31.12.20

सारस्वतारिष्टके फायदे:Saraswatarisht ke fayde


सारस्वतारिष्ट  आयु
, वीर्य, धृति, मेघा (बुद्धि), बल और कांतिको बढ़ाता है तथा वाणीको शुद्ध करता है। यह उत्तम ह्रद्य (ह्रदय को बल देने वाला) रसायन है। बालक, युवा और वृद्ध, पुरुष और स्त्री सबके लिये हितकारक है।

सारस्वतारिष्ट  स्वर की कर्कशता और अस्पष्टता का  निवारण करके स्वरको कोयलके समान मधुर बनाता है। स्त्रियो के रजोदोष और पुरुषोके शुक्रदोष को नष्ट करता है। अति अद्ययन, अति गाना आदि कारणो से स्मरण शक्ति ठीक करता है। एवं चित्तको प्रसन्न और संतोषी बनाता है। यह अरिष्ट एक मास में ह्रदय रोग का नाश करता है और एक वर्ष के सेवन से शारीरिक सिद्धि देता है।
सारस्वतारिष्ट उत्तम बल्य, ह्रद्य, रसायन, वातवाहिनिया और वातकेंद्र पर शामक, चित्तप्रसादक, बुद्धिप्रद और स्मृतिवर्धक है।
तोतलापन, बुद्धिमांद्य, श्रवणशक्ति और स्मरणशक्ति में न्यूनता, विचार रहित बोलना आदि विकारो पर यह अच्छा उपयोगी है, एवं उन्माद, अपस्मार, उत्साहका अभाव, उतावलापन आदि व्याधियोंमे सारस्वतारिष्ट लाभदायक है।

स्त्रियो के मासिकधर्म बंद होनेपर होने वाले अनेक विकार- घबराहट, चक्कर, हाथ-पैर में शून्यता आ जाना, बेचैनी, कही भी चित्त न लगना, निद्रानाश आदि होते है। उनपर यह सारस्वतारिष्ट उत्तम कार्य करता है। इन विकारो में कितनीही स्त्रियो को चक्कर बहुत आते है, वह इतने तक की ऊंची द्रष्टि भी नहीं कर शक्ति। सोते-सोते मोटर गाडी चलने के माफिक मशतिष्क फिरता है, सर्वदा कान में नाद (आवाज) गूँजता रहता है। एसे समय पर सारस्वतारिष्ट सुवर्णमाक्षिक भस्मके साथ देने से उत्तम कार्य करता है।

स्त्रियो के बीजाशय या पुरुषो के अंडकोष की वृद्धि योग्य रूप से न होने से स्त्री-पुरुषो के शरीर आयुवृद्धि होनेपर भी उच्चित अंशमे नहीं बढ़ते। युवावस्थाकी भावना भी नहीं होती। एसी स्थितिमे मकरध्वज और वंग भस्मके साथ सारस्वतारिष्ट देना चाहिये।

मात्रा: 10 से 20 ml बराबर मात्रा मे पानी मिलाकर भोजन के बाद शुबह-शाम।
सारस्वतारिष्ट घटक द्रव्य: ताजी ब्राह्मी 80 तोले, शतावरी, विदारीकंद, हरड़, नेत्रबाला, अदरख, सौंफ, सब 20-20 तोले, शहद 40 तोले, शक्कर 100 तोले, धाय के फूल 20 तोले, रेणुक बीज, पीपल, बच, असगंध, गिलोय, वायविडंग, निसोत, लौंग, कूट, बहेड़ा, इलायची, दालचीनी और सोने के वर्क, प्रत्येक 1-1 तोला।

सारसवातारिष्ट बिना डॉक्टर के पर्चे द्वारा मिलने वाली आयुर्वेदिक दवा है, जो मुख्यतः याददाश्त खोना, मानसिक रोग के इलाज के लिए उपयोग किया जाता है। इसके अलावा इसका उपयोग कुछ दूसरी समस्याओं के लिए भी किया जा सकता है। इनके बारे में नीचे विस्तार से जानकारी दी गयी है। सारसवातारिष्ट के मुख्य घटक हैं अश्वगंधा, ब्राह्मी, गिलोय, कुश्ता, वाचा जिनकी प्रकृति और गुणों के बारे में नीचे बताया गया है।

