12.6.20

श्वास अथवा दमा रोग के अचूक नुस्खे

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श्वास अथवा दमा श्वसन तंत्र की भयंकर कष्टदायी बीमारी है। यह रोग किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है।श्वास पथ की मांसपेशियों में आक्षेप होने से सांस लेने निकालने में कठिनाई होती है।खांसी का वेग होने और श्वासनली में कफ़ जमा हो जाने पर तकलीफ़ ज्यादा बढ जाती है।रोगी बुरी तरह हांफ़ने लगता है।
एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ या वातावरण के संपर्क में आने से,बीडी,सिगरेट धूम्रपान करने से,ज्यादा सर्द या ज्यादा गर्म मौसम,सुगन्धित पदार्थों,आर्द्र हवा,ज्यादा कसरत करने और मानसिक तनाव से दमा का रोग उग्र हो जाता है।

अब यहां ऐसे घरेलू नुस्खों का उळ्लेख किया जा रहा है जो इस रोग ठीक करने,दौरे को नियंत्रित करने,और श्वास की कठिनाई में राहत देने वाल सिद्ध हुए हैं--
१) तुलसी के १५-२० पत्ते पानी से साफ़ करलें फ़िर उन पर काली मिर्च का पावडर बुरककर खाने से दमा मे राहत मिलती है।
२) एक केला छिलके सहित भोभर या हल्की आंच पर भुनलें। छिलका उतारने के बाद १० नग काली मिर्च का पावडर उस पर बुरककर खाने से श्वास की कठिनाई तुरंत दूर होती है।
३) दमा के दौरे को नियंत्रित करने के लिये हल्दी एक चम्मच दो चम्मच शहद में मिलाकर चाटलें।
४) तुलसी के पत्ते पानी के साथ पीसलें ,इसमें दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

5) पहाडी नमक सरसों के तेल मे मिलाकर छाती पर मालिश करने से फ़ोरन शांति मिलती है।
६) १० ग्राम मैथी के बीज एक गिलास पानी मे उबालें तीसरा हिस्सा रह जाने पर ठंडा करलें और पी जाएं। यह उपाय दमे के अलावा शरीर के अन्य अनेकों रोगों में फ़यदेमंद है।

७) एक चम्मच हल्दी एक गिलास दूध में मिलाकर पीने से दमा रोग काबू मे रहता है।एलर्जी नियंत्रित होती है।
८) सूखे अंजीर ४ नग रात भर पानी मे गलाएं,सुबह खाली पेट खाएं।इससे श्वास नली में जमा बलगम ढीला होकर बाहर निकलता है।
९) सहजन की पत्तियां उबालें।छान लें| उसमें चुटकी भर नमक,एक चौथाई निंबू का रस,और काली मिर्च का पावडर मिलाकर पीयें।दमा का बढिया इलाज माना गया है।


१०) शहद दमा की अच्छी औषधि है।शहद भरा बर्तन रोगी के नाक के नीचे रखें और शहद की गन्ध श्वासके साथ लेने से दमा में राहत मिलती है।
११) दमा में नींबू का उपयोग हितकर है।एक नींबू का रस एक गिलास जल के साथ भोजन के साथ पीना चाहिये।
१२) लहसुन की ५ कली ५० मिलि दूध में उबालें।यह मिक्श्चर सुबह-शाम लेना बेहद लाभकारी है।
१३) अनुसंधान में यह देखने में आया है कि आंवला दमा रोग में अमृत समान गुणकारी है।एक चम्मच आंवला रस मे दो चम्मच शहद मिलाकर लेने से फ़ेफ़डे ताकतवर बनते हैं।
14) दमा के रोगी को सिंथेटिक बिस्तर पर नहीं लेटना चाहिये। यह दमा रोग में ट्रिगर फ़ेक्टर का काम करता है।
१५) एक अनुभूत उपचार यह है कि दमा रोगी को हर रोज सुबह के वक्त ३-४ छुहारा अच्छी तरह बारीक चबाकर खाना चाहिये।अच्छे परिणाम आते हैं।इससे फ़ेफ़डों को शक्ति मिलती है और सर्दी जुकाम का प्रकोप कम हो जाता है।



16) सौंठ श्वास रोग में उपकारी है। इसका काढा बनाकर पीना चाहिये।
१७) गुड १० ग्राम कूट लें। इसे १० ग्राम सरसों के तेल मे मसलकर-मिलाकर सुबह के वक्त खाएं। ४५ दिन के प्रयोग से काफ़ी फ़ायदा नजर आएगा।
१८) पीपल के सूखे फ़ल श्वास चिकित्सा में गुणकारी हैं। बारीक चूर्ण बनाले। सुबह -शाम एक चम्मच लेते रहें लाभ होगा।
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कब्ज का पक्का इलाज के नुस्खे

              
                                                                                       
                                                                                          
 अनुपयुक्त खान-पान के चलते कब्ज लोगों में एक सर्वाधिक प्रचलित रोग बन चुका है। यह पाचन-तन्त्र का प्रमुख विकार है। मनुष्यों मे मल विसर्जन की फ़्रिक्वेन्सी अलग-अलग पाई जाती है। किसी को दिन में एक बार मल विसर्जन होता है तो किसी को २-३ बार होता है। कुछ लोगों को हफ़्ते में २ या ३ बार ही शौचालय जाने से काम चल जाता है।
ज्यादा कठोर और सूखा मल जिसे बाहर धकेलने के लिये जोर लगाना पडे,यही कब्ज का लक्षण है। ऐसा मल हफ़्ते में ३ बार से भी कम होता है और यह कब्ज का दूसरा मुख्य लक्षण होता है। कब्ज रोगियों में पेट के फ़ूलने की शिकायत भी आमतौर पर मिलती है। वैसे तो यह रोग किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन महिलाओं और बुजुर्गों में कब्ज की प्रधानता पाई जाती है। कुदरती पदार्थों के इस्तेमाल करने से यह रोग जड से खत्म हो जाता है और कब्ज से होने वाले रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है।


