13.10.21

कब्ज पेचिश ,पाखाना की हाजत बनी रहने की होम्योपैथिक रेमेडीज़:Constipation



कब्ज किसे कहते हैं? हम लोग नित्य जो खाते हैं, उसका सार अंश रक्त और असार अंश मल में परिणत होकर रोज निकल जाता है, यही स्वाभाविक नियम है। जब ऐसा न होकर वही मल बहुत दिनों तक आंतों में रुका रह जाए, रोज निकल न जाए या कष्ट से निकलता हो, तो उसे कब्ज या कोष्ठबद्धता कहते हैं।

 कब्ज निम्न कारणों से होता है-

(1) नित्य अधिक परिमाण में गरिष्ठ चीजें खाने पर और जिनमें जलीय अंश कम होता है, ऐसे सूखे पदार्थ – जैसे मोटी रोटी इत्यादि रोज खाने पर मल सूख जाता है और कष्ट से निकलता है, इससे कब्ज होता है।
(2) गरम और मसाले वाली चीजों में पानी का अंश कम रहता है, अतः ऐसी चीजें और नित्य मांसादि खाने से कब्ज होता है।
(3) उपवास करने अथवा किसी एक ही तरह की चीज रोज खाने से और केवल गाय का दूध पीकर रहने से भी कब्ज रहता है।
(4) पाखाना लगने पर ठीक उसी समय न जाकर असमय में जाया जाय, तो कुछ दिन बाद कब्ज हो जाता है (बवासीर के रोगी कष्ट से बचने के लिए ऐसा किया करते हैं)।
(5) बहुत दिनों तक पतले दस्त आने के बाद अथवा जुलाब लेने का अभ्यास होने पर कब्ज होता है। रक्ताल्पता (एनीमिया), हरित्पाण्डु-रोग (क्लोरोसिस), पक्षाघात आदि रोगों में आंतों की पेशी कमजोर पड़ जाती है, उससे तथा बहुत अधिक मानसिक परिश्रम करने और शारीरिक परिश्रम न करने पर, बहुत पसीना और बहुमूत्र आदि रोगों में अधिक मात्रा में पेशाब होने के कारण फेफड़े के किसी रोग में बहुत अधिक श्लेष्मा निकलने से तथा मस्तिष्क और मेरुमज्जा के रोग इत्यादि में कब्ज होता है।
(6) आंतों में बहुत थोड़ा पाचक रस निकलने और पित्त-कोष से बहुत थोड़ा पित्त निकलने पर कब्ज होता है।
आंतों के भीतर बहुत दिनों तक मल अड़ा रहने से वह सड़ना आरंभ हो जाता है, जिस कारण एक प्रकार का विषैला पदार्थ उत्पन्न होकर रक्त में मिल जाता है, इस कारण सिरदर्द, आँखों में ऐसा दिखाई देना मानो सामने कुछ उड़ रहा है, पाचन-शक्ति का नाश, अरुचि, भूख न लगना, मुंह बेस्वाद, जिह्वा मैली, पेट तना, कलेजे में धड़कन, चिड़चिड़ा मिजाज, रक्तहीनता, नींद न आना, ज्वर इत्यादि का सामना व्यक्ति को करना पड़ता है। यदि मल बहुत दिनों तक आंतों में पड़ा रहे, तो आंत की पेशी की वृद्धि, आंत के भीतर का आयतन बढ़ जाना और सूखा मल जमा रहता है, तो आंतों का प्रदाह, आंतों का घाव और बहुधा आंतों में छिद्र हो जाता है। आंतों में मल अड़ा रहने से बवासीर होती है, वीर्यक्षय होता है, पैर का तलवा फूलता है और स्नायविक-दर्द और शियाटिका हो जाता है।
  कब्ज के कष्ट से छुटकारा पाने के लिए बहुत से अनजान लोग प्रायः जुलाब लिया करते हैं, उससे पहले तो सामयिक लाभ हो जाता है, पर अंत में कुछ भी लाभ नहीं होता, रोगी क्रमशः जुलाब की मात्रा और परिमाण बढ़ाता जाता है, किंतु उससे लाभ के स्थान पर हानि ही अधिक होती है। जिस दिन जुलाब लिया जाता है, उस दिन किसी तरह दो-चार बार दस्त हो जाता है, लेकिन दूसरे दिन से और भी अधिक कब्ज के लक्षण प्रकट होने लगते हैं, इसलिए यह क्रिया बंद कर देनी चाहिए।
 जिन्हें बहुत अधिक कब्ज रहता है, जिनको प्रायः जुलाब लेना पड़ता है, औषधियों से स्थायी लाभ नहीं होता, वे 
*बड़ी हरड़, सोंठ-सनाय की पत्ती और सौंफ ये कई चीजें अलग-अलग कूटकर, कपड़छन करके सबको समान वजन में मिलाकर एक शीशी में भर कर रखें और नित्य भोजन के बाद आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ सेवन करें।

 अथवा-

*छिलका उतारा तिल, मक्खन, ताल मिश्री-सबको एक साथ पीसकर नित्य सवेरे खाने से कोठा साफ होता है। इससे पेट ठंडा रहता है और पौष्टिक भी है। 
इसके अलावा 
*गुलाब की सूखी कली 2 तोला, मिश्री 4 तोला को एक साथ अच्छी तरह पीसकर एक पाव गरम दूध के साथ लेने से दस्त होकर पेट साफ हो जाता है। यह यूनानी गुलकंद का जुलाब है।
कब्ज के रोग में जब औषधियों के सेवन से लाभ नहीं होता, उस समय नित्य नियमित रूप से कुछ समय के लिए कुछ दिनों तक व्यायाम करने से विशेष लाभ होता है। बहुत अधिक पढ़ना-लिखना, एक ही ढंग से बहुत देर तक बैठे रहकर काम करना मना है। रोज सुबह-शाम घूमना लाभ करता है।

कब्ज़ से जुड़ी कुछ जरूरी बातें:

