9.7.17

लम्बी आयु पाने के रहस्य, उपाय // Ways to get long life (longevity)



लम्बी उम्र पाने के घरेलू प्राकृतिक उपाय Top Tips To Live A Long Healthy Life – यदि वैज्ञानिक शब्दावली का प्रयोग किया जाए तो कहना होगा कि जब हमारी कोशिकाओं में डी.एन.ए. की अतिरिक्त मात्रा इकट्ठी हो जाती है, तो यह ऐसे स्तर तक पहुंच जाती है जिससे कोशिका का सामान्य कार्य अवरुद्ध हो जाता है जिसके फलस्वरुप हम धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं।
बुढ़ापा एक मायने में तन-मन के क्षय का ही एक रूप है। वर्तमान शोधों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मनुष्य की जीवनावधि सम्यक आहार, व्यायाम, पोषण और हार्मोन पूर्ति से बढ़ाई जा सकती है। इन चीजों से हमारी सक्रियता भी बरकरार रह सकती है और हम एक सार्थक व कर्मशील जीवन जी सकते हैं। प्राचीन मनीषा में इन सभी उपायों का पहले से ही वर्णन मिलता है। हमारे विभिन्न आरोग्य शास्त्र, योग आदि जीवन की अवधि बढ़ाने के शास्त्र ही हैं। परंतु आज हम प्राचीन शास्त्रों के इन गुणों को भूलकर विज्ञान की नई खोजों का मुह ताक रहे हैं।
कुछ लोग लम्बी उम्र क्यों पाते हैं
आज के वैज्ञानिक यह सिद्ध कर रहे हैं कि वह व्यक्ति ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते हैं जो कम कैलोरी का भोजन करते हैं उनका कहना है कि विलकाबंबा के दक्षिणी अमरीकी, हिमालय क्षेत्र की डूजा जाति के लोग, मध्य यूरोप के काकेशियंस सभी प्रतिकूल परिस्थितियों में कड़ी मेहनत करते हैं, फिर भी वे अधिक समय तक जिंदा रहते हैं क्योंकि वे 1600 कैलोरी का ही भोजन करते हैं। इसी प्रकार जापान के ओकीनावा शहर के व्यक्ति शतायु होते हैं तथा सारी दुनिया में जापान में ही सर्वाधिक दीर्घजीवी लोग रहते हैं।
इसका कारण है कि उनका भोजन कम कैलोरी युक्त कितुपोषक तत्त्वों से भरपूर होता है। एक मोटा सिद्धांत यह है कि ‘कम खाओ, लंबी उम्र पाओ।’ यह सिद्धांत वैज्ञानिक आधार पर भी तकसंगत है। कैलोरी की मात्रा कम करने पर चयापचय (Metabolism) की क्रिया धीमी हो जाती है क्योंकि मुक्त मूलक चयापचय के उप-उत्पाद हैं, कैलोरी नियंत्रण से उनके द्वारा की जानेवाली विनाशलीला में कमी आती है और फिर कैलोरी नियंत्रण से शरीर का तापक्रम भी थोड़ा कम रहता है।
इसलिए कोशिकाओं की क्षति भी कम होती है। प्रयोगों के निष्कर्ष के आधार पर यह तथ्य सामने आता है कि कैलोरी नियंत्रण से न केवल जीवन की अवधि में वृद्धि हो सकती है बल्कि रोगों की प्रक्रिया में भी इसके कारण धीमापन आता है। इन शोधों से यह आशा बंधती है कि कैलोरी नियंत्रण के सिद्धांत से बुढ़ापे में होनेवाले रोगों के कारणों का पता लगाने में भी सहायता मिलेगी।
आजकल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न शारीरिक व्यायामों की अनुशंसा की जाती है, इनसे जीवनावधि में वृद्धि होती है, परंतु इनकी अपनी निश्चित सीमाएं हैं। योगाभ्यास भी जीवन बढ़ाने हेतु समग्र प्रक्रिया है। लंबी उम्र और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए योगाभ्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। योगमय जीवन द्वारा हम बुढ़ापे को पछाड़ सकते हैं।








ऋतु अनुसार वर्जित पदार्थ वर्षों से हमारे देश में कई उपयोगी व सारगर्भित कहावतें तथा तुकबदियां प्रचलित रही हैं, जिनमें स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी जानकारियां मिलती हैं। इसी संदर्भ में ऋतुओं के अनुसार कुछ भोज्य पदार्थों के सेवन को हानिकारक बतानेवाली एक तुकबंदी यहां प्रस्तुत है।

चैत्र में गुड़, वैशाख में तेल जेठ में महुआ, अषाढ़े बेल॥
सावन दूध, भादो में मही। क्वांर करेला, कार्तिक दही॥
अगहन जीरा, पूस धना। माघ में मिश्री फागुन चना॥
इनका परहेज कर नहीं। मरे नहीं तो पड़े सही॥
नीरोग जीवन एक ऐसी विभूति है जो हर किसी को अभीष्टहै । कौन नहीं चाहता कि उसे चिकित्सालयों-चिकित्सकों का दरवाजा बार-बार न खटखटाना पड़े, उन्हीं का, ओषधियों का मोहताज होकर न जीना पड़े । पर कितने ऐसे हैं जो सब कुछ जानते हुए भी रोग मुक्त नहीं रह पाते ? यह इस कारण कि आपकी जीवन शैली ही त्रुटि पूर्ण है मनुष्य क्या खाये, कैसे खाये! यह उसी को निर्णय करना है । आहार में क्या हो यह हमारे ऋषिगण निर्धारित कर गए हैं । वे एक ऐसी व्यवस्था बना गए हैं, जिसका अनुपालन करने पर व्यक्ति को कभी कोई रोग सता नहीं सकता । आहार के साथ विहार के संबंध में भी हमारी संस्कृति स्पष्ट चिन्तन देती है, इसके बावजूद भी व्यक्ति का रहन-सहन, गड़बड़ाता चला जा रहा है । परमपूज्य गुरुदेव ने इन सब पर स्पष्टसंकेत करते हुए प्रत्येक के लिए जीवन दर्शक कुछ सूत्र दिए हैं जिनका मनन अनुशीलन करने पर निश्चित ही स्वस्थ, नीरोग, शतायु बना जा सकता है ।
जीवन जीने की कला का पहला ककहरा ही सही आहार है। इस संबंध में अनेकानेक भ्रान्तियाँ है कि क्या खाने योग्य है क्या नहीं ? ऐसी अनेकों भ्रान्तियों यथा नमक जरूरी है, पौष्टिता संवर्धन हेतु वसा प्रधान भोजन होना चाहिए, शाकाहार से नहीं-मांसाहार स्वास्थ्य बनता है-पूज्यवर ने विज्ञान सम्मत तर्क प्रस्तुतः करते हुए नकारा है । एक-एक स्पीष्टरण ऐसा है कि पाठक सोचने पर विवश हो जाता है कि जो तल-भूनकर स्वाद के लिए वह खा रहा है वह खाद्य है या अखाद्यं अक्षुण्ण स्वास्थ्य प्राप्ति का राजमार्ग यही है कि मनुष्य आहार का चयन करें क्योंकि यही उसकी बनावट नियन्ता ने बनायी है तथा उसे और अधिक विकृति न बनाकर अधिकाधिक प्राकृतिक् रूप में लें



