18.12.17

पेट के रोगों को होम्योपैथिक चिकित्सा

* पेट के रोगों को होम्योपैथिक चिकित्सा, तेज दर्द, हिचकी, पानीदार वमन, ऐंठन, चलने का प्रयास करने पर कंपन, पैरों की पिंडलियों में मरोड़, मध्य रात्रि के बाद अधिक तेज, बिस्तर से उठकर खड़े होने पर राहत महसूस होना - क्यूप्रम आर्सेनिकम 200 - एक खुराक प्रतिदिन।
* बहुत तेज मिचली, वमन, ठंडा पसीना और अत्यन्त बेचैनी - लॉबीलिया इन्फ्लेटा 6 - दिन में तीन बार।
* कमजोरी और दुर्बलता, लीवर का बढ़ना - इंसुलिन 3 एक्स - एक खुराक प्रतिदिन।
* अपेंडिसाइटिस, बाहर से महसूस किया जा सकता है, दाएँ भाग में अत्यन्त पीड़ा - बैप्टीसिया टिंक्टोरिया 3 एक्स - दिन में तीन बार या दिन में एक बार। 
* अपेंडिसाइटिस, दाएँ भाग में दर्द, चमड़ी छूने तक से अधिक दर्द - बेलाडोना 3 एक्स - दिन में दो बार।
* क्षुधा-विकार - नेट्रम फॉस्फोरिकम 30 - दिन में तीन बार।
* भूख में कमी तेजी से दूबले होते जाना और वमन - आयोडियम 30 - दिन में दो बार।

* गरिष्ठ भोजन के बाद पेट फूलना - नक्स वोमिका 30 - तीन दिनों तक दिन में तीन बार और चौथे दिन पल्सेटिला 200 एक खुराक प्रतिदिन लें।
* पेटदर्द, पेट से वायु निकालने के लिए - कैल्सकेरिया फॉस्फोरिका 6 - दिन में तीन बार।
* अम्लता, पेट में खट्टापन महसूस होना, दाँतों को खट्टा बनाने वाला वमन - रोबिना 30 - दिन में दो बार।
* अम्लता, सीने में जलन, खट्टी डकार और वमन, एलोपैथिक दवाओं में मैग्नीशिया के इस्तेमाल के कारण - मैग्नीशियम कार्बोनिका 6 - दो सप्ताह में एक बार लें।
* खट्टी डकार, वमन, कलेजे, की जलन के साथ अम्लता - लाइकोपोडियम 30 - दिन में एक खुराक।
* तीव्र पेचिश - मरक्यूरियस कोरोसिवस 6 या कोलोसिंथ 6 या दोनों अदल-बदलकर दिन में दो दो बार।
* पेट में जलन, खाने के बाद राहत मिलती है - फॉस्फोरस 200 - एक खुराक।
विशिष्ट डायरिया के साथ होनेवाले रोग - क्रोटन टिंगलम 30 - दिन में तीन बार।
* अप्राकृतिक चीजें, जैसे चॉक, मिट्टी, कोयला इत्यादि खाने की इच्छा - कैल्केरिया फॉस्फोरिका 12 एक्स - रोजाना तीन बार।
* भूख में कमी - केरिका पपाया 30 - हर चार घंटे पर।
* प्लीहा की बाईं ओर दर्द, पेट में लगातार दर्द - सियोनेंथस - क्यू की दो से पाँच बूँदें, दिन में दो बार।
* पेट में गड़गड़ाहट, पेट फूल जाता हो - थुजा 30 - दिन में दो बार।
* बच्चों का पेट बढ़ना - सल्फर 1 एम - दो सप्ताह में एक बार, केवल सुबह के समय।
* पेट की वायु तथा यकृत (लीवर) में हुए संक्रमण के कारण उत्पन्न पेट के रोग - मल-त्याग तथा पेट से अपानवायु निकलने पर आराम मिलता है- नेट्रम आर्सेनिकम 30 - दिन में तीन बार।
* उदरशूल (तेज पेटदर्द), गरम सिंकाई से आराम - मैग्नीशिया फॉस्फोरिकम 12 - एक्स हर घंटे।
* अम्लता (एसिडिटी), सभी खाद्य पदार्थ खट्टे और अप्रिय लगते हैं; जलन में पानी पीने से अस्थायी राहत मिलती है - सेनिक्यूला 30 - दिन में तीन बार।
* अत्यधिक अम्लता, जीभ के पिछले हिस्से पर पीली परत, खट्टी डकार और वमन - नेट्रम फॉस्फोरिकम 30 - छह-छह घंटे पर।


