1.5.17

अस्थि भंग (हड्डी टूटना)के प्रकार और उपचार

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फ्रैक्चर शब्द का अर्थ है-हड्डी का टूटना। हड्डी गिरने, गाड़ी से दुर्घटनाग्रस्त होने, आघात या चोट से हड्डी टूट सकता है। यह सामान्यतः एथलीट को होता है, जो तेज गति के खेलों, जैसे-फुटबॉल, रग्बी, और सॉसर में भाग लेते हैं। स्ट्रेस फ्रैक्चर(मेटाटार्सल स्ट्रेस फ्रैक्चर) बार-बार बल प्रयोग के कारण होता है।

कारण :

फ्रैक्चर सामान्य अस्थियों या किसी बीमारी, जैसे-कैंसर, सिस्ट, ऑस्टियोपोरोसिस से कमजोर पड़ चुकी अस्थियों में हो सकता है। टूटी हड्डियों में कई कारणों से दर्द हो सकता है-
हड्डियों के आस-पास के नर्व एंडिग्स, इसके टूटने पर दर्द का सिग्नल मस्तिष्क को भेजते हैं।
हड्डियां टूटने से रक्तस्राव होता है, रक्तस्राव औऱ सूजन(एडेमा) से दर्द हो सकता है।
जब फ्रैक्चर होता है, टूटी हड्डियों और इसके टुकड़ों को थामने के लिए आस-पास की मांसपेशियां संकुचित होती हैं। इनके संकुचन से दर्द बढ सकता है।

लक्षण :

फ्रैक्चर का सबसे आम लक्षण है-दर्द और यह हड्डी टूटने के तुरंत बाद शुरू हो जाता है। दर्द सामान्यतः 12 से 24 घंटे में घटना शुरू हो जाता है। अगर दर्द इसके बाद भी बढता जाए, तो इसे कंपार्टमेंट सिंड्रोम समझना चाहिए। सूजन सामान्यतः फ्रैक्चर के साथ या कुछ समय बाद दिखना शुरू होता है, जो कुछ समय तक लगातार बढता रहता है। सूजन 12 से 24 घंटे में घटना शुरू हो जाएगा। बच्चों में फ्रैक्चर की स्थिति में सूजन नहीं भी हो सकता है, जिससे फ्रैक्चर को पहचानना मुश्किल हो सकता है। अगर बच्चा बहुत दर्द बता रहा हो या तीव्र दर्द या पीड़ा में हो तो बेहतर होगा कि उसे जल्द डॉक्टर के पास ले जाएं।
इन स्थितियों में स्थायी या क्रॉनिक दर्द हो सकते हैं :

संक्रमण

गलत तरीके से प्लास्टर लगाना(जैसे-अधिक कसकर या ढीला लगाना)
पूअर अलाइन्मेंट फ्रैक्चर
कुछ लोगों में दूसरे लक्षण, जैसे-हड्डियों की कमजोरी, एक्किमोसिस, गति में असामान्यता या कमी, विकृति और क्रेपिटेशन भी मिल सकते हैं।

जांच औऱ रोग की पहचान :

फ्रैक्चर का चिकित्सकीय रूप से पता लगाया जा सकता है। स्पष्ट विकृति वाले रोगियों में इसकी पहचान आसान है, लेकिन कई बार इसे आसानी से पहचाना नहीं जा सकता।
एक्स-रेः एक्स-रे से फ्रैक्चर की जगह और प्रकार का पता लगाया जा सकता है। अगर फ्रैक्चर छोटा तो एक्स-रे सामान्य होता है, जबकि गंभीर ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में यह प्रभावी होता है।
मैग्नेटिक रेजोनेंस इमैजिंग(एमआरआई) स्कैनः एमआरआई स्कैन उन रोगियों के लिए उपयोग में आता है, जिनका एक्स रे सामान्य आया है, लेकिन फिर भी हड्डी टूटने का संदेह अब भी बना हुआ है। अगर एमआरआई स्कैन संभव नहीं हो तो सीटी स्कैन किया जा सकता है।

उपचार :

फ्रैक्चर के लिए स्प्लिंटिंग, कास्ट या सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है। इससे दर्द काफी घटता है।
दर्द से त्वरित आराम के लिए एसिटामिनोफेन या नॉन-स्टेरॉयडल एंटीइंफ्लेमेट्री दवाएं, जैसे-आइब्यूप्रोफेन और एस्पिरीन उपयोग में लाई जा सकती हैं। कुछ अध्ययन बताते हैं कि ये दवाएं हड्डी ठीक करने में अवरोध पैदा करती हैं।
पहले दो दिनों तक टूटे हाथ-पैर को आराम औऱ ऊंचाई(हृदय से ऊपर) पर रखें, इससे दर्द में बहुत सुधार होता है।



घरेलू उपचार :

अगर फ्रैक्चर का संदेह है, जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें। डॉक्टर तक पहुंचने से पहले फ्रैक्चर के लिए आराम, बर्फ, दबाव, औऱ ऊंचाई का ध्यान रखना महत्वपूर्ण है। इन उपायों से दर्द घटता है।
आराम करने से दर्द घटता है, आगे फिर से क्षति से बचाव होता है औऱ स्प्लिंटिंग या कास्ट लगाने के बाद आराम करने से हड्डी जल्दी ठीक होती है।
बर्फ औऱ सेंक से सूजन और दर्द घटता है।
टूटे हाथ-पैर को हृदय की ऊंचाई के स्तर से ऊपर उठाकर रखें। इससे दर्द औऱ सूजन घटता है।
साधारण दर्दनिवारक जैसे-एसिटामिनोफेन, एस्पिरीन या आइब्यूप्रोफेन से दर्द से राहत पाने में सहायता मिलती है।

वैकल्पिक चिकित्साः

मसाज थेरेपी, रिलैक्सेशन तकनीक, सम्मोहन, प्राणायाम (श्वास-प्रश्वास का व्यायाम) आदि से दर्द औऱ तकलीफ घटता है। मालिश से फ्रैक्चर के आस-पास के कोमल ऊतकों के दर्द औऱ तकलीफ घटते हैं।

कूल्हे की हड्डी टूटना

बड़ी उम्र में कूल्हे की हड्डी टूटना काफी आम होता है। हल्के से गिरने से भी कूल्हे के जोड़ की हड्डी टूट सकती है। रोगी अपना पैर नहीं हिला सकता। दर्द हो सकता है। जिस तरफ के पैर में चोट लगी होती है वो दूसरे के मुकाबले थोड़ा बाहर की तरफ मुड़ जाता है।
यह अस्थिभंग गम्भीर होता है क्योंकि बिना इलाज के यह मौत का निराश्रित कारण होता है। पहले इस अस्थिभंग का कोई इलाज नहीं था। कई एक अस्थिभंग जिनमें हडि्डयों के टुकड़े आपस में सटे रहते हैं (अन्तर्घटि्टत अस्थिभंग) अपने आप कुछ महीनों में ठीक हो जाते थे और कुछ नहीं भी होते थे। क्योंकि अस्थिभंग के ठीक होने में इतना अधिक समय लगता था और इतने लम्बे समय लगातार लेटे रहने से पड़ने वाले दबाव के कारण कुल्ले पर और पीठ पर अल्सर हो जाते थे। इसके अलावा कभी-कभी कुपोषण और निमोनिया के कारण कुछ महीनों में मौत भी हो जाती थी।
अब आप्रेशन की आधुनिक तकनीक से बहुत फर्क आया है। कील और प्लेट से हड्डी को जोड़ देने और कूल्हे की हड्डी के खराब हुए सिर जैसे भाग की जगह (जो कि गेंद के आकार का होता है) धातु की गेंद डाल देने से कुछ ही हफ्तों में रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाता है। अगले हफ्ते से रोगी सहारे से चलना भी शुरू कर सकता है।

हाथ की एक हड्डी का टूटना

बाँह में आगे के भाग में दो हडि्डयाँ होती हैं इसलिए अगर इनमें से केवल एक हड्डी टूटे तो दूसरी सहारा और स्थिरता देने के लिए काफी होती है। ऐसे में हड्डी टूटने का इलाज आसानी से स्थानीय रूप से ही किया जा सकता है। जुड़ी हुई हडि्डयाँ, जोड़ने वाली हडि्डयों जैसे काम करती हैं। हडि्डयों के टुकड़ों को सीध में लार बाँधकर स्थिर कर देना हड्डी जोड़ने के लिए काफी होता है। पैर की एक हड्डी के टूटने का भी इसी तरह से इलाज किया जा सकता है। लेकिन टूटी हड्डी एक है या दो, यह निश्चित करना ज़रूरी है।



बाहों और हाथों की हडि्डयाँ टूटना

सड़क दुर्घटनाएँ और बाहर खेलने वाले खेल इन अस्थिभंगों के आम कारण हैं। इन अस्थिभंगों में हाथ का हिलना-डुलना बन्द हो जाता है। सूजन व टेढ़ापन साफ दिखाई देती है। दर्द और दबाने से दर्द से अस्थिभंग का पता चलता है।

कॉलर की हड्डी का टूटना

अगर कोई व्यक्ति ऐसे गिर जाए जबकि उसके हाथ फैली हुई अवस्था में हों, या फिर ठोकर खाकर गिर जाए, या सायकिल से गिर जाए या ऊँचाई से गिर जाए तो अचानक लगने वाले आघात के कारण उसकी कॉलर की हड्डी टूट सकती है। कॉलर की हड्डी के टूटने की पहचान करना आसान होता है क्योंकि इसमें कॉलर के पास की जगह में दर्द और टेढ़ापन हो जाता है। कॉलर की हड्डी टूटने की एक और निशानी है हाथ को कंधे से ऊपर न उठा पाना। आप इस अस्थिभंग को महसूस भी कर सकते हैं। इसके इलाज के लिए अंग्रेज़ी अंक 8 के आकार की कंधे के दोनों ओर से पीठ पर कसी हुई पट्टी बाँधी जाती है। इलास्टिक पट्टी ज्यादा अच्छी रहती है। पट्टी को रोज़ कसना पड़ता है क्योंकि यह ढीली होती जाती है। इसके इलाज में कुछ भी और नहीं करना होता। और इतना स्वास्थ्य कार्यकर्ता आसानी से कर सकते हैं। इलाज की अवधि करीब छ: हफ्ते होती है।
पहचानिए लक्षण :
हड्डी टूटने के साथ ही बहुत तीव्र दर्द होता है। टूटने वाले अंग को चलाना असंभव हो जाता है। टूटे हुए स्थान पर तत्काल सूजन आने लगती है। 

बाहें टूटने पर क्या करें :
1 सबसे पहले आप बच्चे को शांत बैठा दें।
2 बाँह और सीने के बीच एक पैड बना दें।
3 उन्हें दूसरे हाथ से टूटे हुए हाथ को सपोर्ट देने के लिए कहें।
4 टूटी बाँह को कपड़े से बाँधकर.गर्दन से ऐसे लटकाएँ ताकि भुजा और हथेली के बीच 90 डिग्री का कोण बन जाए। 


टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने वाली रामबाण औषिधि हड़जोड़



*हड़जोड़*
वानस्पतिक नाम : Cissus quadrangularis
यइसको अस्थि श्रृंखला के नाम से जाना जाता है। यह छह इंच के खंडाकार चतुष्कोणीय तनेवाली लता होती है। हर खंड से एक अलग पौधा पनप सकता है। चतुष्कोणीय तने में हृदय के आकार वाली पत्तियां होती है। छोटे फूल लगते हैं। पत्तियां छोटी-छोटी होती है और लाल रंग के मटर के दाने के बराबर फल लगते हैं। यह बरसात में फूलती है और जाड़े में फल आते हैं।
दक्षिण भारत और श्रीलंका में इसके तने को साग के रूप में प्रयोग करते हैं।
-हड़जोड़ में सोडियम, पोटैशियम और कैल्शियम कार्बोनेट भरपूर पाया जाता है। हड़जोड़ में कैल्शियम कार्बोनेट और फास्फेट होता है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। आयुर्वेद में टूटी हड्डी जोड़ने में इसे रामबाण माना गया है।

-इसके तने को तेल में भुनकर हड्डी पर बांधने से जल्दी ठीक होती है |
-इसके अलावा कफ, वातनाशक होने के कारण बवासीर, वातरक्त, कृमिरोग, नाक से खून और कान बहने पर इसके स्वरस का प्रयोग होता है।
-मुख्य रूप से इसके तने का ही प्रयोग किया जाता है। 10 से 20 मिलीलीटर स्वरस की मात्रा निर्धारित है।
-२ ग्राम हडजोड. का चूर्ण दिन में ३ बार लेने से और उसके रस को हड्डी पर लेप करने से हड्डियां जल्दी जुड़ जाती है |
-इस चूर्ण में बराबर मात्र में सौंठ चूर्ण मिलाकर रखे , ३-४ ग्राम के मात्रा में पानी से लेने पर पाचन शक्ति बढती है |
-रक्त प्रदर और मसिकस्राव अधिक होने पर इसके १० से २० मिली. रस में गोपीचंदन २ ग्राम ,घी एक चमच और शहद ४ चमच के साथ लेने से ठीक हो जाता है |ह लता हड्डियों को जोड़ती है।
  • पायरिया के घरेलू इलाज
  • चेहरे के तिल और मस्से इलाज
  • लाल मिर्च के औषधीय गुण
  • लाल प्याज से थायराईड का इलाज
  • जमालगोटा के औषधीय प्रयोग
  • एसिडिटी के घरेलू उपचार
  • नींबू व जीरा से वजन घटाएँ
  • सांस फूलने के उपचार
  • कत्था के चिकित्सा लाभ
  • गांठ गलाने के उपचार
  • चौलाई ,चंदलोई,खाटीभाजी सब्जी के स्वास्थ्य लाभ
  • मसूड़ों के सूजन के घरेलू उपचार
  • अनार खाने के स्वास्थ्य लाभ
  • इसबगोल के औषधीय उपयोग
  • अश्वगंधा के फायदे
  • लकवा की चमत्कारी आयुर्वेदिक औषधि वृहत वात चिंतामणि रस
  • मर्द को लंबी रेस का घोडा बनाने के अद्भुत नुस्खे
  • सदाबहार पौधे के चिकित्सा लाभ
  • कान बहने की समस्या के उपचार
  • पेट की सूजन गेस्ट्राईटिस के घरेलू उपचार
  • पैर के तलवों में जलन को दूर करने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • लकवा (पक्षाघात) के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे
  • डेंगूबुखार के आयुर्वेदिक नुस्खे
  • काला नमक और सेंधा नमक मे अंतर और फायदे
  • हर्निया, आंत उतरना ,आंत्रवृद्धि के आयुर्वेदिक उपचार
  • पाइल्स (बवासीर) के घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खे
  • चिकनगुनिया के घरेलू उपचार
  • चिरायता के चिकित्सा -लाभ
  • ज्यादा पसीना होने के के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार
  • पायरिया रोग के आयुर्वेदिक उपचार
  • व्हीटग्रास (गेहूं के जवारे) के रस और पाउडर के फायदे
  • घुटनों के दर्द को दूर करने के रामबाण उपाय
  • चेहरे के तिल और मस्से हटाने के उपचार
  • अस्थमा के कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू नुस्खे
  • वृक्क अकर्मण्यता(kidney Failure) की रामबाण हर्बल औषधि
  • शहद के इतने सारे फायदे नहीं जानते होंगे आप!
  • वजन कम करने के उपचार
  • केले के स्वास्थ्य लाभ



  • 26.4.17

    गठिया का उपचार होम्योपैथिक द्वारा


    होम्योपैथी में गठिया का निश्चित रोक थाम एवं ईलाज है। होम्योपैथिक ईलाज द्वारा जोड़ों का बिगड़ना रोका जा सकता है एवं सूजन खत्म की जा सकती है। ठतलवदपं एक कारगार दवा है जिसमें चलने से मरीज के जोड़ों का दर्द बढ़ता है एवं Rhus tox जवग में चलने से मरीज को जोड़ों से आराम मिलता है।Calcarea Carb भी एक कारगार दवा है। जिसमें जोड़ों का दर्द बैठने एवं चलने एवं पानी का कार्य करने से बढ़ता है। Ruta में मरीज को पैर Stretch करने से आराम मिलता है। Causticum एवं Angustura दर्द से आराम देती है जब हड्डियों में क्रेकिंग हो तबबहुत से लोगों को जैसे ही मालूम होता है कि उन्हें गठिया है, तो वे जीने की उमंग ही खो बैठते हैं। लेकिन जिस तरह हर मुश्किल का सामना किया जा सकता है, उस तरह गठिया का भी मुकाबला करके सेहत को बेहतर बनाया जा सकता है और दर्द को कम किया जा सकता है।
    जोड़ों का दर्द साधारणतया दो प्रकार के होते हैं। छोटे जोड़ों के दर्द को वात यानी रिक्हिटज्म कहते हैं। वात रोग (गाउट) में जोड़ों की गाँठें सूज जाती हैं, बुखार भी आ जाता है। बेहद दर्द एवं बेचैनी रहती है।
    कारण: अधिक माँस खाना, ओस या सर्दी लगना, देर तक भीगना, सीसा धातुओं से काम करने वाले को लैड प्वाइजनिंग होना, खटाई और ठंडी चीजों का सेवन करना, अत्यधिक मदिरा पान एवं वंशानुगत (हेरिडिटी ) दोष। 

    गठिया
    आपके शरीर के जोड़ों में सूजन उत्पन्न होने की स्थिति को गठिया कहते है। अथवा आपके जोड़ों के बीच की cartilage degenerate होने की स्थिति से गठिया उत्पन्न होती है।

    गठिया लंबे समय से जोड़ों को अधिक कार्य में लिए जाने जोड़ों पर चोट लग जाने इत्यादि से हो जाती है।
    गठिया के लक्षण- जोड़ों में
    दर्द
    अस्थिरता
    सूजन
    सुबह के वक्त अकड़न
    सीमित उपयोग
    पास गर्माहट
    आस पास त्वचा पर लालीपन



    गठिया 100 से अधिक प्रकार की होती है। जिसमें प्रमुख है-
    Osteoathritis:- यह वृद्धाअवस्था में धीरे धीरे बढ़ती है। इसमें सुजन नहीं होती है। सुबह Stiffness मेे होती है और asymmetric होती है। इसको Wear & tear गठिया भी कहते है।
    Rheumatoid arthritis- यह स्व प्रतिरक्षित रोग है। इसमें जोड़ों का दर्द, सूजन एवं कठोरता एवं छोटे जोड़ों में किसी भी उम्र में हो सकती है।

    औषधियाँ - लक्षणानुसार काल्मिया लैटविया, कैक्टस ग्रेड़ीफ्लोरा, डल्कामारा, लाईकोयोडियम, काली कार्ब, मैगफास, स्टेलेरिया मिडि़या, फेरम-मिक्रीरीकम इत्यादि अत्यंत कारगर होम्योपैथिक दवाएँ हैं।
    * गठिया कई किस्म का होता है और हरेक का अलग-अलग तरह से उपचार होता है। सही डायग्नोसिस से ही सही उपचार हो सकता है।
    लक्षण: - रोग के आरंभ में पाचन क्रिया का मंद पड़ना। पेट फूलना (अफारा) एवं अम्ल का रहना (एसिडिटी), कंस्टिपेशन रहना। क्रोनिक (पुराने) रोग होने पर पेशाब गहरा लाल एवं कम मात्रा में होना।
    *सही डायग्नोसिस जल्द हो जाए तो अच्छा। जल्द उपचार से फायदा यह होता है कि नुकसान और दर्द.कम होता है। उपचार में दवाइयाँ, वजन प्रबंधन, कसरत, गर्म या ठंडे का प्रयोग और जोड़ों को अतिरिक्त नुकसान से बचाने के तरीके शामिल होते हैं।
    *जोड़ों पर दबाव से बचें। ऐसे यंत्र हैं जिससे रोजमर्रा का काम आसान हो जाता है। जितना वजन बताया गया है, उतना ही बरकरार रखें। ऐसा करने से कूल्हों व घुटनों पर नुकसान देने वाला दबाव कम पड़ता है।
    *गठिया में ज्यादातर लोगों के लिए सबसे अच्छी कसरत चहलकदमी है। इससे कैलोरी बर्न हो जाती है। मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं और हड्डियों में घनत्व बढ़ जाता है।
    *पानी में की जाने वाली कसरतों से भी ताकत आती है, गति में वृद्धि होती है और जोड़ों में टूटफूट भी कम होती है।
    *हाल के शोधों से मालूम हुआ है कि विटामिन सी व अन्य एंटीऑक्सीडेंट ऑस्टियो-आर्थराइटिस के खतरे को कम करते हैं और उसे बढ़ने से भी रोकते हैं। इसलिए संतरा खाओ या संतरे का जूस पियो। ध्यान रहे कि संतरा व अन्य सिटरस फल फोलिक एसिड का अच्छा स्रोत हैं।
    *आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम होना चाहिए। इससे हड्डियाँ कमजोर पड़ने का खतरा नहीं रहता। अगर साधारण दूध नहीं पीना चाहते तो दही, चीज और आइसक्रीम खाएँ। पावडर दूध पुडिंग, शेक आदि में मिला लें। मछली, विशेषकर सलमोन (काँटे सहित) भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
    *नाश्ता अच्छा करें। फल, ओटमील खाएँ और पानी पीएँ। जहाँ तक मुमकिन हो कैफीन से बचें।
    *वे जूते न पहने जो आपका पंजा दबाते हों और आपकी एड़ी पर जोर डालते हों। पैडेड जूता होना चाहिए और जूते में पंजा भी खुला-खुला रहना चाहिए।
    * सोते समय गर्म पानी से नहाना मांसपेशियों को रिलैक्स करता है और जोड़ों के दर्द को आराम पहुँचाता है। साथ ही इससे नींद भी अच्छी आती है।
    * अपने डॉक्टर को यह अवश्य बता दें कि गठिया के अलावा आप किसी और परेशानी के लिए और कौन सी दवाई लेते हैं, चाहे वह न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट ही क्यों न हो।
    * काम के दौरान कई-कई बार ब्रेक लेकर सख्त जोड़ों और सूजी मांसपेशियों को स्ट्रैच करें।




