18.7.17

गुर्दे खराब की रामबाण औषधि:Kidney failure medicine




  हम गुर्दे या वृक्क (Kidney) के बारे में बहुत ही कम जानते हैं। जिस प्रकार नगरपालिका शहर को स्वच्छ रखती     है वैसे ही गुर्दे शरीर को स्वच्छ रखते हैं। रक्त में से मूत्र बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य गुर्दे करते हैं। शरीर में रक्त में उपस्थित विजातीय व अनावश्यक बच्चों एवं कचरे को मूत्रमार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकालने का कार्य गुर्दों का ही है।
गुर्दा वास्तव में रक्त का शुद्धिकरण करने वाली एक प्रकार की 11 सैं.मी. लम्बी काजू के आकार की छननी है जो पेट के पृष्ठभाग में मेरुदण्ड के दोनों ओर स्थित होती हैं। प्राकृतिक रूप से स्वस्थ गुर्दे में रोज 60 लीटर जितना पानी छानने की क्षमता होती है। सामान्य रूप से वह 24 घंटे में से 1 से 2 लीटर जितना मूत्र बनाकर शरीर को निरोग रखती है। किसी कारणवशात् यदि एक गुर्दा कार्य करना बंद कर दे अथवा दुर्घटना में खो देना पड़े तो उस व्यक्ति का दूसरा गुर्दा पूरा कार्य सँभालता है एवं शरीर को विषाक्त होने से बचाकर स्वस्थ रखता है। जैसे नगरपालिका की लापरवाही अथवा आलस्य से शहर में गंदगी फैल जाती है एवं धीरे-धीरे महामारियाँ फैलने लगती हैं, वैसे ही गुर्दों के खराब होने पर शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
अपने शरीर में गुर्दे चतुर यंत्रविदों (Technicians) की भाँति कार्य करते हैं। गुर्दा शरीर का अनिवार्य एवं क्रियाशील भाग है, जो अपने तन एवं मन के स्वास्थ्य पर नियंत्रण रखता है। उसके बिगड़ने का असर रक्त, हृदय, त्वचा एवं यकृत पर पड़ता है। वह रक्त में स्थित शर्करा (Sugar), रक्तकण एवं उपयोगी आहार-द्रव्यों को छोड़कर केवल अनावश्यक पानी एवं द्रव्यों को मूत्र के रूप में बाहर फेंकता है। यदि रक्त में शर्करा का प्रमाण बढ़ गया हो तो गुर्दा मात्र बढ़ी हुई शर्करा के तत्त्व को छानकर मूत्र में भेज देता है।
गुर्दों का विशेष सम्बन्ध हृदय, फेफड़ों, यकृत एवं प्लीहा (तिल्ली) के साथ होता है। ज्यादातर हृदय एवं गुर्दे परस्पर सहयोग के साथ कार्य करते हैं। इसलिए जब किसी को हृदयरोग होता है तो उसके गुर्दे भी बिगड़ते हैं और जब गुर्दे बिगड़ते हैं तब उस व्यक्ति का रक्तचाप उच्च हो जाता है और धीरे-धीरे दुर्बल भी हो जाता है।
आयुर्वेद के निष्णात वैद्य कहते हैं कि गुर्दे के रोगियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसका मुख्य कारण आजकल के समाज में हृदयरोग, दमा, श्वास, क्षयरोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप जैसे रोगों में किया जा रहा अंग्रेजी दवाओं का दीर्घकाल तक अथवा आजीवन सेवन है।
इन अंग्रेजी दवाओं के जहरी प्रभाव के कारण ही गुर्दे एवं मूत्र सम्बन्धी रोग उत्पन्न होते हैं। कभी-कभी किसी आधुनिक दवा के अल्पकालीन सेवन की विनाशकारी प्रतिक्रिया (Reaction) के रूप में भी किडनी फेल्युअर (Kidney Failure) जैसे गम्भीर रोग होते हुए दिखाई देते हैं। अतः मरीजों को हमारी सलाह है कि उनकी किसी भी बीमारी में, जहाँ तक हो सके, वे निर्दोष वनस्पतियों से निर्मित एवं विपरीत तथा परवर्ती असर (Side Effect and After Effect) से रहित आयुर्वेदिक दवाओं के सेवन का ही आग्रह रखें। एलोपैथी के डॉक्टर स्वयं भी अपने अथवा अपने सम्बन्धियों के इलाज के लिए आयुर्वेदिक दवाओं का ही आग्रह रखते हैं।
आधुनिक विज्ञान कहता है कि गुर्दे अस्थि मज्जा () बनाने का कार्य भी करते हैं। इससे भी यह सिद्ध होता है कि आज रक्त कैंसर की व्यापकता का कारण भी आधुनिक दवाओं का विपरीत एवं परवर्ती प्रभाव ही हैं।

