपकी मैरिड लाइफ में भी महक बिखेरती है। ग्रीन टी में कैफीन, जिनसेंग (साउथ एशियन और अमेरिकी पौधा) और थियेनाइन (केमिकिल) होता है, जो आपके सेक्शुअल हार्मोन्स को बढ़ाता है। खासकर महिलाओं के लिए ये काफी सही है। इसलिए अगर आपको भी मैरिड लाइफ हैप्पी चाहिए तो रोज़ ग्रीन टी पिएं
ग्रीन-टी में अनेक एंटीआॉक्सीडंट पाए जाते हैं। जो हमारे स्वास्थ्य और अच्छी सेहत के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।
*ग्रीन-टी प्रभावि रूप से रक्त में ख़राब कोलेस्ट्रॉल कम करती है । साथ ही खराब कोलस्ट्रॉल और अच्छे कोलेस्ट्रॉल के अनुपात में सुधार करती है ।
*ग्रीन-टी के नियमित सेवन से हाई बीपी के खतरे को कम किया जा सकता है । एवं ग्रीन-टी का सेवन न करने वाले की अपेक्षा करने वाले 46% कम प्रभावित होते हैं।
* ग्रीन-टी में उपलब्ध एंटीआॉक्सीडंट से हमारी त्वचा में पाए जाने वाले हानिकारक कण कम हो जाते हैं । एवं त्वचा रोग होने की संभावना भी बहुत कम कर देता है।
*ग्रीन-टी में पॉलिफेनोल्स की मात्रा बहुत अधिक होती है जो कैंसर कोशिकाओं को मारने में मदद करती है और उन्हें बढ़ने से भी रोकती है ।
*ग्रीन-टी में पॉलिफेनोल्स की मात्रा अधिक होने से हड्डियों की मजबूती एवं शक्ती बनी रहती है। इसके नियमित सेवन से हड्डियों के फ्रेक्चर का जोखिम भी कम हो जाता है ।

ग्रीन टी पीने का सही समय 

सुबह 10 से 11 बजे के बीच
शाम को नाश्ते के बाद 5 से 6 बजे
रात को सोने से 2 घंटे पहले ग्रीन टी पी लेनी चाहिए
भोजन से 1 घंटा पहले या भोजन के 1 से 2 घंटे बाद पिएं
सुबह व्यायाम से लगभग 30 मिनट पहले
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16.11.21

वीर्य की मात्रा बढ़ाने और गाढ़ा करने के रामबाण उपचार:Virya badhana




 वीर्य (Semen) पुरुषत्व का प्रमुख सारतत्त्व माना गया है। संतानोत्पत्ति हेतु वीर्य आवश्यक तत्त्व है। कुसंगति, कुविचार तथा गलत आहार-विहार, अत्यधिक मैथुन के कारण वीर्य की कमी हो जाती है।
इस रोग में सबसे पहले वीर्य पतला होता है। उसके पश्चात धीरे-धीरे स्खलन की मात्रा में कमी आती जाती है। यदि सही समय पर उपयुक्त उपचार न किया जाए तो संभव है नपुंसकता हो जाए। रिसर्च में ये साबित हुआ है की वीर्य दो प्रकार का होता है एक तो गाढ़ा और सफ़ेद और दूसरा पतला पानी जैसा| रिसर्च में यह भी पाया गया है की   ज्यादातर पुरुष अपने वीर्य को गाढ़ा करना चाहते हैं क्योंकि उनके अनुसार गाढ़ा वीर्य मर्दाना ताकत और मर्दानगी का प्रतीक होता है| कुछ लोगों के अनुसार वीर्य का गाढ़ापन उनके पार्टनर को संतुष्ट करने के लिए जरुरी होता है| वहीँ कुछ पुरुष ऐसा भी सोचते हैं की पतला वीर्य होने पर उन्हें संतान प्राप्ति में दिक्कत होगी और गाढ़ा वीर्य उन्हें जल्दी संतान सुख प्रदान करेगा| इन्ही सब कारणों के कारण हर मर्द अपने वीर्य को गाढ़ा करना चाहता है|
 वीर्य की 1 ml मात्रा में करीब 2 करोड़ शुक्राणु पाए जाते हैं| आप अपनी शुक्राणु की संख्या spermcheck kit के द्वारा घर में ही जांच सकते हैं| इस kit को आप ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं| जैसे की हमने ऊपर बताया की गाढ़ा वीर्य मर्दानगी का प्रतीक माना जाता है खास कर तब जब आप बच्चे के लिए प्लान कर रहे हों| मोटापा, मानसिक तनाव, पोषण की कमी, tight अंडरवियर आदि कुछ कारन हैं जो की वीर्य के पतलेपन के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं| 

