4.7.17

खुजली के घरेलू आयुर्वेदिक इलाज // Ayurvedic treatment of itching





जब त्वचा की सतह पर जलन का एहसास होता है और त्वचा को खरोंचने का मन करता है तो उस बोध को खुजली कहते हैं। खुजली के कई कारण होते हैं जैसे कि तनाव और चिंता, शुष्क त्वचा, अधिक समय तक धूप में रहना, औषधि की विपरीत प्रतिक्रिया, मच्छर या किसी और जंतु का दंश, फंफुदीय संक्रमण, अवैध यौन संबंध के कारण, संक्रमित रोग की वजह से, या त्वचा पर फुंसियाँ, सिर या शरीर के अन्य हिस्सों में जुओं की मौजूदगी इत्यादि से।
चार प्रकार की होती है खुजली (Types of Itching Skin)
बिना दानों के खुजली
दाने वाली खुजली
बिना दाने या दाने वाली खुजली के कारण खुजली के अन्य लक्षण उत्पन्न होते हैं। खुजली पूरी त्वचा, सिर, मुख, पांव, अंगुलियों, नाक, हाथ या प्रजनन अंग आदि अंगों में हो जाती है। खुजली अधिकतर इन्हीं स्थानों पर होती है
बिना दानों वाली या दानों वाली खुजली खुश्क या तर हो सकती है
इन कारणों से होती है खुजली 



शुष्क त्वचा (Dry Skin)- ड्राई स्किन वाले लोगों को खुजली की शिकायत ज्यादा होती है। उन्हें तापमान अनुकूल नहीं मिलने की वजह से भी परेशानी होती है। गर्मी में अधिक ताप होने से हर समय पसीना आता रहता है। बाहर से घर लौटने पर सारा शरीर पसीने से भीगा होता है, लेकिन एसी, पंखे व कूलर की ठंडी हवा से कुछ देर में पसीना सूख जाता है। शरीर पर पसीना सूख जाने से खुजली होती है।

जाड़े में सर्द हवा के प्रकोप से जब त्वचा शुष्क होकर फटने लगती है जिस वजह से खुजली की समस्या होती है वहीं गर्मी में घमोरियां इसका एक अन्य कारण है।
त्वचा की बीमारी और प्रकृति- आमतौर पर स्किन की बीमारियां खुजली उत्पन्न करती हैं। मसलन-
डर्माटिटीस (Dermatitis): त्वचा की सूजन
एक्जिमा (Eczema): यह स्किन का क्रॉनिक रोग है। इसमें खुजली, चकत्ते और स्किन रैशेज होता है।
सोरायसिस (Psoriasis): यह इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाने के कारण होता है। इसमें स्किन लाल हो जाती है और जलन का भी अनुभव होता है।
चिकनपॉक्स
खसरा
जूं
पाइनवर्म

किडनी फेल्योर(गुर्दे खराब) रोगी घबराएँ नहीं ,करें ये उपचार

खुजली होने पर सावधानी
खुजली होने पर प्राथमिक सावधानी के तौर पर सफ़ाई का पूरा ध्यान रखना चाहिये।खुजली का जब भी दौरा पडे, आप साफ़ मुलायम कपडे से उस स्थान को सहला दिजिये।प्रवॄति के अनुसार ठंडे या गरम पानी से उस स्थान को धो लिजिये ( किसी को ठंडे पानी से तो किसी को गरम पानी से आराम होता है, उसके मुताबिक अपने लिये पानी का चयन कर लें)।साबुन जितना कम कर सकते हैं कम कर लेना चाहिये, और सिर्फ़ मॄदु साबुन का ही उपयोग करें।कब्ज हो तो उसका इलाज करें।


खुजली के लिए आयुर्वेदिक उपचार

खुजली वाली जगह पर चन्दन का तेल लगाने से काफी राहत मिलती है। दशांग लेप, जो आयुर्वेद की 10 जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है, खुजली से काफी हद तक आराम दिलाता है। नीम का तेल, या नीम के पत्तों की लेई से भी खुजली से छुटकारा मिलता है। गंधक खुजली को ठीक करने के लिए बहुत ही बढ़िया उपचार माना जाता है। नीम के पाउडर का सेवन करने से त्वचा के संक्रमण और खुजली से आराम मिलता है। सुबह खाली पेट एलोवेरा जूस का सेवन करने से भी खुजली से छुटकारा मिलता है। नींबू का रस बराबर मात्रा में अलसी के तेल के साथ मिलाकर खुजली वाली जगह पर मलने से हर तरह की खुजली से छुटकारा मिलता है। नारियल के ताज़े रस और टमाटर का मिश्रण खुजली वाली जगह पर लगाने से भी खुजली दूर हो जाती है। शुष्क त्वचा के कारण होनेवाली खुजली को दूध की क्रीम लगाने से कम किया जा सकता है। 25 ग्राम आम के पेड़ की छाल, और 25 ग्राम बबूल के पेड़ की छाल को एक लीटर पानी में उबाल लें, और इस पानी से ग्रसित जगह पर भाप लें। जब यह प्रक्रिया हो जाए तो ग्रसित जगह पर घी थपथपाकर लगायें। खुजली गायब हो जाएगी।
स्किन को हाइड्रेटेड रखने के लिए मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करें
बेकिंग सोडा, खुजली की समस्या को कम करता है
एंटी इचिंग ओटीसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं
ब्लड इंफेक्शन से खुजली होने पर नीम के पत्ते और काली मिर्च के दाने पीसकर पानी के साथ सेवन करें



