13.8.17

भगंदर (फिश्चूला)की आयुर्वेदिक चिकित्सा



भगन्दर: भगन्दर गुदा क्षेत्र में होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें गुदा द्वार के आस पास एक फुंसी या फोड़ा जैसा बन जाता है जो एक पाइपनुमा रास्ता बनता हुआ गुदामार्ग या मलाशय में खुलता है.
शल्य चिकित्सा के प्राचीन भारत के आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर रोग की गणना आठ ऐसे रोगों में की है जिन्हें कठिनाई से ठीक किया जा सकता है. इन आठ रोगों को उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में 'अष्ठ महागद' कहा है.
भगन्दर कैसे बनता है?
गुदा नलिका जो कि एक वयस्क  मानव में लगभग ४ से.मी. लम्बी होती है, के अन्दर कुछ ग्रंथियां होती हैं व इन्ही के पास कुछ सूक्ष्म गड्ढे जैसे होते है जिन्हें एनल क्रिप्ट कहते हैं; ऐसा माना जाता है कि इन क्रिप्ट में स्थानीय संक्रमण के कारण स्थानिक शोथ हो जाता है जो धीरे धीरे बढ़कर एक फुंसी या फोड़े के रूप में गुदा द्वार के आस पास किसी भी जगह दिखाई देता है. यह अपने आप फूट जाता है. गुदा के पास की त्वचा के जिस बिंदु पर यह फूटता है, उसे भगन्दर की बाहरी ओपनिंग कहते हैं.
भगन्दर के बारे में विशेष बात यह है कि अधिकाँश लोग इसे एक साधारण फोड़ा या बालतोड़ समझकर टालते रहते हैं, परन्तु वास्तविकता यह है कि जहाँ साधारण फुंसी या बालतोड़ पसीने की ग्रंथियों के इन्फेक्शन के कारण होता है, जो कि त्वचा में स्थित होती हैं; वहीँ भगन्दर की शुरुआत गुदा के अन्दर से होती है तथा इसका इन्फेक्शन एक पाइपनुमा रास्ता बनाता हुआ बाहर की ओर खुलता है.


भगन्दर के लक्षण:

गुदा के आस पास एक फुंसी या फोड़े का निकलना जिससे रुक-रुक कर मवाद (पस) निकलता है.
प्रभावित क्षेत्र में दर्द का होना
प्रभावित क्षेत्र में व आस पास खुजली होना
पीड़ित रोगी के मवाद के कारण कपडे अक्सर गंदे हो जाते हैं.
आचार्य सुश्रुत ने भगन्दर और नाड़ीव्रण (sinus) में छेदन कर्म और क्षार सूत्र का प्रयोग बताया है.
आयुर्वेद क्षार सूत्र चिकित्सा :-
आयुर्वेद में एक विशेष शल्य प्रक्रिया जिसे क्षार सूत्र चिकित्सा कहते हैं, के द्वारा भगन्दर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है. इस विधि में एक औषधियुक्त सूत्र (धागे) को भगन्दर के ट्रैक में चिकित्सक द्वारा एक विशेष तकनीक से स्थापित कर दिया जाता है. क्षार सूत्र पर लगी औषधियां भगन्दर के ट्रैक को साफ़ करती हैं व एक नियंत्रित गति से इसे धीरे धीरे काटती हैं. इस विधि में चिकित्सक को प्रति सप्ताह पुराने सूत्र के स्थान पर नया सूत्र बदलना पड़ता है.
इस विधि में रोगी को अपने दैनिक कार्यों में कोई परेशानी नहीं होती है, उसका इलाज़ चलता रहता है और वह अपने सामान्य काम पहले की भांति कर सकता है. इलाज़ के दौरान एक भी दिन अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत नहीं होती है. क्षार सूत्र चिकित्सा सभी प्रकार के भगन्दर में पूर्ण रूप से सफल एवं सुरक्षित है. 
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7.8.17

हर प्रकार की गांठ का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार //Ayurvedic home remedies for every type of lump


गांठे (Lump)

अक्सर हमारे शरीर के किसी भी भाग में गांठे बन जाती हैं. जिन्हें सामान्य भाषा में गठान या रसौली कहा जाता हैं. किसी भी गांठ की शुरुआत एक बेहद ही छोटे से दाने से होती हैं. लेकिन जैसे ही ये बड़ी होती जाती हैं. इन गाठों की वजह से ही गंभीर बीमारियां भी हो जाती हैं. ये गांठे टी.वी से लेकर कैंसर की बीमारी की शुरुआत के चिन्ह होती हैं. अगर किसी व्यक्ति के शरीर के किसी भाग में कोई गाँठ हो गई हैं. जिसक कारण उस गाँठ से आंतरिक या बाह्य रक्तस्राव हो रहा हो. तो हो सकता हैं कि यह कैंसर की बीमारी के शुरुआती लक्षण हो. लेकिन इससे यह भी सुनिश्चित नहीं हो जाता कि ये कैंसर के रोग को उत्पन्न करने वाली गांठ हैं. कुछ गाँठ साधारण बिमारी उत्पन्न होने के कारण भी हो जाती हैं. किन्तु हमें किसी भी प्रकार की गांठों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए तथा उसका तुरंत ही उपचार करवाना चाहिए


गुर्दे की पथरी (Kidney Stone) के रामबाण उपचा

कुछ स्त्रियाँ या पुरुष नासूर या ऑपरेशन कराने के डर से जल्द गाँठ का इलाज नहीं करवाते. लेकिन ऐसे व्यक्तियों के लिए यह समझना बहुत ही आवश्यक हैं कि इन छोटी सी गांठों को यदि आप लगातार नजरअंदाज करेंगें. तो इन गांठों की ही वजह से ही आपको बाद में अधिक परेशानी का सामना करना पड सकता हैं. आज हम आपको शरीर के किसी भी भाग में होने वाली गांठ को ठीक करने के लिए कुछ आयुर्वेदिक उपचारों के बारे में बतायेंगें. जिनका वर्णन नीचे किया गया हैं.
उपचार-


१.  आकडे का दूध -


 गाँठ को ठीक करने के लिए आप आकडे के दूध में मिटटीमिला लें. अब इस दूध का लेप जिस स्थान पर गाँठ हुई हैं. वहाँ पर लगायें आपको आराम मिलेगा.

