28.12.16

पार्किंसन रोग :लक्षण एवम उपचार //Parkinson's disease: symptoms and treatment


पार्किंसंस दिमाग से जुड़ी बीमारी है। इसमें दिमाग की कोशिकाएं बनना बंद हो जाती हैं। शुरुआती सालों में इसके लक्षण काफी धीमे होते हैं जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। विशेषज्ञ आम लक्षणों से इस बीमारी की पहचान करते हैं जिसमें कांपना, शारीरिक गतिविधियों का धीरे होना (ब्राडिकिनेसिया), मांसपेशियों में अकडऩ, पलकें न झपका पाना, बोलने व लिखने में दिक्कत होना शामिल हैं। यह बीमारी कुछ साल पहले तक बुजुर्गों में देखने को मिलती थी, आजकल युवाओं में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं।यह एक दिमागी बीमारी है इसमें व्यक्ति को कंपकंपी महसूस होती है साथ ही मांसपेशियों में कठोरता और धीमापन होने की शिकायत होती है | जानकारों कहते है कि यह दिमाग के हिस्से बेंसल गेंगिला में विकृति के चलते पैदा होती है और न्यूरोट्रांसमीटर डोपामीन में कमी के चलते पैदा होती है और आंकड़े बताते है कि दुनियाभर में 6.3 मिलियन लोग इस बीमारी से पीडित है और आपको बता दें वैसे तो यह बीमारी अमूमन 60 साल के बाद की उम्र में ही होती है और महिलाओं के मुकाबले पुरुषो को यह निशाना अधिक बनाती है 
प्रमुख लक्षण-
 हाथ-पैरों में कंपन
पार्किंसंस बीमारी का प्रमुख लक्षण हाथ-पैरों में कंपन होना है। लेकिन बीस प्रतिशत रोगियों में ये दिखाई नहीं देते। फोर्टीस अस्पताल की कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुषमा शर्मा के अनुसार, यह बीमारी शारीरिक व मानसिक रूप से रोगी को प्रभावित करती है। अक्सर डिप्रेशन, दिमागी रूप से ठीक न होना, चिंता व मानसिकता को इस बीमारी से जोड़कर देखा जाता है। इसके कारण अभी तक स्पष्ट नहीं हुए हैं लेकिन इसका कारण आनुवांशिक हो सकता है।
कीटनाशकों (Insecticide) के सम्पर्क में आने के कारण भी यह हो सकती है – एक पत्रिका में छपे लेख के अनुसार कई रोगी जो पार्किंसन बीमारी (parkinson disease )से ग्रस्त मिले उनमे से ज्यादा संख्या उन लोगो की थी जो कभी न कभी कीटनाशकों के साथ लम्बे समय तक सम्पर्क में रहे थे और अमेरिका की एक अकादमी ने इस बात का समर्थन भी किया है इसलिए तो हर जगह सलाह दी जाती है कि जब भी आप बाजार से कभी भी सब्जी या फल लेकर आते है तो उन्हें अच्छे से पानी में धो लेना आवश्यक है क्योंकि न धोने पर हम कीटनाशकों के सम्पर्क में आते है और हो सकता है हम भी आगे जाकर पार्किंसन बीमारी (parkinson disease ) का शिकार हो जाएँ हाँ ऐसा अगर संभव हो तो बेहतर है कि हम आर्गेनिक फल और सब्जियों का उपयोग करना शुरू कर दें जो कि समय और मांग के अनुसार अभी तो हमारे लिए महंगा होता है अगर हम एक मिडिल क्लास फॅमिली से बिलोंग करते है तो क्योंकि आमतौर पर आर्गेनिक फल सब्जियां बाजार भाव से महंगी मिलती है क्योंकि वो कंही अधिक शुद्ध और प्राकृतिक तरीके से पैदा की गयी होती है इसलिए उनकी पैदावार कम होती है फलस्वरूप वो तुलनात्मक रूप से महंगी भी होती है |



पार्किन्संस बीमारी को अक्सर डिप्रेशन या दिमागी रूप से ठीक न होने की स्थिति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस संदर्भ में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बीमारी से पीडि़त रोगी मानसिक रूप से विकलांग नहीं होते हंै। उन्हें समाज से अलग नहीं देखना चाहिए।
शुरुआती स्टेज पर डॉक्टर लक्षणों को मैनेज करने के लिए दवाओं का सहारा लेते है, लेकिन दवाओं के प्रभावी न होने और इनके साइड इफेक्ट के सामने आने पर अंत में डीप ब्रेन स्टीमुलेशन (डीबीएस) थेरेपी काफी कारगर साबित हुई है।
पार्किंसंस के लिए आयुर्वेदिक उपचार
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्‍योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।
दिमाग का टॉनिक ब्राह्मी
पार्किसन के लिए ब्राह्मी को वरदान माना जाता है। यह दिमाग के टॉनिक की तरह काम करती है। भारत में सदियों से कुछ चिकित्‍सक इसका उपयोग स्‍मृति वृद्धि के रूप में करते आ रहे हैं। मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के मेडिकल सेंटर के अध्‍ययन के अनुसार, ब्राह्मी मस्तिष्‍क में ब्‍लड सर्कुलेशन में सुधार करने के साथ मस्तिष्‍क को‍शिकाओं की रक्षा करती है। पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन के द्वारा किए एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ब्राह्मी के बीज का पाउडर पार्किंसंस के लिए बहुत बढि़या इलाज है। यह रोग को दूर करने और मस्तिष्क की नुकसान से रक्षा करने करने का दावा करती है।
लोकप्रिय जड़ी-बूटी काऊहेग (Cowhage)
भारत में लोकप्रिय जड़ी बूटी काऊहेग या कपिकछु देश भर में तराई के जंगलों की झाड़ि‍यों में पाया जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड मेडिकल सेंटर ने काऊहेग के बारे में बताते हुए कहा कि इसमें लेवोडोपा या एल-डोपा, दवा में मौजूद एल-डोपा की तुलना में पार्किसंस रोग के उपचार में बेहतर तरीके से काम करता है।
पार्किंसन रोग केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी के शरीर के अंग कंपन करते रहते हैं। पार्किंसन का आरम्भ आहिस्ता-आहिस्ता होता है। पता भी नहीं पड़ता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गड़बड़ है। लेकिन घबराइए नहीं क्‍योंकि आयुर्वेदिक की मदद से पार्किंसंस के प्राकृतिक उपचार में मदद मिलती है, जिससे बीमारी से छुटकारा पाकर आपका शरीर पूरी तरह स्‍वस्‍थ हो जाता है। यह एक ऐसा इलाज है जिसमें पूरे शरीर का इलाज किया जा सकता है। आयुर्वेदिक उपचार तथ्‍य पर आधारित होता है, जिसमें अधिकतर समस्‍याएं त्रिदोष में असंतुलन यानी कफ, वात और पित्त के कारण उत्‍पन्‍न होती है।
हल्दी का प्रयोग 
हल्‍दी एक ऐसा हर्ब है, जिसमें मौजूद स्‍वास्‍थ्‍य गुणों के कारण हम इसे कभी अनदेखा नहीं कर पाते। मिशिगन स्‍टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता बसीर अहमद भी इसके बहुत बड़े प्रशंसक है। उन्‍होंने एक ऐसी शोधकर्ताओं की टीम का नेत्तृव भी किया, जिन्‍होंने पाया कि हल्‍दी में मौजूद करक्यूमिन नामक तत्‍व पार्किंसंस रोग को दूर करने में मदद करता है। ऐसा वह इस रोग के लिए जिम्‍मेदार प्रोटीन को तोड़कर और इस प्रोटीन को एकत्र होने से रोकने के द्वारा करता है।
जिन्कगो बिलोबा
जिन्‍कगो बिलोबा को पार्किंसंस से ग्रस्‍त मरीजों के लिए एक लाभकारी जड़ी-बूटी माना जाता है। मेक्सिको में न्यूरोलॉजी और न्यूरोसर्जरी के राष्ट्रीय संस्थान में 2012 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, जिन्कगो पत्तियों के सत्‍त पार्किंसंस के रोगी के लिए फायदेमंद होता है।
दालचीनी से ईलाज
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भोजन बनाने में इस्तेमाल होने वाली दालचीनी
पार्किंसन के रोग को बढ़ने से रोकने में मददगार हो सकती है।
अमेरिका में रश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर यह पता लगाया है कि दालचीनी का इस्तेमाल इस बीमारी के दौरान बायोकेमिकल, कोशिकीय और संरचनात्मक परिवर्तनों को बदल सकता है। इस अध्ययन के दौरान दालचीनी के इस्तेमाल से चूहे के दिमाग में इस तरह के परिवर्तन हुए।
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता कलिपदा पहन और रश में न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर डेविस ने कहा, सदियों से दालचीनी का इस्तेमाल व्यापक रूप से एक मसाले के रूप में दुनिया भर में होता रहा है। उन्होंने कहा, पार्किंसन से ग्रस्त रोगियों में इस बीमारी को बढ़ने से रोकने के लिए संभवत यह सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक हो सकता है।11 अप्रैल को हम वर्ल्ड पार्किंसंस डिज़ीज़ डे के तौर पर भी जानते हैं। आँकड़े बताते हैं कि भारत में पार्किंसन के क़रीब 25 फीसदी मरीज़ 40 साल से कम उम्र के हैं, इसलिए इस रोग के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है।
आमतौर पर पार्किंसन की बीमारी 50 की उम्र से अधिक के लोगों में ही होती है, लेकिन एम्स के मुताबिक, भारत में 25% मामलों में यह 40 से कम उम्र के लोगों में देखी गई है।
   अगर रास्ता चलते हुए आपको झटका-सा लगता है और आप अपना बैलेंस नहीं बना पाते। आप आराम से बैठे हैं और हाथों में स्टिफनेस महसूस करने लगते हैं या फिर अचानक ही आपकी आवाज भी धीमी होने लगती है, तो आपको फिक्रमंद होना चाहिए। ये लक्षण पार्किंसन के हो सकते हैं। हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो, पार्किंसन में आदमी थोड़ा स्लो हो जाता है, लेकिन कोई भारी खतरा नहीं होता है। सही इलाज और नियमित व्यायाम काफ़ी कारगर साबित होते हैं।
    विशेषज्ञ बताते हैं कि यह अजीब किस्म की बीमारी हजार में से किसी एक को ही हो सकती है। दरअसल, इसमें शरीर को जितनी डोपामिन की जरूरत है, उससे कम बनने लगता है। इसकी वजह से 80% सेल्स का जब लॉस हो जाता है, तब जाकर बीमारी का पहला सिंपटम दिखाई देता है। जाहिर है कि जब लक्षण ही देर से पता लगेंगे, तो समस्या स्वाभाविक है।




न्यूरोलोजिस्ट्स की मानें तो इस रोग के लिए सबसे बड़ी समस्या, लोगों में जागरूकता की कमी है। मरीज़ जब किसी फिजिशियन के पास स्पीड के स्लो होने जैसी प्रॉब्लम लेकर जाते हैं, तो उन्हें विटामिंस लेने का सुझाव दे दिया जाता है जबकि विटामिन और प्रोटीन की डोज इस बीमारी में दवाइयों के प्रभाव को कम करता है। इसलिए जो न्यूरॉलॉजिस्ट पार्किंसन के इलाज का विशेषज्ञ हो, वही सही ट्रीटमेंट दे सकता है।
डॉक्टर्स के मुताबिक अगर आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हैं, तो पार्किंसन का सामना अच्छी तरह से कर सकते हैं। ऐसा देखा गया है कि, डिप्रेशन और एंग्जाइटी का भी इसमें निगेटिव रोल होता है। कई रोगियों में पार्किंसन के अटैक से पहले सूंघने की क्षमता खत्म हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है कि यह रोग होने से 5-10 साल पहले लोगों को नींद में अधिक बड़बड़ाने या हाथ-पैर चलाने की शिकायत होती है।
पार्किंसन की जाँच हर जगह नहीं हो सकती। इसे आप न्यूरोलॉजिस्ट से ही करा सकते हैं। जितनी जल्दी मरीज़ का इलाज शुरू हो जाए, असर भी उसी के अनुसार जल्दी होता है। ज़रूरी है कि इलाज के दौरान दवाइयों में लापरवाही बिल्कुल न की जाए । पार्किंसन के रोगी को योग और व्यायाम किसी विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए।