किडनी विकृति के कारणः

आधुनिक समय में मटर, सेम आदि द्विदलो जैसे प्रोटीनयुक्त आहार का अधिक सेवन, मैदा, शक्कर एवं बेकरी की चीजों का अधिक प्रयोग चाय कॉफी जैसे उत्तेजक पेय, शराब एवं ठंडे पेय, जहरीली आधुनिक दवाइयाँ जैसे – ब्रुफेन, मेगाडाल, आइबुजेसीक, वोवीरॉन जैसी एनालजेसिक दवाएँ, एन्टीबायोटिक्स, सल्फा ड्रग्स, एस्प्रीन, फेनासेटीन, केफीन, ए.पी.सी., एनासीन आदि का ज्यादा उपयोग, अशुद्ध आहार अथवा मादक पदार्थों का ज्यादा सेवन, सूजाक (गोनोरिया), उपदंश (सिफलिस) जैसे लैंगिक रोग, त्वचा की अस्वच्छता या उसके रोग, जीवनशक्ति एवं रोगप्रतिकारक शक्ति का अभाव, आँतों में संचित मल, शारीरिक परिश्रम को अभाव, अत्यधिक शारीरिक या मानसिक श्रम, अशुद्ध दवा एवं अयोग्य जीवन, उच्च रक्तचाप तथा हृदयरोगों में लम्बे समय तक किया जाने वाला दवाओँ का सेवन, आयुर्वेदिक परंतु अशुद्ध पारे से बनी दवाओं का सेवन, आधुनिक मूत्रल (Diuretic) औषधियों का सेवन, तम्बाकू या ड्रग्स के सेवन की आदत, दही, तिल, नया गुड़, मिठाई, वनस्पति घी, श्रीखंड, मांसाहार, फ्रूट जूस, इमली, टोमेटो केचअप, अचार, केरी, खटाई आदि सब गुर्दा-विकृति के कारण है।

सामान्य लक्षणः

गुर्दे खराब होने पर निम्नांकित लक्षण दिखाई देते हैं-

आधुनिक विज्ञान के अनुसारः
आँख के नीचे की पलकें फूली हुई, पानी से भरी एवं भारी दिखती हैं। जीवन में चेतनता, स्फूर्ति तथा उत्साह कम हो जाता है। सुबह बिस्तर से उठते वक्त स्फूर्ति के बदले उबान, आलस्य एवं बेचैनी रहती है। थोड़े श्रम से ही थकान लगने लगती है। श्वास लेने में कभी-कभी तकलीफ होने लगती है। कमजोरी महसूस होती है। भूख कम होती जाती है। सिर दुखने लगता है अथवा चक्कर आने लगते हैं। कइयों का वजन घट जाता है। कइयों को पैरों अथवा शरीर के दूसरे भागों पर सूजन आ जाती है, कभी जलोदर हो जाता है तो कभी उलटी-उबकाई जैसा लगता है। रक्तचाप उच्च हो जाता है। पेशाब में एल्ब्यमिन पाया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसारः

सामान्य रूप से शरीर के किसी अंग में अचानक सूजन होना, सर्वांग वेदना, बुखार, सिरदर्द, वमन, रक्ताल्पता, पाण्डुता, मंदाग्नि, पसीने का अभाव, त्वचा का रूखापन, नाड़ी का तीव्र गति से चलना, रक्त का उच्च दबाव, पेट में किडनी के स्थान का दबाने पर पीड़ा होना, प्रायः बूँद-बूँद करके अल्प मात्रा में जलन व पीड़ा के साथ गर्म पेशाब आना, हाथ पैर ठंडे रहना, अनिद्रा, यकृत-प्लीहा के दर्द, कर्णनाद, आँखों में विकृति आना, कभी मूर्च्छा और कभी उलटी होना, अम्लपित्त, ध्वजभंग (नपुंसकता), सिर तथा गर्दन में पीड़ा, भूख नष्ट होना, खूब प्यास लगना, कब्जियत होना – जैसे लक्षण होते हैं। ये सभी लक्षण सभी मरीजों में विद्यमान हों यह जरूरी नहीं।

गुर्दा रोग से होने वाले अन्य उपद्रवः

गुर्दे की विकृति का दर्द ज्यादा समय तक रहे तो उसके कारण मरीज को श्वास (दमा), हृदयकंप, न्यूमोनिया, प्लुरसी, जलोदर, खाँसी, हृदयरोग, यकृत एवं प्लीहा के रोग, मूर्च्छा एवं अंत में मृत्यु तक हो सकती है। ऐसे मरीजों में ये उपद्रव विशेषकर रात्रि के समय बढ़ जाते हैं।
आज की एलोपैथी में गुर्दो रोग का सरल व सुलभ उपचार उपलब्ध नहीं है, जबकि आयुर्वेद के पास इसका सचोट, सरल व सुलभ इलाज है।

आहारः

प्रारंभ में रोगी को 3-4 दिन का उपवास करायें अथवा मूँग या जौ के पानी पर रखकर लघु आहार करायें। आहार में नमक बिल्कुल न दें या कम दें। नींबू के शर्बत में शहद या ग्लूकोज डालकर 15 दिन तक दिया जा सकता है। चावल की पतली घेंस या राब दी जा सकती है। लौकी का जूस आधा गिलास देना शुरू करे। फिर जैसे-जैसे यूरिया की मात्रा क्रमशः घटती जाय वैसे-वैसे, रोटी, सब्जी, दलिया आदि दिया जा सकता है। मरीज को मूँग का पानी, सहजने का सूप, धमासा या गोक्षुर का पानी चाहे जितना दे सकते हैं। किंतु जब फेफड़ों में पानी का संचय होने लगे तो उसे ज्यादा पानी न दें, पानी की मात्रा घटा दें।