१) शरीर में तरल की कमी होना कब्ज का मूल कारण है। पानी की कमी से आंतों में मल सूख जाता है। और मल निष्कासन में जोर लगाना पडता है। इसलिये कब्ज से परेशान रोगियों के लिये सर्वोत्तम सलाह तो यह है कि मौसम के मुताबिक २४ घंटे में ३ से ५ लिटर पानी पीने की आदत डालना चाहिये। सुबह उठते ही सवा लिटर पानी पीयें। फ़िर ३-४ किलोमिटर तेज चाल से भ्रमण करें। शुरू में कुछ अनिच्छा और असुविधा मेहसूस होगी लेकिन धीरे-धीरे आदत पड जाने पर कब्ज जड से मिट जाएगी।
२) भोजन में रेशा की मात्रा ज्यादा रखने से स्थाई रूप से कब्ज मिटाने में मदद मिलती है। सब्जियां और फ़लों में प्रचुर रेशा पाया जाता है। मेरा सुझाव है कि अपने भोजन मे करीब ७०० ग्राम हरी शाक या फ़ल या दोनो चीजे शामिल करें।
३) सूखा भोजन ना लें। अपने भोजन में तेल और घी की मात्रा का उचित स्तर बनाये रखें। चिकनाई वाले पदार्थ से दस्त साफ़ आती है।
४)पका हुआ बिल्व फ़ल कब्ज के लिये श्रेष्ठ औषधि है। इसे पानी में उबालें। फ़िर मसलकर रस निकालकर नित्य ७ दिन तक पियें। कज मिटेगी।

५) रात को सोते समय एक गिलास गरम दूध पियें। मल आंतों में चिपक रहा हो तो दूध में ३ -४ चम्मच केस्टर आईल (अरंडी तेल) मिलाकर पीना चाहिये।
६) इसबगोल की की भूसी कब्ज में परम हितकारी है। दूध या पानी के साथ २-३ चम्मच इसबगोल की भूसी रात को सोते वक्त लेना फ़ायदे मंद है। दस्त खुलासा होने लगता है।यह एक कुदरती रेशा है और आंतों की सक्रियता बढाता है।
७)नींबू कब्ज में गुण्कारी है। मामुली गरम जल में एक नींबू निचोडकर दिन में २-३बार पियें। जरूर लाभ होगा।

८)एक गिलास दूध में १-२ चाम्मच घी मिलाकर रात को सोते समय पीने से भी कब्ज रोग का समाधान होता है।
९)एक कप गरम जल मे १ चम्म्च शहद मिलाकर पीने से कब्ज मिटती है। यह मिश्रण दिन मे ३ बार पीना हितकर है
१०) नान वेज फ़ुड से कब्ज और एसिडीटी(अम्लता) पैदा होती है। मांसाहार और ज्यादा मसालेदार भोजन से परहेज करना हितकारी उपाय है।
११) दो सेवफ़ल प्रतिदिन खाने से कब्ज में लाभ होता है।
१२)अमरूद और पपीता ये दोनो फ़ल कब्ज रोगी के लिये अमॄत समान है। ये फ़ल दिन मे किसी भी समय खाये जा सकते हैं। इन फ़लों में पर्याप्त रेशा होता है और आंतों को शक्ति देते हैं। मल आसानी से विसर्जित होता है।
१3) अंगूर मे कब्ज निवारण के गुण हैं । सूखे अंगूर याने किश्मिश पानी में ३ घन्टे गलाकर खाने से आंतों को ताकत मिलती है और दस्त आसानी से आती है। जब तक बाजार मे अंगूर मिलें नियमित रूप से उपयोग करते रहें।) एक और बढिया तरीका है। अलसी के बीज का मिक्सर में पावडर बनालें। एक गिलास पानी मे २० ग्राम के करीब यह पावडर डालें और ३-४ घन्टे तक गलने के बाद छानकर यह पानी पी जाएं। बेहद उपकारी ईलाज है।

शरीर को तंदुरस्त रखने के लिये अलसी का उपयोग बेहद उपकारी है।
१५) पालक का रस या पालक कच्चा खाने से कब्ज नाश होता है। एक गिलास पालक का रस रोज पीना उत्तम है। पुरानी कब्ज भी इस सरल उपचार से मिट जाती है।
१६) अंजीर कब्ज हरण फ़ल है। ३-४ अंजीर फ़ल रात भर पानी में गलावें। सुबह खाएं। आंतों को गतिमान कर कब्ज का निवारण होता है।
1७) मुनका में कब्ज नष्ट करने के गुण हैं। ७ नग मुनक्का रोजाना रात को सोते वक्त लेने से कब्ज रोग का स्थाई समाधान हो जाता है।
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11.6.20