24.12.16

ज्यादा पसीना होना:कारण और उपचार:// Excess sweating treatment


   

गर्मियों के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक है। और पसीना आना शरीर के लिए सेहतमंद भी है। लेकिन जिन लोगों को बहुत अधिक पसीना आता है उन्हें डीहाइड्रेशन या नमक की कमी जैसी दिक्कतें हो सकती है। जी हां बहुत ज्यादा पसीना आना वैसे तो कोई बीमारी नहीं, लेकिन कभी-कभी इसके पीछे स्वेट ग्लैंड में गड़बड़ी, स्ट्रेस, हार्मोनल बदलाव, मसालेदार डाइट, अधिक दवाएं, मौसम और मोटापे जैसे कारण हो सकते हैं। बहुत अधिक पसीना आने की स्थिति को हाइपरहाइड्रोसिस भी कहा जाता है।

हायपरहाइड्रोसिस से हमारी आबादी का दो से तीन प्रतिशत हिस्सा प्रभावित है
क्यों आता है पसीना
हमें पसीना इसलिए आता है ताकि हमारे शरीर का तापमान नियंत्रित रहे। क्योंकि हमारे शरीर का तापमान 98.6 डिग्री फैरनहाइट के आसपास ही रहना चाहिए। इसे नियंत्रण में रखने के लिए हमारे शरीर में कोई 25 लाख पसीने की ग्रंथियां हैं। ये ग्रंथियां एयर कंडीशनिंग का काम करती हैं। जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है (चाहे वह बाहरी कारणों से हो या खान-पान की वजह से), तो शरीर को ठंडा करने के लिए इन ग्रंथियों से पसीने की बूंदें निकलना शुरू हो जाती हैं। जब पसीना हवा में सूखता है तो ठंडक पैदा होती है और हमारे शरीर का तापमान कम हो जाता है।
पसीना ज्यादा आने पर बचने के घरेलु उपाय-
*साफ-सफाई का ध्यान रखें
पसीना अधिक आने की समस्या होने पर साफ सफाई का खास खयाल रखें। इससे पसीने को रोकने में बहुत मदद मिलती है। इससे पर्सनल हाइजीन होती है और आपकी त्‍वचा भी संक्रमण और बीमारी से बचती है। जब भी कोई कपड़ा पहने तो उससे पहले अपने अंडरआर्म को सुखा लें। इससे कम पसीना आएगा। ठीक प्रकार से नहाएं और गर्मियों के मौसम में रोजाना दो बार नहाएं।

    *जैतून का तेल
    अन्य तेलों से ज्यादा गुणकारी होता है, यह पसीने को कम करता है। यह पाचन तंत्र को ठीक करता है जिससे शरीर सही काम करता है। इसमें एंटी-ओक्सीडेंट्स होते हैं जो कि पसीना पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नियंत्रित रखते हैं। इसलिए जैतून के तेल को अपने रोजाना के खाने में शामिल करें। साथ ही सब्जियों को भी जैतून के तेल में पकाए।
    .* विटामिन बी
    आपके शरीर में विटामिन बी और प्रोटीन का संतुलन सही हो तो शरीर सही कार्य करता है। विटामिन बी शरीर के लिए ईंधन की तरह काम करता है जिससे आवश्यक मेटाबोलिक क्रियाएँ और शरीर का नर्वस तंत्र ठीक तरह काम करता है। यदि बिना ज्यादा वर्कआउट के ही आपको पसीने ज्यादा आते है तो अपने आहार में विटामिन बी की चीजें शामिल करें। आप रोजाना इसकी एक टेबलेट भी ले सकते हैं। विटामिन बी की ज़रूरत को पूरा करने के लिए सब्जियाँ, प्रोटीन और अनाज ले।




    सब्जियाँ
    संतुलित आहार पसीने को नियंत्रित करने में कारगर हैं। सब्जियों में पानी और कैल्शियम होने के कारण यह पसीने जैसी शर्म की स्थिति को पैदा नहीं होने देती। सब्जियों के सेवन से ना केवल पसीना नियंत्रित होता है बल्कि ये आपको स्लिम रखती हैं, पाचन बढ़ता है और शरीर में नमी रहती है।
    *केले
    केले में पोटेशियम की अधिकता होती है। यह आपके शरीर को हाइड्रेट रखता है और पोटेशियम की कमी को पूरी करता है। केला आपके पाचन को ठीक रखता है, आपको खुश रखता है और अधिक पसीने को दूर रखता है।
    * ग्रीन टी
    ग्रीन टी वजन कम करने में मददगार है और साथ ही यह शरीर के नर्वस सिस्टम को शांत रखती है जिससे पसीना कम आता है। पसीने की परेशानी को दूर रखने के लिए वर्कआउट से पहले ग्रीन टी का सेवन करें।
    .*दही
    दही में कैल्शियम की अधिकता होती है और यह पसीने को कम करता है। यह आपके शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है जिससे पसीना कम आता है। यदि आप दही नहीं लेते हैं तो ऐसे खादय पदार्थ ले सकते हैं जिनमें पोटेशियम और कैल्शियम की अधिकता होती है।
    डाइट का खयाल रखें-
    टमाटर का जूस लें। प्रतिदिन एक बार एक कप टमाटर का जूस लेने से अधिक पसीने आने की समस्या से राहत मिलती है। इसके अलावा ग्रीन टी पियें, इससे न सिर्फ आपकी सेहत बेहतर रहहती है बल्कि यह पसीने को नियंत्रित करने में भी मददगार साबित होती है। हां पानी अधिक से अधिक पिएं। ताकि पसीने की दुर्गंध से आपको छुटकारा मिल सके और शरीर भी हाइड्रेट रहे। ध्यार रहे कि स्ट्राबेरी, अंगूर और बादाम आदि में सिलिकॉन अधिक मात्रा में होता है जिससे पसीना अधिक बनता है। कोशिश करें कि डाइट में इन्हें कम ही लें।
    *पसीने के साथ शरीर के अंदर मौजूद बहुत सारी नुकसानदायक चीजें भी बाहर निकलती रहती हैं। इसलिए पसीना निकलना भी बहुत जरूरी है लेकिन परेशानी तब बढ़ जाती है जब ये बहुत ही ज्यादा मात्रा में निकलने लगता है।
    *रोजाना के कामकाज में पसीने के साथ डिहाइड्रेशन की भी शिकायत होने लगती है।हाथ, पैरों में बहुत ज्यादा पसीने की प्रॉब्लम हो रही हो, तो ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि ये प्राइमरी या फोकल हाइपरहाइड्रोसिस भी हो सकता है। इससे ज्यादातर लोग प्रभावित होते हैं। लेकिन उन्हें पता नहीं होता कि ये किसी प्रकार की कोई बीमारी है। कई बार ज्यादा दवाइयां खाने, किसी प्रकार के इलाज के कारण भी पसीने की समस्या शुरू हो जाती है जिसे सेकेंडरी हाइपरहाइड्रोसिस कहा जाता है। इसमें मौसम ठंडा रहने पर भी पसीना निकलता ही रहता है।




    हृदय संबंधी समस्या का संकेत-
    बिना किसी काम और एक्‍सरसाइज के सामान्‍य से अधिक पसीना आना हृदय की समस्याओं की पूर्व चेतावनी संकेत हो सकते हैं। दरअसल अवरुद्ध धमनियों के माध्यम से खून को दिल तक पंप करने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जिससे शरीर को अतिरिक्त तनाव में शरीर के तापमान को सामान्‍य बनाए रखने के लिए अधिक पसीना आता है। 
    *जिन लोगों को पसीना ज्यादा आता है उन लोगों को साफ सफाई का कुछ ज्यादा ही ध्यान रखना पड़ता है अगर आपको भी पसीना ज्यादा आता है तो आप अपने बदन की साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें तभी आप अधिक पसीना आने की समस्या से छुटकारा पा सकते हैं अगर हो सके तो गर्मियों के दिनों में आप कम से कम 2 बार जरूर नहाने और आपके नहाने का जो पानी है उसमें एक चुटकी बेकिंग सोडा डालकर भी ज्यादा पसीना आने की समस्या को कम कर सकते हैं.
    *पसीना ज्यादा आता है उन्हें दिन में एक बार रोजाना टमाटर का जूस पी लेना चाहिए ऐसा करने से भी आपके शरीर में पसीना आना कम हो जाता है.
    *उसके अलावा एक उपाय और है जिन लोगों को बहुत अधिक पसीना आता है उन्हें चाय या कॉफी छोड़ देनी चाहिए और उसकी जगह ग्रीन टी का इस्तेमाल कीजिए ग्रीन टी पीने से पसीने आने की शिकायत ना के बराबर ही हो जाती है.
    *जिनको ज्यादा पसीना आता है उन्हें पानी ज्यादा पीना चाहिए क्योंकि पसीना ज्यादा आएगा तो आपके शरीर में दुर्गंध भी ज्यादा होगी और अगर आप ज्यादा पानी पिएंगे तो यह दुर्गंध कम हो जाएगी.
    *जिन लोगों को ज्यादा पसीना आता है उन लोगों को स्ट्रोबेरी, बादाम या अंगूर जैसी चीजें नहीं खाने चाहिए क्योंकि स्ट्रॉबेरी, अंगूर और बादाम में सिलिकॉन अधिक मात्रा में होता है जोकि पसीना ज्यादा आने में सहायक होता है अगर आप यह बंद कर देंगे तो भी आप का पसीना आना कम हो सकता है.
    *जिन व्यक्तियों या महिलाओं को पसीना ज्यादा आने की शिकायत हो ऐसे लोगों को फंगल इंफेक्शन होने की संभावना अधिक बनी रहती है। आप इस दिक्कत से इस तरह बच सकते हैं, अपने बॉडी की सफाई पर विशेष ध्यान देना और जितना सम्भव हो आप सिर्फ सूती कपडे ही पहने क्योंकि रेशमी या सिंथेटिक कपडे आपका पसीना नहीं सोख पाते हैं और इस वजह से आपको फंगल स्किन या चार्म रोग होने की संभावना और ज़्यादा बढ़ जाती हैं
    *पसीना जिनको ज्यादा आता हूं उनको कुछ तेज पत्ते लाकर मैं पानी में बहुत अच्छी तरह से उबाल लेना चाहिए और अच्छे से उबाल आ जाने पर इस पानी को ठंडा होने के बाद यह पानी उन जगहों पर लगाएं जिस जगह से ज्यादा पसीना आता है. जैसे बगलों में, पढ़ पर, या रान पर.
    *शरीर में जिन हिस्सों में ज्यादा पसीना आता है उन्हें कच्चे आलू की स्लाइस को काटकर उन हिस्सों पर मलें ऐसा करने पर आप को पसीना आना कम हो जाएगा.
    * शर्ट के बगल वाले हिस्से को पसीने के निशान से बचाने के लिए स्वेट पैड्स का इस्तेमाल करना चाहिए।