ज्यादा सख्लन से बचें

जरुरत से ज्यादा हस्तमैथुन करना या फिर सामान्य से अधिक संभोग में रूचि लेने से अकसर वीर्य पतले हो जाता है| इसलिए जरुरी है की आप इस ज्यादा सख्लन होने से बचें और हो सके तो हफ्ते में एक या दो बार ही संभोग करें| यह सच है की सख्लन आपको मानसिक तनाव से मुक्त रखता है लेकिन वीर्य को गाढ़ा करने के लिए जरुरी है की आप अपने ऊपर थोडा सयम रखें|

अपना लाइफस्टाइल बदलो


ख़राब लाइफस्टाइल और नशा जैसे तंबाकू, धुम्रपान, शराब का सेवन ला प्रभाव निश्चित रूप से आपकी वीर्य की सेहत पर पड़ता है और वीर्य पानी जैसा पतला हो जाता है| इसलिए यह जरुरी हो जाता है की आप बुरी आदतों से दूर रहे और अच्छी लाइफस्टाइल आदतें जैसे अच्छा पोषण युक्त खान पान, नियमित exercise और अच्छी नींद लें| अच्छी आदतों से आपकी जनन क्षमता भी अच्छी होगी और वीर्य की सेहत में भी सुधार होगा|

अश्विनी मुद्रा का अभ्यास कीजिये

अश्विनी मुद्रा को इंग्लिश में kegel exercise के नाम से भी जाना जाता है| यह मर्दों के लिए काफी अच्छी मुद्रा मानी जाती है| यह लिंग की नसों में कमजोरी, शीघ्रपतन, वीर्य सम्बन्धी समस्याएँ और स्तम्भन दोष आदि को सही करने में काफी लाभप्रद मानी जाती है| इस exercise में आपको अपनी गुदा की muscles को अन्दर की और कुछ सेकंड्स खीच कर रखना होता है और फिर यह क्रिया एक बार में 10 बार करनी होती है| *अपने आहार में फोलिक एसिड सप्लीमेंट लें: फोलिक एसिड (विटामिन B9) वीर्य की मात्रा बढ़ाने में मददगार साबित होता है। 400 ग्राम फोलिक एसिड हरी सब्जियां, फलियां, अनाज और नारंगी के रस में पाया जाता है।*विटामिन C और एंटीअॅक्सीडेंट से भरपूर भोजन खाएँ: ये पोषक तत्व आपकी वीर्य से संबंधित बीमारी को कम करेगा और वीर्य के जीवनकाल को भी बढ़ाएगा। भोजनोपरान्त एक नारंगी खाएँ! एक 8 आउन्स (230 ml) ग्लास नारंगी के जूस में 124 ml विटामिन C होता है जो एक दिन के लिए काफी है।
 जेहरीले वातावरण से करें बचाव जेहरीले वातावरण और pollution का प्रभाव आपकी जनन क्षमता को कम करता है| यदि आप किसी high रिस्क इंडस्ट्री में काम करते हैं to दस्तानों और मुँह पर मास्क पहनकर अपने ऊपर होने वाले जेहरीले तत्वों के प्रभाव से बचाव करें| इसी प्रकार डिटर्जेंट और chemicals से काम करते समय अपने हाथों पर रबर के दस्ताने पहने|

विटामिन D और कैल्शियम के प्रतिदिन सेवन को बढ़ाएँ:

आप दोनों को सप्लीमेंट के तौर पर भी ले सकते हैं या फिर कुछ समय धूप में व्यतीत करके विटामिन D की संश्लेषण कर सकते हैं। दही, स्लिम दूध, सैल्मन अधिक मात्रा में सेवन करके से आप कैल्शियम और विटामिन D की जरूरत को पूरा कर सकते हैं। अगर आप ज्यादा समय धूप में व्यतीत करते हैं तो अपने शरीर पर सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलें ताकि सूर्य की हानिकारक किरणों से प्रभाव कम हो।
वीर्य को गाढ़ा करने वाली herbs यानि जड़ी बूटियाँ हो सकता है जिन herbs के बारे में हम यहाँ बताने वाले हैं वो भारत में ना मिलती हों लेकिन इन्हें आप आसानी से ऑनलाइन आर्डर करके मंगवा सकते हैं| यहाँ कुछ ऐसी जड़ी बूटियाँ हम बताने जा रहे हैं जो की पुरुष की समस्त समस्याएं दूर कर सकती हैं और आपके वीर्य को गाढ़ा बना सकती हैं|