विहारः 

गुर्दे के मरीज को आराम जरूर करायें। सूजन ज्यादा हो अथवा यूरेमिया या मूत्रविष के लक्षण दिखें तो मरीज को पूर्ण शय्या आराम (Complete Bed Rest) करायें। मरीज को थोड़े परम एवं सूखे वातावरण में रखें। हो सके तो पंखे की हवा न खिलायें। तीव्र दर्द में गरम कपड़े पहनायें। गर्म पानी से ही स्नान करायें। थोड़ा गुनगुना पानी पिलायें।

औषध-उपचारः

गुर्दे के रोगी के लिए कफ एवं वायु का नाश करने वाली चिकित्सा लाभप्रद है। जैसे कि स्वेदन, वाष्पस्नान (Steam Bath), गर्म पानी से कटिस्नान (Tub Bath)।
 रोगी को आधुनिक तीव्र मूत्रल औषधि न दें क्योंकि लम्बे समय के बाद उससे गुर्दे खराब होते हैं। उसकी अपेक्षा यदि पेशाब में शक्कर हो या पेशाब कम होता हो तो नींबू का रस, सोडा बायकार्ब, श्वेत पर्पटी, चन्द्रप्रभा, शिलाजीत आदि निर्दोष औषधियों या उपयोग करना चाहिए। गंभीर स्थिति में रक्त मोक्षण (शिरा मोक्षण) खूब लाभदायी है किंतु यह चिकित्सा मरीज को अस्पताल में रखकर ही दी जानी चाहिए।
सरलता से सर्वत्र उपलब्ध पुनर्नवा नामक वनस्पति का रस, काली मिर्च अथवा त्रिकटु चूर्ण डालकर पीना चाहिए। कुलथी का काढ़ा या सूप पियें। रोज 100 से 200 ग्राम की मात्रा में गोमूत्र पियें। पुनर्नवादि मंडूर, दशमूल, क्वाथ, पुनर्नवारिष्ट, दशमूलारिष्ट, गोक्षुरादि क्वाथ, गोक्षुरादि गूगल, जीवित प्रदावटी आदि का उपयोग दोषों एवं मरीज की स्थिति को देखकर बनना चाहिए।
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विशिष्ट परामर्श 


किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह असरदार सिद्ध होती है|डायलिसिस  पर   आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|

लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -26/10/2020

नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी जुझार सींगजी  यादव 
स्थान : टाटका ,तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

serum Creatinine :7.18mg/dl

Urea                    :129mg/dl 




 यह औषधि लेते हुए 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

Serum creatinine :     2.18 mg/dl

urea:                          69  mg/dl  

तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
अभी इलाज जारी है| 



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इस औषधि के चमत्कारिक प्रभाव की एक  केस रिपोर्ट प्रस्तुत है-

रोगी का नाम -     राजेन्द्र द्विवेदी  
पता-मुन्नालाल मिल्स स्टोर ,नगर निगम के सामने वेंकेट रोड रीवा मध्यप्रदेश 
इलाज से पूर्व की जांच रिपोर्ट -
जांच रिपोर्ट  दिनांक- 2/9/2017 
ब्लड यूरिया-   181.9/ mg/dl
S.Creatinine -  10.9mg/dl





हर्बल औषधि प्रारंभ करने के 12 दिन बाद 
जांच रिपोर्ट  दिनांक - 14/9/2017 
ब्लड यूरिया -     31mg/dl
S.Creatinine  1.6mg/dl








जांच रिपोर्ट -
 दिनांक -22/9/2017
 हेमोग्लोबिन-  12.4 ग्राम 
blood urea - 30 mg/dl 
सीरम क्रिएटिनिन- 1.0 mg/dl
Conclusion- All  investigations normal 








 केस रिपोर्ट 2-

रोगी का नाम - Awdhesh 

निवासी - कानपुर 

ईलाज से पूर्व की रिपोर्ट

दिनांक - 26/4/2016

Urea- 55.14   mg/dl

creatinine-13.5   mg/dl 










यह हर्बल औषधि प्रयोग करने के 23 दिन बाद 17/5/2016 की सोनोग्राफी  रिपोर्ट  यूरिया और क्रेयटिनिन  नार्मल -
creatinine 1.34 mg/dl
urea 22  mg/dl














लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी जुझार सींगजी  यादव 
स्थान : टाटका ,तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

serum Creatinine :7.18mg/dl

Urea                    :129mg/dl 

 यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-
र्ट 
 यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

Serum creatinine :     2.18 mg/dl

urea:                          69  mg/dl  

तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
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15.7.17

न्यूमोनिया की आयुर्वेदिक चिकित्सा -डॉ॰आलोक






मानसून में होने वाली बीमारियों में निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो कि बच्चों में सामान्यत: पाई जाती है। यदि किसी को लगातार तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, छती में दर्द, बलगम वाली खांसी और नाड़ी तेज चल रही हो (150 बीट्स प्रति मिनट), तो उसकी देखभाल बहुत जरूरी है, यह निमोनिया हो सकता है।
निमोनिया एक संक्रमण है जो कि फेफड़ों को प्रभावित करता है। फिर भी, बच्चे और बड़ी उम्र के लोग इसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्यों कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता युवाओं की तुलना में कम होती है। जब भी उनमें यह संक्रमण होता है उन्हें कमजोरी महसूस होती है और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना जरूरी हो जाता है।
निमोनिया एक इन्फ़ैकशन है जो कि बैक्टीरिया, वायरस और कवक से फैलता है। इस बीमारी से दूर रहने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आज हम आपको निमोनिया के इलाज की 8 प्रभावी औषधियाँ बता रहे हैं, आइए जानें..

