22.5.20

त्रिफला आयुर्वेद की महा औषधि


  त्रिफला आयुर्वेद में कई रोगों का सटीक इलाज करता है। यह 3 औषधियों से बनता है। बेहड, आंवला और हरड इन तीनों के मिश्रण से बना चूर्ण त्रिफला कहा जाता है। ये प्रकृति का इंसान के लिए रोगनाशक और आरोग्य देने वाली महत्वपूर्ण दवाई है। जिसके बारे में हर इंसान को पता होना चाहिए। ये एक तरह की एन्टिबायोटिक है। त्रिफला आपको किसी भी आयुर्वेदिक दुकान पर मिल सकता है। लेकिन आपको त्रिफला का सेवन कैसे करना है और कितनी मात्रा में करना है ये भी आपको पता होना चाहिए। हाल में हुए एक नए शोध में इस बात का खुलासा हुआ है की त्रिफला के सेवन से कैंसर के सेल नहीं बढ़ते । त्रिफला के नियमित सेवन से चर्म रोग, मूत्र रोग और सिर से संबन्धित बीमारियां जड़ से ख़त्म करती है।
 *संयमित आहार-विहार के साथ त्रिफला का सेवन करने वाले व्यक्तियों को ह्रदयरोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, नेत्ररोग, पेट के विकार, मोटापा आदि होने की संभावना नहीं होती। यह कोई 20 प्रकार के प्रमेह, विविध कुष्ठरोग, विषमज्वर व सूजन को नष्ट करता है। अस्थि, केश, दाँत व पाचन- संसथान को बलवान बनाता है। इसका नियमित सेवन शरीर को निरामय, सक्षम व फुर्तीला बनाता है।  
 गर्म पानी से सोते समय एक चम्मच लेने से क़ब्ज़ नही रहता!त्रिफला के फायदे-
*.रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होती है।
*.त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होती है।
*इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी लें। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
*शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।
*एक चम्मच बारीक़ त्रिफला चूर्ण, गाय का घी 10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते हैं। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
*त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते हैं।
त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।
*चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
*एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजे पानी में दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
*त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।
*त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
*त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
*मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले। त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।
*त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
*त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।
*5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
*5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
*टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।
*त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।
*त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
*डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।

त्रिफला के नुकसान-
यदि आप त्रिफला का प्रयोग बिना डाक्टर के परामर्श के करते हैं तो इससे डायरिया हो सकता है। क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी करता है। और इंसान को डायरिया हो जाता है।
 
ब्लड प्रेशर-
त्रिफला का अधिक सेवन से ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव होने लगता है। और ब्लड प्रेशर के मरीजों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कई बार कुछ लोग पेट साफ करने के लिए त्रिफला का सेवन करने लगते हैं लेकिन ऐसे में वे नियमित रूप से त्रिफला का सेवन करने लगते हैं जिस वजह से उन्हें अनिद्रा  और बेचैनी की समस्या हो सकती है।
*इसमें कोइे दो राय नहीं है कि त्रिफला सेहत के लिए बेहद असरकारी और फायदेमंद दवा है। 
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मस्से (warts) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे

मस्से वैसे तो कोई तकलीफ़ नहीं देते लेकिन खासकर चेहरे के मस्से रंग रूप को विकृत कर देते है। ये त्वचा पर उगते उभरते हैं और अवांछित
प्रतीत होते हैं। मस्से गर्दन,हाथ,पीठ ,चिन,पैर आदि किसी भी जगह हो सकते हैं।
मस्से पिगमेंट कोषिकाओं के समूह होते हैं। ये काले भूरे रंग के होते हैं। कुछ मस्से आनुवांशिक होते हैं लेकिन अधिक धूप में रहने से भी मस्से पनप सकते हैं। अधिकतर मस्से केंसर रहित होते हैं।
मस्से का उपचार ऐसे करें-
१) मस्से पर आलू काटकर उसकी फ़ांक रगडनी चाहिये। कुछ रोज में मस्से झडने लगेगे।
२) जलती हुई अगरबत्ती का गुल मस्से को छुआएं और तुरंत हटालें। लगातार कुछ दिन ऐसा उपचार करने से मस्से सूखकर झड जाते हैं।
३) केले के छिलके का भीतरी हिस्सा मस्से पर रगडें। हितकारी उपचार है।
 ४) प्याज का रस नियमित रूप से मस्से पर लगाते रहने से मस्से दूर होते हैं।
५) एक लहसुन की कली चाकू से काटकर उसे मस्से पर रगडें। धीरे-धीरे मस्से सूखकर झडने लगते हैं।
६) खट्टे सेवफ़ल का रस मस्से पर दिन में तीन बार लगाने और ऊंगली से मालिश करने से मस्से समाप्त होते हैं। 
७) मीठा सोडा अरंडी के तेल में मिलाकर पेस्ट जैसा बनाकर रोज रात को सोते वक्त मस्सों पर ऊंगली से लगाने और उस पर पट्टी बांधने और सुबह में पट्टी खोलने के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। 