वीर्य बढ़ाने के लिए मुनक्का का सेवन करें

 वीर्य (Semen) की कमी होने पर आवश्यकतानुसार मुनक्का धोकर पानी में भिगो दें। कुछ समय उसे पानी में ही रहने दें। जब मुनक्का फूल जाए तो उसे दूध में उबालकर पीने से वीर्यवर्धन होता है।
इसका सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि आप शाम को कम से कम 10 मुनक्के भिगो दें और सुबह उसे इस्तेमाल करें | यदि किसी वजह से दूध उपलब्ध न हो हो केवल मुनक्का भी खाया जा सकता है, लेकिन दूध के साथ लेने पर जल्दी फायदा होता है |

पिस्ता का सेवन वीर्य को बढाता है

पिस्ते में विटामिन-ई पाया जाता है, जो वीर्यवर्धन में सहायक है। इसलिए यदि आपको वीर्य की कमी की शिकायत है तो आप पिस्ते का सेवन अवश्य करें | आप दिन तीन बार 20 – 20 पिस्ते ले सकते हैं |

वीर्य बढ़ाने के लिए तरबूज खायें

तरबूज के सेवन से वीर्य वृद्धि होती है। इसलिए आप तरबूज का सेवन इसके सीजन में अवश्य करें | हालाकि आजकल तरबूज तो सभी सीजन में पाया जाने लगा है लेकिन ग्रामीण इलाको में हो सकता है यह सीजन के अलाव उपलब्ध न हो |

आंवला का सेवन रामबाण है

आंवले के तीन-चार चम्मच ताजा रस में दो चम्मच शहद मिलाकर पीने तथा इसके पश्चात गर्म दूध पीने से वीर्य वृद्धि होती है तथा संभोगशक्ति भी बढ़ती है। आंवला तो वैसे भी अमृत के समान है, इसलिए आप आंवला का सेवन किसी न किसी रूप में अवश्य करे | आंवला यदि ताजा मिले तो सबसे अच्छा होता है, इसलिए जब इसका सीजन हो तो आंवले को खाने से साथ लें, चटनी बनाएं, पकाकर खायें, हलवा बनाकर खांयें |

नाशपाती खाना लाभप्रद है

प्रात: नित्य एक नाशपाती खाने से शुक्रवर्धन होता है, इसलिए आप कोशिश करें कि एक नाशपाती रोजाना खाए | कुछ ही दिनों में आपको लाभ दिखाए देगा |

आम खाए


आम के रस को दूध में मिलाकर पीने से वीर्य वृद्धि होती है। आम के सीजन में आप सीधे आम ले सकते है लेकिन जब सीजन न हो तो आम से बने उत्पाद आप ले सकते हैं जिससे किसी न किसी रूप में आम आपके शरीर में जाएगा |

नारियल

नियमित सूखे नारियल के सेवन से वीर्य गाढ़ा होता है, इसलिए आप नारियल का सेवन करे और लाभ पायें |

गोखरू

यह भारत में भी आसानी से मिल जाती है| इसमें पाए जाने वाले गुण आपके वीर्य को गाढ़ा करने में मदद करते हैं| इतना ही नहीं यह हर्ब वीर्य में शुक्राणु बढाती है, शुक्राणुओं की गतिशीलता बढाती है और शुक्राणु के जीवन को भी बढाती है| यह सभी बातें तब जरुरी होती हैं जब आपको संतान प्राप्ति में दिक्कत आ रही हो|

एलिसीन (Allicin) का सेवन करें:

यह लहसुन में पाया जाता है, एलिसीन एक ओरगानोसल्फर यौगिक है जो वीर्य की मात्रा को यौन अंग में खून के संचार के अनुकूल बनाता है, जिससे स्वस्थ वीर्य की मात्रा बढती है। कुछ नए और दिलचस्प लहसुन युक्त खाना खाएँ या फिर लौंग और लहसुन की चाय बनाकर सुबह पी लें। वीर्य को स्वस्थ बनाने वाले इन भोजनों का सेवन करें: अगर वीर्य को आँखों से चमकते हुए देखना चाहते हैं, तो अपने खानपान में इन चीजों का प्रयोग करें। Goji berries (एंटीॅआक्सीडेंट) जिनसेंग (Ginseng), अश्वगंधा पम्पकिन सीड्स (omega-3 fatty acids) अखरोट (omega-3 fatty acids) एस्परगस (विटामिन C) केला (विटामिन C)

ढीले कपडे पहनें:


ऐसे कपडे पहने जिनसे आपके अंडकोश (testicles) पर दबाब न पड़े। गर्मी अंडकोश के लिए हानिकारक होती है, इसलिए ढीले वस्त्र जिसमें हवा का प्रवेश हो पहनें। अंडकोश का शरीर से बाहर होने का एकमात्र कारण यही है, ताकि उनमें ठंडक बनी रहे