कब्ज़, आमतौर पर आंतों द्वारा भोजन से ज्यादा पानी सोखे जाने के कारण होता है।
कब्ज़, शारीरिक रूप से एक्टिव न होने, कुछ दवाइयों और बड़ी उम्र के कारण भी हो सकता है।
कब्ज़ की समस्या को अपनी लाइफस्टाइल को बदलकर भी दूर किया जा सकता है।
जुलाब, जमालगोटा, रेचक औषधियों या फिर पेट साफ करने की दवाइयों को आखिरी इलाज के तौर पर ही लिया जाना चाहिए।

आहार –

 सवेरे भात, तीसरे पहर फल, रात में चक्की के पिसे आटे की रोटी। भात खूब सिझाकर और नरम बनाकर अच्छी तरह चबा-चबाकर खाना चाहिए। फल-ताजे और पके ही लाभ करते हैं। पका पपीता, केला, आम, जामुन, बेल, अंगूर, नाशपाती, सेब, मेहताबी नींबू, संतरे, खजूर और अमरूद इच्छापूर्ण खाये जा सकते हैं। इनमें अमरूद सबसे ज्यादा दस्तावर है, पर अमरूद खाने के समय उसके बीजों को साबुत ही निगलना चाहिए। तरकारियों में साग-सब्जी उपकारी और विरेचक हैं। इसलिए बथुआ, पालक, कलमी, परवल के पत्ते आदि नित्य एकेक सागा खाना चाहिए। केले का गामा, केले का फूल, गूलर, कच्चू और ओल भी लाभ करते हैं। मूंग की दाल खाना मना नहीं है। मछली-मांस हानि करते हैं, विशेष इच्छा हो तो मछली सप्ताह में केवल एक बार खाई जा सकती है। तीसरे पहर रोटी के साथ थोड़ा गुड़ खाना चाहिए।
  डॉ० जहार का कथन है कि होम्योपैथिक चिकित्सकों के लिए कब्ज का उपचार करना बहुत ही कठिन कार्य है। यदि किसी रोगी को एक सप्ताह तक मल न हो, एनीमा या पिचकारी देकर भी कोई लाभ न हो, तो ऐसे रोगी के लिए वे पहले ओपियम प्रयोग करते थे। यदि 24 घंटों में ओपियम से कोई लाभ नहीं होता, तो उसके बाद प्लम्बम 30 या एल्यूमिना का प्रयोग करते थे। चेष्टा करने पर बहुत थोड़ा मल निकलने का लक्षण रहने पर प्लैटिना और जिन व्यक्तियों को बवासीर का रोग है, उनके उक्त लक्षण में नक्सवोमिका या सल्फर लाभ करती है। पाकस्थली में बहुत अधिक दबाव मालूम होना, मल बहुत कड़ा होना, इन दोनों लक्षणों में लैकेसिस देनी चाहिए।
  गर्मी के दिनों के कब्ज में ब्रायोनिया, लाभ न हो, तो कार्बोवेज या एण्टिम क्रूड, सर्दी के दिनों के कब्ज में वेरेट्रम एल्बम, जो बैठे-बैठ काम किया करते हैं, शारीरिक परिश्रम नहीं करते, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया या काक्युलस, जो बच्चे घुटनों के बल चलते हैं, चलना नहीं सीख पाए हैं, उनकी कब्जियत में नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, गर्भवती स्त्रियों की कब्जियत में सिपिया, नक्सवोमिका, ब्रायोनिया, ऐल्यूमिना, प्रसूता स्त्री के कब्ज में प्लैटिना, ओपियम, गाड़ी में घूमने से या पैदल चलने से कब्ज होने पर ऐल्यूमिना, प्लैटिना, वृद्धों के कब्ज में एण्टिम क्रूड, फासफोरस, ब्रायोनिया, लैकेसिस, शराबियों के कब्ज में नक्सवोमिका, कैल्केरिया, सल्फर और लैकेसिस उपयोगी है।

पानी का एनीमा – 

डॉ० हेरिंग का कथन है कि जिन लोगों को अधिक समय से कब्ज की शिकायत है, वे यदि रात को सोते समय ठंडे पानी का एनीमा लेते रहें, तो दो-एक सप्ताह में ही आंतें ठीक काम करने लगती हैं और कब्ज की शिकायत दूर हो जाती है। कभी-कभी कब्ज किसी अन्य रोग के साथ जुड़ा होता है। यदि उस रोग का उपचार हो, तो कब्ज अपने आप दूर हो जाता है। उदाहरण के लिए, हृदय-रोग में स्पाइजेलिया, माइग्रेन में आइरिस तथा सिरदर्द में जेल्सीमियम के लक्षण पाए जाते हैं। इन रोगों का उपचार करते हुए यदि कब्ज हो, तो हृदय-रोग में स्पाइजेलिया से, माइग्रेन में आइरिस से और सिरदर्द में जेल्सीमियम से हृदय-रोग, माइग्रेन और सिरदर्द ही नहीं जाएगा, कब्ज भी जाता रहेगा।
कई स्टडीज में ऐसा पाया गया है कि कब्ज़ का होम्योपैथिक दवाओं से इलाज करने पर सफलता की दर खासी अच्छी रही है।
कब्ज़ की आम होम्योपैथिक दवाओं में
 कैलकेरिया calcarea carbonica
नक्स वोमिका (nux vomica),
 सिलिका (silica), 
ब्रायोनिया (bryonia) 
और 
lycopodium

कब्ज की होम्योपथिक रेमेडीज़ के लक्षण 

हाइड्रेस्टिस 2x, 30 – 

यह औषधि नक्सवोमिका से भी अच्छा काम करती है। प्रातः काल का जलपान से पहले इसके मूल-अर्क की 1 बूंद कई दिनों तक लेते रहने से कब्ज में लाभ होता है। अधिकतर होम्योपैथ कब्ज में नक्सवोमिका दिया करते हैं। यदि रोगी को केवल कब्ज की ही शिकायत हो, तब हाइड्रेस्टिस सर्वोत्तम औषधि है। उनके कथनानुसार 2x शक्ति में भी यह बहुत अच्छा काम करती है। कब्ज और दस्त के पर्यायक्रम में भी यह उपयुक्त है। प्रायः दस्तावर औषधियों के लेने के बाद कब्ज की शिकायत हो जाती है, तब यह तथा नक्सवोमिका उपयोगी होती हैं। हाइड्रेस्टिस के कब्ज में पेट अंदर को धंसता-सा अनुभव होता है जो लक्षण नक्सवोमिका में नहीं है।