खून की कमी के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे

                                    
 खून में हेमोग्लोबिन या रक्त कण की कमी हो जाने को एनिमिया अर्थात रक्ताल्पता का रोग कहा जाता है। हमारे शरीर की शिराओं और धमनियों में जो खून प्रवाहित होता है उसमें करीब आधा भाग रक्त कणों का होता है। ये रक्तकण आक्सीजन को शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करते हैं। इन रक्त कणों के निर्माण में आयरन (लोहतत्व), प्रोटीन, और विटामिन्स ,खास कर फ़ोलिक एसिड और विटामिन बी१२ की अहम भूमिका रहती है। इन रक्त कणों का जीवन काल लगभग चार माह का होता है । फ़िर ये नष्ट हो जाते हैं और इनकी जगह नये रक्त कण आ जाते हैं। इन्सान के शरीर के १०० ग्राम खून में करीब १५ ग्राम हेमोग्लोबिन होना आवश्यक है। प्रति मिलि लिटर खून में ५ मिलियन रक्तकण मौजूद रहना जरूरी है। यह भी बताते चलें कि हमारी मज्जा(bone marrow) में रक्तकण बनाने की फ़ेक्टरी है जो रोजाना तकरीबन १०० मिलियन नये रक्त कण बनाकर शरीर को सप्लाई करती रहती है।





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के लक्षण--
शरीर में खून की कमी हो जाने पर रोगी कमजोरी, थकावट, शक्तिहीनता और चक्कर आना जैसे लक्छण बताता है। अन्य लक्षण गिनावें तो चमडी पर समय पूर्व झुर्रियां पड जाना ,याददाश्त की कमी, मामूली काम करने या चलने पर सांस फ़ूल जाना, घाव हो जाने पर उसके ठीक होने या भरने में जरूरत से ज्यादा वक्त लगना,सिर दर्द होना और दिल की धडकन बढ जाना ये लक्षण भी रक्त की कमी के रोगी में अक्सर देखने को मिलते हैं। एनिमिया रोगी की श्लेष्मिक झिल्लियां पीली दिखाई देती हैं। 1) शरीर में लोह तत्व बढाने के लिये सबसे अच्छा तरीका यह है भोजन से इसकी पूर्ति करें। चाय,काफ़ी और अम्ल विरोधि (एन्टासिड) दवाएं उपयोग में न लाएं। ये चीजें शरीर द्वारा लोह तत्व ग्रहण करने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। लोह तत्व की वृद्धि के लिये हरे मटर,हरे चने(छोले),अंडे,मछली, कलेजी दूध का प्रचुर उपयोग करना उत्तम है। जो लोग शाकाहारी हैं वे अपने भोजन में पालक,सभी तरह की हरी सब्जियां, दालें अंजीर,अखरोट बदाम काजू, किशमिश,खजूर, आदि रक्त वर्धक पदार्थो का भरपूर उपयोग करना चाहिये।सेवफ़ल,टमाटर भोजन में शामिल करें।
2) एक सेवफ़ल के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर नित्य पीने से खून की कमी दूर होती है।
3) टमाटर और सेवफ़ल का रस प्रत्येक २०० मिलिलिटर मिश्रण करके रोज सुबह लेने से रक्ताल्पता में आशातीत लाभ होता है।
4) ताजा सलाद खाने और शहद से शरीर में हेमोग्लोबिन बढकर एनिमिया का निवारण होता है।
5) विटमिन बी१२, फ़ोलिक एसिड,और विटामिन सी ग्रहण करने से हेमोग्लोबिन की वृद्धि होती है। दूध,मांस,गुर्दे और कलेजी में प्रचुर विटामिन बी१२ पाया जाता है।

6) मैथी की सब्जी कच्ची खाने से लोह तत्व मिलता है। किशोरावस्था की लडकियों में होने वाली खून की कमी में मैथी की पत्तियां उबालकर उपयोग करने से बहुत फ़ायदा होता है। मैथी के बीज अंकुरित कर नियमित खाने से रक्ताल्पता का निवारण होता है।

7) सब्जी और फ़ल -- 

 सभी पत्तेदार सब्जीयां और खासकर पालक में प्रचुर मात्रा मे लोह तत्व पाया जाता-है। इनसे मिलने वाला आयरन श्रेष्ठ दर्जे का होता है। यह लोह तत्व शरीर में ग्रहण होने के बाद बडी तेजी से रक्त कण बनते हैं और रक्ताल्पता शीघ्र ही दूर हो जाती है।
8) खून की कमी दूर करने में सोयाबीन का महत्वपूर्ण स्थान है। इसमे आयरन होता है और श्रेष्ठ दर्जे का प्रोटीन भी होता है। लेकिन एनिमिया रोगी की पाचन शक्ति कमजोर होती है इसलिये सोयाबीन का दूध बनाकर पीना उचित रहता है।
9) ७ नग बादाम दो घन्टे पानी में गला दें। फ़िर छिलका उतारकर खरल में पेस्ट बनाकर रोज खाने से नया खून बनता है और रक्ताल्पता लाभ होता है।


10) तिल और शहद-

दो घंटे के लिए 2 चम्मच तिलों को पानी में भिगों लें और बाद में पानी से छानकर इसका पेस्ट बना लें। अब इसमें 1 चम्मच शहद मिलाएं और दिन में दो बार सेवन करें।


11) काफी और चाय खतरनाक-


काफी और चाय का सेवन कम कर दें। एैसा इसलिए क्योंकि ये चीजें शरीर को आयरन लेने से रोकते हैं।


12) ठंडा स्नान-


दो बार दिन में ठंडे पानी से नहाए और सुबह नहाने के बाद सूरज की रोशनी में बैठें।


13) अंकुरित भोजन-


आप अपने भोजन में गेहूं, मोठ, मूंग और चने को अंकुरित करके उसमें नींबू मिलाकर सुबह का नाश्ता लें।