अपने वज़न की जांच करें:

ज्यादा या कम वजन हार्मोन प्रक्रिया के संचालन में प्रभाव डालता है। एस्ट्रोजन (estrogen) की ज्यादा मात्रा या टेस्टोश्टेरोन (testosterone) की कमी वीर्य की मात्रा में गलत प्रभाव डाल सकता है। जिम ज्वाइन करें, और खुद को प्रोत्साहित करने के लिए नए और दिलचस्प तरीके ढ़ूढें ताकि, अपने वज़न कम करने की लक्ष्य को आप पूरा कर पाएँ।

तनाव दूर करें:

तनाव जानलेवा होता है। हालांकि, आप इसे कुछ समय के लिए संभाल लेंगे, मगर आपका वीर्य इतना मजबूत नहीं होता। तनाव वीर्य उत्पन्न करने वाले हार्मोन को कम कर देता है

गर्म टब से बाहर निकलें:

यह सुखद तो होता है, लेकिन जब आप मनमोहक क्रिया में खोए होते हैं, आपके अंडकोश गर्मी से तप जाते हैं। टब में विश्राम को किसी और समय के लिए छोड़ दें।

साइकिल से उतर जाएं:

साइकिल की सीटें वीर्य को कम करने के लिए प्रख्यात है, अगर कुछ पल के लिए आप सोचेंगे तो आपको महसूस होगा कि क्यों! दबाव, धक्का और उछाल- वीर्य को इनमें से कुछ भी पसंद नहीं है । जब ज्यादा वीर्य उत्पन्न करने की इच्छा हो तो कार या बस का प्रयोग करें।

वीर्य गाढ़ा करने का घरेलु नुस्खा.


वीर्य ही शारीर का सार है, एक योगी को सबसे ज्यादा दुःख अपने वीर्यपात होने पर ही होता है, मगर आज कल के युवा और आधुनिक डॉक्टर इसकी उतना नहीं आंकते, अत्यधिक मैथुन से या अश्लील सिनेमा और साहित्य से वीर्यपात कर चुके युवा जिनका वीर्य पानी कि भाँती हो चूका है, उनका जीवन नरक के समान है. वीर्य ही जीवन है, यही व्यक्ति कि आभा है, ये नहीं तो कुछ नहीं. वीर्य को गाढ़ा और शक्तिशाली करने के लिए सफ़ेद प्याज और अजवायन का ये प्रयोग बहुत लाभदायक है. आइये जाने.

वीर्य गाढ़ा करने के लिए सफ़ेद प्याज और अजवायन का प्रयोग.

एक किलो सफ़ेद प्याज का रस निकाल कर रख लीजिये, अभी इसमें 100 ग्राम अजवायन को 12 घंटे तक सफेद प्याज के रस में भिगोकर रख लीजिये, रस इतना ही डाले के अजवायन इसको सोख ले, सुबह जब सारा रस अजवायन सोख ले तो इसको छाया में सुखा लें। सूखने के बाद उसे फिर से इसी प्रक्कर प्याज के रस में गीला करके सुखा लें। इस तरह से तीन बार करें। उसके बाद इसे कूटकर किसी बोतल में भरकर रख लें। आधा चम्मच इस चूर्ण को एक चम्मच पिसी हुई मिश्री के साथ मिलाकर खा जाएं। फिर ऊपर से हल्का गर्म दूध पी लें। करीब-करीब एक महीने तक इस मिश्रण का उपयोग करें। इस दौरान संभोग बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। यह सेक्स क्षमता को बढ़ाने वाला सबसे अच्छा उपाय है।

सफ़ेद मूसली पुरुष रोगों में रामबाण औषिधि.

