30.1.20

नीम के पानी से नहाने के लाभ



अक्सर लोग ये जानना चाहते हैं कि नीम के पानी से नहाने से क्या होता है तो आपको बता दें की आयुर्वेद में नीम के पानी से नहाने का अपना एक अलग ही महत्‍व है। ऐसा माना जाता है नीम के पानी में नहाने के फायदे हमारे स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़े हुए हैं। ऐसा हो भी क्‍यों ना क्‍योंकि नीम में औषधीय गुण होते हैं जो हमें विभिन्‍न प्रकार के संक्रमण से बचाते हैं। प्राचीन समय से ही नीम के पानी का उपयोग नहाने के लिए किया जा रहा है। नीम में मौजूद एंटी-बैक्‍टीरियल गुण के कारण यह हमारी बहुत सी त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने में मदद करता है।
नीम के पानी के लाभ इतने हैं कि जिन्‍हें जानकर आप भी नीम का उपयोग किये बिना नहीं रह पाएगें। आइए जाने नीम के पानी से नहाने के लाभ क्‍या हैं।


 त्वचा समस्या-
नीम का पानी त्वचा समस्याओं के लिए लाभकारी होता है। आपको यह जान कर आश्‍चर्य हो सकता है कि नीम के विभिन्न हिस्‍सों में 140 से अधिक सक्रिय यौगिक होते हैं। जिनके कारण नीम पानी के फायदे हमारी त्‍वचा समस्‍याओं को दूर करने में मदद करते हैं। नीम के पानी का एक और फायदा यह है कि इसमें एंटीमिक्राबियल गुण भी उच्‍च मात्रा में होते हैं। इसका तात्‍पर्य यह है कि नीम के पानी से नहाने के फायदे आपको त्‍वचा संक्रमण से बचा सकते हैं। नीम के पानी का उपयोग विशेष रूप से चिकनपॉक्‍स (छोटी माता) से ग्रसित लोगों के लिए फायदेमंद होता है। यदि आप सोरायसिस या एक्जिमा (Psoriasis vs Eczema) जैसी समस्‍याओं से परेशान हैं तो नीम के पानी से नहाना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।


तन की बदबू को हटाना
नीम के उपयोग तन की बदबू को हटाने में किया जा सकता है। यदि आपको या आपके किसी परिचित को इस प्रकार की समस्‍या है तो उन्‍हें नीम के पानी से नहाने की सलाह दी जा सकती है। नीम के पानी से स्‍नान करने से आप शरीर की बदबू को दूर कर सकते हैं। अक्‍सर शरीर के गर्म और नमी युक्‍त भाग जैसे जननांग क्षेत्र या बगल में बैक्‍टीरिया की उपस्थिति के कारण शरीर से बदबू आने लगती है। नीम के पानी में मौजूद एंटी-बैक्‍टीरियल गुण उन बैक्‍टीरिया को नष्‍ट करने और उनके प्रभाव को कम करने में मदद करते हैं। इस तरह से नीम के पानी का इस्‍तेमाल कर आप शरीर की दुर्गंध को दूर कर सकते हैं।


 बालों की समस्‍या -
जो लोग बालों की समस्‍या से परेशान हैं वे नीम के पानी का उपयोग कर सकते हैं। नीम में पानी में मौजूद औषधीय गुण न केवल आपके बालों को स्‍वस्‍थ्‍य रखता है बल्कि उन्‍हें डैंड्रफ मुक्‍त भी रखता है। यदि आपको भी डैंड्रफ से छुटकारा चाहिए तो नियमित रूप से सप्‍ताह में 2 बार नीम के पानी से स्‍नान करें। यह आपके बालों को प्राकृतिक चमक दिलाने में भी सहायक होता है।

आंखों की समस्‍याएं-
आप नीम के पानी का उपयोग अपनी आंखों की समस्‍याएं जैसे आंख की खुजली, आंख आना इत्यादि के लिए कर सकते हैं। नीम के पानी से स्‍नान के दौरान नीम का पानी आपकी आंखों में मौजूद बैक्‍टीरिया को नष्‍ट करने में मदद कर सकता है। ऐसा इसलिए है क्‍योंकि नीम के पानी में एंटी-बैक्‍टीरियल गुण अच्‍छी मात्रा में होते हैं। इस तरह से यह स्‍पष्‍ट होता है कि नीम की पत्तियों को उबाल कर स्‍नान करना आंखों के लिए लाभकारी होता है।


एंटी-एजिंग गुण-
आप नीम के पानी का इस्‍तेमाल उम्र बढ़ने संबंधी लक्षणों को कम करने के लिए कर सकते हैं। नीम के पानी में एंटी-एजिंग गुण भरपूर मात्रा में होते हैं। नियमित रूप में नीम के पानी का नहाने के लिए उपयोग करना आपके लिए फायदेमंद हो सकता है। क्‍योंकि नीम आपकी त्‍वचा को पोषण देने के साथ ही झुर्रियों और डार्क सर्कल्‍स को हटाने में भी सहायक होता है। जिससे आपकी त्‍वचा को पर्याप्‍त मॉइस्‍चराइजिंग और प्राकृतिक चमक मिलती है।
 

बालों को मजबूत करता है -
नीम का पानी बाज़ार में उपलब्ध रासायनिक उत्‍पाद जिनका उपयोग आप बालों के लिए करते हैं, उनसे कहीं बेहतर है। नीम का पानी बालों के स्‍वास्‍थ्‍य को बढ़ावा देने वाला प्राकृतिक उत्‍पाद है। इसका उपयोग करने से बालों में किसी प्रकार के दुष्‍प्रभाव नहीं होते हैं। नीम का पानी बालों को मजबूत करता है और इन्‍हें गिरने से बचाता है। इसके अलावा नीम में मौजूद औषधीय गुण रोम छिद्रों को साफ करने और नए बालों को उगाने में मदद करते हैं। इसके लिए आप कुछ नीम की पत्तियों को पानी में उबालें और पानी को ठंडा करने के बाद अपने बालों को धोलें। नीम का पानी सिर की जूँ और लीख को हटाने में भी मदद करता है।

मांसपेशीय दर्द-
आप नीम के पानी का उपयोग मांसपेशीय दर्द को कम करने में कर सकते हैं। यह एक आम समस्‍या है जिससे सभी लोग प्रभावित रहते हैं। लेकिन अध्‍ययनों से पता चलता है कि मांसपेशीयों के दर्द को कम करने में गर्म पानी मदद करता है। इसलिए आप नीम की पत्तियों को उबाल कर इस पानी का उपयोग स्‍नान के लिए कर सकते हैं। दर्द को कम करने के लिए नीम का उपयोग कई प्रकार से किया जा सकता है। आप अपने नहाने के पानी में नीम तेल का भी उपयोग कर सकते हैं। नीम का पानी दर्द को कम करने के साथ ही त्‍वचा के लिए भी फायदेमंद होता है।


गठिया की सूजन -
कुछ अध्‍ययनों से पता चला है कि नीम के पानी से स्‍नान करने पर गठिया की सूजन को कम किया जा सकता है। नीम का पानी न केवल गठिया की सूजन बल्कि दर्द को भी कम करता है। क्‍योंकि नीम के औषधीय गुणों में दर्दनाशक गुण भी शामिल हैं। नीम शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत और संतुलित बनाने में मदद करता है। इस तरह से नीम का पानी सीधे ही गठिया के प्रभाव और विकास को रोकने में सहायक होता है।