अनेक व्यक्ति यह जानते नहीं हैं कि उन्हें क्या खाना चाहिए, क्या नहीं ? उनके बच्चों के लिए सही सात्विक संस्कार वर्धक आहार कौन सा है, कौन सा नहीं ? सही, गलत की पहचान कराते हुए पूज्यवर ने स्थान-स्थान पर लिखा है कि एक क्रांति आहार संबंधी होनी चाहिए, पाककला में परिवर्तन कर जीवन्त खाद्यों को निष्प्राण बनाने की प्रक्रिया कैसे उलटी जाय, यह मार्गदर्शन भी इसमें है । राष्ट्र् के खाद्यान्न संकट को देखते हुए सही पौष्टि आहार क्या हो सकता है यह परिजन इसमें पढ़कर घर-घर में ऐसी व्यवस्था बना सकते हैं । अंकुरित मूँग-चना-मूँगफली-हरी सब्जियों के सलाद आदि की व्यवस्था कर सस्ते शाकाहारी भोजन व इनके भी व्यंजन कैसे बनाये जायँ इसका सर्वसुलभ मार्गदर्शन इस खण्ड में है । शाकाहार-मांसाहार संबंधी विवाद को एकपक्षीय बताते हुए शाकाहार के पक्ष में इतनी दलीलें दी गयी हैं कि विज्ञान-शास्त्र सभी की दुहाई देनेवाले को भी नतमस्तक हो शाकाहार की शरण लेनी पड़ेगी, ऐसा इसके विवेचन से ज्ञात होता है ।

हमारी जीवन शैली में कुछ कुटेवें ऐसी प्रेवश कर गयी हैं कि वे हमारे 'स्टेटस' का अंग बनकर अब शान का प्रतीक बन गयीं हैं । उनके खिलाफ सरकारी, गैरसरकारी कितने ही स्तर पर प्रयास चलें हो, उनके तुरन्त व बाद में संभावित दुष्परिणामों पर कितना ही क्यों न लिखा गया हो, ये समाज का एक अभश्प्त अंग बन गयीं हैं । इनमें हैं तम्बाकू का सेवन, खैनी, पान मसाले या बीड़ी-सिगरेट के रूप में तथा मद्यपान । दोनों ही घातक व्यसन हैं । दोनों ही रोगों को जन्म देते हैं-काया को व घर को जीर्ण-शीर्ण कर बरबादी की कगार पर लाकर छोड़ देते हैं । इनका वर्णन विस्तार से वैज्ञानिक विवेचन के साथ करते हुए पूज्यवर ने इनके खिलाफ जेहाद छेड़ने का आव्हान किया है ।
इन सबके अतिरिक्त नीरोग जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र है हमारा रहन-सहन । हम क्या पहनते हैं ? कितना कसा हुआ हमारा परिधान है ? हमारी जीवनचर्या क्या है ? इन्द्रियों पर हमारा कितना नियंत्रण है ? क्या हमारी रहने की जगह में धूप व प्रचुर मात्रा में है या हम सीलन से भरी बंद जगह में रहकर स्वयं को धीरे-धीरे रोगाणुओं की निवास स्थली बना रहे हैं, यह सारा विस्तार इस वाङ्मय के उपसंहार प्रकरण में है । आभूषणों, सौन्दर्य प्रसाधनों का उपयोग, नकली मिलावटी चीजों का शरीर पर व शरीर के अन्दर प्रयोग यह सब हमारे स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव डालता है यह बहुसंख्य व्यक्ति नहीं जानते । हमारी जीवन-शैली कैसे समरसता से युक्त, सुसंतुलित एवं तनावयुक्त बने, यह शिक्षण जीवन जीने की कला का सर्वांगपूर्ण शिक्षण है|
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8.7.17

बढ़े हुए यूरिक एसीड का आयुर्वेदिक इलाज, Ayurvedic treatment of increased uric acid





यदि किसी कारणवश गुर्दे की छानने की क्षमता कम हो जाए तो यह यूरिया-यूरिक एसिड (Uric Acid) में बदल जाता है ।जो बाद में हड्डियों में जमा हो जाता है जिसके कारण पीड़ित व्यक्ति को जॉइंट में दर्द रहने लगता है ।यूरिक एसिड प्‍यूरिन के टूटने से बनता है वैसे तो यूरिक एसिड(Uric Acid)शरीर से बाहर पेशाब के रूप में निकल जाता है ।परन्तु यदि किसी कारणवश जब यूरिक एसिड शरीर में रह जाए तो धीरे-धीरे इसकी मात्रा ही आपके शरीर के लिए नुकसान दायक हो जाती है।यह अधिकांश आपके हड्डियों के जोड़ो में इकठ्ठा होने लगता है जिसके कारण आपको जॉइंट पैन होने लगते हैं।
उच्च यूरिक एसिड(High Uric Acid)के नुकसान-

इसका सबसे बड़ा नुकसान है शरीर के छोटे जोड़ों मे दर्द जिसे गाउट रोग के नाम से जाना जाता है।
पैरो-जोड़ों में दर्द होना।



जोड़ों में सुबह शाम तेज दर्द कम-ज्यादा होना।

एक स्थान पर देर तक बैठने पर उठने में पैरों एड़ियों में सहनीय दर्द। फिर दर्द सामन्य हो जाना।
पैरों, जोड़ो, उगलियों, गांठों में सूजन होना।
शर्करा लेबल बढ़ना।
पैर एडियों में दर्द रहना।

गांठों में सूजन
इस तरह की समस्या होने पर तुरन्त यूरिक एसिड जांच करवायें।
बढ़े हुए युरिक एसिड का 

नुस्खा नम्बर 1

त्रिफला-250 ग्राम,गिलोय चूर्ण – 200 ग्राम,कलोंजी-100 ग्राम,मैथी पीसी – 100 ग्राम,अजवायन – 100 ग्राम,अर्जुन छाल चूर्ण -100 ग्राम,चोबचीनी -100 ग्राम,200 एलोवेरा रस में सभी चूर्ण को मिलाकर छावं में सुखाए।
सेवन की विधि :- 21 दिन से 90 दिन तक दिन में 3 बार 2 से 5 ग्राम सेवन करें ।


नुस्खा नम्बर 2

छोटी हरड का पावडर – 100 ग्राम,बड़ी हरड का पावडर – 100 ग्राम,आवंला का पावडर – 100 ग्राम,जीरा का पावडर -100 ग्राम,गिलोय का पावडर – 200 ग्राम,अजवायन – 100 ग्राम,इन सभी को आपस में मिला लीजिये।
प्रतिदिन 5 ग्राम सुबह और 5 ग्राम शाम को पानी से निगल लीजिये।यूरिक एसिड नार्मल होते देर नहीं लगेगी।

लेकिन सावधान आपको लाल मिर्च का पावडर और किसी भी अन्य खटाई,अचार का सेवन बिल्कुल नहीं करना है 
हाई यूरिक एसिड में क्या खाये और नहीं खाना चाहिए

प्यूरिन की वजह यूरिक एसिड हाई होता है इसलिए खाने पीने ऐसी चीजों के सेवन से दूर रहे जिनसे प्यूरिन बनता है, जेसे रेड मीट, ऑर्गन मीट, फिश और सी फुड।
दूध कम फट वाला ही पिए।
नींबू पानी शरीर को साफ़ करता है और क्रिस्टल्स घोलता है।
बियर और शराब के सेवन से परहेज करे।
जिन चीजों में फाइबर अधिक हो ऐसी चीज खाये।
ओमेगा – 3 फैटी एसिड का यूरिक एसिड में परहेज करे।
पेस्ट्री, केक और पैनकेक जैसे बेकरी उत्पादों के सेवन से बचे।
जामुन, चेरी और स्ट्रॉबेरी जैसे फल गठिया का इलाज करने और यूरिक एसिड को बाहर निकालने में मदद करते है।
जैतून के तेल में खाना बनाये।
डिब्बा बंद खाना खाने से बचे।
विटामिन सी युक्त चीजों का सेवन करे।

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विशिष्ट परामर्श-  

संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| हर्बल औषधि होने के बावजूद यह तुरंत असर चिकित्सा है| सैकड़ों वात रोग पीड़ित व्यक्ति इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं|औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं| 