वियाग्रा और जिन्सेंग से कहीं बढ़कर है भारतीय सफ़ेद मूसली. आयुर्वेद में सदियों से ही इसका उपयोग कमजोरी से ग्रस्त रोगियों के लिए किया जाता रहा है. मुसली के पौधे की जड़ मूसल के समान होती और इसका रंग सफ़ेद होता है इसलिए इसे मुस्ली या मूसली कहा जाता है। वीर्य गाढ़ा करने के लिए सफ़ेद प्याज और अजवायन. वीर्य गाढ़ा करने का घरेलु नुस्खा. वीर्य ही शारीर का सार है,
 वीर्य ही शरीर की सप्त धातुओं का राजा माना जाता है और ये सप्त धातुयें भोजन से प्राप्त होती हैं | इसमे सातवी धातु ही पुरुष में वीर्य बनती है | 100 बूंद खून से एक बूंद वीर्य बनता है | एक महीने में लगभग 1 लीटर खून बनता है जिससे 25 ग्राम वीर्य बनता है और गर्भाधान के लिए 60 से 70 करोड़ जीवित शुक्राणुओं का होना जरूरी होता है | इसलिए संभोग हफ्ते में एक बार ही करना चाहिए क्योंकि एक बार के संभोग के दौरान 10 ग्राम वीर्य निकल जाता है |
 वीर्य में जीवित शुक्राणुओं की कमी से महिलाओं को गर्भवती भी बनाया नहीं जा सकता | वीर्य परीक्षण में वीर्य गर्भाधान के लिए 7.8 पी.एच से 8.2 पी. एच ही सही माना गया है | वीर्य में दो प्रकार के शुक्राणु होते हैं एक्स और वाई | एक्स शुक्राणुओं से पुत्री पैदा होती है और वाई शुक्राणुओं से पुत्र पैदा होता है | एक शुक्राणु की लम्बाई लगभग 1/500 इंच होती है
 कभी-कभी वीर्य पतला होने के कारण गर्भ नहीं ठहरा पाता ऐसा तब होता है जब कोई ज्यादा मैथुन करके वीर्य को नष्ट कर देता है या अन्य दूसरी किसी बीमारी से ग्रस्त होकर जैसे:- प्रमेह, सुजाक, मूत्रघात, मूत्रकृच्छ और स्वप्नदोष आदि |

वीर्य के दोष को दूर करने का घरेलू उपाय


ब्राह्मी:

ब्राह्मी, शंखपुष्पी, खरैटी, ब्रह्मदण्डी और कालीमिर्च को पीसकर खाने से वीर्य शुद्ध होता है 

बबूल:


बबूल की कच्ची फली को सुखाकर मिश्री में मिलाकर खाने से वीर्य की कमी व रोग दूर होते हैं | 10 ग्राम बबूल की कोंपलों को 10 ग्राम मिश्री के साथ पीसकर पानी के साथ लेने से वीर्य-रोगों में लाभ होता है | हरी कोंपले न हों तो 30 ग्राम सूखी कोंपलों का सेवन कर सकते हैं |
बबूल की फलियों को छाया में सुखा लें और बराबर की मात्रा मे मिश्री मिलाकर पीसकर रख लें | एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित रूप से जल के साथ सेवन से करने से वीर्य गाढ़ा होगा और सभी विकार दूर हो जाएंगे 
बबूल की गोंद को घी में तलकर उसका पाक बनाकर खाने से पुरुषों का वीर्य बढ़ता है और प्रसूत काल स्त्रियों को खिलाने से उनकी शक्ति भी बढ़ती है |
बबूल का पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) लेकर पीस लें, और आधी मात्रा में मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से कुछ ही समय में लाभ मिलता है |
बबूल की कच्ची फलियों के रस में 1 मीटर लंबे और 1 मीटर चौडे़ कपड़े को भिगोकर सुखा लेते हैं | एक बार सूख जाने पर उसे पुन: भिगोकर सुखाते है |इसी प्रकार इस प्रक्रिया को 14 बार करते हैं | इसके बाद उस कपड़े को 14 भागों में बांट लेते है, और प्रतिदिन एक टुकड़े को 250 मिलीलीटर दूध में उबालकर पीने से धातु की पुष्टि हो जाती है |

शतावर:

शतावर रस या आंवला रस अथवा गोखरू काढ़ा शहद में मिलाकर पीने से वीर्य शुद्ध होता है | शतावर, सफेद मूसली, असगन्ध, कौंच के बीज, गोखरू और आंवला ये सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें तीन-तीन ग्राम चूर्ण सुबह-शाम खाने से धातु (वीर्य) में वृद्धि होती है |

धनिया:

धनिया, पोस्त के बीज के साथ मिश्री मिलाकर खाना लाभदायक होता है |

तालमखाना:

तालमखाना मे मिश्री मिलाकर खाने से वीर्य शुद्ध यानी साफ हो जाता है |

चोबचीनी:

चोबचीनी, सोठ, मोचरस, दोनों मूसली, काली मिर्च, वायविडंग और सौंफ सबको बराबर भाग में लेकर चूर्ण बनायें | बाद में 10 ग्राम की मात्रा में रोज खाकर ऊपर से मिश्री मिला दूध पी लें इससे वीर्य साफ होता है 