सामग्री
अश्वगंधा
वे दवाएं जो मानसिक विकारों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
दवाएं जो मूड स्विंग के लिए प्रभावी होती है और अन्य विकारों जैसे बायपोलर और डिप्रेशन के लक्षणों से राहत दिलाती हैं।
ब्राह्मी
ये दवाएं मानसिक विकारों को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
गिलोय
ये एजेंट मुक्त कणों को साफ करके ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद करते हैं।
पाचन क्रिया को सुधारने व खाने को ठीक से अवशोषित करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाएं।
वे दवाएं जो प्रतिरक्षा प्रणाली पर काम कर इम्‍यून की प्रतिक्रिया में सुधार लाती हैं।
कुश्ता
चोट या संक्रमण के कारण होने वाली सूजन को कम करने वाली दवाएं।
वाचा
ये दवाएं अवसाद के लक्षणों को नियंत्रित रखने में उपयोगी होती हैं।
शीतल प्रभाव वाली दवा जो शरीर को आराम देकर चिंता, चिड़चिड़ापन और तनाव से राहत देती है।
मिर्गी या बेहोशी के इलाज के लिए इस्तेमाल में आने वाली दवाएं।
यह औषधि इन बिमारियों के इलाज में काम आती है -
याददाश्त खोना मुख्य
मिर्गी
वॉइस डिसऑर्डर
मानसिक रोग मुख्य
Ref: भैषज्य रत्नावली
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30.12.20

गोखरू के फायदे एवं उपयोग:gokhru gurde rogon ki maha aushadhi







गोखरू एक बहुत ही गुणकारी एवं दिव्य जड़ी बूटी है | आयुर्वेद में गोखरू के पंचमूल का उपयोग करके बहुत सी प्रभावी औषधियां बनायी जाती हैं | मूत्र विकार, किडनी के रोग, शारीरिक क्षमता एवं पौरुष कामशक्ति बढाने के लिए गोखरू का उपयोग किया जाता है | गोखरू से बनने वाली कुछ प्रमुख औषधियां :-
गोक्षुरादी चूर्ण
गोखरू पाक
गोक्षुरादी क्वाथ
त्रिकंटादि क्वाथ
गोक्षुरुदि गुग्गूलू
गोखरू के फायदे एवं उपयोग के लिए इमेज परिणाम
गोक्षुर या गोखरू वातपित्त, सूजन, दर्द को कम करने में सहायता करने के साथ-साथ, रक्त-पित्त(नाक-कान से खून बहना) से राहत दिलाने वाला, कफ दूर करने वाला, मूत्राशय संबंधी रोगों में लाभकारी, शक्तिवर्द्धक और स्वादिष्ट होता है। गोक्षुर का बीज ठंडे तासीर का होता है। इसके सेवन से मूत्र अगर कम हो रहा है वह समस्या दूर हो जाती है।