नीम के पत्तों को पानी में उबालकर, छानकर स्नान करने से खुजली खत्म होती है

नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करने से खुजली से राहत मिलती है
नीम के पेड़ पर पकी निबौली खाने से खुजली कम होती है
सुबह-शाम टमाटर का रस पीने से खुजली खत्म होती है
डॉक्टर की सलाह से एंटी एलर्जिक दवाई लें
यदि आप कोई क्रीम या दवा लगाना न चाहें या लगाने पर भी आराम न हो तो घर पर ही यह चर्म रोगनाशक तेल बनाकर लगाएँ, इससे यह व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
खुजली मिटाने का तेल बनाने की विधि :
नीम की छाल, चिरायता, हल्दी, लालचन्दन, हरड़, बहेड़ा, आँवला और अड़ूसे के पत्ते, सब समान मात्रा में। तिल्ली का तेल आवश्यक मात्रा में। सब आठों द्रव्यों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगोकर निकाल लें और पीसकर कल्क बना लें।
पीठी से चार गुनी मात्रा में तिल का तेल और तेल से चार गुनी मात्रा में पानी लेकर मिलाकर एक बड़े बरतन में डाल दें। इसे मंदी आंच पर इतनी देर तक उबालें कि पानी जल जाए सिर्फ तेल बचे। इस तेल को शीशी में भरकर रख लें।
जहाँ भी खुजली चलती हो, दाद हो वहाँ या पूरे शरीर पर इस तेल की मलिश करें। यह तेल चमत्कारी प्रभाव करता है। लाभ होने तक यह मालिश जारी रखें, मालिश स्नान से पहले या सोते समय करें और चमत्कार देखें।

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1.7.17

नेचुरल चीजों से करें अपने बालों को कलर // Avoid hair dye: black hair from natural substances





   आजकल हर कोई कम उम्र में ही बालों के सफ़ेद होने से परेशान है, हालांकि बालों के सफ़ेद होने के पीछे कई तरह के कारण होते हैं जैसे कि हमेशा तनाव में रहना या ज्यादा जंक फ़ूड खाना। कुछ तरीकों को अपनाकर बालों के सफ़ेद होने की समस्या को रोका तो जा सकता है लेकिन अधिकतर लोग इसे कलर करके छिपाना ज्यादा पसंद करते हैं। आजकल बाज़ार में कई तरह के हेयर कलर मौजूद हैं जिससे आप अपने बालों को मनचाहा रंग दे सकते हैं लेकिन इनके साइड इफ़ेक्ट भी बहुत ज्यादा होते हैं



होम्योपैथिक औषधि बेलाडोना ( Belladonna ) का गुण लक्षण उपयोग



   बाज़ार में मिलने वाले हेयर डाई में कुछ ऐसे खतरनाक केमिकल होते हैं जिनके दुष्प्रभाव से आपको कैंसर तक हो सकता है। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि सिर्फ बालों में हेयर डाई लगाने से वे हानिकारक केमिकल आपके शरीर में प्रवेश नहीं करते हैं तो आप गलत हैं, क्योंकि आपकी स्किन ऐसे केमिकल को आसानी से अवशोषित कर लेते हैं जिससे आगे चलकर ये आपके खून में मिल जाते हैं और आपको इनके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। इनकी बजाय अगर आप बालों को रंगने के लिए नेचुरल चीजों का प्रयोग करते हैं तो ये आपके बालों की चमक को भी बढ़ा देते हैं साथ ही इनसे किसी भी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता है। आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ कुदरती चीजों के बारे में :


कालमेघ के उपयोग ,फायदे

 हिना : 

हिना में कुछ ऐसे यौगिक होते हैं जो आपके बालों को गहरे लाल या ब्राउन शेड दे देते हैं। अगर आपके काले बाल अब सफ़ेद हो रहे हैं तो आप हिना को तिल के तेल और कड़ी पत्तों के साथ मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। तिल के तेल को उबाल लें और इसमें कुछ कड़ी पत्तियां मिला दें और इस मिश्रण को एक टाइट कंटेनर में बंद कर दें। जब भी बालों को कलर करना हो तो इस मिश्रण में थोड़ी से हिना मिलाकर फिर से उबाल लें। फिर इसे ठंडा करके अपने बालों पर लगायें और तीन चार घंटे तक सूखने दें फिर शिकाकाई से धो लें।
कुछ लोग तिल के तेल की बजाय कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल भी करते हैं। एक पैन में कैस्टर ऑयल में हिना को मिलाकर थोड़ी देर तक उबालें फिर इसे एक साइड रख दें जब तक इसका रंग काला न पड़ जाये। इसके बाद इसे अपने बालों पर लगायें और तीन से चार घंटे के लिए छोड़ दें फिर शिकाकाई से धो लें। अगर आप बालों को जामुनी कलर का शेड देना चाहते हैं तो इस जूस में चुकंदर को ग्राइंड करके मिला दें और फिर लगायें। इसके अलावा जो लोग बालों को रेडिश ब्राउन कलर में करना चाहते हैं वे हिना में थोड़ी से नींबू का रस और दही मिला लें।


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आंवला :