    * डियो, स्प्रे के बजाय रोलॉन या टेलकम पाउडर का इस्तेमाल ज्यादा अच्छा रहता है, लेकिन इसके ज्यादा प्रयोग करने से बचें क्योंकि ये स्किन को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
    *पसीने की अधिकता से सिर की त्वचा में दाने निकल आते हैं जिसे दूर करने के लिए माइल्ड शैंपू बहुत ही कारगर होता है।
    * हमेशा खुश रहने की कोशिश करें, क्योंकि कई बार ज्यादा पसीना निकलने का कारण तनाव और गुस्सा भी होता है।
    * एंटी-बैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल करें। जितनी बार नहाएं उतनी बार इसका प्रयोग करें। नहाने के पानी में यूडी कोलन की कुछ बूंदें डालना भी फायदेमंद होता है।
    *पसीने की वजह से पैरों में फंगल इन्फेक्शन हो सकता है। इससे बचने के लिए उंगलियों के बीच एंटी फंगल पाउडर छिड़कने के बाद ही मोजे और जूते पहनें।
    * इस मौसम में कुछ लोग मोजे पहनना छोड़ देते हैं। ऐसा करना ठीक नहीं, इससे पैरों में एलर्जी हो सकती है।
    * तलवों से अधिक पसीना निकलता हो तो इससे बचने के लिए नहाने से पहले, पानी से भरे टब में दो चम्मच फिटकरी पाउडर डालकर उसमें दो मिनट तक पैरों को डुबोकर रखना चाहिए।
    *गर्मी के मौसम में बगल से सबसे ज्यादा पसीने की प्रॉब्लम होती है। तो बाहर निकलने से पहले कुछ मिनटों तक शरीर के इस हिस्से पर बर्फ रखना फायदेमंद होता है। इससे ज्यादा पसीना नहीं निकलता।







    22.12.16

    डकार आने के कारण और घरेलू उपचार

      

      खाना खाने के बाद डकार आना ठीक माना जाता है। लेकिन जब यह बार-बार आने लगे तो यह एक समस्या बन सकती है जो आपको तकलीफ देती है। पेट के अंदर की गैस को बाहार निकालने का प्राकृतिक तरीका है डकार। यदि पेट के अंदर की गैस डकार के जरिए बाहार न आए तो यह कई पेरशानी पैदा करती है जैसे पेट में दर्द और पेट मे जलन आदि। यदि डकार अधिक आने लगे तो कुछ सरल उपायों को आप अजमाकर इससे तुरंत राहत पा सकते हैं। आइये जानते हैं डकार दूर करने के उपाय।
    दही या लस्सी-
    दही में मौजूद बेक्टीरिया आंतों और पेट से जुड़ी हुई हर तरह की दिक्कतों को दूर करते हैं। डकार आने पर आप लस्सी या छाछ भी पी सकते हैं।दही एक आसान घरेलू नुस्खा है और यह एक प्रभावी नुस्खा है जो आपको डकार की समस्या से बचने में मदद करता है। पेट की समस्या का उपचार करने के लिए अपने रोजाना के खानपान में दही को शामिल करें। दही में जीवित बैक्टीरिया (bacteria) होते हैं जो पेट की समस्याओं से आपको निजात दिलाते हैं और आपके पेट में अच्छे बैक्टीरिया का सृजन भी करते हैं। दही का प्रयोग दूध और दुग्ध उत्पादों के स्थान पर किया जा सकता है जो कि एक अच्छी बात है, क्योंकि दुग्ध उत्पादों से डकार में वृद्धि होती है। आपके लिए यही अच्छा होगा कि छाछ में दही को मिश्रित कर लें। छाछ का प्रयोग भी डकार आने से रोकने के लिए किया जाता है। पानी के साथ दही का मिश्रण करें और इन दोनों को अच्छे से मिलाएं। इसमें थोड़ा सा जीरा मिलाएं जिससे पेट का स्वास्थ्य बना रहेगा और डकार भी नहीं आएगी।
    *पपीते में पपेन नामक महत्वपूर्ण एंज़ाइम पाया जाता है जो आपके पाचन तंत्र को अच्छी स्थिति में रखता है। यह प्राय: उन व्यक्तियों द्वारा उपभोग में लाया जाता है जो अपनी त्वचा की देखभाल करते हैं लेकिन यह पाचन और डकार को ठीक करने की एक दवा है।
    बेकिंग सोडा और नींबू का प्रयोग- यदि डकार से ज्यादा ही दिक्कत बन गई हो तो आप इसको दूर करने के लिए दो गिलास पानी में एक चौथाई बेकिंग सोड़ा और एक छोटी चम्मच नींबू का रस को मिलाकर इसे अच्छे से घोलें और तुरंत इसे पी जाएं। ये उपाय थोडी ही देर में डकार को खत्म कर देगा।
    *काला जीरा- अधिक या ज्यादा डकार आने पर काला जीरा का सेवन करें। क्योंकि काला जीरा पेट और पाचन तंत्र को ठीक रखता है जिससे डकार की समस्या पल भर में दूर हो जाती है।
    *मेथी के हरे पत्ते उबालकर, दही में रायता बनाकर सुबह और दोपहर में खाने से खट्टी डकारे, अपच, गैस और आंव में लाभ होता है।
    *सौंफ के बीजों में पेट को अकड़ से छुटकारा दिलाने वाले गुण होते हैं। यह आपके हाजमे की प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है, जिससे आपको व्यर्थ की परेशानियों से गुज़रना नहीं पड़ता। तनावमुक्त रहने और रोजाना व्यायाम करने से भी मरोड़ों की समस्या हल हो जाती है। कार्मिनेटिव (Carminative) भ पेट की जमी हुई गैस को निकालने का एक बेहतरीन तरीका है। यह पेट की सूजन को दूर करने में भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक कप उबला पानी लेकर इसमें 1 चम्मच अच्छे से पिसे हुए सौंफ के बीजों का मिश्रण करें। इसे 10 से 15 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर इस मिश्रण को छान लें। इस मिश्रण का सेवन हर भोजन के पहले और बाद में करें। इससे पेट की गैस तेज़ी से बाहर निकलती है।
    *दालचीनी बेहतरीन प्राकृतिक नुस्खा है। यह पेट की समस्याओं को दूर करता है और आपके हाजमे को दुरुस्त करता है। यह आपको डकार और पेट में गैस की समस्याओं से भी छुटकारा दिलाता है। अपने द्वारा बनाई जा रही सब्जियों में भुनी हुई दालचीनी अवश्य डालें। आप चावल पका लेने से पहले इसमें भी दालचीनी भी डाल सकते हैं। इससे गैस की समस्या से आपका पीछा छूटता है। वैकल्पिक तौर पर दिन में 2 से 3 बार दालचीनी चबाएं। इससे भी गैस की परेशानी से निजात प्राप्त होती है। वैकल्पिक तौर पर चाय बनाएं और इसमें थोड़ी सी दालचीनी मिलाएं। इसमें थोड़ा सा ताज़ा अदरक भी मिश्रित करें। उबलते हुए पानी में एक चम्मच सौंफ डालें। इन्हें कुछ देर तक उबलने दें। इसके बाद इसे थोड़ा सा ठंडा होने दें और हल्की गर्म अवस्था में इसे पियें। इसका सेवन दिन में कई बार करने से पेट में गैस की समस्या से छुटकारा प्राप्त होता है।
    *नौसादर, कालीमिर्च, 5 ग्राम इलायची दाना, 10 ग्राम सतपोदीना पीस लें, इसे आधा ग्राम लेकर प्रतिदिन 3 बार खुराक के रूप में पानी के साथ लेने पर खट्टी डकारे, बदहजमी, प्यास का अधिक लगना, पेट में दर्द, जी मिचलाना तथा छाती में जलन आदि रोगों से छुटकारा मिलता है।
    *बिजौरे नींबू की जड़, अनार की जड़ और केशर पानी में घोटकर रोगी को पिलाने से डकार और जुलाब बंद हो जाते हैं।
    *हर्बल चाय- यदि आप नियमित रूप से हर्बल चाय पीते हैं तो इससे आपको अधिक डकार की समस्या नहीं आती है। हर्बल चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट पेट की गैस को कम करते हैं। इसलिए खाना खाने के बाद हर्बल चाय का सेवन कर सकते हैं।









    20.12.16

    सीताफल के बेमिसाल फायदे, आप जरूर जानना चाहेंगे,sitafal fayde


    सीताफल स्टॉबेरी की तरह एक फल होता है जो कि हरे रंग मेंं होता है और स्ट्रॉबेरी से बड़ा होता है. यह तासीर मेंं ठंडा होने की वजह से भी इसको सर्दियों के मौसम मेंं खाया जाता है. सीताफल हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है. इसके इस्तेमाल से हृदय, रक्त चाप, मधुमेंह, पाचन, एनीमिया, कैंसर जैसी गंभीर रोगों का इलाज किया जा सकता है. 
     आज के जमाने  में बाल सफेद होना, झडऩा या गंजापन एक आम बीमारी बन चुका है। इस समस्या से दुनिया में अधिकतर लोग पीड़ित हैं।
    सीता फल के सेवन से बहुत सारे फायदे होते हैं। यहां हम आपको बता रहे हैं सीताफल के सेवन से होने वाले लाभो के बारे में जिनको आप इस फल के सेवन से प्राप्त कर सकते है |
    औषधि की तरह काम करता है ये सीताफल |

    दिल के लिए

    सीताफल मेंं मैग्नीशियम की मात्रा अच्छी आती है जिसकी वजह से यह हमारे हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने और तंत्रिका तंत्र को रिलैक्स करने मेंं मदद करता है. जिसकी वजह से दिल के रोगों की संभावनाओं को कम किया जा सकता है. इसके अलावा इसमेंं विटामिन B3, विटामिन B6 और इस तरह के कई अलग-अलग पोषक तत्व पाए जाते हैं जो कि हमारे शरीर मेंं एमिनो एसिड के स्तर को ठीक रखने मेंं मदद करते हैं.


    गंजेपन से छुटकारा पाने के लिए -

     सीताफल के बीजों को बकरी के दूध के साथ पीसकर लगाने से सिर के उड़े हुए बाल भी फिर से उग आते हैं।

    हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए

    आज के खानपान की वजह से बहुत से लोगों मेंं तनाव और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो गई है. हाई ब्लड प्रेशर की समस्या बहुत ही गंभीर समस्या है इसकी वजह से हृदयघात जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है. सीताफल मेंं मैग्नीशियम और पोटेशियम की मात्रा ज्यादा होती है जो कि हमारे दिल को स्वस्थ बनाए रखने और इसके अलावा हमारे प्रणाली को स्वस्थ रखने मेंं मदद करती है.


    कच्चा सीताफल खाने से अतिसार और पेचिश में फायदा मिलता है। कच्चे सीताफल को काटकर सुखा दें और पीसकर रोगी को खिलाएं। इसके कुछ दिन के सेवन से ही डायरिया बिलकुल सही हो जाएगा।
    सीताफल एक बड़ा ही स्वादिष्ट फल है जिसकी खूबियों के बारे में आयुर्वेद में भी बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि सीता ने वनवास के समय श्रीराम को यह भेंट स्वरूव दिया  था। तभी से इस फल का नाम सीताफल पड़ा।
    सीताफल सिर्फ फल नहीं, बल्कि एक दवा भी है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जो लोग शरीर से दुबले पतले होते हैं उन्हें सीताफल का सेवन जरूर करना चाहिए। सीताफल खाने से शरीर की दुर्बलता तो दूर होती ही है साथ ही पुरुषत्व को बढ़ाने में भी यह रामबाण की तरह काम करता है।


    मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए-

    सीताफल खाने से शरीर की दुर्बलता, थकान दूर होकर मांस-पेशियां मजबूत होती है।
    *आयुर्वेद के अनुसार सीताफल शरीर को शीतलता पहुंचाता है। कफ एवं वीर्यवर्धक, फल पित्तशामक, उल्टी रोकने वाला, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, तृषाशामक,, वात दोष शामक ,मांस एवं रक्त वर्धक ओर हृदय के लिए लाभदायी है।

    दुर्बलता को दूर करने के लिए -

    सीताफल दवा का काम भी करता है। इस फल को खाने से दुर्बलता दूर हो जाती है और यह पुरुषत्व  को बढ़ाने में रामबाण है

    दिल के लिए

    सीताफल मेंं मैग्नीशियम की मात्रा अच्छी आती है जिसकी वजह से यह हमारे हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने और तंत्रिका तंत्र को रिलैक्स करने मेंं मदद करता है. जिसकी वजह से दिल के रोगों की संभावनाओं को कम किया जा सकता है. इसके अलावा इसमेंं विटामिन B3, विटामिन B6 और इस तरह के कई अलग-अलग पोषक तत्व पाए जाते हैं जो कि हमारे शरीर मेंं एमिनो एसिड के स्तर को ठीक रखने मेंं मदद करते हैं.

