26.11.19

प्रेडनिसोलोन दवा का कैसे उपयोग करें ?


प्रेडनिसोलोन क्या है?
प्रेडनिसोलोन एक ग्लुकोकोर्टिकोइड दवा है जिसमें प्रिडनिसोलोन मुख्य घटक के रूप में पाया जाता है| यह मुख्य रूप से एलर्जी, सूजन और प्रतिरक्षा संबंधी विकारों के लिए प्रयोग होता है|
प्रेडनिसोलोन का उपयोग
इसका उपयोग कई विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है जिनमें निम्न हो सकते हैं
लुपस, सोरायसिस और एलर्जी की स्थिति।
संधिशोथ; किशोर पुरानी गठिया, पॉलीमेल्जिया संधिशोथ
ड्यूकेन मांसपेशी डिस्ट्रॉफी (एक प्रगतिशील बीमारी जिसमें मांसपेशियां ठीक से काम नहीं करती हैं)
अस्थमा, गंभीर अतिसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाएं
प्रत्यारोपण सर्जरी (प्रतिरक्षा दमन के लिए)
पेम्फिगस, बुलस पेम्फिगोइड (प्रतिरक्षा-मध्यस्थ त्वचा रोग)
रक्त विकार जैसे ऑटोम्यून्यून हेमोलाइटिक एनीमिया, इडियोपैथिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक purpura
तीव्र और लिम्फैटिक ल्यूकेमिया, घातक लिम्फोमा, एकाधिक माइलोमा
प्रेडनिसोलोन कैसे काम करता है
प्रेडनिसोलोन सूजन के शुरुआत से लेकर पुरानी सूजन के विकास के लिए एक प्रभावी अवरोधक है।
प्रेडनिसोलोन मोनोन्यूक्लियर कोशिकाओं (सूजन कोशिकाओं की विशेषता) के प्रसार और इन कोशिकाओं द्वारा सूजन पैदा करने वाले उत्पादों या पदार्थों की रिहाई को रोकता है – जिससे प्रतिरक्षा-दमनकारी क्रियाएं होती हैं।
प्रेडनिसोलोन कैसे लें
इस दवा की खुराक और इसे लेने का समय डॉक्टर द्वारा तय किया जाना चाहिए।
इसकी खुराक आयु, चिकित्सा की स्थिति और चिकित्सा के प्रति प्रतिक्रिया पर आधारित है।
प्रेडनिसोलोन गोलियों और सिरप के रूप में मिलता है।
इन गोलियों को सुबह के समय लेना चाहिए या जब तक डॉक्टर द्वारा सलाह ना दी जाए|
इन्हें रोजाना एक ही समय पर लेना चाहिए।
सिरप का उपयोग करने से पहले सिरप की बोतल को अच्छी तरह से हिला लें और सही खुराक लेने के लिए हमेशा मापने वाले चम्मच का उपयोग करें।
प्रेडनिसोलोन इंजेक्शन के रूप में भी मिलता है जिसे एक पेशेवर स्वास्थ्यकर्मी के द्वारा ही लगवाना चाहिए|
प्रेडनिसोलोन की सामान्य खुराक
इसकी खुराक आपकी हालत पर निर्भर होती है| वयस्कों के लिए इसकी खुराक रोजाना 20 से 40 मि.ग्रा. से 80 मि.ग्रा. तक है जिसे कम करके प्रतिदिन 5 से 20 मि.ग्रा. किया जा सकता है।
प्रेडनिसोलोन से कब बचें?
आपको निम्न स्थितियों में प्रेडनिसोलोन का उपयोग नहीं करना चाहिए:
यदि इसके किसी से एलर्जी हो
रक्तचाप बढने पर
थ्रोम्बोम्बोलिक विकार
मधुमेह मेलिटस
ऑस्टियोपोरोसिस,
स्क्लेरोडर्मा,
मियासथीनिया ग्रेविस,
जिगर, गुर्दे, दिल, आंतों, एड्रेनल या थायराइड रोग।
हेपेटाइटिस-बी
हरपीस, आंख का संक्रमण, चिकनपॉक्स, शिंगल या खसरा।
मोतियाबिंद, आंख का रोग
भावनात्मक समस्याएं, अवसाद या मानसिक बीमारी के अन्य प्रकार
फेच्रोमोसाइटोमा (गुर्दे के पास एक छोटी ग्रंथि में ट्यूमर)
अल्सर

आपके पैरों, फेफड़ों या आंखों में खून का थक्का
यदि आप किसी भी सर्जरी या दांतों की सर्जरी से गुजर रहे हैं तो डॉक्टर को सूचित करें|
यदि आपको टीकाकरण की आवश्यकता है तो अपने डॉक्टर को सूचित करें।
मांसपेशियों की समस्याओं वाले मरीजों या पूर्व में प्रीनीसोलोन टैबलेट (या एक समान दवा) ले रहर हों तो डॉक्टर को सूचित करें|
प्रेडनिसोलोन के दुष्प्रभाव?
कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के अचानक विघटन से एक स्टेरॉयड “विदड्राल सिंड्रोम” हो सकता है। इस सिंड्रोम की वजह से भूख, मतली, उल्टी, थकावट, सिरदर्द, बुखार, जोड़ों में दर्द, त्वचा का झड़ना, मांसपेशियों में दर्द या वजन घटना हो सकता है|
प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक प्रयोग करने से कुशिंग सिंड्रोम हो सकता है। इसके लक्षणों में रक्तचाप में वृद्धि, शरीर के चारों ओर मोटापे में वृद्धि और अंगों की पतली, त्वचा पर बैंगनी पट्टियां, चेहरे की गोलियां, मांसपेशियों की कमजोरी, पतली नाजुक त्वचा के साथ आसान और लगातार चोट लगाना आदि हैं|
इसके इलावा गर्दन के पिछले हिस्से पर वसा जमना, मुँहासे, मासिक धर्म चक्र में परेशानी, शरीर पर बाल और मनोवैज्ञानिक असामान्यताओं में वृद्धि होना भी है|
प्रेडनिसोलोन रक्त ग्लूकोज के स्तर को बढ़ा सकता है, पहले से मौजूद मधुमेह को बिगाड़ सकता है और मधुमेह विरोधी दवाओं के प्रभाव को भी कम कर सकता है। इसलिए नियमित अंतराल पर खून में ग्लूकोज की जांच करते रहना चाहिए|



शरीर में होने वाले संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकता है जैसे वायरल, बैक्टीरिया, फंगल, प्रोटोज़ोन या हेल्मिंथिक आदि| यह संक्रमण के प्रतिरोध को कम करके मौजूदा संक्रमणों को खराब कर सकता है।

प्रेडनिसोलोन रक्तचाप को बढ़कर शरीर में नमक और पानी के प्रतिधारण को बढ़ा सकता है और शरीर से पोटेशियम और कैल्शियम के निकलने का कारण बन सकता है।
इससे गंभीर मनोवैज्ञानिक प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जैसे अक्रामकता, अवसाद, भावनात्मक विकार, अनिद्रा, मनोदशा बदलना, नींद के विकार आदि|
प्रेडनिसोलोन हड्डी के गठन और दोबारा जुड़ने दोनों को ही को कम कर सकते हैं|
प्रेडनिसोलोन आंखों की बीमारियों का कारण भी बन सकता है जैसे मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, बैक्टीरिया, कवक या वायरस के कारण आंख का संक्रमण इत्यादि|
त्वचा पर गंभीर चकत्ते प्रेडनिसोलोन का एक अन्य दुष्प्रभाव है।
प्रेडनिसोलोन को लम्बे समय तक उपयोग करने से बच्चों के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे मामलों में तुरंत डॉक्टर से सलाह लें|
अंगों पर प्रभाव
जिगर – जिगर के गंभीर रोगों वाले मरीजों में खुराक के समायोजन की जरूरत होती है।
गुर्दा – इसमें खुराक के समायोजन की कोई आवश्यकता नहीं है। यदि किसी प्रकार के अवांछित लक्षण पाए जाते हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श लें।
एलर्जी प्रतिक्रियाएं
यदि किसी भी सामग्री से एलर्जी हो तो अपने डॉक्टर से सम्पर्क करें| इससे होने वाली एलर्जी प्रतिक्रियाओं में त्वचा पर गंभीर चकत्ते, सांस की तकलीफ और खुजली इत्यादि हैं|
दवा इंटरैक्शन के बारे में सावधानी
इंटरैक्शन करने वाली सभी दवाओं को यहां सूचीबद्ध नहीं किया जा सकता इसलिए प्रेडनिसोलोन निम्न दवाओं और उत्पादों के साथ प्रभाव डाल सकता हैं:
एस्पिरिन और अन्य नॉनस्टेरॉयड एंटी-इंफ्लैमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) जैसे इबुप्रोफेन और नाप्रोक्सेन,
गर्भनिरोधक गोली
एंटीएसिड्स- एंटीएसिड्स के साथ इसे लेने के बीच में कम से कम 2 घंटे का अंतराल छोड़ दें।
क्लैरिथ्रोमाइसिन, रिफाबूटिन, रिफाम्पिसिन, एम्फोटेरिसिन, केटोकोनाज़ोल, टेट्रासाइक्लिन, फ्लुकोनाज़ोल
इंसुलिन सहित मधुमेह के लिए दवाएं,
फ़िनाइटोइन
थायराइड की दवा
वेरापामिल
उच्च रक्तचाप या मूत्रवर्धक दवाएं
मिर्गी का इलाज करने वाली दवाएं जैसे कि कार्बामाज़ेपाइन, फेनोबार्बिटल, बार्बिटेरेट्स, फेनीटोइन, प्राइमिडोन, फेनिलबूटज़ोन
मेथोट्रेक्सेट (गठिया के लिए, क्रोन रोग, छालरोग)
मिफेप्रिस्टोन (गर्भपात के लिए उपयोग किया जाता है)
सिक्लोपोरिन (अंग प्रत्यारोपण अस्वीकृति को रोकने के लिए)
एंटीकोगुलेंट दवाएं (खून पतला करने वाली के लिए प्रयोग किया जाता है)
एमिनोग्लुटाइथिमाइड, एसीटाज़ोलोमाइड, कार्बोक्सोलोन या सैलिसिलेट्स
रेटिनोइड्स (त्वचा की स्थितियों के लिए)
कार्बिमाज़ोल (हाइपरथायरायडिज्म के लिए)
थियोफाइललाइन (अस्थमा के लिए)