२.  गेहूं का आटा –


 गेहूं का आटा लें और उसमें पानी डाल लें. अब इस आटे मेंपापड़खार मिला लें और इसका सेवन करें. आपको लाभ होगा.
३. . निर्गुण्डी (Nirgundi) – 




किसी भी प्रकार की गाँठ से मुक्त होने के लिए 20 से 25 मिली काढ़ा लें और उसमें 1 से 5 मिली लीटर तक अरंडी का तेल मिला लें. इन दोनों को अच्छी तरह से मिलाने के बाद इस मिश्रण का सेवन करें. तो आपकी गांठ ठीक हो जायेगी.
आपके शरीर मे कहीं पर भी किसी भी किस्म की गांठ हो। उसके लिए है ये चिकित्सा चाहे किसी भी कारण से हो सफल जरूर होती है। कैंसर मे भी लाभदायक है।
आप ये दो चीज पंसारी या आयुर्वेद दवा की दुकान से ले ले:-




कचनार की छाल
गोरखमुंडी-
                                                             
                                                                  गोरखमुंडी
वैसे यह दोनों जड़ी बूटी बेचने वाले से मिल जाती हैं पर यदि कचनार की छाल ताजी ले तो अधिक लाभदायक है।

कचनार का पेड़ हर जगह आसानी से मिल जाता है। इसकी सबसे बड़ी पहचान है - सिरे पर से काटा हुआ पत्ता । इसकी शाखा की छाल ले। तने की न ले। उस शाखा (टहनी) की छाल ले जो 1 इंच से 2 इंच तक मोटी हो । बहुत पतली या मोटी टहनी की छाल न ले|गोरखमुंडी का पौधा आसानी से नहीं मिलता इसलिए इसे जड़ी बूटी बेचने वाले से खरीदे ।



कैसे प्रयोग करे :-


कचनार की ताजी छाल 25-30 ग्राम (सुखी छाल 15 ग्राम ) को मोटा मोटा कूट ले। 1 गिलास पानी मे उबाले। जब 2 मिनट उबल जाए तब इसमे 1 चम्मच गोरखमुंडी (मोटी कुटी या पीसी हुई ) डाले। इसे 1 मिनट तक उबलने दे। छान ले। हल्का गरम रह जाए तब पी ले।

ध्यान दे यह कड़वा है परंतु चमत्कारी है। गांठ कैसी ही हो, प्रोस्टेट बढ़ी हुई हो, जांघ के पास की गांठ हो, काँख की गांठ हो गले के बाहर की गांठ हो , गर्भाशय की गांठ हो, स्त्री पुरुष के स्तनो मे गांठ हो या टॉन्सिल हो, गले मे थायराइड ग्लैण्ड बढ़ गई हो (Goiter) या LIPOMA (फैट की गांठ ) हो लाभ जरूर करती है। कभी भी असफल नहीं होती। अधिक लाभ के लिए दिन मे 2 बार ले। लंबे समय तक लेने से ही लाभ होगा। 20-25 दिन तक कोई लाभ नहीं होगा निराश होकर बीच मे न छोड़े।
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3.8.17

खून में कोलेस्ट्रोल कम करने के असरदार उपाय , Effective remedies for reducing cholesterol in the blood



कोलेस्ट्रोल क्या है :
हृदय में रोग होने का मुख्य कारण खून में अधिक कोलेस्ट्रोल होना होता है। कोलेस्ट्रोल खून में छोटे-छोटे अणुओं का वह रूप है जो एक प्रकार की चिकनाई की तरह होता है। वैसे कोलेस्ट्रोल शरीर की सभी क्रियाओं को करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह शरीर में कोशिकाओं का निर्माण करता है और विभिन्न हार्मोन्स के संयोजन के लिए आवश्यक होता है तथा नाड़ियों का आवरण तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं का निर्माण करता है। कोलेस्ट्रोल पाचनक्रिया को कराने के लिए बाइल जूस का निर्माण करता है। इसी के द्वारा यह शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचता है तथा लाल रक्तकण की रक्षा करता है। ज्यादातर कोलेस्ट्रोल तो जिगर में ही बनता है। जिन व्यक्तियों के भोजन में कोलेस्ट्रोल अधिक होता है उनके खून में कोलेस्ट्रोल का स्तर अधिक हो जाता है जिसके कारण हृदय में कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
जब कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक हो जाती है तो यह प्रोटीन के साथ मिलकर लिपो-प्रोटीन का निर्माण करता है और यह 2 प्रकार का होता है।
1. लो डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन
2. हाई डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन



लो डेन्सिटी लिपो-प्रोटीन-

यह ट्राइग्लिसराईड और प्रोटीन के मिश्रण से बनता है और यह बहुत ही बुरा होता है क्योंकि यह परिहृदय धमनियों (कोरोनरी आर्टेरीज) में मेदार्बुद के बनने में सहायक होता है। इसके कारण रक्त के संचारण में अवरोध उत्पन्न होता है तथा हृदयघात होने की स्थिति पैदा हो जाती है।
हाई डेन्सिटी लीपो प्रोटीन-
यह एक प्रकार का अच्छा कोलेस्ट्रोल होता है क्योंकि यह मेदार्बुद को बनने से रोकता है। पूर्ण कोलेस्ट्रोल सामान्य स्तर पर होते हुए भी यदि एच डी एल की मात्रा सामान्य से कम हो या एल डी एल का अनुपात अधिक हो तो भी धमनियों में अवरोधक के बनने की संभावना रहती है।
कोलेस्ट्रोल के लक्षण 
इस रोग से पीड़ित रोगी के छाती में दर्द होता है, मोटापा बढ़ जाता है, मधुमेह का रोग भी हो जाता है, रोगी के रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है व यदि इस रोग से धमनियां प्रभावित हो गई हो तो नपुंसकता रोग हो जाता है। रोगी के मांसपेशियों में दर्द होता है। वैसे रक्त में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ जाने के कारण से कोई विशेष प्रकार के लक्षण नहीं दिखाई पड़ते। इस रोग के कारण से कुछ गम्भीर अवस्थाए भी पैदा हो सकती हैं जैसे- हृत्शूल, उच्चरक्तचाप, हृदय रोग या आघात होना आदि।
अधिक कोलेस्ट्रोल होने का कारण :
★ अधिक तले-भुने तथा बासी भोजन का सेवन करने से, मांस अंडा तथा दूध से बने पदार्थों का अधिक उपयोग करने के कारण कोलेस्ट्रोल ज्यादा हो सकता है।
★ अधिक कोलेस्ट्रोल मानसिक तनाव के कारण से भी हो सकता है क्योंकि तनाव के कारण एड्रीनल ग्रंथि का अधिक स्राव होता है जो फेट मोटाबोलिस्म को प्रभावित करता है। 
★ अधिक शराब पीने या अधिक धूम्रपान करने के कारण भी कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ सकती है।
कोलेस्ट्रोल का आयुर्वेदिक इलाज :
1.  रात को सोते समय काले चनों को पानी में भिगों दें। सुबह के समय में उठकर उसके पानी को पी लें तथा चनों को खा जाएं जिसके फलस्वरूप खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
2.  जिस व्यक्ति के खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक हो उसके पेट पर मिट्टी की पट्टी का लेप करने से बहुत अधिक लाभ मिलता है तथा इसके साथ ही व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए। वैसे भाप स्नान करना भी लाभदायक होता है लेकिन उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) वालों के लिए यह ठीक नहीं होता है।
3. व्यक्ति को नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए तथा कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य बनाने के लिए योगासन भी करना चाहिए। इस प्रकार से प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने से कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
4.  जिन व्यक्तियों के खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा ज्यादा हो उन्हें प्रतिदिन पानी अधिक पीना चाहिए।
5.  खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य करने के लिए हरे नारियल का पानी पीना काफी उत्तम होता है। इसलिए रोगी व्यक्ति को हरे नारियल का पानी प्रतिदिन पीना चाहिए।
6. धनिये को पानी में उबालकर, उस पानी को छानकर पीने से भी ज्यादा कोलेस्ट्रोल पेशाब द्वारा बाहर निकल जाता है।
7.  रेशेदार खाद्य पदार्थों जैसे- चोकर समेत आटे की रोटी, छिलके समेत दालें, टमाटर, गाजर, अमरूद, हरी पत्तेदार सब्जियां, पत्तागोभी आदि का अधिक सेवन करने से विटामिन `बी´ प्रधान भोजन एल डी एल कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप कोलेस्ट्रोल की मात्रा खून में सामान्य हो जाती है।
8.  प्रतिदिन कम से कम 50 ग्राम जई का चोकर सेवन करने से भी कोलेस्ट्रोल की मात्रा सामान्य हो जाती है।
9. अजवायन खून में हानिकारक कोलेस्ट्रोल की मात्रा कम करती है इसलिए भोजन में प्रतिदिन अजवायन का उपयोग करना चाहिए।
10.  लेशीथीन चिकनाई वाले भोजन का सेवन करने से रक्त की नलिकाओं में कोलेस्ट्रोल नहीं जमता है तथा यह कोलेस्ट्रोल से बाईल के निर्माण को बढ़ाता है जिससे रक्त में कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है।
11.   खून में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को सामान्य करने के लिए एल डी एल को घटाना आवश्यक है। इसलिए भोजन में कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाने वाले पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए।
12.  कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाने वाले पशुजनित खाद्य पदार्थ (पशुओं के मांस तथा दूध से बनने वाले खाद्य पदार्थ) को नहीं खाना चाहिए।
13.   भोजन में नारियल तथा पाम के तेल का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि यह कोलेस्ट्रोल की मात्रा को बढ़ाते हैं।


29.7.17

मिर्गी के दौरे की आयुर्वेदिक और घरेलु चिकत्सा /Ayurvedic and Home Remedies for Epilepsy


   मिर्गी के दौरे पड़ने के कई कारण हो सकते है जैसे जेनेटिक, सिर में चोट लगना, इन्फेक्शन, ब्रेन ट्यूमर, किसी भी बात का सदमा लग जाना, मानसिक तनाव आदि। अगर पुरे विश्व की बात करे तो इसके मरीजों की संख्या करोडो में है| लेकिन आजकल इसका इलाज संभव है। मिर्गी एक नाडीमंडल संबंधित रोग है जिसमें मस्तिष्क की विद्युतीय प्रक्रिया में व्यवधान पडने से शरीर के अंगों में आक्षेप आने लगते हैं। दौरा पडने के दौरान ज्यादातर रोगी बेहोंश हो जाते हैं और आंखों की पुतलियां उलट जाती हैं। रोगी चेतना विहीन हो जाता है और शरीर के अंगों में झटके आने शुरू हो जाते हैं। ये बीमारी मस्तिष्क के विकार के कारण होती है। यानि मिर्गी का दौरा पड़ने पर शरीर अकड़ जाता है जिसको अंग्रेजी में सीज़र डिसॉर्डर ( seizure disorder) भी कहते हैं।मुंह में झाग आना मिर्गी का प्रमुख लक्षण है।
   मिर्गी दो प्रकार की होती है। पहली तो आंशिक मिर्गी जो दिमाग के एक भाग को प्रभावित करती है। और दूसरी व्यापक मिर्गी, जो मस्तिक्ष के दोनों भागो को प्रभावित करती है। यदि किसी की बेहोशी दो-तीन मिनट से ज्यादा है, तो यह जानलेवा भी हो सकती है। उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए । कुछ लोग मिर्गी आने पर रोगी को जूता, प्याज आदि सुंघाते हैं, इसका मिर्गी के इलाज से कोई संबंध नहीं है।
   

यदि किसी बच्चे को मिर्गी  की शिकायत है, तो कोई मानसिक कमी भी इसका कारण हो सकती है। आमतौर पर
मिर्गी  आने पर रोगी बेहोश हो जाता है। यह बेहोशी चंद सेकेंड, मिनट या घंटों तक हो सकती है। दौरा समाप्त होते ही मरीज सामान्य हो जाता है। वैसे तो इस बीमारी का पता 3000 साल पहले लग चुका था लेकिन इस बीमारी को लेकर लोगों के मन में जो गलत धारणाएं हैं उसके कारण इसका सही तरह से इलाज की बात करने की बात लोग सोचते बहुत कम हैं। ग्रामीण इलाकों में लोग इस बीमारी को भूत-प्रेत का साया समझते हैं और उसका सही तरह से इलाज करवाने के जगह पर झाड़-फूंक करवाने ले जाते हैं। यहां कि तक लोग मिर्गी के मरीज़ को पागल ही समझ लेते हैं। जिन महिलाओं को मिर्गी का रोग होता है उनकी शादी होनी मुश्किल होती है क्योंकि लोग मानते हैं कि मिर्गी के मरीज़ को बच्चा नहीं हो सकता है या बच्चे भी माँ के कारण इस बीमारी का शिकार हो जाते हैं। मिर्गी का मरीज़ पागल नहीं होता है वह आम लोगों के तरह ही होता है। उसकी शारीरिक प्रक्रिया भी सामान्य होती है। मिर्गी का मरीज़ शादी करने के योग्य होता/होती है और वे बच्चे को जन्म देने की भी पूर्ण क्षमता रखते हैं सिर्फ उनको डॉक्टर के तत्वाधान में रहना पड़ता है।
आज हम आपको इस बीमारी से बचने के लिए सही प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली बता रहे है| इन घरेलु उपचार से रोग की गंभीरता में राहत पायी जा सकती है|