    हड्डियों को मजबूत करने के लिए

    सीताफल में कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा अच्छी पाई जाती है जिसकी वजह से हमारे हड्डियों के विकास के लिए बहुत ही फायदेमंद है. अगर सीताफल का नियमित सेवन किया जाए तो हड्डियों से जुड़ी बीमारियों को दूर किया जा सकता है.

    खून की कमी को पूरा करता है

    जिन लोगों को एनीमिया या खून की कमी जैसी समस्या है उनको सीताफल का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए. क्योंकि यह बीमारी शरीर मेंं आयरन की वजह से होती है और सीताफल का इस्तेमाल करने से हमारे शरीर मेंं आयरन की मात्रा सही हो जाती है और हमेंं एनीमिया जैसे लक्षणों से छुटकारा मिल जाता है.

    पाचन में लाभदायक

    सीताफल मेंं फाइबर की मात्रा ज्यादा होती है जिसकी वजह से यह हमारे पाचन तंत्र को मजबूत करने मेंं हेल्प करता है. इसके साथ साथ ही यह हमारे शरीर मेंं कार्बोहाइड्रेट की आवश्यकता की भी पूर्ति करता है.

    हाई ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए

    आज के खानपान की वजह से बहुत से लोगों मेंं तनाव और हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो गई है. हाई ब्लड प्रेशर की समस्या बहुत ही गंभीर समस्या है इसकी वजह से हृदयघात जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है. सीताफल मेंं मैग्नीशियम और पोटेशियम की मात्रा ज्यादा होती है जो कि हमारे दिल को स्वस्थ बनाए रखने और इसके अलावा हमारे प्रणाली को स्वस्थ रखने मेंं मदद करती है


    सीताफल एक मीठा फल है जिसमें कैलोरी काफी मात्रा में होती है। यह फल आसानी से पचने वाला होने समेत पाचक और अल्सर तथा एसिडटी में लाभकारी है।

    कोलेस्ट्रोल को कम करने के लिए

    हमारे शरीर मेंं कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अगर सही है तो यह हमारे शरीर के लिए अच्छा होता है लेकिन अगर अधिक मात्रा मेंं कोलेस्ट्रोल हमारे शरीर मेंं हो तो यह हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है और हमेंं कुछ गंभीर बीमारियां हो सकती है. सीताफल मेंं नियासिन सही मात्रा मेंं होता है जो कि हमारे अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने मेंं मदद करता है.


    सीताफल के पत्तों को पीस कर फोड़ों पर लगाने से वो ठीक हो जाते हैं।

    सिर को जुओं से मुक्त करने के लिए सीताफल- 

    सीताफल के बीजों को बारीक पीस कर रात को सिर में लगा लें और किसी मोटे कपड़े से सिर को अच्छी तरह बांध कर सो जाएं। इससे जुएं मर जाती हैं।

    डायबिटीज मेंं फायदेमंद

    जिन लोगों को डायबिटीज की समस्या है उनको सीताफल का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि इसमेंं फाइबर की मात्रा होने के साथ-साथ कारण हो कार्ब्स की मात्रा मेंं सही होती है जिसके इस्तेमाल से आप मधुमेह जैसी समस्याओं को कम कर सकते हैं

    गर्भावस्था के दौरान सीताफल का उपयोग

    सीताफल मेंं फोलेट की मात्रा अच्छी होती है जो कि गर्भावस्था के दौरान होने वाली समस्याओं की संभावनाओं को कम करने मेंं मदद करता है. इसका इस्तेमाल गर्भावस्था के दौरान किया जाए तो गर्भपात की संभावनाएं कम हो जाती है.





    2.12.16

    सर्दी मे छुहारा दूध के साथ खाने के नायाब फायदे,chuhare ke fayde




    * सोते समय 1 छुहारा दूध में उबालकर खा लेते हैं और दूध को पी लेते हैं इसके सेवन के 2 घंटे बाद पानी न पिये। ऐसा करने से आवाज साफ हो जाएगी|
    *सुबह-शाम 3 छुहारे खाकर गर्म पानी पियें। छुहारे सख्त होने से खाना सम्भव न हो तो दूध में उबालकर ले सकते हैं। छुहारे रोजाना खाते रहने से बवासीर, स्नायुविक दुर्बलता, तथा रक्तसंचरण ठीक होता है। सुबह के समय 2 छुहारे पानी में भिगोकर रात को इन्हें चबा-चबाकर खाएं। भोजन कम मात्रा में करें या रात को 2 छुहारे उबालकर भी ले सकते हैं। इससे कब्ज दूर हो जाती है|
    * रोजाना 2 से 4 छुहारा मिश्री मिले हुए दूध में उबालकर गुठली हटाकर छुहारा खाने के बाद वहीं दूध पीने से बहुत लाभ होता है। इससे शरीर में ताकत आती है तथा बलगम निकल जाता है जिससे श्वास रोग (दमा) में राहत मिलती है|
    * छुहारे के पेड़ से प्राप्त गोंद को 3 ग्राम से लेकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम चाटने से अतिसार (दस्त) में आराम मिलता है-
    * 2 से 4 छुहारों को गाय के दूध में उबाल लें। उबल जाने पर छुहारे निकालकर खायें तथा बचे हुए दूध में मिश्री मिलाकर पीयें। रोजाना सुबह-शाम इसका सेवन करने से मसूढ़ों से खून व पीव का निकलना बंद हो जाता है|
    * छुहारे की गुठली और ऊंटकटारे की जड़ की छाल का चूर्ण खाने से अग्निमान्द्यता (भूख का न लगना) में आराम मिलता है|
    * गुठली निकालकर छुहारे के टुकड़े दिन में 8-10 बार चूसें। कम से कम 6 महीने तक इसका सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है|
    * 2-4 छुहारों को दूध में डालकर ऊपर से मिश्री मिलाकर दूध को उबाल दें गुठली हटाकर खाने से और दूध को पी लेने से रक्तपित्त में लाभ होता है|
    * छूहारा बराबर रूप से दूध में उबालकर खाने से वीर्य बढ़ता है|
    * 2 छुहारों और मिश्री को दूध में डालकर उबालें और गर्म हो जाने पर उसकी गुठली को निकालकर छुहारे को हल्के गर्म दूध के साथ लेने से बुद्धि का विकास होता है|



    * छुहारे को जलाकर राख बनाकर मक्खन के साथ मिलाकर घाव पर लगाने से उपदंश में बहुत लाभ मिलता है|
    * 2 या 3 छुहारे रोजाना दूध में उबालकर खाने और दूध पीने से वीर्य की कमी से होने वाला सिर का चकराना ठीक हो जाता है|
    *छुहारा खाने से खून साफ हो जाता है और त्वचा के रोग दूर हो जाते हैं|
    * 2 छुहारे रात को 300 मिलीलीटर दूध में उबालकर खाने और दूध पीने से निम्न रक्तचाप (लो ब्लड प्रेशर) सामान्य हो जाता है|
    * सिर दर्द होने पर छुहारे की गुठली को पानी में घिसकर माथे पर लेप की तरह लगाने से सिर का दर्द दूर हो जाता है|
    *अगर बालक को दस्त कराना हो तो रात को छुहारों को पानी में भिगो दें। सबेरे छुहारों को पानी में मसलकर निचोड़ लें और छुहारे को फेंक दें। उसके बाद वही पानी बच्चे को पिलायें। इससे दस्त साफ होगा। अथवा थोड़े से गुलाब के फूल और चीनी खिलाकर ऊपर से पानी पिला दें। इससे भी दस्त साफ होगा|
    * अगर बच्चा कमजोर हो तो उसे उम्र के अनुसार 6 ग्राम से 30 ग्राम तक छुहारे लेकर पानी में धोकर साफ कर लें और गुठली निकालकर दूध में भिगो दें। थोड़ी देर बाद छुहारों को निकालकर सिल पर पीस लें और कपड़े में रस निचोड़ लें। इस तरह दिन में तीन बार हर बार ताजा रस निकालकर बच्चे को पिलायें। बच्चे के शरीर में खूब ताकत आ जायेगी। 1 महीने से कम उम्र के बच्चे को यह रस नहीं पिलाना चाहिए|
    *लगभग 10 ग्राम छुहारे लेकर पीस लें। रोजाना कम से कम 2 ग्राम की मात्रा में इस छुहारे के चूर्ण को 250 मिलीलीटर हल्के गर्म दूध के साथ सोते समय लेने से शरीर मजबूत होता है। इसका सेवन केवल सर्दियों के दिनों में ही करना चाहिए|
    * छुहारा शरीर को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। दूध को गर्म करते समय यदि उसमें छुहारा या खजूर डाल दिया जाए और फिर उस दूध को पियें तो वह शरीर को बहुत ही शक्तिशाली बनाता है|



    * 250 ग्राम गुठली रहित छुहारे, 250 ग्राम भुने चने, 250 ग्राम गेहूं का आटा, 60-60 ग्राम चिलगोजा, बादाम की गिरी, 500 ग्राम गाय का घी, 500 ग्राम शक्कर और 2 लीटर गाय का दूध। दूध में छुहारों को कोमल होने तक उबालें, फिर निकालकर बारीक पीस लें और फिर उसी दूध में हल्की आग पर खोवा बनने तक तक पकाएं। अब घी को आग पर गर्म करके गेहूं का आटा डालकर गुलाबी होने तक धीमी आग में सेंक लें, इसके बाद उसमें चने का चूर्ण और खोवा डालकर फिर धीमी आग पर गुलाबी होने तक भूने। जब सुगंध आने लगे तो इसमें शक्कर डालकर खूब अच्छी तरह मिलाएं। हलवा तैयार हो गया। इसमें और सारी चीजों को डालकर रखें। इसे 50-60 मिलीलीटर की मात्रा में गाय के गर्म दूध के साथ रोजाना 1 बार सेवन करने से कमजोरी मिट जाती है|
    * लगभग 500 मिलीलीटर की मात्रा में दूध लेकर उसमें 2 छुहारे डाल दें। अब दूध के आधा रह जाने तक गर्म करें, फिर इस दूध में 2 चम्मच मिश्री या चीनी लेकर मिलाकर पीयें और छुहारे को खा जायें। इसको खाने से शरीर में मांस बढ़ता है, शरीर की ताकत बढ़ती है और मनुष्य का वीर्य बल भी बढ़ता है। छुहारा खून बढ़ाता है। इसका प्रयोग केवल सर्दी के दिनों में ही करना चाहिए। इसका सेवन करने के 2 घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। एक बार में चार से ज्यादा छुहारों का सेवन नहीं करना चाहिए|
    * छुहारा गर्म होता है। यह फेफड़ों और सीने को बल देता है। कफ व सदी में इसका सेवन लाभकारी होता है|
    * 250 मिलीलीटर दूध में 2 छुहारा डालकर उबाल लें- जब दूध अच्छी तरह से उबल जाये और उसके अन्दर का छुआरा फूल जाये तो इस दूध को ठण्डा करके छुआरे को चबाकर खिलाने के बाद ऊपर से बच्चे को दूध पिला दें ऐसा रोजाना करने से कुछ दिनों में ही बच्चों का बिस्तर पर पेशाब करना बंद हो जाता है|
    * यदि बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हो तो रोजाना रात को सोते समय खाली 2 छुहारे खिलाने से लाभ होता है|
    * बूढे़ आदमी बार-बार पेशाब जाते हो तो उन्हें रोजाना 2 छुहारे खिलाना चाहिए तथा रात को 2 छुहारे खिलाकर दूध पिलाना चाहिए|
    * छुहारा शरीर में खून को बनाता है तथा शरीर को बलवान व मोटा बनाता है- दूध में 2 छुहारे उबालकर खाने से मांस, बल और वीर्य बढ़ता है- बच्चे के लिए छुहारा दूध में भिगो देते हैं- जब दूध में रखा छुहारा फूल जाता है तो इसे छानकर तथा पीसकर बच्चों को पिलाना चाहिए|
    *पथरी, लकवा, पीठदर्द: पथरी, लकवा, पीठदर्द में छुहारा सेवन करना लाभदायक होता है। यह मासिक-धर्म को शुरू करता है। छुहारा अवरोधक अर्थात बाहर निकालने वाली चीजों को रोकता है। जैसे दस्त, आंसू, लार, वीर्य और पसीना आदि सभी को रोकता है। छुहारे में कैल्शियम अधिक मात्रा में पाया जाता है। कैल्शियम की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग जैसे हडि्डयों की कमजोरी, दांतों का गलना आदि छुहारा खाने से ठीक हो जाते हैं|
    * छुहारे को दूध में देर तक उबालकर खाने से और दूध पीने से नपुंसकता खत्म हो जाती है|
    * बराबर मात्रा में मिश्री मिले दूध में छुहारों को उबालकर गुठली हटाकर खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है और इससे वीर्य, बल, बुद्धि भी बढ़ती है|