  • 7.7.17

    सिर दर्द से जल्दी छुटकारा पाने के घरेलू उपाय //Home remedies to get rid of headache quickly




       आजकल सब लोग एक दूसरे से बेहतर करने और आगे निकालने की दौड़ में लगे है, ऐसे में सिर दर्द की शिकायत होना आम है। सिर दर्द का सबसे बड़ा कारण तनाव है। ये समस्या छोटे बच्चों से ले कर बड़े बूढ़ों तक किसी को भी परेशान कर सकती है और अगर ये बीमारी बार बार हो तो ये आधासीसी (माइग्रेन) का रूप ले सकती है। माइग्रेन में सिर के आधे हिस्से में दर्द होता है जो कई बार असहनीय हो जाता है। अक्सर लोग सिर दर्द का उपचार करने के लिए दर्द निवारक दवाओं (Pain killers) खाते है जैसे की क्रोसिन और पेरासिटामोल। इन मेडिसिन से सिर का दर्द तो कम हो जाता है पर ये शरीर पर बुरा असर डालती है। Head pain इन दवाओं की बजाये देसी आयुर्वेदिक नुस्खे अपना कर भी कर सकते है, जिसका कोई नुकसान नहीं।
    . पेट में गैस के कारण अगर सिर दर्द हो तो 1 ग्लास हलके गरम पानी में नींबू रस मिला कर पिये। इससे पेट की गैस और सिर के दर्द दोनों से रहत मिलेगी।
    *सर्दी और जुकाम के कारण सर में दर्द हो तो चीनी और धनिया को पानी में घोल ले और पिए। इससे जुकाम, सर्दी और सिर दर्द से आराम मिलेगा।

    * अगर अधिक गर्मी की वजह से सिर दर्द हो तो नारियल के तेल से सर की मालिश करे। इससे सिर को ठंडक मिलेगी और दर्द से छुटकारा मिलेगा।
    सर दर्द से छुटकारा पाना हो तो एक साफ़ कपडे में बर्फ के टुकड़े डालें और ice pack बना ले। 10 मिनट के लिए इसे सिर पर रखने और हटाने से थोड़ी देर में सर दर्द ठीक होने लगेगा।
    *थोड़ा सा केसर बादाम के तेल में मिला कर इसे सूंघने पर सिर का दर्द कम होने लगेगा। जल्दी राहत पाने के लिए इस उपाय को 2 से 3 बार करे।
    * कई बार नींद पूरी ना होने की वजह से भी सर में दर्द होने लगता है ऐसे में लौंग, इलायची और अदरक डाल कर चाय बनाये और पिये। इससे सिर का दर्द तुरंत गायब हो जाएगा। अदरक वाली चाय पीना तनाव कम करने और माइंड फ्रेश करने का अच्छा उपाय है।
    . सर दर्द से तुरंत राहत पाने के लिए लौंग के पाउडर में नमक मिला कर पेस्ट बनाये और दूध के साथ पियें, कुछ मिनटों में ही सिर का दर्द कम हो जायेगा। इसके इलावा लौंग को हल्का सा गरम करे और पीस कर इसका लेप सिर पर लगाने से भी head pain दूर होता है।
    * लहसुन एक प्राकृतिक दर्द निवारक औषधी है, लहसुन की कुछ कलियों को पीस कर निचोड़ ले और उसका रस पियें। इससे सिर दर्द से जल्दी आराम मिलेगा।
    * सिर की मांसपेशियों में तनाव की वजह से दर्द होने लगता है। इस तनाव को कम करने के लिए गर्दन, सिर और कंधो की मालिश करे। रोजाना योगा, एक्सरसाइज और मेडिटेशन करने वालों को सिर दर्द की शिकायत कम होती है।
    *अगर आपको ये परेशानी बार बार होती है तो सुबह सुबह सेब पर नमक लगा कर खली पेट खाये और साथ में गुनगुना दूध पिये। कुछ दिन लगातार ये उपाय करने पर बार बार होने वाले सिर दर्द से छुटकारा मिलेगा।

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    नहीं बचेगा एक भी मच्छर करें ये उपाय // Not a single mosquito will survive, do these things





    मच्छर मानवता के लिए एक बड़ा गंभीर खतरा है। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, आदि ऐसी कई बीमारियां मच्छर द्वारा फैलती हैं। हम में से ज्यादातर लोग मच्छरों को मारने के लिए रासायनिक कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन इन रासायनिक एजेंटों को एलर्जी का कारण माना जाता है और यह हानिकारक होते हैं। तो अगर आप इन तंग करने वाले जंतुओं से छुटकारा पाने के प्राकृतिक तरीकों की तलाश कर रहे हैं, यहाँ मच्छरों को दूर रखने के दस उपाय हैं।

    नीलगिरी और नींबू का तेल-
       सी डी सी( सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल ) द्वारा सिफारिश किया गया नींबू के तेल और नीलगिरी के तेल का मिश्रण प्राकृतिक रूप से मच्छरमुक्त रखने का एक बहुत असरदार उपाय है।नींबू के तेल और नीलगिरी के तेल के असर करने की वजह एक सक्रिय घटक सिनियोल है, जो त्वचा पर लगाने पर एंटीसेप्टिक और कीट विकर्षक दोनों के गुण देता है। इस मिश्रण के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि यह प्राकृतिक है। इस मिश्रण का उपयोग करने के लिए बराबर अनुपात में नींबू के तेल और नीलगिरी के तेल का मिश्रण बनाएं और आपके शरीर पर इसका इस्तेमाल करें।


    तुलसी-

    पैरासाईटोलौजी रिसर्च जर्नल में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार तुलसी मच्छर के लार्वा को मारने में अत्यंत प्रभावी है और मच्छरों को दूर रखने में मदद करती है। इसके अलावा, आयुर्वेद के अनुसार आप मच्छरों से बचने के लिए बस अपनी खिड़की के पास एक तुलसी का पौधा रखेँ। यह मच्छरों का घर में प्रवेश करने से रोकते हैं एवं उनका उत्पन्न होने का रोकथाम करते हैं।
    कपूर-
    मच्छरों से बचाव करने के लिए कपूर का उपयोग अद्भुत काम करता है। अन्य प्राकृतिक उत्पादों की तुलना में ये पेड़ से निचोड़ा हुआ यौगिक सबसे लंबे समय तक मच्छर से बचाता है। एक कमरे में कपूर जलाएं और सभी दरवाजे और खिड़कियां बंद कर दें।१५-२० मिनट के लिए इसे इस तरह से छोड़ दें और एक मच्छर मुक्त वातावरण पाएं।
    नीम का तेल-
    नीम मानव शरीर के लिए काफी लाभदायक है। लेकिन आपका स्वास्थ्यवर्धक होने के अलावा यह एक मच्छर नाशक भी है। अमेरिकन मस्कीटो कंट्रोल असोसिएशन के जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि १:१ अनुपात में नारियल तेल के साथ नीम के तेल का मिश्रण मच्छर-मुक्त रखने का एक प्रभावी तरीका है। एक शक्तिशाली जीवाणुरोधी, कवक विरोधी (एंटी फंगल), विषाणु (एंटी वायरस) एवं प्रोटोज़ोआल विरोधी एजेंट होने के नाते, नीम आपकी त्वचा में एक विशेष गंध छोड़ता है जो मच्छरों को दूर रखती है। एक प्रभावी कीटनाशक मिश्रण बनाने के लिए बराबर भागों में नीम का तेल और नारियल तेल मिलाएं और अपने शरीर (सभी उजागर भागों) पर यह रगड़ें। यह कम से कम आठ घंटे के लिए मच्छर के काटने से रक्षा करेगा।