   आंवला आपके बालों की मजबूती और उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी होता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आप आंवला को भी हेयर डाई के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे आप हिना हेयर कलर के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। आंवला पाउडर को मिलाते समय इस बात का ध्यान रखें की इसे सबसे अंत में मिलाएं और तुरंत बालों में लगा लें। यह बालों को चमक प्रदान करता है साथ ही उन्हें टूटने और झड़ने से भी बचाता है।



अखरोट : 

   अखरोट का कठोर बाहरी आवरण भी आपके बालों को कलर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अखरोट के कठोर छिलके को पहले पीस लें फिर इसे पानी में काफी देर तक उबालें। अब इसे ठंडा होने के लिए रख दें और ठंडा हो जाने के बाद इसे छान लें और अब इस लिक्विड को अपने बालों में लगायें। लगाने के बाद कम से कम एक घंटे तक इसे सूखने दें फिर किसी माइल्ड शैम्पू से इसे धो लें। धोए समय कभी भी गर्म पानी का इस्तेमाल न करें। इस लिक्विड को लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह डाई बहुत ही तीव्र होता है और जो भी चीज इसके संपर्क में आती है, इसे वो डार्क ब्राउन कलर का कर देता है। इसलिए इसे लगाते समय और धोते समय सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करें।

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चाय और कॉफ़ी : 

    चाय और कॉफ़ी से भी आप अपने बालों को कलर कर सकते हैं। टी पाउडर या टी बैग्स को पानी में उबालें फिर इसे छान लें और इस लिक्विड को प्रयोग में लायें। इसी तरह कॉफ़ी हेयर डाई बनाने के लिए भी ब्लैक कॉफ़ी को पानी में उबाल लें और फिर उस पानी को छान लें। कॉफ़ी डाई बनाने के लिए इसे लगाते समय इसमें कुछ कॉफ़ी बीन्स और हेयर कंडीशनर मिला दें। इन सबको अच्छे से मिलाकर फिर इसे लगायें।


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28.6.17

हिस्टीरिया का कारण, लक्षण और घरेलू उपचार// Symptoms and home remedies for hysteria





न्यूरो से पैदा होता है हिस्टीरिया
यह एक ऐसा रोग है, जिसमें बिना किसी शारीरिक कमी के रोगी को रह-रह कर बार-बार न्यूरो व मस्तिष्क से जुड़े गंभीर लक्षण पैदा होते हैं। चूंकि रोगी शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है। इसलिए लक्षणों व तकलीफ से जुड़ी सभी प्रकार की जांचें जैसे कैट स्केन, सीने का एक्स रे, ईसीजी, आंख या गले से जुड़ी जांचों में कोई भी कमी नहीं निकलती है।    हिस्टीरिया रोग अमूमन अविवाहित लड़कियों और स्त्रियों को होता है और इसके होने के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण भी है | हिस्टीरिया रोग होने पर रोगी को मिर्गी के समान दौरे पढ़ते है और यह काफी तकलीफदेह भी होता है |



हिस्टीरिया होने के कारण –
 
किसी भी वजह से मन में पैदा हुआ डर , प्रेम में असफल होना , आरामदायक जीवनशैली ,शारीरिक और मानसिक मेहनत नहीं करना ,active नहीं रहना ,यौन इच्छाएं पूर्ण नहीं होना ,अश्लील (जो कि एक लिमिट में अश्लील कुछ नहीं होता ) साहित्य पढना नाड़ियों की कमजोरी , अधिक इमोशनल होना और सही आयु में विवाह नहीं होना (जिसके कुछ सामाजिक कारण है ) और असुरक्षा की भावना हिस्टीरिया होने के मुख्य कारण है |
अक्सर तनाव से बाहर निकलने का रोगी के पास जब कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता, तब ही उसे रह -रह कर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग दस में से नौ बार महिलाओं में होता है, विशेषकर उन महिलाओं में जिन्हें तनाव से निपटने के लिए सामाजिक या पारिवारिक सहयोग नहीं मिलता।
कमजोर व्यक्तित्व: प्राय: स्वभाव से ऐसे रोगी बहुत जिद्दी होते हैं और जब इनके मन के अनुरूप कोई बात नहीं होती तब वे बहुत परेशान होते हैं, जिद्द पकड़ लेते हैं व आवेश में आकर चीजें फेंकते हैं व स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं। वे विपरीत परिस्थिति में बदहवास हो जाते हैं। उनकी सांस उखड़ने लगती है व अचेत हो सकते हैं।

हिस्टीरिय के लक्षण – 
इस रोग में रोगी को दौरा पड़ने से पहले ही आभास हो जाता है लेकिन दौरा पड़ जाने के बाद रोगी स्त्री अपना होश खो देती है | बेहोशी का यह दौरा 24 से 48 घंटे तक रह सकता है | इस तरह के दौरे में साँस लेने में काफी दिक्कत होती है और मुठी और दांत भींच जाते है
दौरे पड़ना: रह-रह कर हाथ, पैरों व शरीर में झटके आना, ऐंठन होना व बेहोश हो जाना।
अचेत हो जाना: रोगी अचानक या धीरे -धीरे अचेत हो सकता है। इस दौरान उसकी सांसें चलती रहती हैं, शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है लेकिन दांत कसकर भिंच जाते हैं। यह अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कछ घंटों तक बनीं रह सकती है। उसके बाद रोगी स्वयं उठकर बैठ जाता है और ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं।
उल्टी सांसें चलना: रोगी जोर-जोर से गहरी-गहरी सांसें लेता है। रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रोगी को सांस आ ही नहीं रही है और उसका दम घुट जायेगा।
हाथ पैर न चलना: कभी-कभी रोगी के हाथ व पैर फालिज की तरह ढीले पड़ जाते हैं व रोगी कुछ समय (घंटों) के लिए चल फिर नहीं पाता है।
अचानक गले से आवाज निकलना बन्द हो जाना: ऐसे में रोगी इशारों से या फुसफुसा के बातें करने लगता है। कभी कभी हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी को अचानक दिखाई देना भी बंद हो जाता है।
उपरोक्त लक्षण दौरे के रूप में एक साथ या बदल-बदल कर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक रहते हैं फिर स्वत: ठीक हो जाते हैं। इलाज के अभाव में यही दौरे दिन भर में दस-दस बार पड़ पड़ते हैं, तो कभी 2-3 महीनों में एक दो बार ही हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हैं।




