24.6.17

योग के मुख्य आसन:,विधि और फायदे // The main yoga:, method and benefits





योग का अर्थ है जोड़ना। जीवात्मा का परमात्मा से मिल जाना, पूरी तरह से एक हो जाना ही योग है। योगाचार्य महर्षि पतंजली ने सम्पूर्ण योग के रहस्य को अपने योगदर्शन में सूत्रों के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, “चित्त को एक जगह स्थापित करना योग है।
इस पोस्ट में हम कुछ आसान और प्राणायाम के बारे में बात करेंगे जिसे आप घर पर बैठकर आसानी से कर सकते हैं और अपने जीवन को निरोगी बना सकते हैं।
स्वस्तिकासन 

स्थिति- 
स्वच्छ कम्बल या कपडे पर पैर फैलाकर बैठें।
विधि- 
बाएं पैर को घुटने से मोड़कर दाहिने जंघा और पिंडली (calf, घुटने के नीचे का हिस्सा) और के बीच इस प्रकार स्थापित करें की बाएं पैर का तल छिप जाये उसके बाद दाहिने पैर के पंजे और तल को बाएं पैर के नीचे से जांघ और पिंडली के मध्य स्थापित करने से स्वस्तिकासन बन जाता है। ध्यान मुद्रा में बैठें तथा रीढ़ (spine) सीधी कर श्वास खींचकर यथाशक्ति रोकें।इसी प्रक्रिया को पैर बदलकर भी करें।
लाभ - पैरों का दर्द, पसीना आना दूर होता है।पैरों का गर्म या ठंडापन दूर होता है... ध्यान हेतु बढ़िया आसन है।
गोमुखासन 

विधि- 
दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें। बाएं पैर को मोड़कर एड़ी को दाएं नितम्ब (buttocks) के पास रखें।दायें पैर को मोड़कर बाएं पैर के ऊपर इस प्रकार रखें की दोनों घुटने एक दूसरे के ऊपर हो जाएँ।


दायें हाथ को ऊपर उठाकर पीठ की ओर मुडिए तथा बाएं हाथ को पीठ के पीछे नीचे से लाकर दायें हाथ को पकडिये .. गर्दन और कमर सीधी रहे।एक ओ़र से लगभग एक मिनट तक करने के पश्चात दूसरी ओ़र से इसी प्रकार करें।

Tip- जिस ओ़र का पैर ऊपर रखा जाए उसी ओ़र का (दाए/बाएं) हाथ ऊपर रखें.
लाभ- 
अंडकोष वृद्धि एवं आंत्र वृद्धि में विशेष लाभप्रद है।धातुरोग, बहुमूत्र एवं स्त्री रोगों में लाभकारी है।यकृत, गुर्दे एवं वक्ष स्थल को बल देता है। संधिवात, गाठिया को दूर करता है।
गोरक्षासन 

विधि- 
दोनों पैरों की एडी तथा पंजे आपस में मिलाकर सामने रखिये।अब सीवनी नाड़ी (गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय के मध्य) को एडियों पर रखते हुए उस पर बैठ जाइए। दोनों घुटने भूमि पर टिके हुए हों।हाथों को ज्ञान मुद्रा की स्थिति में घुटनों पर रखें।
लाभ- 
मांसपेशियो में रक्त संचार ठीक रूप से होकर वे स्वस्थ होती है.मूलबंध को स्वाभाविक रूप से लगाने और ब्रम्हचर्य कायम रखने में यह आसन सहायक है।इन्द्रियों की चंचलता समाप्त कर मन में शांति प्रदान करता है. इसीलिए इसका नाम गोरक्षासन है।
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन 

विधि:-दोनों पैर सामने फैलाकर बैठें. बाएं पैर को मोड़कर एडी को नितम्ब के पास लगाएं।बाएं पैर को दायें पैर के घुटने के पास बाहर की ओ़र भूमि पर रखें।


बाएं हाथ को दायें घुटने के समीप बाहर की ओ़र सीधा रखते हुए दायें पैर के पंजे को पकडें।दायें हाथ को पीठ के पीछे से घुमाकर पीछे की ओ़र देखें।इसी प्रकार दूसरी ओ़र से इस आसन को करें।

लाभ:-
मधुमेह (diabetes) एवं कमरदर्द में लाभकारी।
योगमुद्रासन

स्थिति- 
भूमि पर पैर सामने फैलाकर बैठ जाइए.
विधि-
बाएं पैर को उठाकर दायीं जांघ पर इस प्रकार लगाइए की बाएं पैर की एडी नाभि केनीचे आये।दायें पैर को उठाकर इस तरह लाइए की बाएं पैर की एडी के साथ नाभि के नीचे मिल जाए।दोनों हाथ पीछे ले जाकर बाएं हाथ की कलाई को दाहिने हाथ से पकडें. फिर श्वास छोड़ते हुए।सामने की ओ़र झुकते हुए नाक को जमीन से लगाने का प्रयास करें. हाथ बदलकर क्रिया करें।पुनः पैर बदलकर पुनरावृत्ति करें।
लाभ- चेहरा सुन्दर, स्वभाव विनम्र व मन एकाग्र होता है।
सर्वांगासन

स्थिति:- 
दरी या कम्बल बिछाकर पीठ के बल लेट जाइए।
विधि:-दोनों पैरों को धीरे –धीरे उठाकर 90 अंश तक लाएं। बाहों और कोहनियों की सहायता से शरीर के निचले भाग को इतना ऊपर ले जाएँ की वह कन्धों पर सीधा खड़ा हो जाए।


पीठ को हाथों का सहारा दें। हाथों के सहारे से पीठ को दबाएँ। कंठ से ठुड्ठी लगाकर यथाशक्ति करें।फिर धीरे-धीरे पूर्व अवस्था में पहले पीठ को जमीन से टिकाएं फिर पैरों को भी धीरे-धीरे सीधा करें।

लाभ:-
थायराइड को सक्रिय एवं स्वस्थ बनाता है।मोटापा, दुर्बलता, कद वृद्धि की कमी एवं थकान आदि विकार दूर होते हैं।
प्राणायाम 
प्राण का अर्थ, ऊर्जा अथवा जीवनी शक्ति है तथा आयाम का तात्पर्य ऊर्जा को नियंत्रित करनाहै। इस नाडीशोधन प्राणायाम के अर्थ में प्राणायाम का तात्पर्य एक ऐसी क्रिया से है जिसके द्वारा प्राण का प्रसार विस्तार किया जाता है तथा उसे नियंत्रण में भी रखा जाता है। यहाँ 3 प्रमुख प्राणायाम के बारे में चर्चा की जा रही है:-
अनुलोम-विलोम प्राणायाम 

विधि:-
ध्यान के आसान में बैठें।बायीं नासिका से श्वास धीरे-धीरे भीतर खींचे।श्वास यथाशक्ति रोकने (कुम्भक) के पश्चात दायें स्वर से श्वास छोड़ दें।


पुनः दायीं नाशिका से श्वास खीचें।यथाशक्ति श्वास रूकने (कुम्भक) के बाद स्वर से श्वास धीरे-धीरे निकाल दें।जिस स्वर से श्वास छोड़ें उसी स्वर से पुनः श्वास लें और यथाशक्ति भीतर रोककर रखें… क्रिया सावधानी पूर्वक करें, जल्दबाजी ने करें।

लाभ:-
शरीर की सम्पूर्ण नस नाडियाँ शुद्ध होती हैं।शरीर तेजस्वी एवं फुर्तीला बनता है।भूख बढती है।रक्त शुद्ध होता है।

सावधानी:
नाक पर उँगलियों को रखते समय उसे इतना न दबाएँ की नाक कि स्थिति टेढ़ी हो जाए।श्वास की गति सहज ही रहे।कुम्भक को अधिक समय तक न करें।
कपालभाति प्राणायाम /

विधि:-
कपालभाति प्राणायाम का शाब्दिक अर्थ है, मष्तिष्क की आभा को बढाने वाली क्रिया।इस प्राणायाम की स्थिति ठीक भस्त्रिका के ही सामान होती है परन्तु इस प्राणायाम में रेचक अर्थात श्वास की शक्ति पूर्वक बाहर छोड़ने में जोड़ दिया जाता है।श्वास लेने में जोर ने देकर छोड़ने में ध्यान केंद्रित किया जाता है।