14) आम-

पके आम के गुदे को मीठे दूध के साथ सेवन करें। एैसा करने से खून तेजी से बढ़ता है।

15) मूंगफली और गुड़-

शरीर में खून की कमी को दूर करने के लिए मूंगफली के दानों को गुड़ के साथ चबा-चबा कर सेवन करें।

16) सिंघाड़ा-

सिंघाड़ा शरीर में खून और ताकत दोनो को बढ़ाता है। कच्चे सिंघाड़े को खाने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर तेजी से बढ़ता है।

17) मुनक्का, अनाज, किशमिश, दालें और गाजर-



, अनाज, किशमिश, दालें और गाजर का नियमित सेवन करें और रात को सोने से पहले दूध में खजूर डालकर उसको पीएं।


18) फलो का सेवन-

अनार, अमरूद, पपीता, चीकू, सेब और नींबू आदि फलो का अधिक से अधिक सेवन करें।

19) आंवले और जामुन का रस-

आंवले का रस और जामुन का रस बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
20) टमाटर का रस-एक गिलास टमाटर का रस रोज पीने से भी खून की कमी दूर होती है। इसलिए टमाटर का सूप भी बनाकर आप ले सकते हो।

21) हरी सब्जिया-

बथुआ, मटर, सरसों, पालक, हरा धनिया और पुदीना को अपने भोजन में जरूर शामिल करें।


22) फालसा-


फालसे का शर्बत या फालसे का सेवन सुबह शाम करने से शरीर में खून की मात्रा जल्दी बढ़ती है।


23) लहसुन-

शरीर में खून को बढ़ाने के लिए नियमित रूप से लहसुन और नमक की चटनी का सेवन करे। यह हीमोग्लोबिन की कमी को दूर करता है।


24) सेब का जूस-


सेब का जूस रोज पीएं।


25) चुकंदर-


चुकंदर के एक गिलास रस में अपने स्वाद के अनुसार शहद मिलाकर इसे रोज पीएं। इस जूस में लौह तत्व ज्यादा होता है।
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सिफ़लिस का होम्योपथिक उपचार:homeopathic treatment of syphilis


 

इस रोग में रोगी के लिंग पर फुसी हो जाती है जो धीरे-धीरे बढ़कर घाव का रूप ले लेती है । इस घाव में से मवाद आती है, खुजली मचती है और जलन होती है । यह घाव ठीक नहीं हो पाता, जिससे लिंग नष्ट होने लगता है । इस रोग में सविराम ज्वर आना, गले में घाव, सिर में भारीपन, होठों पर फुन्सियाँ हो जाना, सिर के बाल उड़ना, हड्डियों में दर्द रहना आदि लक्षण प्रकटते हैं । रोग की अन्तिम अवस्था में पूरे शरीर पर चकते से निकल आते हैं ।


काली आयोड 200-

यह रोग की तीसरी अवस्था में लाभप्रद है ।

सिफिलिनम 200-

यह अन्य दवाओं के साथ में सहायक दवा के रूप में प्रयोग की जाती है। रोग की तीनों अवस्थाओं में इसे देना चाहिये । पहले तीन माह तक प्रति सप्ताह एक बार के हिसाब से दें और फिर प्रत्येक पन्द्रह दिनों में एक बार के हिसाब से रोग के ठीक होने तक दें ।

मर्ककॉर 3- 

कठिन उपदंश में लाभकर है जबकि मुँह व गले में घाव, मुँह से लार गिरना आदि लक्षण प्रकट हों ।

ऑरम मेट 30, 6x-

उपदंश के कारण हड्डियों की बीमारी हो जाना, नाक व तालु की हड्डी में घाव हो जाना और उनसे सड़ा हुआ मवाद आना, रोगाक्रान्त स्थान पर दर्द, दर्द का रात को बढ़ जाना- इन लक्षणों में यह दवा लाभ करती है ।

स्टैफिसेग्रिया 3x-

लिंग पर तर दाने हो गये हों, दर्द हो, सूजन भी रहे, पारे का अपव्यवहार हुआ हो- इन लक्षणों में देवें ।

साइलीशिया 30-

लिंग के जख्मों में मवाद पड़ जाये और वह ठीक न हो पा रहे हों तो यह दवा दें ।

हिपर सल्फर 30-

उपदंश में मसूढ़े के रोग, हड्डियों में दर्द, घाव से बदबूदार मवाद आना, कभी-कभी खून भी आना, खुजली मचना, रोगग्रस्त अंग को छू न पाना, सुबह-शाम तकलीफ बढ़ना आदि लक्षण होने पर देनी चाहिये । यह पारे के अपव्यवहार के कारण रोग-विकृति में भी अत्यन्त लाभकर सिद्ध हुई है ।

कूप्रम सल्फ 6x-



मार्टिन का विचार था कि- यह दवा धातुगत उपदंश में अत्यन्त उपयोगी है ।

कैलोट्रोपिस जाइगैण्टिया 30- पारे के अपव्यवहार से उत्पन्न विकृतियों में लाभप्रद है । उपदंश की रक्तहीनता में भी उपयोगी है ।

मर्कसॉल 3x, 6- 

यह इस रोग की पहली व दूसरी अवस्था में लाभकर है। जैसे ही मालूम चले कि उपदंश हुआ है, रोगी को तुरन्त इस दवा को देना आरंभ कर देना चाहिये । इस दवा से रोग बढ़ नहीं पायेगा और आराम महसूस होने लगेगा । यह इस रोग मे अत्यंत उपयोगी औषधि  होम्योपैथी से  हैं ।