९) रात को सोते वक्त और सुबह के समय मस्सों पर शहद लगाने के लाभकारी परिणाम मिले हैं।
१०) विटामिन सी,विटामिन ए और विटामिन ई का नियमित सेवन करने से मस्सों से निजात मिल जाती है और स्वास्थ्य भी उन्नत हो जाता है।
११) पोटेशियम युक्त सेव,केला,अंगूर,आलू,,पालक ,टमाटर का प्रचुर मात्रा में उपयोग करने से मस्से नष्ट होते हैं

१२) थूहर का दूध या कार्बोलिक एसीड मस्सों पर लगाना कारगर चिक्त्सा मानी गई है।
१३) नागरवेल के पान के डंठल का रस मस्से पर लगाना परम हितक्री उपचार है।
14) ग्वार पाठा (एलोवेरा) से मस्से की चिकित्सा की जा सकती है। एलोवेरा के रस में रूई का फ़ाया (काटन बाल) एक मिनट के लिये भिगोएं फ़िर इसे मस्से पर रखें और चिपकने वाली पटी (एढीसिव टेप। से स्थिर कर दें। यह प्रक्रिया दिन में कई बार करना उचित है। ३-४ हफ़्ते में मस्से साफ़ हो जाएँगे|
15) मस्से वाले भाग को पाईनेपल जूस में रखें। इसमें मस्से नष्ट करने वाले एन्जाईम होते है।
16) ताजा अंजीर लें। इसे कुचलकर -मसलकर इसकी कुछ मात्रा मस्से पर लगावें और ३० मिनिट तक लगा रहने दें फ़िर गरम पानी से धोलें। ३-४ हफ़्ते में मस्से समाप्त होंगे।
17) बरगद के पेड़ के पत्तों का दूध मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही असरदार होता है। इस प्रयोग से त्वचा सौम्य हो जाती है और मस्से अपने आप गिर जाते हैं। 

18) केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक पट्टी से बांध लें। और ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें जब तक कि मस्से ख़तम नहीं हो जाते।
19) अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगायें। इससे मस्से नरम पड़ जायेंगे, और धीरे धीरे गायब हो जायेंगे। अरंडी के तेल के बदले कपूर के तेल का भी प्रयोग कर सकते हैं।
20) एक बूँद ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगा दें, और इसे भी पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में लगभग 3 या 4 बार करें। ऐसा करने से मस्से गायब हो जायेंगे।कसीसादी तेल मस्सों पर रखकर पट्टी से बांध लें।
21) होम्योपैथी में मस्से नष्ट करने की कई कारगर औषधियां हैं जो लक्षणों की समानता के आधार पर व्यवहार में लाई जाती हैं। नीचे कुछ होम्योपैथिक दवाएं लिख रहा हूं जो मस्से के ईलाज में प्रयुक्त होती हैं :-
थूजा 1m ,कास्टिकम 1m, कल्केरिया कार्ब 1m, डल्कामारा 1m, फ़ेरम पिक्रिकम 30, एसिड नाईट्रिक1m, नेट्रम कार्ब6, नेट्रम म्युरियेटिकम6, एन्टिमोनियम6, सीपिया 200
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21.5.20