नक्सवोमिका 200, 1M –

 जब मल-निष्काशन के लिए बार-बार जाना पड़े, किंतु हर बार पेट साफ न हो और पुनः जाना पड़े, तो इसे नक्सवोमिका का लक्षण नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह लक्षण लाइकोपोडियम में भी पाया जाता है, किंतु इन दोनों के कब्ज में भेद यह है कि नक्सवोमिका में आंतों की अनियमित-गति के कारण कब्ज होता है और लाइकोपोडियम में गुदा की संकोचक-पेशी के कारण कब्ज होता है; रोगी को ऐसा लगता है कि गुदा में डाट लग गया है, वहां का मल को बाहर नहीं निकलने देता। डॉ० कार्टियर का कहना है कि कब्ज दूर करने के लिए नक्सवोमिका को निम्न शक्ति में नहीं देना चाहिए, न ही बार-बार देना चाहिए।

एलू-3 – 

यह औषधि एलूमिना से उल्टी है। हर समय हाजत बनी रहती है, अनजाने में सख्त मल भी निकल पड़ता है।

सीपिया 30, 200 –

 मल निकलने के बाद भी गुदा में डाट-सी लगी महसूस होती है। ध्यान रहे, इसके कब्जे में कोई न कोई जरायु-संबंधी रोग शामिल रहता है, इसलिए यह औषध प्रायः स्त्रियों के कब्ज में हितकर है।

ग्रैफाइटिस 30, 200 –

 स्त्रियों में ऋतु-धर्म के विलम्ब से होने के साथ ऐसा मल, जिस पर आंव चिपटी रहे, कठिनाई से निकले, कई दिन मल न आए, तब यह औषध देनी चाहिए। सख्त मल आने से गुदा में चीर पड़ जाता है, जिससे मल आने में बहुत तकलीफ होती है। इस प्रकार के चीर में नाइट्रिक एसिड भी उपयोगी है।

मैग्नेशिया म्यूर 30 – 

बच्चों के दांत निकलते समय के कब्ज में यह औषधि हितकर है।

सल्फर 30 – 

इस औषधि में नक्सवोमिका और लाइकोपोडियम की तरह पेट पूरी तरह से साफ नहीं होता। यों इसमें कई अन्य लक्षण भी पाए जाते हैं, जैसे कि रोगी को कोई त्वचा का रोग हो, खाज, छाले, फुसियां हों, बेहोशी के दौरे पड़ते हों, सिर की तरफ गर्मी की झलें उठती हों, 11 बजे जी डूबता-सा लगता हो, कमजोरी का अनुभव होता हो, तो सल्फर उपयोगी है। नक्सवोमिका से लाभ न हो, तो सल्फर उसकी कमी को पूरा कर देती है। बहुत से होम्योपैथ कब्ज की चिकित्सा सल्फर से प्रारंभ करते हैं।

मर्क डलसिस 1x – 

बोरिक का कथन है कि मल न आ रहा हो, किसी भी प्रकार उसे लाना हो, तो इस औषधि का 1.x विचूर्ण 2 से 3 ग्रेन की मात्रा में हर घंटे देते रहने से पेट खुलकर साफ हो जाता है।

ब्रायोनिया 30, 200 –

 आंतें काम न करती हों, मल खुश्क आता हो, लंबा, सख्त, सूखा हुआ, अंतड़ियों का स्राव न बनता हो, इसी सूखेपन के कारण बहुत प्यास लगी हो। ब्रायोनिया का रोगी सूर्य की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकता।

ओपियम 30, 200 – 

इसमें भी ब्रायोनिया की तरह आंतें खुश्क होती हैं, वे काम नहीं करतीं, उनमें से स्राव नहीं रिसता। यही कारण है कि रोगी को मल कठोर मार्बल की तरह होता है। ब्रायोनिया, ओपियम तथा एलूमिना-इन तीनों में मल की हाजत नहीं पाई जाती। ओपियम के रोगी को कुछ औंघाई भी रहती है, किंतु मल की हाजत बिल्कुल नहीं होती।

एलूमिना 30, 200 – 

पाखाना जाने की इच्छा नहीं होती। कई दिन का मल जब तक जमा नहीं हो जाता, तब तक व्यक्ति मल-त्याग के लिए नहीं जाता। गुदा काम ही नहीं करती, मल-त्याग के लिए गुदा पर बहुत जोर लगाना पड़ता है। गुदा के काम न करने की हालत यहां तक होती है कि नरम मल भी आसानी से नहीं आता, उसके लिए भी बहुत जोर लगाना, कांखना पड़ता है। ओपियम, एलूमिना, प्लम्बम और ब्रायोनिया में मल बहुत सख्त होता है। सिलेनियम देने से गुदा को ताकत मिलती है, जिससे वह कार्य-सक्षम हो जाती है।

लाइकोपोडियम 30 – 

कब्जियत या बड़े कष्ट से सूखा, कड़ा मल थोड़ा-सा निकलना, पेट फूल जाना, पेट में गर्मी मालूम होना, पेट में आवाज होना, भोजन के बाद ही तलपेट का फूलना, पाखाना लगना, पर न होना, मुंह में पानी भर आना आदि लक्षणों में यह औषध दें।


ऐनाकार्डियम 3, 6 – 

पाखाने की हाजत, किंतु पाखाना निकालने की चेष्टा करते ही उसका बंद हो जाना।

कालिंसोनिया 3 –

 यदि कब्जियत के साथ बवासीर भी हो, तो इससे लाभ होता है।

पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम


पुरानी कब्ज की शिकायत जिसमें सख्त और सूखा मल आता हो उसके लिए नैट्रम म्यूरिएटिकम सबसे उत्तम होम्योपैथिक दवा है | रोगी के मुहं में छालें हो जाते है और मुहं का स्वाद कड़वा रहता हो, रोगी भूख कम लगती है और पाचन-क्रिया ठीक प्रकार से काम नही करती इस तरह के लक्षण दिखने पर होम्योपैथिक दवा नैट्रम म्यूरिएटिकम का उपयोग किया जा सकता है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वैज