नींद और व्‍यायाम –

पूरी नींद और नियमित व्‍यायाम का सीधा संबंध आपकी यौन क्षमता से होता है। अध्‍ययनों से पता चलता है कि नियमित व्‍यायाम और आवश्‍यक आराम पुरुषों के शरीर में शुक्राणुकोशिकाओं की वृद्धि में सहायक होता है। इसलिए वीर्य की कमी को दूर करने के लिए सभी पुरुषों को उचित आराम और नियमित व्‍यायाम को अपने दैनिक जीवन का हिस्‍सा बनाना चाहिए।

मादक पदार्थों से परहेज –

वीर्य की गुणवत्ता और संख्‍या में कमी आने का प्रमुख कारण अधिक मात्रा में नशीले पदार्थों का सेवन हो सकता है। इसलिए जहां तक संभव हो मदिरा, धूम्रपान और अन्‍य मादक पदार्थों का सेवन करने से बचें या इन्‍हें बहुत ही कम मात्रा में उपयोग करें।

विटामिन डी और कैल्शियम की उचित मात्रा –

पुरुषों में वीर्य की संख्‍या बढ़ाने में विटामिन डी और कैल्शियम की अहम भूमिका होती है। विटामिन डी और कैल्शियम स्‍वस्‍थ वीर्य के उत्‍पादन को बढ़ाने में सहायक होता है।
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लहसुन खाने के फायदे और नुकसान:Garlic Benefits

 


                                           
 लहसुन भारत की हर रसोई में उपयोग किया जाता है. अधिकतर लोग इसे सब्जी बनाने व मसालों के रूप में उपयोग करते हैं. लेकिन आप सोच भी नहीं सकते कि ये लहसुन हमारे शरीर के अनेक रोगों को बचाता है. लहसुन एक प्राकृतिक एंटीबायटिक की तरह कार्य करता है. लहसुन का वैज्ञानिक नाम है एलियम सैटीवुमएल है. लहसुन में एलियम नामक एंटीबायोटिक होता है. लहसुन का प्रयोग काफी समय से कई रोगों के लिए किया जा रहा है. लहसुन हमारे शरीर में होने वाली बीमारियों को दूर करने में मदद करता है. जैसे कि बबासीर, कव्ज, कान में दर्द इत्यादि.
 उच्च रक्त चाप, उच्च कोलेस्ट्रोल ,कोरोनरी धमनी संबधित ह्रदय दोष और हृदयाघात जैसी स्थितियों में इसका उपयोग उत्साहवर्धक परिणाम प्रस्तुत करता है| धमनी-काठिन्य रोग में भी लहसुन लाभदायक है\ लहसुन के प्रयोग विज्ञान सम्मत होने के दावे किये जा रहे हैं|

हाई बीपी को रोकने में मदद

लहसुन खाने से हाई बीपी से जुड़ी समस्या को कम किया जा सकता है. लहसुन ब्लड सर्कुलेशन को कंट्रोल करने में काफी कारगार होता है. जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी है वह लहसुन का सेवन करके इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं.

पेट की बीमारियों की रोकथाम

लहसुन पेट से जुड़ी समस्या का भी इलाज करने में काफी मददगार है. डायरिया, कब्ज जैसी समस्या के लिए इसे बेहद उपयोगी माना गया है. पानी उबालकर उसमें लहसुन की कलियां डाल लें फिर इस पानी को सुबह खाली पेट पीनें से डायरिया और कब्ज से छुटकारा मिल जाएगा. इससे गैस की बीमारी में भी फायदा मिलता है.

दिल रहता है सेहतमंद

लहसुन दिल से जुड़ी बीमारियों के खतरों को भी दूर करता हैं. लहसुन खाने से खून का जमना कम किया जा सकता है और हार्ट अटैक की परेशानी से भी राहत मिलती है. पीरियड्स के दिनों में भी लहसुन बहुत अच्छा होता है.

पाचन में मिलती है मदद

खाली पेट लहसुन की कलियां चबाने से पाचन में दिक्कत नहीं होती है और भूख भी लगना शुरू हो जाती है.


खांसी-जुकाम में आराम

लहसुन का सेवन जुकाम, अस्थमा, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस के इलाज में काफी फायदा करता है.