दाद से छुटकारा पाने के घरेलू नुस्खे



    दाद का इन्फेक्शन बहुत ख़राब फंगल इन्फेक्शन होता है ।अगर आपको ये इन्फेक्शन है तो आप अपने शरीर के किसी भी हिस्से पर लाल गोल निशान देख सकते हैं। ये बहुत तेज़ी से फेलता है जिस जगह पर हुआ है उसके आस पास की जगह पर भी फैलने लगता है। इसका इन्फेक्शन ज्यादा बढ़ने पर आप शरीर पर उभार और फुंसियाँ भी देख सकते हैं।
अगर आपको शरीर पर लाल धब्बे दीखते हैं और खुजली होती है तो सावधान हो जाइए ये दाद है अगर ये आपके नाख़ून पर हुआ तो आपका नाख़ून जड़ से निकल सकता है बालों की जड़ो मे हुआ तो आपके बाल उस जगह से झड़ सकते हैं। ये आपको बालों की जड़ो ,पैर ,अंदरुनी भागो में हो सकता है।
*हमेशा अपने शरीर को साफ़ रखें ।शरीर को गिला न रखें हमेशा सुखा रखने की कोशिश करें। एंटी फंगल या मेडिकैटेट साबुन का प्रयोग करें शैम्पू का रोज़ाना इस्तेमाल करें। जहाँ तक हो सके कॉटन के कपडे पहने । ज्यादा चुस्त कपडे ना पहनें। दूसरों के कपडे ,तोलिया ,बेड शीट ,ब्रश का उपयोग ना करें। अगर किसी को ये इन्फेक्शन है तो उनसे दुरी रखें हाथ ना मिलाएं क्योंकि ये इन्फेक्शन फेलता है। अगर आपके घर मे कोई जानवर है और उसे ये इन्फेक्शन है तो उस पर पट्टी कभी ना बांधें और तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएँ । आईये आपको इससे छुटकारा पाने के कुछ उपाय बताते हैं ।
शरीर की त्वचा पर कहीं भी चकत्ते हो तो उस पर नींबू के टुकड़े काटकर फिटकरी भरकर रगड़ने से चकत्ते हल्के पड़ जाते हैं और त्वचा निखर उठती है।
*छोटे छोटे राई के दाने दाद को ठीक करने में सहायक है। राई को 30 मिनट तक पानी में भिगो कर रख दें। फिर उसका पेस्ट बनाकर दाद की जगह पर लगा लें।
*एलोवेरा का अर्क हर तरह के फंगल इन्फेक्शन को ठीक कर देता हैं । इसे तोड़कर सीधे दाद पर लगा लीजिये ठंडक मिलेगी। हो सके तो रात भर लगा कर रखें ।
*नींबू के टुकड़े को काटकर दाद पर मलने से दाद की खुजली कम हो जाती है और थोड़े ही दिनों में दाद बिल्कुल मिट जाता है। इसको शुरूआत में दाद पर लगाने से कुछ जलन सी महसूस होती है।
*टमाटर खट्टा होता है। इसकी खटाई खून को साफ करती है। नींबू में इसी तरह के गुण होते हैं। रक्तशोधन (खून साफ करना) के लिए टमाटर को अकेले ही खाना चाहिए। रक्तदोष (खून की खराबी) से त्वचा पर जब लाल चकत्ते उठे हों, मुंह की हडि्डयां सूज गई हो, दांतों से खून निकल रहा हो, दाद या बेरी-बेरी रोग हो तो टमाटर का रस दिन में 3-4 बार पीने से लाभ होता है। कुछ सप्ताह तक रोजाना टमाटर का रस पीने से चर्मरोग ,त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
*नारियल का तेल दाद को ठीक करने में बहुत उपयोगी है। ख़ास कर जब आपके सर की जड़ो में इन्फेक्शन हुआ हो तो ये एक बहुत बेहतरीन तरीका है।
*लहसुन में प्राकृतिक रूप से एंटी फंगल तत्व होते हैं। जो की कई तरीके के फंगल इन्फेक्शन को ठीक करने में सहायक है। जिसमे से दाद भी एक है। लहसुन को छिल कर उसके छोटे छोटे टुकड़े कर दाद पर रख दीजिये जल्दी आराम मिलेगा।
*अंजीर का दूध लगाने से दाद मिट जाते हैं।
*पके केले के गूदे में नींबू का रस मिलाकर लगाने से दाद, खाज, खुजली और छाजन आदि रोगों में लाभ होता है।
*दाद, खाज और खुजली में मूंगफली का  तेल लगाने से आराम आता है।
*चकबड़ और हरड़ को कांजी के साथ पीसकर लेप करने से दाद कुछ ही समय में ठीक हो जाता है।
*सुपारी को पानी के साथ घिसकर लेप करने से उकवत, और चकत्ते आदि रोग दूर हो जाते हैं।
*एक  कप गाजर का रस रोजाना पीने से त्वचा के रोग ठीक हो जाते हैं।
*त्वचा के किसी भी तरह के रोगों में मूली के पत्तों का रस लगाने से लाभ होता है।

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20.5.20

सोयाबीन के स्वास्थ्य लाभ:Soyabeen ke fayde


सोयाबीन में कुछ ऐसे तत्त्व पायें जाते है। जो कैंसर से बचाव का कार्य करते है। क्योकि इसमें कायटोकेमिकल्स पायें जाते है, खासकर फायटोएस्ट्रोजन और 950 प्रकार के हार्मोन्स। यह सब बहुत लाभदायक है। इन तत्त्वों के कारण स्तन कैंसर एवं एंडोमिट्रियोसिस जैसी बीमारियों से बचाव होता है। यह देखा गया है कि इन तत्त्वों के कारण कैंसर के टयूमर बढ़ते नही है और उनका आकार भी घट जाता है। सोयाबीन के उपयोग से कैंसर में 30 से 45 प्रतिशत की कमी देखी गई है।
*अध्ययनों से पता चला है कि सोयायुक्त भोजन लेने से ब्रेस्ट (स्तन) कैंसर का खतरा कम हो जाता है। महिलाओं की सेहत के लियें सोयाबीन बेहद लाभदायक आहार है। ओमेगा 3 नामक वसा युक्त अम्ल महिलाओं में जन्म से पहले से ही उनमें स्तन कैंसर से बचाव करना आरम्भ कर देता है। जो महिलायें गर्भावस्था तथा स्तनपान के समय ओमेगा 3 अम्ल की प्रचुरता युक्त भोजन करती है, उनकी संतानों कें स्तन कैंसर की आशंका कम होती है। ओमेगा-3 अखरोट, सोयाबीन व मछलियों में पाया जाता है। इससे दिल के रोग होने की आंशका में काफी कमी आती है। इसलिये महिलाओं को गर्भावस्था व स्तनपान कराते समय अखरोट और सोयाबीन का सेवन करते रहना चाहियें।
*उच्च रक्त चाप : रोज कम नमक में भुने आधा कप सोयाबीन का 8 हफ्तों तक सेवन करने से ब्लड़प्रेशर काबू मे रहता है। इसका स्वाद बढ़ाने के लियें इसमें कालीमिर्च भी डालकर सकते हैं। सिर्फ आधा कप रोस्टेड सोयाबीन खाने से महिलाओं का बढ़ा हुआ ब्लडप्रेशर कम होने लगता है। लगातार 8 हफ्ते तक सोयाबीन खाने से महिलाओं का 10 प्रतिशत सिस्टोलिक प्रेशर, 7 प्रतिशत डायस्टोलिक और सामान्य महिलाओं का 3 प्रतिशत ब्लडप्रेशर कम हो जाता है। तो आप भी एक मुट्ठी सोयाबीन को 8 से 12 घण्टे पानी में भिगोकर रख दें और सुबह ही गर्म कर के खायें।