अपने द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी दवाओं और उत्पादों की सूचना चिकित्सक को दें| जिन हर्बल उत्पादों का आप उपयोग कर रहे हैं उनके बारे में भी डॉक्टर को सूचित करें| बिना अपने डॉक्टर की मंजूरी के दवा संशोधित न करें|
प्रभाव या परिणाम
इससे ठीक होने के लिए लिया गया समय चिकित्सा की स्थिति पर निर्भर करता है।
लक्षणों को पूरी तरह समाप्त करने के लिए अपने डॉक्टर द्वारा तय की गयी खुराक को पूरा लें|
अपने डॉक्टर से सलाह किए बिना दवा लेना बंद ना करें|
सामान्य प्रश्न


क्या प्रेडनिसोलोन नशे की लत है?

नहीं। लेकिन इन दवाइयों पर निर्भरता से बचना चाहिए।
क्या शराब के साथ प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अल्कोहल लेने से बचना चाहिए।
क्या किसी विशेष खाद्य पदार्थ से बचना चाहिए?
प्रेडनिसोलोन लेने के दौरान अंगूर या अंगूर का रस ना लें|
क्या गर्भवती होने पर प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
यदि आप गर्भवती हैं या गर्भवती होने की योजना बना रही हैं तो अपने डॉक्टर को इस बारे में बताएं| गर्भावस्था के दौरान प्रेडनिसोलोन को लंबे समय तक लेने से भ्रूण का विकास मंद हो सकता है। प्रेडनिसोलोन को केवल तभी लेना चाहिए जब मां और बच्चे को हानि ना हो।
क्या बच्चे को स्तनपान करने के दौरान प्रेडनिसोलोन ले सकते हैं?
50 मि.ग्रा. प्रतिदिन तक की खुराक शिशु पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती| यदि आप अपने बच्चे को स्तनपान करा रही हैं तो अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही इस दवा का उपयोग करें|
क्या प्रेडनिसोलोन लेने के बाद ड्राइव कर सकते हैं?
यदि आप निम्न में से कुछ भी अनुभव हो तो इस दवा को लेकर ना तो वाहन चलाएं और ना ही भारी मशीनरी चलायें:
आलस्य
सरदर्द
चक्कर आना
रक्तचाप में वृद्धि
यदि प्रेडनिसोलोन अधिक मात्र में लें तो क्या होता है?
यदि आपने प्रेडनिसोलोन अधिक मात्रा में ली है तो तुरंत अपने डॉक्टर को सूचित करें।
यदि एक्सपायरी हो चुकी प्रेडनिसोलोन लें तो क्या होता है?
एक्सपायरी हो चुकी एक खुराक लेने से कोई बड़ा प्रतिकूल प्रभाव नहीं हो सकता लेकिन दवा की शक्ति कम हो सकती है इसलिए आपको हमेशा एक्सपायरी दवा की जांच करें और कभी भी उपयोग ना करें|
यदि प्रेडनिसोलोन की खुराक लेनी याद ना रहे तो क्या होता है?
प्रभावी रूप से काम करने के लिए हर समय आपके शरीर में दवा की एक निश्चित मात्रा का होना जरूरी है| इसलिए जैसे ही आपको याद आये हमेशा अपनी भूली हुई खुराक लें| यदि दूसरी खुराक का पहले से ही समय हो गया हो तो दुगुनी खुराक ना लें|
प्रेडनिसोलोन का भंडारण
इसे कमरे के तापमान पर सीधे प्रकाश और गर्मी से 25 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखें।
इस दवा को फ्रिज में न रखें|
बोतल खोलने के 1 महीने के बाद तक प्रेडनिसोलोन ओरल सस्पेंशन को खुला न छोड़ें।
प्रेडनिसोलोन लेते समय टिप्स

प्रेडनिसोलोन संक्रामक रोगों को विकसित करने के लिए आपकी संवेदनशीलता को बढ़ा सकता है| इसलिए संक्रामक बीमारियों से पीड़ित लोगों को इससे दूर रहना चाहिए।
प्रेडनिसोलोन का उपयोग अचानक या डॉक्टर की सलाह के बिना कभी नहीं रोकना चाहिए।
प्रेडनिसोलोन का उपयोग करने के दौरान अतिरिक्त पूरक खुराक लेना जरूरी है जैसे तनाव के समय, शल्य चिकित्सा या संक्रमण के दौरान
लंबी समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉयड थेरेपी लेने वाले मरीजों को नियमित रूप से नियमित अंतराल पर प्रयोगशाला अध्ययन (2 घंटे के पोस्टप्रैन्डियल ब्लड ग्लूकोज और सीरम पोटेशियम सहित), रक्तचाप, वजन, और छाती का एक्स-रे इत्यादि करवाने चाहिए।


का लंबे समय तक उपयोग हड्डी के खनिज घनत्व को कम करता है और आंखों पर भी प्रभाव डाल सकता है। इसलिए नियमित रूप से हड्डी के खनिज घनत्व की परीक्षा और नियमित आंखों की परीक्षा करवाते रहना चाहिए।

बाल रोगियों के विकास पर नजर रखें|
प्रेडनिसोलोन का लंबे समय तक उपयोग करने के दौरान हमेशा हाइपोथालेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (एचपीए) एक्सिस सप्रेशन, कुशिंग सिंड्रोम की भी निगरानी करें।
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25.11.19

आयुर्वेदिक चूर्ण का विवरण और फायदे


हिंग्वाष्टक चूर्ण पेट की वायु को साफ करता है तथा अग्निवर्द्धक व पाचक है। अजीर्ण, मरोड़, ऐंठन, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट का फूलना, पेट का दर्द, भूख न लगना, वायु रुकना, दस्त साफ न होना अपच के दस्त आदि में पेट के रोग नष्ट होते हैं तथा पाचन शक्ति ठीक काम करती है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
व्योषादि चूर्ण श्वास, खांसी, जुकाम, नजला, पीनस में लाभदायक तथा आवाज साफ करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सायंकाल गुनगुने पानी से।
शतावरी चूर्ण धातु क्षीणता, स्वप्न दोष व वीर्यविकार में, रस रक्त आदि सात धातुओं की वृद्धि होती है। शक्ति वर्द्धक, पौष्टिक, बाजीकर तथा वीर्य वर्द्धक है। मात्रा 5 ग्राम प्रातः व सायं दूध के साथ।
स्वादिष्ट विरेचन चूर्ण (सुख विरेचन चूर्ण) :  हल्का दस्तावर है। बिना कतलीफ के पेट साफ करता है। खून साफ करता है तथा नियमित व्यवहार से बवासीर में लाभकारी। मात्रा 3 से 6 ग्राम रात्रि सोते समय गर्म जल अथवा दूध से।
सारस्वत चूर्ण :  दिमाग के दोषों को दूर करता है। बुद्धि व स्मृति बढ़ाता है। अनिद्रा या कम निद्रा में लाभदायक। विद्यार्थियों एवं दिमागी काम करने वालों के लिए उत्तम। मात्रा 1 से 3 ग्राम प्रातः -सायं मधु या या दूध से। सितोपलादि चूर्ण पुराना बुखार, भूख न लगना, श्वास, खांसी, शारीरिक क्षीणता, अरुचि जीभ की शून्यता, हाथ-पैर की जलन, नाक व मुंह से खून आना, क्षय आदि रोगों की प्रसिद्ध दवा। मात्रा 1 से 3 गोली सुबह-शाम शहद से |
अग्निमुख चूर्ण (निर्लवण) : उदावर्त, अजीर्ण, उदर रोग, शूल, गुल्म व श्वास में लाभप्रद। अग्निदीपक तथा पाचक। मात्रा 3 ग्राम प्रातः-सायं उष्ण जल से। 
अजमोदादि चूर्ण :  जोड़ों का दुःखना, सूजन, अतिसार, आमवात, कमर, पीठ का दर्द व वात व्याधि नाशक व अग्निदीपक। मात्रा 3 से 5 ग्राम प्रातः-सायं गर्म जल से अथवा रास्नादि काढ़े से।
त्रिकटु चूर्ण खांसी, कफ, वायु, शूल नाशक, व अग्निदीपक। मात्रा 1/2 से 1 ग्राम प्रातः-सायंकाल शहद से।
सैंधवादि चूर्ण : अग्निवर्द्धक, दीपन व पाचन। मात्रा 2 से 3 ग्राम प्रातः व सायंकाल पानी अथवा छाछ से। 