पेट के लिए

जो लोग जंक फूड या अस्वस्थ खाना खाते हैं उन्हें पेट की समस्याएं हो जाती हैं।
उन्हें अक्सर पेट में दर्द, गैस, एसिडिटी कब्ज, दस्त, पेचिश व अन्य समस्याएं हो जाती हैं। ऐसे में उन्हें लहसून काफ़ी फ़ायदा पहुँचा सकता है।
लहसुन में एंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं। ये पेट में सिर्फ़ उन्हीं बैक्टीरिया को रुकने देते हैं जो पाचन के लिए ज़रूरी हैं।
जो बैक्टीरिया पेट और पाचन के लिए नुकसानदायक होते हैं लहसुन उन्हें पेट से बाहर निकालने में मदद करता है।
इस तरह लहसुन पाचन से संबंधित परेशानियों को दूर कर देता है। जिन लोगों को पाचन-संबंधी समस्याएं हैं, उन्हें सुबह ख़ाली पेट लहसुन का सेवन करना चाहिए। यह पेट की सफ़ाई करता है।

ऑक्सीडेटिव तनाव में राहत

लहसुन में पाए जाने वाले यौगिक डीएनए को डैमेज़ होने से बचाते हैं। ये ऑक्सीडेंटिव तनाव से होने वाले रोगों से शरीर की रक्षा करते हैं।
 ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने के लिए लहसुन में डायलेक्लसल्फाईइड पाया जाता है।
अर्थेरोसक्लेरोसिस शरीर के लिए एक गंभीर समस्या है जोकि ऑक्सीडेटिव तनाव के कारण होती है।
इस रोग में धमनियों में कलेस्टरॉल का स्तर बढ़ जाता है और धमनियां संकरी हो जाती हैं। इस तरह रक्त का प्रवाह बाधित होने लगता है जिससे कि हृदय आघात या हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है।
लहसुन अतिरिक्त ग्लूकोस को ऊर्जा में बदल देता है जिससे कि ये बढ़कर कलेस्टरॉल का रूप नहीं ले पाते हैं।
इस तरह धमनियां बाधित होने से बच जाती हैं अतः लहसुन का सेवन करने से अर्थेरोसक्लेरोसिस से बचा जा सकता है।

कैंसर से बचाव

कैंसर से बचने के लिए लहसुन का प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि यह कैंसर की संभावनाओं को चमत्कारिक रूप से कम करता है।
लहसुन में सेलेनियम नामक तत्व पाया जाता है जो माईटोसिस और मियोसिस के दौरान चेक प्वायंट्स की कार्यविधि को नियमित करता है।
इस तरह कोशिकाएं एक निश्चित क्रम में ही बढ़ती हैं और वे अनियंत्रित रूप से विभाजित नहीं होती हैं।
कैंसर के उपचार के लिए चीनी वैज्ञानिकों ने एक परीक्षण किया और उन्होंने यह पाया कि लहसुन पेट के कैंसर की 52% और ट्युमर की 33% संभावनाओं को कम करता है।

 प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए


लहसुन में विटामिन सी, विटामिन बी-6 और सेलेनियम की प्रचुर मात्रा पाई जाती है जो शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाते हैं।
 कुछ चिकित्सक लहसुन का प्रयोग फेफड़े के केंसर ,बड़ी आंत के केंसर ,प्रोस्टेट केंसर ,गुदा के केंसर ,आमाशय के केंसर ,छाती के केंसर में कर रहे हैं| मूत्राशय के केंसर में भी प्रयोग हो रही है लहसुन| लहसुन का प्रयोग पुरुषों में प्रोस्टेट वृद्धि की शिकायत में भी सफतापूर्वक किया जा रहा है| इसका उपयोग मधुमेह रोग अस्थि-वात् व्याथि में भी करना उचित है| लहसुन का प्रयोग बेक्टीरियल और फंगल उपसर्गों में हितकारी सिद्ध हुआ है\ ज्वर,सिरदर्द,सर्दी-जुकाम ,खांसी,,गठिया रोग,बवासीर और दमा रोग में इसके प्रयोग से अच्छा लाभ मिलता है|
सांस भरने , निम्न रक्त चाप, उच्च रक्त शर्करा जैसी स्थितियों में लाभ लेने के लिए लहसुन के प्रयोग की सलाह दी जाती है|