गोखरू पाक बनाने की विधि, फायदे एवं उपयोग 
यह पौष्टिक एवं बलवर्धक औषधि है | प्रमेह, क्षय, मूत्र जनित रोग, शुक्रजनित शारीरिक कमजोरी एवं यौन शक्ति बढाने के लिए इसका सेवन करना चाहिए | आइये जानते हैं गोखरू पाक के घटक द्रव्यों के बारे में :-
गोखरू (चूर्ण किया हुवा) – 64 तोला
दूध – 256 तोला
लौंग, लौह भस्म, काली मीर्च
कपूर, सफ़ेद आक की जड़, कत्था
सफ़ेद जीरा, श्याह जीरा, हल्दी
आंवला, पीपल, नागकेशर
जायफल, जावित्री, अजवायन, खस
सोंठ, करंजफल की गिरी (सभी 1 तोला)
गो घृत – 32 तोला
चाशनी
गोखरू पाक बनाने के लिए इन सभी जड़ी बूटियों की आवश्यकता होती है |
गोक्षुर एक ताक़तवर जड़ी बूटी है एवं यह आसानी से उपलब्ध हो जाती है | सर्दियों में गोखरू के लड्डू या गोखरू पाक का सेवन बहुत फायदेमंद रहता है | शरीर में आई कमजोरी को दूर करने के लिए यह बहुत ही कारगर औषधि है |
गोखरू का महीन चूर्ण बना लें |
इस चूर्ण को दूध में अच्छे से पका कर खोवा बना लें |
अब इस खोवे को गो घृत में भुन लें |
ध्यान रखें इसे धीमी आंच पर भुने |
अब अन्य सभी द्रव्यों का चूर्ण बना उन्हें मिला लें |
इस चूर्ण को चाशनी तैयार कर उसमें मिला देवें |
अब खोवा और चाशनी के मिश्रण को मिला लें |
इस तरह से उत्तम श्रेणी का गोखरू पाक तैयार हो जाता है |
अनुपान कैसे करें :-
गोखरू पाक को रोजाना 2- 3 चम्मच दूध या ठन्डे पानी के साथ सेवन करें या रोगानुसार अनुपान करें |
आइये जानते हैं गोखरू पाक के फायदे एवं उपयोग के बारे में |
अर्श एवं प्रमेह नाशक यह औषधि बहुत गुणकारी है | यह उत्तम बलवर्धक एवं पौष्टिक उत्पाद है | मूत्र विकारों में यह बहुत असरदार है | आइये जानते हैं इसके फायदे :-
अर्श रोग नाशक है |
क्षय रोग में बहुत फायदेमंद औषधि है |
मूत्र पिंड की सुजन को कम करता है |
बलवर्धक एवं पौष्टिक है |
प्रमेह रोग से उत्पन्न कमजोरी को दूर करता है |
वीर्य विकारों में इसका सेवन करने से बहुत लाभ होता है |
पौरुष यौन शक्ति बढाने के लिए इसका उपयोग करें |
गर्भाशय को सशक्त बनाता है |
गोखरू पाक शुक्र जनित दुर्बलता को दूर करता है |

विशिष्ट परामर्श-

किडनी फेल रोगी मे बढे हुए क्रिएटनिन एवं यूरिया के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की कार्य क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| डायलिसिस पर चल रहे रोगी को भी अत्यंत हितकारी है|रोगी के हीमोग्लोबिन मे भी वृद्धि होती है|औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है


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शिवाक्षार पाचन चूर्ण:Shivakshar pachan churna




शिवाक्षार पाचन चूर्ण

शिवाक्षार पाचन चूर्ण एक बेहतरीन दस्तावर औषधि है | मनुष्य में पेट के मध्यम से ही अधिकतर रोग पनपते है | अगर मनुष्य का पेट अर्थात पाचन प्रणाली सही नहीं है तो उसको जल्द ही अन्य रोग जकड लेते है | आयुर्वेद में कहा भी गया है कि स्वस्थ रहने का रास्ता पेट से होकर जाता है | शिवाक्षार पाचक चूर्ण गैस्ट्रिक एवं कब्ज की समस्या में रामबाण औषधी साबित होती है | आज कल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में गैस्ट्रिक और कब्ज एक आम समस्या हो गई है जो हर घर में देखने को मिलती है | गैस्ट्रिक की समस्या के कारण आपका पूरा दिन बेरंग रहता है | इसलिए आज की इस post में हम आपको गैस्ट्रिक और कब्ज की समस्या से निजत पाने के लिए एक घरेलु और प्रमाणिक औषधि का निर्माण और सेवन विधि बताएँगे |

शिवाक्षार पाचन चूर्ण बनाने की विधि

शिवाक्षर पाचन चूर्ण बनाने के लिए हमें
हिंग – 10 ग्राम
कालीमिर्च – 10 ग्राम
अजवायन – 10 ग्राम
छोटी हरेड – 10 ग्राम
शुद्ध सज्जीखार – 10 ग्राम
सैंधव नमक – 10 ग्राम
की आवस्यकता होगी | इन सभी को एक बराबर मात्रा में ले कर | इनको अच्छी तरह कूट – पीसकर और कपडछान कर के साफ़ एवं (Air Tight ) मजबूत डक्कन वाली शीशी में भर लेवे , आपकी गैस्ट्रिक और कब्ज की रामबाण औषधि ” शिवाक्षार पाचक चूर्ण ” तैयार है |

मात्रा और सेवन विधि

शिवाक्षार पाचन चूर्ण को दो तरह से ले सकते है –
घी के साथ – देशी गाय के घी के साथ आधा चम्मच रोज सुबह – शाम सेवन करे |
गुनगुने पानी के साथ – शिवाक्षार चूर्ण को आधा चम्मच की मात्रा में रोज सुबह शाम सेवन करे |