    अपनी डाइट में विटामिन सी युक्त खाघ पदार्थ और सप्पलीमेंट का सेवन रोज करें। लो फैट डेयरी प्रोडक्ट जैसे, दूध या दही शरीर में सीरम यूरिक लेवल को कम करता है। इसे खाइये और गठिया से निजात पाइये। ओमेगा 3 फैटी एसिड अगर बैलेंस ना हो तो जोडो का दर्द पैदा हो सकता है इसलिये इसे बैलेंस करने के लिये हरी सब्जियां जैसे, पालक, ब्रॉक्ली, प्याज, अदरक आदि का सेवन करें। कार्बोहाइड्रेट्स वाले आहार जैसे, पास्ता, ब्रेड, फ्राई फूड और जंक फूड से दूर रहें।
    कद्दू में खूब सारा कैरोटीन होता है जो जोड़ों की सूजन को कम करता है।
    बादाम, काजू, अखरोठ और कद्दू के बीज में ओमेगा 3 फैटी एसिड तथा एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो कि सूजन को कम कर के दर्द दूर करता है। मछली खाएं इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है जो जोड़ो की सूजन को कम करने में मददगार होता है। ग्रीन टी इसमें बहुत सारा एंटीऑक्सीडेंट और नीकोटीन होता है जो दर्द को दबा देता है। ऑलिव ऑयल इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट और ओमेगा-3 फैटी एसिड जोड़ों के दर्द से राहत दिलाता है। संतरा खाएं इसमें विटामिन सी होता है जो कि स्वास्थ्य वर्धक कोलाजिन होता है। विटामिन सी से हड्डियां मजबूत बनती हैं। प्याज खाएं इसमें एसपिरिन के मुकाबले एक रसायन होता है जो दर्द को गायब कर देता है।

    विशिष्ट परामर्श-  

    संधिवात,कमरदर्द,गठिया, साईटिका ,घुटनो का दर्द आदि वात जन्य रोगों में जड़ी - बूटी निर्मित हर्बल औषधि ही अधिकतम प्रभावकारी सिद्ध होती है| रोग को जड़ से निर्मूलन करती है| औषधि से बिस्तर पकड़े पुराने रोगी भी दर्द मुक्त गतिशीलता हासिल करते हैं| बड़े अस्पतालों के महंगे इलाज़ के बावजूद निराश रोगी इस औषधि से आरोग्य हुए हैं|  त्वरित असर औषधि के लिए वैध्य श्री दामोदर से 98267-95656 पर संपर्क कर सकते हैं|

        










    23.4.17

    सड़े गले घाव ,कोथ ,गैंगरीन GANGRENE के होम्योपैथिक उपचार

       जब किसी भी कारण से शरीर के किसी भाग अथवा बड़े ऊतक-समूह की मृत्यु हो जाती है तब उस व्याधि को कोथ (ग्रैंग्रीन अथवा मॉर्टिफिकेशन, Gangrene or Mortification) कहते हैं। कोथ जानलेवा स्थिति का संकेत है।
    # कोथ शब्द प्राय: उन बाहरी अंगों के ऊतकों की मृत्यु के लिये उपयोग किया जाता है जो हमको दिखाई देते है। इस रोग में ऊतक का नाश अधिक मात्रा में हो जाता है। धमनी के रोग, धमनी पर दबाव या उसकी क्षति, विषैली ओषधियों, जैसे अरगट अथवा कारबोलिक अम्ल का प्रभाव, बिछौने के व्रण, जलना, धूल से दूषित व्रण, प्रदाह, संक्रमण, कीटाणु, तंत्रिकाओं का नाश तथा मधुमेह आदि कोथ के कारण हो सकते हैं।
    अनुक्रम :-
    1. प्रकार
    2. कारण
    3. लक्षण
    4. चिकित्सा
    5. होम्योपैथिक उपचार
    1. प्रकार :-
    *कोथ(गेगरीन) मुख्यत: दो प्रकार का होता है: शुष्क और आर्द्र।
    A. शुष्क कोथ(DRY GANGRENE):- जिस भाग में होता है, वहाँ रक्तप्रवाह शनै: शनै: कम होकर पहले ऊतक का रंग मोम की तरह श्वेत तथा ठंढा हो जाता है, तदुपरांत राख के रंग का अथवा काला हो जाता है। यदि ऊर्ध्व या अध: शाखा में कोथ होता है तो वह भाग पतला पड़कर सूख जाता है और कड़ा होकर निर्जीव हो जाता है। इसको अंग्रेजी मे मॉर्टिफ़िकेशन कहते हैं।


    थायरायड रोग के आयुर्वेदिक उपचार 

    B. आर्द्र कोथ(WET GANGRENE):- जिस भाग में होता है वहाँ रूधिर का संचार एकाएक कट जाता है, परंतु उस स्थान में रक्त भरा होता है और द्रव भरे छाले दिखाई देते हैं। वहाँ के सब ऊतक मृत हो जाते हैं। मृत भाग सड़े हुए खुरंड (स्लफ, Slough) के रूप में पृथक्‌ हो जाता है और उसके नीचे लाल रंग का व्रण निकल आता है। आरंभ में ये असंक्रामक होता है। परंतु बाद में इसमें दंडाणु का संक्रमण हो जाता है।




    2. कारण :-
    . आघात : अत्यधिक आघात से उत्पन्न व्रण, पिच्चित व्रण, शय्याज व्रण, अवगाढ कुशा से उत्पन्न व्रण तथा विकत पोषण वाले रोगियो के आघातज व्रण ईत्त्यादि अवस्थाओ मे उक्तियो मे विघटन अर्थात कोथ उत्पन्न होती ह।
    रक्तवाहिनियो की व्यधियाँ : रक्तवाहिनियो मे अनेक रोग हो सकते ह जैसे बरजर क रोग, रेनाड का रोग, एवम सिराओ कि विकतिया आदि।

    (क) बरजर का रोग (burger's disease)
    यह व्याधि अधिक्तर पुरुषो मे पायी जाती ह। धुम्रपान से, अधिक उम्र मे calcium के जमा होने से तथा ह्र्द्यान्त्रावरण शोफ् से उत्पन्न अन्तः शल्यता आदि कारणॉ से धमनियो मे शोफ तथा एन्ठन उत्पन्न हो जाती ह्। इससे धमनियो मे सन्कोच होकर धमनियो का विवर कम हो जाता ह। इस रोग से प्रभवित स्थान पर रक्त कि न्युनता होकर कोथ उत्पन्न होती ह्।
    (ख) रेनाड का रोग (raynaud's disease)
    यह व्याधि प्रायः स्त्रियो मे होती है। शाखाओ कि धमनिया शीत के प्रति सूक्ष्म ग्राही होने पर धमनियो मे एन्ठन तथा सन्कोच उत्पन्न हो जाता ह। इससे रक्त प्रवाह मन्द पड जाता ह तथा रक्त्त वाहिका के अन्तिम पूर्ति प्रान्त मे रक्त न्युन्ता होकर कोथ उत्पन्न हो जाती है।
    (ग) शिराओं की विकृति-
    गम्भीर सिराओ मे घनस्र्ता उत्पन्न होने से जैसे अपस्फित सिरा मे तथा सिर मे सुचिभेद से सिरशोथ उत्पन्न होने से सिराओ मे रक्त परिभ्रमण के अव‍रुध या अत्ति नयून हो जाने पर उक्तियो मे कोथ उत्पन्न हो जाता है।
    (घ) अन्य रोग
    मधुमेह के रोगियो मे परिसरियतन्त्रिका शोफ तथा उक्तियो मे अधिक मात्रा मे आ जाने से एवम धमनियों मे केल्शियम के जमने से धातुओ मे रक्त न्युन्ता आ जाती ह, इससे सन्क्रमण उक्तियो मे शिघ्रता से कोथ उत्पन्न करता है।



    (च) संक्रमण
    कोथ के जीवाणू प्रोटीन का विघटन करते ह तथा अमोनिया और सल्फ्युरेटेड हाइड्रोजन (sulphurated hydrogen) उत्पन्न करते हैं। इनका व्रण पर सन्क्रमण होने से उनसे उत्पन्न हुई गैस पेशियो मे भर जाती है। इसक रक्त वाहिनियो पर दाब पडने से उन्मे रक्त अल्पता उत्पन्न होकर कोथ उत्पन्न हो जाती है।
    3. लक्षण :-
    सार्वदेहिक(GENERAL) :-
    १) कोथ से प्रभावित अग के क्रियाशिल होने पर, उक्तियो मे oxygen कि न्युन्ता हो जाती ह, इससे पेशियो मे एन्ठन आती ह तथा तीव्र वेदना होने लगती ह्।
    २) रक्त सन्चार मे मन्द्ता आ जाने से प्रभावित अग मे विश्राम काल भि वेदना रेहती ह।
    ३) सन्क्रमण जन्य कोथ मे विषाक्त्तता होने से ज्वर्, वमन तथा रक्त भार मे ह्रास इत्यादि।
    स्थानिक(LOCAL):-
    *प्रभावित अग मे उष्मा का अभाव
    *प्रभावित अग मे क्रिया का अभाव
    * प्रभावित अग मे विवर्णता
    * धमनियो मे स्पन्दन स्माप्त हो जाता ह तथ कोशिकाओ मे रक्त कि अनउपस्थिति हो जाने से त्वचा के रग मे कोइ प‍‍रिवर्तन नही आता।




    चिकित्सा:-

    १) मधुमेह मधुमेह के रोगी मे गेंगरीन उत्पन्न होने पर उसे मधुमेह की चिकित्सा देनी चाहिये। प्रभावित अग को पूर्ण विश्राम दे तथा सन्क्रमण के अनुसार प्रति जिवाणू औषधि क प्रयोग करना चाहिये। सीमा निर्धारण रेखा के बनने पर उस रेखा से अग विच्छेदन कर देना चाहिये।
    २) प्रमेह पिडीका (carbuncle) यदि प्रमेह पिडिका आकार मे बढ रही हो तो इसक छेदन कर देना चाहिये तथा रोगी को MEDICINES देते रहे। व्रण पर Mgso4+ glycerine) के घोल को लगाये और रोगी को खाने के लिये विटामिन तथा लोहुयुक्त पदार्थ देने चाहिये।
    5. होम्योपैथिक उपचार :-
    ACCORDING TO SYMPTOMS OF PATIENT - homoeopathic medicines -
    1. ARNICA
    2.ARS.ALBUM
    3.CARBO VEG
    5.SULP. ACID
    6.ANTHRACINUM
    7.LACHASIS
    8.POLYGON.
    9.ECHIN.
    10.SEC
    उक्त सभी औषधियों के मदर टिंक्चर के दो दो बूंद पानी मे मिलाकर दिन मे तीन बार लेते रहने से भी रोग पर काबू पाया जा सकता है|