मर्क प्रोटो आयोड 3x- 

यह रोग की दूसरी अवस्था में लाभप्रद है । अगर रोग भयानक मालूम पड़े तो मर्कसॉल के स्थान पर इसी दवा का सेवन कराना चाहिये ।

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10.6.20

स्वर्ण भस्म के आयुर्वेदिक गुण कर्म / Swarna Bhasma

स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को आयुर्वेद में हजारों सालों से दवाई के रूप में प्रयोग किया जा रहा है आयुर्वेद में स्वर्ण भस्म का अपना एक विशेष स्थान है. यह शरीर में ताक़त देने के साथ साथ मानसिक शक्ति में सुधार करने वाली औषधी कहलाती है. यह हृदय (Heart) और मस्तिष्क (Mind) को विशेष रूप से ताक़त प्रदान करती है. आयुर्वेद में हृदय रोगों और मस्तिष्क की निर्बलता जैसे रोगों में स्वर्ण भस्म को सर्वोत्तम माना गया है.स्वर्ण भस्म कैसे बनायी जाती है
स्वर्ण को आभूषण बनाने के साथ साथ औषधी की तरह भी प्रयोग किया जाता रहा हैं. आयुर्वेद में स्वर्ण जैसी मूल्यवान धातु की रासयनिक विधि से भस्म बनाई जाती है जो की सोने की ही तरह बहुत मूल्यवान है. सोने की भस्म को स्वर्ण भस्म कहते हैं.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को आयुर्वेद (रसतरंगिणी) में बताये विस्तृत विवरण अनुसार ही बनाया जाता है. स्वर्ण भस्म को बनाने के लिए शुद्ध सोने को शोधन और मारण प्रक्रिया से गुजारा जाता है तब कही जा कर स्वर्ण भस्म बनती है
स्वर्ण के शोधन के लिए : तिल तेल, तक्र, कांजी, गो मूत्र और कुल्थी के काढ़े का प्रयोग किया जाता है.
स्वर्ण के मारण के लिए : पारद, गंधक अथवा मल्ल, कचनार और तुलसी को मर्दन के लिए प्रयोग किया जाता है.
स्वर्ण भस्म में सोने की कितनी मात्रा होती है
सोने को जब विभिन्न रासायनिक प्रक्रिया से गुजारा जाता है तो स्वर्ण की भस्म बनती है इसमें सोना बहुत ही सूक्ष्म रूप में (नैनो मीटर 10-9) विभक्त होता है. इसके अतिरिक्त इसके शोधन और मारण में बहुत सी वनस्पतियाँ का भी प्रयोग किया जाता हैं. जिस कारणों से स्वर्ण भस्म शरीर की कोशिकायों में सरलता से प्रवेश कर जाती हैं और बहुत से रोगों में लाभ भी देती है क्योंकि वनस्पतियाँ के गुण धर्म मिलने का बाद यह शरीर का हिस्सा बन जाती हैं.
चरक, शुश्रुत, कश्यप सभी ने स्वर्ण भस्म के लिए अत्यंत हितकर बताया है. छोटे बच्चों को स्वर्ण प्राशन , Swarna Bindu Prashana कराने की भी परम्परा रही है जो की आज भी जारी है. महाराष्ट्र, गोवा, कर्णाटक में नवजात शिशु से लेकर 16 वर्ष की आयु के बच्चों को स्वर्ण का प्राशन कराया जाता है.
स्वर्ण भस्म शरीर में क्या काम करता है
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को बल (शारीरिक, मानसिक, यौन) बढ़ाने के लिए एक टॉनिक की तरह दिया जाता रहा है. यह रसायन, बल्य, ओजवर्धक, और जीर्ण व्याधि को दूर करने में उपयोगी है. स्वर्ण भस्म का सेवन पुराने रोगों को दूर करता है. यह जीर्ण ज्वर(Fever) , खांसी (Cough), दमा (Asthma) , मूत्र विकार (Urinary disorders), अनिद्रा (insomnia), कमजोर पाचन (poor digestion) , मांसपेशियों की कमजोरी (muscle weakness), तपेदिक (tuberculosis), प्रमेह (gonorrhea), रक्ताल्पता (anemia), सूजन (inflammation), अपस्मार(epilepsy),त्वचा रोग(skin disease), सामान्य दुर्बलता(general debility), जैसे अनेक रोगों में उपयोगी है.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma एक स्वस्थ विकल्प है जोकि आप को यों शक्ति प्रदान करता है इसका आयुर्वेदिक चिकित्सा में सेक्स समस्यों के इलाज के लियें सर्वोपरी स्थान है तथा यह बेहद कमजोर व्यक्ति को भी मज़बूत सेक्स शक्ति Sexual power प्रदान करता है. यह विशेष रूप से सेक्स कमजोरी और लिंग में बिलकुल भी उतेजना न आने कि समस्या में बहुत अधिक लाभदायक होता है स्वर्ण भस्म भी कार्डियक टॉनिक है जो रक्त शुद्धता और दिल को मजबूत करता है. यह बुद्धि में सुधार, यौन शक्ति Sexual power बढ़ाने के लिए, और पेट, त्वचा और गुर्दे की गतिविधि को उत्तेजित करता है.