*मानसिक रोगों में :

सोयाबीन में फॉस्फोरस इतनी होती है कि यह मस्तिष्क (दिमाग) तथा ज्ञान-तन्तुओं की बीमारी, जैसे-मिर्गी, हिस्टीरिया, याददाश्त की कमजोरी, सूखा रोग (रिकेट्स) और फेफड़ो से सम्बन्धी बीमारियों में उत्तम पथ्य का काम करता है। सोयाबीन के आटे में लेसीथिन नमक एक पदार्थ तपेदिक और ज्ञान-तन्तुओं की बीमारी में बहुत लाभ पहुंचता है। भारत में जो लोग गरीब है। या जो लोग मछली आदि नही खा सकते है, उनके लियें यह मुख्य फास्फोरस प्रदाता खाद्य पदार्थ है। इसको खाना गरीबों के लियें सन्तुलित भोजन होता है।

*मूत्ररोग : 

सोयाबीन का रोजाना सेवन करने से मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी का मूत्ररोग (बार-बार पेशाब के आने का रोग) ठीक हो जाता है।

*मधुमेह (डायबिटीज) : 

सोयाबीन मोटे भारी-भरकम शरीर वालों के तथा मधुमेह (डायबिटीज) वाले लोगों के लियें उत्तम पथ्य है। सोया आटे की रोटी उत्तम आहार है।

दूध को बढ़ाने के लियें :

 दूध पिलाने वाली स्त्री यदि सोया दूध (सोयाबीन का दूध) पीये तो बच्चे को पिलाने के लिये उसके स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ जाती है।

*रजोनिवृत्ति : 

महिलाओं में जब रजोनिवृत्ति (मासिकधर्म) होती है, उस समय स्त्रियों को बहुत ही कष्ट होते हैं। रजोनिवृत्त महिलाएं हडि्डयों में तेजी से होने वाले क्षरण से मुख्य रूप से ग्रसित होती है, जिसके कारण उन्हें आंस्टियो आर्थराइटिस बीमारी आ जाती है। घुटनों में दर्द रहने लगता है। यह इसलियें होता है, क्योंकि मासिक धर्म बंद होने से एस्ट्रोजन की कमी हो जाती है क्योकि सोयाबीन में फायटोएस्ट्रोजन होता है। जो उस द्रव की तरह काम करता है, इसलियें 3-4 महीने तक सोयाबीन का उपयोग करने से स्त्रियों की लगभग सभी कठिनाइयां समाप्त हो जाती है।
*महिलाओ को सोयाबीन न केवल अच्छे प्रकार का प्रोटीन देती है बल्कि मासिकधर्म के पहले होने वाले कष्टों-शरीर में सूजन, भारीपन, दर्द, कमर का दर्द, थकान आदि में भी बहुत लाभ करती है हड्डी के कमजोर होने पर : सोयाबीन हडि्डयों से सम्बन्धित रोग जैसे हडि्डयों में कमजोरी को दूर करता है। सोयाबीन को अपनाकर हम स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं। अस्थिक्षारता एक ऐसा रोग है जिसमें हडि्डयां कमजोर हो जाती हैं और उसमें फैक्चर हो जाता है। हडि्डयो में कैल्श्यिम की मात्रा कम हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि *हडि्डयां टूटती ज्यादा है और बनती कम है। 