    किडनी फेल (गुर्दे खराब) की अमृत औषधि 

    प्रोस्टेट ग्रंथि बढ्ने से मूत्र बाधा की हर्बल औषधि

    सिर्फ आपरेशन नहीं ,पथरी की 100% सफल हर्बल औषधि

    आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार







    21.4.17

    स्त्री बांझपन और गर्भ गिरने के घरेलू आयुर्वेदिक उपचार //mahila banjhpan ayurvedic upchar

      

      नपुंसक उस व्यक्ति को कहते हैं जिस पुरुष के वीर्य या लिंग में कमी होती है तथा वह सन्तान की उत्पत्ति के योग्य नहीं रहता है। इसी तरह वह महिला जिसके गर्भाशय में कुछ कमी हो या उसे मासिक धर्म ठीक समय पर नहीं आता है तथा वह संतान पैदा करने के लायक नहीं है उस महिला को नस्त्रीक कहा जा सकता है। बांझ उस स्त्री को कहते हैं जिस स्त्री के गर्भाशय नहीं होता या उसे मासिक धर्म नहीं आता हो। लेकिन इसके अलावा कई स्त्रियां ऐसी भी होती है जिन्हे मासिक धर्म होते हुए भी नास्त्रीक कहलाती है। कई लोग पूर्ण रुप से नपुंसक नहीं होते परंतु उनमें थोड़े-थोड़े गुण नपुंसक के भी मिलते हैं। यदि उनका अच्छी तरह से चिकित्सा की जाए तो उनमें स्त्रियों को गर्भवती करने की शक्ति पैदा हो जाती है और वे बच्चे पैदा करने का पुरुषत्व प्राप्त कर लेते हैं। इसी तरह से अनेक महिला भी ऐसी है जिनका ठीक समय पर इलाज न होने पर बांझपन रोग के लक्षण पैदा हो जाते हैं |

    कितने प्रकार के बाँझपन-

    *श्लेष्मा  - जिस स्त्री की योनि शीतल और चिकनी हो तथा खुजली रहती हो।
    *षण्ढ - जिस स्त्री के स्तन बहुत छोटे हो, मासिक स्राव न होता हो, योनि खुरदरी हो, गर्भाशय ही न हो अगर हो तो काफी छोटा हो।
    *अण्डभी - जिस स्त्री की योनि सेक्स करते समय या अधिकतर नीचे पैरों पर बैठते समय तथा अण्डकोषों की तरह निकल आए।
    *वामनी - जिस स्त्री की योनि मनुष्य के वीर्य को तेजी के साथ उल्टी की तरह बाहर निकाल देती है।
    *पुत्रध्नी - जिस स्त्री का गर्भ ठहर जाने के कुछ दिनों बाद खून का आना शुरु हो जाता है तथा गर्भ पात हो जाता है।
    * जिस स्त्री की योनि से संभोग करते समय बहुत ज्यादा स्राव निकले और वह पुरुष से पहले ही स्खलित हो जाए।
    *पित्तला - जिस स्त्री को योनि में मवाद और जलन महसूस होती हो।
    *अत्यानंदा – जिस स्त्री का मन सदा सेक्स करने का करता हो।
    *कर्णिका - जिस स्त्री की योनि में अधिक गांठे हो।
    *अतिचरणा – जो स्त्री सेक्स करते समय पुरुष से पहले ही  स्खलित  हो जाती हो।

    *शीतला – जो स्त्रियां शांत स्वभाव की होती है वह शीतला (नस्त्रिक) स्त्री कहलाती है। उन स्त्रियों में पुरुष से मिलने की चाह नहीं होती। जब वो शादी के बाद मजबूर होकर पति को खुश करने के लिए सेक्स में तल्लीन होती है तो उन्हें कोई मजा नहीं आता है। बस वह निर्जीव शरीर की तरह पड़ी रहती है। वे स्त्रियां बड़ी मुसीबत का कारण बनती है। अगर शादी के 1-2 महिनों के बाद भी सेक्स का आनन्द न ले तो उनकी अच्छे चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए।
    *विद्रूता - जिस स्त्री की योनि काफी अधिक खुली हुई हो।
    *सूचीवक्त्रा- जिस स्त्री की योनि इतनी अधिक सख्त हो कि पुरुष का लिंग अंदर ही न जा सके।
    *त्रिदोषजा - जिस स्त्री की योनि में सदा तेज दर्द तथा हमेशा खुजली होती रहे।
    *उदावर्ता – जिस स्त्री की योनि में से झागदार मासिक धर्म बहुत ही दर्द के साथ निकलता हो।
    *बंध्या – जिस स्त्री को कभी मासिक धर्म नहीं आता हो तथा वह सभी तरह से स्वस्थ रहती हो।
    *परिप्लुता – वह स्त्री जिसकी योनि में सहवास के समय बहुत अधिक दर्द होता हो।

    *बिप्लुता – जिस स्त्री की योनि में सदा दर्द रहता हो।
    *लाहिताक्षरा - जिस स्त्री की योनि से बहुत तेज मासिक स्राव निकलता हो।
    *प्रसंनी - जिस स्त्री की योनि अपने जगह से हट जाये।
    *वातला – जिस स्त्री की योनि बहुत अधिक सख्त, खुर्दरी और दर्द करने वाली हो।



    उपचार –

    *लगभग 12 ग्राम खाने वाले सोडे को 2 लीटर गर्म पानी में मिलाकर स्त्री की योनी में पिचकारी मारे। इसके अलावा स्त्री की योनि में मूषक के तेल का फाहा रखना भी बांझपन के रोग में फायदेमंद होता है।
    *3 ग्राम मालकांगनी के पत्ते, 1 ग्राम सज्जीखार, 2 ग्राम वर्च और 2 ग्राम विजयसार, इन सबको मिलाकर चूर्ण बनाकर आधा सुबह तथा आधा शाम के समय दूध के साथ लें। इस चूर्ण का सेवन करते समय रोगी को घी, तिल, कांजी, उड़द, छाछ, नारियल और छुहारे लेनी चाहिए।
    *तगर, छोटी कंटकारी, कुठ, सेंधानमक और देवदार के बूरे में इन सबको पकाकर इनके तेल का फोहा लेकर यानि के अंदर रखना चाहिए। हरमल, सोया और मालकांगनी के बीज इन सबको मिलाकर कोयले के ऊपर रखकर तथा ऊपर से कपड़ा ढककर पैरो के बल बैठ जाए और स्त्री को योनि के अंदर धुआ लेना चाहिए तथा वे खुली हवा में बाहर न निकले।
    *रोगी स्त्री को सोते समय घुटनों के बल बैठना चाहिए और फिर धरती पर इस तरह से लेटे कि उनकी छाती नीचे धरती से स्पर्श करती रहें। उनकी निचली कमर ज्यादा से ज्यादा ऊपर की तरफ उठी रहे। जब वे थक जाये तो वे दाई करवट लेट सकती है। अगर वे चारपाई पर भी इस क्रिया को कर सकती है। मूषक के तेल का फाहा योनि के अंदर रखना चाहिए। बांझपन के रोग में दूध की भार लेना भी अति उपयोगी और लाभदायक होता है।
    *रोगी स्त्री को गर्भ ठहरने के शुरुआत में ही मोती-सीप की भस्म और फौलाद की भस्म 125-125 ग्राम सुबह-शाम मक्खन, गाजर या सेब के मुरब्बे के साथ लेना चाहिए। यदि स्राव आना शुरु हो जाए तो रसौंत आधा ग्राम 50 ग्राम पानी से या माखन के साथ लेना चाहिए तथा नाभि पर बड़ के मुलायम पत्ते, गेरु और हरी काई का लेप करना चाहिए। अगर ये तीनों चीजे न मिल सके तो काई भी एक चीज ले सकते है। स्त्री को पीठ के बल सीधा लेटना चाहिए।





    *1 ग्राम नीम का रस, 1 ग्राम सज्जी और 1 ग्राम सौंठ इन सबको मिलाकर इलायची के अर्क के साथ लेना चाहिए। बांझपन के रोग में दशमूल के काढ़ा की पिचकारी करना भी लाभकारी होता है।
    *मलमल के पतले बारिक कपड़े में पोटली बनाकर और उसे पानी में काफी ऊपर तक डुबो कर गर्भाशय के मुंह के अंदर रख दें। इसे सुबह और शाम दो बार रखना चाहिए। यदि इस तरह से भी खून का रुकना बंद ना हो तो किसी अच्छे लेडी चिकित्सक या वैध से इलाज कराना चाहिए।
    *4-4 ग्राम समुद्र सोख, 3-3 ग्राम सूखे अनार का छिलका इन दोनों को मिलाकर सुबह के समय तीन बार खांड के कच्चे तथा पके शरबत या अनार के रस के साथ देने से बांझ स्त्री को बहुत ही फायदा तथा लाभ मिलता है।

    *बांझपन से ग्रस्त रोगी स्त्री को दूध तथा चावल गर्म नहीं खाने चाहिए। बांझपन स्त्री को घीया, मूली, शलजम, कद्दू, ठंडी लस्सी, मक्खन, हरी तोरी या कुल्फे के साग से रोटी देनी चाहिए।
    *अधिकतर गर्भपात खाना-पीना सही ढ़ग से न होना, बहुत ज्यादा मेहनत करने से, ज्यादा भारी सामान के उठाने से, टेढे-मेढे रास्ते पर कार या गाड़ी के सफर करने से, पेट के अंदर चोट लगने से, गलत तरीके से संभोग करने से, सूजाक के रोग होने से और बच्चेदानी के अंदर से बार-बार स्राव होने से गर्भपात हो जाता है। गर्भपात दो तरह का होता है-
    *एक गर्भपात वह होता है जो सब तरह से ध्यान रखने और हर तरह से इलाज कराने से भी हो जाता है। गर्भपात होने का कारण है गर्भाशय का मुख बहुत अधिक खुल जाना। अगर इस तरह की कठिनाई आ जाये तो हस्पताल में जाकर पूर्ण रुप से गर्भाशय की सफाई करा लेना उचित होता है।
    *दूसरा कारण होता है जब गर्भाशय का मुख (मुंह) अधिक नहीं खुलता है तथा उसके अंदर से केवल रक्त स्राव ही होता रहता है। यह R.O.D.E. होता है।
    * विश्राम - रोगी स्त्री को अंधेरे कमरे में चारपाई पर लिटा कर आराम कराना चाहिए। चारपाई के चारों कोनों के नीचे 2-2 ईंट रखकर चारपाई को ऊंचा करना चाहिए और शरीर से तथा दिमाग से आराम कराना चाहिए। कमरे के अंदर सिर्फ एक या दो लोग ही होने चाहिए।
    * अफीम – बांझ रोगी को डाक्टर अधिकतर ऐसी अवस्था में मोर्फिया का इंजेक्शन या आयुर्वेदिक डाक्टर अफीम से बना हुआ मिश्रण देते है।
    * एनिमा – रोगी स्त्री को किसी दाई या नर्स से गुनगुने पानी से या ग्लिसरीन से भी एनिमा कराना चाहिए।
    जब रोगी स्त्री को गर्भपात हो जाए तो होस्पिटल से सफाई करवानी चाहिए और सूजाक रोग का पूरी तरह से टेस्ट करवाकर उसका इलाज करवाना चाहिए।
    * आहार – बांझपन से पीड़ित स्त्री को हल्के पचने वाले, शरीर को ताकत देने फल, फलों का रस, गाजर, टिण्डे, लौकी आदि हल्की सब्जियों का सेवन करना लाभदायक होता है।