 मिर्गी के लक्षण-

वैसे तो मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्षण नजर आते हैं।मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज़ के अलग-अलग लक्षण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्षण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं, वे हैं-
चक्कर खाकर जमीन पर गिर जाना।
शरीर में अचानक कमजोरी आजाना।
चिड़चिड़ाहट महसूस होना|
आँखे ऊपर हो जाना और चेहरे का नीला पड़ जाना।
अचानक हाथ, पैर और चेहरे के मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है।
सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगता है।
मरीज़ या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है या आंशिक रूप से मुर्छित होता है।
पेट में गड़बड़ी।
जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति।
मिर्गी के दौरे के बाद मरीज़ उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है।

मिर्गी के मुख्य कारण-

मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है। लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है तब मस्तिष्क के काम में प्रॉबल्म आना शुरू हो जाता है। इसके कारण मिर्गी के मरीज़ को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय हो जाता है आदि। वैसे तो इसके रोग के होने के सही कारण के बारे में बताना कुछ मुश्किल है। कुछ कारणों के मस्तिष्क पर पड़ सकता है असर, जैसे-
तम्बाकू, शराब या अन्य नशीली चीजों का सेवन करने पर|
बिजली का झटका लगना या ज़रूरत से ज़्यादा तनाव।
ब्रेन ट्यूम, ब्रेन स्ट्रोक या जेनेटिक कंडिशन
जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर|
नींद पूरी न होना और शारीरिक क्षमता से अधिक मानसिक व शारीरिक काम करना।
जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सिजन का आवागमन न होने पर।
दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन से मस्तिष्क पर पड़ता है प्रभाव।
कार्बन मोनोऑक्साइड के विषाक्तता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है।
ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।
न्यूरोलॉजिकल डिज़ीज जैसे अल्जाइमर रोग।

मिर्गी से बचने के घरेलु उपचार-


*पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
*शहतूत का रस लाभदायक होता है।
*तनाव से दूर रहे और संतुलित आहार ले।
*जितना हो सके उतना आराम करे|
*व्यायाम करने से भी मिर्गी में फायदा पहुँचता है।
*पानी में गीली मिटटी मिलाकर पुरे शरीर पे लेप की तरह लगाने से भी रोगी स्वस्थ अनुभव करता है।
स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
*पीसी हुई राई का चूर्ण रोगी को दौरा पड़ते वक्त सुंघा दें इससे रोगी की बेहोशी दूर हो जायगी।
*अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर *प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
एप्सम साल्ट (मेग्नेशियम सल्फ़ेट) मिश्रित पानी से मिर्गी रोगी स्नान करे। इस उपाय से दौरों में कमी आ जाती है और दौरे भी ज्यादा भयंकर किस्म के नहीं आते है।
*सेब का जूस भी मिर्गी के रोगी को लाभ पहुंचता है।
*मिर्गी के रोगियों के लिए शहतूत का रस लाभदायक होता है।
*अंगूर का रस मिर्गी के रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है।
*डॉक्टर्स द्वारा दी गई दवा का सही तरीके से सेवन करना प्रभावी मिर्गी का इलाज  है।
*नियमित रूप से चैक-अप करवाते रहें।
*मिर्गी के मरीज को उसके अनुसार पर्याप्त नींद लेने दे।
गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है।
*रोजाना तुलसी के 20 पत्ते चबाकर खाने से मिर्गी जल्द ही ठीक हो जाती है।
-*मिर्गी के रोगी को ज्यादा फैट वाला और कम कार्बोहाइड्रेड वाला डायट लेना चाहिए।
*मिर्गी के रोगी को सप्ताह में एक बार फलो का सेवन अवश्य करना चाहिए।
*मिर्गी के रोगी को ज़रा सी हींग को निम्बू के साथ चूसने से लाभ मिलता है।
*दूध में पानी मिलाकर उबालें और लहसुन की 4 कली काटकर उसमे डाल से। यह मिश्रण रात को सोते वक्त पीयें। जल्द ही फ़ायदा नजर आने लगेगा।
*मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
*मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
*मिर्गी का दौरा दोबारा पड़ने की संभावना को कम करने के लिए-

रोकथाम


मिर्गी 
रोग होने का कारण सही तरह से पता नहीं होने के वजह से रोकथाम का भी पता सही तरह से चल नहीं पाया है। प्रेगनेंसी के दौरान सही तरह से देखभाल करने पर शिशुओं में होने की संभावना को कम किया जा सकता है। जेनेटिक स्क्रीनिंग होने से माँ को बच्चे में इसके होने का पता चल जाता है। सिर में चोट लगने की संभावना को कम करने से कुछ हद तक इस रोग के होने की खतरे को कम किया जा सकता है।
मिर्गी का दौरा बार-बार पड़ने की संभावना को कम करने के लिए-
• डॉक्टर द्वारा दिए गए दवा का सही तरह सेवन करनाः
• पर्याप्त नींद और एक ही समय में सोने की आदत का पालन करना।
तनाव से दूर रहें।
• संतुलित आहार।
• नियमित रूप से चेक-अप करवाते रहें।

मृगी मुद्रा :-

इस मुद्रा में हाथ की आकृति मृग के सिर के समान हो जाती है इसीलिए इसे मृगी मुद्रा कहा जाता है।
विधि :
हाथ की अनामिका और मध्यमा अंगुली (बीच की दोनों अंगुली) को अंगूठे के आगे के भाग से स्पर्श कराएँ |बाकी बची दोनों अंगुलियाँ कनिष्ठा एवं तर्जनी अंगुली को सीधा रखें।
लाभ :
मृगी मुद्रा मिर्गी के रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
इसके नियमित अभ्यास से सिरदर्द और दिमागी परेशानी में लाभ मिलता है।
मृगी मुद्रा से दन्त रोग एवं सायिनस रोग में भी लाभ मिलता है।

मुद्रा करने का समय व अवधि :

मृगी मुद्रा को प्रातः,दोपहर एवं सायं 10-10 मिनट करना उपयुक्त है।





28.7.17

मानसिक रोग के होम्योपैथिक इलाज



• मनोरोगों का एक मुख्य कारण तनाव है। आज के इस भाग-दौड़ और चकाचौंध वाले समाज में तनाव एक तरह से रच-बस गया है और अनेकानेक रोगों की उत्पत्ति का कारण है।
• बचपन में मां-बाप का प्यार न मिलना किसी विकलांगता की वजह से तिरस्कार का पात्र बनना, इम्तहान में फेल हो जाना, अकारण पिटाई होना, पैदाइशी दिमागी कमजोरी अथवा किसी दुर्घटनावश कोई व्यक्ति किसी भी उम्र में मनोरोग का शिकार हो सकता है