(महा) चूर्ण :
  सब तरह का बुखार, इकतरा, दुजारी, तिजारी, मलेरिया, जीर्ण ज्वर, यकृत व प्लीहा के दोष से उत्पन्न होने वाले जीर्ण ज्वर, धातुगत ज्वर आदि में विशेष लाभकारी। कलेजे की जलन, प्यास, खांसी तथा पीठ, कमर, जांघ व पसवाडे के दर्द को दूर करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम पानी के साथ। 
सुलेमानी नमक चूर्ण भूख बढ़ाता है और खाना हजम होता है। पेट का दर्द, जी मिचलाना, खट्टी डकार का आना, दस्त साफ न आना आदि अनेक प्रकार के रोग नष्ट करता है। पेट की वायु शुद्ध करता है। मात्रा 3 से 5 ग्राम घी में मिलाकर भोजन के पहले अथवा सुबह-शाम गर्म जल से भोजन के बाद।
त्रिफला चूर्ण : कब्ज, पांडू, कामला, सूजन, रक्त विकार, नेत्रविकार आदि रोगों को दूर करता है तथा रसायन है। पुरानी कब्जियत दूर करता है। इसके पानी से आंखें धोने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। मात्रा 1 से 3 ग्राम घी व शहद से तथा कब्जियत के लिए 5 से 10 ग्राम रात्रि को जल के साथ। 
श्रृंग्यादि चूर्ण :  बालकों के श्वास, खांसी, अतिसार, ज्वर में। मात्रा 2 से 4 रत्ती प्रातः-सायंकाल शहद से।
माजून मुलैयन हाजमा करके दस्त साफ लाने के लिए प्रसिद्ध माजून है। बवासीर के मरीजों के लिए श्रेष्ठ दस्तावर दवा। मात्रा रात को सोते समय 10 ग्राम माजून दूध के साथ।




18.11.19

शीत पित्त (पित्ती उछलना) के आयुर्वेदिक घरेलू उपचार




  इसे साधारण भाषा में पित्ती उछलना कहते हैं| इसमें रोगी के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ जाती है| कभी- कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह रोग हो जाता है| शीतपित्त पेट की गड़बड़ी तथा खून में गरमी बढ़ जाने के कारण होता है| वैसे साधारणतया यह रोग पाचन क्रिया की खराबी, शरीर को ठंड के बाद गरमी लगने, पित्त न निकलने, अजीर्ण, कब्ज, भोजन ठीक से न पचने, गैस और डकारें बनने तथा एलोपैथी की दवाएं अधिक मात्रा में सेवन करने से भी हो जाता है| कई बार अधिक क्रोध, चिन्ता, भय, बर्रै या मधुमक्खी के डंक मारने, जरायु रोग (स्त्रियों को), खटमल या किसी जहरीले कीड़े के काटने से भी इसकी उत्पत्ति हो जाती है|
पित्त बढ़ जाने के कारण हाथ, पैर, पेट, गरदन, मुंह, जांघ आदि पर लाल-लाल चकत्ते या ददोरे पड़ जाते हैं| उस स्थान का मांस उभर आता है| जलन और खुजली होती है| कान, होंठ तथा माथे पर सूजन आ जाती है| कभी-कभी बुखार की भी शिकायत हो जाती है|
* पित्ती उछलने के सरल उपचार - 
1) सबसे पहले रात को दो से चार चम्मच एक एरण्ड का तेल दूध में पीकर सुबह दस्तों के द्वारा पेट साफ कर लें| फिर छोटी इलायची के दाने 5 ग्राम, दालचीनी 10 ग्राम और पीपल 10 ग्राम – सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| इसमें से आधा चम्मच चूर्ण प्रतिदिन सुबह मक्खन या शहद के साथ चाटें| 
2) एप्पल साइडर सिरका पित्ती के लिए एक और अच्छा उपाय है। इसके एंटी-हिस्टामिन गुण सूजन को जल्‍द दूर करने में मदद करता और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को विनियमित करता है। इसके अलावा यह समग्र त्वचा के स्वास्थ्य को ठीक करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गुनगुने पानी से भरे एक बाथटब के गर्म पानी में सेब सिरके के दो कप मिलाये। फिर इस पानी में प्रभावित हिस्‍से को 15 से 20 मिनट के लिए भिगो दें। इसके अलावा आप सेब के सिरके और समान मात्रा में पानी को मिलाकर प्रभावित त्वचा को दिन में दो या तीन बार धोने के लिए प्रयोग करें। 
3) ६ ग्राम पुदीना लेकर इस पुदीने को अच्छी तरह पीसकर पानी में मिलाकर इस पानी को छान ले और इसमें १२ ग्राम चीनी मिलाकर रोज़ सुबह - शाम पीने से पित्ती का बार - बार का उछलना शांत हो जाता है। २०० ग्राम पानी और १० ग्राम पुदीना व २० ग्राम गुड़ ,इन दोनों को पानी में मिलाकर उबाल ले इस उबले पानी को किसी कपड़े से छानकर पीने से पित्ती ३ दिन में ही आराम हो जाएगी । 4) पित्ती रोगियों को हल्दी , मिश्री और शहद इन तीनों को मिलाकर रात को खाने से पित्ती की शिकायत दूर हो जाती है । और खाने के बाद रोगी को हवा नही लगनी चाहिए । बेसन के लड्डू बनाकर या बाजार से खरीद कर इसमें काली मिर्च मिलाकर खाने से पित्ती की बीमारी दूर हो जाती है । 
5)पित्ती की बीमारी को जड़ से नष्ट करने के लिए रोगी गेहूँ के आटा दो चम्मच , एक चम्मच हल्दी और थोड़ा सा घी मिलाकर इसका हलुआ तैयार कर ले । इस तैयार हलुए को ठंडा करने के बाद खाए और इसके बाद गर्म दूध पी ले ।
6)पित्ती दूर करने के और भी कई उपाय है जैसे:- थोड़ी - थोड़ी मात्र में गुड और अजवाइन मिलाकर इसका चूर्ण बना ले और इसकी ६ - ६ ग्राम की गोलियाँ तैयार कर ले । रोजाना एक- एक गोली शाम को पानी से खाने से आशातीत लाभ मिलता है । देसी घी में थोड़ा- सा सेंधा नमक डालकर रोग वाले स्थान पर मसलने से पित्ती ठीक हो जाती है ।
 7) पित्ती वाले रोगी के शरीर में गेरू पीसकर मलें तथा गेरू के परांठे या पुए खिलाएं| गाय के घी में दो चुटकी गेरू मिलाकर खिलाने से भी लाभ होता है | 
8) शीतपित्त में चिरौंजी का सेवन करें|
9) इस रोग को ठीक करने का एक सरल उपाय है हल्दी जो हर घर में उपलब्ध है । हल्दी को पीसकर या बाजारसे हल्दी का पाउडर खरीद कर यह पाउडर पानी में मिलाकर इसका पेस्ट तैयार कर ले । इस पेस्ट को दो छोटे चम्मच रोगी को एक दिन में सुबह दोपहर शाम खिलाने से पित्ती के रोगियों को काफी आराम मिलता है । इस बीमारी में रोगी को लाल गेरू या गैरिक का तेल उपयोग करने से भी लाभ मिलता है ।10) 2 ग्राम नागकेसर को शहद में मिलाकर चाटें| 
11) एक चम्मच हल्दी, एक चम्मच गेरू तथा दो चम्मच शक्कर सबको सूजी में मिलाकर हलवा बनाकर खाएं| 12) एक चम्मच त्रिफला चूर्ण शहद में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन करें
13) आंवले के चूर्ण में गुड़ मिलाकर खाने से गरमी के कारण उछली पित्ती ठीक हो जाती है| 
14) 5 ग्राम सोंठ तथा 5 ग्राम गेरू दोनों को शहद में मिलाकर चाटें|
 15) नीम की चार निबौलियों का गूदा शहद में मिलाकर सेवन करें| 
16) एक चम्मच अदरक का रस तथा शहद इस रोग में काफी लाभकारी है| 17) आधा चम्मच हल्दी तवे पर भूनकर उसे दूध या शहद के साथ लें|
 18) पित्ती उछलने पर घी में हींग को मिलाकर ददोरों पर मलें| 
19) पानी में नीबू निचोड़कर स्नान करने से भी काफी लाभ होता है| 
20) नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करें| 
21) सरसों के तेल में अदरक का रस मिलाकर मालिश करें|
22) 10 ग्राम गुड़ में एक चम्मच अजवायन तथा 10 दाने पीपरमेंट मिलाकर सेवन करें|
23) यदि पित्ती गरमी से उत्पन्न हुई हो तो शरीर पर चंदन का तेल मलें| 
24)आधा चम्मच गिलोय के चूर्ण में आधा चम्मच चंदन का बुरादा मिलाकर शहद के साथ सेवन करें|' 
25) पानी में पिसी हुई फिटकिरी मिलाकर स्नान करें| नागर बेल के पत्तों के रस में फिटकिरी मिलाकर शरीर पर लगाएं| 
 26) थोड़े से मेथी के दाने, एक चम्मच हल्दी तथा चार-पांच पिसी हुई कालीमिर्च सबको मिश्री में मिलाकर चूर्ण बना लें| सुबह आधा चम्मच चूर्ण शहद या दूध के साथ सेवन करें| 
27) पित्ती के रोग के लिए नीम के पत्तियों का उपयोग बहुत ही लाभदायक होता है । नीम के पत्तियों को थोड़ीसी मात्रा में लेकर इन पत्तों को चबाये ये पत्ते तब तक चबाते रहे जब तक ये नीम के पत्ते कड़वे ना लग जाये । यह उपचार ३ से ४ दिन तक करने से पित्ती की शिकायत दूर हो जाती है । 
28) बकायन की छाल को धूप में सुखाकर पीस डालें| फिर 2 रत्ती इस चूर्ण को शहद के साथ लें| 
29) भोजन के बाद 6 माशा हरिद्राखण्ड को दूध के साथ सेवन करें|