हिस्टीरिया के फायदेमंद उपचार –

 हिस्टीरिया का इलाज और रोकथाम खान पान को संतुलित करने से भी संभव है और रोगी अपनी खानपान की आदतों में बदलाव कर इसे संयमित कर सकती है |
गाय का दूध ,नारियल का पानी और मठा और छाछ का उपयोग खाने के दौरान अधिक से अधिक करें |
दूध पीते समय उसमे जितना आपको अच्छा लगे उतनी मात्र में शहद मिलकर उसके साथ किशमिश का सेवन करें | यह काफी लाभप्रद है
आंवले का मुरब्बा सुबह शाम भोजन के साथ खाना सुनिश्चित करें |
गेंहू की रोटी ,दलिया और मूंग मसूर की दाल को भोजन में शामिल करें |
चूंकि हिस्टीरिया के सभी लक्षण किसी न किसी मस्तिष्क या न्यूरो की गंभीर बीमारी जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे में रोगी का किसी कुशल डॉक्टर की सहायता से जांच करना जरूरी होता है। जांचों में जब कोई कमी नहीं निकलती तब मनोचिकित्सक की सहायता से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
-इस रोग का सीधा संबंध चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव से होता है। ऐसे में दवा के विपरीत इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है।
-मनोचिकित्सा के दौरान रोगी में व्याप्त तनाव की पहचान व उससे निपटने के लिए सही विधियां बतायी जाती हैं।
क्या नहीं खाएं हिस्टीरिया में –
भारी गरिष्ठ (देर से पचने वाला ) भोजन नहीं खाएं |
फास्टफूड तली हुई चीज़े और मिर्च मसाले वाली चीजों के सेवन से यथासंभव बचे |
मास मछली और अंडे का पूर्ण रूप से त्याग कर दें |
चाय भी कम से कम पिए या छोड़ दें |
शराब गुटखा आदि का सेवन नहीं करें |
गुड तेल और लाल और हरी मिर्च और अचार और अन्य खट्टी चीजों से परहेज करें |
        इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|










26.6.17

किडनी को मजबूत बनाने वाले योग आसन:Kidney strengthening yoga

   



   शरीर का महत्वपूर्ण अंग है गुर्दा जिसे अंग्रेजी में किडनी कहा जाता है। 150 ग्राम वजनी गुर्दे का आकार किसी बीज की भांति होता है। यह शरीर में पीछे कमर की ओर रीढ़ के ढांचे के ठीक नीचे के दोनों सिरों पर स्थित होते हैं। शरीर में दो गुर्दे होते हैं। गुर्दे का कार्य : गुर्दा रक्त में से जल और बेकार पदार्थो को अलग करता है। शरीर में रसायन पदार्थों का संतुलन, हॉर्मोन्स छोड़ना, रक्तचाप नियंत्रित करने में सहायता प्रदान करता है। यह लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायता करता है। इसका एक और कार्य है विटामिन-डी का निर्माण करना, जो मनुष्य की हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है।  



किडनी को मजबूत बनाने वाले योग :-

योग आपकी किडनी को स्वस्थ और निरोग बनाता है। किडनी से जुड़े रोगों को दूर करने के लिए हर रोज योग की आदत डालें। सर्पाआसन आपकी किडनी को मजबूत बनाता है। अर्धचंद्रासन से किडनी से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।
किडनी शरीर के मुख्य अंगों में से एक है। शरीर में किडनी का काम है रक्त में से पानी और बेकार पदार्थों को अलग करना। इसके अलावा शरीर में रसायन पदार्थों का संतुलन, लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भी सहायता करता है। इसका एक और कार्य है विटामिन-डी का निर्माण करना, जो शरीर की हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है
लगातार दूषित पदार्थ खाने, दूषित जल पीने और नेफ्रॉन्स के टूटने से किडनी के रोग होते हैं। इस वजह से किडनी शरीर से व्यर्थ पदार्थो को निकालने में अक्षम हो जाते हैं। किडनी रोग का बहुत समय तक पता नहीं चलता, लेकिन जब भी कमर के पीछे दर्द उत्पन्न हो तो इसकी जांच करा लेनी चाहिए। आइए जानें योग के जरिए किडनी को कैसे मजबूत बनाया जा सकता है।

अंर्धचंद्रासन

इस आसन को करते वक्त शरीर की स्थिति अर्ध चंद्र के समान हो जाती है, इसीलिए इसे अर्ध चंद्रासन कहते है। इस आसन की स्थि‍ति त्रिकोण समान भी बनती है इससे इसे त्रिकोणासन भी कह सकते है, क्योंकि दोनों के करने में कोई खास अंतर नहीं होता। यह आसन खड़े होकर किया जाता है। इससे किडनी से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