कब्ज की शिकायत में अगर मल त्याग के बाद दर्द हो, बदबूदार हवा निकले, रात के समय मलद्वार में खुजली और उसके साथ दर्द हो, डकार आये और रोगी को पेट में भारीपन लगे, इस प्रकार के लक्षण आने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कार्बो वेज का उपयोग कर सकते है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा लाइकोपोडियम


रोगी जब सुबह जगता है तो मुहं से गन्दी बदबू आती है, गले में सुजन आ जाती है, शाम के समय लक्षण बढ़ जाते है, मुहं सूखना और मुहं के छालें आदि लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होमियोपैथी की दवा लाइकोपोडियम का उपयोग कर सकते है |

पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा ब्रायोनिया अल्बा


रोगी की जीभ पर सफ़ेद और पीलेपन की मैल जमा हो जाती है, मुहं सुखना, रोगी के पेट में उसको दवाब महसूस होता है, उसके पेट से हाथ लगाने पर दर्द होता है, रोगी जब मल त्याग के लिए जाता है तो उसको सख्त और बड़े-बड़े टुकड़ों के रूप में मल आता है, गर्मी के मौसम में रोगी के लक्षण बढ़ जाते है, इस प्रकार के लक्षण कब्ज में देखने पर ब्रायोनिया एल्बा का उपयोग कब्ज में लाभ देता है |


पुरानी कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका


रोगी को मलत्याग बहुत ही कम हो पाता है, मल करते समय उसके मस्सों में सूजन आ जाती है, रोगी का पेट फूला हुआ रहता है और उसके साथ पेट में ठंडक महसूस करता है, पेट ऐठन होती है जो रात के समय अधिक बढ़ जाती है, लगातार भूक लगती रहती है और खाने के बाद मुहं का में कड़वाहट महसूस होती है, इस प्रकार के लक्षण दिखने पर कब्ज के लिए होम्योपैथिक दवा कैल्केरिया कार्बोनिका का उयोग कर सकते है |
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12.10.21

मुनक्का( raisins) कई रोगों की औषधि है ,जानें फायदे:Benefits of raisins



आयुर्वेद में तो मुनक्का को औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है। इसकी प्रकृति या तासीर गर्म होती है। यह कई रोगों में दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

कब्ज में राहत

यदि किसी को कब्ज की समस्या है तो उसके लिए शाम के समय 10 मुनक्कों को साफ धोकर एक गिलास दूध में उबाल लें, फिर रात को सोते समय इसके बीज निकल दें और मुनक्के खा लें तथा ऊपर से गर्म दूध पी लें। इस प्रयोग को नियमित करने से लाभ मिलेगा। 

मुंह के रोग से आराम

मुनक्के में मौजूद ओलेक्रोलिक एसिड और फाइटोकेमिकल्स मुंह और दांतों को सुरक्षित रखते हैं और आपके दांतों के क्षय और कैविटी का डर भी दूर होता है। मुनक्के मेें भरपूर मात्रा में कैल्शियम भी होता है, साथ ही यह दांतों में बैक्टीरिया की वृद्धि को रोकता है। इसके अलावा मुनक्के में मौजूद बोरान मुंह में रोगाणु के निर्माण को कम करता है।

बढ़ता है खून

रात को सोने से पहले 10 मुनक्का पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इन्हें दूध के साथ उबाल लें और हल्का ठंडा करके पियें। इसके नियमित सेवन से खून बढ़ता है। अगर आप इसे दूध के साथ नहीं लेना चाहते तो अच्छे से चबा-चबाकर खायें। 

हड्डियों के लिए फायेदमंद

मुनक्के में कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता हैं, जिस कारण मुनक्का खाने से आपकी हड्डियां मजबूत बनती हैं। यह आपको गठिया, ऑस्टियोपोरोसिस जैसी समस्याओं से बचने में सहायता करता है।

वजन बढ़ाने में

हर मेवे की तरह मुनक्का भी वजन बढ़ाने में मदद करता है क्योंकि इसमे फ्रुक्टोज़ और ग्लूकोस पाया जाता है जो हमें एनर्जी प्रदान करता है.
10 मुनक्का 5 छुहारे को सुबह शाम दूध में उबाल कर इस का सेवन करें, आप का वजन बढ़ना शुरू हो जायेगा

गठिया जैसी बीमारी होगी दूर

मुनक्के में पोटेशियम और मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है। यह अम्लता को कम करने और सिस्टम से विषाक्त पदार्थों को दूर कर किडनी स्टोन, दिल की बीमारियों और गाठिया जैसी बीमारियों को दूर करने में मदद करता है।

सर्दी-जुकाम होने पर

सर्दी-जुकाम हो जाए तो रात को सोने से पहले दूध में 2-3 मुनक्के उबाल कर सेवन करें। यदि सर्दी-जुकाम पुराना हो गया है तो सप्ताह भर यह दूध पीते रहें। सर्दी-जुकाम होने पर सात मुनक्का रात्रि में सोने से पूर्व बीज निकालकर दूध में उबालकर लें।

बुखार में

मुनक्का में मौजूद फिनोलिक पायथोन्यूट्रिएंट, जर्मीशिडल और एंटीऑक्सीडेंट तत्वों की वजह से जाने जाते हैं. यह जीवाणु संक्रमण और वायरल से लड़कर बुखार को जल्दी ठीक करने में मदद करते हैं. रात को 10 मुनक्का और अंजीर को पानी में भिगोकर रख दें. सुबह एक गिलास दूध में इसे उबाल लें.

आंखों के लिए

आंखों के लिए भी मुनक्का बेहद फायदेमंद होता है। इसमें बीटा कैरोटीन मौजूद होता है। इसका रोज सेवन करने से आंखों की रोशनी तेज होती है। मुनक्का को रात में भिगो कर रख दें और सुबह उठकर इसका सेवन करें। 

दूर करे एनीमिया

मुनक्के में मौजूद आयरन और साथ ही बी कॉम्लेक्स विटामिन एनीमिया के इलाज में मददगार साबित होते हैं। मुनक्के में मौजूद कॉपर लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है।

यौन दुर्बलता में

मुनक्का कामेच्छा को बढ़ाता है. मुनक्का में मौजूद एमिनो एसिड यौन दुर्बलता को दूर करता है. इस लिए तो शादी शुदा लोगों को पहली रात दूध का गिलास दिया जाता है जिसमें मुनक्का और केसर मिला होता है.