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15.12.17

अदरक का पानी कई बीमारियों मे फायदेमंद



   भोजन को स्वादिष्ट व पाचन युक्त बनाने के लिए अदरक का उपयोग आमतौर पर हर घर में किया जाता है। वैसे तो यह सभी प्रदेशों में पैदा होती है, लेकिन अधिकांश उत्पादन केरल राज्य में किया जाता है। भूमि के अंदर उगने वाला कन्द आर्द्र अवस्था में अदरक, व सूखी अवस्था में सोंठ कहलाता है। गीली मिट्टी में दबाकर रखने से यह काफी समय तक ताजा बना रहता है। इसका कन्द हल्का पीलापन लिए, बहुखंडी और सुगंधित होता है।
अदरक में अनेक औषधीय गुण होने के कारण आयुर्वेद में इसे महा औषधि माना गया है। यह गर्म, तीक्ष्ण, भारी, पाक में मधुर, भूख बढ़ाने वाला, पाचक, चरपरा, रुचिकारक, त्रिदोष मुक्त यानी वात, पित्त और कफ नाशक होता है।
वैज्ञानिकों के मतानुसार अदरक की रसायनिक संरचना में 80 प्रतिशत भाग जल होता है, जबकि सोंठ में इसकी मात्रा लगभग 10 प्रतिशत होती है। इसके अलावा स्टार्च 53 प्रतिशत, प्रोटीन 12.4 प्रतिशत, रेशा (फाइबर) 7.2 प्रतिशत, राख 6.6 प्रतिशत, तात्विक तेल (इसेन्शियल ऑइल) 1.8 प्रतिशत तथा औथियोरेजिन मुख्य रूप में पाए जाते हैं। सोंठ (सुखा अदरक) में प्रोटीन, नाइट्रोजन, अमीनो एसिड्स, स्टार्च, ग्लूकोज, सुक्रोस, फ्रूक्टोस, सुगंधित तेल, ओलियोरेसिन, जिंजीवरीन, रैफीनीस, कैल्शियम, विटामिन `बी` और `सी`, प्रोटिथीलिट एन्जाइम्स और लोहा भी मिलते हैं। प्रोटिथीलिट एन्जाइम के कारण ही सोंठ कफ हटाने व पाचन संस्थान में विशेष गुणकारी सिद्ध हुई है।
अदरक को अधिकतर लोग मसाले के रूप में यूज करते हैं. लेकिन अगर इसके पानी को रेग्युलर पिया जाए तो यह कई बड़ी बीमारियों को भी कंट्रोल करता है. इसमे मौजूद एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटी इंफ्लेमेटरी प्रॉपर्टी बॉडी को हेल्दी रखने में मदद करती हैं.
अदरक का पानी बनाने की विधि :- 1 गिलास पानी में थोडा सा अदरक का टुकड़ा ले और उसको थोड़ी देर गर्म करे. जब पानी उबालकर थोडा कम हो जाए तो उसे ठंडा करके सिप सिप करके पीना है. एक दम से नहीं पीना. थोडा थोडा पीना है जैसे चाय पीते है, जैसे गर्म दूध पीते है, वैसे ही पीना है. आप एक काम और कर सकते है, रात को पानी में अदरक डालकर रख दे और सुबह उसको गर्म करके फिर ठंडा करके पिए और जो टुकड़ा पानी में रह जाता है उसको चबाकर खा ले.
डायबिटीज कंट्रोल करे : रेगयूलर अदरक का पानी पीने से बॉडी का ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल होता है. इससे डायबिटीज की आशंका कम होती है.
सिरदर्द दूर करे : अदरक का पानी पीने से ब्रेन सेल्स रिलैक्स होती है. इससे सिरदर्द की प्रॉब्लम दूर होती है.
स्किन बनाये हेल्दी : रेगयूलर अदरक का पानी पीने से बॉडी के टोक्सिंस बाहर निकलते है. इससे ब्लड साफ होता है और पिम्पल्स, स्किन इन्फेक्शन का खतरा टालता है.
हार्ट बर्न करे दूर : खाना खाने के 20 मिनट के बाद एक कप अदरक का पानी पिएं. यह बॉडी में एसिड की मात्रा कंट्रोल करता है. इससे हार्ट बर्न की प्रॉब्लम दूर होगी.
कैंसर से बचाए : अदरक में एंटी कैंसर प्रॉपर्टी पाई जाती है. इसका पानी पीने से लंग्स, प्रोस्ट्रेट, ओवेरियन, कोलोन, ब्रेस्ट, स्किन और पेन्क्रिएटिक कैंसर से बचाव होता है.
वजन घटाए : अदरक का पानी पीने से बॉडी का मेटाबोलिजम सुधरता है. ऐसे में फैट तेजी से बर्न होता है और वजन घटाने में हेल्प मिलती है.
मसल्स पेन : अदरक का पानी पीने से बॉडी का ब्लड सर्कुलेशन सुधरता है. इससे मसल्स रिलैक्स होती है और मसल्स पेन दूर होता है.
डाइजेशन सुधारे : अदरक का पानी बॉडी में डाइजेस्टिव जूस को बढ़ता है. इससे खाना जल्दी डाइजेस्ट करने में हेल्प मिलती हैं.





9.12.17

दाँत के दर्द के तुरंत असर उपचार



1॰हल्दी- हल्दी की गांठ भूनकर दाँत मे दबाने से दांत पीड़ा शांत होती है|
2.लहसुन- दांतों मे छेद होकर काले पड गए हों और दर्द कराते हों तो दो काली लहसुन की सेंककर दर्द वाले दाँत मे दबाकर रखें| तुरंत दर्द दूर होगा|
3.प्याज-दाँत मे दर्द या मसूढ़ों मे पीड़ा होने पर प्याज चबाकर लुगदी दर्द वाले दाँत के पास रखें|
4.लौकी 30 ग्राम ,लहसुन 20 ग्राम दोनों को पीसकर एक किलो पानी मे उबालें कि आधा रह जाये |छानकर इस मिश्रण से कुल्ले करने पर दाँत का दर्द ठीक हो जाता है|
5.प्याज का रस दांतों पर मलने से दांत- शूल शांत होता है|
6॰चबाने पर दाँत दर्द होता है तो पीसी हल्दी सरसों के तेल मे मिलाकर सोते समय अपने दांतों पर लेप कर लें और सुबह कुल्ला कर लें|
7.दाँत मे कीड़े लगे हों और दर्द होता हो तो थौड़ी सी हींग दर्द वाले दाँत मे दबा कर रखें|दर्द बंद हो जाएगा|
8. हींग मिले पानी मे रुई का फ़ोया भरकर दाँत मे लगाने पर दांत-शूल शांत होता है|
9. अजवाईंन के प्रयोग से हर तरह के दाँत दर्द ठीक हो जाते हैं|आग पर अजवाईंन डालकर दुखते दाँत पर धुनी दें|उबलते पानी मे आधा चम्मच नमक और एक चम्मच आजवाईंन डालकर ढक कर रखें|पानी जब गुनगुना रहे तब इस पानी को मुंह मे लेकर कुछ देर रोक कर रखें फिर कुल्ला थूक दें|दिन मे तीन बार प्रयोग करें|
10. तुलसी के रस मे काली मिर्च पीसकर गोली बनाएँ|इसे दुखते दान के नीचे दबाकर रखने से तुरंत राहत मिल जाती है|
11. पुदीना पीसलें इससे मंजन करने से दाँत की पीड़ा समाप्त हो जाती है|
12.दाँत मे दर्द की टीस उठने पर 3 ग्राम सौंठ पावडर पानी से फांक लें|दर्द दूर होगा|
13.दाँत मे कीड़ा लगा हो तो तुलसी के रस मे कपूर पीसकर उसमे रुई भिगोकर दाँत पर रखें |दर्द मे तुरंत आराम लगेगा|