    टी ट्री ऑइल-

    क्या आपको पता है कि यह आपकी त्वचा और बालों के लिए फायदेमंद और एक बहुत शक्तिशाली जीवाणुरोधी होने के अलावा मच्छरों को दूर भगाने के लिए एकदम उचित है? अपनी गंध, कवक रोधी और जीवाणुरोधी गणों की वजह से ये आपको मच्छरों के काटने से बचाता है और उन्हें दूर भगाने में मदद करता हैं। आप इस उपाय का उपयोग करना चाहते हैं तो अपनी त्वचा पर कुछ इसका तेल मलें या उसकी थोड़ी बूँदें एक वेपराइज़र में डालें। इस तरह इस तेल की महक हवा में फैल्के मच्छरों को दूर रखती है।
    लहसुन-
    मच्छरों को दूर रखने का ये एक प्रमुख तरीका है। यह बदबूदार हो सकता है लेकिन यही कारण से मच्छर भाग जाते हैं। लहसुन की तीखी और कटु गंध मच्छर के काटने से और यहां तक ​​कि अपने घर में प्रवेश करने से भी रोकती हैं। इस उपाय का उपयोग करने के लिए आप लहसुन की कुछ फली पीसकर पानी में उबाल लें और जिस कमरें को आप मच्छर मुक्त रखना चाहते हैं वहां चारों ओर स्प्रे करें। 
    लैवेंडर-
    ना ही सिर्फ यह खुशबूदार है पर एक शानदार तरीका भी है उन मच्छरों से बचने का। इस फूल की खुशबू अक्सर मच्छरों के लिए बहुत कड़ी है और उन्हें काटने से असमर्थ कर देती हैं। इस घरेलू उपाय के उपयोग के लिए लैवेंडर के तेल का एक कमरे में प्राकृतिक फ्रेशनर के रूप में छिड़कें या और अच्छे परिणाम के लिए (आप अपने क्रीम के साथ मिश्रण कर सकते हैं) आपकी त्वचा पर इसे मलें।
    वृक्षारोपण-
    अगर आपको यह लगता है कि पेड़ और झाड़ियाँ मच्छरों का उत्पन्न करती हैं तो आप गलत हैं। झाड़ियों और पेड़ों का सही तरह रोपण करना आपके घर को मच्छरमुक्त रख सक्ता है। तुलसी की झाड़ियाँ, पुदीना, गेंदा, नींबू, नीम और सिट्रोनेला घास का रोपण मच्छरों को पैदा होने से रोकने में बेहद मददगार हैं।
    पुदीना-
    बाईयोरिसोर्स टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार पुदीने का तेल या मिंट एक्सट्रैक्ट किसी भी अन्य कीटनाशक जितना प्रभावी पाया गया है। आप कई तरीकों में पुदीने के पत्तों और एसेंस का उपयोग कर सकते हैं। आप अपने शरीर पर इसका तेल लगा सकते हैं या अपने कमरे की खिड़की के बाहर पौधा रख सकते हैं, या एक वेपराइज़र में डालके कमरे में पुदीने की सुगंध भर सकते हैं जिससे मच्छर भाग जाएंगे। या फिर आप पानी के साथ मिंट स्वाद वाले माउथवॉश का मिश्रण बनाके अपने घर के आसपास यह स्प्रे सकता हैं।
             इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|






    एलर्जी की जानकारी और उपचार //Allergy Information and Treatment




       एलर्जी या अति संवेदनशीलता आज की लाइफ में बहुत तेजी से बढ़ती हुई सेहत की बड़ी परेशानी है कभी कभी एलर्जी गंभीर परेशानी का भी सबब बन जाती है जब हमारा शरीर किसी पदार्थ के प्रति अति संवेदनशीलता दर्शाता है तो इसे एलर्जी कहा जाता है और जिस पदार्थ के प्रति प्रतिकिर्या दर्शाई जाती है उसे एलर्जन कहा जाता है lआमतौर पर जब कोई नाक, त्वचा, फेफड़ों एवं पेट का रोग पुराना हो जाता है। और उसका इलाज नहीं होता तो अकसर लोग उसे एलर्जी कह देते हैं। बहुत सारे ऐसे रोगी जीवा में उपचार के लिए आते हैं और यह बताते हैं कि उन्हें एलर्जी है, लेकिन क्या है यह एलर्जी इसका ज्ञान हमें अकसर नहीं होता। यदि रोग के बारे में ज्ञान नहीं है तो उसका उपचार कैसे होगा।
    क्या है एलर्जी?
    एलर्जी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति की कुछ बाहरी तत्वों, जैसे पराग कण, धूल, भोजन इत्यादि के प्रति अस्वाभाविक प्रतिक्रिया का नाम है। पूरे विश्व में यह रोग तेजी से फैल रहा है। आजकल युवा अवस्था एवं बाल्यावस्था में भी एलर्जी रोग देखने में आता है। एलर्जी प्रतिक्रिया करने वाले तत्वों को एलरजेन कहा जाता है। ये एलरजेन या एलर्जी पैदा करने वाले तत्व वास्तव में कोई हानिकारक कीटाणु या विषाणु नहीं बल्कि अहानिकर तत्व होते हैं, जैसे गेहूं, बादाम, दूध, पराग कण या वातावरण में मौजूद कुछ प्राकृतिक तत्व। यही कारण है कि सभी लोगों को ये हानि नहीं पहुंचाते। एक ही घर में, एक ही प्रकार के वातावरण से एक व्यक्ति को एलर्जी होती है तो दूसरे को नहीं। आखिर क्या कारण होता है एलर्जी का? क्यों किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति हानिकारक प्रतिक्रिया करती है?

            एलर्जी के कारण
    आयुर्वेद के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति में धातुओं और दोषों की साम्यावस्था होती है। इसी कारण उनकी रोग प्रतिरोध शक्ति किसी एलरजेन के सम्पर्क में आकर भी प्रतिक्रिया (एलर्जी पैदा नहीं करती) धातु और दोष जब साम्य रहते हैं तो हमारे शरीर की ओज शाक्ति उत्तम होती है। उत्तम ओज, यानि उत्तम रोग प्रतिरोधक शक्ति हमारे शरीर से नियमित रूप से हानिकारक तत्वों को निष्कासित करती है और उसमें किसी प्रकार की प्रतिक्रिया भी नहीं होती।
    आयुर्वेद के अनुसार एलर्जी का मूल कारण है असामान्य पाचक अग्नि, कमजोर ओज शक्ति, और दोषों एवं धातुओं की विषमता। इसमें भी अधिक महत्व पाचक अग्नि का माना गया है। जब पाचक अग्नि भोजन का सही रूप से पाक नहीं कर पाती है तो भोजन अपक्व रहता है। इस अपक्व भोजन से एक चिकना विषैला पदार्थ पैदा होता है जिसे ‘आम’ कहते हैं। यह आम ही एलर्जी का मूल कारण होता है। यदि समय रहते इस आम का उपचार नहीं किया जाए तो यह आतों में जमा होने लगता है और पूरे शरीर में भ्रमण करता है। जहां कहीं इसको कमजोर स्थान मिलता है वहां जाकर जमा हो जाता है और पुराना होने पर आमविष कहलाता है। आमविष हमारी ओज शक्ति को दूषित कर देता है। इसके कारण, जब कभी उस स्थान या अवयव का सम्पर्क एलरजेन से होता है तो वहां एलर्जी प्रतिक्रिया होती है।
    यदि आमविष त्वचा में है तो एलरजन के सम्पर्क में आने से वहां पर खुजली, जलन, आदि लक्षण होते है, यदि आमविष श्वसन संस्थान में है तो श्वास कष्ट, छीकें आना, नाक से पानी गिरना, खांसी इत्यादि और यदि पाचन संस्थान में है तो अतिसार, पेट दर्द, अर्जीण आदि लक्षण होते हैं।
    पाचक अग्नि के अतिरिक्त वात, पित्त, कफ के वैषम्य से भी ओज शक्ति क्षीण एवं दूषित होती है जिसकी वजह से एलर्जी हो सकती है। आजकल तनाव, नकारात्मक सोच, शोक, चिन्ता आदि भी हमारे पाचन पर असर डालते हैं, जिससे आम पैदा होता है। इसलिए कुछ लोगों में एलर्जी का मूल कारण मानसिक विकार भी माना गया है। इसके अतिरिक्त एलर्जी रोग को अनुवांशिक यानि हैरीडेटरी भी माना गया है। क्योंकि कुछ लोगों में जन्म से ही पाचक अग्नि एवं ओज शक्ति क्षीण या कमजोर होते है।