Sexual power


यह एक टॉनिक है जिसका सेवन यौन शक्ति (Sexual power) को बढ़ाता है. स्वर्ण भस्म शरीर से खून की कमी (Anemic) को दूर करता है, पित्त की अधिकता (Excess bile) को कम करता है, हृदय और मस्तिष्क को बल देता है और पुराने रोगों को नष्ट करता है.
स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma का वृद्धावस्था में प्रयोग शरीर के सभी अंगों को ताकत देता है.
स्वर्ण भस्म आयुष्य है और बुढ़ापे को दूर करती है. यह भय(Fear) , शोक(Grief), चिंता(anxiety), मानसिक क्षोभ (mental anguish) के कारण हुई वातिक दुर्बलता (pneumatic weakness) को दूर करती है. बुढ़ापे के प्रभाव को दूर करने के लिए स्वर्ण भस्म को मकरध्वज के साथ दिया जाता है.
हृदय की दुर्बलता (Weakness of the heart) में स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma का सेवन आंवले के रस अथवा आंवले और अर्जुन की छाल के काढ़े अथवा मक्खन दूध के साथ किया जाता है.
स्वर्ण भस्म से बनी दवाएं पुराने अतिसार(Chronic diarrhea), ग्रहणी (duodenum) , खून की कमी (Blood loss) में बहुत लाभदायक है. शरीर में बहुत तेज बुखार और संक्रामक ज्वरों के बाद होने वाली विकृति को इसके सेवन से नष्ट किया जा सकता है. यदि शरीर में किसी भी प्रकार का विष चला गया हो तो स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma को को मधु अथवा आंवले के साथ दिया जाना चाहिए.
प्रमुख उपयोग: यौन दुर्बलता, धातुक्षीणता, नपुंसकता, प्रमेह, स्नायु दुर्बलता, यक्ष्मा/तपेदिक, जीर्ण ज्वर, जीर्ण कास-श्वास, मस्तिष्क दुर्बलता, उन्माद, त्रिदोषज रोग, पित्त रोग

स्वर्ण भस्म Swarna Bhasma के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

स्वर्ण भस्म, स्वाद में यह मधुर, तिक्त, कषाय , गुण में लघु और स्निग्ध है. बहुत से लोग समझते हैं की स्वर्ण भस्म स्वभाव से गर्म है. लेकिन यह सत्य नहीं है. स्वभाव से स्वर्ण भस्म शीतल है और मधुर विपाक है. विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस. इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है. शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है.
मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है. यह कफ या चिकनाई का पोषक है. शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है. इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं.
रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
वीर्य (Potency): शीत
विपाक (transformed state aft मधुर
कर्म:
वाजीकारक aphrodisiac
वीर्यवर्धक improves semen
हृदय cardiac stimulant
रसायन immunomodulator
कान्तिकारक complexion improving
आयुषकर longevity
मेद्य intellect promoting
विष नाशना antidote

स्वर्ण भस्म के फायदेस्वर्ण की भस्म, स्निग्ध, मेद्य, विषविकारहर और उत्तम वृष्य है. यह तपेदिक, उन्माद शिजोफ्रेनिया, मस्तिष्क की कमजोरी, व शारीरिक बल की कमी में विशेष लाभप्रद है. आयुर्वेद में इसे शरीर के सभी रोगों को नष्ट करने वाली औषधि बताया गया है.
स्वर्ण भस्म बुद्धि, मेधा, स्मरण शक्ति को पुष्ट करती है. यह शीतल, सुखदायक, तथा त्रिदोष के कारण उत्पन्न रोगों को नष्ट करती है. यह रुचिकारक, अग्निदीपक, वात पीड़ा शामक और विषहर है.
यह खून की कमी को दूर करती है और शरीर में खून की कमी से होने वाले प्रभावों को नष्ट करती है.
यह शरीर में हार्मोनल संतुलन करती है .
यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की कोशिकाओं के दोषों को दूर करती है.
यह शरीर की सहज शरीर प्रतिक्रियाओं में सुधार लाती है.
यह शरीर से दूषित पदार्थों को दूर करती है.
यह प्रक्रियाओं को उत्तेजित करती है.
यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को ठीक करती है.
यह एनीमिया और जीर्ण ज्वर के इलाज में उत्कृष्ट है.
यह त्वचा की रंगत में सुधार लाती है.
पुराने रोगों में इसका सेवन विशेष लाभप्रद है.
यह क्षय रोग के इलाज के लिए उत्कृष्ट है.
यह यौन शक्ति को बढ़ाती है.
यह एंटीएजिंग है और बुढ़ापा दूर रखती है.
यह झुर्रियों, त्वचा के ढीलेपन, सुस्ती, दुर्बलता, थकान , आदि में फायेमंद है.
यह जोश, ऊर्जा और शक्ति को बनाए रखने में अत्यधिक प्रभावी है.
स्वर्ण भस्म के चिकित्सीय उपयोग
अवसाद
अस्थमा, श्वास, कास
अस्थिक्षय, अस्थि शोथ, अस्थि विकृति
असाध्य रोग
अरुचि
कृमि रोग
बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने के लिए
विष का प्रभाव
तंत्रिका तंत्र के रोग
मनोवैज्ञानिक विकार, उन्माद, शिजोफ्रेनिया
मिर्गी
शरीर में कमजोरी कम करने के लिए
रुमेटी गठिया
यौन दुर्बलता, वीर्य की कमी, इरेक्टाइल डिसफंक्शन
यक्ष्मा / तपेदिक
स्वर्ण भस्म के सेवन विधि और मात्रा
स्वर्ण भस्म को बहुत ही कम मात्रा में चिकित्सक की देख-रेख में लिया जाना चाहिए. सेवन की मात्रा 15-30 मिली ग्राम, दिन में दो बार है. इसे दूध, शहद, घी, आंवले के चूर्ण, वच के चूर्ण या रोग के अनुसार बताये अनुपान के साथ लेना चाहिए.
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9.6.20