7.12.17

गाय के घी से दीर्घ यौवन ,कई रोगों मे फायदेमंद,gay ka ghee

    गाय के घी में ऐसे औषधिय गुण होते हैं जो और किसी चीज़ में नहीं मिलते। यहाँ तक की इसमें ऐसे माइक्रोन्यूट्रींस होते हैं जिनमें कैंसर युक्त तत्वों से लड़ने की क्षमता होती है। और तो और अगर आप धार्मिक नजरिये से देखते हैं तो घी से हवन करने पर लगभग 1 टन ताजे ऑक्सीजन का उत्पादन होता है। यही कारण है कि मंदिरों में गाय के घी का दीपक जलाने तथा धार्मिक समारोहों में यज्ञ करने कि प्रथा प्रचलित है।     आयुर्वेद में घी को स्वाद बढ़ाने वाला और ऊर्जा प्रदान करने वाला माना गया है। इसलिए भारतीय घी को सदियों से अपने भोजन का अभिन्न हिस्सा मानते रहे हैं। घी केवल रसायन ही नहीं यह आंखों की ज्योति को भी बढ़ाता है। ठंड में इसके सेवन को विशेष लाभदायी माना गया है। इसके अपने गुणों के कारण ही मक्खन की जगह हम इसका उपयोग कर सकते हैं।
    दरअसल घी में तीन ऐसी खूबियां हैं, जिनकी वजह से इसका इस्तेमाल जरूर करना चाहिए। पहली बात यह कि घी में शॉर्ट चेन फैटी एसिड होते हैं, जिसकी वजह से यह पचने में आसान होता है। ये हमारे हॉर्मोन के लिए भी फायदेमंद होते हैं, जबकि मक्खन में लांग चेन फैटी एसिड ज्यादा होते हैं, जो नुकसानदेह होते हैं। घी में केवल कैलोरी ही नहीं होती। इसमें विटामिन ए, डी और कैल्शियम, फॉस्फोरस, मिनरल्स, पोटैशियम जैसे कई पोषक तत्व भी होते हैं। आईए जानते है घी का सेवन करने के कुछ प्रमुख लाभ-



1. घी और दूध -

सर्दियों में दिनभर में एक बार दूध में घी डालकर पीने से सेहत बन जाती है। दवाओं के कारण शरीर में गर्मी होने पर या मुंह में छाले होने पर भी यह रामबाण की तरह काम करता है। खांसी ज्यादा परेशान कर रही हो तो छाती पर गाय का घी मसलें जल्द ही राहत मिलेगी।

2. युवावस्था बनाए रखता है - 

आयुर्वेदिक मान्यता है एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री मिलाकर पीने से शारीरिक, मानसिक व दिमागी कमजोरी दूर होती है। साथ ही, जवानी हमेशा बनी रहती है। काली गाय के घी से बूढ़े व्यक्ति भी युवा समान हो जाता है। प्रेग्नेंट महिला घी-का सेवन करे तो गर्भस्थ शिशु बलवान, पुष्ट और बुद्धिमान बनता है।

3. जोड़ो के दर्द में काम करता है - 

जोड़ों का दर्द हो, या हो त्वचा का रूखापन, या कराना हो पंचकर्म शोधन, आयुर्वेद में हर जगह घी का उपयोग निश्चित है। हम जानते हैं, कि हमारा शरीर अधिकतर पानी में घुलनशील हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालता है, लेकिन घी चर्बी में घुलनशील हानिकारक रसायनों को हमारे आहारनाल से बाहर निकालता है। घी को पचाना आसान होता है, साथ ही इसका शरीर में एल्कलाईन फार्म में होने वाला परिवर्तन बहुत ज्यादा एसिडिक खान-पान के कारण होने वाले पेट की सूजन (गेस्ट्राईटीस ) को भी कम करता है।

4. थकान दूर करता है -

संभोग के बाद कमजोरी या थकान महसूस हो तो एक गिलास गुनगुने दूध में गाय का घी मिलाकर पी लेने से थकान व कमजोरी बहुत जल्दी दूर हो जाती है।
5. आंखों के लिए फायदेमंद है - एक चम्मच गाय के घी में एक चौथाई चम्मच काली मिर्च मिलाकर सुबह खाली पेट व रात को सोते समय खाएं। इसके बाद एक गिलास गर्म दूध पिएं। आंखों की हर तरह की समस्या दूर हो जाएगी।

6. कैंसर रोधी - 

गाय के घी में कैंसररोधी गुण पाए जाते हैं। इसके रोजाना सेवन से कैंसर होने की संभावना बहुत कम हो जाती है। विशेषकर यह स्तन व आंत के कैंसर में सबसे अच्छे तरीके से काम करता है।

7. स्त्रियों की समस्या में लाभदायक - 

स्त्रियों में प्रदर रोग की समस्या में गाय का घी रामबाण की तरह काम करता है। गाय का घी, काला चना व पिसी चीनी तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बनाकर खाली पेट सेवन करें।

8. एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है -

घी बनाते समय घी के तीन लेयर बन जाते हैं ,पहला लेयर पानी से युक्त होता है, जिसे बाहर निकाल लिया जाता है ,इसके बाद दूध के ठोस भाग को निकाला जाता है, जो अपने पीछे एक सुनहरी सेरेटेड चर्बी को छोड़ जाता है। जिसमें कंजुगेटेड लाईनोलीक एसिड पाया जाता है। यह कंजुगेटेड लाईनोलीक एसिड शरीर के संयोजी उतकों को लुब्रीकेट करने व वजन कम होने से रोकने में मददगार के रूप में जाना जाता है। यह भी एक सच है कि, घी एंटीआक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है।
9. जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।


10. गाय के घी से बल बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है. गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है। अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
11. ऐसा माना जाता है की गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है। नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाता है। यहाँ तक की गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है
12. फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है। सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
13. गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है। गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
14. एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
15. यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है । यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
16.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है। हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएगी। गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
  1. पायरिया के घरेलू इलाज
  2. चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  3. लाल मिर्च के औषधीय गुण
  4. लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  5. जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  6. एसिडिटी के घरेलू उपचार
  7. नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  8. सांस फूलने के उपचार
  9. कत्था के चिकित्सा लाभ
  10. गांठ गलाने के उपचार
  11. चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  12. मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  13. अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  14. इसबगोल के औषधीय उपयोग
  15. अश्वगंधा के फायदे
  16. लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  17. मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  18. सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  19. कान बहने की समस्या के उपचार
  20. पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  21. पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  22. लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  23. डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  24. काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  25. कालमेघ जड़ी बूटी लीवर रोगों की महोषधि
  26. हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  27. पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  28. चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  29. चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  30. ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  31. पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  32. व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  33. घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  34. चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  35. अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  36. वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  37. शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  38. वजन कम करने के उपचार
  39. केले के स्वास्थ्य लाभ
  40. लीवर रोगों की महौषधि भुई आंवला के फायदे
  41. हरड़ के गुण व फायदे
  42. कान मे मेल जमने से बहरापन होने पर करें ये उपचार
  43. पेट की खराबी के घरेलू उपचार
  44. शिवलिंगी बीज के चिकित्सा उपयोग
  45. दालचीनी के फायदे
  46. बवासीर के खास नुखे
  47. भूलने की बीमारी के उपचार
  48. आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  49. सोरायसीस के उपचार
  50. गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन के लक्षण, कारण और उपचार