    आयुर्वेदिक उपचार
    आयुर्वेद में एलर्जी का सफल इलाज है। आयुर्वेदिक उपचार रोग के मूल कारण को नष्ट करने में सक्षम होने के कारण रोग को जड़ से ठीक करता है। एलर्जी के उपचार में आमविष के निस्कासन के लिए औषधि दी जाती है। इसलिए सर्वप्रथम शोधन चिकित्सा करते हैं, जिससे शरीर में जमे आम विष को नष्ट किया जाता है। इसके अतिरिक्त दोषों एवं धातुओं को साम्यावस्था में लाकर ओज शक्ति को स्वस्थ बनाया जाता है। यदि रोगी मानसिक स्तर पर अस्वस्थ है तो उसका उपचार किया जाता है और एलर्जी के लक्षणों को शान्त करने के लिए भी औषधि दी जाती है।
    उचित उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लें और उनके द्वारा दी गई। औषधियों का नियमित रूप से सेवन करें। रोग पुराना एवं कष्ट साध्य होने के कारण ठीक होने में कुछ समय लेगा, इसलिए संयम के साथ चिकित्सक के परामर्शनुसार औषधियों एवं आहार-विहार का सेवन करें। यदि आप एलर्जी से पीड़ित हैं तो औषधियों के साथ-साथ निम्न उपचारों के प्रयोग से भी आपको लाभ मिलेगा।
    घरेलू उपचार
    पानी में ताजा अदरक, सोंफ एवं पौदीना उबालकर उसे गुनगुना होने पर पीयें।, इसे आप दिन में 2-3 बार पी सकते हैं। इससे शरीर के स्रोतसों की शुद्धि होती है एवं आम का पाचन होता है।
    लघु एवं सुपाच्य भोजन करें जैसे लौकी, तुरई, मूंग दाल, खिचड़ी, पोहा, उपमा, सब्जियों के सूप, उबली हुई सब्जियां, ताजे फल, ताजे फलों का रस एवं सलाद इत्यादि। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें, केवल फलाहार करें। नियमित रूप से योग और प्राणायाम करें। रात को सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण लें और हर रोज और हर रोज एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश लें।एक बड़ा चम्मच च्यवनप्राश लें|








    5.7.17

    दोपहर मे सोने के फायदे // Benefits of sleeping in the afternoon




       कई लोग दोपहर में कुछ देर कि झपकी लेना बहुत पसंद करते हैं और उनका मानना है कि इससे वे बिल्कुल फ्रेश हो जाते हैं और एनर्जी से भरा हुआ महसूस करते हैं। वहीँ कुछ लोगों का मानना है कि पूरे 24 घंटों में सिर्फ एक ही बार रात में लम्बी नींद लेनी चाहिए और फिर दोबारा नहीं सोना चाहिए। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि सोने का कौन सा पैटर्न सही है।
       गांव देहातों में आज भी दिन में दो बार लोग सोते हैं। पुरानेजमाने में भी लोग रात के अलावा दोपहर में जरूर सोते थे। लेकिन शहरों की भागदौड़ के बीच दो बार सोना मुमकिन नहीं है। पर जो भी हो, दिन में दो बार सोने को मनोवैज्ञानिक सेहत के लिए फायदेमंद मानने लगें हैं।
       दुनियाभर में अलग-अलग देश में रहने वाले लोंगो का सोने का तरीका अलग है। कई देशों में लोग दिन में दो बार सोते हैं। कुछ देश हैं जहां रात में 6 घंटे और दिन में 2 घंटा सोना अच्छा माना जाता है। कई पुरानी सभ्यताओं में ये भी दर्ज है कि वे रात और दिन दोनों में चार-चार घंटे सोया करते थे।



    मनोवैज्ञानिकों के अनुसार दिन में दो बार सोने से आपकी बौद्धिक और फोकस करने की क्षमता बढती है। अगर आप का दिन भर का शेड्यूल काफी तनाव भरा रहता है तो दोपहर में एक घंटे की नींद आपके तनाव को काफी कम कर देती है। इससे दिन के बाकी समय में आप और सजगता के साथ काम करते हैं। 


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        वैज्ञानिकों की एक बड़ी जमात मानती है कि नींद का जो चक्र आज की पीढ़ी फॉलो करती है वो इलेक्ट्रिसिटी के खोज के कारण ऐसी है। जब बिजली की खोज नहीं हुई थी उस समय हमारे पूर्वज सूरज की रोशनी के हिसाब से सोने-जागने का समय तय करते थे। इसीलिए उस समय लोग शाम को जल्दी सोते थे और भोर में उठ जाते थे। लेकिन अब बिजली की खोज के बाद लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से सोते हैं। दोपहर में लंच के बाद नींद आना एक आम बात है और उस समय थोड़ी देर आराम करना भी चाहिए। उससे खाना भी ठीक तरीके से पच जाता है और कुछ ही देर में आप फिर से उर्जा से भर जाते हैं।
       


    प्रेगनेंसी और डिलीवरी के कारण महिलाओं का स्लीपिंग रूटीन पूरी तरह बिगड़ जाता है इसी वजह से वे डिप्रेशन की शिकार हो जाती हैं। इसलिए जिस स्लीपिंग रूटीन को आप अभी फॉलो कर रहे हैं उसे ही फॉलो करें उसमें छेडछाड न करें। अगर संभव हो तो दिन में भी एक डेढ़ घंटे की नींद ले और रात में कम से कम 8 घंटे की भरपूर नींद ज़रूर लें।
        कई अध्ययनों में इस बात को साफ तौर पर कहा गया है कि दो बार सोने से हमारी बॉडी क्लॉक सही तरीके से काम करती है। हालांकि वैज्ञानिको का ये भी कहना है कि अगर आप शुरुआत केवल रात में सोते रहें हैं तो अब अपना स्लीपिंग पैटर्न ना बदलें। बस रात में ही भरपूर 8 घंटे की नींद लें क्योंकि नींद का चक्र बिगड़ने से आपका पूरा रूटीन खराब हो जाता है। सेहत पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा।


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    निमोनिया के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार // Natural , Ayurvedic treatment of pneumonia



       निमोनिया एक खतरनाक बीमारी है और अगर इससे तुरंत ना लड़ा जाए तो, यह फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। मानसून में होने वाली बीमारियों में निमोनिया एक ऐसी बीमारी है जो कि बच्चों में सामान्यत: पाई जाती है। यदि किसी को लगातार तेज बुखार, सांस लेने में तकलीफ, छती में दर्द, बलगम वाली खांसी और नाड़ी तेज चल रही हो (150 बीट्स प्रति मिनट), तो उसकी देखभाल बहुत जरूरी है, यह निमोनिया हो सकता है।
    निमोनिया एक संक्रमण है जो कि फेफड़ों को प्रभावित करता है। फिर भी, बच्चे और बड़ी उम्र के लोग इसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्यों कि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता युवाओं की तुलना में कम होती है। जब भी उनमें यह संक्रमण होता है उन्हें कमजोरी महसूस होती है और उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करना जरूरी हो जाता है।
    निमोनिया एक इन्फ़ैकशन है जो कि बैक्टीरिया, वायरस और कवक से फैलता है। इस बीमारी से दूर रहने के लिए स्वच्छता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। अगर आपको या आपके परिवार में किसी को निमोनिया है तो आप नीचे दिये गए कुछ आसान से घरेलू नुस्‍खों का प्रयोग कर सकते हैं।