प्रोस्टेट वृद्धि से मूत्र समस्या का 100% अचूक ईलाज 

मानसिक रोग के लक्षण
* शरीर में शर्करा की कमी, दिमाग में ट्यूमर बन जाना। कार्बन मोनोक्साइड गैस के विष की वजह से, थायराइड ग्रंथि की निष्क्रियता की वजह से, जिससे होंठ सूज जाते हैं और नाक मोटी हो जाती है आदि की वजह से मनोरोग परिलक्षित होते हैं। इसमें याददाश्त लगभग समाप्त हो जाती है, समय और दिन का ध्यान नहीं रहता। भावनात्मक अंकुश नहीं रह पाता एवं चिड़चिड़ा और मारपीट करने वाला बन जाता है, नंगा हो जाता है। चित अशांत रहता है। अभी तक मरीज ठीक है और फिर अचानक चीखने लगता है। फिर रोने लगता है और फिर गहन उदासी में डूब जाता है।
पागलपन के अन्य लक्षणों के अलावा रोगियों में निम्न लक्षण परिलक्षित होते हैं

गठिया ,घुटनों का दर्द,कमर दर्द ,सायटिका  के अचूक उपचार 

*आवाज में हकलाहट। आंखें जल्दी-जल्दी झपकना। एक ही वस्तु के दो चित्र दिखाई देना, नींद न आना, बेचैनी रहना, मतिभ्रम, सुस्ती, व्यग्रता (गड़बड़ी), भय, अविश्वास आदि रहना। शरीर का अपना संतुलन गड़बड़ा जाने से, विटामिनों की कमी होने से, शारीरिक बीमारी जैसे व्यापक होने, दिमागी बीमारी होने, दिल अथवा सांस की न्यूनता की स्थिति में अथवा मादक दवाओं के अधिक सेवन के बाद परिलक्षित होते हैं।
*मतिभ्रम रहने लगता है। अपनी सफाई का ध्यान नहीं रखता, खाना खाने में परेशानी होती है। गले में दर्द होने लगता है। बाद की अवस्था में शरीर के मूवमेंट्स (चलने-फिरने की प्रक्रिया) भी बाधित होने लगती है। इन्द्रियों के कार्य क्षीण होने लगते हैं एवं शरीर के एक हिस्से में पक्षपात भी हो सकता है। सोचने-समझने में अस्त-व्यस्तता रहती है।

*किडनी फेल(गुर्दे खराब ) रोग की जानकारी और उपचार*

*. अकेलापन, उदासी में डूबे रहना, बोलचाल बंद या निरंतर बिना बात बोलते रहना।
*. कई बार पागलपन वंशानुगत भी हो सकता है।
* समाज-विरोधी कार्य करने लगते हैं। सेक्स संबंधी अश्लील हरकतें करने लगते हैं। व्यवहार रूखा , कठोर व भावनाविहीन हो जाता है।
मानसिक रोग का होम्योपैथिक उपचार
होमियोपैथिक दवाएं तो मानसिक लक्षणों पर सर्वोतम कार्य करती हैं। यदि कोई भी परेशानी रोगी को हो और कोई विशेष मानसिक लक्षण किसी दवा विशेष का उस रोगी में परिलक्षित हो जाए, तो उसी लक्षण के आधार पर दवा अत्यंत कारगर साबित होती है। होमियोपैथी के आविष्कारक एवं मूर्धन्य विद्वान डॉ. हैनीमैन ने तो अपने समय में जर्मनी में होमियोपैथिक औषधियों से मनोरोगियों का इलाज करने के लिए अलग से एसाइलम (पागलखाने) खोले हुए थे। प्रमुख होमियोपैथिक औषधियां निम्न प्रकार हैं –

पित्त पथरी (gallstone)  की अचूक औषधि 

‘बेलाडोना’, ‘हायोसाइमस’, ‘स्ट्रामोनियम’, ‘लेकेसिस’, ‘वेरेट्रम एल्बम’, ‘नेट्रमम्यूर’, ‘इग्नेशिया’ एवं ‘कॉस्टिकम’ आदि।
स्ट्रामोनियमः 
बिना रुके धार्मिकता पर बयान देना, अत्यधिक पूजा-पाठ करने वाला गंभीर रोगी, कभी हँसना, कभी गाना, कभी प्रार्थना करना (लक्षण जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं), भूत-प्रेत देखना, डरावनी आवाजें सुनाई पड़ना, हवा से बातें करना। हँसी-खुशी से अचानक दुखी हो जाना, मारने-पीटने पर उतारू, अपने बारे में मतिभ्रम सोचता है, जैसे मैं बहुत लम्बा हूं, दोहरा हो गया हूं या मेरे शरीर का कोई हिस्सा खो गया है। आध्यात्मिक, धार्मिक पागलपन, अकेलापन और अंधकार बर्दाश्त नहीं कर सकता। उजाले में सभी के साथ रहना चाहता है अथवा चमकदार वस्तु को देखने पर शरीर ऐंठने लगता है, भय लगता है, चित्त भ्रम और भागने की इच्छा रहती है, छोटी वस्तुएं भी बहुत बड़ी दिखाई देती हैं, हाथ हमेशा जननांगों पर ही रहते हैं। ऐसी स्थिति में 200 एवं 1000 तक की शक्ति में दवा अत्यंत फायदेमंद रहती है। इसमें रोगी कपड़े वगैरह फाड़ने लगता है।

गुर्दे की पथरी कितनी भी बड़ी हो ,अचूक हर्बल औषधि

बेलाडोनाः
 मरीज अपनी काल्पनिक दुनिया में रहता है, मतिभ्रम हो जाता है, भूत-प्रेत और डरावने चेहरे दिखाई देने लगते हैं। अचेतन अवस्था में सब कुछ छोड़कर भाग जाना चाहता है। बातचीत नहीं करना चाहता। आंखों में आंसू भरेरहते हैं। सभी इन्द्रियों (चेतना) की तीक्ष्णता व चित्त की परिवर्तनीयता बनी रहती है। बेचैनी और भय बना रहता है, सिरदर्द भयंकर, चेहरा लाल, सूजा हुआ, श्लेष्मा झिल्लियां सूखी हुई आदि लक्षण मिलने पर 200 एवं 1000 शक्ति की दवा जल्दी-जल्दी देनी चाहिए।
हायोसाइमस: 
लड़ाई-झगड़ा करने वाला, शक्कीस्वभाव, अत्यधिक बोलना, अश्लील बातें और कार्य, ईष्र्यालु, मंदबुद्धि, हर बात पर हँसने की आदत, धीमी, हकलाती हुई आवाज, पेशाब निकल जाना। अत्यधिक कमजोरी, रात में और खाना खाने के बाद परेशानी बढ़ जाती है,तो उक्त दवा 200 एवं 1000 शक्ति में देने से रोगी को फायदा होता है। रोगी को सेक्सुअल पागलपन होता है।
यदि लगातार दुखी रहने, किसी संताप अथवा शोक की वजह से पागलपन हो, तो ‘इग्नेशिया‘ एवं ‘कॉस्टिकम‘ उपयोगी है।