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4.1.20

समस्त वात रोग नाशक नुस्खे


वात रोग लक्षण एवं परेशानी


इस रोग के कारण शरीर के सभी छोटे-बडे जोडो व मांसपेशियों में दर्द व सूजन हो जाती है। गठिया में शरीर के एकाध जोड़ में प्रचण्ड पीड़ा के साथ लालिमायुक्त सूजन एवं बुखार तक आ जाता है। यह रोग शराब व मांस प्रेमियों को सामान्य व्यक्तियों की अपेक्षा जल्दी पकड़ता है। यह धीरे-धीरे शरीर के सभी जोड़ों तक पहुँचता है। संधिवात उम्र बढ़ने के साथ मुख्यतः घुटनों एवं पैरों के मुख्य जोड़ों को क्रमशः अपनी गिरफ्त में लेता हैं।
वात रोग की शुरूआत धीरे-धीरे होती है। शुरू में सुबह उठने पर हाथ पैरों के जोडा में कड़ापन महसूस होता है और अंगुलियाँ चलाने में परेशानी होती है। फिर इनमें सूजन व दर्द होने लगता है और अंग-अंग दर्द से ऐंठने लगता है जिससे शरीर में थकावट व कमजोरी महसूस होती है। साथ ही रोगी चिड़चिड़ा हो जाता है। इस रोग की वजह सेे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम पड़ जाती है। इसी के साथ छाती में इन्फेक्शन, खांसी, बुखार तथा अन्य समस्यायें उत्पन्न हो जाती है। साथ ही चलना फिरना रुक जाता है।


इन सबसे खतरनाक कुलंग वात होता है। यह रोग कुल्हे, जंघा प्रदेश एवं समस्त कमर को पकड़ता है एवं रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। इस रोग में तीव्र चिलकन (फाटन) जैसा तीव्र दर्द होता है और रोगी बेचैन हो जाता है, यहाँ तक कि इसमें मृत्यु तुल्य कष्ट होता है। यह रोग की सबसे खतरनाक स्टेज होती है ।इस का रोगी दिन-रात दर्द से तड़पता रहता है और कुछ समय पश्चात् चलने-फिरने के काबिल भी नहीं रह जाता है। वह पूर्णतया बिस्तर पकड़ लेता है और चिड़चिड़ा हो जाता है।
भले ही आपको यकीन न हो, लेकिन सिर्फ एक दवा का प्रयोग कर आप 80 प्रकार के वात रोगों से बच सकते हैं। जी हां, इस दवा का सेवन करने से आप कठिन से कठिन बीमारियों से पूरी तरह से निजात पा सकते हैं। अगर आपको भी होते हैं वात रोग, तो पहले जानिए इस चमत्कारिक दवा और इसकी प्रयोग विधि के बारे में...
विधिः
200 ग्राम लहसुन छीलकर पीस लें। अब लगभग 4 लीटर दूध में लहसुन व 50 ग्राम गाय का घी मिलाकर गाढ़ा होने तक उबालें। फिर इसमें 400 ग्राम मिश्री, 400 ग्राम गाय का घी तथा सौंठ, काली मिर्च, पीपर, दालचीनी, इलायची, तमालपात्र, नागकेशर, पीपरामूल, वायविडंग, अजवायन, लौंग, च्यवक, चित्रक, हल्दी, दारूहल्दी, पुष्करमूल, रास्ना, देवदार, पुनर्नवा, गोखरू, अश्वगंधा, शतावरी, विधारा, नीम, सुआ व कौंच के बीज का चूर्ण प्रत्येक 3-3 ग्राम मिलाकर धीमी आंच पर हिलाते रहें। जब मिश्रण घी छोड़ने लगे लगे और गाढ़ा मावा बन जाए, तब ठंडा करके इसे कांच की बरनी में भरकर रखें।
प्रयोग :
प्रतिदिन इस दवा को 10 से 20 ग्राम की मात्रा में, सुबह गाय के दूध के साथ लें (पाचनशक्ति उत्तम हो तो शाम को पुनः ले सकते हैं।)परंतु ध्यान रखें, इसका सेवन कर रहे हैं तो भोजन में मूली, अधिक तेल व घी तथा खट्टे पदार्थों का सेवन न करें और स्नान व पीने के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग करें।
इससे पक्षाघात (लकवा), अर्दित (मुंह का लकवा), दर्द, गर्दन व कमर का दर्द,अस्थिच्युत (डिसलोकेशन), अस्थिभग्न (फ्रेक्चर) एवं अन्य अस्थिरोग, गृध्रसी (सायटिका), जोड़ों का दर्द, स्पांडिलोसिस आदि तथा दमा, पुरानी खांसी,हाथ पैरों में सुन्नता अथवा जकड़न, कंपन्न आदि के साथ 80 वात रोगों में लाभ होता है और शारीरिक विकास होता है।
दवा के प्रयोग से पूर्व, अपनी प्रकृति के अनुसार किसी उत्तम वैद्य की सलाह अवश्य लें।

वातान्तक बटीः-
सोंठ,सुहागा,सोंचर गांधी,सहिजन के संग गोली बांधी।
80वात 84बाय कहै धनवन्तरि जड़  से जाये।।
विधि: सोंठ 50 ग्राम, सुहागा 50 ग्राम, सोंचर (काला नमक) 50 ग्राम, गांधी(हींग) 50 ग्राम, सहिजन (मुनगा) की छाल का रस आवश्यकतानुसार, सबसे पहले कच्चे सुहागे को पीसकर आग में लोहे के तवे पर डालकर उसे भून लें। वह लाई की तरह फूल जायेगा, फूला हुआ सुहागा ही काम में लें। सोंठ, सुहागा एवं काला नमक को कूट-पीसकर एक थाली में डाल लें। फिर दूसरे बर्तन में सहिजन की छाल का रस लें हींग घोल लें। और उसमें जब हींग घुल जाये तो सहिजन की छाल का रस कुछ दूधिया हो जायेगा। उसमें कुटा-पिसा, सोंठ, काला नमक व सुहागा का पाउडर मिला लें। फिर उसकी चने के आकार की गोली बना लें और छाया में सुखाकर बन्द डिब्बे में रख लें। फिर सुबह-दोपहर-शाम दो-दो गोली नाश्ते या खाने के बाद सादा पानी से लें। आपको आराम 10 दिन में ही मिलने लगेगा। कम से कम 30 दिन यह गोलियां लगातार अवश्य खायें तभी पूर्ण लाभ हो पायेगा। यह नुस्खा कई बार का परीक्षित है। इस दवा के द्वारा बवासीर के रोगी को भी अवश्य लाभ मिलता है।


*वात नाशक चूर्णः-
चन्दसूर 50 ग्राम, मेथी 50 ग्राम, करैल 50 ग्राम, अचमोद 50 ग्राम, इन चारों दवाओं को कूट-पीसकर ढक्कन वाले डिब्बे में रखें। सुबह नाश्ते के बाद एक चम्मच चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें एवं रात्रि में भोजन के बाद गुनगुने दूध के साथ एक चम्मच लें। यह दवा भी कम से कम 60 दिन लें। निश्चय ही आराम मिलता है।

वातनाशक काढ़ाः-
हरसिंगार के हरे पत्ते 20 नग को अधकुचला कर 300 ग्राम पानी में डालकर धीमी आँच में पकायें। जब पानी 50 ग्राम रह जाये, तो आग से उतार लें और कपड़े से छानकर दो खुराक बनायें एक खुराक सुबह नास्ता के पहले गरम-गरम पी लें एवं दूसरी खुराक शाम को आग में हल्का गरम कर पी लें। प्रतिदिन नया काढ़ा ऊपर लिखी विधि से बनायें और सुबह शाम पियें। यह क्रिया 30 दिन लगातार करें। वात रोग में निश्चय ही आराम होगा।