    * तुलसी की पत्तियों का रस

    तुलसी की कुछ पत्तियाँ लें, इन्हें मसलकर इनका रस निकाल लें। इसमें थोड़ी काली मिर्च मिलाएँ और 6 घंटे में एक बार पियें। यह भी निमोनिया में कारगर है।

    *लहसुन का पेस्ट


    लहसुन से शरीर का तापमान कम होता है और यह निमोनिया में प्रभावी है। लहसुन की कुछ पोथियां लें और मसलकर इनका पेस्ट बना लें। इसे छाती पर मसलें।

    * लौंग और काली मिर्च

    5-6 लौंग और काली मिर्च लें और 1 पानी के गिलास में 1 ग्राम सोडा लेकर इन्हें उबाल लें। इसे दिन में 1-2 बार लें। इससे निमोनिया में राहत मिलेगी।

    शहद-

    चीनी की बजाए इस बीमारी में शहद खाना चाहिये। क्‍योंकि इसमें एंटीबैक्‍टीरियल गुण होते हैं जो कि खराब बैक्‍टीरिया से शरीर को बचाने में मदद करते हैं।



    मिर्च-


    एक्‍सपर्ट्स का मानना है कि मिर्च में इंफेक्‍शन से लड़ने की बहुत ताकत होती है। इसलिये इसे निमोनिया होने पर जरुर खाएं।

    * हल्दी

    यह निमोनिया की आयुर्वेदिक औषधि है। हल्दी को गुनगुने पानी में मिलाएँ, इसे छाती पर लगा दें, अब गरम ईंट पर गरम किया हुआ कपड़ा लगा दें। इससे छाती में उत्तेजना होगी और निमोनिया की सूजन दूर होगी।

    * सन के बीज, तिल और शहद मिलाएँ

    एक टेबलस्पून सेम के बीज, तिल और शहद मिलाएँ, इसमें एक चुटकी नमक डालें और पानी मिलाएँ। इसका दिन में दो बार सेवन करें। इससे सूजन कम होती है।

    गाजर-

    यह केवल आंखों के लिये ही नहीं बल्‍कि फेफड़ों के लिये भी अच्‍छा होता है। निमोनिया होने पर गाजर का जूस जरुर पीना चाहिये क्‍योंकि इसमें बहुत सारा विटामिन ए होता है।



    * ब्लैक टी और मेथी का मिश्रण


    दो टी स्पून मेथी पाउडर में एक कप ब्लैक टी मिलाएँ। यदि आवश्यक हो तो चीनी भी मिलाएँ और दिन में एक बार पियें। इससे निमोनिया दूर होगा।

    *पानी

    इस रोग में बहुत सारा पानी पीना चाहिये। इससे शरीर हाइड्रेट रहेगा।

    * पुदीने की पत्तियाँ

    पुदीने की कुछ पत्तियाँ लें, इन्हें मसलकर रस निकाल लें। इसमें एक टेबल स्पून शहद मिला लें और दो-तीन घंटों के अंतराल से लें।

    * त्रिफला और अश्वगंधा

    खाने में त्रिफला और अश्वगंधा के साथ थोड़ी अदरक और इलायची मिलाने से भी निमोनिया का इलाज होता है।

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    4.7.17

    खुजली के घरेलू आयुर्वेदिक इलाज // Ayurvedic treatment of itching





    जब त्वचा की सतह पर जलन का एहसास होता है और त्वचा को खरोंचने का मन करता है तो उस बोध को खुजली कहते हैं। खुजली के कई कारण होते हैं जैसे कि तनाव और चिंता, शुष्क त्वचा, अधिक समय तक धूप में रहना, औषधि की विपरीत प्रतिक्रिया, मच्छर या किसी और जंतु का दंश, फंफुदीय संक्रमण, अवैध यौन संबंध के कारण, संक्रमित रोग की वजह से, या त्वचा पर फुंसियाँ, सिर या शरीर के अन्य हिस्सों में जुओं की मौजूदगी इत्यादि से।
    चार प्रकार की होती है खुजली (Types of Itching Skin)
    बिना दानों के खुजली
    दाने वाली खुजली
    बिना दाने या दाने वाली खुजली के कारण खुजली के अन्य लक्षण उत्पन्न होते हैं। खुजली पूरी त्वचा, सिर, मुख, पांव, अंगुलियों, नाक, हाथ या प्रजनन अंग आदि अंगों में हो जाती है। खुजली अधिकतर इन्हीं स्थानों पर होती है
    बिना दानों वाली या दानों वाली खुजली खुश्क या तर हो सकती है
    इन कारणों से होती है खुजली 



    शुष्क त्वचा (Dry Skin)- ड्राई स्किन वाले लोगों को खुजली की शिकायत ज्यादा होती है। उन्हें तापमान अनुकूल नहीं मिलने की वजह से भी परेशानी होती है। गर्मी में अधिक ताप होने से हर समय पसीना आता रहता है। बाहर से घर लौटने पर सारा शरीर पसीने से भीगा होता है, लेकिन एसी, पंखे व कूलर की ठंडी हवा से कुछ देर में पसीना सूख जाता है। शरीर पर पसीना सूख जाने से खुजली होती है।

    जाड़े में सर्द हवा के प्रकोप से जब त्वचा शुष्क होकर फटने लगती है जिस वजह से खुजली की समस्या होती है वहीं गर्मी में घमोरियां इसका एक अन्य कारण है।
    त्वचा की बीमारी और प्रकृति- आमतौर पर स्किन की बीमारियां खुजली उत्पन्न करती हैं। मसलन-
    डर्माटिटीस (Dermatitis): त्वचा की सूजन
    एक्जिमा (Eczema): यह स्किन का क्रॉनिक रोग है। इसमें खुजली, चकत्ते और स्किन रैशेज होता है।
    सोरायसिस (Psoriasis): यह इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाने के कारण होता है। इसमें स्किन लाल हो जाती है और जलन का भी अनुभव होता है।
    चिकनपॉक्स
    खसरा
    जूं
    पाइनवर्म

    किडनी फेल्योर(गुर्दे खराब) रोगी घबराएँ नहीं ,करें ये उपचार

    खुजली होने पर सावधानी
    खुजली होने पर प्राथमिक सावधानी के तौर पर सफ़ाई का पूरा ध्यान रखना चाहिये।खुजली का जब भी दौरा पडे, आप साफ़ मुलायम कपडे से उस स्थान को सहला दिजिये।प्रवॄति के अनुसार ठंडे या गरम पानी से उस स्थान को धो लिजिये ( किसी को ठंडे पानी से तो किसी को गरम पानी से आराम होता है, उसके मुताबिक अपने लिये पानी का चयन कर लें)।साबुन जितना कम कर सकते हैं कम कर लेना चाहिये, और सिर्फ़ मॄदु साबुन का ही उपयोग करें।कब्ज हो तो उसका इलाज करें।