*लहसुन का पेस्ट
लहसुन से शरीर का तापमान कम होता है और यह निमोनिया में प्रभावी है। लहसुन की कुछ पोथियां लें और मसलकर इनका पेस्ट बना लें। इसे छाती पर मसलें।
*लौंग और काली मिर्च
5-6 लौंग और काली मिर्च लें और 1 पानी के गिलास में 1 ग्राम सोडा लेकर इन्हें उबाल लें। इसे दिन में 1-2 बार लें। इससे निमोनिया में राहत मिलेगी।
* हल्दी
यह निमोनिया की आयुर्वेदिक औषधि है। हल्दी को गुनगुने पानी में मिलाएँ, इसे छाती पर लगा दें, अब गरम ईंट पर गरम किया हुआ कपड़ा लगा दें। इससे छाती में उत्तेजना होगी और निमोनिया की सूजन दूर होगी।
* सन के बीज, तिल और शहद मिलाएँ
एक टेबलस्पून सेम के बीज, तिल और शहद मिलाएँ, इसमें एक चुटकी नमक डालें और पानी मिलाएँ। इसका दिन में दो बार सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।
* ब्लैक टी और मेथी का मिश्रण
दो टी स्पून मेथी पाउडर में एक कप ब्लैक टी मिलाएँ। यदि आवश्यक हो तो चीनी भी मिलाएँ और दिन में एक बार पियें। इससे निमोनिया दूर होगा।


*तुलसी की पत्तियों का रस

तुलसी की कुछ पत्तियाँ लें, इन्हें मसलकर इनका रस निकाल लें। इसमें थोड़ी काली मिर्च मिलाएँ और 6 घंटे में एक बार पियें। यह भी निमोनिया में कारगर है।
*पुदीने की पत्तियाँ
पुदीने की कुछ पत्तियाँ लें, इन्हें मसलकर रस निकाल लें। इसमें एक टेबल स्पून शहद मिला लें और दो-तीन घंटों के अंतराल से लें।
* त्रिफला और अश्वगंधा
खाने में त्रिफला और अश्वगंधा के साथ थोड़ी अदरक और इलायची मिलाने से भी निमोनिया का इलाज होता है।
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13.7.17

अक्सर होने वाली बीमारियों का घरेलू इलाज ,Home remedies for frequent illnesses/




  वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की एक मेडिसिन स्ट्रैटजी रिपोर्ट से यह पुष्टि होती है कि, “लाखों लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल का मुख्य स्रोत हर्बल मेडिसिन, पारंपरिक उपचार और पारपंरिक चिकित्सका है और कभी-कभी यह सिर्फ देखभाल का ही स्रोत होता है। यह देखभाल घरेलू, सुलभ और सस्ती होती है
   हम ज़्यादा गहराई में जाए बिना, लगभग रोज़ होने वाली समस्याओं के बारे में बता रहे हैं। बीमारियां जैसे कफ एंड कोल्ड, छींकना, जलन कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो घर के किसी न किसी सदस्य को होती हैं।

*एसिड अटैकः 

क्या आपको छाती और पेट में दर्द, सूजन महसूस होती है? अगर हां, तो आपको एसिडिटी हो सकती है। ऐसे में आप वह कर सकते हैं, जो मैं इतने सालों से करती आ रही हूं- थोड़ा अदरक और नींबू का रस मिलाकर उसे पी लें। नींबू का रस आपकी एसिडिटी को दूर करने में मदद करेगा और अदरक विटामिन सी और मैग्नीशियम से भरपूर एंटी- इंफ्लामेटरी और पेन-किलर का काम करती है।



*कोल्ड एंड कफः

 अक्सर ऐसा कहा जाता है कि ठंड में गीले बालों के साथ बाहर जाने पर आपको कोल्ड होने का डर बना रहता है, लेकिन यह बस एक पुरानी कहावत है। जब आपका इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होता है, तो बदलते मौसम में छींक और कफ साधारण बात है। पेट में दर्द, कोल्ड और कफ कुछ दिनों के लिए ही रहता है और इनका एकदम से इलाज संभव नहीं है। लेकिन यहां कुछ उपचार हैं जिन्हें अगर सही तरीके से लिया जाए तो यह धीरे-धीरे ठीक हो जाता है।



इसके अलावा, हल्के गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पिएं। हल्दी एक शक्तिशाली मसाला है। यही नहीं, आयुर्वेद के घरेलू उपचार में भी आप इसे पाएंगे। यह एक शक्तिशाली एंटी- इंफ्लामेटरी, एंटी-फंगल और एंटी- बैक्टीरियल होती है। यह स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती है। हल्दी कफ, कोल्ड और बंद छाती को खोलने में भी मददगार है।