    *रात को पानी में 2 छुहारे और 5 ग्राम किशमिश भिगो दें। सुबह को पानी से निकालकर दोनों मेवे दूध के साथ खाने से नपुंसकता दूर हो जाती है|
    * पान में छुहारा और सोंठ रखकर कुछ दिनों तक चूसने से श्वास रोग (दमा) दूर हो जाता है|
    *छुहारे के बीज को पानी के साथ पीसकर गुहेरी पर दिन में 2 से 3 बार लेप करने से अंजनहारी में बहुत लाभ होता है।
    * छुहारे से गुठली निकालकर उसमें गुग्गुल भर दें। इसके बाद छुहारे को तवे पर सेंककर दूध के साथ सेवन करें। सुबह-शाम 1-1 छुहारा खाने से कमर दर्द मिट जाता है|
    *सुबह-शाम 2 छुहारों को खाने से कमर दर्द में लाभ होता है|
    * बिना बीज वाले छुहारे को पीसकर इसके साथ पिस्ता, बादाम, चिरौंजी और मिश्री मिलाकर, इसमें शुद्ध घी मिलाकर रख दें। एक सप्ताह बाद इसे 20-20 ग्राम तक की मात्रा में सेवन करने से कमजोरी दूर हो जाती है|
    * 2-3 छुहारों को स्टील या चीनी मिट्टी के बर्तन में रात-भर पानी में भिगोए रखने के बाद सुबह गुठली अलग कर दें और छुहारे को दूध में पकाकर सेवन करें। इससे कमजोरी मिट जाती है|
    * 2 छुहारे रोजाना खाने से शीघ्रपतन के रोग में लाभ मिलता है और जिन लोगों का वीर्य पतला निकलता है वह गाढ़ा हो जाता है|
    * गैस के लिए-एक छुहारा बिना गुठली का और 30 ग्राम जयपाल खोपरा, 2 ग्राम सेंधा नमक को पीसकर और छानकर 3 खुराक बना लें। 3 दिन तक इस खुराक को 1-1 करके गर्म पानी के साथ सुबह लेने से गैस के रोग समाप्त हो जाते हैं|
    *रोजाना रात को सोते समय छुहारों को दूध में उबालकर पीयें। इसको पीने के 2 घण्टे बाद तक पानी न पीयें। इसके रोजाना प्रयोग से तीखी, भोंड़ी, आवाज साफ हो जाती है|
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    28.11.16

    पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का शास्त्रोक्त वैज्ञानिक तरीका // Scientific way of conception to produce son



    किन बातों का रखें /ख्याल कि हो संतान/पुत्र की प्राप्‍ति ? 
    मनपसंद संतान प्राप्ति के उपाय/उपचार/तरीके..
    प्रायः देखने में आया है की किसी को संतान तो पैदा हुए लेकिन वो कुछ दीन बाद ही परलोक सुधर गया या अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गया है…
    किसी को संतान होती ही नहीं है , कोई पुत्र चाहता है तो कोई कन्या …
    हमारे ऋषि महर्षियों ने हजारो साल पहले ही संतान प्राप्ति के कुछ नियम और सयम बताये है ,संसार की उत्पत्ति पालन और विनाश का क्रम पृथ्वी पर हमेशा से चलता रहा है,और आगे चलता रहेगा। इस क्रम के अन्दर पहले जड चेतन का जन्म होता है,फ़िर उसका पालन होता है और समयानुसार उसका विनास होता है। मनुष्य जन्म के बाद उसके लिये चार पुरुषार्थ सामने आते है,पहले धर्म उसके बाद अर्थ फ़िर काम और अन्त में मोक्ष, धर्म का मतलब पूजा पाठ और अन्य धार्मिक क्रियाओं से पूरी तरह से नही पोतना चाहिये,धर्म का मतलब मर्यादा में चलने से होता है,माता को माता समझना पिता को पिता का आदर देना अन्य परिवार और समाज को यथा स्थिति आदर सत्कार और सबके प्रति आस्था रखना ही धर्म कहा गया है,अर्थ से अपने और परिवार के जीवन यापन और समाज में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने का कारण माना जाता है,काम का मतलब अपने द्वारा आगे की संतति को पैदा करने के लिये स्त्री को पति और पुरुष को पत्नी की कामना करनी पडती है,पत्नी का कार्य धरती की तरह से है और पुरुष का कार्य हवा की तरह या आसमान की तरह से है,गर्भाधान भी स्त्री को ही करना पडता है,वह बात अलग है कि पादपों में अमर बेल या दूसरे हवा में पलने वाले पादपों की तरह से कोई पुरुष भी गर्भाधान करले। धरती पर समय पर बीज का रोपड किया जाता है,तो बीज की उत्पत्ति और उगने वाले पेड का विकास सुचारु रूप से होता रहता है,और समय आने पर उच्चतम फ़लों की प्राप्ति होती है,अगर वर्षा ऋतु वाले बीज को ग्रीष्म ऋतु में रोपड कर दिया जावे तो वह अपनी प्रकृति के अनुसार उसी प्रकार के मौसम और रख रखाव की आवश्यकता को चाहेगा,और नही मिल पाया तो वह सूख कर खत्म हो जायेगा,इसी प्रकार से प्रकृति के अनुसार पुरुष और स्त्री को गर्भाधान का कारण समझ लेना चाहिये। जिनका पालन करने से आप तो संतानवान होंगे ही आप की संतान भी आगे कभी दुखों का सामना नहीं करेगा…
    कुछ राते ये भी है जिसमे हमें सम्भोग करने से बचना चाहिए .. जैसे अष्टमी, एकादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमवाश्या .चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
    मनपंसद संतान-प्राप्ति के योग—
    स्त्री के ऋतु दर्शन के सोलह रात तक ऋतुकाल रहता है,उस समय में ही गर्भ धारण हो सकता है,उसके अन्दर पहली चार रातें निषिद्ध मानी जाती है,कारण दूषित रक्त होने के कारण कितने ही रोग संतान और माता पिता में अपने आप पनप जाते है,इसलिये शास्त्रों और विद्वानो ने इन चार दिनो को त्यागने के लिये ही जोर दिया है।
    चौथी रात को ऋतुदान से कम आयु वाला पुत्र पैदा होता है,पंचम रात्रि से कम आयु वाली ह्रदय रोगी पुत्री होती है,छठी रात को वंश वृद्धि करने वाला पुत्र पैदा होता है,सातवीं रात को संतान न पैदा करने वाली पुत्री,आठवीं रात को पिता को मारने वाला पुत्र,नवीं रात को कुल में नाम करने वाली पुत्री,दसवीं रात को कुलदीपक पुत्र,ग्यारहवीं रात को अनुपम सौन्दर्य युक्त पुत्री,बारहवीं रात को अभूतपूर्व गुणों से युक्त पुत्र,तेरहवीं रात को चिन्ता देने वाली पुत्री,चौदहवीं रात को सदगुणी पुत्र,पन्द्रहवीं रात को लक्ष्मी समान पुत्री,और सोलहवीं रात को सर्वज्ञ पुत्र पैदा होता है। इसके बाद की रातों को संयोग करने से पुत्र संतान की गुंजायश नही होती है। इसके बाद स्त्री का रज अधिक गर्म होजाता है,और पुरुष के वीर्य को जला डालता है,परिणामस्वरूप या तो गर्भपात हो जाता है,अथवा संतान पैदा होते ही खत्म हो जाती है।
    शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए—
    गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एककोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
    प्रश्‍न : पुत्र प्राप्ति हेतु किस समय संभोग करें ?
    उत्तर : इस विषय में आयुर्वेद में लिखा है कि
    गर्भाधान ऋतुकाल की आठवीं, दसवी और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतुस्राव शुरू हो उस दिन व रात को प्रथम मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियाँ पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियाँ पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं। इस संबंध में ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों। इस संबंध में अधिक जानकारी हेतु इसी इसी चैनल के होमपेज पर ‘गर्भस्थ शिशु की जानकारी’ पर क्लिक करें।
    प्रश्न : सहवास से विवृत्त होते ही पत्नी को तुरंत उठ जाना चाहिए या नहीं? इस विषय में आवश्यक जानकारी दें ?
    उत्तर : सहवास से निवृत्त होते ही पत्नी को दाहिनी करवट से 10-15 मिनट लेटे रहना चाहिए, एमदम से नहीं उठना चाहिए। पर्याप्त विश्राम कर शरीर की उष्णता सामान्य होने के बाद कुनकुने गर्म पानी से अंगों को शुद्ध कर लें या चाहें तो स्नान भी कर सकते हैं, इसके बाद पति-पत्नी को कुनकुना मीठा दूध पीना चाहिए।
    प्रश्न : मेधावी पुत्र प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए ?
    उत्तर : इसका उत्तर देना मुश्किल है,
    प्रश्न : संतान में सदृश्यता होने का क्या कारण होता है ?
    उत्तर : संतान की रूप रेखा परिवार के किसी सदस्य से मिलती-जुलती होती है,
    पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—-
    हमारे पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
    यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
    * चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
    * पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
    * छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
    * सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
    * आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
    * नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
    * दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
    * ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
    * बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
    * तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
    * चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
    * पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
    * सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
    व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि पूर्णरूप से की है।
    * दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
    * 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
    * प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
    * यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
    * चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
    * कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए।
    * जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
    विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
    पुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत—–
    माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
    शीतला षष्ठी व्रतकथा—–
    एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।
    एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ”ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।”
    ऐसा सुनते ही ब्राह्मणी पागल हो गई। रोती-चिल्लाती वन की ओर चल दी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया मिली। वह अग्नि की ज्वाला से तड़प रही थी। पूछने पर मालूम हुआ कि वह भी उसी के कारण दुखी है। वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।
    ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है।
    पुत्र प्राप्ति के लिए अहोई अष्टमी व्रत की परम्परा—
    कार्तिक माह में कश्ष्ण पक्ष की अष्टमी को पुत्रवती स्त्रियां निर्जल व्रत रखती हैं। संध्या समय दीवार पर आठ कानों वाली एक पुतली अंकित की जाती है। जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमन करना चाहिए। एक थाली में सात जगह चार-चार पूडयां रखकर उन पर थोडा-थोडा हलवा रखें। इसके साथ ही एक साडी ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रुपए रखकर थाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सास के पांव छूकर वह सभी सामान सास को दे दें। हलवा पूरी लोगों को बांटें। पुतली के पास ही स्याऊ माता व उसके बच्चे बनाए जाते हैं। इस दिन शाम को चंद्रमा को अर्ध्य देकर कच्चा भोजन खाया जाता है तथा यह कथा पढी जाती है-
    कथा—
    ननद-भाभी एक दिन मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते-खोदते ननद ने गलती से स्याऊ माता का घर खोद दिया। इससे स्याऊ माता के अण्डे टूट गये व बच्चे कुचले गये। स्याऊ माता ने जब अपने घर व बच्चों की दुर्दशा देखी तो क्रोधित होकर ननद से बोली कि तुमने मेरे बच्चों को कुचला है। मैं तुम्हारे पति व बच्चों को खा जाउंगी।
    स्याऊ माता को क्रोधित देख ननद तो डर गई। पर भाभी स्याऊ माता के आगे हाथ जोडकर विनती करने लगी तथा ननद की सजा स्वयं सहने को तैयार हो गई। स्याऊ माता बोलीं कि मैं तेरी कोख व मांग दोनों हरूंगी। इस पर भाभी बोली कि मां तेरा इतना कहना मानो कोख चाहे हर लो पर मेरी मांग न हरना। स्याऊ माता मान गईं।
    समय बीतता गया। भाभी के बच्चा पैदा हुआ और शर्त के अनुसार भाभी ने अपनी पहली संतान स्याऊ माता को दे दी। वह छह पुत्रों की मां बनकर भी निपूती ही रही। जब सातवीं संतान होने का समय आया तो एक पडोसन ने उसे सलाह दी कि अब स्याऊ मां के पैर छू लेना, फिर बातों के दौरान बच्चे को रुला देना। जब स्याऊ मां पूछे कि यह क्यों रो रहा है तो कहना कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। बाली देकर ले जाने लगे तो फिर पांव छू लेना। यदि वे पुत्रवती होने का आर्शीवाद दें तो बच्चे को मत ले जाने देना।