लाभ

यह चूर्ण वायु तथा वात के सभी प्रकार के रोगों को दूर करता है | इसके सेवन से पेट की अग्नि ठीक होती है |अपान वायु बहार निकल जाती है , कब्ज को भी जड़ से दूर करने में सक्षम है | यह चूर्ण बच्चो में भी लाभ कारी है 





  • 29.12.20

    श्वास कास चिंतामणि रस के फायदे:Shwas kas Chintamnai ras

      


    श्वास कास चिंतामणि रस आंत, यकृत, मूत्र ब्लैडर और दिल के फंक्शन को सुधारता है. यह श्वसन को ठीक करने में विशेष रूप से उपयोगी है. यह फेफड़ों को राहत देता है और फेफड़ों से संचित कफ को हटाकर सभी प्रकार के श्वसन और अस्थमा में सहायक होता है. यह श्वसन और पुरानी खांसी में फायदेमंद है.
    श्वास कास चिंतामणि रस (Shwas Kas Chintamani Ras) के सेवन से श्वास और कास (खांसी) का नाश होता है । रूक्ष (सूखे) गुण से प्रकुपित वायु कास नलिकाओ का अवरोध करके उनमे आक्षेप उत्पन्न कर देती है । यदि ये आक्षेप सतत रहे तो प्राणवायु (Oxygen) श्वास यंत्र में प्रवेश नहीं कर सकती जिससे फुफ्फुस की गति अप्राकृतिक होकर भयंकर श्वास उत्पन्न करती है। जब सामयिक आक्षेप होता है तो वायु के प्रकोप के कारण श्वास भी सामयिक ही होता है । सतत वायु के प्रभाव से रूक्ष हुये श्वास-कास तन्तुओं मे नीरसता होकर कर्कशता उत्पन्न हो जाती है, और क्योंकि सभी श्वास वातप्रधान होते है अत: जितनी कर्कशता बढती जाती है उतना वात रोग बढता जाता है, इस कर्कशता को रोकने के लिये तन्तुओ मे मृदुता उन्पन्न करनी पडती है ।
    श्वास कास चिंतामणि रस (Shwas Kas Chintamani Ras) के सेवन से तन्तुओ का पोषण होता है। कर्कशता दूर होती है और विषैले वात के प्रभाव से उत्पन्न हुई फुफ्फुस की दुर्दशा इस स्निग्ध द्रव्य के सेवन से धीरे धीरे दूर हो जाती है। पुष्ट श्वास यन्त्र प्राणवायु को भली प्रकार खीच सकता है, धारण कर सकता है और एकत्रित हुये दुष्ट वात को शक्तिपूर्वक बहार निकाल सकता है। श्वास कास चिंतामणि रस जीर्ण-शीर्ण श्वास यन्त्र के पोषण के लिये उत्तम औषध है ।
    मात्रा: 1-1 गोली । पीपल के चूर्ण और मधु के साथ।
    श्वास कास चिंतामणि रस घटक द्रव्य तथा निर्माण विधान-शुद्ध पारद, स्वर्णमाक्षिकभस्म और स्वर्णभस्म 1-1 भाग, मोतीभस्म आधा भाग, शुद्ध गन्धक और अभ्रकभस्म 2-2 भाग तथा लोहभस्म 4 भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धक की कज्जली बनावे और फिर उसमे अन्य औषधियो का चूर्ण मिलाकर कटेली के रस, बकरी के दूध, मुलैठी के काथ और पान के रस को 7-7 भावना देकर 2-2 रत्ती की गोलियां बनाले। (यदि इसी रस मे स्वर्णभस्म आधा भाग डाल दी जाय और पान के स्थान मे अदरक की भावना दी जाय तो इसी का नाम "श्वास चिन्तामणि" हो जाता है) (1 रत्ती=121.5 mg)
    श्वास कास चिंतामणि रस की सामग्री -
    स्वर्ण भस्म
    दवा जो श्वास, घरघराहट, खांसी और सीने में जकड़न जैसे अस्‍थमा के लक्षणों को रोकने में मदद करती है
    चोट या संक्रमण के कारण होने वाली सूजन को कम करने वाली दवाएं।
    ये एजेंट प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रभाव डालते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्यों को बदलने में मदद करते हैं।
    अभ्रक भस्म
    पारा
    ये एजेंट मांसपेशियों को संकुचित कर चोट लगने वाली जगह तक खून का संचरण कम कर देते हैं।
    ये दवाएं मल त्याग को आसान बनाकर कब्ज का इलाज करने में मदद करती हैं।