कपालभाति प्राणायाम में पेट के पिचकाने और फुलाने की क्रिया पर जोर दिया जाता है।इस प्राणायाम को यथाशक्ति अधिक से अधिक करें।

लाभ:-
हृदय, फेफड़े एवं मष्तिष्क के रोग दूर होते हैं।कफ, दमा, श्वास रोगों में लाभदायक है।मोटापा, मधुमेह, कब्ज एवं अम्ल पित्त के रोग दूर होते हैं।मस्तिष्क एवं मुख मंडल का ओज बढ़ता है।
भ्रामरी प्राणायाम 

स्थिति:- किसी ध्यान के आसान में बैठें.
विधि:-
आसन में बैठकर रीढ़ को सीधा कर हाथों को घुटनों पर रखें . तर्जनी को कान के अंदर डालें।दोनों नाक के नथुनों से श्वास को धीरे-धीरे ओम शब्द का उच्चारण करने के पश्चात मधुर आवाज में कंठ से भौंरे के समान गुंजन करें।नाक से श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड़ दे।पूरा श्वास निकाल देने के पश्चात भ्रमर की मधुर आवाज अपने आप बंद होगी।इस प्राणायाम को तीन से पांच बार करें।
लाभ:-
वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है।ह्रदय रोग के लिए फायदेमंद है।मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।पेट के विकारों का शमन करती है।उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है।
    इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|
















23.6.17

कपालभाति योगाभ्यास की विधि और फायदे



  ‘कपाल’ का अर्थ है खोपड़ी (सिर) तथा भाति का अर्थ है चमकना। चूंकि इस क्रिया से सिर चमकदार बनता है अतः इसे कपालभाति कहते हैं। कपालभाति एक ऐसी सांस की प्रक्रिया है जो सिर तथा मस्तिष्क की क्रियाओं को नई जान प्रदान करता है। घेरंडसंहिता में इसे भालभाति कहा गया है, भाल और कपाल का अर्थ है ‘खोपड़ी’ अथवा माथा। भाति का अर्थ है प्रकाश अथवा तेज, इसे ‘ज्ञान की प्राप्ति’ भी कहते हैं।
कपालभाति को प्राणायाम एवं आसान से पहले किया जाता है। यह समूचे मस्तिष्क को तेजी प्रदान करती है तथा निष्क्रिया पड़े उन मस्तिष्क केंद्रों को जागृत करती है जो सूक्ष्म ज्ञान के लिए उत्तरदायी होते हैं। कपालभाति में सांस उसी प्रकार ली जाती है, जैसे धौंकनी चलती है। सांस तो स्वतः ही ले ली जाती है किंतु उसे छोड़ा पूरे बल के साथ
कपालभाति करने की विधि 
किसी ध्यान की मुद्रा में बैठें, आँखें बंद करें एवं संपूर्ण शरीर को ढीला छोड़ दें।
दोनों नोस्ट्रिल से सांस लें, जिससे पेट फूल जाए और पेट की पेशियों को बल के साथ सिकोड़ते हुए सांस छोड़ दें।
अगली बार सांस स्वतः ही खींच ली जाएगी और पेट की पेशियां भी स्वतः ही फैल जाएंगी। सांस खींचने में किसी प्रकार के बल का प्रयोग नहीं होना चाहिए।
सांस धौंकनी के समान चलनी चाहिए।
इस क्रिया को तेजी से कई बार दोहराएं। यह क्रिया करते समय पेट फूलना और सिकुड़ना चाहिए।
शुरुवाती दौर इसे 30 बार करें और धीरे धीरे इसे 100-200 तक करें।
आप इसको 500 बार तक कर सकते हैं।
अगर आपके पास समय है तो रुक रुक कर इसे आप 5 से 10 मिनट तक कर सकते हैं।
कपालभाति के लाभसे तो कापलभाति के बहुत सारे लाभ है -
यह कब्ज की शिकायत को दूर करने के लिए बहुत लाभप्रद योगाभ्यास है
यह क्रिया अस्थमा के रोगियों के लिए एक तरह रामबाण है। इसके नियमित अभ्यास से अस्थमा को बहुत हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। 
कपालभाति लगभग हर बिमारियों को किसी न किसी तरह से रोकता है। 
यह उदर में तंत्रिकाओं को सक्रिय करती है, उदरांगों की मालिश करती है तथा पाचन क्रिया को सुधारती है। 
यह फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि करती है। 
कपालभाति को नियमित रूप से करने पर वजन घटता है और मोटापा में बहुत हद तक फर्क देखा जा सकता है।

इसके अभ्यास से त्वचा में ग्लोइंग और निखार देखा जा सकता है।
यह आपके बालों के लिए बहुत अच्छा है।
कपालभाति से श्वसन मार्ग के अवरोध दूर होते हैं तथा इसकी अशुद्धियां एवं बलगम की अधिकता दूर होती है।
यह शीत, राइनिटिस (नाक की श्लेष्मा झिल्ली का सूजना), साइनसाइटिस तथा श्वास नली के संक्रमण के उपचार में उपयोगी है।
यह साइनस को शुद्ध करती है तथा मस्तिष्क को सक्रिय करती है।



यह पाचन क्रिया को स्वस्थ बनाता है।

माथे के क्षेत्र में यह विशेष प्रकार की जागरुकता उत्पन्न करती है तथा भ्रूमध्य दृष्टि के प्रभावों को बढ़ाती है।
यह कुंडलिनीशक्ति को जागृत करने में सहायक होती है।
बरतें ये सावधानियाँ- 
हृदय रोग, चक्कर की समस्या, उच्च रक्तचाप, मिर्गी, दौरे, हर्निया तथा आमाशाय के अल्सर से पीड़ित व्यक्तियों को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए। 
इसे ध्यान लगाने से पूर्व एवं आसन तथा नेति क्रिया के उपरांत करना चाहिए।
सांस भीतर स्वतः ही अर्थात् बल प्रयोग के बगैर ली जानी चाहिए तथा उसे बल के साथ छोड़ा जाना चाहिए किंतु व्यक्ति को इससे दम घुटने जैसी अनुभूति नहीं होनी चाहिए।
कपालभाति के बाद वैसे योग करनी चाहिए जिससे शरीर शांत जाए।





 


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झड़ते बालों से निजात पाने के योग आसन




    हम सभी जानते है योगा हमारे स्वास्थ के लिए कितना लाभकारी है साथ ही इसके कितने प्रकार के लाभ भी है जैसे वजन कम करने में मददगार, सुंदर त्वचा प्रदान करना, साथ ही कई बीमारीयों से मुक्ती दिलाने में भी कारगर है, योगा वो हर कुछ करने में सक्षम है जो दवाएं नहीं कर पाती है
अगर आप भी अपने बाल झड़ने की समस्या से लगातार परेशान है तो घबराने की जरुरत नही है हम आपके लिए लेकर आए है कुछ ऐसे योगा आसन जिनकी मदद से आप पल भर में इससे छुटकारा पा सकती है, योगा सबसे सरल और आसान तरीका भी साबित होगा आपके लिए|
   हम आपके लिए लेकर आएं है कुछ ऐसे ही योगा करने के तरीके जिससे आप अपने बालों को और मजबूत बना सकती है, लेकिन एक बात अपने दिमाग में हमेशा रखे हो सकता है बीमारी भी आपके झड़ते बालों का कारण हो


योगा आसन आपके बालों के बढ़ने में अहम भूमिका निभाते है साथ ही ये आपका ब्लड सर्कुलेशन भी ठीक करते है इस योग आसन को आप कभी भी कर सकते है, रात को सोने से पहले भी लेकिन योग के साथ आपको अपने बालों का ख्याल भी रखना होगा उनकी जड़ो को सही सलामत रखें ताकि बालों का झड़ना कम हो सके
*वज्रासन
वज्रासन को डायमंड पोज के नाम से भी जाना जाता है। इस आसन को आप खाना खाने के बाद भी कर सकती हैं। ऐसा नहीं है कि खाना खाने के बाद इसे करने से आपको किसी तरह का कोई नुकसान होगा ।


यह आसन उनके लिए काफी फायदेमंद होता है जो कि अपना वजन कम करना चाहते हैं। इतना ही नहीं इस आसन को करने से सूजन से भी छुटकारा मिलता है, साथ ही पाचन संबंधित परेशानियों से बालों का झड़ना भी बढ़ जाता है।