      शरीर के किसी अंग का या पूरे शरीर के नियंत्रण खो जाने से कम्पन होता रहता है। यह एक तरह का वात ही है। इसलिए इसे कम्पवात कहते हैं।
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन एक दिमाग का रोग है जो लम्बे समय दिमाग में पल रहा होता है। इस रोग का प्रभाव धीरे-धीरे होता है। पता भी नहीं पडता कि कब लक्षण शुरू हुए। अनेक सप्ताहों व महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ जाती है तब अहसास होता है कि कुछ गडबड है।
जब यह रोग किसी व्यक्ति को हो जाता है तो रोगी व्यक्ति के हाथ तथा पैर कंपकंपाने लगते हैं। कभी-कभी इस रोग के लक्षण कम होकर खत्म हो जाते हैं। इस रोग से पीड़ित बहुत से रोगियों में हाथ तथा पैरों के कंप-कंपाने के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, लेकिन वह लिखने का कार्य करता है तब उसके हाथ लिखने का कार्य करने में असमर्थ हो जाते हैं।
यदि रोगी व्यक्ति लिखने का कार्य करता भी है तो उसके द्वारा लिखे अक्षर टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं। रोगी व्यक्ति को हाथ से कोई पदार्थ पकड़ने तथा उठाने में दिक्कत महसूस होती है। इस रोग से पीड़ित रोगी के जबड़े, जीभ तथा आंखे कभी-कभी कंपकंपाने लगती है।
   बहुत सारे मरीज़ों में ‍कम्पन पहले कम रहता है, यदाकदा होता है, रुक रुक कर होता है। बाद में अधिक देर तक रहने लगता है व अन्य अंगों को भी प्रभावित करता है। प्रायः एक ही ओर (दायें या बायें) रहता है, परन्तु अनेक मरीज़ों में, बाद में दोनों ओर होने लगता है।
     जब यह रोग धीरे-धीरे बढ़ता है तो रोगी की विभिन्न मांसपेशियों में कठोरता तथा कड़ापन आने लगता है। शरीर अकड़ जाता है, हाथ पैरों में जकडन होती है। मरीज़ को भारीपन का अहसास हो सकता है। परन्तु जकडन की पहचान चिकित्सक बेहतर कर पाते हैं जब से मरीज़ के हाथ पैरों को मोड कर व सीधा कर के देखते हैं बहुत प्रतिरोध मिलता है। मरीज़ जानबूझ कर नहीं कर रहा होता। जकडन वाला प्रतिरोध अपने आप बना रहता है।
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग के लक्षण -
आंखें चौडी खुली रहती हैं। व्यक्ति मानों सतत घूर रहा हो या टकटकी लगाए हो ।
चेहरा भावशून्य प्रतीत होता है बातचीत करते समय चेहरे पर खिलने वाले तरह-तरह के भाव व मुद्राएं (जैसे कि मुस्कुराना, हंसना, क्रोध, दुःख, भय आदि ) प्रकट नहीं होते या कम नज़र आते हैं।
खाना खाने में तकलीफें होती है। भोजन निगलना धीमा हो जाता है। गले में अटकता है। कम्पन के कारण गिलास या कप छलकते हैं।
   हाथों से कौर टपकता है। मुंह से पानी-लार अधिक निकलने लगता है। चबाना धीमा हो जाता है। ठसका लगता है, खांसी आती है।
   आवाज़ धीमी हो जाती है तथा कंपकंपाती, लड़खड़ाती, हकलाती तथा अस्पष्ट हो जाती है, सोचने-समझने की ताकत कम हो जाती है और रोगी व्यक्ति चुपचाप बैठना पसन्द करताहै।
नींद में कमी, वजन में कमी, कब्जियत, जल्दी सांस भर आना, पेशाब करने में रुकावट, चक्कर आना, खडे होने पर अंधेरा आना, सेक्स में कमज़ोरी, पसीना अधिक आता है।
उपरोक्त वर्णित अनेक लक्षणों में से कुछ, प्रायः वृद्धावस्था में बिना पार्किन्सोनिज्म के भी देखे जा सकते हैं । कभी-कभी यह भेद करना मुश्किल हो जाता है कि बूढे व्यक्तियों में होने वाले कम्पन, धीमापन, चलने की दिक्कत, डगमगापन आदि
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन  पार्किन्सन रोग के कारण :-

पार्किन्सन रोग  व्यक्ति को अधिक सोच-विचार का कार्य करने तथा नकारात्मक सोच ओर मानसिक तनाव के कारण होता है।
किसी प्रकार से दिमाग पर चोट लग जाने से भी पार्किन्सन रोग  हो सकता है। इससे मस्तिष्क के ब्रेन पोस्टर कंट्रोल करने वाले हिस्से में डैमेज हो जाता है।
कुछ प्रकार की औषधियाँ जो मानसिक रोगों में प्रयुक्‍त होती हैं, अधिक नींद लाने वाली दवाइयों का सेवन तथा एन्टी डिप्रेसिव दवाइयों का सेवन करने से भी पार्किन्सन रोग हो जाता है।
अधिक धूम्रपान करने, तम्बाकू का सेवन करने, फास्ट-फूड का सेवन करने, शराब, प्रदूषण तथा नशीली दवाईयों का सेवन करने के कारण भी पार्किन्सन रोग  हो जाता है।
शरीर में विटामिन `ई´ की कमी हो जाने के कारण भी पार्किन्सन रोग  हो जाता है।
तरह -तरह के इन्फेक्शन — मस्तिष्क में वायरस के इन्फेक्शन (एन्सेफेलाइटिस) ।
मस्तिष्क तक ख़ून पहुंचाने वाले नलियों का अवरुद्ध होना ।
मैंगनीज की विषाक्तता।
शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन ( पार्किन्सन रोगके प्राकृतिक चिकित्सा में इलाज :-
     पार्किन्सन रोग को ठीक करने के लिए 4-5 दिनों तक पानी में नीबू का रस मिलाकर पीना चाहिए। इसके अलावा इस रोग में नारियल का पानी पीना भी बहुत लाभदायक होता है।
इस रोग में रोगी व्यक्ति को फलों तथा सब्जियों का रस पीना भी बहुत लाभदायक होता है। रोगी व्यक्ति को लगभग 10 दिनों तक बिना पका हुआ भोजन करना चाहिए।
    सोयाबीन को दूध में मिलाकर, तिलों को दूध में मिलाकर या बकरी के दूध का अधिक सेवन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
रोगी व्यक्ति को हरी पत्तेदार सब्जियों का सलाद में बहुत अधिक प्रयोग करना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को जिन पदार्थो में विटामिन `ई´ की मात्रा अधिक हो भोजन के रूप में उन पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए।
रोगी व्यक्ति को कॉफी, चाय, नशीली चीज़ें, नमक, चीनी, डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए।
प्रतिदिन कुछ हल्के व्यायाम करने से यह रोग जल्दी ठीक हो जाता है।
पार्किन्सन रोग से पीड़ित रोगी को अपने विचारों को हमेशा सकरात्मक रखने चाहिए तथा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए।
 प्राकृतिक चिकित्सा से प्रतिदिन उपचार करे तो पार्किन्सन रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
जिन व्यक्तियों के शरीर में Vitamin D बड़ी मात्रा में मौजूद है, उनमें पार्किंसन बीमारी होने का ख़तरा कम होता है। सूरज की किरणें Vitamin D का बड़ा स्रोत हैं। बहुत ही कम ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जिनमें Vitamin D पाया जाता है। यदि शरीर में Vitamin D की मात्रा कम होती है तो उससे हड्डियों में कमोजरी, कैंसर, दिल की बीमारियों और डायबिटीज हो सकती है, लेकिन अब Vitamin D की कमी पार्किंसन की वजह भी बन सकती है।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन ( पार्किन्सन रोग के आयुर्वेदिक और औषधीय उपचार :-