*गठिया(संधिवात) :-
आँवला चूर्ण 20 ग्राम, हल्दी चूर्ण 20 ग्राम, असंगध चूर्ण 10 ग्राम, गुड़ 20 ग्राम इन चारों औषधियों को 500 ग्राम पानी में डालकर धीमी आँच में पकाये, जब पानी 100 ग्राम रह जाये तो उसे आग से उतार कर कपड़े या छन्नी से छान लें एवं इस काढ़े की तीन खुराक बनायें। सुबह, दोपहर एवं रात्रि में खाने के बाद पियें। इस प्रकार प्रतिदिन सुबह यह दवा बनायें, लगातार 30 दिन पीने पर गठिया में निश्चित रूप से आराम होता है।
परहेज-ज्यादा तली हुईं, खट्टी, गरिष्ठ चीजें व चावल आदि दवा सेवन के समय न लंे।

*गठिया की दवाः-
सुरंजान 30ग्राम, चोवचीनी 30ग्राम, सोठ 30ग्राम, पीपर मूल 30ग्राम, हल्दी 30ग्राम, आँवला 50ग्राम, इन सब को कूट-पीसकर चूर्ण बनायें और उसमें 100ग्राम गुड़ मिलाकर रख लें। प्रतिदिन सुबह एवं शाम को 10ग्राम दवा में 10ग्राम शहद मिलाकर खायें। सुबह हल्का नाश्ता करने एवं राात्रि में खाना खाने के बाद ही दवा लें। यह दवा लगातार 30दिन लेने से गठिया वात जरूर सही होगा।
परहेज-खट्टी चीजें, गरिष्ठ चीजें, चावल आदि न लें।

* वातनाशक तेलः-
100ग्राम तारपीन का तेल, 30ग्राम कपूर, 10ग्राम पिपरमिण्ट, इन सबको मिलाकर धूप में एक दिन रखें। जब यह सब तारपीन में मिल जाये, तो दवा तैयार हो गई। जिन गाठों में दर्द हो, वहां पर यह दवा लगाकर धीरे-धीरे 15मिनट तक मालिश करें और इसके बाद कपड़ा गरम करके उस स्थान की सिकाई कर दें। एक सप्ताह में ही दर्द में आराम मिलने लगेगा।
विशिष्ट परामर्श-

साईटिका रोग मे दामोदर चिकित्सालय रजिस्टर्ड  98267-95656 निर्मित  हर्बल औषधि  सर्वाधिक सफल साबित होती है| बहुमूल्य जड़ी बूटियों की औषधि से पुराना साईटिका रोग भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाता है|स्नायुशूल,संधिवात,कमर दर्द, घुटनो की पीड़ा  आदि वात जन्य रोगों मे भी  यह औषधि रामबाण की तरह अचूक असर है|







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सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस(गर्दन का दर्द) के उपचार

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मेथी का पानी पीने के जबर्दस्त फायदे

25.12.19

कद्दू के जूस के स्वास्थ्य लाभ



कद्दू का रस पीने के फायदे ठीक उसी तरह होते हैं जैसे कि किसी औषधीय पेय के होते हैं। आपने अब तक कद्दू के बीज और कद्दू खाने के फायदे सुने होगें। लेकिन अब कद्दू का जूस पीने के लाभ के बारे में भी जान लें। क्‍योंकि यह जूस कोई साधारण पेय नहीं है। कद्दू का रस पीने के फायदे आपको कई बीमारियों से दूर कर सकता है। कद्दू के जूस का उपयोग किडनी को स्‍वस्‍थ रखने, कब्‍ज का इलाज करने, मूत्र संक्रमण को कम करने, उच्‍च रक्‍तचाप को कम करने के लिए लाभकारी होता है। यदि आप कद्दू से बनाए गए जूस के लाभ नहीं जानते हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए ही है। इस लेख में आप कद्दू के जूस के फायदे, औषधीय गुण, उपयोग, इस्‍तेमाल और नुकसान संबंधी जानकारी प्राप्‍त करेगें।
पम्‍पकिन या कद्दू का जूस एक प्रभावी पेय पदार्थ है जिसे कद्दू के गूदे से बनाया जाता है। कद्दू के ऊपरी और कठोर छिलके को हटाया जाता है। फिर कद्दू के गूदे का पेस्‍ट बनाकर पानी के साथ घोलकर कद्दू का जूस तैयार किया जाता है। इस कद्दू के जूस का सेवन करना कई गंभीर और सामान्य स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी योगदान दे सकता है। आइए विस्‍तार से जाने कद्दू के जूस संबंधी अन्‍य तथ्‍य क्‍या हैं।
वजन कम करने का सबसे अच्‍छा उपाय

जब स्‍वास्‍थ्‍य की बात आती है तो कद्दू का जूस एक बेहतरीन विकल्‍प है। यह विटामिन सी, पोटेशियम, मैग्नीशियम और अन्‍य महत्‍वपूर्ण पोषक तत्‍वों से भरपूर है। इसमें कैलोरी कम होती है और कद्दू जूस का लगभग 94 प्रतिशत हिस्‍सा केवल पानी होता है। इसलिए यह शरीर को हाइड्रेट रखने और पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में मदद कर सकता है। आप आपने मन में कद्दू के रस को लेकर किसी प्रकार की शंका न रखें क्‍योंकि यह वजन कम करने का सबसे अच्‍छा उपाय है।


सामान्‍य रूप से कद्दू के जूस के 1 बड़े कप को दिन में दो बार सेवन किया जा सकता है। यह पेट में एसिड के स्‍तर को बेहतर बनाए रखने और पाचन संबंधी समस्‍याओं को दूर करने में प्रभावी होता है। आप भोजन के बाद भी इस जूस का सेवन कर सकते हैं। हालांकि निर्धारित मात्रा से अधिक कद्दू का जूस पीना आपकी पाचन समस्‍याओं को बढ़ा भी सकता है।
स्‍वास्‍थ्‍य के साथ ही साथ कद्दू के रस के फायदे त्वचा और बालों के लिए भी होते हैं। इस लेख आपको कद्दू के फल से बनाए गए जूस संबंधी उन सभी लाभों के बारे में बताया जा रहा है। जिन्‍हें जानकर आप भी इस अद्भुद जूस के लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं।
गुर्दे की पथरी या पित्ताशय की समस्‍याएं
जिन लोगों को गुर्दे की पथरी या पित्ताशय की समस्‍याएं होती हैं उनके लिए कद्दू के रस का सेवन फायदेमंद हो सकता है। किडनी और लिवर संबंधी समस्‍याओं को दूर करने के लिए नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन किया जा सकता है। जो बीमारी को प्रभावी रूप से दूर करने में मदद करता है। कुछ लोगों का मानना है कि 10 दिन तक लगातार कद्दू का रस पीना लिवर और किडनी की समस्‍या को कम करके उन्‍हें हेल्‍थी बना सकता है। आप भी कद्दू के जूस का सेवन कर अपनी किड़नी और लीवर को स्‍वस्‍थ रख सकते हैं।