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*अधो मुख शवासन
यह मुद्रा एक कुत्ते की मुद्रा की तरह ही होती है, जिससे आपका ब्लड सर्कुलेशन अच्छा होता है इसके करने से आपको सर्दी, खांसी या फिर साइनस जैसी बीमारी में भी लाभ मिलता है.
*भस्त्रिका प्राणायाम
अगर आपको कभी ऐसा अहसास हो कि बिना कुछ खाए आपका शरीर भारी हो रहा है, तो ऐसे में आप यह मान कर चलिए कि आपके नर्वस सिस्टम में कोई ना कोई परेशानी जरूर है। आप इस लक्षण को नजरअंदाज बिल्कुल ना करें। तनाव ऐसा कारण है जिस कारण आपके बालों का झड़ना काफी बढ़ जाता है। इस योगा आसन को करें और देखें कि आपके बाल किस तरह से सही हो जाते हैं।
* कपालभाति प्राणायाम
हमारे दिमाग को काम करने के लिए अधिक मात्रा में ऑक्सीजन और आयरन की जरूरत होती है। एक शरीर को तभी फिट माना जाता है जब उसके शरीर में किसी तरह के विषाक्त पदार्थ और फैट ना हो। इस आसन को करीब एक सप्ताह के लिए नियमित रूप से करें, ऐसा करने से आपको फर्क खुद देखने को मिलेगा। इस आसन को करने से बालों का झड़ना भी काफी कम होता है।
*अपानासन
यह आसन हमारे पाचन तंत्र को मजबूत बनाता हैं। इसके साथ ही इस आसन को करने से जहरीले पदार्थ बाहर निकल जाते हैं और हमारा शरीर शुद्ध हो जाता है। इस आसन को करने से दिमाग शांत हो जाता है और कब्ज से राहत मिलती है। बालों के गिरने और सफेद बाल होने पर विशेषज्ञ हमेशा से ही इसी आसन को करने का सुझाव देते हैं।

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कंधे मे दर्द के योग आसन

    दिन भर ऑफिस में काम करने वाले लोगों के लिए कंधों में दर्द की समस्या बहुत आम है। अगर आप अपने व्यस्त रुटीन से थोड़ा सा समय निकालकर इन तीन योगासनों को दें, तो कंधों के दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा पाना कोई मुश्किल काम नहीं है।
आइए जानें, कंधों के दर्द को दूर भगाने वे आसनों के बारे में।
1. द्रुत ताड़ासन

इस आसन को आप बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं। दोनों हाथों की उंगलियों को इंटरलॉक करके हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। हथेली छत की ओर होनी चाहिए। अब हाथों की ऊपर की ओर जितना खींच सकें, खींचें।
अब सांस छोड़ते हुए दाईं ओर झुकें और हाथों को स्ट्रेच करें, फिर सांस खींचते हुए सीधे हो जाएं। इसी प्रक्रिया को बाईं ओर से दोहराएं। इस पूरी प्रक्रिया को रोज पांच से 15 बार दोहराएं।
2. पर्वतासन

इससे न सिफई कंधे का दर्द दूर होता है बल्कि रीढ़ की हड्डी भी मजबूत होती है। इसे करने के लिए पहले सुखासन में बैठ जाएं।
दोनों हाथों को जमीन से छुएं।अब सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊप उठाएं। बाजू काम से छूने चाहिए, कोहनी सीधी रखें और नमस्कार की मुद्रा बनाएं। हाथों को ऊपर की ओर स्ट्रेच करें।
अब सांस छोड़ते हुए धीरे-धीरे दोनों हाथों को नीचे की ओर लाएं। इसे रोज पांच से 10 बार करें।
3. ताड़ासन



इस आसन को भी आप बैठकर या खड़े होकर कर सकते हैं। दोनों हाथों की उंगलियों को इंटरलॉक करके सांस खींचते हुए हाथों को ऊपर की ओर उठाएं। हथेली छत की ओर होनी चाहिए। अब हाथों की ऊपर की ओर जितना खींच सकें, खींचें।

कुछ पल बाद सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों को नीचे की ओर ले जाएं। इस आसन को रोज पांच से 10 बार करें।

 

21.6.17

याददाश्त बढ़ाने में कारगर है "त्राटक योग"



  दिमाग हमारे शरीर को वो हिस्सा है जिसके संकेत के बिना शरीर का कोई भी अंग काम नहीं कर सकता। अपने आहार में कुछ विशेष जड़ी-बूटियों को शमिल करके आप अपने दिमाग को तेज कर सकते हैं। उम्र बढ़ने के साथ साथ याददाश्त भी कमजोर होती जाती है, लेकिन याददाश्त कमजोर होने की समस्या केवल बुढ़ापे में ही नहीं आती है।
    आजकल की लाइफ स्टाइल में देर से सोना, तनाव, जंक फूड जैसी कई आदतों के चलते कम उम्र में भी याददाश्त कमजोर होने लगती है। दिमाग तेज करने के लिए मेंटल एक्सरसाइज करना बहुत जरूरी है। योग न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक एक्सरसाइज भी है। इसका शरीर को स्वस्थ्य रखने में काफी महत्व होता है।
    जीवन में सफलता के लिए अहम तत्व है एकाग्रता क्योंकि इससे हम अपने काम में ध्यान केन्द्रित कर पाते हैं। आज से लगभग 5000 ई.पू. महर्षि पतंजलि ने एकाग्रता बढ़ाने की विधि की खोज की थी।
  

त्राटकयोग इस विधि एक प्रचलित नाम 'त्राटक' है। योगी और संत इसका अभ्यास परा-मनोवैज्ञानिक शक्ति के विकास के लिये भी करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक शोधों ने यह सिद्ध कर दिया है कि इससे आत्मविश्वास पैदा होता है। 
   योग्यता बढ़ती है, और मस्तिष्क की शक्तियों का विकास कई प्रकार से होता है। यह विधि स्मरण-शक्ति को तीक्ष्ण बनाती है। प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रयोग की गई यह बहुत ही उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पद्धति है।
अभ्यास का समय- 
योग की इस विधि का अभ्यास करने के सूर्योदय का समय सबसे उत्तम होता है। किन्तु यदि अन्य समय में भी इसका अभ्यास करें तो कोई हानि नहीं है।
स्थान- 

    किसी शान्त स्थान में बैठकर अभ्यास करें। जिससे कोई अन्य व्यक्ति आपको बाधा न पहुँचाए।
प्रथम चरण-
स्क्रीन पर बने पीले बिंदु को आरामपूर्वक देखें।
द्वितीय चरण-
जब भी आप बिन्दु को देखें, हमेशा सोचिये मेरे विचार पीत बिन्दु के पीछे जा रहे हैं इस अभ्यास के मध्य आँखों में पानी आ सकता है, चिन्ता न करें। आँखों को बन्द करें, अभ्यास स्थगित कर दें।
यदि पुन अभ्यास करना चाहें, तो आँखों को धीरे-से खोलें। आप इसे कुछ मिनट के लिये और दोहरा सकते हैं। अन्त में, आँखों पर ठंडे पानी के छींटे मारकर इन्हें धो लें।



एक बात का ध्यान रखें, आपका पेट खाली भी न हो और अधिक भरा भी न हो। यदि आप चश्मे का उपयोग करते हैं तो अभ्यास के समय चश्मा न लगाएँ।
यदि आप पीत बिन्दु को नहीं देख पाते हैं तो अपनी आँखें बन्द करें एवं भौंहों के मध्य में चित्त एकाग्र करें। इसे अन्त: त्राटक कहते हैं।
कम-से-कम तीन सप्ताह तक इसका अभ्यास करें। परन्तु, यदि आप इससे अधिक लाभ पाना चाहते हैं तो निरन्तर अपनी सुविधानुसार करते रहें।
अन्य योग स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए -
पद्मासन योग

यदि आपको स्मरण शक्ति बढ़ाना है तो नियमित रूप से पद्मासन कीजिए। यह ध्यान का आसन प्राचीन काल से ही भारत में प्रचलित है। यह एक ऐसा आसन है जिससे आप न केवल खुद के मन को शांत रख पाएंगे बल्कि इसके जरिए आप अपने आत्मविश्वास में भी बढ़ोत्तरी कर पाएंगे। इतिहास में बड़े-बड़े विद्वान इस आसन को करके अपने मन को शांत रखते थे।
पश्चिमोत्तानासन योग