मुनक्का के कुछ अन्य फायदे

* फेफड़ों के रोग में मुनक्का के ताजे और साफ 15 दानों को पानी में साफ करके रात में 150 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। सुबह बीज निकालकर उन्हें 1-1 करके खूब चबा-चबाकर खा लें। बचे हुए पानी में थोड़ी सी चीनी मिलाकर या बिना चीनी मिलाएं ही पी लें। इसे लगतार एक महीने तक सेवन करने से फेफड़ों की कमजोरी और विषैले पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
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11.10.21

घुटनों के बीच गेप बढ़ना ग्रीस खत्म होना दर्द होने के उपचार :Knee gap herbal medicine


 

हमारे शरीर के हर भाग का अपना एक कार्य होता है और शरीर के उस भाग की अपनी ज़रुरतें भी होती हैं. जब हम बात घुटनों की कर रहे हैं तो आपको बता दें कि घुटने का प्रमुख कार्य होता है शरीर के वज़न को संतुलित कर हमारे चलने की क्रिया को बनाए रखना और इसके लिए घुटनों का कुछ सहयोगी अंग साथ देते हैं. इसलिए हमें यह ध्यान देना चाहिए कि ऐसा खानपान करें कि हमारे घुटनों को पोषण मिलता रहे और वह कमज़ोर न हो.

उम्र बढ़ने के साथ-साथ घुटनों की ग्रीस कम होने लगती है। लेकिन आजकल कम उम्र मे भी इस समस्‍या से जूझना पड़ता है। अगर किसी के घुटनों की ग्रीस खत्म हो चुकी हो और उनका चलना, उठना और सीढ़ी चढ़ना मुश्किल हो गया हो तो परेशान होने की जरूरत नहीं है क्‍योंकि आज हम इस आर्टिकल में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्‍हें रेगुलर खाने से आप अपने घुटनों की ग्रीस को आसानी से बढ़ा सकते हैं।
  दरअसल घुटनों में ग्रीस कहना एक अनपढ़ भाषा का उपयोग है, घुटनों में कोई ग्रीस ख़त्म नहीं होती, घुटनों में Synovial fluid की कमी हो जाती है, जो दो हड्डियों के बीच में Lubrication बनाये रखता है, जिस से उसकी Cartilage पर दबाव नहीं पड़ता, इसकी कमी होने के कारण घुटनों में उठते बैठते अत्यधिक दर्द होता है, घुटनों से आवाज़ भी आती है, फिर इसको लोग ये भी कह देते हैं के घुटनों में गैप बढ़ गया है. बॉडी में कैल्शियम की कमी

घुटने घिसने पर मरम्मत के उपचार -

                                 
हरसिंगार के पत्‍ते-

हरसिंगार जिसे पारिजात और नाइट जैस्मिन भी कहते हैं। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है। इसके पौधे आपको अपने घर के आस-पास भी देखने को मिल जाएंगे। इस पेड़ के पत्‍ते जोड़ों के दर्द को दूर करने और घुटनों की ग्रीस बढ़ाने में मददगार होते हैं। इसके पत्तों में टेनिक एसिड, मैथिल सिलसिलेट और ग्लूकोसाइड होता है ये द्रव्य औषधीय गुणों से भरपूर हैं। घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए हरसिंगार के 3 पत्तों को पीसकर पेस्ट बना लें। फिर इस पेस्ट को 1 बड़े गिलास पानी में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी आधा से भी आधा रह जाये तब इसे छानकर हल्‍का ठंडा करके पियें। इस काढ़े का सेवन सुबह खाली पेट करें।

घुटनों की ग्रीस बढ़ाने के लिए अखरोट काफी फायदेमंद होता है। आप हर रोज दो अखरोट का सेवन जरूर कीजिये। ऐसा करने से घुटनों का ग्रीस बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए क्‍योंकि अखरोट में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ई, बी-6, कैल्शियम और मिनरल भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके अलावा अखरोट में एंटी-ऑक्‍सीडेंट के साथ-साथ ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यह एक प्रकार का फैट है जो सूजन को कम करने में हेल्‍प करता है।

नारियल पानी-

खाली पेट नारियल का पानी पीने से भी घुटनों में लचीलापन आता है। एक महीना इस उपाय को करके देखें। आपको बहुत फायदा मिलेगा! जरूरी विटामिन और मिनरल के अलावा यह मैग्नीज जैसे तत्वों से भरपूर है। सूखने के दौरान इसमें नेचुरल ऑयल बनने लगता है जो हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत करता है।

रात में न खाएं खट्टी चीज़ें 

 खानपान का घुटनों से सीधा संबंध है इसलिए क्या खाएं, यह जानने से ज़्यादा ज़रुरी है कि क्या न खाएं. रात्रि के समय खट्टी चीजें जैसे- दही, संतरा,मौसमी, नींबू, कीनू, छाछ, इमली और आम का सेवन न करें. रात के समय इनका सेवन आपके खुटनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

रोजाना करें व्यायाम 


कहावत है कि अगर नईं मशीन भी हो परंतु उससे काम न लिया जाए तो पड़े-पड़े उसमें भी जंग लग जाता है. ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी भीतर से एक मशीन की तरह ही है, जहां हर भाग का अपना एक काम होता है और यदि हाथ और पैर न चलाएं जाएं तो शरीर में जंग लग जाता है. इसलिए नित्य व्यायाम करें- दौड़ें, योगा करें.