क्या खाएं  क्या न खाएं - * साग-सब्जी, मौसमी फल तथा रेशेदार सब्जियों का सेवन करें| गरम पदार्थ, गरम मेवे, गरम फल तथा गरम मसालों का प्रयोग न करें|  साग- सब्जी तथा दालों में नाम मात्र नमक डालें| खटाई, तेल, घी आदि का प्रयोग कम करें|  पित्त को कुपित करने वाली चीजें, जैसे-सिगरेट, शराब तथा कब्ज पैदा करने वाले गरिष्ठ पदार्थ बिलकुल न खाएं|  पुराने चावल, जौ, मूंग की दाल, चना आदि लाभकारी हैं| प्याज, लहसुन, अंडा, मांस, मछली आदि शीतपित्त में नुकसान पहुंचाते हैं, अत: इनका भी सेवन न करें|  जाड़ों में गुनगुना तथा गरमियों में ताजे जल का प्रयोग करें| इस रोग से पीड़ित व्यक्तियों को खट्टे पदार्थो जैसे दही आदि का प्रयोग नही करना चाहिए । रोगी को कड़वे पदार्थ या कड़वी सब्जियों का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए |
वीर्य जल्दी निकलने की समस्या के उपचा


प्रोस्टेट ग्रंथि बढ़ने से पेशाब रुकावट की कारगर हर्बल औषधि

सेक्स का महारथी बनाने वाले आयुर्वेदिक नुस्खे


आर्थराइटिस(संधिवात),गठियावात ,सायटिका की तुरंत असर हर्बल औषधि

खीरा ककड़ी खाने के जबर्दस्त फायदे

महिलाओं मे कामेच्छा बढ़ाने के उपाय

मुँह सूखने की समस्या के उपचार

गिलोय के जबर्दस्त फायदे

इसब गोल की भूसी के हैं अनगिनत फ़ायदे

कान मे तरह तरह की आवाज आने की बीमारी

छाती मे दर्द Chest Pain के उपचार

सिर्फ आपरेशन नहीं ,किडनी की पथरी की १००% सफल हर्बल औषधि

किडनी फेल रोगी का डाईट चार्ट और इलाज

तिल्ली बढ़ जाने के आयुर्वेदिक नुस्खे

यौन शक्ति बढ़ाने के अचूक घरेलू उपाय/sex power

कई बीमारियों से मुक्ति द‍िलाने वाला है गिलोय


किडनी स्टोन के अचूक हर्बल उपचार

स्तनों की कसावट और सुडौल बनाने के उपाय

लीवर रोगों के अचूक हर्बल इलाज

सफ़ेद मूसली के आयुर्वेदिक उपयोग

दामोदर चिकित्सालय शामगढ़ के आशु लाभकारी उत्पाद

मेथी का पानी पीने के जबर्दस्त फायदे

तनाव चिंता डिप्रेशन मे उपयोगी अश्वगंधा कई रोगों मे फायदे मंद


चिंता, मानव विकास के दौरान संरक्षित की गयी एक सामान्य तनाव प्रतिक्रिया हैं। हालांकि, जब चिंता सामान्य रोजमर्रा की घटनाओं में आती हैं, तब यह एक गंभीर चिंता विकार का रूप ले सकती है। चिंता विकारों के कारण एक व्यक्ति, उनकी शारीरीक या मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर संभावित आने वाले खतरे को लेकर अशांति और चिंता की स्थिती में चला जाता हैं। चिंता विकारों के लक्षण अक्सर दीर्घकालीन होते हैं, और उसमे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, ज्यादा चिड़चिड़ापन, मांसपेशियों में तनाव, अशांत नींद और चिंताओं पर काबू पाने में परेशानी, आदि शामिल हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा में परंपरागत रुप से विभिन्न रोगों के इलाज के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किये जाने वाली अश्वगंधा एक जड़ी बूटी है। आयुर्वेदिक उपचार में इस पौधे की जड़ें, पत्तियां और फल इस्तेमाल किये जाते हैं। रोमन इसे अपने वाइन में डालते थे ऐसी कहावत हैं। इसका लैटिन नाम 'विथानिआ सोमनिफेरा' है। यह चिंता विकार, अवसाद और अन्य मानसिक विकारों के उपचार में लाभकारी होती हैं, ऐसा माना गया हैं। आयुर्वेदिक उपचारों में वर्षों से इस पौधे की जड़ों, पत्तियों और फलों को इस्तेमाल किया जा रहा हैं। अब वैज्ञानिक अध्ययन ने यह पुष्टि की है कि इसमें कई औषधीय गुण हैं। तनाव कम करें अश्‍वगंधा आधुनिक जीवन नें उच्च स्तरीय नौकरियों में बहुत ज्‍यादा तनाव का निर्माण होता हैं और 80 प्रतिशत लोगों का मानना हैं कि तनाव के कारण उन्‍हें जीवन में बहुत सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। इसलिए हमें तनाव को कम और उसका प्रबंधन करने और कोर्टिसोल के स्तर को कम करने के लिए एक स्वस्थ तरीकों की जरूरत हैं। तनाव के हार्मोन के रूप में कोर्टिसोल को जाना जाता हैं। अश्वगंधा किसी भी हानिकारक दुष्प्रभावों के बिना चिंता और तनाव को कम करने का एक प्राकृतिक और सुरक्षित तरीका हैं।    शोध के अनुसार एक अध्ययन में अश्वगंधा के अवसाद विरोधी परिणाम की तुलना, पर्चेवाली अवसाद की दवाओं से की। और दिलचस्प बात यह सामने आयी कि चिंता और अवसाद पर उसके प्रभाव आधुनिक दवाओं के लिए तुलना में बहुत ही अच्‍छे थे। यह आयुर्वेदिक दावा आधुनिक हर्बल अनुसंधान द्वारा किया गया है। अश्वगंधा पर जॉर्ज वॉशिंगटन स्कूल ऑफ मेडिसिन एड हेल्थ साइंस और कुछ अन्य अमेरिकी परीक्षण केंद्रो में नैदानिक परीक्षणों का उपयोग करके उसकी प्रभावशीलता की जांच की गयी हैं। और उन्होने यह प्रमाणित किया है कि अश्वगंधा में किसी भी विषाक्तता या दुष्प्रभावों के बिना चिंता दूर करने वाले और अवसाद विरोधी गुण होते हैं। एक परीक्षण में, तंत्रिका रोग से पीड़ित 30 रोगियों को एक महीने के लिए प्रति दिन 40 मिलीग्राम अश्वगंधा की खुराक दी गयी। परीक्षण से पता चला कि ज्यादातर चिंता विकार के लक्षण जैसे घबड़ाहट या डर में बहुत कमी आयी। क्योंकि कई लोग अवसाद विरोधी दवा का इस्तेमाल करते हैं, दुष्प्रभावों के बिना प्राकृतिक उपचार का इस्तेमाल सकारात्मक रुप से लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकता हैं। अश्वगंधा आधुनिक दुनिया के तनावों के लिए प्रतिविष हो सकती हैं। अश्वगंधा ऐसी आयुर्वेदिक औषधि है, जिसे किसी परिचय की जरूरत नहीं है। अनगिनत खुबियों के कारण ही, सदियों से विश्वभर में इसका उपयोग किया जा रहा है। विभिन्न ग्रंथों में भी इसका उल्लेख किया गया है। आज के वैज्ञानिक युग में डॉक्टर भी मान चुके हैं कि अश्वगंधा गुणकारी औषधि है और कई रोगों के उपचार इस अकेली जड़ी-बूटी से संभव हैं। साथ ही साथ इसका इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवा के रूप में भी किया जा सकता है। यह जड़ी-बूटी आपको बाजार में पाउडर, कैप्सूल व टैब्लेट आदि रूपों में आसानी से मिल जाएगी। इसमें एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटी स्ट्रेस व एंटीबैक्टीरियल जैसे तत्व और इम्यून सिस्टम को बेहतर करने व अच्छी नींद लाने वाले गुण मौजूद हैं। अगर यह कहा जाए कि इसमें हर मर्ज का इलाज छुपा है, तो गलत नहीं होगा अश्वगंधा संपूर्ण शरीर के लिए फायदेमंद है। इसके सेवन से सिर्फ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली ही बेहतर नहीं होती, बल्कि मांसपेशियां भी मजबूत होती हैं और शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है। इसके अलावा, यह यौन व प्रजनन क्षमता को बेहतर करने में भी सक्षम है। साथ ही इसके सेवन से तनाव को भी कम किया जा सकता है। यह औषधि श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि कर शरीर को तमाम तरह के रोगों से लड़ने के लिए तैयार करती है जैसा कि हमने लेख के शुरुआत में बताया था कि अश्वगंधा में एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाया जाता है, तो इस खूबी के कारण ही यह शरीर में फ्री रेडिकल्स को बनने से रोकता है। इस कारण चेहरे पर समय से पूर्व झुर्रियां पड़ने की आशंका कई गुना कम हो जाती है अश्वगंधा में एंटीआक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण मौजूद हैं। इस कारण से ही यह ह्रदय से जुड़ी तमाम तरह की समस्याओं को दूर करने में सक्षम है। अगर आप अश्वगंधा का प्रयोग करते हैं, तो ह्रदय की मांसपेशियां मजबूत होती हैं और खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। कई वैज्ञानिक शोधों में भी पुष्टि की गई है कि अश्वगंधा में भरपूर मात्रा में हाइपोलिपिडेमिक पाया जाता है, जो रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है अनिद्रा अगर आप नींद न आने से परेशान हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर अश्वगंधा का सेवन कर सकते हैं। यह हम नहीं, बल्कि 2017 में जापान की त्सुकुबा यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट द्वारा किए गए एक रिसर्च में कहा गया है। इस अध्ययन के अनुसार, अश्वगंधा के पत्तों में ट्राइथिलीन ग्लाइकोल नामक यौगिक पाया जाता है, जो गहरी नींद में सोने में मदद करता है। इस रिसर्च के आधार पर कहा जा सकता है कि अनिद्रा के शिकार व्यक्ति को अश्वगंधा का सेवन करने से फायदा हो सकता है आजकल जिसे देखो, वही तनाव में नजर आता है। इस कारण से हम न सिर्फ समय से पहले बूढ़े हो रहे हैं, बल्कि कई बीमारियों का शिकार भी बन रहे हैं। अगर आप इन सभी दुष्परिणामों से बचना चाहते हैं, तो तनाव और चिंताग्रस्त जीवन जीने का प्रयास करें। साथ ही अश्वगंधा का सेवन करें। यह आयुर्वेदिक औषधि आपके तनाव को दूर करने के लिए कारगर साबित हो सकती है। हालांकि, अभी तक वैज्ञानिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि किन कारणों से अश्वगंधा में एंटी-स्ट्रेस गुण है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इसमें तनाव से राहत दिलाने के गुण हैं