मोतियाबिंद  और कमजोर नजर के आयुर्वेदिक उपचार

यदि रोगी उदास रहे और हमेशा निराशावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए किसी भी चीज के बुरे पक्ष के बारे में ही सोचे, तो ‘कॉस्टिकम’ दवा उत्तम औषधि है।
यदि चेहरा पीला, आंखें धसी हई और चेहरा भद्दा दिखाई दे, रोगी अश्लील एवं धार्मिक बातें और कामुक बातें करे, तो ‘वैरैट्रम एल्बम‘ दवा देनी चाहिए।
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25.7.17

सोरायसिस रोग के एलोपैथ ,आयुर्वेदिक,घरेलु उपचार


   कई ऐसे त्वचा रोग हैं, जो लंबे समय तक रोगी को परेशान करते हैं. कई बार लंबे समय तक इलाज के बावजूद ये ठीक नहीं होते हैं. ऐसे में रोगी निराश भी हो जाते हैं. सोरायसिस एक ऐसा ही रोग है, जो आॅटो इम्यून डिसआॅर्डर है. अगर सही तरीके से धैर्य रख कर इलाज कराया जाये, तो इस रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है. 
   सोरायसिस क्रॉनिक यानी बार बार होनेवाला आॅटोइम्यून डिजीज है, जो शरीर के अनेक अंगो को प्रभावित करता है. यह मुख्य रूप से त्वचा पर दिखाई देता है, इसलिए इसे चर्म रोग ही समझा जाता है. यह किसी भी उम्र में हो सकता है. एक आंकड़े के मुताबिक दुनिया भर में लगभग एक प्रतिशत लोग इस रोग से पीड़ित हैं. यह रोग किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है पर अकसर 20-30 वर्ष की आयु में अधिक आरंभ होता है. 60 वर्ष की आयु के बाद इसके होने की आशंका अत्यंत कम होती है. 5-10 प्रतिशत रोगियों में माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य को भी इस रोग से पीड़ित देखा गया है. आयुर्वेद में सोरायसिस को एक कुष्ठ, मंडल कुष्ठ या किटिभ कुष्ठ जैसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है. बोलचाल की भाषा में कुछ लोग इसे छाल रोग भी कहते हैं.


सोरायसिस रोग के कारण

शरीर के इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक प्रणाली की गड़बड़ी को इसका कारण माना जाता है. आयुर्वेद में विरुद्ध आहार या असंतुलित खान-पान के कारण पित्त और कफ दोषों में होनेवाली विकृति को इसका कारण बताया गया है. त्वचा की सबसे बाहरी परत (एपिडर्मिस) की अरबों कोशिकाएं प्रतिदिन झड़ कर नयी कोशिकाएं बनती हैं और एक महीने में पूरी नयी त्वचा का निर्माण हो जाता है. सोरायसिस में कोशिकाओं का निर्माण असामान्य रूप से तेज हो जाता है और नयी कोशिकाएं एक माह की जगह चार-पांच दिनों में बन कर मोटी चमकीली परत के रूप में दिखाई पड़ती हैं और आसानी से झड़ने लगती है. चोट लगने, संक्रामक रोग के बाद या अन्य दवाओं के कुप्रभाव के कारण भी सोरायसिस की शुरुआत होती है.

सोरायसिस रोग के लक्षण

   सोरायसिस कोहनी, घुटनों, खोपड़ी, पीठ, पेट, हाथ, पांव की त्वचा पर अधिक होता है. शुरुआत में त्वचा पर रूखापन आ जाता है, लालिमा लिये छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. ये दाने मिल कर छोटे या फिर काफी बड़े चकत्तों का रूप ले लेते है. चकत्तों की त्वचा मोटी हो जाती है.
हल्का या तेज खुजली होती है. खुजलाने से त्वचा से चमकीली पतली परत निकलती है. परत निकलने के बाद नीचे की त्वचा लाल दिखाई पड़ती है और खून की छोटी बूंदे दिखाई पड़ सकती हैं. खोपड़ी की त्वचा प्रभावित होने पर यह कभी रूसी की तरह या अत्यधिक मोटी परत के रूप में दिखाई पड़ती है. नाखूनों के प्रभावित होने पर उनमें छोटे-छोटे गड्ढे हो सकते हैं. विकृत हो कर मोटे या टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं. नाखून पूरी तरह नष्ट भी हो सकते हैं.
    लगभग 20% सोरायसिस के पुराने रोगियों के जोड़ों में दर्द और सूजन भी हो जाती है, जिसे सोरायटिक आर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है. अधिकांश रोगियों में रोग के लक्षण ठंड के समय में बढ़ जाते हैं. पर कुछ रोगियों को गरमी के महीने में अधिक परेशानी होती है. तनाव, शराब के सेवन या धूम्रपान से भी लक्षण बढ़ जाते हैं. अधिक प्रोटीन युक्त भोजन जैसे-मांस, सोयाबीन, दालों के सेवन से भी रोग के लक्षणों में वृद्धि हो सकती है. यह छूत की बीमारी नहीं है.

जिद्दी त्वचा रोग है सोरायसिस

सोरायसिस एक आॅटो इम्यून डिजीज है, जिसमें त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली होती है. यह रोग काफी जिद्दी है और लंबे समय तक परेशान करता है. अगर धैर्य रख कर इसका उपचार सही तरीके से कराया जाये, तो इससे छुटकारा मिल सकता है. आयुर्वेद से इसके ठीक होने की संभावना अधिक होती है.



रोग के अनेक प्रकार

प्लाक सोरायसिस : 

लगभग 70-80 % रोगी प्लाक सोरायसिस से ही ग्रस्त होते हैं. इसमें कोहनियों, घुटनों, पीठ, कमर, पेट और खोपड़ी की त्वचा पर रक्तिम, छिलकेदार मोटे धब्बे या चकत्ते निकल आते हैं. इनका आकार दो-चार मिमी से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है.