पश्चिमोत्तनासन

अपने पैर को सामने की ओर सीधी स्ट्रेच करके बैठ जाएं। दोनों पैर आपस में सटे होने चाहिए। पीठ को इस दौरान बिल्कुल सीधी रखें और फिर अपने हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे को छूएं। ध्यान रखें कि आपका घुटना न मुड़े और अपने ललाट को नीचे घुटने की ओर झुकाएं। 5 सेकंड तक रुकें और फिर वापस अपनी पोजीशन में लौट आएं। यह पोजीशन किडनी की समस्या के साथ क्रैम्स आदि जैसी समस्याओं से निजात दिलाता है।

उष्ट्रासन

उष्ट्रासन करते समय हमारे शरीर की आकृति कुछ-कुछ ऊँट के समान प्रतीत होती है, इसी कारण इसे उष्ट्रासन कहते हैं। यह आसन वज्रासन में बैठकर किया जाता है। इस आसन से घुटने, ब्लैडर, किडनी, छोटी आँत, लीवर, छाती, लंग्स एवं गर्दन तक का भाग एक साथ प्रभावित होता है, जिससे क‍ि यह अंग निरोगी बने रहते हैं।

सर्पासन

पेट के बल लेट जाएं और दोनों पैरों को मिलाकर रखें। ठुड्डी को जमीन पर रखें। दोनों हाथों को कोहनी से मोड़ें और हथेलियों को सिर के दाएं-बाएं रखें और हाथों को शरीर से सटाकर रखें। आपकी कोहनी जमीन को छूती हुई रहेगी। धीरे-धीरे सांस भरे और कंधे को ऊपर की ओर उठाएं शरीर का भार कोहनी और हाथों पर रहेगा। कोशिश करें कि छाती भी ऊपर की ओर रहे। इस स्थिति में कुछ पल रुकें और सांस को सामान्य कर लें। इस स्थिति में आप दो मिनट तक रुकें। अगर रोक पाना संभव न हो तो पाँच बार इस क्रिया को दोहराएं।
किडनी को स्वस्थ रखने और इसकी समस्याओं को दूर करने के लिए नियमित योगा करना आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है।
   इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|

विशिष्ट परामर्श 


किडनी फेल रोगी के बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की क्षमता बढ़ाने में हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| किडनी ख़राब होने के लक्षण जैसे युरिनरी फंक्शन में बदलाव,शरीर में सूजन आना ,चक्कर आना और कमजोरी,स्किन खुरदुरी हो जाना और खुजली होना,हीमोग्लोबिन की कमी,उल्टियां आना,रक्त में यूरिया बढना आदि  में दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि रामबाण की तरह असरदार सिद्ध होती है|डायलिसिस  पर   आश्रित रोगी भी लाभान्वित हुए हैं| औषधि हेतु  वैध्य दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है|

लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -26/10/2020

नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी जुझार सींगजी  यादव 
स्थान : टाटका ,तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

serum Creatinine :7.18mg/dl

Urea                    :129mg/dl 




 यह औषधि लेते हुए 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

Serum creatinine :     2.18 mg/dl

urea:                          69  mg/dl  

तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
अभी इलाज जारी है| 



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इस औषधि के चमत्कारिक प्रभाव की एक  केस रिपोर्ट प्रस्तुत है-

रोगी का नाम -     राजेन्द्र द्विवेदी  
पता-मुन्नालाल मिल्स स्टोर ,नगर निगम के सामने वेंकेट रोड रीवा मध्यप्रदेश 
इलाज से पूर्व की जांच रिपोर्ट -
जांच रिपोर्ट  दिनांक- 2/9/2017 
ब्लड यूरिया-   181.9/ mg/dl
S.Creatinine -  10.9mg/dl





हर्बल औषधि प्रारंभ करने के 12 दिन बाद 
जांच रिपोर्ट  दिनांक - 14/9/2017 
ब्लड यूरिया -     31mg/dl
S.Creatinine  1.6mg/dl








जांच रिपोर्ट -
 दिनांक -22/9/2017
 हेमोग्लोबिन-  12.4 ग्राम 
blood urea - 30 mg/dl 
सीरम क्रिएटिनिन- 1.0 mg/dl
Conclusion- All  investigations normal 








 केस रिपोर्ट 2-

रोगी का नाम - Awdhesh 

निवासी - कानपुर 

ईलाज से पूर्व की रिपोर्ट

दिनांक - 26/4/2016

Urea- 55.14   mg/dl

creatinine-13.5   mg/dl 










यह हर्बल औषधि प्रयोग करने के 23 दिन बाद 17/5/2016 की सोनोग्राफी  रिपोर्ट  यूरिया और क्रेयटिनिन  नार्मल -
creatinine 1.34 mg/dl
urea 22  mg/dl














लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी जुझार सींगजी  यादव 
स्थान : टाटका ,तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

serum Creatinine :7.18mg/dl

Urea                    :129mg/dl 

 यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-
र्ट 
 यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

Serum creatinine :     2.18 mg/dl

urea:                          69  mg/dl  

तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
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कंधे के दर्द मे उपयोगी योग आसन Useful Yoga posture in shoulder pain