यौन क्षमता में वृद्धि कई पुरुषों में यौन इच्छा कम होती है और वीर्य की गुणवत्ता भी अच्छी नहीं होती। इस कारण वो संतान सुख से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में अश्वगंधा जैसी शक्तिवर्धक औषधि पुरुषों में यौन क्षमता को बेहतर करने का भी काम करती है। साथ ही वीर्य की गुणवत्ता को भी बेहतर करती है। 2010 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अश्वगंधा का प्रयोग करने से वीर्य की गुणवत्ता के साथ-साथ उसकी संख्या में भी वृद्धि होती है। यह इंडियन जिनसेंग खासकर उन लोगों के लिए वरदान की तरह है, जिनकी यौन क्षमता या फिर वीर्य की गुणवत्ता कम होती है
डायबिटीज आप चाहे कैंसर की बात करें या फिर उच्च रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों की, आयुर्वेद में हर बीमारी का इलाज संभव है। उसी तरह डायबिटीज का इलाज भी आयुर्वेद के जरिए किया जा सकता है। आयुर्वेद में उल्लेख है कि जो अश्वगंधा का सेवन करता है, उसे जल्द ही डायबिटीज से राहत मिल सकती है। इस तथ्य को बल 2009 में हुए एक अध्ययन के जरिए मिलता है। इसमें डायबिटीज ग्रस्त चूहों पर अश्वगंधा की जड़ और पत्तों का प्रयोग किया गया था। कुछ समय बाद चूहों में सकारात्मक परिवर्तन नजर आए थे। इस लिहाज से विज्ञान प्रमाणित करता है कि अश्वगंधा से डायबिटीज का इलाज किया जा सकता है
थायराइड गले में मौजूद तितली के आकार की थायरायड ग्रंथि जरूरी हार्मोंस का निर्माण करती है। जब ये हार्मोंस असंतुलित हो जाते हैं, तो शरीर का वजन कम या ज्यादा होने लगता है। साथ ही अन्य तरह की परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है। इसी अवस्था को थायराइड कहते हैं। अगर आप भी थायराइड से ग्रस्त हैं, तो आपके लिए यह जानना और भी जरूरी हो जाता है कि अश्वगंधा किस प्रकार आपके लिए लाभकारी है। थायराइड से ग्रस्त चूहों पर हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जब चूहों को नियमित रूप से अश्वगंधा की जड़ दवा के रूप में दी गई, तो उनके थायराइड हार्मोंस संतुलन होने लगे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि थायराइड की अवस्था में डॉक्टर की सलाह पर अश्वगंधा का सेवन लाभकारी साबित हो सकता है गठिया-
यह ऐसी पीड़ादायक बीमारी है, जिसमें मरीज का चलना-फिरना और उठना-बैठना मुश्किल हो जाता है। ऐसा लगता है कि मानो जोड़ जम गए हैं। इसी के मद्देनजर वैज्ञानिकों ने 2014 में अश्वगंधा पर शोध किया था। उन्होंने अपने शोध के जरिए बताया कि अश्वगंधा में एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। अगर अश्वगंधा की जड़ के रस का प्रयोग किया जाए, तो न सिर्फ आर्थराइटिस से जुड़े लक्षण कम होते हैं, बल्कि दर्द से भी आराम मिलता है याददाश्त में सुधार इन दिनों हर कोई मल्टीपल काम कर रहा है और तनाव से भी घिरा हुआ है। परिणामस्वरूप, मस्तिष्क की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। ऐसे में जानवरों पर किए गए विभिन्न अध्ययनों में पाया गया कि अश्वगंधा ने मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और याददाश्त पर सकारात्मक तरीके से असर डाला। साथ ही अश्वगंधा लेने से नींद भी अच्छी आती है, जिससे मस्तिष्क को आराम मिलता है और वह बेहतर तरीके से काम कर पता है
 एंटी एजिंग जैसा कि इस लेख के शुरुआत में बताया गया है कि अश्वगंधा में एंटीऑक्सीडेंट गुण होता है। इस लिहाज से यह आपके लिए काफी लाभकारी है। एंटीऑक्सीडेंट गुण के कारण ही यह शरीर में बनने वाले फ्री रेडिकल्स से लड़ सकता है। ये फ्री रेडिकल्स सूरज की यूवी किरणों के कारण भी हमारे शरीर में बन सकते हैं और एंटी एजिंग का कारण बन सकते हैं। वहीं, अश्वगंधा से बने फेस पैक का प्रयोग किया जाए, तो न सिर्फ समय पूर्व चेहरे पर आने वाली झुर्रियों से छुटकारा मिल सकता है, बल्कि डार्क स्पोर्ट को भी कम किया जा सकता है। इतना ही नहीं, अश्वगंधा के प्रयोग से स्किन कैंसर से भी बचा जा सकता है सामग्री : एक चम्मच अश्वगंधा पाउडर थोड़ा-सा गुलाब जल (आवश्यकतानुसार) कैसे करें प्रयोग : अश्वगंधा पाउडर और गुलाब जल को अच्छी तरह मिक्स करें, ताकि वो पेस्ट की तरह बन जाए। अब इसे साफ हाथों या फिर साफ मेकअप ब्रश से अपने चेहरे पर लगाएं। इस पेस्ट को करीब 15 मिनट लगे रहने दें और फिर पानी से धो लें। कोर्टिसोल के स्तर में कमी कोर्टिसोल एक प्रकार का हार्मोन होता है, जिसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहा जाता है। यह हार्मोन आपके शरीर को बताता है कि आपको भूख लग रही है। जब रक्त में इस हार्मोन का स्तर बढ़ता है, तो शरीर में फैट और स्ट्रेस का स्तर भी बढ़ने लगता है। इससे शरीर को विभिन्न प्रकार के नुकसान हो सकते हैं। इसलिए, कोर्टिसोल के स्तर को कम करना जरूरी है। एक शोध में पाया गया है कि अश्वगंधा के प्रयोग से कोर्टिसोल को कम किया जा सकता है 
मजबूत बाल- ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो झड़ते बालों से परेशान हैं। ऐसा बालों के जड़ से कमजोर होने पर होता है। अगर आप भी इस समस्या से परेशान हैं, तो खास अश्वगंधा आपके लिए ही है। बाल न सिर्फ पोषक तत्वों की कमी के कारण झड़ते हैं, बल्कि इसके पीछे तनाव भी एक कारण है। जैसा कि पहले भी बताया गया है कि अश्वगंधा के प्रयोग से स्कैल्प बेहतर होता है और संपूर्ण पोषण मिलता है, उसी तरह यह कोर्टिसोल के स्तर को भी कम करता है। कोर्टिसोल का स्तर कम होने से तनाव दूर होता है और उससे होने वाले दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। ऐसे में जब बालों को पूरे पोषक तत्व मिलेंगे और तनाव कम होगा, तो बालों का झड़ना भी कम हो जाएगा| 
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17.11.19

किडनी फेल रोग का अचूक हर्बल इलाज : kidney fel rog ki herbal aushadhi



हमारे शरीर के हानिकारक पदार्थो को शरीर से छानकर बाहर निकलने का काम किडनी का ही होता है! किडनी हमारे शरीर के लिए रक्त शोधक का काम करती है, हम जो कुछ भी खाते है उसमे से विषैले तत्वों और नुकसान पहुचने वाले पदार्थो को यूरिनरी सिस्टम (मूत्राशय) के जरिये बाहर निकाल देती है जिससे के शरीर ठीक तरीके से काम कर सके और जहरीले तत्व कोई हानि नहीं पंहुचा सके!
हमें देश में दिन प्रति दिन ये बीमारी विकराल रूप से बड रही है और इस बीमारी की वजह से लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है! दुख की बात तो ये है के इस बीमारी का बहुत देर से पता चलता है जब तक किडनी 60-65% तक ख़राब हो चुकी होती है! इस रोग में बहूत सावधानी बरतनी पड़ती है!