कुलथी के पथरी नाशक उपयोग//kulthi se pathri kaa ilaaj




 पथरी की समस्या अब हर घर की समस्या बनती जा रही है। ये रोग कष्टदायी रोग है। जिसमें रोगी को भंयकर दर्द से गुजरना पड़ता है। पहले यह समस्या 30 से 60 वर्ष की आयु के लोगों में पाई जाती थी लेकिन अब कम उम्र के लोगों को भी पथरी की समस्या होने लगी है। जिसके कई कारण हैं। महिलाओं की उपेक्षा पुरूषों में पथरी की समस्या अधिक होती है। वैसे तो इस रोग में कई आयुवेर्दिक उपाय हैं लेकिन सबसे ज्यादा कारगर उपाय है कुलथी की दाल जिसे गैथ भी कहा जाता है। उत्तराखंड में इस दाल का काफी प्रचलन है। यह दाल पथरी को खत्म करने का एक कारगर औषधि है।कई लोगो को अक्सर ही (पत्थरी) स्टोन की समस्या आम ही रहती हैं। बार बार ऑपरेशन करवाने के बाद भी उनको ये समस्या दोबारा हो जाती हैं। ऐसा इसलिए होता हैं क्युकी उनका शरीर भोजन द्वारा ग्रहण किये हुए कैल्शियम को पचा नहीं पाता। और किडनी भी शरीर की गंदगी की सफाई करते समय इसको साफ़ करने में असक्षम हो जाती हैं और यही से ये हमारे मूत्राशय को भी प्रभावित करती हैं।

कुलथी दाल क्या है?
यह दाल पथरीनाशक है। कथुली की दाल में विटामिन ए पाया जाता है जो शरीर में पथरी को गलाने में सहायक है। गुर्दे की पथरी और पित्ताशय की पथरी को खत्म करने में फायदेमंद होती है।
कुथली की दाल आपको किसी भी दुकान में मिल जाती है। यदि नहीं मिलती है तो यह दाल आप किसी उत्तराखंड निवासी से मंगवा सकते हैं। पहाड़ों में यह दाल काफी मात्रा में पाई जाती है।

कैसे करें कुथली का इस्तेमाल

कुथली की दाल को 250 ग्राम मात्रा में लें और इसे अच्छे से साफ कर लें। और रात को 3 लीटर पानी में भिगों कर रख दें। सुबह होते ही इस भीगी हुई दाल को पानी सहित हल्की आग में 4 घंटे तक पकाएं। और जब पानी 1 लीटर रह जाए तब उसमें 30 ग्राम देशी घी का छोंक लगा दें। और उसमें काली मिर्च, सेंधा नमक, जीरा और हल्दी डाल सकते हो।

कब करें कुलथी का सेवन

कुथली के पानी को दिन में दोपहर के खाने की जगह ले सकते हो। इसे सूप की तरह पीएं। 1 से 2 सप्ताह तक नियमित एैसा करने से मूत्राशय और गुर्दे की पथरी गल कर बाहर आ जाती है।
गुर्दे में यदि सूजन हो तो कुथली के इस पानी को अधिक से अधिक पीएं।
सूप के साथ रोटी का सेवन भी कर सकते हो।
कुथली की दाल का सेवन करने से कमर का दर्द ठीक हो जाता है।

पथरी में और क्या खांए

पथरी में कुल्थी के अलावा आप खरबूजे के बीज, मूली, आंवला, जौ, मूंग की दाल और चोलाई की सब्जी भी खा सकते हो। साथ ही रोज 5 से 8 गिलास सादा पानी रोज पीएं।
किस चीज से परहेज करें
पथरी के रोगी को उड़द की दाल, मेवे, चाकलेट, मांसाहार, चाय, बैगन, टमाटर और चावल नहीं खाने चाहिए।