स्मरण शक्ति बढ़ाने की इच्छा रखने वाले लोग पश्चिमोत्तानासन का सहारा ले सकते हैं। इस आसन के करने से न केवल याददाश्त बढ़ेगा बल्कि ये तनाव से राहत भी पहुंचाता है। हैमस्ट्रिंग, रीढ़ की हड्डी और पीठ के निचले हिस्से में सुधार, पाचन में सुधार, थकान को कम करना, गुर्दे को स्वस्थ रखना आदि में भी यह आसन काम करता है।
सर्वांगासन योग

ऐसा माना जाता है कि सर्वांगासन शरीर के लिए एक पूरा व्यायाम है। अगर आप इस आसन को नियमित रूप से करते हैं तो कई तरह की बीमारियों से छुटकारा पा सकते हैं। इस आसन के करने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह तेजी से होता है। इसलिए जो मानसिक रूप से कमजोर हैं उनकी एकाग्रता और बुद्धिमत्ता में यह आसन वृद्धि करता है।
वज्रासन योग

योग में वज्रासन की बहुत बड़ी भूमिका है। यह एक ऐसा आसन है जिसे करने में कोई मेहनत नहीं लगती है। आप इसे कभी भी और किसी भी समय असानी से कर सकते हैं। खाना खाने के बाद यदि इस आसन को करते हैं तो आपके पाचन तंत्र के लिए बहुत ही फायदेमंद रहेगा। आइए इस आसन के बारे में और जानने की कोशिश करते हैं। इसके अलावा ध्यान और सांस लेने के व्यायाम आम तौर पर वज्रासन की अवस्था में किया जाता है। इस अवस्था में आप सांस भी गहरी ले सकते हैं और अच्छी तरह से ध्यान भी लगा सकते हैं।
उत्तानासन योग

इस आसन के जरिए सिर, कमर पैर एवं मेरूदंड का व्यायाम होता है। लेकिन इस आसन के करने से याददाश्त भी बढ़ती है। हालांकि जिन लोगों को पीठ या गर्दन की समस्या है उन्हें यह आसन नहीं करना चाहिए।
सुखासन  योग

सुखासन तनाव को दूर करने का अच्छा उपाय है। योग के इस अवस्था को मेडिटेशन का भी नाम दिया जाता है। यह एक ऐसा योग है जिसके जरिए आप मानसिक और शारीरिक थकावट को दूर कर सकते हैं। इसके साथ ही यह आसन हमें शांति और आत्मानंद का अनुभव देता है और एकाग्र होने में सहायता करता है।
        इस लेख के माध्यम से दी गयी जानकारी आपको अच्छी और लाभकारी लगी हो तो कृपया लाईक और शेयर जरूर कीजियेगा । आपके एक शेयर से किसी जरूरतमंद तक सही जानकारी पहुँच सकती है और हमको भी आपके लिये और बेहतर लेख लिखने की प्रेरणा मिलती है|





15.6.17

बरसात मे होने वाले चर्म रोगों से बचाव और उपचार





बरसात का मौसम जहां एक तरफ लोगों को गर्मी से राहत देता है तो वहीं दूसरी तरफ कई प्रकार की बिमारियों का कारण भी बन जाता है। इस मौसम में दूषित परिवेश के कारण त्वचा से संबंधी बिमारियां बहुत तेजी से फैलती हैं। बारिश में बच्चे भीगना, खेलना बहुत ज्यादा पसंद करते हैं इसलिए इनमें त्वचा संबंधी रोगों का खतरा अधिक होता है। इसमें अधिकतर फोड़े-फुंसी, घमौरियां, खुजली, स्किन फंगस, कील-मुंहासे जैसी त्वचा संबंधी बिमारियां शामिल हैं।
बारिश में त्वचा संबंधी रोग के मुख्य कारण 
बारिश के मौसम में बहने वाली हवाओं में बैक्टीरिया और रोगजनित कीटाणु होते हैं। इनके संपर्क में आने से त्वचा संबंधी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। बारिश में भीगने, गंदा पानी, पसीना न सूखने और काफी देर तक गीला रहने पर, नमी के कारण फफूंद का संक्रमण हो जाता है। जिससे खुजली, चकते और फोड़े हो जाते हैं।
बारिश में त्वचा संबंधी रोगों से कैसे बचें? (Precautions for Skin Problems in Rainy Season)
बारिश के दिनों में त्वचा संबंधी रोग एक दूसरे से फैलने वाले होते हैं। यदि ये रोग परिवार के किसी एक सदस्य को हो जाएं तो उनसे अन्य सदस्यों को फैलने का खतरा बढ़ जाता है। त्वचा संबंधी रोगों से बचने के लिए जरूरी है कि हम बरसात के मौसम में कुछ बातों का ध्यान रखें।
बारिश में ज्यादा भीगने से बचना चाहिए।
बहुत देर तक गीले कपड़े या जूते पहने हुए नहीं रहना चाहिए।
इससे बचने के लिये भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचना चाहिये।
जहां गंदा पानी जमा हो वहां जाने से बचना चाहिए।
नहाने के पानी में डेटॉल, नींबू या उबले हुए नीम के पत्तों का रस मिलाकर नहाएं।



शरीर के बगलों (Under Arms) में ‘एंटी फंगल आइंटमेंट’ का प्रयोग करना चाहिए जहां फंगस का खतरा ज्यादा होता है।

ज्वेलरी और रंग छोड़ने वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए।
पैरों को फंगस से बचाने के लिए जूतों की बजाय चप्पल या सैंडल का इस्तेमाल करना चाहिए।
खान-पान का विशेष ध्यान रखें और ज्यादा तला हुआ न खाएं।
त्वचा से जुड़ी समस्याओं के लक्षण (Symptoms of Skin Problems in Rainy Season)
शरीर पर खुजली होना।
छोटे-छोटे व लाल रंग के दाने होना।
हाथ और पैरों की उंगलियों के बीच खुजली होना और त्वचा का लाल पड़ना।
घाव होना और उनसे मवाद आना।
त्वचा का लाल हो जाना
कपड़े पहनने पर चुभन महसूस होना।
अधिकतर समय धूप में बिताने वाले लोगों को चर्म रोग होने का खतरा ज्यादा होता है।
किसी एंटीबायोटिक दवा के खाने से साइड एफेट्स होने पर भी त्वचा रोग हो सकता है।
महिलाओं में मासिक चक्र अनियमितता की समस्या हो जाने पर भी उन्हे चर्म रोग होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
शरीर में ज़्यादा गैस जमा होने से खुश्की का रोग हो सकता है।
अधिक कसे हुए कपड़े पहेनने पर और नाइलोन के वस्त्र पहनने पर भी चमड़ी के विकार ग्रस्त होने का खतरा होता है।
नहाने के साबुन में अधिक मात्रा में सोडा होने से भी यह रोग हो सकता है।
खुजली का रोग ज़्यादातर शरीर में खून की खराबी के कारण उत्पन्न होता है।
गरम और तीखीं चिज़े खाने पर फुंसी और फोड़े निकल आ सकते हैं।
आहार ग्रहण करने के तुरंत बाद व्यायाम करने से भी चर्म रोग होने की संभावना रहती है।
उल्टी, छींक, डकार, वाहर (Fart), पिशाब, और टट्टी इन सब आवेगों को रोकने से चर्म रोग होने का खतरा रहता है।
शरीर पर लंबे समय तक धूल मिट्टी और पसीना जमें रहने से भी चर्म रोग हो सकता है।
और भोजन के बाद विपरीत प्रकृति का भोजन खाने से कोढ़ का रोग होता है। (उदाहरण – आम का रस और छाछ साथ पीना)