*.पेट की परेशानीः 


हम सभी को लगभग हर सुबह पेट की परेशानी होती है, कॉन्सटिपेशन की समस्या हमारा सुबह का बहुत समय ले लेती है, क्योंकि सही से फ्रेश न होने की वजह से हम खुद को काफी देर तक बाथरूम में बंद कर लेते हैं। आयुर्वेद में इनका उपाय बताया गया है। यहां कॉन्सटिपेशन होने के कुछ कारण हैः पूरा दिन ढेर सारा पानी न पीना, ज़्यादा मात्रा में डेयरी प्रॉडक्ट का सेवन करना और ऐसा ही बहुत कुछ। इसके पीछे कुछ भी कारण हो, लेकिन कुछ घरेलू नुस्खे आपको इससे बहुत जल्द निज़ात दिला सकते हैं। रात को सोते समय गर्म पानी के साथ दो से तीन चम्मच त्रिफला लें, जो कि एक घुट्टी की तरह काम करती है और इससे अगली सुबह आपको फ्रेश होने में बिल्कुल भी दिक्कत नहीं होगी। इसके साथ ही, अपनी डाइट में जैतून का तेल, तिल का तेल और घी शामिल करें। यही नहीं, सोने से पहले एक चम्मच अलसी के बीज खाना, त्रिफला की तरह ही काम करता है।
कॉन्सटिपेशन के साथ ही एक अन्य समस्या है पेट में सूजन या फिर पेट का फूलना। यह कॉन्सटिपेशन से ज़्यादा दर्दभरा होता है। इससे निपटने के लिए क्या हमारे पास कोई घरेलू उपचार है? जी हां, बिल्कुल है। पानी में थोड़ा जीरा डालकर उबालें और उसे छानकर पी लें। यह आपके सिस्टम को साफ करके आराम पहुंचाएगा।



*दाग-धब्बेः 

स्किन पर दाग-धब्बे की परेशानी अक्सर कम लोगों को ही होती है, लेकिन यह निर्भर करता है कि आपने क्या खाया है और आप क्या करते हैं। बहुत ज़्यादा तला हुआ खाना, अनियमित फूड, कॉन्सटिपेशन, गर्मी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ खाने वाले लोगों को अक्सर स्किन की परेशानी हो जाती है। थोड़े-से नीम के पत्ते लेकर उन्हें क्रश कर लें और दाग-धब्बों पर लगाएं। नीम के पत्ते एंटी-बैक्टीरियल और ठंडक पहुंचाने का काम करते हैं। इसके अलावा अच्छे नतीजों के लिए आप संतरे के छिलकों को भी चेहरे पर स्क्रब कर सकते हैं। मेरी दादी ने बचपन में मेरे लिए ऐसा कई बार किया है- वह चंदन पाउडर और गुलाब जल को मिलाकर पैक की तरह दिन में दो बार लगाती थीं।



*उबकाईः 

यहां उबकाई आने के कई कारण हैं- खराब खाना, जरूरत से ज़्यादा खा लेना, खाने का हजम न होना, एलर्जी आदि। ‘आयुर्वेद और पंचकर्म, द साइंस ऑफ हीलिंग एंड रिजूवनैशन’ बुक के लेखक सुनील वी. जोशी का कहना है कि, “ उबकाई एक जरिया है, हमारे शरीर के बारे में बताने का कि हमें खाना सही से हजम नहीं हुआ है और बॉडी उसे बाहर निकालना चाहती है। बहुत बार, लोग उबकाई और जी मिचलाने जैसी समस्याओं से निपटने के लिए कॉफी और एसिडिटी से निपटने वाली चीजों का सेवन कर लेते हैं। ऐसे में उबकाई को सिर्फ कुछ देर के लिए रोका जा सकता है, लेकिन उससे छुटकारा नहीं पाया जा सकता। इससे रात तक आपकी बॉडी में और ज़्यादा एसिडिटी बन जाती है, और यह समय के साथ स्थिति को और बिगाड़ देती है
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11.7.17

मुंह ,सांस की बदबू के घरेलू उपचार // Home remedies for mouth odor







सांसों की दुर्गन्ध और मुंह की बदबू एक ऐसी समस्‍या है, जो कई लोगों में पाई जाती है। आपके मित्र, सहकर्मी और अन्‍य आपके पास बैठने से कतराते हैं। मुंह से आती दुर्गन्ध और सांस की बदबू (हैलाटोसिस) अक्सर मुंह में मौजूद एक बैक्टेरिया से होती है। इस बैक्टेरिया से निकलने वाले ‘सल्फर कम्पाउंड’ की वजह से सांस की बदबू पैदा होती है। कई बार तो लोग इस समस्या से अंजान होते हैं। इस बदबू के कई कारण होते हैं, जैसे-गंदे दांत, पाचन की समस्या और धूम्रपान।

जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो उसके मुंह से बदबू आने लगती है। सांस में बदबू, मुंह और जीभ में छाले पड़ जाने के कारण भी होती है। दांत एवं मसूढ़ों के रोग होने व इसमें कीड़े लग जाने पर भी मुंह से बदबू आती रहती है।


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सांस तथा मुंह से बदबू आने के लक्षण-
मुंह में छाले व जीभ पर दाने होने से भोजन खाने में बहुत ज्यादा तीखा लगने लगता है। मुंह और सांसों से बदबू आने लगती है। मुंह में बार-बार लार व थूक आता रहता है।
सांस तथा मुंह से बदबू आने का कारण :-
इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण मुंह और जीभ पर छाले पड़ जाना है। जब छालों से पीव निकलती है तो मुंह व सांसों से बदबू आने लगती है।
पेट की पाचनक्रिया के खराब हो जाने के कारण भी मुंह से बदबू आती रहती है।
दांतों व मसूढ़ों में कीड़ें लग जाने के कारण दांतों में सड़न व मसूढ़ों से खून निकलने लगता है जिससे मुंह और सांसों से दुर्गंध आने लगती है।
कब्ज बनने के कारण भी मुंह और सांसों से दुर्गंध आने लगती है।