गट्टेट सोरायसिस : 

यह अकसर कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर छोटे -छोटे लाल दानों के रूप में दिखाई पड़ता है. प्रभावित त्वचा प्लाक सोरायसिस की तरह मोटी परतदार नहीं होती है. अनेक रोगी स्वत: या इलाज से चार-छह हफ्तों में ठीक हो जाते हैं. पर कभी-कभी ये प्लाक सोरायसिस में परिवर्तित हो सकते हैं

पामोप्लांटर सोरायसिस : 

यह मुख्य रूप से हथेलियों और तलवों को प्रभावित करता है.
पुस्चुलर सोरायसिस: इस प्रकार में अकसर हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लालिमा से घिरे दानों में मवाद हो जाता है.

एरिथ्रोडार्मिक सोरायसिस : 

इस प्रकार के सोरायसिस में चेहरे समेत शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लालिमा लिये चकत्ते हो जाते हैं. शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है, हृदय गति बढ़ जाती है और समय पर उचित चिकित्सा नहीं होने पर रोगी के प्राण जा सकते हैं.

इन्वर्स सोरायसिस : 

इसमे स्तनों के नीचे, बगल, कांख या जांघों के उपरी हिस्से में लाल बड़े-बड़े चकते बन जाते हैं.


होमियोपैथी में उपचार


सोरायसिस इम्युनिटी में गड़बड़ी के कारण होता है, इसलिए इसका उपचार करने का सबसे अच्छा तरीका इम्युनिटी में सुधार करना ही है. अत: इम्युनिटी को सुधारने के लिए सोरिनम सीएम शक्ति की दवा चार बूंद महीने में एक बार लें.
काली आर्च : अगर त्वचा से रूसी निकले, नोचने पर और अधिक निकले, रोग जोड़ों पर अधिक हो, तो काली आर्च 200 शक्ति की दवा चार बूंद रोज सुबह में दें.
पामर या प्लांटर सोरायसिस : अगर सोरायसिस हथेली या तलवों तक ही सीमित हो, तो इसके लिए सबसे अच्छी दवा फॉस्फोरस है. इसकी 200 शक्ति की दवा चार बूंद सप्ताह में एक बार लें.
काली सल्फ : सोरायसिस सिर में भी होता है. सिर की त्वचा से सफेद रंग की रूसी निकले और गोल-गोल चकत्ते जैसे हों, तो काली सल्फ 200 शक्ति की दवा चार बूंद सप्ताह में एक बार लें.
रोग को ठीक होने में लंबा समय लग सकता है. अत: धैर्य रख कर उपचार कराना जरूरी है.
सोरायसिस की चिकित्सा
यह एक हठीला रोग है, जो अकसर पूरी तरह से ठीक नहीं होता है. यदि एक बार हो गया, तो जीवन भर चल सकता है. अर्थात् रोग होता है, फिर ठीक भी होता है, लेकिन बाद में फिर हो जाता है. कुछ रोगियों में यह लगातार भी रह सकता है. हालांकि इसके कुछ रोगी अपने आप ठीक भी हो जाते हैं.
क्यों ठीक होते हैं अभी तक कारण अज्ञात है. कुछ नये रोगी धैर्य से खान-पान परहेज के साथ जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन और सावधानियों के साथ दवाओं से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं अथवा रोग के लक्षणों से लंबी अवधि के लिए मुक्ति मिल जाती है. रोग के प्रारंभ में ही यदि आयुर्वेद विज्ञान से उपचार कराया जाता है, तो उपचार से रोग के ठीक होने की अधिक संभावना है. पुराने रोगियों को भी तुलनात्मक दृष्टि से कम खर्च में काफी राहत मिल जाती है. और रोगी बगैर परेशानी के सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है. एलोपैथ चिकित्सा प्रणाली में कुछ वर्षों पहले तक इसकी संतोषजनक चिकित्सा नहीं थी. विगत एक दशक में कई प्रभावकारी दवाएं विकसित हुई हैं, जिनके प्रयोग से लंबे समय तक रोग के लक्षणों से राहत मिल जाती है.
एलोपैथ चिकित्सा
साधारणतया सोरायसिस के लक्षण मॉश्च्यूराइजर्स या इमॉलिएंट्स जैसे-वैसलीन, ग्लिसरीन या अन्य क्रीम्स से भी नियंत्रित हो सकते हैं. यदि यह सिर पर होता है, तो विशेष प्रकार के टार शैंपू काम में लाये जाते हैं. मॉश्च्यूराइजर्स या अन्य क्रीम सिर और प्रभावित त्वचा को मुलायम रखते हैं. सिर के लिए सैलिसाइलिक एसिड लोशन और शरीर पर हो, तो सैलिसाइलिक एसिड क्रीम विशेष उपयोगी होती है. इसके अलावा कोलटार (क्रीम, लोशन, शैंपू) आदि दवाइयां उपयोगी होती हैं.
पुवा (पीयूवीए) थेरेपी : अल्ट्रावायलेट प्रकाश किरणों के साथ सोरलेन के प्रयोग से भी आंशिक रूप से लाभ मिलता है पर रोग ठीक नहीं होता.
बीमारी ज्यादा गंभीर हो, तब मीथोट्रीक्सेट और साइक्लोस्पोरिन नामक दवाओं से सामयिक और आंशिक लाभ होता है, पर हानिकारक प्रभावों के कारण लंबे समय तक इनके प्रयोग में अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता है.
इसके अलावा कैल्सिट्रायोल और कैल्सिपौट्रियोल नामक औषधियों का भी बहुत अच्छा प्रभाव होता है. पर ये महंगी होने के कारण सामान्य आदमी की पहुंच से बाहर होती हैं.
सेकुकीनुमाब नाम की बयोलॉजिकल मेडिसिन से बेहतर परिणाम मिले हैं. इस दवा से काफी लाभ होता है. पर इसका खर्च प्रतिवर्ष लाखों में होने के बावजूद रोग से पूरी तरह छुटकारे की गारंटी नहीं है. ये सब दवाएं किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख में ही लेनी चाहिए. रोग के लक्षणों को दूर होने में लंबा समय लग सकता है. इस कारण रोगी को धैर्य रख कर इलाज कराना चाहिए. बीच में इलाज छोड़ने से समस्या और बढ़ सकती है और समस्या दूर होने में भी परेशानी हो सकता है.
आयुर्वेद स्वास्थ्य विज्ञान में सोरायसिस की चिकित्सा के लिए अनेक औषधियों के विकल्प के साथ-साथ आहार-विहार, परहेज का विशेष ध्यान रखा जाता है. कभी-कभी शरीर में व्याप्त हानिकारक तत्वों को निकालने के लिए पंचकर्म नामक विशिष्ट चिकित्सा का प्रयोग काफी लाभ दायक होता है. उपयोगी जड़ी-बूटियां तथा आयुर्वेदिक दवाएं जैसे-घृतकुमारी, श्वेत कुटज, अमृता (गुडिच), नीम, करंज, मजीठ, सारिवा, खदिर, मंडुकपर्णी, कुटकी, नीम, हल्दी, कैशोर गुगलू, रस माणिक्य, महामंजिष्ठादी, पंचतिक्त घृत
प्रतिदिन 20-30 ग्राम तीसी (अलसी) के सेवन के साथ इसके स्थानीय लेप से कई रोगियों को 70-80 प्रतिशत लाभ होने के अनुभव आये हैं.