पाचन संबंधी समस्‍याओं का प्रभावी उपचार
पाचन संबंधी समस्‍याओं का प्रभावी उपचार करने के लिए कद्दू का रस एक बेहतर विकल्‍प है। कद्दू के रस में फाइबर की अच्‍छी मात्रा होती है जो पूरे पाचन तंत्र को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आवश्‍यक है। कद्दू के रस के लाभ आंतों में चिकनाहट को बढ़ाता है जिससे मल को पारित होने में आसानी होती है। यदि आप भी कब्‍ज और अन्‍य पाचन समस्‍याओं का उपचार करना चाहते हैं तो कद्दू के रस के लाभ प्राप्‍त कर सकते हैं। अच्‍छी बात यह है कि कद्दू के जूस को आप आसानी से घर पर तैयार कर सकते हैं जो कब्‍ज का सबसे अच्‍छा घरेलू उपाय हो सकता है।

क्‍या आपको पूरी और अच्‍छी नींद लेने में असुविधा होती है। इसका मतलब यह है कि आपको अनिद्रा की समस्‍या है जिसके कारण आप रात में अपनी नींद नहीं ले पा रहे हैं। इस समस्‍या का प्राकृतिक उपचार कद्दू के जूस से किया जा सकता है। अनिद्रा का घरेलू उपचार करने के लिए आप नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन कर सकते हैं। प्रतिदिन आप 1 गिलास कद्दू के रस में थोड़ा शहद मिलाएं और सेवन करें। यह आपकी नसों को आराम दिलाने और मस्तिष्‍क को शांत करने में मदद कर सकता है। जिससे आपको अच्‍छी नींद लेने में आसानी हो सकती है।
कद्दू के जूस का सेवन करे रक्‍तचाप नियंत्रित
जिन लोगों को उच्‍च रक्‍तचाप संबंधी समस्‍या है उन्‍हें कद्दू के जूस का सेवन फायदा दिला सकता है। अध्‍ययनों से पता चलता है कि कद्दू के रस में ऐसे पोषक तत्‍व और खनिज पदार्थ होते हैं जो शरीर में कोलेस्‍ट्रॉल और उच्च रक्‍तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं। पम्‍पकिन जूस में पेक्टिन की अच्‍छी मात्रा होती है जो शरीर में खराब कोलेस्‍ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है। उच्‍च रक्‍तचाप और हाई कोलेस्ट्रॉल दोनों ही हृदय संबंधी समस्‍याओं का प्रमुख कारण होते हैं। लेकिन आप इन समस्‍याओं से बचने के लिए अपने आहार में कद्दू के रस का प्रयोग कर सकते हैं।
कद्दू जूस का फायदा मार्निग सिकनेस के लिए
अक्‍सर महिलाओं को गर्भावस्‍था के दौरान सुबह की बीमारी (Morning Sickness) का सामना करना पड़ता है, उन महिलाओं के लिए कद्दू के रस पीने के फायदे हो सकते हें। गर्भावस्‍था के दौरान एसिड रिफ्लक्‍स के कारण होने वाली उल्‍टी और मतली को रोकने के लिए नियमित रूप से कद्दू के जूस का सेवन किया जा सकता है। सुबह की बीमारी का घरेलू उपचार करने के लिए नियमित रूप से प्रतिदिन 1 गिलास कद्दू का जूस पीना महिलाओं को लाभ दिला सकता है।



बॉडी को डिटॉक्सिफाई करने के लिए
क्‍या आप अपने शरीर की आंतरिक अशुद्धियों को दूर करने प्राकृतिक उपाय खोज रहे हैं? यदि हां तो आप अपनी बॉडी को डिटॉक्सिफाई करने के लिए कद्दू के जूस का सेवन कर सकते हैं। यह एक चमत्‍कारिक पेय पदार्थ है जो शरीर से विषाक्‍त पदार्थों को प्रभावी रूप से दूर कर सकता है। इसके अलावा यह आपके शरीर की आंतरिक क्षतिग्रस्‍त कोशिकाओं की मरम्मत करने में भी प्रभावी योदान दे सकता है। आप अपने शरीर से अशुद्धियों को दूर करने के लिए सुबह के समय खाली पेट कद्दू के जूस का उपभोग कर सकते हैं। यह पाचन तंत्र और गुर्दों की बेहतर सफाई करने का अच्‍छा और प्राकृतिक घरेलू उपाय माना जाता है।

कद्दू जूस के औषधीय गुण मूत्र संक्रमण रोके
पम्‍पकिन जूस का सेवन कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ दिलाता है जिनमें मूत्र पथ को स्‍वस्‍थ रखना भी शामिल है। यदि आप मूत्र पथ के संक्रमण और अन्‍य समस्‍याओं का समाधान चाहते हैं तो कद्दू के रस का इस्‍तेमाल कर सकते हैं। यह आपके मूत्र पथ और गुर्दे में मौजूद अपशिष्‍ट पदार्थों को साफ करने और उन्‍हें बाहर निकालने में मदद कर सकता है। यदि आप कद्दू के जूस का सेवन कर सकते हैं तो यह आपके गुर्दे और मूत्र पथ को संक्रमण से बचा सकता है।
हेयर बेनिफिट्स के लिए कद्दू के जूस के इस्‍तेमाल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कद्दू के रस में विटामिन ए की उच्‍च मात्रा होती है जो आपके स्‍कैल्‍प (scalp) के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। इसके अलावा कद्दू के जूस में पोटेशियम की भी अच्‍छी मात्रा होती है जो बालों में रि-ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद करता है। नियमित रूप से कद्दू के रस का सेवन करने से बालों को झड़ने से भी बचाया जा सकता है।
घर में कद्दू का जूस कैसे बनाए
घर में कद्दू का जूस बनाना बहुत ही आसान है। घर में तैयार किये गए प‍म्‍पकिन जूस को अधिक प्रभावी माना जाता है क्‍योंकि इसे बनाने में किसी भी केमिकल्‍स का उपयोग नहीं किया जाता है। साथ ही यह ताजा होता है। आइए जाने किस प्रकार हम घर पर ही कद्दू का रस बना सकते हैं।
कद्दू का रस बनाने के लिए आपको केवल पके हुए कद्दू का 1 टुकड़ा और पानी की आवश्‍यकता होती है।
आप कद्दू के ऊपरी छिलके को लिकाल लें और इसके छोटे-छोटे टुकड़े बना लें। इसके बाद थोड़े से पानी के साथ इन कद्दू के टुकडों को जूसर ब्‍लेंड में डालकर मिक्स करें। आपका कद्दू का जूस तैयार है। यह कम मीठा होता है। वैसे तो प्राकृतिक रूप से इतना मीठा जूस ही आपको सेवन करना चाहिए। लेकिन अतिरिक्‍त मिठास बढ़ाने के लिए आप शक्‍कर की जगह शहद का इस्‍तेमाल कर सकते हैं।