    लौह भस्म
    बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकने और उन्हें मारने वाली दवाएं।
    शुद्ध गंधक
    ये एजेंट मांसपेशियों को संकुचित कर चोट लगने वाली जगह तक खून का संचरण कम कर देते हैं।
    वो दवा या एजेंट जो बैक्टीरिया को नष्‍ट या उसे बढ़ने से रोकती है
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    वीर्य जल्दी निकलने की समस्या के उपचार

    सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

    किडनी फेल गुर्दे ख़राब की अचूक औषधि 

    प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

    सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे


    आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

    खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

    महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

    मुँह सूखने की समस्या के उपचार

    गिलोय के जबर्दस्त फायदे

    इसब गोल की भूसी के हैं अनगिनत फ़ायदे

    कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

    छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

    सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

    किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

    तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

    यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

    कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय


    किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

    स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

    लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

    सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

    दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

    मेथी का पानी पीने के जबर्दस्त फायदे

    28.12.20

    तालमखाना के फायद:Talamkhana ke fayde





    तालमखाना जड़ी बूटी के फायदे के लिए इमेज परिणाम
    तालमखाना मीठा, अम्लिय गुण वाला, कड़वा, ठंडे प्रकृति का, पित्त को कम करने वाला, बलकारक, खाने में रुचि बढ़ाने वाला, फिसलने वाला, वात और कफ करने में सहायक होता है।
    तालमखाना का क्षुप 2 से 5 फीट तक ऊंचा होता है। किसी-किसी क्षुप में टहनियाँ नीचे जड़ के समीप से ही फुटकर फैलती है, किसी में ऊंची डाल पर ही फूट निकलती है। तालमखाना की जड़ और बीज दोनों औषधयोजना में लिये जाते है।
    तालमखाना शीतल, वीर्यवर्धक, मधुर, अम्ल तथा तिक्त (कड़वा) रसयुक्त, पिच्छल (पिच्छल पदार्थ बलकारक, भारी, टूटे हुये को जोड़ने वाला और कफकारक होता है।) तथा वात, आमशोथ (आम के कारण सूजन), पथरी, प्यास, दृष्टिरोग और वातरक्त (Gout) का नाशक है।
    तालमखाना का बीज भारी, ग्राही, गर्भस्थापक, कफवातकारक, मलस्तम्भकारक तथा रक्तविकार, जलन और पित्त के नाशक है। तालमखाना के पत्ते सूजन, शूल, विष (Toxin), अफरा, वात, पेट के रोग, पांडुरोग एवं मलमूत्रों की रुकावट को मिटाते है। इसी के समान बड़े तालमखाना के गुण है।
    तालमखाना की जड़ चिकनी और मूत्रल है। यह सूजन, प्रमेह, यकृत (Liver) की विकृति, संधिवात और मूत्राशय के शूलों के लिये प्रयोग की जाती है। इसके बीजों का उपयोग वाजीकरण के रूप में किया जाता है। बीजों का लेप संधिवात में दुखती संधियों के लिये भी किया जाता है। सूजन के रोगियों पर तालमखाना का उपयोग लाभदायक सिद्ध हुआ है।
    यूनानी मत से तालमखाना बलदायक, प्रसन्नताकारक, स्फूर्तिकारक, कामशक्तिवर्धक, वीर्यवर्धक और वीर्य को गाढ़ा करनेवाला तथा स्तंभनकारक भी है। वात और रक्तदोषों के लिये लाभदायक है। वीर्यस्त्राव (शुक्रमेह) और जलोदर को नष्ट करता है।