    सातवीं संतान हुई। स्याऊ माता उसे लेने आईं। पडोसन की बताई विधि से उसने स्याऊ के आंचल में डाल दिया। बातें करते-करते बच्चे को चुटकी भी काट ली। बालक रोने लगा तो स्याऊ ने उसके रोने का कारण पूछा तो भाभी बोलीं कि तुम्हारे कान की बाली मांगता है। स्याऊ माता ने कान की बाली दे दी। जब चलने लगी तो भाभी ने पुनः पैर छुए, तो स्याऊ माता ने पुत्रवती होने का आर्शीवाद दिया तो भाभी ने स्याऊ माता से अपना बच्चा मांगा और कहने लगीं कि पुत्र के बिना पुत्रवती कैसे?
    स्याऊ माता ने अपनी हार मान ली। तथा कहने लगीं कि मुझे तुम्हारे पुत्र नहीं चाहिएं मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रही थी। यह कहकर स्याऊ माता ने अपनी लट फटकारी तो छह पुत्र पश्थ्वी पर आ पडे। माता ने अपने पुत्र पाए तथा स्याऊ भी प्रसन्न मन से घर गईं।
    मंत्र—-
    पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र—–
    विस्तार :-
    पुत्र प्राप्ति के लिए संतान गणपति स्तोत्र
    नमो स्तु गणनाथाय सिद्धिबुद्धियुताय च ।
    सर्वप्रदाय देवाय पुत्रवृद्धिप्रदाय च ।।
    गुरूदराय गुरवे गोप्त्रे गुह्यासिताय ते ।
    गोप्याय गोपिताशेषभुवना चिदात्मने ।।
    विŸवमूलाय भव्याय विŸवसृष्टिकराय ते ।
    नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुण्डिने ।।
    एकदन्ताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नम: ।
    प्रपन्नजनपालाय प्रणतार्तिविनाशिने ।।
    शरणं भव देवेश संतति सुदृढां कुरू ।
    भवष्यन्ति च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।।
    ते सर्वे तव पूजार्थे निरता: स्युर्वरो मत: ।
    पुत्रप्रदमिदं स्तोत्रं सर्वसिद्धप्रदायकम् ।।
    पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—–
    * दो हजार वर्ष पूर्व के प्रसिद्ध चिकित्सक एवं सर्जन सुश्रुत ने अपनी पुस्तक सुश्रुत संहिता में स्पष्ट लिखा है कि मासिक स्राव के बाद 4, 6, 8, 10, 12, 14 एवं 16वीं रात्रि के गर्भाधान से पुत्र तथा 5, 7, 9, 11, 13 एवं 15वीं रात्रि के गर्भाधान से कन्या जन्म लेती है।
    * 2500 वर्ष पूर्व लिखित चरक संहिता में लिखा हुआ है कि भगवान अत्रिकुमार के कथनानुसार स्त्री में रज की सबलता से पुत्री तथा पुरुष में वीर्य की सबलता से पुत्र पैदा होता है।
    * प्राचीन संस्कृत पुस्तक ‘सर्वोदय’ में लिखा है कि गर्भाधान के समय स्त्री का दाहिना श्वास चले तो पुत्री तथा बायां श्वास चले तो पुत्र होगा।
    * यूनान के प्रसिद्ध चिकित्सक तथा महान दार्शनिक अरस्तु का कथन है कि पुरुष और स्त्री दोनों के दाहिने अंडकोष से लड़का तथा बाएं से लड़की का जन्म होता है।
    * चन्द्रावती ऋषि का कथन है कि लड़का-लड़की का जन्म गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष के दायां-बायां श्वास क्रिया, पिंगला-तूड़ा नाड़ी, सूर्यस्वर तथा चन्द्रस्वर की स्थिति पर निर्भर करता है।
    * कुछ विशिष्ट पंडितों तथा ज्योतिषियों का कहना है कि सूर्य के उत्तरायण रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्र तथा दक्षिणायन रहने की स्थिति में गर्भ ठहरने पर पुत्री जन्म लेती है। उनका यह भी कहना है कि मंगलवार, गुरुवार तथा रविवार पुरुष दिन हैं। अतः उस दिन के गर्भाधान से पुत्र होने की संभावना बढ़ जाती है। सोमवार और शुक्रवार कन्या दिन हैं, जो पुत्री पैदा करने में सहायक होते हैं। बुध और शनिवार नपुंसक दिन हैं। अतः समझदार व्यक्ति को इन दिनों का ध्यान करके ही गर्भाधान करना चाहिए।
    * जापान के सुविख्यात चिकित्सक डॉ. कताज का विश्वास है कि जो औरत गर्भ ठहरने के पहले तथा बाद कैल्शियमयुक्त भोज्य पदार्थ तथा औषधि का इस्तेमाल करती है, उसे अक्सर लड़का तथा जो मेग्निशियमयुक्त भोज्य पदार्थ जैसे मांस, मछली, अंडा आदि का इस्तेमाल करती है, उसे लड़की पैदा होती है।
    विश्वविख्यात वैज्ञानिक प्रजनन एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. लेण्डरम बी. शैटल्स ने हजारों अमेरिकन दंपतियों पर प्रयोग कर प्रमाणित कर दिया है कि स्त्री में अंडा निकलने के समय से जितना करीब स्त्री को गर्भधारण कराया जाए, उतनी अधिक पुत्र होने की संभावना बनती है। उनका कहना है कि गर्भधारण के समय यदि स्त्री का योनि मार्ग क्षारीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्र तथा अम्लीय तरल से युक्त रहेगा तो पुत्री होने की संभावना बनती है।
    यदि आप पुत्र चाहते है !
    दंपति की इच्छा होती है कि उनके घर में आने वाला नया सदस्य पुत्र ही हो। कुछ लोग पुत्र-पुत्री में भेद नहीं करते, ऐसे लोगों का प्रतिशत बहुत कम है। यदि आप पुत्र चाहते हैं या पुत्री चाहते हैं तो कुछ तरीके यहां दिए जा रहे हैं, जिन पर अमल कर उसी तरीके से सम्भोग करें तो आप कुछ हद तक अपनी मनचाही संतान प्राप्त कर सकते हैं-
    * पुत्र प्राप्ति हेतु मासिक धर्म के चौथे दिन सहवास की रात्रि आने पर एक प्याला भरकर चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू का रस निचोड़कर पी जावें। अगर इच्छुक महिला रजोधर्म से मुक्ति पाकर लगातार तीन दिन चावल का धोवन यानी मांड में एक नीबू निचोड़कर पीने के बाद उत्साह से पति के साथ सहवास करे तो उसकी पुत्र की कामना के लिए भगवान को भी वरदान देना पड़ेगा। गर्भ न ठहरने तक प्रतिमाह यह प्रयोग तीन दिन तक करें, गर्भ ठहरने के बाद नहीं करें।
    * गर्भाधान के संबंध में आयुर्वेद में लिखा है कि गर्भाधान ऋतुकाल (मासिक धर्म) की आठवीं, दसवीं और बारहवीं रात्रि को ही किया जाना चाहिए। जिस दिन मासिक ऋतु स्राव शुरू हो, उस दिन तथा रात को प्रथम दिन या रात मानकर गिनती करना चाहिए। छठी, आठवीं आदि सम रात्रियां पुत्र उत्पत्ति के लिए और सातवीं, नौवीं आदि विषम रात्रियां पुत्री की उत्पत्ति के लिए होती हैं अतः जैसी संतान की इच्छा हो, उसी रात्रि को गर्भाधान करना चाहिए।
    * इस संबंध में एक और बात का ध्यान रखें कि इन रात्रियों के समय शुक्ल पक्ष यानी चांदनी रात (पूर्णिमा) वाला पखवाड़ा भी हो, यह अनिवार्य है, यानी कृष्ण पक्ष की रातें हों तो गर्भाधान की इच्छा से सहवास न कर परिवार नियोजन के साधन अपनाना चाहिए।
    * शुक्ल पक्ष में जैसे-जैसे तिथियां बढ़ती हैं, वैसे-वैसे चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती हैं। इसी प्रकार ऋतुकाल की रात्रियों का क्रम जैसे-जैसे बढ़ता है, वैसे-वैसे पुत्र उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है, यानी छठवीं रात की अपेक्षा आठवीं, आठवीं की अपेक्षा दसवीं, दसवीं की अपेक्षा बारहवीं रात अधिक उपयुक्त होती है।
    * पूरे मास में इस विधि से किए गए सहवास के अलावा पुनः सहवास नहीं करना चाहिए, वरना घपला भी हो सकता है। ऋतु दर्शन के दिन से 16 रात्रियों में शुरू की चार रात्रियां, ग्यारहवीं व तेरहवीं और अमावस्या की रात्रि गर्भाधान के लिए वर्जित कही गई है। सिर्फ सम संख्या यानी छठी, आठवीं, दसवीं, बारहवीं और चौदहवीं रात्रि को ही गर्भाधान संस्कार करना चाहिए।
    * गर्भाधान वाले दिन व रात्रि में आहार-विहार एवं आचार-विचार शुभ पवित्र रखते हुए मन में हर्ष व उत्साह रखना चाहिए। गर्भाधान के दिन से ही चावल की खीर, दूध, भात, शतावरी का चूर्ण दूध के साथ रात को सोते समय, प्रातः मक्खन-मिश्री, जरा सी पिसी काली मिर्च मिलाकर ऊपर से कच्चा नारियल व सौंफ खाते रहना चाहिए, यह पूरे नौ माह तक करना चाहिए, इससे होने वाली संतान गौरवर्ण, स्वस्थ, सुडौल होती है।
    * गोराचन 30 ग्राम, गंजपीपल 10 ग्राम, असगंध 10 ग्राम, तीनों को बारीक पीसें, चौथे
    दिन स्नान के बाद पांच दिनों तक प्रयोग में लाएं, गर्भधारण के साथ ही पुत्र अवश्य पैदा होगा।







    शक्तिशाली व गोरे पुत्र प्राप्ति के लिए—
    गर्भिणी स्त्री ढाक (पलाश) का एक कोमल पत्ता घोंटकर गौदुग्ध के साथ रोज़ सेवन करे | इससे बालक शक्तिशाली और गोरा होता है | माता-पीता भले काले हों, फिर भी बालक गोरा होगा | इसके साथ सुवर्णप्राश की २-२ गोलियां लेने से संतान तेजस्वी होगी |
    यदि आपकी संनात होती हो परन्तु जीवित न रहती हो तो सन्तान होने पर मिठाई के स्थान पर नमकीन बांटें। भगवान शिव का अभिषेक करायें तथा सूर्योदय के समय तिल के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के पास जलायें, लाभ अवश्य होगा। मां दुर्गा के दरबार में सुहाग सामिग्री चढ़ाये तथा कुंजिका स्तात्र का पाठ करें तो भी अवश्य लाभ मिलेगा।