दिल के रोग में 

सोयाबीन में 20 से 22 प्रतिशत वसा पाई जाती है। सोयाबीन की वसा में लगभग 85 प्रतिशत असन्तृप्त वसीय अम्ल होते हैं, जो दिल के रोगियों के लियें फायदेमंद है। इसमें ‘लेसीथिन’ नामक प्रदार्थ होता है। जो दिल की नलियों के लियें आवश्यक है। यह कोलेस्ट्रांल को दिल की नलियों में जमने से रोकता है।
सोयाबीन खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए यह दिल के रोगियों के लिये फायदेमंद है। ज्यादातर दिल के रोगों में खून में कुछ प्रकार की वसा बढ़ जाती है, जैसे-ट्रायग्लिसरॉइड्स, कोलेस्ट्रॉल और एलडीएल, जबकि फायदेमंद वसा यानी एचडीएल कम हो जाती है। सोयाबीन में वसा की बनावट ऐसी है कि उसमें 15 प्रतिशत सन्तृप्त वसा, 25 प्रतिशत मोनो सन्तृप्त वसा और 60 प्रतिशत पॉली असन्तृप्त वसा है। खासकर 2 वसा अम्ल, जो सोयाबीन में पायें जाते हैं। यह दिल के लियें काफी उपयोगी होते हैं। सोयाबीन का प्रोटीन कोलेस्ट्रल एवं एलडीएल कम रखने में सहायक है। साथ ही साथ शरीर में लाभप्रद कोलेस्ट्रॉल एचडीएल भी बढ़ाता है।
*सोया प्रोटीन और आइसोफ्लेवोंस से भरपूर आहार का सेवन रजोनिवृत्त महिलाओं में हड्डियों को कमजोर होने और हड्डियों के क्षरण से संबंधित बिमारी ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है. एक अध्ययन में यह दावा किया गया है. इंग्लैंड के हुल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक, सोयाबीन खाद्य उत्पादों में आइसोफ्लेवोंस नामक रसायन होता है जो कि संरचना में इस्ट्रोजन हार्मोन जैसा होता है और महिलाओं को ओस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचा सकता है.
*अध्ययन के दौरान प्रारंभिक रजोनिवृत्ति की अवस्था वाली 200 महिलाओं को छह महीनों तक आइसोफ्लेवोंस सहित सोया प्रोटीन युक्त अनुपूरक आहार या केवल सोया प्रोटीन दिया गया.
उसके बाद शोधकर्ताओं ने महिलाओं के रक्त में कुछ प्रोटीनों की जांच करके हड्डियों में हुए परिवर्तन का अध्ययन किया.
*शोधकर्ताओं ने पाया कि केवल सोया प्रोटीन लेने वाली महिलाओं की तुलना में आइसोफ्लेवोंस युक्त सोया आहार लेने वाली महिलाओं में हड्डियों के क्षरण की रफ्तार धीमी पड़ गई थी और उनमें ओस्टियोपोरोसिस का खतरा कम हो गया था.
*केवल सोया लेने वाली महिलाओं की तुलना में आइसोफ्लेवोंस के साथ सोया लेने वाली महिलाओं में हृदय रोग का खतरा भी कम पाया गया.
*अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता थोझुकट सत्यापालन के मुताबिक, “हमें ज्ञात हुआ कि रजोनिवृत्ति की प्रारंभिक अवस्था के दौरान महिलाओं की हड्डियों का स्वास्थ्य सुधारने के लिए सोया प्रोटीन और आइसोफ्लेवोंस सुरक्षित और प्रभावी विकल्प है.
*महिलाओं में रजोनिवृत्ति के तत्काल बाद के वर्षो में हड्डियों का क्षरण सबसे तेजी से होता है क्योंकि इस अवधि में हड्डियों को सुरक्षित रखने वाले इस्ट्रोजन हार्मोन का उनके शरीर में बनना कम हो जाता है.
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चना खाने के स्वास्थ्य लाभ:chana khane ke fayde



आयुर्वेद में चने की दाल और चने को शरीर के लिए स्वास्थवर्धक बताया गया है। चने के सेवने से कई रोग ठीक हो जाते हैं। क्योंकि इसमें प्रोटीन, नमी, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, कैल्शियम और विटामिन्स पाये जाते हैं। चना दूसरी दालों के मुकाबले सस्ता होता है और सेहत के लिए भी यह दूसरी दालों से पौष्टिक आहार है। चना शरीर को बीमारियों से लड़ने में सक्षम बनाता है। साथ ही यह दिमाग को तेज और चेहरे को सुंदर बनाता है। चने के सबसे अधिक फायदे इन्हे अंकुरित करके खाने से होते है।

*चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नमी, चिकनाई, रेशे, कैल्शियम, आयरन व विटामिन्स पाए जाते हैं। चने के सेवन से सुंदरता बढ़ती है साथ ही दिमाग भी तेज हो जाता है।
* 25 ग्राम काले चने रात में भिगोकर सुबह खाली पेट सेवन करने से डायबिटीज दूर हो जाती है।
* गर्म चने रूमाल या किसी साफ कपड़े में बांधकर सूंघने से जुकाम ठीक हो जाता है। रातभर भिगे हुए चनों से पानी को अलग कर उसमें अदरक, जीरा और नमक को मिक्स कर खाने से कब्ज और पेट दर्द से राहत मिलती है। मोटापा घटाने के लिए रोजाना नाश्ते में चना लें। शरीर को सबसे ज्यादा पोषण काले चनों से मिलता है। काले चने अंकुरित होने चाहिए। क्योंकि इन अंकुरित चनों में सारे विटामिन्स और क्लोरोफिल के साथ फास्फोरस आदि मिनरल्स होते हैं जिन्हें खाने से शरीर को कोई बीमारी नहीं लगती है। काले चनों को रातभर भिगोकर रख लें और हर दिन सुबह दो मुट्ठी खाएं। कुछ ही दिनों में फर्क  दिखने लगेगा।
*अंकुरित चना 3 साल तक खाते रहने से कुष्ट रोग में लाभ होता है।चने का सत्तू भी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद औषघि है। शरीर की क्षमता और ताकत को बढ़ाने के लिए गर्मीयों में आप चने के सत्तू में नींबू और नमक मिलकार पी सकते हैं। यह भूख को भी शांत रखता है।
* गर्भवती को उल्टी हो तो भुने हुए चने का सत्तू पिलाएं।
*चना पाचन शक्ति को संतुलित और दिमागी शक्ति को भी बढ़ाता है। चने से खून साफ होता है जिससे त्वचा निखरती है। >*पथरी की समस्या अब आम हो गई है। दूषित पानी और दूषित खाना खाने से पथरी की समस्या बढ़ रही है। गाल ब्लैडर और किड़नी में पथरी की समस्या सबसे अधिक हो रही है। एैसे में रातभर भिगोए चनों में थोड़ा शहद मिलाकर रोज सेवन करें। नियमित इन चनों का सेवन करने से पथरी आसानी से निकल जाती है। इसके अलावा आप आटे और चने का सत्तू को मिलाकर बनी रोटियां भी खा सकते हो।