किडनी फेल क्यों होती है?

हमारे शरीर के रक्त को शोधित करने का काम करने वाली किडनी खून में से हानिकारक पदार्थो को मूत्र के माध्यम से अनावश्यक व जहरीले तत्व बहार कर देती है!
किडनी रोग के लक्षण क्या है!
इस रोग का पता वैसे तो जल्दी नहीं लग पता लेकिन अगर सावधानी रखी जाए और लक्षणों पर गौर किया जाए तो निम्न लक्षण के जरिये इसका पता चलता है-
*हाथ पैर व आँखों के नीचे का भाग में सुजन आ जाती है!
*रोगी को भूख नहीं लगती है और शरीर में खून की कमी होने लगती है!
*शरीर में खुजली होना, बार बार मूत्र आना, कमजोरी महसूस होती है!-
*सांसे फूलने लगती है और हाजमा भी खराब रहता है!
 

किडनी के रोग को चार  भागो में बाटा गया है !

इस रोग के चरणों को पहचानने के लिए इसे विभिन्न भागो में बांटा गया है, जिसके जरिये रोगी की स्थिति का पता चलता है और उसी के हिसाब से उसका इलाज सही प्रकार से किया जा सकता है!-

किडनी रोग का पहला चरण-

नार्मल क्रीयेटीनिन, एक पुरुष के 1 डेसिलीटर खून में .6-1.2 मिलीग्राम और एक महिला के खून में 0.5-1.1 मिलीग्राम EGFR (Estimated Glomerular Filtration rate) सामान्यत: ९० या उससे ज्यादा होता है!

दूसरा चरण ( Second Stage):

इस stage में EGFR कम हो जाता है जो 90% - 60% तक हो जाता है, लेकिन फिर भी क्रीयेटीनिन सामान्य ही रहता है! लेकिन मूत्र में प्रोटीन ज्यादा आने लगता है!

तीसरा चरण-

इस stage में EGFR और घट जाता है जो 60-30 के बीच हो जाता है और क्रीयेटीनिन बढ़ जाता है! इस चरण में ही किडनी रोग के लक्षण दिखाई पड़ने लगते है, पेशाब में यूरिया बढ़ने से खुजली होने लगती है, मरीज एनेमिया से भी ग्रसित हो सकता है!

चौथा चरण -

इस चरण में EGFR 30-50 तक आ जाता है और थोरी सी भी लापरवाही खतरनाक हो सकती है इसमे क्रीयेटीनिन भी 2-4 के बीच हो जाता है! अगर सावधानी नहीं बरती गई तो डायलेसिस या फिर ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ सकती है!

पाचवां चरण-

इसमे EGFR 15 से नीचे (कम ) हो जाता है तथा क्रीयेटीनिन 4-5 या अधिक होता है इसमे मरीज को डायलेसिस या ट्रांसप्लांट तक करानी पड़ जाती है!

किडनी रोग का इलाज क्या है?

इसके इलाज में रोगी को रीनल रिप्लेसमेंट की जरूरत पड़ती है, वैसे तो पूर्णता: इलाज किडनी ट्रांसप्लांट के द्वारा ही हो सकता है! परन्तु जब तक मरीज का ट्रांसप्लांट नहीं हो जाता है तब तक डायलेसिस के जरिये ही काम लिया जा सकता है! वैसे तो डॉक्टर्स का कहना है के खाने पिने में लापरवाही ना की जाए और खाना ठीक प्रकार से लिया जाए तो डायलेसिस से भी काम चल जाता है! इसमे रोगी को अपना खाना डाइट चार्ट के हिसाब से लेना चाहिए और रोजाना बिना किसी प्रकार के लापरवाही किये नियमित तरीके से रूटीन फॉलो करते हुए डायलेसिस समय समय पर करवाता रहे तो वो काफी लम्बे समय तक (कई सालो तक) जीवित रह सकता है!


किडनी ट्रांसप्लांट स्थाई इलाज व उपाय है 
डायलेसिस तो अस्थाई इलाज है इस बीमारी का पूर्णता: ठीक होने ले लिए किडनी ट्रांसप्लांट जरूरी होता है इस रोग में! इसके लिए मरीज को किडनी प्रदान करने वाले किसी डोंनर (Donner) की जरूरत होती है जिसका ब्लड ग्रुप मरीज के साथ मिलना जरूरी होता है! इसमे ट्रांसप्लांट के वक़्त दोनों व्यक्तियों का (मरीज और किडनी डोंनर) के शरीर से टिश्यू लेकर उसका मिलान किया जाता है!
इस बीच कई दुसरे जरूरी टेस्ट भी किये जाते है! जिससे ये पता चलता है के ट्रांसप्लांट के लिए डोंनर और मरीज दोनों के लिए सब ठीक है के नहीं! ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया के बाद किडनी प्रदान करने वाला यक्ति तो केवल कुछ दिन में ही अपनी जिंदगी सामान्य तरीके से जीना शुरू कर देता है, लेकिन रोगी को फिर भी कुछ समय तक सावधानी की जरूरत पड़ती है!

किडनी के इलाज में कितना खर्चा आता है?

सबसे बेहतर और सुरक्षित साधन केवल सावधानी ही है इसमे रोगी को हर stage में सावधान रहने की जरूरत है! किडनी के इलाज में बहूत खर्चा आता है ये महंगा होता है! यहाँ तक की सरकारी अस्पताल में भी इलाज का खर्चा 2 से 3 लाख तक आ जाता है वो भी तब जब किडनी किसी ब्रेन डेड व्यक्ति से लिया गया हो, जबकि प्राइवेट या निजी हॉस्पिटल में 7-8 लाख तक खर्च करने पड़ सकते है! और अगर ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता है तो खर्चा और बढ़ जाता है!

किडनी डायलेसिस पर कितना पैसा खर्च होता है? 

एक बार डायलेसिस में कम से कम 2,000 रूपए से 3,000 रूपए तक का खर्चा आता है जो हर महीने लगभग कम से कम 20,000 रूपए से 30,000 रूपए तक खर्च हो जाते है! डायलेसिस में रोगी को संक्रमण
का विशेष ध्यान रखना पड़ता है!
किडनी के रोग से बचाव के उपाय क्या है?
हालाँकि इस बीमारी का देर से पता चलता है लेकिन व्यक्ति अगर अपने जीवन में स्वस्थ को लेकर शुरू से ही सजग रहे तो इस बीमारी से बचा जा सकता है!
गहरे रंग के साग सब्जी खाने चाहिए उनमे मेगनीसियम अधिक होता है, मेगनीसियम किडनी के लिए बहूत फायदेमंद होता है!
प्रोटीन, नमक, और सोडियम कम मात्र में खाए!
30 साल की उम्र से ही ब्लड प्रेशर और सुगर की नियमित जाँच करते रहना चाहिए
नियमित व्यायाम करे, अपने वजन को बढ़ने न दे, खाना समय पर और जितनी भूख हो उतनी ही खाएं, बाहर का खाना ना ही खाए तो बेहतर है, सफाई के खाने में विशेष ध्यान रखे, तथा पोषक तत्वों  से भरपूर भोजन करें!
अंडे के सफ़ेद वाले भाग को ही खाए उसमे किडनी को सुरक्षित रखने वाले तत्व जैसे के फोस्फोरस और एमिनो एसिड होते है

kidney fel rog ki herbal aushadhi 

मछली  खाए इसमे ओमेगा 3 फैटी एसिड किडनी को बीमारी से रक्षा करता है!
प्याज, स्ट्राबेरी, जामुन, लहसुन इत्यादी फायेदेमंद होते है ये मूत्र के संक्रमण से बचाते है तथा लहसुन में उपस्थित एंटी ओक्सिडेंट एवं एंटी क्लोटिंग तत्व दिल की रख्षा करता है और कोलेस्ट्रोल को कम करता है तथा किडनी के लिए फायदेमंद होता है!
 
किडनी मरीजो की जीवन शैली -

किडनी के रोगों में क्रोनिक नेफराईटीस बड़ी वजह हुआ करती थी लेकिन अब शूगर बड़ी वजह माना जाता है और उसके बाद इस बीमारी की बड़ी वजहों में हाइपरटेंशन व क्रोनिक नेफराईटीस का नंबर आता है!
किडनी की हर stage को लोग डायलेसिस से जोड़ देते है जबकि शरीर को डायलेसिस की जरूरत लगभग 95% डैमेज होने के बाद ही पड़ती है
इस रोग में हर व्यक्ति को अत्यधिक पानी पीने की सलाह नहीं दी जा सकती कुछ केसेस में ये हिदायत बिलकुल नहीं देनी चाहिए, एसोसिएटेड हार्ट डिजीज में और मरीज को लीवर के कुछ रोगों में केवल सिमित मात्र में ही पानी पीना चाहिए, इसलिए अपने डॉक्टर से इसके बारे में सलाह जरूर ले.