    पुत्र प्राप्ति हेतु गर्भाधान का तरीका—–
    पुराने आयुर्वेद ग्रंथों में पुत्र-पुत्री प्राप्ति हेतु दिन-रात, शुक्ल पक्ष-कृष्ण पक्ष तथा माहवारी के दिन से सोलहवें दिन तक का महत्व बताया गया है। धर्म ग्रंथों में भी इस बारे में जानकारी मिलती है।
    यदि आप पुत्र प्राप्त करना चाहते हैं और वह भी गुणवान, तो हम आपकी सुविधा के लिए हम यहाँ माहवारी के बाद की विभिन्न रात्रियों की महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।
    * चौथी रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र अल्पायु और दरिद्र होता है।
    * पाँचवीं रात्रि के गर्भ से जन्मी कन्या भविष्य में सिर्फ लड़की पैदा करेगी।
    * छठवीं रात्रि के गर्भ से मध्यम आयु वाला पुत्र जन्म लेगा।
    * सातवीं रात्रि के गर्भ से पैदा होने वाली कन्या बांझ होगी।
    * आठवीं रात्रि के गर्भ से पैदा पुत्र ऐश्वर्यशाली होता है।
    * नौवीं रात्रि के गर्भ से ऐश्वर्यशालिनी पुत्री पैदा होती है।
    * दसवीं रात्रि के गर्भ से चतुर पुत्र का जन्म होता है।
    * ग्यारहवीं रात्रि के गर्भ से चरित्रहीन पुत्री पैदा होती है।
    * बारहवीं रात्रि के गर्भ से पुरुषोत्तम पुत्र जन्म लेता है।
    * तेरहवीं रात्रि के गर्म से वर्णसंकर पुत्री जन्म लेती है।
    * चौदहवीं रात्रि के गर्भ से उत्तम पुत्र का जन्म होता है।
    * पंद्रहवीं रात्रि के गर्भ से सौभाग्यवती पुत्री पैदा होती है।
    * सोलहवीं रात्रि के गर्भ से सर्वगुण संपन्न, पुत्र पैदा होता है।
    व्यास मुनि ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर पर अम्बिका, अम्बालिका तथा दासी के नियोग (समागम) किया, जिससे धृतराष्ट्र, पाण्डु तथा विदुर का जन्म हुआ। महर्षि मनु तथा व्यास मुनि के उपरोक्त सूत्रों की पुष्टि स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘संस्कार विधि’ में स्पष्ट रूप से कर दी है। प्राचीनकाल के महान चिकित्सक वाग्भट तथा भावमिश्र ने महर्षि मनु के उपरोक्त कथन की पुष्टि
    पूर्णरूप से की है।
    गर्भाधान मुहूर्त—–
    जिस स्त्री को जिस दिन मासिक धर्म हो,उससे चार रात्रि पश्चात सम रात्रि में जबकि शुभ ग्रह केन्द्र (१,४,७,१०) तथा त्रिकोण (१,५,९) में हों,तथा पाप ग्रह (३,६,११) में हों ऐसी लग्न में पुरुष को पुत्र प्राप्ति के लिये अपनी स्त्री के साथ संगम करना चाहिये। मृगशिरा अनुराधा श्रवण रोहिणी हस्त तीनों उत्तरा स्वाति धनिष्ठा और शतभिषा इन नक्षत्रों में षष्ठी को छोड कर अन्य तिथियों में तथा दिनों में गर्भाधान करना चाहिये,भूल कर भी शनिवार मंगलवार गुरुवार को पुत्र प्राप्ति के लिये संगम नही करना चाहिये।
    पुत्र जन्म कीपुत्र प्राप्ति का साधन है शीतला षष्ठी व्रत—
    माघ शुक्ल षष्ठी को संतानप्राप्ति की कामना से शीतला षष्ठी का व्रत रखा जाता है। कहीं-कहीं इसे ‘बासियौरा’ नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर मां शीतला देवी का षोडशोपचार-पूर्वक पूजन करना चाहिये। इस दिन बासी भोजन का भोग लगाकर बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
    शीतला षष्ठी व्रतकथा—
    एक ब्राह्मण के सात बेटे थे। उन सबका विवाह हो चुका था, लेकिन ब्राह्मण के बेटों को कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक वृद्धा ने ब्राह्मणी को पुत्र-वधुओं से शीतला षष्ठी का व्रत करने का उपदेश दिया। उस ब्राह्मणी ने श्रद्धापूर्वक व्रत करवाया। वर्ष भर में ही उसकी सारी वधुएं पुत्रवती हो गई।
    एक बार ब्राह्मणी ने व्रत की उपेक्षा करके गर्म जल से स्नान किया। भोजना ताजा खाया और बहुओं से भी वैसा करवाया। उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा। वह चौंक पड़ी। उसने अपने पति को जगाया; पर वह तो तब तक मर चुका था। ब्राह्मणी शोक से चिल्लाने लगी। जब वह अपने पुत्रों तथा बधुओं की ओर बढ़ी तो क्या देखती है कि वे भी मरे पड़े हैं। वह धाड़ें मारकर विलाप करने लगी। पड़ोसी जाग गये। उसे पड़ोसियों ने बताया- ”ऐसा भगवती शीतला के प्रकोप से हुआ है।”
    वह बुढ़िया स्वयं शीतला माता ही थी। अग्नि की ज्वाला से व्याकुल भगवती शीतला ने ब्राह्मणी को मिट्टी के बर्तन में दही लाने के लिए कहा। ब्राह्मणी ने तुरन्त दही लाकर भगवती शीतला के शरीर पर दही का लेप किया। उसकी ज्वाला शांत हो गई। शरीर स्वस्थ होकर शीतल हो गया।
    ब्राह्मणी को अपने किए पर बड़ा पश्चाताप हुआ। वह बार-बार क्षमा मांगने लगी। उसने अपने परिवार के मृतकों को जीवित करने की विनती की। शीतला माता ने प्रसन्न होकर मृतकों के सिर पर दही लगाने का आदेश दिया। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। उसके परिवार के सारे सदस्य जीवित हो उठे। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ। ऐसी मान्यता है…
    यह व्रत वैशाख शुक्ल षष्ठी को रखा जाता है और एक वर्ष पर्यंन्त तक करने का विधान है। यह तिथि व्रत है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के द्वारा बताया गया है। पुत्र प्राप्ति की कामना करने वाले दंपत्ति के लिए इस व्रत का विधान है। इस व्रत में स्कन्द या कार्तिकेय स्वामी की पूजा और आराधना की जाती है। कार्तिकेय स्वामी शिव पुत्र होकर पूजनीय देवता हैं। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ था। संसार को प्रताडित करने वाले तारकासुर के वध के लिए देव सेना का प्रधान बनने के लिए ही उनका जन्म हुआ था। इसलिए उनकी यह प्रिय तिथि है। वह ब्रह्मचारी रहने के कारण कुमार कहलाते हैं। योग मार्ग की साधना में कातिके य स्वामी पावन बल के प्रतीक हैं। तप और ब्रह्मचर्य के पालन से जिस बल या वीर्य की रक्षा होती है, वही स्कन्द या कुमार माने जाते हैं। इस दृष्टि से स्कन्द संयम और शक्ति के देवता है। शक्ति और संयम से ही कामनाओं की पूर्ति में निर्विघ्न होती है। इसलिए इस दिन स्कन्द की पूजा का विशेष महत्व है।


    व्रत विधान के अनुसार पंचमी से युक्त षष्टी तिथि को व्रत के श्रेष्ठ मानी जाती है। व्रती को वैशाख शुक्ल पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करे। वैशाख शुक्ल षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा की जाती है। दक्षिण दिशा में मुंह रखकर भगवान को अघ्र्य देकर दही, घी, जल सहित अन्य उपचार मंत्रों के द्वारा पूजा करनी
    चाहिए। साथ ही वस्त्र और श्रृंगार सामग्रियां जैसे तांबे का चूड़ा आदि समर्पित करना चाहिए। दीप प्रज्जवलित कर आरती करना चाहिए। स्कन्द के चार रुप हैं – स्कन्द, कुमार, विशाख और गुह। इन नामों का ध्यान कर उपासना करना चाहिए। व्रत के दिन यथा संभव फलाहार करना चाहिए। व्रती के लिए तेल का सेवन निषेध है।
    इस व्रत को श्रद्धा और आस्था के साथ वर्ष पर्यन्त करने पर पुत्र की कामना करने वाले को पुत्र प्राप्ति होती है। साथ ही संतान निरोग रहती है। यदि व्रती शुक्ल पक्ष की षष्ठी पर व्रत पालन करता है तो स्वास्थ्य का इच्छुक निरोग हो जाता है। धन क ी कामना करने वाला धनी हो जाता है।
    (पुत्र प्राप्ति हेतु पुत्रदा एकादशी व्रत)—
    श्रावण शुक्ल एकादशी व पौष शुक्ल एकादशी दोनों ही पुत्रदा एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस एकादशी का व्रत रखने से पुत्र की प्राप्ति होती है इस कारण से इसे पुत्रदा एकादशी कहा गया है.
    पुत्रदा एकादशी की कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha)
    पद्म पुराण (Padma Purana) में वर्णित है कि धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण से एकादशी की कथा एवं महात्मय का रस पान कर रहे थे। उस समय उन्होंने भगवान से पूछा कि मधुसूदन पौष शुक्ल एकादशी के विषय में मुझे ज्ञान प्रदान कीजिए। तब श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं। पौष शुक्ल एकादशी (Paush shukla paksha Ekadashi) को पुत्रदा एकादशी कहते हैं (Putrda Ekadshi).



    इस व्रत को विश्वदेव के कहने पर भद्रावती के राजा सुकेतु ने किया था। राजा सुकेतु प्रजा पालक और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में सभी जीव निर्भय एवं आन्नद से रहते थे, लेकिन राजा और रानी स्वयं बहुत ही दुखी रहते थे। उनके दु:ख का एक मात्र कारण पुत्र हीन होना था। राजा हर समय यह सोचता कि मेरे बाद मेरे वंश का अंत हो जाएगा। पुत्र के हाथों मुखाग्नि नहीं मिलने से हमें मुक्ति नहीं मिलेगी। ऐसी कई बातें सोच सोच कर राजा परेशान रहता था। एक दिन दु:खी होकर राजा सुकेतु आत्म हत्या के उद्देश्य से जंगल की ओर निकल गया। संयोगवश वहां उनकी मुलाकात ऋषि विश्वदेव से हुई।

    राजा ने अपना दु:ख विश्वदेव को बताया। राजा की दु:ख भरी बातें सुनकर विश्वदेव ने कहा राजन आप पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी (Paushya Shukla Paksha Ekadasi) का व्रत कीजिए, इससे आपको पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और कुछ दिनों के पश्चात रानी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया। राजकुमार बहुत ही प्रतिभावान और गुणवान हुआ वह अपने पिता के समान प्रजापालक और धर्मपरायण राजा हुआ।
    श्री कृष्ण कहते हैं जो इस व्र का पालन करता है उसे गुणवान और योग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। यह पुत्र अपने पिता एवं कुल की मर्यादा को बढ़ाने वाला एवं मुक्ति दिलाने वाला होता है।
    पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो व्रत रखना चाहते हैं उन्हें दशमी को एक बार भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात गंगा जल, तुलसी दल, तिल, फूल पंचामृत से भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। इस व्रत में व्रत रखने वाले को नर्जल रहना चाहिए। अगर व्रती चाहें तो संध्या काल में दीपदान के पश्चात फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि को यजमान को भोजन करवाकर उचित दक्षिणा दे कर उनका आशीर्वाद लें तत्पश्चात भोजन करें।
    ध्यान देने वाली बात यह है कि पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो यह एकादशी का व्रत रख रहे हैं उन्हें अपने जीवनसाथी के साथ इस ब्रत का अनुष्ठान करना चाहिए इससे अधिक पुण्य प्राप्त होता है. संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं भरती हैं यशोदा की गोद—
    मध्य प्रदेश की व्यापारिक नगरी इंदौर में एक ऐसा यशोदा मंदिर है जहां महिलाएं जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा की गोद भरकर संतान की प्राप्ति की कामना करती हैं। इस मंदिर में भजन-पूजन के बीच गोद भराई का दौर शुरू हो गया है।