सांस तथा मुंह से बदबू आने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार

इलायची चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है तथा मुंह में खुशबू फैलती है।
लगभग 15 दिन तक रोजाना 10 मुनक्का खाने से मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है। इससे कब्ज और मुंह से आने वाली बदबू भी खत्म हो जाती है।
सांस तथा मुंह से बदबू आने पर सलाई गुग्गुल 600 से 1200 मिलीग्राम की मात्रा में बबूल की गोंद के साथ मिलाकर खाने से लाभ होता है।
इस रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए। फिर इसका उपचार करना चाहिए जैसे यदि किसी व्यक्ति के दांत में कीड़ा लग गया हो तो उसे सबसे पहले दांत में से कीड़ा निकलवाने का उपचार करना चाहिए।
कुलंजन को मुंह में रखकर चूसने से मुंह और सांस से दुर्गंध आना बंद हो जाती है तथा मुंह सुगंधित हो जाता है।
त्रिफला की जड़ की छाल को मुंह में रखकर चबाने से यह रोग ठीक हो जाता है।
लौंग को हल्का भूनकर चबाते रहने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।



4 ग्राम सुहागा को लगभग 125 मिलीलीटर पानी में मिलाकर गरारे करने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।
इस रोग से पीड़ित रोगी के पेट में कब्ज बन रही हो तो रोगी व्यक्ति को अपना पेट साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए और इसके बाद गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करना चाहिए। इससे मुंह की बदबू का रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
यदि सांस तथा मुंह से बदबू आने के कारण पाचनक्रिया खराब होने से है तो इसके कारणों को दूर करना चाहिए। 
25 ग्राम बालछड़ को अच्छी तरह से कूटकर और छानकर रख लें। प्रतिदिन 2-2 ग्राम इस चूर्ण को पानी के साथ सुबह-शाम खाने से मुंह के रोग व दुर्गंध मिट जाती है।
लौंग को हल्का भूनकर चबाने या मुंह में रख कर चूसते रहने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।
कपूर कचरी को मुंह में रखकर चबाने से मुंह से बदबू आने का रोग ठीक हो जाता है और उसके साथ-साथ सांसों से बदबू आना भी बंद हो जाता है।
जायफल के छोटे-छोटे टुकड़ों को दिन में 2-3 बार चूसते रहने से मुंह की दुर्गंध और फीकापन दूर हो जाता है।
मुलेठी को चबाने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है।
जीरे को भूनकर खाने से मुंह व सांसों की बदबू खत्म हो जाती है।



तुलसी के पत्ते
रोजाना भोजन करने के बाद चबाने से मुंह में सब तरह की बदबू खत्म हो जाती है।
किसी को नाक में दुर्गंध आती हो तो तुलसी के पत्ते का रस निकालकर सूंघें। इससे नाक की दुर्गंध दूर होती है और कीड़े मर जाते हैं।
हरा धनिया खाने से मुंह की दुर्गंध खत्म होती है और मुंह सुगंधित हो जाता है।
मुंह से दुर्गंध आने पर अदरक के 1 चम्मच रस को 1 गिलास पानी में घोलकर कुल्ला करें। इस पानी से दिन में 2 से 3 बार कुल्ला करने से मुंह की दुर्गंध दूर हो जाती है।
मुंह में दुर्गंध व पानी आता हो तो अनार के छिलके पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह-शाम आधा चम्मच की मात्रा में पानी के साथ खाने से मुंह की दुर्गंध व लार आना बंद हो जाता है।
अनार के छिलकों को पानी में उबालकर कुल्ला करने से मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।
पुदीने को पीसकर पानी में घोल लें। इस पानी से दिन में 3 से 4 बार कुल्ला करने से मुंह की दुर्गंध व अन्य रोग भी ठीक हो जाते हैं।

प्रतिदिन सुबह 1 गिलास पानी में 1नींबू निचोड़कर कुल्ला करने से मुंह तथा सांस की दुर्गंध दूर होती है।
20 से 40 मिलीलीटर त्रिफला अर्क प्रतिदिन 4 बार सेवन करने से मुंह की दुर्गंध मिट जाती है।
10-10 ग्राम जटामासी, कूट, सौंफ, नरकचूर, बड़ी इलायची, सफेद जीरा और बालछड़ लेकर कूट लें। फिर इसमें 70 ग्राम खांड मिलाकर रखें। रोजाना सुबह-शाम 5-5 ग्राम की मात्रा में इस मिश्रण को पानी के साथ खाने से मुंह की बदबू व मुंह में लार का आना बंद हो जाता है
 भोजन करने के बाद दोनों समय आधा चम्मच सौंफ चबानी चाहिए। इससे मुंह की बदबू खत्म होती है और बैठी हुई आवाज खुल जाती है।
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9.7.17

लम्बी आयु पाने के रहस्य, उपाय // Ways to get long life (longevity)