लक्षण होने पर घरेलू आयुर्वेदिक इलाज

बारिश के दिनों में त्वचा से जुड़े रोगों, जैसे खुजली, फोड़े -फुंसी, फंगस न सिर्फ व्यक्ति को तकलीफ देते हैं, बल्कि शरीर के कई अंगों पर गंदे और भद्दे दाग छोड़ जाते हैं। जिसके कारण हमारी त्वचा बहुत ही बदसूरत दिखने लगती है। यदि आपके शरीर के किसी भी हिस्से में खुजली है या लाल रैशेस हैं तो आपको तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
बारिश के दिनों में संक्रमण जनित रोग स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकते हैं। इनसे बचने के लिए जरूरी है कि संक्रमण से एहतियात बरता जाए और कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत जांच एवं इलाज करवाया जाए। साथ ही, गैर-संक्रमणजनित रोगों, जैसे हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर जैसी जानलेवा बिमारियों की समय रहते पहचान बहुत जरूरी है।
*त्वचा रोग होने पर बीड़ी, सिगरेट, शराब, बीयर, खैनी, चाय, कॉफी, भांग, गांजा या अन्य किसी भी दूसरे नशीले पदार्थों का सेवन ना करें।
*बाजरे और ज्वार की रोटी बिलकुल ना खाएं। शरीर की शुद्धता का खास खयाल रक्खे।
*त्वचा रोग हो जाने पर, समय पर सोना, समय पर उठना, रोज़ नहाना, और धूप की सीधी किरणों के संपर्क से दूर रहेना अत्यंत आवश्यक है।
*भोजन में अचार, नींबू, नमक, मिर्च, टमाटर तैली वस्तुएं, आदि चीज़ों का सेवन बिलकुल बंद कर देना चाहिए। (चर्म रोग में कोई भी खट्टी चीज़ खाने से रोग तेज़ी से पूरे शरीर में फ़ेल जाता है।)।
अगर खाना पचने में परेशानी रहती हों, या पेट में गैस जमा होती हों तो उसका उपचार तुरंत करना चाहिए। और जब यह परेशानी ठीक हो जाए तब कुछ दिनों तक हल्का भोजन खाना चाहिए।
*खराब पाचनतत्र वाले व्यक्ति को चर्म रोग होने के अधिक chances होते हैं।
*त्वचा की किसी भी प्रकार की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को हररोज़ रात को सोने से पूर्व एक गिलास हल्के *गुनगुने गरम दूध में, एक चम्मच हल्दी मिला कर दूध पीना चाहिए।
*नहाते समय नीम के पत्तों को पानी के साथ गरम कर के, फिर उस पानी को नहाने के पानी के साथ मिला कर नहाने से चर्म रोग से मुक्ति मिलती है।
*नीम की कोपलों (नए हरे पत्ते) को सुबह खाली पेट खाने से भी त्वचा रोग दूर हो जाते हैं।
*त्वचा के घाव ठीक करने के लिए नीम के पत्तों का रस निकाल कर घाव पर लगा कर उस पर पट्टी बांध लेने से घाव मिट जाते हैं। (पट्टी समय समय पर बदलते रहना चाहिए)।
*मूली के पत्तों का रस त्वचा पर लगाने से किसी भी प्रकार के त्वचा रोग में राहत हो जाती है।
*प्रति दिन तिल और मूली खाने से त्वचा के भीतर जमा हुआ पानी सूख जाता है, और सूजन खत्म खत्म हो जाती है।
*मूली का गंधकीय तत्व त्वचा रोगों से मुक्ति दिलाता है।
*मूली में क्लोरीन और सोडियम तत्व होते है, यह दोनों तत्व पेट में मल जमने नहीं देते हैं और इस कारण गैस या अपचा नहीं होता है।
*मूली में मेग्नेशियम की मात्रा भी मौजूद होती है, यह तत्व पाचन क्रिया नियमन में सहायक होता है। जब पेट साफ होगा तो चमड़ी के रोग होने की नौबत ही नहीं होगी।

परामर्श-


दामोदर चर्म रोग हर्बल औषधि
त्वचा के विभिन्न रोगों में रामबाण औषधि की तरह उपयोगी है. रक्त की गन्दगी दूर कर चमड़ी की बीमारियों -दाद खाज,खुजली,एक्जीमा ,सोरायसिस,फोड़े फुंसी को जड़ मूल से खत्म करने के लिए जानी मानी दवा के रूप में व्यवहार होती है.


12.6.17

लेसिक आई सर्जरी के फायदे और नुकसान




  आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं।
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आंखों के विकार
लेसिक आई सर्जरी के फायदे और नुकसान
लेसिक आई सर्जरी से दूर होती हैं आंखों की समस्‍यायें।
अन्य सर्जरी की तुलना में लेसिक सर्जरी कम खतरनाक।
यह आसान है और मात्र 30 मिनट में ही हो जाती है।
इसे एक बार कराने के बाद दोबारा नहीं करा सकते हैं।
अन्य सर्जरी की तुलना में लेसिक सर्जरी कम खतरनाक।
यह आसान है और मात्र 30 मिनट में ही हो जाती है।
इसे एक बार कराने के बाद दोबारा नहीं करा सकते हैं।
आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं। लेसिक सर्जरी कराने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।



क्‍या है लेसिक सर्जरी

जो लोग चश्मा पहनते हैं और जिनका पावर -1 से -10 के बीच है, उन्हें तुरंत आंखों की लेसिक सर्जरी करवानी चाहिए। जांच में देख लें कि आपके कॉर्निया की थिकनेस कैसी है। जितनी अधिक थिकनेस होगी इस सर्जरी का फायदा उतना अधिक होगा। साथ ही लेसिक सर्जरी की सबसे अच्छी बात है कि ये अन्य दूसरी सर्जरी की तुलना में ज्यादा आसान और बेहतर है। यह सस्ती होती है और इसमें कॉर्निया को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर होता है। जबकि दूसरी सर्जरी में कॉर्निया पर खतरा ज्यादा रहता है। 

लेसिक सर्जरी के फायदे
लेसिक सर्जरी 30 मिनट या उससे कम समय में हो जाती है। साथ ही यह सर्जरी आंखों के लिए काफी प्रभावी और कारगार मानी गई है, जिस कारण अधिकतर लोग आंखों के लिए लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं।
92-98% लोग आंखों की समस्या से निजात पाने के लिए लेसिक सर्जरी का ही सहारा लेते हैं, क्योंकि ये आंखों की दृष्टि के लिए काफी फायदेमंद होती है और किसी भी अन्य सर्जरी की तुलना में आसान और किफायती होती है।
लेसिक सर्जरी दृष्टि से जुड़ी सभी समस्याओं और खतरों को काफी हद तक दूर कर देती है।
लेसिक सर्जरी के नुकसान
लेसिक सर्जरी आंखों के सबसे संवेदनशील हिस्से में की जाती है और इसे दोबारा नहीं किया जा सकता है।
लेसिक सर्जरी के कुछ दिनों के बाद ही लोगों को पढ़ने के लिए तो चश्मे की जरूरत पड़ती ही है।
सबसे बड़ा खतरा लेसिक सर्जरी का ये है कि, ये आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी का हिस्सा नहीं होता। मतलब की इस सर्जरी के दौरान अगर आपकी आंखों को कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी न डॉक्टर की और न इंश्योरेंस विभाग की होगी।