    तालमखाना के फायदे एवं स्वास्थ्य उपयोग 

    इसकी जड़ें उत्कृष्ट शीतल, वेदनानाशक, बलकारक और मूत्रल होती है | इसके बीज स्निग्ध, कुछ मूत्रल और कामेन्द्रिय को उत्तेजना देने वाले होते है | इसके पंचांग की राख मूत्रल होती है | इसकी जड़ का काढ़ा सुजाक और बस्तीशोथ रोग में दिया जाता है | इसके देने से सुजाक की जलन कम होती है और पेशाब का प्रमाण बढ़कर रोग धुल जाता है | यकृत के विकारों में तालमखाना की जड़ का क्वाथ और पंचांग की राख दी जाती है |तालमखाना के घरेलु प्रयोग
    अगर आप अनिद्रा रोग से ग्रषित है तो तालमखाने की जड़ों को पानी में उबाल कर क्वाथ तैयार करके पीना चाहिए | निरंतर सेवन से उचटी हुई नींद की समस्या ठीक हो जाती है |
    पत्थरी एवं मूत्रविकारों में तालमखाना के साथ गोखरू और एरंड की जड़ को दूध में घिसकर पिने से मुत्रघात, रुक रुक कर पेशाब का आना एवं पत्थरी की समस्या जाती रहती है |
    तालमखाने के पुरे पौधे को जलाकर इसकी भस्म (राख) बना ले | इस राख को कपड़े से छान कर सुखी बोतल में रखलें | जलोदर जैसे रोगों में जब इसकी ताज़ी जड़ें न मिलसके तब इसकी भस्म का सेवन करना चहिये | इसका सेवन करने के लिए एक चम्मच की मात्रा के गिलास पानी में डालकर अच्छी तरह हिला कर 20 – 20 मिली की मात्रा में दो – दो घंटे के अन्तराल से सेवन करना चाहिए | इस नुस्खे से जलोदर में बहुत फायदा मिलता है |
    तालमखाने की जड़ शीतल, कटु और पौष्टिक एवं स्निग्ध होती है | इसकी जड़ को एक ओंश की मात्रा में 50 तोले पानी के साथ 10 मिनट ओंटाकर निचे उतार कर छान लेना चाहिए | यह क्वाथ जलोदर, मूत्रमार्ग और जननेंद्रिय के रोगों में काफी लाभकारी होता है |
    कुष्ठ रोग में इसके पौधे के पतों का रस निकाल कर पीने से और पतों का शाग खाते रहने से लाभ मिलता है 
    इसके पौधे से प्राप्त गोंद को 1 ग्राम की मात्रा में कब्ज के रोगी को देने चमत्कारिक लाभ होता है |
    अगर शरीर में कंही सुजन हो तो इसकी जड़ को जलाकर बनाई गई राख को पानी के साथ सेवन करने से शरीर की सुजन में आराम मिलता है |
    आयुर्वेद के वाजीकरण योगों में तालमखाने का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है | यह कामोद्दीपक गुणों से युक्त होती है | इसके सेवन से जननेंद्रिय के विकारों में भी लाभ मिलता है | यह वीर्य को बढ़ाने एवं इसके विकारों को हरने वाला होता है |
    तालमखाना के कुछ स्वतंत्र प्रयोग: 
    ౦ वाजीकरण के लिये: कौंच के बीज और तालमखाना का चूर्ण मिसरी मिलाकर धारोष्ण दूध के साथ सेवन करने से स्त्रीसंभोग-शक्ति बढ़ती है।
    ౦ वातरक्त (Gout) में: तालमखाना की जड़ का क्वाथ पीना चाहिये एवं पत्तों का शाक खाना चाहिये। इस प्रकार लंबा प्रयोग करने से वातरक्त नष्ट हो जाता है।
    ౦ संधि के मांसपेशी हट गई हो तो: तालमखाने के पंचांग का लेप करना लाभदायक है।
    ౦ तालमखाना का क्षार: कफ को निकालनेवाला और दस्तों के द्वारा दोषों को निकालनेवाला तथा जलोदर नाशक है।
    और भी फायदे हैं तालमखाना के 
    गठिया
    प्रयोग से पता चला है कि तालमखाना की जड़ और पत्तियां बहुत लाभदायक होती हैं इनका काढ़ा बनाकर सेवन करने से यकृत से जुड़ी विकारों में लाभ मिलता है और साथ ही ज्ञानेंद्रियों और पेशाब से संबंधित बीमारियों में भी लाभ होता है जलोदर, गठिया तथा मूत्र से जुड़े परेशानियों में भी आराम मिलता है|