  दिन भर ऑफिस में काम करने वाले लोगों के लिए कंधों में दर्द की समस्या बहुत आम है। अगर आप अपने व्यस्त रुटीन से थोड़ा सा समय निकालकर इन तीन योगासनों को दें, तो कंधों के दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है।
आइए जानें, कंधों के दर्द को दूर भगाने वे आसनों के बारे में।
1. द्रुत ताड़ासन
इस आसन को आप बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं। दोनों हाथों की उंगलियों को इंटरलॉक करके हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। हथेली छत की ओर होनी चाहिए। अब हाथों की ऊपर की ओर जितना खींच सकें, खींचें।
अब सांस छोड़ते हुए दाईं ओर झुकें और हाथों को स्ट्रेच करें, फिर सांस खींचते हुए सीधे हो जाएं। इसी प्रक्रिया को बाईं ओर से दोहराएं। इस पूरी प्रक्रिया को रोज पांच से 15 बार दोहराएं।
2. पर्वतासन

इससे न सिफई कंधे का दर्द दूर होता है बल्कि रीढ़ की हड्डी भी मजबूत होती है। इसे करने के लिए पहले सुखासन में बैठ जाएं।
दोनों हाथों को जमीन से छुएं। अब सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊप उठाएं। बाजू काम से छूने चाहिए, कोहनी सीधी रखें और नमस्कार की मुद्रा बनाएं। हाथों को ऊपर की ओर स्ट्रेच करें।
अब सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे दोनों हाथों को नीचे की ओर लाएं। इसे रोज पांच से 10 बार करें।
3. ताड़ासन

इस आसन को भी आप बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं। दोनों हाथों की उंगलियों को इंटरलॉक करके सांस खींचते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। हथेली छत की ओर होनी चाहिए। अब हाथों की ऊपर की ओर जितना खींच सकें, खींचें।
कुछ पल बाद सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को नीचे की ओर ले जाएं। इस आसन को रोज पांच से 10 बार करें।

विशिष्ट परामर्श-


संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है|   बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े  अस्पताल   मे  महंगे इलाज के  बावजूद   निराश रोगी   इस  औषधि से लाभान्वित हुए हैं|औषधि  के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 







25.6.17

लीवर स्वस्थ रखने के योग आसन //Yoga posture to keep liver healthy





    लीवर हमारे शरीर की सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथि है| लीवर ही है जो हमारे द्वारा खाए गए आहार को पचाकर रस बनाता है, और हमारा शरीर कार्य करता है| यदि हमारा लीवर ख़राब हो जाये तो हमारी जिंदगी बिलकुल भी काम की नहीं रहेगी| क्योकि जो भी हम खायेंगे, पियेंगे हमारा लीवर उसे ले ही नहीं पायेगा|
हम जो कुछ भी खाते है, यदि वो हमारे लिए नुकसानदायक है तो लीवर उसे निष्क्रिय करने का कार्य करता है| आपको जानकर आश्चर्य होगा लेकिन हमारे देश में कई लोगो का जीवन लीवर की बीमारियों के कारण ख़राब हो गया है|
लीवर के ख़राब होने के पीछे का मुख्य कारण है अल्कोहल का अधिक मात्रा में सेवन करना, नकली दवाए, गलत खान- पान| यह सभी चीज़े लीवर को डैमेज करती है| जब हमारे लिए लीवर इतना ज्यादा महत्वपूर्ण है तो क्यों न हम इन बुरी आदतों को छोड़ दे और योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करे|
नौकासन

   नौकासन को बोट पोज़ कहा जाता है| यह बहुत ही आसन है लेकिन इसे करके आप लीवर कैंसर जैसी बीमारियों के होने का खतरा कम कर सकते है| यह आपके लीवर को मजबूत बनाता है| यह पोज़ आपके लीवर को क्लीन करता है साथ ही साथ हानिकारक पदार्थो को भी दूर करता है|
विधि:
इसे करने के लिए सबसे पहले पीठ के बल लेट जाएँ और अपने दोनों पैरों को एक साथ जोड़ कर रखे|
अपने दोनों हाथों को भी शरीर के समानांतर रखे|



अब अपने हाथों को पैरों कि तरफ खींचे और अपने पैरों एवं छाती को ऊपर की और उठाले|

आपके सर, हाथ, पैर सभी एक लाइन में ही होना चाहिए|
इसे करते वक्त आपके पेट की माश्पेसिया सिकुड़ेंगी जिसके चलते आपको अपनी नाभी में खींचाव महसूस होगा|
लंबी गहरी साँसे लेते रहे और आसन को बनाये रखें|
साँस छोड़ते हुए ज़मीन पर आ जाएँ और विश्राम करें|
कपालभाति प्राणायाम

कपालभाति प्राणायाम को अंग्रेजी में फोरहेड कहा जाता है| यह प्राणायाम कई रोगों के इलाज में फायदेमंद है| यह आपके लीवर के स्वास्थ्य को सुधारता है| इससे कई Liver Problems जैसे पीलिया, हेपेटाइटिस आदि ठीक होता है| यह लीवर की कई समस्याओ का उपचार करने में मददगार है|
 विधि:
एक आसन बिछाकर आराम से बैठ जाएँ, अपनी रीढ़ की हड्डी को एकदम सीधा रखे|
आपके हाथो को घुटनों पर रखें, इनका मुख आकाश की और होना चाहिए|
एक लंबी गहरी साँस अंदर लें|
अब साँस छोड़ते हुए अपने पेट को अंदर की ओर खींचे|