    *बांझपन स्त्री को योनि के अंदर शीतल जल या दूध के छींटे बार-बार मारने चाहिए। योनि के अंदर लोवान के तेल का फोहा रखना चाहिए। सफेद चंदन, बिरोजा शुद्ध, तबाशीर, छोटी इलायची तथा खांड बराबर भाग में मिलाकर आमले के पानी के साथ सुबह और शाम को 4-4 ग्राम की मात्रा में खाये।
    *अगर पत्नी की संभोग करने की इच्छा करती है, परन्तु यह पति के मान और शरीर के लिए बहुत ही नुकसानदायक है। गेरु 2 ग्राम और 2 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण रोजाना एक महिने तक सुबह तथा शाम पानी के साथ खिलाना चाहिए।
    *बांझपन का इलाज आपरेशन से भी दूर किया जा सकता है।
    * कुचले को घी में भूनकर उसका छिलका और अंदर का गुदा अलग कर दें। इसे 20 गुणा दूध में कूट-पीसकर उबाल लें, जब यह खोआ की तरह हो जाए तो इसे नीचे उतार लें। फिर इसमें समान मात्रा में लौंग का चूर्ण मिलाकर लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग के बराबर गोलियां बना लें। अतिचरणा स्त्री को भोजन करने के उपरांत 10-12 ग्राम मक्खन या दूध की मलाई के साथ मिलाकर 1-1 गोली रोजाना दें।
    *– हींग 1 ग्राम, सुहागा लगभग एक ग्राम का चौथाई भाग इन दोनों को शहद के साथ मिलाकर संभोग करने से पहले अतिचरणा नस्त्रीक स्त्री अपनी योनि के अंदर लगा लें। इससे वह स्त्री संभोग क्रिया के समय जल्दी ही शांत हो जाती है।
    *सबसे पहले अमलतास के गूदे के पतले काढ़े से योनि को धोना चाहिए तथा फिर कुठ और सेंधानमक, पिप्पली, काली मिर्च, उड़द, सोया इन सबको एक-एक ग्राम की मात्रा में लेकर तथा उसमें पानी मिलाकर लम्बी बत्ती बनाकर और उस बत्ती को सुखाकर योनि के भीतर रख लें। काली मिर्च से योनि के अंदर जलन नहीं होती है।
    पेशरी छल्ला नाम का एक गोल तरह का रबड़ का कड़ा प्राय सभी मैडिकल की दूकानों पर मिल जाती है जिसे योनि के अंदर रखने से योनि का बहुत ही आराम मिलता है। जिससे योनि नीचे की ओर नहीं झुकती है। यह काम किसी अच्छी नर्स या किसी लेडी डाक्टर से ही कराना चाहीए।
    *लौंग, जायफल, जावित्री, तीनों मिलाकर 12-12 ग्राम, स्वर्ण भस्म और कस्तूरी दोनों को एक-एक ग्राम बकरी के दूध में लगभग एक ग्राम के चौथाई भाग के बराबर गोलियां बना लें। इन गोलियों को सुबह और शाम के समय शहद के साथ मिलाकर एक-एक गोली लें।





    *योनि के लिए सोडे की पिचकारी श्रेष्ठ है।
    *रोजाना अनार का छिलका और माजूफल को पानी में काफी के साथ उबालकर उससे योनि पर पिचकारी करते रहे। माजूफल को कपड़े से छानकर थोड़ी सी (चुटकी भर) योनि में काफी अंदर तक लगाने से योनि सीध्र ही सिकुड़ कर छोटी हो जाएगी। तब कुछ समय पश्चात उस पैसरी छल्ले (कड़े) की जरुरत नहीं पड़ती है। कड़ा हमेशा लेड़ी डाक्टर से या समझदार नर्स से ही लगवाना चाहिए। मासिक स्राव आने के बाद पैसरी छल्ले को निकलवा कर, योनि में पिचकारी लगवा कर दुबारा से पैसरी छल्ला रखवाना चाहिए।
    फल घृत-
    फल घी स्त्री तथा पुरुष के अंदर पैदा होने वाले वीर्य और स्त्री के संतान पैदा करने वाले अंग अर्थात योनि के अंगों में होने वाले गुणों को दूर करता है। महाऋर्षि सुश्रुत के द्वारा प्रमाणित किया गया यह घी स्त्रियों को नया जीवन देने वाली एक महत्वपूर्ण औषधि है। यह घी सभी स्त्री के रोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हुआ है।
    प्रयोगः –
    फल घृत को 10-12 ग्राम की मात्रा में लेकर सुबह और शाम को दूध में डालकर या शहद बहुत अधिक मात्रा में मिलाकर अथवा रोटी का बिल्कुल चूरा बनाकर इस्तेमाल करना चाहिए।
    संतान प्राप्ति के अन्य उपाय
    १. मंत्रसिद्ध चैतन्य पीली कौड़ी को शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक बंध्या स्त्री की कमर में बाँधने से उस निःसंतान स्त्री की गोद शीघ्र ही भर जाती है।



    २. बरगद के पत्ते पर कुमकुम द्वारा स्वास्तिक का निर्माण करके उस पर चावल एवं एक सुपारी रखकर किसी देवी मंदिर में चढ़ा दें। इससे भी संतान सुख की प्राप्ति यथाशीघ्र होती है।

    ३. घर से बाहर निकलते समय यदि काली गाय आपके सामने आ जाए तो उसके सिर पर हाथ अवश्य फेरें। इससे संतान सुख का लाभ प्राप्त होता है।
    ४. भिखरियन को गुड दान करने से भी संतान सुख प्राप्त होता है।
    ५. विवाहित स्त्रियों नियमित रूप से पीपल की परिक्रमा करने और दीपक जलाने से उन्हें संतान अवश्य प्राप्त होती है।
    ६. श्रवण नक्षत्र में प्राप्त किये गए काले एरंड की जड़ को विदिपूर्वक कमर में धारण करने से स्त्री को संतान सुख अवश्य मिलता है।
    ७. रविवार के दिन यदि विधिपूर्वक सुगन्धरा की जड़ लाकर गाय के दूध के साथ पीसकर की स्त्री खावें तो उसे अवश्य मिलता है।
    ८. संतान सुख प्राप्ति का एक उपाय यह भी है की गेंहू के आटे की गोलियां बनाकर उसमे चने की दाल एवं थोड़ी सी हल्दी मिलाकर गाय को गुरुवार के दिन खिलाये।



    ९. चावलों की धोबन मे नींबू की जड़ क बारीक पीसकर स्त्री को पीला देने के उपराण, यदि एक घंटे के भीतर स्त्री के साथ उसके पति द्वारा सहवास-क्रिया की जाए तो वो स्त्री निश्चित रूप से कन्या को ही जन्म देती है . यह प्रायग तब किया जाना चाहिए जब कन्या की चाहना बहुत अधिक हो
    १०. यदि संतानहीन स्त्री ऋतुधर्म से पूर्व ही रेचक औषधियों (दस्तावर दवाओं) के द्वारा अपने उदार की शुद्धि कर लेने के पश्चात गूलर के बन्दाक को श्रद्धापूर्वक लाकर बकरी के दूध के साथ पीए और मासिक धर्म की शुद्धि के उपरान्त सेवन पुत्र रतन की ही प्राप्ति होगी।
    ११. पुष्य नक्षत्र में असगंध की जड़ को उखाड़कर गाय के दूध के साथ पीसकर पीने और दूध का ही आहार ऋतुकाल के उपरांत शुद्ध होने पर पीते रहने से उस स्त्री की पुत्र-प्राप्ति की अभिलाषा अवश्य ही पूरी हो जाती है .
    १२. पुत्र की अभिलाषा रखने वाली स्त्री को चाहिए की वा ऋतु-स्नान से एक दिन पूर्व शिवलिंगी की बेल की जड़ मे तांबे का एक सिक्का ओर एक साबुत सुपारी रखकर निमंत्रण दे ओर दूसरे दिन सूर्योदय से पूर्व ही वहाँ जाकर हाथ ज्ड़कर प्रार्थना करे – हे विश्ववैद्या ! इस पुतरहीन की चिकित्सा आप स्वयम् ही करें! पुत्र च्चवि-विहीन इसकी कुटिया की संतान के मुखमंडल की आभा से आप ही दीप्त करें! ऐसा कहकर शिवलिंग की बेल की जड़ मे अपने आँचल सहित दोनों हाथों को फैलाकर घुटने के बल बैठ जाएँ ओर सिर को बेल की जड़ से स्पर्श कराकर प्रणाम करें! तत्पश्चात शिवलिंगी के पाँच पके हुए लाल फल तोड़कर अपने आँचल मे लपेट कर घर आ जाएँ . उसके बाद काली गाय के थोड़े से दूध मे शिवलिंगी के सभी दाने पीस-घोलकर इसी के दूध के साथ पी जावें तो पुत्र प्राप्ति होगी .
    १३. रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक (मदार ) की जड़ बंध्या स्त्री की कमर में बाँध दे इससे गर्भधारण करके वह संतान को जन्म अवश्य ही देगी।



    १४. पति-पत्नी दोनं अथवा दोनं में से की भी आस्था और श्रद्धाभाव से भगवान श्रीकृष्ण का एक बालरूपी चित्र अपने कक्ष में लगाकर प्रतिदिन १०८ बार निम्न मन्त्र का जप पुरे एक वर्ष तक करें। उसकी मनकामना अवश्य ही पूर्ण हो जायेगी। मन्त्र यह है –