लम्बी उम्र पाने के घरेलू प्राकृतिक उपाय Top Tips To Live A Long Healthy Life – यदि वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया जाए तो कहना होगा कि जब हमारी कोशिकाओं में डी.एन.ए. की अतिरिक्त मात्रा इकट्ठी हो जाती है, तो यह ऐसे स्तर तक पहुंच जाती है जिससे कोशिका का सामान्य कार्य अवरुद्ध हो जाता है जिसके फलस्वरुप हम धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं।
बुढ़ापा एक मायने में तन-मन के क्षय का ही एक रूप है। वर्तमान शोधों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मनुष्य की जीवनावधि सम्यक आहार, व्यायाम, पोषण और हार्मोन पूर्ति से बढ़ाई जा सकती है। इन चीजों से हमारी सक्रियता भी बरकरार रह सकती है और हम एक सार्थक व कर्मशील जीवन जी सकते हैं। प्राचीन मनीषा में इन सभी उपायों का पहले से ही वर्णन मिलता है। हमारे विभिन्न आरोग्य शास्त्र, योग आदि जीवन की अवधि बढ़ाने के शास्त्र ही हैं। परंतु आज हम प्राचीन शास्त्रों के इन गुणों को भूलकर विज्ञान की नई खोजों का मुह ताक रहे हैं।
कुछ लोग लम्बी उम्र क्यों पाते हैं
आज के वैज्ञानिक यह सिद्ध कर रहे हैं कि वह व्यक्ति ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते हैं जो कम कैलोरी का भोजन करते हैं उनका कहना है कि विलकाबंबा के दक्षिणी अमरीकी, हिमालय क्षेत्र की डूजा जाति के लोग, मध्य यूरोप के काकेशियंस सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी वे अधिक समय तक जिंदा रहते हैं क्योंकि वे 1600 कैलोरी का ही भोजन करते हैं। इसी प्रकार जापान के ओकीनावा शहर के व्यक्ति शतायु होते हैं तथा सारी दुनिया में जापान में ही सर्वाधिक दीर्घजीवी लोग रहते हैं।
इसका कारण है कि उनका भोजन कम कैलोरी युक्त कितुपोषक तत्त्वों से भरपूर होता है। एक मोटा सिद्धांत यह है कि ‘कम खाओ, लंबी उम्र पाओ।’ यह सिद्धांत वैज्ञानिक आधार पर भी तकसंगत है। कैलोरी की मात्रा कम करने पर चयापचय (Metabolism) की क्रिया धीमी हो जाती है क्योंकि मुक्त मूलक चयापचय के उप-उत्पाद हैं, कैलोरी नियंत्रण से उनके द्वारा की जानेवाली विनाशलीला में कमी आती है और फिर कैलोरी नियंत्रण से शरीर का तापक्रम भी थोड़ा कम रहता है।
इसलिए कोशिकाओं की क्षति भी कम होती है। प्रयोगों के निष्कर्ष के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि कैलोरी नियंत्रण से न केवल जीवन की अवधि में वृद्धि हो सकती है बल्कि रोगों की प्रक्रिया में भी इसके कारण धीमापन आता है। इन शोधों से यह आशा बंधती है कि कैलोरी नियंत्रण के सिद्धांत से बुढ़ापे में होनेवाले रोगों के कारणों का पता लगाने में भी सहायता मिलेगी।
आजकल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न शारीरिक व्यायामों की अनुशंसा की जाती है, इनसे जीवनावधि में वृद्धि होती है, परंतु इनकी अपनी निश्चित सीमाएं हैं। योगाभ्यास भी जीवन बढ़ाने हेतु समग्र प्रक्रिया है। लंबी उम्र और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए योगाभ्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। योगमय जीवन द्वारा हम बुढ़ापे को पछाड़ सकते हैं।








ऋतु अनुसार वर्जित पदार्थ वर्षों से हमारे देश में कई उपयोगी व सारगर्भित कहावतें तथा तुकबदियां प्रचलित रही हैं, जिनमें स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी जानकारियां मिलती हैं। इसी संदर्भ में ऋतुओं के अनुसार कुछ भोज्य पदार्थों के सेवन को हानिकारक बतानेवाली एक तुकबंदी यहां प्रस्तुत है।