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    19.12.19

    सरसों का तेल है सबसे सेहतमंद



    भोजन हमारे जीवन का एक अविभाज्य हिस्सा है, हम सचमुच खाने के लिए जीते हैं! लेकिन साथ ही स्वस्थ भोजन के बारे में जागरूकता भी हमारी जीवन-शैली का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई है। हम सब अपने स्तर पर स्वस्थ खाने और फिट रहने के लिए जागरूक होने का प्रयास कर रहे हैं। भोजन पकाने के लिए तेल के इस्तेमाल को लेकर कई तरह की धारणाएं बनी हुई हैं। जिसमें आमतौर पर तेल के इस्तेमाल को सेहत के लिए नुकसानदायक बताते हैं। तेल चूंकि फैट का मुख्य स्रोत है, इसलिए ये शरीर में चर्बी को बढ़ाता है। लेकिन कई स्टडीज यह दावा करती हैं कि कुछ तेल आपके हृदय को सेहदमंद रखने के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं और यह शरीर को कई बीमारियों से दूर रखते हैं। आमतौर पर भोजन पकाने के लिए जैतून के तेल (ऑलिव ऑयल) को सबसे हेल्दी माना जाता है। मगर भारत में कुकिंग के लिए ज्यादातर सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है। इस लेख के जरिए जानें कि कौन सा तेल आपकी सेहत बेहतर है।
    इन दिनों बाज़ार में ऑलिव ऑयल या फ्लेक्ससीड ऑयल का चलन बढ़ता जा रहा है। ऑलिव ऑयल के अपने कई फायदे हैं लेकिन अगर भोजन पकाने की बात जाए तो सरसों तो सरसों के तेल से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। हमारे देश में सरसों के तेल का इस्तेमाल ज्यादातर घरों में किया जाता है। सरसों तेल हर किचन का अहम हिस्सा है और लगभग हर घर में सरसों के तेल में भोजन पकाया जाता है। काफी पुराने समय से इसका इस्तेमाल खाना बनाने के लिए किया जा रहा है। वैसे मार्किट में और भी कुकिंग ऑयल हैं जैसे- ऑलिव ऑयल यानी जैतून का तेल, रिफाइंड ऑयल, कैनोला तेल, राईस ब्रान ऑयल, वेजिटेबल ऑयल, तिल का तेल और मूंगफली का तेल।


    जैतून का तेल (ऑलिव ऑयल)
    जैतून का तेल आज के समय में बहुत ही जाना पहचाना नाम बन चुका है। बड़े-बड़े फिटनेस एक्सपर्ट्स ने इसका खूब प्रचार किया है और जैतून के तेल को केवल एक विकल्प भर ही नहीं बताया है। फिटनेस फ्रीक्स के लिए यह तेल अधिक पॉपुलर बन गया है। इस तेल में वसा अच्छी मात्रा में होती है जो हृदय स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी होता है। यह एक ऐसा जादुई तेल है जिसके इस्तेमाल से आपका वजन नहीं बढ़ता।
    सरसों का तेल
    सरसों के तेल का इस्तेमाल आयुर्वेद से जुड़ा हुआ है जिसका इस्तेमाल भारतीय घरों में युगों से होता चला आ रहा है। इस तेल की तीखी गंध और गहरे पीले रंग से इसकी पहचान को मान्यता मिली है। भारतीय घरों इसका इस्तेमाल व्यापक स्तर पर किया जाता है। खासतौर पर पूर्वी भारत में इसका इस्तेमाल अधिक किया जाता है। हमारे पारंपरिक भोजन जैसे मछली या झालमुरी को पकाने के लिए सरसों के तेल की जगह किसी और तेल का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
    सरसों का तेल है सबसे सेहतमंद
    सरसों का तेल प्राकृतिक एंटीऑक्सिडेंट और जरूरी फैटी एसिड पर्याप्त मात्रा में होते हैं। दोनों ही तेल दिल की सेहत को बनाए रखने के लिए बहुत ही फायदेमंद हैं। इसमें मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड, पॉलीअनसेचुरेटेड वसा और कुछ अन्य अच्छे वसा भरपूर मत्रा में होते हैं जो शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। साथ ही यह तेल गुड कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है और शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (बैड कोलेस्ट्रॉल) को बनने से रोकता है।


    यह तेल ओमेगा-3 फैटी एसिड का बहुत ही अच्छा स्रोत है साथ ही इसमें शरीर के लिए अन्य जरूरी हेल्दी फैट्स भी होते हैं। भोजन पकाते समय तेल में मौजूद अच्छे फैटी एसिड और तेल न सिर्फ आपके भोजन के स्वाद को बढ़ाता है बल्कि खून में मौजूद फैट को भी कम करता है।
    ज्यादातर शोधकर्ताओं ने यह सिद्ध किया है कि जैतून के तेल की तुलना में सरसों का तेल अधिक सेहतमंद होता है। क्योंकि इसमें जरूरी फैटी एसिड मौजूद होते हैं। इसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड दोनों ही पर्याप्त मात्रा में होते हैं। यह आपके भोजन स्वस्थ बनाते हैं जो आपके हृदय स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए बहुत जरूरी है। वहीं जैतून के तेल में इन सभी जरूरी फैटी एसिड की मात्रा कम होती है और इसकी कीमत सरसों की तेल की तुलना में बहुत अधिक होती है
    क्या है प्रमाण
    बहुत सारी स्टडीज के अनुसार सरसों के तेल को उसमें मौजूद सभी जरूरी फैटी एसिड के अनुपात कारण सबसे सेहदमंद तेलों में से एक माना जाता है। साथ ही यह भी पाया गया है कि सरसों का तेल हृदय संबंधि रोगों से बचाने में भी मदद करता है और सरसों का तेल कोरोनरी धमनी रोगों और अन्य हृदय संबंधि रोगों से बचाता है। इसके अलावा यह तेल ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखता है और हाई ब्लड प्रेशर के खतरे से बचाता है।

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    15.12.19

    बढ़ती उम्र मे आँखों की सावधानी और उपाय



    आप भी बढ़ती उम्र के साथ अपनी आंखों का ख्याल रखना चाहते हैं? अगर आप अपनी आंखों को हमेशा स्वस्थ रखना चाहते हैं तो, इसके लिए जरूरी है स्वस्थ खानपान। आंखों को स्वस्थ रखने और बेहतर रोशनी के लिए विटामिन ए और विटामिन के से भरपूर भोजन लेना बहुत जरूरी है।
     शोधकर्ताओं ने पाया की जो लोग रेड मीट, फ्राइड फूड और हाई फैट डेयरी प्रोडक्ट का सेवन ज्यादा मात्रा में करते हैं उनकी आंखों पर इसका सीधा असर पड़ता है। ये आंखों के रेटिना को डेमैज करने का काम करता है साथ ही आंखों की रोशनी पर भी असर डालता है।
    इस स्थिति को ऐज रिलेटेड मैक्युलर डिजनरेशन (AMD) कहा जाता है। इससे आपकी आंखों की रोशनी पर असर धीरे-धीरे पड़ता है। न्यूवैस्कुलर(ऐज रिलेटेड मैक्युलर डिजेनेरेशन) AMD काफी महंगा है और जियोग्राफिक ऐट्रोफी में इसका कोई इलाज नहीं है। अगर AMD का दूसरा रूप देखें तो वो ये है की उससे आपकी आंखों की रोशनी कम होने लगती है।
    यूएस की यूनिवर्सिटी में श्रुति धीगे के द्वारा किए गए शोध के मुताबाकि, AMD से बचने के लिए हमे इसके लिए पहले से तैयार होने की जरूरत है और अगर हम पहले से ही इस समस्या को पकड़ लेंगे तो ये हमारे लिए फायदेमंद होगा।
      धीगे और उनके साथियों ने 66 अलग-अलग खाने की चीजों पर डेटा का प्रयोग किया जो लोगों ने साल 1987 और 1995 के बीच सेवन किया। इसमें दो तरह के डाइट की पहचान की गई। इनमें दो तरह के डाइट शामिल थे एक वेस्टर्न और हेल्दी, जिनके बीच में काफी ज्यादा अंतर पाया गया।
    अध्ययन के लेखक ऐम्मी मिलेन जो कि यूनिवर्सिटी के बफैलो में प्रोफेसर है, उनके मुताबिक अध्ययन में पाया गया था की जिन लोगों को AMD नहीं है और जिन्हें AMD से पहले उन्होंने ज्यादा मात्रा में अनहेल्दी फूड का सेवन किया जिससे उनकी आंखों की रोशनी के कम होने का खतरा बढ़ गया।
    AMD से पहले वाली स्थिति को अस्यमपटोमेटिक कहा जाता है, जो कि किसी को भी इसका पता नहीं होता। AMD से पहले आंखों में नए ब्लड वैसल्स बनते हैं जिसे मैक्युला से जाना जाता है।
    मैक्युलर डिजनरेशन क्या है?
    आंखों में मैक्युला पैनी और केंद्रीत नजरों के लिए जरूरी होता है। ये रेटिना के पास एक छोटे से रूप में दिखाई देता है। जिससे हमारी आंखों के सामने आने वाली किसी भी चीज को देखने में मदद करता है। मैक्युलर डिजनरेशन इसी मैक्युला के खराब होने के कारण ही मैक्युलर डिजनरेशन होता है। इससे कई लोगों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।
    मैक्युलर डिजनरेशन के लक्षण
    आंखें लाल होना या दर्द होना
    आंखों के सामने बार-बार कालापन आना
    धुंधला दिखाई देना
    कोई भी चीज ज्यादा छोटी दिखना
    नजर की चमक में बदलाव
    नजदीक की चीजों को देखने में परेशानी