1. तगर : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम तगर का चूर्ण यशद भस्म के साथ सुबह-शाम सेवन करने से कम्पन के रोगी को लाभ मिलता है।
हाथ-पैर कांपने पर या किसी दूसरे अंग के अपने आप हिलने पर जटामांसी का काढ़ा 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करना चाहिए।
3. घी : 10 ग्राम गाय का घी एवं 40 मिलीलीटर दूध को 4 भाग (10-10 मिलीलीटर की मात्रा) लेकर हल्की आंच पर पका लें। इस चारों भागों में 3 से 6 ग्राम की मात्रा में असगंध नागौरी का चूर्ण मिला लें। यह मिश्रण रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से कम्पन के रोगी का रोग जल्द ठीक हो जाता है।
4. कुचला :
 आधा-आधा चम्मच अजवायन और सौंठ का चूर्ण तथा कुचला बीज मज्जा (बीच के हिस्से) का 100 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम खायें। इससे शरीर का कांपना ठीक होता है।
 लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शुद्ध कुचला का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से कम्पवात में लाभ मिलता है।
5. दूध : चार कली लहसुन को दूध में अच्छी तरह से उबाल लें, फिर इसमें 2 चम्मच एरण्ड का तेल मिलाकर प्रतिदिन सोने से पहले सेवन करने से अंगुलियों का कम्पन कम हो जाता है।
6. गाय का घी : गाय का घी और गाय का चार गुना दूध लेकर उबाले फिर उसमें मिश्री मिलाकर 3 से 6 ग्राम असगन्ध नागौरी के चूर्ण के साथ सुबह-शाम पीने से अंगुलियों का कांपना दूर हो जाता है।
7. जटामांसी : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम जटामांसी को फेंटकर प्रतिदिन दो से तीन बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
8. निर्गुण्डी :

निर्गुण्डी की ताजी जड़ एवं हरे पत्तों का रस निकाल कर उसमें पाव भाग तिल का तेल मिलाकर गर्म करके सुबह-शाम 1-1 चम्मच पीने से तथा मालिश करते रहने से कंपवात, संधियों का दर्द एवं वायु का दर्द मिटता है। स्वर्णमालती की 1 गोली अथवा 1 ग्राम कौंच का पाउडर दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
9. लहसुन : लहसुन के रस में वायविडंग को पकाकर खाने से एवं लहसुन से प्राप्त तेल की मालिश करने से अंगुलियों का कम्पन ठीक हो जाता है।
10. महानींबू : लगभग 10 से 20 मिलीलीटर महानींबू (चकोतरा) के पत्तों का रस सुबह-शाम सेवन करते रहने से अंगुलियों का कांपना ठीक हो जाता हैं।
11. सोंठ : महारास्नादि में सोंठ का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पीने और प्रतिदिन रात को 2 चम्मच एरण्ड तेल को दूध में मिलाकर सोने से पहले सेवन करने से अंगुलियों का कांपना की शिकायत दूर हो जाती है।
12. कुचला : लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग शुद्ध कुचले का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से शरीर का कांपनादूर हो जाता है। रोगी को काफी राहत महसूस होती है।
13. असगंध नागौरी : लगभग 3 से 6 ग्राम असगंध नागौरी को गाय के घी और उसका चार गुना दूध में उबालकर मिश्री मिलाकर प्रतिदिन पीने से अंगुलियों का कांपना दूर हो जाता हैं। इससे रोगी को काफी लाभ मिलता है।
14. तिल : तिल के तेल में अफीम और आक के पत्ते मिलाकर गरम करके लेप करने से हाथ-पैरों की अंगुलियों की कम्पन दूर हो जाती है।
15 आशाकन्द : लगभग 2 ग्राम आशाकन्द का चूर्ण दूध के साथ लेने से हाथ-पैरों की अंगुलियों का कम्पन ठीक हो जाता है।
16. गोरखमुण्डी : हाथ-पैरों की अंगुलियों का कांपना दूर करने के लिए गोरखमुण्डी और लौंग का चूर्ण खाने से रोगी को फायदा मिलता है।
17. भांगरा : लगभग 20 ग्राम भांगरे के बीजों के चूर्ण में 3 ग्राम घी मिलाकर मीठे दूध के साथ खाने से हाथ-पैरों का कांपना दूर हो जाता है।
18. बड़ी हरड़ : हाथ-पैरों की अंगुलियों का कम्पन दूर करने के लिए बड़ी हरड़ का चूर्ण खाने से रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
19. लहसुन :
 शरीर का कम्पन दूर करने के लिए बायविडंग एवं लहसुन के रस को पकाकर सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
 लहसुन के रस से शरीर पर मालिश करने से रोगी का कंपन दूर होता है।
 4 जावा (कली) लहसुन छिलका हटाकर पीस लें। इसे गाय के दूध में मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से कम्पन के रोगी का रोग ठीक हो जाता है।
 असगन्ध– 
इसका स्वाद कसैला/कडवा होता है । इसकी जड ही काम में ली जाती है और इसमें घोडे के शरीर के समान गन्ध पाई जाती है । शायद इसीलिये इसे (अश्र्व) असगन्ध कहा जाता है । यह आपको किसी भी जडी-बूटी विक्रेता के यहाँ मिल सकता है । उपरोक्त उपचार हेतु इसके चूर्ण की आवश्यकता होती है । अतः यदि बाजार से चूर्ण तैयार मिल जावे तो अति उत्तम, अन्यथा आप इसे जड रुप में खरीदकर घर पर इसका कूट-पीसकर 100 ग्राम के लगभग बारीक (महीन) चूर्ण बना लें ।
आमलकी रसायन- 
आंवले के चूर्ण में आंवले का ही इतना ताजा रस मिलाया जाता है कि चूर्ण करीब-करीब रोटी के लिये उसने हुए आटे से भी कुछ अधिक नरम हो जाता है इसे आयुर्वेद की भाषा में भावना देना कहते हैं । फिर इस रस मिश्रीत चूर्ण को सुखाया जाता है । सूख चुकने पर पुनः इसी प्रकार से इसमें आंवले के ताजे रस की भावना दी जाती है और फिर इसे सुखाया जाता है । इस प्रकार इस चूर्ण में 11 बार आंवले के रस की भावना दी जाती है और हर बार इसे सुखाया जाता है । 11 भावना के पूर्ण हो चुकने पर इसी चूर्ण को आमलकी रसायन कहा जाता है । ये परिचय यहाँ सिर्फ आपकी जानकारी के लिये प्रस्तुत किया गया है बाकि तो आप इसे किसी भी प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनी का बना हुआ तैयार आमलकी रसायन बाजार से 100 ग्राम मात्रा की पेकिंग में खरीदकर काम में ले सकते हैं ।
 अब असगन्ध व आमलकी रसायन के इन दोनों चूर्ण को आपस में मिलाकर किसी भी एअर टाईट शीशी या डिब्बे में भरकर रख लें और समान मात्रा में मिश्रीत इस चूर्ण को पहले सप्ताह सिर्फ चाय के आधा चम्मच के बराबर मात्रा में लें व इसमें शहद मिलाकर प्रातःकाल इसका सेवन कर लें। एक सप्ताह बाद आप इस आधा चम्मच मात्रा को एक चम्मच प्रतिदिन के रुप में लेना प्रारम्भ कर दें ।
यदि आप शहद न लेना चाहें तो मिश्री की चाशनी इतनी मात्रा में बनाकर रखलें जितनी 8-10 दिन में समाप्त की जा सके । इस चाशनी में 4-5 इलायची के दाने भी पीसकर डाल दें और इस चाशनी के साथ असगन्ध व आमलकी रसायन का यह चूर्ण उपरोक्तानुसार सेवन करें । लेकिन शुगर (मधुमेह) के रोगियों को इसे चाशनी की बजाय शहद मिलाकर ही लेना उपयुक्त होता है ।