    तालमखाना के फायदे हैं कुष्ठ रोग में
    कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को तालमखाना के जड़ और पत्तों का जूस निकाल कर पीने से मरीज को बहुत फायदा होता हैआप चाहे तो प्रतिदिन इसके पत्तों का साग बना कर खा सकते हैं इससे भी लाभ हो जाता है|
    प्रसवकष्ट-
    बगसेन का कहना है कि इसकी जड़ और शक्कर को बराबर मात्रा में लेकर मुंह में चबाने से जो रस निकलता है| उससे प्रसव की पीड़ा से परेशान महिला के कान में डालने से जल्द ही प्रसव हो जाता है|
    नींद ना लगना
    बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिन्हें नींद बहुत कम आती है या सोने के लिए नींद की गोली का इस्तेमाल करते हैं| आप चाहे तो उसकी जगह तालमखाना के जोड़ों को उबाल दीजिए और रोज उसके रस का सेवन करें, आप पाएंगे कि लंबे समय से चटकी हुई नींद वापस आ जाएगी और आपको नींद आने लगेगी|
    नपुंसकता-
    50 ग्राम कौंच का बीज और 50 ग्राम तालमखाना का मिश्रण तैयार कर लें और इसमें 100 ग्राम मिश्री को भी डाल दें, अब उसे प्रतिदिन गर्म दूध में आधा चम्मच मिश्रण डालकर उनका सेवन कीजिए| यह आपके वीर्य को गाढ़ा बना देगा और नपुंसकता भी दूर हो जाएगी|
    खांसी में लाभदायक
    कई लोगों को ऐसा होता है कि जब भी थोड़े बहुत मौसम का बदलाव होता है, तो सर्दी और खांसी होती ही रहती है और खांसी जल्दी जाने का नाम ही नहीं लेता, तो हम आपको घरेलू नुस्खे का प्रयोग करने की सलाह देंगे| तालमखाना के कुछ पत्तों का पाउडर बना लें, और एक चम्मच के साथ थोड़ा शहद को मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें और उसे खाएं जल्द ही खांसी में आराम मिल जाता है|
    ब्लड से संबंधित परेशानी
    यदि ब्लड से संबंधित कोई दिक्कत है, तो तालमखाना के पत्तों को उबालने के बाद बचा हुआ पानी रोगी को पिलाएं, इससे रक्त से जुड़ी समस्या दूर हो जाएगी|
    पीलिया
    लंबे समय से पीलिया से ग्रसित व्यक्ति को तालमखाना का काढ़ा बनाकर देना चाहिए| इसके लिए डेढ़ गिलास पानी में एक मुट्ठी तालमखाना के पत्तों को डालकर उबालें, उसे तब तक उबालें जब तक पानी जलकर एक कप ना हो जाए और उसे रोज सुबह खाली पेट पीने को दें| इससे पीलिया, एनीमिया, जलोदर तथा मूत्र से जुड़ी दिक्कत ठीक हो जाती है|
    तालमखाना के फायदे हैं मधुमेह में
    दुनिया की रफ्तार इतनी तेज हो चुकी है कि इस रफ्तार में हम अपने खानपान पर ठीक से ध्यान नहीं दे पाते, जिसके चलते किसी न किसी को मधुमेह का शिकार होना ही पड़ता है| इसके लिए आप तालमखाना के बीज का काढ़ा तैयार कर लें, और उसमें थोड़ा मिश्री डालकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है|
    तालमखाना से पथरी का इलाज
    तालमखाना, गोखरू और अरंडी की जड़ के चूर्ण को दूध के साथ पीने से पेशाब में दिक्कत और पथरी की समस्या से निजात मिल जाता है
    यौन शक्ति
    इसके बीज, कौंच का बीज, पिस्ता, बादाम, केसर, गिलोय, शतावरी को समान मात्रा में मिलाकर चूर्ण तैयार कर लें, और गाय के घी के साथ आधा चम्मच चूर्ण के साथ खाएं और बाद में एक गिलास दूध पीने से बल वीर्य शक्ति, शीघ्रपतन, शारीरिक कमजोरी और नपुंसकता दूर हो जाती है|