    अगर आप आंखों को बुढ़ापे तक ठीक रखना चाहते हैं तो आंखों की एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए. जैसे जैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है वैसे वैसे ही आपकी आंखों की रोशनी कम होती जाती है. लेकिन एक्सरसाइज से आप इसे हमेशा ही स्वस्थ रख सकते हैं. आँखें हमेशा ठीक रहे उसके लिए कुछ आसान सी एक्सरसाइज होती है. आंखों की एक्‍सरसाइज, आंखों को स्‍वस्‍थ बनाएं रखती है और इन पर पड़ने वाले तनाव को कम करने में भी मदद करती है. तो चलिए आपको बता देते हैं कि आँखों के लिए कौनसी एक्सरसाइज जरुरी हैं.

    आंखों की एक्सरसाइज कैसे करें

    एक कुर्सी पर आराम से बैठें. अपनी दोनो हाथों को हथेलियों को रगड़ कर गर्म करें.
    अपनी आखें बंद कर लें और गर्म हथेलियों से हल्‍के से उन्‍हे ढक लें.

    आईवॉल पर प्रेशर न डालें.

    आंखों को इस प्रकार कवर करें कि उंगलियों या हथेलियों के बीच से उन तक रोशनी की एक भी किरण न पहुंचे.इस दौरान आप धीमे से गहरी सांस लें और किसी अच्‍छी घटना के बारे में या फ्यूचर में होने वाली किसी अच्‍छी बात के बारे में सोचें.इसके बाद आप हथेलियों को हटा लें और धीमे से आखें खोल लें.इस प्रक्रिया को दिन में कम से कम 3 मिनट या ज्‍यादा करें.

    आंखों को तरोताजा कैसे करें

    दो तौलियां लीजिए, एक को गर्म पानी में भिगोएं और दूसरे को ठंडे पानी में भिगो दें.पहले किसी एक तौलिया को लीजिए और चेहरे पर हल्‍का दबाव डालते हुए घुमाइए.अपने भौं और आखों के आस-पास के एरिया में आराम से आहिस्‍ता से टच करवाएं.इस दौरान अपनी पलकों को बंद रखें ताकि आखों पर अच्‍छे से सेक हो सके.इस प्रकार दोनो तौलिए से एक-एक बार आंखों और चेहरे पर सेक दें.अंत में ठंडे पानी की तौलिया को इस्‍तेमाल करें.

    अपनी आखें बंद कर लें और अपनी अंगुलियों के सिरो से आखों पर हल्‍के-हल्‍के से गोलाई में घुमाएं, ऐसा 2 से 3 मिनट तक करें.इस प्रक्रिया को बेहद धीमी तरीके से करें और बाद में बिना आखों को नुकसान पहुंचाए हाथों को धुल लें.ऊपर दी गयी सभी प्रक्रिया अगर आप करते हैं तो आंखों की एक्सरसाइज ज्यादा फायदेमंद होती है.
    जिस प्रकार हमारी शारीरिक शक्ति, उम्र के साथ कम होती जाती है, वैसे ही हमारी दृष्टि भी कमज़ोर होती जाती है विशेषकर 60 वर्ष की आयु के बाद ।
    कुछ आयु-संबंधी नेत्र परिवर्तन, जैसे कि प्रेस्बायोपिया (निकट वस्तुओं पर फोकस करने की हमारी क्षमता का नुकसान), सामान्य और आसानी से चश्मा, कॉन्टैक्ट लेंस या सर्जरी के साथ इलाज किया जाता है । मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) , भारत में दृष्टिविहीनता का प्रमुख कारण है , मोतियाबिंद का उपचार सर्जरी द्वारा आसानी से ठीक किया जा सकता है ।
    हम में से कुछ, हालांकि, अधिक गंभीर उम्र-से-संबंधित नेत्र रोगों (ग्लोकोमा (काला मोतिया) ,मैकुलर डिजनरेशन ( धब्बेदार अध: पतन ) और मधुमेह संबंधी रेटिनोपैथी) का अनुभव करेंगे जो हमारे बड़े होने के साथ ही हमारे जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने की अधिक क्षमता रखते हैं ।
    आयु संबंधी दृष्टि परिवर्तन कब होते हैं ?

    प्रेसबायोपिया

    40 वर्ष की आयु पार करने के बाद, करीब की वस्तुओं पर फोकस करना कठिन होता है । प्रेसबायोपिया फोकस करने की क्षमता का एक सामान्य नुकसान है जैसे ही आप बड़े होते हैं ।
    एक समय के लिए, आप अपनी आंखों से दूर पढ़ने वाली सामग्री को पकड़कर प्रेसबायोपिया के लिए क्षतिपूर्ति कर सकते हैं, लेकिन अंततः आपको पढ़ने के लिए चश्मा, प्रोग्रेसिव लेंसस, मल्टीफ़ोकल कांटैक्ट लेंस या दृष्टि सर्जरी की आवश्यकता होगी ।

    मोतियाबिंद (कैटरेक्ट), जो वर्षों के दौरान विकसित होता है, वृद्धावस्था में एक सामान्य स्थिति है .. मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) का मुख्य लक्षण धुंधली दृष्टि है जो ऐसा प्रतीत होता है मानो आप किसी धुंधली खिड़की से देख रहे हों ।
    विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन) के नवीनतम आंकलन के अनुसार, मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) दुनिया भर में 51 प्रतिशत दृष्टिविहीनता के लिए जिम्मेदार है । भारत में हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 63 प्रतिशत दृष्टिविहीनता मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के कारण होती है ।
    मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) सर्जरी सुरक्षित है , इसलिए अपनी स्पष्ट दृष्टि को बहाल करने के लिए अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें । मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) के कारण होने वाली धुँधली दृष्टि को ड्राइव करने, पढ़ने, किराने का सामान खरीदने, अपने फोन का उपयोग करने और अपने घर के आसपास आने-जाने में कठिनाई होती है ।

    उम्र बढ़ने पर हमारी आंखों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

    जबकि आम तौर पर हम उम्र बढ़ने के बारे में सोचते हैं क्योंकि यह प्रेस्बायोपिया और मोतियाबिंद (कैटरेक्ट) जैसी स्थितियों से संबंधित है, हमारी दृष्टि और आंखों में अधिक सूक्ष्म परिवर्तन भी होते हैं जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं । इन परिवर्तनों में शामिल हैं :