    खुजली के लिए आयुर्वेदिक उपचार

    खुजली वाली जगह पर चन्दन का तेल लगाने से काफी राहत मिलती है। दशांग लेप, जो आयुर्वेद की 10 जड़ी बूटियों से तैयार किया गया है, खुजली से काफी हद तक आराम दिलाता है। नीम का तेल, या नीम के पत्तों की लेई से भी खुजली से छुटकारा मिलता है। गंधक खुजली को ठीक करने के लिए बहुत ही बढ़िया उपचार माना जाता है। नीम के पाउडर का सेवन करने से त्वचा के संक्रमण और खुजली से आराम मिलता है। सुबह खाली पेट एलोवेरा जूस का सेवन करने से भी खुजली से छुटकारा मिलता है। नींबू का रस बराबर मात्रा में अलसी के तेल के साथ मिलाकर खुजली वाली जगह पर मलने से हर तरह की खुजली से छुटकारा मिलता है। नारियल के ताज़े रस और टमाटर का मिश्रण खुजली वाली जगह पर लगाने से भी खुजली दूर हो जाती है। शुष्क त्वचा के कारण होनेवाली खुजली को दूध की क्रीम लगाने से कम किया जा सकता है। 25 ग्राम आम के पेड़ की छाल, और 25 ग्राम बबूल के पेड़ की छाल को एक लीटर पानी में उबाल लें, और इस पानी से ग्रसित जगह पर भाप लें। जब यह प्रक्रिया हो जाए तो ग्रसित जगह पर घी थपथपाकर लगायें। खुजली गायब हो जाएगी।
    स्किन को हाइड्रेटेड रखने के लिए मॉइश्चराइजर का इस्तेमाल करें
    बेकिंग सोडा, खुजली की समस्या को कम करता है
    एंटी इचिंग ओटीसी क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं
    ब्लड इंफेक्शन से खुजली होने पर नीम के पत्ते और काली मिर्च के दाने पीसकर पानी के साथ सेवन करें



    नीम के पत्तों को पानी में उबालकर, छानकर स्नान करने से खुजली खत्म होती है

    नारियल के तेल में कपूर मिलाकर मालिश करने से खुजली से राहत मिलती है
    नीम के पेड़ पर पकी निबौली खाने से खुजली कम होती है
    सुबह-शाम टमाटर का रस पीने से खुजली खत्म होती है
    डॉक्टर की सलाह से एंटी एलर्जिक दवाई लें
    यदि आप कोई क्रीम या दवा लगाना न चाहें या लगाने पर भी आराम न हो तो घर पर ही यह चर्म रोगनाशक तेल बनाकर लगाएँ, इससे यह व्याधियाँ दूर हो जाती हैं।
    खुजली मिटाने का तेल बनाने की विधि :
    नीम की छाल, चिरायता, हल्दी, लालचन्दन, हरड़, बहेड़ा, आँवला और अड़ूसे के पत्ते, सब समान मात्रा में। तिल्ली का तेल आवश्यक मात्रा में। सब आठों द्रव्यों को 5-6 घंटे तक पानी में भिगोकर निकाल लें और पीसकर कल्क बना लें।
    पीठी से चार गुनी मात्रा में तिल का तेल और तेल से चार गुनी मात्रा में पानी लेकर मिलाकर एक बड़े बरतन में डाल दें। इसे मंदी आंच पर इतनी देर तक उबालें कि पानी जल जाए सिर्फ तेल बचे। इस तेल को शीशी में भरकर रख लें।
    जहाँ भी खुजली चलती हो, दाद हो वहाँ या पूरे शरीर पर इस तेल की मलिश करें। यह तेल चमत्कारी प्रभाव करता है। लाभ होने तक यह मालिश जारी रखें, मालिश स्नान से पहले या सोते समय करें और चमत्कार देखें।

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    1.7.17

    नेचुरल चीजों से करें अपने बालों को कलर // Avoid hair dye: black hair from natural substances





       आजकल हर कोई कम उम्र में ही बालों के सफ़ेद होने से परेशान है, हालांकि बालों के सफ़ेद होने के पीछे कई तरह के कारण होते हैं जैसे कि हमेशा तनाव में रहना या ज्यादा जंक फ़ूड खाना। कुछ तरीकों को अपनाकर बालों के सफ़ेद होने की समस्या को रोका तो जा सकता है लेकिन अधिकतर लोग इसे कलर करके छिपाना ज्यादा पसंद करते हैं। आजकल बाज़ार में कई तरह के हेयर कलर मौजूद हैं जिससे आप अपने बालों को मनचाहा रंग दे सकते हैं लेकिन इनके साइड इफ़ेक्ट भी बहुत ज्यादा होते हैं



    होम्योपैथिक औषधि बेलाडोना ( Belladonna ) का गुण लक्षण उपयोग



       बाज़ार में मिलने वाले हेयर डाई में कुछ ऐसे खतरनाक केमिकल होते हैं जिनके दुष्प्रभाव से आपको कैंसर तक हो सकता है। अगर आप ऐसा सोचते हैं कि सिर्फ बालों में हेयर डाई लगाने से वे हानिकारक केमिकल आपके शरीर में प्रवेश नहीं करते हैं तो आप गलत हैं, क्योंकि आपकी स्किन ऐसे केमिकल को आसानी से अवशोषित कर लेते हैं जिससे आगे चलकर ये आपके खून में मिल जाते हैं और आपको इनके दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। इनकी बजाय अगर आप बालों को रंगने के लिए नेचुरल चीजों का प्रयोग करते हैं तो ये आपके बालों की चमक को भी बढ़ा देते हैं साथ ही इनसे किसी भी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होता है। आइये जानते हैं ऐसी ही कुछ कुदरती चीजों के बारे में :


    कालमेघ के उपयोग ,फायदे

     हिना : 

    हिना में कुछ ऐसे यौगिक होते हैं जो आपके बालों को गहरे लाल या ब्राउन शेड दे देते हैं। अगर आपके काले बाल अब सफ़ेद हो रहे हैं तो आप हिना को तिल के तेल और कड़ी पत्तों के साथ मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। तिल के तेल को उबाल लें और इसमें कुछ कड़ी पत्तियां मिला दें और इस मिश्रण को एक टाइट कंटेनर में बंद कर दें। जब भी बालों को कलर करना हो तो इस मिश्रण में थोड़ी से हिना मिलाकर फिर से उबाल लें। फिर इसे ठंडा करके अपने बालों पर लगायें और तीन चार घंटे तक सूखने दें फिर शिकाकाई से धो लें।
    कुछ लोग तिल के तेल की बजाय कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल भी करते हैं। एक पैन में कैस्टर ऑयल में हिना को मिलाकर थोड़ी देर तक उबालें फिर इसे एक साइड रख दें जब तक इसका रंग काला न पड़ जाये। इसके बाद इसे अपने बालों पर लगायें और तीन से चार घंटे के लिए छोड़ दें फिर शिकाकाई से धो लें। अगर आप बालों को जामुनी कलर का शेड देना चाहते हैं तो इस जूस में चुकंदर को ग्राइंड करके मिला दें और फिर लगायें। इसके अलावा जो लोग बालों को रेडिश ब्राउन कलर में करना चाहते हैं वे हिना में थोड़ी से नींबू का रस और दही मिला लें।


    कान दर्द,कान पकना,बहरापन के उपचार


    आंवला :

       आंवला आपके बालों की मजबूती और उनके स्वास्थ्य के लिए बहुत ज़रूरी होता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आप आंवला को भी हेयर डाई के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे आप हिना हेयर कलर के साथ इस्तेमाल कर सकते हैं। आंवला पाउडर को मिलाते समय इस बात का ध्यान रखें की इसे सबसे अंत में मिलाएं और तुरंत बालों में लगा लें। यह बालों को चमक प्रदान करता है साथ ही उन्हें टूटने और झड़ने से भी बचाता है।



    अखरोट : 

       अखरोट का कठोर बाहरी आवरण भी आपके बालों को कलर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। अखरोट के कठोर छिलके को पहले पीस लें फिर इसे पानी में काफी देर तक उबालें। अब इसे ठंडा होने के लिए रख दें और ठंडा हो जाने के बाद इसे छान लें और अब इस लिक्विड को अपने बालों में लगायें। लगाने के बाद कम से कम एक घंटे तक इसे सूखने दें फिर किसी माइल्ड शैम्पू से इसे धो लें। धोए समय कभी भी गर्म पानी का इस्तेमाल न करें। इस लिक्विड को लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि यह डाई बहुत ही तीव्र होता है और जो भी चीज इसके संपर्क में आती है, इसे वो डार्क ब्राउन कलर का कर देता है। इसलिए इसे लगाते समय और धोते समय सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करें।