    देवकी सूत गोविन्द वासुदेव जगत्पते। देहि में तनयं कृष्ण त्वामह शरणंगता।।
    १५. गुरुवार या रविवार को पुष्य नक्षत्र में श्वेत पुष्प वाली कटेरी की जड़ उखाड़ लाएं। मासिक-धर्म से निवृत होकर,ऋतू-स्नान कर लेने पर चौथे या पांचवें दिन कटेरी की को लगभग दस गाय में (दूध बछड़े वाली गाय का हो) पीसकर पुत्र की अभिलषिणी उस स्त्री को पिला दें जिसके पहले से कोई संतान न हो (अर्थात विवाहोपरांत संतान का मुह भी जिसने न देखा हो)। जड़ी-सेवन के ठीक ( इससे पहले नहीं) स्त्री पति-समागम करे तो प्रथम संतान के रूप में पुत्र को ही जन्म देगी।
    नोट – (कटेरी एक काँटेदार झड़ी जाती का पौधा होता है, जिस पर श्वेत डब्ल्यू पीत वार्णीय पुष्प लगते हैं| उक्त प्रयोग के लिए श्वेत पुष्प की कटेरी की जड़ ही प्रयुक्त होती है | उसे ही शुभ दिन, मुहूर्त अथवा शुभ पर्व या पुष्य नक्षत्र मे आमंत्रित करके लानी चाहिए |
    १६. यदि किसी रजस्वला स्त्री को स्वप्न में नागदेवता के दर्शन हो जाएँ तो स्वयं को कृतार्थ समझना चाहिए | यह इस बात का संकेत है की उसके द्वारा की गई क्रिया सफल हुई है| उसे अवश्य तथा शीघ्र ही सुन्दर, यशस्वी और दीर्घायु संतान प्राप्त होगी |

    किडनी फेल (गुर्दे खराब) की अमृत औषधि 

    प्रोस्टेट ग्रंथि बढ्ने से मूत्र बाधा की हर्बल औषधि

    सिर्फ आपरेशन नहीं ,पथरी की 100% सफल हर्बल औषधि

    आर्थराइटिस(संधिवात)के घरेलू ,आयुर्वेदिक उपचार

        
    विशिष्ट परामर्श-
       
    "दामोदर नारी कल्याण"  स्त्रियॉं के रोगों की रामबाण औषधि है|सफ़ेद पानी जाना,पीरियड्स  की समस्याएँ,रक्ताल्पता,बंध्यत्व,दुर्बलता,रक्त प्रदर,आदि स्त्री रोगों मे प्रभावशाली  है| पुन: ऊर्जावान योवन प्राप्ति  मे सहायक है|बेशकीमती  जड़ी बूटियों  की हर्बल औषधि वैध्य दामोदर जी से   98267-95656  पर फोन कर मंगावा सकते हैं|









    19.4.17

    होम्योपैथी से प्रदर ,सफ़ेद पानी जाने की चिकित्सा



    ल्यूकोरिया के लक्षण-
    प्रदर रोग का सामान्य लक्षण योनिस्राव तो है ही, जिसका आरम्भ कमर दर्द, जांघों में दर्द, जोड़ों में दर्द, पेडू में भारीपन, पेडू में दबाव मात्र से दर्द आदि प्रमुख लक्षण हैं।
    स्राव पहले पतला, स्वच्छ और गोंद जैसा लसदार, गंधहीन होता है, जिससे अधोवस्त्र पर सफेद दाग पड़ जाया करते हैं। इस अवस्था में कमजोरी, बेचैनी, सिरदर्द, जंभाई आना, मुख-तालु का सूखना, होंठों पर पपड़ी, त्वचा का रूखापन आदि लक्षण दिखते हैं। इसे ‘सोरा’ रोग भी कहते हैं।
    कालांतर में योनिस्राव अधिक गाढ़ा दुर्गन्धयुक्त सफेद दूधिया रंग का या पीले, हरे रंग का हो जाता है।
    प्रदर के कारण बेचैनी, आलस्य और चिड़चिड़ापन आ जाता है और चेहरे की रौनक और सौंदर्य खत्म होने लगता है। चेहरे और शरीर की त्वचा रूखी होने से झाई, झुर्रियां आदि सौंदर्य सम्बंधी समस्याओं का जन्म होने लगता है। इसीलिए ‘प्रदर’ को स्त्री रूप का चोर अथवा सौंदर्य का दुश्मन कहा गया है।
    प्रदर स्वयं एक रोग ही नहीं, बल्कि कई रोगों का लक्षण भी है। इसे छोटी-मोटी बीमारी समझना या संकोचवश चिकित्सा न कराना, कालांतर में किसी भयंकर गुप्त रोग का कारण भी बन सकता है।
    एल्युमिना : प्रदर गाढ़ा, अत्यधिक चिपचिपा, पारदर्शी, जलन, दिन में अधिक ऋतुस्राव के बाद भी अधिक प्रदर ठंड़े पानी से धोने पर आराम, कब्ज के साथ लसदार प्रदर। पेट में बाई तरफ दर्द, आलू खाने की तीव्र इच्छा, किन्तु खाने के बाद परेशानियां बढ़ जाना, जल्दबाजी, बिस्तर पर पहुंचते ही त्वचा में अत्यधिक जलन एवं खुजली आदि लक्षण मिलने पर 30 अथवा 200 शक्ति में दवा प्रयुक्त करनी चाहिए।
    पल्सेटिला : प्रदर चुभने वाला, चिपचिपा, जलन, चिकना, कमर में दर्द, ऋतुस्राव कम मात्रा में, प्रदर का रंग परिवर्तनीय (कभी हरा, कभी पीला), रोगिणी अपनी परेशानियों का ब्योरा देते-देते रोने लगती है और चुप कराने पर शांत हो जाती है, गर्म एवं चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ पचा नहीं पाती, जी मचलाना, जीभ सूखी किन्तु प्यास नहीं, रोगिणी बहुत भावनात्मक होती है, रोगिणी खुली हवा में व ठंड़े पेय पदार्थ पीने पर ठंडी वस्तुओं के प्रयोग से ठीक रहती है, गर्मी से परेशानियां बढ़ जाती है। 30 एवं 200 शक्ति में दवा लेनी चाहिए।
    सीपिया : यौनांग शिथिल, ऐसा लगता है, जैसे योनि से गर्भाशय आदि बाहर निकल आएंगे, रोगिणी टांग पर टांग रखकर बैठती है। अनियमित मासिक, हरा, पीला अत्यंत खुजलीदार प्रदर, मैथुन कष्टप्रद। 30 एवं 200 शक्ति में लेनी चाहिए।
    बोरैक्स : ल्युकोरिया, अत्यधिक मात्रा में ऐसा आभास, जैसे योनि से गर्म पानी रिस-रिसकर पैर की एड़ियों तक पहुंच गया है, चिपचिपा, गाढ़ा, अण्डे जैसा सफेद प्रदर, शिशु जन्म के बाद स्त्रियों में अधिक दूध बनना, स्तनों से दूध टपकना, बच्चे को एक स्तन से दूध पिलाने पर दूसरे स्तन में दर्द, ऋतुस्राव अनियमित, दर्द के साथ स्राव आदि लक्षण मिलने पर 3 × अथवा 30 शक्कि में दवा प्रयोग करनी चाहिए।
    कैल्केरिया कार्ब : सफेद गाढ़ा प्रदर, अधिक मात्रा में अधिक समय तक ऋतुस्राव के पहले व बाद में योनि में जलन एवं खुजली, छोटी बच्चियों में सफेद पानी की शिकायत, चॉक, खड़िया, पेंसिल जैसी वस्तुएं खाने की प्रबल इच्छा, मीट एवं दूध और तली वस्तुओं के प्रति अनिच्छा, गोरी, मोटी सुंदर स्त्री को जरा-सी मानसिक या शारीरिक कार्य करने पर परेशानियां लौट आती हैं, यौनांगों पर अधिक पसीना, ऋतुस्राव से पूर्व स्तनों में दर्द आदि लक्षण मिलने पर 200 शक्ति में कुछ ही खुराक लेना श्रेयस्कर रहता है।
    सफेद पानी की लक्षण अनुसार दवा
    ● काला प्रदर – ‘सिनकोना’ 30
    ● लाल (रक्त) प्रदर – ‘सिनकोना’ 30, ‘क्रियोजोट’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘थेलस्पी’ मूल अर्क में।
    ● भूरा प्रदर होने पर – ‘लिलियमटिग’ 30, ‘सीपिया’ 30
    ● मांस के धोवन जैसा प्रदर – ‘नाइट्रिक एसिड’ 30
    ● माहवारी के बाद अथवा बीच में – ‘क्रियोजोट’ 30, ‘बोरेक्स’ 30
    ● पेशाब के बाद प्रदर – ‘क्रियोजोट’ 30, ‘अमोनमूर’ 30, ‘सीपिया’ 30
    ● पाखाने के बाद प्रदर – ‘मैगमूर’ 30
    ● रात में प्रदर – ‘मरक्यूरियस’ 30
    ● ठंडे पानी से धोने पर प्रदर में लाभ – ‘एलूमिना’ 30
    चलने-फिरने से प्रदर बढ़ता है – ‘बोविस्टा’ 30, ‘मैगमूर’ 30
    ● आराम करने पर प्रदर बढ़ता है – ‘फैगोपाइरियम’ 6 ×
    ● दूध जैसा सफेद प्रदर – ‘बोरैक्स’ 30, ‘कैल्केरिया’ 30, ‘साइलेशिया’ 30
    ● हरा प्रदर – ‘बोविस्टा’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘काली सल्फ 3 x, ‘म्यूरेक्स’ 30, ‘पल्सेटिला’ 30
    ● खुजली रहने पर – ‘एम्ब्राग्रीसिया’ 30, ‘क्रियोजोट’ 30, ‘मरक्यूरियस’ 30, ‘सीपिया’ 30
    ● अत्यधिक गाढ़ा प्रदर – ‘बोविस्टा’ 30, ‘ग्रेफाइटिस’ 30
    ● कपड़ा पीला रंग दे – ‘एनसकैस्टस’ 30, ‘काली सल्फ’ 3 x, ‘हाइड्रेस्टिस’ मूल अर्क
    ● एलबूमिन (अंडे की सफेदी जैसा) प्रदर – ‘एलूमिना’ 30, ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200, ‘अमोनमूर’ 30, “बोरैक्स’ 30
    ● लसलसा, खिंचने वाला प्रदर – ‘कालीबाई’ 30, ‘सैबाइना’ 30
    ● बैठने पर बढ़ता है, चलने पर ठीक रहता है – ‘काक्युलस’ 30
    ● दिन में ही रहता है – ‘एलूमिना’ 30, ‘प्लेटिना’ 30
    ● कमर दर्द रहने पर – ‘एस्कुलस’ 30, ‘म्यूरेक्स’ 30
    ● प्रदर के साथ दस्त होने पर – ‘पल्सेटिला’ 30
    ● प्रदर के साथ पेशाब में जलन एवं दर्द – ‘एरिजेरोन’ मूल अर्क में एवं ‘क्रियोजोट’ 30
    ●छीलने वाला, जलन करने वाला प्रदर – ‘एण्टिमकूड’ 30, ‘कोनियम मैक’ 30, ‘यूकेलिप्टस’ मूल अर्क, ‘क्रियोजोट’ 30
    ● प्रदर के साथ तेज दर्द – ‘मैग कार्ब’ 30
    ● स्लेटी प्रदर – ‘बरबेरिस वल्गेरिस’ मूल अर्क।
    ● बच्चियों में प्रदर रहने पर – ‘कैल्केरिया कार्ब’ 200, ‘क्यूबेबा’ 30, ‘पल्सेटिला’ 30
    ● बुढ़िया व कमजोर औरतों में – ‘हेलोनियास’ 30
    ● नीला प्रदर – ‘एम्ब्राग्रीसिया’ 30
    ● माहवारी के स्थान पर प्रदर – ‘काक्युलस’30, ‘आयोडियम’ 30, ‘नक्समॉशचेटा’ 30, ‘सीपिया’ 30
    ● प्रदर के साथ पेट में दर्द रहने पर – ‘अमोनमूर’ 30, ‘मैगमूर’ 30, ‘सीपिया” 30
    सावधानी
    • महिलाओं को अपने पौष्टिक आहार का ध्यान रखते हुए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा व विटामिनयुक्त संतुलित भोजन नियमित रूप से करना चाहिए।
    • यकृत, फेफड़ों, पाचन तंत्र के विकारों से बचना चाहिए। रक्तहीनता, कमजोरी आदि से भी बचाव आवश्यक है।
    • चिंता, परिवार में कलह, अधिक निद्रा पर भी काबू रखना हितकर रहता है।
    • महिलाओं को शराब व धूम्रपान से बचना चाहिए।
    • ऋतुस्राव की अनियमितता, गर्भाशय अथवा योनि विकार अथवा कोई अन्य बीमारी होने पर योग्य चिकित्सक से उचित सलाह आवश्यक है। नित्यप्रति नहाना आवश्यक है।
    • ‘प्रदर’ से बचने के लिए यौनांगों की सफाई रखना विशेष रूप से आवश्यक है।
    • उत्तेजक विचारों से बचना चाहिए।
    • तैलीय अथवा खट्टे पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।
    • गर्भाशय अथवा योनिमार्ग के किसी संक्रमण अथवा सूजन की फौरन जांच करानी चाहिए।
    • गर्भपात नहीं कराना चाहिए।