शरीर (हाथ-पैर) में कम्पन पार्किन्सन रोग मे  प्रभावी योगासन :- 

   कोणासन (विपरीत दंडासन) पश्चिमोत्तानासन का उपासन है। अर्थात,पश्चिमोत्तानासन में हमने शरीर को आगे की ओर झुकाया था। इस बार शरीर को उसके विपरीत खिंचाव दिया गया है। इस आसन के अभ्यास से हमारे हाथ, कंधे, पैर तथा रीढ़ प्रभावित होती है। अत: इन भागों के समस्त दोष समाप्त हो जाते हैं। हाथों तथा टांगों के कम्पन रोग को समाप्त करने में यह आसन बहुत ही उपयोगी है। इस आसन को करने के लिए बैठकर दोनों पैरों को आगे की ओर फैलाएं। एड़ियां व पंजे परस्पर मिले हुए हों। हाथों को मजबूती के साथ नितम्बों के पास जमा दें। गहरी लंबी श्वांस भरते हुए पूरे शरीर को पैर की एड़ियों तथा हाथों के पंजों पर उठा दें। पैरों तथा हाथों को सीधे तानकर रखें। श्वांस की गति सामान्य कर लें। पैरों के पंजों को खींचकर पृथ्वी से मिलाने का प्रयत्न करें। आसन की पूर्ण स्थिति में कुछ समय रुककर ध्यान को मणिपूरक चक्र पर ले जाएं। तत्पश्चात धीरे-धीरे वापस आएं। वापस आकर कुछ क्षण विश्राम करें। इस आसन को लगभग 5-10 बार करें।

6.11.17

पीलिया का रामबाण उपचार

   
    पीलिया लीवर से सम्बंधित रोग है, इस रोग में रोगी की आँखे पीली पड़ जाती हैं, पेशाब का रंग पीला हो जाता है, अधिक तीव्रता होने पर पेशाब का रंग और भी खराब हो जाता है, पीलिया दिखने में बहुत साधारण सी बीमारी लगती है, मगर इसका सही समय पर इलाज ना हो तो ये बहुत भयंकर परिणाम दे सकती है, रोगी की जान तक जा सकती है इसमें. आज हम आपको इस जानलेवा बीमारी का एक ऐसा रामबाण उपचार बता रहे हैं जो आपकी बरसों से चलती आ रही इस बीमारी को भी ज्यादा से ज्यादा 3-४ दिन में बिलकुल सही कर देगी. ये उपचार पीलिया चाहे वो हेपेटाइटिस ऐ बी या सी हो या फिर बिलरुबिन या ESR भी बढ़ा हुआ हो तो भी ये बहुत कारगर है|.
पीलिया हेपेटाइटिस कोई सा भी ( ऐ ,बी या सी) सबका रामबाण उपचार कच्चा हरा नारियल.
रोगी को दिन में कम से कम 2 हरे नारियल का पानी पिलायें, नारियल तुरंत खोल कर तुरंत ही पानी पिलाना है, इसको ज्यादा देर तक रखना नहीं है. एक दिन के बाद ही पेशाब का कलर बदलना शुरू हो जायेगा. ऐसा निरंतर ४-५ दिन करने के बाद आप बिलकुल स्वस्थ अनुभव करेंगे. ऐसे में रोगी को जो भी इंग्लिश दवा दी जा रही हो उसको एक बार बंद कर दी जाए और अगर रोगी कि हालत बहुत सीरियस हो तो उसको इसके साथ में ग्लूकोस दिया जा सकता है. और बाकी पूरा दिन सिर्फ नारियल पानी पर ही रखें. ये प्रयोग अनेक लोगों पर पूर्ण रूप से सफल रहा है. लीवर में होने वाले किसी भी रोग के लिए भी इस प्रयोग को निसंकोच अपनाया जा सकता है.

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25.10.17

अदरक का पानी है गुणों का खजाना,adarak ke fayde




पाचन में मददगार:

जैसा हमने पहले बताया आपको की यह पेट के लिए मुफीद हैं. अदरक वाला पानी शरीर में डाइजेस्टिव जूस को बढ़ाता है. इसके सेवन से पाचन क्रिया में सुधार आता है और खाना आसानी से पच जाता है और पेट सम्बन्धी समस्याए नहीं होती हैं.

मधुमेह को कंट्रोल करे:

अदरक का पानी डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इसके नियमित सेवन से रीर का ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल होता है. इतना ही नहीं इससे आम लोगों में डायबिटीज होने का खतरा भी कम होता है इसीलिए इसके सेवन से आप शुगर जैसी भयंकर बिमारी से बच सकते हैं.