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विशिष्ट सलाह-  
  




किडनी फेल रोगी  मे बढे हुए क्रिएटनिन के लेविल को नीचे लाने और गुर्दे की कार्य क्षमता बढ़ाने हेतु  हर्बल औषधि सर्वाधिक सफल होती हैं| वैध्य दामोदर से
98267-95656 पर संपर्क किया जा सकता है| दुर्लभ जड़ी-बूटियों से निर्मित यह औषधि कितनी आश्चर्यजनक रूप से फलदायी है ,इसकी कुछ  केस रिपोर्ट्स पाठकों की सेवा मे प्रस्तुत कर रहा हूँ -



लेटेस्ट  केस रिपोर्ट -26/10/2020

नाम किडनी फेल रोगी : अमरसिंगजी -जुझारसिंगजी यादव   
स्थान : टाटका तहसील -सीतामऊ,जिला मंदसौर,मध्य प्रदेश 
इलाज से पहिले की टेस्ट रिपोर्ट 26/10/2020 के अनुसार 

serum Creatinine :7.18mg/dl

Urea                    :129mg/dl 


 यह औषधि पीने के 20 दिन बाद की स्थिति-

दिनांक-  15 /11/2020 की रिपोर्ट 

Serum creatinine :     2.18 mg/dl

urea:                          69  mg/dl  

तेजी से सुधार होते हुए स्थिति नॉर्मल होती जा रही है|
अभी इलाज जारी है| 



केस रिपोर्ट  



रोगी का नाम -     राजेन्द्र द्विवेदी 
इलाज से पूर्व की जांच रिपोर्ट -
जांच रिपोर्ट  दिनांक- 2/9/2017 
ब्लड यूरिया-   181.9/ mg/dl
S.Creatinine -  10.9mg/dl


















हर्बल औषधि प्रारंभ करने के 12 दिन बाद 
जांच रिपोर्ट  दिनांक - 14/9/2017 
ब्लड यूरिया -     31mg/dl
S.Creatinine  1.6mg/dl









12.11.19

नपुंसकता की होम्योपैथिक औषधियाँ





   इस रोग में व्यक्ति को भोगेच्छा होती ही नहीं है और यदि भोगेच्छ होती भी है तो उसमें इतनी शक्ति नहीं रहती कि वह स्त्री के साथ भोग् कर सके । पूर्व में अत्यधिक भोग करना, पौष्टिक पदार्थों का अभाव, काम क्रिया से घृणा आदि कारणों से यह रोग होता है । बहुत से लोग शीघ्रपतन और नपुंसकता को एक ही समझ लेते हैं जो कि गलत है- दोनों ही अलग-अलग होते हैं । इसी प्रकार बहुत से लोग यह समझ लेते हैं कि किसी पुरुष में सन्तान पैदा करने की क्षमता न होने को नपुंसकता कहते हैं- यह विचार भी गलत है क्योंकि सन्तान पैदा कर सकने की क्षमता न होने को बाँझपन कहा जाता है । वास्तव में, नपुसंकता से तात्पर्य भोग की इच्छा या भोग की शक्ति (लिंग में कड़ापन) के अभाव से है । नपुंसकता को नामर्दी भी कहा जाता है ।

नपुंसकता की अमोघ औषधि – डामियाना, एसिड फॉस, अश्वगंधा, एवेना सैटाइवा, स्टेफिसेग्रिया- 

इन पाँचों दवाओं के मूल अर्क (मदर टिंक्चर) की दो-दो ड्राम की मात्रा में लेकर अच्छी तरह मिला लें और इस सारे मिश्रण को किसी काँच की शीशी में भरकर रख लें । इस मिश्रण में से पाँच-पाँच बूंदें आधा कप पानी में मिलाकर लें । इस प्रकार प्रतिदिन तीन बार लेने से कुछ ही दिनों में सैक्स संबंधी सभी प्रकार की कमजोरी निश्चित ही समाप्त हो जाती है और रोगी को बहुत लाभ होता है। इन पाँचों दवाओं का वर्णन इस प्रकार है ।

डामियाना –

इसे टर्नेरा एफ्रोडिसियाका भी कहते हैं । इसका प्रयोग ही शुक्र-क्षय के कारण होने वाली बीमारियों में होता है। यह दवा लिंग में कड़ापन न होना, पुरुषत्व शक्ति का घट जाना, अत्यधिक मैथुन या इन्द्रिय-दोष आदि पर काम करती है ।

सेलेनियम 6, 30 – 

वीर्य पतला पड़ जाये, आँखें धैस जायें, रोगी क्रमशः कमजोर होता जाये, लिंग में कड़ापन न आये, अनैच्छिक रूप से भी वीर्यपात हो जाता हो- इन सभी लक्षणों वाली नपुंसकता में दें ।

सैबाल सेरुलेटा Q – 

प्रतिदिन पाँच से दस बूंदों को पानी में मिलाकर लेना ही पर्याप्त हैं । इस दवा से शक्ति का अभाव दूर होता है । इस दवा का सेवन करते समय रोगी को ब्रह्मचर्य से रहना चाहिये और भोग नहीं करना चाहिये । वास्तव में, इस दवा का सेवन प्रारंभ करते ही शक्ति महसूस होगी, यदि उसी समय भोग किया गया तो शक्ति नष्ट हो जायेगी । अतः कुछ दिनों तक भोग से दूर रहते हुये इस दवा का सेवन करें ।

एनाकार्डियम 30, 200 –

 हस्तमैथुन या वेश्याभोग के कारण जो व्यक्ति स्वयं की अयोग्य मान लेते हैं और इसी कारण स्त्री से दूर रहते हैं उन्हें इस दवा का सेवन कुछ दिनों तक लगातार करना चाहिये और सेवन के समय भोग से दूर रहना चाहिये ।
एसिड फॉस – इस दवा का प्रयोग धातु-दौर्बल्य तथा वीर्यक्षयजनित बीमारियों में होता है । जो व्यक्ति हस्तमैथुन या अत्यधिक इन्द्रियचालन करते हैं तथा जिन्हें स्वप्नदोष आदि होने लगता है उनके लिये यह लाभप्रद है ।
लाइकोपोडियम 1M – डॉ० नैश के अनुसार यह नपुंसकता की बहुत कारगर दवा है । अत्यधिक मैथुन, हस्तमैथुन, वृद्धावस्था आदि के कारण आई हुई नपुंसकता में यह दवा लाभप्रद है । नपुंसकता की इससे बढ़कर अन्य दवा नहीं है । यह दीर्घ क्रिया करने वाली औषधि है अतः इसकी उच्वशक्ति की एक मात्रा देकर परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिये । इसे बार-बार या जल्दी-जल्दी दोहराना नहीं चाहिये अन्यथा दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ।
अश्वगन्धा – जिस प्रकार आयुर्वेद चिकित्सा-पद्धति में इसकी जड़ के रस का बड़े ही आदर से मर्दाना  कमजोरी हेतु प्रयोग करते हैं उसी प्रकार होमियोपैथी में भी अश्वगन्धा मूल अर्क का मर्दाना कमजोरी में प्रयोग होता है । इसके प्रयोग से शक्ति प्राप्त होती हैं ।
स्टेफिसेग्रिया – इस दवा की क्रिया प्रमुख रूप से मस्तिष्क एवं जननेन्द्रिय पर होती है। जो युवक हमेशा एकान्त पाकर काम इच्छाओं की पूर्ति (हस्तमैथुन) करते हैं व जिसकी वजह से उनके मस्तिष्क में दुर्बलता आ जाती है- उनके लिये उत्तम है । इसके सेवन से कई प्रकार के गुप्त रोगों में भी यथोचित परिणाम मिलते हैं ।
एवेना सैटाइवा – यह मूलतः ओट या जाई (जो निम्न किस्म की एक घास होती है और जिसे निर्धन वर्ग के लोग खाते हैं) है परन्तु यह एक शक्तिवर्द्धक टॉनिक भी है । किसी भी प्रकार के शारीरिक क्षय, कमजोरी आदि में इसका मूल अर्क प्रयोग होता है । अनजाने में वीर्य निकल जाना, रति-शक्ति का घट जाना, वीर्यक्षय के कारण कमजोरी आदि स्थितियों में यह दवा बहुत अच्छा काम करती है। 

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3.11.19

हृदय रोगों के आयुर्वेदिक ,घरेलू उपचार

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      हृदय हमारे शरीर का अति महत्वपूर्ण अंग है। हृदय का कार्य शरीर के सभी अवयवों को आक्सीजनयुक्त रुधिर पहुंचाना है और आक्सीजनरहित दूषित रक्त को वापस फ़ेफ़डों को पहुंचाना है। फ़ेफ़डे दूषित रक्त को आक्सीजन मिलाकर शुद्ध करते हैं। हृदय के कार्य में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने पर हृदय के कई प्रकार के रोग जन्म लेते हैं।हृदय संबंधी अधिकांश रोग कोरोनरी धमनी से जुडे होते हैं। कोरोनरी धमनी में विकार आ जाने पर हृदय की मांसपेशियो और हृदय को आवेष्टित करने वाले ऊतकों को आवश्यक मात्रा में रक्त नहीं पहुंच पाता है।यह स्थिति भयावह है और तत्काल सही उपचार नहीं मिलने पर रोगी की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है। इसे हृदयाघात याने हार्ट अटैक कहते हैं। दर असल हृदय को खून ले जाने वाली नलियों में खून के थक्के जम जाने की वजह से रक्त का प्रवाह बाधित हो जाने से यह रोग पैदा होता है।
धमनी काठिन्य हृदय रोग में धमनियों का लचीलापन कम हो जाता है और धमनियां की भीतरी दीवारे संकुचित होने से रक्त परिसंचरण में व्यवधान आता है। इस स्थिति में शरीर के अंगों को पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंच पाता है। हृदय की मासपेशिया धीरे-धीरे कमजोर हो जाने की स्थिति को कार्डियोमायोपेथी कहा जाता है।हृदय शूल को एन्जाईना पेक्टोरिस कहा जाता है। धमनी कठोरता से पैदा होने वाले इस रोग में ्वक्ष में हृदय के आस-पास जोर का दर्द उठता है।रोगी तडप उठता है।
महिलाओं की तुलना में पुरुषों में हृदय संबंधी रोग ज्यादा देखने में आते है।
अब हम हृदय रोग के प्रमुख कारणों पर विचार प्रस्तुत करते हैं--