मधुमेह में लाभकारी

आईआईसीटी इंडिया के वैज्ञानिकों ने एक शोध किया। उन्होंने लैब में मौजूद चूहों को लहसुन खिलाई और उन्होंने पाया कि चूहों में ग्लूकोज का स्तर तेज़ी से घट गया और चूहे इंसुलिन सेंसिटिव भी हो गए।
इस प्रकार लहसुन मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को कम कर देता है।
यह रक्त में मौजूद अतिरिक्त ग्लूकोस को ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है और रक्त को गाढ़ा होने से बचाए रखता है।
इस तरह रक्त का प्रवाह भी नियमित रहता है और शुगर का स्तर भी कम होता है।
जो लोग मधुमेह से पीड़ित हैं उन्हें लहसुन खाना चाहिए।
लहसुन ख़ासकर उन लोगों के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, जो मधुमेह से पीड़ित हैं और इंसुलिन के इंजेक्शन लेते हैं।
लहसुन खाने से उनका शरीर इंसुलिन सेंसिटिव हो जाता है।
अगर आप बढ़ते बज़न से परेशान हैं तो लहसुन का सेवन आपके लिए बड़ा ही लाभदायक है। प्रति दिन आप खली पेट लहसुन का सेवन करना चालू करें बजन कम करने में लाभ मिलेगा.
इसके साथ ही साथ रात में सोते समय लहसुन की एक पोथी तकिये के नीचे रखने से निगेटिव एनर्जी से भी बचा जा सकता है और ऐसा करने से नींद अच्छी आती है.
दांत में दर्द हो रहा हो तो लहसुन की एक कली को दाँतों में दबाने से या लहसुन का तेल दांत पर लगाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है.
लहसुन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और कैंसर जैसे गंभीर बीमारी से लड़ने में शरीर की मदद करता है.
लहसुन का तेल भी बनाया जाता है जो बच्चो को सर्दी हो जाने पर उनके शरीर पर लगाया जाता है व कान में भी डाला जाता है. लहसुन का तेल बनाने के लिए आप एक कटोरी को माध्यम आंच पर रखें और उसमें शुद्ध सरसों का तेल डाले व गरम होने दें, इसके बाद छीले हुए लहसुन की 4-5 कलियाँ उसमें डाल दें और सुनहरे होने तक तड़कने दें. गुनगुना होने पर इस तेल का उपयोग कर सकते हैं. सर्दियों के दिनों में बच्चों को इसी तेल से मालिश करने से उन्हें ठण्ड नहीं लगती.

जुकाम व अस्थमा के लिए


वैज्ञानिकों द्वारा यह पाया गया है कि लहसुन अस्थमा के लिए ज़िम्मेदार बैक्टीरिया की कार्यविधि को प्रभावित करता है।
 एक विशेष प्रकार का मस्टर्ड गार्लिक ऑयल जुकाम व अस्थमा के लिए प्रयोग किया जाता है।
 मस्टर्ड गार्लिक ऑयल को थोड़ा सा गरम करने के बाद इससे नाक, छाती व गले की मसाज की जाती है। इससे फेफड़ों और छाती में जमने वाला बलगम बाहर निकल जाता है।
 सांस के रोगी के लिए लहसुन के साथ घी का सेवन करने से लाभ मिलता है और लहसुन की कलि को भूनकर खाने से भी सांस की बीमारी में लाभ मिलता है.
सरसों के तेल में लहसुन डालकर गर्म करके मालिश करने से सर्दी-जुकाम से जल्दी राहत मिल जाती है। लहसुन खाने से हड्डियां मजबूत होती हैं और साथ जोड़ों के दर्द से भी राहत मिलती है।
लहसुन की 2-3 कलियों को गर्म पानी में नींबू के साथ खाने से खून साफ होता है, जिससे चेहरे के दाग-धब्बे दूर हो जाते हैं।
लहसुन खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे व्यक्ति बार-बार बीमार नहीं पड़ता है। लहसुन के नियमित सेवन से कैंसर पैदा करने वाले सेल्स खत्म हो जाते हैं, जिससे कैंसर होने का खतरा कम रहता है।
लहसुन खाने से दिल से जुड़ी बीमारियां होने के चांसेस कम रहते हैं। वजन कम करने के लिए भी लहसुन कारगर है।
लहसुन को शहद के साथ खाने से मोटापा कम होता है।
लहसुन में पाया जाने वाला एलिसिन यौगिक, एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) के ऑक्सीकरण को रोकता है. यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है और हृदय स्वास्थ्य में सुधार करता है.
लहसुन का नियमित सेवन रक्त में जमे थक्कों को कम करता है और थ्रोम्बोम्बोलिज़्म (thromboembolism) को रोकने में मदद करता है. लहसुन रक्तचाप को भी कम करता है, इसलिए उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए यह फायदेमंद है.
 लहसुन का उपयोग तनाव दूर करने वाला है,थकान दूर करता है | यह यकृत के कार्य को सुचारू बनाती है| चमड़ी के मस्से ,दाद भी लहसुन के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं| लहसुन में एलीसिन तत्त्व पाया जाता है| रोगों में यही तत्त्व हितकारी है| प्रमाणित हुआ है कि लहसुन ई कोलाई, और साल्मोनेला रोगाणुओं को नष्ट कर देती है| लहसुन की ताजी गाँठ ज्यादा असरदार होती है| पुरानी लहसुन कम प्रभाव दिखाती है|
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