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बार बार पेशाब आने के घरेलू उपचार :Frequent Urination



   

कई लोगों के साथ यह समस्या होती है कि उन्हें बार-बार पेशाब के लिए जाना होता है। अगर आपके साथ भी यह समस्या है तो इसका कारण और उपाय आपको जरूर पता होना चाहिए। पहले जानिए इसके यह 5 कारण -

1 बार-बार पेशाब आने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है मूत्राशय की अत्यधिक सक्रियता। ऐसी स्थिति में सामान्य रूप से व्यक्ति बार-बार पेशाब करने के लिए प्रेरित होता है।
2 मधुमेह भी बार-बार पेशाब आने का एक प्रमुख कारण है। रक्त व शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ने पर यह समस्या बढ़ जाती है। 3 अगर आपको यूरीनल ट्रैक्ट इंफेक्शन है, तो आपको इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति में बार-बार पेशाब आने के साथ ही पेशाब में जलन भी होती है।
4 प्रोटेस्ट ग्रंथि के बढ़ने पर भी यह समस्या पैदा हो सकती है।
5 किडनी में संक्रमण होने पर भी बार-बार पेशाब आना बेहद आम बात है, इसलिए अगर आपको यह परेशानी है, तो इसकी जांच जरूर कराएं।
बहुत ज्‍यादा शराब या कैफीन के सेवन, किडनी प्रॉब्‍लम, मूत्राशय में समस्‍या, डायबिटीज मेलिटस, प्रेग्‍नेंसी, चिंता, मूत्रवर्द्धक दवाओं, स्‍ट्रोक, मस्तिष्‍क या तंत्रिका तंत्र से संबंधित स्थितियां, मूत्र मार्ग में संक्रमण, पेल्विक हिस्‍से में ट्यूमर, ओवरएक्टिव ब्‍लैडर सिंड्रोम, मूत्राशय कैंसर, किडनी या मूत्राशय में पथरी, पेशाब न रोक पाना, पेल्विक हिस्‍से में रेडिएशन जैसी ट्रीटमेंट लेना और क्‍लैमेडिया जैसे यौन संक्रमित रोग की वजह से बार-बार पेशाब आ सकता है।

बार-बार पेशाब आने के लक्षण

पेशाब करते समय दर्द होना, पेशाब में खून या अजीब रंग आना, पेशाब न रोक पाना या मूत्राशय का धीरे-धीरे कमजोर होना, पेशाब करने की इच्‍छा होना लेकिन पेशाब करने में दिक्‍कत आना, वजाइना या पेनिस से डिस्‍चार्ज होना, प्‍यास और भूख बढ़ना, बुखार, ठंड लगना, उल्‍टी, मतली और पीठ के निचले हिस्‍से में दर्द होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।


उपाय -


*भरपूर मात्रा में पानी पिएं ताकि किसी प्रकार का इंफेक्शन हो, तो वह पेशाब के माध्यम से निकल जाए और बाद में आपको इस तरह की परेशान न झेलनी पड़े।
* दही, पालक, तिल, अलसी, मेथी की सब्जी आदि का रोजाना सेवन करना इस समस्या में फायदेमंद साबित होगा।
*सूखे आंवले को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें गुड़ मिलाकर खाएं। इससे बार-बार पेशाब आने की समस्या में लाभ होगा। विटामिन सी से भरपूर चीजों का सेवन करें।4 अनार के छिलकों को सुखा लें और इसे पीसकर चूर्ण बना लें। अब सुबह-शाम इस चूर्ण का सेवन पानी के साथ करें। अगर चाहें तो इसका पेस्ट भी बना सकते हैं।
*मसूर की दाल, अंकुरित अनाज, गाजर का जूस एवं अंगूर का सेवन भी इस समस्या के लिए एक कारगर उपाय है।

बार-बार पेशाब आने का घरेलू इलाज है ग्रीन टी

ग्रीन टी भी आपको इस परेशानी से राहत दिला सकती है क्‍योंकि इसमें माइक्रोबियल-रोधी गुण होते हैं। एक कप गर्म पानी में 5 से 7 मिनट के लिए एक चम्‍मच ग्रीन टी डालकर रखें। इसमें स्‍वादानुसार शहद मिलाकर दिन में दो बार पिएं।

कुलथी का प्रयोग-

कुलथी में केल्शियम , आयरन और पॉलीफिनॉल होता है ,इसमे पर्याप्त एंटीऑक्‍सीडेंट होते हैं| थोड़ी सी कुलथी को गुड के साथ रोज सुबह लेने से मूत्राशय की खराबी दूर हो जाएगी।

अनार पेस्ट-


यह मूत्राशय की गर्मी शांत करता है। अनार के छिलके का पेस्ट बनाएँ और उसका छोटा भाग पानी के साथ दिन में दो बार खाइये। ऐसा 5 दिनों के लिये करें, आपको इससे आराम मिलेगा।

तिल के बीज-


तिल के दानों में एंटी ऑक्‍सीडेंट्स, खनिज तत्व और विटामीन्स होते हैं। आप इसे गुड या फिर अजवाइन के साथ सेवन कर सकते हैं।

दही 

दही को हर रोज खाने के साथ खाना चाहिये। इसमें मौजूद तत्व मूत्राशय में खतरनाक रोगाणुओं को बढ़ने से रोकते है।

मेथी पावडर 

मेथी पावडर को सूखी अदरक और शहद के साथ मिला कर पानी के साथ खाएं। ऐसा हर दो दिन पर करें। बार बार पेशान आने की समस्या मे लाभ होगा |

शहद और तुलसी

एक चम्‍मच शहद के साथ 3-4 तुलसी की पत्तियाँ मिलाएं और खाली पेट सुबह खाएं।

बार बार पेशाब आने का घरेलू उपचार है बेकिंग सोड़ा

ये एलकेलाइन होता है जो बार-बार पेशाब आने के लक्षणों को कम करता है और जिन स्थितियों के कारण ये समस्‍या होती है, उन्‍हें भी ठीक करता है। एक गिलास पानी में आधा चम्‍मच बेकिंग सोडा डालकर पी लें। दिन में एक बार इस पानी को पीने से फायदा होगा।


बार बार पेशाब आने का घरेलू नुस्खा है तुलसी

तुलसी एंटीऑक्‍सीडेंट की तरह काम करती है और शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को भी बाहर निकालती है। इसके एंटीमाइक्रोबियल गुण यूटीआई के इलाज में मददगार होते हैं। आपको बता दें कि यूटीआई बार-बार पेशाब आने का प्रमुख कारण होता है। 5 से 7 तुलसी की पत्तियां लें और उन्‍हें पीसकर रस निकाल लें। अब इस रस में दो चम्‍मच शहद मिलाकर पी लें। रोज सुबह खाली पेट ये उपाय करने से लाभ होगा।