चैत्र में गुड़, वैशाख में तेल जेठ में महुआ, अषाढ़े बेल॥
सावन दूध, भादो में मही। क्वांर करेला, कार्तिक दही॥
अगहन जीरा, पूस धना। माघ में मिश्री फागुन चना॥
इनका परहेज कर नहीं। मरे नहीं तो पड़े सही॥
नीरोग जीवन एक ऐसी विभूति है जो हर किसी को अभीष्टहै । कौन नहीं चाहता कि उसे चिकित्सालयों-चिकित्सकों का दरवाजा बार-बार न खटखटाना पड़े, उन्हीं का, ओषधियों का मोहताज होकर न जीना पड़े । पर कितने ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हुए भी रोग मुक्त नहीं रह पाते ? यह इस कारण कि आपकी जीवन शैली ही त्रुटि पूर्ण है मनुष्य क्या खाये, कैसे खाये! यह उसी को निर्णय करना है । आहार में क्या हो यह हमारे ऋषिगण निर्धारित कर गए हैं । वे एक ऐसी व्यवस्था बना गए हैं, जिसका अनुपालन करने पर व्यक्ति को कभी कोई रोग सता नहीं सकता । आहार के साथ विहार के संबंध में भी हमारी संस्कृति स्पष्ट चिन्तन देती है, इसके बावजूद भी व्यक्ति का रहन-सहन, गड़बड़ाता चला जा रहा है । परमपूज्य गुरुदेव ने इन सब पर स्पष्टसंकेत करते हुए प्रत्येक के लिए जीवन दर्शक कुछ सूत्र दिए हैं जिनका मनन अनुशीलन करने पर निश्चित ही स्वस्थ, नीरोग, शतायु बना जा सकता है ।
जीवन जीने की कला का पहला ककहरा ही सही आहार है। इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ है कि क्या खाने योग्य है क्या नहीं ? ऐसी अनेकों भ्रान्तियों यथा नमक जरूरी है, पौष्टिता संवर्धन हेतु वसा प्रधान भोजन होना चाहिए, शाकाहार से नहीं-मांसाहार स्वास्थ्य बनता है-पूज्यवर ने विज्ञान सम्मत तर्क प्रस्तुतः करते हुए नकारा है । एक-एक स्पीष्टरण ऐसा है कि पाठक सोचने पर विवश हो जाता है कि जो तल-भूनकर स्वाद के लिए वह खा रहा है वह खाद्य है या अखाद्यं अक्षुण्ण स्वास्थ्य प्राप्ति का राजमार्ग यही है कि मनुष्य आहार का चयन करें क्योंकि यही उसकी बनावट नियन्ता ने बनायी है तथा उसे और अधिक विकृति न बनाकर अधिकाधिक प्राकृतिक् रूप में लें



अनेक व्यक्ति यह जानते नहीं हैं कि उन्हें क्या खाना चाहिए, क्या नहीं ? उनके बच्चों के लिए सही सात्विक संस्कार वर्धक आहार कौन सा है, कौन सा नहीं ? सही, गलत की पहचान कराते हुए पूज्यवर ने स्थान-स्थान पर लिखा है कि एक क्रांति आहार संबंधी होनी चाहिए, पाककला में परिवर्तन कर जीवन्त खाद्यों को निष्प्राण बनाने की प्रक्रिया कैसे उलटी जाय, यह मार्गदर्शन भी इसमें है । राष्ट्र् के खाद्यान्न संकट को देखते हुए सही पौष्टि आहार क्या हो सकता है यह परिजन इसमें पढ़कर घर-घर में ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं । अंकुरित मूँग-चना-मूँगफली-हरी सब्जियों के सलाद आदि की व्यवस्था कर सस्ते शाकाहारी भोजन व इनके भी व्यंजन कैसे बनाये जायँ इसका सर्वसुलभ मार्गदर्शन इस खण्ड में है । शाकाहार-मांसाहार संबंधी विवाद को एकपक्षीय बताते हुए शाकाहार के पक्ष में इतनी दलीलें दी गयी हैं कि विज्ञान-शास्त्र सभी की दुहाई देनेवाले को भी नतमस्तक हो शाकाहार की शरण लेनी पड़ेगी, ऐसा इसके विवेचन से ज्ञात होता है ।

हमारी जीवन शैली में कुछ कुटेवें ऐसी प्रेवश कर गयी हैं कि वे हमारे 'स्टेटस' का अंग बनकर अब शान का प्रतीक बन गयीं हैं । उनके खिलाफ सरकारी, गैरसरकारी कितने ही स्तर पर प्रयास चलें हो, उनके तुरन्त व बाद में संभावित दुष्परिणामों पर कितना ही क्यों न लिखा गया हो, ये समाज का एक अभश्प्त अंग बन गयीं हैं । इनमें हैं तम्बाकू का सेवन, खैनी, पान मसाले या बीड़ी-सिगरेट के रूप में तथा मद्यपान । दोनों ही घातक व्यसन हैं । दोनों ही रोगों को जन्म देते हैं-काया को व घर को जीर्ण-शीर्ण कर बरबादी की कगार पर लाकर छोड़ देते हैं । इनका वर्णन विस्तार से वैज्ञानिक विवेचन के साथ करते हुए पूज्यवर ने इनके खिलाफ जेहाद छेड़ने का आव्हान किया है ।
इन सबके अतिरिक्त नीरोग जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र है हमारा रहन-सहन । हम क्या पहनते हैं ? कितना कसा हुआ हमारा परिधान है ? हमारी जीवनचर्या क्या है ? इन्द्रियों पर हमारा कितना नियंत्रण है ? क्या हमारी रहने की जगह में धूप व प्रचुर मात्रा में है या हम सीलन से भरी बंद जगह में रहकर स्वयं को धीरे-धीरे रोगाणुओं की निवास स्थली बना रहे हैं, यह सारा विस्तार इस वाङ्मय के उपसंहार प्रकरण में है । आभूषणों, सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग, नकली मिलावटी चीजों का शरीर पर व शरीर के अन्दर प्रयोग यह सब हमारे स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालता है यह बहुसंख्य व्यक्ति नहीं जानते । हमारी जीवन-शैली कैसे समरसता से युक्त, सुसंतुलित एवं तनावयुक्त बने, यह शिक्षण जीवन जीने की कला का सर्वांगपूर्ण शिक्षण है|
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