आंखें अनमोल हैं, इसलिए इससे जुड़ी किसी भी तरह की सर्जरी कराने से पहले चिकित्‍सक की सलाह जरूर लें।
आंखें कुदरत की ओर से दी गई सबसे कीमती उपहार हैं। ये जितनी कीमती हैं, उतनी ही संवेदनशील भी हैं। इसलिए तो लोग आंखों का विशेष ख्याल रखते हैं और थोड़ा भी सरदर्द होने पर तुरंत डॉक्टर से जांच करवाते हैं। पहले लोग आंखों की समस्या से निज़ात पाने के लिए चश्मा पहनते थे। लेकिन चश्मा एक बार चढ़ गया तो जिंदगी भर लगाना पड़ता है। लेकिन विकसित होती तकनीक ने आंखों के उपचार को आसान कर दिया है। आजकल डॉक्टर चश्मा लगाने वाले को लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं और लोग लेसिक सर्जरी का फायदा भी उठा रहे हैं। लेसिक सर्जरी कराने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।
क्‍या है लेसिक सर्जरी
जो लोग चश्मा पहनते हैं और जिनका पावर -1 से -10 के बीच है, उन्हें तुरंत आंखों की लेसिक सर्जरी करवानी चाहिए। जांच में देख लें कि आपके कॉर्निया की थिकनेस कैसी है। जितनी अधिक थिकनेस होगी इस सर्जरी का फायदा उतना अधिक होगा। साथ ही लेसिक सर्जरी की सबसे अच्छी बात है कि ये अन्य दूसरी सर्जरी की तुलना में ज्यादा आसान और बेहतर है। यह सस्ती होती है और इसमें कॉर्निया को नुकसान पहुंचने का खतरा न के बराबर होता है। जबकि दूसरी सर्जरी में कॉर्निया पर खतरा ज्यादा रहता है।
लेसिक सर्जरी के फायदे
लेसिक सर्जरी 30 मिनट या उससे कम समय में हो जाती है। साथ ही यह सर्जरी आंखों के लिए काफी प्रभावी और कारगार मानी गई है, जिस कारण अधिकतर लोग आंखों के लिए लेसिक सर्जरी करने की हिदायत देते हैं।
92-98% लोग आंखों की समस्या से निजात पाने के लिए लेसिक सर्जरी का ही सहारा लेते हैं, क्योंकि ये आंखों की दृष्टि के लिए काफी फायदेमंद होती है और किसी भी अन्य सर्जरी की तुलना में आसान और किफायती होती है।
लेसिक सर्जरी दृष्टि से जुड़ी सभी समस्याओं और खतरों को काफी हद तक दूर कर देती है।
रूर लें। आइए इस लेख में लेसिक सर्जरी के फायदे और नुकसान के बारे में जानते हैं।
लेसिक सर्जरी के नुकसान
लेसिक सर्जरी आंखों के सबसे संवेदनशील हिस्से में की जाती है और इसे दोबारा नहीं किया जा सकता है।
लेसिक सर्जरी के कुछ दिनों के बाद ही लोगों को पढ़ने के लिए तो चश्मे की जरूरत पड़ती ही है।
सबसे बड़ा खतरा लेसिक सर्जरी का ये है कि, ये आपकी इंश्योरेंस पॉलिसी का हिस्सा नहीं होता। मतलब की इस सर्जरी के दौरान अगर आपकी आंखों को कुछ होता है तो इसकी जिम्मेदारी न डॉक्टर की और न इंश्योरेंस विभाग की होगी।

आंखों से चश्मा हटवाने या कांटैक्ट लेन्स से छुटकारा पाने के लिए आंखों की लेजर सर्जरी आज एक प्रभावी विकल्प है लेकिन इसे करवाने की इच्छा रखने वाले लोगों के लिए इससे जुड़े हर पहलू की जानकारी जरूरी है।
जानिए, लेजर आइ सर्जरी से जुड़े कुछ अहम पहलू।
लेजर सर्जरी की सही उम्र
आंखों की लेजर सर्जरी हर उम्र में नहीं हो सकती है। इसके लिए कम से कम 18 से लेकर 21 तक की उम्र का इंतेजार करना होगा।
चूंकि इससे पहले हमारी दृष्टि में बदलाव होता रहता है और हमारी दृष्टि 18 साल या कुछ मामलों में 21 साल के बाद ही स्थिर होती है, इसलिए इससे पहले लेजर सर्जरी नहीं हो सकती है।







कहां है फायदेमंद

लेजर सर्जरी के दौरान आंखों के कॉर्निया पर एक फ्लैप चढ़ाकर उसके आकार में हल्का परिवर्तन किया जाता है जिससे फोकस सही रहे।
यह उन लोगों के लिए फायदेमंद हो सकती है जिनके साथ ये स्थितियां बहुत अधिक बिगड़ी न हों -
- पास की नजर कमजोर हो (मायोपिया)।
- दूर की नजर कमजोर हो (हाइपरोपिया)।
- धुंधला दिखाई देता हो (अस्ट‌िगमाटिज्म)।
ये रिस्क भी हैं
- लेजर सर्जरी आंखों के बहुत संवेदनशील हिस्से पर की जाती है इसलिए इसके बाद इसमें कोई सुधार नहीं हो सकता।
- जरूरी नहीं कि यह सर्जरी आपको पूरी तरह चश्मे से छुटकारा दिला दे। बहुत अधिक पावर वाले लोगों को फिर भी चश्मा लगाना पड़ सकता है।
- गर्भवती महिलाओं के लिए यह सर्जरी नहीं है।
- इसके पहले आप अपनी मेडिकल हिस्ट्री सही तरह डॉक्टर को बताएं क्योंकि ऐसी कई दवाएं हैं जिनका सेवन इस सर्जरी के पहले नहीं कर सकते हैं।
- लेजर सर्जरी करवाने से पहले कम से कम दो बार डॉक्टरी सलाह ले लें।
सर्जरी के पहले



- आंखों का परीक्षण।

- कुछ समय के लिए कांटैक्ट लेंस नहीं पहनें।
- आंखों पर कोई मेकअप न करें।
- परफ्यूम और लोशन जैसी चीजों का इस्तेमाल कुछ समय के ल‌िए न करें।
सर्जरी के दौरान
- यह सर्जरी एनेस्थीसिया के बाद ही होती है इसलिए इसमें बहुत दर्द नहीं होता है।
- एक आंख में 10 से 15 मिनट तक का वक्त लगता है।
- चूं‌कि इलाज पूरी तरह से लेजर किरणों से होता है इसलिए किसी तरह का चीरा नहीं लगता है।
सर्जरी के बाद
- सर्जरी के बाद कई बार दो से तीन दिनों तक अस्पताल में पूरा आराम करना होता है।
- इसके बाद कम से कम एक महीने तक आंखों का खास ध्यान रखना पड़ता है।
- आंखों में जलन हो तो हर्गिज न मलें।
- समय पर टेस्ट कराते रहें।
- नहाते वक्त आंखों में पानी न आने दें।
- धूप में निकलने से बचें।

किडनी फेल (गुर्दे खराब) की अमृत औषधि 

प्रोस्टेट ग्रंथि बढ्ने से मूत्र बाधा की हर्बल औषधि

सिर्फ आपरेशन नहीं ,पथरी की 100% सफल हर्बल औषधि

आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार

        








23.5.17

नासूर,पुराने घाव के घरेलु आयुर्वेदिक उपचार / Ayurvedic treatment of canker, old wound




  जो व्यक्ति अपने पके हुए फोड़े को कच्चा समझकर उसके मवाद को निकलने का मुंह नही खोलता है अथवा बहुत मवाद वाले पके हुए व्रण को कच्चा सामझ कर,उसे शोधन पदार्थो से शुद्ध नही करता तथा अहितकारी आहार विहार सेवन करता है उसकी यह बढ़ी हुई मवाद -चमडा,मांस,शिरा स्नायु,सन्धि,हड्डी,कोठे और मर्म स्थानों के छेद में होकर चमड़े और मांस में घुस जाती है।चूँकि यह भीतर ही भीतर बहुत दूर तक घुस जाती है,अतः यह मवाद सदैव बहा करती है।इसलिए इसे ‘नाडी व्रण’ या “नासूर” कहते हैं ।
इस व्रण का मवाद निकले के लिए एक राह रास्ता बना लेता है और उसी राह से होकर बहा करता है ।
आइये अब आपको बताते है नासूर की घरेलु नुस्खो द्वारा चिकित्सा कैसे करे’
* अमलताश,हल्दी,निशोथ को गो मूत्र के साथ पीसकर शहद में मिलाकर बत्ती बनाकर इसको नासूर में रखने से वह शुद्ध होकर ठीक हो जाता है।
* पुराना कम्बल जलाकर राख बना लें और तुतिया पीसकर छानलें,फिर दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर नासूर पर छिड़के ।इस प्रयोग से नासूर जल्द ही ठीक हो जाता है ।
* गुलर के दूध में फाहा (रुई) भिगोकर तर करके नासूर पर लगातार कुच्छ दिनों तक रखने से नासूर ठीक हो जाता है ।इस प्रयोग से भगंदर में भी लाभ होता है ।

* समंदर शोख की राख नासूर में भरने से नासूर में अतिशीघ्र लाभ होता है ।
* मकड़ी का जाला साफ करके और शराब में भिगोकर नासूर पर लगाने से भी लाभ होता है |
*छोटी कटेरी के फल को कूट पीसकर रस निकाल लीजिए अब इसमें फाहा भरकर भिगोकर नासूर में लगाने से बहुत ज्यादा फायदा होता है ।
*थूहर का दूध,आक का दूध,और दारू हल्दी – इन तीनो की बत्ती बना कर घाव  में रखने   समस्त प्रकार नासूर ठीक हो जाते हैं ।
*शहद और सेंधे नमक कि बत्ती बनाकर वर्ण में रखने से नासूर ठीक हो जाता है।
जानकारी- शहद और सेंधा नमक बराबर मात्रा मे मिलाकर सूत पर लपेटने से बत्ती बनती है 