कुथली का पानी बनाने का तरीका

250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुथली की दाल को डालें। और रात में ढक कर रख लें। सुबह इस पानी को अच्छे से मिलाकर खाली पेट पी लें।
जिस इंसान को पथरी एक बार हो जाती है, उसे दोबारा होने का खतरा होता है । इसलिए पथरी निकालने के बाद भी रोगी को कुथली का कभी-कभी सेवन करते रहना चाहिए । कुलथी पथरी में औषधि के समान है।
गुर्दे से जुड़ी कई समस्याएं हैं, मसलन गुर्दे में दर्द, मूत्र में जलन या मूत्र का अधिक या कम आना आदि।
इन्हीं समस्याओं में से एक समस्या, जिसके पीडि़तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, वह है किडनी में पथरी।
आयुर्वेद व घरेलू चिकित्सा में किडनी की पथरी में कुलथी को फायदेमंद माना गया है। गुणों की दृष्टि से कुल्थी पथरी एवं शर्करानाशक है। वात एवं कफ का शमन करती है और शरीर में उसका संचय रोकती है। कुल्थी में पथरी का भेदन तथा मूत्रल दोनों गुण होने से यह पथरी बनने की प्रवृत्ति और पुनरावृत्ति रोकती है। इसके अतिरिक्त यह यकृत व पलीहा के दोष में लाभदायक है। मोटापा भी दूर होता है।
250 ग्राम कुल्थी कंकड़-पत्थर निकाल कर साफ कर लें। रात में तीन लिटर पानी में भिगो दें। सवेरे भीगी हुई कुल्थी उसी पानी सहित धीमी आग पर चार घंटे पकाएं। जब एक लिटर पानी रह जाए (जो काले चनों के सूप की तरह होता है) तब नीचे उतार लें। फिर तीस ग्राम से पचास ग्राम (पाचन शक्ति के अनुसार) देशी घी का उसमें छोंक लगाएं। छोंक में थोड़ा-सा सेंधा नमक, काली मिर्च, जीरा, हल्दी डाल सकते हैं। पथरीनाशक औषधि तैयार है।
आप दिन में कम-से-कम एक बार दोपहर के भोजन के स्थान पर यह सारा सूप पी जाएं। 250 ग्राम पानी अवश्य पिएं।
एक-दो सप्ताह में गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी गल कर बिना ऑपरेशन के बाहर आ जाती है, लगातार सेवन करते रहना राहत देता है।
यदि भोजन के बिना कोई व्यक्ति रह न सके तो सूप के साथ एकाध रोटी लेने में कोई हानि नहीं है।
गुर्दे में सूजन की स्थिति में जितना पानी पी सकें, पीने से दस दिन में गुर्दे का प्रदाह ठीक होता है।
यह कमर-दर्द की भी रामबाण दवा है। कुल्थी की दाल साधारण दालों की तरह पका कर रोटी के साथ प्रतिदिन खाने से भी पथरी पेशाब के रास्ते टुकड़े-टुकड़े होकर निकल जाती है। यह दाल मज्जा (हड्डियों के अंदर की चिकनाई) बढ़ाने वाली है।
पथरी में ये खाएं
कुल्थी के अलावा खीरा, तरबूज के बीज, खरबूजे के बीज, चौलाई का साग, मूली, आंवला, अनन्नास, बथुआ, जौ, मूंग की दाल, गोखरु आदि खाएं। कुल्थी के सेवन के साथ दिन में 6 से 8 गिलास सादा पानी पीना, खासकर गुर्दे की बीमारियों में बहुत हितकारी सिद्ध होता है।

ये न खाएं

पालक, टमाटर, बैंगन, चावल, उड़द, लेसदार पदार्थ, सूखे मेवे, चॉकलेट, चाय, मद्यपान, मांसाहार आदि। मूत्र को रोकना नहीं चाहिए। लगातार एक घंटे से अधिक एक आसन पर न बैठें।

कुल्थी का पानी भी लाभदायक

कुल्थी का पानी विधिवत लेने से गुर्दे और मूत्रशय की पथरी निकल जाती है और नयी पथरी बनना भी रुक जाता है। किसी साफ सूखे, मुलायम कपड़े से कुल्थी के दानों को साफ कर लें। किसी पॉलीथिन की थैली में डाल कर किसी टिन में या कांच के मर्तबान में सुरक्षित रख लें।

कुल्थी का पानी बनाने की विधि:

किसी कांच के गिलास में 250 ग्राम पानी में 20 ग्राम कुल्थी डाल कर ढक कर रात भर भीगने दें। प्रात: इस पानी को अच्छी तरह मिला कर खाली पेट पी लें। फिर उतना ही नया पानी उसी कुल्थी के गिलास में और डाल दें, जिसे दोपहर में पी लें। दोपहर में कुल्थी का पानी पीने के बाद पुन: उतना ही नया पानी शाम को पीने के लिए डाल दें।
इस प्रकार रात में भिगोई गई कुल्थी का पानी अगले दिन तीन बार सुबह, दोपहर, शाम पीने के बाद उन कुल्थी के दानों को फेंक दें और अगले दिन यही प्रक्रिया अपनाएं। महीने भर इस तरह पानी पीने से गुर्दे और मूत्राशय की पथरी धीरे-धीरे गल कर निकल जाती है।
कुलथी को कई रोगों के इलाज में प्रयोग में लाया जाता है और कुछ का विवरण नीचे दिया गया है –
श्वेत प्रदर– थोड़ी सी कुल्थी लेकर उसका दस गुना पानी लेकर उसमें कुल्थी उबाले। उसे छानकर आवश्यकतानुसार यह पानी पीना लाभकारी है।

मोटापा-

100 ग्राम कुल्थी की दाल प्रतिदिन खाने से मोटापा घटता है।

वात ज्वर-

 लगभग 50-60 ग्राम कुल्थी लगभग 1 किलो जल में चैथाई (250 ग्राम) पानी रहने तक उबालें। फिर उसे छान लें और आवश्यकतानुसार सेंधा नमक व लगभग 1/2 चम्मच पिसी सौंठ लें। इसे पीने से वात ज्वर में लाभ होगा।

 विशिष्ट  परामर्श- 
      
वैध्य श्री दामोदर 9826795656  की जड़ी बूटी - निर्मित औषधि से 30 एम एम तक के आकार की बड़ी  पथरी  भी  आसानी से नष्ट हो जाती है|  पथरी के भयंकर दर्द और गुर्दे की सूजन,पेशाब मे दिक्कत,जलन को तुरंत समाप्त करने मे यह  औषधि  रामबाण की तरह असरदार है|जो पथरी का दर्द महंगे इंजेक्शन से भी काबू मे नहीं आता ,इस औषधि की कुछ ही खुराक लेने से आराम लग जाता है|  आपरेशन की जरूरत ही नहीं पड़ती|औषधि मनी बेक गारंटी युक्त है|





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