* सर्दियों में चने के आटे का हलवा अस्थमा में फायदेमंद होता है।
* चने के आटे की नमक रहित रोटी 40 से 60 दिनों तक खाने से त्वचा संबंधित बीमारियां जैसे-दाद, खाज, खुजली आदि नहीं होती हैं।अधिक काम और तनाव की वजह से पुरूषों में कमजोरी होने लगती है। एैसे में अंकुरित चना किसी वरदान से कम नहीं है। पुरूषों को अंकुरित चनों को चबा-चबाकर खाने से कई फायदे मिलते हैं। इससे पुरूषों की कमजोरी दूर होती है। भीगे हुए चनों के पानी के साथ शहद मिलाकर पीने से पौरूषत्व बढ़ता है। और नपुंसकता दूर होती है।
*लंबे समय से चली आ रही कफ की परेशानी में भुने हुए चनों को रात में सोते समय अच्छे से चबाकर खाएं और इसके बाद दूध पी लें। यह कफ और सांस की नली से संबंधित रोगों को ठीक कर देता है।

* शहद मिलाकर पीने से नपुंसकता समाप्त हो जाती है।पीलिया की बीमारी में चने की 100 ग्राम दाल में दो गिलास पानी डालकर अच्छे से चनों को कुछ घंटों के लिए भिगो लें और दाल से पानी को अलग कर लें अब उस दाल में 100 ग्राम गुड़ मिलाकर 4 से 5 दिन तक रोगी को देते रहें। पीलिया मे  लाभ जरूरी मिलेगा।

*चने के पौधे के सूखे पत्तों का धुम्रपान करने से हिचकी तथा आमाशय की बीमारियों में लाभ होता है।
*. चीनी के बर्तन में रात को चने भिगोकर रख दे। सुबह उठकर खूब चबा-चबाकर खाएं इसके लगातार सेवन करने से वीर्य में बढ़ोतरी होती है व पुरुषों की कमजोरी से जुड़ी समस्याएं खत्म हो जाती हैं। भीगे हुए चने खाकर दूध पीते रहने से वीर्य का पतलापन दूर हो जाता है।
* दस ग्राम चने की भीगी दाल और 10 ग्राम शक्कर दोनों मिलाकर 40 दिनों तक खाने से धातु पुष्ट हो जाती है।
*बार-बार पेशाब जाने की बीमारी में भुने हूए चनों का सेवन करना चाहिए। गुड़ व चना खाने से भी मूत्र से संबंधित समस्या में राहत मिलती है। रोजाना भुने चनों के सेवन से बवासीर ठीक हो जाता है।
*चने को आप खाने में जरूर इस्तेमाल करें। यह किसी दवा से कम नहीं है। चने खाने से एक नहीं कई फायदे मिलते हैं तो क्यों नहीं अंकुरित चनों का इस्तेमाल रोज किया जा सकता है।
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18.5.20

अजवायन के रोग नाशक प्रयोग


भारतीय खानपान में अजवाइन का प्रयोग सदियों से होता आया है। आयुर्वेद के अनुसार अजवाइन पाचन को दुरुस्त रखती है। यह कफ, पेट तथा छाती का दर्द और कृमि रोग में फायदेमंद होती है। साथ ही हिचकी, जी मचलाना, डकार, बदहजमी, मूत्र का रुकना और पथरी आदि बीमारी में भी लाभप्रद होती है। 
सामान्य परिचय -
अजवाईंन की खेती सारे भारतवर्ष में होती है लेकिन पश्चिम बंगाल, दक्षिणी प्रदेश और पंजाब में अधिकता से पैदा होता है। इसके पौधे एक दो फुट ऊंचे और पत्ते छोटे आकार में कुछ कंटीले होते हैं। डालियों पर सफेद फूल गुच्छे के रूप में लगते हैं, जो पककर एवं सूख जाने पर अजवाइन के दानों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये दाने ही हमारे घरों में मसाले के रूप में और औषधियों में उपयोग किए जाते हैं।
जरूरी सावधानियाँ -
1. अजवाइन पित्त प्रकृति वालों में सिर दर्द पैदा करती है और दूध कम करती है। 
2. अजवाइन ताजी ही लेनी चाहिए क्योंकि पुरानी हो जाने पर इसका तैलीय अंश नष्ट हो जाता है जिससे यह वीर्यहीन हो जाती है। काढ़े के स्थान पर रस या फांट का प्रयोग बेहतर है। 
3. अजवाइन का अधिक सेवन सिर में दर्द उत्पन्न करता है। 
मात्रा (खुराक) : अजवाइन 2 से 5 ग्राम, तेल 1 से 3 बूंद तक ले सकते हैं। 
गुण -
अजवाइन की प्रशंसा में आयुर्वेद में कहा गया है-“एका यमानी शतमन्न पाचिका” अर्थात इसमें सौ प्रकार के अन्न पचाने की ताकत होती है। 
आयुर्वेदिक मतानुसार-
अजवाइन पाचक, तीखी, रुचिकारक (इच्छा को बढ़ाने वाली), गर्म, कड़वी, शुक्राणुओं के दोषों को दूर करने वाली, वीर्यजनक (धातु को बढ़ाने वाला), हृदय के लिए हितकारी, कफ को हरने वाली, गर्भाशय को उत्तेजना देने वाली, बुखारनाशक, सूजननाशक, मूत्रकारक (पेशाब को लाने वाला), कृमिनाशक (कीड़ों को नष्ट करने वाला), वमन (उल्टी), शूल, पेट के रोग, जोड़ों के दर्द में, वादी बवासीर (अर्श), प्लीहा (तिल्ली) के रोगों का नाश करने वाली गर्म प्रकृति की औषधि है। 