नुस्खा-

500 ML. (आधा किलो) पानी में 100 ग्राम प्याज के टुकडे़ डालकर उबालें
जब अच्छी तरह से उबल जाये तो इसे छानकर शहद मिला लें
रोजाना 3 बार सुबह, दोपहर और शाम को लेने से पेशाब खुलकर, बिना कष्ट के आने लगता है
ये घरेलू नुस्खा बार बार पेशाब जाना ठीक करता है. यदि पेशाब बन्द भी हो गया हो तो वह भी आने लगता है.
गर्म दूध में गुड़ मिलाकर पीने से भी मूत्राषय के रोगों में लाभ होता है. पेशाब साफ और खुलकर आता है. रूकावट दूर होती है. यह रोज, एक गिलास दो बार पीयें.

बहुमूत्र और पेशाब में जलन का एक और उपाय

पिशाब में जलन होने पर आप अजवाइन को नमक के पानी में धोकर पीएं
दिनभर में कम से कम दो बार इस प्रक्रिया को करें
आपको ऐसा कुछ ही दिनों तक करना है. कुछ ही दिनों में आपकी बार बार पेशाब आने की परेशानी दूर हो जाएगी.
आंवला से बहुमूत्र का उपचार
आंवले का चूर्ण बनाकर गुड़ के साथ मिलाकर खाएं, आपको पेशाब खुलकर आने लगेगा.
बार बार पेशाब जाने की झंझट से मुक्ति मिल जाएगी
रोजाना अपने नाश्ते में दो पके हुए केले का सेवन करें
कुछ ही दिनों में आपकी बार बार पेशाब के लिए जाने की समस्या दूर हो जाएगी.

जीरा और चीनी

दोनों को समान मात्रा में पीसकर दो चम्मच तीन बार फँकी लेने से रुका हुआ पेशाब भी खुल जाता है.
नीबू के बीजों को पीसकर नाभि पर रखकर ठण्डा पानी डालें. इससे रुका हुआ पेशाब होने लगता है.
और एक बार में आपको आराम मिला जायेगा. और आपको बार बार पेशाब के लिए भागना नही पड़ेगा.
सूखे आंवले को पीसकर इसका चूर्ण बना लें और इसमें गुड़ मिलाकर खाएं.
इससे बार-बार पेशाब आने की समस्या में लाभ होगा.

अनार के छिलकों को सुखा लें और इसे पीसकर चूर्ण बना लें.
अब सुबह-शाम इस चूर्ण का सेवन पानी के साथ करें.अगर चाहें तो इसका पेस्ट भी बना सकते हैं

ये चीजें न खाएं

जिन लोगों को बार-बार पेशाब आने की समस्‍या है वो कार्बोनेटेड ड्रिंक्‍स, शराब, कॉफी, चाय, चॉकलेट, खट्टे फल, मसालेदार चीजों, टमाटर, चीनी, कच्‍ची प्‍याज आदि का सेवन न करें।

6.10.21

हथेली और तलवों मे पसीना आने के उपचार: sweaty hands & feet home remedies

 


 

 वैसे तो पसीना आना बॉडी के लिए बहुत अच्छा होता है और यह एक सामान्य प्रक्रिया भी है। पसीना आने से शरीर में मौजूद अवांछित एंव विषैले तत्व बड़ी आसानी से बाहर हो जाते हैं। गौरबतलब शरीर के कई सारे ऐसे खास अंग जहां अधिक पसीना आता है जैसे बांहे,पीठ और सिर। मगर आपको ऐसे बहुत कम लोग देखने को मिलेंगे जिन लोगों की हथेली और तलवों में भी पसीना आता होगा।
सामान्यत: शरीर के कुछ खास अंगों में अधि‍क पसीना आता है लेकिन हथेली और तलवों में हर किसी को पसीना नहीं आता। अगर आपको भी हथेली और पैर के तलवों में पसीना आता है, तो यह जानकारी आपके लिए है। समान्य तापमान पर भी हथेली और तलवों में पसीना आना बिल्कुल सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह किसी स्वास्थ्य समस्या का सूचक भी हो सकता है।  
 दरअसल सामान्य या कम तापमान पर भी पसीना आना, और खास तौर से हथेली व पैर के तलवों में पसीना आने की यह समस्या हाइपरहाइड्रोसिस नामक बीमारी भी हो सकती है। कभी कभार ऐसा होना सामान्य हो सकता है, लेकिन अक्सर इस तरह से पसीना आना हाइपरहाइड्रोसिस की ओर इशारा करता है। केवल हथेली या तलवे ही नहीं पूरे शरीर में अत्यधि‍क पसीना आना भी इस समस्या को दर्शाता है।
पसीना आना भले ही शरीर से अवांछित तत्वों को बाहर निकालने की प्रक्रिया है जो त्वचा और शरीर की आंतरिक सफाई का एक हिस्सा है, लेकिन दूसरी ओर अधि‍क पसीना आना आपके स्वास्थ्य को बिगाड़ भी सकता है। ज्यादा पसीना नमी पैदा करता है, और इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया आपके स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और कई बीमारियों को पैदा करने में महत्वपूर्ण भमिका निभाते हैं।

उपचार बेकिंग सोडा -

 गरम पानी में थोड़ा सा बेकिंग सोडा मिला कर उसमें अपने पसीनेदार हाथों को डुबोएं। ऐसा केवल कुछ मिनट के लिये कीजिये और फिर देखिये कि इस घोल से हाथ को निकालने के बाद कई घंटो तक आपके हाथों में पसीना नहीं आएगा।

 टैल्‍कम पाउडर- 

अगर हथेलियों में हल्‍का पसीना आता है तो, उस पर टैल्‍कम पाउडर लगाइये। आप अपने बैग में पाउडर रख भी सकती हैं जिससे जरुरत पड़ने पर इस्‍तमाल किया जा सकता है। 