    • पुतली का आकार कम होना

    जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है,, मांसपेशियों जो हमारे पुतली के आकार और प्रकाश की प्रतिक्रिया को नियंत्रित करती हैं, कुछ ताकत खो देती हैं । इससे पुतली, परिवेशीय प्रकाश में परिवर्तन के लिए छोटी और कम प्रतिक्रियाशील हो जाती है ।
    इन परिवर्तनों के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को युवा पीढ़ी की तुलना में आरामदायक पढ़ने के लिए तीन गुना अधिक परिवेश प्रकाश की आवश्यकता होती है ।
    इसके अलावा, सीनियर्स को उज्ज्वल सूरज की रोशनी और चौंध से चकाचौंध होने की संभावना है जब एक फिल्म थिएटर जैसे मंद रोशनी वाली इमारत से बाहर आते है । फोटोक्रोमिक लेंस और एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग वाले चश्मे इस समस्या को कम करने में मदद कर सकते हैं ।

    शुष्क आंखें (ड्राई आईज) :

    जैसे – जैसे हमारी उम्र बढ़ती है , हमारी आँखें कम आँसू पैदा करती हैं । यह मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति) के बाद महिलाओं के लिए विशेष रूप से सत्य है ।
    यदि आप शुष्क आंखें ( ड्राई आईज) से संबंधित जलन, चुभने या आंखों की अन्य परेशानी का अनुभव करते हैं, तो आवश्यकतानुसार कृत्रिम आँसू का उपयोग करें, या अन्य विकल्पों के लिए अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें ।


    एजिंग भी परिधीय दृष्टि के सामान्य नुकसान का कारण बनता है, जो हमारे दृश्य क्षेत्र के आकार के साथ जीवन के दशक में लगभग एक से तीन डिग्री कम हो जाता है । जब तक आप अपने 70 और 80 के दशक तक पहुंचते हैं, तब तक आपको 20 से 30 डिग्री का परिधीय दृश्य क्षेत्र नुकसान हो सकता है ।
    वाहन चलाते समय अधिक सतर्क रहें क्योंकि दृश्य क्षेत्र की हानि से दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है .. अपनी दृष्टि की सीमा को बढ़ाने के लिए, अपने सिर को घुमाएं और चौराहों पर पहुंचने के दौरान दोनों तरफ देखें ।

    रेटिना में कोशिकाएं जो रंग दृष्टि के लिए जिम्मेदार हैं, जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है उनकी संवेदनशीलता में गिरावट आती है, जिससे रंग कम उज्ज्वल हो जाते हैं और रंगों के बीच कंट्रास्ट कम ध्यान देने योग्य हो जाते हैं 
    विशेष रूप से, नीले रंग फीके दिखाई दे सकते हैं । यदि आप किसी ऐसे पेशे में काम करते हैं जिसमें रंग-भेदभाव (जैसे कलाकार, सीमस्ट्रेस, या इलेक्ट्रीशियन) की आवश्यकता होती है, तो आपको पता होना चाहिए कि रंग-बोध के इस उम्र से संबंधित नुकसान का कोई इलाज नहीं है ।

    जैसे - जैसे हमारी उम्र बढ़ती है, आंख के अंदर जेल की तरह विट्रियस द्रवीभूत (लिक्विडीफ्य) होकर और रेटिना से दूर खींचने के लिए शुरू होता है, जिससे "स्पॉट और फ्लोटर्स" और (कभी-कभी) प्रकाश की चमक होती है । यह स्थिति, जिसे विट्रियस डिटैचमेंट कहा जाता है, आमतौर पर हानिरहित होती है ।
    लेकिन फ्लोटर्स और प्रकाश की चमक भी रेटिना डिटैचमेंट की शुरुआत का संकेत दे सकती है - एक गंभीर समस्या जो तुरंत इलाज न होने पर दृष्टिविहीनता (ब्लाईंडनेस्स) का कारण बन सकती है । यदि आपको चमक और फ्लोटर्स का अनुभव होता है, तो कारण निर्धारित करने के लिए तुरंत अपने नेत्र चिकित्सक से परामर्श करें 
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    14.12.19

    जल्दी जल्दी खाना खाने से वजन बढ़ता है और होती हैं ये बीमारियां/fast eating


      क्या आप भी रोज की भागदौड़ के कारण जल्दी-जल्दी खाना खाते हैं या जल्दी निकलने के लिए जल्दी-जल्दी खाना आपकी आदत बन गई है। अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए।

      वैसे तो हमें बचपन से ही धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना सिखाया जाता हैं, लेकिन फिर भी कई लोग व्यस्तता के चलते जल्दी-जल्दी में ही खाने खाने की आदत बना लेते हैं। अगर आप भी ऐसा ही करते हैं, तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ऐसा करना सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। यहां तक की आपको मोटापे का शिकार भी बना सकता है। आइए, जानते हैं कि आखिर क्यों जल्दी में न खाते हुए, धीरे-धीरे चबाकर भोजन करना चाहिए -
    क्या आपकी आदत भी जल्दी-जल्दी खाना खाने की है? कुछ लोगों के खाने की स्पीड इतनी तेज होती है कि उन्हें अक्सर अपने साथ खाने वालों का या तो इंतजार करना पड़ता है या लोगों को खाता हुआ छोड़कर उठना पड़ता है। ऐसे लोग जल्दी-जल्दी खाने को अपनी क्वलिटीज में गिनना शुरू कर देते हैं बकियों को 'स्लो ईटर' कहकर चिढ़ाने लगते हैं। मगर वो शायद नहीं जानते हैं कि जल्दी-जल्दी खाने की आदत उनके लिए कितनी नुकसानदायक हो सकती है। जी हां, वैज्ञानिकों के अनुसार हमें अपना खाना हमेशा धीरे-धीरे, अच्छी तरह चबाकर और स्वाद लेकर खाना चाहिए। इससे खाना पचाने में आसानी रहती है। जल्दी-जल्दी खाना खाने की आदत आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है।

    तेजी से बढ़ने लगता है वजन

    अगर आप जल्दी-जल्दी बिना ढँग से चबाए खाना खाते हैं तो आपकी इस आदत से आपका वजन भी तेजी से बढ़ने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तेजी से खाना खाने से आपके शरीर में मेटाबलिज्म की प्रक्रिया पर भी असर पड़ता है, जिसका वजन से सीधा संबंध है। जब आप धीरे-धीरे खाना खाते हैं तो आप सही मात्रा में जरूरत के अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हार्मोन्स ब्रेन में पेट भरने का संकेत भेजते हैं। अध्ययन में देखा गया है कि 5 साल के समय के दौरान 84 लोगों में मैटाबॉलिज्म सिंड्रोम पनपा, जो प्रतिभागी तेजी से खाना खाते थे उनका वजन बढ़ा, रक्त शर्करा में भी बढ़ौतरी हुई, बैड कोलेस्ट्राल भी बढ़ा और कमर के आकार में भी बढ़ोतरी हुई।भले ही आप किसी भी कारणवश जल्दी में खाना खाएं, इसके कारण आपका वजन बढ़ना तय है और बढ़ता वजन अपने आप में ही एक गंभीर समस्या है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना-खाने से दिमाग को पेट भरने का अहसास नहीं हो पाता है। ऐसे में आप ज्यादा खाना खा लेते हैं जो वजन बढ़ने या मोटापे का मुख्य कारण बन जाता है।इसलिए बढ़ते वजन से बचने के लिए खाने को हमेशा अच्छे से चबाकर ही खाएं।