कैंसर से रक्षा:

अदरक में कैंसर से लड़नेवाले तत्व पाए जाते हैं. इसका पानी फेफड़ें, प्रोस्टेट, ओवेरियन, कोलोन, ब्रेस्ट, स्किन और पेन्क्रिएटिक कैंसर से रक्षा करता है इसीलिए अगर आप इन भयंकर बीमारियों से बहकना चाहते हैं तो आपको अदरक का पानी पीना चाहिए इससे आपको बहुत सारे फायदे मिलेंगे.

त्वचा संबंधी समस्याए:

अदरक का पानी पीने से खून साफ होता है और स्किन ग्लो करती है. ये पिंपल्स और स्किन इंफेक्शन के खतरे को भी दूर करता है इसीलिए अगर आप इस तरह की किसी परेशानी से तृप्त है तो इसका सेवन ज़रूर करे, इससे आपकी त्वचा समबन्धि समस्याए खत्म हो जायेंगी.

दर्द से राहत:

अदरक का पानी नियमित रुप से पीने से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है और मसल्स में होने वाले दर्द से राहत मिलती है. साथ ही सिर दर्द में भी ये बहुत फायदेमंद होता है अगर आप सर दर्द की समस्या से परेशान रहते हैं तो आपको इस पानी का प्रयोग ज़रूर से करना चाहिए इससे आपको बहुत फायदा मिलेगा.हार्ट बर्न दूर करे :
अगर आप सीने में होने वाली जलन से परेशान हैं तो आपको खाना खाने के 20 मिनट बाद अदरक का पानी पीना चाहिये इससे आपको हार्ट बर्न की समस्या नहीं होगी यह बहुत फायदेमंद होता हैं.

मांसपेशयों के दर्द मे-

अगर आप मसल्स पेन से पीड़ित हैं तो आपको अदरक का पानी पीना चाहिए यह इसके लिए बहुत ज्यादा फायदेमंद होता हैं इससे ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता हैं और यह मसल्स को ररिलैक्स कर पेन को दूर करता हैं.
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है:
इम्यून सिस्टम का अच्छा होना बहुत ज्यादा ज़रूरी होता हैं इसको पीने से आपका इम्यून सिस्टम ठीक होता हैं और आप छोटी बड़ी बीमारियों से बच जाते है अदरक का पानी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है. हर रोज इसे पीने से सर्दी-खांसी और वायरल इंफेक्शन जैसी बीमारियों के खतरे कम हो जाता है. इसके अलावा यह कफ की समस्या को भी दूर करता है और आपको चुस्त वा दुरुस्त बनाता हैं.
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  36. वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
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  47. भूलने की बीमारी के उपचार
  48. आम खाने के स्वास्थ्य लाभ
  49. सोरायसीस के उपचार
  50. गुर्दे की सूजन के घरेलू उपचार






18.10.17

चर्म रोग से बचने के घरेलू उपचार


अलसी के बीज


अलसी के बीजों में ओमेगा थ्री फैटी एसिड होता है जो हमारे इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत बनाने में मदद करता है। इसमें सूजन को कम करने वाले तत्‍व मौजूद होते हैं। यह स्किन डिस्‍ऑर्डर, जैसे एक्जिमा और सोरायसिस को भी ठीक करने में मदद गरता है। दिन में एक-दो चम्‍मच अलसी के बीजों के तेल का सेवन करना त्‍वचा के लिए काफी फायदेमंद होता है। बेहतर रहेगा कि इसका सेवन किसी अन्‍य आहार के साथ ही किया जाए।

कैमोमाइल/ बबूने का फूल



कैमोमाइल का फूल त्‍वचा पर लगाने से जलन को शांत करता है और साथ ही अगर इसका सेवन किया जाए तो आंतरिक शांति प्रदान करता है। इसके साथ ही यह केंद्रीय तंत्रिका प्रणाली पर भी सकारात्‍मक असर डालता है। यह एक्जिमा में भी काफी मददगार होता है। इसके फूलों से बनी हर्बल टी का दिन में तीन बार सेवन आपको काफी फायदा पहुंचाता है। इसके साथ ही एक्जिमा और सोरायसिस जैसी बीमारियों से उबरने में भी यह फूल काफी मदद करता है। एक साफ कपड़े को कैमोमाइल टी में डुबोकर उसे त्‍वचा के सं‍क्रमित हिस्‍से पर लगाने से काफी लाभ मिलता है। इस प्रक्रिया को पंद्रह-पंद्रह मिनट के लिए दिन में चार से छह बार करना चाहिए। कैमोमाइल कई अंडर-आई माश्‍चराइजर में भी प्रयोग होता है। इससे डार्क सर्कल दूर होते हैं


कमफ्रे


इस फूल के पत्‍ते और जड़ें सदियों से त्‍वचा संबंधी रोगों को ठीक करने में इस्‍तेमाल की जाती रही हैं। यह कट, जलना और अन्‍य कई जख्‍मों में काफी लाभकारी होता है। इसमें मौजूद तत्‍वा तवचा द्वारा काफी तेजी से अवशोषित कर लिए जाते हैं। जिससे स्‍वस्‍थ कोशिकाओं का निर्माण होता है। इसमें त्‍वचा को आराम पहुंचाने वाले तत्‍व भी पाए जाते हैं। अगर त्‍वचा पर कहीं जख्‍म हो जाए तो कमफ्रे की जड़ों का पाउडर बनाकर उसे गर्म पानी में मिलाकर एक गाढ़ा पेस्‍ट बना लें। इसे एक साफ कपड़े पर फैला दें। अब इस कपड़े को जख्‍मों पर लगाने से चमत्‍कारी लाभ मिलता है। अगर आप इसे रात में बांधकर सो जाएं, तो सुबह तक आपको काफी आराम मिल जाता है। इसे कभी भी खाया नहीं जाना चाहिए, अन्‍यथा यह लिवर को नुकसान पहुंचा सकता है। गहरे जख्‍मों पर भी इसका इस्‍तेमाल नहीं करना चाहिए। इससे त्‍वचा की ऊपरी परत तो ठीक हो जाती है, लेकिन भीतरी कोशिकायें पूरी तरह ठीक नहीं हो पातीं। 