टी बैग- 

एक कटोर में पानी डाल कर उसमें 4-5 टी बैग डालिये और उसमें अपनी हथेलियों को भिगो दीजिये। यह प्राकृतिक रूप से आपके हाथों का पसीना कंट्रोल करेगी। 


ध्‍यान- 

मेडिटेशन करने से आपके कई सारे रोग दूर हो सकते हैं। अत्‍यधिक पसीना तभी निकलता है जब आप स्‍ट्रेस में हों या आपको किसी बात की बेचैनी हो रही हो। लेकिन योग और ध्‍यान से आप अपने स्‍ट्रेस के लेवल को कम कर के पसीने को रोक सकते हैं। 

खान-पान में सुधार- 

ज्यादा पसीना रोकने के लिये अपनी डाइट में सुधार भी करना जरुरी है। इसके अलावा लहसुन, प्‍याज और अन्‍य मसालों को खाने से पसीना ज्‍यादा बहता है, इसलिये इनका सेवन कंट्रोल में रह कर करें। टमाटर का रस भी रोजाना पीसे से इस समस्‍या से राहत मिलती है क्‍योंकि यह शरीर को ठंडा रखता है।

भोजन:


अपने भोजन में मसालों का प्रयोग कम करें।

  • भोजन में लहसुन, प्याज और अदरक को भी कम ही शामिल करें।
  • यह सब पसीने के कारक होते है।
  • हो सके तो ठंडी तासीर वाली चीजों का सेवन करें।
  • टमाटर का रस पिए यह आपके शरीर को ठंडा रखेगा।

  • गुलाब जल पसीना आने की समस्या को करे कम

    गुलाब जल का इस्तेमाल चेहरे की त्वचा को खूबसूरत बनाने के लिए किया जाता है। यह हाथ-पैरों से निकलने वाले पसीने की समस्या को भी कम करता है। गुलाब जल को हथेलियों और तलवों पर लगाने से ठंडक मिलती है। पानी में गुलाब जल की बूंदों को मिलाकर इसमें तलवों को डुबाकर रखें। इससे त्वचा को ठंडक का अहसास होगा। ठंडे पानी में गुलाब जल की कुछ बूंदें डालकर उसमें हथेलियों और तलवों को डालकर रखें। 10 मिनट के लिए पानी में हाथ-पैरों को रखने से पसीना आना कम हो जाएगा।
  • *ज्यादा पसीना आने का संबंध केवल बाहरी नहीं बल्कि आपके शरीर के अंदर हो रही परेशानियों की वजह से भी हो सकता है। जैसे ज्यादा चिंता कर लेना,डर और तनाव के समय भी शरीर से ज्यादा पसीना खुद निकलने लगता है। यौवनावस्था शुरू होने पर बॉडी में होने वाले हॉर्मोनल बदलावों की वजह से शरीर में 30 लाख पसीने वाली ग्रंथियां सक्रिय हो जाती है। ऐसा किसी-किसी के साथ नहीं बल्कि सभी के साथ होता है,मगर हाइपरहाइड्रोसिस से पीडि़त लोगों को सामान्य लोगों से कई गुणा ज्यादा पसीना आता है। 

  • एप्पल साइडर वेनेगर से पसीना आने की समस्या करें दूर

    जब हद से ज्यादा पसीना आने लगता है, तो उस स्थिति को हाइपरहाइड्रोसिस कहते हैं। आमतौर पर ये समस्या गर्मी या अधिक एक्सरसाइज करने से संबंधित नहीं होती है। कुछ लोगों में अधिक पसीना आने से सोशल एंग्जायटी या शर्मिंदगी का कारण बन जाता है। आपके साथ भी ऐसा होता है, तो डॉक्टर से जरूर संपर्क करें। इसके अलावा इस समस्या को आप सेब के सिरका का इस्तेमाल करके दूर कर सकते हैं। सेब का सिरका शरीर में पीएच लेवल को बैलेंस करता है। पसीना अधिक आने की समस्या को भी दूर करता है। हथेलियों और तलवों में कॉटन की मदद से सेब का सिरका लगाएं। भोजन में भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। सलाद में डालें। पानी में एक चम्मच सिरका डालकर पी सकते हैं।
 हाइपरहाइड्रोसिस का इलाज सामान्यत: स्वेद ग्रंथि के ऑपरेशन द्वारा होता है लेकिन अत्यधि‍क पसीने की परेशानी को आप कुछ हद तक कम कर सकते हैं।इसके लिए आपको ऐसे कपड़ों का चुनाव करना चाहिए जो पसीने को आसानी से सोख ले और आपकी त्वचा सांस ले सके।   

नींबू का छिलका अधिक पसीना आने की समस्या से दिलाए छुटकारा

हथेलियों और तलवों में आपको पसीना अधिक आता है, तो आप इसे ठीक करने के लिए नींबू का इस्तेमाल करें। नींबू के छिलकों को तलवों और हथेलियों पर रगड़ें। नींबू का रस निचोड़कर उसमें चुटकी भर नमक मिलाएं। इसे हाथ और पैर में लगाकर नींबू के छिलकों से रगड़ें, थोड़ी देर सूखने दें फिर पानी से साफ कर लें। इससे हाथ-पैरों की त्वचा मुलायम भी होगी।
  इसके अलावा हथेली और पैर के तलवों में आने वाले पसीने से बचने के लिए उन्हें खुला रखना बेहद जरूरी है। दिनभर अगर आप ऑफिस में या बाहर, मोजे और जूतों से पैक रहते हैं, तो घर पर उन्हें पूरी तरह से खुला रखें। इसके अलावा जब भी संभव हो पैरों से जूते और मोजे निकाल दें। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी नहीं पनपेंगे। 
   हाथों के लिए भी खुलापन बहुत जरूरी है और इसमें लगातार हवा लगती रहे इस बात का भी ध्यान रखें। हाथों को हमेशा साफ रखें और शरीर की सफाई का भी विशेष ध्यान रखें।
प्रतिदिन नहाएं और त्वचा को अच्छी तरह से पोंछकर साफ करें, इसके बाद डिओ या अन्य उत्पादों का प्रयोग करें। हो सके तो नहाने के पानी में एंटी बैक्टीरियल लिक्विड की कुछ बूंदे डाल दें।

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