    ब्रायोनिया (Bryonia) होम्योपैथिक औषधि के गुण उपयोग

                                                               

    "लक्षण
    लक्षणों में कमी
    *जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में ब्रायोनिया की गति, धीमी, एकोनाइट तथा बेलाडोना की जोरों से और एकाएक होती है।
    *दर्द वाली जगह को दबाने से रोग में कमी होना
    *हरकत से रोगी की वृद्धि और विश्राम से रोग में कमी
    *ठडी हवा से आराम
    *जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटे रहने से आराम (जैसे, प्लुरिसी में)
    *आराम से रोग में कमी
    *श्लैष्मिक-झिल्ली का खुश्क होना और इसलिये देर-देर में, बार-बार अधिक मात्रा में पानी पीना
    *गठिये में सूजन पर गर्म सेक से और हरकत से रोगी को आराम मिलना
    *रजोधर्म बन्द होने पर नाक या मुँह से खून गिरना या ऐसा होने से सिर-दर्द होना
    लक्षणों में वृद्धि
    खाने के बाद रोग में वृद्धि
    गठिये में गर्मी और हरकत से आराम 
    सूर्योदय के साथ सिर-दर्द शुरू होना सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाना
    हरकत से रोग बढ़ जाना
    क्रोध आदि मानसिक-लक्षणों से रोग

    बिदारीकन्द के औषधीय उपयोग 




    क्रोध से वृद्धि

    (1) जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में ब्रायोनिया की गति धीमी, एकोनाइट तथा बेलाडोना की तेज, जोरों की, और एकाएक होती है – 
    प्राय: लोग जुकाम, खांसी, ज्वर आदि रोगों में एकोनाइट या बेलाडोना दे देते है, और समझते हैं कि उन्होंने ठीक दवा दी। परन्तु चिकित्सक को समझना चाहिये कि जैसे रोग के आने और जाने की गति होती है, वैसे ही औषधि के लक्षणों में भी रोग के आने और जाने की गति होती है। इस गति को ध्यान में रखकर ही औषधि का निर्वाचन करना चाहिये, अन्यथा कुछ लक्षण दूर हो सकते हैं, रोग दूर नहीं हो सकता। उदाहरणार्थ, एकोनाइट का रोगी हिष्ट-पुष्ट होता है, ठंड में जाने से उसे बड़ी जोर का जुकाम, खांसी या बुखार चढ़ जाता है। शाम को सैर को निकला और आधी रात को ही तेज बुखार चढ़ गया। बेलाडोना में भी ऐसा ही पाया जाता है, परन्तु उसमें सिर-दर्द आदि मस्तिष्क के लक्षण विशेष होते हैं। ब्रायोनिया में ऐसा नहीं होता। रोगी ठंड खा गया, तो उसके लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होंगे। पहले दिन कुछ छींके आयेंगी, दूसरे दिन नाक बहने लगेगा, तीसरे दिन बुखार चढ़ जायगा। बुखार, जैसे धीरे-धीरे आय वैसे धीरे-धीरे ही जायेगा। इसीलिये टाइफॉयड में एकोनाइट या बेलाडोना नहीं दिया जाता, उसके लक्षण ब्रायोनिया से मिलते हैं। औषधि देते हुए औषधि की गति और प्रकृति को समझ लेना जरूरी है। रोग के लक्षणों और औषधि की गति तथा प्रकृति के लक्षणों में साम्य होना जरूरी है, तभी औषधि लाभ करेगी। रोग दो तरह के हो सकते हैं-स्थायी तथा अस्थायी। स्थायी-रोग में स्थायी-प्रकृति की औषधि ही लाभ करेगी, अस्थायी-रोग में अस्थायी-प्रकृति की औषधि लाभ करेगी। एकोनाइट और बेलाडोना के रोग तेजी से और एकाएक आते हैं, और एकाएक ही चले जाते हैं। ऐसे रोगों में ही ये दवायें लाभप्रद हैं। ब्रायोनिया, पल्सेटिला के रोग शनै: शनै: आते हैं, और कुछ दिन टिकते हैं। इसलिये शनै: शनै: आनेवाले और कुछ दिन टिकने वाले रोगों में इन दवाओं की तरफ ध्यान जाना चाहिये। थूजा, साइलीशिया, सल्फर आदि के रोग स्थायी-प्रकृति के होते हैं, अत: चिर-स्थायी रोगों के इलाज के लिये इन औषधियों का प्रयोग करना चाहिये। इसीलिये जब रोग बार-बार अच्छा हो-हो कर लौटता है तब समझना चाहिये कि यह स्थायी-रोग है, तब एकोनाइट से लाभ नहीं होगा, तब सल्फर आदि देना होगा क्योंकि एकोनाइट की प्रकृति ‘अस्थायी’ (Acute) है, और सल्फर की प्रकृति ‘स्थायी’ (Chronic) है।

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    2) हरकत से रोग की वृद्धि और विश्राम से कमी – 
    दर्द होने पर हरकत से रोग बढ़ेगा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है, परन्तु हरकत से रोग बढ़ने का गूढ़ अर्थ है। अगर रोगी लेटा हुआ है, तो आंख खोलने या आवाज सुनने तक से रोगी कष्ट अनुभव करता है। डॉ० मुकर्जी ने अपने ‘मैटीरिया मैडिका’ में स्वर्गीय डॉ० नाग का उल्लेख करते हुए लिखा है कि उन्होंने हैजे के एक रोगी को यह देखकर कि आंखें खोलने से ही उसे पाखाना होता था, ब्रायोनिया देकर ठीक कर दिया। वात-रोग, गठिया, सूजन, गिर जाने से दर्द आदि में हरकत से रोग की वृद्धि होने पर ब्रायोनिया लाभ करता है। इस प्रकार के कष्ट में आर्निका से लाभ न होने पर ब्रायोनिया से लाभ हो जाता है। ब्रायोनिया में हरकत से रोग की वृद्धि होती है-इस लक्षण को खूब समझ लेना चाहिये। अगर किसी व्यक्ति को ठंड लग गई है, रोग धीरे-धीरे बढ़ने लगा है, एक दिन छीकें, दूसरे दिन शरीर में पीड़ा तीसरे दिन बुखार-इस प्रकार रोग धीरे-धीरे बढ़ने लगा है, और वह साथ ही यह भी अनुभव करने लगता है कि वह बिस्तर में आराम से, शान्तिपूर्वक पड़े रहना पसन्द करता है; न्यूमोनिया, प्लुरिसी का दर्द शुरू नहीं हुआ, परन्तु वह देखता है कि रोग की शुरूआत से पहले ही उसकी तबीयत आराम चाहती है, हिलने-डुलने से उसका रोग बढ़ता है; ऐसी हालत में ब्रायोनिया ही दवा है। दायें फफड़े के न्यूमोनिया में उक्त-लक्षण होने पर ब्रायोनिया और बांये फफड़े के न्यूमोनिया में उक्त-लक्षण होने पर एकोनाइट फायदा करता है।

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    यह तो ठीक है कि ब्रायोनिया में हरकत से रोग की वृद्धि होती है, परन्तु कभी-कभी ब्रायोनिया का रोगी दर्द से इतना परेशान हो जाता है कि चैन से लेट भी नहीं सकता। वह उठकर घूमना-फिरना नहीं चाहता, परन्तु दर्द इतना प्रबल होता है कि पड़े रहने में भी उसे चैन नहीं मिलता। शुरू-शुरू में वह चैन से पड़े रहना चाहता था, परन्तु अब तकलीफ़ इतनी बढ़ गई है कि न चाहते हुए भी इधर-उधर टहलने लगता है। इस हालत में चिकित्सक रस टॉक्स देने की सोच सकता है, परन्तु इस बेचैनी से टहलने में जिसमें रोग की शुरूआत में रोगी टहल नहीं सकता था, जिसमें अब भी दिल तो उसका आराम से लेटने को चाहता है, परन्तु दर्द लेटने नहीं देता, ऐसी हालत में हिलने-डुलने पर भी ब्रायोनिया ही दवा है। रोग का उपचार करते हुए रोग की समष्टि को ध्यान में रखना चाहिये, सामने जो लक्षण आ रहे हैं उनके पीछे छिपे लक्षणों को भी आँख से ओझल नहीं होने देना चाहिये।
    हरकत से दस्त आना परन्तु रात को दस्त न होना – जब तक रोगी रात को लेटा रहता है दस्त नहीं आता, परन्तु सवेरे बिस्तर से हिलते ही उसे बाथरूम में दौड़ना पड़ता है। पेट फूला रहता है, दर्द होता है और टट्टी जाने की एकदम हाजत होती है। बड़ा भारी दस्त आता है, एक बार ही नहीं, कई बार आ जाता है, और जब रोगी टट्टी से निबट लेता है तब शक्तिहीन होकर मृत-समान पड़ा रहता है, थकावट से शरीर पर पसीना आ जाता है। अगर लेटे-लेटे जरा भी हरकत करे, तो फिर बाथरूम के लिये दौड़ना पड़ता है। जो दस्त दिन में कई बार आयें और रात को जब मनुष्य हरकत नही करता बन्द हो जायें, उन्हें यह दवा ठीक कर देती है। पैट्रोलियम में रोगी रात को कितनी भी हरकत क्यों न करे उसे दस्त नहीं होता, सिर्फ दिन की दस्त होता है, रात को नहीं होता; ब्रायोनिया में दिन को दस्त होता है, रात को जरा-सी भी हरकत करे तो दस्त की हाजत हो जाती है, अन्यथा रात को दस्त नहीं होता।