    प्रभावित होता है इंसुलिन

    शोधकर्ताओं ने कहा कि जल्दी-जल्दी खाना खाने से दिमाग को जरूरी संदेश नहीं मिल पाता है। इसकी वजह से जरूरी हार्मोन्स नहीं निकल पाते हैं। इस कारण इंसान का इंसुलिन प्रभावित होता है और इंसुलिन प्रभावित होने की वजह से टाइप-2 मधुमेह होने का खतरा बढ़ जाता है। खाना अच्छी तरह चबाकर खाने से मुंह में मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं। देर तक खाने से मुंह में बनने वाली लार बैक्टीरिया खत्म कर देती है, जिससे शरीर बैक्टीरियल संक्रमण से दूर रहता है।
      डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे -धीरे चबाकर खाना चाहिए इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लूकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है

    हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट रोग का खतरा

    इंसान का खान पान उसे कई बीमारियों से बचाता है. तो वहीं जल्दी जल्दी खाने की वजह से कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.
    जब इंसान मेटाबॉलिक सिंड्रोम का शिकार होता है तो उसे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने लगती है. हाई ब्लड प्रेशर की परेशानी की वजह से हार्ट रोग का खतरा बढ़ जाता है
     
    हो सकता है मेटाबॉलिक सिंड्रोम

    जल्दबाजी में खाना खाने से मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने की संभावना भी बढ़ सकती है।दरअसल, जल्दबाजी में खाना खाने से शरीर में रक्त शर्करा और कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ जाता है और ये दोनों समस्याएं मिलकर मेटाबॉलिज्म सिंड्रोम की स्थिति बना सकती हैं।इसमें मेटाबॉलिज्म का स्तर असंतुलित हो जाता है जो शरीर में अन्य कई समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।इसलिए कभी भी जल्दबाजी में खाना खाने की भूल न करें।

    अच्छी तरह नहीं पचता है खाना

    आप तेज खाना इसलिए खा पाते हैं क्योंकि खाने को दांत से देर तक चबाने के बजाय सीधा निगल लेते हैं। खाने को चबाना इसलिए जरूरी है ताकि आपका खाना छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट जाए और डाइजेस्टिव सिस्टम के लिए उसे पचाना और प्रॉसेसिंग करना आसान हो जाए। इसके अलावा जब आप खाने को चबाकर खाते हैं, तो आपके मुंह की राल उसमें मिल जाती है। आपका थूक पेट में डाइजेस्टिव एंजाइम्स को एक्टिवेट करता है, ताकि वो खाने को तोड़कर पोषक तत्वों को अलग कर सकें।

    ब्लड शुगर बढ़ सकता है

      जी हां, यह बात पढ़कर आपको भी झटका लग सकता है कि तेजी से खाना खाने से आपका ब्लड शुगर बढ़ सकता है। दरअसल तेजी से खाना खाने से शरीर में इंसुलिन रेजिस्टेंस शुरू हो जाता है, जिसके कारण आपका ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। लंबे समय में ये आदत आपको डायबिटीज का शिकार बना सकती है। अगर आप पहले से डायबिटीज का शिकार हैं, तो आपके लिए तेजी से खाना खाना बहुत खतरनाक हो सकता है। इसलिए आपको हमेशा खाना धीरे-धीरे खाना चाहिए।
      धीरे-धीरे और अच्छी तरह से चबाकर खाने से भोजन में लार अच्छी तरह मिल जाती है, जिससे भोजन को पचाना आसान हो जाता है। इससे आपका मेटाबॉलिज्म भी सही रहता है।
    माना जाता है कि डायबिटीज के खतरे को कम करने के लिए भी भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाना चाहिए। इससे खाना तो ठीक से पचता ही है साथ ही ग्लकोज भी ठीक प्रकार से टूट कर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
    धीरे-धीरे और चबाकर खाने से पेट से जुड़ी कई समस्याएं खत्म हो जाती हैं, जैसे कब्ज व गैस आदि। धीरे-धीरे खाने से मन भी शांत रहता है और छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाना या गुस्सा आना भी कम हो जाता है।
     धीरे-धीरे, चबाकर खाने से भोजन करने में समय लगता है और आप ज्यादा खाने से बच जाते हैं, जिससे मोटापे जैसे परेशानी से भी बचाव होने में मदद मिलती है।

      गैस की समस्या 

    भी आमतौर पर खाने की गलत आदतों के कारण होती है।यह समस्या होने पर उल्टी, जी मचलाना, पेट में जलन, पेट में गुड़गुड़ाहट और सीने में दर्द जैसी परेशानियां हो सकती हैं।वहीं इस कारण गैस्ट्रोइंट्सटाइनल डिजीज होने का भी खतरा रहता है। यह गैस से संबंधित गंभीर समस्या है।इसलिए अगर आपकी जल्दबादी में खाना खाने की आदत है तो इसे जल्द सुधारने की कोशिश करें।

    धीरे खाना खाने का शरीर पर असर

    जब हम धीरे और चबाकर खाना खाते हैं तो हमारी आंतों को इस भोजन को पचाने में आसानी होती है। धीमी गति से खाना खाने के दौरान हमारे पाचनतंत्र और दिमाग के हॉर्मोन्स के बीच सही कनेक्शन बन पाता है और हमारा दिमाग सिग्नल देता है कि हमें कितना खाना खाना है या नहीं खाना है।
    लेकिन जल्दबाजी में खाना खाने के दौरान हम इस तरह का कनेक्शन डिवेलप नहीं कर पाते हैं। जब इस तरह भोजन करना हमारी आदत बन जाती है हमारे शरीर में कई तरह की बीमारियां पनपने लगती हैं। इनमें पाचन से लेकर मोटापे तक कई समस्याएं शामिल हैं।
    जब हम धीरे-धीरे खाना खाते हैं तब सही मात्रा में और जरूरत अनुसार खाते हैं। साथ ही शरीर के हॉर्मोन्स ब्रेन में अलार्म करते हैं। इसकी वजह होती है कि शरीर में इंसुलिन का स्तर प्रभावित होता है। यदि इंसुलिन शरीर में कम होने लगता है तो डाबिटीज टाइप-2 का खतरा बढ़ जाता है।
     
    *विशेषज्ञ कहते हैं कि खाना खाने में करीब 20 मिनट का वक्त लेना चाहिए, ताकि आप अपने खाने को अच्छे तरीके से चबाकर खा सकें। यूनिवर्सिटी ऑफ बर्मिंघम के शोधकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि खाने को ज्यादा देर तक चबाने से आप कम खाना तो खाते ही हैं, साथ ही 2 घंटे बाद कुछ हल्का खाने की आदत भी नियंत्रण में रहती है
    *हीरोशिमा यूर्निवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. ताकायुकी यामाजी और उनकी टीम ने 1,000 प्रतिभागियों पर 5 वर्ष तक अध्ययन किया। इस अध्ययन का प्रमुख उद्देशय खाना खाने की गति और मैटाबॉलिक सिंड्रोम के बीच संबंधों की खोज करना था। मैटाबॉलिक सिंड्रोम ऐसे 5 जोखिम कारकों का समायोजन है, जिससे दिल के रोगों, डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है। इन जोखिमों में हाई ब्लड प्रेशर, हाई ट्राइग्लिसराइड, रक्त में मौजूद वसा, उच्च रक्त शर्करा व गुड कोलैस्ट्रॉल की कमी और बढ़ता हुआ वजन शामिल है।