घाव भरने के लिए एन्टीबायोटिक्स अंग्रेजी दवाइयां लेने की कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि अधिकांश अंग्रेजी दवाइयों के हानिकारक साइड इफेक्ट्स होते हैं। किसी भी प्रकार का घाव हुआ हो, टांके लगवाये हों या शल्यक्रिया (ऑपरेशन) का घाव हो, अंदरूनी घाव हो या बाहरी हो,घाव पका हो या न पका हो लेकिन आपको प्रतिजैविक लेकर जठरा, आंतों, यकृत एवं गुर्दों को साइड इफेक्ट द्वारा बिगाडऩे की कोई जरूरत नहीं है बल्कि नीचे दिये जा रहे आसान घरेलू उपायों को अपनाकर किभी भी तरह के गहरे से गहरे घाव को जड़ से मिटाया जा सकता है-
*घाव को साफ करने के लिए ताजे गोमूत्र का उपयोग करें। बाद में घाव पर हल्दी का लेप करें।
* एक से दो दिन तक उपवास रखें। ध्यान रखें कि उपवास के दौरान केवल उबालकर ठंडा किया हुआ या गुनगुना गर्म पानी ही पीना है, अन्य कोई भी वस्तु खानी-पीनी नहीं है। दूध भी नहीं लेना है।
* उपवास के बाद जितने दिन उपवास किया हो उतने दिन केवल मूंग को उबाल कर जो पानी बचता है वही पानी पीना है। मूंग का पानी धीरे-धीरे गाढ़ा करके लिया जा सकता है।
* मूंग के पानी के बाद धीरे-धीरे मूंग, खिचड़ी, दाल-चावल, रोटी-सब्जी इस प्रकार सामान्य खुराक पर आना चाहिये।
*कब्ज की शिकायत हो तो रोज 1 चम्मच हरड़ का चूर्ण सुबह अथवा रात को पानी के साथ लें।
*जिनके शरीर की प्रकृति ऐसी हो कि घाव होने पर तुरंत पक जाता हो, उन्हें त्रिफल गूगल नामक 3-3 गोलीदिन में 3 बार पानी के साथ लेनी चाहिए।
*सुबह 50 ग्राम गोमूत्र तथा दिन में 2 बार 3-3 ग्राम हल्दी के चूर्ण का सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।
*पुराने घाव में चन्द्रप्रभा वटी की 2-2 गोलियां दिन में 2 बार लें।
*जात्यादि तेल अथवा मलहम घाव पर लगाएं इससे घाव शीघ्र ही भरने लगेगा।


  
   पुरुष ग्रंथि (प्रोस्टेट) बढ़ने से मूत्र - बाधा का अचूक इलाज 
 









22.5.17

थायरायड (Thyroid Disorder) की बीमारी के घरेलू आयुर्वेदीक उपचार -डॉ॰आलोक




हायपोथायरॉइडिज़म (Hypothyroidism) की बीमारी ज़्यादातर स्त्रीयों में पाई जाती है जिससे कि उनका आंतरिक चयपचय (metabolism) औसत से काफ़ी कम हो जाता है. आयुर्वेदीय चिकित्सा द्वारा इस रोग का निवारण भली-भाँति प्रकार किया जा सकता है. चयपचय की क्रिया को नियंत्रित करना थायराइड ग्रंथि का कार्य होता है और इसके द्वारा ही हम शरीर में लिया गया भोजन, जल और प्राण वायु कोशिकायों में सही रूप से चयपचय होकर उर्जा का स्रोत बनता है. छोटी अवशेषों में बाँटने के उपरांत उनका पुनर्संगठित होकर नवनिर्माण करना भी इस ग्रंथि के द्वारा स्रावित हॉर्मोन से संतुलित किया जाता है. जिस प्रक्रिया द्वारा शरीर में सुगठित तत्वों का निर्माण होता है उसे एनाबोलीज़म या चय कहा जाता है जबकि विघटन करने वाली प्रक्रिया को कॅटबॉलिज़म या पचय कहा जाता है. इन दोनो प्रक्रियायों के मिलन से उत्पन्न कार्य को मेटाबोलीज़म (metabolism) या चयपचय कहा जाता है.

किडनी फेल्योर(गुर्दे खराब) रोगी घबराएँ नहीं ,करें ये उपचार

जब व्यक्ति पूर्णतयः विश्राम की स्थिति में होता है तब आधारिक चयपचायी मान (Basal Metabolic Rate)- BMR की दर को लेना संभव है. यह व्यक्ति की स्वास्थ का माप है और यह प्राणवायु में प्रयोग हुई ऑक्सिजन एवं निकली हुई कार्बन–डाई ऑक्साइड के दर को निर्धारित करता है. अन्तःस्राविय ग्रंथियों के अच्छी तरह से चलने पर रक्त या लिंफ में रसायनिक परिवर्तन होते हैं जिसमें मुख्य अंतः स्राविय ग्रंथियों का विशेष कार्य समन्वित है. थायरॉइड नामक ग्रंथि का कार्य इनमें सबसे महत्वपूर्ण है. यह गले के अग्र भाग में मौजूद होता है और इससे थायरॉक्सीन(thyroxine) नामक महत्वपूर्ण हॉर्मोन का स्राव होता है. जब यह ग्रंथि ठीक से कार्य न करती हो, जैसे कि मयक्सेडीमा(myxedema) में या फिर क्रीटीनिज़म(cretinism) नामक अवस्था में. जब इस ग्रंथि से थिरॉक्साइन हॉर्मोन अधिकता में बनने लगे उसे एक्शोफ्ताल्मीक गायटर (Exophthalmic goitre) या ग्रेव के रोग के नाम से जान जाता है.



विभिन्न प्रकार के थायरॉइड रोग
Various Types Of Diseases Of Thyroid In Hindi
हाइपरथायरॉइदिस्म(Hyperthyroidism): इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में थिरॉक्साइन की स्राव आवश्यकता से बहुत अधिक होता है. यह 30 से 40 वर्ष की उमर के व्यक्तियों में अधिक पाया जाता है. पीड़ित व्यक्ति के शरीर में कंपन, चिड़चिड़ापन, घबराहट और इस प्रकार के लक्षण देखने को मिलते हैं. बार-बार होने वाले दस्त , गर्मी का अधिक लगना, मासिक धर्म में अनियमितता और कभी-कभार आँखों की पुतलियों का बाहर को निकलना. ऐसे लोग प्रायः जब बाहर निकलते हैं तो खुद को अजीबोगरीब स्थिति में पाते हैं जहाँ पर वे बात करना चाहते हैं पर स्वयं को शक्तिहीन महसूस करते हैं. वे ज़्यादातर चिड़े हुए रहते हैं और छोटी सी बात आर अत्यधिक क्रुद्ध हो जाते हैं.
हाइपोथायरिडिसम (Hyperthyroidism): इस स्थिति में में थायरॉक्साइन का स्राव सामान्य से कम पाया जाता है. ज़्यादातर रोगी उस कगार पर पाए जाते हैं जिसमें जाँच द्वारा पता किया जान मुश्किल होता है. परंतु इनके कारण रोगी के शरीर में प्रायः अप्रत्याशित रूप से थकावट, कमज़ोरी और मुख्य कार्यों में अवरोध पाया जाता है.
लंबी अवधि में मयक्षेदेमा नमक बीमारी का जन्म होता है जिससे आँखों में सूजन, त्वचा और पिंदलियों और शरीर के काई अंगों में सूजन पाई जाती है. त्वचा का सूखापन, पीलापन, भवों के बालों का टूटना, शरीर के तापमान का कम रहना, हृदय की धड़कन का कम होना, भूख का कम लगना, कब्ज़ीयत और रक्ताल्पता (अनेमिया).