आप जितना हो सके अपने पेट को अन्दर खिचे, आपको इस प्रकार से पेट को अन्दर खीचना है की वह रीढ़ की हड्डी को छू ले|

जितना हो सके उतना ही करें, अपने शरीर के साथ ज्यादा जबरदस्ती ना करे|
जब आप अपने पेट की मासपेशियों को ढीला छोड़ेंगे, साँस अपने आप ही आपके फेफड़ों में पहुँच जाती है|
इस प्राणायाम के एक राउंड को पूरा करने के लिए 20 साँस छोड़े|
एक बारी खत्म होने के पश्चात, विश्राम करें| ऐसे दो सेट पुरे करे|
धनुरासन

धनुरासन को बो पोस भी कहा जाता है| यह आसन उन लोगो के लिए बहुत फायदेमंद है जो लोग फैटी लीवर रोग से पीड़ित है| यह आपके लीवर को ताकत देता है, उसे उत्तेजित करता है जिसके चलते शरीर में जमा वसा उर्जा में परिवर्तित हो जाता है और आपका शरीर उसे इस्तेमाल कर पाता है|
विधि:
यह आसन दिखने में मुश्किल लगता है लेकिन इसे लगातार करने से आप इसे करने में निपुण हो जायेंगे|
इसे करने के लिए सबसे पहले पेट के बल लेट जाए।
अब सांस छोड़ते हुए घुटनों को मोड़े तथा अपने हाथ से टखनों को पकड़ ले|



अब आपको सांस लेते हुए अपने सिर, चेस्ट एवं जांघो को ऊपर की और उठाना है|

यदि आप योग के लिए नए है तो जरुरी नहीं है की आप अपने शरीर को पूरी अच्छी तरह से ऊपर उठाले|
आप अपने शरीर के लचीलेपन के हिसाब से अपने शरीर को और ऊपर उठा सकते हैं।
आपको अपने शरीर के भार को पेट निचले हिस्से पर लेना है|
आपके पैरों के बीच की ज्यादा दुरी न रखे, जितना हो सके उसे पास पास रखे|
उसी मुद्रा में बने रहे और धीरे धीरे सांस ले और धीरे धीरे सांस छोड़े।
जब आपको सामान्य स्तिथि में आना हो तो लम्बी गहरी सांस छोड़ते हुए आप आ जाये|
इसे एक चक्र कहते है|
आपको एक दिन में 3 से 5 चक्र अपने क्षमता के अनुसार करना होगा|
इसके अलावा गोमुखासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन भी लीवर के लिए फायदेमंद है| लीवर को स्वस्थ रखने के लिए एक्सरसाइज भी करना चाहिए| एक्सरसाइज करने से पसीना निकलता है| पसीना निकलने से शरीर की सफाई होती और लिवर पर जोर कम पड़ता है।
विशिष्ट परामर्श-


यकृत,प्लीहा,आंतों के रोगों मे अचूक असर हर्बल औषधि "उदर रोग हर्बल " चिकित्सकीय  गुणों  के लिए प्रसिद्ध है|पेट के रोग,लीवर ,तिल्ली की बीमारियाँ ,पीलिया रोग,कब्ज  और गैस होना,सायटिका रोग ,मोटापा,भूख न लगना,मिचली होना ,जी घबराना ज्यादा शराब पीने से लीवर खराब होना इत्यादि रोगों मे प्रभावशाली  है|बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज के बाद भी  निराश रोगी  इस औषधि से ठीक हुए हैं| औषधि के लिए वैध्य दामोदर से 9826795656 पर संपर्क करें|









बहरेपन का योग से इलाज़//Yoga treatment for deafness


 

सुनने की क्षमता धीरे-धीरे कम होना बहरापन कहलाता है। कुछ लोग जन्म से ही बधिर होते हैं उनकी चिकित्सा संभव नहीं होती परंतु अधिक आयु के कारण, सर्दी-जुकाम सभी ऋतुओं में होने के कारण अथवा पेट के बल एक ही कान को बिस्तर से दबाकर सोने की आदत से धीरे-धीरे बहरापन आने की आशंका रहती है। कभी-कभी कान पर चोट लगने से भी बहरापन आने की आशंका होती है।

कान सुनने की क्षमता धीरे-धीरे खोने लगते हैं, जन्मजात तीन-चार प्रतिशत यह समस्या देखने में आती है। कानों के कम सुनने की क्षमता किसी भी आयु में हो सकती है। आजकल हेडफोन्स, मोबाइल, ऊँची आवाज में संगीत आदि से भी बहरापन आ रहा है। स्विमिंग पूल में या आसपास के व्यक्ति का संक्रमण लगने से सुनने की शक्ति कम होकर व्यक्ति बहरा हो सकता है। जल्दी से सर्दी-जुकाम का उपचार न करने से भी बहरापन हो सकता है।