    महाराजबाड़े के करीब स्थित यशोदा मंदिर में स्थापित मूर्ति में माता यशोदा कृष्ण जी को गोद में लिए हुई हैं। यह मूर्ति लगभग 200 साल पहले राजस्थान से इंदौर लाई गई थी। तभी से लोगों की मान्यता है कि जन्माष्टमी के मौके पर यशोदा जी की गोद भरने से मनचाही संतान की प्राप्ति होती है।
    जो महिलाएं यशोदा जी की गोद भरती हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है। पुत्र प्राप्ति के लिए गेहूं के साथ नारियल और पुत्री की प्राप्ति के लिए चावल के साथ नारियल एवं सुहाग के सामान से यशोदा जी की गोद भरी जाती है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है।
    कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना के साथ यशोदा जी की गोद भरती हैं। बुधवार से यहां गोद भराई का सिलसिला शुरू हो गया है।

    सन्तान प्रप्ति हमारे पूर्व जन्मोंपार्जित कर्मो पर है आधारित—
    विवाह के उपरान्त प्रत्येक माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे को जल्द से जल्द सन्तान हो जाये और वे दादा-दादी, नाना-नानी बन जाये। मगर ऐसा सभी दम्पत्तियों के साथ नहीं हो पाता है। शादी के बाद 2-3 वर्ष तक सन्तान न होने पर यह एक चिन्ता का विषय बन जाता है। भारतीय सनातन परंपरा में सन्तान होना सौभाग्यशाली होने का सूचक माना जाता है। दाम्पत्य जीवन भी तभी खुशहाल रह पाता है जब दम्पत्ति के सन्तान हो अन्यथा समाज भी हेय दृष्टि से देखता है। पुत्र सन्तान का तो हमारे समाज में विशेष महत्व माना गया है क्योंकि वह वंश वृद्धि करता है। सन्तान प्राप्ति हमारे पूर्व जन्मोपार्जित कर्मों पर आधारित है। अत: हमें नि:सन्तान दम्पत्ति की कुण्डली का अध्ययन करते वक्त किसी एक की कुण्डली का अध्ययन करने की बजाये पति-पित्न दोंनो की कुण्डली का गहन अध्ययन करने के बाद ही निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिये। अगर पंचमेश खराब है या पितृदोष, नागदोष व नाड़ीदोष है तब उनका उपाय मन्त्र, यज्ञ, अनुष्ठान तथा दान-पुण्य से करना चाहिये। प्रस्तुत लेख में सन्तान प्राप्ति में होने वाली रूकावट के कारण व निवारण पर प्रकाश डाला गया है। सन्तान प्राप्ति योग के लिये जन्मकुण्डली का प्रथम स्थान व पंचमेश महत्वपूर्ण होता है। अगर पंचमेश बलवान हो व उसकी लग्न पर दृष्टि हो या लग्नेश के साथ युति हो तो निश्चित तौर पर दाम्पत्ति को सन्तान सुख प्राप्त होगा। यदि सन्तान के कारक गुरू ग्रह पंचम स्थान में उपनी स्वराशि धनु, मीन या उच्च राशि कर्क या नीच राशि मकर में हो तब कन्याओं का जन्म ज्यादा देखा गया है। पुत्र सन्तान हो भी जाती है तो बीमार रहती है अथवा पुत्र शोक होता है। यदि पंचम स्थान में मेष, सिंह, वृश्चिक या मीन राशि पर गुरू की दृष्टि या मंगल का प्रभाव होने पर पुत्र प्राप्ति होती है। यदि पंचम स्थान के दोनों ओर शुभ ग्रह हो व पंचम भाव तथा पंचमेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र के होने की संभावना ज्यादा होती है। पंचमेश के बलवान होने पर पुत्र लाभ होता है। परन्तु पंचमेश अष्टम या षष्ठ भाव में नहीं होना चाहियें। बलवान पंचम, सप्तम या लग्न में स्थित होने पर उत्तम सन्तान सुख प्राप्त होता है। बलवान गुरू व सूर्य भी पुत्र सन्तान योग का निर्माण करते हैं। पंचमेश के बलवान हाने पर, शुभ ग्रहों के द्वारा दृष्ट होने पर, शुभ ग्रहों से युत हाने पर पुत्र सन्तान योग बनता है। पंचम स्थान पर चन्द्र ग्रह हो व शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तब भी पुत्र सन्तान योग होता है। पुरूष जातक की कुण्डली में सूर्य व शुक्र बलवान हाने पर वह सन्तान उत्पन्न करने के अधिक योग्य होता है। मंगल व चन्द्रमा के बलवान हाने पर स्त्री जातक सन्तान उत्पन्न करने के योग्य होती है। सन्तान न होने के योग – पंचम स्थान या पंचमेश के साथ राहू होने पर सर्पशाप होता है। ऐसे में जातक को पुत्र नहीं होता है अथवा पुत्र नाश होता है। शुभ ग्रहों की दृष्टि हाने पर पुत्र प्राप्ति हो सकती है। यदि लग्न व त्रिकोण स्थान में शनि हो और शुभ ग्रहो द्वारा दृष्ट न हो तो पितृशाप से पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है। पंचमेश मंगल से दृष्ट हो या पंचम भाव में कर्क राशि का मंगल हो तब पुत्र प्राप्ति में कठिनाई होती है तथा शत्रु के प्रभाव से पुत्र नाश भी होता है। पंचमेश व पंचम स्थान पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो तब देवशाप द्वारा पुत्र नाश होता है। चतुर्थ स्थान में पाप ग्रह हो पंचमेश के साथ शनि हो एवं व्यय स्थान में पाप ग्रह हो तो मातृदोष कें कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। भाग्य भाव में पाप ग्रह हो व पंचमेश के साथ शनि हो तब पितृदोष से सन्तान होने में कठनाई होती है। गुरू पंचमेश व लग्नेश निर्बल हो तथा सूर्य, चन्द्रमा व नावमांश निर्बल हो तब देवशाप के प्रभाव से सन्तान हानि होती है। गुरू, शुक्र पाप युक्त हों तो ब्राह्मणशाप व सूर्य, चन्द्र के खराब या नीच के होने पर पितृशाप के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। यदि लग्नेश, पंचमेश व गुरू निर्बल हों या 6वें,8वें,12वें स्थान में हो तों भी सन्तान प्राप्ति में कठिनाई होती है। पाप ग्रह चतुर्थ स्थान में हो तो भी सन्तान प्राप्ति की राह में कठिनाई होती है। नवम भाव में पाप ग्रह हो तथा सूर्य से युक्त हो तब पिता (जिसकी कुण्डली में यह योग हो उसके पिता) के जीवन काल में पोता देखना नसीब नहीं होता है। सन्तान बाधा के उपाय- सूर्य व चन्द्रमा साथ-साथ होने पर सन्तान प्रप्ति के लिये पितृ व पितर का पूजन करना करना चाहियें। चन्द्रमा के लिये गया (बिहार) क्षेत्र में श्राद्ध करना चाहियें व मन्दिरों में पूजा व जागरण का आयोजन करने से भी लाभ होता है। मंगल के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणों को भोजन करायें तथा मां दुर्गा की आरधना करें। यदि बुध के कारण सन्तान प्राप्ति में बाधा आ रही हो तो भगवान विष्णु का पूजन करें तथा ब्राह्मणों को भोजन करयें। गुरू के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो रही हो तो ब्राह्मणें की सेवा करें। गुरूवार को मिठाइयों से युक्त ब्राह्मणों को भोजन करायें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। पुत्रदायक औषधियां भी अच्छा कार्य करती हैं। शिवलिंगी के बीज तथा पुत्र जीवी के प्रयोग से भी लाभ मिलता है। गुरू के कारण सन्तान प्राप्ति में कठिनाई हो तब शुक्रवार को सफेद वस्तुओं, सुगन्धित तेल आदि दान करे तथा यक्ष की पूजा करें। ब्राह्मणों को भोजन करने कर उनका आशिर्वाद प्राप्त करें। शनि के कारण यदि सन्तान प्राप्ति में कठिनाई उत्पन्न हो रही हो तो सर्प की पूजा करें व सर्पों की दो मूर्तियों की पूजा करके दान में देनी चाहियें। सन्तान गोपाल यन्त्र के सामने पुत्र जीवी की माला के द्वारा सन्तान गोपाल मत्रं का जप करें। यदि कोई दाम्पती प्रात: स्नानादि से निवत्तृ होकर भगवान श्री राम और माता कौशल्या की शोड्शोपचार पूजा करके नियमित रूप से एक माला इस चौपाई का पाठ करे तो पुत्र प्राप्ति अवश्य होगी:-प्रेम मगन कौशल्या, लिस दिन जात न जात। सुत सनेह बस माता, बाल चरित कर गाय। सन्तान प्राप्ति हेतु यदि दाम्पति नौं वर्ष से कम आयु वाली कन्याओं के पैर छूकर 90 दिन तक यदि आशीर्वाद प्राप्त करे तो सन्तान अवश्य प्राप्त होगी।

    पुत्र कामना पूरी करे पार्थिव लिंग पूजा—
    सावन में भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए शिव स्तुति और स्त्रोत का पाठ करने का विशेष महत्व है। इन स्त्रोतों में शिव महिम्र स्त्रोत सबसे प्रभावी माना जाता है। इस स्त्रोत का पूरा पाठ तो शुभ फल देने वाला है ही, बल्कि यह ऐसा देव स्त्रोत है, जिसका कामना विशेष की पूर्ति के लिए प्रयोग भी निश्चित फल देने वाला होता है।
    शिव महिम्र स्त्रोत के इन प्रयोगों में एक है – पुत्र प्राप्ति प्रयोग। पुत्र की प्राप्ति दांपत्य जीवन का सबसे बड़ा सुख माना जाता है। इसलिए हर दंपत्ति ईश्वर से पुत्र प्राप्ति की कामना करता है। अनेक नि:संतान दंपत्ति भी पुत्र प्राप्ति के लिए धार्मिक उपाय अपनाते हैं। शास्त्रों में शिव महिम्र स्त्रोत के पाठ से पुत्र प्राप्ति का उपाय बताया है। जानते है प्रयोग विधि –
    – पुत्र प्राप्ति का यह उपाय विशेष तौर पर सावन माह से शुरु करें।
    – स्त्री और पुरुष दोनों सुबह जल्दी उठे। स्त्री इस दिन उपवास रखे।
    – पति-पत्नी दोनों साथ मिलकर गेंहू के आटे से ११ पार्थिव लिंग बनाए। पार्थिव लिंग विशेष मिट्टी के बनाए जाते हैं।
    – पार्थिव लिंग को बनाने के बाद इनका शिव महिम्र स्त्रोत के श्लोकों से पूजा और अभिषेक के ११ पाठ स्वयं करें। अगर ऐसा संभव न हो तो पूजा और अभिषेक के लिए सबसे श्रेष्ठ उपाय है कि यह कर्म किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। पार्थिव लिंग निर्माण और पूजा भी ब्राह्मण के बताए अनुसार कर सकते हैं।
    – पार्थिव लिंग के अभिषेक का पवित्र जल पति-पत्नी दोनों पीएं और शिव से पुत्र पाने के लिए प्रार्थना करें।
    – यह प्रयोग २१ या ४१ दिन तक पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने पर शिव कृपा से पुत्र जन्म की कामना शीघ्र ही पूरी होती है।

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