यूनानी मतानुसार -
अजवाइन आमाशय, यकृत, वृक्क को ऊष्णता और शक्ति देने वाली, आर्द्रतानाशक, वातनाशक, कामोद्वीपक (संभोग शक्ति को बढ़ाने वाली), कब्ज दूर करने वाली, पसीना, मूत्र, दुग्धवर्द्धक, मासिक धर्म लाने वाली, तीसरे दर्जे की गर्म और रूक्ष होती है। 
विभिन्न रोगों में अजवाइन से उपचार:- 
1 पेट में कृमि (पेट के कीड़े) होने पर - 
1) अजवायन के लगभग आधा ग्राम चूर्ण में इसी के बराबर मात्रा में कालानमक मिलाकर सोते समय गर्म पानी से बच्चों को देना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीड़े मर जाते हैं। कृमिरोग में पत्तों का 5 मिलीलीटर अजवाइन का रस भी लाभकारी है। 
2) अजवाइन को पीसकर प्राप्त हुए चूर्ण की 1 से 2 ग्राम को खुराक के रूप में छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 
3) अजवाइन के बारीक चूर्ण 4 ग्राम को 1 गिलास छाछ के साथ पीने या अजवाइन के तेल की लगभग 7 बूंदों को प्रयोग करने से लाभ होता है। 
4) अजवाइन को पीसकर प्राप्त रस की 4 से 5 बूंदों को पानी में डालकर सेवन करने आराम मिलता है। 
5) आधे से एक ग्राम अजवाइन का बारीक चूर्ण करके गुड़ के साथ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बना लें। इसे दिन में 3 बार खिलाने से छोटे बच्चों (3 से लेकर 5 साल तक) के पेट में मौजूद कीड़े समाप्त हो जाते हैं। 
6) अजवाइन का आधा ग्राम बारीक चूर्ण और चुटकी भर कालानमक मिलाकर सोने से पहले 2 गाम की मात्रा में पिलाने से पेट में मौजूद कीड़े समाप्त हो जाते हैं।  
7) अजवाइन का चूर्ण आधा ग्राम, 60 ग्राम छाछ के साथ और बड़ों को 2 ग्राम चूर्ण और 125 मिलीलीटर छाछ में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। अजवाइन का तेल 3 से 7 बूंद तक देने से हैजा तथा पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। 
8) 25 ग्राम पिसी हुई अजवाइन आधा किलो पानी में डालकर रात को रख दें। सुबह इसे उबालें। जब चौथाई पानी रह जाये तब उतार कर छान लें। ठंडा होने पर पिलायें। यह बड़ों के लिए एक खुराक है। बच्चों को इसकी दो खुराक बना दें। इस तरह सुबह, शाम दो बार पीते रहने से पेट के छोटे-छोटे कृमि मर जाते हैं। 
9) अजवाइन के 2 ग्राम चूर्ण को बराबर मात्रा में नमक के साथ सुबह-सुबह सेवन करने से अजीर्ण (पुरानी कब्ज), जोड़ों के दर्द तथा पेट के कीड़ों के कारण उत्पन्न विभिन्न रोग, आध्मान (पेट का फूलना और पेट में दर्द आदि रोग ठीक हो जाते हैं। 
10) पेट में जो हुकवर्म नामक कीडे़ होते हैं, उनका नाश करने के लिए अजवाइन का बारीक चूर्ण लगभग आधा ग्राम तक खाली पेट 1-1 घंटे के अंतर से 3 बार देने से और मामूली जुलाब (अरंडी तैल नही दें) देने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं। यह प्रयोग, पीलिया के रोगी और निर्बल पर नहीं करना चाहिए।