थायरायड के रोगों में उपचार विधि
(Line of Treatment In Thyroid Diseases As Per Ayurveda In Hindi)
महर्षि चरक के अनुसार थायरॉइड का रोग अधिक मात्रा में दूध पीने वालों को नही होता. इसके अलावा साबुत मूँग, पुराने चावल, जौ, सफेद चने, खीरा, गन्ने का जूस और दुग्ध पदार्थों का सेवन करना भी अत्यंत आवश्यक है. इसके विपरीत खट्टे और भारी पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए
कचनार का प्रयोग इस ग्रंथि के अच्छी प्रकार से सक्रिय रहने के लिए आवश्यक है. इसके अलावा , ब्राहमी, गुग्गूल, शिलाजीत भी लाभदायक है. गोक्शुर और पुनर्नव भी इस रोग में फ़ायदा देते हैं.



आसान घरेलू प्रयोग
Simple Ayurvedic Home Remedy For Revitalizing Thyroid In Hindi
11 से 22 ग्राम जलकुंभी का पेस्ट बनाकर थायरॉइड के क्षेत्र में लगाने से इस स्थिति में लाभ मिलता है. यह आयोडीन की कमी को पूरा करता है. यह तो सर्वविदित हैं की नारियल तेल में पाए जाने वाले फैटी एसिडस से बहुत से लाभ मिलते हैं. यह शरीर के अंगों, मस्तिष्क को विशिष्ट लाभ प्रदान करने में सहायक है. और यह हयपोथेरॉडिज़ॅम नामक रोग को ठीक करने में सहायक है.
योग द्वारा थायरॉइड ग्रंथि के रोगों का उपचार (Treatment Of Thyroid Problems With Yogasanas And Pranayam In Hindi)
*सर्वांगसन करने से थायरॉइड ग्रंथि के क्षेत्र में दबाव पड़ता है और इससे थायरॉकसीन के स्राव में सुधार पाया जाता है. इसमें शरीर के स्थाई पड़े हुए अंतः स्रावीय ग्रंथि तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. परंतु अत्यंत गंभीर थायरो-टोक्सीकोसिस(Thyrotoxicosis), शारीरिक कमज़ोरी तथा जहाँ पर थायरॉइड बहुत बढ़ गया हो. उस स्थिति में इन आसनों को नही करना चाहिए. अपितु पहले चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार रोग का निवारण करें. परंतु सूर्य नमस्कार, पवन्मुक्तासन जो की मस्तिष्क और गर्दन के क्षेत्र में अधिक प्रभावशाली हों, उनका अभ्यास होना चाहिए. सुप्त्वाज्रासन, योग मुद्रा और पीछे की और झुक के करने वाले आसन अत्यंत लाभदायक हैं.
*इस रोग में उज्जयी प्राणायाम लाभदायक है. यह गले के क्षेत्र में प्रभावशाली होता है. यह हायपोथॅलमस और दिमाग़ के निचले क्षेत्र को उर्जावान बनाकर सीधे-सीधे लाभ देता है और चयपचय की क्रिया को भी नियंत्रित करता है. साथ ही नाड़ी शोधन प्राणायाम का भी विशेष लाभ इसमें पाया जाता है.









21.5.17

जानें गर्भ में लड़का होने के लक्षण




  अक्सर वे लोग जो जल्द ही माता-पिता बनने वाले होते हैं, वह बच्चे के लिंग को लेकर बहुत उत्साहित रहते हैं। इसके लिए वो लिंग परीक्षण भी करवा डालते हैं, परंतु सेक्स रेशियो में आ रहे बड़े अंतर की वजह से यूं तो सरकार द्वारा गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग परीक्षण करना कानूनन अपराध घोषित किया जा चुका है
लेकिन हमारी पारंपरिक पद्धति में गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जानने की अन्य भी कई विधाएं बहुत चर्चित और प्रचलित हैं। भारतीय पद्धति की बात करें तो अक्सर गर्भवती स्त्री के खानपान, उसके गर्भ के आकार और उसकी चाल को देखकर अनुमान पहले ही लगा लिया जाता है कि वह लड़के को जन्म देगी या लड़की को।
जब भी एक महिला माँ बनने वाली होती हैं तो उनके घर और बाहर के सब लोग ही पूर्वानुमान करने लग जाते हैं कि वो महिला एक लड़के को जन्म देगी या फिर लड़की को. जन्म से पहले जेंडर ( Gender ) पता लगवाना गैर क़ानूनी होता हैं, जिसके लिए सख्त कानून और पकड़े जाने पर दोषियों को सजा व जुर्माने का भी प्रावधान हैं. लेकिन सभी लोग अपने तजुर्बे से होने वाले बच्चे के बारे में अनुमान लगाते हैं. बहुत सी ऐसी बातें होती हैं कि जिससे आप पता लगा सकते हैं कि होने वाला बच्चा लड़का होगा या लड़की



इन लक्षणों से पहचाने की पेट में लड़का है

1. मतली लगना-
कई माताएं मानती हैं कि जब पेट में लड़की होती है, तो उल्‍टी होने का बिल्‍कुल भी एहसास नहीं होता। पर अगर पेट में लड़का है, तो आप बाल्‍टी भर उल्‍टी करने के लिए बिल्‍कुल तैयार हो जाइये। सुबह की शुरुआत में मतली जैसा महसूस होना आम बात होती है इसमें।

किडनी फेल्योर(गुर्दे खराब) रोगी घबराएँ नहीं ,करें ये उपचार

2. पेट ज्‍यादा निकलना-
अगर पेट में लड़का है, तो गर्भावस्‍था के दौरान यह साफ पता चलता है। क्‍योंकि इसमें लड़की के मुकाबले पेट ज्‍यादा निकलता है। इसके अलावा शरीर पर कहीं भी चर्बी नहीं दिखेगी, पर पेट निकला होगा।
3. वजन नहीं बढ़ना-
जिस तरह लड़की के पेट में होने से वजन बढ़ता है, वैसे ही लड़के के पेट में होने से शरीर पर चर्बी बिल्‍कुल भी नहीं बढ़ेगी। न ही आपका चेहरा चमकेगा और न ही गाल गुलाबी लगेगें।
4. खट्टा खाने का मन-
इस दौरान तरह तरह की चीजें खाने का मन करेगा। लड़की अगर पेट में हैं तो मीठा और लड़का लगर पेट में हैं तो खट्टा खाने का मन करता है। बच्‍चे का जिस तरह के पोषक तत्‍व की जरुरत होती है, मां को वही खाने का मन करने लगता है।
*लंदन के चिकित्सा वैज्ञानिकों के अनुसंधान का निष्कर्ष है कि गर्भ में अगर बालक भ्रूण हो तो प्रसव ज्यादा जटिल होता है और महिलाओं को इस दौरान ज्यादा परेशानी होती है। इसके उलट बालिका भ्रूण होने की स्थिति में परेशानी कम होती है और खतरा भी कम होता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है।



*तेल अवीव युनिवर्सिटी (टीएयू) के स्कूल ऑफ मेडिसिन में स्त्रीरोग विशेषज्ञ मारेक ग्लेजरमैन ने यारिव योगेव और निर मेलामेड के साथ मिल कर 66,000 प्रसव के मामलों का अध्ययन किया। इस दौरान इन्होंने पाया कि जब गर्भ में बालक भ्रूण पल रहा होता है तो महिलाओं में गर्भाशय के सीमित विकास का खतरा बढ़ जाता है।

*ग्लेजरमैन ने कहा है कि गर्भ में बालक भ्रूण का होना ज्यादा जटिल मामला हो जाता है। ऐसी स्थिति में अविकसित प्रसव की संभावना बढ़ जाती है। ग्लैजरमैन ने कहा कि जिन बालक भ्रूणों का गर्भाशय में अधिक विकास हो जाता है, वैसी स्थिति में प्रसव बहुत कठिन हो जाता है और अक्सर ऑपरेशन के जरिए प्रसव कराना पड़ता है।
*इजरायल सोसायटी फॉर जेंडर बेस्ड मेडिसिन को प्रस्तुत किए गए एक अध्ययन में शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि बालक भ्रूण के साथ खतरे ज्यादा होते हैं। लेकिन शोधकर्ताओं ने कहा कि इन निष्कर्षो को समुचित आलोक में देखा जाना चाहिए
उपरोक्त जानकारी का आशय ये कतई नहीं है कि आप इसके आधार पर गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग जानने की कोशिश करें। उपरोक्त जानकारी केवल शास्त्रीय पद्धतियों, मान्यताओं को आप तक पहुंचाने की कोशिश भर है।पाठक अपनी समझ और सुझबुझ से काम ले यह एक सलाह मात्र है|

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