    *किडनी फेल रोग का अचूक इलाज* 

    चाय और कॉफ़ी : 

        चाय और कॉफ़ी से भी आप अपने बालों को कलर कर सकते हैं। टी पाउडर या टी बैग्स को पानी में उबालें फिर इसे छान लें और इस लिक्विड को प्रयोग में लायें। इसी तरह कॉफ़ी हेयर डाई बनाने के लिए भी ब्लैक कॉफ़ी को पानी में उबाल लें और फिर उस पानी को छान लें। कॉफ़ी डाई बनाने के लिए इसे लगाते समय इसमें कुछ कॉफ़ी बीन्स और हेयर कंडीशनर मिला दें। इन सबको अच्छे से मिलाकर फिर इसे लगायें।


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    28.6.17

    हिस्टीरिया का कारण, लक्षण और घरेलू उपचार// Symptoms and home remedies for hysteria





    न्यूरो से पैदा होता है हिस्टीरिया
    यह एक ऐसा रोग है, जिसमें बिना किसी शारीरिक कमी के रोगी को रह-रह कर बार-बार न्यूरो व मस्तिष्क से जुड़े गंभीर लक्षण पैदा होते हैं। चूंकि रोगी शारीरिक रूप से स्वस्थ होता है। इसलिए लक्षणों व तकलीफ से जुड़ी सभी प्रकार की जांचें जैसे कैट स्केन, सीने का एक्स रे, ईसीजी, आंख या गले से जुड़ी जांचों में कोई भी कमी नहीं निकलती है।    हिस्टीरिया रोग अमूमन अविवाहित लड़कियों और स्त्रियों को होता है और इसके होने के पीछे कई मनोवैज्ञानिक कारण भी है | हिस्टीरिया रोग होने पर रोगी को मिर्गी के समान दौरे पढ़ते है और यह काफी तकलीफदेह भी होता है |



    हिस्टीरिया होने के कारण –
     
    किसी भी वजह से मन में पैदा हुआ डर , प्रेम में असफल होना , आरामदायक जीवनशैली ,शारीरिक और मानसिक मेहनत नहीं करना ,active नहीं रहना ,यौन इच्छाएं पूर्ण नहीं होना ,अश्लील (जो कि एक लिमिट में अश्लील कुछ नहीं होता ) साहित्य पढना नाड़ियों की कमजोरी , अधिक इमोशनल होना और सही आयु में विवाह नहीं होना (जिसके कुछ सामाजिक कारण है ) और असुरक्षा की भावना हिस्टीरिया होने के मुख्य कारण है |
    अक्सर तनाव से बाहर निकलने का रोगी के पास जब कोई रास्ता शेष नहीं रह जाता, तब ही उसे रह -रह कर हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग दस में से नौ बार महिलाओं में होता है, विशेषकर उन महिलाओं में जिन्हें तनाव से निपटने के लिए सामाजिक या पारिवारिक सहयोग नहीं मिलता।
    कमजोर व्यक्तित्व: प्राय: स्वभाव से ऐसे रोगी बहुत जिद्दी होते हैं और जब इनके मन के अनुरूप कोई बात नहीं होती तब वे बहुत परेशान होते हैं, जिद्द पकड़ लेते हैं व आवेश में आकर चीजें फेंकते हैं व स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं। वे विपरीत परिस्थिति में बदहवास हो जाते हैं। उनकी सांस उखड़ने लगती है व अचेत हो सकते हैं।

    हिस्टीरिय के लक्षण – 
    इस रोग में रोगी को दौरा पड़ने से पहले ही आभास हो जाता है लेकिन दौरा पड़ जाने के बाद रोगी स्त्री अपना होश खो देती है | बेहोशी का यह दौरा 24 से 48 घंटे तक रह सकता है | इस तरह के दौरे में साँस लेने में काफी दिक्कत होती है और मुठी और दांत भींच जाते है
    दौरे पड़ना: रह-रह कर हाथ, पैरों व शरीर में झटके आना, ऐंठन होना व बेहोश हो जाना।
    अचेत हो जाना: रोगी अचानक या धीरे -धीरे अचेत हो सकता है। इस दौरान उसकी सांसें चलती रहती हैं, शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है लेकिन दांत कसकर भिंच जाते हैं। यह अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कछ घंटों तक बनीं रह सकती है। उसके बाद रोगी स्वयं उठकर बैठ जाता है और ऐसे व्यवहार करता है जैसे उसे कुछ हुआ ही नहीं।
    उल्टी सांसें चलना: रोगी जोर-जोर से गहरी-गहरी सांसें लेता है। रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा प्रतीत होता है कि रोगी को सांस आ ही नहीं रही है और उसका दम घुट जायेगा।
    हाथ पैर न चलना: कभी-कभी रोगी के हाथ व पैर फालिज की तरह ढीले पड़ जाते हैं व रोगी कुछ समय (घंटों) के लिए चल फिर नहीं पाता है।
    अचानक गले से आवाज निकलना बन्द हो जाना: ऐसे में रोगी इशारों से या फुसफुसा के बातें करने लगता है। कभी कभी हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी को अचानक दिखाई देना भी बंद हो जाता है।
    उपरोक्त लक्षण दौरे के रूप में एक साथ या बदल-बदल कर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक रहते हैं फिर स्वत: ठीक हो जाते हैं। इलाज के अभाव में यही दौरे दिन भर में दस-दस बार पड़ पड़ते हैं, तो कभी 2-3 महीनों में एक दो बार ही हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हैं।




    हिस्टीरिया के फायदेमंद उपचार –

     हिस्टीरिया का इलाज और रोकथाम खान पान को संतुलित करने से भी संभव है और रोगी अपनी खानपान की आदतों में बदलाव कर इसे संयमित कर सकती है |
    गाय का दूध ,नारियल का पानी और मठा और छाछ का उपयोग खाने के दौरान अधिक से अधिक करें |
    दूध पीते समय उसमे जितना आपको अच्छा लगे उतनी मात्र में शहद मिलकर उसके साथ किशमिश का सेवन करें | यह काफी लाभप्रद है
    आंवले का मुरब्बा सुबह शाम भोजन के साथ खाना सुनिश्चित करें |
    गेंहू की रोटी ,दलिया और मूंग मसूर की दाल को भोजन में शामिल करें |
    चूंकि हिस्टीरिया के सभी लक्षण किसी न किसी मस्तिष्क या न्यूरो की गंभीर बीमारी जैसे प्रतीत होते हैं। ऐसे में रोगी का किसी कुशल डॉक्टर की सहायता से जांच करना जरूरी होता है। जांचों में जब कोई कमी नहीं निकलती तब मनोचिकित्सक की सहायता से इस रोग का इलाज कराना चाहिए।
    -इस रोग का सीधा संबंध चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव से होता है। ऐसे में दवा के विपरीत इलाज में मनोचिकित्सा का प्रमुख स्थान है।
    -मनोचिकित्सा के दौरान रोगी में व्याप्त तनाव की पहचान व उससे निपटने के लिए सही विधियां बतायी जाती हैं।
    क्या नहीं खाएं हिस्टीरिया में –
    भारी गरिष्ठ (देर से पचने वाला ) भोजन नहीं खाएं |
    फास्टफूड तली हुई चीज़े और मिर्च मसाले वाली चीजों के सेवन से यथासंभव बचे |
    मास मछली और अंडे का पूर्ण रूप से त्याग कर दें |
    चाय भी कम से कम पिए या छोड़ दें |
    शराब गुटखा आदि का सेवन नहीं करें |
    गुड तेल और लाल और हरी मिर्च और अचार और अन्य खट्टी चीजों से परहेज करें |
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