2. गठिया का दर्द -


1) जोड़ों के दर्द में पीड़ित स्थानों पर अजवाइन के तेल की मालिश करने से राहत मिलेगी।
2) गठिया के रोगी को अजवाइन के चूर्ण की पोटली बनाकर सेंकने से रोगी को दर्द में आराम पहुंचता है।
3) जंगली अजावयन को अरंड के तेल के साथ पीसकर लगाने से गठिया का दर्द  ठीक होता है।
4) अजवाइन का रस आधा कप में पानी मिलाकर आधा चम्मच पिसी सोंठ लेकर
ऊपर से इसे पीलें। इससे गठिया का रोग ठीक हो जाता है।
5) 2-3 ग्राम दालचीनी पिसी हुई में 3 बूंद अजवाइन का तेल डालकर सुबह-शाम
सेवन करें। इससे गठिया- दर्द् ठीक होता है।
3. मिट्टी या कोयला खाने की आदत -
एक चम्मच अजवाइन का चूर्ण रात में सोते समय नियमित रूप से 3 हफ्ते तक खिलाएं। इससे बच्चों की मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है।
4. पेट में दर्द -
एक ग्राम काला नमक और 2 ग्राम अजवाइन गर्म पानी के साथ सेवन कराएं।
5. स्त्री रोगों में -
प्रसूता (जो स्त्री बच्चे को जन्म दे चुकी हो) को 1 चम्मच अजवाइन और 2 चम्मच गुड़ मिलाकर दिन में 3 बार खिलाने से कमर का दर्द दूर हो जाता है और गर्भाशय की शुद्धि होती है। साथ ही साथ भूख लगती है व शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है तथा मासिक धर्म की अनेक परेशानियां इसी प्रयोग से दूर हो जाती हैं। नोट : प्रसूति (डिलीवरी) के पश्चात योनिमार्ग में अजवाइन की पोटली रखने से गर्भाशय में जीवाणुओं का प्रवेश नहीं हो पाता और जो जीवाणु प्रवेश कर जाते हैं वे नष्ट हो जाते है। जीवाणुओं को नष्ट करने के लिए योनि-मार्ग से अजवाइन का धुंआ भी दिया जाता है तथा अजवाइन का तेल सूजन पर लगाया जाता है।
6. खांसी -
1) एक चम्मच अजवाइन को अच्छी तरह चबाकर गर्म पानी का सेवन करने से लाभ होता है।
2) रात में चलने वाली खांसी को दूर करने के लिए पान के पत्ते में आधा चम्मच अजवाइन लपेटकर चबाने और चूस-चूसकर खाने से लाभ होगा। 1 ग्राम साफ की हुई अजवाइन को लेकर रोजाना रात को सोते समय पान के बीडे़ में रखकर खाने से खांसी में लाभ मिलता है।
3) जंगली अजवाइन का रस, सिरका तथा शहद को एक साथ मिलाकर रोगी को रोजाना दिन में 3 बार देने से पुरानी खांसी, श्वास, दमा एवं कुक्कुर खांसी (हूपिंग कफ) के रोग में लाभ होता है।
4) अजवाइन के रस में एक चुटकी कालानमक मिलाकर सेवन करें। और ऊपर से गर्म पानी पी लें। इससे खांसी बंद हो जाती है।
5) अजवाइन के चूर्ण की 2 से 3 ग्राम मात्रा को गर्म पानी या गर्म दूध के साथ दिन में 2 या 3 बार लेने से भी जुकाम सिर दर्द, नजला, मस्तकशूल (माथे में दर्द होना) और कृमि (कीड़ों) पर लाभ होता है।
6) कफ अधिक गिरता हो, बार-बार खांसी चलती हो, ऐसी दशा में अजवाइन का बारीक पिसा हुआ चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग, घी 2 ग्राम और शहद 5 ग्राम में मिलाकर दिन में 3 बार खाने से कफोत्पित्त कम होकर खांसी में लाभ होता है।
7) खांसी तथा कफ ज्वर यानि बुखार में अजवाइन 2 ग्राम और छोटी पिप्पली आधा ग्राम का काढ़ा बनाकर 5 से 10 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन करने से लाभ होता है।
8) 1 ग्राम अजवाइन रात में सोते समय मुलेठी 2 ग्राम, चित्रकमूल 1 ग्राम से बने काढ़े को गर्म पानी के साथ सेवन करें।
9) 5 ग्राम अजवाइन को 250 मिलीलीटर पानी में पकायें, आधा शेष रहने पर, छानकर नमक मिलाकर रात को सोते समय पी लें।
10) खांसी पुरानी हो गई हो, पीला दुर्गन्धमय कफ गिरता हो और पाचन क्रिया मन्द पड़ गई हो तो अजवाइन का जूस दिन में 3 बार पिलाने से लाभ होता है।
7. बिस्तर में पेशाब करना -
 
सोने से पूर्व 1 ग्राम अजवाइन का चूर्ण कुछ दिनों तक नियमित रूप से खिलाएं।
8. बार पेशाब आना-
1) 2 ग्राम अजवाइन को 2 ग्राम गुड़ के साथ कूट-पीसकर, 4 गोली बना लें, 3-3 घंटे के अंतर से 1-1 गोली पानी से लें। इससे बहुमूत्र रोग दूर होता है।
2) अजवाइन और तिल मिलाकर खाने से बहुमूत्र रोग ठीक हो जाता है।
3) गुड़ और पिसी हुई कच्ची अजवाइन समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच रोजाना 4 बार खायें। इससे गुर्दे का दर्द भी ठीक हो जाता है।
4) जिन बच्चे को रात में पेशाब करने की आदत होती है उन्हें रात में लगभग आधा ग्राम अजवाइन खिलायें।
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