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    (3) जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटे रहने से आराम (जैसे, प्लुरिसी) –
    यह लक्षण हरकत से रोग-वृद्धि के लक्षण का ही दूसरा रूप है। जिधर दर्द हो उधर का हिस्सा दबा रखने से वहां हरकत नहीं होती इसलिये दर्द की तरफ लेटे रहने से रोगी को आराम मिलता है। प्लुरिसी में जिधर दर्द हो उधर लेटने से आराम मिले तो ब्रायोनिया लाभ करेगा। प्लुरिसी में ब्रायोनिया इसलिये लाभ करता है क्योंकि फेफड़े के आवरण में जो शोथ हो जाती है, वह सांस लेते हुए जब साथ के आवरण को छूती है, तब इस छूने से दर्द होता है, परन्तु उस हिस्से को दबाये रखने से यह छूना बन्द हो जाता है, इसलिये कहते हैं कि ब्रायोनिया में जिस तरफ दर्द हो उस तरफ लेटने से आराम मिलता है। असल में, यह लक्षण ‘हरकत से रोग की वृद्धि’ – इस लक्षण का ही दूसरा रूप है। जब दर्द का हिस्सा दब जाता है तब हरकत बन्द हो जाती है।
    डॉ० बर्नेट प्रसिद्ध होम्योपैथ हुए हैं। वे पहले एलोपैथ थे। उन्हें होम्योपैथ बनाने का श्रेय ब्रायोनिया की है। वे लिखते हैं कि बचपन में उन्हें बायीं तरफ प्लुरिसी हो गई थी जिससे नीरोग होने पर भी उन्हें फेफड़े में दर्द बना रहा। सभी तरह के इलाज कराये-एलोपैथी के, जल-चिकित्सा के, भिन्न-भिन्न प्रकार के फलाहार के, भोजन में अदला-बदली के, परन्तु किसी से रोग ठीक न हुआ। अन्त में यह देखने के लिये कि होम्योपैथ इसके विषय में क्या कहते हैं, वे होम्योपैथी पढ़ने लगे। पढ़ते-पढ़ते ब्रायोनिया में उन्हें अपने लक्षण मिलते दिखाई दिये। उन्होंने ब्रायोनिया खरीद कर उसका अपने ऊपर प्रयोग किया और जो कष्ट सालों से उन्हें परेशान कर रहा था, जो किसी प्रकार के इलाज से ठीक नहीं हो रहा था, वह 15 दिन में ब्रायोनिया से ठीक हो गया। यह अनेक कारणों में से एक कारण है जिसने उन्हें एलोपैथ से होम्योपैथ बना दिया।

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    (4) श्लैष्मिक-झिल्ली का खुश्क होना और इसलिये देर-देर में, बार-बार अधिक मात्रा में पानी पीना – खुश्की के कारण रोगी के होंठ सूख जाते हैं, खुश्की के कारण वे चिटक जाते हैं, खून तक निकलने लगता है। एरम ट्रिफि में हम देख आये हैं कि होठों और नाक की खुश्की इस कदर बढ़ जाती है कि रोगी उन्हें नोचता-नोचता खून तक निकाल देता है। नाक में अंगुली घुसेड़ता जाता है। ब्रायोनिया में इसी खुश्की के कारण उसे प्यास बहुत लगती है। देर-देर में पानी पीता है परन्तु अधिक मात्रा में पीता है। एकोनाइट में जल्दी-जल्दी, ज्यादा-ज्यादा; आर्सेनिक में जल्दी-जल्दी थोड़ा-थोड़ा; ब्रायोनिया में दिन-रात देर-देर में ज्यादा-ज्यादा ठंडा पानी पीता है। नक्स मौस्केटा और पल्स में प्यास नहीं रहती।
    श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की और कब्ज – श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की का असर आंतों पर भी पड़ता है। रोगी को कब्ज रहती है। सूखा, सख्त, भुना हुआ-सा मल आता है। बहुत दिनों में टट्टी जाता है। सख्त मल को तर करने के लिये पेट में श्लेष्मा का नामोनिशान तक नहीं होता। अगर पेट में से म्यूकस निकलता भी है तो टट्टी से अलग, टट्टी खुश्क ही रहती है। भयंकर कब्ज को यह ठीक कर देता है।
    श्लैष्मिक-झिल्ली की खुश्की और खुश्क खांसी – 
    श्लैष्मिक-झिल्ली की शुष्कता का असर फफड़ों पर भी पड़ता है। खांसते-खांसते गला फटने-सा लगता है, परन्तु कफ भीतर से नहीं निकलता। ठंड से गरम कमरे में जाने से खांसी बढ़ने में ब्रायोनिया और गरम कमरे से ठंडे कमरे में जाने से खांसी बढ़े तो फॉसफोरस या रुमेक्स ठीक हैं। ब्रायोनिया की शिकायतें प्राय: नाक से शुरू होती हैं। पहले दिन छीकें, जुकाम, नाक से पानी बहना, आंखों से पानी, आंखों में और सिर में दर्द। इसके बाद अगले दिन शिकायत आगे बढ़ती है, तालु में गले में, श्वास प्रणालिका में तकलीफ बढ़ जाती है। अगर इस प्रक्रिया को रोक न दिया जाय, तो प्लुरिसी, न्यूमोनिया तक शिकायत पहुंच जाती है। इन सब शिकायतों में रोगी हरकत से दु:ख मानता है, आराम से पड़े रहना चाहता है। श्वास-प्रणालिका की शिकायतों-जुकाम, खांसी, गला बैठना, गायकों की आवाज का पड़ जाना, गले में टेटवे का दर्द आदि-में इस औषधि पर विचार करना चाहिये।

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    (5) रजोधर्म बन्द होने के बाद नाक या मुँह से खून गिरना या सिर-दर्द – 
    यह ब्रायोनिया का विश्वसनीय लक्षण है। अगर रोगिणी नाक या मुँह से खून निकलने की शिकायत करे, तो उसे यह पूछ लेना चाहिये कि उसका रजोधर्म तो बन्द नहीं हो गया। मासिक बन्द होने से भी सिर-दर्द हो जाया करता है।
    (6) सूर्योदय के साथ सिर-दर्द शुरू होना, सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाना – 
    कब्ज़ होने से भी सिर-दर्द शुरू हो जाता है। इस सिर-दर्द का लक्षण यह है कि यह सूर्योदय के साथ शुरू होता है, सूर्यास्त के साथ बन्द हो जाता है। इसके साथ ब्रायोनिया के अन्य लक्षण भी रह सकते हैं, यथा हिलने-डुलने से सिर-दर्द का
    बढ़ना, आँख खुलते ही बढ़ना।
    सिर-दर्द में ब्रायोनिया और बेलाडोना की तुलना – सूर्योदय के साथ संबंध न होने पर भी ब्रायोनिया में सिर-दर्द हो सकता है। प्रत्येक अस्थायी-रोग में सिर-दर्द उसके साथ जुड़ा ही रहता है। इतना सिर-दर्द होता है कि सिर को दबाने से ही आराम आता है। ब्रायोनिया के सिर-दर्द में रोगी को गर्मी सहन नहीं होती। हरकत से सिर-दर्द बढ़ता है, आँख झपकने तक से सिर में पीड़ा होती है। इस सिर-दर्द का कारण सिर में रक्त-संचय है। बेलाडोना में भी सिर में रक्त-संचय के कारण सिर-दर्द होता है, परन्तु दोनों में अन्तर यह है कि बेलाडोना का सिर-दर्द आधी-तूफान की तरह आता है, यकायक आता है, ब्रायोनिया का सिर-दर्द धीरे-धीरे आता है, उसकी चाल मध्यम और धीमी होती है। दोनों औषधियों की यह प्रकृति है – एकदम आना बेलाडोना की, और धीमे-धीमे आना ब्रायोनिया की प्रकृति है।

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    (7) क्रोध आदि मानसिक-लक्षणों से रोग की उत्पत्ति –
     ब्रायोनिया में अनेक मानसिक-लक्षण हैं। बच्चा क्रोध करता है और जो वस्तु मिल नहीं सकती उसे फौरन चाहता है और दिये जाने पर उसे परे फेंक देता है; तरह-तरह की चीजों के लिये जिद करता और दे दी जायें तो लेने से इन्कार करता है; घर में होने पर भी कहता है-घर में जाऊंगा, उसे ऐसा गलता है कि वह घर में नहीं है। बड़ा आदमी अपने रोजगार की बातें अंटसंट बका करता है। ये लक्षण मानसिक रोग में, डिलीरियम आदि में प्रकट होते हैं। क्रोध से उत्पन्न मानसिक-लक्षणों में स्टैफ़िसैग्रिया भी उपयोगी है। अगर रोगी कहे: डाक्टर, अगर मेरा किसी से झगड़ा हो जाय, तो मैं इतना उत्तेजित हो जाता हूँ कि(iv) दांत के दर्द में दबाने और ठंडे पानी से लाभ – दांत के दर्द में मुँह में ठंडे पानी से लाभ होता है क्योंकि ब्रायोनिया ठंड पसन्द करने वाली दवा है। जिधर दर्द हो उधर लेटने पर दर्द वाली जगह को दबाने से आराम मिलता है। यह भी ब्रायोनिया का चरित्रगत-लक्षण है। होम्योपैथी में रोग तथा औषधि की प्रकृति को जान कर उनका मिलान करने से ही ठीक औषधि का निर्वाचन हो सकता है। ठंडे पानी से और दर्द वाले दांत को दबाने से रोग बढ़ना चाहिये था, परन्तु क्योंकि ब्रायोनिया में ठंड से और दर्द वाली जगह को दबाने से आराम होना इसका ‘व्यापक-लक्षण’ (General symptom) है, इसलिये ऐसी शिकायत में ब्रायोनिया से लाभ होता है।

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    *गर्म-शरीर में शीत से रोग में वृद्धि –
     शरीर गर्म हो जाने पर ठंडा पानी पीने, या उसमें स्नान से रोग बढ़ जाता है। यद्यपि ब्रायोनिया के रोगी को ठंड पसन्द है, ठंडा पानी उसे रुचता है, परन्तु अगर वह गर्मी से आ रहा है, शरीर गर्म हो रहा है, तब ठंडा पानी पीने या ठंडे स्नान से उसे गठिये का दर्द बढ़ जायगा। अगर उसे खांसी होगी या सिर-दर्द होता होगा, वह बढ़ जायगा, या हो जायगा। शरीर के गर्म रहने पर ठडा पानी पीने से जोर का सिर-दर्द हो जायगा। ब्रायोनिया की तरह रस टॉक्स में भी शरीर हो, तो ठडे जल से सिर-दर्द आदि तकलीफ भयंकर रूप धारण कर लेंगी। अगर शरीर की गर्मी की हालत में ठंडा पानी पी लिया जायगा, तो पेट की भी शिकायत पैदा हो सकती है जिसमें ब्रायोनिया लाभ करेगा।
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