अनुभूत उपयोगी घरेलू चिकित्सा-

नीम की पत्तियां या गुडिच के तने को पीस कर या उबाल कर सोरायसिस से प्रभावित अंग धोएं.
-घृतकुमारी (एलोवेरा) का ताजा गूदा त्वचा पर लगाएं या इस गूदे का प्रतिदिन दो-तीन चम्मच दिन में दो बार 
-प्रतिदिन 20-30 ग्राम तीसी (अलसी) का सेवन करने से भी लाभ होता है.
-मांस, मुर्गा, अंडा, उड़द, मटर, सोयाबीन जैसे अधिक प्रोटीन युक्त भोजन न करें.
-कपालभाति और अनुलोम-विलोम का नियमित अभ्यास भी रोग से राहत देने में उपयोगी है|
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24.7.17

सिरदर्द के आयुर्वेदिक घरेलु उपचार /Ayurvedic Home Remedies For Headache



* पेट में गैस के कारण अगर सिर दर्द हो तो 1 ग्लास हलके गरम पानी में नींबू रस मिला कर पिये। इससे पेट की गैस और सिर के दर्द दोनों से रहत मिलेगी।
* सिरदर्द होने पर थोड़ी-थोड़ी देर में पानी पीते रहना चाहिएँ। इससे सिरदर्द में आराम मिलता हैं।
* सिर की मांसपेशियों में तनाव की वजह से दर्द होने लगता है। इस तनाव को कम करने के लिए गर्दन, सिर और कंधो की मालिश करे। रोजाना योगा, एक्सरसाइज और मेडिटेशन करने वालों को सिर दर्द की शिकायत कम होती है।
*रूमाल में लौंग की कलियो को बांधकर सूंघने से भी सिरदर्द में आराम मिलता हैं।
*अगर आपको ये परेशानी बार बार होती है तो सुबह सुबह सेब पर नमक लगा कर खली पेट खाये और साथ में गुनगुना दूध पिये। कुछ दिन लगातार ये उपाय करने पर बार बार होने वाले सिर दर्द से छुटकारा मिलेगा।
* सर दर्द से तुरंत राहत पाने के लिए लौंग के पाउडर में नमक मिला कर पेस्ट बनाये और दूध के साथ पियें, कुछ मिनटों में ही सिर का दर्द कम हो जायेगा। इसके इलावा लौंग को हल्का सा गरम करे और पीस कर इसका लेप सिर पर लगाने से भी head pain दूर होता है।
* लहसुन एक प्राकृतिक दर्द निवारक औषधी है, लहसुन की कुछ कलियों को पीस कर निचोड़ ले और उसका रस पियें। इससे सिर दर्द से जल्दी आराम मिलेगा।
*गर्म पानी में नींबू निचोड़कर पीने से भी सिरदर्द ठीक होता हैं।


* सर्दी और जुकाम के कारण सर में दर्द हो तो चीनी और धनिया को पानी में घोल ले और पिए। इससे जुकाम, सर्दी और सिर दर्द से आराम मिलेगा।
*तुलसी की पत्तियों को पानी में पकाकर खाने से सिरदर्द ठीक होता हैं।
* अगर अधिक गर्मी की वजह से सिर दर्द हो तो नारियल के तेल से सर की मालिश करे। इससे सिर को ठंडक मिलेगी और दर्द से छुटकारा मिलेगा।
5. सर दर्द से छुटकारा पाना हो तो एक साफ़ कपडे में बर्फ के टुकड़े डालें और ice pack बना ले। 10 मिनट के लिए इसे सिर पर रखने और हटाने से थोड़ी देर में सर दर्द ठीक होने लगेगा।
6. थोड़ा सा केसर बादाम के तेल में मिला कर इसे सूंघने पर सिर का दर्द कम होने लगेगा। जल्दी राहत पाने के लिए इस उपाय को 2 से 3 बार करे।
*सेब पर नमक ड़ालकार खाने से सिरदर्द ठीक हो जाता हैं।
* कई बार नींद पूरी ना होने की वजह से भी सर में दर्द होने लगता है ऐसे में लौंग, इलायची और अदरक डाल कर चाय बनाये और पिये। इससे सिर का दर्द तुरंत गायब हो जाएगा। अदरक वाली चाय पीना तनाव कम करने और माइंड फ्रेश करने का अच्छा उपाय है।



सिर दर्द  के आयुर्वेदिक नुस्खे

*सिर के जिस तरफ दर्द हो उसकी दूसरी तरफ की नाक में 1 से 2 बूंदे शहद की डाले, इस उपाय से सिर दर्द जल्दी दूर होता है। अगर माइग्रेन की वजह से सिर में दर्द हो रहा है तो शहद की जगह देसी गाय के घी की कुछ बूंदे डाले।
*पानी में दालचीनी पाउडर मिला कर पेस्ट बनाये और सिर पर लगाये, इस आयुर्वेदिक नुस्खे के प्रयोग से आपको तुरंत आराम मिलेगा।
*जायफल को चावल के पानी में अच्छे से घीस कर पेस्ट बनाये और सिर पर लगाए, इससे सिर दर्द काम होने लगेगा। .
*सर दर्द ठीक करने के लिए गाय का गरम दूध पीना भी फायदेमंद है। .
*खीरा काट कर सिर पर रगड़ने और सूंघने से शिरोवेदना कम होती है।
*सरसों के तेल को कटोरी में डाल कर 2 से 3 बार सूँघे।
*बाबा रामदेव के योगा से सिर दर्द का इलाज

रोजाना 10 मिनट योगा कर के आप सर दर्द से छुटकारा पा सकते है। सिर दर्द का उपचार करने के लिए बाबा रामदेव  द्वारा बताये हुए कुछ योगा आसान निचे लिखे है।
पवनमुकतासना
भ्रामरी प्राणायाम
सूर्य नमस्कार

नाड़ी शोधन
स्वरगासन
सिर दर्द में परहेज क्या करे
ऐसे भोजन से परहेज करे जिस से क़ब्ज़ होने की आशंका हो।
बिना मसाले वाला सादा भोजन करे.
धूम्रपान और शराब से दूर रहे।
अधिक तनाव लेने से बचे।
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