गेंदा


गेंदा गहरे पीले और नारंगी रंग का फूल होता है। यह त्‍वचा की समस्‍याओं का प्रभावशाली घरेलू उपाय है। यह छोटे-मोटे कट, जलने, मच्‍छर के काटने, रूखी त्‍वचा और एक्‍ने आदि के लिए शानदार घरेलू उपाय है। गेंदे में एंटी-बैक्‍टीरियल और एंटी-वायरल गुण होते हैं। यह सूजन को कम करने में भी मदद करता है। इसके साथ ही गेंदा जख्‍मों को जल्‍दी भरने में मदद करता है। यह हर प्रकार की त्‍वचा के लिए लाभकारी होता है। गेंदे की पत्तियों को पानी में उबालकर उससे दिन में दो-तीन बार चेहरा धोने से एक्‍ने की समस्‍या दूर होती है।
अन्‍य उपाय
     हल्दी, लाल चंदन, नीम की छाल, चिरायता, बहेडा, आंवला, हरेडा और अडूसे के पत्ते को एक समान मात्रा में लीजिए। इन सभी सामानों को पानी में पूरी तरह से फूलने के लिए भिगो दीजिए। जब ये सारे सामान पूरी तरह से फूल जाएं तो पीसकर ढ़ीला पेस्ट बना लीजिए। अब इस पेस्ट से चार गुना अधिक मात्रा में तिल का तेल लीजिए।
    तिल के तेल से चार गुनी मात्रा में पानी लेकर सारे सामानों को एक बर्तन में मिला लीजिए। उसके बाद मिश्रण को मंद आंच पर तब तक गर्म करते रहिए जब तक सारा पानी भाप बनकर उड़ ना जाए। इस पेस्ट को पूरे शरीर में जहां-जहां खुजली हो रही हो वहां पर या फिर पूरे शरीर में लगाइए। इसके लगाते रहने से आपके त्वचा से चर्म रोग ठीक हो जाएगा।
    एग्जिमा, सोरियासिस, मस्सा, ल्यूकोर्डमा, स्केबीज या खुजली चर्म रोग के प्रकार हैं।किसी भी प्रकार का चर्म रोग जब तक ठीक नही हो जाता है, बहुत कष्टदायक होता है। जिसके कारण से आदमी मानसिक रूप से बीमार हो जाता है। 

परामर्श-

दामोदर चर्म रोग हर्बल औषधि
त्वचा के विभिन्न रोगों में रामबाण औषधि की तरह उपयोगी है. रक्त की गन्दगी दूर कर चमड़ी की बीमारियों -दाद खाज,खुजली,एक्जीमा ,सोरायसिस,फोड़े फुंसी को जड़ मूल से खत्म करने के लिए जानी मानी दवा के रूप में व्यवहार होती है.

7.10.17

पान के पत्ते खाने के स्वास्थ्य लाभ



अगर आप इस पान के पत्ते को खाने के बारे में जान लोगो तो आप भी इसकी तारीफ किये बिना नहीं रह पाओगो |भारत की तो हर गली के नुक्कड़ पर पान की दुकान मिल ही जाती है |लेकिन कई लोग पान के पत्ते में जर्दा व तम्बाकू मिलाकर खाते है |जिसे पान को भी नशीला पदार्थ बना दिया जाता है |और जिससे कई प्रकार की खतरनाक बीमारिया पैदा हो जाती है |पैन के पत्ते का प्रयोग पूजा पाठ से लेकर कई प्रकार की मिठाईया बनांने में किया जाता है |
 अगर हम सिर्फ पान के पत्ते का ही प्रयोग करते है तो इससे हमें काफी लाभकारी फायदे मिलते है |पान के पत्ते की शेप दिल के आकार की होती है |जो कई बीमारियों को दूर करने के लिए कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है |इसमें प्रोटीन ,कैल्शियम व विटामिन स होता है |यह एक बेहतरीन एंटी बायोटिक होता है |इसमें एंटी बक्ट्रियल गुण पाए जाते है |पान का पत्ता एक बहुत ही बढ़िया माउथ फ्रेशनर है |तो आइये जानते है पान के पत्तो को खाने से हम कितनी बीमारियों से बच सकते है :

मुँह के छाले -

 इसके लिए आप पान के पत्तो को चबाये या फिर इस पर कत्था लगाकर चबाएँ या फिर इसे पानी में उबालकर इसे पानी से कुल्ले करे आपके मुँह के छाले ठीक हो जायेंगे |
खांसी को दूर करे - खांसी को दूर करने के लिए आप 10 -15 पत्ते ले और इसे तीन गिलास पानी डालकर जब तक उबाले जब तक एक गिलास ना रह जाये |और इस पानी को दिन में तीन से चार बार पिए आपकी खांसी छू मन्त्र हो जाएगी |
खुजली - 

इसके लिए आप 15 -20 पत्ते पानी में उबाले और फिर इस पानी को ताजे पानी में मिलाकर नहा लो आपकी खुजली ख़त्म हो जाएगी |
आँखों की जलन व लाल होने पर
आप पान के पांच से छ पत्तो को पानी में उबाले और इस पानी से अपनी आँखों पर छीटे मारे आँखों की जलन व लाली ठीक हो जाएगी |

मसूड़ों से खून आना - 

पान के पत्ते को पानी में उबालकर इस पानी से कुल्ले करने पर मुँह से बदबू व मसूड़ों से खून आना बंद हो जाता है |
शरीर से बदबू आने पर - 

आप पान के पत्तो को पानी में उबाले और इस पानी को दिन में दो से तीन बार सेवन करने से आपके शरीर से आने वाली बदबू भी दूर हो जाएगी आप चाहे तो पान के पत्तो के पानी से भी नहा सकते हो |

पाचन तंत्र -

पान के पत्तो को खाने से हमारा पाचन तंत्र सही रूप से कार्य करता है |क्योकि इससे हमारी लार ग्रंथि पर असर पड़ता है |और इसे स्लाइव लार बनने में मदद मिलती है |अगर आपने भरी भोजन किया हो तो भी पान के पत्ते को खाने से खाना हजम हो जाता है |साथ ही इससे गेस्ट्रिक अल्सर भी ठीक हो जाता है |

 मोटापा - 
पान के पत्तो को खाने से हमारा वजन कम हो जाता है |और हमारा मेटाबॉलिज्म बढ़ जाता है |जिससे शरीर में अतिरिक्त वसा नष्ट हो जाता है |जिससे हमारा वजन कम हो जाता है |


महिलाओं में श्वेत प्रदर - 

पान के पत्तो को पानी में उबाले और इस पानी से अपनी योनि को हर रोज धोये इस समस्या से आपको चुकारा मिल जायेगा |
मुहांसे होने पर - 

सात से आठ पान के पत्तो को पीस लो और इस पेस्ट में दो गिलास पानी डालकर जब तक उबाले जब तक ये गाढ़ा पेस्ट ना बन जाये |और ठंडा होने पर इसे आपने फेस पर अप्लाई करे |ऐसा करने से आपके पिम्पल्स गयाब हो जायेंगे |


नकसीर - 


पान के पत्ते को सुघने से ही नकसीर आनी बंद हो जाएगी |
जल जाने पर -

 जल जाने पर पान के पत्तो पीसकर जलने की जगह पर लगा लो फिर 15 -20 मिनट बाद इसे धोकर इस पर शहद लगा लो |आपकी जलन व घाव जल्दी ठीक हो जायेगा |