  बहरेपन के लक्षणों में कान से कम सुनने वाले लोग स्वयं जोर से बोलने लगते हैं तथा दूसरों से कोई बात सुननी हो तो बहुत ही पास में पहुँचकर दूसरे व्यक्ति से बात करते हैं या ऊँची आवाज में टीवी सुनने की कोशिश करते हैं। बहुत से लोग भीड़ में कुछ भी सुनने की क्षमता खो देते हैं। कान में अनेक प्रकार की आवाज आने की शिकायत व्यक्ति करते हैं। कोई भी व्यक्ति सामान्य आवाज से बात करता है तब बहरा व्यक्ति क्या-क्या करते हुए दूसरी बात या दोहराता या फिर से बात को बोलने के लिए कहता है। कान में खुजली होने के अनेक कारण हैं जैसे एक ही करवट पर संपूर्ण रात्रि के समय सोना, ऊँचे तकियों पर सोना, पेट के बल कान को तकिए में दबाकर सोना, सर्दी-जुकाम का आदि होना, रक्त के प्रवाह को रोकने से कान की नसों में थक्के जमा होकर खुजली आती या कान बंद हो जाते हैं और आंतरिक कान में सूजन आकर सुनने की क्षमता कम होने लगती है।

निम्न योगाभ्यास करने से उम्र के अनुसार कान के सुनने की घटने वाली क्षमता को फिर से प्राप्त किया जा सकता हैः



ब्रह्ममुद्रा : 

कमर सीधी रखकर बैठें और गर्दन को ऊपर-नीचे १० बार चलाना, गर्दन को दाएँ-बाएँ १० बार चलाना और धीरे-धीरे गर्दन को गोल घुमाना १० बार सीधे और १० बार उल्टे, आँखें खुली रखकर इस मुद्रा को करें।
मार्जरासन : 
घुटने और हाथों के बल चौपाए की तरह गर्दन कमर ऊपर-नीचे १० बार चलाएँ, जितना अधिक ऊपर देख सके देखें और सुबह-शाम करें।
शशकासन : 



घुटनों को जमीन पर मोड़कर नमाज पढ़ने जैसे बैठकर सामने झुकें और दाढ़ी को जमीन से लगाएँ और हाथों को सामने खेंच कर रखें १०-१५ श्वास-प्रश्वास होने तक इस स्थिति में रहें।

भुजंगासन : 
पेट के बल लेटकर पैर मिलाकर लंबे रखें और कंधों के नीचे हथेली को जमा कर गर्दन, सिर व नाभी तक पेट ऊपर उठाएँ और १०-१५ श्वास-प्रश्वास करें फिर जमीन पर पहुँचकर आराम करें। ३ बार इसे दोहराएँ।



अर्धशलभासन : 
पेट के बल लेटे हुए पीछे से १-१ पैर १०-१० श्वास-प्रश्वास के लिए उठाएँ और ३-३ बार दोहराएँ, पैर घुटने से न मोड़ें।
उत्तानपादासन : 
पीठ के बल लेटकर दोनों पैर ४५ डिग्री पर अर्थात लेटे-लेटे बिना घुटने मोड़े ऊपर उठाएँ और १०-१५ श्वास-प्रश्वास करने तक ऊपर रोकें फिर धीरे-धीरे नीचे उतारें। ३ बार दोहराएँ।
शवासन : 
पीठ के बल शरीर ढीला छोड़ें, आँखें बंद कर श्वास दीर्घ रूप से १० बार करें और साधारण ३० श्वास करें और करवट से उठें।




भ्रामरी प्राणासन : 
   कमर सीधी करके बैठें, दोनों कानों को दोनों हाथों की तर्जनी उँगलियों से हल्के दबाव के साथ बंद करे। आँखें बंद कर लें और लंबी गहरी श्वास भीतर भरकर बारह श्वास नाक से निकालते हुए भँवरे की तरह आवाज जोर से करें, इतने जोर से करें कि मस्तिष्क, चेहरा और होंठों की मांसपेशियों में स्पंदन निर्माण हो सके। एक के बाद एक श्वास लेकर लगातार १० बार दोहराएँ। इससे कान की नसों में रक्त संचार बढ़कर और काम का परदा लोचदार होकर सुनने की क्षमता बढ़ती है। मन की एकाग्रता बढ़ती है और स्मरण शक्ति का विकास होने लगता है।
दृष्टिहीनों के भी है योग-
दृष्टिहीनों के लिए पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना भी एक महती समस्या है। चूंकि ये लोग मैदानी खेलकूद तथा दौड़ भाग नहीं कर सकते इसलिए शारीरिक गतिविधियों को बनाए रखने के लिए योग से बढ़कर कुछ और नहीं है। इससे इनके शरीर में स्फूर्ति बनी रहती र्है एवं चयापचय क्रिया भी दुरुस्त रहती है।
दृष्टिहीनों के लिए योगाभ्यास कठिन नहीं होता उन्हें आसन, प्राणायाम और ध्यान सहज ही सिद्ध हो जाते हैं।
दृष्टिबाधितों को योगासन ब्रेल लिपि में चित्र बनाकर समझाना ज्यादा आसान होता है। उनके पाचन संस्थान, श्वसन, रक्तसंचारण, निष्कासन आदि संस्थानों के क्रिया कलाप सुचारूरूप से काम करने लगते हैं।
दृष्टिबाधितों के लिए मुख्य रूप से ताड़ासन, त्रिकोण आसन, हस्तपादासन, उत्करासन, अग्निसार क्रिया, कंधे, गरदन का संचालन, ब्रह्ममुद्रा, मार्जरासन, शशकासन, पद्मासन, योगमुद्रा, भुजंगासन, शलभासन, धनुरासन, सर्वांगासन एवं शवासन के साथ नाड़ी शोधन, भ्रामरी प्राणायाम किया जा सकता है।