मोटापा
धमनी की कठोरता
उच्च रक्त चाप
हृदय को रक्त ले जाने वाली खून की नलियों में ब्लड क्लाट याने खून का थक्का जमना
विटामिन सी और बी काम्प्लेक्स की कमी होना
खून की नलियों में कोलेस्टरोल जमने से रक्त प्रवाह में बाधा पडने लगती है। कोलेस्टरोल मोम जैसा पदार्थ होता है जो हमारे शरीर के प्रत्येक हिस्से में पाया जाता है। वांछित मात्रा में कोलेस्टरोल का होना अच्छे स्वास्थ्य के लिये बेहद जरुरी है। लेकिन अधिक वसायुक्त्र भोजन पदार्थों का उपयोग करने से खराब कोलेस्टरोल जिसे लो डॆन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,खून में बढने लगता है और अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल जिसे हाई डेन्सिटी लाईपोप्रोटीन कहते हैं ,की मात्रा कम होने लगती है। कोलेस्टरोल की बढी हुई मात्रा हृदय के रोगों का अहम कारण माना गया है। वर्तमान समय में गलत खान-पान और टेन्शन भरी जिन्दगी की वजह से हृदय रोग से मरने वाले लोगों का आंकडा बढता ही जा रहा है।
माडर्न मेडीसिन में हृदय रोगों के लिये अनेकों दवाएं आविष्कृत हो चुकी हैं। लेकिन कुदरती घरेलू पदार्थों का उपयोग कर हम दिल संबधी रोगों का सरलता से समाधान कर सकते हैं।सबदे अच्छी बात है कि ये उपचार आधुनिक चिकित्सा के साथ लेने में भी कोई हानि नहीं है।
१) लहसुन में एन्टिआक्सीडेन्ट तत्व होते है और हृदय रोगों में आशातीत लाभकारी घरेलू पदार्थ है।लहसुन में खून को पतला रखने का गुण होता है । इसके नियमित उपयोग से खून की नलियों में कोलेस्टरोल नहीं जमता है। हृदय रोगों से निजात पाने में लहसुन की उपयोगिता कई वैग्यानिक शोधों में प्रमाणित हो चुकी है। लहसुन की ४ कली चाकू से बारीक काटें,इसे ७५ ग्राम दूध में उबालें। मामूली गरम हालत में पी जाएं। भोजन पदार्थों में भी लहसून प्रचुरता से इस्तेमाल करें।
२) अंगूर हृदय रोगों में उपकारी है। जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक का दौरा पड चुका हो उसे कुछ दिनों तक केवल अंगूर के रस के आहार पर रखने के अच्छे परिणाम आते हैं।इसका उपयोग हृदय की बढी हुई धडकन को नियंत्रित करने में सफ़लतापूर्वक किया जा सकता है। हृद्शूल में भी लाभकारी है।
३) शकर कंद भूनकर खाना हृदय को सुरक्षित रखने में उपयोगी है। इसमें हृदय को पोषण देने वाले तत्व पाये जाते हैं। जब तक बाजार में शकरकंद उपलब्ध रहें उचित मात्रा में उपयोग करते रहना चाहिये।
५) आंवला विटामिन सी का कुदरती स्रोत है। अत: यह सभी प्रकार के दिल के रोगों में प्रयोजनीय है।
६) सेवफ़ल कमजोर हृदय वालों के लिये बेहद लाभकारी फ़ल है। सीजन में सेवफ़ल प्रचुरता से उपयोग करें।
७) प्याज हृदय रोगों में हितकारी है। रोज सुबह ५ मि लि प्याज का रस खाली पेट सेवन करना चाहिये। इससे खून में बढे हुए कोलेस्टरोल को नियंत्रित करने भी मदद मिलती है।
८) हृदय रोगियों के लिये धूम्रपान बेहद नुकसानदेह साबित हुआ है। धूम्र पान करने वालों को हृदय रोग होने की दूगनी संभावना रहती है।
९) जेतून का तैल हृदय रोगियों में परम हितकारी सिद्ध हुआ है। भोजन बनाने में अन्य तैलों की बजाय ओलिव आईल का ही इस्तेमाल करना चाहिये। ओलिव आईल के प्रयोग से खून में अच्छी क्वालिटी का कोलेस्टरोल(हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) बढता है।
१०) निंबू हृदय रोगों में उपकारी फ़ल है। यह रक्तवहा नलिकाओं में कोलेस्टरोल नहीं जमने देता है। एक गिलास मामूली गरम जल में एक निंबू निचोडें,इसमें दो चम्मच शहद भी मिलाएं और पी जाएं। यह प्रयोग सुबह के वक्त करना चाहिये।
११) प्राकृतिक चिकित्सा में रात को सोने से पहिले मामूली गरम जल के टब में गले तक डूबना हृदय रोगियों के लिये हितकारी बताया गया है। १०-१५ मिनिट टब में बैठना चाहिये। यह प्रयोग हफ़्ते मॆ दो बार करना कर्तव्य है।
१२) कई अनुसंधानों में यह सामने आया है कि विटामिन ई हृदय रोगों में उपकारी है। यह हार्ट अटैक से बचाने वाला विटामिन है। इससे हमारे शरीर की रक्त कोषिकाओं में पर्याप्त आक्सीजन का संचार होता है।
१५)एक कटोरी लौकी के रस में पुदीने व तुलसी के ७-८ पत्तों का रस, २-४ काली मिर्च का चूर्ण व १ चुटकी सेंधा नमक मिलाकर पियें l इससे ह्रदय को बल मिलता है और पेट की गड़बडियां भी दूर हो जाती हैं l
१६) नींबू का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व सेवफल का सिरका समभाग मिलाकर धीमी आंच पर उबालें l एक चौथाई शेष रहने पर नीचे उतारकर ठंडा कर लें l तीन गुना शहद मिलाकर कांच की शीशी में भरकर रखें l प्रतिदिन सुबह खाली पेट २ चम्मच लें l इससे Blockage खुलने में मदद मिलेगी l
१७) अगर सेवफल का सिरका न मिले तो पान का रस, लहसुन का रस, अदरक का रस व शहद प्रत्येक १-१ चम्मच मिलाकर लें l इससे भी रक्तवाहिनियाँ साफ़ हो जाती हैं l लहसुन गरम पड़ता हो तो रात को खट्टी छाछ में भिगोकर रखें



१८) उड़द का आटा, मक्खन, अरंडी का तेल व शुद्ध गूगल संभाग मिलाके रगड़कर मिश्रण बना लें l सुबह स्नान के बाद ह्रदय स्थान पर इसका लेप करें l २ घंटे बाद गरम पानी से धो दें l इससे रक्तवाहिनियों में रक्त का संचारण सुचारू रूप से होने लगता है l
१९) ३ ग्राम ग्राम दालचीनी चूर्ण एक कटोरी दूध में उबालकर पियें l दालचीनी गरम पड़ती हो तो १ ग्राम यष्टिमधु चूर्ण मिला दें l इससे कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त मात्रा घट जाती है
२०) भोजन में लहसुन, किशमिश, पुदीना व हरा धनिया की चटनी लें l आवलें का चूर्ण, रस, चटनी, मुरब्बा आदि किसी भी रूप में नियमित सेवन करें l
२१) औषधि कल्पों में स्वर्ण मालती , जवाहरमोहरा पिष्टि, साबरशृंग भस्म, अर्जुन छाल का चूर्ण, दशमूल क्वाथ आदि हृदय रोगों का निर्मूलन करने में सक्षम है l
२२)
कोलेस्ट्रोल,बी पी , हार्ट अटैक और धमनियों के ब्लाकेज का यूनानी , आयुर्वेदिक इलाज-
अदरक (ginger juice) - यह खून को पतला करता हे वह दर्द को प्राकर्तिक तरीके से 90% तक कम करता हें।
लहसुन (garlic juice) - इसमें मौजूद allicin तत्व cholesterol व BP को कम करता है वह हार्ट ब्लॉकेज को खोलता हे।
नींबू (lemon juice) - इसमें मौजूद antioxidants,vitamin C वह potassium खून को साफ़ करते हैं व रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाते हैं।
एप्पल साइडर सिरका ( apple cider vinegar) - इसमें 90 प्रकार के तत्व हैं जो शरीर की सारी नसों को खोलते है, पेट साफ़ करते हे वह थकान को मिटती हें।